Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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ईश्वरवादः
१२७ यच्चदमुक्तम्-ज्ञानचिकीर्षाप्रयत्नाधारता हि कर्तृता न सशरीरेतरता; इत्यप्यसङ्गतम्; शरीराभावे तदाधारत्वस्याप्यसम्भवान्मुक्तात्मवत् । तेषां खलूत्पत्तौ आत्मा समवायिकारणम् आत्ममनःसंयोगोऽसमवायिकारणम्, शरीरादिकं निमित्तकारणम् । न च कारण त्रयाभावे कार्योत्पत्तिरनभ्युपगमात् । अन्यथा मुक्तात्मनोपि ज्ञानादिगुणोत्पत्तिप्रसङ्गात् “नवानां गुणानामत्यन्तोच्छेदो मुक्तिः"
] इत्यस्य व्याघातः । निमित्तकारणमन्तरेणाप्येषामुत्पत्तौ च बुद्धिमत्कारणमन्तरेणाप्यंकुरादेः किं नोत्पत्तिः स्यात् ? नित्यत्वाभ्युपगमात्तेषामदोषोयमित्ययुक्तम्; प्रमाणविरोधात् । तथाहि-नेश्वरज्ञानादयो नित्यास्तत्त्वादस्मदादिज्ञानादिवत् । तज्ज्ञानादीनां दृष्टस्वभावातिक्रमे भूरुहादीनामपि स स्यात् ।
शरीर नहीं होने से कर्तृत्वाधार नहीं है । कार्यों की उत्पत्ति में आत्मा समवायी कारण है, आत्मा और मन का संयोग होना असमवायी कारण है और शरीरादिक निमित्त कारण हैं, इन तीन कारणों के अभाव में कार्य की उत्पत्ति नहीं होती ऐसा आपने स्वयं स्वीकार किया है । यदि कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति मानेंगे तो मुक्तात्मा के ज्ञानादि गुण उत्पन्न होने का प्रसंग आता है फिर ज्ञानादि नव गुणों का अत्यन्त विच्छेद होना मुक्ति है ऐसा अापका आगम वाक्य खण्डित हो जाता है । यदि निमित्त कारण के बिना कार्यों की उत्पत्ति होना स्वीकार करते हैं तो बुद्धिमान कारण के बिना अंकुर आदि पदार्थों की उत्पत्ति होना क्यों स्वीकार नहीं करते ।
यौग-ईश्वर के ज्ञान चिकीर्षा आदि को नित्य माना है अतः कोई दोष नहीं पाता?
__ जैन-यह बात प्रमाण से विरुद्ध है, ईश्वर के ज्ञानादिक नित्य नहीं है, क्योंकि वे ज्ञानादि रूप है, जैसे हमारे ज्ञानादिक नित्य नहीं है । तुम कहो कि "ईश्वर के ज्ञानादि में दृष्ट स्वभाव का अतिक्रम है अर्थात् उनमें अतिशय है या हमारे ज्ञानादि से पृथक् स्वभाव रूप है" तो वृक्ष आदि में भी दृष्ट स्वभावातिक्रम मानो, अर्थात् घटादि में बुद्धिमान कर्तृत्व और वृक्षादि में अबुद्धिमान कर्तृत्व है ऐसा मानना पड़ेगा।
यौग-अचेतन पदार्थ चेतन से अधिष्ठित हुए बिना कार्य में प्रवृत्ति नहीं कर सकते, जैसे वसूला आदि अचेतन पदार्थ नहीं करते, अचेतन पदार्थ यदि कार्य करेंगे तो ज्ञान शून्य होने के कारण निश्चित स्थान, समय आदि में कार्य नहीं कर सकेंगे किन्तु ऐसा नहीं है, अचेतन पदार्थों का कार्य भी समय पर सम्पन्न होता हुआ देखा जाता है
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