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प्रमेयकमलमार्तण्डे स्यादिति-"अग्नेरूद्धज्वलनम्" [प्रश० व्यो० पृ. ४११ ] इत्याद्यात्मसर्वगतत्वसाधनमयुक्तम् । अव्यतिरेकैकान्ते चात्ममात्रं बुद्धिमात्रं वा स्यात्, तत्कथं मत्वर्थः ? न हि तदेव तेनैव तद्वद्भवति ।।
__ किञ्च, असौ तबुद्धिः क्षणिका, अक्षणिका वा ? यदि क्षणिका; तदा तस्याः कथं द्वितीयक्षणे प्रादुर्भावः कारणत्रयाधीनत्वात्तस्य ? न चेश्वरेऽसमवायिकारणमात्ममनःसंयोगस्तच्छरीरादिकं च निमित्तं कारणमस्ति। कारणत्रयाभावेप्यस्मदादिबुद्धिवैलक्षण्यात्तस्याः प्रादुर्भावे क्षित्यादिकार्यस्य घटादिकार्यवैलक्षण्याबुद्धिमत्कारणमन्तरेणाप्युत्पत्तिः किन्न स्यात् ? महेश्वरबुद्धिवच्च मुक्तात्मनामप्यानन्दादिकं . शरीरादिनिमित्तकारणमन्तरेणाप्युत्पत्स्यत इति कथं बुद्ध्यादिविकलं जडात्मस्वरूपं मुक्तिः स्यात् ?
का असन्निधान होने से किस प्रकार व्यापार होगा ? असन्निधान होते हुए भी व्यापार कर सकती है तो अग्नि आदि के देश में असंनिहित रहकर अदृष्ट भी ऊर्ध्वज्वलनादि का हेतु हो सकता है। इस तरह असंनिहित पदार्थ में कार्यत्व मानने पर आत्मा को सर्वगत सिद्ध करने के लिये दिये गये हेतु अयुक्त ठहरते हैं। बुद्धिमान से बुद्धि सर्वथा अपृथक् है ऐसा एकांत कहेंगे तो केवल आत्म तत्व का अस्तित्त्व, या केवल बुद्धि तत्त्व का अस्तित्त्व रह जाने से बुद्धिमान इस प्रकार का मतुप् प्रत्यय का अर्थ किस प्रकार सिद्ध होगा ? वही पदार्थ उसीसे तद्वान नहीं कहलाता है।
दूसरी बात यह है कि बुद्धिमान ईश्वर की बुद्धि क्षणिक है या अक्षणिक ? क्षणिक माने तो द्वितीय क्षण में कैसे उत्पन्न हो सकेगी क्योंकि उत्पत्ति तीन कारणों के (समवायी कारण, असमवायी कारण, और निमित्त कारण) अधीन है ईश्वर में इन कारणों में से प्रात्मा और मन का संयोगरूप असमवायी कारण तथा शरीरादि रूप निमित्त कारण नहीं होता है । ईश्वर की बुद्धि अस्मदादि की बुद्धि से विलक्षण होने के कारण तीन कारणों के अभाव में भी उत्पन्न होती है ऐसा कहें तो घटादि कार्य से विलक्षण ही पृथ्वी आदि कार्य हैं अतः वे बिना बुद्धिमान निमित्त के उत्पन्न हो जाते हैं, ऐसा भी क्यों न माना जाय ? तथा जैसे महेश्वर में कारण के बिना क्षण-क्षण में बुद्धि उत्पन्न होती है, वैसे अन्य मुक्तात्मानों के आनंदादिक गुण शरीरादि निमित्त कारण के बिना ही उत्पन्न हो सकेंगे । ईश्वर की बुद्धि को अक्षणिक मानने के पक्ष में भी दोष है, शब्द क्षणिक है क्योंकि वह हम जैसे के प्रत्यक्ष होने पर "विभु द्रव्य का विशेष गुण है' जैसे सुख आदिक । इस अनुमान में इसी बुद्धि द्वारा हेतु की अनैका
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