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कवलाहार विचारः
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स्थितिः सा सा कवलाहारपूविका यथास्मदादीनाम्, औदारिकशरीरस्थितिश्च भगवतः, इति न त्रिदशशरीरस्थित्या व्यभिचारः; इत्यप्यसारम्; तदीयौदारिकशरीरस्थितेः परमौदारिकशरीरस्थितिरूपतयाऽस्मदाद्यौदारिकशरीरस्थितिविलक्षणत्वात् । तस्याश्च केवलावस्थायां केशादिवृद्धयभाववद्भुक्त्यभावोप्य विरुद्ध एव।
कथं चैवं वादिनो भगवत्प्रत्यक्षमतीन्द्रियं स्यात् ? शक्यं हि वक्त म्-तत्प्रत्यक्षमिन्द्रियजं प्रत्यक्षत्वादस्मदादिप्रत्यक्षवत् । तथा सरागोऽसौ वक्त त्वात्तद्वदेव । न ह्यस्मदादौ दृष्टो धर्मः कश्चित्तत्र साध्यः कश्चिन्नति वक्त युक्तम्, स्वेच्छाकारित्वानुषङ्गात् । तथा च न कश्चित्केवली वीतरागो वा, इति कस्य भुक्तिः प्रसाध्यते ? यदि चैकत्र तच्छरीरस्थितेः कवलाहारपूर्वकत्वोपलम्भात्सर्वत्र तथाभावः
रिक शरीर स्थिति केवलज्ञान अवस्थामें अविरुद्ध ही है, अर्थात् बिना भोजन शरीर स्थिति रह सकती है । जैसे नख और केशोंकी वृद्धि नहीं होना केवलीमें अविरुद्ध माना जाता है वैसे ही आहार बिना शरीर स्थिति का रहना भी अविरुद्ध है।
श्वेताम्बर भगवानके कवलाहारका ग्रहण करना मानते हैं सो ऐसे भगवानके अतीन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान कैसे संभव है ? कोई कह सकता है कि केवलीका ज्ञान इन्द्रिय प्रत्यक्ष है, क्योंकि वह प्रत्यक्षज्ञान, जैसे हम लोगोंका प्रत्यक्षज्ञान इन्द्रिय प्रत्यक्ष है । तथा वे केवली सरागी भी क्योंकि बोलते हैं, जिसप्रकार हम लोग बोलते हैं । ऐसा तो कहना नहीं कि हमारे लोगोंमें पाया जाने वाला कोई धर्म तो केवलीमें होता है और कोई धर्म नहीं होता, इसतरह तो स्वेच्छाकारिपना सिद्ध होता है । इसप्रकारके सरागी एवं इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान वाले पुरुष केवली भगवान नहीं कहला सकते । फिर तो इस विश्वमें न कोई वीतरागी है और न कोई केवली ही है ? अतः कवलाहार भी किसके सिद्ध किया जाय ? यदि आप कहीं पर सप्तधातुमय प्रौदारिक शरीर की स्थिति पाहार पूर्वक देखकर सभी शरीरोंमें वैसे ही स्थिति सिद्ध करते हैं तो घटादिमें रचना विशेषको बुद्धिमान पूर्वक देखकर तनु, तरु, पर्वतादि की रचनाको भी बुद्धिमान पूर्वक सिद्ध करना मान्य होगा ? अर्थात् सृष्टि कर्तृत्वको स्वीकार करना होगा ? तथा तिमिर रोगी को एक चंद्रमें दो चंद्रका प्रतिभास होता है वह निरालंब [ विना दो चंद्रके ] होता हुप्रा देख सभी प्रतिभासोंको निरालंब मानना होगा।
भावार्थ-हम जैसे सामान्य जीवोंका औदारिक शरीर अाहारके विना नहीं रह सकता वैसे केवली भगवानका परम औदारिक शरीर भी अाहारके विना नहीं रह
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