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प्रमेयकमलमार्तण्डे : किंच, आत्मस्वरूपात्तन्नित्यसुखमव्यतिरिक्तम्, तद्वयतिरिक्त वा ? प्रथमपक्षे प्रात्मस्वरूपवत् सर्वदा सुखसंवित्तिप्रसङ्गाबद्धमुक्तयोरविशेषप्रसङ्गः ।
अनाद्य विद्याच्छादितत्वान्न स्वप्रकाशानन्दसंवित्तिः संसारिणः; इत्यप्यपेशलम्; आच्छाद्यते ह्यप्रकाशस्वरूपं वस्तु, यत्तु प्रकाशस्वरूपं तत्कथमन्येनाच्छाद्य त ? मेघादिना त्वादित्यादेराच्छादनं युक्तम् तस्यातोऽर्थान्तरत्वात्, मूर्तस्य मूर्तेनाच्छादनापत्तः (दनोपपत्तेः) । अविद्यायास्तु सत्त्वान्यत्वाभ्यामनिर्वचनीयतया तुच्छस्वभावत्वात् न स्वप्रकाशानन्दाच्छादकत्वम् । तन्नाद्यः पक्षो युक्तः ।
द्वितीयपक्षोप्ययुक्तः; नित्यसुखस्यात्मनोऽर्थान्तरस्य प्रत्यक्षादेः प्रतिपादकस्य प्रतिषिद्धत्वाबाधकस्य च प्रदर्शितत्वात् । तन्नपरमानन्दाभिव्यक्तिर्मोक्षः। .
वेदांती-अनादि कालकी अविद्या द्वारा नित्य सुखका आच्छादन होनेके कारण संसारी जीवोंको उसका अनुभव नहीं हो पाता ।
वैशेषिक-यह कथन असमीचीन है अप्रकाश स्वरूप वस्तुका आच्छादन होना संभव है जो प्रकाशस्वरूप वस्तु है उसका अन्य द्वारा आच्छादन किसप्रकार हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता, नित्य सुखानुभव तो प्रकाश स्वरूप है। मेघ आदि से प्रकाश स्वरूप सूर्यका आच्छादन कैसे होता है ? ऐसी आशंका भी नहीं करना क्योंकि सूर्यसे मेघादि पदार्थ एक तो पृथक् हैं दूसरे मूर्त्तका मूर्तद्वारा आच्छादन होना संभव भी है। किन्तु अविद्या सत्व और असत्व दोनों प्रकारसे ही कथन योग्य नहीं है, अतः तुच्छ स्वभावरूप होनेसे उस अविद्या द्वारा स्वप्रकाशरूप आनंद का आच्छादन हो नहीं सकता । अतः अात्मस्वरूपसे नित्य सुख अपृथक् है ऐसा प्रथम पक्ष सिद्ध नहीं होता।
दूसरा पक्ष भी अयुक्त है, क्योंकि आत्माके इस पृथभूत नित्यसुखका प्रतिपादन करनेवाला प्रत्यक्षादि कोई भी प्रमाण नहीं है ऐसा सिद्ध हो चुका है और बाधक कारण भी कह चुके हैं । अतः परम आनंद की अभिव्यक्ति होना मोक्ष है ऐसा वेदांती का कथन सिद्ध नहीं होता है ।
विशुद्ध ज्ञानकी उत्पत्ति होना मोक्ष है ऐसा बौद्ध अभिमत मोक्षका स्वरूप भी अयुक्त है, क्योंकि संसार अवस्थाके राग युक्त विज्ञानसे रागरहित विशुद्ध ज्ञानकी उत्पत्ति होना अशक्य है । जैसे ज्ञानसे ज्ञानांतरमें ज्ञानत्व पाता है वैसे रागादिसे रागांतरमें रागत्व भी अवश्य आता है क्योंकि रागादि और ज्ञानका तादात्म्य होता है,
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