Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
१७६
प्रमेयकमलमार्तण्डे होता है कि शब्द अमूर्तिक नहीं है इस विषय का आगे प्रतिपादन होने वाला है। इस प्रकार प्रकृति को सृष्टि का कर्ता मानना सिद्ध नहीं होता है । सेश्वर सांख्य-ईश्वर और प्रकृति दोनों सृष्टि को करते हैं क्योंकि प्रकृति अचेतन होने से अकेली कार्य को नहीं कर सकती। अकेला ईश्वर भी नहीं कर सकता क्योंकि प्रकृति के संसर्ग बिना वह अज्ञ है, दोनों मिलकर सृष्टि के कार्य को करते हैं जैसे-पुत्र को माता पिता दोनों करते हैं । सत्व, तम, रज इन गुणों की अपेक्षा लेकर ईश्वर जगत की स्थिति, नाश तथा उत्पत्ति को करता है अर्थात् ईश्वर में जब प्रकृति के रजो गुण का संसर्ग होता है तब वह प्रजा को उत्पन्न करता है जब सत्व का संसर्ग होता है तब स्थिति और जब तमो गुण का संसर्ग होता है तब प्रलय कर देता है इसीलिये दोनों मिलकर सृष्टि कार्य करते हैं । सो सेश्वर सांख्य का यह कथन भी चारु नहीं है सतत् रूप से कार्य होने की आपत्ति आती है, क्योंकि ईश्वर और प्रधान ये दोनों ही समर्थ कारण मौजूद हैं तो सभी कार्य एक साथ होने में कोई बाधा नहीं रहती। ईश्वर और प्रधान दोनों ही कारण नित्य हैं फिर सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और नाश क्रम से क्यों होता है । एक साथ ही होना चाहिये । इस प्रकार सेश्वर सांख्य का सुधारा हुआ पक्ष भी बाधित होता है इस तरह प्रकृति को सृष्टि का कर्ता मानना या ईश्वर और प्रकृति उभय को कर्ता मानना बाधित हुआ।
॥ प्रकृतिकर्तृत्ववाद का सारांश समाप्त ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org