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प्रकृतिकर्तृत्ववादः अथ यद्यपि साधनप्रयोगात्प्राक्सन्न व निश्चयः, तथापि न तत्प्रयोगवैययं तदभिव्यक्तौ तस्य व्यापारात् । तत्र केयमभिव्यक्ति:-किं स्वभावातिशयोत्पत्तिः, तद्विषयज्ञानं वा, तदुपलम्भावरणापगमो वा? न तावत्स्वभावातिशयः; स हि निश्चयस्वरूपादभिन्नः भिन्नो वा ? यद्यभिन्नः; तहि निश्चयस्वरूपवत् सर्वदा सत्त्वानोत्पत्तियुक्ता । अथ भिन्नः; तस्यासाविति सम्बन्धाभावः । स ह्याधाराधेयभावलक्षणो वा, जन्यजनकभावलक्षणो वा ? तत्राद्यपक्षोऽयुक्तः; परस्परमनुपकार्योपकारकयोस्तदसम्भवात् । उपकारे वा तस्याप्यर्थान्तरत्वे सम्बन्धासिद्धिरनवस्था च । अनर्थान्तरत्वे साधनप्रयोगवैयर्थ्य निश्चयादेवोपकाराऽनर्थान्तरस्यातिशयस्योत्पत्तेः । अमूर्त्तत्वाच्चातिशयस्याधोगमनाभावान्न तस्य कश्चिदाघारो युक्तः, अधोगतिप्रतिबन्धकत्वेनाधारस्यावस्थितेः । नापि जन्यजनकभावलक्षणेः; सर्वदैव निश्चयाख्यकारणस्य सन्निहितत्वेन नित्यमतिशयोत्पत्तिप्रसङ्गात् । न च साधनप्रयोगापेक्षया निश्चयस्यातिशयोत्पादकत्वं युक्तम्; अनुपकारिण्यपेक्षाऽयोगात् । उपकारित्वे वा पूर्ववद्दोषोऽनवस्था च ।
में अतिशय होनेको अभिव्यक्ति कहते हैं ऐसा प्रथम पक्ष ठीक नहीं क्योंकि वह स्वभावातिशय निश्चयके स्वरूपसे अभिन्न है कि भिन्न है ? यदि अभिन्न है तो निश्चयके स्वरूपके समान सर्वदा सत्व रहनेसे उसकी उत्पत्ति मानना अयुक्त है । और यदि वह स्वभावातिशय भिन्न है तो उसका यह स्वभावातिशय है ऐसा सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता। यदि सम्बन्ध माना भी जाय तो वह कौनसा होगा, आधार आधेयभाव सम्बन्ध, अथवा जन्य जनकभाव सम्बन्ध ? प्रथम पक्ष अयुक्त है, क्योंकि परस्परमें अनुपकार्य-अनुपकारक स्वरूप निश्चय और स्वभावातिशयमें आधार आधेयभाव सम्बन्ध का होना । असंभव है । यदि निश्चय द्वारा अतिशयका उपकार होना माने तो वह उपकार भी भिन्न होनेके कारण सम्बन्ध नहीं हो सकेगा तथा इस तरह अनवस्था भी होगी। यदि निश्चय द्वारा किये जाने वाले अतिशयके उपकार को अभिन्न माना जाय तो साधनका प्रयोग व्यर्थ होता है, क्योंकि निश्चय द्वारा ही उपकार से अभिन्नभूत अतिशय की उत्पत्ति हो जाती है । तथा यह भी बात है कि स्वभावातिशय अमूर्त होनेसे अधोगमन तो कर नहीं सकता अतः उसका आधार मानना ही युक्त नहीं है । क्योंकि आधार अधोगमनका प्रतिबन्धक होता है । निश्चय और स्वभावातिशयमें जन्यजनकभाव सम्बन्ध मानना भी गलत है, क्योंकि निश्चय नामका कारण सर्वदा सन्निहित रहता है अतः सर्वदा अतिशयकी उत्पत्ति होने का प्रसंग आता है । साधन प्रयोग की अपेक्षा .... लेकर निश्चय अतिशयका उत्पादक होता है ऐसा कहना भी युक्त नहीं, क्योंकि अनुपकारकको अपेक्षा नहीं होती है । यदि निश्चयको उपकारक माना जाय तो उसके द्वारा
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