Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
प्रमेयंकमल मार्त्तण्डे
ज्ञानस्यान्तराभवशरीरज्ञानहेतुत्वे गर्भशरीरज्ञानहेतुत्वे वा सन्तानान्तरेपि ज्ञानजनकत्वं किन्न स्यान्नियतहेतोरभावात् ? अथेष्यते एव उपाध्यायज्ञानं शिष्यज्ञानस्य हेतुः । श्रन्यस्य कस्मान्न भवति ? कर्मवासना नियामिका चेन्न; तस्या ज्ञानव्यतिरेकेणासम्भवात् । तत्तादात्म्ये हि विज्ञानं बोधरूपतया विशिष्ट' बोधाच्च बोधरूपतेत्यविशेषेण ज्ञानं विदध्यात् ।
२१४
सुषुप्तावस्थाज्ञानस्य जाग्रदवस्थाज्ञान' कारणम् इत्यप्यसम्भाव्यम्; सुषुप्तावस्थायां च ज्ञानाभ्युपगमे जाग्रदवस्थातो विशेषो न स्यादुभयत्रापि स्वसंविदितज्ञानसद्भावाविशेषात् । मिद्ध ेनाभिभूतत्वं विशेषः; इत्यप्यसत्; तस्यापि तद्धर्मतया तादात्म्येनाभिभावकत्वायोगात् । तद्व्यतिरेके तु रूपवेद
वैशेषिक - मरणकालके शरीरका ज्ञान मध्यके शरीरके ज्ञानका हेतु है अथवा गर्भस्थ शरीरके ज्ञानका हेतु है ऐसा स्वीकार करे तो वह ज्ञान अन्य व्यक्तिके शरीरके ज्ञान हेतु भी हो सकेगा ? क्योंकि हेतु नियत तो रहा नहीं ?
बौद्ध ग्रन्यव्यक्तिके शरीरके ज्ञानका हेतु होना भी संभव है, क्योंकि उपाध्याय का ज्ञान शिष्यके ज्ञानका हेतु होता हुआ देखा जाता है ?
वैशेषिक - उपाध्यायका ज्ञान शिष्यके ज्ञानका हेतु होता है वैसे अन्य किसी व्यक्ति ज्ञानका हेतु क्यों नहीं होता अथवा शिष्यका ज्ञान उपाध्यायके ज्ञानका हेतु क्यों नहीं होता है ?
बौद्ध - कर्म वासनाके नियमके कारण ऐसा नहीं होता ?
वैशेषिक - यह उत्तर प्रयुक्त है, ज्ञान ही वासनारूप होता है ज्ञानके अतिरिक्त वासनाका होना असंभव है, क्योंकि विज्ञान बोधरूपतासे अविशिष्ट [ साधारण ] रहता है एवं संतानांतरमें ज्ञानसे ज्ञानरूपताको अविशेषरूपसे धारता है ऐसा कथन ज्ञान और वासनाका तादात्म्य स्वीकार करनेपर ही सिद्ध हो सकता है ।
दूसरी बात यह है कि जाग्रत अवस्थाका ज्ञान सुप्त अवस्थाके ज्ञानका हेतु है ऐसी पूर्वोक्त मान्यता भी असंभव है । सुप्त अवस्थामें ज्ञानको स्वीकार करनेपर जाग्रत अवस्थासे उसमें अंतर ही नहीं रहेगा, क्योंकि दोनोंमें संविदित ज्ञानका सद्भाव समान रूपसे हैं ? निद्राद्वारा ज्ञान अभिभूत होता है अतः दोनों अवस्थाओं में समानज्ञान नहीं है ऐसा कहना भी असत् है, आपके मत में ग्रभिभव [निद्रा ] आदिको भी ज्ञानका धर्म माना है अतः उस तादात्म्यरूप अभिभवद्वारा ज्ञानका अभिभूत होना बनता ही नहीं, यदि निद्रादि प्रभिभव ज्ञानसे पृथक् सत्ता वाले हैं तो रूप, वेदना आदि पदार्थोंसे पृथक्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org