________________
१६
प्रमेयकमलमार्तण्डे सर्वदा तन्निषेधविरोधात् । न च निषेध्यनिषेध्याधारयोरप्रतिपत्तौ निषेधो नामातिप्रसङ्गात् । न ह्यप्रतिपन्ने भूतले घटे च घटनिषेधो घटते । यथा चाभावप्रमाणस्योत्पत्तिः स्वरूपं विषयो वा न सम्भवति तथा प्राक्प्रपञ्चेनोक्तमिति कृतमतिप्रसंगेन ।
तन्नाभावप्रमाणादप्यशेषज्ञाभावसिद्धिः । तदेवं सिद्ध सुनिश्चितासम्भवबाधकप्रमाणत्वमप्यशेषज्ञस्य प्रसाधकम् इत्यलमतिप्रसंगेन ।
नहीं जाने हैं तब तक उनका निषेध करना असंभव है अन्यथा अतिप्रसंग होगा, घट और भूतल जाना नहीं तो घट का निषेध घटित नहीं होता, अभाव प्रमाण की उत्पत्ति, उसका स्वरूप तथा उसका विषय ये सब संभव नहीं हैं इसका पहले ही विस्तृत विवेचन कर दिया है, अब इस विषय पर अधिक नहीं कहते। इस तरह प्रभाव प्रमाण से सर्व ज्ञाभाव की सिद्धि नहीं होती । इस प्रकार कोई भी प्रमाण सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध नहीं कर सका । उसके सद्भाव को सिद्ध करनेवाला सुनिश्चित असंभवत बाधक प्रमाण रूप हेतुवाला अनुमान प्रमाण है, वह सर्वज्ञ को भले प्रकार से सिद्ध कर देता है । अब इस सर्वज्ञ सिद्धि प्रकरण को समाप्त करते हैं ।
॥ सर्वज्ञत्ववाद समाप्त ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org