Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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सर्वज्ञत्ववादः तत्प्रसङ्गसाधनम् । व्यापकनिवृत्तौ चावश्यं भाविनी व्याप्यनिवृत्तिः स विपर्ययः । न च प्रत्यक्षत्वसत्सम्प्रयोगजत्व विद्यमानोपलम्भनत्वधर्माद्यनिमित्तत्वानां व्याप्यव्यापकभावः क्वचित् प्रतिपन्नः । स्वात्मन्येवासौ प्रतिपन्न इत्यप्यसङ्गतम्; चक्षुरादिकरणग्रामप्रभवप्रत्यक्षस्याव्यवहितदेशकालस्वभावाविप्रकृष्टप्रतिनियतरूपादिविषयत्वाभ्युपगमात्, नियमस्य चाभावाद्विप्रकृष्टार्थग्राहके पि प्रत्यक्षशब्दवाच्यत्वदर्शनात् । तथाहि-अनेकयोजनशतव्यवहितार्थग्राहि वैनतेयप्रत्यक्षं रामायणादौ प्रसिद्धम्, लोके चातिदूरार्थग्राहि गृध्रवराहादिप्रत्यक्षम्, स्मरणसव्यपेक्षेन्द्रियादिजन्यप्रत्यभिज्ञाप्रत्यक्षं च काल विप्रकृष्टस्यातीतकालसम्बन्धित्वस्यातीतदर्शनसम्बन्धित्वस्य च ग्राहि पुरोवस्थितार्थे भवतैवाभ्युपगम्यते ।
कहलाता है । इस प्रकार के प्रसंग और विपर्यय की यहां अशेषार्थ-विषयत्व आदि में उपस्थिति नहीं है क्योंकि यहां प्रत्यक्षत्व और सत्संप्रयोगजत्व इन दोनों में व्याप्य-व्यापक भाव है ऐसा कहीं जाना नहीं गया है, ऐसे ही विद्यमानोपलभतत्व
और धर्मादि अनिमित्तत्व इन दोनों में व्याप्य-व्यापक भाव भी निश्चित नहीं है, जिससे कि एक के होने पर दूसरा होना भी जरूरी है और एक के नहीं होने पर दूसरा भी नहीं होना जरूरी है।
शंकाः- प्रत्यक्षत्व और संप्रयोगजत्व का व्याप्य-व्यापक भाव अपने में ही जाना हुआ है ?
समाधानः--यह कथन असंगत है, चक्षु आदि इन्द्रियों से उत्पन्न हुना प्रत्यक्ष ज्ञान अव्यहित देश, काल, स्वभाव और अविप्रकृष्ट नियत रूपादि विषय को जानता है, किंतु सर्वज्ञ का प्रत्यक्ष तो ऐसा नहीं है। यह भी नियम नहीं है कि जो निकटवर्ती देश काल आदि को जाने वही प्रत्यक्ष शब्द के द्वारा वाच्य हो, दूरवर्ती देशादि विषयों को जो जाने उसे भी प्रत्यक्ष कहते हैं कैसे सो बताते हैं . आपके यहां ही रामायणादि में कथन पाया जाता है कि अनेक योजनों दूर देश में स्थित पदार्थ को वैनतेय (गरुड) देख लेता था । लोक में भी देखा जाता है कि गृध्र वराह आदि जीव दूर दूर के वस्तु का ज्ञान कर लेते हैं । स्मरण की जिसमें अपेक्षा है तथा जो इन्द्रियादि से उत्पन्न हमा है ऐसा प्रत्यभिज्ञान नामा प्रत्यक्ष भी आपने माना है वह प्रत्यभिज्ञान काल से दूर अतीत काल संबंधी वस्तु का या अतीत दर्शन संबंधी का ग्राहक ज्ञान पुरोवर्ती पदार्थ में प्रवृत्त होता है ऐसी आपकी मान्यता है । अतः निकट देशादि को जानने वाला इन्द्रिय ज्ञान ही प्रत्यक्ष शब्द का वाच्य है ऐसा कहना असत्य है । प्रत्यभिज्ञान को स्वीकार नहीं करेंगे तो अापका निम्नलिखित ग्रथ का कथन विरुद्ध होगा कि-प्रत्यभिज्ञान का
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