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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
प्रागसतः सत्तासम्बन्धेप्येतत्सर्वं समानम् । न समानम्; खरशृंगादेः क्षित्यादिकार्यस्य, विशेषसम्भवात् । तद्धत्यन्ताऽसत्. क्षित्यादिकं न सन्नाऽप्यसत्सत्तासम्बन्धात्तु सत्; इत्यपि मनोरथमात्रम्; सत्त्वासत्त्वयोरेकत्रैकदा प्रतिषेधविरोधात् । 'न सत्' इत्यभिधानात्तस्य सत्तासम्बन्धात्प्रागभावः स्यात्सत्प्रतिषेधलक्षणत्वादस्य, 'नाप्यसत्' इत्यभिधानात्तु भाव:, असत्त्वप्रतिषेधरूपत्वात्तस्य : रूपान्तराभावात् । ततोऽसदेव तदभ्युपगन्तव्यम् । तन्नास्य खर गादेविशेषः ।
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किश्व, सत्ता सती, असती वा ? यद्यऽसती; कथं तया वन्ध्यासुतयेव सम्बन्धादन्येषां सत्त्वम् ? सती चेत्स्वतः, अन्य सत्तातो वा ? यद्यन्यसत्तातोऽनवस्था । स्वतश्चेत् पदार्थानामपि स्वत एव सत्त्वं स्यादिति व्यर्थं तत्परिकल्पनम् ।
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एतेन द्वितीय विकल्पोप्यपास्तः । कार्यस्य हि स्वतः सत्त्वोपगमे किं तत्कल्पनया साध्यम् अनवस्थाप्रसंगात् । तदेवं कार्यत्वासिद्ध रसिद्धो हेतुः ।
नहीं हैं ऐसा कहेंगे तो सद्भाव रूप वस्तु का ग्रहण होता है क्योंकि सद्भाव असत्व का प्रतिषेध रूप है । असत्व और सत्व को छोड़कर तीसरा रूप नहीं है । अतः सत्ता सम्बन्ध के पहले पृथ्वी आदि असत् थे ऐसा आपको मानना पड़ेगा । इस तरह पृथ्वी आदि की खरविषाण से कोई विशेषता सिद्ध नहीं होती ।
आप योग की सत्ता भी किस जाति की है ? असत् है कि सत् है ? यदि असत् है तो बन्ध्या पुत्र के समान उसके सम्बन्ध से अन्य में सत्व कैसे आयेगा ? अर्थात् नहीं आ सकता है । यदि सत् है तो स्वतः सत् हैं या अन्य सत् है ? “अन्य से सत् है" तो अनवस्था प्राती है और स्वतः ही सत् है तो पृथ्वी आदि पदार्थों में भी स्वतः सत्व होना चाहिये इस तरह सत्ता समवाय की कल्पना करना व्यर्थ हो जाता है ।
शुरू में प्रश्न हुआ था कि पृथ्वी आदि में कारण समवाय के समय स्वरूप सत्व का प्रभाव है कि नहीं सो इसमें प्रभाव का पक्ष समाप्त हुआ, अब " प्रभाव नहीं है" ऐसे दूसरे विकल्प में विचार करें तो प्रथम पक्ष के समान इसमें भी दोष हैं क्योंकि पृथ्वी आदि में कारण समवाय के समय स्वरूप का सत्व है तो स्वतः सत्व रूप उन पदार्थों में कारण समवाय अथवा सत्ता समवाय की कल्पना करने से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? उल्टा अनवस्था दोष का प्रसंग प्राप्त होता है, इस प्रकार पृथ्वी प्रादि में कार्यत्व सिद्ध नहीं होने से कार्यत्व हेतु में प्रसिद्ध दोष सिद्ध होता है । किंच, पृथ्वी आदि को कथंचित् कार्यत्व रूप मानते हैं या सर्वथा ? सर्वथा कहो तो वही
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