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कवलाहारविचारः
१८३ अथ 'अन्यादृशमौदारिकशरीरस्थितित्वमन्यादृशाश्च पुरुषा न सन्ति' इत्युच्यते तहि मीमांसकमतानुप्रवेशः। अतो यथान्यादृशाः सन्ति पुरुषास्तथा तत्स्थितित्वमपि । कथमन्यथा सप्तधातुमलापेतत्वं तच्छरोरस्य स्यात् ? तत्सम्भवे तत्स्थितेरतद्भुक्तिपूर्वकत्वमपि स्यात् ।
सपोमाहात्म्याच्चतुरास्यत्वादिवच्चाभुक्तिपूर्वकत्वे तस्याः को विरोध: ? दृश्यते च पञ्चकृत्वो भुञ्जानस्य यादृशी तच्छरीरस्थितिस्तादृश्येव प्रतिपक्षभावनोपेतस्य चतुस्त्रिद्व्येकभोजनस्यापि । तथा प्रतिदिनं भुञ्जानस्य याशी सा तादृश्येवैकद्वयादिदिनान्तरितभोजिनोपि । श्र यते च बाहुबलिप्रभृतीनां संवत्सरप्रमिताहारवैकल्येपि विशिष्टा शरीरस्थितिः । प्रायुःकर्मैव हि प्रधानं ततस्थितेनिमित्तम्, भुक्त्यादिस्तु सहायमात्रम् । तच्छरीरोपचयोपि लाभान्तरायविनाशात्प्रतिसमयं तदुपचयनिमित्तभूतानां
भी केवलीके वह स्थिति निराहार पूर्वक है और हम जैसे जीवोंकी स्थिति आहारपूर्वक है ऐसी न्याय संगत मान्यता होनी चाहिये ।
शंका-ऐसा परम औदारिक नामा शरीर और ऐसे शरीरके धारक केवलीका अस्तित्व ही नहीं होता ?
समाधान-इसतरहकी मान्यतासे मीमांसक मतमें प्रवेश होवेगा, जैसे वे सर्वज्ञ को नहीं मानते वैसा स्वीकार करना होगा ? अतः जिसप्रकार हमारेसे विलक्षण कोई महापुरुष सर्वज्ञ भगवान है यह बात हमें इष्ट है उसीप्रकार उन सर्वज्ञके हमारेसे विलक्षण परम औदारिक शरीरकी स्थिति भी बिना पाहारके रहती है ऐसा मानना ही होगा, अन्यथा उनको सप्तधातु रहित शरीर वाले भी कैसे मान सकते हैं ? जैसे केवलीका शरीर सप्तधातु तथा मलोंसे रहित है वैसे भोजन रहित भी है ऐसा स्वतः सिद्ध होता है।
__केवली भगवानके तपोमाहात्म्यसे चतुर्मुख दिखायी देते हैं, उनके शरीरकी परछाई नहीं पड़ती, ऐसे ही विना भोजनके शरीर बना रहता है, इसमें कोई विरोध नहीं है । कोई व्यक्ति पांच बार खाता है उसका जैसा शरीर रहता है वैसा ही विरक्त भावसे चार बार, तीन बार, दो बार, अथवा एक बार खाने वालोंका शरीर भी उतना ही स्वस्थ बना रहता हुआ दिखायी देता है, तथा कोई व्यक्ति प्रतिदिन भोजन करता है और उसका शरीर जैसा बना रहता है वैसे ही एक दिन बाद भोजन करने वालेका, दो दिन बाद आदि रूपसे भोजन करनेवालेका शरीर भी बना रहता है, इस प्रकारकी साक्षात् उपलब्धि है । शास्त्रमें सुना जाता है कि बाहुबली जैसे महान् पुरुषों
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