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प्रमेयकमलमार्तण्डे
सिद्धिः, तत्सिद्धौ च तत्प्रणीतत्वेनागमप्रामाण्यप्रसिद्धिः । अन्येश्वरप्रणीतागमात्तत्सिद्धौ तस्याप्यन्येश्वरप्रणीतागमात्सिद्धावीश्वरागमानवस्था । पूर्वेश्वरप्रणीतागमात्तत्सिद्धौ परस्पराश्रयः । स्वप्रणीतागमात्तत्सिद्धौ चान्योन्यसंश्रयः । नित्यस्य त्वागमस्य परैः प्रामाण्यं नेष्यते महेश्वरकल्पनानर्थक्यप्रसङ्गात्, प्रामाण्यस्योत्पत्तौ ज्ञप्तौ चेश्वरसद्भावस्याकिञ्चित्करत्वात् ।
यदप्युक्तम्-कारुण्याच्छरीरादिसर्ग प्राणिनां प्रवर्त्तते; तदप्ययुक्तम्; सुखोत्पादकस्यैव शरीरादिसर्गस्योत्पादकस्य प्रसङ्गात् । न हि करुणावतां यातनाशरीरोत्पादकत्वेन प्राणिनां दुःखोत्पा दकत्वं युक्तम् । धर्माधर्मसहकारिणः कत्त त्वात्सुखवदुःखस्याप्युत्पादकोऽसौ, फलोपभोगेन हि तयोः प्रक्षयादपवर्गः प्राणिनां स्यात् इति करुणयापि तद्विधाने प्रवृत्य विरोधः; इत्यप्यसङ्गतम्; तयोरीश्वरा
वे ठीक नहीं हैं, इससे तो अन्योन्याश्रय दोष आता है क्योंकि प्रमाण प्रसिद्ध आगम ही ईश्वर का प्रसाधक हो सकता है, अन्यथा अति प्रसंग होगा। ईश्वर द्वारा रचित होने के कारण पागम में प्रामाण्य है ऐसा कहो तो अन्योन्याश्रय होगा-पागम प्रामाण्य की सिद्धि होने पर महेश्वर की सिद्धि होगी और उसके सिद्ध होने पर उसके द्वारा प्रणीत होने के कारण आगम प्रामाण्य की सिद्धि होगी। इस दोष से बचने के लिये अन्य ईश्वर द्वारा प्रणीत आगम से इस ईश्वर की सिद्धि करते हैं तब तो अनवस्था खड़ी होगी। पूर्व ईश्वर प्रणीत आगम से इस ईश्वर की सिद्धि होना भी अन्योन्याश्रय दोष के कारण असंभव है । तथा खुद के रचे आगम से ही ईश्वर में सर्वज्ञता सिद्ध होना कहें तो वही अन्योन्याश्रय दोष होता है । आप योग मीमांसक के समान नित्य प्रागम को प्रामाणिक नहीं मानते हैं, अन्यथा महेश्वर की कल्पना करना व्यर्थ है, क्योंकि नित्य आगम के प्रामाण्य की उत्पत्ति और ज्ञप्ति होने में ईश्वर के सद्भाव की आवश्यकता नहीं रहती है।
आपने कहा था कि "ईश्वर करुणा बुद्धि से प्राणियों के शरीरादि की रचना करता है किन्तु यह असत् है, यदि करुणा से करता तो सुखदायक शरीरादि को ही रचता ? क्योंकि करुणाशाली पुरुष प्राणियों को यातना पहुंचाने वाले शरीरादि को निर्माण कर दुःख को उत्पन्न नहीं कराते हैं ।
यौग-ईश्वर धर्म तथा अधर्म दोनों की सहकारिता से कार्य करता है अतः सुख और दुःख दोनों का उत्पादक है, जब इन धर्म अधर्म का फल भोग करके नाश होता है तब प्राणियों को मोक्ष होता है, अतः ईश्वर करुणा से भी सुख दुःख को करा सकता है ?
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