________________
१६२
प्रमेयकमलमार्तण्डे अस्तु वा वेद्य तत्र बुभुक्षाफलप्रदायि, तथापि-बुभुक्षातः समवसरण स्थित एवासौ भुक्त, चर्यामार्गेण वा गत्वा ? प्रथमपक्षे मार्गस्तेन नाशित: स्यात् । कथं च बुभुक्षोदयानन्तरमाहारासम्पनी ग्लानस्य यथावद्बोधहीनस्य मार्गोपदेशो घटेत ? अथ तदुदयानन्तरं देवास्तत्राहारं सम्पादयन्ति; न; अत्र प्रमाणाभावात् । 'पागमः' इति चेत्र; उभयप्रसिद्धस्यास्याप्यभावात् । स्वप्रसिद्धस्य भावेपि नातस्तत्सिद्धिः, 'भुक्त्युपसर्गाभावः' इत्यादेरपि प्रमाण भूतागमस्य भावात् । अथ चर्याम र्गेण गत्वासौ भुक्त; तत्रापि किं गृहं गृहं गच्छति, एकस्मिन्न व वा गृहे भिक्षालाभं ज्ञात्वा प्रवर्तते ? तत्राद्यपक्षे भिक्षार्थ गृहं गृहं पर्यटतो जिनस्याज्ञानित्वप्रसङ्गः। द्वितीयपक्षे तु भिक्षाशुद्धिस्तस्य न स्यात् । कथ चासौ मत्स्यादीन् व्याधलुब्धकप्रभृतिभिः सर्वत्र सर्वदा व्याहन्यमानान्प्राणिनस्तेषां पिशितानि च तथाऽशुच्यादींश्चार्थान् साक्षात्कुर्वन्नाहारं गृह्णीयात् ? अन्यथा निष्करुणः स्यात् । जीवानां हि बधं
एवं अनिवर्त्य ऐसा अनंत सुख केवली भगवानके हुया करता है अतः उनके क्षुधा बाधा नहीं होती।
यदि माना जाय कि केवलीमें वेदनीय कर्म बुभुक्षा रूप फलको देता ही है तो प्रश्न होता है कि वे भगवान भूख लगने पर समवशरणमें बैठकर भोजन करते हैं, अथवा चर्यासे जाकर गृहस्थके यहां भोजन करते हैं ? प्रथम पक्ष माने तो केवली स्वयं ही मार्गका [ मोक्षमार्गका ] नाश करनेवाले कहलाये ! तथा भूख लगने पर यदि आहार प्राप्त नहीं हुआ तो शक्तिहीन हुए उन भगवानके वास्तविक बोध-सुधबुध तो रहेगी नहीं, फिर वे मोक्षमार्गका उपदेश किसप्रकार दे सकेंगे।
श्वेताम्बर-भगवानके भूख लगते ही देवगण वहां आहार को करा देते हैं ।
दिगम्बर-ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि इसको सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण नहीं है, आगम प्रमाण है ऐसा कहो तो वह भी अपन दोनों को मान्य हो ऐसा नहीं है, स्वमान्य आगमके होनेपर भी उससे उक्त विषय सिद्ध नहीं होता, क्योंकि हमारे यहां "केवली भगवानके भोजन और उपसर्ग नहीं होता" ऐसा प्रामाणिक आगम मौजूद है । दूसरा पक्ष-चर्यासे जाकर भोजन करते हैं सो उसमें प्रश्न होता है कि घर घरमें भिक्षाके लिये घूमते हैं अथवा जिसमें भिक्षा लाभ होना है उसो एक घरमें जाते हैं प्रथम विकल्प कहो तो घर घरमें भिक्षाके लिये घूमते हुए उन भगवान के अज्ञानी होनेका प्रसंग आता है। दूसरा विकल्प कहो तो केवलीके भिक्षाशुद्धि नहीं रहेगी, क्योंकि जहां आहार बढ़िया मिलेगा वहीं चले जाते हैं । तथा केवलज्ञानी तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org