Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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सर्वज्ञत्ववादः
ज्ञत्वं सेत्स्यति । कथं वा तत्प्रतिषेधः अत्राप्यस्य दोषस्य समानत्वात् ? अर्हतो हि तत्प्रतिषेधसाधनेऽप्रसिद्ध विशेषणः पक्षो व्याप्तिश्च न सिध्येत्, दृष्टान्तस्य साध्यशून्यतानुषङ्गात् । अनहंतश्चेत् ; स एव दोषो बुद्धादेः परस्यासिद्ध!, अनिष्टानुषङ्गश्चाहतस्तदप्रतिषेधात् । सामान्यतस्तत्प्रतिषेधे सर्व सुस्थम् ।
यच्चोक्तम् -एकज्ञानप्रत्यक्षत्वं सूक्ष्माद्यर्थानां साध्यत्वेनाभिप्रेतं प्रतिनियतविषयानेकज्ञानप्रत्यक्षत्वं वेत्यादि; तदप्युक्तिमात्रम् ; प्रत्यक्षसामान्येन कस्यचित्सूक्ष्माद्यर्थानां प्रत्यक्षत्वसाधनात् ।
आत्मा" यह है सो आत्मत्व आदि धर्म से पहले से ही प्रसिद्ध है, अब उसमें सर्वज्ञत्व सिद्ध करना है वह प्रक्षीणावरणत्व इत्यादि हेतु से सिद्ध करेंगे, सो इस हेतु को प्रसिद्ध कहना बनता नहीं, यदि सर्वज्ञ को पक्ष बनाते तब तो वह प्रसिद्ध है और उसके प्रसिद्ध होने से हेतु भी प्रसिद्ध धर्मवाला कहलाता, इस प्रकार प्रक्षोणावरणत्व आदि हेतु को धमत्व हेतु के समान निर्दोष सिद्ध किया है। मीमांसक ने पूछा था कि सामान्य से कोई एक सर्वज्ञ सिद्ध करना है कि विशेष से निश्चित किसी पुरुष विशेष को सर्वज्ञ सिद्ध करना है, सो यह प्रश्न भी ठीक नहीं, हम प्रथम तो सामान्य से ही सर्वज्ञ सिद्ध कर रहे हैं क्योंकि सर्वज्ञपने में ही अभी विवाद है। जब सामान्य से सर्वज्ञ सिद्ध हो जाता है तब विशेष प्रतिपत्ति के लिये उसको सिद्ध करते हैं कि प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमारण के अविरोधी वचन बोलने वाले होने से अहंत देव ही सर्वज्ञ हैं, उसी में सकलार्थ साक्षात्कारित्व हो सकता है। ग्राप मीमांसक सर्वज्ञ का प्रतिषेध करते हैं उसमें जो अनुमान उपस्थित करते हैं उसमें भी वही सर्वज्ञ सिद्धि वाले अनुमान के दोष आते हैं। इसी का खुलासा करते हैं -अहंत को पक्ष बनाते हैं तो वह अप्रसिद्ध विशेषण वाला हो जायगा अर्थात् अर्हत सर्वज्ञ नहीं हैं क्योंकि वह पुरुष है, जैसे रथ्यापुरुष है । अब आपके इस अनुमान प्रयोग में पक्ष अर्हत को बनाया, हेतु पुरुषत्व, और साध्य सर्वज्ञ नहीं, तथा दृष्टान्त रथ्या पुरुष है, इसमें अहंत नामा जो पक्ष है वह प्रसिद्ध नहीं होने से अनुमान सदोष पक्ष वाला हुआ तथा इसमें व्याप्ति भी सिद्ध नहीं है कि जो जो पुरुष हो वह वह अर्हत होकर सर्वज्ञ न हो इस तरह को व्याप्ति नहीं होने से दृष्टान्त साध्य से विकल ठहरता है। इसी तरह अनहन्त (बुद्धादि) को पक्ष बनाते हैं तो वही दोष आयेगा क्योंकि आपके यहां बुद्ध आदि को माना नहीं, तथा अनिष्ट बात भी सिद्ध होगी अर्थात् "अनर्हन्त सर्वज्ञ नहीं है" ऐसा कहने से अर्हन्त के सर्वज्ञत्व का निषेध नहीं रहेगा। क्योंकि आपने अनहन्त को पक्ष बनाकर उसमें
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