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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
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न चाऽचेतनस्य चेतनानधिष्ठितस्य वास्यादिवत्प्रवृत्त्यसम्भवात् सम्भवे वा निरभिप्रायारणां देशादिनियमाभावप्रसङ्गात् तदधिष्ठातेश्वरः सकलजगदुपादानादिज्ञाताभ्युपगन्तव्यः इत्यभिधातव्यम्; तज्ज्ञत्वेनास्याद्याप्यसिद्ध ेः । न चास्य तत्कत्त त्वादेव तज्ज्ञत्वम्; इतरेतराश्रयानुषङ्गात्-सिद्धे हि सकलजगदुपादानाद्यभिज्ञत्वे तत्कत्त त्वसिद्धिः तत्सिद्धौ च तदभिज्ञत्व सिद्धिः । अचेतनवच्च तनस्यापि चेतनान्तराधिष्ठितस्य विष्टिकर्मकरादिवत् प्रवृत्त्युपलम्भात्, महेश्वरेप्यधिष्ठातृ चेतनान्तरं परिकल्पनीयम् । स्वामिनोऽन धिष्ठितस्यापि प्रवृत्त्युपलम्भोऽकृष्टोत्पन्नांकुराद्य पादाने समानः । घटाद्य पादानस्यानधिष्ठितस्याप्रवृत्त्युपलम्भात् तथांकुराद्य पादानस्यापि कल्पने विष्टिकर्म करादेः स्वाम्यन धिष्ठितस्याप्रवृत्ते र्महेश्वरेपि तथा स्यात्, तथा चानवस्था | चेतनस्याप्यपरचेतनाधिष्ठितस्य प्रवृत्यभ्युपगमे च
अतः इन पृथ्वी आदि का अधिष्ठाता ईश्वर माना है जिसको जगत के उपादान आदि कारणों का भले प्रकार से ज्ञान है ।
जैन- ऐसा कथन ठीक नहीं है, सकल जगत का ज्ञान ईश्वर को है यह अभी तक सिद्ध नहीं हो पाया है । जगत का कर्ता होने से ही ईश्वर के सकल ज्ञातृत्व सिद्ध होता है ऐसा माने तो इतरेतराश्रय दोष आता है - ईश्वर के सकल जगत के उपादान आदि कारणों का ज्ञान है ऐसा सिद्ध होने पर उस जगत का कर्तापन सिद्ध होगा और उसके सिद्ध होने पर सकल जगत ज्ञातृत्व सिद्ध होगा । आप अचेतन को चेतन से अधिष्ठित होकर कार्य करना मानते हो सो वैसे चेतन को भी अन्य चेतन से अधिष्ठित होकर कार्य करना मानना चाहिये ? देखा भी जाता है कि पालकी चलाने वालों को स्वामी की प्रेरणा रहती है अतः महेश्वर में भी अन्य प्रेरक की कल्पना करनी होगी । यदि कहा जाय कि स्वामी की प्रेरणा के बिना भी कार्य होता है ? सो यही बात बिना बोये धान्यांकुर आदि की उत्पत्ति में माननी होगी, यदि घट आदि उपादान की चेतन अधिष्ठान के बिना प्रवृत्ति नहीं होती है अतः अंकुरादि में भी चेतन प्रधिष्ठान की कल्पना करते हैं, तो कर्मचारी आदि की स्वामी के बिना प्रवृत्ति नहीं होती अतः महेश्वर में भी अन्य चेतन अधिष्ठायक की कल्पना करनी होगी, इस तरह अनवस्था प्राती है । तथा चेतन की प्रवृत्ति भी अन्य चेतन से अधिष्ठित होकर होती है तो आपके अनुमान प्रयोग में जो पक्ष है कि “अचेतन पदार्थ चेतन से अधिष्ठित होते हैं" इसमें धर्मी का अचेतन विशेषण और हेतु का अचेतनत्वात् विशेषरण व्यर्थ होगा, क्योंकि व्यवच्छेद्य का अभाव है अर्थात् मात्र अचेतन को ही चेतनाधिष्ठान की जरूरत
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