________________
८४
प्रमेयकमलमार्तण्डे
यदप्य भिहितम्-कथं चातीतादेग्रहणं तत्स्वरूपासम्भवादित्यादि; तदप्यसारम्; यतोऽतीतादेरतीतादिकालसम्बन्धित्वेनासत्त्वम्, तज्ज्ञानकालसम्बन्धित्वेन वा ? नाद्यः पक्षो युक्तः; वर्तमानकालसम्बन्धित्वेन वर्तमानस्येव स्वकालसंबन्धित्वेनातीतादेरपि सत्त्वसम्भवात् । वर्तमानकालसम्बन्धित्वेन त्वतीतादेरसत्त्वमभिमतमेव, तत्कालसम्बन्धित्वतत्सत्त्वयोः परस्परं भेदात् । न चैतत्कालसम्बन्धित्वेनासत्त्वे स्वकालसम्बन्धित्वेनाप्यतीतादेरसत्त्वम् वर्तमानकालसम्बन्धिनोप्यतीतादिकालसम्बन्धित्वेनासत्तवात् तस्याप्यसत्त्वप्रसङ्गात् सकलशून्यतानुषङ्गः । न चातीतादेः सत्त्वेन ग्रहणे वर्तमानत्वानषङ्गः; स्वकालनियतसत्त्वरूपतयैव तस्य ग्रहणात् । ननु चातीतादेस्तज्ज्ञानकाले असन्निधानात्कथं प्रतिभासः; सन्निधाने वा वर्तमानत्वप्रसङ्गः प्रसिद्धवर्त मानवत् ; इत्यपि मन्त्रादिसंस्कृतलोचनादिज्ञानेन व्याप्तिज्ञानेन च प्रागेव कृतोत्तरम् ।
मीमांसक ने कहा था कि अतीतादि विषयों का ग्रहण कैसा होगा ? क्योंकि उन विषयों का स्वरूप तो अभी मौजूद नहीं है इत्यादि सो वह वक्तव्य असार है, अतीत पदार्थ का अतीत काल के संबंधी रूप अभाव है अथवा सर्वज्ञ ज्ञान के काल संबंधी रूप से प्रभाव है ? प्रथम पक्ष ठीक नहीं, अतीत का अतीत काल संबंधी सत्व था ही। जैसे वर्तमान काल संबंधी रूप से वर्तमान का सत्व होता है यह बात जरूर है कि वर्तमान काल संबंधी पने से अतोतार्थ का असत्व-प्रभाव होता है । तत्काल संबंधीपना और तत्सत्वपना इनमें परस्पर भेद है, इस काल संबंधी रूप से वस्तु का असत्व है अतः स्वकाल संबंधी रूप से भी अतीत वस्तु का असत्व है ऐसा तो कह नहीं सकते । जो वर्तमान संबंधी वस्तु है उसका भी अतीत काल संबंधीपने से असत्व था ? मतलब वर्तमान कालीन वस्तु का अतीत में असत्व था और अतीत कालीन वस्तु का वर्तमान में असत्व है यदि एक काल में वस्तु का अभाव होने से अन्य समय में भी उसका अभाव मानेंगे तो सकल शून्यता का प्रसंग होगा । कोई शंका करे कि अतीत का सत्व रूप से ग्रहण करेंगे तो वह वस्तु वर्तमान रूप हो जायगी ? सो भी बात नहीं है । अतीत वस्तु का अतीत स्वकाल में नियत सत्व रूप से ही जानना होता है।
शंकाः----प्रतीतादि पदार्थों का उनके ज्ञान के काल में तो सन्निधान होता नहीं, फिर उनका प्रतिभास कैसे होवे ? यदि उन पदार्थों का ज्ञान काल में सन्निधान है तब तो उन्हें वर्तमानपना आ ही जायगा ? जैसे कि प्रसिद्ध वर्तमान का सन्निधान होता है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org