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प्रमेयकमलमार्तण्डे संवेदनात् । सकृदेकत्र विरुद्धार्थानां प्रतिभासासम्भवे 'यत्कृतकं तदनित्यम्' इत्यादिव्याप्तिश्च न स्यात्, साध्यसाधनरूपतया तयोविरुद्धत्वसम्भवात् । नाप्येकत्र तेषां प्रतिभासे तज्ज्ञानस्य प्रतिनियतार्थग्राहकत्व विरोधः; अन्धकारोढ्योता दिविरुद्धार्थना हिणोऽपि प्रतिनियतार्थग्राहकत्वप्रतीतेः।
यच्चान्यदुक्तम्-एकक्षण एवाशेषार्थग्रहणाद् द्वितीयक्षणेऽज्ञः स्यात्; तदप्यसम्बद्धम्; यदि हि द्वितीयक्षणेऽर्थानां तज्ज्ञानस्य चाभावस्तदाऽयं दोषः। न चैवम्, अनन्तत्वात्तद्वयस्य । पूर्व हि भाविनोऽर्था भावित्वेनोत्पत्स्यमानतया प्रतिपन्ना न वर्तमानत्वेनोत्पन्नतया वा। साप्युत्पन्नता तेषां भवितव्यतया प्रतिपन्ना न भूततया। उत्तरकालं तु तद्विपरीतत्वेन ते प्रतिपन्नाः। यदा हि यद्धर्म
भास नहीं होगा तो जो कृतक होता है वह अनित्य होता है, इत्यादि व्याप्ति कैसे बनेगी ? क्योंकि इनमें एक जो कृत्कत्व है वह तो साधन है और अनित्य है वह साध्य है इस तरह दोनों में विरुद्धत्व है । एक ज्ञान में अनेक विरोधी वस्तुयों का प्रतिभास होना माने तो वह ज्ञान प्रतिनियत अर्थों का ग्राहक नहीं हो सकता ऐसा कहना भी नहीं बनता, अंधकार और प्रकाश आदि विरोधी वस्तु को ग्रहण करने वाला ज्ञान भी प्रतिनियत वस्तु का ग्राहक होता हुमा देखा जाता है। और भी जो कहा था कि एक क्षण में ही संपूर्ण पदार्थों का ग्रहण हो जाने से दूसरे क्षण में वह सर्वज्ञ अज्ञ ही बन जायगा । इत्यादि सो यह कथन असंबद्ध है, यदि दूसरे क्षण में पदार्थों का अभाव हो जाता या उसको जानने वाले ज्ञान का अभाव होता तब तो यह दोष होता, किंतु ऐसा है नहीं, दोनों ही पदार्थ और ज्ञान अनंत हैं। इसी विषय का खुलासा करते हैंसर्वज्ञ के ज्ञान ने पूर्व क्षण में भावी वस्तुओं की उत्पन्नता है वह भवितव्यता रूप से "होगे" इस रूप से जानी थी, भूतरूप से नहीं । अब वह क्षण बदला, उत्तर काल में, इससे विपरीत रूप से वे पदार्थ ग्रहण में आयेंगे, क्योंकि जब जिस धर्म से विशिष्ट वस्तु होती है तब सर्वज्ञ के ज्ञान में उसी रूप से प्रतीति में आती है, अन्यथा रूप से प्रतीत होगी तो भ्रम सा हो जायगा, इस प्रकार सर्वज्ञ का ज्ञान ग्रहीतग्राही होने से अप्रमाण है ऐसा कोई कहे तो उसका निराकरण भी उपर्युक्त कथन से हो जाता है ।
भावार्थ:-मीमांसक ने प्रश्न किया था कि सर्वज्ञ एक क्षण में ही अशेष पदार्थ को ग्रहण करता है तो दूसरे क्षण में जानने के लिये कोई पदार्थ नहीं रहता है अतः वह अज्ञ बन जायगा ? इसपर प्रभाचन्द्राचार्य कहते हैं कि द्वितीयादि क्षण में ज्ञान का नाश होता है, कि पदार्थों का नाश होता है ? दोनों का नाश नहीं होता है, पदार्थ
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