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कवलाहारविचार:
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तस्मै दानं दातृभिर्दीयते ? प्रथातिशयविशेषः । कश्चित्तस्य येन भुञ्जानो नावलोक्यते; तर्हि भोजनाभावलक्षण एवास्यातिशयोस्तु किं मिथ्याभिनिवेशेन ? ततो जीवन्मुक्तस्यात्मनोऽनन्तचतुष्टयस्वभावत्वमिच्छता कवलाहारर हतत्वमेवैष्टव्यमित्यलमतिप्रसङ्गेन ।
दूर करनेके लिये कहा जाय कि जिनेन्द्रका ऐसा अतिशय विशेष है कि वे खाते हुए किसीको दिखायी नहीं देते, तब तो विषय व्यवस्थित होगा, जिसप्रकार भोजन करते हुए दिखायी नहीं देनारूप अतिशय मान सकते हैं उसीप्रकार भोजनका प्रभावरूप अतिशय क्यों न मान सकते ? अवश्य ही मान सकते हैं, व्यर्थके हटाग्रह से क्या प्रयोजन सिद्ध होगा । इसलिये जीवन्मुक्त अवस्थामें भगवान जिनेन्द्रके अनंत चतुष्टय रूप स्वभाव स्वीकार करते हैं तो वे कवलाहार रहित हैं ऐसा मानना भी अत्यावश्यक इस विषय से विराम लेते हैं ।
है
॥ इति कवलाहारविचार समाप्त ॥
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