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मोक्षस्वरूपविचारः
२०१ ननु सन्तातोच्छेदरूपेपि मोक्षे हेतुर्वाच्यो निर्हेतुकविनाशानभ्युपगमात्; इत्यप्यचोद्यम्; तत्वज्ञ नस्य विपर्ययज्ञान व्यवच्छेदत्र मेण निःश्रेयसहेतुत्वोपपत्त: । दृष्ट च सम्यग्ज्ञानस्य मिथ्याज्ञानोच्छेदे शुक्तिकादी सामर्थ्यम् । ननु चातत्त्वज्ञानस्यापि तत्त्वज्ञानोच्छेदे सामर्थ्य दृश्यते, ज्ञानस्य ज्ञानान्तरविरोधित्वेन मिथ्याज्ञानोत्पत्ती सम्यग्ज्ञानोच्छेदप्रतीते ; इत्यप्ययुक्तम्; यतो नानयोरुच्छेदमात्रमभिप्रतम् । किं तहि ? सन्तानोच्छेदः । यथा च सम्यग्ज्ञानान्मिथ्याज्ञानसन्तानोच्छेदो नैवं मिथ्याज्ञानात्सम्यग्ज्ञानसन्तानस्य, अस्य सत्यार्थत्वेन बलीयस्त्वात् । निवृत्ते च मिथ्याज्ञाने तन्मूला रागादयो न सम्भवन्ति कारणाभावे कार्यानुत्पादात् । रागाद्यभावे तत्कार्या मनोवाक्कायप्रवृत्तिावर्त्तते । तदभावे च धर्मा
सिद्ध करनेवाला प्रत्यक्ष या आगम प्रमाण न होनेके कारण कालात्ययापदिष्ट भी नहीं है एवं प्रतिपक्ष साधक अन्य हेतुके नहीं होनेसे सत्प्रतिपक्ष दोष युक्त भी नहीं है।
शंका-संतानका नाश होना मोक्ष है ऐसा मोक्षका स्वरूप मानना तो ठीक है किन्तु उस मोक्षके होने में कारण कौनसा है, कारणके विना नाशका होना स्वीकृत नहीं है ?
___ समाधान-ऐसा कहना ठीक नहीं, तत्त्वज्ञानको मोक्षका कारण माना है तत्वज्ञानसे विपरीतज्ञानका नाश होता है और क्रम से मोक्ष प्राप्त होता है । सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होनेपर मिथ्याज्ञान नष्ट होता है, उसके नष्ट होनेसे रागादि भावका अभाव हो जाता है, उससे मन वचन कायका प्रयत्न [ क्रिया ] नष्ट होता है और प्रयत्नके नष्ट होते ही धर्म अधर्म समाप्त हो जाते हैं, इसप्रकार संतान उच्छेद का क्रम है। व्यवहारमें भी देखा जाता है कि सीप आदिमें चांदीका भ्रम रूप मिथ्याज्ञान होता है वह सम्यज्ञानद्वारा नष्ट होता है।
शंका-जैसे सम्यग्ज्ञानसे मिथ्याज्ञान नष्ट होता है वैसे मिथ्याज्ञानसे सम्यग्ज्ञान भी नष्ट होते हुए देखा जाता है, अर्थात् सम्यग्ज्ञानमें मिथ्याज्ञानका नाश करनेकी सामर्थ्य है तो मिथ्याज्ञानमें सम्यग्ज्ञानका नाश करनेकी सामर्थ्य है, ज्ञान तो ज्ञानांतर का विरोधी होता ही है, अतः मिथ्याज्ञानके उत्पन्न होनेपर सम्यग्ज्ञानका नाश होना भी शक्य है ?
समाधान-यह कथन असत् है, हमको यहां पर दोनोंका उच्छेदमात्र सिद्ध नहीं करना है किन्तु संतानोच्छेद सिद्ध करना है । सम्यग्ज्ञानद्वारा मिथ्याज्ञानका
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