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प्रमेयकमलमार्तण्डे
यदप्युक्तम्-व्युत्पन्नप्रतिपत्तीणां नासिद्धत्वं कार्यत्वादेः; तदप्ययुक्तम्; यतः प्रतिबन्धप्रतिपत्तिलक्षणा व्युत्पत्तिस्तेषाम्, तद्वयतिरिक्ता वा स्यात् ? प्रथमपक्षे क्षित्यादिगतकार्यत्वादी प्रकृतसाध्यसाधनाभिप्रेते व्युत्पत्त्यसम्भवः, यथोक्तसाध्यव्याप्तस्य तत्र तस्याभावात् । भावे वा सशरीरस्यास्मदादीन्द्रियग्राह्यस्यानित्यबुद्धयादिधर्मकलापोपेतस्य घटादौ तद्वयापकत्वेन प्रतिपन्नस्यात्र ततः सिद्धिः । न खलु हेतुव्यापकं विहायाव्यापकस्यात्यन्तविलक्षण साध्यधर्मस्य मिरिण प्रतिपत्तौ हेतोः सामर्थ्यम् । कारणमात्रप्रतिपत्तौ तु सिद्धसाध्यता।
ननु बुद्धिमत्कारणमात्रं ततस्तत्र सिध्यत्पक्षधर्मताबला द्विशिष्टविशेषाधारमेव सेत्स्यति, निर्विशेषस्य सामान्यस्यासम्भवात्. घटादौ प्रतिपन्नस्य चास्मदादेस्तन्निर्माणासामर्थ्यात् । नन्वेवं क्षित्याशे बुद्धिमत्कारणत्वासिद्धिरेव स्यादस्मदादेस्त निर्माणासामर्थ्यादन्यस्य च हेतुव्यापकत्वेन कदाचनाप्यप्रतिपत्तेः खरविषाणवत, निराधारस्य च सामान्यस्यासम्भवात् । न हि गोत्वाधारस्य खण्डादिव्यक्तिविशेषस्यासम्भवे तद्विलक्षण महिष्याद्याश्रितं गोत्वं कुतश्चित्प्रसिद्ध्यति ।
साधन भूत पृथ्वी आदि में पाये जाने वाले कार्यत्वादि में व्युत्पन्न बुद्धि होना असंभव है, यदि संभावना मानेंगे तो सशरीरी अस्मदादि इन्द्रिय ग्राह्य, अनित्य बुद्धि वाला इत्यादि, धर्म समुह से युक्त ऐसे कार्यत्व का घटादि में व्यापक पना जानकर उसकी इस पृथ्वी आदि में सिद्धि होगी, अर्थात् घटादि के समान पृथ्वी आदि का कर्ता भी सशरीरी आदि धर्म युक्त सिद्ध होगा । क्योंकि हेतु में ऐसी सामर्थ्य नहीं है कि वह व्यापक को छोड़कर अत्यन्त विलक्षण ऐसे अव्यापक धर्मभूत साध्य की धर्मी में प्रतिपत्ति करा देवे । यदि कहा जाय कि कार्यत्व हेतु कारण मात्र की प्रतिपत्ति कराता है तो सिद्ध साध्यता है ।
यौग-कार्यत्व हेतु द्वारा प्रथम तो बुद्धिमान कारण मात्र की सिद्धि होती है फिर उसके पक्ष धर्मता के बल से विशिष्ट विशेषाधार ( ईश्वर रूप बद्धिमान कारणत्व ) सिद्ध होगा, क्योंकि विशेष रहित सामान्य का होना असंभव है । घटादि में पाया जाने वाला कार्यत्व तो अस्मदादि का है, अस्मदादि से उस पृथ्वी आदि का निर्माण कार्य नहीं हो सकता ?
___जैन-ऐसा मानेंगे तो पृथ्वी आदि में बुद्धिमान कारणत्व का अभाव हो ही जायगा क्योंकि अस्मदादि में तो उन पृथ्वी आदि के निर्माण करने की शक्ति नहीं है और अन्य जो अशरीरी ईश्वर है उसकी हेतु के व्यापकपने से कभी भी प्रतीति नहीं
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