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प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रवर्तते यथा व्यावृत्तव्यामोहा माता पुत्रे, व्यावृत्तात्यन्तव्यामोहश्च भगवान्, ततः सोपि भोजनमादातु क्षुदादिकं वा हातुन प्रवर्तते । प्रवृत्तौ वा मोहवत्त्वप्रसङ्गः; तथाहि-यस्तदादातु हातुवा प्रवर्त्तते स मोहवान् यथाऽस्मदादिः, तथा चायं श्वेतपटाभिमतो जिन इति । तथा च कुतोऽस्याप्तता रथ्यापुरुषवत् ?
न चेयं बुभुक्षा मोहनीयानपेक्षस्य वेदनीयस्य॑व कार्यम्, येनात्यन्तव्यावृत्तव्यामोहेप्यस्याः सम्भवः । भोक्त मिच्छा हि बुभुक्षा, सा कथं वेदनीयस्यैव कार्यम् ? इतरथा योन्यादिषु रन्तुमिच्छा रिरसा तत्कार्यं स्यात् । तथा च कवलाहारवत् स्त्र्यादावपि तत्प्रवृत्तिप्रसङ्गान्नेश्वरादस्य विशेषः । यथा
बात है कि जो जिसमें अत्यन्त मोहरहित हो जाता है वह उसके लिये ग्रहण या त्याग रूप कार्य नहीं करता, जैसे जिसकी ममता हटगयी है ऐसी माता पुत्रके प्रति ग्रहणादिका व्यवहार नहीं करती है । भगवान भी अत्यन्त विरक्त हैं निर्मोह हैं अतः वे भोजनादिको ग्रहण करना व क्षुधादिको दूर करना आदि कार्य नहीं करते हैं, यदि करेंगे तो मोहवान बन जायेंगे जो व्यक्ति भोजनादिका ग्रहण या क्षुधादिका परिहार रूप कार्यको करता है वह मोहवान है जैसे हम संसारी जीव मोहवान हैं, श्वेताम्बर का मान्य जिनेन्द्रदेव भी भोजनादि कार्य करता है अतः वह निर्मोही सिद्ध नहीं होता फिर उसमें प्राप्तपना कैसे संभव है ? अर्थात् रथ्यापुरुष के समान वह भी प्राप्त नहीं कहलावेगा।
_मनुष्योंको जो भूख लगती है मोहनीय की अपेक्षाके विना सिर्फ वेदनीयकर्म के निमित्तसे नहीं लगती, जिससे कि आप मोहसे सर्वथा रहित ऐसे भगवानके भी क्षुधा का सद्भाव सिद्ध कर रहे हैं ? भोजनकी इच्छाको बुभुक्षा कहते हैं, इच्छा मोहनीय कर्मका कार्य है, वह वेदनीयका कार्य कैसे हो सकता है ? अन्यथा योनि आदिमें रमने की इच्छा रूप रिरंसा भी वेदनीय का ही कार्य कहलायेगा ? क्योंकि इच्छारूप कार्य को वेदनीयका संभावित कर लिया और ऐसा होनेपर जैसे केवली भोजन करते हैं वैसे स्त्री संभोग भी करने वाले बन जायेंगे, फिर ईश्वर [शंकर] आदिसे केवलीमें कोई विशेषता नहीं रहेगी। जिसप्रकार आप केवलीमें प्रतिपक्षी वैराग्य भावना द्वारा रिरंसा का अभाव होना मानते हैं उसीप्रकार भोजनकी इच्छाका अभाव भी मानना चाहिये । अनुमानसे सिद्ध होता है कि भोजनकी इच्छा प्रतिपक्ष भावनासे नष्ट होती है क्योंकि वह आकांक्षा है, जैसे स्त्रीकी आकांक्षा प्रतिपक्षभावनासे नष्ट होती है । यदि कहा जाय कि जब प्रतिपक्ष भावना होती है तब बुभुक्षा नहीं रहती किन्तु उसके अभावमें
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