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प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रतिबन्धासिद्ध: प्राशङ्कितविपक्षवृत्तितयाऽनैकान्तिकत्वम् । प्रतिबन्धाभ्युपगमे चेष्टविपरीतसाधना द्विरुद्धमित्यादि पूर्वोक्त सर्वमत्रापि योजनीयम् ।
किञ्च, ईश्वरबुद्ध रनित्यत्वप्रसाधनात्तदभिन्नस्येश्वरस्यानित्यत्वप्रसिद्ध स्तस्याप्यपरबुद्धिमदधिष्ठितत्वप्रसङ्गः स्यादिल्यनवस्था । तदनधिष्ठितत्वे वा तेनैवानेकान्तो हेतोः ।
यञ्चोक्तम्-'सर्गादौ पुरुषाणां व्यवहारः' इत्यादि; तत्रोत्तरकालं प्रबुद्धानामित्येतद्विशेषणमसिद्धम् । न खलु प्रलयकाले प्रलुप्तज्ञानस्मृतयो वितनुकरणाः पुरुषाः सन्ति, तस्यैव सर्वथाऽप्रसिद्धः। सिद्धौ वा स्वकृतकर्मवशाद्विशिष्टज्ञानान्तरेषू (न्तरो)त्पत्तेस्तेषां कथं वितनुकरणत्वं प्रलुप्तज्ञानस्मृतित्वं वा ? सन्दिग्धविपक्षव्यावृत्तिकत्वादनकान्तिकश्च हेतुः।
धिष्ठित के साथ अविनाभाव सिद्ध नहीं है अतः इसमें शंकित विपक्ष वृत्ति होने से अनैकांतिक हेत्वाभासपना भी है। यदि चेतन के साथ रूपादिमत्व हेतु का अविनाभाव मानेंगे तो इष्ट साध्य से विपरीत साध्य सिद्ध होने के प्रसंग प्राप्त होना इत्यादि पूर्वोक्त दोष इस अनुमान में भी आते हैं ।
• दूसरी बात यह है कि यदि ईश्वर की बुद्धि को अनित्य सिद्ध करेंगे तो उस बुद्धि से अभिन्न रहने वाला ईश्वर भी अनित्य सिद्ध होता है फिर अनित्य ईश्वर का अन्य कोई बुद्धिमान अधिष्ठायक मानना होगा क्योंकि जो अनित्य होता है वह बुद्धिमान द्वारा ही निमित होता है ऐसा योग के यहां नियम है अतः अनवस्था अाती है । अनित्य ईश्वर रूप कार्य को अन्य बुद्धिमान से अधिष्ठित (निर्मित) नहीं मानते हैं तब तो पूर्वोक्त कार्यत्वादि हेतु स्पष्ट रूप से अनैकांतिक सिद्ध होते हैं।
पहले जो कहा था कि सर्ग के अादि में पुरुषों का व्यवहार अन्योपदेश पूर्वक होता है इत्यादि इस कथन में "उत्तर कालं प्रबुद्धानां' ऐसा जो विशेषण है वह प्रसिद्ध है, क्योंकि प्रलयकाल में ज्ञान, स्मृति, शरीर और इन्द्रियां जिनकी लुप्त हुई हैं ऐसे पुरुष नहीं हैं, क्योंकि प्रलय की सर्वथा असिद्धि है यदि सिद्ध भी हो तो प्रलयकाल के अनंतर तत्काल ही पुरुषों के अपने कर्मानुसार ज्ञानांतर की उत्पत्ति हो जाती है, अतः उनके शरीर रहितपना, विलुप्तज्ञान, स्मृतिपना मानना कैसे सिद्ध होवेगा? नहीं हो सकता है, तथा हेतु संदिग्ध विपक्ष व्यावृत्त वाला होने से अनेकांतिक भी है [ अर्थात् सर्ग के आदि में अन्य उपदेश पूर्वक ही कार्य में प्रवृत्ति होती है क्योंकि वह कार्य है, इस अनुमान का कार्यत्व हेतु साध्य से विरुद्ध पड़ता है, क्योंकि संसारी कार्य अन्य
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