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प्रमेयकमलमार्तण्डे
पीत आदि वर्ण को साक्षात् करता है । इस अनुमान में सर्वज्ञ को धर्मी न बनाकर कोई अात्मा को बनाया है । आपने अभ्यास के पूर्ण ज्ञान होने का खंडन किया किन्तु वह अयुक्त है, आगम का अभ्यास और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की सामग्री को प्राप्त करके यह भव्यात्मा सम्पूर्ण आवरण कर्म का क्षय करने में समर्थ होता है । अस्पष्ट आगम ज्ञान से स्पष्ट प्रत्यक्ष कैसे उत्पन्न हो सकता है ऐसी शंका भी उचित नहीं, क्योंकि यह सर्वथा नियम नहीं है कि कारण सदृश ही कार्य हो, बीज कारण से अन्य अंकुर रूप कार्य होता हुआ देखा गया है, आपका यह जबरदस्त हटाग्रह है कि सम्पूर्ण वस्तु का ज्ञान किसी को नहीं हो सकता किंतु यह कथन आप खुद के भी विरुद्ध होगा, क्योंकि आप मीमांसक भी वेद के द्वारा सकल पदार्थ का बोध होना मानते हैं तथा व्याप्ति के द्वारा भी सामान्यतः सम्पूर्ण साध्य साधन का ज्ञान होना हम जैसे निकृष्ट व्यक्ति को भी संभव है तो योगी जन को स्पष्ट रूप से सकलार्थ का बोध होवे इसमें क्या संदेह है ? सर्वज्ञ देव क्रम से वस्तु को न जानकर सूर्य के समान संपूर्ण पदार्थों को प्रकाशित करते हैं । सर्वज्ञ का ज्ञान प्रथम समय में सब वस्तुओं को ग्रहण करेगा तो द्वितीयादि समय में जानने योग्य वस्तु के अभाव में असर्वज्ञ बन जायगा ऐसी शंका भी व्यर्थ है, पदार्थ प्रतिक्षण अपने अर्थ पर्याय को परिवर्तित करके रहते हैं, जो पदार्थ अभी भविष्यत् रूप जाना था वही द्वितीयादि क्षणों में वर्तमान रूप हो जायगा तथा जो वर्तमान रूप जाना था वह अतीतरूप धारण करेगा, अतः पदार्थ में प्रतिसमय नवीनता रहती है । रागादि को जानने से सर्वज्ञ को भी रागादि मान हो जाने का दोष अनुचित है यदि दूसरे के रागादि को जानने से रागी द्वेषी होंगे तो ब्राह्मणादि कुलीन पुरुष को मदिरा आदि पदार्थ का वर्णन करने या सुनने मात्र से मदिरापेयी होने का प्रसंग प्राप्त होगा। वक्तृत्व हेतु के द्वारा सर्वज्ञाभाव को सिद्ध करना तो बिल्कुल गलत है, क्योंकि यदि सर्वज्ञ सत्य परस्पर अविरुद्ध वाक्य बोलता है तो क्या बाधा है, सर्वज्ञ का और वक्तृत्व का परस्पर में विरोध होता हो सो भी बात नहीं है । आपके आगम प्रमाण, अथवा अर्थापत्ति आदि प्रमाण सर्वज्ञ के बाधक नहीं हैं, क्योंकि उनका वह विषय नहीं है। इस प्रकार आप सर्वज्ञाभाव सिद्ध नहीं कर पाते हैं, और हम जैन निर्दोष अनुमान प्रमाण से उसे सिद्ध कर देते हैं अतः आपको सर्वज्ञ भगवान अवश्य स्वीकार करना चाहिये।
॥ सर्वज्ञवाद का सारांश समाप्त ॥
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