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प्रमेयकमलमार्तण्डे विच्छाव्याघातो न स्यात्, सर्वश्चाऽतीन्द्रियार्थदर्शी स्यात् । न हि कश्चित्तादृशो बुद्धिमानस्ति यो न किञ्चित्करोति कार्यं वा तादृशं विद्यते यत्राऽदृष्ट नोपयुज्यते । कारणशक्त श्चातीन्द्रियत्वात्तदपरिज्ञानं सर्वप्राणिनां सुप्रसिद्धम् । यथास्थानं चास्याः सद्भावो निवेदितः । अन्यत्तु शरीराऽनायासतो वाग्व्यापारमात्रेण; यथा स्वामिनः कर्मकरादिप्रयोक्त त्वम् । अस्तु वा कारकप्रयोक्त त्वस्य परिज्ञानेनाविनाभावः, तथाप्यशरीरेश्वरे तस्यासम्भवः, सर्वत्र शरीरसम्बन्धे सत्येवास्योपलम्भात् ।
यदप्यभ्यधायि बुद्धिमत्कारणपूर्वकत्वमात्रस्य साध्यत्वान्न विशेषविरुद्धता कार्यत्वस्य, अन्यथा धूमाद्यनुमानोच्छेदः; तदप्यभिधानमात्रम्, कार्य मात्राद्धि कारणमात्रानुमाने विशेषविरुद्धताऽसम्भवस्तस्य तेन व्याप्तिप्रसिद्धः, न पुनर्बुद्धिमत्कारणानुमाने तस्य तेनाव्याप्त : प्रतिपादितत्वात् । व्याप्ती वा
कुछ नहीं करता हो, तथा वैसा कोई कार्य भी नहीं है जहां अदृष्ट नहीं होता हो। इससे सिद्ध होता है कि कारकों का ज्ञान नहीं होते हुए भी कर्ता कार्य को करता है । कारकों की शक्ति अतीन्द्रिय होती है इसलिये उनका ज्ञान सर्व प्राणियों को नहीं हो सकता यह बात भी प्रसिद्ध ही है।
भावार्थ-कार्य कर्ता किसी कार्य को करते हैं किंतु वह कह देते हैं कि भाई ! प्रयत्न तो कर रहे किन्तु सफलता होना भाग्याधीन है, विद्यार्थी विद्यालय में पढ़ते हैं सफलता होना जरूरी नहीं हैं, दुकानदार दुकान खोलता है किन्तु लाभ होना निश्चित नहीं है, अनेकों उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि प्रयोक्ता को कारकों का पूरा ज्ञान नहीं होता है।
पदार्थों में अतीन्द्रिय शक्ति होती है इस बात का निश्चय इस ग्रथ के प्रथम भाग में "शक्ति स्वरूप विचार" नामा प्रकरण में भली प्रकार हो च का है । कोई प्रयोक्ता ऐसे भी होते हैं जो शरीर के प्रयास के बिना वचन मात्र से ही कार्य करते हैं, जैसे स्वामी अपने सेवक को वचन से कार्य में लगाते हैं । दुर्जन संतोष न्याय से मान लेवे कि कारक प्रयोक्तृ का ज्ञान के साथ अविनाभाव है तो भी अशरीरी ईश्वर में उसका होना संभव है क्योंकि सर्वत्र शरीर सम्बन्ध होने पर ही कारक प्रयोकृत्व होता है । आपने कहा था कि हमने बुद्धिमान कारण पूर्वकत्व सामान्य को ही साध्य बनाया है अतः कार्यत्व हेतु विशेष विरुद्ध नामा दोष संयुक्त नहीं होता अन्यथा धूमादि हेतु वाले अनुमानों का उच्छेद होवेगा। किन्तु यह कथन अयुक्त है, कार्यमात्र से कारण मात्र का अनुमान होना मानते तब तो विशेष विरुद्ध नहीं होता, कारण मात्र की
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