Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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सर्वज्ञत्ववादः
स्याप्रवृत्त: । प्रवृत्तौ वाध्यक्षेणैवास्य प्रतिपन्नत्वान्न किञ्चिदनुमानेन । नाप्यनुमानेन; हेतोः पक्षधर्मतावगममन्तरेणानुमानस्यैवाप्रवृत्तः । न चाप्रतिपन्ने धमिरिण हेतोस्तत्सम्बन्धावगमः । नाध्यप्रतिपन्नपक्षधर्मत्वो हेतु। प्रतिनियतसाध्यप्रतिपत्त्यङ्गम् ।
किञ्च, सत्तासाधने सर्वो हेतुरसिद्धविरुद्धानेकान्तिकत्वलक्षणां त्रयीं दोषजाति नातिवर्तते । तथाहि-सर्वज्ञसत्त्वे साध्ये भावधर्मों हेतुः, अभावधर्मो वा स्यात्, उत उभयधर्मो का? प्रथमपक्षेऽसिद्धः; भावेऽसिद्ध तद्धर्मस्य सिद्धिविरोधात् । द्वितीयपक्षे तु विरुद्धः; भावे साध्येऽभावधर्मस्याभावा
अनुमान के हेतु का अविनाभाव प्रथम अनुमान से सिद्ध होगा। अशेषज्ञरूप धर्मी का प्रत्यक्ष ज्ञान तो होता नहीं क्योंकि अतीन्द्रिय ज्ञान वाले अत्यंत परोक्ष ऐसे उस पुरुष विशेष में प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति ही नहीं होती, यदि प्रवृत्ति होती तो अनुमान की जरूरत ही नहीं रहती, प्रत्यक्ष से ही वह दिखायी देता। सकल पदार्थों का ज्ञायक ऐसा यह पक्ष में लिया हुआ धर्मी अनुमान से भी नहीं जाना जाता है क्योंकि जब तक हेतु का पक्ष धर्मत्व गुण ग्रहण नहीं होगा तब तक अनुमान की प्रवृत्ति अशक्य है, और पक्ष अर्थात् धर्मी प्रसिद्ध है तो हेतु का पक्ष धर्मत्व क्या सिद्ध होगा ? बिना धर्मी को जाने हेतु के अविनाभाव को जान नहीं सकते। इस तरह जिसका पक्ष धर्मस्व अज्ञात है वह हेतु अपने नियत साध्य को सिद्ध करने में निमित्त नहीं बन सकता। भावार्थ-अनुमान के दो अवयव होते हैं एक तो साध्य जहां रहता है वह स्थान जिसे धर्मी या पक्ष कहते हैं वह और दूसरा उसके साथ अविनाभाव संबंध रखने वाला हेतु । हेतु पक्ष में अवश्य रहता है ऐसा अविनाभाव तब निश्चित होता है कि जब पक्ष जानने में प्रावे, किन्तु यहां सकलार्थ वेदी पुरुष पक्ष कोटो में है वह प्रत्यक्षगम्य नहीं होने से उसका अविनाभावी हेतु भी नहीं जाना जाता इस तरह सर्वज्ञ को सिद्ध करने वाले अनुमान में पक्ष और हेतु दोनों ही प्रसिद्ध हो जाते हैं।
एक बात यह भी है कि सर्वज्ञ की सत्ता सिद्ध करने में जो भी हेतु दिया जाय उसमें प्रसिद्ध, विरुद्ध, अनेकान्तिक ये तीनों दोष पाते हैं, कसे सो बताते हैं सर्वज्ञ को सिद्ध करने में हेतु कौन सा देंगे भाव अर्थात् सद्भाव धर्मवाला या अभाव धर्मवाला ? अथवा उभय धर्मवाला ? प्रथम पक्ष असिद्ध है, क्योंकि भाव ही प्रसिद्ध है तो उसका धर्म क्या सिद्ध होगा ? हो नहीं सकता। दूसरे पक्ष में तो हेतु विरुद्ध कहलायेगा, साध्य तो सद्भाव स्वरूप है और हेतु है अभाव धर्म वाला सो प्रभाव तो अभाव के साथ रहेगा अतः ऐसा हेतु विरुद्ध कहलायेगा। भाव अभाव दोनों धर्मवाला
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