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प्रमेयकमलमार्तण्डे न चात्रत्येदानीन्तनोपमानभूताशेषपुरुषप्रत्यक्षत्वम् उपमेयभूताशेषान्यदेशकालपुरुषप्रत्यक्षत्वं चाभ्युपगम्यते; सर्वज्ञसिद्धिप्रसङ्गात्, निखिलार्थप्रत्यक्षत्वमन्तरेणाशेषपुरुषपरिषत्साक्षात्कारित्वासम्भवात् ।
नाप्यर्थापत्तस्तदभावावगमः; सर्वज्ञाभावमन्तरेणानुपजायमानस्य प्रमाणषट्कविज्ञातस्य कस्यचिदर्थस्यासम्भवात् । वेदप्रामाण्यस्य गुणवत्पुरुषप्रणीतत्वे सत्येव भावात् । अपौरुषेयत्वस्याग्रे विस्तरतो निषेधात् । न चार्थापत्तिरनुमानात्प्रमाणान्तरमित्यग्रे वक्ष्यते। तद्वदत्रापि व्याप्त्यादिचिन्तायां दोषान्तरं चापादनीयम् । नाप्यभावप्रमाणात्तदभावसिद्धिः; तस्यासिद्ध:, तदसिद्धिश्चाभावप्रमाणलक्षणस्य
"प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिः प्रमाएाभाव उच्यते । सात्मनोऽपरिणामो वा विज्ञानं वान्यवस्तुनि ॥"
[ मी ० श्लो० अभावप० श्लो० ११ ]
प्रमाण तो उपमा और उपमेय के प्रत्यक्ष होने पर सादृश्य का अवलंबन लेकर प्रगट होता है, अन्यथा नहीं। किन्तु ऐसा उपमा उपमेय का यहां सर्वज्ञ के विषय में प्रत्यक्ष होना शक्य नहीं है यहां के वर्तमान समय के अशेष पुरुषोंका प्रत्यक्ष ज्ञान, तथा उपमेयभूत अशेष अन्य देशकाल में होनेवाले पुरुषों का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है, ऐसा स्वीकार नहीं कर सकते, यदि करेंगे तो सर्वज्ञ की सिद्धि होवेगी किन्तु सकल पदार्थोंका प्रत्यक्ष ज्ञान हुए बिना सकल पुरुष समूह का साक्षात्कार भी संभव नहीं है । अतः उपमा प्रमाण सर्वज्ञाभाव को सिद्ध नहीं कर सकता । अर्थापत्ति प्रमाण से भी सर्वज्ञाभाव करना शक्य नहीं, सर्वज्ञाभाव के बिना नहीं होने वाले, प्रमाण षटक से विज्ञात ऐसा कोई पदार्थ नहीं है । मतलब ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जो कि सर्वज्ञ का अभाव होने पर ही हो सकता हो, अतः अन्यथानुपपद्यमानत्वरूप अर्थापत्ति सर्वज्ञाभाव को सिद्ध नहीं कर पाती । वेद में प्रमाणता तो तब मानेंगे जब उसको गुणवान पुरुषकृत स्वीकार किया जाय ? आपके अपौरुषेय वेद या आगम का आगे विस्तार से खण्डन करने वाले हैं। तथा यह भी बात है कि अर्थापत्ति अनुमान से कोई पृथक् प्रमाण नहीं है । जैसे अनुमान से सर्वज्ञाभाव सिद्धि करनेमें व्याप्ति का अभाव, सपक्ष का अन्वय नहीं होना इत्यादि दोष आते हैं ऐसे ही दोष अर्थापत्ति में भी आवेंगे । अभाव प्रमाण से भी सर्वज्ञ का अभाव नहीं होता, क्योंकि स्वयं अभाव प्रमाण ही सिद्ध नहीं है, अभाव प्रमाणका लक्षण गलत होने से उसकी सिद्धि नहीं होती प्रत्यक्षादि प्रमाणों का अभाव होना प्रमाणाभाव
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