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प्रमेयकमलमार्तण्डे
अन्यथा
'देशकालादिभेदेन तत्रास्त्यवसरो मितेः । इदानीन्तनमस्तित्वं न हि पूर्वधिया गतम् ॥"
[ मी० श्लो० प्रत्यक्षसू० श्लो० २३३-३४ ] इत्यादिना तस्यागृहीतार्थाधिगन्तृत्वं पूर्वापरकालसम्बन्धित्वलक्षण नित्यत्वग्राहकत्वं च प्रतिपाद्यमानं विरुध्येत । प्रातिभं च ज्ञानं शब्द लिङ्गाक्षव्यापारानपेक्षं 'श्वो मे भ्राता आगन्ता' इत्याद्याकारमनागतातीन्द्रियकाल विशेषणार्थप्रतिभासं जाग्रद्दशायां स्फुटतरमनुभूयते।
किञ्च, धर्मादेरतीन्द्रियत्वाच्चक्षुरादिनानुपलम्भः, अविद्यमानत्वाद्वा स्यात्, अविशेषणत्वाद्वा?
विषय यद्यपि पूर्व प्रमाण से गृहीत है किन्तु उसमें देश, कालादि के निमित्त से अपूर्वार्थ विषय रहता है, क्योंकि पूर्व प्रमाण से वर्तमान में इस समय का अस्तित्त्व ग्रहण नहीं होता ।।१।। इस प्रकार से उस प्रत्यभिज्ञान में अनधिगतार्थगन्तृत्व सिद्ध होता है, तथा यह ज्ञान पूर्वकाल और उत्तरकाल में अवस्थित नित्य वस्तु का ग्राहक है, इत्यादि कथन अन्यथा विरुद्ध होगा। एक प्रतिभा ज्ञान होता है जिसमें हेतु, पागम, इन्द्रियादि की अपेक्षा नहीं रहती । जैसे “कल मेरा भाई पायगा" इत्यादि रूप प्रतिभाज्ञान होता है यह ज्ञान अनागत को विषय कर रहा है, तथा अतीन्द्रिय काल विशेषणार्थ का प्रतिभास कराता हुआ जाग्रत दशा में ही स्पष्ट रूप से अनुभव में आता है, सो ये सब प्रत्यभि ज्ञान, व्याप्तिज्ञान, प्रतिभाज्ञान इन्द्रियों से रहित अनागतादि के ग्राहक माने हैं कि नहीं ? ऐसा ही सकलार्थग्राही अतीन्द्रिय प्रत्यभिज्ञान भी मानना होगा। मीमांसक का खास करके धर्म-अधर्म की उपलब्धि में विवाद है कि वे दोनों प्रत्यक्ष आदि से गम्य नहीं हैं, सो इस पर जैन पूछते हैं कि धर्म-अधर्म नामा पदार्थ अतीन्द्रिय होने के कारण चक्षु आदि इन्द्रियों से उपलब्ध नहीं होते कि अविद्यमान होने से, अथवा विशेषण रहित होने से ? प्रथम पक्ष ठीक नहीं है, क्योंकि आपने अभी स्वीकार किया है कि प्रत्यभिज्ञानादिक अतीन्द्रिय ऐसे अतीत कालादि को ग्रहण करते हैं। अविद्यमान होने से धर्म-अधर्म उपलब्ध नहीं होते ऐसा दूसरा विकल्प कहना भी गलत है, जिस तरह अतीत कालादिक अविद्यमान होकर भी ज्ञान से उपलब्ध होते हैं वैसे भावी कालीन धर्म-अधर्म भी उपलब्ध हो सकते हैं। विशेषण रहित होने से धर्म-अधर्म का अनुपलंभ है ऐसा तीसरा पक्ष भी ठीक नहीं, सकल प्राणियों के उपभोग्य वस्तुप्रों का जनक तथा द्रव्य, गुण, कर्म से जन्य होने से धर्म-अधर्म में तो सकलार्थ के विशेषण
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