Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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मोक्षस्वरूपविचारः
२२१ विशेषगुणानां सन्तानः सिद्धो यतः हेतोराश्रयासिद्धिर्न स्यात् ? तथा तेषां परेणास्वसंविदितत्वेनाभ्युपगमात् । ज्ञानान्तरग्राह्यत्वे चानवस्थादिदोषप्रसक्तः, अज्ञानस्य च सत्त्वाप्रसिद्धः पुनरप्याश्रयासिद्धत्वम् । आत्मनोऽभिन्नानां तत्साधने तु तस्याप्यत्यन्तोच्छेदप्रसङ्गात् कस्थासौ मोक्षः ? कथञ्चिदभेदस्तू नाभ्युपगम्यते । अभ्युपगमे वा नात्यन्तोच्छेदसिद्धिः इत्यनन्तरं वक्ष्यामः। . .: सन्तानत्वं च हेतुः सामान्यरूपम्, विशेषरूपं वा ? सामान्यरूपं चेत्, परसामान्यरूपम्, अपरसामान्यरूपं वा ? प्रथमपक्षे गगनादिनानेकान्तः; अत्यन्तोच्छेदाभावेप्यत्र हेतोर्वर्तनात् । सत्तासामान्यरूपत्वे च सन्तानत्वस्य सत् सत्' इति प्रत्ययहेतुत्वमेव स्यात् न पुनः सन्तानप्रत्ययहेतुत्वम् । अथ
आदि गुण आत्मासे सर्वथा पृथक हैं तो उनका सम्बन्ध आत्मामें ही हो अन्य आकाशादि द्रव्योंमें न हो ऐसा नियम नहीं बन सकता, जब आत्माके विशेषगुण ही सिद्ध नहीं होते तो उनके संतानका उच्छेद होना रूप मोक्ष भी किसप्रकार सिद्ध हो सकता है ? अर्थात् नहीं होता । अत: वैशेषिक द्वारा प्रयुक्त अनुमान असत् है कि बुद्धि आदि विशेष गुणों की संतान अत्यन्त नष्ट हो जाती है क्योंकि वह. संतानरूप हैं । यह संतानत्व हेतु पूर्वोक्त रीत्या आश्रयासिद्ध [ आश्रय रहित ] ठहरता है क्योंकि विशेषगुण ही सिद्ध नहीं है तो उनकी संतान किस आश्रयमें रहेगी ? बुद्धि आदि गुणोंको वे लोग अस्वसंविदित मानते हैं, सो इस विषयमें पहले स्वसंवेदन ज्ञानवाद प्रकरणमें [प्रथम भागमें] विशदरीत्या प्रतिपादन कर चुके हैं कि बुद्धि आदि गुण स्वयं के द्वारा आबाल गोपलोंको संवेदनमें आ रहे हैं।
उन गुणोंको अन्य ज्ञान द्वारा ग्राह्य माने तो अनवस्था आदि दोषोंका प्रसंग आता है, इस तरह अज्ञानरूप उन गुणोंकी सत्ता ही सिद्ध नहीं हो पाती, इसीलिये संतानत्व हेतु प्राश्रयासिद्ध है । यदि उन गुणोंको प्रात्मासे अभिन्न सिद्ध किया जाय तो गुणोंके अत्यन्त उच्छेदसे आत्माका भी अत्यन्त उच्छेद हो जायगा फिर यह मोक्ष किसके होगा ? बुद्धि आदि गुण आत्मासे कथंचित् अभिन्न हैं ऐसा तो आप मानते नहीं, यदि मान लेवें तो भी गुणोंका अत्यन्त उच्छेद तो कथमपि सिद्ध नहीं होता ऐसा इसी प्रकरणमें आगे सिद्ध करेंगे।।
पूर्वोक्त संतानत्व हेतु सामान्यरूप है या विशेषरूप है ? सामान्यरूप है तो परसामान्यरूप है अथवा अपर सामान्यरूप है ? प्रथमपक्ष मानो तो आकाशादिके साथ अनैकांतिकता आती है, क्योंकि आकाशादिमें अत्यन्त उच्छेद होनारूप साध्यके नहीं
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