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प्रमेयकमलमार्तण्डे __ प्रथमं हि प्रकृतेर्महान्-विषयाध्यवसायलक्षणा बुद्धिरुत्पद्यते । बुद्ध श्वाहंकारोऽहं सुभगोऽहं दर्शनीय इत्याद्यभिमानलक्षणः । अहङ्कारात्पञ्च तन्मात्राणि शब्दस्पर्शरूपरसगन्धात्मकानि, इन्द्रियाणि चैकादश पञ्च बुद्धीन्द्रियाणि श्रोत्रत्वक्चक्षुजिह्वाघ्राणलक्षणानि, पञ्च कर्मेन्द्रियाणि वाक्पाणिपादपायूपस्थसंज्ञानि, मनश्च सङ्कल्पलक्षणम्-'भोजनार्थं हि तत्र गृहे यास्यामि किं दधि भविष्यति गुडो वा भविष्यति' इत्येवं सङ्कल्पबृत्तिर्मनः । पञ्चभ्यश्च तन्मात्रेभ्यः पञ्च भूतानि-शब्दादाकाशं, स्पर्शाद्वायू, रूपात्तेजः, रसादापः, गन्धात्पृथ्वीति । पुरुषश्चेति । पञ्चविंशतितत्त्वानि । प्रकृत्यात्मकाश्चैते महदादयो भेदा; न त्वऽतोऽत्यन्तभेदिनो लक्षणभेदाभावात् । तथाहि
"त्रिगुणमविवेकि विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवमि । व्यक्त तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान् ॥"
[ सांख्यका० ११.]
अध्यवसाय करने वाली बुद्धि ( ज्ञान ) उत्पन्न होती है, उससे अहंकार होता है, वह अहंकार मैं सुभग हूं, इत्यादि अभिमान स्वरूप हुअा करता है । अहंकार से शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंधात्मक पांच तन्मात्राएँ, श्रोत्र, स्पर्शन, चक्षु, जिह्वा, घ्राण ये पांच बुद्धीन्द्रियां, वचन, हस्त, पाद, पायु ( जननेन्द्रिय ) उपस्थ (योनि) ये पांच कर्मेन्द्रियां, संकल्प स्वरूप मन जो संकल्प कराता है कि भोजनके लिये उस घरमें जाऊंगा उसमें भोजन में गुड़ होगा या दही होगा इत्यादि, ये सब एकादश इन्द्रियां उत्पन्न होती हैं । पांच तन्मात्रामोंसे पंचभूत पैदा होते हैं शब्द तन्मात्रासे आकाश, स्पर्शसे वायु, रूपसे अग्नि, रससे जल, एवं गंधसे पृथिवी आविर्भूत होती है । ये प्रधान स्वरूप २४ तत्त्व हैं पच्चीसवां पुरुषतत्त्व है।
ये महान आदि भेद प्रकृत्यात्मक हैं इनमें लक्षण भेद का अभाव होने से अत्यन्त भिन्नता नहीं पायी जाती है, आगे इसीको स्पष्ट करते हैं-प्रधान त्रिगुणात्मक होता है अर्थात् सत्व रज और तमोगुणयुक्त होता है, तथा यह प्रधान अविवेकी अर्थात् प्रकृतिसे अभिन्न हैं, क्योंकि कारण से कार्य अभिन्न ही होता है, तथा विषय अर्थात् ज्ञानका विषय है, सामान्य है अर्थात् सर्व पुरुषोंका भोग्य है, अचेतन अर्थात् जड़ है, प्रसवधर्मी अर्थात् बुद्धि आदिको उत्पन्न करने वाला है, किन्तु पुरुष ( आत्मा ) इससे विपरीत है अर्थात् सत्वादि गुण रहित, विवेकी इत्यादि स्वभाव वाला है।
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