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सर्वज्ञत्ववादः
'भावनाबलाद् ज्ञानं वैशद्यमनुभवति' इत्येतावन्मात्रेण तज्ज्ञानस्य दृष्टान्तोपपत्तेः । न चाशेषदृष्टान्तधर्माणां साध्यधर्मिण्यापादनं युक्त सकलानुमानोच्छेदप्रसङ्गात् । न चाशेषज्ञज्ञानं क्रमेणाशेषार्थग्राहीष्यते येन तत्पक्ष निक्षिप्तदोषोपनिपातः, सकलावरणपरिक्षये सहस्रकिरणवद्य गपन्निखिलार्थोद्योतनस्वभावत्वात्तस्य कारणक्रमव्यवधानातिवत्तित्वाच्च ।
यच्चोक्तम्- युगपत्परस्पर विरुद्धशीतोष्णाद्यर्थानामेकत्र ज्ञाने प्रतिभासासम्भवः, तदप्यसारम्; तत्र हि तेषामभावादप्रतिभास:, ज्ञानस्यासामर्थ्याद्वा ? न तावदभावात्; शीतोष्णाद्यर्थानां सकृत्सम्भवात् । ज्ञानस्यासामर्थ्यादित्यसत्; परस्परविरुद्धानामन्धकारोयोतादीनामेकत्र ज्ञाने युगपत्प्रतिभास
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पदार्थ के निकटवर्ती नहीं होने पर भी उसको स्पष्ट प्रतिभासित करता है । उस ज्ञान का दृष्टांत सर्वज्ञ ज्ञानकी स्पष्टता समझ में आने के लिये देते हैं किन्तु इतने मात्र से सर्वज्ञ ज्ञान भी भावना ज्ञान के समान काल्पनिक होवे सो बात नहीं है " न हि दृष्टान्तस्य सर्वे धर्माः दाष्टन्तेि भवितुमर्हति ” दृष्टांत के सभी गुण धर्म दान्त में नहीं होते, यदि मानेंगे तो सकल अनुमानों का उच्छेद ही हो जायगा । तथा सर्वज्ञ का ज्ञान क्रम से प्रशेषार्थ का ग्राहक नहीं माना है जिससे उस पक्ष के दिये हुए दोष लागू होवें अर्थात् सर्वज्ञ यदि क्रम क्रम से जानते हैं तो पदार्थ अनंत होने से कभी संपूर्ण पदार्थों का ज्ञान नहीं होगा । ऐसा कहा था वह बेकार है हम तो सर्वज्ञ ज्ञान को सकल आवरण का क्षय होने से सूर्य के समान एक साथ संपूर्ण पदार्थों का प्रकाशन करने वाला मानते हैं, इस ज्ञान में न तो इन्द्रियों का क्रम है न बीच बीच में रुकावट है, यह तो अप्रतिहत स्वाभाविक ज्ञान है ।
सर्वज्ञ को दोषयुक्त ठहराने के लिये मीमांसक ने कहा था कि एक साथ परस्पर विरोधी शीत उष्ण आदि पदार्थों का एक ज्ञान में प्रतिभास होना शक्य है, सो यह कथन ग्रसार है, विरोधी पदार्थों का प्रभाव होने से एक ज्ञान में प्रतिभास नहीं होता, अथवा एक ज्ञान की सामर्थ्य नहीं होने से परस्पर विरुद्ध पदार्थों का प्रतिभास नहीं होता ? “अभाव होने से प्रतिभास नहीं है" ऐसा कहना तो गलत है, शीत उष्ण प्रादि पदार्थ एक साथ उपलब्ध होते ही हैं प्रभाव कहां है ? ज्ञान की सामर्थ्य नहीं है इसलिये एक साथ सब पदार्थों का ज्ञान नहीं होता । ऐसा कहना भी ठीक नहीं है परस्पर विरोधी अंधकार और प्रकाश आदि पदार्थ एक साथ एक ही ज्ञान में प्रतीत होते हुए देखे जाते हैं । यदि परस्पर विरोधी पदार्थों का एक साथ एक ज्ञान में प्रति
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