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प्रमेयकमलमार्तण्डे मन्त्रेण निविषीकरणे कृते मन्त्रिणोपभुज्यमानमपि विषं न दाहमूर्छादिकं कत्तुं समर्थम्, तथा असातादिवेदनीयं विद्यमानोदयमप्यसति मोहनीये निःसामर्थ्यत्वान्न क्षुद्दुःखकरणे प्रभु सामग्रीतः कार्योत्पत्तिप्रसिद्धः।
मोहनीयाभावश्च प्रसिद्धो भगवतः, तोवतरशुक्लध्यानानल निर्दग्धवनघाति कर्मेन्धनत्वात् । यदि च तदभावेपि तदुदयः स्वकार्यकारी स्यात्; तर्हि परघातकर्मोदयात्वरान् यष्ट्यादिभिस्ताडयेत् स एव वा परैस्ताडयत । परघातोदयोपि हि संयतानामर्हदवसानानामस्ति । अथ परमकारुणिकत्वात्तदुदयेपि न परांस्ताडयति उपसर्गाभावाच्च न च तैस्ताड्यते; तमु नन्तसुखवीर्यत्वाबाधाविरहाच्चासातादिवेदनीयोदये सत्यपि भोजनादिकं न कुर्यात् । मोहकार्यत्वाच्च करुणायाः कथं तत्क्षये परमकारुणिकत्वं तस्य स्यात् ?
- दिगम्बर-ऐसी बात नहीं है, उनका असाता कर्म सामर्थ्य रहित है, जिसमें पूर्ण सामर्थ्य होती है वही असाता कर्म अपना कार्य कर सकता है, मोहनीय कर्मके नाश होनेसे वेदनीय कर्मकी सामर्थ्य नष्ट हो जाती है यह बात सिद्धांत प्रसिद्ध है ही। जिसप्रकार सेनानीके नष्ट हो जाने पर सेनाका सामर्थ्य नष्ट हो जाता है उसीप्रकार मोहनीय कर्मके नष्ट होने पर असाता वेदनीयादि अघाती कर्मोकी सामर्थ्य नष्ट हो जाती है । जैसे मंत्र द्वारा जिसका विषैलापन नष्ट कर दिया है ऐसे विषको मंत्रवादी भक्षण कर जाता है किन्तु अब वह विष मूर्छा, दाह आदि विकारको नहीं कर सकता, वैसे ही असाता वेदनीय कर्मका उदय होते हुए भी मोहनीय कर्मके नष्ट हो जाने से वह उदय क्षुधादि दुःखरूप फलको देनेवाला नहीं हो सकता, क्योंकि कार्य तो पूर्ण सामग्रीके मिलने पर ही होता है, केवली भगवानके मोहनीय कर्म नष्ट हो चुका है यह बात तो सर्व सम्मत ही है, उन्होंने तो तीव्रतर शुक्ल ध्यानरूपी अग्निद्वारा घातिया कर्मरूपी ईंधनको भस्मसात् कर दिया है। यदि मोहनीय कर्मके अभावमें भी वेदनीय कर्मके उदयको कार्यकारी मानते हैं तब तो परघातनामा नामकर्म के उदय होनेसे केवली भगवान अन्य जीवोंको लाठी आदिसे ताडित करें अथवा अन्य जीव द्वारा ये ताडित किये जा सकते हैं ? क्योंकि परघात नामकर्मका उदय अर्हन्त केवली पर्यन्तके संयतोंको भी होता ही है।
श्वेताम्बर-केवली भगवान परम कारुणिक हैं अतः परचात नामा कर्मका उदय होते हुए भी वे अन्य जीवोंको ताडित नहीं करते, तथा उनके उपसर्गका अभाव हो चुका है अतः अन्य जीव उन्हें ताडित नहीं कर सकते ?
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