________________
प्रकृतिकर्तृत्ववादः
१६७
थच्चेदं निदर्शनमुक्तम्-'यथा घटशरावादयो मृज्जातिसमन्विताः' इति, तदप्यसङ्गतम् ; साध्यसाधनविकलत्वादस्य । न हि मृत्त्वसुवर्णत्वा दिजातिर्नित्य निरंश व्याप्येकरूपा प्रमाणतः प्रसिद्धा येन तदात्मक कारणसम्भूतत्वं तत्समन्वितत्वं च प्रसिद्धय ेत्, प्रतिव्यक्ति तस्याः प्रतिभासभेदाद्भ ेदसिद्ध ेः । विस्तरेण चास्याः सिद्ध्यभावं सामान्यविचारप्रस्तावे प्रतिपादयिष्याम इत्यलमतिविस्तरेण ।
तथा 'समन्वयात्' इत्यस्यानेकान्तः; चेतनत्वभोक्तत्वादिधर्मैः पुरुषाणाम्, प्रधानपुरुषाणां च नित्यत्वादिधर्मैः समन्वितत्वेपि तथाविधैककारणपूर्वकत्वानभ्युपगमात् ।
एतेन शक्तितः प्रवृत्त ेरित्याद्यप्यनैकान्तिकत्वादिदोषदुष्टत्वादेककारण पूर्णकत्वासाधनमित्यवसातव्यम् । तथा हि-प्रेक्षावत्कारणमेतेभ्यः प्रसाध्यते, कारणमात्रं वा ? प्रथमविकल्पे अनेकान्तः, विनापि हि प्रेक्षावता कर्त्रा स्वहेतुसामर्थ्य प्रतिनियमात्प्रतिनियत कार्य स्योत्पत्त्य विरोधात् । न च प्रधानं
और जो दृष्टांत दिया था कि जिस प्रकार घट सकोरा आदि मिट्टीरूप जाति से समन्वित हैं इत्यादि वह असंगत है, क्योंकि यह दृष्टांत साध्य और साधन से विकल है, मिट्टीरूप जाति या सुवर्णरूप जाति नित्य, निरंश, व्यापी एक रूप हो ऐसा प्रमाण से सिद्ध नहीं है, जिससे कि नित्य आदि धर्म युक्त उस जातिरूप कारण से उत्पन्न होना और उससे कार्यों का समन्वित होना सिद्ध हो सके, प्रत्येक व्यक्ति में प्रतिभासका भेद होने से उस जाति का भिन्न भिन्नपना ही सिद्ध होता है । नित्य, एक रूप इस जाति का आगे सामान्य विचार प्रकरण में विस्तार पूर्वक निरसन करने वाले हैं अतः अब अधिक कथनसे विराम लेते हैं ।
समन्वयात् इस हेतु में भी अनेकांत दूषण हैं, क्योंकि चेतनत्व भोक्तृत्वादि धर्मों के साथ पुरुषों का [ आत्माओं का ] तथा नित्यत्वादि धर्मों के साथ प्रधान और पुरुषों का समन्वय होने पर भी उस प्रकार के एक कारण पूर्वकपना उनमें नहीं माना है । अर्थात् जिनमें भेदों का समन्वय है वे सब एक नित्य कारण से होते हैं अथवा भेदों का समन्वय होने से सबका कारण एक ही है ऐसा जो कहा था वह व्यभिचरित होता है । भेदानां परिमाणात् और समन्वयात् इन दो हेतुत्रों के निरसन से ही शक्तितः प्रवृत्तेः इत्यादि हेतुओंका निरसन हुआ समझना, क्योंकि इनमें भी प्रनैकान्तिक आदि अनेक दोष हैं अतः एक कारण पूर्वक साध्यको सिद्ध करने में ये सब प्रसाधन हैं । आगे इसीको स्पष्ट करते हैं-इन हेतुओं द्वारा बुद्धिमानकारणको सिद्ध किया जाता है कि सामान्य से कारण मात्रको सिद्ध किया जाता है ? प्रथम विकल्प कहो तो नै
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org