Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
घटादि कार्यं चेदं क्षित्यादिकम् तस्माद्बुद्धिमद्ध ेतुकम् । न चात्र कार्यत्वमसिद्धम् ; तथाहि — कार्यं क्षित्यादिकं सावयवत्वात् । यत्सावयवं तत्कार्यं प्रतिपन्नम् यथा प्रासादादि, सावयवं चेदम्, तस्मात्कार्यम् ।
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ननु क्षित्यादिगतात्कार्यत्वात्सावयवत्वाच्चान्यदेव प्रासादादौ कार्यत्वं सावयवत्वं च यदक्रियादर्शिनोपि कृतबुद्ध्युत्पादकम्, ततो दृष्टान्तदृष्टस्य हेतोर्धर्मिण्यभावादसिद्धत्वम्; इत्यसमीक्षिताभिधानम्; यतोऽव्युत्पन्नान्प्रतिपत्तृनधिकृत्यैवमुच्यते, व्युत्पन्नान्वा ? प्रथमपक्षे धूमादावप्यसिद्धत्वप्रसङ्गात्सकला
की सिद्धि करते हैं - पृथ्वी आदि पदार्थ कार्य रूप हैं, क्योंकि वे अवयव सहित हैं, जो अवयव युक्त होता है वह कार्य होता है जैसे प्रासादादि, पृथ्वी आदि भी सावयव हैं अतः कार्य हैं ।
शंका-पृथ्वी आदि में होने वाला कार्यपना और सावयवपना पृथक् है और प्रासाद आदि का कार्यपना पृथक् है । प्रासादादि की रचना करना रूप क्रिया नहीं देखी है तो उसमें भी किये हुए की बुद्धि उत्पन्न होती है, इसलिये प्रासाद रूप दृष्टान्त में देखा हुआ हेतु पक्ष में नहीं रहने से प्रसिद्ध है ?
समाधान- यह शंका ठीक नहीं है, यह कथन अव्युत्पन्न व्यक्तियों के लिये किया जा रहा है या व्युत्पन्न व्यक्तियों के लिये किया जा रहा है ? प्रथम पक्ष कहो तो व्युत्पन्न व्यक्ति के प्रति धूम आदि हेतु भी प्रसिद्ध होने से सारे ही अनुमानों का व्युच्छेद हो जायगा । दूसरे पक्ष की बात कहो तब तो कार्यत्व हेतु में प्रसिद्धपना नहीं रहता है, क्योंकि व्युत्पन्न व्यक्ति ने कार्यत्व का बुद्धिमान कारणत्व के साथ अविनाभाव है ऐसा जाना है, वह प्रासादादिवत् पृथ्वी आदि में भी कार्यत्व का निश्चय कर लेता है, जैसे पर्वत आदि में धूम का निश्चय कर लेते हैं । यदि कहा जाय कि दृष्टान्त में देखे गये कार्यत्वादि धर्म पृथ्वी आदि के कार्यत्व से भिन्न है तो पर्वत आदि का धूम और महानस का धूम इनमें भी भेद मानना होगा ।
शंका- कार्यत्व हेतु का बुद्धिमान कारणत्व के साथ अविनाभाव नहीं है, अर्थात् जो कार्य हो वह बुद्धिमान कृत ही होवे सो बात नहीं है क्योंकि बिना बोये वृक्ष आदि कार्यत्व का बुद्धिमान कारणत्व के साथ प्रविनाभाव नहीं देखा जाता है ? समाधान - ऐसा नहीं है, जो हेतु साध्य के बिना भी होवे उसे व्यभिचारी कहते हैं, बिना बोये उत्पन्न हुए वृक्षादिक में कर्ताका अभाव निश्चित नहीं है, किंतु
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