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प्रमेयकमलमार्तण्डे
स्यात्स्वात्मनि तथाऽनुपलम्भात् । प्राण्यन्तरे स्वात्मन्यनुपलब्धस्यानालोकान्धकारव्यवहितरूपाद्य पलम्भलक्षणातिशयस्य सम्भवे सूक्ष्माधुपलम्भलक्षणातिशयोपि स्यात् । जात्यन्तरत्वं चोभयत्र समानम् । अभ्युपगम्य चाक्षजत्वं सर्वज्ञज्ञानस्यातीन्द्रियार्थसाक्षात्कारित्वं समथितं नार्थतः, तज्ज्ञानस्य घातिकर्मचतुष्टयक्षयोद्भ तत्वात् ।
यच्चास्य ज्ञानं चक्षुरादिजनितं वेत्याद्यभिहितम्; तदप्यचारु; चक्षुरादिजन्यत्वेऽप्यनन्तरं धर्मादिग्राहकत्वाविरोधस्योक्तत्वात् ।
यच्चाभ्यासजनितत्वेऽभ्यासो हीत्यायु क्तम्; तदप्ययुक्तम्; "उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत्"
उपलब्ध नहीं है ? यदि अन्य प्राणियों में हमारे में नहीं होने वाला ऐसा अंधकार आदि से व्यवहित पदार्थ की उपलब्धि रूप अतिशय मानते हैं, तो फिर सर्वज्ञ में सूक्ष्मादि का जानने रूप अतिशय क्यों न माना जाय ? मानना ही होगा। यदि कहा जाय कि नक्तंचर आदि का ज्ञान भिन्न जातीय है ? सो वैसे सर्वज्ञ में भी माने तथा सर्वज्ञ का ज्ञान अतीन्द्रिय पदार्थों का साक्षात्कारी अवश्य है किन्तु वह परमार्थतः इन्द्रिय जनित नहीं है, वह ज्ञान तो चार घातिया कर्म-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय इनके नाश से उत्पन्न होता है ।
सर्वज्ञ का ज्ञान चक्षु अादि इंद्रियों से उत्पन्न हुआ है अथवा अन्य किसी प्रकार से उत्पन्न हुआ है इत्यादि, कथन अयुक्त है आपका लक्ष सर्वज्ञ ज्ञान का अभाव करने में है किन्तु चक्षु आदि इन्द्रिय जन्य ज्ञान भी धर्मादि अदृष्ट का ग्राहक है, कोई विरोध की बात नहीं ऐसा अभी बता चुके हैं।
भावार्थ:-यहां धर्म अधर्म-अर्थात् पुण्य पाप को इन्द्रिय जन्य ज्ञान भी जानता है ऐसा कहा है सो पहले इस प्रकार बतलाया है कि सकल प्राणियों के लिये जो उपभोग्य वस्तुओं की उपलब्धि साक्षात् दिखाई दे रही है वह स्वयं ही धर्मादि को सिद्ध कर रही है मतलब इस देवदत्त का अदृष्ट सुष्ठ है क्योंकि इसे चंदन, वनिता
आदि इष्ट सामग्री उपलब्ध है, तथा इस यज्ञदत्त का अदृष्ट दुष्ट है क्योंकि साक्षात ही दिखायी देता है कि रोगादि ने इसको पीडित कर रखा है तथा धनहीन है इत्यादि हेतु के उपलब्ध होने से धर्मादि को इन्द्रियगम्य बतलाया है । सर्वज्ञ के ज्ञानको अभ्यास जनित मानते हैं तो...... "इत्यादि दोष दिये थे वे अयुक्त हैं, सभी पदार्थ उत्पाद, व्यय, और ध्रौव्य से संयुक्त है, इस प्रकार अखिल पदार्थों के विषय में श्रीगुरु का उपदेश है अतः संपूर्ण पदार्थों का उपदेश संभव नहीं है, ऐसा कहना गलत ठहरता है
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