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सर्वज्ञत्ववादः ननु च यथाभूतमिन्द्रियादिजनितं प्रत्यक्षादि सर्वज्ञाद्यर्थासाधकं दृष्टं तथाभूतमेव देशान्तरे कालान्तरे च तथा साध्यते, अन्यथाभूतं वा ? तथाभूतं चेत्सिद्धसाधनम् । अन्यथाभूतं चेदप्रयोजको हेतु!, जगतो बुद्धिमत्कारणत्वे साध्ये सन्निवेशविशिष्टत्वादिवत्; तदसाम्प्रतम् ; तथाभूतस्यैव तथा साधनात् । न च सिद्धसाधनमन्यादृशप्रत्यक्षाद्यभावात् । तथा हि-विवादापन्नं प्रत्यक्षादिप्रमाणमिन्द्रियादिसामग्रौविशेषानपेक्षं न भवति प्रत्यक्षादिप्रमाणत्वात्प्रसिद्धप्रत्यक्षादिप्रमाणवत् । न गृध्रवराहपिपीलिकादिप्रत्यक्षेण सन्निहितदेशविशेषानपेक्षिणा नक्तञ्चरप्रत्यक्षेण वालोकानपेक्षिाणानेकान्त:,
शंका-आपने इस अनुमान में प्रत्यक्षादि प्रमाणों को पक्ष बनाया है सो जिस प्रकार का इन्द्रियादि से उत्पन्न हुप्रा प्रत्यक्षादिक है जो कि सर्वज्ञ आदि पदार्थों का असाधक देखा गया है ठीक वैसा ही विभिन्न देश और काल वाले प्रमारणों में सर्वज्ञ का असाधकपना सिद्ध करते हैं या कोई विभिन्न जाति का अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष में सर्वज्ञ का असाधकत्व सिद्ध करते हैं ? प्रथम विकल्प कहो तो सिद्ध साधन है, क्योंकि वर्तमान का जैसा प्रत्यक्ष अतीतादि काल में हो तो वह सर्वज्ञ को क्या सिद्ध करेंगे ? अन्य कोई जाति का प्रत्यक्ष है वह सर्वज्ञ का असाधक है ऐसा कहो तो हेतु अप्रयोजक होवेगा, जैसे कि जगत को बुद्धिमान सृष्टि कर्ता के द्वारा रचा हुआ सिद्ध करने में सन्निवेश विशिष्टत्व आदि हेतु देते हैं, वे अप्रयोजक होते हैं ? [जो हेतु सपक्ष में तो हो और पक्ष से हटा हो तथा "प्रतिनियत विषय का ग्राही होने पर" ऐसे विशेषण से उत्पन्न हुआ है निकट संबंध जिसमें वह हेतु अप्रयोजक कहलाता है]
समाधान -यह जैन की शंका ठीक नहीं है, हम मीमांसक सर्वज्ञ का असाधक प्रमाण मानते हैं वह प्रमाण वर्तमान जैसा है, ऐसा मानने में जो सिद्ध साधन दोष बताया वह ठीक नहीं है, इसी का खुलासा करते हैं -विवादाग्रस्त विभिन्न देश काल वर्ती प्रत्यक्षादि प्रमाण, इन्द्रियादि सामग्री की अपेक्षा से रहित नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वे भी प्रत्यक्षादि प्रमाण हैं, जैसे वर्तमान में यहां के जीवों को प्रत्यक्षादि प्रमाण होते हैं, इस उपर्युक्त अनुमान में गृद्ध पक्षी के प्रत्यक्षज्ञान से अनेकान्तिकता भी नहीं आती अर्थात् गृद्धपक्षी, चींटी आदि जोवों का प्रत्यक्षज्ञान निकट देशादि में पदार्थों की अपेक्षा किये बिना ही उत्पन्न होता है, तथा नक्तंचर-सिंह, बिलाव आदि जीवों को प्रकाश की अपेक्षा किये बिना ही प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न होता है अतः "प्रत्यक्षादि प्रमाण इंद्रिय सन्निहित पदार्थ तथा प्रकाशादि सामग्री की अपेक्षा लेकर ही
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