Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रकृतिकत्त त्ववादः
१७३ नापरं कदाचनापि तदुत्पादने तयोः सदा सामर्थ्याभावात् । अविकारिणोश्च प्रकृतोश्वरयोः पुनः सामोत्पत्तिविरोधात्, अन्यथा नित्यैकस्वभावताव्याघातः । - अथ तत्स्वभावेपि प्रधाने सत्वादीनां मध्ये यदेवोद्भूतवृत्ति तदेव कारणतां प्रतिपद्यते नान्यत्, तत्कथं स्थित्यादीनां योगपद्यप्रसङ्ग इति ? अत्रोच्यते-तेषामुद्भूतवृत्तित्वं नित्यम्, अनित्यं वा ? न तावन्नित्यम्; कादाचित्कत्वात्, स्थित्यादीनां योगपद्यप्रसङ्गाच्च । अथा नित्यम्; कुतोऽस्य प्रादुर्भावः ? प्रकृतीश्वरादेव, अन्यतो वा हेतोः, स्वतन्त्रो वा ? प्रथमपक्षे सदास्य सद्भावप्रसङ्गः, प्रकृतीश्वराख्यस्य हेतोनित्यरूपतया सदा सन्निहितत्वात् । न चान्यतस्तत्प्रादुर्भावो युक्तः; प्रकृतीश्वरव्यतिरेकेणापरकारणस्यानभ्युपगमात् । तृतीयपक्षे तु कादाचित्कत्वविरोधोऽस्य स्वातन्त्र्येण भवतो देशकाल नियमा
है अन्य नहीं, अतः स्थिति उत्पत्ति आदि एक साथ हो जायेंगे ऐसा अति प्रसंग दोष किसप्रकार आ सकता है ?
जैन-उन सत्वादि गुणोंका आविर्भूत वृत्तिपना नित्य है या अनित्य है ? नित्य तो हो नहीं सकता, क्योंकि वह वृत्तिपना कदाचित् ही होता है, तथा उन गुणों का आविर्भूतपना नित्य माना जाय तो उत्पत्ति स्थिति आदिके युगपत् हो जाने का प्रसंग उपस्थित होता है । यदि उन गुणोंकी आविर्भूत वृत्तिको अनित्य माना जाय तो प्रश्न होता है कि वह किस कारणसे प्रादुर्भूत हुई ? प्रकृति और ईश्वरसे अथवा अन्य किसो हेतुसे, या स्वतंत्रतासे ? प्रथमपक्ष माने तो इस वृत्तिका सदा ही सद्भाव मानना होगा क्योंकि प्रकृति और ईश्वर नामके हेतु नित्य होनेसे सदा सन्निहित ही रहेंगे। द्वितीयपक्ष-ईश्वर और प्रधानसे पृथक् अन्य किसी हेतुसे उन गुणोंकी वृत्ति प्रादुर्भावित होती है ऐसा मानना भी प्रयुक्त है, प्रधान और ईश्वर इन दोनोंको छोड़कर अन्य किसीको अापके यहां कारण रूपसे स्वीकार नहीं किया गया है । तीसरापक्ष स्वतंत्रता का है सो स्वतंत्रतासे होने वाली उद्भूतवृत्ति कभी कदाचित् होने में विरोध आता है, क्योंकि जो कार्य स्वतंत्रतासे होता है उसमें अमुक क्षेत्र और कालमें ही होना ऐसा नियम नहीं बन सकता, जो पदार्थ स्वभावसे स्वभावांतरको प्राप्त होते हैं वे कादाचित्क होते हैं, क्योंकि स्वभावांतरके होनेपर ही कादाचित्क संभव है स्वभावांतरके न होनेपर कादाचित्क संभव नहीं है, दूसरे शब्दोंमें यों कहिये कि जो पदार्थ कारणोंके अधीन होते हैं वे ही कादाचित्क होते हैं स्वतंत्रतासे होने वाले पदार्थ कारणोंके अधीन नहीं होते, क्योंकि स्वतंत्रतासे जायमान पदार्थ में अपेक्ष करने योग्य कोई वस्तु ही नहीं है।
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