Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
१३४
प्रमेयकमलमार्तण्डे दृष्ट श्वरपरिकल्पनया ? सर्वत्र कार्येऽदृष्टस्य व्यापारात् । तथाहि-यद्यदुपभोग्यं तत्तददृष्टपूर्वकम् यथा सुखादि, उपभोग्यं च प्राणिनां निखिलं कार्य मिति ।
___ननु यथा प्रभुः सेवामेदानुरोधात्फलप्रदो नाप्रभुस्तथेश्वरोपि कर्मापेक्षः फलप्रदो नान्यः; इत्यपि मनोरथमात्रम्; राज्ञो हि सेवायत्तफलप्रदस्य यथा रागादियोगो नैघृण्यं सेवायत्तता च प्रतीता तथेशस्याप्येतत्सर्वं स्यात्, अन्यथाभूतस्य अन्यपरिहारेण क्वचिदेव सेवके सुखादिप्रदत्वानुपपत्तेः।
__ अथ यथा स्थपत्यादीनामेकसूत्रधारनियमितानां महाप्रासादादिकार्यकरणे प्रवृत्तिः, तथात्राप्येकेश्वरनियमितानां सुखाद्यनेककार्यकरणे प्राणिनां प्रवत्तिः; इत्यप्यसाम्प्रतम्; नियमाभावात् । न ह्ययं नियम:-निखिलं कार्य मेकेनैव कर्तव्यम्, नाप्येकनियतैर्बहुभिरिति; अनेकधा कार्यकत्त त्वो
क्या प्रयोजन है ? क्योंकि सब कार्य में धर्मादि का ही व्यापार होता हुआ देखा जाता है। जगत का कार्य प्राणियों के अदृष्ट से होता है, क्योंकि वह उन्हीं के द्वारा उपभोग्य है, जो जिसके द्वारा उपभोग्य होता है वह उसी के अदृष्ट से निर्मित है, जैसे सुखादिक प्राणियों का अखिल कार्य उपभोग्य है, अतः अदृष्ट निर्मित है ।
__ शंका-जिस प्रकार स्वामी नौकर को सेवा विशेष के अनुसार फल देता है, उस सेवा फल को अस्वामो नहीं दे सकता है, उसी प्रकार ईश्वर कर्म के अनुसार फल देता है, अन्य नहीं दे सकता है ?
समाधान-यह कथन मनोरथ मात्र है राजा सेवानुसार फल देता है किन्तु उसमें रागद्वेष है, कृपणता है वह सेवा के अधीन भी हो जाता है, ऐसे रागद्वेष आदि अवगुण ईश्वर में भी मानने होंगे। रागद्वेषादि नहीं होते तो अन्य का परिहार करके किसी सेवक विशेष को ही सुखादि को देने की बात नहीं बनती है।
यौग-जैसे स्थपति आदि शिल्पिकार एक सूत्रधार के नियम में बद्ध होकर महाप्रासाद ग्रादि कार्य को करते हैं, उसी प्रकार एक ईश्वर के नियम में बद्ध होकर सुख दुःख आदि अनेक कार्य करने में प्राणीगण प्रवृत्त होते हैं ?
जैन-यह कथन असत् है, ऐसा नियम नहीं है कि अशेष कार्य एक ही व्यक्ति करे, तथा ऐसा भी नियम नहीं है कि अनेक व्यक्ति एक से अनुबद्ध होकर ही कार्यों को करे, किन्तु कार्यों का कर्तापना अनेक प्रकार से उपलब्ध होता है, इसी को बताते हैं कहीं पर एक कार्य को एक ही व्यक्ति करता है, जैसे जुलाहा वस्त्र रूप कार्य को करता है । कहीं पर एक कर्ता अनेक कार्यों को करता है, जैसे एक ही कुभकार घट, सुरई,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org