Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमात्तंडे
प्रसिद्ध च तेषां सामान्यतः कस्यचित्प्रत्यक्षत्वे तत्प्रत्यक्षस्यकत्वमिन्द्रियानिन्द्रियानपेक्षत्वात्सिध्येत्, सदपेक्षस्यैवास्यानेकत्वप्रसिद्धः। तदनपेक्षत्वं च प्रमाणान्तरास्सिद्धयत् ; तथाहि-योगिप्रत्यक्षमिन्द्रियानिन्द्रियानपेक्षं सूक्ष्माद्यर्थविषयत्वात्. यत्पुनरिन्द्रियानिन्द्रियापेक्षं तन्न सूक्ष्माद्यर्थविषयम् यथास्म हादिप्रत्यक्षम्, तथा च योगिनः प्रत्यक्षम्, तस्मात्तथेति ।
किञ्च, एवं साध्यविकल्पनेनानुमानोच्छेदः। शक्यते हि वक्त म्-साध्यमिधर्मोऽग्निः साध्य
सर्वज्ञता का निषेध किया है । यदि सामान्य से कोई भी प्रात्मा सर्वज्ञ नहीं है ऐसा पक्ष बनाते हैं तो बात बनती है, सो तुम्हारे सर्वज्ञ के अभाव की सिद्धि करने में अनुमान प्रयोग की जैसी बात है नैसी हमारे सर्वज्ञ की सिद्धि करने में अनुमान की बात है, सर्वज्ञ सिद्धि वाले अनुमान में जो दोष देंगे तो वही दोष आपके सर्वज्ञ के अभाव सिद्धि वाले अनुमान में आयेंगे।
एक ज्ञान से सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रत्यक्ष होना इष्ट है अथवा नियत विषय वाले अनेक ज्ञानों से सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रत्यक्ष होना इष्ट है ? इत्यादि सर्वज्ञ के ज्ञान के विषय में कहना था वह प्रयुक्त है, किसी एक प्रत्यक्ष को सामान्य से सूक्ष्मादि अर्थों का प्रकाशक साधा है, प्रत्यक्ष सामान्य से उन सूक्ष्मादि पदार्थों का ग्रहण होना सिद्ध करके फिर उसमें एकत्व सिद्ध करेंगे कि यह ज्ञान इन्द्रिय मन आदि की अपेक्षा नहीं रखता अतः सूक्ष्मादि पदार्थों का प्रकाशक एक ही प्रत्यक्ष ज्ञान है । जो ज्ञान इन्द्रियादि की अपेक्षा रखता है वही अनेक प्रकार का होता है यह बात प्रसिद्ध है। सर्वज्ञ के प्रत्यक्ष ज्ञान में इन्द्रियादि की अपेक्षा नहीं है इस बात का निर्णय तो दूसरे प्रमाण से सिद्ध करके बता सकते हैं, योगी ( सर्वज्ञ या दिव्यज्ञानी ) का प्रत्यक्ष ज्ञान इन्द्रियां
और मन की अपेक्षा से रहित है, (पक्ष) क्योंकि वह सूक्ष्मादि विषयों को जानता है (हेतु) जो इंद्रिय तथा मन की अपेक्षा से युक्त है वह सूक्ष्मादि को नहीं जानता है, जैसे हमारा प्रत्यक्ष ज्ञान है, योगी प्रत्यक्ष सूक्ष्मादि का ग्राहक है अतः इन्द्रियादि की अपेक्षा से रहित है। दूसरी बात यह है कि एक ज्ञान रूप प्रत्यक्ष को साध्य बनाया है या अनेक ज्ञान रूप प्रत्यक्ष को साध्य बनाया है इत्यादि प्रश्न किये हैं उससे तो अनुमान का ही उच्छेद होता है। अन्य अग्नि ग्रादि साध्य में तुम्हारे जैसे प्रश्न कर सकते हैं कि साध्य धर्मी के अर्थात् पक्ष के धर्म रूप अग्नि को साध्य बनाया है अथवा दृष्टान्त धर्मी के धर्म को ? या उभय =दृष्टांत और पक्ष दोनों के धर्म को ? प्रथम पक्ष
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