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ईश्वरवादः
वयवसन्निवेश विशिष्टत्वाद् घटादिवत् । वैधम्र्येण परमाणवो यथा' [ ] द्वाभ्यां दर्शनस्पर्शनेन्द्रियाभ्यां ग्राह्य पृथिव्यप्त जोलक्षण त्रिविधं द्रव्यमग्राह्य वाय्वादिकम् । वायौ हि रूपसंस्काराभावादनुपलब्धिः रूपसंस्कारो रूपसमवायः । द्वयणुकादीनां त्वऽमहत्वात् । उक्त च-"महत्यनेकद्रव्यत्वाद्र पविशेषाच्च रूपोपलब्धिः " [वैशे० सू० ४।१।६]
प्रशस्तमतिना च; “संदिौ पुरुषाणां व्यवहारोऽन्योपदेशपूर्वकः उत्तरकालं प्रबुद्धानां प्रत्यर्थनियतत्वादप्रसिद्धवाग्व्यवहाराणां कुमाराणां गवादिषु प्रत्यर्थ नियतो वाग्व्यवहारो यथा मात्राद्य - पदेशपूर्वकः" [ ] इति ।
जो कि विवादग्रस्त हैं वे बुद्धिमान कारण पूर्वक होते हैं, क्योंकि अपने आरम्भक परमाणु रूप अवयवों की रचना स्वरूप हैं, जैसे घटादि पदार्थ परमाणुगों की रचना विशेष होने से चेतन अधिष्ठित है । व्यतिरेक दृष्टांत में परमाणु को ले लीजिये, अर्थात् जो रचना विशेष रूप नहीं है वह चेतनाधिष्ठित भी नहीं है जैसे परमाणु रचना विशेष रूप नहीं है अतः चेतनाधिष्ठित नहीं है । दर्शन तथा स्पर्शनेन्द्रिय ग्राह्य पदार्थ पृथ्वी जल और अग्नि ये तीन द्रव्य हैं । वायु आदिक अग्राह्य द्रव्य हैं । रूप संस्कार का अभाव होने से वायु की उपलब्धि नहीं होती है, रूप का समवाय होने को रूप संस्कार कहते हैं। द्वि अण क आदि पदार्थ अमहत्व रूप होने से अग्राह्य होते हैं। कहा भी है महान में अनेक द्रव्यपना होने से तथा रूप विशेष होने से रूप की उपलब्धि होती है। प्रशस्तमति ने भी कहा है कि सृष्टि के प्रारम्भ में पुरुषोंका व्यवहार अन्य उपदेश पूर्वक होता है क्योंकि उत्तरकाल में प्रबुद्ध पुरुषों का अर्थ के प्रति नियमितपना देखा जाता है जैसे जिनको वचन बोलना नहीं आता है ऐसे कुमारों का गो आदि अर्थ में नियतरूप वचन व्यवहार होता है वह माता पिता के उपदेश पूर्वक होता है।
भावार्थ-बालक को शुरुवात में माता पिता वचन बोलना एवं वस्तु का नाम निर्देश प्रादि सिखाते हैं कि यह गाय है इसे गाय कहना यह पुस्तक है इत्यादि उस शिक्षा से ही बालकों का प्रत्येक पदार्थ में निचित वचन व्यवहार होने लगता है, उसी प्रकार सृष्टि के शुरुआत में पुरुषों का कार्यों में प्रवृत्ति होना आदि व्यवहार होता है वह अन्य पुरुष के उपदेश से ही होता है इस तरह अनादि एक ईश्वर सिद्ध होता है उद्योतकर नामा टीकाकार ने भी कहा है कि जगत के कारणभूत प्रधान परमाणु तथा अदृष्ट ये सब स्वकार्य की उत्पत्ति में अतिशय बुद्धिमान अधिष्ठाता की अपेक्षा रखते
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