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प्रस्तावना.
R
व्याकरणना श्रन्यास विना कोपण नाषानुं सारं ज्ञान मेलवी शकाय नहीं. एज प्रमाणे प्राकृत-मागधी नाषानुं सारं ज्ञान मेलववा प्राकृत जाषाना व्याकरणतुं संपूर्ण अध्ययन आवश्यक . प्रायः प्राकृत भाषानो संबंध संस्कृत नाषा साथे बे तेथी संस्कृत जाषाना विद्वानोने या नाषामां प्रवेश करवो सुगम डे पण ज्यांसुधी नियमपूर्वक प्राकृत नाषाना रूपाख्यान जाणवामां थाव्या न होय त्यांसुधी ते जाषानुं संपूर्ण ज्ञान प्राप्त थतुं नथी.
प्राकृत लाषानो प्रचार जैन सिद्धांत ग्रंथोमा विशेष डे तेथी ए जाया जैनोनी थार्ष नाषा गणाय . ते साथे श्रन्यदर्शनोमां पण काव्य नाट क विगेरेमां तेनुं बहुधा दर्शन जोवामां आवे डे माटे प्राकृत व्याकरणझान संपादन करवा था ग्रंथ शीखवानी जरूर जे. साहित्य ग्रंथोनी जेम व्याकरणना ग्रंथो नाषांतररूपे श्रति रसिक थता नथी पण था अभिनव जाषामा प्रवेश करवाने कांक सुगमता पमे तेमज स्फुट समजाएला नियमो याद राखवामां पण मदद थाय, एम समजी मूल अने टीकार्नु बरा. बर जाषांतर करवामां आव्युं बे. या ग्रंथ उपर टुंढिका नामनी प्रख्यात टीका , ते अहिं मूल श्रने नाषांतर साथे श्रापवामां श्रावी . ए टीका मां सर्व शब्दोनी साधनिका सूत्रना नियमोथी थापी डे अने कचित् शब्दपर्याय जणावी स्फुट अर्थ पण बताव्यो बे. लखवाने दीलगीरी थाय के, ए टुंढिकानी बीजी शुरूप्रति थमने मली शकी नहीं तेथी एकज प्रति उपरथी लखतां घणी मुसीबत पमी डे तथापि को ठेकाणे शंकाथी स्खलना थर होय तो विछान् वर्ग दमा श्रापशे.
श्रा महान् उपयोगी ग्रंथ श्राचार्य श्रीहेमचंद्र सूरीए रचेला सिद्धहे मचंड शब्दानुशासन नामना संस्कृत व्याकरणनो श्रापमो अध्याय डे. ते उपर प्रकाशिका नामे स्वोपज्ञवृत्ति बे. या ग्रंथमा जे प्रत्येक सूत्रना प्र. योग तथा शब्दरूप सिक करेला तेमनो दृष्टांतरूपे उपयोग करी प्रा. कृतघ्याश्रयकाव्य नामे एक कुमारपालचरितनो ग्रंथ ते सूरिवर्ये रचे
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ty
प्रस्तावना.
लो बे, जे शीखवार्थी या प्राकृत जाषानुं व्याकरण घणुं स्फुट रीते सम जाय बे. ते उत्तम ग्रंथ पंकित शंकर पांकुरंगे घणा प्रयत्नथी संशोधन करी हाल उपाव्यो . ते वांचवाने सर्वने श्रमारी सविनय प्रार्थना दे. प्राकृ त जाषामां मारो चा प्रथम प्रवेश बे, तेथी या कार्यनो आरंज करवा मने शंका रहेती पण मारा विद्वान् मित्र वकील मूलचंद नथुजाइनी प्रेरणाथी मने पूर्ण उत्साद यावतां एक नवी जापानो अन्यासी थवा खातर में या साहस करेलुं बे, तो जे कांइ स्खलना यह होय ते कमा करी या ग्रंथी बीजी श्रावृत्तिमां अनेउत्तर जागमां जेम सुधारो थाय तेनी सूचना श्रापशो तो उपकार मानीश.
कार्तिक शुक्ल १ संवत् १९६०
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शास्त्री नर्मदाशंकर दामोदर.
जावनगर हाइस्कुलना शास्त्री.
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॥ श्री जिनाय नमः॥ श्री प्राकृत (मागधी) व्याकरणम् ।
टुंढिकाख्यया टीकया सहितम् ।
(प्रथमःपादः)
अथ प्राकृतम् ॥ १॥ श्रथ शब्द श्रानंतर्यार्थोऽधिकारार्थश्च । प्रकृतिः संस्कृतं तंत्र जवं तत श्रागतं वा प्राकृतं । संस्कृतानंतरं प्राकृतमधिक्रियते । संस्कृतानंतरं प्राकृतस्यानुशासनं सिमसाध्यमानन्नेदसंस्कृतयोनेरिवतस्य लक्षणं न देशस्येति ज्ञापनार्थ संस्कृतसमं तु संस्कृतलक्षणेनैवगतार्थ । प्राकृते च प्रकृतिप्रत्ययलिंगकारकसमाससंज्ञादयः संस्कृतवछेदितव्याः। लोकादिति च वर्तते तेन ऋ ल ल ऐ धौ ङ ञ श ष विसर्जनीय प्लुत वज्यों वर्णसमानायो लोकादवगंतव्यः। उनौ खवर्गसंयुक्तौ नवत एव ऐदौतौ च केषांचित् कैतवं कैश्रवं सौंदर्य सौरिशं । कौरवाः कौरवा । तथा च श्रखरं व्यंजनं द्विवचनं चतुर्थीबहुवचनं च न जवति ॥
मूल भाषांतर. प्रथम मूल सूत्रमा जे अथ शब्द , ते अनंतर ( ते पनी) ना अर्थे अने अधिकारने अर्थे . प्राकृत ए शब्दनो व्युत्पत्ति अर्थ एवो ने के, प्रकृति एटले संस्कृत, तेमांथी जे उत्पन्न श्रयुं अथवा तेमांथी आव्यु, ते प्राकृत कहेवाय जे. सूत्रार्थ एवो थयो के, अथ एटले संस्कृतनी अनंतर प्राकृतनो अधिकार करवामां आवे बे. अहीं को शंका करे के संस्कृत पठी प्राकृत आववानुं शुं कारण ? तेना समाधानमां खखे बे के, संस्कृतनी पनी प्राकृतनुं अनुशासन आपवानुं कारण, सिद्ध श्रयेलुं अने सिद्धथतुं, एवं संस्कृत जेनुं मूल उत्पत्ति स्थान बे एवा, ते प्राकृतनुं अहीं लक्षण ; बीजा देशीय नाषारूप प्राकृतनुं नहि, ते बताववाने माटेज . जे प्राकृत संस्कृतने मलतुंचे, ते संस्कृतना लक्षणथी जाणी लेवु. प्राकृतमा प्रकृति, प्रत्यय, लिंग, कारक, समास अने संज्ञा विगेरे संस्कृतनी जेम जाणी लेवा. तेथी त्यां लोकात् (संस्कृत व्याकरणथी) एम खखेलु
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मागधी व्याकरणम्. ने एटलेश ल ल ऐ औ ड ञ श ष, विसर्ग अने प्लुत शिवाय बाकीना वर्णनी सर्व नियम व्यवस्था लोक (संस्कृत व्याकरण ) श्री जाणी देवी अने ञ् पोताना वर्ग साथे संयुक्त थाय ने अने कोइ ग्रंथकारना मत प्रमाणे ए अने औ पण अश् शके , जेमके कैतवम् तेनुं कैअवं थाय सौंदर्य तेनुं सौअरिअं थाय. कौरवाः तेनुं कौरवा थाय. वली स्वर वर्जित व्यंजन, विवचन अने चतुर्थीनुं बहुवचन प्राकृतमां थतां नथी.
॥ ढुंढिका ॥ यस्य क्रमनमस्कारः सारसौख्य विधायकः। स श्रीविश्वविजुर्जीयात्, तमांसि नितरां मम ॥ १॥ सिद्धहैमाष्टमाध्याय, प्रोक्तं प्राकृतलक्षणं । क्रियते ढुंढिका तस्य, नाना व्युत्पत्तिलक्षणा ॥२॥ श्ह च यथा संस्कृतलक्षणे धातुप्रत्ययादिसिकायां प्रकृतौ पश्चाट्विनक्यादिविधिः तथा प्राकृतलक्षणेऽपि प्रायः प्राकृतलक्षणसिकां प्रकृतिमाधाय तदनंतरं विजत्यादि प्रक्रिया कर्त्तव्या नान्यथा रूपसिद्धिः क्रमजंगप्रसंगादिति । अथ प्राकृतं प्रकृतिः संस्कृतं तत्र नवेऽणवृद्धिः तत थागतं वा तत श्रागतेति सूत्रेणाए । देशे नवं देश्यं दिशू दिगादि देहाशावप्रत्ययः । देश्यं प्राकृतमनेकधा यथा फरि परे गामे श्नपुलिंदाण सुम्मए सदो। तह सिचिजार चिच्ची सुहेण जहवोलए तूंगी ॥१॥ अस्यार्थः “अजाप्रचुरे ग्रामे व्याघ्राणां शब्दः श्रूयते तथाग्निः सजी क्रियते यथा सुखेन रात्रिरतिक्रामतीत्यर्थः” “ सत्तावीस जोश्रणकर पसरो जाव अझवि न होश पडिहबबिंबगहवर वयणे तावच्उजाणं" २ अस्यार्थः सत्तावीसं जोश्रणशब्देन चंडः तस्य करप्रसरो यावदद्यापि न नवति हे प्रतिहस्तबिंबग्रहपतिवदने प्रतिहस्तं न्यत्कृतं बिंबंमंमलं यस्य प्रतिहस्तबिंबो ग्रहपतिश्चंशो यस्मात् तत्प्रतिहस्तबिंबग्रहपति एवंविधं वदनं यस्याःसा प्रतिहस्तबिंबग्रहपतिवदना तस्याः संबोधनं तावत्वं उद्याने बजे इत्यर्थः ॥२॥ अत्र ऋले लु ऐ औ ङञ श ष विसर्ग प्लुत एतान्यदराणि न स्युः ङ औ स्ववर्ग संयुक्तौ जवतः ॐ दौ तौ च केषांचित् । यथा ।
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प्रथमः पादः। कितवस्य जावः कर्म वा कैतवं युवादेऽण वृद्धिः। अत् एत इति प्राप्तेऽपि केषांचिन्मते दिति प्राकृतेऽपि दृश्यते श्रतो न जवति ऐकारस्य एकारः कगचजेति तबुक ११ क्लीबे सू म् मोनु० कैश्रवं उक्तं च " कैथवरहितं पिम्मं नबिच्चिय मामि माणुसे लोए । श्रह पिम्मं कोविरहो कोविजीए” अस्यार्थः । हे मामि सखि कैतवरहितं दंजरहितं प्रेम मानुषे लोके नास्त्येव अथ यदि एवं विधं प्रेम वर्त्तते तदा को विरहः अथ विरहस्तदा को जीवति थपितु न कोपीत्यर्थः उक्तं च हैमानेकार्थेऽपि " कैतवं द्यूतदंनयोः" अर्थः सुकरः । सौंदर्य ११ कगचजतदपयवांप्रायोबुकादलोपः स्यानवति अचौर्यसमेषुयात् इति यात् प्राक् लोकात् कगचजेति दलोपः क्लीबे स्वरान्मसेः सिस्थानेम् मोनुस्वारः सौश्ररिअंकौरवाः १३ यत्र श्रौत उत्पातेऽपि औकारः स्थितः जसूशसूङसित्तोदो छामि दीर्घ वस्य व जसशसो क् जस्लोपः कौरवा अत्र खररहितं व्यंजनं स्यादित्यादि विनतीनां द्विवचनं चतुर्थीबहुवचनं न जवति ।
मूल भाषांतर. जेना चरणमां करेलो नमस्कार श्रेष्ठ सुखने आपनारो एवा श्रीविश्वविन्नु सर्वज्ञ नगवंत मारा अज्ञान अंधकारनो हमेशां परान्नव करो १ सिद्ध हैम व्याकरणना आठमा अध्यायमा जे प्राकृत नाषानुं लक्षण कहेलुं बे, तेनी उपर व्युत्पत्ति लनणा एवा ढुंढिका नामे टीका करुं बु. जेम संस्कृत नापाना लक्षाणमां धातु प्रत्यय विगेरेथी सिद्ध एवी प्रकृति एटले मूलरुप कर्या पनी ते उपर विनक्ति विगेरेनुं विधान करवामां श्रावे, तेम अहिं प्राकृत नापाना खदाणमां पण प्रायेकरी प्राकृत लक्षणश्री सिद्ध एवा मूलरुपने सिद्ध करी ते पनी विनक्ति विगेरेनुं विधान करवू, तेम कर्याशिवाय प्राकृत रूपनी सिद्धि यती नथी; कारण के जो तेम न करेतो क्रमनंग अवानो प्रसंग आवे बे. अथ प्राकृतं अहिं प्रथम प्राकृत शब्दनो व्युत्पत्ति अर्थ करे . प्रकृति जे संस्कृत तेमां अयुं ते प्राकृत त्यां 'तत्र भवेऽण् ' ए सूत्रथी अणू प्रत्यय लगाडी वृद्धि श्रयेली . अथवा प्रकृतेः आगतं एटले प्रकृति जे संस्कृत तेथकीआव्युं ते प्राकृत त्यां तत आगतं ए सूत्रथी अणू प्रत्यय आवी वृद्धि श्रयेली . ते प्राकृत देश्य एटले देशीनापानुं ग्रहण करवू नहिं. देशने विष थयुं ते देश्य कहेवाय. अहिं दिशदिगादि ए सूत्रथी ष्य प्रत्यय आवे . देश्य प्राकृत अनेक प्रकारनुं बे,जेमके " झल्लरिपउरे" या गाथानो अर्थ एवो ने के " जेमा घणां मेंढा रहेला एवा गाममां ज्यारे वाघनो शब्द संजलाय त्यारे अग्निने
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मागधी व्याकरणम्. सलगावी सजा करे , जेथी रात्रि सुखेथी उलंघन थाय ने.” श्रा गाथामां झल्लरि विगेरे देश्य नापाना शब्दो के तेमज " सत्तावीसं जोअण" आ गाथानो अर्थ एवो ने के "जेनुं बिंब तिरस्कार पामेलु बे एवा चंजना जेवू जेनुं मुख , एवी हे स्त्री ! ज्यां सुधी चंजना किरणो पसार थया नथी त्यां सुधी तुं उद्यानमांजा" अहिं चंजनुं नाम सत्तावीसं जोअण ए शब्दथी, देशीलाषारूपे कहेलुं बे. प्राकृत भाषामां ऋक लू वृ ऐ श्री ङ् श ष, विसर्ग अने प्लुत-ए अदरो आवतांज नथी. तेमां ङ् तथा ञ् पोताना वर्गनी साथे संयुक्त थावे जे. अन्य आचार्योना मत प्रमाणे क्वचित् ऐ अने औ आवे जे. जेम के कैतवं कितव जे कपट तेनो नाव अथवा तेनुं कर्म ते कैतव कहेवाय . अहिं युवादेः ए सूत्रवडे अणू प्रत्यय भावी वृद्धि थाय . कैतव ए शब्दमां ऐत एत् ए सूत्रनी प्राप्ति थवा श्रावी, तथापि कोइ आचार्यना मत प्रमाणे प्राकृतमां पण ऐकार जोवामां आवे ने, तेथी ऐकारनो एकार न पाय. कैतवम् ए शब्दमां कगचजे ति ए सूत्रवडे त् नो लुक् थयो, ते शब्द नपुंसके होवाथी प्रथमाना स् नो म् थयो, अने मोनुस्वारः ए सूत्रथी म् नो अनुस्वार अश् कैअवं एवं रूप सिद्ध थयु. “कैअवरहितं" ए गाथामां ते कहेलो . तेनो एवो अर्थ डे के, “हे सखि, कैतव (कपट ) रहित एवो प्रेम आ मनुष्य लोकमां नश्री, जो एवो प्रेम होय तो पनी विरह क्यो कहेवाय; अने जो खरेखरो विरह होय तो पली कोण जीवे अर्थात् कोपण जीवे नहि." वली तेने माटे हैम अनेकार्थ कोषमां लखे डे के, कैतव शब्द द्यूत अने दंजना अर्थमा प्रवर्ते ने. सौंदर्य ११ ए नपुंसके प्रथमानुं एक वचन बे. तेमां कगचज ए सूत्रधी द नो लोप थाय, अचौर्यसमेषु ए सूत्रवडे तेमां रहेला य् नी पेहेला आवे,ते संस्कृत व्याकरणना नियमथी . कगचज ए सूत्रथी य् नो लोप थाय. ते नपुंसके होवाथी सि स्थाने म् आवे अने म् नो अनुस्वार पाय, एटले सौअरिअं ए रूप सिद्ध थाय ने. कौरवाः ११ ए प्रथमानुं बहुवचन . अहिं औतउत् प सूत्रथी औकारनो घात थवो जोइए, तेम बतां औकार रहेलो . जसशसूङसित्तोदोद्वामि ए सूत्रथी दीर्घ व नो हस्व व थाय, अने व नी आगल जस्रशसोलुंक ए सूत्रथी जसू नो लोप थाय, एटले कौरवा एवं रूप सिद्ध थाय बे. आ प्राकृत भाषामां स्वर रहित व्यंजन अने स्यादि एटले नाम विनक्ति अने त्यादि एटले धातु विनक्ति तेमनु घिवचन अने चतुर्थी विज्ञक्तिनुं बहुवचन, अतां नश्री ॥१॥
बहुलं ॥३॥ बहुल मित्यधिकृतं वेदितव्यमाशास्त्रपरिसमाप्तेः । ततश्च “ कचित् प्रवृत्तिः कचिदप्रवृत्तिः क्वचिहिनाषा क्वचिदन्यदेव नवति “ तच्च यथास्थानं दर्शयिष्यामः"
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प्रथमःपादः। मूल भाषांतर. या सूत्रमा बहुल ए पदनो श्रा शास्त्रनी समाप्ति सुधी अधिकार बे. तेथी को ठेकाणे तेनी प्रवृत्ति पाय, को ठेकाणे अप्रवृत्ति थाय. कोश् काणे विकटप थाय अने को ठेकाणे तेथी जुदुंज थाय, ते एम योग्य स्थाने दर्शाविशुं.
॥ढुंढिका॥ बहुलं बहुपूर्व लांक्वादाने बहून् श्रर्थान् लातीति बहुलं क्रियावितोषणादम् । क्वचिडः प्रत्ययः डित्यंत्यः थालोपः लोकात् मोऽनुखारः बहुल ॥ टीका भाषांतर. बहुलं ए शब्दमां पूर्वे बहु शब्द . तेने लांक् ए धातु ग्रहण करवामां प्रवर्ते बे, ते लगाडी बहु एवा अर्थने जे ग्रहण करे ते बहुल कहेवाय . अहिं बहुला अयुं तेने क्रियावि० ए सूत्रथी अम् आव्यो, अथवा कचित् ड प्रत्यय श्राव्यो, पजी डित् प्रत्यय परबते अंत्य आकारनो लोप थयो एटले बहुल थयु, पनी लोक व्याकरणथी म् नो अनुस्वार थयो एटले बहुलं ए शब्द सिद्ध थयो.
आर्षम् ॥३॥ ऋषीणामिदमार्ष श्रार्ष प्राकृतं बहुलं जवति । तदपि यथास्थानं दर्शयिष्यामः । श्रार्षे हि सर्वे विधयो विकल्पते ॥
मूल भाषांतर. शषि जे पूर्वाचार्य संबधी ते आर्ष कहेवाय जे. अर्थात् ते शषि प्रणीत प्राकृत बहुल श्राय . तेपण योग्य स्थाने दर्शाविशुं. ते आर्षप्राकृतमा सर्व प्रकारना विधि विकटपे थाय ने,
॥ढुंढिका ॥ आर्ष रुषीणामिदं श्रार्ष ऋषिवृष्ण्यंधककुरस्यश्त्यण वृद्धिः ऋकारस्यार अवर्णेवर्णस्यश्लोपः ११ आत्यस्यमोम् सिस्थानेम् समानादमोतः अलुका मोऽनुं० आर्ष आर्षे हि सर्वे विधयो वैचित्रेण प्रवर्त्तते इत्यर्थः ॥३॥ मूल भाषांतर. रुषि संबंधी ते आर्ष कहवाय. आर्ष ए शब्दमां रुषिवृष्ण्यंधक ए सूत्रवडे अण् प्रत्यय आवी वृद्धि थाय एटले रुकारनो आर् अयो, पनी अवर्णेवर्णस्य ए सूत्रवडे पि मां रहेला इकारनो लोप अयो. ते नपुंसके प्रथमानुं एक वचन होवाथी सि ने स्थाने म् अयो, अने समानादमोतःए सूत्रवडे अ नो लुक् थयो, पठी मोनुस्वार सूत्रवडे म् नो अमुस्वार अवाश्री आर्ष ए शब्द सिझ थयो. आ आर्ष प्राकृतमां सर्व जातना विधयो विकटपे थाय वे.
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AN
मागधी व्याकरणम्
दीर्घह्रस्वौ मिथोटत्तौ ॥४॥ वृत्तौ समासे स्वराणां दीर्घजस्वौ बहुलं जवतः मिथः परस्परं । तत्र हखस्य दीर्घःअंतावेश्अंर्तवेदि।सप्तविंशतिः सत्तावीसा। कचिन्न नवति जुवजणो । क्वचिठिकल्पः । वारीमश् वारीम। जुज्यंतं जुश्रायंतं । जुश्रयंतं । पतिगृहं पश्हरं पश्हरं । वेणुवनं वेलूवणं । वेलुवणं । दीर्घस्यहवः । निरंबसिलखलिश्रवीश्मालस्स । कचिठिकल्पः।जउणश्रडं जमणाश्रडं । नश्सोत्तं नश्सोत्तं गौरिहरं गौ
रीहरं । बहुमुहं बहूमुहं ॥ मूल भाषांतर वृत्ति एटले समासमां स्वरोने दीर्घ अने इस्व परस्पर विकटपे थाय जे. तेमा इस्वनो दीर्घ थाय ते श्राप्रमाणे-अंतर्वेदि तेनुं अंतावे थाय. सप्तविंशतिः तेनुं सत्तावीसा. कोश्चेकाणे यतुं पण नथी, जेमके जुवइआणो कोई ठेकाणे विकल्प पाय, जेमके वारिमइ अने वारिमइ । भुज्यंतं, भुआयंतं भुअयंतं । पतिगृहं, तेनुं पईहरं पइहरं । वेणुवनं तेनुं वेलूवणं अने वेलुवणं. दीर्घनो ह्रस्व आय, जेमके 'नियंबसिलखलिश्रवीश्मालस्य' ए पदमां नितंबसिल नुं ह्रस्व निअंबसिल एम अयु. को ठेकाणे विकटपे थाय; जेमके जउणअडं अने जउणाअडं, एवा बे रूप थाय. नइसोत्तं अने नइसोत्तं एवा बे रूप थाय. गौरिहरं अने गौरीहरं एवा बे रूप श्राय वहुमुहं अने वहूमुहं एवा बे रूप थाय.
॥ढुंढिका॥ दीर्घश्च ह्रस्वश्च दीर्घहस्वौ। मिथस्वृत्ति । अंतर्वेदिः अंत्यवंजनस्यलुक् अनेन ह्रखस्य दीर्घः तस्य ता कगचजदतदपयवां प्रायोबुक् दलोपः अक्लीबे सौ दीर्घः द अंत्यव्यंजनस्य सबुक् अंतावेश समस्थलीत्यर्थः । सप्तन् विंशति सप्त च ते विंशतिश्च से अंत्यव्यंजनस्य नबुक्कगटडतदयशषसां क पामूलुक्पलोपःश्रनादौ शेषादेशयोर्डित्वं त्त अनेन हवस्य दीर्घः ततो विंशत्यादेबुक् अनुस्वारलोपः इर्जिव्हासिंहत्रिंशशितोत्या इतित्यासहविस्थाने वीः शषोःसः शस्यसः शेषं संस्कृतवसिझमित्युत्वादित्याम् अंत्यव्यंजनस्य सूलुकू सत्तावीसा । युवतिजनः श्चितयुवा
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प्रथमःपादः। सौजनश्चयुवतिजनः श्रादेर्योजः युजु कगचजतदपयवां प्रायोबुक् तजयोलृक् नोणः नस्यणः श्रतः सेडों स्स्थाजे डोऊप्रति डित्यंत्यखरादेः णस्स बुक् लोकात् जुवजणो वारिमतिः वारिणि मतिर्यस्य स वारिमतिः अनेन कचिछा ह्रखस्य दीर्घः रिरी कगचजेति तलोपः शक्तीबेसौदीधः अंत्यव्यंजनस्य सबुक् वारीमश्वारिमश् । जुजयंत्रं कगचजतद जययोर्बुक् अनेन कचिहिकल्पेन ह्रखस्य दीर्घः अस्य था श्रवर्णोयश्रुतिः श्रस्थाने य सर्वत्रलवरामचंझे रबुक् क्लीबेखरान्म्सेः सूस्थाने म् मोऽनुखारः नुश्रायंतं जुअयंतं । पतिगृहं पत्युहं पतिगृहं कगचजेति तबुक् गृहस्य घरापतौ गृहस्थाने घर इति खघथधनां घस्यहः क्वीबे खरान्मसेः सम् मोऽनुखारः अनेन वा हवा दीर्घः ई पश्हरं । वेणुवनं वेणूनां वनं वेणुवनं वेणौणोवाणस्य लः नोणू स्वरान्मसेः सम् मोऽनुस्वारः अनेन वा ह्रखदी| बुलू वेबुवणं वेलूवणं । नितंबसिलस्खखितवीचिमालस्य नितंबसिलायाः स्खलिता वीचिमाला कबोलमाला यस्यसः तस्य नितंबसिलास्खलितवीचिमालस्य कगचजेत्यादिना तचयोर्लोपः शसोःसः अनेन दीर्घस्यहवः ला ल कगटडतदपशषस क पाकथामूलुक् स्लोपः उसः ङ स्स्थानेस्स नियंव सिलखलिश्रबीश्मालस्य । यमुनातटं यमुनायास्तटं यमुनातटं श्रादेोजः यस्य जः यमुना चामुंडा कामुकातिमुक्तके मोमुनासिकश्च मलोपः अनुस्वारश्च उऊं नोणः नस्यणः अनेन वा कचिछा दीर्घस्य ह्रस्वः कगचजेति तबुक् अवर्णोय श्रुति अस्य याः टोडस्यडः क्लीबेस्म् मोऽनुवार जजणयडं जजणायडं । नदीस्त्रोतसू नद्याः श्रोतो नदीस्त्रोतः कगचजेत्यादिना दलोपः अनेन दीघस्य हखः सर्वत्र लपरलोपः शषो सः तैलादौवापठित्वं अंत्यव्यंजनस्य सबुक् क्लीबेसम् मोऽनुस्वारः नश्सोत्तं नश्सोत्तं । गौरीगहं श्रौतउत् गौगो अनेन वा हखस्य दीर्घस्य ह्रखः री रि
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मागधी व्याकरणम् गृहस्यधरपतौ गृहस्थाने घर इति खथघधनां घस्य हः कलीबें सूम् मोऽनुं गोरिहरं गोरीहरं वधूमुखं खथघधनयोः हः अनेन वा क्वचिद्दीर्घस्य ह्रस्वः इहु क्लीवेसूम् मोनु० वर्मुहं वहुमुहं। टीका भाषांतर. दीर्घ अने ह्रस्व ते दीर्घहस्व कहीए. ते दीर्घ अने इस्व प्राकृत जाषामां समासने विष परस्पर इस्व अने दीर्घ थाय बे. संस्कृत अंतर्वेदिः तेनु प्राकृत अंतावेइ थाय बे. ते आ प्रमाणे. अंत्यव्यंजनस्य ए सूत्रवडे अंतर्वेदि नार नो लुक श्रयो एटले अंतवेदि अयु, पनी आ सूत्रथी इस्वनो दीर्घ थयो तेथी त नो ता थाय एटले अंतावेदि एवं रूप आयु, पगी कगचजदतपयवा० ए सूत्रथी द् नो लोप भयो एटले अंतावेह एवं थयु, पनी अकलीबेसौदीर्घः ए नियमथी इ नो ई थयो, पनी अंत्यव्यंजनस्य ए सूत्रवडे स् नो लुक् अयो, एटले अंतावेह एवं रूपसिद्ध अयु. अंतावेइ ए शब्दनो अर्थ सम (सरखी) चूमि एवो श्राय जे. संस्कृत सप्तविंशति तेनुं प्राकृत सतावीसा एवं थाय . ते आ प्रमाणे-मूल सप्तन् अने विंशति हतुंः सप्त एटले सात अने विंशति एटखे वीश ( सत्तावीश) सप्तन् विंशति तेमां सेअंत्यव्यंजनस्य ए सूत्रवडे न नो लोप थयो, एटले सप्तविंशति थयुं; पनी कगटडतदपशषसां ए सूत्रथी प् नो लोप अयो, एटले सतविंशति एवं रूप थयु. पनी अनादौशेषादेशयोईित्वं ए सूत्रथी त नो विनवि थयो, एटले सत्तबिंशति एवं थयु, पजी आ सूत्रथी इस्वनो दीर्घ थयो, पनी विंशत्यादेलक ए सूत्रथी अनुस्वारनो लोप थयो, तेथी सत्ताविशतिः श्रयुं, पजी ईजिह्वासिंहत्रिंशदिशतौ ए सूत्रथी ति ने स्थाने वि अथवा वी आवे एटले सत्तावि (वी) श एवं श्रयु, पजी शषोःसः ए सूत्रथी श नो स थाय, एटले सत्तावीसः बाकी संस्कृतनी जेम सिद्ध करवं. अंत्यव्यंजन स् नो लुक् थयो, एटले सत्तावीसा एवं सिम थाय. संस्कृत युवतिजनः तेनुं प्राकृत जुवइजणो एवं थाय; ते या प्रमाणे-युवति एवो जन ते युवतिजन कहेवाय. प्रथम आदेोजः ए सूत्रथी यु नो जु थयो, एटले जुवतिजनः एवं थयु; पठी कगचजत ए सूत्रथी त नो लुक् थयो, एटले जुवइजनः एq थयु. पनी नोणः ए सूत्रथी न् नोण अयो, एटखे जुवइजणः एबुं अयु, पळी अंतःसे? ए सूत्रथी स् ने स्थाने डो थयो. पठी डित्यंत्यस्वरादेः ए संस्कृत व्याकरणना सूत्रथी ण ना अ नो लुक् अयो, एटले जुवइजणो ए रूप सिद्ध थयु. संस्कृत वारिमतिः तेनुं प्राकृत वारीमइ अने वारिमई बे रूप थाय. वारि-जल तेमां ने, मति-बुद्धि जेनी ते वारिमति. ते आ प्रमाणे सिद्ध श्राय . वारिमति तेने आ सूत्रथी इस्वनो विकटपे दीर्घ थाय एटले वारि अथवा वारीमतिः श्रयु. कगचज ए सूत्रवडे त नो लोप थयो एटले वारीम: अकलीबेसौदीर्घः ए सूत्रथी अंत्यव्यंजन सू नो लुकू ने दीर्घ अयो, एटले वारिम तथा वारीमई बे रूप सिद्ध श्राय . संस्कृत
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प्रयमःपादः। भुजयंत्रं ना प्राकृत भुआयंतं.अने भुअयंतं एवा बे रूप थाय . कगतजनद ए सू. त्रश्री ज अने य नो लुक् थयो, एटले भुअअंत्र थयु, पनी था सूत्रवडे क्वचित् विकटपे हस्वनो दीर्घ अयो. एट अ नो श्रा अयो, एटले भुआअंत्र अयु, पनी सर्वत्रलवरामचंद्रे ए सूत्रवडे र नो लुक् अयो, एटले नुआयंत अयुं, पनी क्लीवेखरान्मसे ए सूत्रथी सू ने स्थाने म् थयो. पनी मोऽनुस्वारः एटखे भुआयंतं तथा भुअयंतं एवा बे रूप सिद्ध थया. । संस्कृतमां पतिगृहं नुं प्राकृतमां पहहरं तथा पईहरं थाय. पतिर्नु जे घर ते पतिगृह- पतिगृह तेने कगचजेति सूत्रवडे तनो लुक् अयो, पश्गृह थयु, पनी गृहस्य घरोऽपतौ सूत्रवडे गृहने स्थाने घर थयुं, एटले पइघर थयु. पनी खथयधनां ए सूत्रथी घ नो ह थयो, एटखे पश्हर थयु. नपुंसकमां क्लीबेस्वरान्मसेः ए सूत्रथी स् नो म् थयो. मोऽनुस्वारः सूत्र लागतां पइहरं श्रने आ सूत्रथी विकटपे ह्रस्व थतां पईहरं एवा बे रूप सिद्ध थाय ने. संस्कृत वेणुवनं, वेणु-वंशनुं वन ते वेणुवन. प्राकृत वेलुवनं ते आप्रमाणे. वेणुवनं तेने वेणौणोवा सूत्रथी ण नो त् थयो, पनी नोण सूत्रथी नकारनो णकार अयो, एटले वेलुवण अयु. तेने खरान्मसे सूत्रथी स् नो म् थइ पनी मोऽनु स्वारः लगाडी, श्रा चाखता नियमथी विकटपे इस्वदीर्घ करवायी वेलुवणं अने वेलूवणं एवा बे रूप सिद्ध श्रया.। नितंबसिलस्खलितवीचिमालस्य एटले नितंबरूप शिलाथी स्खलित थ ने वीचिमाला ( तरंगमाला) जेनी ते. अहिं कगचज सूत्रथी * अने च नो लोप भयो. पठी शषोःस सूत्रथी स् थाय, पनी था नियमथी दीर्घ खा नो ह्रस्व ल थयो, पजी क गट ड द प श ष श्कथामू लुक् ए सूत्रथी स् नो लोप थयो. पनी उ सः उस स्थाने स्स एसूत्र खगाडतां निअंबसिलखलिअवीइमालस्स ए रूप सिझ थयु । यमुनातटं यमुनानदीन तट. संस्कृत यमुनातट तेनुं प्राकृत जउणायडं एवं थाय . आप्रमाणे आदेोजः सूत्रथी थ नो ज थयो, तेथी जमुनातट भयु. पनी यमुनाचामुंडाकामुकातिमुक्तकेमोऽनुनासिकश्च ए सूत्रथी म नो लोप थयो भने अनुस्वार थयो, एटखे जउणातट एवं थयु. पनी नोणः सूत्रथी न् नो ण थयो, एटले जउणातट श्रयु. पी था चालता सूत्रथी त् नो लुकू अयो, पनी अवोयाश्रुति सूत्रथी अ नो य यो. जउणयत पी टोडस्य सूत्रधी त् नो ड थयो, पजी कीबे स् नो म् अने मोऽनुस्वार लगाडतां जउणयडं अने जउणायडं एवा बे रूप सिख थया.। नदीस्रोतस् नदीनो प्रवाह. संस्कृत नदीस्रोतसूनुं प्राकृत नइस्रोतं नईस्रोत्तं एवं थाय. आप्रमाणे. नदीस्रोतस ने क ग च ज सूत्रथी द नो खोप अयो, नइस्रोतसू थयु. चासता नियमथी दीघेनो ह्रस्व थयो, एटखे नस्रोत पठी सर्वत्रलपरलोपः सूत्रथी नइस्रोतस् पजी शषोः सः सूत्रथी श नो स् थयो, पनी तैलादौ सूत्रथी तनो बिर्ताव अयो, एटले नइस्रोत्तम् पनी अंत्यव्यंजनस्य लुकू सूत्रथी सू नो सूत्रधी लुक् पनी क्लीबे स् म् अने मोनुखार खगाडवाथी नइसोत्तं श्रने नईसोत्तं एवा बे रूप थाय. । गौरीगृहं तेनुं प्राकृत गोरिहरं तथा गोरीहरं पाय बे. गौरीगृह तेने औत ओत् सूत्रधी गौनो गो थयो, पनी था नियमधी दीर्घनो
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मागधी व्याकरणम्. विकटपे इस्व अयो, एटले री तथा रि थया, एटले गोरि- गोरीगृह एम अयु. पनी गृहस्य घरोपतौ सूत्रथी गृह शब्दने स्थाने घर अयो, पनी ख थ घ ध भां सूत्रथी घ नो ह थयो, एटले गोरिहर थयु, पनी क्लीबे सम् अने मोनुखार लगाडी गोरिहरं गोरीहरं एवा बे रूप सिद्ध श्रयाः। संस्कृत वधूमुख (वहुनुमुख) तेनुं प्राकृत वहूमुह तथा वहुमुह थाय जे. आप्रमाणे-वधूमुख ने खथधघभयोःहः सूत्रथीह थयो तेथी वहूमुह अयु. पनी कचित् दीर्घनो विकटपे ह्रस्व थाय. एटले वहू-वहुमुह थयु. पनी क्लीबे सम् मोनुवार सूत्रनो नियम लगाडवाथी वहुमुहं तथा वह्नमुहं एवा बे रूप सिद्ध थाय .
पदयोः संधिर्वा ॥५॥ संस्कृतोक्तः संधिः सर्वः प्राकृते पदयोर्व्यवस्थितविनाषया जवति ॥ वासेसी । वासश्सी ॥ विसमायवो। विसमश्रायवो ॥ दहिसरो। दहीसरो ॥ साउथयं । साउनभयं ॥ पदयोरितिकिं । पाओ । पक्ष । वहाउँ । मुद्धा । मुझाए ॥ महामहए ॥ बहुलाधिकारे क्वचिदेकपदेऽपि काहि । काही ॥ विश्छ । बी ॥५॥
मूल भाषांतर. संस्कृतमां कहेला नियमनो संधि प्राकृतमां बने पदने विषे व्यवस्थित विनाषा (व्यवस्थित विकहप) वडे श्राय . वास+इसी तेनुं वासेसी अने वास इर्सी एवा बे रूप थाय. विसम+आयवो तेनुं विसमायवोतथा विसमआयवो एम थाय. दहि + ईसरो तेनुं दहीसरो तथा दहि ईसरो एम थाय. साऊ+ ऊअयं तेनुं साऊऊअयं अने साऊअयं एवा रूप थाय. मूलमा पदयोः एटले बे पदने थाय एम कडं तेथी पाउँ । पश् । वहा त्यां एक पद होवाथी विकटपे संधि न थाय. तेमज मुड़ा अने मुटाए थाय. तथा मह अने महए थाय. अहिं पूर्वना सूत्रथी बहुल अधिकार चाट्यो आवे , तेथी कोश्ठकाणे एक पदमां पण संधि थाय. जेमके काहिश् तेनुं काही थाय. बिटु तेनुं बीउ थाय.५
॥ढुंढिका ॥ पद ६२ संधि ११ वा ११ व्यासझषिः व्यासश्चासौ कृषिश्च व्यासज्ञषिः अधोमनयां यलोपः इत्कृपादौ झकारस्य अनेन वा सं. धिः अवर्णस्येवर्णा शषोः सः क्लीबे सौ दीर्घः सिसी अंत्य व्यंग सबुक वासेसी । वासश्सी ॥ विषमातपः विषमश्चासौ श्रातपश्च विषमश्रातपः शषोः सः अनेन वा संधिः समानांतेन दीर्घः क गचम् तबुक् अवर्णोयश्रुतिः अस्य यः पोवः । श्रतः से? विसम श्रायवो, दधि ईश्वरः दधिप्रधान ईश्वरो दधीश्वरः खथा घस्य
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प्रथमःपादः। हः अनेन वा संधिः सर्वत्र वलोपः शपोः सः श्रतः से? डित्यं दहिसरो दहीसरो । खाउ उदकं खाउदकं सर्वत्र वबुक् श्रतः से?पाठ पति क ग चेति तबुक् शक्तीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजनस्यबुक् पश् वस्त्र सर्वत्र रबुक् स्तस्य थोऽसमस्त स्तंबे स्तवेवास्तस्य थःथनादौहित्वं द्वितीय पूर्वथस्य तः जसु शसू ङसित्तोछामि दीर्घः थथाडसेस्तो पुहिहिंतो लुक् डम् स्थाने दो क ग चेति द लोपः वार्ड मुग्धा ३१ टाकगटडेति गबुक अनादौ हित्वं द्वितीयतुर्ययोरुपरि पूर्वः पूर्वधस्य दः (टाङस्ङे रदादिदे छातुङसेः) टा स्थाने ३ ए मुझाए । मुहाश् । काद कादायां कादर कांदेराहाहिलंघाहि लंखवञ्चवंफमद सिह विलुपाः इत्यनेन कांक्षस्थाने मह इति वर्त्तते व्यंजनाददंते अत् लोकात् त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ तिव स्थाने इए, मह । महए । त्त स्यति नविष्यति हिरादिः हि श्रागमः त्यादीनां पश्यति स्थाने ३ य इति श्रात्तगौ नूब नविष्यंत्योश्च कृको बकुलाधिकारात् कचिदेकपदेऽपि संधिः समानानां दीर्घः काहि + ।काही । द्वितीय क गट डेति दबुक् क ग चे ति तययोर्मुक् समानानां दीर्घः ११ श्रतः से? बीउँ पानीयादिष्वित् इत इत बि. ॥५॥ टीका भाषांतर. पदयोः संधिः वा- व्यासज्ञषि एटले व्यास एवा झषि संस्कृत व्यासऋषि तेनुं प्राकृत वासेसी तथा वासइसी थाय. ते आप्रमाणे व्यासझषिः तेने अधोमनयां सूत्रथी यनो लोप कर्यों एटले वासऋषिः थयु. पनी इत्कृपादौ सूत्रथी ज्ञकारनो इ अयो. पनी था सूत्रवडे विकटपे संधि थतां अवर्णेवर्णा ए सूत्र लाग्युं एटले वासेषिः पनी शषोः सः सूत्रथी सू अतां वासेसिः श्रयु. पजी क्लीषे सौ दीर्घः सूत्रधी सि नो सी थयो, अने अंत्यव्यंजन सूत्रथी सू नो लुक् श्रयो एटले वासेसी तथा वासइसी एवा बे रूप सिद्ध थया. संस्कृत विषमातपः एटले विषम एवो श्रातप जे तडको तेनुं प्राकृतमा विसमायवो तथा विसमआयवो एवा बे रूप थाय. ते आप्रमाणे विषमआतपः शषोःसः ए सूत्र लागतां विसमआतप थयु. पी आ चासता सूत्रथी विकटपे संधि अतां समानांतेन दीर्घः ए सूत्र लागता विसमातपाययु. पली कगचेति ए सूत्रथी त नो लुक् थयो, अने अवर्णोयश्रुतिः ए सूत्रथी अ कारनो य थयो, एटले विसमायवः एवं थयु, पनी पोवः ए सूत्रथीप नो व थयो, अने अत: से? ए सूत्रथी स्त्र नो ओ अयो, एटले विसमायवो अने विसमआयवो एवा बे
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मागधी व्याकरणम्, रूप सिद्ध श्रया. संस्कृतमा दधिईश्वरः एटले दहीं जेने मुख्य प्रिय ने एवो ईश्वर, तेनुं प्राकृतमां दहिइसरो तथा दहीसरो थाय बे. खथ० ए सूत्रथी ध कारनो हथयो, एटखे दहिईश्वरः एवं अयु. पनी था सूत्रथी विकटपे संधि थतां दहीश्वरः एवं अयु. सर्वत्र ए सूत्रथी वू नो लोप थयो, अने शषोः सः ए सूत्रथी शू नो स् थयो, एटले दहीसरः एवं थयु. पनी अतः सेडों तथा डित्यंत्य० ए बे नियम लागवाथी दहि ईसरो तथा दहीसरो एवा बे रूप सिद्ध श्राय जे. संस्कृत खादुउदक एटले स्वादिष्ट जल तेनुं प्राकृत साउअयं अने साउउअयं एवा बे रूप थाय बे. ते श्राप्रमाणे. सर्वत्र वलुक् ए सूत्रथी व नो लुक् थयो, एटले साउउदक श्रने द् नो खोप थयो, अनेक स्थाने य् थयो, एटले साउउअय अने विकटपे संधि अवाथी साउअयं एवं रूप श्राय बे. मूलमां बे पदनुं ग्रहण , तेथी पाओ ते पदमां संधि विकटपे न थाय. ते रूप अतः सेडों ए सूत्रथी सिद्ध थाय बे. संस्कृत पतिः तेनुं प्राकृत पद थाय . ते श्राप्रमाणे. पति तेने क ग चेति सूत्रथीत् नो लुक् श्रतां पइ थाय. पनी अक्लीके सौ दीर्घः ए सूत्रथी दीर्घ अइ. अंत्यव्यंजनसलुक्वडे विनक्तिना स नो लोप थ पह एवं रूप सिद्ध पाय. संस्कृतमां वस्त्र तेनुं प्राकृत वत्थाओ एवं श्राय बे. ते आप्रमाणे. वस्त्र शब्दने सर्वत्ररलुक ए सूत्रधी र उडी गयो, एटले वस्ता एवं अयु. पठी स्तस्यथोऽसमस्त स्तंबे स्तवे वा स्तस्यथः ए सूत्रधी स्तनो थ् थयो, एटले व थ थयु, पनी अनादौ बित्वं ए नियमश्री वथ्थ अयु. पी दितीय ए नियमयी पूर्व थ नो त् थयो, एटले वत्थ एवं श्रयु. पठी जर शस् ङ सित्तोद्वामि दीर्घः ए सूत्रधी वत्था एवं श्रयु. पळी डसेस्तो दुहिहिंतोलुक ए सूत्रथी उस ने स्थाने दो थयो. पठी कगच सूत्रथी द्नो लोप थयो, एटले वत्थाओ ए रूप सिद्ध थयु. संस्कृत मुग्धया तेनुं प्राकृत मुद्धाइ तथा मुडाए थाय . ते या प्रमाणे- मुग्धयाटा क गट डेति ए सूत्रथी ग् नो लुक्थयो, अनादौ द्वित्वं सूत्रधी विरोव अवाश्री मुद्धया एवं अयु. पनी द्वितीयतुर्ययोरुपरिपूर्वः ए सूत्रयी पूर्व धू नो द थयो, पनी टाऊसूङे रदादिदे छातुङसेः ए सूत्रथी दा ने स्थाने इ तथा ए थया. एटले मुडाइ तथा मुडाए ए बे रूप सिद्ध थया. संस्कृत काक्षु एटले श्वा करवी, ते कानुं प्राकृतमां महइ श्रने महए एवा रूप धाय ले. कांक्षेराहाहिलंघाहिलंखवच्चवंफमहसिंहविभुंपाः ए सूत्रथी कांक्षु ने स्थाने मह एवं रूप थाय. पनी व्यंजनादंतेऽत् अने लोक व्याकरणथी त्यादि विनक्तिने त्यादिनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ ए नियमथी तिव ने स्थाने इ तथा ए श्रावे, एटले महई तथा महए एवा रूप थाय.त्त रूपने स्यति भविष्यति हिरादिः ए सूत्रथी हि एवो आगम थाय. पनी त्यादि विनक्तिउने पश्यति ने स्थाने इयइ इति, पनी बहुप्स अधिकारश्री क्वचित् एक पदमां पण संधि श्राय, तेथी समानानां दीर्घः ए सूत्र वडे काहिइ तेनुं काही एवं रूप सिद्ध थयु. संस्कृतमा वितीय तेनुं प्राकृत बिइओ श्रने संधि अयेडं रूप बीओ एम थाय . ते आप्रमाणे. वितीय, तेने क गट ड सूत्रथी द् नो लुक् अयो, श्रने क ग च सूत्रधी त् तथा य् नो लुक् अयो, एटले विइस एवं श्रयुं,
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प्रथमःपादः। पठी समानानां दीर्घः सूत्रथी दीर्घ करी अतः सेझै सूत्रथी ओ कर्यो, एटले बीओ ए रूप सिद्ध थयु. पानीयादिष्वित् इत ए नियमवडे विकटप अतां बिइओ एवू बीजू रूप थाय बे. ॥ ५॥
न युवर्णस्याऽस्वे ॥६॥ श्वर्णस्य उवर्णस्य चाखे वर्णे परे संधिर्न नवति । नवेरिवग्गेवि अवासो वंदामि अङावरं ॥ दणुकंदरुहिर लित्तो सहनशंदो नहप्पहावलिअरुणो ॥ संझावहुश्रवजढो नववारिहरोब विझुलापडिजिन्नो ॥ युवर्णस्येति किं गूढोथरतामरसानुसारिणी जमर पंति ॥ अवशति किं पुदवीसो ॥६॥ मूल भाषांतर. प्राकृतमां श्वर्ण तथा जवर्णने असवर्णिक स्वर (विजातीय स्वर) परउते संधि न थाय; जेमके नवेरिवग्गेवि अवआसो तेमां वि अने अवआसो एबे स्वरवच्चे आ नियमथी श्वर्णनी संधि न थाय. वंदामिअजवइरं तेमां मि अने अज ते बे स्वर वच्चे इ वर्णनी संधि न थाय; दणुइंद० ए पदमां पण दणु अने इंद एबे पदवच्चे संधि न थाय. नहप्पहावलि अरुणो तेमां लि अने अरुणोवच्चे संधि न थाय. संझावहु अवउठो तेमां वहु अने अवउठ ए पदनी संधि न थाय. नववारिहरोव्वविज्जुला पडिभिन्नो ए पद अर्थ पूर्तिने माटे आप्यु बे. मूलमा जे युवर्णस्य ए पद आप्यु , तेनु शुं कारण ? ते कहे . गूठोअरतामरसाणुसारिणी भमरपंतिव्व अहिं श्वर्ण श्रने उवर्णनो अनाव ,तेथी संधि थश्वे.मूलमां अख ए पद आप्यु जे. तेथी पुहवीसो ए पदमां समान (सजातीय) स्वर होवाथी संधि थबे.॥६॥
॥डंढिका ॥ न ११ श्वर्णश्च उवर्णश्च युवर्णः तस्य । न स्वः अखः तस्मिन् श्र. खे न वैरिवर्गेऽपि अवकाशः न ११ अव्ययस्य लुक् अव्ययानि प्रा. यः संस्कृतसिझानि अन्यथा अदंचप्तः सेर्डोरिति प्राप्तिः तदंतेषु अलीबे सौ दीर्घः इति प्राप्तिर्जवति वैरिवर्ग ३१ ऐत् वै वे सपत्रबुक् अनादौ हित्वं डेम्मि: मिस्थानेडेए इति डित्वं० लोकात् वैरिवर्गेऽपि संस्कृते सिद्धः पदादपेर्वा डिबुक पोवः पस्य वः वि श्रवकाश ११ कगचेति कबुक् अवर्णो श्रय शषोःसः श्रतःसे? अवयासोऽपि अवकाश इत्यत्र थनेन संधिर्न जवति वदि स्तुत्यनिवा
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मागधी व्याकरणम्. दनयोः वददितस्वरानौतः ऽनणनोव्यंजनी अनुस्वारः वर्तमाना ऐ तृतीयस्य मिएस्य निमिव्यंजनाऽहस्वः संयोगे था श्राद्यपाँ श्रनादौ हित्वं वैरादौ वा वैस्थाने व १ अमोऽस्यसूलुक् मोनु श्रजावरं दणुइंदस्यार्थः नपेंडः शोजते किंग दनुजेंअरुधिरलिप्तः पुनः किं० नखप्रजावलिअरुण श्व उत्प्रेक्षते संध्यावधूऽवगूढो नववारिधरः विद्युत्प्रनाजिन्नश्त्यर्थः गूढोदरतामरसानुसारिणीत्यर्थः अत्रे वर्णेवर्णयोरजावात् संधिः पृथिवीश उदृत्वादौ पृथुपथिपृथिवीप्रतिशून्मूषिकह रिअबिजीतकेष्वत् थिस्थाने धरवधपथह शषोःसः तसेर्जे पुहवीसो ॥६॥ टीका भाषांतर. न ११ युवर्ण ६१ अस्व ७१ ए त्रण पहनुं सूत्र. श्वर्ण अने छवर्ण ते युवर्ण कहेवाय, ते युवर्णने संधि न थाय, अस्वे एटले स्ववर्ण न होय त्यां. तेनुं उदाहरण आपे बे. संस्कृतमां नवेरिवर्गेऽपि अवकाशः तेनुं प्राकृत नवेरिवगोषिअवयासो एवं थाय , ते या प्रमाणे. न ते अव्ययनो लुकू थाय बे. प्राकृतमा वर्गु करीने श्रव्ययो संस्कृत नियमप्रमाणे सिद्ध प्राय . नहीं तो अदंचप्ता, सेझैः, इदुतदंतेषु, अक्लीबे सौ दीर्घः इत्यादि सूत्रोनी प्राप्ति थाय. वैरिवर्गे ए शब्दने औत्एत् ए सूत्रथी वै नो वे अयो, पनी सर्वत्रलुकूअनादौ ए सूत्रवडे बिर्लाव थयो, एटले वेरिवग्गेडेम्मिमिस्थानेडेए ए नियमथी डे करी ए थयो, अने डित्वपणानो नियम संस्कृतप्रमाणे लेवाथी वेरिवग्गे एवं रूप सिद्ध श्राय. अपि शब्द अव्यय होवाथी संस्कृतप्रमाणे सिख थाय ने, अथवा पदादपर्वाडिलुक ए नियमथी अनो लुक् थयो. पठी पोवः सूत्रथी नोवू थयो, एटले अपिनुं वि एवं रूप थाय. अघकाश शब्दने क म च सूत्रवडे कूनो लुकू थयो, अने अवर्णों ए सूत्र लागवाश्री अ नो यू अयो, पनी शषो सः सूत्रवडे शू नो सू थयो, पनी अतः से? ए नियम लागतां अवयासो एवं रूप सिद्ध थाय बे. अपि+अवकाश ए वाक्यमां आ नियमयी संधि न थाय. संस्कृत वंदामि आर्यवैरं तेनुं प्राकृत वंदामि अजवइरं एवं थाय . ते आप्रमाणे. वदि अभिवादन स्तुत्योः एटले वदि धातु वंदना करवी अने स्तुति करवी तेमा प्रवर्ते बे. वद् धातुने ओदितस्वरानौतः ठन्नणो व्यंजनी अनुस्वारः ए सूत्रोथी वंद एवं रूप थाय. पनी वर्तमाना ए सूत्रथी त्रीजा पुरुषमां ए सांगी तनो मि थयो, एटले वंदामि अयु. आर्यवैरं तेने व्यंजनाडदीअ इस्व: संयोगे ए सूत्रथी आ नो अ थयो, पनी आद्यपर्याजः सूत्रथी ये नो ज अयो, पळी अनादौ द्वित्वं ए नियमवडे अज थयु. वैरादौ वा ए सूत्रथी वै ने स्थाने वह अयुं, पी वितीयाना एकवचनने अमोऽस्यस्लुक ए सूत्र प्राप्त करी मोनुवार प्राप्त थइ अजवइरं एवं रूप सिघ थाय. संस्कृत दनुजेंद्ररुधिरलिप्सः तेनुं प्राकृत
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प्रथमःपादः।
१५ दणुइंदरुहिरलित्तो एवं पाय. तेनो अर्थ एवो बे के, जे दैत्य पतिना रुधिरथी लिंपाएखा ने. संस्कृत शोभते उपेंद्रः तेनुं प्राकृत सहइ उइंदो- एटले उपेंज कृत शोले ने अर्थात् दैत्यपतिना रुधिरथी लिंपाएला कृष्ण शोले , तेथी ते केवा लागे , ते जप्रेक्षा करे . नखप्रभावलिअरुणः तेनुं प्राकृत नहप्पहावलिअरुणो एटले नखप्रजानी श्रेणिवडे रक्तवर्ण थएला होय तेवा लागे . संस्कृत संध्यावधू अवगूढो. नववारिधर इव विद्युत्प्रभाभिन्न तेनुं प्राकृत संझावहु अवऊढोनववारिहरोव्वविजुलापडिभिन्नो एटले संध्या रूपीस्त्रीए आलिंगन करेलो नवीन मेघ होय तेवा लागे . मूलमां युवर्णस्य एम शामाटे लीg, तेविषे कहे ने के, संस्कृत गूढो. दरतामरसानुसारिणी तेनुं प्राकृत गूढोअरतामरसाणुसारिणी एटले गूढ जेनो मध्य नाग ने एवा कमलने अनुसरनारा. अहिं श्वर्ण अने उवर्णनो अन्नाव , तेथी संधि थइ . मूलमां अस्व एटले सवर्ण स्वर न होय त्यां थाय, ए केम कह्यु ? तेनुं उदाहरण आपे - संस्कृत पृथिवीश तेनुं प्राकृत पुहवीसो एवं थाय . ते आप्रमाणे- पृथिवीश- तेने उदृत्वादौ पृथुपथिपृथिवीप्रतिशून्मूषिकहरिद्रविभीतकेवत् ए सूत्रथी थि ने स्थाने थ अयो, पनी खध० सूत्रथी थ नो ह थयो, पही शषोसा तथा तसेजे ए सूत्रथी पुहवीसो एम सिद्ध अयु. ॥६॥
एदोतोःस्वरे ॥७॥ एकार उकारयोः स्वरे परे संधिर्न नवति ॥बहुश्राए नहुति हणे, थाबंधती ए कं चुकं अंगे। मया रफ सिर घोरणि, धाराछेउबदिसंति ॥ १ ॥उवमासुश्रपजाते सकलजदंता वहास मूरु अश्रयं । तंचे श्रमलि श्रविसदंड तिरसमा कखमो ए णिहं ॥२॥ अहो थहरिशं । एदोतोरिति किं श्रवा लोश्रणतरला श्यरकरणं जमंति बुकी। अच्चि अनिरारंनमिति हिश्रयं ककंदाणं ॥१॥७॥ मूल भाषांतर. एदोतोः स्वरे ए मूल सूत्र जे. प्राकृतमां ए कार अने में कार ने स्वरपर बते संधि न थाय. जेम बहुआ + एन हुल्लिहणे ए पदमां आ अने ए ए स्वरनी वच्चे संधि न थाय. आबंधती + एक ए पदमां ती अने ए नीवच्चे संधि न थाय. उवमासु ए गाथामां तंचे + अ अने मो + एम्हि ए बे पदवच्चे संधि न थाय. अहो+च्छरिअं ए पदमां पण संधि न थाय. मूलमां एदोतोः ए पद ग्रहण करवानुं शुं कारण ते कहे . अत्थालोयण ए गाथामां एकार कार न होवाथी अत्य + आलोयण इत्यादि पदोमां संधि श्रयेली . ॥७॥
॥ टुंढिका॥ एच उच्च एदोतो तयोः वर ७१ बहुथाए अस्यार्थः मकरध्वजश
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मागधी व्याकरणम्. रधोरणिधाराछेदा व दृश्यंते व अंगे कस्याः वधूकायाः किंजूते अंगे नखैरुझेखनं यस्यांगस्य तस्मिन् किं कुर्वत्याः कंचुकं श्रावनंत्या इत्यर्थः १ उवमा अस्यार्थः उरुयुग्मं उपमासु अपर्याप्तेजकलनदंतापहासं वर्त्तते इति शेषः इदानीं तदेव उरुयुग्मं मर्दितविसदंडविरसमलक्ष्याम इत्यर्थः २ श्रहो श्राश्चर्य श्रडालोयणतरला अस्यार्थः स्तरकवीनां बुझ्यो अर्थालोकनतरला नवंति कवींजाणां हृदयमध्ये एव निरारंजं श्रायांतीत्यर्थः ॥७॥ टीका भाषांतर. एत् ( एकार ) अने उत् (उकार ) तेमने स्वरपर बते संधि न थाय. बहुआए- ए गाथानो एवो अर्थ के, कांचली पेहेरती एवी वधूना नखवडे उकरडाएला अंगमां कामदेवना बाणनी श्रेणीनी धाराना जाणे बेद होय तेवा देखाय . १ उवमा ए गाथानो अर्थ- ते स्त्रीनु जरुयुगल, जेने दांतनो प्रकाश न थयो होय तेवा गजेंजना बच्चानी सोंढ जेवं हतुं, ते श्रा वखते चोखाएला कमलनाल जेवू देखाय . अहो आश्चर्य वे. २ अत्थालोयणतरला ए गाथानो अर्थ-बीजा कविऊनी बुद्धि अर्थना आलोकनमां चपल होय बे, अने कवींजोनी बुधिळ हृदयनी मध्यमां आरंन रहितपणे आवे ॥७॥
स्वरस्योवृत्ते॥७॥ व्यंजनसंपृक्तः खरो व्यंजने बुप्ते योऽवशिष्यते स उवृत्त होच्यते। खरस्य उमृत्ते खरे परे संधिर्न नवति ॥ गयणेचि श्रगंध उडिंकुएंति । निसाअरो. निसियरो। रयषियरो। मणुअत्तं बहुलाधिकारात् कचिछिकल्पः । कुनथारो कुंजारो । सुरिसो । सूरिसो ॥ कचित् संधिरेव ।सालाहणो चक्का श्रतएव प्रतिवेधात्समासेऽपि स्वरस्य संधौ निन्नपदत्वं ॥ ७॥
मूल भाषांतर. खरस्य अने उद्धृत्ते ए बे पदनुं सूत्र जे. व्यंजनसाथे जोडाएसो स्वर व्यंजननो लोप थयापी, जे अवशेष रहे ते वृत्त स्वर कहेवाय . तेवो उवृत्त स्वर पर उतां स्वरने संधि न पाय. गयणेचिअ गंध उडिं कुणंति ए वाक्यमां गंधउडिं तेनुं संस्कृत गंधपुटी हतुं त्यां पू व्यंजन उडी जतां, बाकी रहेलो उ उधृत्त स्वर ने. तथी ते गंध अने उडि ए बे पदनी संधि न थाय. निसाअरो अने निसिअरो ए पदमा उवृत्त अ नी साथे संधि न थाय. रणिअरो ए पदमां पण अ नी साथे संधि न थाय. मणुअत्तं ए पदमां उवृत्तस्वर उ भने अत्त नो अ ए बेनी बच्चे संधि न थाय. आ बदुखनो अधिकार चाले , तथी विकटपे संधि थाय, जेम के एकव.
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प्रथमःपादः।
खत कुंभआरो अने एकवार तेमां आ जघृत स्वर , तेने संधि थइ कुंभारो एम थाय. तेजप्रमाणे सुररिसो अने तेमां संधि थ सूरिसो एम बे रूप थाय. कोश्ठकाणे नित्य संधि थाय ने जेम के सालाहणो तेमां साल+आहणो एवा बेजुदापदवच्चे उवृत्त स्वरने नित्य संधि अश् . तेमज चकाओ एपदमां चक्क+आओ एवा जुदा पदने उवृत्त स्वरसाथे संधि अश् बे. तेथी प्रतिषेध होवाथी समासमां पण स्वरनी संधि अतां ते निन्न निन्न पद गणाय बे. ॥ ॥
॥ढुंढिका॥ खर ६१ “ विसमद्यंतमहापसुदंससंजमपरोप्परारूढां गयणे ञ्चिय गंधडि कुणंति तुहक उसनारी” ॥१॥ अस्यार्थःकौलनार्यो गगने एव गंधपटी कुर्वति कस्य तव विचित्रचित्रवाची गंधपुटी शब्दः किं कौलनार्यः विशस्यमाना हन्यमाना ये महापशवः तेषां यदर्शनं तस्य यः संत्रमः तेन परस्परमारुढाः कुले जवाः कोला इत्यर्थः । गंधपुटी १ कगचेति पलोपः टोडः खः टीडि शेषं अदंतवत् इति न्यायाद मोऽस्य बुक् मोनु गंधजडिं। निशाकर निशां करोतीति निशाकरः शषोःसः क ग चेति कलुक अवर्णो इसदादौवा इति वाकारस्य श्कारः ११श्रतः से? निसाथरो निसियरो।रजनीकरः ११क गचजेति जकयोर्बु श्रवर्णो नणः अतः से? श्रणीधरो। मनुजत्वं नोणः क गचजेति ज बुक् सर्वत्र व बुक् अनादौ हित्वं मणुबत्तं । कुंनकार कगचजेति क बुक् बहुलाधिकारात् कचिछा संधिर्न स्यात् यत्र न संधिस्तत्र श्रवर्णो अन्यत्र समानानां दीर्घः अतः से? कुंजथारो कुंजारो सुपुरुषः क ग च जेति प बुक् पुरुषेरो रु स्थाने रिः द्वितीये समानानां तेन दीर्घः शषोःसः श्रतः सेझै सुनरिसो सूरिसो सातवाहन ११ अतसीसातवाहने तस्य लः कगचजेति व बुक् क्वचित्संधिरेव समानानां तेन दीर्घः नोणः श्रतः सेझै० सा लाहणो । चक्रवाक ११ सर्वत्र रखुकू अनादौ द्वित्वं क गचेति वकयोलृक् समानानां तेन दीर्घः श्रतःसे? चक्का ॥७॥ टीका भाषांतर. स्वरस्योवृत्ते- ए सूत्रना उदाहरणरूप गाथा आपे बे. मूखमा
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मागधी व्याकरणम्.
१०
neer ए पद जे पेलुं बे, ते संपूर्ण गाथा विसम० ए श्रापेली बे. अर्थ एवो बे के - कुलवान स्त्री हिंसा थता पशुर्जने जोइ संभ्रम पामी परस्पर श्रारूढ थई
मां विचित्र चित्राचरे बे. अहिं गंधपुटी शब्द विचित्र चित्रवाची बे. संस्कृत गंपुटी शब्द तेनुं प्राकृत गंधउडि एवं थाय. ते आप्रमाणे. गंधपुटी - क ग च० सूत्री पू नो लोप थाय, पबी टोड: सूत्र लागी ट नो ड य तथा इस्व थ टी नो डि थयो. पबी बाकीनुं साधन अदंत शब्दनी जेम थाय. एटले अमोs - स्य लुकू ने मोनु०थी गंधउडिं शब्द सिद्ध थयो. निशाकर निशा - रात्रि तेने करे ते निशाकर ( चंद्र ) संस्कृत निशाकरनुं प्राकृत निसाअरो अथवा निसि अरो बे रूप था . श्रप्रमाणे. निशाकर तेने शषोः सः ए सूत्रथी निसाकर एवं a. पती क ग च सूत्रथी कू नो लुक् थयो, पबी, इःसदादौवा ए सूत्रथी आकारनो विकल्पे इकार थाय, एटले निसा अथवा निसि एवं थाय. पबी अतः सेड सूथी ओकार थवाथी निसाअरो अथवा निसिअरो एवा वे रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत रजनीकर तेनुं प्राकृत रअणीअरो एवं थाय ते. रजनीकर तेने क ग चजसूत्री ज तथा क् नो लुक् थयो. पबी अवर्णो ने नोणः ए बे सूत्रथी रअणीअर एवं रूप याय. पबी अतः सेड सूत्रथी रअणीअरो एवं रूप थाय बे. संस्कृत मनुजत्वं नुं प्राकृत मणुअत्तं थाय बे. श्राप्रमाणे- नोणः क ग चजेति सूत्रोथी ण तथा ज नो लुक् श्रवाथी मणुअत्वं थाय. पढी सर्वत्रवलुक् अने अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोथी मतं रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत कुंभकार नुं प्राकृत कुंभआरो तथा कुंभारो एवा बे रूप यावे. आप्रमाणे - कगचेति सूत्रथी क नो लुक् थयो कुंवारः, प्रथमथी बहुल अधिकार चाट्यो वे बे, तेथी कोइ ठेकाणे विकल्पे संधि न थाय, ज्यां संधि न थाय त्यां अवर्णो सूत्र लागे, छाने ज्यां संधि थाय त्यां समानानां तेन दीर्घः सूत्र लागे - पबी अतः सेड सूत्र लागी कुंभआरो तथा कुंभारो एवा वे रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत सुपुरूषः नुं प्राकृत सुउरिसो ने रिसो बे रूप थाय बे. ते प्रमाणे- सुपुरुषः ने क ग जेति प नो लुक् थयो. पबी पुरुषेरो सूत्रथी रूने स्थाने रि थयो, एटले सुउरिषो थयुं. बीजा रूपमा समानानांतेन दीर्घः सूत्र लागे, पी शषोः सः तथा अतः सेर्डी नियमो लागवाथी सुउरिसो तथा रिसो एवा रूप सिद्ध था . संस्कृत सातवाहननुं प्राकृत सालाहणो थाय. सातवाहनः शब्दने अतसीसातवाहने सूत्रथी त नो ल थयो, पत्नी क गचजेति सूत्रधी व नो लुक् थयो. पी कोइ ठेकाणे नित्य संधिज थाय, ए नियमथी समानानां तेन दीर्घः ए सूत्र लाग्यं. पबी नोणः अने अतः सेड सूत्रो लागवाथी सालाहणो रूप सिद्ध या बे. संस्कृत चक्रवाक नुं प्राकृत चक्काओ थाय बे. चक्रवाक ने सर्वत्र रलुक् सूत्रथी र नो लुक् करी अनादौ द्वित्वं तथा क ग च सूत्रोथी व तथा क नो लुक् थाय. पबी समानानां तेन दीर्घः श्रने अतः सेड सूत्रथी चक्काओ रूप सिद्ध थाय बे.
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प्रथमःपादः।
॥ त्यादेः ॥ए॥ तिबादीनां स्वरस्य खरे परे संधिर्न नवति । नवति श्ह होश ह। मूल भाषांतर. तिबादि धातु प्रत्ययोना स्वरने स्वर पर उते संधि न पाय. भवति + इह, अहिं ति मां रहेला इ ने इह नी साथे संधि न थाय. ॥ ए॥
. ॥टुंढिका ॥ त्यादि ६१ नूः तिब व्यंजनात् जुवेझैहुहवा नृत्यादीनां तियुक् अलोपः थग्रे श्ह अनेन संधिर्न नवति । होश् श्ह ॥ ए॥ टीका भाषांतर. त्यादेः ए षष्ठीन एकवचन जे. जू धातुने तिब् प्रत्यय आवे तथा भुवेर्होहुवहवा सूत्रथी भू नो हो थयो. पनी त्यादीनां तिलुक एटले तिनो लुक्ने अ नो लोप थयो, एटले होइ रूप अयु, तेनी आगल इह बे, ते बे स्वरोने श्रा नियमथी संधि न थाय; एटले होइ इह एवं रूप सिद्ध रहे .॥ए॥
॥लुक् ॥ १० ॥ स्वरस्य खरे परे बहुलं बुग नवति । त्रिदशेशः तिथसीसो। निःश्वासोबासौ नीसासूसासो ॥ १० ॥ मूल भाषांतर. स्वरने स्वर परतें विकटपे लुक् आय. त्रिदशेशः नुं प्राकृत तिअसीसो थाय. अहिं ईशना स्वर परते श मां अबे, तेनो लुक् थयो . तेवीज रीते नि:श्वासोच्छ्वासौ नुं प्राकृत नीसासूसासो श्राय. अहिं जन्नास शब्दना उ पर बतें स मां अबे तेनो लुक् थयो . ॥ १० ॥
॥ढुंढिका ॥ बुक् त्रिदश ईश क ग चेति द बुक् सर्वत्र र लुक् शपोःसः अनेन श्र सुकू लोकात् अतः सेडों तिअसीसो। निश्वासोवास निर्छरोर्वा इति निषेधार्थ नि अंत्यव्यं० व लुकू लुंकि निरः दीर्घः नि नी सर्वत्र वः लुक् शषोःसः दनुत्साहौत्सनै कयौ उ ऊ अनेन बुक् लोकात् क ग ट डेति त् बुक् द्विवचनस्यबहुवचनं जसूशस ङसि दीर्घः जस् शसोर्बुक् नीसासूसासो ॥ टीका भाषांतर. स्वरने स्वर पर बतें विकटपे लुक आय. संस्कृत त्रिदश + ईश तेनुं प्राकृत तिअसीसो थाय बे. आप्रमाणे कगच सूत्रथी दनो लुक् थाय, त्रिअशईश एवं थयु. पठी सर्वत्र र लुक तथा शषोःसः सूत्रथी ति अस इस थयु. या चाखता सूत्रथी स मां रहेला अ नो लुक् थयो, अने अतःसे? सूत्रथी तिअसीसो रूप सिख
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मागधी व्याकरणम्. अयु. संस्कृत निश्वासोच्छ्रासौ नुं प्राकृत नीसासूसासो थाय बे. आप्रमाणे. शषोः सः सूत्रथी निश्वासोच्छास थाय. पठी निर्दुरोर्वा ए निषेधार्थ नि पनी अंत्यव्यं० सूत्रधी व नो लुक् अयो, टुकिनिरः एवडे दीर्घ अयो, एटले नि नो नी थयो. पनी सर्वत्र वः लुक सूत्रथी व नो लुक् थयो. पनी दनुत्साही त्सनै ऋथौ सूत्रथी उ नो ऊ अयो. पळी चाखता सूत्रथी स मां रहेला अ नो बुक् थयो. पनी लोक व्याकरणश्री कगटड सूत्रना नियमे त् नो लुक् थयो. पनी द्विवचनस्य बहु वचनं सूत्रथी बहु वचननो जस् आवे, पी जसशस् ङसि सूत्रथी दीर्घ अने जस शसोलुक अवाश्री नीसासू सासो रूप सिद्ध थाय जे. ॥१०॥
अंत्य व्यंजनस्य ॥११॥ शब्दानां यदत्यव्यंजनं तस्य खुर जवति । जाव । ताव । जसो । तमो । जम्मो । समासेतु वाक्य विनक्त्यपेक्षायामंत्यत्वमनंत्यत्वं च तेनोजयमपि जवति । सन्निनः । सनिस्कू । सऊनः सजयो । एतरुणाः ए श्रगुणा । तजुणाः तग्गुणा ॥ ११॥ मूल भाषातर. प्राकृतमां शब्दोना अंत्य (बेला ) व्यंजननो लुक् श्राय . यावत् तेना अंत्य व्यंजननो लुक् थई जाव थयु. तावत् नुं ताव थयु. यशस्त्र, तमसू, जन्मन् ए शब्दोना अंत्य व्यंजननो लुक् थवाथी बीजा नियमो लागी जसो, तमो जम्मो एवा रूप थाय बे. जो समासांत पद होय तो वाक्य तथा विनक्तिनो अपेक्षाए ते पदना व्यंजन- अंत्यपणुं अने अनंत्यपणुं बे, तेथी बंने गणाय जे. जेम के सभिक्षु अहिं सद्-भिक्षु तेमां पेहेला शब्दनो दू अंत्य उतां अंत्य न गणाय, तेथी सभिख्खू एवं रूप श्राय; तथा सज्जनः तेनुं सज्जणो, एतद्गुणाः तेनुं एअगुणा भने तद्गुणाः तेनुं तग्गुणा एवां रूप सिघ श्राय .॥ ११॥
॥ ढुंढिका ॥ अंत्यव्यंजन ६१ यावत् तावत् श्रादेर्योजः अनेन तबुक् । जाव ताव यशसू तमसू श्रादेर्योजः शपोःसः अनेनसबुक ११ श्रतःसे?। जसो । तमो । जन्मन् न्मोमः न्मस्य मः अनादौ हित्वं अतःसे? । जम्मो सन्निनुः संश्चासौ निकुश्चअनेन दबुकू क्षः खः कचित्तुबडौ दस्य खः द्वितीयपूर्वखस्यकः ११ क्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यंग्सूलुक् सनिरकू । सजानः सन् चासौ जनश्च सजानः श्रपदेन जबुक् अनेनसदो हित्वं नोणः सजाणो । एतद्गुणाः एतेषां गुणाः अनेन दलुकू क ग च जेतितबुक् १३ जशूशसूङसित्तो दो
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प्रथमःपादः। दीर्घः जसूशसोर्बुक् एश्रगुणा तद्गुणाः १३ ते च ते गुणाश्च तजुपाः श्रपदेनदलुक् जसूशसूङसित्तोपदीर्घः जसूशसोर्बुक् अना. दौहित्वं तग्गुणा ॥ ११॥ टीका भाषांतर. प्राकृतमां अंत्य व्यंजननो लुक् थाय जे. संस्कृत यावत् अने तावत् तेनुं प्राकृत जाव अने ताव थाय बे. आयोजः ए सूत्रथी जावत् तावत् एवं थयुं, पनी आ सूत्रथी अंत्यव्यंजननो लुक् थयो, एटले जाव अने ताव एवं रूप सिद्ध थाय ने. संस्कृत यशस् तमस तेनुं प्राकृत जसो अने तसो थाय . ते श्रा प्रमाणे- यशसू, तमसू तेने आोजः अने शषोःसः सूत्रो लागवाथी जससू, तमसू थाय. पठी आ सूत्रथी अंत्यव्यंजननो लुक् थतां जस, तम थाय, पळी अतःसे? सूत्र लागी जसो अने तमो एवां रूप सिद्ध थाय बे. जन्मन् शब्दने न्मोमः सूत्रथी न्म अक्षरनो म अझ अनादौ द्वित्वं सूत्रथी बिर्जाव थाय, तेथी जम्म अयु, पजी अतःसे? सूत्रथी जम्मो रूप सिद्ध श्रयु. संस्कृत सदभिक्षु नुं प्राकृत सभिरुखू श्राय बे. ते श्राप्रमाणे- सदभिक्षुः सारो नितु ( यति ) ते सन्निनु कहेवाय. सदभिक्षु अहिं पा सूत्रथी द् नो लुक् अयो. पठी क्षःखः क्वचित्तुबडौ सूत्रथी क्ष नो ख थयो, पनी बीजा पूर्व ख अक्षरनो क थयो, पनी कलीये सौ दीर्घः अने अंत्यव्यंजनए सूत्रोथी सभिख्खू रूप सिद्ध थाय जे. संस्कृत सज्जनः ( सारो माणस ) नुं प्राकृत सजणो थाय. सज्जनः ते शब्दने अपदेन नियमथी ज नो लुक् श्राय, पनी आ सूत्रथी अंत्य द् नो लुक् अयो, पठी बिर्जाव थयो. अने नोणः सूत्रथीन् नो ण थयो, एटले सजणो रूप सिद्ध थयु. संस्कृत एतद्गुणाः ( एमना गुणो )नुं प्राकृत एअगुणा थाय . आ सूत्रथी द् नो लुक् थाय, पजी क ग च ज सूत्रथी त् नो लुक् थाय, पनी जशशसूङसित्तो दो० सूत्रोथी दीघे थइ जस् शस् नो लुक् थाय, एटले एअगुणा रूप सिद्ध थयु. संस्कृत तद्गुणाः ( ते गुणो )नुं प्राकृत तग्गुणा थाय . तद्गुणा: अपदेन सूत्रथी द नो लुक् थाय. पगी जसूशसूङसित्तो दीर्घः सूत्र लागी जम् शसोलुक् सूत्र प्राप्त करी अनादौद्वित्वं सूत्रथी बिर्जाव करी तरगुणा रूप सिद्ध श्राय . ॥ ११ ॥
नश्रदोः ॥१२॥ श्रद् उद् इत्येतयो रंत्यव्यंजनस्य लुग न जवति सद्द हियं । सदा जग्गयं । उन्नयं ॥ मूल भाषांतर. न श्रत् उत् ए परछेद जे. अत् अने उत् ए बे उपसर्गना अंत्य व्यंजननो लुक् न थाय, जेम के, अद् अने दहिअं तेमां द् नो लुक् न थाय. श्रद अने दा तेमां पण द् नो लुक् न थाय. उग् अने गयं तेमां द स्थाने थयेला ग् नो लुक्न थाय; तेमज उद् अने नयं तेमां द स्थाने थयेला न् नो लुक् न पाय. ॥ १५॥
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मागधी व्याकरणम्.
॥ ढुंढिका॥ न ११ श्रत् उत् ६२ श्रत् पूर्वो धा, श्रदोधो दहःधास्थाने दह सर्वत्र र बुक् शपोःसः क्त प्र व्यंजनाददंतेऽत् लोकात् दुक ते दहि क ग च जेति तबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु० सदहिवे।श्रदव्यय पूवकं धा धा श्रझानं श्रद्धा निदाध्यः श्राङ् पूर्व इडेत् पुंसि चतो बुक् थालोपः बाहुलकारात् न खथघधनां कगटगेति प बुक् श्रनादौ हित्वं धस्य हित्वं द्वितीय पूर्वधस्य दः आदित्याए सर्वत्र र बुक् शषोःसः सदा उद् पूर्व प्रम डम हगमौ गतौ गम् पम् प्रहत्वे पम् पाहाधा नाम् उद् गबति स्म उन्नमतिस्म ग त्यर्थादकर्मकाच्च कतरिक्तप्र त इति यमिरमिनमिगमि मलुका क गट डेति द बुक् अनादौ हित्वं क ग चजेति तबुक् अवर्णो ११ क्लीबे सूम् मोनु० जग्गयं उन्नयं ॥ १२ ॥
टीका भाषांतर. न प्रथमा एकवचन श्रदुतोः षष्ठी विवचन, संस्कृत श्रद्धधितं नुं प्राकृत सद्दहिअं थाय. ते श्राप्रमाणे-श्रत् उपसर्ग पूर्वे एवो धा धातु, अदोधो दहः सूत्रथी धा ने आने दह थाय, पठी सर्वत्र र लुक् सूत्रथी र नो लुक् थाय, पनी शषोःसः थी सदह थयु. पनी क्त प्रत्यय आव्यो, पली व्यंजनाददंतेऽत् अने लोकात् सूत्रोथी लुक् करी क्त प्रत्यय परउते दहि थाय, पठी कगचजे ति सूत्रथी त् नो लुक् अश् क्लीवे मम् अने मोनुवार सूत्रोथी सद्दहिअं रूप सिद्ध श्रयु. संस्कृत श्रद्धा नुं प्राकृत सद्दा थाय बे.ते आ प्रमाणे- श्रधा (आस्था) श्रत् उपसगे पूर्वक धातु धा भिदादयः आङ् पूर्व इडेत् पुंसि च तो लुक इत्यादि नियमथी आ नो लोप थाय. पली बहुल अधिकारथी नन पण थाय खथघधभां, कगटग इत्यादि नियमोथी द नो लुक् थयो, पजी अनादौ हित्वं सूत्रथी ध नो बिर्ताव अयो, पनी द्वितीय ए नियमश्री पूर्व ध नो द थयो, पछी आत् सूत्रथी आप् आव्यो, पजी सर्वत्र र लुक अने शषोःसः सूत्रो लागी सदा सिद्ध श्राय ने. संस्कृत उद्गत नुं प्राकृत उग्गय श्रने उन्नत नुं उन्नय थाय . ते आ प्रमाणे- गम् (जq ) नम् ( नमवू ) आ बे धातु ने गत्यर्थदकर्मकाच सूत्रथी क्त प्रत्यय आव्यो. गम् + त नम् + त यमि रमि नमि गमि सूत्रथी म नो लुक् थयो, पछी कगटड सूत्रथी द् उडीगयो, पनी अनादौ द्वित्वं सूत्रथी बिर्ताव अयो, कगच जेति सूत्रथी त लुक् करी अवर्णो, क्लीवेसम्, मोनुस्वार सूत्रोथी उग्गयं अने उन्नयं रूप सिद्ध श्राय . एटले तेनो अधिक गति करेलुं श्रने उंचे नमेलु एवो अर्थ थाय ने. १५
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प्रथमः पादः ।
निर्झरोर्वा ॥ १३ ॥
निरडुर् इत्येतयोरंत्यव्यंजनस्य वा लुग् न जवति ॥ निस्सदं नीसहं । सहो । सहो । दुक्ख । दुहि ॥
२३
मूल भाषांतर. निर् छाने हुर् ए वे उपसर्गना अंत्य व्यंजननो विकल्पे लुकू न श्राय, ज्यारे लुकू न याय त्यारे निस्सहं एवं रूप याय, अने लुक् थाय त्यारे नीसह एवं रूप श्राय. तेवीज रीते दुस्स हो तथा दूसहो ने दुक्खओ दुहिओ एवा विकल्पे रूप याय. १३
॥ ढुंढिका ॥
निर् डर् ६२ वा ११ निर् सहू नितरांसहते अवइतिऽव् प्र० - नेन वा लुकू लुकिनिमित्तपदे शषसेशषसंवा र सक्लीबेसूम् मोनु० निस्सहं नीसहं दुर्सद् दुष्टं सहते वप्र०ानेन वा लुक्
किडरोवा पुरुपदे शषसेशषसं वा रस ११ अतः सेडः दुस्सहोदूसहो : दुष्ठानि इंडियाणि संजातानि यस्य सः तदस्य संजातंतारकादिज्यः इतच् इतच् प्र० श्रवर्णेवर्णस्य लुक् दुःखित इति जाते प्रथमे शषसेशषसंवार कगटडे तिसलुक् अनादौ द्वित्वं द्वि
पूर्वखस्यकः द्वितीये श्रनेन वा र लुक् खथघधनांखस्यदः कगचजेति तलुकू ११ यतः सेर्डोः दुखि । हि १३
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र् स्र
टीका भाषांतर. निर् फुर् ६२ वा ११ निर् उपसर्ग ने सह धातु, जे निरंतर सन कराय ते निस्सह कहेवाय. निर् सह तेने अबू सूत्री अब्रू प्रत्यय लागे, पती आ सूत्री विकल्पे र् नो लुक् थाय, निसह पनी लुक् निमित्त पदे शषसेशषसंवा सूत्र विकट र नो थयो क्लीबेस्रम् अने मोनु० सूत्रोथी निस्सहं ने नीसह एवा बे रूप सिद्ध थाय बे. दुर् उपसर्ग अने सहू धातु, दुष्टपणे जे सहन कराय ते दुसह अव् प्रत्यय लागी दुरसह पढी या सूत्रथी र् नो लुक् थयो, पढी लुकिडरो वा ए सूत्रथी पुरूरूप थाय ते पक्षे शषसेशषसंवा सूत्रथी विकल्पेर् नो स् थयो, एटले दुस्सहः अने दूसहः थयुं, पबी अतः सेड सूत्रथी दुस्सहो श्रने दूसहो रूप सिद्ध थयां डर् (दुष्ट) इंद्रियो उत्पन्न थइ बे जेने ते दुःखित कहेवाय. तदस्यसंजातंतारकादिभ्यइतच् सूत्रथी इतच् प्रत्यय याय, पढ़ी अवर्णेवर्णस्य सूत्रथी अ नो लुक् थयो, एटले दुःखित एवं रूप थयुं, पक्षी शषसे शषसंवा सूत्रथी र नो स् थयो, पछी कगटड सूत्रथी सू नो लुक थयो, पछी अनादौद्वित्वं तथा द्वितीय पूर्व ख नो क् थयो, एटले दुःखिखओ रूप थयुं. बीजा रूपमां या सूत्री विकल्पे र् नो लुक् थयो, खथघभां सूत्रथी ख
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मागधी व्याकरणम्.
२४
नो हथयो, पढी कगचजेति सूत्रथी त् नो लुक् पबी अतः सेड सूत्रधी दुख्खिओ दुहिओ एवा बे रूप थयां ॥ १३ ॥
स्वरेऽन्तरश्च ॥ १४ ॥
अन्तरो निरोश्चान्त्यव्यंजनस्य खरे परे लुग् न भवति अंतरप्पा | निरंतरं । निरवसेसं । डुरुत्तरं । दुरवगाहं । कचिद्भवत्यपि । तोवरि ॥
मूल भाषांतर. अंतर्, निर् अने दुर् ए शब्दोनो, अंत्य व्यंजननो स्वरपर बते अवश्य लुकू न थाय. लुकू अंतरप्पा निरंतरं दुरुत्तरं दुरवगाहं ए शब्दोमां अंत्य व्यंजन र नो लुक न थाय. कोइ ठेकाणे थाय पण बे, जेमके अंतोवारं अथवा अंतो उवरिं त्यां श्रत्य व्यंजननो लुक्न थयो. ॥ १४ ॥
॥ ढुंढिका ॥
स्वर ७१ अंतर ६१ च ११ अंतर् आत्मन् जस्मात्मनोः पोवा त्मस्प पोनादौ द्वित्वं प्पस्य न आणो राज वच्चन या अंत्य व्यं स् लुक् ह्रस्वः संयोगे श्रालोकात् अंतरप्पा निरंतर निरविशेषयोः सः शेषं संस्कृत सिद्धं ११ क्क़ीबे स् म् मोनु० निरंतरं निरवशेषं पुरः उत्तर पुरवगाह ११ लोकात् की बेस्म मो - नु० पुरुत्तरं पुरवगाहं अंतर ११ अव्यय० स् लुक् रः पदांते रस्य विसर्गः तोडा विसर्गस्य डोज इति डित्यं० लोकात् डंत उपरि११ पोवः क्कीबेसूम मोनु० जवरिं छतादौ वा इत्यनेन वा र लोपो जवति यत्र यत्र लोपः तत्र तत्र अंतोवरि इति स्यात् अन्यत्र तु तोवरि ॥ १४ ॥
टीका भाषांतर. स्वर ७१ अंतर ६१ च ११ संस्कृत अंतरात्मा नुं प्राकृत अंतरप्पा थाय बे. ते या प्रमाणे- अंतर् आत्मन- भस्मात्मनोः पोवा एसूत्री त्मनो प थयो, पबी अनादी द्वित्वं अहिं प्प न आणो एवं रूप न थाय तेमज आत्मानो आपण न रहे पीत्य व्यंजनस्य ए वडे स् नो लुक् श्रइ हस्व संयोगेआ ए लोक व्याकरणनो नियम लागवाथी अंतरप्पा रूप सिद्ध थयुं निरंतर निरवशेषयोः सः षस्यसः सूत्रधी
नो स् थयो, बाकी नुं संस्कृत प्रमाणे सिद्ध थाय बे. ११ क्लीबे सम् मोनु० तेथी निरंतरं निरवशेस ए रूप सिद्ध थाय बे. दुर् उपसर्गने उत्तर तथा अवगाह शब्द लगाडवा - थी दुरुत्तर तथा दुरवगाह एवा बे रूप थाय बे. ११ तेने क्लीबे सम् मोनु० ए नि
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प्रथमःपादः। बमधी दुरुत्तरं श्रने दुरवगाहं एवा बे रूप सिद्ध श्राय . संस्कृत अंतरउपरिनु प्राकृत अंतोवरि तथा अंतोउवरि एवां बे रूप थाय . ते श्राप्रमाणे. अंतर ११ शब्दने अव्यय० सूत्रथी स्नो लुक् थयो, पछी पदांते रनो विसर्ग थयो. पनी अतो डाविसर्गस्यडोउ सूत्रथी ड थर, पली लोकव्याकरणप्रमाणे डित्यंत सूत्रथी अंत्यनो लुक् थयो, त्यारे अंतउपरि ११ एवं रूप थयु, पळी पोवः क्लीबेसम् अने मोनु० सूत्रो लागी अंतउवरिं रूप थयुं, पजी अंतादौवा सूत्रथी विकटपे र नो लोप पाय, ज्यारे लोप थाय त्यारे अंतोवार एवं रूप श्राय अने बीजे पक्षे अंतोउवरि एबुं रूप थाय. १४
स्त्रियामाद विद्युतः ॥१५॥ स्त्रियां वर्तमानस्य शब्दस्यांत्यव्यंजनस्यात्वं जवति विद्युधब्दं वजयित्वा ॥ लुगपवादः ॥ सरित् । सरिथा ॥ प्रतिपद् । पाडिवथा ॥ संपद् । संपथा ॥ बहुलाधिकारादीपत्स्पृष्टतरयश्रुतिरपि ॥ सरिथा । पाडिवथा । संपथा ॥ श्रविद्युत इति किं ॥ वीहू ॥ मूल भाषांतर. स्त्रीलिंगे वर्तमान एवा शब्दनाअंत्यव्यंजननोआ थाय पण ते विद्युत् शब्दने वर्जीने थाय. अहिं लुक्नो अपवाद . सरित् शब्दनुं सरिआ रूप थाय. प्रतिपत् नुं पाडिवआ अने संपy संपआ रूप थाय. श्रा बहुलाधिकार के तेथी पत्स्पृष्टतर प्रयत्नथी यकारनुं श्रवण थाय , तेथी सरिया, पाडिवया, संपया एम पण पाय. मूलमा विद्यत् शब्दने वर्जीने कां बे, तेथी विद्युत्नु विज्जु रूप धाय.
॥ ढुंढिका.॥ स्त्री ७१ थात् अविद्युत् ५१ सरित् अनेन तथा ११ अंत्यव्यंजन ग्रनुक सरिया प्रतिपत् ११ प्रत्यादौऽडतः समृध्यादौ वा प्रमा सर्वत्र रलुक् पोवः अनेन त् था अंत्यव्यं० सलुक् पाडिवथा संपत् अनेन त ा ११ अंत्यव्यं सलुक् संपया बहुलाधिकारात् स्वत् स्पष्टतरे वाच्ये यस्य श्रुतिरपि सरित् प्रतिपत् अनेन त् या था अवर्णो यशेषपूर्ववत् सरिया पाडिवया संपया विद्युत् यप्पांजः यस्य जः अनादौ हित्वं जा अंत्यव्यंग लुक् ११ अक्कीबेण्दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् विमु १५ टीका भांषातर. स्त्री ७१ श्रात् अविद्युत् ५१ संस्कृत सरित् ११ शब्द तेने श्रा सूत्रथी आकार थयो, पनी अंत्यव्यंग सूत्रथी सू नो लुक् अयो, एटखे सरिआ थयु.
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मागधी व्याकरणम् प्रतिपत् ११ प्रत्यादौ डः सूत्रथी त नो ड अयो, पळी समृद्ध्यादौ वा सूत्रथी मनो आ थयो, एटले प्राडिपत् थयुं, सर्वत्ररलुक, पो वः श्रने श्रा सूत्रथी आकार थयो, पनी अंत्यव्यंजन सू तो लुक् थयो, एटले पाडिवआ रूप सिद्ध थयु. संस्कृत संपत् ११ नुं संपआ थाय बे. संपत् शब्दने श्रा सूत्रथी आ थाय, अंत्यव्यंजनस्य लुक सूत्रथी संपआ रूप सिद्ध पाय . बहुत अधिकारथी क्षत् स्पृष्टतर प्रयत्नमां यनुं पण श्रवण थाय, त्यारे सरित् प्रतिपत् ए शब्दोने श्रा सूत्रथी आने बदले या आय. अवर्णो सूत्र खागी य खगाडी बाकीना नियमो पूर्ववत् थाय त्यारे सरिया, पाडिवया, संपया इत्यादि रूप सिद्ध थाय. संस्कृत विद्युत्नूं प्राकृत विजु थाय . विद्युत् ११ पप्पांजः सूत्रथी य् नो ज थाय, पनी अनादौ हित्वं सूत्रथी विडतू थाय, पनी अंत्यव्यं० सूत्रथी तू नो लुक् थाय. अक्लीवे. नियमथी दीर्घ थाय, पनी अंत्यव्यं० सूत्रथी वित्नक्तिना सू नो लुक् थाय, एटले विजु रूप सिख थाय. १५
रोरा॥१६॥ स्त्रियां वर्तमानस्यांत्यस्य रेफस्य रा इत्यादेशो जवति ॥ श्रात्वापवादः ॥ गिरा । धुरा । पुरा ॥ मूल भाषातर. र ६१ रा ११- स्त्रीलिंगमा वर्तमान एवा अंत्य व्यंजनना रेफ ने रा एवो आदेश थाय. आकारनो अपवाद . जेमके गिर शब्दनो गिरा, धुर शम्दनो धुरा अने पुर् शब्दनो पुरा थाय.
॥ढुंढिका॥ र ६१ रा ११ गिर पुर् धुरः अनेन र श्रा अंत्यव्यंन्सुलुकू गिरा पुरा धुरा ॥१६॥ टीका भाषांतर. र ६१ रा ११ गिर पुर अने धुर् ए शब्दोने आ सूत्रथी आकार थाय, पनी अंत्यव्यंजन स नो बुक् थाय, एटले गिरा पुरा, धुरा एवा रूप सिद्ध धाय ॥ १६॥
दुधो हा ॥१७॥ शुध् शब्दस्यांत्यव्यंजनस्य हादेशो जवति ॥ बुहा ॥ मूल भाषांतर. कुध् शब्दना अंत्य व्यंजनने हा एवो आदेश थाय. संस्कृत क्षुध् शन्दनुं प्राकृत छुहा एवं रूप थाय .
॥ढुंढिका ॥ दुध् ६१ हा ११ तुध् ११ अनेन धू हा ११ बा दयादौ कः तु अंत्यव्यंग सलुक् बुहा ॥ १७ ॥
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प्रथमःपादः।
मूल भाषांतर. दुध् ६१ हा ११ संस्कृत कुध् शब्दने आ सूत्रथी ध् नो हा अयो. क्षुहा पली छाध्यादौ सूत्रथी क्ष नो छ थयो, एटले छुहा थयु, पनी अंत्यव्यं० सूत्रत्री विनक्तिप्रत्यय स नो लुक् अयो, एटखे छुहा एवं रूप सिद्ध श्रायः ॥ १७ ॥
शरदादे रत्॥१७॥ शरदादे रंत्यव्यंजनस्याद् जवति ॥ शरद् सरनिषक निषठ ॥ मूल भाषांतर. शरद् विगेरे शब्दोना अंत्य व्यंजननो अत् (अकार) थाय. सं. स्कृत शरद् शब्दनुं सरओ अने भिषक् शब्दनुं भिसओ रूप पायजे.
॥ढुंढिका ॥ शरदादि ६१ अत् ११ शरत् निषक ११ शषोः सः अनेन तस्य श्रः अतःसे? डित्य सर निसः ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. शरदादि ६१ अत् ११ संस्कृत शरद श्रने भिषक् शब्द , तेने शषोःसः सूत्रथी सरद भिसक एवं थयु. पीश्रा सूत्रथी अंत्य व्यंजन त् तथा क नो अ थयो. सरअ भिसअ एवं थयु. पठी अतःसेझै तथा डित्यं० सूत्रोधी सरओ अने भिसओ एवां रूप सिघ थाय .
दिक्प्राटषोः सः॥२५॥ एतयोरंत्यव्यंजनस्य सो जवति ॥ दिसा ॥ पाजसो ॥ मूल भाषांतर. दिक श्रने प्रावृष् शब्दना अंत्य व्यंजननो स श्राय . संस्कृत दिक् शब्दनो दिसा अने प्रावृष् शब्दनो पाउसो एवो प्राकृत शब्द प्राय ॥१॥
॥ढुंढिका ॥ दिक् प्रावृष् ६ स ११ दिक् अनेन कू स श्रादित्याप अंत्य व्यंग सलुक दिसा प्रावृषा प्रावृट् शरत्त पुंस्त्वं अनेन षस्य सः ११ श्रतः । सेडों पाउसो ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. दिक् प्रावृष ६२ स ११ संस्कृत दिक् शब्दने था सूत्रथी क नो तू थयो, पनी आत् ए नियमथी आकार थयो, अने अंत्यव्यं० वडे विजक्तिप्रत्यय सू नो लुक् थई दिसारूप सिख थयु. संस्कृत प्रावृषू शब्दने प्रावृट् शरत सू.
थी पुलिंगपणुं करी आ सूत्रथी ष् नो स श्रयो पनी अतासे? सूत्रथी पाउसो रूप सिद्ध थयु.॥१ए॥
आयुरप्सरसोर्वा ॥२०॥ एतयोरंत्यव्यंजनस्य सो वा नवति ॥ दीहाउसो । दीहाऊ॥श्रहरसा। शहरा॥
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मागधी व्याकरणम् . मूल भाषांतर. संस्कृत आयुष् अने अप्सरस शब्दना अंत्यव्यंजननो सू विकहपे थायः संस्कृत दीर्घायुसू शब्दना विकल्पे दीहाउसो तथा दीहाऊ एवां बे रूप थाय ने. संस्कृत अप्सरल शब्दना अच्छरसा तथा अच्छरा एवां रूप थाय .
॥ टुंढिका ॥ आयुस् अप्सरस ६५ वा १५ दीर्घायुसु सर्वत्र रखुकू ख थ घ ध० धस्य ह क ग च जे ति यूयुक् अनेन वा सू स अतः से? दीदा सो पदे दीर्घायुसू सर्वत्र रखुकू ख थ प ध नां घस्य हः क ग च० यदुक् अंत्यण्सूलुक् ११ अक्तीबे दीर्घः उ ऊ अंत्यव्यंग्सूलुक् दीहाऊ अप्सरस् अनेन वा सू सा श्रादित्यापू हखायाश्चप्सा प्स्यस्य छः श्रनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उस्य चः अंत्यव्यंग सबुक अचरसा पक्ष अप्सरसूअंत्यव्यंग्सलुक्श्रादित्यापू शेषं पूर्ववत् अठरा ॥२०॥ टीका भाषांतर. आयुस् अप्परम् ६५ वा १२ दीर्घायुसू शब्दने सर्वत्र रलुकू सूत्रथी दीघायुस् थयु, पनी ख थ घ ध० सूत्रधी घ नो ह थयो, एटले दीहायुम् थयु, पनी क ग च ज सूत्रथी य नो लुक् अयो, त्यारे दीहाऊस थयु, पनी आ सूत्रधी विकटपे स थाय, पनी अतःसे? सूत्रथी दीहाऊसो रूप सिद्ध थयु. विकटपपई दीर्घायुस शब्दने सर्वत्र रलुक, ख थ घध भां घस्य हः, क गच यलुक अंत्यव्यंजन सबुक्, ए नियमो लागी अक्लीये सौदीर्घः सूत्रथी ऊकार दीर्घ थयो, पनी अंत्यव्यंजन सूत्रथी विनक्तिनो स् उडी जवाथी दीहाऊ एवं रूप सिद्ध थयु. संस्कृत अप्सरसने श्रा सूत्रथी विकटपे म नो स करी आप् सूत्रथी आकार थाय, पनी हवाछयश्च सूत्रथी प्स नो छ थयो, पनी अनादौ द्वित्वं सूत्रथी विर्ताव करी वितीय पूर्व छ नो च थयो, पळी अंत्यव्यंजनसूत्रथी स नो लुक् श्राय, एटले अच्छरसा रूप सिद्ध थयु. विकटपपदे अप्सरम् शब्दना अंत्यव्यंजनना सू नो लुक् करी आत् सूत्रथी आप श्रावी बाकीनी साधनिका पूर्वनी जेम करवी, एटले अच्छरा रूप सिद्ध थाय बे.
ककुन्नो दः॥॥ ककुनूशब्दस्यांत्यव्यंजनस्य हो जवति ॥ कहा ॥ मूल भाषांतर. ककुल् शब्दना अंत्यव्यंजननो ह थाय. संस्कृत ककुभ् शब्दर्नु प्राकृत कउहा रूप सिद्ध थाय बे.
॥ढुंढिका.॥ ककुन्नू ६१ ह ११ क ग व जे ति कलुक् अनेन जस्य हः श्रादित्याप ११ अंत्यव्यंग सबुक् हा ॥१॥
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a
प्रथमःपादः।
टीका भाषांतर. ककुन ६१ ह ११ संस्कृत ककुन शब्दने क ग च जे ति सूत्रथी क् नो लुक् थयो. पनी आ सूत्रथी भनो ह थयो, पठी आत् सूत्रथी आप् श्राव्यो, पनी अंत्यव्यंजनस्य सूत्रथी विनक्तिप्रत्यय सूनो लुक् थयो, एटखे कऊहा रूप सिझ थयु. ॥२१॥
धनुषो वा ॥३॥ धनुःशब्दस्यांत्यव्यंजनस्य हो वा जवति ॥ धणुहं । धणू ॥२५॥ मूल भाषांतर. धनुष शब्दना अंत्य व्यंजननो ह विकटपे आय. धनुष् तेनुं धणुहं अने धणू एम विकटपे बे रूप थाय बे. ॥२५॥
॥ ढुंढिका ॥ धनुष् ६१ वा ११ धनुष ११ नोणः अनेन षस्य हः क्लीवेस म् मोनु धणुहं पदे धनुष नोणः अंत्य षबुक ११ अक्लीबे सौ दीर्घः णु णू अंत्यव्यंग सबुक् धणू ॥२२॥ टीका भाषांतर. धनुषु ६१ वा ११ धनुष् शब्दने नोणः सूत्रथी धणुष् अयु, पनी श्रा सूत्रथी ष नो ह अयो. क्लीबे सम् सूत्रथी सू नो म थयो. पनी मोनुखार लागी धणुहं रूप सिद्ध थयु. विकटपपदे धनुषूने नोणः पठी अंत्यव्यं. वडे षनो खुक् अयो. अक्लीबे सौ दीर्घः सूत्रथी णु नो णू अयो, पनी अंत्यव्यं० लागी सू नो खुक् थई धणू रूप सिद्ध थाय, ॥२२॥
मोनुस्वारः॥१३॥ अंत्यमकारस्यानुस्वारो जवति ॥ जलं फलं वळं गिरि पेठ ॥ कचिदनंत्यस्यापि ॥ वणम्मि । वणं मि ॥२३॥
मूल भाषांतर. प्राकृतमां अंत्य मकारनो अनुस्वार थाय. जेमके जलं फलं वच्छं गिरि पेच्छ इत्यादि रूपो सिम थाय जे. ॥ २३ ॥
॥ढुंढिका ॥ म ६१ ऽनुस्खार ११ जलफल ११ क्लीवे सू म् ऽनेन अनुखारः जलं फलं वृक्ष ११ रुतोऽत् वृ व कः खः कचित्तु बडौ क्षस्य बः ऽनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उ च २१ ऽमोस्य बुक् अनेनाऽनुखारः वठं गिरि १ शेषेऽदंतवान् श्त्युक्तादमोऽस्य श्त्यबुक् अनेन अनुसारः गिरिं दृशण्डशो निश्रपेठ इति दृशूस्थाने पे उसुमुविध्यादिब्वि
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मागधी व्याकरणम्. ति हि सु ऽतजाखिजा स बुक पेठ वन र । ७१ डेऽम्मि ङिस्थाने म्मि नोणः क्वचिदनंतस्याप्यनेन मकारस्यानुखारः वणम्मि वर्ण मि ॥२३॥ टीका भाषांतर. म ६१ अनुस्वार ११ संस्कृत जल तथा फलने क्लीवे म् म् सू. श्रीसू नो म् करी या सूत्रथी अनुस्वार आय एटले जलं फलं रूप सिह थाय. वृक्षनुं वच्छं थाय . वृक्ष शब्दने ऋतोऽत् सूत्रथी वृक्ष थयु. पली क्षःखःकचित्तु छडौ सूत्रधी क्ष नो छ अयो, पनी अनादौ द्वित्वं अने द्वितीय० नियमयी पूर्व छ नो च करी अमोऽस्य लुक् अने आ सूत्रथी अनुस्वार करी वच्छं रूप सिद्ध थाय . गिरि शब्दने शेषे अंदतवत् ए नियम के तेथी अमोऽस्य ए सूत्रथी अनो लुक् थाय, अने श्रा सूत्रथी अनुस्वार करवाथी गिरिं रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत दृशनुं प्राकृत पेच्छ थाय वे. दृशू शब्दने दृशो निअच्छपेच्छ सूत्रथी दृशूने स्थाने पेच्छ श्राय. दुसुमुविध्यादिवितिहिसुअतइजखिज्ज' सूत्रथी सूनो लुक् थाय तेथी पेच्छ रूप थाय. संस्कृत वनने डेऽम्मिए सूत्रथी डिस्थाने म्मि थाय, पनी नोणः कोश्ठेकाणे था सूत्रधी अंते श्रावेला न होय तेवा मकारनो पण अनुस्वार थाय एटले वणम्मि अने वणंमिएवां रूप थाय.॥२३॥
वा स्वरे मश्च ॥२४॥ अंत्यमकारस्य स्वरे परेऽनुस्वारो वा जवति पदे सुगपवादो मस्य मकारश्च नवति ॥ वंदे उसनं अजिथं ॥ उसनमजिथं च वंदे ॥ बहुलाधिकारादन्यस्यापि व्यंजनस्य मकारः ॥ साक्षात् । सक्खं ॥ यत् जं ॥ तत् । तं ॥ विष्वक् । वीसुं ॥ पृथक् । पिहं ॥ सम्यक् । सम्मं ॥ हं श्हयं ॥ श्राले यमित्यादि ॥ २४ ॥ मूल भाषांतर. प्राकृतमा आगल स्वर आवे तो अंत्य मकारनो विकल्पे अनुस्वार थाय. विकटप पक्षे लुगनो अपवाद एटले मकार नो मकार श्राय जे. जेम संस्कृत वंदे ऋषभ मजितं तेनुं वंदे ऊसहं अज्जियं तथा उसहमजियं च वंदे एम थाय. बहुल अधिकार चाले जे, तेथी बीजा व्यंजननो पण मकार पाय. संस्कृत साक्षात्नु सक्खं वाय. यत्नु जं थाय, तत्नु तं श्राय. विष्वक्तुं वीमुं, पृथक्नु पिहं, सम्यक्तुं सम्मं, इहं नुं इहयं श्रने बालेचुय इत्यादि रूप थाय . ॥ २५॥
॥ टुंढिका ॥ वा ११ खरे ७१ म ६१ वा ११ वदङ् स्तुत्यजिवादनयोः उदितः खरानोतः वदावर्त० एकर्तर्यवदन्यः शमा अनुग् स्यादेत्यपदे
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प्रथम पादः। श्रलोकालोकात् वंदे रुपनं उत् रुत्वादौ उशषोः सः ख व घधनांजस्यहः१ मोस्य लुक् अनेन वाऽनुस्वारः उसहं अजित १ कग च जेति तक थमोऽस्य बुक् अनेन वाऽनुस्वारः अजियं पके उसनम् अजियं श्रत्र व्यंजनेति मस्य लुकि प्राते थनेन मकारोमध्यैवलोकात् उसनमजियं च सादात् ह्रस्वः संयोगे सः स दः खः कचित्तु बडौ क्षः खः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्वस्य खस्य कः वा ऽव्ययोरखातादावदातः था अ बहुलाधिकारात् अनेनान्यस्यापि व्यंजनस्य मकारः अत्र तम् अनेन वा अनुस्वारः सकं वयत तप्त श्रादेोजः बाहुलकात् तम् अनेनानुस्वारः जं तं विष्वक सर्वत्र बुक ध्वनिविष्वचोरुःषषु शषोः सः बुप्त यवरशषसांशषसां दीर्घः वि वी बाहुसकात् कू म् अनेनानुस्वारः वीसुं पृथक् श्मृतौ वृष्टवृष्टि पृथङ्मृदंगनप्तृके केप्टपिपृथकि धोवा इति थस्य विकल्पेन ध प्राप्तौ पः खथयधनां घस्य हः । बाहुलकात् कम् अनेनानुस्वारः पिहं। सम्यक् अधोमनयां ययुक् धनादौ हित्वं मः म बाहुलकात् कम् अने नानुस्वारः सम्मं श्ह श्दकः ७१ पत्राव्यय वासुकि प्राप्तेऽनेन ङि स्थाने म् कगच जेति कबुक् श्रवोंनुस्वारः । हं श्हयं अथवा प्रकारांतरेण धक् धद् श्रव्ययस्यसबुक् इत्कृपादौ ख थघ धनां धस्य हः अनेन कदोमः क ग च जेति कलुक् अवर्णोऽयो अनेन अनुस्वारः हं श्यं श्लिषंतू थालिंगने श्लिष् आपूर्वः श्राश्लेषनाय आश्लेष्टुः शक घुषझारग्नलंज तुम् प्र० लघोरुपांत्यस्य गुणः श्लि श्ले तवर्गश्च वर्गष्टवर्गान्यां तमाष्टस्यानुष्टुष्टस्य तः अनादाविति हित्वं प्राप्ते न दीर्घानुस्वारादिति निषेधः तैलादौ वा हित्वं मोनु विंशत्यादेच्क् अनु लुक् स्वार्थे कश्च वा क प्र० ११ अनेन सिस्थाने म अनुस्वारश्च० क गट ड त द प या शबुक् क ग च जेत्यादिना कलुक् थालेछुथं ॥२४॥ टीका भाषांतर. वा ११ स्वर ७१ म ६१ वा ११ संस्कृत वंदे ऋषभमजितं तेनुं प्राकृत वंदे उसहं अजियं थाय. वदङ् धातु स्तुति श्रने वंदना करवामां प्रवर्ते
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३२
मागधी व्याकरणम्. ने, तेने उदितः स्वरानोतः वदावर्त० इत्यादि सूत्रोथी वंदने ए प्रत्यय लावी कर्तर्य वभ्यः शवप्र० सूत्रथी अ आवे, अने अलुक स्यादेत्यपदे सूत्र लागी लोक अने श्रखोकव्याकरणश्री वंदे रूप सिद्ध थाय. षन शब्दने ऋत्वादि ऋउ शषोःसः अने खथ घ ध भां भस्यहः सूत्रो लागवाथी उसह रूप सिद्ध थाय, पनी मोऽस्यलुक्ने
आ सूत्रथी विकटपे अनुस्वार वाथी उसहं रूप सिद्ध श्राय. संस्कृत अजित शब्दने क ग च ज सूत्रथी त् तो लुक् अयो, पनी अमोऽस्यलुक सूत्र लागी आ सूत्रवडे विकहपे अनुस्वार अयो एटले अजियं रूप सिद्ध थयु. विकटपपदे उम्रभम् अजियं तेमां व्यंजन सूत्रथी म् नो लुक् श्रवा श्राव्यो पण आ सूत्रथी मकारनो मकारज पाय तेथी लोकव्याकरणथी उसभमजियं एवं रूप श्राय. संस्कृत साक्षात्नुं प्राकृत सक्खं थाय. साक्षात् शब्दने ह्रस्व थई संयोगे सः सूत्रथी स थयो, पनी क्षः खः कचित्तुछडौ सूत्रथी क्ष नो ख थयो, पनी अनादौ द्वित्वं नियम लागी द्वितीय पूर्वस्य सूत्रधी ख नो क थयो, पी वाऽव्ययोत्खातादावदातः सूत्रथी आकारनो अ थयो एटले सक्खे आयुं, पी बहुलाधिकारथी था सूत्रवडे बीजा व्यंजननो मकार थयो, पनी तम् लागी था सूत्रथी विकटपे अनुस्वार थयो त्यारे सकं रूप थयु. संस्कृत यत् श्रने तत् तेना प्राकृत यं तं श्राय . यत् तत् तेने आर्योजः सूत्रथी य् नो ज थयो, पळी बाहुलक अधिकारथी अम् थई या सूत्रथी अनुस्वार थइ जं तं एवां रूप सिख थाय. संस्कृत विष्वनुं प्राकृत वीसुं थाय. विष्वक् शब्दने सर्वत्र लुक् तथा ध्वनिविष्वचोरुः सूत्र लागी शषोःसः प्राप्त थया पी लुप्तयवरशषसां शषसां दीर्घः सूत्रथी दीर्घ थाय, पजी बाहुलकाधिकारथी आ सूत्रवडे अनुस्वार थवाथी वीमुं रूप सिख थाय. संस्कृत पृथकनुं प्राकृत पिहं थाय बे. पृथक् शब्दने इदुतोकृष्ट वृष्टि पृथङ् मृदंगनृप्ते के ए सूत्रथी पूनुं पिथयुं पली पृथकि धोवा सूत्रथी ने स्थाने विकटपे धू थवा आव्यो, पण विकटप पदे खथ घध भां सूत्रथी थ नो ह थयो, पनी बाहुलकाधिकारश्री क् नो म् अई अनुस्वार अयो एटले पिहं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत सम्यक शब्दनुं प्राकृत सम्म थाय. सम्यक् शब्दने अधो मनायां सूत्रथी यू नो खुक् थयो, पनी अनादौ द्वित्वं करी मनो वि व अयो. बाहुलक अधिकारथी क नो म करी श्रा सूत्रधी अनुस्वार थाय एटले सम्म रूप सिद्ध पाय जे. संस्कृत इह अने इहक नुं प्राकृत इहं इहयं थाय . इह इहक शब्दने अव्ययपणाने सीधे लुक् थवा श्राव्यो,पण आ सूत्रथी सप्तमीना प्रत्यय डिने स्थाने म थाय, अने कग च ज सूत्रथी क नो लुक् थाय. पठी अवर्ण तथा अनुस्वार थई इहं तथा इहयं रूप सिद्ध थाय . अथवा बीजे प्रकारे संस्कृत ऋधक तथा ऋध दु शब्दनां रूप इहं अने इहयं थाय ने. ऋधक ऋधद् शब्दने अव्ययस्य सलुकू नियम लागी इत्कृपादौ सूत्रथी ऋनोई थाय, पनी खथ घ० सूत्रधी ध नो ह थाय, पनी आ सूत्रथी बेला क द नो म्म अयो, पनी कग च ज सूत्रथी कनो लुक् अश् अवर्णोऽयो लागी आ सूत्रथी अनुस्वार अयो एटखे इहं श्रने इहयं रूप प्राय बे. संस्कृत आश्लेष्टुनुं प्राकृत आलेडुअं थाय . प्र
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प्रथमःपादः।
३३ थम श्लिषंतू आलिंगने एटले श्लिष् धातु श्रालिंगनमा प्रवर्ते . आङ् उपसर्ग पूर्वे आव्यो एटले आश्लिष् अयु. जे आलिंगन करवाने माटे होय ते आश्लेष्टु कहेवाय. आश्लिष् शब्दने शकघुषज्ञा रग्भलंभ० सूत्रथी तुम् प्रत्यय आव्यो, पनी लयो रुपांतस्य गुणः सूत्रथी गुण थयो एटले श्लि नो श्ले यो पनी तवर्गश्चवर्गष्ट वर्गाभ्यां० सूत्रथी ष्ट करी अनुष्टेष्टस्यतः तथा अनादौ० नियमश्री दिवि प्राप्त श्रवा श्राव्यो, पण नदीघोंनुस्वारात् सूत्रथी निषेध थयो, पनी तैलादीवा बित्वं श्रने मोनुस्वारः पनी विंशत्यादेर्लुक् अनुस्वार लुक् श्रया पठी स्वार्थे कश्चवा सूत्रथी विकटपे क प्रत्यय आव्यो, पी चालता सूत्रथी सि स्थाने म तथा अनुस्वार थयो, पली कगटड तदपय० सूत्रथी श नो लुक् थयो, अने कगचज नियमश्री क नो लुक् अयो एटले आलेझुंअं रूप सिम थयुं ॥२४॥
ङञणनो व्यंजने ॥ २५॥ ङाणन इत्येषां स्थाने व्यंजने परे अनुखारो जवति ॥ङ। पङ्क्तः। पंती ॥ पराङ्मुखः। परंमुहो ॥ ज । कञ्चुकः । कंचुढे ॥ लाञ्बनं । लंबनं ॥ण । षएमुखः। बंमुहो ॥ उत्कएग । उकंग ॥न।
सन्ध्या । संका ॥ विन्ध्यः। विजो ॥ २५॥ _मूल भाषांतर. संस्कृतमां आवेला ङ्, ञ् , ण् अने न ए व्यंजनोनी श्रागल जो बीजो व्यंजन श्राव्यो होय तो तेमने स्थाने प्राकृतमां अनुस्वार थाय . इ नुं उदाहरण पङ्क्तिः तेनुं पंती थाय. पराङ्मुखः तेनु परंमुहो वाय. नुं उदाहरण - कञ्चुकः नुं कंचुओ थाय. लाञ्छनं नुं लंछनं थाय. णू नुं उदाहरण उत्कंठा नुं उकंठा थाय. न् नुं उदाहरण - सन्ध्या नुं संझा अनेविन्ध्यः नुं विको आय. ॥२५॥
॥ ढुंढिका ॥ ङ् च न च ण् च न च ङाणन् तस्य ६१ व्यंजन ७१ पति अनेन डस्य अनुस्वारः कगटडेत्यादिना क् बुक् ११ अक्लीबेसौ दीर्घः अंत्यव्यंग स् बुक् पंती । पराङ्मुख ह्रखः संयोगे अनेनङस्य अनुस्वारः खथघधनां खस्य हः परंमुहो । कंचुकः लांबनं ह्रस्वः संयोगे ला ल अनेन अस्यानु० क ग च जेति कबुक् नोणः ११ श्रतः से? डित्यंग क्लीचे स्म् मोनु कंचू । लंबणं षएमुखः षट् समीशावसुधासप्तपर्णेष्वादेश्वः षस्य बः अनेन णस्यानुस्वारः खथयधनां खस्य हः ११ डतः सेडोंः उम्मुहो उत्कंठा कगटडेप्ति
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३४.
मागधी व्याकरणम्. तबुक् अनादौहित्वं अनेन णस्यानुखारः उकंग संध्या अनेन नस्याऽनुखारः साध्वसंध्यह्यांफः ११ अंत्यव्यंग सलुक संजा विंध्यः ११ अनेन नस्यानुखारः साध्वसध्यह्यांकः धस्य ज्ञः ११ 'अतः से? विंको ॥२५॥ टीका भाषांतर. डञणन ६१ व्यंजन ११ झ् ञ् ण् अने न ए व्यंजनोनी पनी जो परव्यंजन आवेतो तेमने स्थाने अनुस्वार थाय. संस्कृत पंक्ति नुं प्राकृत पंती थाय बे. पङ्क्ति शब्दने आ सूत्रथी ङ् नो अनुस्वार थाय. कगटड० सूत्रथी क् नो लुक् श्राय, अक्लीवे सूत्रथी दीर्घ श्राय. पनी अंत्यव्यं० सूत्रथी अंत्य सू नो लुक् थाय त्यारे पंती रूप सिद्ध श्राय. संस्कृत पराङ्मुखः नुं प्राकृत परंमुहो श्राय . परांङ्मुख शब्दने हस्वः संयोगे सूत्रथी ह्रस्व थाय, पजी आ सूत्रथी ङ् नो अनुस्वार थाय, पनी खथघधभां सूत्रथी ख नो ह थाय, पनी अतःसे? पामी परंमुहो रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कञ्चुकः अने लाञ्छनं नुं प्राकृत कंचुओ अने लंछनं थाय बे. कञ्चुकः लाञ्छनं शब्दने ह्रस्वः सूत्रथी लानन ना ला नो ल थयो, पीथा सूत्रथी ञ् नो अनुस्वार अयो. कगचज सूत्रथी क नो लुक् थयो. पनी नोणः तथा अतः से? सूत्रो लागे, पनी डित्यंग क्लीबे सम् अने मोनु० सूत्रो लागी कंचुओ अने लंछनं रूप सिद्ध श्राय. संस्कृत षण्मुख नुं प्राकृत छम्मुहो थाय . षण्मुख शब्दने षट्समीशावसुधासप्तपर्णेष्वादेच्छः सूत्रश्री ष नो छ अयो, पनी आ सूत्रथी ण् नो अनुस्वार थयो, पी खथघध भां० सूत्रथी ख नो ह थयो, अने अतःसे? सूत्र लागी छम्मुहो रूप सिद्ध थयुं संस्कृत उत्कण्ठा नुं प्राकृत उक्कंठा थाय . उत्कण्ठा शब्दने कगटड सूत्रथी त नो लुक् अयो, पजी अनादौदित्वं सूत्र लागे, अने आसूत्रथी ण नो अनुस्वार थयो एटले उक्कंठा रूप सिद्ध थयु. संस्कृत सन्ध्या नुं प्राकृत संझा थाय . सन्ध्या शब्दने आ सूत्रथी न नो अनुस्वार थयो. पठी साध्वसध्यह्यांझः सूत्रथी ध्य नो झ थयो. पनी अंत्यव्यंजन० सूत्रथी सू नो लुक् अयो, एटले संझा रूप सिख थयु. संस्कृत वन्ध्या नुं प्राकृत विंझो श्राय जे. वन्ध्या शब्दने आ सूत्रथी न् नो अनुस्वार अयो, पळी साध्वसध्यह्यांझः सूत्रथी घ नो झ थयो, पजी अतः सेों सूत्र लागी विंझो रूप सिद्ध थयु.॥ २५॥
॥वक्रादावंतः॥२६॥ वक्रादिषु यथादर्शनं प्रथमादेः खरस्यांत श्रागमरूपो अनुखारो नवति ॥वंकं । तंसं। अंसू ।मंसू। पुर। गिळं मुंढा पंसू बुंध कंकोमो कुंपलं दंसणं विबिउँ गिठी मंजारो एष्वाद्यस्य ॥ वयंसो म. एंसी मणंसिणी मणंसिला पडंसुश्रा एषु द्वितीयस्य ॥ श्रवरिं ।
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प्रथमःपादः। श्रणित्तयं । अश्मुंतयं । अनयोस्तृतीयस्य ॥ वक्र त्र्यस्त्र अश्रु श्मश्रु पुछ गुड मून् पशु बुध्न कर्कोट कुड्मल दर्शन वृश्चिक गृष्टि मार्जार वयस्य मनखिन् मनस्विनी मनःशिला प्रतिश्रुत् उपरि अतिमुक्तक इत्यादि ॥ क्वचिछंदःपूरणेपि ॥ देवनागसुवएणं ॥ कचिन्ननवति ॥ गिही । मजारो । मणसिला ॥ आर्षे मणो सिला। अश्मुत्तयं ॥ २६ ॥ मूल भाषांतर. वक्रादि शब्दोने विषे यथादर्शन वडे प्रथमादि स्वरने अंत आगमरूप अनुस्वार थाय जे. संस्कृत वक्र तथा व्यस्त्रनुं प्राकृत वंक अने तंसं थाय ने. संस्कृत अश्रु अने स्मश्रु नुं प्राकृत अंसू अने मंसू थाय ने. संस्कृत पुच्छ तथा गुच्छ नुं प्राकृत पुंछं अने गुंछं थाय जे. संस्कृत मूर्धन् नुं प्राकृत मुंढा थाय ने. संस्कृत पशु नुं प्राकृत पंसू थाय जे. संस्कृत बुध्ननुं प्राकृत बुंधं थाय . संस्कृत कर्कोट नुं प्राकृत कंकोडो थाय जे. संस्कृत कुइमलनु प्राकृत कुंपलं श्राय ने. संस्कृत दर्शन नुं प्राकृत दंसणं थाय ने. संस्कृत वृश्चिकनुं प्राकृत विछिओ थाय बे. संस्कृत गृष्टिनुं प्राकृत गिंठी थाय . संस्कृत मार्जारनुं प्राकृत मंजारो थाय . आ सर्व शब्दोमां प्रथम आदि शब्दनो अनुस्वार श्रयेलो . संस्कृत वयस्यनुं प्राकृत वयंसो श्राय छे. संस्कृत मनस्विन्नुं प्राकृत मणंसी आय बे. संस्कृत मनस्विनी नुं प्राकृत मणंसिणी थाय जे. संस्कृत मनःशिला अने प्रतिश्रुत् ना प्राकृत मणंसिला अने पडंसुआ थाय . आ शब्दोमां बीजा शब्दनो अनुस्वार श्रयेलो . संस्कृत उपरि, अतिमुक्तक ना प्राकृत अवरिं, अणितयं अथवा अइमुंतयं थाय बे. आ शब्दोमां त्रीजा अदरनो अनुस्वार श्राय . को ठेकाणे बंद पूरवामां पण थाय बे. जेमके देवनाग सुवण्णं को वेकाणे पाय पण नहीं. जेम के गिट्टी,मझ्झारो, मणसिला मणासिला आर्ष प्रयोगमां मणोसिला थाय . अने अइमुत्तयं पण थाय. ॥ २६॥
॥टुंढिका ॥ वक्रादि ७१ अंत ११ वक्र व्यस्त्र क्लीवे स्म् मोनु वंकं तंसंऽश्रु श्मश्रु श्रादेः श्मश्रु स्थाने स् बुक् सर्वत्र र बुक् शषोःसः अनेनानुखारः ११ क्लीबे सम् मोनु० अक्लीबेसौ दीर्घः अंत्यव्यंजनस्थाने श्रा अंत्यव्यं स बुक् अंसू मंसू पुछ गुठ ११ शषोः सः अनेनानुखारःलीबे सम् पुंडं गुलं मूर्धन् १९हवः सं० मु मार्ड मूोंतेवा इति ईस्य ढ पुंस्यन आणोराजवञ्च अन् स्थाने श्रा अंत्यव्यंग सबुक मुंढा पशु सर्वत्ररबुक् शषोः सः अनेनानुखारः ११ अक्ली
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मागधी व्याकरणम्. बेसौ दीर्घः अंत्य सबुक् बुन अधोमन नलुक् अनेनानुस्वारः ११ क्लीबे सम् मोनु बुंध कर्कोट थनेनानुस्वारः सर्वत्र रबुक टोडः ११ अतः से? कंकोडो कुद्मल प्रमोथस्यपः अनेनानुखारः ११ क्लीबे सम् मोनु बुंध कर्कोट अनेनानुस्वारःसर्वत्र रलुक् टोडः ११ अतः सेडों कंकोडो कुद्मल प्रमोथस्यपः अनेनानुस्वारः ११ क्लीबे सम् मोनु० कुंपलं दर्शन ११ सर्वत्र रबुक् शषोः सः ऽस्य कार्यं नोणः क्लीवे स्म् मोनु दंशणं वृश्चिक ११ कृपादौ वृवि ह्रखात्थ्यश्चेति खस्य ः अस्य कार्य कगचजेति कबुक् श्रतः से? विंबुर्ज गृष्टि इत्कृपादौ गृ गि अनेनानुस्वार ष्टस्यानुष्टे ष्टस्य : ११ शक्तीबे० अंत्यव्यंग सबुक् गिंठी मार्जारः ह्रखसंगमा म अने नानु० सर्वत्र रखुक् ११ अतःसेडों मंजारो वयस्य अनेन द्विती. यस्यानुखारः अधोमनयां ययुक् ११ श्रतः से? वयंसो मनस्विन् अनेन द्वितीयस्यानु सर्वत्र वबुक् अंत्यव्यंजन बुक् श्रीबेग दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् नोणः मणंसी मन खिनी थनेन द्वितीयस्यानुस्यारः सर्वत्र वबुक् नोणः अंत्य सबुक् मणंसिणी मनस्शिला अंत्यव्यं० सलुक् अनेनहितीयस्यानु० शषोःसः नोणः ११ अंत्यव्यं० सलुक् मणं शिला प्रतिश्रुत् ११ सर्वत्र रलुक् पथिपृथिवीप्रति ति त प्रत्यादौडः तस्य डः स्त्रियामाद विद्युतः त था अनेन द्वितीयस्यानुस अंत्यव्यंग सबुक् पडसुश्रा उपरि ११ वोपरौ अनेन तृतीयस्यानुखारः कगच जेति तबुक् अवर्णो ११ क्लीबे सम् मोनु अणिजंतयं द्वितीयोपिप्रकारो यथा अतिमुक्त कगचजेति तयोर्बुक् श्रवर्णो ११ अयः कगटडेति नाणुक क्लीबे सम् मोनु मुटतयं क्वचिछंदः पूरणेप्यनु देवनागसुवन्न अनेन अनुम् य सर्वत्र रबुक् अनादौ पित्वं देवं नाग सुवम क्वचिदनुवारो न जवति गिट्ठी मजारो मणशिला थत्रानुसारं मुत्त्वाशेषं पूर्ववत्. ॥ २६ ॥ टीका भाषांतर वक्रादि ७१ अंत ११ संस्कृत वक्र अने व्यस्त्रने सर्वत्र रलुक अने अधोमनयांयलुक् सूत्रो लागी आ सूत्रधी अनुस्वार थयो. पी क्लीबे सम् अने मोनु लागी वंकं तथा तंसं रूप सिद्ध थाय संस्कृत अश्रु तथा श्मश्रु नाप्राकृत अंसू
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प्रथमः पादः ।
३७
मंसू याय े. अश्रु श्मश्रु तेने या दीने श्मश्रुस्थाने स नो लुक् थयो, पबी सर्वत्र रलुक् सूत्रथी र नो लुक् थाय, पत्नी शषोः सः सूत्र लागी श्रा चालता नियमयी - नुस्वार याय. पी क्लीबे सम्, मोनुखार अक्लीबेसौ दीर्घः नियमो लागी त्यव्यंजनने स्थाने अ थाय. पनी अंत्यव्यंजन विनक्ति स् नो लुक् थ अंसू ने मंसू रूप सिद्ध आय. संस्कृत पुच्छ गुच्छ ना प्राकृत पुंछं गुछं एवां रूप थाय बे. पुत्र, गुन्छ शब्दने शषोः सः लागी पनी श्रा सूत्रथी अनुस्वार याय. पबी क्लीये सम् सूत्र लागी पुंछं गुछं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत मूर्डन शब्दनुं प्राकृत मुंढा थाय बे. मूर्द्धन ने इस्व सं० सूत्री मुथा, पछी श्रर्द्धिमूडते वा ए सूत्रश्री विकल्पे र्द्ध नो ढ थाय, पी पुंस्यन आणो राजवच्च ए सूत्रथी अन् ने स्थाने आ याय, पनी अंत्यव्यं ० सू नो लुक् श्राय एटले मुंढा रूप सिद्ध थाय. संस्कृत पर्शु तेने सर्वत्र रलुक्, शषोः सः, लागी चालता सूत्र अनुस्वार याय, पढी अक्की बेसौ दीर्घः अंत्यसलुक् नियमोथी पंसू रूप सिद्ध थाय. संस्कृत बुध ने अधोमन सूत्रथी न नो लुकू याय, पी श्रा सूत्र अनुस्वार या क्लीबे स्म्, मोनुस्वार नियमो लागी बुधं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कर्कोटने सूत्र अनुस्वार यह सर्वत्र रलुक् टोडः अतः सेर्डी : सूत्रो लागी कंकोडो रूप सिद्ध थाय, संस्कृत कुड्मल शब्दने प्रक्मोथस्यप० सूत्र लागी श्रा सूथी अनुस्वार थाय, पबी क्लीबे समाने मोनुखारः सूत्रो लागी कुंपलं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत दर्शन शब्दने सर्वत्र रलुक, शषोः सः चालता सूत्र, थी नो णः क्लीबे सूम ने मोनुस्वारः सूत्रोथी दंसणं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत वृचिकने इत्पादौ ए सूत्रथी वृ नो विधाय पछी हस्वास्थ्यश्च ए सूत्रथी च नो छ थाय. पी या सूत्रथी तथा क ग च ज सूत्रथी क नो लुक् थाय, पती अतः सेर्डो लागी विछिओ रूप सिद्ध थाय. संस्कृत गृष्टि ने इत्कृपादौ सूत्री गृ नुं गि थाय, पबी श्री सूत्र अनुस्वार थाय. ष्टस्यानुष्टे० सूत्रथी ष्ट नो ठ थाय, पबी अक्लीबे० तथा अंत्यव्यंजन सलुक् सूत्रोथी गंठी रूप सिद्ध थाय. संस्कृत मार्जार ने ह्रस्व सं० सूत्रथी मा नो म थाय. श्रा सूत्रथी अनुस्वार थाय. सर्वत्र रलुक् श्रने अतः सेर्डी सूत्रो लागी मंजारो रूप सिद्ध थाय. संस्कृत वयस्य शब्दने सूत्रथी बीजा छाक्षरनो अनुस्वार था, पबी अधोमनयां यलुक् श्रने अतः सेर्डी सूत्रो लागी वयंसो रूप सिद्ध थाय. संस्कृत मनस्विन् शब्दने या सूत्रथी बीजा अक्षरनो अनुस्वार थाय, सर्वत्रवलुक, अंत्यव्यंजनलुक्, अक्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यंजन सलुक् नोणः सूत्रो लागी मणंसी रूप सिद्ध थाय. संस्कृत मनस्विनी ने श्र सूत्रथी बीजा वर्णनो अनुस्वार थइ सर्वत्रवलुक्, नोणः, अंत्यव्यंजन सलुक सूत्रो लागी मणंसिणी रूप सिद्ध थाय. संस्कृत मनसुशिला - अंत्यव्यंजन सलुक सूत्र लागी श्र सूत्रथी बीजा वर्णनो अनुस्वार थया पढी शषोः सः नोणः अंत्यव्यं०सलुक् सूत्रो लागी मणंसिला रूप सिद्ध थाय. संस्कृत प्रतिश्रुत् शब्दने सर्वत्र रलुक्, पृथिष्टथिवीप्रति सूत्री ति नो त थाय, पछी प्रत्यादौ डः सूत्रथी त नो ड श्राय, पबी स्त्रिया
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मागधी व्याकरणम्. मादविद्युतः सूत्रधी त् नो आ पाय, पनी आ सूत्रथी बीजा वर्णनो अनुस्वार घर अंत्यव्यंगसू नो लुक् थ पडंसुआ रूप सिद्ध थाय. संस्कृत उपरितन शब्दने वोपरी श्रने चालता सूत्रथी त्रीजावर्णनो अनुस्वार श्राय, क ग च ज०, अवर्णो, क्लीबेसम् अने मोनुस्वार सूत्रोथी अणितयं रूप सिद्ध थाय. बीजो प्रकार श्राप्रमाणे जे. संस्कृत अतिमुक्त शब्दने क ग च ज, अवर्णो, इत्यादि सूत्रो लागे अने श्रनो या श्राय पनी क ग ट ड, क्लीवेसम्, मोनु० सूत्रो लागी इमुउतयं रूप सिद्ध श्राय, कोश - काणे बंदपूरण करवामां पण अनुस्वार थाय जे. जेम के- देवनागसुवणं अहिं आ सूत्रथी अनुस्वार थयो. सर्वत्र रलुक, अनादौ द्वित्वं सूत्रोथी ए रूप सिद्ध प्राय बे. को ठेकाणे अनुस्वार थतो पण नथी. जेम के गिट्टी, मजारो, मणसिला अहीं अनुस्वारशिवाय बाकी सर्व पूर्वप्रमाणे सिद्ध थाय . ॥२६॥
___ क्त्वा स्यादेर्णस्वोर्वा ॥२७॥ क्त्वायाः स्यादीनां च यौ णसू तयोरनुखारोंऽतो वा जवति॥क्त्वा ॥ काऊणं । काऊण ॥ काउथाणं । काउाण ॥ स्यादि ॥ वछेणं ॥ वछेण ॥वछेसुं॥वछेसु ॥णखोरितिकिं ॥ करिश्र । श्रग्गियो ॥२७॥ मूल भाषांतर. संस्कृत क्त्वा प्रत्यय अने स्यादि विनक्तिना जे ण अने सु प्रत्यय तेमने अनुस्वारनो अंत आदेश विकटपे थाय बे. क्त्वा प्रत्ययनुं उदाहरण जेम के क्त्वा तेने विकटपे अनुस्वार अंतादेश थवाथी काऊणं अने काउण एवा रूप थाय. तेमज काउआणं तथा काउआण एवा रूप थाय. स्यादि विनक्तिनुं उदाहरण जेम के-तृतीयानुं एकवचन वृक्षेण तेनुं वच्छेणं अने वच्छेण एवा रूप थाय. सप्तमीना सु प्रत्ययमां संस्कृत वृक्षेषु तेनुं वच्छेसुं अने वच्छेसु एवां रूप थाय. मूलमा णखोः ए पद ग्रहण कर्यु बे, तेथी कृ धातुथी बनेला करि शब्दनुं करिअ, अग्नि शब्दनुं प्रथमानुं वचन अग्नयः तेनुं अग्गिओ पाय . ॥ २७॥
॥ढुंढिका ॥ क्त्वास्यादि ६१ णसू ६५ वा ११ कृसु कृरणं पूर्व प्राक्वा क्ता प्रण क्वस्तु मत्तूण थाणाः त्कास्थाने त् ण् कृगो नूतनविष्यत्योश्च कृ का कगचजेति तबुक्शनेन वाणस्य अनु० काऊणं काऊण काऊया णं काउधाण वृद ३१ शतोऽत् वृ वा बोऽक्ष्यादौ दस्य बः अनादौ हित्वं द्वितीयस्य पूर्वस्य चः ण टाणशस्येत् अनेन वाणस्यानुसारः वडेणं वछेण वृक्ष तोऽत् वृ व बोदादौ दस्य बः अनादौहित्वं द्वितीये तु पूर्वस्य च जिस ज्यस् सुपि एति एत्वं
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प्रथमःपादः। अनेन वा सुकारस्यानुस्वारः वळेसुं वछेसु सुकृकरणं पूर्व प्राकाले क्त्वा क्वस्तुमत्तूण श्राणाः क्त्वास्थाने थत् रुवर्णस्यार कर व्यंजनाऽत् लोकात् एच्च क्त्वा तुम्तव्यजविष्यत्सु श्त्वं करिश्र । अग्नि १३ जस् शशोर्णोवा जस् स्थाने णो अधोमनयां न बुक् धनादौ द्वित्वं अग्गिणो ॥२७॥ टीका भाषांतर. क्त्त्वास्यादि ६१ णसू ६५ वा ११ कृ (करवु ) धातुने पूर्वकाल अर्थमां क्त्वा प्रत्यय आवे, पनी क्वस्तुमत्तूणआणाः ए सूत्रथी क्वा ने स्थाने अत् थ कृगो भूतभविष्यत्योश्च ए नियमथी कृ नुं का थयुं, पछी कगचज सूत्रथी त नो लुक् थाय, पजी आ सूत्रथी विकल्प ण नो अनुस्वार थकाऊणं अने काऊण एवा बे रूप सिद्ध थाय बे. अने बीजे परे काऊआणं अने काऊआण एवां बे रूप सिद्ध थाय. वृक्ष ३१ संस्कृत वृक्ष शब्दने ऋतोऽत् सूत्रथी वृ नो व थाय, पडी छोऽ क्ष्यादौ सूत्रथी क्ष नो छ थाय. पगी अनादौ द्वित्वं वितीयपूर्वछस्य यः ए नियम लागी त्रीजी विन्नक्तिना टा प्रत्ययने स्थाने न् नो ण अश्या सूत्रथी विकटपे ए नो अनुस्वार श्राय एटले वच्छेणं अने वच्छेण एवा बे रूप सिद्ध थाय. संस्कृत वृक्ष शब्दने ऋतोऽत् सूत्रवडे वृ नो व थाय, पनी छोऽक्ष्यादौ ए सूत्रथी क्ष नो छ थाय. पली अनादौद्रित्वं द्वितीये पूर्वछस्य यः पनी निस्भ्यसूसुपि ए सूत्रश्री अकारने एकार थाय पनी आ सूत्रश्री सु प्रत्ययने विकल्पे अनुस्वार श्राय एटले वच्छेसुं तथा वच्छेसु एवां बे रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कृ धातु करवू तेमां प्रवर्ते, तेने पूर्वप्रमाणे क्त्वा प्रत्यय आवे पती कस्तुमत्तूणआणाः ए सूत्र लागी क्त्वा ने स्थाने अत् आदेश थाय. पनी ऋवणस्यार् ए सूत्र लागी कर एवं रूप श्राय, व्यंजनात् अने एचक्वातुम्तव्यभविष्यत्सु ए नियम लागी इकार श्राय एटले करिअ एवं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत अग्नि १३ शब्दने विनक्तिप्रत्यय जस् आवे पनी जनशसोर्णो वा ए सूत्र वडे जस ने स्थाने णो अयो पजी अधोमनयां नलुक अने अनादौ द्वित्वं ए सूत्रो लागी अग्गिणो ए रूप सिद्ध थाय. ॥ २७॥
विंशत्यादेच्क् ॥२॥ विंशत्यादीनामनुखारस्य बुग नवति विंशतिः वीसा त्रिंशत् तीसा संस्कृतं सक्कयं । संस्कारः सकारो इत्यादि ॥ २७ ॥ मूल भाषांतर. विंशति विगैरे शब्दोना अनुस्वारनो लुक् थाय जे. जेम संस्कृत विंशति तेनुं प्राकृत वीसा थाय. तेवीरीते त्रिंशत्तुं तीसा. संस्कृतनुं सक्कयं अने संस्कारर्नु सकारो इत्यादि शब्दोमां अनुस्वारनो लुक् थयेलो . ॥ २० ॥
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मागधी व्याकरणम्.
॥ढुंढिका॥ विंशत्यादि ६१ बुक् विंशति ११ अनेनानुखारलोपः शषोः सः ईर्जिह्वासिंहत्रिंशशितौत्या इति विस्थाने वी श्रादित्याप अंत्यव्यंजन सबुक् वीसा त्रिंशत् ११ सर्वत्र लुक् इर्जिह्वा विंशत्रिंग इत्यनेन ईत्वं ती शषोः सः श्रात् श्राप ११ अंत्यव्यंजन सबुक् तीसा संस्कृत अनेनानुवारलोपः कगटडेति सबुक् अनादौ हित्वं कतोऽत् कगचजेति तबुक् श्रवणे थक्लीबे सम् मोनुखा सक्कयं संस्कारः ११ अनेनानुवारलोपः कगटडेति सलुक् अनादौ हित्वं श्रतः से? सकारो ॥२७॥ टीका भाषांतर. विंशत्यादि ६१ लुक् ११ संस्कृत विंशति शब्दने श्रा चाखता सूत्रथी अनुस्वारनो लोप थयो एटले विंशतिः अयु पनी शषोः सः विंशतिः थयु ईर्जिव्हासिंह ए सूत्र लागी वीसतिः थयु पनी आत् आप् ए सूत्र लागी वीसा श्रयुं अने अंत्यव्यंजन ए सूत्रथी स्नो लुक् थवाथी वीसा एवं रूप सिद्ध अयु. संस्कृत त्रिंशत् ११ शब्दने सर्वत्र रलुक् ए सूत्र लागी तिंशत् थयु पनी या सूत्रथी तिशत् अयुं पली ईर्जिह्वाविशिं ए सूत्रथी दीर्घ इकार भयो एटले तीशत् थयुं पी शषोः सः आत् अंत्यव्यंजन सलुक् ए सूत्रो लागी तीसा एवं रूप सिद्ध थयुं. संस्कृत शब्दनो चालता सूत्रवडे अनुस्वारनो लोप थाय एटले संस्कृत थयुं पड़ी कगटड ए सूत्रथी सूनो लोप थयो पठी अनादौ द्वित्वं ऋतोऽत् कगचज अवर्णो अक्लीबे सम् अने मोनुस्वार ए सूत्रो लागी सक्कयं एवं रूप सिद्ध थाय बे. संस्कार शब्दने चालता सूत्रथी अनुस्वारनो लोप थाय पठी कगटड अनादी द्वित्वं अतः सेडों ए सूत्रो लागी सकारो एवं रूप सिद्ध थाय . ॥ २ ॥
मांसादेर्वा ॥२॥ मांसादेरनुस्वारस्य बुग् वा जवति । मासं । मंसं । मासलं । मंसलं । कासं । कंसं । पासू । पंसु । कह । कहं । एव । एवं । नूण । नूणं । श्याणि श्याणि । दाणि । दाणिं । किकरेमि। किंकरेमि । समुहं । संमुहं । किसुझं । किंसुशं । सीहो । सिंघो । मांस। मांसल । कांस्य । पांसु । कथं । एवं । नूनं । इदानीं । दानीं । किं । सन्मुख । किंशुक । सिंह इत्यादि ।
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प्रथमः पादः ।
४१
मूल भाषांतर. मास विगेरे शब्दोना अनुस्वारनो विकल्पे लुक् थाय. संस्कृत मांस तेनुं मासं तथा मंसं एवं याय. संस्कृत मांसलं तेनुं मासलं मंसलं एवां बे रूप याय. संस्कृत कांस्य तेनुं कासं कंसं एवं थाय. संस्कृत पांसु तेनुं पासू पंसू याय. संस्कृत कथं तेनुं कह कह थाय. संस्कृत एवं तेनुं एव एवं थाय. संस्कृत नूनं तेनुं नूण ने नूर्ण थाय. इदानीं तेनुं इयाणि इयाणि थाय. संस्कृत दानीं तेनुं दाणि दाणिं याय. संस्कृत किं करोमि तेनुं कि करेमि किं करेमिं थाय. संस्कृत सन्मुख तेनुं समुह संमुहं एवं याय. संस्कृत किंशुकं तेनुं किसुअ किंसुअं थाय. संस्कृत सिंह तेनुं सीहो सिंघो थाय. इत्यादि जाणी लेवुं ॥ २ ॥
॥ ढुंढिका ॥
मांसादि ६१ वा ११ मांस मांसल ११ छानेन वानुस्वारलोपः द्वितीये मांसादिष्वनु० -हस्वत्वं क्लीबे सम् मोनुस्वारण मासं मंसं मासलं मसलं । कांस्य श्रनेन वानुस्वारलोपः श्रधोमनयां यलोपः मांसादिष्वनुस्वारे | काक ११ क्कीबे स्म मोनु० कार्स कंसं पांशु १९ अनेन वानुस्वारलोपः मांसादिष्वनु० ह्रस्वत्वं शषोः सः श्र क्लीवे० दीर्घः अंत्यव्यंजन० सलुक् पासू पंसू । कथं श्रनेन वाऽनुस्वा० खथघधनां यस्य दः श्रव्ययस्य लुक् कह कई । एवं ११ छानेन वानु० अव्ययस्य लुक् एव एवं । नूनं ११ श्रव्ययस्य सलोपः - नेन वानुस्वारलोपः अव्य० दाणिम् दाषि । किम् ११ किमः किम् श्रमासह किमादेशः श्रनेन वानुस्वारलोपः कृ वर्त्त० मिव्व्यंजना
न वर्णस्यार् लोकात् वर्त्तमाना पंचमी शतृषु वा र रे तृतीयमिवस्थाने मि किंकरेमि किकरेमि सन्मुख ङणनो व्यंजने नस्यानुस्वारः श्रनेन वानुस्वारलोपः शषोः सः क ग च जेति कलुक्क्की बे स्म मोनु०० समुहं संमुहं । किंशुक किंशुके वा एत्वं श्रनेन वानुस्वारलोपः शपोः सः क गच जे ति० कंसुधं किंसुधं सिंह दोघोनुस्वारात् दस्य घः ईर्जिव्हा० सिसी अनेन वानुस्वारलोपः अतः सेर्डो सीहो सिंघो ॥ २७ ॥
टीका भाषांतर. मांसादि ६१ वा ११ संस्कृत मांस ने मासल शब्दने श्रा सूत्रवडे विक अनुस्वारनो लोप श्राय. बीजा रूपमां मांसादि शब्दोमां विकल्पे अनुस्वार थाय. -हस्व यई क्लीबेस्म् श्रने मोनु० ए सूत्रोथी मासं श्रने मंसं एवा बे रूप याय.
६
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मागधी व्याकरणम्
एव
ते मांसलना मासलं अने मसलं एवां रूप थाय. संस्कृत कांस्य शब्दने चालता सूत्रas विकल्पे अनुस्वारनो लोप थाय. पबी अधोमनयां ए सूत्रथी यनो लोप ने मांसादिषु ए सूत्रवडे विकल्पे ह्रस्व थई का तथा क थाय. अने क्लीबे सम् तथा मोनु० ए सूत्रो लागी कासं तथा कंसं एवां रूप थाय. संस्कृत पांशुशब्दने चालता सूत्रथी विक
अनुस्वारनो लोप थई. मांसादिष्वनु० ए सूत्रवडे हस्व श्रई शषोः सः अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन० सलुक् ए सूत्रो लागी पासू ने पांसू एवां रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कथं शब्दने चालता सूत्रथी विकल्पे अनुस्वार की खथघघभां ए सूत्रवडे थ नो ह थाय पी अव्ययस्य सलुक् ए सूत्र लागी कह कहं ए रूप सिद्ध याय. संस्कृत एवं शब्दने चालता सूत्रधी विकल्पे अनुस्वार थई अव्ययस्य सल्लुक् ए सूत्र लागी एव एवं ए रूप सिद्ध थाय. संस्कृत नूनं शब्दने चालता सूत्रे विकल्प अनुस्वार लोप करी नोणः अव्ययस्य सलुक् ए सूत्रोथी नूण ने नूणं एवां रूप सिद्ध थाय. तेजप्रमाणे इदानीं ना इआणि तथा इआणि अने दानिं ना दाणि तथा दाणिं एवां रूप सिद्ध थाय. संस्कृत किं शब्दने किमः किम् अमासह किमादेशः ए सूत्रथी श्रादेश थई चालता सूत्रवडे विकल्प अनुस्वारनो लोप थाय. संस्कृत करोमि ए रूप मूल कृ धातुने मित्र प्रत्ययलागी व्यंजना० अन ऋवर्णस्यार ए सूत्रोलागी लोकव्याकरणथी वर्त्तमाना पंचमी शतृषु वा ए सूत्रवडे र नो रे थयो. तृतीय मि ए सूत्रवडे मित्र ने स्थाने मि श्राव्यो एटले किंकरेमि छाने किकरेमि एवां वे रूप सिद्ध थाय. संस्कृत सन्मुख शब्दने ङणनोव्यंजने ए सूत्रलागी न् नो अनुस्वार थाय पी या सूत्रवडे अनुस्वारनो लोप आय पढी शषोः सः कगचज क्लीबे सम मनुस्वार खघ इत्यादि सूत्रो लागी समूहं तथा संमूहं एवा रूप सिद्ध थाय. संस्कृत किंशुक शब्दने किंशुके वाईत्वं ए सूत्र लागी चालता सूत्रवडे विकल्पे अनुस्वारनो लोप था. पी शषोः सः कगचज ए सूत्रो लागी कंसुअं तथा किंसुअं एवां रूप सि श्राय. संस्कृत सिंह शब्दने होघोऽनुस्वारात् ए सूत्रवडे ह नो घ थाय. पनी ईजिव्हा ० ० ए सूत्रथी सि नो सी थाय. पढी श्रा चालता सूत्रथी विकल्पे अनुस्वारनो खोप याय. पबी अतः सेडः ए सूत्र लागी सीहो ने सिंघो एवां बे रूप सिद्ध थाय || २ ||
वर्गेऽत्यो वा ॥ ३० ॥
अनुस्वारस्य वर्गेपरे प्रत्यासत्तेस्तस्यैव वर्गस्यांत्यो वा जवति पङ्को पंको सङ्खो खो श्रङ्गणं अंगणं । लङ्घणं लंघणं कञ्चु कंचु लणं लंबणं । श्रञ्जियं । अंजिखं । सञ्ज्ञा । संज्ञा । कएव । bad | उक्कण्ठा । उक्कंठा । कएडं । कंडं । सढो । संढो । अन्तरं । अंतरं । पन्थो । पंथो । चन्दो | चंदो । बन्धवो । बंधवो । कम्पs |
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प्रथमःपादः।
४३ कंप । यम्फा । वंफइ । कलम्बो । कलंबो। श्रारम्जो। श्रारंजो। वर्ग इति किं । संसः । संहर । नित्यमिदंत्यन्ये ॥ ३० ॥
मूल भाषांतर. अनुस्वारनी पड़ी जो कोश्वर्गनो श्रदर श्रावे तो तेने स्थाने तेज वर्गनो अंत्याक्षर (अनुनासिक) विकटपे थाय. जेम के, संस्कृत पडूक पङ्को श्रने पंको एवा रूप आय. श-खो तथा शंखो थाय. अङ्गणं तथा अंगणं वाय. लवणं तथा लंघणं थाय. संस्कृत कन्चुकनु कञ्चुओ तथा कंचुओ थाय. संस्कृत लांछन- लञ्छणं तथा लंछणं थाय. संस्कृत अंजितनुं अजिअं तथा अंजिअ थाय. संस्कृत संध्यान सञ्झा तथा संका थाय.संस्कृत कंटकनुं कण्टओ तथा कंटओ थाय. संस्कृत उत्कंठा नु उक्कण्ठा तथा उकंठा थाय. संस्कृत कंगन कण्ठ तथा कंण्ठ थाय. संस्कृत पंढनु सण्ढो तथा संढो थाय. संस्कृत अंतर पांथ चंद्र अने बांधवना अन्तरं तथा अंतरं पन्थो तथा पंथो चन्दो तथा चंदो बन्धवो तथा बंधवो एवां रूप थाय. संस्कृत कंपति कांक्षति कदंब अने आरंभ तेना कम्पइ तथा कंपइ वम्फइ तथा वंफइ कलम्बो तथा कलंघो आरम्भो तथा आरंभो एवां रूप धाय . मूलमां वर्गनुं ग्रहण 2 तेथी संस्कृत संशय तथा संहरति तेना संसओ अने संहरइ एवां रूप थाय जे. केटला एक श्राचार्यों श्रा नियमने नित्ये पण श्छे ने ॥३०॥
॥दुढिका.॥ वर्ग ७१ अंत्य ११ वा ११ पंक शंख अंगण लंघण अनेन वानुस्वारस्य डकारः शषोः सः क्लीबे स्म् मोनुण् श्रतः सेडोंः पङ्को पंको सङ्खो संखो । अङ्गणं अंगणं । लवणं लंघणं । कंचुक लांबन अंजित संध्या अनेन वानुस्यारानकारः यथा प्राप्तौ कगचजेति नोणः अतः से क्लीबे स्म् मोनु साध्वसध्य० ऊः ध्यास्थाने का अंत्य सबुक् कञ्चुर्ड कंचु । लणं लंबणं । अञ्जिअं अंजिथं । सफा संका । कंटक उत्कंठ । कंड षंढ । अनेन वानुस्वारः लोपः यथा प्राप्तौ कगटडेति अनादौ ह्रस्वःसंयोगे शषोः सः कगचजेति श्रतः से?ः अंत्यव्यंग क्लीबेग सम्। कएपळ कंठ उकएग उकंग। कएडं कंडं । सन्डो संमो। अंतर पांथ चंग बांधव । अनेन वानुस्वारस्य न यथाप्रप्तौ ह्रस्वःसंयोगे जेरोनवा रखुक्क्कीबे सम् श्रतः सेझैः अन्तरं अंतरं । पन्थो पंथो । चन्दो चंदो । बन्धवो बंधवो । ऽवेप ऽकेप डोप ऽकंपुड् चलने का उदितस्वरोलोतः कंपवर्तमाने त्यादीनां ति शति व्यंजनात् लोकात् अनेन वानुस्वारस्य मः कम्पश् कंपई।
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मागधी व्याकरणम्.
कालु काक्षायां उदितस्वरान्नंतः कांद्रवर्त्त० तिव व्यंजनात् लोकात् कांदेराहाहिलंघा दिलं खवच्चर्व फमद सिंह विसुंपा काकस्थाने वफादेशः त्यादीनां ति इयनेन वानुस्वारस्य मः वम्फर बंफई। कदंब थारंज कदंबेवा दस्यलः यदा करंव इति प्रकृतिस्तदा पूर्वहरिद्रादौ लः रस्य लः अनेन वानुखारः श्रतः सेर्डोः कच्चालेम्ला । कलंम्बो कलंबो । श्रारम्नो रंजो । संशय ११ शषोः सः कगचजेति यलुक् छातः सेर्डोः डित्यं ससर्ज संपूर्वहरणे हृ वर्त्त० तिरुवर्णस्यार् दर् व्यंजनात् लोकात् त्यादीनां०] संदर६ ॥ ३० ॥
टीका भाषांतर. वर्ग ११ अंत्य ११ वा ११ संस्कृत पंक शंख अंगण लंघन ए शब्दोने या नियमथी विकल्पे अनुस्वारनो ङकार थाय पढी शषोः सः क्लीबे सम् मोनु० अ अतः सेड ए सूत्रो लागी पङ्को तथा पंको सङ्खो तथा संखो अङ्गगणं तथा अंगणं लङ्घणं तथा लंघणं एवा रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कंचुक, लांछन अंजित ने संध्या ए शब्दोने चालता नियमथी विकल्पे अनुस्वार तथा अकार थाय. ज्यां संजवे त्यां नोणः पढी अतः सेड क्लीबे सम ने मोनु० प्राप्त थाय ने संध्या शब्दने साध्वसध्यत्ह्यांझः ए सूत्रश्री ध्याने स्थाने का थाय पछी सर्वने अंत्य० सलुक् ए नियम लागी कञ्चुओ, तथा कंचुओ लञ्छणं तथा लंछनं अञ्जि तथा अंजिअं सञ्झा तथा संझा एवां रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत कंटक उत्कंठा कंठ षंढ ए शब्दोने सूत्रवडे विकल्पे अनुस्वारनो लोप करी ज्यां संजवे त्यां क ग द डअनादौ ० ह्रस्वः संयोगे शषोः सः कखचज अतः सेड अंत्यव्यंजन० क्लीबे० ए सूत्रोश्री कण्टओ तथा कंटओ उक्कण्ठा उक्कंठा कण्ठ कंठ सण्ढो संढो एवां रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत अंतर पांथ चंद्र तथा बांधवना श्रा चालता सूत्रे विकटुपे अनुस्वार ह्रस्वः संयोगे प्रेरोनवा क्लीबे सम् श्रतः सेर्डो ए सूत्रोथी अन्तर अंतर पन्थो पंथो चन्दो चंदो बन्धवो बंधव एवां रूप सिद्ध थाय बे. कंप धातु कंपवामां प्रवर्त्ते बे. ते धातु
दित होवाथी कंप् एवं रूप याय. तेने त्यादीनां ए सूत्रवडे ति प्रत्यय आवी लोकव्याकरणथी वा श्रा चालता सूत्रथी अनुस्वार नो म् श्राय एटले कम्पड़ ने विकट कंपइ एवां रूप थाय. कांक्ष धातु आकांक्षामां प्रवर्त्ते तेने उदितः खरानंतः वर्त्तमाने तिव व्यंजनात् लोकात् कांक्षेराहाहि० ए सूत्रवडे वं श्रादेश थाय पी चालता सूत्र अनुस्वारनो विकल्पे म थाय एटले वम्फइ वफइ एवां रूप सिद्ध था. संस्कृत कदंब तथा आरंभ शब्दने कदंबे वा ए सूत्रथी द् नो ल थाय जो करंच एवं मूलरूप होय तो तेने पूर्व हरिद्रादौ लः ए सूत्रथी र नो ल थाय. पती श्री सूत्रवडे विकल्पे अनुस्वारथ अतः सेड ए सूत्र लागी कलम्बो तथा कलंबो एवां रूप सिद्ध थाय. तेवीज रीते आरम्भो तथा आरंभो एवा पण रूप सिद्ध थाय. संस्कृत संशय शब्दने शपोः सः क ग च ज अतः सेड: डित्यं इत्यादि सूत्रो लागी संसओ ए रूप
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प्रथमः पादः ।
४५
सिझ आय. सम् उपसर्गसहित एवा हृ हरणे ए धातुने वर्त्तमान० ए सूत्रवडे ति - प्रत्यय वे पी ऋवर्णस्याद् ए सूत्र लागी संहर थाय. पबी व्यंजनात् लोकात् त्यादीनां सूत्रो लागी संहरह एवं रूप सिद्ध याय
३० ॥
प्रावृट्शरत्तरणयः पुंसि ॥ ३१ ॥
प्रावृट् शरद तरपि इत्येते शब्दाः पुंसि पुंलिंगे प्रयोक्तव्याः पासो सर एस तरणी तरणीशब्दस्य पुंस्त्रीलिंगत्वेन नियमार्थमुपादानं ॥ ३१ ॥
मूल भाषांतर. संस्कृत प्रावृट् शरद् अने तरणि ए शब्दो प्राकृतमां पुंलिंगे जाएवा. संस्कृत प्रावृट् ( वर्षाकाल ) तेनुं पाऊसो याय. संस्कृत शरद ( ऋतु ) तेनुं सरओ याय. संस्कृत एषतरणिः तेनुं एसतरणि एवं थाय. तरणि शब्द पुंलिंग अने स्त्रीलिंगमां प्रवर्त्ते ते नियमने माटे तेनुं श्रहिं ग्रहण कर्तुं बे. ॥ ३१ ॥
॥ ढुंढिका ॥
प्रावृट् चशरच्च तरणिश्च प्रावृट्शरत्तरणयः पुमस् ७१ प्रावृष दिक्प्रावृषोः सः ष् स् ऊहत्वादौ वृ वु सर्वत्र रलुक् छानेन पुंस्त्वं ११ छातः सेर्डोः पाउसो | शरद् शरदादेर दित्यकारागमः लोकात् शषोः सः ११ अनेन पुंस्त्वं श्रतः सेर्डोः सरवो एतद् ११ अंत्यव्यं दलुक् तदश्वतः सोऽक्कीबे तस्य सः अंत्यव्यं० सलुक् श्रथवा वैसे मिणमोसिना इति एसादेशः एस तरणिः ११ अनेन पुंस्त्वं श्रीबे
दीर्घः अंत्यव्यं. सलुक् तरणी ॥ ३१ ॥
"
टीका भाषांतर. प्रावृट् शरत्तरणि १३ पुमसू ७१ संस्कृत प्रावृषु शब्दने दिगप्रावृषोः सः ए सूत्रवडे स् थाय. एटले प्रावृस एवं श्रयुं. पबी उद्दत्वादौ ए सूत्रवडे बृ नो उ थाय. पठी सर्वत्र रलुक् तथा चालता सूत्रवडे पुंलिंगपणु, कर्या पती अतः सेडः ए सूत्र लागी पाऊसो रूप सिद्ध याय. संस्कृत शरद शब्दने शरदादेरत् ए सूत्री अंत्यव्यंजनो कार थाय पी लोकात् शषोः सः ए सूत्रोलागी चालता सूत्रथी पुंलिंगपणुं करी अतः सेड ए सूत्रलागी सरवो एवं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत एषतरणि: ( श्रासूर्य बे ) ए शब्दमां प्रथम एतद् शब्दने अंत्यव्यंज० ए सूत्रथी दूनो लुक थाय पी. तद्वतः सोऽक्लीवे ए सूत्री त नो स थाय. पढी अंत्यव्यं० सलुक् अथवा वैसेणमिणमोसिना ए सूत्रश्री एस एवो आदेश याय. तरणिशब्दने चालता नियमश्री पुंलिंगपणुं यया पत्री अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंजन सलुक सूत्रो लागी तरणी एवं रूप सिद्ध श्राय ॥ ३१ ॥
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४६
मागधी व्याकरणम. स्नमदाम शिरोननः ॥ ३२ ॥
1
दामन शिरस् नजस् वर्जितं सकारांतं नकारांतं च शब्दरूपं पुंसि प्रयोक्तव्यम् । सांतं जसो पत्र तमो तेवो जरो । नांतं जम्मो नम्मो मम्मो | अदाम शिरोनन इति किं । दामं । सिरं । नहं । यच्च । सेयं । वयं । सुमणं । सम्मं । चम्ममिति दृश्यते तद्बहुला धिकारात्॥३२॥ मूल भाषांतर. - दामन् शिरस् अने नभस् ए शब्दोशिवाय बीजा सकारांत तथा नकारांत एवा शब्दो प्राकृतमां पुलिंगे थाय. सकारांत शब्दोनां उदाहरण आपे बे. संस्कृत यशस् पयस् तमस् तेजस् अने उरस् ए शब्दोना जसो पओ तमो तेओ करो एव रूप सिद्ध थाय. नकारांत शब्दोनां उदाहरण - संस्कृत जन्मन् नर्मन् मर्मन् ए शब्दोनां जम्मो तम्मो मम्मो एवां रूप थाय. दामन् शिरस् छाने नभस् ए शब्दो शिवाय एम मूलमां कह्युं बे तेथी दामन् शिरस् नभस् तेना दामं सिरं नहं एवां रूप याय. संस्कृत श्रेयस् वयस् सुमनस् शर्मन् चर्मन् तेना सेयं वयं सुमणं सम्मं चम्मं एवां सिद्ध रूप जोवामां यावे बे, ते बहुलाधिकारथी जावां ॥ ३२ ॥
॥ ढुंढिका ॥
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स् चन् चनं । दाम च शिरश्च नजश्च दाम शिरोनजः न दाम० अदाम० ११ यशस् तमस् पयस् तेजस् उरस् ११ श्रादेर्योजः अंत्यव्यं० सलुक् शषोः सः कगचजेति जययोर्लुक् श्रतः सेर्डोः डित्यं० जसो तमो पर्छ ते करो । जन्मन् नर्मन् न्मोमः न्मस्य मः सर्वत्र रलुक्
नादौ द्वित्वं १० तः से० जम्मो नम्मो दामन् शिरस् ननस् ११ अंत्यव्यंजन लुक् शषोः सः क्लीबेसम् मोनुस्वा० खथघध० जस्यदः दामं सिरं नदं श्रेयस् वयस् सुमनस् शर्मन् वर्मन् श्रत्यव्यंजन सलुक् यथाप्राप्तौ सर्वत्र रलुक् श्रनादौ हिरवं शषोः सः नोणः ११ बहुलाधिकारात् की बेस्म मोनु० सेयं वयं सुम्मणं मम्मं चम्मं ॥३२॥
टीका भाषांतर. स्नम् ११ दाम शिरोननः ११ संस्कृत यशस् तमस् पयस् तेजस् उरस् ए शब्दोने आदेर्योजः अंत्यव्यं० सलुक् शषोः सः कगचज अतः से: डित्यं ए सूत्रोथी जसो पवो तमो तेवो उरो ए रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत जन्मन् नर्मन् ए शब्दोने न्मोमः ए सूत्रथी न्म नो म थाय. सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं अतः सेडः ए सूत्रोलागी जम्मो नम्मो एवां रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत दामन् शिरस् नभस् ए शब्दोने अंत्यव्यंजन सलुक् शषोः सः क्लीबेस्म मोनुस्वा०
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प्रथमःपादः।
४७ खथयधेति भस्यहः ए सूत्रोलागी दामं सिरं नहं ए रूप सिद्ध श्राय. संस्कृत श्रेयस् वयस् सुमनस् शर्मन् वर्मन् शब्दोने अंत्यव्यंजन सलुक् ए सूत्र ज्यां संजवे त्यां लागे. पढ़ी सर्वत्र रलुक अनादौद्रित्वं शषोः सः नोणः बहुलाधिकारथी क्लीबेसम् मोनुस्वार ए सूत्रोलागी सेयं वयं सुम्मणं सम्मं चम्मं ए रूपो सिद्ध पाय . ॥३॥
वाक्ष्यर्थ-वचनाद्याः ॥३३॥ श्रदिपर्याया वचनादयश्च शब्दाः पुंसि वा प्रयोक्तव्याः॥ अक्ष्यCः । श्रावि स सवर ते अछी । नच्चाविया तेणम अछीइं॥ अंजल्यादि पागददिशब्दः स्त्रीलिंगेऽपि । एसा श्रही। चक्खू चक्खूई । नयणा नयणा । लोषणा लोश्रणा ॥ वचनादि । वयणा । वयणाई। विज्जुणा विजूए । कुलो कुलं । बन्दो बन्दं । माहप्पो माहप्पं । दुक्खा दुक्खा ॥ जायणा जायणा । इत्यादि इति वचनादयः ॥ नेता नेत्ताई। कमला कमलाई इत्यादितु संस्कृतवदेव सिझम् ॥ ३३ ॥ मूल भाषांतर. संस्कृतमा अक्षि (नेत्र) शब्दना पर्यायवाला शब्दो अने वचनादिक शब्दो ते प्राकृतमा विकटपे पुंलिंगे थाय.अक्षि शब्दना पर्यायना उदाहरण श्रापे . जेमके अद्यापि सा शपति ते अक्षिणी तेनुं प्राकृत अजवी सा सवई ते अच्छी ऐटले ते स्त्री अद्यापि तारा नेत्रोना सोगन आपेले. अहिं अच्छी शब्द पुंलिंगे पाय बे. संस्कृत ' नर्तिते तेन मम अक्षिणी' तेनुं प्राकृत नचावियाई तेण ह्म अच्छीई एटले तेणे मारा बे नेत्रोने नचाव्यां. अहिं श्रींई त्यां अति शब्द नपुंसके बे. अंजल्यादि पाउथी अक्षि शब्द स्त्रीलिंगे पण श्राय. जेमके 'एसा अच्छी' (श्रा नेत्र बे.) संस्कृत चक्षुष् शब्दनुं पुंलिग चक्खू नपुंसक चक्खूई संस्कृत नयन तेनुं पुंलिग नयणा नपुं० नयणाई संस्कृत लोचन तेनुं पुंग लोअणा नपुंग लोअणाई थाय. हवे वचनादिक शब्दोनां उदाहरण आपेजे. जेमके संस्कृत वचन तेनुं पुं० वयणा नपुं० वयणाई संस्कृत विद्युत् तेनुं पुंलिं. विज्जुणा नपुं. विज्जूए संस्कृत कुलनुं पुं. कुलो नपुं. कुलं संस्कृत छंदस् न पुंलिंगे छन्दो नपुं. छन्दं. संस्कृत माहात्म्य तेनुं पुंलि. माहप्पो नपुं. माहप्पं. संस्कृत दुःख तेनुं पुं. दुक्खा नपुं. दुक्खाई. संस्कृत भाजन तेनुं पुं. भायणा नपु. भायणाई. इत्यादि वचनादि जाणी देवां. संस्कृत नेत्र शब्द- पु. नेत्ता नपुं. नेत्ताई पाय जे. संस्कृत कमल शब्दनुं पुं. कमला अने नपुं. कमलाई इत्यादि रूप पाय जे आ रूप संस्कृतनी जेम सिद्ध थाय बे ॥ ३३ ॥
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४७
मागधी व्याकरणम्
॥ढुंढिका॥ वा ११ अक्षिरों येषां ते श्रयाः वचनमायो येषां ते वचनाद्याः श्रदयर्थाश्च वचनाद्याश्च अक्ष्यर्थवचनाद्याः अद्यपि द्यय्यांजः अनादौ हित्वं पदादपेर्वालुक् पोवः अऊ वि तद् ११अंत्यव्यंग दलुक् सदश्चतः सोऽक्लीबे तस्य सः श्रादित्याप सा सपी आक्रोशे शपवर्तमान व्यंजना अत् त्यादीनांति ३ लोकात् शषोःसः पोवः सव तद् २५ द्विवचनस्य बहुवचनं २३ अंत्यव्यंग दलुक् जस्शसोर्मुक् टाणषस्येत् एत्वे ते ।यदि २२ बोऽदयादौ क्षस्य ः अनादौहित्वं द्वितीयपूर्व च द्विवचनस्य बहुवचनं शस् जसुशसोर्द्धक शसोलोपः लुप्ते शसि दीर्घः छिछी सा स्त्री अद्यापि ते अक्षिणी शपतीत्यर्थः । अत्रानेन वादिशब्दस्य पुंस्त्वं श्रथ नपुंसकत्वं तेन ममाक्षिणी नर्तिते नृतैच् नर्त्तने नृत् नृत्यतोऽक्षिणीते नृत्यतोऽन्यः प्रयुक्त प्रयोज्य व्यापारे णिग् गुणः नरा नृत्यते स्म क्तवत्तक्तप्रत इति नर्त इति जाते वजनृतमदांचःअनादौहित्वं बुगावीक्त नावकर्मसु णिग् स्थाने श्रावि १५ द्विवचनस्य बहुवचनं १३ जस्शस्श्ण यः सप्राग् दीर्घाः जस्स्थाने इंपूर्वस्य दीर्घः तस्य ता कगचेति तनुक् नचावियाई तद् ३१ अंत्य दबुक् टा आमोर्णः टास्थाने टाणश स्येत् एत्वं तेण । अस्मद् ६१ मे मम ममद मजक्षाङसौ अस्मद् स्थाने ब्रह्म त्यदायव्ययात् अलुक् तेणह्म अदि १५ द्विवचनस्य बहुवचनं १३ बगेऽदयादौ दस्य ः अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्वउ च जस्शश्णयःसप्राग्दीर्घाः जस्स्थाने पूर्वस्य च दीर्घः अछीई एतद् १५ अंत्यव्यं दबुक् तदश्चतः सौ क्लीबे त् स् आदित्याप सा अदि ११ बोऽक्ष्यादौ कस्य बा अनादौ द्वितीयस्य पूर्वस्य च अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंज सबुक् अछी । चकुस् कः खः कचित्तुबडौ कस्य खः अनादौ हित्वं द्वितीयस्य पूर्व ख क १३ अनेन वा पुंस्त्वं जस् शस् ङसित्तोछापिदीर्घः जस् शस् इंश्णयःसपाग्दीर्घाः चक्खू चक्खूई । नयन लोचन १३ नोणः
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प्रथमःपादः।
४ए कगचजेति बुक् अनेनवा पुंस्त्वं पूर्ववत् नयणा नयणाई लोश्रणा लोश्रणा एवंच वयणा वयणाशं । विद्युत् द्यय्यांजः श्रनादौ द्वित्वं अंत्यव्यं तबुक् उ टाधामोर्णः पुंसि टोणा अन्यत्र स्त्रियां टाङस्रेरदादि टास्थाने ए पूर्वस्य दीर्घः विजुणा विडाए । कुल बंदस् अनेन वा पुंस्त्वं अंत्यव्यं सयुक् श्रतः सेोः क्लीबेसम् मोनुवा कुलो कुलं बंदो बंद। माहात्म्य २ ह्रस्वः संयोगे हा ह अधोमनयां यबुक् जस्मात्मनोः पोवा मस्य श्रनादौहित्वं ११ अनेन वा पुंस्त्वं अतःसे?ः क्लीबेसम् मोनुस्वार माहप्पं माहप्पो। कुःख १३ जस्शसो क् जस्शस् ङसित्तो दीर्घः जस्शस् इंश्ण यःसप्राग्दीर्घाः जस्स्थानेई पूर्वस्य च दीर्घः निरोर्वा रखुक् अनादौ हित्वं हित्वं द्वितीय पूर्वखस्य कः मुक्खा मुक्खाई। जाजन १३ कगचजेति जलुक् श्रवर्णो अ य नोणः अनेन वा पुंस्त्वं जस्शस् ङसित्तो दीर्घः जस्शसोर्बुक् जस्शस्शेश्णयःसप्राग्दीर्घाः जस् इंपूर्वस्य च दीर्घः नायणा जायणा । नेत्रकमलयोस्तु पुनः पुंसकत्वं संस्कृतेप्यस्ति ॥३३॥ टीका भाषांतर. वा ११ अक्ष्यर्थवचनाद्य १३ अदि ( नेत्र ) जेनो अर्थ ने ते अक्ष्यर्थ एटले नेत्रपर्यायवाला अने वचन विगेरे एवा शब्दो विकटपे पुलिंगे श्राय. संस्कृत यद्यपि शब्दने द्यय्यांजः अनादौ द्वित्वं पदादपेर्वा लुक पोवः ए सूत्रो लागी अजवि एवं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत सा ते मूल तशब्दनुं रूप जे. अंत्यव्यंजन दलुक् तदश्चतः सोक्लीये तस्य सः आत् ए सूत्रो लागी सा एवं रूप थाय. संस्कृत शपति तेमां सपी आक्रोशे ए धातु के तेनो अर्थ शाप देवो सोगन खावा इत्यादि आय . शपवर्त्तमा० व्यंजना अतत्यादीनां ति ए सूत्रो लागी ति नो थाय पनी लोकात् शषोःसः पोवः ए सूत्रो लागी सवइ एवं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत ते तद् शब्दनुं रूप . तेने द्विनचनस्य बहुवचनंजस् जस्शसोलुक् शसोर्लोपः लुप्ते शसि दीर्घः इत्यादि सूत्रो लागी च्छि नुं च्छी एवं थाय. आ वाक्यनो अर्थ-ते स्त्री अद्यापि ते बंने नेत्रोने शाप आपेले अथवा सोगन आपे . अहिं आ चालता सूत्रथी अक्षि शब्दने विकल्पे पुलिंगपणुं थाय. नपुंसकनुं उदाहरण संस्कृत ' तेन मम अक्षिणी नर्तिते' तेनो अर्थ-तेणे मारा बे नेत्रने नचाव्या. नृती नर्तने. नृत् धातु नाचवामा प्रवर्ते. बे नेत्र नाचे जे ते नाचतां नेत्रने बीजो प्रेरणा करे. अहिं प्रयोज्य व्यापार एटले प्रेरणा अर्थमां णिग् प्रत्यय आव्यो. तेने गुण थईनर एवं रूप सिद्ध थयु. पनी नूतार्थमां क्ततत्त
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मागधी व्याकरणम्. ए सूत्र प्रमाणे क्त प्रत्यय श्रावी नर्त एवं रूप धाय. पीव्रजनृतमदांच अनादौ द्वित्वं लुगावीक्तभावकर्मसु ए सूत्रथी णिग् प्रत्ययने स्थाने आवि एवं रूप पाय पडी दिवचनस्य बहुवचनं जमशस् इ ईणयः स प्रागूदीर्घाः ए पामी जशस्थाने ई श्राय, पली पूर्वस्य दीर्घः ए सूत्रवडे त नो ता श्राय. कगच ए सूत्रवडे त नो लुक् श्राय एटले नवाविआई ए रूप सिघ यु. संस्कृत तद् शब्दने अंत्य दनो लुक् श्राय पीटा आमोर्णः ए सूत्रथी टा स्थाने ण थाय. पनी सस्येत् ए सूत्रवडे एकार थई तेण एवं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत अस्मद् शब्दने मह मम महमजज्ञाङसौ ए सूत्रथी अस्मद् ने स्थाने अह्म थाय, पनी त्यदायव्ययात्तत्स्वरस्यलुक् एटले म एवं रूपसिह थाय. संस्कृत अक्षि शब्दने द्विवचनस्य बहुवचनं छोऽक्ष्यादौ अनादौ हित्वं ते पनी द्वितीय तेथी पूर्व छ नो च थाय पी जश शसू इ इणयः स प्रासदीर्घाः ए सूत्रवडे जस् ने स्थाने पूर्व ने दीर्घ थाय एटखे अच्छीई एवं रूप सिद्ध थयु. संस्कृत एतद् शब्दने अंत्यव्यंज. पामी सनो लुक् थाय पनी तदश्चतःसौ क्लीवे ए सूत्रधी तनो स थाय पनी आत् ए सूत्रवडे आप आवे एटले सा एवं रूप सिख थयु. संस्कृत अक्षि शब्दने छोऽक्ष्यादौ ए सूत्रवडे क्ष नो छ थाय पनी अनादौ० दितीयस्य० पूर्व उच अक्लीके सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन सलुक् ए सूत्रलागी अच्छी एq रूप सिद्ध थयु. संस्कृत चक्षुस् शब्दने क्षः खः कचित्तु क्षडौ ए सूत्रथी क्ष नो ख श्राय पनी अनादी बित्वं द्वितीयस्य० ए सूत्रोथी पूर्व ख नो क थाय. पठी आ चालता सूत्रवडे विकस्पे पुंलिगपणुं थाय. पनी जस् शस् ऊसित्तो द्वामि दीर्घः जस् शस् इइणयः सप्रागदीर्घाः ए सूत्रोथी चक्खूई ए रूप सिद्ध थाय. संस्कृत नयन अने लोचन शब्दने नोणः कगचज ए सूत्रलागी था चालता सूत्रवडे विकटपे पुंलिंगपणुं थाय. बाकी पूर्ववत् एटले नयणा नयणाइं अने लोयणा लोयणाई ए रूप सिद्ध थाय. एवीज रीते संस्कृत वचन शब्दना वयणा वयणाई एवां रूप सिद्ध थाय. संस्कृत विद्युत् शब्दने द्यय्यां जः अनादौ द्वित्वं अंत्यव्यं० टा आमोर्णः पुंलिंगे टोणा स्त्रीलिंगे टाडसूडे रदादिदेघातुडन्से: टाने स्थाने ए थाय पनी पूर्वस्य दीर्घः त्यारे विज्जुणा विज्जूए एवा रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कुल छंदर शब्दने आ चालता सूत्रथी विकटपे पुंलिंगपणुं थई अंत्यव्यंज० सलुक् अतः से?: क्लीबे सम् मोनुस्वा० ए सूत्रोलागी कुलो कुलं छंदो छंदं एवां रूप सिख थाय. संस्कृत माहात्म्य तेने इस्वः संयोगे माहात्म्य थयुं अधोमनयां यलुक्माहत्म थयु भस्मात्मनोः पो वा म नो प थयो माहत्प थयु. अनादौ द्वित्वं माहप्प थयुं आ सूत्रथी विकटपे पुंलिंगपणुं थाय. पनी अतः से? क्लीबे सम् मोनु० माहप्पो माहप्पं, संस्कृत दुःख तेने जसू शसोलुंक् जस् शसूङसित्तो० दीर्घः जसूशस् इंशण यः सप्रागदीर्घाः जस् ने स्थाने थाय अने पूर्वने दीर्घ श्राय पनी निर्दुरोर्वारलुक अनादौ द्वित्वं द्वितीय ए सूत्रथी पूर्व ख नो क् थाय. एटले दुक्खा दुक्खाइं एवां रूप सि आय. संस्कृत भाजन शब्दने कगचजेति जलुक् अवर्णोयाश्रुति नोणः ए सूत्रोलागी था चाल
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प्रथमःपादः। ता सूत्रथी विकल्पे पुंलिंगपणुं थाय. पढ़ी जस्शम् उसित्तो० दीर्घः जसशसोलक जसुशस इंइणयः स प्राग् दीर्घाः जस स्थाने इ श्राय पनी पूर्वस्य च दीर्घः एटखे भायणा भायणाई ए रूप सिख थाय. नेत्र अनं कमल शब्दने संस्कृतमा पण पुंलिंगपणुं थाय . ॥ ३३ ॥
गुणाद्याः क्लीबे वा ॥३४॥ गुणादयः क्लीवे वा प्रयोक्तव्याः ॥ गुणाई गुणा । विहवेहिं गुणाई मग्गन्ति । देवाणि देवा। बिन्ऽ बिंडणे । खग्गं खग्गो । मंगलग्गं मंगलग्गो । कररुहं कररुहो । रुक्खाई रुक्खा । इत्यादि इति गुणादयः ॥ ३४ ॥ मूल भाषांतर. प्राकृतमा गुणादि शब्दो नपुंसके विकटपे योजवा. जेमके संस्कृत गुणाः तेनुं गुणाइं गुणा एवां रूप श्राय. तेनुं उदाहरण प्राप्रमाणे - संस्कृत-विनवैर्गुणान् मार्गयंति तेनुं प्राकृत विहवेहिं गुणाई मग्गन्ति एटले तेश्रो वैनववझे गुणोने शोधे . संस्कृत देवाः तेनुं देवाणि तथा देवा एवां रूप थाय. संस्कृत बिंदवः तेना बिंदुई बिंदुणो एवां रूप थाय. संस्कृत खड्ग तेनुं खग्गं खरगो एवां रूप थाय. संस्कृत मंडलायं तेना मंडलग्गं मंडलग्गो एवां रूप थाय. संस्कृत कररुह तेनुं कररहं कररुहो एवां रूप थाय. संस्कृत वृक्षाः तेना रुक्खाइं रुक्खा एवां रूप थाय. इत्यादि गुणादि शब्दो जाण। लेवा. ॥३४॥
॥ ढुंढिका ॥ गुणा आया येषां ते गुणाद्याःक्कीबे ७१ वा ११ गुण १३ अनेन वा क्लीबे जस्शस्श्णयः सप्राग्दीर्घाः जस् शस् ङसित्तो दीर्घः जस् शसोर्दीर्घः जसशसोच॑क् गुणा गुणाई । गाथा एगे लहु थ सहावा गुणेहिं लहिलं महंति घणरिम् िअणे विमलसहावा विहवेहिं गुणा मग्गंति ॥१॥ अस्यार्थः-संस्कृत-एके लघुकखनावा गुणान् लब्ध्वा धनहिं महतीं वांति अन्ये विपुलखनावाः विनवैर्गुणान् मार्गयंतीत्यर्थः विजव ३३ खयघधा जस्य हः निस् ज्यस् सुपि एत्वं निसा हिं हिहि जिस स्थाने हिं विहवेहिं मार्ग अन्वेषणे उत्तमा अंति चुरादिन्यो णिव् बहुव्वाद्यस्यन्ति न्तर अंतिस्थाने न्ति णेरदे दावावे णिव स्थाने अत् थ इति ह्रस्वः संयोगे मा म से सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं मग्गन्ति। देव
मागे अन्वेषण जतमा आत
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मागधी व्याकरणम् १३ जस् शस् इंश्णयः जस् स्थाने णि पूर्वस्य दीर्घः जस् शस्
सित्तो दीर्घः जस्शसो क् देर्द्धक देवाणि देवा । बिंदु १३ जस् शस् इंश्णयः जस्स्थाने इंपूर्वस्य च दीर्घः द्वितीये जस् शस् ङसिङसाणो जस् स्थाने णो बिंदूशं बिंडुणो। खड्ग कगटमेतिऽलोपः अनादौ हित्वं ११ अनेन वा क्लीबत्वं क्लीबे स्म् मोनु श्रतः सेडोंः खग्गं खग्गो । मंडलायं ११ ह्रस्वःसंयोगे सर्वत्र रखुक क्लीवे. स्म्० मोनु अतः सेझैः मंडलग्गं मंडलग्गो कररुह ११ ली बे सम् मोनु श्रतःसे?ः कररुहं कररुहो वृक्ष १३ वृक्षक्षिप्तयो रुक्खबुढौ वृक्षस्य रुक्खादेशः १३ थनेन वा क्लीबत्वं यत्र क्लीबत्वं तत्र जस् शस् इंश्णयः जस स्थाने इंपूर्वस्य च दीर्घः अन्यत्र पुंसि जस्शस् ङसित्तो दीर्घः जस् शसोच्क् रुक्खा रुक्खा इति गुणादयः समाप्ताः ॥३४॥ टीका भाषांतर. गुण शब्द ने आदि जेमने ते गुणाद्य शब्दो कहेवाय. क्लीवे ए सप्तमीनुं एकवचन . अने वा अव्यय . संस्कृत गुण शब्दने आ चालता सूत्रथी विकटपे नपुंसकपणुं थाय. तेथी जस् शस् इंइणयः ए सूत्र लागी जस् शस् उसित्तो दीर्घः जस् शसोर्दीर्घः जसूशसोलुक ए सूत्रोपामी गुणा गुणाई एवां रूप सिघ थाय. ते उपर उदाहरणनी गाथा आपेने तेनो एवो अर्थ डे के, “ केटलाएक लघुस्वन्नाववाला पुरुषो गुणने प्राप्त करी मोटी धन समृधिने श्छेने अने केटलाएक विशालस्वनाववाला पुरुषो वैनववडे गुणोने शोधे " अहिं गुणशब्द पुंलिंगे अने नपुंसके. संस्कृत विनव शब्दने १३ ख थ घ ध० ए सूत्रथी भ नो ह थाय. पनी भिस् भ्यस् सुपि ए सूत्रथी एकार थाय पनी भिसो हिं हि हि ए सूत्रथी निस् ने स्थाने हिं थाय एटखे विहवेहिं एवं रूप सिद्ध थाय. मार्ग अन्वेषणे मार्ग ए धातु शोधवानेविषे प्रवर्ते उत्तम पुरुषनो अंति प्रत्यय आव्यो. चुरादिभ्यो णिव पनी बहुष्याद्यस्यन्ति न्ते इरे ए सूत्रथी अंतिने स्थाने न्ति आवे पजी जेरदेदावावे ए सूत्रथी णिव ने अत् श्र अयो पनी इखासंयोगे ए सूत्रपामी मा नो म यो से सर्वत्र रलुक् अनादौ हित्वं ए सूत्रोलागी मग्गंति ए रूप सिद्ध थयु. संस्कृत देव शब्दने १३ जस् शस् इंइणयः ए सूत्रथी जस् ने स्थाने णि आवे पछी पूर्वस्य दीर्घः जस् शस् उसित्तौ० जस् शसोलक ए सूत्रोलागी देवाणि देवा एवां रूप सिद्ध थया. संस्कृत बिंदु १३ तेने जस् शस् इंइणयः जस ने स्थाने ई थाय पूर्वने दीर्घ थाय. बीजे परे जस् शस् ङसिङसाणो ए सूत्रथी जस् ने स्थाने णो श्राय एटले बिंदूई बिंदुणो ए रूप सिद्ध थाय. संस्कृत खग तेने कगटड ए सूत्रथी ड नो लोप थई अनादौ द्वित्वं पली श्रा
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प्रथमःपादः। चालता सूत्रथी विकटपे नपुंसकपणुं थाय पनी क्लीवे सूम् मोनु० अतः सेोंः ए सूत्रोसागी खरगं खग्गो ए रूप सिद्ध थाय. संस्कृत मंडलान ११ तेने हवः संयोगे सर्वत्र रलुक क्लीवे सम् मोनु० अतः सेों: ए सूत्रोथी मंडलग्गं मंडलग्गो ए रूप सिद्ध श्राय. संस्कृत कररुह ११ तेने क्लीवे सम् मोनु० अतः सेझैः एसूत्रश्री कररुहं कररुहो ए रूप सिद्ध थाय. संस्कृत वृक्ष शब्दने 'वृक्षदिप्तयो रुक्ख छुढौ ए सूत्रधी वृक्ष शब्दने रुक्ख श्रादेश थाय. पछी आ चाखता सूत्रथी विकटपे नपुंसकपणुं थाय. ज्यारे नपुंसके होय त्यारे जम् शन इंइणयः ए सूत्रवमे जस् ने स्थाने इं थाय अने पूर्वने दीर्घ थाय. अने ज्यारे पुंलिंगे होय त्यारे जस्शस् ङसित्तो अने जसशसोलुंक् ए सूत्रोधी रुक्खाई रुक्खा ए रूप सिद्ध थाय. इति गुणादि समाप्त अया. ॥ ३४॥
वेमांजल्याद्याः स्त्रियाम् ॥ ३५॥ श्माता अंजल्यादयश्च शब्दाः स्त्रियां वा प्रयोक्तव्याः ॥ एसा गरिमा एस गरिमा। एसा महिमा एस महिमा। एसा निलजिामा एस निलजिमा । एसा धुत्तिमा एस धुत्तिमा ॥ अंजल्यादि । एसा अंजली एस अंजली । पिट्ठी पिटं । पृषमित्वे कृते स्त्रियामेवे त्यन्ये॥श्रष्ठी थलिं । पएहा पएहो । चोरिथा चोरिधोएवं कुछी। बली। निही । विही । रस्सी गंठी । इत्यंजव्यादयः ॥ गड्डा गड्डो । इति तु संस्कृतवदेव सिहं ॥ श्मेति तंत्रेण त्वादेशस्य डिमा इत्यस्य पृथ्वादोम्नश्च संग्रहः । त्वादेशस्य स्त्रीत्वमेवेचंत्येके ॥ ३५ ॥ मूल भाषांतर. श्मन् प्रत्यय जेमने अंते ने एवां अने अंजलि विगेरे शब्दो प्राकृतमां विकटपे स्त्रीलिंगे थाय. संस्कृत स्त्रीलिंगे एषा गरिमानुं एसा गरिमा अने पुंलिगे एष गरिमार्नु एस गरिमा एवं रूप थाय. तेवीज रीते एसा महिमा अने एस महिमा एवां रूप थाय. संस्कृत एषा निर्लज्जिमा तेनुं स्त्रीलिंगे एसा निलजिमा अने पुलिगे एस निल्लजिमा एवां रूप थाय. संस्कृत एषा धूर्तिमा तेनुं स्त्रीलिंगे एसा धुत्तिमा अने पुंलिगे एस धुत्तिमा थाय. हवे अंजलि विगेरे शब्दो कहे- संस्कृत स्त्री. एषा अंजलि पुं. एष अंजलि तेनुं स्त्री एसा अंजलिअने पु. एस अंजलि थाय. संस्कृत पृना तेनुं स्त्री पिठी न. पिठं थाय. अहिं पृष्ठु शब्दने कार थई केवल स्त्रीलिंगेज एम केटलाएक कहेजे-संस्कृत अक्षि तेनुं स्त्री. अली न. अच्छि श्राय. संस्कृत प्रस्त तेनुं स्त्री. पण्हा पु. पण्हो थाय. संस्कृत चोर्य शब्दने स्त्री. चोरिआ न. चोरिअं थाय. एवी रीते संस्कृत कुक्षि शब्दनु कही थाय. संस्कृत बलि शब्दनुं बली थाय. संस्कृत निधिर्नु निही अने विधिनुं विही श्राय. संस्कृत रश्मि शब्दनुं रस्सी एवं रूप श्राय. संस्कृत ग्रंथि शब्दनुं गंठी थाय. इति अंजड्यादि शब्दो जाणवा. संस्कृत
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मागधी व्याकरणम्. गर्त्त शब्दनुं स्त्री. गड्डा भने पु. गड्डो एवां रूप थाय. अहि केटलाएक कहेले के, श्रा रूप संस्कृतनी पेठे सिद्ध थायजे. इमा ए तंत्रथी आदेशवझे सिद्ध श्राय अने डिमा ए ठेकाणे पृश्वादीम्नश्च ए सूत्रमा संग्रह करवो. अने आदेश ते तो स्त्रीलिंगपणुंज थाय. एम इ . ॥ ३५ ॥
॥ढुंढिका.॥ वा ११ अंजलिरायो येषां ते अंजव्याद्या श्माश्च अंजलाद्याश्च इमांजलायाः स्त्री ७१ एतद् अंत्यव्यं० दबुक् तदश्च तः सोऽक्कीबे त् स् ११ अंत्यव्यंग सबुक् थादित्याप एसा गरिमन् स्त्रियामादविद्युतः न् था अंत्य० सबुक् धनेन वा स्त्रीत्वं गरिमा पदे एतद् ११ अंत्यव्यं दबुक् तदश्चतः सो त् स् हास गरिमन् ११ पुंस्यन श्राणो वा राजवच्च न् था अंत्यव्यंजन सलुक् गरिमा एसा पूर्ववत् महिमन् महिम्नो नावो महिमा अनेन वा स्त्रीत्वं स्त्रियामा० श्रा पदे पुंस्यन आणो न था महिमा। निर्लज निर्खास्य जावो निर्लजात्वं जावे तत्त्व प्रथस्य डिमात्तणैवात्वस्य डिमात्तणै श्मा इति डित्यं लोकात् अनेन वा स्त्रीत्वं स्त्रियामाद० शेषं पू. र्ववत् सर्वत्ररबुक् अनादौहित्वं निल्लङमा पदे पुंस्यनशाणो राजा निबऊमा। धूर्त धूर्तस्य नावो धूर्तत्वं त्वप्रा ह्रस्वः संयोगे प्र सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं त्वस्य डिमा श्मा इति डित्यंग धूत्तिमा पदे धूर्तः। पृथ्वादि रिमन् वा श्मन् प्रत्ययः अंत्यखरादे० अंत्यखर लोपः लोकात् पुंस्यनथाणो न् गत्तिमा । अंजलि ११ अलीबेग स्त्रीलिंगे एसा अंजली। पुलिंगे एस अंजली । पृष्ठ पृछे. वाऽनुत्तरपदे पृ पि स्वप्नादौ पृति बस्यानुना बस्य थः अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उट अनेन वा स्त्रीत्वं अक्लीबे दीर्घः पदेन ईकारः क्वीबे सम् मोनुखा० पिट्ठी पिट्ठ।अदि बोऽदयादौ ११ श्रक्लीबे दीर्घः क्लीबे खरान्मसे अली अदिप्रस्त सर्वत्र बुक् सूक्ष्मश्नष्ण सह हृदणांण्हः प्रथमेन पण्ह पण्हो । चोर्यं ११ स्याद्नव्यचैत्य चोर्यसमेषु यात् यात् पूर्व : लोकात् श्रोत चेत् चो प्रथमे प्रापके क्लीबे चोरिया चोरियं । एवं कुदि ११ क्षःखः कचित्तु क्षः
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प्रथमः पादः। बः अक्कीबे कुछी ।रश्मि अधोमनयां शषोः सःअनादौ द्वित्वं रस्सी। ग्रंथि ग्रंथो गंठः गंग्लादेशः। गरौशब्दस्य पुंस्त्रीलिंगे उक्ते गर्त ग
तेंडः तस्य डः अनादौ हित्वं गड्डा गड्डो ॥ ३५ ॥ टीका भाषांतर. वा ११ अंजलि शब्द ने श्राद्य-मुख्य जेमने ते अंजस्याद्य शब्दो जाणवा, तेमज इमा एटले इमन् प्रत्ययवाला शब्दो ते विकल्पे स्त्रीलिंगे वाय. संस्कृत एतद् शब्दने अंत्यव्यं० एत थाय पनी तदश्चतः सोऽक्लीबे एस थाय पनी अंत्यव्यंजन सूत्रथी सू नो लुक् अश् आत् ए सूत्रे आप आवी एसा रूप थयु. संस्कृत गरिमन् शब्दने स्त्रियामादविद्युतः ए सूत्रथीन् नो आ श्रयो पनी अंत्य सलुक् अने था चालता सूत्रथी विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थइ गरिमा एq रूप थाय. बीजे पदे. एतद् शब्दने अंत्यव्यंज० तश्च तः सो० एटले एस रूप थाय. गरिमन् शब्दने पुंस्यन आणो राजवच ए सूत्रथी न नो आ थाय पछी अंत्यव्यंजन सलुक् लागी गरिमा रूप सिद्ध अयु. एसा महिमा त्यां एसा पूर्ववत् सिद्ध करवं. महिमन् शब्दने महिमानो जे नाव ते महिमा कहेवाय तेने आ चालता सूत्रथी विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थाय एटले स्त्रियामाद ए नियमलागी महिमा रूप थाय. पुंलिंग पदे पुंस्यन आणो० ए सूत्रे न नो आ थई महिमा रूप सिह थाय. संस्कृत निर्लज तेने निर्लजनो जे नाव ते निलेजत्व कहेवाय. अहिं भावे तलत्व प्रत्ययः ए सूत्रधी व प्रत्यय आवे. पठी अहिं डिमा प्रत्ययलागी डित्वपणाथी अंत्यस्वरनो लोप थई आ चालता सूत्रथी विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थाय. स्त्रीलिंगपदे स्त्रियामाद ए सूत्रलागी बाकीनी साधना पूर्ववत् करवी. पजी सर्वत्र रलक अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोलागी निल्लज्जमा रूप सिद्ध थाय. पुंलिंग पक्ष पुंस्यन आणो राज ए सूत्रलागी निल्लजमा रूप सिद्ध थाय. संस्कृत धूर्त धूतनो जे नाव ते धूतत्व कहेवाय. अहिं त्व प्रत्यय आव्यो. पठी हृस्वः संयोगे सर्वत्र रलुक अनादौद्वित्वं ए सूत्रोलागी त्व प्रत्ययने डिमा प्रत्यय लागे डित्यं० ए नियमलागी धृत्तिमा रूप सिद्ध थाय. बीजे पदे धूर्तः एवं थाय. संस्कृत गर्त शब्दने पृथ्वादिरिमन् ए नियमथी विकटपे इमन् प्रत्यय आवे. पती अंत्यस्वरादे० ए सूत्रथी अंत्यस्वरनो लोप थाय. पी लोकातू पुंस्यनआणो ए सूत्रोलागी गत्तिमा रूप सिख थाय. संस्कृत अंजलि ११ शब्दने अक्लीबे० सूत्रलागे पठी स्त्रीलिंगमां एसा अंजली एवं रूप थाय. पुंलिंगमां एस अंजली एवं थाय. संस्कृत पृष्ठ शब्दने पृष्टेवानु त्तरपदे ए सूत्रथी पृ नो पि थाय. पनी इःस्वप्नादौ ए सूत्रलागी पृष्टि थाय. पनी ष्टस्यानुष्टा ए सूत्रथी ष्ट नो थ थाय, पनी अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व ठ नोट थाय. पनी था चालता सूत्रे विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थाय अने अकीबे दीर्घः अने एकपड़े ई कार न थाय अने क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोलागी पिट्टी पिठं एवां रूप सिद्ध थाय. संस्कृत अक्षि शब्दने छोऽक्ष्यादौ अक्लीबे दीर्घः क्लीबेखरान्म्से ए सूत्रोलागी अच्छी आच्छि एवां रूप सिद्ध थाय, संस्कृत प्रस्त शब्दने सर्वत्र रलुक् सूक्ष्मश्नष्ण
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मागधी व्याकरणम्. ए सूत्रोलागी पण्ह अने पण्हो एवां रूप धाय. संस्कृत चोर्य ११ तेने स्यादुर्भाव्य चैत्यचोर्य ए सूत्रलागी य नी पेहेला इ थाय पी लोकात् औत ओत् ए सूत्रथी चो श्राय. पी एकपः नपुंसके लेतां चोरिआ चोरिअं एवां बे रूप सिद्ध थाय. एवी रीते कुक्षि ११ शब्दने क्षः खः कचित्तु ए सूत्रलागी पनी क्ष नो थाय अने अलीबे ए सूत्रथी कुच्छी रूप थाय. संस्कृत रश्मि शब्दने अधोमनयां शषोः सः अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोथी रस्सी रूप सिद्ध थाय. संस्कृत ग्रंथि शब्दने ग्रंथो गंठः ए सूत्रथी ग्रंथ स्थाने गंठ आदेश थाय एटले गंठि रूप सिद्ध थाय. गर्ता शब्द पुंलिगे अने स्त्रीलिंगे तेथी तेनां गर्त अने गर्ता एवां रूप सिद्ध थाय. गर्ने डः ए सूत्रथी त नो ड थाय. पनी अनादौ हित्वं ए सूत्रलागी गड्डा गड्डो एवां रूप सिघ थाय.॥ ३५ ॥
बादोरात् ॥ ३६॥ बाहुशब्दस्य स्त्रीयामाकारोन्तादेशो नवति ॥ बादाए जेण धरि एकाए ॥ स्त्रिया मित्येव । वामेश्ररो वाहु ॥ ३६ ॥ मूल भाषांतर. बाढु शब्दने प्राकृतमां स्त्रीलिंगे आकार एवो अंतादेश पाय. संस्कृत बाहुना येन धृतः एकया तेनु बाहए जेण धरिओ एकाए एवं थाय अहिं बाहु शब्दने त्रीजी विनक्तिमां श्राकारांत आदेश अई बाहाए एवं रूप सिद्ध श्रयेलु . ते स्त्रीलिंगेज थाय. संस्कृत वामेतरो बाहुः तेनुं प्राकृत वामे अरोबाहू एवं थयु ॥३६॥
॥टुंढिका ॥ बाहु ६१ आत् वाहु ३१ टाङस्ङे टा ए अनेन हु हा वाहाए यद् ३१ टा थामोर्णः श्रादेोजः अंतव्यं० दलुक् टाणशस्येत् जेण धृत कवर्णस्यार धर व्यंजना श्रत् लोकात् क्ते रारि कगचजे० तबुक् श्रतः से?ः धरि एका ३१ टाङस्छे रदान्टाए सेवादौ वा हित्वं एकाए । वामेतर ११ कगचजेति लुक् श्रतः सेोःवामेवरो बाहू ११ अक्कीबे बाहू ॥३६ ॥ टीका भाषांतर. बाहु ६१ श्रात् संस्कृत बाहु ३१ शब्दने श्रीजी विनक्तिना एक वचनमां टा प्रत्यय श्रावे पनी टाङसू० ए सूत्रथी टा नो ए थाय पनी श्रा सूत्रवने हु नो हा थाय त्यारे वाहाए रूप सिद्ध थाय. संस्कृत यद् ३१ शब्दने टा प्रत्यय श्रावे पठी आमोर्णः आदेयों जः अंतव्यं० दलुक् टाणशस्येत् ए सूत्रोथी जेण ए रूप सिक श्राय. संस्कृत धृत शब्दने कवर्णस्यार ए सूत्रथी धर एवं रूप पाय.पी व्यंजना श्रत् खोकात् क्ते ए सूत्रथी र नो रि थाय पी कगचजेति त्लुक् अतः से?: ए सूत्रोथी. धरिओ एवं रूप सिझ थाय. संस्कृत एका ३१ तेने टाप्रत्य० श्रावे पठी टाडसूडे
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प्रथमःपादः। रदा ए सूत्रथी टा नो ए थाय सेवादी वा वित्वं ए सूत्रलागी एकाए एबुं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत वामेतर ११ तेने कगचजेति तलुक् अतः सेोः एसूत्रो लागीवामेअरो रूप सिद्ध थाय. बाहु ११ शब्दने अलीबे ए नियमथी बाहू एवं रूप सिद्ध थाय. ॥३६॥
अतो डो विसर्गस्य ॥३७॥ संस्कृतलक्षणोत्पन्नस्यातः परस्य विसर्गस्य स्थाने डो इत्यादेशो जवति ॥ सर्वतः। सवर्ड ॥ पुरतः । पुर ॥ अग्रतः । अग्ग ॥ मार्गतः। मग्ग ॥ एवं सिफावस्थापेक्षया। नवतः। नव ॥ जवंतः । नवंतो ॥ संतः संतो ॥ कुतः । कुदो ॥ ३ ॥ मूल भाषांतर. संस्कृत लक्षणथी उत्पन्न श्रयेला अकारथकी पर एवां विसर्गने स्थाने डो एवो आदेश पायजे. जेमके, संस्कृत सर्वतः तेनुं सवओ एवं रूप थाय. संस्कृत पुरतः तेनुं पुरओ थाय. संस्कृत अग्रतः तेनुं अग्गओ थाय संस्कृत मार्गतः तेनुं मग्गओ श्राय. एवीरीते सिद्धावस्थानी अपेदाए संस्कृत भवतः तेनुं भवओ श्राय. भवंतः तेनुं भवंतो थाय संस्कृत संतः तेनुं संतो अने कुतः तेनु कुदो एवां रूप पाय॥३७॥
॥ढुंढिका ॥ श्रतः५१ डो ११ विसर्ग ६१ सर्वतः श्रग्रतःमार्गतः सर्वत्र र बुक श्रनादौ हित्वं ह्रस्वः अनेन विसर्गस्य डो । कगचजेति तदुक् डित्य सवर्ड पुर अग्ग मग्ग नवतः षष्ठ्यंतरूपसिद्धः अनेन विसर्गस्य डो उ कगटडेति तबुक डित्यं नव । नवंतः संतः१३ अनेन विसर्गस्य डोउ जवंतो संतो।कुतस् ११ श्रव्य तोदोऽनादौ शौरसेन्यामयुक्तस्य तस्य दः अनेन विसर्गस्य डोडित्यंण्कुदो॥३॥ रीका भाषांतर. अतः ५१ डो ११ विसर्ग ६१ संस्कृत सर्वतः अग्रतःमार्गतः ए शब्दोने सर्वत्र रलुक अनादौ द्वित्वं हवः श्रा चालता सूत्रथी विसर्ग नो डो थाय. कगचजेति तलुक् अने डित्यं० ए सूत्रोथी सव्वओ पुरओ अग्गओमग्गओ ए रूप सिद्ध श्राय . संस्कृत भवतः ते षष्ठीविनक्तिनुं सिद्ध रूप ले. तेने आ चालता सूत्रथी विसर्गनो डो थाय पजी कगटडेति तलुक् अने डित्यं० ए सूत्रोथी भवओ रूप सिद्ध श्राय. संस्कृत प्रथमाबहुवचन भवंतः संतः १३ तेने आ चालता सूत्रथी विसर्गनो डो थाय एटले भवंतो संतो एवां रूप थाय. संस्कृत कुतस् ११ तेने अव्यय० तोदोनादौ० ए सूत्रथी तनो द थाय पी आ चालता सूत्रथी विसर्गनो डो भई डित्यं ए सूत्रथी कुदो रूप सिद्ध श्राय. ॥ ३७॥
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मागधी व्याकरणम्. निष्प्रती उत्परी माव्यस्थो ॥ ३० ॥ निर् प्रति इत्येतो माल्यशब्दे स्थाधातौ च परे यथासंख्यं उत् परिश्त्येवंरूपौ वा जवतः । अनेदनिर्देशः सर्वादेशार्थः ॥ उमालं। निम्मलं । उमालयं वह । परिहा पश्टा । परिटिशं पट्टिकं ॥३॥ मूल भाषांतर. प्राकृतमा निर् अने प्रति ए बे उपसर्गोनी पनी जो माल्यशब्द अने स्थाधातु आवे तो यथासंख्याए ओत् निर् एवां रूपवाला विकटपे थाय. अहिं जे अन्नेदनिर्देश कर्यो ने ते शब्दने स्थाने सर्व आदेशने अर्थे बे. संस्कृत निर्माल्य शब्दनुं आ सूत्रथी ओमालं तथा निम्मल्लं एवां रूप धाय. तेउपर उदाहरण आपेले संस्कृत निर्माल्यं वहति एवं हतुं तेनुं प्राकृत श्रा नियमप्रमाणे-ओमालयं वहह एवं थाय. संस्कृत प्रतिष्ठा तेनुं आ नियमथी परिहा अने विकटपे पहठा एवां रूप पाय. संस्कृत प्रतिस्थित तेना परिडिअं अने पइडिअं एवां रूप थाय. ॥ ३० ॥ .
॥ढुंढिका ॥ निश्च प्रतिश्च निष्प्रती उच्च परिश्च उत्परी १५ माल्यश्च स्थाश्च माव्यस्थौ तयोः वा ११ निर्माल्यं निर्गतं माढ्यं येषां क्लीवे स्म् अधोमनयां यबुक् अनेन वा निरःस्थाने उ मोनु उमालं पदे निर्मात्यः ह्रस्वःसंयोगे मा म सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं अधोमनयां यदुक् सेवादौहित्वं निम्म । सा प सहत्य दिलं श्रद्यवि. उसहयगंधर हियंपि उवसियनयरदेव व उमालयं वह १ श्रस्यार्थः हे जगवन् त्वया स्वहस्तदत्तं निर्मात्यं सा स्त्री अद्यापि वहति निर्मात्यं गंधरहितमपि उहसितनगरगृहदेवतेवेत्यर्थः निर्मात्यकं वा स्वार्थे कश्च वाऽन्यत्पूर्ववत् उमालयं । प्रतिस्था स्थष्टाथक्कचिट्टनिरप्पाः स्था ग वा ऽनादौ हित्वं द्वितीय पूर्वस्य अने. न वा प्रतिस्थाने परि पदे सर्वत्र रखुकू कगचजेति तबुक् परिडा पश्टा पूर्ववत् क्त प्रण गदोसोनुविद्यादिष्वेकस्मिन् स्त्रीणां हाहि कगचजेति तबुक् परिहिथं पट्टिकं ॥ ३० ॥ टीका भाषांतर. निर अने प्रति ते निष्प्रती कहेवाय. उत् अने परि ते ओत्परी कहेवाय. माल्य भने स्थान ते बने पर उते थाय. निर गयुंडे माख्य ( पुष्पादि ) जेमर्नु ते निर्माल्य कहेवाय. अहिं क्लीवेसम् अधोमनयां ए सूत्रथी य नो लुक् अयो. पड़ी
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प्रथमःपादः।
एए श्रा चालता सूत्रथी निर् ने स्थाने ओ श्राय पनी मोनु० ए सूत्र लागी ओमालं रूप सिद्ध थाय. बीजे पक्षे निर्माल्यः इस्वःसंयोगे ( मानोमवाय ) सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं अधोमनयां यलुक् सेवादौद्वित्वं ए सूत्रो लागी भिम्मल्लं एवं रूप थाय. सापइ ए गाथानो जावार्थ एवो के, हे नगवन, तमे स्वहस्ते श्रापेला निर्मात्यने ते स्त्री अद्यापि वहन करे. ते निर्माट्य गंधरहित ने तोपण ते उजम थयेला नगरनी गृहदेवी होय तेम धरी राखेडे. निर्माल्यकं अहिं स्वार्थे कप्रत्यय आवेलो . बाकीर्नु पूर्वनी जेम जाणवू. अहिं उदाहरणमां ओमालयं ए शब्द मुकेलो . संस्कृत प्रतिष्टा शब्दने स्थष्टा थक्क० ए सूत्रथी ए आदेश थाय पजी अनादौद्वित्वं द्वितीय० पूर्वस्य अने श्रा चालता सूत्रथी प्रति ने स्थाने परि श्रादेश थाय. बीजे पदे सर्वत्र रलुक् कगचजेति तलुक् ए सूत्रो लागी परिहा पइट्ठा रूप सिद्ध थाय. पूर्ववत् ते परिउपसर्गसहितस्था धातुने क्त प्रत्यय आवे पनी स्त्रीलिंगे ग ने स्थाने वि थाय पनी कगचज ए सूत्रथी त नो लुक् थई परिट्ठि पइटिअं ए रूप सिद्ध श्राय. ॥ ३० ॥
आदेः॥३॥ श्रादेरित्यधिकारः कगचज इत्या दिसूत्रात् प्रागविशेषे वेदितव्यः३ए मूल भाषांतर आदेःश्रा अधिकार , ते कगचज इत्यादिसूत्रनी पेहेलां अविशेपमा जाणवो. ॥ ३॥
त्यदाद्यव्ययात् तत्स्वरस्य लुक् ॥ ४०॥ त्यदादेरव्ययाच परस्य तयोरेव त्यदायव्यययोरादेः खरस्य बहुलं बुक् नवति ॥श्रह्मेत्थ श्रह्मे एत्थ । जश्मा जश्श्मा । जहं जश्यहं॥४०॥ मूल भाषांतर. त्यदादि शब्दो अने अव्यय पछी जो ते त्यदादि अने अव्यय श्रावे तो तेमना श्रादिस्वरनो विकटपे लुक् थाय. जेम संस्कृत अस्मद् अने एतद् शब्दोना अमेत्य अने अह्मएत्थ एवां रूप थाय . तेवीरीते संस्कृत यदि इदम् शब्दना जइमा जइइमा एवां रूप आय . अने संस्कृत यदि अस्मद् तेनां जइहं जइ अहं एवां रूप थाय .॥४०॥
॥ ढुंढिका ॥ त्यदादयश्च श्रव्ययश्च त्यदायव्ययं तस्मात् तयोः स्वरस्तत्वरस्तस्य बुक् ११ अस्मत् १३ ब्रह्मश्रह्मेश्रह्मोमोवयंनेजसा जसा सह श्रस्मद्रस्थाने श्रीं । एतद् ७१ अंत्यव्यंग दलुक् डेस्सिम्मित्थाः डिस्थाने त्थ त्थे च तस्य ढक् उनयत्र तलोपः अनेन वा एकारलोपः श्रोत्थ श्रोएत्थ । यदि श्रादेर्योजः कगचजेति दलुक् जश् श्द
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मागधी व्याकरणम् . म् ११ श्दमश्मः सिना सह श्दमःस्थाने श्म श्रादित्याप अनेन वालुक् जश्मा जश्श्मा । जश् प्राग्वच्च । अस्मद् ११ अस्मदोम्मिश्रम्मिश्रमिहं अहंश्रयं सिना सिनासह अस्मद्रस्थाने अहं अनेनवा बुक् जहं जश्यहं ॥ ४० ॥ टीका भाषांतर. त्यदादि शब्दो अने अव्ययश्री ते बनेना स्वरनो खुक् थाय. संस्कृत अस्मद् शब्दने अह्मअह्मे० ए सूत्रथी अस्मद् ने स्थाने अह्मे थाय. संस्कृत एतद् शब्दने अंत्यव्यंग ए सूत्रे दनो लुक् थाय. पी डेस्सिम्मित्थाः ए सूत्रथी डिने स्थाने त्थ श्राय पनी ते त्य पर बते त नो लुक् पछी बंने स्थाने तकारनो लोप अश् श्रा चालता सूत्रवडे एकार नो लोप श्रयो एटले अह्मत्थ तथा अमेएत्थ एवां रूपसिघ थाय. संस्कृत यदि शब्दने आयोजः कगचजेतिद्लुक् ए सूत्रोलागी जह अयु. संस्कृत इदम् शब्दने इदम इमः ए सूत्रथी सि प्रत्ययसहित इदम् शब्दने स्थाने इम आदेश थाय पछी आत् ए सूत्रथी आए श्रावी श्रा चाखता सूत्रवडे विकटपे लुक् अश् जइमा जइइमा एवां रूप सिद्ध थाय. जइ पूर्व (उपर) प्रमाणे सिद्ध श्राय. संस्कृत अस्मद् शब्दने अस्मदोम्मिम्मि० सिसहित अस्मद् शब्दने स्थाने अहं श्रादेश आवे. पडी था चालता सूत्रधी विकटपे लुक् थाय एटले जइहं जइअहं एवां रूप सिद्ध श्राय ॥४०॥
पदादपेर्वा ॥४१॥ पदात्परस्य श्रपेरव्ययस्यादेर्वग् वा नवति ॥ तंपि तमवि । किंपि किमवि । केणवि केणावि । कहंपि कदमवि ॥४१॥ मूल भाषांतर. कोइ पदनी पनी जो अपि अव्यय आवे तो तेना आदि अक्षर (अ) नो विकल्पे लुक् थाय. जेम संस्कृत तदपि तेनुं प्राकृत तंपि अने विकल्पपदे तमवि थाय. तेवीरीते संस्कृत किमपि तेनुं किंपि अने किमवि श्राय. संस्कृत केनापिनुं कहंपि अने कहमवि थाय. ॥१॥
॥ढुंढिका ॥ पद ५१ अपि ६१ वा ११ तद् ११ अंत्यव्यं० दबुक् क्लीबे सम् मो. नु० थपि अनेनवा अलोपः द्वितीये लोकात् पो वः तंपि रामवि ॥ किम् ११ अम् किमःकिम् अमासह किमःकिम् अन्यत् पूर्ववत् किंपि किमवि ॥ किम् ३१ किमः कस्त्रतसो किमः स्थाने क टाधामोर्णः टाणशस्येत् एत्वं शेषं पूर्ववत् केणवि केणावि ॥ कथं अपि खथ० थस्यहः अनेन वा बुक् द्वितीये पोवः कहंपि कहमवि ॥१॥
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प्रथमःपादः।
६१ टीका भाषांतर. पद ५१ अपि ६१ वा ११ संस्कृत तद अपि शब्द बे. तेमां तद् शब्दने अंत्यव्यंग ए सूत्रथी द नो लुक् थः क्लीबे सम् मोनुवार ए सूत्रोलागी तं श्रयुं अपि शब्दने आ चालता सूत्रधी विकल्पे अ नो लोप थाय एटखे तंपि रूप पाय. विकटप पदे लोकात् पोवः सूत्र लागे एटले तमवि थाय. संस्कृत किमपि शब्द ने तेमां किम् ११ शब्दने अम् प्र० श्रावे पठी किमः किम् सूत्रथी किम्ने स्थाने किम् थाय बाकी पूर्ववत् अइ किंपि किमवि रूप थाय जे. संस्कृत केनापि शब्दने किमः कस्त्रतसोश्च ए सूत्रथी किम् ने स्थाने क आवे परी टाआमोणेः टाणशस्येत् ए सूत्रो लागी बाकी पूर्व प्रमाणे सिद्ध थइ केणवि केणावि एवां रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कथमपि तेने खथध० ए सूत्रथी थ नो ह थाय पडी था चालता सूत्रथी अ नो विकटपे लुक् थ कहंपि थाय अने बीजे पदे पोवः सूत्र लागी कहमवि रूप पाय. ॥४१॥
इतेः स्वरात् तश्च दिः॥४॥ पदात्परस्य श्तेरादे ग् जवति खरात् परस्य तकारो हिर्जवति ॥ किंति । जंति । दिति । नजुत्तति ॥ खरात् । तहत्ति । जत्ति । पित्ति । पुरिसोत्ति॥ पदादित्येव ।श्वविफ-गुहा-निलया ए ॥४॥
मूल भाषातर. कोइ पदनी आगल जो इति शब्द श्रावेतो तेनो लुक् थाय. अने स्वरनी पनी त आवे तो तेनो बिजोव थाय. जेम संस्कृत किम् इति तेनुं किंति थाय. संस्कृत यद् इति तेनु जति थाय संस्कृत दृष्टं इति तेनुं दिलुति श्राय. संस्कृत नयुक्तं इति तेनुं नजुत्तंति थाय. स्वरनी पड़ी त आवे तेनुं उदाहरण-जेम संस्कृत तथा इति तेनुं तहत्ति थाय. तेमज झग इति तेनुं झत्ति थाय. संस्कृत प्रिय-इति तेनुं पिओत्ति थाय. संस्कृत पुरुष इति तेनुं पुरिसोत्ति थाय. मूलमां कडं बे, तेम श्रा नियम पदनी पजीज प्राप्त थाय. जेम के संस्कृत इति-विध्यगुहानिलयायाः तेनुं प्राकृत 'अवि-गुहा-निलयाए' श्राय, अहिं इति शब्द पदनी पड़ी श्राव्यो नयी तेथी आ नियम लागु पडे नहीं. ॥ ४२ ॥
॥ टुंढिका॥ इति ६१ स्वर ५१त् ६१ च ११ छिः११ किम् ११ यद् २१ इति वा खरे मश्च अंत्यव्यं० बुक् अमो मोनु थादेर्योजः किंति जति । दृष्टअम्शति इत्कृपादौ दृ दिष्टखानु० ष्टस्य उः अनादौहित्वं हितीयापूर्वठः टः श्रमोऽस्य अनुक् मोनु अनेन ३ बुक् दिहति । नयुक्त-इति श्रादेर्योजःकगटडेति कलुक् अनादौ हित्वं अनेन श्खुक् नजुत्तंति।तथा इति जगति खयघधनां यस्यहः अनेन श्लुक्
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मागधी व्याकरणम्.
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तस्य द्वित्वं चति त्ति ह्रस्वः संयोगे च श्रत्यव्यं० ग्लुक् तत्ति ऊत्ति प्रिय ११ इति सर्वत्र रलुक् श्रनादौ द्वित्वं कगचजे तियलुकू छातः सेर्डो डित्यं श्रनेन इलुक् तस्य च यति ति पिउत्ति । पुरुष ११ इति पुरुषेरो करि शषोः षस्य सः अतः सेर्डे श्रनेन षलुक् तस्य च द्विस्वं पुरिसोत्ति | गाथा ॥ श्य विकगुहा निलयाए तम्मिदल सर्वरसिद्ध मग्गाए पहुणासपरि अरं जमवइए विहिउँ नमुकारो ॥१॥ अस्यार्थः इत्यमुना प्रकारेण प्रजुषा नृपेण जगवत्याः पार्वत्या नमस्कारो विहितः किं० पार्वत्याः विंध्यगुदेव निलयो गृहं यस्याः सा विंध्यगुहा निलया तस्याः क्व तस्मिन् पर्वते पुनः किं० दल सैन्यं तस्य ये शबरा जिल्लास्तैः शिष्टः कथितो मार्गों यस्या इत्यर्थः इतौ तो वाक्यादौ ति त कगचेति तलुक् इयविंध्यगुहा निलया ६१ साध्वसध्यह्यांऊः धस्य कः खघथधनां फस्यदः टाङस्डेरदादिस स्थाने ए विंऊगुद्दानिलयाए ॥ ४२ ॥
टीका भाषांतर. पदनीपर जो इति शब्द यावे तो तेना आदिश्रक्षर इनो लुक् थाय. ने स्वरनी पढी आवेला तनो जिव थाय संस्कृत किम्+इति यद्+इति तेने वा स्वरे मश्च अंत्यव्यं० मोनु० आदेर्यो जः ए सूत्रो लागी किंति ने जंति एवां रूप याय. संस्कृत दृष्टं + इति तेने इत्कृपादौ ष्टस्यानु० अनादौ घित्वं द्वितीय० पूर्ववः टः मोsस्य लुक् मोनु० अने चालता सूत्रथी ईनो लुक् श्रई दिट्ठति रूप याय. संस्कृत नयुक्त + इति तेने आदेयों जः कगटड० अनादौ द्वित्वं ए सूत्रो लागी श्रा चालता सूत्र इनो लुक् थई न जुत्तंति एवं रूप याय. संस्कृत तथा+इति झग+इति तेने खघथधभां ए सूत्र लागी आ चालता सूत्रथी इनो लुक् छाने तेनो जिव थई, ह्रस्वः संयोगे अंत्यव्यं० ए सूत्रो लागी तहन्ति तथा झन्ति एवां रूप थाय. संस्कृत प्रिय + इति तेने सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं कगचज० अतः सेडः डित्यं श्रा चालता सूत्रथी इनो लुक् तथा तनो विथ पिओत्ति रूप सिद्ध याय. संस्कृत पुरुष + इति तेने पुरुषे रो शषोः षस्य सः अतः सेर्डोः आ चालता सूत्रथी बनो लुक् श्रने तनो विर्भाव यई पुरिसोति एवं रूप सिद्ध थाय. ते पर उदाहरणरूपे गाथा वे-तेनो जावार्थ एवो बे के, " या प्रकारे विंध्याचल पर्वतनी गुहा जेनुं स्थान बे एवा श्रने सैन्यना जिल्ललोकोए जेने मार्ग बताव्यो ने एवा ते जगवती पार्वतीने ते राजाए नमस्कार कर्यो. अहिं इति विंध्यगुहानिलयायाः " 'ए संस्कृत पदनुं इयविंझगुहा निलयाए' ए प्राकृत पदनी पेहेला श्रावेला इतिशब्दना दिनो लुक् थयो नहीं. ते इतौ तो वा क्यादौ कगच० साध्वसध्यह्यां झः खद्यथधभां॰ टाङस्ङेरदादि० ए सूत्रो लागी 'विंकगुहा निलयाए' ए पद सिद्ध थायडे.
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प्रथमःपादः। लुप्त-य-र-व-श-ष-सां श-ष-सां दीर्घः ॥४३॥ प्राकृतलक्षणवशाबुप्ता याद्या उपर्यधो वा येषां शकारषकारसकारा णां तेषामादेः स्वरस्य दी? जवति ॥ शस्य यलोपे । पश्यति । पास ॥ कश्यपः । कासवो ॥ श्रावश्यकं । श्रावासयं ॥ रलोपे । विश्राम्यति । वीसम॥ विश्रामः । वीसामो ॥ मिश्रम् । मीसं। संस्पर्शः। संफासो॥ वलोपे।अश्वः। श्रासो॥ विश्वसिति।वीसस॥ विश्वासः। वीसासो॥शलोपे। पुश्शासनः। दूसासणो॥मनःशिला। मणासिला ॥ षस्य यलोपे । शिष्यः । सीसो ॥ पुष्यः। पूसो ॥ मनुष्यः । मणूसो ॥ रलोपे। कर्षकः। कास ॥वर्षाः। वासा ॥ वर्षः । वासो ॥ वलोपे। विष्वाणः । वीसाणो ॥ विष्वक् । वीसुं ॥ पलोपे। निषिकः। नीसित्तो ॥ सस्य यलोपे । सस्यम्। सासं ॥ कस्यचित् । कासई ॥ रलोपे । उस्रः। उसो॥ विलंजः। वीसंनो॥ वलोपे । विकस्वरः । विकासरो ॥ निःस्वः । नीसो ॥ सलोपे । निस्सहः । नीसहो ॥ न दीर्घानुस्वारात् (२. ए५ ) इति प्रतिषेधात् सर्वत्र श्रनादौ शेषादेशयोर्डित्वम् (२. नए) इति हित्वाजावः॥४३॥ मूल भाषांतर. प्राकृत लक्षणना नियमथी उपरके नीचे जेमना य र व श ष धने स लोप थयेला एवा शकार, षकार अने सकार, तेमना आदि (प्रथमना) स्वरने दीर्घ थायवे. शना यलोपर्नु उदा सं. पश्यति तेनुं प्रा० पासइ सं. कश्यपः तेनुं प्रा० कासवो सं. आवश्यकं तेनुं प्रा० आवासयं. वाय. रलोपना उदा० सं. विश्राम्यति तेनुं वीसमइ सं० विश्रामः तेनुं वीसामो संस्कृत मिश्रम् तेनुं मीसं सं. संस्पर्शः तेनुं संफासो । वलोपना उदा० सं० अश्वः तेनुं आसो सं विश्वसिति तेनुं वीससइ सं. विश्वासः तेनुं वीसासो शलोपना उदा० सं. दुश्शासनः तेनु दूसासणो सं० मनःशिला तेनुं मणासिला षकारना यलोपना उदा० सं० शिष्यः तेनुं सीसो श्राय. सं० पुष्यः तेनुं पूसो आय. सं. मनुष्यः तेनुं मणूसो थाय. रलोपना उदा० सं. कर्षकः तेनुं कासओ थाय. सं. वर्षाः तेनुं वासा थाय. सं. वर्षः तेनुं वासो थाय. वलोपना उदा० सं. विष्वाणः तेनुं वीसाणो थाय. सं. विष्वक् तेनुं वीसुं थाय. षलोपना उदा० सं. निषिक्तः तेनु नीसित्तो थाय. सकारना यलोपना उदा० सं. सस्यम् तेनुं सासं सं. कस्यचित् तेनुं कासई थाय. रलोपर्नु उदा० सं. उस्रः तेनुं जसो पाय. सं. विलंभ तेनुं बिसंभो थाय. वलोपना उदा० सं. विकस्वरः तेनुं विकासरो थाय. सं. नी:स्वः तेनुं नीसो थाय. सलोपना उदा० सं. निस्संहः तेनुं नीसहो थाय.
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६४
मागधी व्याकरणम्. नदीर्घानुस्वारात् ए सूत्रमा निषेध कर्यो तेथी सर्व स्थले अनादौ शेषादेशयोः ए नियमथी थतां बिर्लावनो अनाव थायः॥४३॥
॥ ढुंढिका ॥ यश्च रश्च वश्च शश्च षश्च स्च य र वशषसः लुप्ता यव श ष सो येषां ते लुप्त य र व श ष सां शश्च षश्च स्च तेषां शषसां ६३ दीर्घः ११ पश्यति संस्कृत सिफः अधोमनयां यदुक्थनेन दीर्घःप पाशषोस्सः श स त्यादीनां तिः पासई । कश्यपः ११ अधोमनयां अनेन दी. घः शषोःसः पोवः श्रतः सेोंःकासवो। आवश्यकं अधोमनयां यलुक् शषोः सः अनेन दीर्घः कगचजेति कलुक् श्रवर्णो श्रावासयं । विश्राम्यति सर्वत्र रबुक् अनेन दीर्घः विवी ह्रस्वःसंयोगे शा शषोःसः अधोमनयां यबुक् त्यादी० ति ई वीसम । विश्राम ११ सर्वत्र रखुक् अनेन दीर्घः वि वी शषोः सः अतःसे?ः वीसामो । मिश्र सवत्र रखुक् अनेन दीर्घः मिमी शषोः सः मीसं संस्पर्शः व्यस्पयोः फः स्पस्य फः सर्वत्र रसुक् शषोः सःअनेन दीर्घः ११ गुणाया वालीबे वा इति सम् मोनु संफासं श्रश्वः सर्वत्र रबुक् अनेन दीर्घःशषोःसः अतः सेझैः श्रासो। विपूर्व अनश्वसक् प्राणने श्वस्वर्त्त तिव् व्यंजनात् लोकात् त्यादीनां ति सर्वत्र रखक्शनेन दीर्घः वीसस। विश्वास ११ सर्वत्र वबुक् अनेन दीर्घः विवी शषोःसः अतः सेझैः वीसासो। पुरशासन ११ मनश्शिला ११ कगटडेति दश बुक् अनेन दीर्घः छदू न ना शषोःसानोणः अतः सेोः अंत्यव्यंग सबुक् दूसासणो मणासिला । शिष्य पुष्य मनुष्य ११ अधोमनयां यलुक् शषोः सः अनेन पूर्वस्य दीर्घः नोणः श्रतःसे?ः सीसो । पू. सो । मणूसो । कर्षक ११ सर्वत्र रबुक् अनेन दीर्घः कगचजेति कबुक् शषोः सः श्रतःसेझैः कास । वर्षा १३ वर्षः ११ सर्वत्र लुक् पूर्वस्यचदीर्घः व वा शषोःसः जस्शसोच्क् अतःसेझैः वासा वासो। विष्वाण ११ सर्वत्र वलुक् अनेन दीर्घः विवी शषोःसः श्रतः से?ः वीसाणो नोजनं विष्वक् ११ सर्वत्रवलुक् थनेन वि वी श
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प्रथमःपाः
६५ षोःसः हिविष्वचोरुः स सु बाहुलकात्याविबजनस्य मकारः वास्वरेमश्च कम मोनुण अंत्यव्यंग सबुक् वीसुं । निषतः नैत संजक्तौ निषक्तः कगटडेत्यादिना षुबुक् अनेन दीर्घः निनी शषोः सः कगचजेति कबुक् अनादौ हित्वं ११ अतः सेोः नीसित्तो। सस्यं अधोमनयाम् टालोपः अनेन दीर्घः स सा सासं । कस्यचित् अधोमनयां यलोपः अनेन दीर्घः अंत्यव्यंग तबुक् कास। उन वित्रंज उ ऊ विवीशषोः सः अतःसेर्मोः जसो वीसंजो। विकस्वर ११ सर्वत्र वलुक् अनेन दीर्घः क का श्रतःसे?ः विकासरो। निखः ११ सर्वत्र वलुक् अनेन दीर्घः श्रतःसे?ः नीसो । निस्सहं कगटडेति सबुक् अनेन दीर्घः श्रतःसे?ः नीसहो ॥ ३ ॥ टीका भाषांतर. जेमां यवशष अने स लुप्त थया होय तेवा शब्दोना आदि स्वरनो दीर्घ थाय. सं. पश्यति तेने अधोमनयां यलुक् चालता सूत्रथी दीर्घ थई शषोः सः त्यादीनांतिः इ. ए सूत्रोलागी पासई रूप थयु. सं. कश्यपः तेने अधोमनयां० चालता सूत्रे दीर्घ थई शषोसः पोवः अतःसे?ः ए सूत्रो लागी कासवो रूप थाय. सं. आवश्यकं तेने अधोम० शषोःसः चालता सूत्रे दीर्घकगचज अवर्णो० एसूत्रोलागी आवासयं रूप थाय. सं. विश्राम्यति तेने सर्वत्र र० चालता सूत्रे दीर्घ इस्वःसंयोगे शषोःसः अधोमन त्यादी० ए सूत्रोथी बीसमई रूप थाय. सं. विश्राम तेने सर्वत्र रलुक चालता सूत्रे दीर्घ शषोःसः अतःसे?ः ए सूत्रो लागी वीसामो रूप थाय. सं. विश्राम तेने सर्वत्र रलुक् चाखता सूत्रधी दीर्घ शषोःसः अतःसे?ः ए सूत्रो लागी वीसामो रूप थाय. सं. मिश्रं तेने सर्वत्र रलुक चालता सूत्रथी दीर्घ शषोःसःए सूत्रो खागी मीसं रूप थाय. सं. संस्पर्शः तेने व्यस्पयोः फः सर्वत्ररलुक् शषोःसः चालतासूत्रथी दीर्घ गुणाद्या वा क्लीवे वा मोनु० ए सूत्रो लागीसंफासं सं. अश्वः तेने सर्वत्र रलुक् चालतासूत्रधी दीर्घ शपोःसः अतःसेट: ए सूत्रोलागी आसो रूप सिद्ध थाय. सं. वि उपसर्गसहित श्वस् धातु जीववाना अर्थमा प्रवर्ते. तेना सं. विश्वसिति एवा सिघशब्दने व्यंजनात् लोकात् त्यादीनां सर्वत्ररलक् अने चालता सूत्रथी दीर्घ थई वीससई रूप श्राय. सं. विश्वास तेने सर्वत्रवलुक चालतासूत्रधी दीर्घ शषोःसः अतःसे?ः ए सूत्रोलागी वीसासो रूप धाय. सं. दुश्शासन तथा सं. मनःशिला शब्दने कगटडे० चालतासूत्रथी दीर्घ शषोःसः नोणः अतःसेझैः अंत्यव्यं० ए सूत्रोलागी दूसासणो तथा मणासिला एवा रूप थाय. सं. शिष्य पुष्य मनुष्य तेने अधोमनयां शषोःसः चालतासूत्रे दीर्घ नोणः अतःसे?ः सीसो पुसो मणूसो एवा रूप धाय. सं. कर्षक तेने सर्वत्ररलुक् चालतासूत्रे दीर्घ कगचज
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मागधी व्याकरणम्. शषोःसः अतःसे?ः ए सूत्रोथी कासओ रूप थाय. सं. वर्षाः वर्षः तेने सर्वत्ररलुक् पूर्वस्य च दीर्घः शषोःसः जसूशसोलुक् अतःसेझैः ए सूत्रोलागी वासा वासो रूप श्राय. सं. विष्वाण तेने सर्वत्रवलुक् आ चालतासूत्रधी दीर्घ शषोसः अतः से?: ए सूत्रोलागी नीसाणो रूप थाय. तेनो अर्थ नोजन थाय . सं. विष्वक तेने सर्वत्रवलुक चालतासूत्रथी दीर्घ शषोःसः द्विविष्वचोरुः अथवा बाहुलकपक्ष खस्ने बीजाव्यंजननो मकार थाय. एटले वा खरेमश्च मोनु० अंत्यव्यं० ए सूत्रोलागी वीसुं रूप थाय. सं. विषय धातुनुं निषक्त रूप तेने कगटड चालतासूत्रे दीर्घ शषोः सः कगचज अनादौ द्वित्वं अतःसे?ः ए सूत्रोपामी नीसित्तो रूप थाय. सं. सस्यं तेने अधोमनयां चालतासूत्रे दीर्घ थई सासं रूप धाय. सं. कस्यचित् तेने अधोमनयां चालतासूत्रे दीर्घ अंत्यव्यं ए सूत्रोथी कासइ रूप थाय. सं. उस तथा विस्रंभ तेने चालतासूत्रे दीर्घ शषोःसः अतःसे?ः ए सूत्रोलागी ऊसो वीसंभो रूप थाय. सं. विकस्वर तेने सर्वत्रवलु० चालतासूत्रे दीर्घ अतःसेडोंः ए सूत्रोथी विकासरो रूप थाय. सं. निस्वः तेने सर्वत्रवलुक् चालतासूत्रे दीर्घ अतःसे?ः ए सूत्रोथी नीसो रूप थाय. सं. निस्सहं तेने कगट० चालतासूत्रे दीर्घ अतःसे?ः ए सूत्रोथी नीसहो रूप थाय.॥४३॥
अतःसमृध्यादौ वा॥४४॥ समृद्धि इत्येवमादिषु शब्देषु श्रादेरकारस्य दी? वा जवति ॥ सामिद्धी समिझी। पासिझी पसिझी। पायडं पयडं । पाडिवथा पडिवथा । पासुत्तो पसुत्तो । पाडिसिझी पडिसिझी । सारिको सरिलो । माणंसी मणंसी। माणं सिणी मणं सिणी। श्राहिया श्रहिवाई । पारोहो परोहो । पावासू पवासू । पाडिप्फद्धी ॥ पडिप्फझी ॥ समृद्धि प्रसिद्धि । प्रकट । प्रतिपत् । प्रसुप्त । प्रतिसिकि। सदृद । मन खिन् । मनस्विनी । अनियाति । प्ररोह । प्रवासिन् । प्रतिस्पर्छिन् ॥ श्राकृतिगणोऽयम् । तेन । अस्पर्शः । श्राफंसो । परकीयं । पारकरं । पारकं ॥ प्रवचनम् । पावयणं । चतुरंतं चाऊरंतं इत्याच पि नवति ॥४४॥ मूल भाषांतर. प्राकृतमा समृद्धि विगेरे शब्दोमां आदि अकार विकटपे दीर्घ थाय. सं. समृद्धि नुं सामिडी समिडी आय. सं. प्रसिद्धि नुं पासिद्धी पसिद्धी पाय. सं. प्रकट नुं पायडं पयडं थाय. सं. प्रतिपत् नुं पाडिवआ पडिवआ थाय. सं. प्रसुप्त नुं पासुत्तो पसुत्तो थाय. सं. प्रतिसिद्धि न पाडिसिद्धी पडिसिद्धी थाय.
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प्रथमःपादः। सं. सदृक्ष नुं सारिच्छो सरिच्छो थाय. सं. मनस्विन् नु माणसी मणंसि थाय. सं. मनस्विनी नुं माणंसिणी मणंसिणी थाय. सं. अभियाति नुं आहिआई अहिआई थाय. सं. प्ररोह - पारोहो परोहो थाय. सं. प्रवासिन् नुं पावासू पवासू थाय. सं. प्रतिस्पर्धिन नुं पाडिप्फडी पडिप्फद्धी थाय. आ आकृतिगण . तेथी सं. अस्पर्शः नुं आफंसो थाय. परकीयं नुं पारकेरं पारकं थाय.प्रवचनम् नुं पावयणं चतुरंतं नुं चाउरंतं इत्यादि पण थाय . ॥ ॥
॥ढुंढिका ॥ अत् ११ समृष्ट्यादि ७१ समृद्धिः श्रादौ यस्यासौ स समृष्ट्यादि ११ वा ११ समृद्धि ११ प्रसिद्धि ११ श्कृपादौ म मि सर्वत्ररबुक् अनेन वा दीर्घः स सा प पा अलीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् सामिझी समिझी । पासिद्धी पसिझी।प्रकट११ सर्वत्ररबुक् अनेन वा दीर्घः प पा कगचजेतिबुक् श्रवर्णो टोडः क्लीवे स् म् मोनुण्पायडं पयडं । प्रतिपत् सर्वत्ररबुक् अनेन वा दीर्घः प पा प्रत्यादौ डः तस्य डःपोवः स्त्रियामाट् तथा अवर्णो० अंत्यव्यं सबुक् पाडिवथा पडिवथा । प्रसुप्त सर्वत्ररबुक् अनेन वा दीर्घः प पा कगटडप० पलुक् अनादौ हित्वं ११ श्रतःसेः पासुत्तो पसुत्तो । प्रतिसिछि सर्वत्र रलुक् अनेन वा दीर्घः प पा प्रत्यादौडः तस्य मा ११ अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् पाडिसिफि पमिसिद्धि सदृद दृशःक्विप् टक्सक् हरि अनेन वा दीर्घः स साक्षः खः का दास्य ः अ. नादौहित्वं द्वितीयपूर्व ब च अतःसे?ः सारिलो सरियो । मनखिन् अनेनवादीर्घः म मा वकादावंतः अनुखारेण नोणः अंत्यव्यंज बुक् सर्वत्रवलुक् अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सलुक् माणंसी मणंसी एवं मनस्विनी माणं सिणी मणं सिणी । अनिजाति अनेन वादीर्घः थ आ खथघ ल ह कगचज० जतयो क् ११ अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् श्राहिथाई अहिवाई । प्ररोह। सर्वत्ररखुक् अनेन वा दीर्घः प पार१अतःसेडोंः पारोहो परोहो प्रवासि सर्वत्ररबुक् अनेनवा दीर्घः प पा प्रवासीदौ सि सु अंत्यव्यंजन तबुक् अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन सलुक् पावासू पवासू प्र.
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मागधी व्याकरणम्.
तिस्पर्किन् सर्वत्ररलुक् अनेनवा दीर्घः प पा प्रत्यादौ मः तड स्पस्य फः स्पफ श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्वस्य प सर्वत्ररलुक् अक्की वे दीर्घः अंत्यव्यंज० सलुक् पाडिप्फद्धी पडिप्फी । अस्पर्शः ११ अनेन श्रा स्पशः फासफंस० स्पस्थाने फंस अतः सेर्डीः आफं सो परकीय कीयस्य केरके श्रनेन वा दीर्घः क्वीबे स्म मो० पारकेरं पारकं ॥ प्रवचनं सर्वत्ररलुक् श्रनेन दीर्घः प पा कगचजेति चलुक् श्रवर्णो नोणः पावयणं । चतुरंतं १९ श्रनेन च चा कगचजेति तलुक् क्ली बेस्म मोनु० चारंतं ॥ ४४ ॥
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टीका भाषांतर. समृद्धि बे आदि जेने ते समृद्ध्यादि कहेवाय. समृद्धि इत्यादि शब्दोमां श्रादिकारने दीर्घ श्राय. सं० समृद्धि प्रसिद्धि तेने इत्कृपा दौ० सर्वत्ररलुक् चालता सूत्रे विकल्पे दीर्घ अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् इत्यादि सूत्रो लागी सामिडी समिडी पासिडी पसिद्धी ए रूप सिद्ध थाय. सं० प्रकट तेने सर्वत्र रलुक् चालता सूत्रे दीर्घ विकटुपे कगचजेति लुक् अवर्णो० टोडः क्लीवे सम मोनु० ए सूत्रो लागी पायडं पयर्ड रूप सिद्ध थाय. सं० प्रतिपत् तेने सर्वत्ररलुक् चालता सूत्रे विकल्पे दीर्घ प्रत्यादौड: पोवः स्त्रियामाद् अवर्णो० अंत्यव्यंसलुक पाडिवआ पडिवआ सं० प्रसुत तेने सर्वत्ररलुक् चालता सूत्रे वा दीर्घ कगडडप० अनादौद्वित्वं अतः सेड: ए सूत्रोथी पासुत्तो पत्तो रूप सिद्ध थाय. सं० प्रतिसिद्धिन् तेने सर्वत्ररलुक् चालता सूत्रे वा दीर्घ प्रत्यादौड : अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं • पाडिसिडी पडिसिडी सिद्ध था. सं० सदृक्ष तेने दृशः क्विप् टक् सक् आगम थाय. पबी हरि ए सूत्र लागे पबी चालता सूत्रे वा दीर्घ क्षः खः क्व० अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व० अतः सेडः ए सूत्रोलागी सारिच्छो सरिच्छो रूप सिद्ध थाय. सं० मनखिन् तेने या चालता सूत्रथी विकरूपे दीर्घ वक्रादावंतः अनुखारेण नोणः अंत्यत्र्यं० सर्वत्र वलुक् अक्लीबे सौदी अंत्यव्यं० ए सूत्रोलागी माणंसी मणंसी रूप सिद्ध याय. एवीज रीते सं० मनखिनी ना माणंसिणी मणंसिणी रूप सिद्ध थाय. सं० अभिजाति तेने चालता सूत्रे दीर्घ खघथध० कगचज० अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं • आहिआई अहिआई संस्कृत प्ररोह तेने सर्वत्ररलुक् चालता सूत्रे दीर्घ अतः सेड : ए सूत्रोथी पारोहो परोहो रूप थाय. सं० प्रवासि तेने सर्वत्ररलुक् चालता सूत्रे दीर्घ प्रवासीक्षौ अंत्यव्यं० अक्लीबे● अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पावासू पवासू रूप सिद्ध थाय. सं० प्रतिस्पर्द्धिन् तेने सर्वत्ररलुक् चालता सूत्रे दीर्घ प्रत्यादौडः स्पस्यफः अनादौडि द्वितीयपू० सर्वत्ररलुक् अक्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यं० पाडिप्फडी पडिप्फडी रूप याय. सं. अस्पर्श तेने चालता सूत्रे वा दीर्घ स्पशः फासफंस० अतः सेडः ए सूत्रोथी आफंसो रूप सिद्ध थाय. सं० परकीय तेने कीयस्यकेरक्के चालता सूत्रे वा दीर्घ क्लीबे सम मोनु०
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प्रथमःपादः।
६ ए सूत्रोथीपारकेरं पारकं रूप सिद्ध वाय. सं० प्रवचन तेने सर्वत्र रलुक् चालता सूत्रे दीर्घ कगचज० अवर्णोनोणः एसूत्रोथी पावयणं रूप सिद्ध थाय. सं० चतुरंतं तेने चालता सूत्रे वा दीर्घ कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चाऊरंतं रूप सिख आय.॥४॥
दक्षिणे दे॥४५॥ दक्षिणशब्दे आदेरतो हे परे दीपों जवति ॥ दाहिणो ॥ ह इति किम् दक्खिणो ॥ ४५ ॥
मूल भाषांतर. क्षिण शब्दने तेना श्रादि अकारने हे पर बते दीर्घ आय. जेम सं० दक्षिणशब्दना आदि दना अकारनो दीर्घ श्र दाहिणो रूप थाय. मूलमां हे कहेलुं ने तेथी पहे दाक्खिणो रूप थाय. ॥४५॥
॥ढुंढिका ॥ दक्षिण ७१ ह १ दक्षिण ११ फुःखदक्षिणतीर्थे वा इति विहिश्रनेन दीर्घः श्रतः सेोः दाहिणो दक्षिण ११ क्षःखः का दःखः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व० खस्य कः श्रतःसे?ः दक्खिणो॥ ४५ ॥ टीका भाषांतर. दक्षिण शब्दने दुःखदक्षिणतीर्थे वा ए सूत्रथी श्रयेला हकारपर बते आदि कार दीर्घ थाय. सं० दक्षिण तेने दुःखदक्षिणती० चालता सूत्रे दीर्घ अतःसे?ः ए सूत्रोथी दाहिणो रूप सिद्ध पाय. बीजे पड़े संग दक्षिण ने क्षःखक० अनादौद्रित्वं द्वितीयपूर्व० अतः सेोंः ए सूत्रोथी दक्षिणो रूप थाय. अहिं आदिनो दीर्घ न अयो. ॥ ४५ ॥
स्वप्नादौ ॥४६॥ स्वप्न इत्येवमादिषु श्रादेरस्य इत्वं नवति ॥ सिविणो सिमिणो ॥ थार्षे उकारोऽपि । सुमिणो । इसि। वेडिसो। विलिश्र विश्रणं । मुङ्गो । किविणो । जत्तिमो। मिरिअं । दिलम् ॥ बहुलाधिकारे । णत्वालावे न जवति । दत्तं । देवदत्तो ॥ स्वप्न । ईषत् । वेतस । व्यलीक । व्यंजन । मृदंग कृपण।उत्तम।मरिच। दत्त इत्यादि॥६॥ मूल भाषांतर. स्वप्न विगेरे शब्दोमा आदि अकार नो इकार श्राय जे. जेम सं० स्वप्न तेना सिविणो सिमिणो एवां रूप थाय. आर्ष (कृषिप्रयोग ) मां उकार पण पाय त्यारे सुमिणो एवं रूप थाय. सं० ईषत् तेनुं ईसि रूप श्राय. सं. वेतस तेन वेडिसो रूप थाय. सं. व्यलीक - विलिअं सं. व्यजन नुं विअणं सं० मृदंग र्नु मुइंगो सं० कृपणतुं किविणो संग उत्तम नु उत्तिमो सं० मरिच तेनु मरिअं अने
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मागधी व्याकरणम्. सं० दत्त नुं दिण्णं एवं रूप सिद्ध श्राय . अहिं बहुल अधिकार चाले तेथी णकारना अजावे रूप न थाय. ॥४६॥
॥ ढुंढिका ॥ ३११ खप्नादि ७१ स्वप्न ११ सर्वत्रतबुक् अनेन स सि स्वप्नेनात् नात् प्राग् कारः प्रथमे पोवः द्वितीये स्वप्ननीव्योर्वा पस्य मः सिविणो सिमिणो स्वप्न थार्षत्वाकारः शेषं प्राग्वत् सुमिणो। ईषत् शषोःसः अंत्यव्यं तबुक् अनेन सि ११ श्रव्य इसि । वेतस् अनेन ता ति इत्वेवेतिमि अतःसे?ः वेडिसो । व्यलीक ११ अधोमनयां यदुक् अनेन वे वि पी मी या ली लि कगचेतिकलुक् क्लीबेसम् मोनु विलीअं । व्यंजन ११ अधोमण यलुक् अनेन व वि कगच० जलुक् नोणः क्लीबेसम् मोनु० विश्रणं मृदंग ११ ३उतौवृषवृष्टि मृ मु कगच दबुक् अनेन श्रई श्रतःसेझैः मुशंगो कृपण ११ इत्कृपादौ कृ कि पोवः वे वि श्रतःसेडोंः किविणो । उत्तम अनेन त ति ११ श्रतःसेझैः उत्तिमो । मरिच ११ अनेन म मि कगचेति चबुक् क्लीबेसम् मोनु मिरियं । दत्तः ११ अनेन इत्वं द दि पंचाशत् पंच तस्य णः अनादौहित्वं क्लीबेसम् मोनुण दिएणं । बहुलाधिकारात् यदिणो न जवति तत्र श्कारो न भवति दत्त देवदत्त इत्यादि ॥ ४६॥ टीका भाषांतर स्वमादि शब्दोमां आदि अकारनो इकार थाय. सं. स्वप्न तेने सर्वत्र तलुक् चालतासूत्रथी आदि नकारनी पेहेला अनो इकार पनी प्रथमपदे पोवः अने बीजे पक्ष स्वमनीव्योर्वा ए सूत्रोथी सिविणो तथा सिमिणो रूप श्राय. सं. स्वप्न ने शषि प्रयोगथी उकार पण श्राय अने बाकीनी साधना पूर्ववत् करवी एटले सुमिणो रूप सिद्ध थाय. सं ईषत् ने शपोःसः अंत्यव्यं० चालतासूत्रे इकार अव्यय ए सूत्रोथी ईसि रूप थाय. सं० वेतस् तेने चालतासूत्रे इकार थई पनी इत्वेवे अतः से?: ए सूत्रोथी वेडिसो रूप सिद्ध थाय. सं० व्यलीक तेने अधोमनयां चालतासूत्रे श्कार कगचज क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी विलिअं रूप थाय. सं० व्यंजन शब्दने अधोम० चालतासूत्रे इकार कगच० नोणः क्लीये सम् मोनु ए सूत्रोथी विअणं रूप थाय. संप मृदंग ने इदुतोवृषवृष्टि कगचा चालतासूत्रे इकार अतः सेडों: ए सूत्रोथी मुइंगो रूप थाय, सं० कृपण ने इत्कृपादौ पोवः अतःसे :
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प्रथमःपादः। ए सूत्रोथी किविणो रूप श्राय. सं० उत्तम ने चालतासूत्रे इकार थई अतासेटः ए सूत्रथी उत्तिमो रूप सिद्ध थाय. सं० मरिच ने चालतासूत्रे इकार कगचा क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी मिरिअं रूप थाय. सं० दत्त तेने चालतासूत्रे इकार पंचाशत्पंच अनादौद्वित्वं क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी दिण्णं रूप थाय. बहुल अधिकारथी जो अहिं ण न पाय तो त्यां इकार पण न थाय. त्यारे दत्त देवदत्त इत्यादि रूपो थाय॥४६
पक्कांगारललाटे वा॥४७॥ एष्वादेरत इत्वं वा जवति ॥ पिकं पकं । कंगालो अंगारो। हिमालं एमालं ॥
मूल भाषांतर. संस्कृत, पक्क, अंगार अने ललाट शब्दना श्रादि अकार नो विकटपे इकार थाय. जेम सं० पक नुं पिकं पकं एवं रूप थाय. सं० अंगार शब्द नुं इंगालो अंगारो एवां रूप श्राय. सं० ललाट शब्दना णिडालं णडालं एवां रूप थायः ॥ ७॥
॥ढुंढिका ॥ पक्कश्च अंगारश्च ललाटं च पक्कांगारललाटं तस्मिन् वा ११ पक्क ११ अनेनवा इत्वं प पि सर्वत्र वलुक्थनादौ हित्वं क्लीबे स्म् मोनु पिकं पक्कं अंगार ११ अनेन वा श्कारः अयं हरिजादौ लः रस्य लः द्वितीये बाहुलकान्न लत्वं अतःसेझैः शंगालो अंगारो । ललाट ललाटे च थादिलस्य णः अनेन वा श्कारःणणि टोडः टस्यडः खलाटे लडोः डलयोर्व्यत्ययः क्लीबे सम् मोनु पिडालं णडालं ॥४॥ टीका भाषांतर. पक, अंगार अने ललाट ते पकांगारललाट कडेवाय. ते शब्दोना आदि अकारनो विकल्पे इकार श्राय. सं. पक्व तेने आ चालता सूत्रथी श्कार थर सर्वत्रवलुक अनादौद्रित्वं क्लीबे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी पिकं पकं रूप थाय. संग अंगार तेने चालता सूत्रे विकटपे इकार श्राय पनी हरिजादौ सः ए सूत्रथी परे र नो ल थाय. अने बीजे परे ल न थाय. पजी अतःसे?ः ए सूत्र लागी इंगालो अंगारो एवां रूप सिद्ध थाय. संम् ललाट तेने ललाटे च ए सूत्रथी आदि ल नो ण थाय पठी आ चालता सूत्रे इकार थाय टोडः ललाटे लडो क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी णिडालं णडालं रूप सिद्ध थाय. ॥४॥
मध्यमकतमे वितीयस्य ॥४॥ मध्यमशब्दे कतमशब्दे च द्वितीयस्यात इत्वं जवति ॥ मज्जिमो कश्मो ॥४॥
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मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. मध्यम अने कतम शब्दमां बीजा अकारनो इकार थाय ने. जेम सं० मध्यम नुं मज्झिमो अने संग कतमनुं कइमो रूप थाय ॥४॥
॥ढुंढिका ॥ मध्यमश्च कतमं च मध्यमकतमं तस्मिन् ७१ द्वितीय ६१ मध्यम११ साध्वसध्या ध्य ऊ अनादौ छित्वं द्वितीयपूर्व जजः अनेन अस्य हः अतः सेझैः डित्यं मज्जिमो कतम ११ कगचजण तबुक् श्रनेन अश् अतः सेझैः कश्मो. ॥४॥ टीका भाषांतर. मध्यम अने कतम ते मध्यमकतम कहेवाय. घसमास, तेमां बीजा अकारनोश्कार थाय. सं० मध्यम तेने साध्वसध्य० अनादौ द्वितीयपूर्व० चालता सूत्रे इकार अतःसे?: डित्यं ए सूत्रोथी मज्झिमो रूप सिद्ध थाय. सं० कतम तेने कगचज चालता सूत्रे इकार अतः सेोंः ए सूत्रोथी कइमो रूप सिद्ध थाय.॥धन॥
सप्तपणे वा ॥४ए॥ सतपणे द्वितीयस्यात श्त्वं वा जवति ॥ बत्तिवएणो उत्तवएणो॥ मूल भाषांतर. सप्तपर्ण शब्दना बीजा अकारनो इकार विकटपे थाय. जेम सं० सप्तपर्ण तेना छत्तिवण्णो तथा छत्तवण्णो एवां रूप थाय. ॥ ए॥
॥ढुंढिका ॥ सप्तपर्ण १ वा ११ सप्तपर्ण षट्समीशावसुधा सस्यबः कगटम पबुक् थनादौहित्वं श्रनेनवा त ति पोवः सर्वत्ररबुक् अनादौद्धि त्वं गएण अतःसे?ः बत्तिवएणो उत्तवएणो ॥ ४ ॥ टीका भाषांतर. सप्तपर्ण शब्दना बीजा अकारनो विकटपे इकार थाय. संग सप्तपर्ण तेने षट्समीशावसुधा० ए सूत्रथी स नो उ थाय पछी कगटड० अनादौ द्वित्वं चालतासूत्रे विकटपे इकार पोवः सर्वत्र रलुक् अनादौ० अतःसे?ः ए सूत्रोथी छत्तिवण्णो छत्तवण्णो एवां रूप थाय. ॥ ए॥
मयट्या ॥ ५० ॥ मयट्प्रत्यये श्रादेरतःस्थाने अश् इत्यादेशो जवति वा ॥ विषमयः विसमा विसम ॥ ५० ॥ मूल भाषांतर. मयट् प्रत्यय परबतें आदिशकारने स्थाने अइ एवो आदेश विकटपे थाय. संविषमयः तेना विसमइओ तथा विसमओ एवां रूप थायः ॥ ५० ॥
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प्रथमःपादः।
७३
॥ टुंढिका ॥ मयट्र ७१ अश् ११ वा ११ अश् इत्यादेशो नवति विषमय शषोः सः अनेन वा मस्य मध्ये योडकारस्तस्य अश् कगच० यलुक् अतः से?ः डित्यं विसम विसम ॥५०॥ टीका भाषांतर. मयट् प्रत्यय पर उतें आदि अकारने स्थाने अइ एवो श्रादेश वाय. सं. विषमय तेने शषोः सः आ चालता सूने मकारमा रहेला अकारने स्थाने अइ थाय. पनी कगचअतःसे? डित्यं ए सूत्रथी विसमइओ अने विसमओ रूप सिद्धथाय. ॥५॥
ईहरे वा ॥१॥ हर शब्दे श्रादेरत ईर्वा नवति ॥ हीरो हरो ॥५१॥
मूल भाषांतर. हरशब्दमां आदि अकारनो विकल्पे ईकार श्राय. सं० हर तेमुं हीरो तथा हरो एवां रूप थाय. ॥५१॥
. ॥ढुंढिका॥ हर ७१ वा ११ हर अनेन वास्य ही ११ श्रतःसेझैः हीरो हरो॥५१॥ टीका भाषांतर. हर शब्दना आदि अकारने स्थाने विकटपे ईकार आय. सं. हर तेने चालता सूत्रथी ईकार था अतःसेटः एसूत्रवडे हीरो तथा हरो एवां रूप थाय. ५१
ध्वनिविष्वचोरुः॥५॥ अनयोरादेरस्य उत्वं नवति ॥ कुणी । वीसुं ॥ कधं सुण । शुनक इति प्रकृत्यंतरस्य ॥ श्वनशब्दस्य तु सा साणोति प्रयोगौ नवतः॥५॥ मूल भाषांतर. ध्वनि अने विष्वक् शब्दना आदि अकार नो नकार श्राय. संस्कृत ध्वनि शब्दना आदि अकारनो उकार थश् झणी रूप सिद्ध थाय. विष्वक् शब्दनुं वीसु एवं रूप श्राय. सं. शुनक शब्दनुं सुणओ रूप थाय. ते शुनक एवी बीजी प्रकृतिमां श्राय. अने सं. श्वन् शब्दना तो सा अने आणो एवां बे रूप श्राय . ॥५॥
॥ढुंढिका.॥ ध्वनिश्च विष्वक्च ध्वनिविष्वको तयोः ६।३।११ ध्वनि ११ त्वथ्व धध्वां चबजकाः ज्ञः अनेन ऊस्य कु नोणः क्लीबेसौ णि णी अंत्यव्यं० सबुक् कुणी । विष्वक् सर्वत्रवलुक् लुप्तयवरदीर्घः वि वी शषोः सः अनेन सस्य सु बहुलाधिकारात् वा सू खरेमश्चेत्यनेनान्यस्यापि व्यंजनस्य मः कम् वीसुं। शुनक ११ शषोः सः श
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मागधी व्याकरणम. स्य सः नोणः नस्य णः कगचेति कबुक् श्रतः सेोः डित्यं सुण श्वन् ११ सर्वत्र वलुक् शषोः सः शस्य सः अंत्यव्यंग सलुक् राज्ञः श्त्यात्वं सा । श्वन् सर्वत्र वलुक् शषोः सः पुंस्यत श्राणोऽत् श्रत्स्थाने श्राण ११ अतः सेोः साणो ॥ ५ ॥ टीका भाषांतर. ध्वनि अने विष्वक् शब्दने आदि अकारनो इकार थाय. सं. ध्वनि तेने त्वथ्वध्वां० ए सूत्रथी झ थाय. पी आचालता सूत्रथी उकार थाय. पनी नोणः क्लिवे सौ० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी झुणी रूप थाय. सं० विष्वक् तेने सर्वत्र वलुक् लुप्तयवरदीर्घः शषोः सः आ चालता सूत्रथी उकार श्राय. बहुलाधिकार चाले ने तेथी विकटपे सू पाय. पळी स्वरेमः ए सूत्रथी बीजा व्यंजननो म थाय. पलीकम् श्रावी वीसुं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत शुनक तेने शषोःसः नोणः कगज अतःसे?: डित्यं० ए सूत्रोथी सुणओरूप सिद्ध थाय. सं० श्वन् शब्दने सर्वत्रवलुक् शषोः सः अंत्यव्यं० राज्ञः ए सूत्रोथी सा एQरूप सिद्ध थाय. पदे सं० श्वन् शब्दने सर्वत्रवलुक् शषोः सः पुंस्यत आणोऽत् अतः सेोंः ए सूत्रोथी साणो रूप सिघ थाय. ॥ ५५ ॥
वंध्खंमिते णा वा ॥५३॥ श्रनयोरादेरस्य णकारेण सहितस्य उत्वं वा जवति ॥ बुझं वंई। खुडि खंडिर्ड ॥ ५३॥ मूल भाषांतर. वंद्र अने खंडित शब्दना प्रकारे सहित एवा आदि अकारनो विकटपे उकार श्राय. सं० वंद्र नुं बुंद्रं तथा वंन्द्रं एQ रूप थाय. सं० खंडित तेनुं खुडिओ तथा खंडिओ एवं रूप थाय. ॥ २३ ॥
॥ढुंढिका॥ वंश्च खंमितश्च वंअखंडिते ७१ ण ३१ वं अनेन वास्य उ क्लीबे स्म् मोनु बुन्दं वंडं । खण्डित अनेन वा णकारेण सह खस्य खु ११ कगचजेति तबुक् अतःसेडोंः खुडि खंण् मिठ ॥ ५३॥ टीका भाषांतर. वंद्र अने खंडित ना णकारसहित आदि अकारनो नकार वि. कटपे थाय. सं. वंज तेने चालता सूत्रथी अकारनो उकार श्राय पनी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी वुझं तथा वं5 रूप थाय. सं. खंडित तेने आ सूत्रथी उकार थाय. पनी कगचज० अतःसे?ः ए सूत्रोथी खुडिओ तथा खडिओ रूप थाय. ॥ ५३॥
गवये वः ॥ ४॥ गवयशब्दे वकाराकारस्य उत्वं नवति ॥ गर्छ । गजश्रा ॥
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प्रथमःपादः।
मूल भाषांतर. गवय शब्दना वकारना अकारनो उकार थाय. सं. गवय तेना गउओ गउआ रूप थाय. ॥ ५४॥
॥ढुंढिका ॥ गवय ७१ वा ११ अनेन वस्य तु कगचजेति वयोर्बुक् अतःसेझैः गर्छ । गवय ११ अनेन वस्य वु कगचजेति वययोर्मुक् खस्रादे
र्डी डाप्र डति डित्यं० लोकात् अंत्यव्यंग सबुक् गया ॥५४॥ टीका भाषांतर. संस्कृत गवय शब्दने आ चालतासूत्रे व नो वु थाय पजी कगचज० अतःसे : ए सूत्रोथी गउओ रूप थाय. बीजे पदे गवयने आ चालता नियमश्री उकार कगचज० स्वस्रादेडों डित्यं अंत्यव्यं ए सूत्रोथी गउआ रूप सिद्ध थाय. ॥ ५४॥
प्रथमे पथोर्वा ॥ ५५॥ प्रथमशब्दे पकारथकारयोरकारस्य युगपत् क्रमेण च उकारो वा । जवति ॥ पुढुमं पुढमं पढुमं पढमं ॥५५॥ मूल भाषांतर. प्रश्रमना पकार अने अकारना अकारनो एकीसाथे अथवा श्रनुक्रमे विकटपे उकार थाय. जेम सं. प्रथम तेने पेहेलाक्रममां बनेने साथे उकार थक्ष पुथुमं रूप थयु. बीजा क्रममा प्रथम अकारनो उ श्रयो एटले पुढमं रूप थयु. त्रीजा क्रममा बीजा अकारनो उकार श्रइ पथुमं रूप थयुं अने चोथामां विकल्पे नकार अयोज नहीं एटले पढमं रूप थयु.॥ ५५ ॥
॥टुंढिका॥ प्रथम ७१ पश्च थश्च पथौ तयोः ६५ वा ११ प्रथम सर्वत्ररबुक् मथिशिथिर शिथिलप्रथमे चतुर्थेऽपि थस्य ढः अनेन प्रथमे योरुकारः द्वितीये प्रथमस्य उकारः तृतीयेऽपि द्वितीयस्य उकारः चतुर्थे न कस्यापि क्लीबेस्म् मोनु पुढुमं पुढमं पदुमं पढमं ॥५५॥ टीका भाषांतर. प्रथमशब्दना पकार थकारने एकीसाथे वा अनुक्रमे विकटपे उकार थाय. सं. प्रथम तेने सर्वत्ररलुक् मथिशिथिरशि० चालतासूत्रथी पेहेलाक्रममां बनेने उकार श्राय. बीजाक्रममा प्रथम अकारनो नकार थाय. त्रीजाक्रममां बीजानो नकार अने चोथाक्रममां कोनो उकार न थाय. पठी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पुदुमं पुढमं पढुमं पढमं ए रूपो सिद्ध श्राय ॥ ५५ ॥
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७६
मागधी व्याकरणम्
झो णत्वेनिझादौ ॥५६॥ अनिश एवंप्रकारेषु ज्ञस्य णत्वे कृते इस्यैव श्रत उत्वं नवति ॥ श्रहिएणू । सबएणू । कयएणू । बागमएणू ॥ णत्वति किम् । श्रहिजो । सव्वजो । अनिझादाविति किम् । प्राज्ञः । पएणो ॥ येषां ज्ञस्य णत्वे उत्वं दृश्यते ते अजिज्ञादयः ॥ ५६ ॥ मूल भाषांतर. अभिज्ञ ए शब्द जेवा शब्दोना ज्ञ अदरने णकार कर्यापजी, ते ज्ञ अक्षरना अकारनो नकार थाय. सं. अभिज्ञ तेनु अहिण्णू. सं० सर्वज्ञ तेनुं सव्वणू. सं० कृतज्ञ तेनुं कयण्णू अने संस्कृत आगमझ तेनुं आगमएणू एq रूप सिद्ध थाय. अहिं णकार कर्यापजी एम कडं तेथी अहिजो सव्वजो एवा पण रूप थाय. मूलमा अभिज्ञादौ एम कडं ने तेथी सं. प्राज्ञ नुं पण्णो एवं रूप थाय. ए उपरथी एम सिद्ध थयु के, जे शब्दोना ज्ञ नो णकार अयापली जो उकार श्रयेलो जणाय ते अभिज्ञादि जाणवा. ॥ २६॥
॥ढुंठिका॥ ६१ णत्व ७१ अनिझादि ७१ अनिशः ११ खथघधनस्यहः म्नझोर्णः इस्यणः । श्रनादौहित्वं अनेन ण णु अक्लीबेदीर्घः अंत्यव्यंजनसबुक् अहिएणू । सर्वज्ञः ११ सर्वत्ररलुक् अनादौहित्वं ज्ञाझो र्णः श णः अनादौहित्वं अनेन णस्य णु अंत्यव्यंग सबुक् सबएणू कृतज्ञः ११ शतोऽत् कृ कगरजेति तबुक् श्रवर्णोऽय म्नझोर्णः ज्ञ ण अनादौहित्वं अनेन णू अलीबेदीर्घः अंत्यव्यंगसबुक् कयएणू। थागमा ११ ज्ञाझोर्णः अनादौहित्वं अनेन ण णू । अक्लीबे अंत्यव्यं० श्रागमा। अनि ११ इत्वथपबुक् अनादौण्डाः श्रतःसेडोंः अहिजो । सर्वज्ञ ११ सर्वत्ररलुक् अनादौ झोत्रः इति तबुक् श्रनादौहित्वं अतःसे सबजो। प्राज्ञः ११ सर्वत्ररलुक् न्हस्वःसं. योगे पाप म्नझोर्णः क्षण अनादौ अतःसे पएणो ॥ ५६ ॥ टीका भाषांतर. अभिज्ञादि जेवा शब्दोने णकार कर्यापली ज्ञ अक्षरना अकार नो उकार थायले. सं० अभिज्ञ तेने खथघध० म्नज्ञोर्णः अनादौद्वित्वं चालतासूत्रे उकार अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी अहिण्णू रूप सिद्ध श्राय. सं० सर्वज्ञ तेने सर्वत्ररलुक अनादौद्वित्वं ज्ञाज्ञोर्णः अनादौद्वित्वं चालतासूत्रधी ऊकार अंत्यव्यंजनसलुक् ए सूत्रोथी सव्वण्णू रूप सिद्ध श्राय. सं० कृतज्ञ तेने तोऽत्
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प्रथमःपादः। कगचज. अवर्णोऽयः नझोर्णः अनादौद्वित्वं चालतासूत्रथी ऊकार अक्लीये दीर्घ. अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी कयण्णू रूप सिद्ध थाय. सं. आगमज्ञ तेने ज्ञाज्ञोर्णः अनादौद्रित्वं चालतासूत्रे ऊकार अक्लीवे० अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी आगमज्ञ रूप सिद्ध थाय. सं० अनिश तेने इत्वथघप० अनादौ अतासेडोंः ए सूत्रोथी अहि जो रूप सिद्ध थाय. सं० सर्वज्ञ तेने सर्वत्ररलुक अनादौ ज्ञोत्रः अनादौद्वित्वं अतःसे?: ए सूत्रोथी सव्वजो रूप सिद्ध थाय. सं० प्राज्ञ तेने सर्वत्ररलुक् -हस्व:संयोगे पा पनज्ञोर्णः अनादौ० अतःसेडोंः ए सूत्रोथी पण्णो रूप सिघ थाय.॥५६॥
ए बय्यादौ ॥५॥ शय्यादिषु श्रादेरस्य एत्वं नवति ॥ सेजा। सुंदेरं । गेंदुआं । एस्थ । शय्या । सौंदर्य । कंडक । शत्र ॥ आर्षे पुरेकंमं ॥ मूल भाषांतर. शय्यादि शब्दोना श्रादि अकार नो एकार पाय. सं० शय्या तेनुं सेजा रूप थाय. सं० सौंदर्य तेनुं सुंदेरं रूप थाय. सं० कंदुक तेनुं गेंदुआं थायः सं० अत्र तेनुं एत्थ रूप धाय. आर्ष (शषिप्रयोग) मां सं० पुराकर्म तेनुं पुरेकंमं रूप सिद्ध थाय. ॥ ५७ ॥
॥ढुंढिका ॥ एत् ११ शय्यादि ३१ शय्या ११ शषोःसः । यय्यर्यांजः य्यस्यऊ। अनादौहित्वं अनेन श्रादेरस्य एत्वं अंत्यव्यंग सबुक सेजा । सौंदर्य उत् सौंदर्यादौ सौ सुं अनेन दे ब्रह्मचर्यतुर्यसौंदर्य यस्यरः ११ क्लीबेसम् मोनु० सुंदेरं। कंदुक ११ मरकतमदकलेगः कंडकेत्वा देकस्यगः अनेन एकारः कगचजेतिकलुक् क्लीबेसम् मोनु० गेउकं अत्र अनेन अ ए त्रपोहिबात्रस्य ः एत्या । पुराकर्म थार्षत्वादाकारस्य एत्वं सर्वत्ररबुक् क्लीबेऽनादौ हित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु पुरेकंमं ॥ ५ ॥ टीका भाषांतर. शय्यादि शब्दना आदि अकारनो एकार थाय. सं० शय्या तेने शषोःसः धय्यांजः श्रनादौक्त्विं, चाखतासूत्रथी एकार अंत्यव्यंग ए सूत्रोधी सेजा रूप सिद्ध थाय. सं० सौंदर्य तेने उत्सौंदर्यादौ चालतासूत्रे एकार ब्रह्मचर्यतुर्य क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी सुंदेरं रूप सिह थाय. सं० कंदुक तेने मरकतमद चालतासूत्रे एकार कगचज क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी गेदुकं रूप सिद्ध पाय. सं० अत्र तेने चाल. तासूत्रे एकार त्रपोहिच्छात्रस्य ए सूत्रोथी एत्थ एवं रूप सिद्ध थाय. सं० पूराकर्म
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मागधी व्याकरणम् ते श्रार्षप्रयोगहोवाथी तेना आकारनो एकार थाय. पठी सर्वत्र रलुक् क्लीवे अनादौद्वित्वं क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पुरेकंमं एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ ५७ ॥
वड्युत्कर-पर्यंताश्चर्ये वा ॥ ५ ॥ एषु श्रादेरस्य एत्वं वा नवति ॥ वेदी वल्ली । उक्केरो उकरो। पेरंतो पङतो । अरं अबरिअं । अबअरं अबरिङ शबरीश्रारणा मूल भाषांतर. वल्ली उत्कर पर्यंत अने आश्चर्य ए शब्दोना आदि अकारनो विकटपे एकार थाय. सं वही तेनुं वेल्ली तथा वल्ली एवं रूप थाय. सं० उत्कर तेनुं उकेरो उक्करो एवं रूप आय. सं० पर्यंत तेनुं पेरंतो पजंतो एवं रूप थाय. सं० आश्चर्य तेनुं अच्छेरं अच्छरिअं अबअरं अनरिजं अचरीअं एवां रूप पाय.॥५॥
॥ढुंढिका ॥ वही च उत्करश्च पर्यंतश्च श्राश्चर्यं च वढ्युत्करपर्यंताश्चर्य. तस्मिन् वा ११ वही ११ अनेन वा एत्त्वे अंत्यव्यंण् सबुक् वेल्सी वही । उत्कर ११ कगटडेतितलुक् अनादौहित्वं अनेन वा एकारः अनादौ उकेरो उकरो पर्यंत अनेन वा एकारः यत्र एत्वं तत्र एतःपर्यंते यस्यरः द्वितीये घय्यर्यांजः यस्यजः अनादौहित्वं ११ थतःसे?ः पेरंतो पङांतो । श्राश्चर्य -हस्वःसंयोगे था थ ह्रस्वात् थ्यश्चत्सप्सामनिश्चले श्वस्य बः अनादौहित्वं द्वितीयपूर्वबस्य च अनेन वा एत्वं ने श्राश्चर्येरः यस्यरः क्लीबेस्म् मोनु० अरं पदे आश्चर्य हवःसंयोगे था श्र ह्रस्वात्थ्यश्च श्वस्य बः अनादौहित्वं हितीय० पूर्वस्य चः श्रतोरिश्राररिजरीअं यस्य स्थाने रिश्र, श्रर रिज रीथ क्लीबे सम् मोनु अचरिअं अधरं अलरिजां थरीथं ॥ ५ ॥ टीका भाषांतर. वल्ली उत्कर पर्यंत अने आश्चर्य ए शब्दोना श्रादि अकार नो विकटपे एकार थाय. सं० वल्ली आ चालतासूत्रथी एकार अई अंत्यव्यं सलुक् ए सूत्रलागी वेल्ली वल्ली एवां रूप सिद्ध थाय. सं उत्कर तेने कगटड चालतासूत्रे विकटपे एकार अनादौ ए सूत्रोथी उक्केरो उक्करो रूप सिद्ध थाय. सं० पर्यत तेने चालतासूत्रे विकटपे एकार ज्यारे एकार थाय त्यारे एतःपर्यंते ए सूत्रधी यकारनो र थाय. बीजापहे द्यय्यर्याजः अनादौद्वित्वं अतःसे?ः ए सूत्रोथी परंतो पजंतो
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प्रथमःपादः।
पए रूप सिद्ध पाय. सं० आश्चर्य तेने इस्वःसंयोगे इस्वास्थ्यश्च० अनादौद्वित्वं द्वितीयपूर्व० चालतासूत्रे एकार आश्चर्यरः क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी अच्छेरं रूप सिद्ध थाय. बीजेपदे सं० आश्चर्य तेने इस्वःसंयोगे इस्वात्थ्यश्च अनादौद्वित्वं द्वितीय अतोरिआररिजरीअं क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी अच्छरिअं अच्छअरं अच्छरिजं अच्छरीअं एवां रूप सिह पाय. ॥ ५ ॥
ब्रह्मचर्ये चः॥५॥ ब्रह्मचर्यशब्दे चस्य अत एत्वं नवति ॥ बह्मचेरं ॥ ५ ॥ मूल भाषांतर, ब्रह्मचर्य शब्दना चकारना अकारनो एकार थाय. सं० ब्रह्मचर्य तेनुं बह्मचेरं एवं रूप आय. ॥ ५५ ॥
॥ ढुंढिका ॥ ब्रह्मचर्य ७१ च ६१ ब्रह्मचर्य ११ सर्वत्ररखुक् पदमश्मष्मस्मह्मांमः ह्म म अनेनास्य एत्वे ब्रह्मचर्यतूर्य इति यस्य रः ११ क्लीबेसम् मोनु बह्मचेरं ॥ ५ ॥ टीका भाषांतर. ब्रह्मचर्य शब्दना चकारनी अंदर रहेला अकारनो एकार श्राय. सं ब्रह्मचर्य तेने सर्वत्ररलक् पक्ष्मश्मष्म० एसूत्रथी मनो म्ह श्राय. पनी चालतासूत्रे एकार ब्रह्मचर्यतूर्य० ए सूत्रधी य नो र पाय. पनी क्वीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी बह्मचेरं ए रूप सिघ थाय. ॥ एए॥
तोन्तरि॥६०॥ अंतर्शब्दे तस्य श्रत एत्वं नवति ॥ अंतःपुरम् । अंतेजरं ॥अंतश्चारी ।अंतेवारी ॥ कचिन्न नवति । अंतग्गयं । अंतो-वीसंजनिवेसिवाणं ॥६॥
मूल भाषांतर. अंतर् शब्दना तकारनी अंदर रहेला अकार नो एकार थाय. सं० अंतःपुरं तेनुं अंतेउरं रूप थायजे. संग अंतश्चारी तेनुं अंतेआरी एवं रूप धाय बे. कोइ ठेकाणे थतुं पण नथी. जेम- सं० अंतर्गतं तेनुं अंतग्गयं रूप थाय. सं० अंतो विश्रंभनिवेसितानाम् तेनुं अंतो-विसंभ-निवेसिआणं एवं रूप सिद्ध थायजे. अहिं अंतो ए स्थाने आ नियम लागु थयो नथी. ॥ ६ ॥
॥ढुंढिका॥ त ६१ अंतर ७१ अंतर् पुर अंत्यव्यंग रखुक् अनेन एत्वं ते कगचजेति प्रबुक् ११ क्लीबेसम् मोनु० अंतेजरं । अंतर्-चारिन्-अंत्य
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ថd
मागधी व्याकरणम्. व्यंग लुक् अनेन एकारः त ते कगचजेचबुक् ११ अक्लीबे दीर्घः अंतेधारी । अंतर-गत ११ सर्वत्ररबुक् अनादौहित्वं कगचजेति तलुक् अवर्णोयश्रुतिः अस्य यः क्लीबेसम् मोनु० अंतग्गयं अंतर रःपदांतेविसर्गस्तयोरः रस्य विसर्गः आतोडो विसर्गस्य डोउलोकात् अंतो-विश्रन-निवेसित सर्वत्ररबुक् लुप्तयवरण वि वी शषोःसः श कगचेति तबुक् दउजसूशस्ङसितोछामिदीर्घः टा थामोर्णः श्रामस्थाने णः कास्यादेर्णः स्वोवानुस्वारः ॥ ६० ॥ टीका भाषांतर. अंतर शब्दना तकारना अकारनो एकार थाय. सं० अंतपुर तेने अंत्यव्यं० चालतासूत्रे एकार कगचज क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोश्री अंतेउरं रूप सिह थाय. सं० अंतारिन् तेने अंत्यव्यं० चालतासूत्रे एकार कगचज अक्लीबेसौ ए सूत्रोथी अंतेआरी रूप सिम थाय. सं० अंतर्गत तेने सर्वत्ररलुक अनादौ द्वित्वं कगचज अवर्णोयः श्रुति क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी अंतग्गयं रूप सिद्ध श्राय. सं० अंतर् शब्दने र पदांतेविसर्गस्तयोरः आतोडो विसर्गस्य डो ए सूत्रोथी अंतो रूप थाय. सं. विश्रंभनिवेशित तेने सर्वत्ररलुक् लुप्सयवर शषोःसः कगचज जसूशसूङसि टाआमोर्णः कास्यादेर्णः स्वोवानुस्वारः इत्यादि सूत्रोथी वीसंभ-निवेसिआणं ए रूप सिद्ध थायः ॥ ६ ॥
उत्पझे॥६॥ पद्मशब्दे आदेरत उत्वं जवति ॥ पोम्मं ॥ पद्म-बद्म इति विलेषे न जवति । पमं ॥१॥ मूल भाषांतर. पद्म शब्दना आदि अकार नो ठकार यायचे. सं० पद्मशब्दनु पोम्म एवं रूप सिद्ध श्राय. आ वेकाणे पद्मछम० ए सूत्रधी ज्यां विश्लेष थाय त्यां आ सूत्रनो नियम लागे नहीं. त्यां सं० पद्मं नुं पउमं रूप थाय. ॥ ६१ ॥
॥ढुंढिका ॥ उत् ११ पद्म ७१ पद्म ११ अनेनाकारस्य उकारः कगटडेति दनुक् अनादौहित्वं क्लीबेसम् मोनु० पोम्मं । पद्मबद्म मूर्खछारे वा मात् प्राग्जकारः कगचजतहपयवां प्रायो दलुक् ११ क्लीबेसम् मोनु पउमं ॥६१॥ टीका भाषांतर. पद्म शब्दना आदि अकार नो ओकार श्रायजे. सं० पद्म तेने श्रा चालतासूत्रथी अकार नोउकार श्राय. पनी कगटड० अनादौ द्वित्वं क्लीबेसम्
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प्रथमःपादः।
मोनु ए सूत्रोथी पोम्म रूप सिद्ध श्राय. जो ते ठेकाणे पद्मछन ए सूत्र लागे तो मकारनी पेहेला उकार थाय अने पनी कगचजतहपय क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पउमं रूप सिद्ध श्राय. ॥ ६१॥
नमस्कार-परस्परे दितीयस्य ॥ ६॥ श्रनयोहितीयस्य श्रत त्वं जवति ॥ नमोकारो परोप्परं ॥ ६ ॥ मूल भाषांतर. नमस्कार अने परस्पर शब्दना बीजा अकारनो ओकार थाय. जेम सं० नमस्कार तेनुं नम्मोकारो श्रायजे. अने सं० परस्परं तेनु परोप्परं रूप थायवे. ॥६॥
॥ ढुंढिका ॥ नमस्कारपरस्पर १ द्वितीय ६१ नमस्कारश्च परस्परं च नमस्कारपरस्परं तस्मिन् । नमस्कार- कगटडेति सबुक् अनेन उत्वं मो अनादौ हित्वं का का ११श्रतः सेोः नमोकारो ।परस्पर- कगटडेति सबुक् अनेन रस्य रो। अनादौ हित्वं स्प प्प ११ क्लीबेसम् मोनु परोप्परं ॥ ६॥ टीका भाषांतर. नमस्कार अने परस्पर शब्दना बीजा अकार नो ओकार थायचे. सं० नमस्कार तेने कगटड० चाखता सूत्रे उकार अनादौ अतासेडोंः ए सूत्रोथी नमोकारो रूप सिद्ध थाय. सं० परस्पर तेने कगटड अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी परोप्परं रूप सिद्ध श्राय. ॥ ६ ॥
वार्पो॥६३॥ थर्पयतौ धातौ श्रादेरस्य उत्वं वा नवति ॥ उप्पेई अप्पेई । उप्पियं अप्पियं ॥ ३ ॥ मूल भाषांतर. अर्पयति धातुना आदि अकारनो विकटपे ओकार श्रायवे. सं० अर्पयति तेनुं ओप्पेइ तथा अप्पेइ रूप थाय. सं० अर्पित तेनुं ओप्पिअं तथा अप्पिअं रूप धायचे. ॥ ३ ॥
॥ढुंढिका। वा ११ पि ७१ रुकृगतौ ३ श्यति कश्चित् तं य॑तं अन्यः प्रयुक्ते प्राणिग् इत्तिरीत्रीपपौ तः पुस्यौरवर लोकात् अर्पि इति स्थिते वर्त्त तिव त्यादीना तिस्थाने ३ णेपि सर्वत्ररनुक्
११
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२
मागधी व्याकरणम् . अनादौहित्वं पे प्पे अनेनास्य वा उप्पे पदे अप्पे अर्पिपूर्ववत् अर्यते स्म अर्पितं क्तवतूक्त प्रण तलुग्गावीक्तनावकर्मसु शतिणिग् लोपः व्यंजनाददंतेप अग्रे श्रत् क्ते इति अश्लोकात् पिथनादौहित्वं प्पि अनेनवास्यऊः कगचजेतितबुक् क्लीबे सम् मोनु उप्पिरं पदे श्रप्पिरं ॥३॥ टीका भाषांतर. अर्पयति धातुना आदि कार नो विकटपे उकार थाय. सं. गतिवायक ऋ धातुनुं श्यति रूप थाय. कोई गति करे तेने बीजो प्रेरे तेने अर्पयति कहेवाय. ऋ धातुने णिग् प्रत्यय आवे तेने इअत्तिरीत्रीपपी पुस्यौ अर वर्त्तः तिव् प्रत्यय आवे पनी त्यादीना. णपि सर्वत्ररलक अनादौद्रित्वं चालता सूत्रे विकल्पे उकार ए सूत्रोथी ओप्पेह अने बीजे परे अप्पेइ रूप सिद्ध श्राय . सं. अर्पित तेमांश धातु , तेने पूर्व प्रमाणे अर्पि रूप सिद्ध थाय. पनी अर्पण कराय ते अर्पित ए अर्थमां क्त प्रत्यय आवे, नावकर्ममां णिक् प्रत्ययनो लोप थाय. पठी व्यंजना दंतेप् क्ते लोकात् अनादौद्वित्वं चालता सूत्रे विकटपे ऊ थाय. पनी कगचज क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रो. थी ओप्पिअं तथा बीजे परे अप्पिअं रूप सिद्ध थाय बे. ॥ ३ ॥
स्वपावुच्च ॥६४ ॥ खपितौ धातौ श्रादेरस्य उत् उत् च नवति ॥सोव । सुवः ॥६॥ मूल भाषांतर. स्वपिति धातुना आदि अकारनो उत् अने जत् श्राय ने सं. स्वपिति तेनां सोवइ अने सुबई एवां रूप सिद्ध श्राय . ॥ ६ ॥
॥ढुंढिका ॥ स्वपि ७१ उत् ११ च ११ त्रिष्वपंक् शये वष् षः सौष्ट्यौ स्वपवर्त मानातिव् त्यादीनां तिश् सर्वत्र वबुक् व्यंजनात् लोकात् सपतिस्थिते पोवः अनेन प्रथमे सुस्थाने सो सोवश् पदे सुवः ॥६४ ॥ टीका भाषांतर. स्वपिति धातुना आदि अकार ने स्थाने ओ अने ऊ पाय . सं. प्वप् ए धातु सुq ए अर्थमा प्रवर्ते तेने प्वषः सौष्ट्यौ ए सूत्रथी ष नो स थाय. पनी वर्तमाना त्यादीनां सर्वत्रवलुक व्यंजनात् लोकात् पोवः ए सूत्रोलागीचालता सूत्रथी ओकार थाय त्यारे सोवइ अने पदे उकार श्राय त्यारे सुवइ एवां रूप थाय.६४
नात्पुनर्यादाई वा ॥६५॥ नञः परे पुनः शब्दे श्रादेरस्य आ श्राश् इत्यादेशौ वा जवतः ॥ नजणा। ननणाई। पदे । नजण । नउणो॥केवलस्यापि दृश्यते॥पुणाश्६५
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७३
प्रथमःपादः। मूल भाषांतर. नञ् उपसर्गनी पनी आवेला पुनर शब्दना श्रादि अकारने स्थाने आ आई एवा आदेश विकटपे पायजे. सं० नपुनर तेनुं नउणा अने नउणाई एवां रूप थाय जे. बीजे पदे नउण अने नउणो एवां रूप थायजे. कोइ ठेकाणे एकला पुनशब्दने पण आदेश श्रयेलो जोवामां आवे जेम पुणाइ एवं रूप श्रायः ॥६५॥
॥ढुंढिका॥ न ५१ पुनर ७१ आइ ११ वा ११ नपुनर् ११ अंत्यव्यंग रखुक् कगचेति पबुक् नोणः अनेन थापा ११ अंत्यव्यं सबुक् ननणा इति यत्र थनेन श्राश् तत्र नजणा पदे नपुनरः अंत्यव्यं रखुक् कग- . चजेति पबुक् नोणः ११ श्रव्य द्वितीये श्रतःसे?ः ननण नउणो पुनर् अंत्यव्यं० रखुक् नोणः अनेन श्राश् श्रादेशः पुणा ॥६५॥ टीका भाषांतर. नञ् उपसर्गनी पनी आवेला पुनर् शब्दना आदि अकार ने स्थाने आ आई एवा आदेश विकटपे थायचे. सं० नपुनर् तेने अंत्यव्यंजन रलुक् कग जेति नोणः श्रा चालता सूत्रथी आ आदेश श्राय पछी अंत्यव्यंजन० सलुक ए सूत्रोथी नउणा रूप सिद्ध श्राय. ज्यारे आ चालता सूत्रथी आई एवो आदेश थाय त्यारे नउणाई रूप सिद्ध थाय. बीजे पक्ष नपुनर् शब्दने अंत्यव्यं० कगचज नोणःअव्यय. अने बीजा रूपमा अतः सेोंः ए सूत्रोथी नउण अने नउणो एवां बे रूप सिद्ध थाय बे. सं० पुनर शब्दने अंत्यव्यं० नोणः अने आ चालता सूत्रथी आई एवो आदेश थाय. त्यारे पुणाइ रूप सिद्ध थाय ॥६५॥
__ वालाब्वरण्ये लुक् ॥६६॥ अलावरण्यशब्दस्य लुग् वा नवति ॥ लाजं अलाउं । लाऊ। श्रलाऊ । रमं अरमं । अत इत्येव । श्रारण-कुंजरोव वेखंतो ॥६६॥
मूल भाषांतर. अलाबू अने अरण्य शब्दना आदि अकारनो विकटपे लुक् थायजे. सं. अलावु शब्दनु लाउं अने अलाउं एवां रूप थाय. अने संस्कृत दीर्घ ऊकारांत अलाबू शब्दना लाऊ अने अलाऊ एवां रूप थाय. सं. अरण्य तेनां रण्णं अरण्णं एवां रूप आय. ॥ जो आदि अकार होय तोज तेनो लोप थाय. जेम सं. आरण्यकुंजरोच्च वेल्लंतो तेनुं आरपण कुंजरोव्व वेलंतो थाय अहिं आकारनो लोप न अयो.
॥ ढुंढिका ॥ वा ११ अलावरण्य ७१ बुक् अलाबु च अरण्यं च अलावरण्यं ७१ अलाबु सर्वत्र वलुक् ११ अनेन वाअबुक् क्लीबे सम् साउं ।
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मागधी व्याकरणम्.
द्वितीये अलानं स्त्रीलिंगेऽपि अलाबुशब्दः तत्र दर्शयति सर्वत्रेति वलुक् छानेन वा लुक् १२ अक्की वे दीर्घः उ ऊ अंत्यव्यंज० सलुक् लाऊ अलाऊ इति सिद्धं । अरण्यं श्रधोमनयां यलुक् छा. नादौ द्वित्वं श्रनेन वा अलुक् ११ क्लीबे सम् मोनु० रं अर इति जातं । श्ररण्ये जवः श्रारण्यः रूपोत्तरपदीर० प्र० प्रद्धस्वरे० अधोमनयां यलुक् श्रनादौ द्वित्वं धारण कुंजरोच्च वेतो६६
टीका भाषांतर. अलाबु ने अरण्य शब्दना आदि अकारनो विकल्पे लुक् थाय. सं. अलाबु तेने सर्वत्रवलुक् चालता सूत्रे विकल्पे अनो लुक् क्लीबे सम् ए सूत्रोथी लाउं थाय ने बीजे पछे अलाउं थाय. जो अलावु स्त्रीलिंगे लई तो ते अलाबू शब्दने सर्वत्र वलुक् चालता सूत्रे विकल्पे अ नो लुक् अक्लीये दीर्घः ए सूत्रोथी उ ऊ थाय. पनी अंत्यव्यं ० सूत्र लागी लाऊ अलाऊ एवां रूप सिद्ध थाय बे.सं. अरण्य शब्दने अधोमनयां अनादौद्वित्वं या सूत्रे विकल्पे अ नोलुकू क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी रण्णं अरण्णं एवां रूप सिद्ध थायडे. अरण्य (जंगल) ने विषे जे आय ते आरण्य कहेवाय. त्यां य् प्रत्यय ने श्रादिस्वरनी वृद्धि थाय पी अधोमनयां यलुक् अनादौद्वित्वं ए सूत्रो थी आरण्ण रूप सिद्ध थाय. एटले आरण्णकुंजरोव्व वेलंतो ए पद सिद्ध श्रयुं ६६
वाव्ययोत्खातादावदातः ॥ ६७ ॥
अव्ययेषु उत्खातादिषु च शब्देषु श्रादेराकारस्य यद् वा जवति श्रव्यय जह जहा । तह तहा | अहव अहवा । व वा । ह हा । इत्यादि ॥ उत्खातादि । उक्खयं उक्खायं । चमरो चामरो । कलर्ड काल । वविडं वगविर्ज । परिहवि परिहावि । संगविर्ज संताविर्ज । पययं पाययं । तलवेएटं तालवेएटं । तलवोएटं तालवोएटं । दलि हालिने । नराठे नाराठे । वलया वलाया । कुमरो कुमारो | खरं खाइरं ॥ उत्खात । चामर कालक | स्थापित । प्राकृत । तालवृंत | हालिक । नाराच । बलाका । कुमार | खादिर | इत्यादि ॥ केचिद् ब्राह्मणपूर्वाह्नयोरपीच्छंति । बह्मणो । बाह्मणो । yars gatest || दवग्गी । दावग्गी । चढू चाहू । इति शब्दभेदात् सिद्धम् ॥ ६७ ॥
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प्रथमः पादः ।
ԵԱ
मूल भाषांतर. अव्यय ने उत्खात विगेरे शब्दोना आदि आकारनो विकल्पे अकार थाय. अव्ययनां उदाहरण - सं. यथा तेनुं जह जहा एवं रूप थाय. सं. तथा तेनुं तह ने तहा रूप याय. सं. अथवा तेनुं अहव अहवा एवं रूप याय. सं. वा तेनुं व वा रूप याय. सं. ह तेनुं ह हा एवं रूप याय. इत्यादि जाणी लेवुं. हवे उत्खात विगेरे शब्दोनां उदाहरण-सं० उत्खात तेनुं ऊक्खयं ऊक्खायं रूप याय. सं० चामर तेनुं चमरो चामरो रूप थाय. सं० कालक तेनुं कलओ कालओ रूप थाय. सं. स्थापित तेनुं ववि गवि रूप याय. सं० प्रतिस्थापित ने संस्थापित तेनां परिहविओ परिठ्ठाविओ ने संठविओ संठाविओ रूप थाय. सं. प्राकृत तेनुं पययं पाययं एवं रूप याय. सं. तालवृंत तेनुं तलवेण्टं तालवेण्टं तथा तलवोटं तालबोटं रूप याय. सं. हालिक तेनुं हलिओ हालिओ रूप थाय. सं. नाराच तेनुं नराओ नाराओ रूप थाय. सं. बलाका तेनुं बलया बलाया रूप याय. सं. कुमार तेनुं कुमरो कुमारो रूप याय. सं. खादिर तेनुं खइरं खाइरं रूप थाय. इत्यादि जाणी लेवां. केटला एक विधानो ब्राह्मण ने पूर्वाह्न शब्दने पण आदि आ Paratfare अकार थाय एम इबेबे - जेम- सं. ब्राह्मण तेनुं ब्रह्मणो ब्राह्मणो रूप a. सं. पूर्वाह्न तेनुं पुत्रवण्हो पुव्वाण्हो रूप थाय. सं. दावाग्नि तेनुं दवरगी दावाग्गी सं. चाटु तेनुं चडू चाडू एवां रूप शब्द जेदथी सिद्ध थाय बे. ॥ ६७ ॥
॥ ढुंढिका ॥
वा ११ अव्यय उत्खातादि उत्खात श्रादौ येषां ते उत्खातादिः श्रव्ययं च उत्खातादिश्च श्रव्ययोत्खातादिः तस्मिन् ७१ त् ११ यत् ६१ यथा श्रदेर्योजः यस्यजः खघथध० यस्य दः अनेन वा या ११ श्रव्ययः सुलोपः जह द्वितीये जहा । तथा खघथ० धस्य हः अनेन श्र तह तहा एवं हव अहवा व वा द हा इत्यादि ॥ उत्खातः अनेन वा या ा कगटडेति तलुक् द्वितीये तुर्य० ख० श्राकः कगचजेति तलुक् छावण ११ क्लीवे स्म मोनु० उक्खयं उक्खायं । चमर अनेन वा या अ ११ अतः सेड: चमरो चामरो । कालक अनेन वा श्राश्र कगचजेति कलुक् १९ श्रतः सेर्डोः कलर्ड कालर्ड स्थापित - स्थष्टाथक्क चिठ्ठनिरप्पाः इति स्था स्थाने वा पोवः कगचजेति तलुक् अनेन वा य अ ११ अतः सेर्डोः aad गवि । प्रतिष्ठा प्रतितिष्ठतं प्रयुक्ते पित्तरीबाह्रा
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मागधी व्याकरणम्. इति पोवः प्रस्थाप्यते स्म क्तप्रत्ययः तलुगावातजावकर्मसु णिग्लोपः व्यंजनाददंतेऽत तोऽऽ स्थष्टाथ ष्टा गहितीयतुर्य ठ ग। निः पूर्व प्रती उत्परी माव्यस्थोः प्रतिस्थाने परि पोवः अनेन वा था श्र ११ अतः से?ः परिढवि परिहाविजे सम् पू. वकः संवि संगवि । पूर्ववत् प्राकृत- सर्वत्र रबुक् रुतोऽत् कृ क कगचजेति कतयोर्बुक् श्रवों अनेन वा था श्र ११ क्लीबेसम् पययं पाययं तालवंत- ददेदोक्ते झस्थाने श्नत् व्रतेएटः तस्यएट श्रादेशः अनेन वा था श्र ११ क्लीबे सम् तलविएटं तालविएटं तलवोएटं तालवोण्टं । हालिक नाराच बलाका कुमार अनेन हा ह न ना व वा म मा कगचजेति कवयो क् ११ अतः सेझैः अंत्यव्यंजनस्य च हलि हालि । नरा नारा । वलया वलाया कुमरो कुमारो खादिर ११ अनेन श्राप कगचजेति दलुक् क्लीबे सम्ण खरं खारं ब्राह्मण- सर्वत्र रखुक् पदमश्मष्मस्मह्मांमः नोणः अनेन वा आ अ अतः सेोंः बह्मणो बाह्मणो । पूर्वाह्नसर्वत्र रबुक् धनादौहित्वं अनेन वा था थ पदेति ण्हा श्रादेशः श्रतः से?ः पुवण्हो पुवाहो ॥ दवामि- अधोमनयां नलोपः श्रनादौहित्वं हवः संयोगे ११ अंत्यव्यंग सबुक् दवग्गी दावग्गी। चाटु- टोडःक्कीबे दीर्घः चडू चाडू ॥ ६७ ॥ टीका भाषांतर. अव्यय अने उत्खात विगेरे शब्दोना आदि आकारनो विकटपे अकार थायने. सं. यथा तेने आयोजः खघथध० आ चालता सूत्रे विकटपे अ आ थाय. पगी अव्यय ए सूत्रथी सु लोप थर जह अने जहा रूप सिह थाय. सं. तथा तेने खघथ० चालता सूत्रे विकल्पे अ आ थाय एटले तह तहा रूप थाय. एवीरीते सं. अथवानुं अहव अहवा एवं रूप थाय. अने सं० वा नु व वा अने ह नुं ह हा एवं रूप थाय. इत्यादि जाणी लेवु. सं. उत्खात तेने आ चालता सूत्रे अ आ थाय पी कगटड० द्वितीयतुर्य खाकः कग चज० अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी उक्खयं उक्खायं एवां रूप थाय. सं. चमर- तेने आ चालता सूत्रे विकटपे आ अ याय पनी अतः सेोः ए सूत्रथी चमरो चामरो रूप थाय. सं. कालक- तेने आ चालता सूत्रे विकल्पे अ आ थाय पी कगचज० अतः सेोः ए सूत्रोथी कलओ कालओ रूप थाय. सं. स्थापित तेने स्थष्टाथक्क० ए सूत्रथी स्था ने ठेकाणे ठा थाय.
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प्रथमःपादः। पठी पोवः कगचज आ चालता सूत्रे विकटपे अ आ थाय. पठी अतः से?ः सूत्रथी ठविओ ठाविओ एवां रूप थाय. प्रति उपसर्ग साधे स्था धातु तेने प्रेरणार्थणिग प्रत्यय तेने प ावी. पोवः सूत्र पामी प्रतिस्थापनकरे तेवा कर्मणी अर्थमां क्त प्रत्यय आवे णिग् प्रत्ययनो लोप थाय. पती व्यंजनाददंतेऽत् एसूत्र लागी पनी स्थाष्टाथ एसूत्रधी ष्टा ने स्था ने ठा श्राय. पनी द्वितीय तुर्य० ए सूत्रथी ठ नो ठा थाय. पी प्रतिने स्थाने परि श्रादेश पाय. पछी पोवः आ चालता सूत्रे विकटपे अ आ पाय पनी. अतः सेोंः सूत्रथी परिविओ परिठ्ठाविओ रूप सिह थाय. जो सम् उपसर्ग साधे स्था धातुनु रूप संठविओ संठाविओ एवं थाय. तेमां पूर्ववत् साधन करवू. सं० प्राकृत तेने सर्वत्ररलुक् ऋतोऽत् कगचज. अवर्णो आ चालता सूत्रे विकटपे अ आ श्राय. क्लीबेसम् ए सूत्रोथी पययं पाययं रूप सिद्ध श्राय. सं. तालवृंत तेने ददेदोवृते तेण्ट: चालता सूत्रे विकल्पे अ आ थाय. क्लीबेसम् ए सूत्रोथी तलविण्टं तालविण्टं तलवोण्टं ताल वोण्टं एवां रूप सिद्ध थाय. सं. हालिक नाराच बलाका कुमार ए शब्दोने आ चालता सूत्रथी अ आ कगचज अतःसे?० अंतव्यंजनस्यच ए सूत्रोथी हलिओ हालिओ नराओ नाराओ वलया वलाया कुमरो कुमारो एवां रूप श्राय. सं. खादिर तेने सर्वत्र रलक् पक्ष्मश्मष्मस्मह्मां ह्मः नोणः आ चालता सूत्रे विकटपे अ आ अतः सौंः ए सूत्रोथी बह्मणो बाह्मणो रूप सिख थाय. सं. पूर्वाह्न तेने सर्वत्र रलक अनादौदित्वं श्रा चालता सूत्रे अ आ पदे ह आदेश पाय. अतः से?: ए सूत्रोथी पुव्वह्नो पुवाहो एवा रूप सिद्ध थाय. सं. वाग्नि तेने अधोमनयां अनादौदित्वं इस्वः संयोगे अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी वग्गी दावग्गी रूप सिद्ध थाय. सं.चाटु तेने टोठः अक्लीवेदीर्घः ए सूत्रोथी चडूचाडू एवां रूप सिद्ध यायचे ॥६॥
घश्र्वा ॥ ६ ॥ घञ् निमित्तो यो वृफिरूप आकारस्तस्या दिनूतस्य श्रह वा नवति । पवहो पवाहो । पहरो पहारो। पयरो पयारो।प्रकारःप्रचारो वा पत्थवो पत्थावो ॥ क्वचिन्न नवति । रागः । राम्रो ॥ ६ ॥ मूल भाषांतर. घञ् प्रत्ययनिमित्त अयेली वृद्धिनो जे आकार तेना आदिनूत आकारनो विकटपे अकार थाय. संस्कृत प्रवाह तेनां पवहो पवाहो रूप थाय. सं. प्रहार तेनां पहरो पहारो रूप थाय. सं. प्रकार तेनां पयरो पयारो रूप थाय. अहिं प्रकारने बदले प्रचार शब्द होय तो पण तेवां रूप थाय. सं. प्रस्ताव तेना पत्थवो पत्थावो एवां रूप थाय. कोइ ठेकाणों थाय पण नहीं. जेम सं. राग तेनुं राओ एकज रूप श्रायजे. ॥ ६ ॥
॥ढुंढिका ॥ घञ् ११ वृद्धि ६१ वा ११ घनिमित्ता वृद्धिः घवृद्धिः तस्य प्रपूर्व
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ज्ज
मागधी व्याकरणम्. वह प्रापणे वह ह हरणे ह कृञ् करणे कृ चर् गतिलक्षणयोः । चर प्रवहणं प्रवाहः । प्रहरणं प्रहारः । प्रकरणं प्रकारः । प्रचरणं प्रचारः । सर्वत्र नावे घञ् वृद्धिरबुक् अनेन सर्वत्र व वा ह हा क का च चा कगचजेति चस्य वा कस्य वा बुक् ११ अतः सेझैः प. वहो पवाहो । पहरो पहारो। पयरो पयारो प्रपू० स्तु प्रस्तवनं प्रस्तावः प्रात्सुपुतो इति घञ् वृद्धिः सर्वत्रेति रलुक स्तस्य थोऽसमस्तस्तंबे स्तस्यथः। द्वितीयतुर्ययोरुपरि० धकारपश्चात् तकारस्यागमः अनेन वा श्रा श्र ११ श्रतः सेोः पत्थवो पत्थावो । रंगी रागे रंज रंजनं रागः जावकत्वे घञ् घनि नावकरणे न बुक् . हिररक्ते निढस्यजोकगौ जग् लोकात् राग इतिजातं ततः कगचजेति गूबुक् ११ अतः सेझैः। राम्रो ॥ ६७ ॥ टीका भाषांतर. घञ् प्रत्ययनिमित्त अयेली वृधिना आकारनो विकटपे अकार थाय. प्र उपसर्ग युक्त एवा वह धातुने घञ् प्रत्यय आवी प्रवाह रूप थाय. प्र उपसर्ग युक्त एवा हृ ( हरण करवू ) कृ ( करवू ) चर् ( चालवू नक्षण करवू ) तेमने नावे घम् प्रत्यय आवी प्रवाह प्रहार अने प्रचार एवां रूप आय. पी वृद्धि थाय अने आ चाखता सूत्रथी अ आ थाय. पळी कगचज अतः से?ः ए सूत्रोथी पवहो पवाहो पहरो पहारो पयरो पयारो एवां रूप सिद्ध थाय . सं. प्र उपसर्ग स्तु धातुने प्रात्मदुतो ए सूत्रथी घञ् प्रत्यय आवे. पजी वृद्धि सर्वत्ररलुक् स्तस्यथोऽसमस्तस्तंबे द्वितीयतु. आ चालता सूत्रे आ अ श्राय. अतः से?ः ए सूत्रोथी पत्थवो पत्थावो एवां रूप थाय. सं. रंगी ए धातु राग अर्थमा प्रवर्ते तेने नावे घञ् प्रत्यय आवे. पनी भावकरणे ए सूत्रथी न नो लोप थइ वृद्धि थाय. पली ज नो ग थाय एटले राग एवं रूप सिद्ध आय. पी कगचज अतः सेोंः ए सूत्रोथी राओ रूप सिद्ध श्राय. ॥ ६ ॥
महाराष्ट्रे॥६५॥ महाराष्ट्र शब्दे श्रादेराकारस्य अद् नवति। मरह। मरहछो॥६॥ मूल भाषांतर. महाराष्ट्र शब्दना आदि आकानो अकार श्राय ने. सं. महाराष्ट्र तेनां मरहट्टं मरहट्ठो एवां रूप सिद्ध थाय. ॥ ६ए॥
॥ढुंढिका ॥ महाराष्ट्र ७१ महाराष्ट्र- महाराष्ट्र हरोः इति हरो प्रत्ययः। श्रनेन र रा ह्रखः संयोगे हा ह हृष्टस्यानुष्ट्रेष्टस्यतः द्वितीय पूर्व उ . ट ११ पुंनपुंसकात् क्लीबे सम् श्रतः सेझैः मरहठं मरहठो ॥६५॥
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प्रथमः पादः ।
टीका भाषांतर. सं. माहाराष्ट्र शब्दना आदि आकार नो अकार थाय. सं. माहाराष्ट्र तेने महाराष्ट्र हरोः ए सूत्रथी र अने ह नो व्यत्यय ( परस्पर कालो बदलो ) थापा चालता सूत्रथी आकारनो अकार थाय पी इस्वः संयोगे हृष्टस्यानष्ट्रे० द्वितीय० नपुंसके क्लीबेस्म् पुंलिंगे अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी मरह मरहट्ठो एवां रूप सिद्ध श्राय ॥ ६९ ॥
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मांसादिष्वनुस्वारे || 90 ॥
मांसप्रकारेषु नुखारे सति श्रादेरातः यद् जवति ॥ मंसं । पंसू | पंसो । कंसं कंसि । वंसि । पंडवो । संसिद्धि । संजति । अनुस्वार इति किम् । मासं । पासू । मांस । पांसु पांसन । कांस्य । कां सिक । वांसिक | पांव सांसिद्धिक। सांयात्रिक । इत्यादि ७०
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1
मूल भाषांतर. मांस शब्दना जेवा प्रकारवाला शब्दोने अनुस्वार बतां आदि आकारनो अकार थाय. सं. सांस तेनुं मंसं याय. सं. पांसु तेनुं पंसू थाय. सं. पांसन तेनुं पंसणो थाय. सं. कांस्यं तेनुं कंसं थाय. सं. कांसिक तेनुं कंसिओ थाय. सं. पांडव तेनुं पंडवो थाय. सं. सांसिद्धिक तेनुं संसिडिओ थाय. सं. सांयात्रिक तेनुं संजत्तिओ थाय. अहिं मूलमां अनुस्वारे पद लीधुं बे तेथी विकल्पे अनुस्वार लोप थर मांस ने पासू एवां रूप याय. ॥ ७० ॥
॥ ढुंढिका ॥
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मांसादि ७३ मांसं श्रदिर्येषां ते मांसादयः तेषु मांसादिषु । मांस पांसु पांसन अनेन श्रा श्र अधोमनयां यलोपः स् कीबेस्म् मंसं पंसू पंसो | कांस्य | कांसिक | वांसिक । अनेन श्रा का कगचजेति उजयलुक् ११ अतः सेर्डोः कंसं कंसि वंसि । तथैव पंडवो संसिद्धि | सांयात्रिक- श्रादेर्योजः य ज अनेन श्रा अ सर्वत्र रक्रनादौ द्वित्वं कगचजेति कलुक् ११ यतः सेर्डोः संजत्तिनं । मांस पांसु । मांसादेर्वानुखारलोपः उजयत्र अनेन श्रा स्यात् ११ बेस मा पासू ॥ ७० ॥
टीका भाषांतर. मांस जेने आदि बे एवा शब्दो एटले मांस जेवा शब्दोने अनुस्वर ani आदि आकार नो अकार थाय. सं. मांस पांसु पांसन- ए शब्दोने श्र चालता सूत्री आकारनो अकार थाय. पनी अधोमनयां क्लीबेस्म ए सूत्रोथी मंसं पंसू पंसणो एवां रूप सिद्ध थाय. सं. कांस्य कंसं थाय ने सं. कांसिक वांसिक ए शब्दोने या चालता सूत्रे आनो अ याय. पत्नी कगचज अतः सेर्डो: ए सूत्रोथी कंसि
१२
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VO
मागधी व्याकरणम्. ओ वंसिओ रूप सिद्ध पाय. तेमज सं० पांडव, सांसिधिक शब्दोनां पंडवो संसिद्धिओ एवां रूप थाय. सं. सांयात्रिक शब्दने आयोजः आ चालता सूत्रे आनो अ थाय. पजी सर्वत्र रलुक् अनादौदित्वं कगचज. अतः सेोंः ए सूत्रोथी संजत्तिओ रूप श्राय. सं. मांस अने पांसु ने मांसादेवा ए सूत्रथी विकटपे अनुस्वारनो लोप थाय. पी था चालता सूत्रे आ थाय अने क्वीबेसम् ए सूत्र लागे एटले मासं, पास् एवां रूप सिद्ध थायजे. ॥ ७० ॥
श्यामाके मः॥१॥ श्यामाके मस्य श्रातः अद् भवति ॥ सामः ॥ १ ॥ मूल भाषांतर. श्यामाक शब्दना मकारनी अंदर रहेला आकारनो अकार थाय. जेम सं. श्यामाक शब्दनुं सामओ एवं रूप थाय. ॥ ७१॥
॥ढुंढिका॥ श्यामाक ७१ म ११ श्यामाक ११ अधोमनयां यलुक् शषोः सः
कगचजेति कबुक् अनेन श्रा अ ११ अतः से?ः सामः ॥ १ ॥ - टीका भाषांतर. श्यामाक शब्द ना मकारना आ नो अ थाय. सं. श्यामाक तेने अधोमनयां शषोः सः कगचज चालता सूत्रे आ नो अ थाय पडी अतः सेझैः ए सूत्रोथी साम ओ रूप श्राय. ॥ १ ॥
ः सदादौ वा ॥ ॥ सदादिषु शब्देषु श्रात इत्वं वा नवति ॥ सर सया। निसि-अरो निसा-अरो। कुप्पिसो कुप्पासो ॥ ७ ॥
मूल भाषांतर. सदा विगेरे शब्दोना आकारनो विकटपे इकार थाय. सं. सदा तेनुं सई अने सया एवं रूप थाय. सं. निशाकर तेना निसि-अरो अने निसाअरो रूप थाय. सं. कूर्पास तेना कुप्पिसो कुप्पासो एवां रूप थाय. ॥ १२ ॥
॥ढुंढिका ॥ ३ ११ सदा श्रादिर्यस्य सः सदादि तस्मिन् सदा अनेन श्रा कगचजेति दबुक् ११ अंत्ययस्य स द्वितीये अवर्णो सया। निशाकर अनेन वा आ । शषोःसः कगचजेति कबुक् श्रतः सेझैः। हितीये श्रवणे निसि-अरो निसा-अरो। कूर्पासः हवः संयोगे कू कुअनेन था इसर्वत्रेति रवुक ११ अतःसेडोंःकुप्पिसो कुप्पासो॥२॥ टीका भाषांतर. सदा विगेरे शब्दोना आकारनो विकटपे इकार थायचे. सं. सदा तेने या चालता सूत्रश्री आनो इ थाय. पी कगचज अंत्ययस्य ए सूत्रोथी सइ रूप
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प्रथमः पादः ।
१
थाय ने बीजे पछे अवर्णो ए सूत्रथी सया रूप थाय. सं. निशाकर तेने चालता सूत्री विकल्पे आनो इ थाय. पती शषोः सः कगचज अतः सेडः बीजे पछे अवर्णो सूत्रोथी निसि - अरो निसा - अरो रूप सिद्ध श्राय. सं. कूर्पास तेने ह्रस्वः संयोगे चालता सूत्रे आनो इ याय. सर्वत्र रलुक् अतः सेडः ए सूत्रोथी कुपिसो कुप्पासो ए रूप सिद्ध थाय बे. ॥ ७२ ॥
आचार्ये योच्च ॥ ७३ ॥
श्राचार्यशब्दे यस्य श्रात इत्वं त्वं च जवति ॥ श्रइरिश्रो । आयरिश्र ॥ ७३ ॥
मूल भाषांतर. आचार्य शब्दना यकारनी अंदर रहेला आकारनो इकार ने अकार थाय. सं. आचार्य तेनुं आइरिओ ने आयरिओ एवां रूप थाय ॥ ७३ ॥ ॥ ढुंढिका ॥
आचार्य १ या ६१ अत् ११ च ११ श्राचार्य - अनेन चस्य इत्वं
त्वं च प्रथमं श्रवर्णोस्याद्द्भव्य चैत्यचौर्य समेषु यात् यात् पूर्व इकारः ११ यतः सेर्डोः याइरि प्रायरि ॥ ७३ ॥
टीका भाषांतर. आचार्य शब्दना यकारनी अंदर रहेला आकारनो इकार अ अकार थाय. सं. आचार्य तेने आ चालता सूत्रथी इकार ने अकार थाय. पठी प्रथम अवर्णो स्याद्भव्य चैत्य० ए सूत्रथी यनी पेहेला इकार थाय. पबी अतः सेड : ए सूत्र लागी आइरिओ आयरिओ रूप सिद्ध थाय. ॥ ७३ ॥ ईः स्त्यान - खल्वाटे ॥ ७४ ॥
स्त्यानखल्वाटोरादे रात ईर्जवति ॥ वीणं । थिमं । खल्वीडो ॥ संखायं इति तु समः स्त्यः खा इति खादेशे सिद्धम् ॥ ७४ ॥
मूल भाषांतर. स्त्यान ने खल्वाट शब्दना यदि आकारनो ईकार थाय. सं. स्त्यान तेनां ठीणं थीनं थिण्णं एवां रूप थाय. सं. खल्वाट तेनुं खल्लीडो एवं रूप a. ने एक पक्षे स्त्यान शब्दनुं संखायं रूप थायडे. ते समःस्त्यःखा ए सूत्रधी खा वो आदेश थई सिद्ध थायडे. ॥ ७४ ॥
॥ ढुंढिका ॥
ई: ११ स्त्यानश्च खल्वाटं च स्त्यानखल्वाटं तस्मिन् ७१ स्त्यान अधोमनयां यलुकू स्त्यान चतुर्थार्थं वा पूर्वस्तस्य वः अनेन था ई नोणः वीणं । द्वितीये स्तस्यथोऽसमस्तस्तंबे स्त थ नोएः श्रीणं ।
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ए
मागधी व्याकरणम्. तृतीये मेवादौवाणस्य हित्वं अनेन भाई ह्रखः संयोगे थिलं खवाट-सर्वत्र वबुक् अनादौ द्वित्वं ला अनेन था ई टोडः ११ श्रतः सेझैः खसीडो सम् पूर्व ष्टयै स्त्यै शब्दसंघाते स्त्यै अस्तं श्रपदरस्य स्त्या संस्त्यायते स्म इति संस्त्यानं संस्त्या क्त क्तवतू क्तप्रत्यय समःस्त्यःखा इति स्त्यास्थाने खा स्क कगचजेति तबुक् अवर्णोग्यः संखाय मिति सिर्फ ॥४॥ टीका भाषांतर. स्त्यान अने खल्वाट शब्दना आदि आकारनो ईकार पायजे. सं. स्त्यान तेने अधोमनयां यलुक स्त्यान चतुर्थार्थवा आ चालता सूत्रे आनोई थाय. पनी नोणः सूत्र लागी ठीणं रूप थाय. बीजे पदे स्तस्यथोऽसम० नोणः ए सूत्रोथी थीणं रूप पाय. त्रीजे पदे अनादौहित्वं ए सूत्रे ण नो बिर्ताव पाय. पनी आ सूत्रथी आनो ईकार थाय. पनी हस्वः संयोगे ए सूत्र लागी थिण्णं रूप थाय. सं. खल्वाट- तेने सर्वत्र वलुक् अनादौदित्वं आ चालता सूत्रे आनो ई थाय. पी टोडः अतः सेडों: ए सूत्रोथी खल्लीडो रूप सिह थाय. सं. थ्ये स्त्यै ए धातु शब्दना संघातमा प्रवर्ते, तेने धातु सूत्रना नियमथी स्त्या एवं रूप श्राय. पठी सम् उपसर्ग साथे क्त प्रत्यय आवी संस्त्यान एवं रूप थाय. पजी समः स्त्यः खा ए सूत्रथी स्त्या ने स्थाने खा श्रादेश थाय. पी कगचज अवर्णों ए सूत्रोथी संखायं एवं रूप सिघ थाय.॥ १४ ॥
नः सास्ना-स्तावके ॥ ५॥ अनयो रादेरात उत्वं नवति ॥ सुण्डा । थुव: ॥ ५ ॥ मूल भाषांतर. साला अने स्तावक शब्दना आकारनो उकार थाय ने. सं. साला तेनुं सुण्हा एवं रूप धाय. अने सं.स्तावक तेनुं थुवओ एवं रूप पाय.॥७॥
॥ टुंढिका ॥ जः ७१ स्नासा च स्तावकश्च सानास्तावकं तस्मिन् ३१ सास्न-सूमनमनन्हह्णदणां एहः इति नास्थाने हा अनेन सा सु ११ अं. त्यव्यंग सुण्हा । स्तावक-स्तस्यथोसमस्त स्ता था अनेन था उ कगचजेति कलुक् ११ अतःसे?ः थुव: ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. साला अने स्तावक शब्दना आदि आकारनो उकार थाय. सं. सास्ना शब्दने सूक्ष्मस्त्रष्ण० ए सूत्रथी स्ला ने स्थाने पहा थाय. पनी आ चालता सूत्रथी उकार थाय. पी अंत्यव्यं० ए सूत्र लागी सुण्हा रूप सिद्ध थायचे. सं. स्तावक तेने स्तस्यथोसमस्त० ए सूत्रधी स्तानो था थाय. पली बा चालता सूत्रथी आनो उ थाय. पनी कगच० अतःसे?ः ए सूत्रोथी थुवओ रूप सिद्ध थाय . ॥ ७५॥
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प्रथमःपादः।
कासारे ॥६॥ आसारशब्दे आदेरात ऊद् वा नवति ॥ऊसारो थासारो ॥ ६ ॥ मूल भाषांतर. आसार शब्दना आदि आकारनो विकटपे ऊकार आय. सं. आसार तेनां ऊसारो तथा आसारो एवां रूप थायः ॥ ७६॥
॥ दुढिका ॥ ऊद ११ वा ११ श्रासारे ७१ यासार- अनेन वा श्राऊ श्रतःसेझैः ऊसारो श्रासारो ॥ ६ ॥ टीका भाषांतर. आसार शब्दना आदि आकारनो विकटपे ऊ थायजे. सं. आसार शब्दने आ चालता सूत्रथी आकारनो विकटपे ऊकार वाय. पी अतः सेझैः ए सूत्रथी ऊसारो आसारो एवां रूप प्रायजे. ॥ ७६॥
आर्यायां यः श्वश्वाम् ॥ ७ ॥ थार्याशब्दे श्वश्वां वाच्यायां यस्यात ऊर्जवति ॥ अङ्क ॥ श्वश्चामिति किम् । श्रजा ॥ ७ ॥ मूल भाषांतर. आर्याशब्द के जेनो अर्थ श्वश्रू ( सासु) अतो होय तेना ये ना आकारनो ऊकार श्राय. जेम सं० आर्या तेनुं अज्जू एवुरूप थाय. मूलमां श्वश्रू शब्दनुं ग्रहण कर्यु ने तेथी ते अर्थ न श्रतो होय तो बीजे पदे अन्जा एवं रूप पाय. ॥ ७ ॥
॥ढुंढिका ॥ थार्या १र्य ११ श्वश्रू ७१ श्रार्या द्यय्यांजः इति जा अनादौ द्वित्वं जा ह्रखःसंयोगे आ अ अनेन जा ऊ अत अंत्यव्यंग
थजा था ऊ मुत्ता शेषं तथैव ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. आर्या शब्दनो जो श्वश्रू (सासु) अर्थ थतो होय तो तेना र्य मां रहेला आकारनो ऊकार थाय. सं० आर्या-द्यय्यांजः अनादौ दित्वं ह्रस्वःसंयोगे आ चालता सूत्रे ऊकार अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी अजू रूप सिद्ध थाय. बीजे पदे आनो ऊकार कर्या शिवाय बाकीनी साधनिका पूर्वनी जेम करीअजा रूप सिद्ध थाय.॥ ७॥
एद् ग्राह्ये ॥ ७ ॥ ग्राह्यशब्दे श्रादेरात एद् नवति ॥ गेज्कं ॥ ७ ॥ मूल भाषांतर. ग्राह्य शब्दना आदि आकारनो एकार आय. सं. ग्राह्य शब्दनुं गेज्म एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ ७ ॥
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मागधी व्याकरणम्.
॥ ढुंढिका ॥ एत् ११ ग्राह्य ७१ ग्राह्य- सर्वत्र रबुक् साध्वसध्यह्यांऊः ह्यस्य कः अनादौ हित्वं द्वितीयतु पूर्वफस्य जः अनेन गा गे ११ क्लीवे स्म् मोनु० गेज्कं ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. ग्राह्य शब्दना आदि आकारनो एकार आय. सं. ग्राह्य तेने सर्वत्र रलुक साध्वसध्य० अनादौ द्वित्वं द्वितीयतुर्य था चालता सूत्रश्री एकार आय. पी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी गेज्झं रूप सिद्ध श्राय जे. ॥ ॥
घारे वा॥ ए॥ छारशब्दे श्रात एद् वा नवति ॥देरं। पदे। पुथारं दारं वारं ॥ कथं नेरळ नार । नैरयिक नारकिक शब्दयोर्जविष्यति ॥
आर्षे अन्यत्रापि । पछेकम्मं । असहेज देवासुरी ॥ ७ ॥ मूल भाषांतर. द्वार शब्दना आकारनो विकटपे एकार थाय. सं. द्वार तेनुं देरंथाय श्रने विकल्प पके दुआरं दारं वारंएवां रूप थाय.सं. नैरयिक अने नारकिक शब्दना नेरईओ नारईओ एवां रूप केवीरीते थाय? ते रूप आर्ष प्रयोगमां थायले. तेमज आर्ष प्रयोगथी बीजे पण थाय-जेम सं. पश्चात्कर्मन् तेनुं पच्छेकम्म एवं रूप श्राय. अने सं. असहाय्य तेनुं असहेज्ज एq रूप थाय. ॥ ७ए ।
॥ ढुंढिका ॥ छार ७१ वा ११ छार- सर्वत्र वबुक् अनेन वा एत्वं ११ क्लीवेसम् मोनु० देरं पदे घारं पद्मबद्ममूर्खछारे वा इति वप्राक् ऊकारः ज्वार इति कगचजेति वलोपः ११ क्लीबेसम् मोनु मुश्रारं इति सिहं । छार-कगटडतद० दलुक् ११ क्वीबे स्म् दारं। छार-सर्वत्र वलुक ११क्कीबे स्म् वारं इति। निरयेनवो नैरयिको नरके नवो नारकिकः नैरयिक-नारकिक-ऐत एत् इति नै ने कगचजतद० उन्नयलोपः कलोपश्च ११ श्रतःसेझैः डित्यंग नेर नारा तिसिंह । पश्चाकर्मन्- अंत्यव्यं० लुक् हखात्थ्यश्चत्सप्साम निश्चले पस्य ः अ. नादौ हित्वं द्वितीयतुर्य पूर्व पार्षत्वात् अत्रापि अनेन वा ले सर्वत्र रखुक् क्लीबेसम् पटकम्म इति सिहं । असहाय्य- वाऽव्य.
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प्रथमः पादः ।
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योत्खातादावदातः इति सा स वय्ययजः इति य्य स्थाने कः न हा हे अनादो ऊ प्रसिदेऊ इति ॥ ७९ ॥
tar भाषांतर. द्वार शब्दना श्राकार नो विकल्पे एकार थाय. सं. घार - सर्वत्र वलुक् या चालता सूत्रे विकल्पे एकार क्ली बेस्म मोनु० ए सूत्रोथी देरं रूप सिद्ध थाय. बीजे पढ़े सं. द्वार तेने पद्मछद्ममूर्ख० कगचज० क्लीबेसम् मोनुं० ए सूत्रोथी कुआरं एवं रूप सिद्ध थाय. वली त्रीजे पदे सं. द्वार - तेने कगटडतद० क्लीबेस्म् ए सूत्रोथी दारं एवं रूप थाय. वली चोथे पछे सं. द्वार - तेने सर्वत्र रलुक् क्लीवेसम् ए सूत्रोथी वारं एवं रूप थाय. निरय (नरक) मां जे थाय. ते नैरयिक कहेवाय. छाने नरकमां थाय ते नारकिक कहेवाय. सं. नैरधिक० नारकिकतेने ऐत एत् कगचज० अतः सेर्डोः डित्यं ए सूत्रोथी नेरईओ नारईओ एवां रूप सिद्ध थाय. सं. पश्चात्कर्मन् तेने अंत्यव्यंज० हवात्थ्यश्च० अनादौ दित्वं द्वितीयतुर्य प्रयोग होवाथी चालता सूत्रे विकल्पे एकार सर्वत्र रलुक् क्लीबेस्म् ए सूत्रोथी पच्छकम्म एवं रूप सिद्ध थाय. सं. असहाय्य तेने वाऽव्ययोत्खातादा० द्यय्ययजः वर्ष प्रयोगथी विकट एकार अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोश्री असहेज्ज एवं रूप सिद्ध थाय ॥ ७८ ॥
पारापते रो वा ॥ ८० ॥
पारापतशब्दे रस्थस्यात एद् वा जवति ॥ पारेव पारावर्ड ॥ ८० ॥
मूल भाषांतर. पारापत शब्दना र कारनी अंदर रहेला आकारनो विकल्पे एकार थाय. सं. पारापत तेनुं पारेवओ तथा पारावओ एवं रूप थाय ॥ ८० ॥
॥ ढुंढिका ॥
पारापत ७१ र ६१ वा ११ पारापत - अनेन वा ए पोवः कगचजेति लुक् अतः सेर्डोः पारेवर्ड पाराव इतिसिद्धं ॥ ८० ॥
टीका भाषांतर. पारापत शब्दना रकार नी अंदर रहेला आकारनो विकल्पे एकार याय. सं. पारापत तेने श्रा चालता सूत्रथी विकल्पे एकार थाय. पी पोवः कगचज अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी पारेवओ पारावओ एवा रूप सिद्ध थायडे. ॥ ८० ॥ मात्रटि वा ॥ ८१ ॥
मात्र प्रत्यये तद् वा जवति ॥ एत्ति श्रमेत्तं । एत्ति श्रमत्तं ॥ बहुलाधिकारात् क्वचिन्मात्र शब्देऽपि । जो णमेत्तं ॥ ८१ ॥
मूल भाषांतर. मात्र प्रत्ययना मकार नी अंदर रहेला आकारनो विकल्पे एकार थायबे. सं० एतावन् मात्रं - तेनुं एत्तिअमेत्तं श्रने विकटपे एत्तिअमत्तं एवं
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मागधी व्याकरणम्. रूप थाय. अहीं बहुल अधिकार चालेने तेथी कोईठेकाणे मात्र शब्द मां पण आ नियम लागु पके जेम-सं. भोजन-मानं तेनुं भोअण-मेत्तं एवं रूप थाय. ॥ १ ॥
॥ ढुंढिका ॥ मात्रट ७१ वा ११ एतवन्मात्र- यत्तदेतदोऽतोरित्तिभएतबुक् इति एतावत् स्थाने एत्तिथ श्रादेशः अनेन वा एत्वं मा मे सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं त्त ११ क्लीबेसम् एत्तिअमेत्तं इति सिकं यत्र न एकारस्तत्र हृवः संयोगे मा म शेषं तहत् एत्तिश्रमत्तं । नोजन-मात्रं नोजनं च तन्मात्रं च जोजनमात्रं कगचजेति तयुक् श्रवर्णाश्रय नोणः अनेन मात्रस्याकारस्य एकारः सर्वत्र रखुक् अनादौ हित्वं त्त ११ क्लीबेसम् जोश्रण-मेत्तं इति ॥ १ ॥ टीका भाषांतर. मात्रट् प्रत्ययना मकारनी अंदर रहेला आकारनो विकटपे एकार श्रायजे. सं. एतावन्मात्र- तेने यत्तदत्तदोऽतोरित्तिए सूत्रथी एतावत् ने ठेकाणे एत्तिअ आदेश थाय. पठी आ चालता सूत्रथी विकटपे एकार थाय. पनी स. र्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं क्लीवेसम् ए सूत्रोथी एत्तिअमेत्तं रूप सिम थाय. ज्यारे विकहपे एकार न थाय त्यारे ह्रस्वःसंयोगे अने बाकी पूर्ववत् सूत्रो लागी एत्तिअमत्तं एबुं रूप सिद्ध थाय. सं. नोजनमात्रं (तेनोअर्थ भोजन एवं मात्र) तेने कगच. अवर्णोऽय० श्रा चालता सूत्रे आकार नो एकार सर्वत्र रलुक अनादौ द्वित्वं क्लीयेसूम् ए सूत्रोथी भोजणमेत्तं एवं रूप सिद्ध श्राय. ॥ १ ॥
उदोघाः ॥ २ ॥ श्राशब्दे श्रादेरात उद् उच्च वा जवतः ॥ उल्लं । उल्लं । पदे अखं । थई । बाह-सलिल-पवहेण उद्देश ॥ २ ॥ मूल भाषांतर. आर्द्र शब्दना श्रादि आकार नो उकार अने ओकार विकटपे थाय. सं. आर्द्र तेनुं उल्लं तथा ओलं थाय अने परे अल्लं तथा अदं पाय. सं बाष्पसलिलप्रवाहेण आर्द्रयति- तेनुं बाह-सलिल-पवहेण उल्लेइ एवं रूप धाय. ॥२॥
॥ ढुंढिका ॥ अच्च उच्च उदोत् ११ वा ११ आई १ श्राई-सर्वत्र उर्ध्व ोपे कगटडेति दबुक् हरिजादौ लः इतिवा लत्वं श्रनादौहित्वं सद । ११ क्लीबेसम् मोनु० उद्धं उवं पदे अलं अहं । बाष्प- बाष्पेहो
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प्रथमःपादः। ऽश्रुणि बाह । प्रवाह घञ् वृशेर्वा वा व सर्वत्रेति रखुक् ३१ टा श्रामोर्णः इति टास्थाने ण टाणशस्येत् इति पवहेण । आई श्राई करोतीति आध्यति णिज् बहुलं अन्यख इति रनध्यायादकारलुक् वर्त्तः ति त्यादीनां ति इणेरदे दावावे ॐ हरिजा दौलः र लः श्रनादौहित्वं व अनेन एत्वं उल्लेश ॥ २ ॥ टीका भाषांतर. आई शब्दना आदि आकार नो उकार अने ओकार विकटपे पाय. सं. आई-तेने सर्वत्रऊर्ध्वर ए सूत्रे र नो लोपकरी कगटड० हरिद्रादौलः अनादौ द्वित्वं ए सूत्रो लाग्या पड़ी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी उल्लं ओलं तथा बीजे पदे अल्लं अहं एवां रूप सिद्ध थायजे. सं. बाष्प तेने बाष्पेहोऽश्रुणि ए सूत्रथी बाह एवं रूप आय. सं. प्रवाह शब्दने घवृद्धा सर्वत्र रलक ३१ टा आमोणः टाण. शस्येत् ए सूत्रोथी पवहेण रूप सिद्ध थाय. आर्द्र ने जे करे ते आर्द्रयति कहेवाय. आई धातुने णिज्- प्रत्यय आवे तेने अभ्यस्व० ए सूत्र लागी वर्तमाना० ए सूत्र वडे ति श्रावे पजी त्यादीनां तिइ णेरदेदावावे हरि द्रादौलः अनादौ द्वित्वं या चासता सूत्रे एकार पाय एटले उल्लेइ एवं रूप सिद्ध थाय बे. ॥५॥
ओदाल्यां पंक्तौ ॥७३॥ बालीशब्दे पंक्तिवाचिनि आत उत्वं नवति ॥उली ॥ पंक्ताविति किम् । बाली सखी ॥ ३ ॥ मूल भाषांतर. पंक्ति वाचक एवा आली शब्दना आकारनो ओकार थाय बे. सं. आली शब्दनु ओली एबुं रूप श्राय. मूलमां पंक्तिवाचक एम कडं तेथी आली शब्दनो अर्थ जो सखी श्रतो होय तो प्राकृतमां आली एवं रूप थाय.॥ ३ ॥
॥ढुंढिका ॥ जैद ११ आली ७१ पंक्ति ७१ थाली-अनेन था श्रो अंत्यव्यंजनसबुक् उली ॥ ३ ॥ टीका भाषांतर. पंक्ति वाचक आली शब्दना आकार नो ओकार थाय. सं. आली सेने आ चालता सूत्रथी आनो ओथाय. पनी अंत्यव्यंजन ए सूत्रथी ओली एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ ३॥
ह्रस्वः संयोगे॥४॥ दीर्घस्य यथा दर्शनं संयोगे परे हखो जवति ॥ श्रात् । श्रानं । श्रम्बं ॥ तानं । तम्बं ॥ विरहाग्निः। विरहग्गी ॥ श्रास्यं । अस्सं ॥
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मागधी व्याकरणम्. श्त् । मुनीडः । मुणिंदो ॥ तीर्थ । तित्थं ॥ ऊत् । गुरूखापाः। गुरूसावा ॥ चूर्णः । चुलो ॥ एत् । नरेंडः । नरिंदो ॥ म्लेडः। मिलिछो । दिहिक-थण-बटुं ॥ उत्।श्रधरोष्ठः।श्रहरूटुं॥नीलोत्पलं । नीलुप्पलं ॥ संयोगे इति किम्।श्रायासं। इसरो । ऊसवो ॥४॥ मूल भाषांतर. दीर्घ स्वरनी पड़ी जो यथादर्शन प्रमाणे संयोग (जोडी ) श्रदर पर श्रावे तो ते दीर्घ स्वरनो इस स्वर थइ जायचे. प्रथम आकारनां उदाहरण- सं. आनं तेनुं अम्धं थाय. सं. विरहानि तेनुं विरहग्गी थाय. सं. आस्य तेनुं अस्सं थाय. दीघे इकारनां उदाहरण- सं. मुनींद्रः तेनुं मुर्णिदो थाय. सं. तीथे तेनुं तित्थं थाय. दीर्घ ऊकारना उदाहरण- सं गुरुल्लापाः तेनुं गुरुल्लावा थाय. सं. चूर्णः तेनुं चुण्णो थाय. दीर्घ एकारनां उदाहरण- सं. नरेंद्र तेनुं नरिंदो थाय. सं. म्लेच्छ तेनुं मिलिच्छो थाय. सं. दृष्टैकस्तनपृटुं तेनुं दिहिक्क-थण-वर्ट एवं रूप थाय. दीर्घ ओकारनां उदा० सं. अधरोष्ठः तेनुं अहरुटुं थाय. सं. नीलोत्पलं तेनुं नीलप्पलं थाय. मूलमां खख्युं ने के, संयोग श्रदर पर आवे तेथी सं. आकाशं ईश्वरः उत्सवः तेना आयासं ईसरो अने ऊसवो एवां रूप वाय. ॥५॥
॥ ढुंढिका ॥ हख ११ संयोग ११ आन ताम्र अनेन था अता त ताम्रानेम्बः। म्र स्थाने म्ब क्लीबे सम् मोनु अंबं तंबं । विरह एव अग्निः विरहामिः ११ अधोमनयां नबुक् अनादौ हित्वं गि अनेन हवः हा ह क्लीबेसौ दीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् विरहग्गी । आस्य ११ अधोमनयां यबुक् अनेन श्रा श्र क्लीबे सम् मोनु० अस्सं । मुनीड ११ जेरोनवा रबुक् थनेन ईश्नोणः ११ श्रतः सेोःमुणींदो। तीर्थ अनेन ती ति सर्वत्र लुक् अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व थ त ११ क्लीवेसम् मोनु० तित्थं । गुरुवापाः गुरूणां उल्लापाः अनेन रूस पोवः १३ जस् शस् दीर्घः वा जस्शसोर्बुक् गुरुवावा । चूर्ण श्रनेन चू चु सर्वत्र लुक् चुलो । नरें- अनेन रे रि रोनवा रखुक ११ श्रतः सेोंः नरिंदो। म्लेड- म्ले लात् इति लपूर्व ३ अनेन ल लि ११ अतः सेडोंः मिलियो । दृष्टैकस्तनपृष्ट-दृष्टं एकस्तनपृष्टं यत् कंचुकोत्तारणे यत्-ष्टस्यानुष्ट्रेष्टासंदृष्टे टस्य ः श्रनादौ
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प्रथमः पादः ।
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द्वित्वं द्वितीयपूर्व व ट इत्कृपादौ दिट्ठि । एकइत्यत्र सेवादौ वा क अनेन ए इ स्तन - स्तस्यथोऽसमस्त० स्त य नोणः पृष्ट इत्यत्र शतोऽत् ट प पोवः क्लीबेस्म् दिट्टिकथणव | अधरोष्ठ - खधथ० अनेन से रुष्टस्यानुष्ट त श्रनादौ० द्वितीय० पूर्व व टः ११ क्वीबेस्म् हरु | नीबोत्पल - अनेन लो लु कगटडेति तलुक् छा - नादौ द्वित्वं पक्कीबेस्म् नीलुप्पलं । आकाश - कगचज कलुक् अवर्णोऽयः शषोः सः ११ क्ली बेस्म् श्रयासं । ईश्वर सर्वत्र वलुक् शषोः सः यतः सेर्डोः ईसरो । उत्सव - अनुत्साहोत्सन्ने० उ ऊ कगटडेति तलुकू ११ अतः सेर्डोः ऊसवो ॥ ८४ ॥
टीका भाषांतर. दीर्घखरने संयोग ( जोडी ) अक्षर पर बतें इख थाय. सं. आम्र ताम्र तेने आ चालता सूत्रे आनो अ श्राय पढी ताम्रात्रेम्बः ए सूत्रथी - ने स्थाने म्व थाय. पक्षी क्लीबेस्म मोनु० ए सूत्रोथी अंधे तंबं एवां रूप सिद्ध थाय. विरहरूपी अग्नि ते विरहानि कहेवाय. सं. विरहानि तेने अधोमनयां० अनादौ द्वित्वं श्रा चालता सूत्रे हस्व क्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी विरहग्गी थाय. सं. आस्यतेने अधोमनयां० श्रा चालता सूत्रे ह्रस्वः नोणः अतः सेर्डी : ए सूत्रोथी
दो रूप सिद्ध थाय. सं. तीर्थ तेने या चालता सूत्रे ह्रस्व सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व क्ली बेस्म मोनु० ए सूत्रोथी तित्थं एवं रूप याय. सं. गुरूल्लापाः एटले गुरुनो उल्लाप ( कथन ) तेने चालता सूत्रे हख पोवः जश्शस्दीर्घः वा जशशसोलुक ए सूत्रश्री गुरुल्लावा रूप सिद्ध थाय. सं. चूर्ण तेने चालता सूत्रे इख सर्वत्र रलुक् ए सूत्रोथी चुण्णो रूप याय. सं. नरेंद्र तेने या चालता सूत्रे स्व प्रेरोनवारलुक् अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी नरिंदो रूप सिद्ध थाय. सं. म्लेच्छ शब्द तेने म्लेच्छे ए सूत्रथी लनी पेला इकार थाय. पबी अतः सेड: ए सूत्रथी मिलिच्छो एवं. रूप सिद्ध थाय. सं. दृष्टैकस्तनपृष्टं एटले कांचली उतारवा वखते जोवामां वेलुं एक स्तन पृष्ट- अहिं सं. दृष्ट शब्दने ष्टस्यानुष्ट्रेष्टासंदृष्टे अनादौ द्वित्वं द्वि
पूर्व इत्पाद त्यारे दिट्टि एवं थयुं. सं. एक शब्दने सेवादौवा ए सूत्रथी क्क थाय. या सूत्रथी एनो इ थाय. सं. स्तन तेने स्तस्यथोऽसमस्त० नोणः ए सूत्रथी थण थाय. सं. पृष्ट तेने ऋतोत् पोवः क्लीबेस्म् ए सूत्रोथी बटुं थायः एकी साथे दिट्ठकथणवहं एवं रूप थाय. सं. अधरोष्ठ तेने खघथ० श्रा चालता सूत्रे रोनो रु थाय. पी ष्ठस्यानु० अनादौ० द्वितीय० क्ली बेस्म ए सूत्रोथी अहरु एवं रूप थाय. सं. नीलोत्पल तेने आ सूत्रथी लोनो लु थाय. कगटड० अनादौ द्वित्वं बेम ए सूत्रोथी नीलुप्पलं एवं रूप याय. सं. श्राकाश-तेने कगचज० अवर्णोऽयः
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मागधी व्याकरणम्. शषोःसः क्लीबेसम् ए सूत्रोथी आयासं रूप थाय. सं. ईश्वर तेने सर्वत्रवलुक शषोः सः अतःसे?ः ए सूत्रोथी ईसरो एवं रूप थाय. सं. उत्सव तेने अनुत्साहोत्सन्ने० कगटड० अतःसेझैः ए सूत्रोथी ऊसवो एवं रूप थाय. ॥ ४॥
इत एका ॥५॥ संयोग इति वर्त्तते।श्रादेरिकारस्य संयोगे परे एकारो वा जवति॥ पेएडं पिएडं। धम्मेवं धम्मिलं । सेन्दूरं सिन्दूरं । वेएहू । विएहू । पेटं पिटं । बेवं बिवं ॥ कचिन्न जवति । चिन्ता ॥ ५ ॥ मूल भाषांतर. अहीं संयोग ए अधिकारथी जाणी लेवो. संयोग- ( जोडीया) अक्षर पर बतें आदि इकारनो विकटपे एकार थायने. सं. पिण्डं तेना पेण्डं अने पिण्डं एवां रूप थाय. सं. धमिल्लं तेनां धम्मेल्लं धम्मिल्लं एवां रूप थाय. सं. सिन्दूर तेना सेन्दूरं सिंदूरं एवां रूप थाय. सं. विष्टु तेना वेण्ह विण्ह एवां रूप थाय. सं. पृष्टं तेना पेढे पिट्ठे एवां रूप थाय. सं. बिट्व तेना बेल्लं बिल्लं एवां रूप पाय. को वेकाणे थाय पण नहीं-जेम, चिन्ता ॥ ५॥
॥ढुंढिका ॥ श्त ६१ एत् ११ वा ११ पिएड धम्मित सिन्दूर- अनेन सर्वत्र वा ३ ए वर्गेन्त्यो वा इति वा विष्टु अनेन वा ३ ए वि वे पदम श्मष्मस्मेति ष्टु स्थाने एहु ११ क्लीबेसौ दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक वेण्ह विण्ह । पृष्ट- पृष्टे वानुत्तरपदे इति पृ पि अनेन वा पिपे. ष्टस्यानु० ष्टस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व० स ट क्लीबे सम् मोनु पेटं पिटं । बिल्व- अनेन वा बि ले सर्वत्र दलुक् अनादौ वि० व ११ क्लीबेसम् मोनु० बेवं विद्धं ॥ ५ ॥ टीका भाषांतर. संयोग पर बतें आदि इकारनो विकटपे एकार थाय. सं. पिण्ड धम्मिल्ल सिन्दूर-श्रा शब्दोने या चालता सूत्रथी इकारनो ए अयो अने पक्ष वगैंऽत्योवा ए सूत्र लागे एटले तेमना- पेण्डं पिण्डं धम्मेल्लं धम्मिलं सेन्दूरं सिन्दूरं एवां रूप थाय. सं. विष्टु तेने आ चालता सूत्रे विकटपे इकारनो एकार श्राय. पठी प क्ष्मश्मष्मस्म ए सूत्रधी ष्टु ने स्थाने ण्हु थाय. पजी क्लीवेसौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वेण्ह विण्ह एवां रूप थाय. सं. पृष्ट तेने पृष्टवानुत्तरपदे आ चालता सूत्रे इ. कारनो ए वाय. पनीष्टस्यानु० अनादौ द्वित्वं दितीयपूर्व क्लीवेसम्० मोनु ए सूत्रोथी
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प्रथमःपादः।
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पटुं पिटुं एवां रूप थाय. सं. बिल्व तेने आ चालता सूत्रथी इकारनो ए थाय पनी सर्वत्र दलुक् अनादौ द्वित्वं क्लीबेसम्मोनु०ए सूत्रोधी वेल्लं विलं एवां रूप थाय.॥५॥
किंशुके वा ॥ ६॥ किंशुकशब्दे आदेरित एकारो वा जवति॥केसुशंकिंसुशं ॥६॥ मूल भाषांतर. किंशुक शब्दना आदि इकारनो विकटपे एकार श्राय. सं. किशुक तेना केसुअं अने किंसुअं एवां रूप थाय. ॥ ६ ॥
॥ टुंढिका ॥ किंशुक ७१ वा ११ किंशुक ११ मांसादेर्वा अनुसारबुक् केसुधे किंसुअंद टीका भाषांतर. किंशुक शब्दना आदि इकारनो विकटपे एकार श्राय. सं. किंशुक तेने मासादेर्वा ए सूत्रथी विकटपे अनुस्वारनो लुक् आय. एटले केसुअंकिंसुअं एवां रूप थाय. ॥ ६॥
मिरायाम् ॥ ७॥ मिराशब्दे श्त एकारो नवति ॥ मेरा ॥ ७ ॥ मूल भाषांतर. मिरा शब्दना इकारनो एकार आय.सं.मिरा तेनु मेरा रूप पाय.७७
टुंढिका नास्ति पथि-पृथिवी-प्रतिश्रुन्मूषिक-दरिजा-बिनीतकेष्वत् ॥ ७ ॥ एषु आदेरितोऽकारो नवति ॥ पहो । पुहई। पुढवी । पडंसुश्रा ॥ मूस । हलदी। हलदा । बहेड ॥ पन्थं किर दे सित्तेति तु पथिशब्दसमानार्थस्य पंथशब्दस्य नविष्यति ॥ हरिमायां विकल्प श्त्यन्ये । हलिद्दी हलिदा ॥ ७ ॥ मूल भाषांतर. सं. पथि- पृथिवी- प्रतिश्रुत्- मूषिक- हरिद्रा- अने बिभीतक ए शब्दोना आदि इकारनो अकार थाय. सं. पथि तेनुं पहो रूप थाय. सं. पृथिवी तेनां पुहई पुढवी एवां रूप थाय. सं. प्रतिश्रुत् तेनुं. पडंसुआ रूप थाय. सं. मूषिक तेनुं मूसओ श्राय. सं. हरिद्रा तेनुं हलद्दी तथा हलद्दा एवं रूप पाय. सं. विभीतक तेनुं बहेडओ एवं रूप थाय. सं. पथि शब्दनी समान अर्थवाला एवा पंथ शब्दनुं पन्थं एवं पण रूप धायचे. अने केटलाएक हरिद्रा शब्दने विकटपे ईकार आय एम कहे. एटले हलिद्दी हलिद्दा एवां रूप पाय. ॥ ७ ॥
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मागधी व्याकरणम्.
॥ ढुंढिका ॥ पंथा श्च पृथिवी च प्रतिश्रुच्च मूषिकश्च हरिजा च बिजीतकश्च पंथिपृथिवीप्रतिश्रुन्मूषिकह रिजाबिजीतकाः तेषु ७३ अत् ११ पथिन् ११ अनेन थि थ खघथ थ ह अतः सेझैः पहो पृथिवी ऊत्वादौ इति पृ पु खघथा थि हि अनेन हि ह कगचजेति वबुक् अंत्यव्यंग सलुक् पुह द्वितीये निशीथपृथिव्योर्वा थस्य ढः शेष तहत् पुढवी। प्रतिश्रुत् सर्वत्र प्रमध्यस्य श्रुमध्यस्य रलुक् प्रत्यादौ डः मिति अनेन डो डः वक्रादावंतः अनुखारः स्त्रियामादवि० अंत्यत्यस्य था शषोःसः अंत्यव्यं० सलुक् पडंसुश्रा । मूषिक-अनेन ३ अ शषोःसः ११ कगचजेति कबुक् अतःसेझैः मूसले । हरिता अनेन इथ हरिजादौलः र ल वेरोनवा इति अस्य रकारस्य बुक् अनादौ हित्वं या हरिजादौ इति डाप्र० यत्र हलिदा तत्र ठस्यांनां बुक् इति आबुक् द्वितीये हलीही ११ अंत्यव्यंज० सबुक् । बिनीतक अनेन वि ब खघथ जी ही एत्पीयूषापीडबिजीतककीदृशेदृशे इति ही हे प्रत्यादौ डः त ड कगचजेति कबुक् ११ अतःसेझैः बहेड । पथ श्रम् श्रमोस्य श्रबुक् मोनु पंथं दलिद्दी हलिदा इति विकल्पेन इकारं वदंति ततो अनेन श्र साधनिका पूर्ववत् ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. पथिन् पृथिवी प्रतिश्रुत् मूषिक हरिद्रा अने बिभीतक ए शब्दोना आदि इकारनो अकार थायजे. सं. पथिन् तेने आ चालता सूत्रथी थि नोथ थाय. पनी खघथ अतःसे?: ए सूत्रोथी पहो एवं रूप आय. सं. पृथिवी तेने उहस्वादौ खघथ० श्रा चालता सूत्रे इकारनो अकार थाय. पनी कगचज. अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पुहई रूप थाय. अने विकटप पदे निशीथपृथिव्योर्वा ए सूत्र पामी बाकीनी साधना पूर्ववत् थाय एटले पुढवी एबुं रूप सिम थाय. सं. प्रतिश्रुत् तेने सर्वत्र प्रमध्यस्य श्रुमध्यस्य रलुक् ए थी र नो लुक् थाय. पळी प्रत्यादौडः डिति या चाखता सूत्रे इकारनो अकार वक्रादावंतः स्त्रियामदवि० शषोःसः अंत्यव्यंज० सलुक् ए सूत्रोथी पडंसुआ एवं रूप थाय. सं. मूषिक तेने आ चालता सूत्रथी इकारनो अकार थाय. पनी शषोः सः कगचज अतःसे?ः ए सूत्रोश्री मूसओ एवं रूप
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प्रथमः पादः ।
१०३
·
थाय. सं. हरिद्रा तेने या चालता सूत्रे इकारनो अथाय पी हरिद्रादौ लः र ल प्रेरोनचा अनादी द्वित्वं छाया हरिद्रादौ सूत्रोधी हलद्दी हलद्दा एवां रूप थाय. ज्यारे हलिद्दा एवं रूप थाय त्यारे तेने आकारनो लुक् थाय ने बीजे हलिद्दी एवं रूप थाय. पनी तेने अंत्यव्यंजन० सलुक् ए सूत्र पामे . सं. विभीतक तेने या सूत्रथी इनो अथाय पी खघथ० भी नो ही थयो. पक्षी एत्पीयूषापीडबिभीतक कीदृशे शे ए सूत्री ही नो हे थाय. पी प्रत्यादौडः कगचजः अतः सेड : ए सूत्रोथी बहेडओ रूप सिद्ध थाय. सं. पथ तेने अम् प्र० श्रवे पती अमोस्य मोनु० ए सूत्रोश्री पंथं एवं रूप सिद्ध थाय. सं. हरिद्रा शब्दने केटला एक विकल्पे इकार कहेबे एटले हलिद्दी अने हलिद्दा एवां रूप थाय. पढी या चालता सूत्रे अ नो इयाय ने बाकीनी साधनिका पूर्ववत् करवी० ॥ ८८ ॥
शिथिलेंगुदे वा ॥ ८९ ॥
अनयोरादेरितोऽद् वा जवति ॥ सढिलं । पसढिलं । सिढिलं | पसिढिलं । श्रङ्गां । इङ्गथं ॥ निर्मितशब्दे तु वा यात्वं न वि धेयं । निर्मात निर्मितशब्दाच्यामेव सिद्धेः ॥ ८ ॥
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सं.
मूल भाषांतर. शिथिल अने इंगुद शब्दना इकारनो विकल्पे अकार थाय. शिथिलं तेनु सढिलं सिढिलं थाय. सं. प्रशिथिलं तेनुं पसढिलं पसिढिलं थाय. सं. इंगुदं तेनुं अंगुअं तथा इंगुअं एवं रूप थाय. निर्मित शब्दने विकल्पे आकार न था. कारण, निर्मात अने निर्मित एवां बे शब्दथी ते सिद्ध थायबे ॥ ८९ ॥
॥ ढुंढिका ॥
शिथिलें गुदे ७१ वा १९ शिथिल - प्रशिथिलं अनेन वा इ शषोः सः मेथि शिथिर शिथिल प्रथमे यस्य ढः सर्वत्र रलुक् ११ क्वीबेसम् मोनु० सढिलं सिढिलं पसढिलं पसिढिलं | इंगुद अक्की बेस्म् कगचजेति लुक् श्रव्यय० सलुक् गुखं इंगु ॥ ८ ॥
टीका भाषांतर. शिथिल अने इंगुद शब्द ना इकारनो विकल्पे अकार थाय. सं. शिथिल प्रशिथिल तेने या चालता सूत्रे विकल्पे इकार थाय. पी शषोः सः मिथिशिथि० ए सूत्रथी थ नो ढ थाय पढी सर्वत्र वलुक् क्लीबेस्म् मोनु० ए सूत्रोश्री सदिलं सिढिलं पसढिलं पसिढिलं एवां रूप थाय. सं. इंगुद तेने अ नो इ थाय. पनी क्ली बेस्म कगचज० अव्यय० ए सूत्रोथी अंगुअं इंगुअं एवां रूप थाय ॥ ८ए ॥
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मागधी व्याकरणम्,
तित्तिरौ रः ॥ ए॥ तित्तिरिशब्दे रस्योतोऽद् नवति ॥ तित्तिरो ॥ ए० ॥
मूल भाषांतर. तित्तिरिशब्दना रकार मां रहेला इकारनो विकटपे अकार पाय. सं. तित्तिरि शब्दनुं तित्तिरो एवं रूप धाय. ॥ ए० ॥
ढुंढिका नास्ति
श्तौ तो वाक्यादौ ॥ १ ॥ वाक्यादिजूते इतिशब्दे यस्तस्तत्संबंधिन इकारस्य अकारो ज. वति ॥ इन जंपिथावसाणे । श्व विथसिध-कुसुम-सरो ॥ वा. क्यादाविति किम् । पित्ति पुरिसोत्ति ॥ ए१ ॥
मूल भाषांतर. वाक्यनी प्रश्रम रहेला एवां इति शब्दना तकारनी अंदर रहेला इकारनो अकार थाय. सं. इति जल्पितावसाने एवं वाक्य ले तेनुं इअ जम्पिआवसाणे एवुरूप थायने. सं. इति विकसितकुसुमशरः एवं वाक्य ने तेनुं इअ विकसिअ-कुसुम-सरो ऐq वाक्य श्राय. मूलमां वाक्यनी प्रथम रहेला इति शब्दने एम कडं तेथी सं. प्रिय इति तेनुंपिओत्ति श्राय श्रने सं. पुरुष इति तेनुं पुरिसोत्ति थाय.
॥ढुंढिका ॥ इति ७१ त् ६१ वाक्यादि ११ इति जल्पितावसान- अनेन श्र शेषं पूर्ववत् इति विकसितकुसुमशरः अनेन ३ अ शेषं पूर्ववत् प्रिय इति सर्वत्र रखुक् कगचजेति यलुक् श्तेःस्वरान्तस्य छिः श्ते श्लोपश्च तस्य हित्वं च ११ अतः सेोः पित्ति । पुरुष इति पुरुषेरोः इति रुस्थाने रि शषोः सः ष सः श्रतःसेडोंः इतेःस्वरात्तस्यतिः श्ते श्लोपश्च तस्य छिः पुरिसोत्ति ॥ ए१ ॥ टीका भाषांतर. वाक्यना आदिनूत एवां इतिशब्दना तकारनी अंदर रहेला इकारनो अकार थाय. सं. इति जल्पितावसान तेने आ चालतासूत्रे इ नो अ श्राय, बाकीनी साधना पूर्ववत् जाणी लेवी. सं. इति विकसित कुसुमशरः तेने आ चालता सूत्रथी इ नो अ थाय. बाकीनी साधना पूर्ववत् जाणावी- वाक्यनी आदिनूत न आवेला एवां इति शब्दना उदाहरण-सं. प्रिय इति तेने सर्वत्ररलुक् कगचज० इतेः खरात्तस्य द्विः अतः सेों: ए सूत्रोथी पिओत्ति रूप सिद्ध थाय. सं. पुरुष इति
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प्रथमः पादः ।
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तेने पुरुषेोः शषोः सः अतः सेडः इतेः स्वरात्तस्य द्विः ए सूत्रोथी पुरिसोति एवं रूप सिद्ध थाय ॥ १ ॥
ईजिंन्दा - सिंह - त्रिंशविंशतौ त्या ॥ जिह्वादिषु इकारस्य तिशब्देन सह ईर्नवति ॥ तीसा | वीसा ॥ बहुला धिकारात् कचिन्न जवति सिंह - राजे ॥ ए२ ॥
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२ ॥
जीदा । सीहो । । सिंह - दत्तो ।
मूल भाषांतर. जिह्वा - सिंह त्रिंशत् अने विंशतिए शब्दोना इकार नोि शब्द साथे ईकार थाय. सं. जिह्वा तेनुं जीहा याय. सं. सिंहः तेनुं सीहो थाय. सं. त्रिंशत् प्रविंशति तेना तीसा अने वीसा एवां रूप थाय. बहुल अधिकारने तेथी कोइ ठेकाणे न थाय. जेम सं. सिंह- दत्तः तेनुं सिंह- दत्तो अने सं. सिंह - राज तेनुं सिंह - राओ एवं रूप थाय ॥ ए२ ॥
॥ ढुंढिका ॥
जिह्वा च सिंहव त्रिंशच्च विंशतिश्च जिह्वासिंह त्रिंशद्विंशतिः तस्मिन् - जिह्वा - सर्वत्र वलुक् अनेन जी ११ अंत्यव्यं० सलुक् जीहा । सिंह - मांसादेर्वानुखारलोपः श्रनेन ई ११ अतः सेर्डोः सीहो । विंशति श्रनेन त्या सह ई ११ शषोः सः स्त्रियामाद० स सा ११ अंत्यव्यं० वीसा । त्रिंशत् विंशत्यादेर्लुक् अनुखारलोपः सर्वत्ररलोपः अनेन ती शषोः सः त्र्यंत्यव्यं० तलुक् ११ छात याप्
त्यव्यं० सलुक् तीसा सिंहदत्त ११ अतः सेड :- सिंहदत्तो । सिंहराजः ११ कगचजेति जलुक् श्रतः सेर्डोः सिंहाउं ॥ २ ॥
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टीका भाषांतर. जिह्वा सिंह त्रिंशत् अने विंशति ए शब्दोना इकारनो ति शब्दसाथे ईकार थाय. सं. जिह्वा तेने सर्वत्रलुक् या चालता सूत्रे ईकार थाय. पी अंत्यव्यंजन सलुक् ए सूत्रथी जीहा एवं रूप थाय. सं. सिंह तेने मांसादेर्वानुखारलोपः श्रा चालता सूत्रे ति सहित ई श्राय पढी शषोःसः स्त्रियामादं श्रत्यव्यं० ए सूत्रोथ वीसा रूप सिद्ध थाय. सं. त्रिंशत् तेने विंशत्यादेर्लुक् अनुस्वारलोपः सर्वत्र रलोपः श्रा चालतासूत्रे ईकार शषोःसः अंत्यव्यं श्रत पू अंत्यव्यं सलुक् ए सूत्रोथी तीसा रूप सिद्ध थाय. सं. सिंहदत्त तेने अतः : सेडः ए सूत्रयी सिंहदत्तो एवं रूप थाय. सं. सिंहराज तेने कगचज० अतः सेडोंः ए सूत्रथी सिंह - राओ एवं रूप याय. ॥ २ ॥
१४
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१०६
मागधी व्याकरणम्.
कि निरः ॥ ए३॥ निर् उपसर्गस्य रेफ्लोपे सति इत ईकारो नवति ॥ नीसर । नीसासो ॥ चुकीतिकिम् । निम । निस्सहाशे अंगाई ॥ ए३ ॥ मूल भाषांतर. निर् उपसर्गना रेफ्नो लोपथतां नकारनी अंदर रहेला इकारनो ईकार थाय. सं. निःसरति तेनुं नीसासो एवं रूप थाय. मूलमां रेफनो लुक् थवानुं कडं ने तेथी सं. निर्णय तेनुं निण्णओ एवं रूप श्राय. सं. निस्संहानि अंगानि तेमां निरसंह तेनुं निस्सहाई एवं रूप थाय. ॥ ए३ ॥
॥ ढुंढिका ॥ झुक् ७१ निर् ६१ निःसरति- सर्वत्ररबुक् अनेन नि नी त्यादीनां तिनीसर। निर्-श्वास- सर्वत्रवलुक् शषोः सः ११ श्रतःसेडोंः नीसासो। निर-णय- सर्वत्र रखुक् कगचजेति यबुक् अनादौ हित्वं श्रतः सेझैः निमः । निर्-संह १३ जस् शस्इं श्णयः जस्स्थाने इं दीर्घश्च से शषसं वा निस्सहाई ॥ ३ ॥ टीका भाषांतर. निर उपसर्गना रेफनो लोपश्रतां नकारनी अंदर रहेला इकार नो ईकार थाय. सं. निर्-सरति तेने सर्वत्र रलुक् वा चालता सूत्रथी ईकार थाय. पनी त्यादीनां ए सूत्रथी ति नो इ थाय. एटले नीसरह एवं रूप थाय. सं. निर्-श्वास तेने सर्वत्ररलुक्व लुक्च शषोःसः अतःसेझैः ए सूत्रोथी नीसासो एवं रूप थाय. सं. निर्णय तेने सर्वत्र रलुक् कगच. अनादौ द्वित्वं अतःसेडोंः ए सूत्रथी निण्णओ एवं रूप धाय. सं. निर्-सहानि तेने जस्शसूइंइणयः सेशषसं वा ए सूत्रोथी निस्सहाई एवं रूप श्रायः ॥ ए३ ॥
बिन्योरुत् ॥ ४॥ द्विशब्दे नावुपसर्गे च इत उद् नवति ॥ हि। उ-मत्तो । उथाई। उ-विहो।उ-रेहो । उ-वयणं ॥ बहुलाधिकारात् कचिद् विकल्पः । उ-जणो बि-जणो । उ बिर्ख ॥ क्वचिन्न नवति । द्विजः। दिउँ ॥ हिरदः । दिर ॥ क्वचिद् त्वमपि । दो-वयणं ॥ नि । णुमजा। णुमन्नो ॥ क्वचिन्न नवति । निवडश् ॥ ए४ ॥ मूल भाषांतर. दिशब्द अने नि उपसर्गना इकारनो उकार थाय. सं. दिमात्र तेनुं दु-मत्तो रूप थाय. सं. द्विजाति तेनुं दु-आई एवं रूप धाय. सं. विविध तेनुं दु-विहो रूप थाय. सं. द्विरेफ तेनु दु-रेहो रूप थाय. सं. द्विवचन तेनुं दु-वयणं एवं
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प्रथमःपादः।
१०७ रूप थाय. बहुल अधिकार के तेथी को ठेकाणे विकटपे थाय. सं. द्विगुण तेनुं दु-उणो तथा बि-उणो एबु रूप थाय. सं. द्वितीय तेनुं दुइओ बिइओ एवां रूप थाय. कोश वेकाणे न थाय जेम-सं. द्विजः तेनुं दिओ रूप थाय. सं द्विरद तेनुंदिरओ रूप थाय. कोइ ठेकाणे ओकार पण थायजे. सं. द्विवचनं नुं दो-वयणं एवं रूप श्राय. नि उपसर्गना उदाहरण- सं. निमज्जति तेनां गुमजइ णुमन्नो एवां रूप थाय. कोई काणे न थाय-जेम सं. निपतति तेनुं निवडइ ए, रूप थाय. ॥ ए॥
॥ढुंढिका॥ विश्च निश्च हिनी तयोः ६२ उत् ११- छिमात्र- सर्वत्र वबुक् रखुक् अनादौहित्वं हवःसंयोगे अनेन इ उ ११ श्रतः सेोः कुमत्तो। द्विजातिः सर्वत्रवलुक् कगचजेति जबुक् अनेन उ कगचजेति तलुक् ११ अंत्यव्यंग सबुक् अनादौ० श्राई। विविध २१ सर्वत्र वबुक् अनेन इ उ । खघवध धस्य हः अतः से?ः विहो। हिरेफ-सर्वत्र वबुक् अनेन इ उ फोनहौ फस्य हः ११ श्रतः सेोंः उ-रेहो। द्विवचनं सर्वत्र वलुक् थनेन उ कगचजेति वलुक् नोणः क्लीबे सम् मोनु उ-वयणं । घिगुण-स. र्वत्र वलुक् अनेन कगचजेति ग्लुक् ११ अतः सेझैः पु-यो। द्वितीये कगचजेति दबुक् विकल्पत्वान्न इश्कारस्य उकारः बिनणो। द्वितीय- सर्वत्रवत् बुक् पानीयादिवित् ईश्अनेन स्थाने उ कगचजेति यलुक् ११ अतः सेझैः उछ । द्वितीये कगचजेति दबुक् विश्च । हिज सर्वत्र वबुक् कगचजेति दबुक ११ श्रतः सेझैः दिउँ । द्विरद-सर्वत्रवबुक् कगचजेति सर्वत्र दबुक् ११ श्रतःसे?ः दिर । क्वचिद् उत्वमपि यथा द्विवचन- सर्वत्रवबुक् कगचजेति वलुक् अवर्णोय नोणः अनेन उ ११ क्लीबे सम् दोवयणं । निपूर्वषदतेः सदो मजाः षस्थाने मऊश्रादेशः वर्तण तिब् व्यंजनाददंते अन्वादौ नस्य णः त्यादीनां ति अनेन उत्वं णुमऊ निमग्न उत्वं कगचजेति ग्लुक् नोणः अनादौ हित्वं ११ अतः सेझैः णुमन्नो । निपतति- पोवः सद्पतोडः वर्त्तः ति त्यादीनां ति निवड॥ ए४॥
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मागधी व्याकरणम्.
टीका भाषांतर. दि अने नि उपसर्ग ना इकार नो उकार श्रायजे. सं. विमात्र तेने सर्वत्र वलुकलुक् अनादौद्वित्वं -हस्वःसंयोगे आ चालता सूत्रथी इकारनो उ वाय. पनी अतःसे?ः ए सूत्रथी दु-मत्तो रूप सिद्ध थाय. सं. द्विजातिः तेने सर्वत्र रलुक् कगचजति जलुक्याचाखता सूत्रे इ नो उ थाय पजी कगचजेति त्लुक अंत्यव्यंजन सलुक् अनादौद्रित्वं ए सूत्रोथी दुआई रूप सिद्ध श्राय. सं. द्विविध तेने सर्वत्र वलुक् था चालता सूत्रे इ उ खघथध० अतःसे?: एसूत्रथी दुविहो रूप सिन्धाय स. द्विरेफ तेने सर्वत्रवलुक् श्रा चालता सूत्रे इनो उ फोभही अतःसे?ः ए सूत्रोथी दु-रेहो रूप सिद्ध पाय. सं. द्विवचनं तेने सर्वत्रवलुक् श्रा चालता सूत्रे इ नो उपाय. कगचज श्रतः से?: ए सूत्रोथी दु-उणो रूप सिद्ध थाय. बीजे पक्ष कगचज वि. कटपपणे इकारनो उकार न थाय एटले वि-उणो रूप सिद्ध थाय. सं. द्वितीय तेने सर्वत्रवत्लुक पानीयादिष्वित् ईनो श्रा चालतासूत्रे इ स्थाने उ पनी कगचज अतःसेझैः एटले दुईओ रूप थाय. बीजे परे कगचज० ए सूत्र लागी विडओ रूप सिद्ध श्राय. सं. द्विज- तेने सर्वत्रवलुक् कगचज. अतःसे?: ए सूत्रोथी दिओ रूप सिद्ध थाय. सं. द्विरद तेने सर्वत्रवलुक कगचजः सर्वत्र दलुक् अतःसे?ः ए सूत्रोथी दिरओ रूप थाय. कोइ ठेकाणे ओकार पण पाय. जेम सं. द्विवचन तेने सर्वत्र वलुक कगचज अवर्णोय नोणः आ चालतासूत्रे ओ थाय. क्लीबेसम् ए सूत्रधी दोवयणं रूप सिद्ध थाय. नि उपसर्गपूर्वक एवा षद् धातुने स्थाने मज एवो आदेश पाय. वर्तमाना० तिब् प्रत्यय लागी व्यंजना दंतेअन्वादौ ए सूत्रोथी ननो ण थाय. पनी त्यादीनां ए सूत्रथी ति स्थाने इ थाय. पठी श्रा चालतासूत्रे उकार श्राय. एटले णुमजद एवं रूप सिद्ध श्राय. सं. निमग्न तेने उकार थाय. पनी कगचज. नोणः अनादौ द्वित्वं अतःसे?: ए सूत्रोथी गुमन्नो रूप सिद्ध थाय. सं. निपतति तेने पोवःसदूपतोर्ड वर्तमाना०त्यादीनांए सूत्रो पामी निवडइ एवं रूप सिद्ध श्रायः॥ए॥
प्रवासीदौ ॥ए॥ श्रनयोरादेरित उत्वं नवति ॥ पावासु। उन्लू ॥ ए५ ॥ मूल भाषांतर. प्रवासिन् अने इक्षु शब्दना श्रादि इकारनो उकार श्राय. सं. प्रवासिन् शब्दनुं पावासुओएq रूप सिद्ध थाय.सं.इक्षु शब्दनुं उच्छृ एवं रूप सिद्ध थाय.
॥ढुंढिका॥ प्रवासी च कुश्च प्रवासीः तस्मिन् ७१ प्रवासिन् अंत्यव्यंजन न सर्वत्ररनुक् अतः समृध्यादौ वा प पा अनेन सि सु ११ श्रतः सेडोंः पावासु । श्छु- अनेन इ उ बोऽक्षादौ कस्य बः ११ श्र
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प्रथमःपादः।
१०ए नादौ द्वित्वं द्वितीय बः अक्लीबेसौ दीर्घःलू ११ अंत्यव्यंजन सवुक उबू ॥ एय॥ टीका भाषांतर. प्रवासिन् श्रने इच्छु शब्दना श्रादि इकारनो उकार थाय. सं प्रवासिन् शब्दने अंत्यव्यंज. सर्वत्ररलुक अतःसमृद्ध्यादौवा श्रा चासता सूत्रे इकारनो उ थाय. अतःसेडोंः ए सूत्रोथी पावासुओ रूप सिद्ध थाय. सं. इक्षु तेने श्रा चासता सूत्रे इनो उ श्राय. पनी छोऽक्ष्यादौ अनादौद्रित्वं द्वितीय० अक्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यंजन सलुक ए सूत्रोधी उच्छू एबुं रूप सिद्ध थाय. ॥ एए॥
युधिष्ठिरे वा ॥६॥ युधिष्ठिरशब्दे श्रादेरित उत्वं वा जवति ॥ जहुटिलो।जहिहिलोए॥
मूल भाषांतर. युधिष्ठिर शब्दना श्रादि इकारनो उकार विकल्पे आय. सं. यु. धिष्ठिर तेनुं जहुटिलो तथा जहिहिलो एवं रूप सिह थाय. ॥ ए६॥
॥ढुंढिका ॥ युधिष्ठिर ११ वा ११ युधिष्ठिर- श्रादेोजः यु जु खघथध० द अनेन ३ उ कगटडेति षबुक् अनादौ हित्वं पितीयपूर्वबस्य ट हरिजादौ सः रल उसो मुकुलादिष्वत् य जः ११ श्रतःसे?ः जहु. हिलो । घितीये उत्वं विना तथैव जहिहिलो ॥ ए६ ॥ टीका भाषांतर. युधिष्ठिर शब्दना श्रादि इकारनो विकटपे उकार थाय. सं. युधिष्ठिर तेने आर्योजः खघथध० श्रा चालता सूत्रे इनो उ थाय. कगटड अ. नादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व हरिद्रादौलः मुकुलादिष्वत् अतःसे?ः ए सूत्रोथी जहुटिलो रूप सिघ आय. बीजे पदे उकार शिवाय बाकी पूर्ववत् साधना करी जहिहिलो एबुं रूप आय.॥ ए६॥
उच्च विधा कृगः ॥ ए॥ विधाशब्दे कृग् धातोः प्रयोगेश्त उत्वं चकाराऽत्वं च नवति ॥ दोहा-किऊ। उहा-किजार ॥ दोहा-श्यं । उहा-श्यं । कृग शति किम्। दिहा-गयं ॥कचित् केवलस्यापि।उहाविसो सुर-बहु-सत्यो॥ए।
मूल भाषांतर. द्विधाशब्द अने कृग् धातुना प्रयोगमा इकारनो ओकार श्राय. मूलमां चकारनुं ग्रहण के तेथी उकारपण थाय. सं. विधाक्रियते तेनां दोहा-किजा श्रने उहा-किडाइएवां रूप थाय. सं. द्विधाकृतं तेना दोहा-इअं तथा उहा-इअं एवां रूप
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मागधी व्याकरणम् थाय. मूलमां कृग् धातुनुं ग्रहण के तेथी सं. द्विधा-गतं तेनुं दिहा-गयं एवं रूप थाय. को ठेकाणे केवल द्विधा शब्दने पण पाय. जेम सं. द्विधापि स सुरवधूसार्थः तेनुं उहावि सो सुरवहू-सत्थो एवं रूप थाय. ॥ ए७ ॥
॥ढुंढिका ॥ उत् ११ च ११ द्विधा ११ कृग् ६१ विधाक्रियतेत्यादीनां ति ईश्रश्ौक्यस्य यस्य इजाः दुक् रिलुक् सर्वत्र वलुक् खघथध० धह अनेन दि दो दा किङ द्वितीये तृतीये उत्वं दोहा-किडा - हा-किऊ। विधाकृत-कृपादौ कगचजेति कबुक् तबुक् सर्वत्र तबुक् अनेन छ ११ दोहा-श्वे उहा-श्यं । विधागत- सर्वत्र वलुक् श्त एछा ए खघथा धद कगटडेति तलुक् अवर्णोय ११ क्लीबे सम् दिहागयं । द्विधापि सर्वत्र वबुक् अनेन केवलस्यापि ३ उ खघथ ध ह पदादपेर्वा ऽबुक् पोवः उहावि । तद् अंत्यव्यंग दलुक् ११ वैतत्तदः तसः श्रतः सेझैः सो।सुरवधूसार्थः खघथधण ध ह ह्रखः संयोगे सा सर्वत्र सबुक् धनादौहित्वं त्त द्वितीय पू. वथतः ११ श्रतः सेझैः सुरवहुसरो ॥ ए७ ॥ टीका भाषांतर. द्विधा शब्द साथे श्रावेला कृग् धातुना प्रयोगमा इकारनो ओकार अने उकार थाय. सं. द्विधा-क्रियते तेने त्यादीनां ईअइज्जोक्यस्य यस्य इज्जः रिलुक सर्वत्र वलुक् खघथ श्रा चालता सूत्रे इकारनो ओ थाय एटले किजइ एवं रूप थाय. बीजा अने त्रीजामा उकार थाय एटले दोहा-किजइ तथा दुहा-किजइ एवां रूप सिह आय. सं. द्विधाकृत तेने इत्कृपादौ कगचज० सर्वत्रतलुक् श्राचालता सूत्रे इनो ओ थाय एटले दोहा-इअं तथा दुहा-इअं एवां रूप थाय. सं. द्विधागतं तेने सर्वत्रवलुक इतएडा खघथ० कगटड० अवर्णीय क्लीबेसम् ए सूत्रोथी दिहा गयं एवं रूप थाय. सं. द्विधापि तेने सर्वत्रवलुक् श्रा चालता सूत्रे केवल (एकला) द्विधा शब्दना इकारनो उकार श्रयो. पनी खघथ० पदादपेर्वा पोव: ए सूत्रोथी दुहावि रूप सिद्ध थाय. सं. तदशब्दने अंत्यव्यं० वैतत्तदः अतः से?ः ए सूत्रोधी सो रूप सिद्ध थाय. सं. सुरवधूसार्थः तेने खघथध० इस्वःसंयोगे सर्वत्र सलुक् अनादौद्वित्वं द्वितीयपूर्वथतः अतःसेडोंः ए सूत्रोथी सुरवहु-सत्थो एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ ए७ ॥
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प्रथमःपादः।
वा निजैरे ना ॥ एG॥ निर्मरशब्दे नकारेण सह श्त उकारो वा नवति ॥ उकरो निफरो ॥ ए॥
मूल भाषांतर. निझर शब्दना नकारनी साथे इकारनो विकटपे उकार थाय. सं. निझर तेना ओज्झरो अने विकटपे निज्झरो एवां रूप थाय. । एज ॥
॥ टुंठिका॥ वा ११ निर्जर ७१ वा ११ निर्जर सर्वत्र रखुक् अनादौहित्वं रिती य पूर्वऊजः अनेन उ११ अतःसेडोंः उज्जरो छितीये निज्जरोएन टीका भाषांतर. निर्झर शब्दना नकार साथे इकारनो विकल्पे ओकार थाय. सं. निर्झर तेने सर्वत्ररलुक अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व झ जः श्रा चालता सूत्रथी ओकार अतःसेटः ए सूत्रोथी औज्झरो रूप सिख थाय अने बीजे पदे निज्झरो रूप सिख थाय. ॥ ए७ ॥
हरीतक्यामीतोत् ॥ एए॥ हरीतकीशब्दे श्रादेरीकारस्य श्रद् नवति ॥ हरडई ॥ एए॥ मूल भाषांतर. हरितकी शब्दना आदि ईकारनो अकार थाय. सं. हरीतकी तेनुं हरडई एवं रूप थाय. ॥ एए॥
॥ढुंढिका॥ हरीतकी ७१ इत् ६१ थत् ११ हरीतकी- अनेन री र प्रत्यादौडः तड कगचजेति कबुक् अंत्यव्यं० सयुक् हरडई ॥ एए॥ टीका भाषांतर. हरीतकी शब्दना श्रादि ईकारनो अकार थाय. सं. हरितकी तेने श्रा चालता सूत्रे री नो र थयो. प्रत्यादौडः कगचज अंत्यव्यं. ए सूत्रोथी हरडई एवं रूप सिख थाय. ॥ एए॥
आत्कश्मीरे ॥ १०॥ कश्मीरशब्दे ईत श्राद् जवति ॥ कह्मारा ॥ १० ॥ मूल भाषांतर. कश्मीर शब्दना ईकार नो आकार श्राय. सं. कश्मीर तेनुं कमारा एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ १० ॥
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मागधी व्याकरणम् .
॥ढुंढिका ॥ थात् ११ कश्मीर ७१ कश्मीर १३ जस्शस्ङसि दीर्घः जस्शसो. झुक् अनेन श्मी श्मा पक्ष्मश्मष्मेति मादेशः कमारा ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. कश्मीर शब्दना ईकार नो आकार थाय. सं. कश्मीराः तेने जस्शसूङसि. जसूशसोलुक आ चाखता सूत्रथी इमी नो इमा थाय. पनी पक्ष्मइम० ए सूत्रधी मा आदेश थाय एटले कमारा एवं रूप सिख थाय. ॥ १० ॥
पानीयादिष्वित् ॥१०॥ पानीयादिषु शब्देषु ईत श्द नवति ॥ पाणिशं । अलिकं । जि. श्र। जिथन । विलियं । करिसो। सिरिसो । उश्रं । तश्यं । गहिरं उवणिथं । थाणिकं । वलिविअं । उसिथतं । पसिथ । गहिथं । वम्मि । तयाणि ॥ पानीय । अलीक । जीवति । जीवतु । बीडित । करीष। शिरीष । द्वितीय । तृतीय । गनीराजप. नीत ।थानीत । प्रदीपित । श्रवसीदत्ाप्रसीद गृहीत । वल्मीक । तदानीम् । इति पानीयादयः॥ बहुलाधिकारादेषु क्वचिन्नित्यं । कचिद् विकल्पः । तेन पाणीअं । अलीधे । थी । करीसो । उवणी। इत्यादि सिझम् ॥ ११ ॥ मूल भाषांतर. पानीय विगेरे शब्दोना ईकार नो इकार थाय. सं. पानीयं तेनुं पाणिअं थाय. सं. अलीकं तेनुं अलिअं श्राय. सं. जीवति तेनुं जिअ थाय. सं. जीवतु तेनुं जिअउ थाय. सं. वीडित तेनुं विलियं थाय. सं. करीषं तेनुं करिसो थाय. सं. शिरीषं तेनु सिरिसो थाय. सं. द्वितीयं तेनु दुइअं थाय. सं. तृतीयं तेनु सइअं थाय. सं. गभीरं तेनुं गहिरं थाय. सं. उपनीतं तेनु उवणिअं थाय. सं आनीतं तेनुं आणि थाय. सं. प्रदीपितं तेनुं वलिविअं थाय. सं. अवसीदत् तेनुं
ओसिअंतं थाय. सं. प्रसीद तेनुं पसिअ थाय. सं. गृहीतं तेनुं गहिअं थाय. सं. वल्मीक तेनुं वम्मिओ श्राय. सं. तदानीं तेनुं तयाणि थाय. इति पानीयादि जाएवा. अहिं बहुल अधिकार बे, तेथी ए शब्दोमां कोश्वार नित्ये अने कोश्वार विकटपे पाय. तेथी सं. पानीय अलीक जीवति करीष उपनीत ए शब्दोना पाणी अलीअं जीअइ करीसो उवणीओ इत्यादि रूप सिद्ध थाय. ॥१०१॥
॥ढुंढिका ॥ पानीयादि ३३ इत् ११ पानीय- अनेन नी नि नोणः कगच.
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प्रथमःपादः।
१९३ जेति यलुक् ११ क्लीबे सम् पाणिशं । अलीक-अनेन ली लि कगचजेति कबुक् ११ क्वीबे सम् श्रविशं । जीवति जीवतु अनेन जि सर्वत्र वलुक् कगचजेति तबुक् जियश् । जिअल । बीमितसर्वत्र रखुक् अनेन वी वि डोलः कगचजेति वबुक् ११ क्लीबे सम् विलियं । करीष- शिरीष अनेन री र शषोःसः ११ श्रतः से?ः करिसो। सिरिसो द्वितीय तृतीय सर्वत्र वबुक् छिन्योरुत् दिउ कगचजेति तबुक् अनेन ३ ११ क्लीवे सम् उश्यं । तश्शं । गजीर अनेन क्लीबे सम्- गहिरं। उपनीत- पोवः नोणः अनेन कगचजेति तबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु उवणिशं । श्रानीतं नोणः अनेन ३ कगचजेति तलुक् ११ क्लीवे स्म् श्राणिशं । प्रदीपितसर्वत्र रखुक् प्रदीपिदोहदेलः द ल अनेन पोवः कगचजेति तलुक् ११ अतः सेोः वलि विउँ । वा वलिविरं । षद् विसरणगत्यवसादनेषु थ द षसोब्धै सद श्रवपूर्व ३ अवसीदतीति शत्रानश शतृप्रण अत् व्यंजनात् अतः इति थत् लोपः श्रोतीत्यादिना सोह श्रादेशः ॥ शत्रानशः तृन श्तः अवापोते अवस्य उथनेन सी सि कगचजेति दलुक् ११ क्लीबे सम्-उसिअंतं । प्रसीद-सर्वत्र रलुक् अनेन सि कगचजेति दलुक् पसिथ । गृहीत तोऽत् य ग अनेन इ गहिथ-। वल्मीक कगचजेति कलुक् १९श्रतः से?ः वम्मि तदानीं कगचजेति दबुक् अवर्णोय नोणः अनेन ३११ अव्यम् तयाणि ॥११॥ टीका भाषांतर. पानीय विगेरे शब्दोना ईकारनो इकार थाय. सं. पानीय तेने श्रा चालता सूत्रे इकार थाय. पठी नोणः कगचज क्लीबे सम् ए सूत्रोथी पाणि एवं रूप थाय. सं. अलीकं तेने आ चालता सूत्रे इकार पजी कगचज क्लीबे सम् ए सूत्रोथी अलिअं रूप सिद्ध थाय. सं. जीवति जीवतु-तेने आ चालता सूत्रे आय. पठी सर्वत्र वलुक् कगचज० ए सूत्रोथी जिअइ तथा जिअउ रूप सिह, थाय.. .सं. वीडित तेने सर्वत्र रलुक आ चालता सूत्रे इकार पाय. पनी डोलः कगचज क्लीवे सम् ए सूत्रोथी विलियं रूप सिद्ध थाय. सं. करीष शिरीष तेने आ चालता सूत्रे श्कार थाय पनी शषोः सः अतः सेोंः ए सूत्रोथी करिसो सिरिसो रूप सिह,
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११४
मागधी व्याकरणम्. श्राय. सं. द्वितीय तृतीय तेने सर्वत्र वलुक् द्विन्योरुत् कगचज० श्रा चाखता सूत्रे इकार क्लीबे सम् दुइअं तइअं एवां रूप सिद्ध थाय. सं. गभीर तेने श्रा चालता सूत्रे इकार थाय पनी क्लीवे सम् ए सूत्रथी गहिरं एवं रूप सिद्ध थाय. सं. उपनीत तेने पोवः नोणः था चालता सूत्रे इकार कगचज० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी उवणिअं रूप सिद्ध थाय. सं. आनीत तेने नोणः आ चाखता सूत्रे इ थाय. पनी कगचज. क्लीबे सम्० ए सूत्रोत्री आणि रूप सिद्ध थाय. सं.प्रदीपित तेने सर्वत्र रलुक प्रदीपिदोहदेलः था चालता सूत्रे इकार थाय. पजी पोवः कगचज अतः से?ः ए सूत्रोथी वलिविओ रूप सिद्ध श्राय. अथवा वलिविअं एवं पण रूप सिद्ध थाय. सं. षद् धातु विसरण थर्बु, गति करवी अने खेद पामवामा प्रवर्ते तेने शत प्रत्यय श्रावी अत्. व्यंजनात् ए सूत्रथी अ नो लोप थाय. पजी श्रोतीत्यादि ए सूत्रथी सोद एवो आ देश श्राय पनी अवापोते ए सूत्रथी अव ने उ आदेश थाय. पजी आ चालता सूत्रे इ थाय कगचज० क्लीबे सम् ए सूत्रोधी ओसिअंतं एq रूप सिह थाय. सं. प्रसीद तेने सर्वत्र रलुक् आ चालता सूत्रे इकार कगचज० ए सूत्रोथी पसिअ एवं रूप सिद्ध थाय. सं. गृहीत तेने ऋतोऽत् श्रा चालता सूत्रे इकार थई गहिअ एवं रूप सिद्ध थाय. सं. वल्मीक तेने कगचज० अतः सेझैः ए सूत्रोथी वम्मिओ रूप सिघ थाय. सं. तदानीं तेने कगचज अवर्णोऽय० नोणः आ चालता सूत्रे इकार अव्यय० ए सूत्रोथी तयाणिं रूप सिद्ध थाय.॥ ११॥
उजीर्णे ॥१०॥ जीर्णशब्दे ईत उद् नवति ॥ जुल-सुरा ॥ क्वचिन्न जवति । जिले नोश्रणमत्ते ॥ १० ॥ मूल भाषांतर. जीर्ण शब्दना इकारनो उकार श्राय. सं. जीर्णसुरा तेनुं जुण्ण मुरा एवं रूप थाय. कोइ ठेकाणे आ नियम लागतो पण नथी. जेम सं. जीर्णो भोजममत्ते तेनुं जिण्णे भोअणमत्ते एवं श्राय अहिं जीर्णनुं जिण्णे एवं रूप अयु. १०२
॥ढुंढिका ॥ उत् ११ जीर्ण १ जीर्णसुरा- अनेन जी जु सर्वत्रेति रखुक् श्रनादौहित्वं स ११ अंत्यव्यंग सबुक् जुम्ल-सुरा । जिसे इत्यत्र इ. कारस्य उकारो न जातः॥ १२ ॥ टीका भाषांतर. जीर्ण शब्दना ईकारनो उकार थाय. सं. जीर्ण-सुरा तेने श्रा चालता सूत्रे जीनो जु श्रयो पनी सर्वत्रेतिरलुक अनादौ द्वित्वं अंत्यव्यं० जुण्णसुरा एवं रूप सिद्ध थाय. कोइ ठेकाणे न थाय तेनुं उदाहरण-जेम सं. जीर्ण हतुं त्यां इकारनो उकार थयो नहीं. ॥१२॥
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११५
प्रथमःपादः।
कर्दीन-विहीने वा ॥ १०३ ॥ श्रनयोरीत ऊत्वं वा नवति ॥ हूणो हीणो । विहूणो विहीणो ॥ विहीन इति किम् ॥ पहीण-जर-मरणा ॥ १०३ ॥
मूल भाषांतर. हीन अने विहीन शब्दना ईकारनो विकटपे ऊकार थाय. सं. हीन तेना हूणो तथा हीणो एवां रूप श्राय. सं. विहीन तेना विहूणो तथा विहीणो एवा रूप थाय. मूलमां विहीन शब्दनुं ग्रहण के तेथी सं. प्रहीणजरामरणा तेर्नु पहीण-जर-मरणा एवं रूप श्रायः ॥ १०३ ॥
॥ढुंढिका ॥ जः ११ हीनश्च विहीनश्च हीनविहीनः तस्मिन् १ वा ११ हीनअनेन हि हू नोणः ११ श्रतः से?ः हूणो हीणो एवं विहूणो जरा च मरणं च जरामरणे प्रहीणे जरामरणे येषां ते प्रहीणजरामरणाः दीर्घह्रखौ मिथोवृत्तौ इति हवः रा र सर्वत्ररलोपः १३ जस् शसोर्बुक् जस्शस्ङसित्तोणो पहीणजरमणा ॥ १०३ ॥ टीका भाषांतर. हीन अने विहीन ए बे शब्दोना ईकारनो विकटपे अकार थाय. सं. विहीन तेने श्रा चालता सूत्रथी ऊकार थाय. पनी अतः से?: ए सूत्रथी हणो विकटपे हीणो विहणो विकटपे विहीणो एवां रूप धाय हणा गयां ने जरा भने मरण जेमनाते प्रहीन जरामरणाः कहेवाय सं. प्रहीणजरामरणाः तेने दीर्घ हस्वी मिथोवृत्तौ सर्वत्ररलोपः जशशसालक् जशू शसूङसित्तोणो ए सूत्रोथी पहीणजरमरणा एवँ रूप सिम थाय. ॥ १०३ ॥
तीर्थे ॥१०४॥ तीर्थशब्दे हे सति ईत ऊत्वं नवति ॥ तूहं ॥ ह इति किम् । तित्थं ॥ १०४ ॥
मूल भाषांतर. तीर्थ शब्दने ह शब्द साथे तेना ईकारनो ऊकार श्राय ने. सं. तीर्थ तेनुं तूहं एवं रूप थाय. मूखमांह नुं ग्रहण ने तेथी पदे तित्थं एवू पण रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥ तीर्थ-७१ ह र तीर्थ- सर्वत्ररबुक् अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्वथस्य त हखः संयोगे ति ति ११ क्लीबे स्म् मोनु तिबं ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. तीर्थ शब्दने ह शब्दसाथे तेना ईकारनो ऊकार पाय. सं.
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मागधी व्याकरणम्. तीर्थ तेने आ चालता सूत्रथी तृहं एq रूप सिद्ध श्राय अने पक्ष सर्वत्र रलुक अनादौद्वित्वं द्वितीय पूर्वथस्य त हस्वः संयोगे क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोश्री तित्थं एवं रूप थाय.॥१०४॥
एत्पीयूषापीड-बिन्नीतक-कीडशेशे ॥१५॥ एषु ईत एत्वं जवति ॥ पेकसं । श्रामेलो । बहेड । केरिसो एरिसो॥ १५॥ मूल भाषांतर. पीयूष,-आपीड-बिजीतक-कीदृश ईदृश ए शब्दोना ईकारनो एकार थाय. सं. पीयूषं तेनुं पेऊसं थाय. सं. आपीड तेनु आमेलो थाय. सं. बिभीतक तेनुं बहेडओ श्राय. सं. कीदृश तेनु केरिसो थाय. सं. ईदृश तेनुं एरिसो थाय.
॥ ढुंढिका ॥ एत् ११ पीयूषं च थापीडश्च बिनीतकश्च कीदृशश्च ईदृशश्च पीयूषापीड विनीतक कीदृशेदृशं तस्मिन् ७१ पीयूष श्रनेन पी पे कगचजेति यलुक् शषोः सः क्लीबे सम् मोनु० पेजसं। श्रापीम-नीपापीडे मोवा इति पस्य मः डोलः डल अनेन मी मे ११ अतः से?ः श्रामेलो । विनीतक-पथिपृथिवी० ब खघथधा जह प्रत्यादौ डः त ड अनेन ई ए कगचजेति कलुक् ११ श्रतः से?ः बहेड। कीदृशः दृशः विप सुकसकः इति ह स्थाने रि अनेन की के शषोः सः श स श्रतः सेोः केरिसो। ईदृश-दृश; विष्ट रि अनेन ई ए शपोःसः ११ अतः से?ः एरिसो ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. पीयूष, श्रापीड, बिजीतक, कीदृश ईदृश ए शब्दोना ईकारनो एकार थाय. सं. पीयूष तेने आ चालता सूत्रथी एकार थाय. पठी कगचज० शषोःसः क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पेऊसं एवं रूप सिद्ध श्राय. सं. आपीड तेने नीपापीडेमोवा डोलः आ चालता सूत्रश्री एकार थाय पनी अतः सेटः ए सूत्रधी आमेलो एवं रूप सिद्ध थाय. सं. विभीतक तेने पथि पृथिवी० खघथ० प्रत्यादौ डः आ चालता सूत्रथी ईनो ए थाय पनी कगचज अतः सेों: ए सूत्रोथी बहेडओ एवं रूप सिख थाय. सं. कीदृश तेने दृशःकिप सुकसकः आ चालता सूत्रे एकार थाय पनी शषोःसः अतः से?ः ए सूत्रोथी केरिसो रूप सिद्ध थाय. सं. ईदृश तेने दृशः किप श्रा चालता सूत्रे एकार थाय पनी शषोः सः अत: सेडोंः ए सूत्रोथी एरिसो रूप सिद्ध थाय. ॥१०॥
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प्रथमःपादः।
नीमपीठे वा ॥ २०६॥ श्रनयो रीत एत्वं वा जवति ॥ नड्डे नीडं । पेढं पीढं ॥ १६ ॥ मूल भाषांतर. नीड अने पीठ शब्दना ईकार नो विकटपे एकार थाय. सं. नीडं तेना नेडं अने नीडं एवां रूप पाय. सं. पीठं तेना पेढं अने पीढं एवां रूप धाय.
॥ ढुंढिका ॥ नीडं च पी च नीडपीठं तस्मिन् ७१ वा ११ नीम-श्रनेन वा ई सेवा दौवा हित्वं ड ११ क्लीवे स्म् मोनु नेहुं नीडं पीठ- अनेन पी पे
गेढः क्लीबे सम् मोनु० पेढं पीढं ॥ १६ ॥ टीका भाषांतर. नीड ने पीठ शब्दना इकारनो विकटपे एकार श्राय. सं. नीडं तेने आ चालता सूत्रे विकटपे ईकार थाय पनी सेवादौ वा द्विर्भाव क्लीवे सूम् मोनु ए सूत्रोथी ने९ तथा नीडं एवां रूप सिख श्राय. सं पीठ तेने आ चालता सूत्रे एकार वाय. पनी ठोढः क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पेढं तथा पीढं एवां रूप सिघ थाय.
उतो मुकुलादिष्वत् ॥ १० ॥ मुकुल इत्येवमादिषु शब्देषु श्रादेरुतोत्वं नवति ॥ मउलं । मउलो । मजरं । मउडं । श्रगरुं । गढ़ई । जहुहिलो । जहिहिलो। सोअमलं । गलोई ॥ मुकुल मुकुर । मुकुट । अगुरु गुर्वी । युधिष्ठिर । सौकुमार्य । गुडूची। इति मुकलादयः ॥ क्वचिदाकारोऽपि । विद्युतः। विदा ॥ १७ ॥ मूल भाषांतर. मुकुल विगेरे शब्दोना आदि उकार नो अकार श्राय. सं. मुकुलतेनुं मउलं तथा मउलो रूप थाय. सं. मुकुर तेनुं मउरं रूप थाय. सं. मुकुट तेनुं मउडं रूप थाय. सं. अगुरु तेनुं अगरं रूप थाय. सं. गुर्वी तेनुं गुरुई रूप थाय. सं. युधिष्टिर तेनुं जहुटिलो रूप थाय. सं. सौकुमार्य तेनुं सोअमल्लं थाय. सं. गुडूची तेनुं गलोई रूप थाय. ए प्रमाणे मुकुलादि शब्दो जाणवा. को ठेकाणे आकार पण थाय. जेम सं. विद्रुतः तेनुं विदाओ एवं रूप थाय. ॥ १० ॥
॥ टुंढिका ॥ उत् ६१ मुकुल श्रादौ येषां ते मुकुलादयः तेषु ७३ मुकुलउजयलिंगः अनेन मु म कगचजेति कबुक् ११ क्लीबे सम् मोनुन मउलं । पुंलिंगे श्रतः सेोः मउलो । मुकुर- अनेन मु म कग
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११०
मागधी व्याकरणम्. चजेति कबुक् क्लीवे स्म् मउरं । मुकुट अनेन मु म कगचजेति कलुक् टोडः क्लीबे सम् मनडं । अगुरु- अनेन गुग ११ क्वोबे सम् श्रगुरुं गुर्वी अने न गु ग तन्वीतुल्येषु वात् प्राग् उकारः कगचजेति वबुक् ११ अतःसेडोंः गरुई । युधिष्टिरः- आयोजः य ज अनेन ज्यु ज युधिष्ठिरेवा घि धु खधथ ष्टस्यानुष्ट्रेष्टासंदष्टे शति टस्य वः श्रनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उट हरिजादौ लः ११ अतः सेडोंः जुहूहिलो । सौकुमार्य औत उत् सौ सो अनेन कु क कगचजेति कबुक् ह्रस्वः संयोगे मा म पर्यस्त पर्याण सौकुमार्येलः यस्य सः ११ क्लीबे सम् मोनु सोश्रमलं । गडूची उत्कुष्मांडीतूपीरकर्पूरस्थूलतांबूलगडूचीमध्ये इति डू डो डोलः अनेन गु गः कगचजेति चलुक् ११ अंत्यव्यंज सलुक् गलोई। विजुतसर्वत्रवनुक् क्वचिदाकारोऽपि द दा अनादौ हित्वं दा कगचजेति दलुक् ११ अतः सेझैः विदा ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. मुकुल विगेरे शब्दोना आदि उकारनो अकार थाय. सं. मुकुल ते पुंलिंग तथा नपुंसके थाय . तेने आ चालता सूत्रथी उनो अकार थाय. पठी कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मउलं रूप सिद्ध आय. जो ते पुंलिंगे होय तो अतः सेोंः ए सूत्रथी मउलो रूप सिम पाय. सं. मुकुर तेने आ चालता सूत्रथी उ नो अ थाय. पनी कगचज० क्लीबे सम् ए सूत्रोथी मउरं रूप सिद्ध थाय. सं. मुकुट तेने आ चालता सूत्रथी उ नो अ थाय. पी कगचज टोडः क्लीबे सम् ए सूत्रोथी मउडं रूप सिद्ध थाय. सं. अगुरु तेने श्रा चालता सूत्रे उ नो अ श्राय पनी क्लीये सम् ए सूत्रथी अगुरुं रूप सिद्ध थाय. सं. गुर्वी तेने आ चालता सूत्रथी उनो अ थाय. पजी तन्वीतुल्येषु ए सूत्रथी व नी पेहेला उकार श्राय पठी कगचज० अतासेडोंः ए सूत्रोथी गरूई रूप सिद्ध थाय. सं. युधिष्ठिरः तेने आयोजः श्रा चालता सूत्रे उ नो अ श्राय पी युधिष्टिरे वा खघथ० ष्टस्यानुष्ट्रष्टा संदेष्टे अनादौ द्वित्वं हि. तीय० हरिद्रादौलः अतः सेटः ए सूत्रोथी जुहाढिलो ए रूप सिद्ध थाय. सं. सौ. कुमार्य-तेते औत औत्था चालता सूत्रे उकारनो अ थाय पनी कगचज इस्वःसंयोगे पर्यस्तपर्याण सौकुमार्येल्लः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सोअमल्लं रूप सिद्ध थाय. सं. गडूची तेने उत्कुष्मांडीतूणीरकर्पूर० डोलः श्रा चाखता सूत्रे उकारनो अकार थाय पनी कगचज० अंत्यव्यंज ए सूत्रोथी गलोई रूप सिद्ध श्राय. सं. विद्रुत तेने सर्वत्र वलुक कोई ठेकाणे आकार पण थाय. पजी अनादौ द्वित्वं कगचज. अतःसे?: ए सूत्रोथी विदाओ एवं रूप निघ थाय. ॥ १०॥
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प्रथमःपादः।
वोपरौ ॥१०॥ उपरावुतोऽद् वा नवति ॥ अवारं । उवरि ॥ १० ॥ मूल भाषांतर. उपरि शब्दना उकारनो विकटपे अकार श्राय. सं. उपरि तेनुं अवरिं तथा विकटपे उवरिं एवां रूप थाय. ॥ १० ॥
॥ढुंढिका ॥ वा ११ उपरि ७१ उपरि- अनेन वा पोवः ११ क्लीबे सम् मोनु। श्रवरिं । उवरिं ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. उपरि शब्दना उकारनो विकटपे अकार थाय. सं. नपरि-तेने श्रा चालता सूत्रथी अकार थाय. पी पोवः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रथी अवरिं तथा उरि एवां रूप सिद्ध आय. ॥ १० ॥
गुरौ के वा ॥ १० ॥ गुरौ स्वार्थ के सति श्रादेरुतोऽद् वा जवति ॥ गरुढ गुरु ॥ क इति किम् । गुरू ॥ १० ॥ मूल भाषांतर. गुरु शब्दने स्वार्थमां क प्रत्यय श्रावतां तेना आदि उकार नो विकटपे अकार थाय. संस्कृत-गुरुकः तेना गरुओ अने गुरुओ एवां रूप थाय. मूलमां क प्रत्ययनुं ग्रहण के तेथी एकला गुरु शब्दनुं गुरू एवं रूप आय. ॥ १०॥
॥ ढुंढिका ॥ गुरु ७१ क १ वा ११ गुरुकः गुरुरेव गुरुकः स्वार्थेकः अनेन वा उगु ग कगचजेति कबुक् अतः से?ः गरु गुरुङ गुरु ११ अक्लीबे दीर्घः रु रू अंत्यव्यंग सलुक् गरू ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. गुरु शब्दने स्वार्थमां क प्रत्यय आवतां तेना आदि उकारनो विकटपे अकार थाय. सं. गुरु तेने स्वार्थे क आवी गुरुकः एवं रूप पाय. श्रा चालता सूत्रथी विकटपे अकार थाय पी कगचज. अतः सेटः ए सूत्रोथी गरुओ तथा गुरुओ एवां रूप सिद्ध थाय. ज्यारे स्वार्थे क न आवे त्यारे सं. गुरु तेने अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् ए सूत्रोथी गरू रूप सिद्ध थाय. ॥१०॥
ईर्धकुटौ ॥ ११०॥ भृकुटावादे रुत ईवति ॥ निउडो ॥ ११० ॥ मूल भाषांतर. भ्रुकुटि शब्दना आदि उकारनो ईकार श्राय. स. भृकुटि तेनुं भिउडी रूप थाय. ॥ ११०॥
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१२०
मागधी व्याकरणम् .
॥ ढुंढिका ॥ ई. ११ भ्रुकुटि ७१ भ्रुकुटि-सर्वत्र रखुक् अनेन उ ६ कगचजेति कलुक् टोडः अंत्यव्यंग सबुक् जिउडी ॥ ११० ॥ टीकाभाषांतर. भृकुटी शब्दना आदि उकार नो ईकार श्राय. सं. भृकुटी- तेने सर्वत्र रलुक् आ चालता सूत्रथी उ नो ई थाय पछी कगचज० टोडः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी भिउडी रूप सिद्ध श्रायः ॥ ११ ॥
पुरुषे रोः॥ ११॥ पुरुषशब्दे रोरुत र्जवति ॥ पुरिसो। परिसं ॥ १११ ॥ मूल भाषांतर. पुरुष शब्जना रुकारनी अंदर रहेला उकार नो इकार थाय. सं. पुरुष तेनुं पुरिसो एवं रूप थाय. सं. पौरुषं तेनुं पउरिसं एवं रूप थाय. ॥ १११ ॥
॥ ढुंढिका ॥ पुरुष ७१ रु ६१ पुरुष अनेन रु रि शषोः सः षः सः अतः से?ः पुरिसो। पौरुष पन पौरादौ च पौस्थाने पड अनेन रु रि शषोः सः क्वीबे सम् पनरिसं ॥ १११॥ टीका भाषांतर. पुरुष शब्दना रुकार नी अंदर रहेलो उकारनो ई थाथ. सं. पुरुष तेने आ चालता सूत्रथी रुनो रि थाय पी शषोः सः अतः से?: ए सूत्रोथी पुरिसो एवं रूप थाय. सं. पौरुष तेने पउ पौरादौच ए सूत्रथी पौ स्थाने पउ आ देश थाय. पनी या चालता सूत्रथी रुनो रि थाय पी शषोः सः क्लीबे सम् ए सूत्रोथी पउरिसं ए रूप सिह थाय. ॥ १११॥
ई: दुते ॥१२॥ हुतशब्दे श्रादेरुत ईत्वं जवति ॥ बीअं ॥ ११ ॥ मूल भाषांतर. क्षुत शब्दना आदि उकारनो ईकार श्राय. सं. क्षुतं तेनुं छी एवं रूप थाय. ॥ ११ ॥
॥द्वंढिका॥ ईः ११ कुत ७१ कुत-- बोऽदयादौ दः अनेन लुबी कगचजेति तलुक् ११ क्लीबे सम्० मोनु बीअं ॥ ११ ॥ टीका भाषांतर. क्षुत शब्दना आदि उकारनो ईकार थाय. सं. क्षुत तेने छोऽक्ष्यादौ श्रा चालता सूत्रे उनो ई वाय. पठी कगचज क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी छीअं एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ ११ ॥
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प्रथमः पादः ।
ऊत्सुनग--मुसले वा ॥ ११३ ॥ अनयोरादेरुत ऊद् वा जवति ॥ सूवो सु । मूसलं मुसलं ॥ ११३
१२१
मूल भाषांतर. सुभग ने मुसल शब्दना यदि उकारनो विकल्पे ऊकार थाय. सं. सुभग तेना सूहवो सुहओ एवां रूप याय. सं. मुसलं तेना मूसलं मुसलं एवां रूप श्राय ॥ ११३ ॥
॥ ढुंढिका ॥
ऊत् ११ सुनगमुसल ७१ वा ११ सुभगश्च मुसलं च सुजगमुसलं तस्मिन् सुग- श्रनेन वा सु सू खघथ० ज ह ऊत्वे दुर्जगसुनवः ग व द्वितीये कगचजेति गलुक् ११ छात. सेर्मोः सुहवो सुह । मुसल -- अनेन वा ऊ क्ली बेस्म् मूसलं मुसलं ॥ ११३ ॥
टीका भाषांतर. सुभग ने मुसल शब्दना उ नो ऊ थाय. सं. सुभगं तेने खा चालता सूत्री विकल्पे ऊ थाय. पती खघथ० ए सूत्र श्री भ नो ह थाय. पबी ऊत्वे दुर्भग-सुभगे वः ए सूत्रश्री ग नो व थाय. बीजे पछे कगचज० अतः सेड: ए सूत्रोथी सुहवो तथा सुहओ एवां रूप थाय. सं. मुसल-तेने श्रा चालता सूत्रे विकल्पे ऊ थाय. बेस्म ए सूत्री मूसलं मुसलं एवां रूप सिद्ध थाय· ॥ ११३ ॥ अनुत्सादोत्सन्ने त्सचे ॥ ११४ ॥
उत्साहोत्सन्नवर्जिते शब्दे यौ सौ तयोः परयोरादेरुत ऊद् जवति ॥ स | ऊसु | ऊसवो ऊसित्तो । ऊसर ॥ ब । उद्गताः शुका यस्मात् सः ऊसु । ऊससइ । अनुत्साहोत्सन्न इति किम् । हो । उन्नो ॥ ११४ ॥
मूल भाषांतर. उत्साह ने उत्सन्न शब्द शिवाय जे त्स ने च्छ आवे ते परबतां तेना आदि उकार नो ऊ थाय. त्सना उदाहरण- सं. उत्सुक तेनुं ऊसुओ थाय. सं. उत्सव तेनुं ऊसवो थाय. सं. उत्सिक्त तेनुं ऊसित्तो थाय. सं. उत्सरति तेनुं ऊसरइ थाय. च्छ ना उदा० - शुक जेमांथी प्राप्त थाय ते उच्छुक कहेवाय. सं. उत्सुक तेनुं ऊसुओ थाय. सं. उश्वसति तेनुं ऊससइ थाय. मूलमां उत्साह अने उत्सन्न शब्द शिवाय एम कह्युंबे तेथी सं. उत्साह नुं उच्छाहो थाय असं उत्सन्न नुं उच्छन्नो थाय ॥ ११४ ॥
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॥ ढुंढिका ॥
उत्साहश्च उत्सन्नं च उत्साहोत्सन्नं न उत्साहोत्सन्नं अनुत्साहोत्सन्नं
१६
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मागधी व्याकरणम्. तस्मिन् ७१ त्सले ७१ उत्सुक उत्सव-- अनेन उ ऊ कगटडेति तबुक् कबुक् च ११ श्रतः सेझैः ऊसुर्ड। ऊसवो । उसिक्त श्रनेन उ ऊ कगटडेति तलुक् कलुक् च अनादौ हित्वं त्त ११ श्रतः सेझैः ऊसित्तो। उत्सरति । कगटडेति तबुक् अनेन उ ऊ त्यादीनां ति ऊसर। उत्सुक उद्गताः शुका यस्मात्सः अंत्यव्यं० दलुक संस्कृते बस्य सिफत्वात् अनेन उ ऊ शषोः सः श स कगचजेति कबुक् ११ जसु । उद्श्वसति-अंत्यव्यंग दबुक् सर्वत्र वलुक अनेन उ ऊ शषोः सः त्यादीनां ति ऊसस । उत्साह इस्वात्थ्यश्चत्सप्सामनिश्चले इति स स्थाने छ ११ अतः सेोंः उबाहो । उबन्नो ॥ ११४ ॥ टीका भाषांतर. उत्साह अने उत्सन्न शब्द शिवाय त्स अने च्छ शब्द परन्ते तेना आदि उ नो ऊ थाय. सं. उत्सुक-उत्सव तेने आ चालता सूत्रे उ नो ऊ थाय. पनी कगटड अतःसे?: ए सूत्रोथी ऊसुओ ऊसवो एवां रूप सिद्ध थाय. सं. उसिक्त- तेने आ चालता सूत्रे उ नो ऊ थाय. पनी कगटड. अनादौ द्वित्वं अतः सेडोंः ए सूत्रोथी ऊसित्तो रूप सिद्ध थाय. सं. उत्सरति तेने कगटड० श्रा चालता सूत्रे उ नो ऊ थाय. त्यादीनां ए सूत्रलागी ऊसरइ रूप सिह थाय. सं. उत्सुक तेने अंत्यव्यं० ए सूत्रथी द् नो लुक् श्राय पनी संस्कृत प्रमाणे छ अदर सिद्ध थाय. पती श्रा चालता सूत्रे उ नो ऊ थाय पछी शषोः सः कगचज ए सूत्रोथी असुओ रूप सिद्ध थाय. सं. उच्छसति तेने अंत्यव्यं सर्वत्र वलुक आ सूत्रे उ नो ऊ थाय. पठी शषोः सः त्यादीनां ए सूत्रोथी ऊससह एव॒ रूप सिद्ध थाय. सं. उत्साह तेने इखात्थ्यश्वत्सप्सामनिश्चले अतःसे?ः ए सूत्रोत्री उच्छाहो रूप सिद्ध थाय. तेमज उच्छन्नो रूप पण सिझ पाय. ॥ ११ ॥
लुकि उरो वा ॥ १२५॥ पुर् उपसर्गस्य रेफस्य लोपे सति उत ऊत्वं वा नवति ॥ दूसहो मुसहो । दूहवो उहजे ॥ टुंकि इति किम्।उस्सहो विरहो॥११५॥ मूल भाषांतर. दुर् उपसर्गना रेफ नो लोप थया पजी तेना उकारनो विकटपे ऊ थाय. सं. दुःसहः तेनां दूसहो दुसहो एवां रूप थाय. सं. दुर्भगःतेना दूहवो दुहओ एवां रूप थाय. मूलमां रेफ नो लुक् थया पठी एम कडं ने तेथी सं. दुःसहः तेनुं दुस्सहो एवं रूप थाय. जेम के, दुस्सहो विरहो एटले पुःखेथी सहन थाय तेवो विरह ११५
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१५३
प्रथमःपादः।
॥ दुंढिका ॥ लुक् ७१ जुर् ६१ वा ११ रस्य बुक् रखुक् तस्मिन् उर-सह-निईरोर्वा रखुक् अनेन उ ऊ ११ श्रतः सेडोंः दूसहो। द्वितीये उकार एव उसहो । उर्लग-निधुरोर्वा रखुक् अनेन उ ऊ खघथन इति न ह ऊत्वेऽर्जगसुजगेवा इति गस्य वः ११ श्रतःसेझैः दूहवो उहर्ज।उर-सह-शषोःसःशषसेवा रस्त्र ११थतःसेझैः कुस्सहो॥११५॥ टीका भाषांतर. दुर् उपसर्गना रेफ नो लोप थई उ नो विकटपे ऊ थाय. सं. सुरसहः तेने निर्दुरोर्वा रलुक् श्रा चालता सूत्रधी उ नो ऊ थाय. पठी अतःसे?ः ए सूत्रथी दूसहो रूप सिद्ध थाय. बीजे पहे उकार ज थाय. एटले दुसहो रूप थाय. सं. दुर्भगः तेने निर्दुरोवा रलुक् श्रा चालता सूत्रथी उ नो ऊ थाय. पनी खघथ दुर्भगसुभगेवा अतःसे?: ए सूत्रोथी दूहवो दुहओ एवां रूप सिघ थाय. दुर्-सह तेने शषोः सः शषसेवारस अतः से?: ए सूत्रोथी दुस्सहो एवं रूप सिह थाय ॥११॥
उत्संयोगे ॥१६॥ संयोगे परे श्रादेरुत उत्वं जवति ॥ तोएडं । मोएडं । पोक्खरं । कोट्टिमं । पोत्थ । लोछ । मोत्था । मोग्गरो।पोग्गलं । कोएढो। कोन्तो। वोकन्तं ॥ ११६ ॥ मूल भाषांतर. संयोग (जोडादर ) परतें आदि उकारनो ओ श्राय. सं. तुंडं नुं तोण्डं थाय. मुण्डं नुं मोण्डं थाय. सं. पुष्करं नुं पोक्खरं पाय. सं. कुहिम नु कोहिमं श्राय. सं. पुस्तकः तेनुं पोत्थओ रूप थाय. सं. लुब्धकः नुं लोडओ थाय. सं. मुस्ता नुं मोत्था रूप थाय. सं. मुद्गर तेनुं मोग्गरो श्राय. सं. पुद्गलं तेनुं पोग्गलं थाय. सं. कुष्ट तेनु कोण्ढो थाय.सं. कुंत तेनु कोन्तो थाय. सं. व्युत्क्रांत तेनुं वोकन्तं एवं रूप श्रायः ॥ ११६ ॥
॥ढुंढिका ॥ उत् ११ संयोग १ तुएड मुएड अनेन तु तो मु मो ११ क्लीबेसम् तोएडं मोएडं। पुष्करष्कष्वस्कयो नि ष्क क्ख अनादौ द्वितीयपूर्वखस्य क अनेन पु पो ११ क्लीवे स्म् मोनु० पोक्खरं । कुहिम अनेन कु को ११ क्वीवेसम् कोट्टिमं । पुस्तक स्तस्यथोऽसमस्तः स्तस्य थः श्रनादौ हित्वं द्वितीय पूर्वथः तः अनेन पु पो । कग
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मागधी व्याकरणम्. चजेति कलुक् ११ श्रतःसे?ः पोत्थ । लुब्धक-सर्वत्र वबुक् अनादौहित्वं द्वितीय० पूर्व ध द कगचजेति कलुक् ११ श्रतः सेझैः लोछ । मुस्ता-स्तस्य थोऽसमस्त स्तः थः अनादौ हित्वं हितीयपूर्वथः त अनेन मु मो मोत्था ११ अंत्यव्यंग सलुक्-मुद्गर कगटडेति दबुक् अनादौ हित्वं द्वितीय ग्ग अनेन मु मो ११ श्रतः सेझैः मोग्गरो । पुद्गल-अनेन पु पो शेषं पूर्ववत् । कुष्टअनेन कु को ठोढः ११ अतः से?ः कोएढो। कुंत-श्रनेन कु को १९श्रतःसे?ः कोन्तो। व्युत्क्रांतः अधोमनयां ययुक् अनेन वु वो सर्वत्र रखुक् अनादौहित्वं ११ क्लीबेस्म् मोनु वोकन्तं ॥ ११६ ॥ टीका भाषांतर. जोडाकर परतें आदि उकारनो ओ थाय. सं. तुण्ड मुण्ड तेने श्रा चालता सूत्रे उ नो ओ थाय. पनी क्लीबे सम् ए सूत्रथी तोण्डं मोण्डं रूप सिद्ध थाय. सं. पुष्कर तेने ष्वस्कयोनानि अनादौ० द्वितीयपूर्व ख क ा चालता सूत्रे उ नो ओ क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पोक्खरं रूप सिद्ध थाय. सं. कुटिम तेने श्रा चालता सूत्रथी उ नो ओ थाय. पनी क्लीबे सम् ए सूत्रथी कोहिम रूप सिघ थाय. सं. पुस्तक तेने स्तस्यथोऽसमस्त. अनादौ दित्वं पितीय० कगचज अतः से?: ए सूत्रोथी लोडओ रूप सिद्ध थाय. सं. मुस्ता तेने स्तस्यथोऽसम० अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्वथतः आ चालता सूत्रे मु नो मो थाय. अंत्यव्यंज० ए सूत्रे मोत्था रूप सिघ थाय. सं. मुद्गर-तेने कगटड अनादौ द्वित्वं वितीय आ चालता सूत्रे उ नो ओ अतासेडोंः ए सूत्रोथी मोग्गरो रूप सिद्ध थाय. सं. पुद्गल-तेने आ चालता सूत्रथी उ नोओ थाय. बाकी पुर्ववत् सूत्रो लागी पोग्गलं रूप सिद्ध थाय. सं. कुष्ट-तेने श्रा चालता सूत्रे उ नो ओ थाय. पनी ठोढः अतः सेों: ए सूत्रोथी कोण्ढो रूप सिद्ध थाय. सं. कुंत तेने आ चालता सूत्रे उ नो ओ थाय. पजी अतःसे?ः लागी कोन्तो रूप सिद्ध थाय. सं. व्युत्क्रांत तेने अधोमनयां यलुक् आ चालता सूत्रे उनो
ओ थाय. पजी सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वोकन्तं रूप सिम थाय. ॥ ११६ ॥
कुतूहले वा ह्रस्वश्च ॥१२॥ कुतूहलशब्दे उत उद् वा नवति तत्संनियोगे हखश्च वा ॥ कोऊहलं कुऊहलं कोउहवं ॥ ११७ ॥ मूल भाषांतर. कुतूहल शब्दना उकारनो विकल्पे ओ थाय. अने तेना संनियोगमां विकटपे इस्व थाय. सं. कुतूहल तेना कोऊहलं कुऊहलं कोउहल्लं एवां रूप थाय.
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प्रथमःपादः।
१२५ ॥ टुंढिका॥ कुतूहल ७१ वा ११ ह्रखः ११ च ११ कुतूहल-अनेन कु को तू तु कगचजेति तबुक् ११ क्लीबेस्म् मोनु कोऊहलं । द्वितीये कगचेति तबुक् कुछहलं तृतीये अनेन कु को तू तु कगचजेति तलुक् ११ सेवादौ हित्वं व ११ क्वीबेसम् मोनु कोउहवं ॥ ११७ ॥ टीका भाषांतर. कुतूहल शब्दना उकारनो विकटपे ओ श्राय. अने तेना संनियोगे ( सांनिध्ये ) विकटपे इस्व थाय. सं. कुतूहल तेने आ चालता सूत्रे उ नो ओ थाय. पनी कगचज० क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी कोहलं रूप सिद्ध थाय. बीजापदे कगचज ए सूत्रथी कुऊहलं रूप थाय. त्रीजा पदे आ चालता सूत्रे उ नो ओ थाय. तू नो तु आय. पी कगचज सेवादौ द्वित्वं क्लीवे सम् मोनु ए सूत्रोत्री कोउ. हलं रूप सिद्ध श्रायः ॥ ११७ ॥
अदूतः सूदमे वा ॥ १२७॥ सूक्ष्मशब्दे अतोऽद् वा नवति ॥ सएहं सुएहं ॥ आर्षे ।सुहुमं ॥११॥ मूल भाषांतर. सूक्ष्म शब्दना ऊकारनो विकल्पे अकार थाय. सं. सूक्ष्म तेना सहं सुण्हं एवां रूप थाय. आर्ष (इषिप्रयोग )मां सुहुमं एवं रूप थायजे. ॥११॥
॥ढुंढिका ॥ थत् ११ऊत् ६१ सूक्ष्म ७१ वा ११ सूक्ष्म-सूक्ष्म-श्लव्हमाण्हः अनेन वा ऊ ११ क्लीबेसम् सएहं द्वितीये इस्वः सुएई आर्षे सूक्ष्म तन्वीतुल्येषु मात् प्राग् उकारः कःखःकचित् दस्थाने खः खघथ ख ह सु हु ११ क्लीबे सुहुमं ॥ ११७ ॥ टीका भाषांतर. सूक्ष्म शब्दना ऊ नो विकटपे अ थाय. सं. सूक्ष्म- तेने सूक्ष्मश्ललक्षणांण्हः आ चालता सूत्रे विकटपे ऊ थाय क्लीबे सम् ए सूत्रथी सण्हं रूप सिद्ध थाय. बीजे पदे ह्रस्व थाय. एटले सुण्हं रूप थाय. आर्षप्रयोगमां तन्वीतुल्येषु ए नियमथी मनी पेहेला उ थाय. पनी क्षः खः कचित् खघथ क्लीबे ए सूत्रोथी सुहुमं रूप सिद्ध श्राय. ॥ ११ ॥
उकूले वा लश्च विः॥११॥ उकूलशब्दे ऊकारस्य अत्वं वा नवति तत्सं नियोगे च लकारो हिर्जवति ॥ अखं दूऊलं ॥ आर्षे उगुलं ॥ ११ ॥
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मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. दुकूल शब्दना ऊ नो विकटपे अ श्राय. अने तेना योगे ल नो दिर्जाव थाय. सं. दुकूलं तेना दुअल्लं दुऊलं एवां रूप थाय. श्रार्षप्रयोगमां दुगुल्लं एवं रूप थाय. ॥ ११ ॥
॥ढुंढिका ॥ उकूल ७१ वारल ११ च ११छिः११कूल-अनेन वा कु क कगचजेति कलुक् सेवादौ हित्वं ११ क्लीबेसम् श्रद्धं । द्वितीये कगचजेति कलुक् उऊलं । उकूल आर्षत्वात् ऊत्वं अनादौ हित्वं क्ष अनादौ स्वराणां कस्य गः ११ क्लीबेसम् उगुलं ॥ ११ ॥ टीका भाषांतर. दुकूल शब्दना ऊ नो विकटपे अ थाय. अने तेना योगे ल नो बिर्ताव थाय. सं. उकूल-तेने आ चालता सूत्रे विकटपे उ नो अ थाय. पनी कगचज० सेवादौ द्वित्वं क्लीबे सम् ए सूत्रोथी दुअल्लं एवं रूप थाय. बीजा पदे कगचज ए सूत्रे दुऊलं एवं रूप धाय. आर्षप्रयोगमा उ थाय. पलीअनादौद्वित्वं अनादौ स्वराणां क्लीवे सम् ए सूत्रोथी दुगुल्लं रूप सिद्ध पाय. ॥ ११ ॥
ईर्वोघ्यूढे ॥ १० ॥ उध्यूढ शब्दे ऊत ईत्वं वा नवति ॥ उबीढं । उनुढं ॥ १० ॥ मूल भाषांतर. उझूढ शब्दना ऊ नो ई विकटपे थाय. सं. उड्यूढं तेना उव्वीढं उव्वूढं एवां रूप पाय. ॥ १२ ॥
॥ढुंढिका ॥ ई ११ वा ११ उट्यूढ ३१ जप्यूढ- अधोमनयां यबुक् कगटडेति दबुक् अनादौ हित्वं वू ? अनेन वा ऊ ११ क्लीबेसम् मोनु जवीढं उबूढं ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. उड्यूढ शब्दना ऊ नो ई विकटपे श्राय. सं. उन्यूढ तेने अधोमनयां यलुक् कगटडेति दलुक् अनादौ द्वित्वं आ चालता सूत्रथी विकटपे ऊ थाय पडी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोश्री उव्वीढं उठवूढं एवां रूप सिद्ध थाय. ॥ १० ॥
जबूं-हनुमत्कण्डूय--वातूले ॥१२॥ एषु ऊत उत्वं नवति ॥ जुमया। हणुमन्तो । कण्मुश्र।वाउलो ॥११॥ मूल भाषांतर. भू, हनुमत, कण्डूय, वातुल ए शब्दोना ऊ नो उ श्राय, सं. भ्रू
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प्रथमःपादः।
१२७ तेनुं भुमया रूप थाय. सं. हनुमान् तेनुं हणुमन्तो रूप वाय. सं. कण्ड्रयति तेनुं कण्डअइ रूप थाय. सं. वातुल तेनुं वाउलो रूप थाय.॥ ११ ॥
॥ढुंढिका ॥ उ ११ भ्रूश्च हनुमांश्च कंडूयश्च वातुलश्च हनुमत्कंड्रयवातुलं तस्मिन् ७१ चू ११ चूवोमया इति मया प्रत्ययः । सर्वत्र रखुक् अनेन चू तु अंत्यव्यंग सबुक् जुमया । हनुमन् श्रादिवसोसाल. वन्तमन्तेत्तेरमणामतोः इति मन्तादेशः नोणाथनेन णू णु ११ अतःसे?ः हणुमंतो। कंडूयति अनेन डू त्यादीनां ३ कण्श्र वातूल-श्रनेन तू तु कगचजेति तबुक् श्रतःसेडोंः ११ वाउलो॥११॥ टीका भाषांतर. 5 हनुमत् कंडूय वातूल ए शब्दोना ऊ नो उ थाय. सं. भ्र तेने भ्रूवामया सर्वत्र रलुक् था चालता सूत्रे भ्रू नो नु थाय पनी अंत्यव्यंग ए सू.
थी भुमया रूप सिद्ध थाय. सं.हनुमन् तेने आल्विल्लो नोणः आ चालता सूत्रे नो उ थाय. पनी अतः सेोंः ए सूत्रथी हणुमंतो ए रूप सिद्ध श्राय. सं. कडूयति तेने श्रा चालता सूत्रथी ऊ थाय. पठी त्यादीनां ए सूत्रथी कण्डुअइ एवं रूप सिद्ध पाय. सं. वातुल तेने आ चालता सूत्रे ऊ नो उ थाय. पनी कगचज अतःसेटः ए सूत्रोथी वाउलो रूप सिद्ध थायः ॥ ११ ॥
मधूके वा ॥ १२॥ मधूक शब्दे ऊत उद् वा जवति ॥ महुशं महूशं ॥ १२ ॥ मूल भाषांतर. मधूक शब्दना ऊ नो विकटपे उ श्राय. सं. मधूकं तेने महाअं मह एवां रूप थाय. ॥ १२॥
॥ ढुंढिका ॥ मधूक ११ वा ११ मधूक अनेन वा धू धु खघथध घ ह कगचजेति कबुक अवर्णोयय ११ क्लीबे महुअं महूयं ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. मधूक शब्दना ऊ नो विकटपे उ थाय. सं. मधुक तेने श्राचालता सूत्रथी ऊ नो उ थाय. पनी खघथ कगचज. अवर्णोयया क्लीये ए सूत्रोथी महुअं महअं एवां रूप सिद्ध थायः ॥ १२ ॥
देती नूपुरे वा ॥ १२३॥ नूपुरशब्दे ऊत इत् एत् इत्येतौ वा जवतः ॥ निउरं नेजरं । पदे नूजरं ॥ १३ ॥
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१२
मागधी व्याकरणम्. __ मूल भाषांतर. नूपुर शब्दना ऊने स्थाने इ अने ए एवां बे श्रादेश विकटपे श्रायः सं. नूपुरं तेना निउरं नेउरं एवां रूप थाय. पदे नूउरं रूप पण थायः ॥१३॥
॥ ढुंढिका ॥ श्देत् १२ नूपुर ७१ वा ११ श्च्च एच्च इदेतौ नूपुर अनेन प्रथमे ऊ इहितीये ऊ ए कगचजेति पबुक् ११ क्लीबे मोनु० निजरं नेउरं पके नूजरं ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. नूपुर शब्दना ऊ नो इ अने ए एवां श्रादेश विकटपे थाय. सं. नूपुरं तेने आ चालता सूत्रे प्रथम ऊ नो इ थाय. बीजे पक्षे ऊ नो ए थाय. पठी कगचज० क्लीवे मोनु० ए सूत्रोथी निउरं नेउरं अने पक्षे नूउरं रूप सिद्ध थाय॥१३॥ उत्कूष्माण्डी-तूणीर-कूर्पर-स्थूल-तांबूल-गुडूची-मूल्ये ॥ १२ ॥ एषु ऊत उद् जवति ॥ कोहण्ही कोहली । तोणीरं । कोप्परं । थोरं । तम्बोलं । गलोई । मोखं ॥ १४ ॥ मूल भाषांतर कूष्माण्डी तूणीर कूर्पर स्थूल तांबूल गुडूची अने मुल्य ए शब्दोना ऊ नो ओ थाय. सं. कूष्माण्डी तेनां कोहण्डी अने कोहली एवां रूप थाय. सं. तूणीरं तेनुं तोणीरं रूप थाय. सं. कूर्परं तेनु कोप्परं रूप थाय. सं. स्थूलं तेनुं थोरं रूप पाय. सं. तांबूलं तेनुं तम्बोलं रूप पाय. सं. गडूची तेनु गलोई रूप थाय. सं. मूलं तेनुं मोल्लं रूप थाय. ॥ १२४ ॥
॥ढुंढिका ॥ उत् ११ कूष्मांडी च तूणीरश्च कूपरं च ताम्बूलं च गुडूची च मूख्यं च कूष्मांडीतूणीरकूर्परताम्बूलगुडूचीमूल्यं तस्मिन् कूष्माएमी-कूष्माएमयांष्मोलस्तुण्डोवा मस्य लत्वं वा हृखः संयोगे वा अनेन उन्नयत्र ऊ उ ११ अंत्यव्यंग सलुक् कोहएकी कोहलीतूणीर ११ अनेन तू तो क्लीबेसम् तोणीरं कूर्पर अनेन ऊ उ सर्वत्र रखुक् धनादौ द्वित्वं ११ क्लीवेसम् कोप्परं स्थूल-कगटडेति सबुक् अनेन थू थो स्थलोरः ल र ११ क्लीबेसम् थोरं तांबूल इखःसंयोगे ता त अनेन बू बो ११ क्लीबेसम् तम्बोलं । गुडूची उतोमुकुलादिष्वत् गु ग डोलः डस्य लः अनेन ऊ कगचजेति
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प्रथमःपादः।
१२ए चबुक् ११ अंत्यव्यंज सलुक् गलोई । मूल्य-अनेन मू मो श्रधोमनयां यबुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबेस्म् मोनु मोवं ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. कूष्मांडी विगेरे शब्दोना ऊनो ओ थाय. सं. कूष्मांडी तेने कूष्माण्डयां मो लस्तुण्डोवा ए सूत्रथी ष्मनो ल थाय. पनी इस्वः संयोगे श्रा चालता सूत्रे ऊनो ओ थाय. अंत्यव्यंज ए सूत्रथी कोहण्डी कोहली एवां रूप थाय. सं. तूणीर तेने आ चालता सूत्रे ऊनो ओ थाय. क्लीबेसम् ए सूत्रथी तोणीरं रूप थाय. सं. कूर्पर तेने श्रा चालता सूत्रे ऊनो ओ थाय. पजी सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं क्लीवे सूम् ए सूत्रोथी कोप्परं एबुं रूप सिद्ध थाय. सं. स्थूल तेने कगटड. श्रा चालता सूत्रे थूनो थो वाय. पनी स्थूले लोरः क्लीबे सम् ए सूत्रोथी थोरं रूप सिफ थाय. सं. तांबूल हवः संयोगे या चालता सूत्रे उनो ओ थाय. क्लीबेसम् ए सूत्रथी तम्बोलं रूप थाय. सं. गुडूची तेने उतो मुकुलादिष्वत् डोलः या चालता सूत्रे ऊनो ओ थाय. पठी कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गलोई रूप सिद्ध थाय. सं. मूल्य तेने या चालता सूत्रे ऊनो ओ थाय. पठी अधोमनयांयलुक अनादौद्रित्वं क्लीवेसम् मोनु ए सूत्रोथी मोल्लं एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ १२४ ॥
स्थूणा-तुणे वा ॥ १२५॥ अनयोरुत उत्वं वा जवति ॥ थोणा थूणा । तोणं तूणं ॥ १२५ ॥ मूल भाषांतर. स्थूणा अने तूण शब्दना ऊनो विकटपे ओ श्राय. सं. स्थूणा तेनां थोणा थूणा एवां रूप थाय. सं. तुणं तेनां तोणं तूणं एवां रूप थाय. ॥१२५॥
॥ढुंढिका ॥ स्थूणा च तूणश्च स्थूणातूणं तस्मिन् ७१ वा ११ स्थूणा- कगटके तिसबुक् अनेन वा ऊ उ अंत्यव्यं० थोणा धूणा तूण अनेन तू तो ११ क्लीबे सम् तोणं तूणं ॥ १२५ ॥ टीका भाषांतर. स्थूणा भने तूण शब्दना ऊ नो ओ श्राय सं. स्थूणा- तेने कगटड० था चालता सूत्रे विकटपे ऊनो ओ थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी थोणा थूणा रूप सिद्ध श्राय. सं. तूण- तेने श्रा चालता सूत्रे ऊनो ओ थाय पठी क्लीये सुम् ए सूत्रथी तोणं तूणं एवां रूप सिद्ध थाय जे.॥ १२५ ॥
शतोऽत् ॥ १२६॥ श्रादेर्शकारस्य अत्वं जवति ॥ घृतम् । घयं ॥ तृणं तणं ॥ कृतं ।
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मागधी व्याकरणम्. कयं ॥ वृषनः । वसहो ॥ मृगः । म ॥ धृष्टः । घट्टो ॥ दुहाश्यमिति कृपादिपागत् ॥ १६ ॥
मूल भाषांतर. शब्दना आदि ऋकारनो अ थाय. सं. घृतम् तेनुं घतं रूप थाय. सं तृणं तेनुं तणं थाय. सं. कृतं तेनुं कयं श्राय सं. वृषभः तेनुं वसहो थाय. संमृगः तेनुं मओ श्राय. सं. घृष्टः तेनुं घट्ठो थाय. सं विधाकृत तेनुं कुहाइअ एवं थाय, कृपादि गणमां पाप ने तेथी था रूप थाय. ॥ १२६॥
॥ढुंढिका ॥ रुत् ६१ अत् ११ घृत ११ अनेन घृ घ कगचजेति तलुक् श्रवोंश्रय ११ क्लीबे स्म् मोनु० घयं । तृण- अनेन तृ त ११ क्वीबेसम् मोनु तणं । कृत- अनेन कृ क कगचजेति तबुक् अवर्णोश्रय कयं वृषन- अनेन वृ व शसोः सः षः सः खघथ न ह ११ अतः सेोः वसहो मृग अनेन मृ म खघथा न ह कगचजेति कलुक् श्रतः सेोंः मर्छ । घृष्ट अनेन घृ घटस्यानु ष्टे अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व ट ठ ११ श्रतः सेझैः घट्टो । विधाकृत-सवत्र वसुक् उच्च द्विधा कृगः दिदु खघथ ध ह कृपादौ कृ कि कगचजेति कलुक् तबुक् च ११ क्लीबे सम् मोनु दुहाश्कं ॥१६॥ टीका भाषांतर. आदि ऋकारनो अ श्राय. सं घृत तेने आ चालता सूत्रथी - नो घ थयो. पी कगचज अवर्णो क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी घयं रूप सिद्ध थाय. सं. तृण तेने आ चालता सूत्रथी तृनो त थाय पनी क्लीबेसम् मोनुं० ए सूत्रोथी तणं रूप थाय सं. कृत तेने आ चालता सूत्रथी कृनो क थाय पछी कगचज अवर्णों ए सूत्रोथी कयं रूप थाय. सं. वृषभ तेने आ चालता सूत्रथी वृनो व थाय पनी शषोः सः खघथ० अतः सेझैः ए सूत्रोथी वसहो रूप सिद्ध थाय. सं. मृग तेने आ आखता सूत्रथी मृनो म थाय पछी खघथ० कगचज अतःसे? ए सूत्रोथी मओ रूप सिद्ध थाय. सं. घृष्ट- तेने आ चालता सूत्रधी घृनो घ थाय पनी ष्टस्यानुष्टे अनादौद्वित्वं द्वितीय पूर्व अतःसेडोः ए सूत्रोथी घट्ठो रूप थाय. सं. द्विधाकृत तेने सर्वत्र वलुक उच्चविधाकृगः खधथ० इत्कृपादौ कगचज क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी दुहाइअं एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ १२६ ॥
आत्कृशा-मृज्क-मृत्वे वा ॥ १२॥ एषु श्रादेईत श्राद् वा लवति ॥ कासा किसा । मानकं मउथं माजकं मउत्तणं ॥ १७॥
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प्रथमःपादः।
१३१ मूल भाषांतर. कृशा मृङक मृउत्व ए शब्दोना आदि कारनो विकटपे आ पाय. सं. कृशा तेना कासा किसा एवां रूप थाय. सं. मृदुकं तेनां माउक्कं मउअं एवां रूप थाय. सं. मृमुत्वं तेनां माउकं मउत्तणं एवां रूप थाय. ॥ १७ ॥
॥ ढुंढिका ॥ थात् ११ कृशा च मृकं च मृफुत्वं च कृशामृदुकमृत्वं तस्मिन् ७१ वा ११ कृशा अनेन वा आत् का शषोः सः १९ अंत्य व्यंजन सबुक् कासा । द्वितीये श्कृपादौ कृ कि शेषं तत् किसा। मृदुक अनेन वा मृ मा कगचजेति दलुक् सेवादौ० हित्वं ११ क्लीबे माउकं मृदुक इतोऽत् मृम कगचजेति दबुक् कलुक् च ११ क्लीबे सम् मोनु मउथं मृत्वं अनेन वा मृ मा कगचजेति दलुक् शक्तमुक्तदष्टरुग्णत्वेकोवा वात्वस्य क अनादौ क्लीबे सूम् मोनु माउकं । हितीये मृत्व इतोऽत् मृ म कगचजेति दबुक् त्वस्य डिमात्तणोवा इति त्वस्य तणादेशः क्लीबे सम् मउत्तणं ॥ १२ ॥ टीका भाषांतर. कशा मृदुक मृदुत्व शब्दोना आदि ऋनो आ आय. सं. कृशा- तेने आ चालता सूत्रथी विकटपे आ थाय. पनी शषोःसः अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी कासा रूप थाय. बीजे परे इत्कृपादौ ए सूत्रथी कृनो कि थाय-बाकीनुं कार्य जपर प्रमाणे-करवाथी किसा रूप सिद्ध थाय. सं. मृक- तेने आ चालता सूत्रे विकटपे मृनो मा थाय. पनी कगचज. सेवादौद्वित्वं क्लीबे सम् ए सूत्रोथी माउकं रूप सिद्ध थाय. सं. मृदुक तेने ऋतोऽत् कगचज० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी मउअं रूप सिद्ध थाय. सं. मृदुत्व तेने आ चालता सूत्रे विकटपे मृनो मा थाय पनी कगचज० शक्तमुक्त० अनादौ क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी माउकं रूप सिद्ध आय. बीजा पके सं. मृदुत्व तेने ऋतोऽत् कगचज त्वस्य डिमात्तणोवा क्लीबेसम् ए सूत्रोथी मउत्तणं रूप सिद्ध थाय. ॥ १२ ॥
इत्कृपादौ ॥ १२ ॥ कृपाश्त्यादिषु शब्देषु श्रादेत इत्वं नवति ॥ किवा । हिययं । मिदं रसे एव । अन्यत्र महं । दिडं । दिट्टी । सिहं । सिट्टी। गिएठी। पिछी। जिउ । निहो । निङ्गारो। सिङ्गारो । सिला।
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मागधी व्याकरणम्. घिणा । घुसिणं । विककई । समिकी। की। गिद्धी । किसो। किसाणू । किसरा । किछ । तिप्पं । किसि। निवो । किच्चा । किश् । धि। किवो । किविणो। किवाणं । विञ्चु। वित्तं । वित्ती। हिथं । वाहित्तं । बिंहिउँ । बिसी। इसी विश्एहो । लिहा । स। नकिटं । निसंसो ॥ कचिन्न जवति । रिकी ॥ कृपा । हृदय । मृष्ट । दृष्ट । दृष्टि । सृष्ट । सृष्टि । गृष्टि । पृथ्वी । भृगु । भृङ्ग । भृगार । शृङ्गार । शृगाल । घृणा । घुस्मृण । वृक्षकवि । समृद्धि। ज्ञछि । गृद्धि । कृश । कृशानु । कृसरा । कृबू । तृप्त । कृषित । नृप । कृत्या । कृति । धृति । कृप । कृपण । कृपाण । वृश्चिक । वृत्त । वृत्ति । हृत । व्याहृत । बृंहित। बृसी। झषि। वितृष्ण । स्पृहा । सकृत् । उत्कृष्ट । नृशंस ॥ १२ ॥ मूल भाषांतर. कृपा इत्यादि शब्दोना आदि ऋकारनोइ थाय. सं. कृपा तेनुं किवा थाय. सं. हृदयं तेनुं हिययं थाय. सं. मृष्टं तेनुं जो तेनो अर्थ रस थतो होयतो मिट्ट श्राय. अने बीजा अर्थमां मटुं थाय. सं. दृष्टं तेनु दिदं थाय. सं. दृष्टि तेनुं दिट्ठी पाय. सं. सृष्टं तेनुं सिटुं थाय. सं. सृष्टि गृष्टि पृथ्वी तेनां सिट्ठी गिण्ठी पिच्छी एवां रूप थाय. सं.भृगु भृङ्ग भृङ्गार शृङ्गार तेनां भिउ भिङ्गो भिङ्गारो सिङ्गारो रूप थाय. सं. शृगाल घृणा घुमृण तेनां सिलाओ घिणा घुसिणं एवां रूप थाय. सं. वृद्धकवि समृद्धि ऋद्धि गृडि तेनाविड-कई समिद्धी इडी गिडी एवां रूप थाय.सं.कृशकृशानु कृसरा तेना किसो किसाणू किसरा एवां रूप थाय. सं कृ तृप्त कृषित नृप तेनां किच्छ तिप्पं किसिओ निवो एवां रूप थाय. सं. कृत्या कृति धृति कृप तेनां किच्चा किई धिई किवो एवां रूप थाय. सं. कृपण कृपाण वृश्चिक वृत्त तेनां किविणो किवाणं विञ्चओ वित्तं एवां रूप थाय. सं. वृत्ति हृत व्याहृत हित तेनां वित्ती दिशं वाहित्तं बिंहिओ एवां रूप थाय. सं. वृसी ऋषि वितृष्ण स्पृहा तेनां विसी इसी विइण्हो छिहा एवां रूप थाय. सं. सकृत् उत्कृष्ट नृशंस तेनां सह उक्किटं निसंसो एवां रूप थायः ॥ १२ ॥
॥ ढुंढिका ॥ इत ११ कृपादि ७१ कृपा अनेन कृ कि पोवः पस्य कः ११ अंत्यव्यंजन सबुक् किवा । हृदयं अनेन ह हि कगचजेति दबुक् ११ क्लीबेसम् मोनु हिययं । मृष्ट अनेन मृ मिष्टस्यानुष्टेष्ट ः
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प्रथम पादः। अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्वठस्य टः क्लीबेसम् मोनु० मिटं मृष्ट शतोऽत् शेषं प्राग्वत् महं दृष्ट- दृष्टि- अनेन दृ दिष्टस्यानुष्टस्य उः अनादौ हित्वं द्वितीय ११ अक्लीबे० दीर्घः अंत्यव्यं सतुक् दिढं । दिट्टी। सृष्ट सृष्टि- अनेन सृ सि शेषं दिहीवत् सिझं। एवं सिकिः गृष्टि अनेन र गिष्टस्यानु० ष्टस्य ः ११ अक्कीबे० दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक वादावंत इत्यनुस्वारः गिएठी । पृथ्वी अनेन पृ पि त्वथ्वध्वां चब्जकाः क्वचित् थ्वीस्थाने बी अनादौन हित्वं द्वितीयपूर्व ः चः ११ अंत्यव्यं० सबुक् पिली । भृगु- श्रनेन भृ नि कगचजेति गलुक् ११ क्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यं० सनुक् निउ । भुंग भंगार- ११ अनेन भृ नि अतःसे?ः निङ्गो निङ्गारो। श्रृंगारः अनेन स्मृ सि शषोः सः श स अतःसेझैः सिङ्गारो । शृ. गाल-अनेन Y सि शषोःसः स श- कगचजेति गबुक् श्रतःसेझैः सियालो । घृणा- अनेन घृघि ११ अंत्यव्यं० सयुक् घिणा। घुसृण अनेन स सि ११ क्लीबेसम् मोनु० घुसिणं-वृद्धकविः- श्र. नेन वृ वि कगचजेति वबुक् ११ अक्लीवेदीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् विद्ध-कई । समृद्धि-शछि--गृद्धि-सर्वत्र इहितीये श्रमूि - धैंडतेवा इति की ढी अनादौ हित्वं पितीय पूर्व ढ ड ११ अंत्यव्यंग सलुक् समिकी । की। गिझी। कृश-- अनेन कृ कि शषोः सः ११ अतःसेडोंः किसो । कृशानु-अनेन कि सर्वत्र शषोः सः नोणः ११ शक्तीबेसौ दीर्घः अंत्यव्यंज सवुक किसाणू कृशरा अनेन कि शषोः सः ११ अंत्यव्यंग किसरा- कृलू अनेन कि सर्वत्र रबुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीयस्य पूर्वन च ११ क्लीबेसम् किळं। तृप्त अनेन त ति सर्वत्र रबुक् ११ अनादौ प क्लीबेस्म् मोनु० तिप्पं- कृषित अनेन कि शषोः सः कगचजेति तदुक् ११ श्रतः सेडोंः किसिउँ । नृपः अनेन नृ नि पोवः ११ श्रतःसे?ः निवो। कृत्या-अनेन कि त्योऽचैत्ये त्यस्य च अनादौ०११ अंत्यव्यंग किच्चा। कृति अनेन कि कगचजेति तबुक् ११ अक्लीबे अंत्यव्यं सबुक्
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मागधी व्याकरणम्. किई । एवं धिई कृप थनेन कृ कि पोवः ११ किवो । कृपण-कि पोवः ११ अनादौ अतःसेझैः किविणो । कृपाण अनेन कृ कि पोवः क्लीबेसम् किवाणं । वृश्चिक- अनेन वृ वि वृश्चिकेश्चे० श्च च कगचजेति कलुक् ११ विञ्चु । वृत्त-वि--११ क्लीबे० वित्तं वृत्ति अनेन वि ११ अक्कीबे अंत्यव्यं सलुक् वित्ती । हृत अनेन हि हिरं- व्याहृत- एवं वाहित्तं- बृंहित- कगचजेति तलुक् ११ श्रतः सेोः विहिवृसीशनेन वृवि ११ अंत्यविसी-ऋषि ११ थ नेन क रि शषोः सः अक्लीवे इसी वितृष्ण-अनेन ति कगचजेति तलुक् सूदमन ष्ण एह ११ अतःसे?ः विश्णहो । स्पृहा- अनेन स्पृस्थाने स्पि स्पृहायां इति स्फि स्थाने डि अंत्यव्यं० सबुक बिहा । सकृत् अनेन कृ कि कगचजेति कबुक् अंत्यव्यं० तलुक् सलुक् च सर। उत्कृष्ट- अनेन कृ कि अनादौ हित्वं ष्टस्या नुष्टे ष्टस्यवः श्रनादौ० हित्वं द्वितीयपूर्व उ ट ११ क्वीबेस्म मोनु उकिट्ट । शछि ११ रिः केवलस्य इतिःछ स्थाने रि श्रक्लीबे० दीर्घः रिद्धी । नृशंस- अनेन नृ नि ११ शषोः सः अतःसे?ः निसंसो ॥ १२ ॥
टीका भाषांतर. कृपा विगेरे शब्दोना आदि ऋनो इ थाय. सं. कृपा- तेने चालता सूत्रे इ श्राय पी पोवः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी किवा रूप थाय. सं. हृदय तेने चालता सूत्रे हृनो हि थाय. पठी कगचज० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी हिययं पाय. सं. मृष्ट तेने चालता सूत्रे मनो मि थाय. पनीष्टस्यानुष्टे अनादौ० द्वितीय क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी मिट्ट रूप थाय. सं. मृष्ट तेने ऋतोऽत् बाकी पूर्ववत् थई मिट्ठ रूप थाय. सं. दृष्ट- दृष्टि- तेने चालता सूत्रे हनो दि थाय. पनी ष्टस्थानु० अनादौ द्वितीय अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी दिटुं दिट्ठी रूप थाय. सं. सृष्ट-सृष्टि- तेने चालता सूत्रथी सूनो सि थाय. बाकी दिही वत् सिद्ध थाय. सं. गृष्टि तेने चालता सूत्रे गृनो गि थाय. ष्टस्यानु० अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० वादावंत ए सूत्रश्री गिण्ठी रूप सिद्ध थाय. सं. पृथ्वी तेने चालता सूत्रथी पृनो पि वाय. पनी त्वथ्वध्वां० अनादौ द्वितीय अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी पिछी रूप सिद्ध थाय. सं. भृगु तेने चालता सूत्रे भृ नो भि थाय. कगचज० क्लीबे सौदीर्घः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी भिऊ रूप श्राय. सं. भुंग शृंगार तेने चालता सूत्रे इ श्राय. पनी अतःसेझैः
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प्रथमःपादः।
९३५ ए सूत्रथी भिंगो भिंगारो रूप सिद्ध थाय. सं. शृंगार तेने चालता सूत्रधी सूनो सि थाय पी शषोः सः अतःसे?ः ए सूत्रोश्री सिंगारो रूप थाय. सं. शृगाल तेने चाखता सूत्रथी सूनो सि थाय. पनी शषोः सः कगचज. अतःसे?ः ए सूत्रोथी सिआलो रूप थाप. सं. घृणा तेने चालता सूत्रथी घृनो घि थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी घिणा रूप थाय. सं. घुमृण तेने चालता सूत्रथी मृ नो सि थाय. पनी क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी घुसिणं रूप थाय. सं. वृष्ठ-कविः तेने चालता सूत्रथी वृनो वि थाय. पी कगचज. अक्लीवे दीर्घ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी विड-कई रूप सिद्ध थाय. सं. समृधि- सधि- गृद्धि- तेने अडर्डि अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व० अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी समिडी इद्धि गिही एवां रूप सिम थाय. सं. कृश- तेने चालता सूत्रथी कृनो कि थाय. पजी शषोः सः अतःसे?ः ए सूत्रोथी किसो रूप सिम थाय. सं. कृशानु- तेने चालता सूत्रथी कि थयो पनी शषोः सः नाणः अक्लीवेसौदीर्घः अंत्यव्यंज. ए सूत्रोथी किसाणू रूप थाय. सं. कृशरा तेने चालता सूत्रे कि थाय. पनी शषोः सः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी किसरा रूप थाय. सं. कृच्छू तेने चालता सूत्रे कि श्राय. पी सर्वत्र रलुक अनादौ० द्वितीयस्यपूर्व० क्लीबेसूम् ए सूत्रोथी किच्छं रूप थाय. सं. तृस तेने चालता सूत्रे तृनो ति थाय. पी सर्वत्र रलुक् अनादौ क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी तिप्पं रूप थाय. सं कृषित तेने चालता सूत्रे कृनो कि थाय. पली शषोः सः कगचज अतःसे?: ए सूत्रोथी किसिओ रूप सिद्ध थाय. सं. नृपः तेने चालता सूत्रे नृनो नि थाय. पठी पोवः अतासेडों ए सूत्रोथी निवो रूप श्राय. सं. कृत्या तेने श्रा चालता सूत्रथी कृनो कि थाय. पनी त्योऽचैत्ये अनादौ० अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी किच्चा रूप थाय. सं. कृति तेने चालता सूत्रे कि कगचज. अक्लीबे अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी किई रूप पाय. एवी रीते सं. धृतिर्नु धिई रूप थाय. सं. कृप तेने चालता सूत्रे कि श्राय पछी पोवः ए सूत्रे किवो रूप थाय. सं. कृपण तेने चालता सूत्रे कि थाय. पी पोवः अनादौ० अतःसेझैः ए सूत्रोथी किविणो रूप थाय. सं. कृपण-तेने चालता. सूत्रे कि थाय. परी पोवः क्लीबे सम् ए सूत्रोथी किवाणं रूप थाय. सं. वृश्चिक तेने चालता सूने वृनो वि थाय. पठी वृश्चिकेश्चे० कगचज ए सूत्रोथी विञ्चुओ रूप सिद्ध थाय. सं. वृत्ततेने चालता सूत्रे वि थाय. पनी क्लीबे ए सूत्रथी वित्तं रूप सिद्ध थाय. सं. वृत्ति तेने चालता सूत्रे वि थाय. पनी अलीबे अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वित्ती रूप थाय. सं. हृत तेने चालता सूत्रे हि थाय. पनी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी हिअं रूप थाय. तेवीरीते सं. व्याहृतं तेनुं वाहित्तं रूप थाय. सं. वृंहित ते चालता सूत्रे इ पनी कगचज० अतःसे?ः ए सूत्रोथी विहिओ रूप थाय. सं. वृसी तेने चालता सूत्रे वि थाय. पी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी विसी रूप पाय. सं. ऋषि तेने चालतासूत्रे रि थाय. पठी शषोः सः अक्लीबे ए सूत्रोथी रिसी रूप थाय. सं. वितृष्ण तेने चालता सूत्रे ति थाय. पनी कगचज० सूक्ष्मल अतःसे?ः ए सूत्रोथी विइण्हो रूप थाय. सं. स्पृहा तेने चा
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मागधी व्याकरणम् खता सूत्रे थाय. पनी स्पृहायां अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी छिहा थाय. सं. सकृत् तेने चालता सूत्रे इ थाय. पली कगचज. अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी सह रूप थाय. सं. उत्कृष्ट तेने चालता सूत्रे कृनो कि थाय. पगी अनादौहित्वं ष्टस्यानु० अनादी० द्वितीयपूर्व क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी उक्किट रूप थाय. सं. ऋद्धिः तेने चालता सूत्रे रि थाय. पी केवलस्य इतिः अक्लीबे० ए सूत्रोथी रिडी रूप थाय. सं. नृशंस तेने चालता सूत्रे नृनो नि थाय. पनी शषोः सः अतःसे? ए सूत्रोथी निसंसो रूप थाय. ॥ १२ ॥
__पृष्ट वानुत्तर पदे ॥ ११॥ पृष्टशब्देनुत्तरपदे रुत इद् नवति वा ॥ पिट्टी पट्टी । विहि- परिदृविध ॥ अनुत्तर पद इति किम् । महि-वढ॥ १२ ॥ मूल भाषांतर. जो ते उत्तर पदमां न होय तो पृष्ट शब्दना ऋनो विकरपे इ थाय. सं. पृष्ट तेना पिट्ठी पट्टी एवा रूप थाय. सं. पृष्ट परिस्थितं तेनुं पिट्टि-परिह विअं थाय. उत्तर पदमां न होय तेम कडं ने तेथी सं. महींपृष्टं तेनुं महिवर्ल्ड रूप थायः ॥ १२ए॥
॥ टुंढिका ॥ पृष्ट ७१ वा ११ उत्तरं च तत्पदं च उत्तरपदं न उत्तरपदं अनुत्तरपदं तस्मिन् ७१ पृष्ट अनेन वा पृ पिहितीये तोऽत् ष्टस्यानु० टस्य पः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व 7 ट ११ अक्कीबे दीर्घः पिट्ठी पट्टी। अंत्यव्यंग सबुक् महीपृष्ट दीर्घह्रस्वौ ही हि इतोऽत् पृ प पोवः ष्टस्यानु० ष्टस्य : हितीयपूर्वठस्य टः ११ क्लीबे सम् मोनु० महि-वढे ॥ १२ए । टीका भाषांतर. जो ते उत्तर पदमां न होय तो पृष्ट शब्दना ऋनो विकल्पे इ थाय. सं. पृष्ट- तेने चालता सूत्रे पृनो पि श्राय बीजे परे ऋतोऽत् ष्टस्यानु अनादौ दित्वं द्वितीयपूर्व अक्लीये दीर्घः ए सूत्रोथी पिट्ठी पट्टी एवां रूप थाय. सं. मही पृष्ट तेने दीर्घ इव थाय. पजी ऋतोऽत् पोवः ष्टस्यानु० द्वितीय पूर्वठस्यटः क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी महि-वढे रूप थाय. ॥ १२ए॥
ममृण-मृगाङ्क-मृत्यु-शृङ्ग-पृष्टे वा॥ १३०॥ एषु कृत श्त् वा नवति ॥ मसिणं मसणं । मिश्रङ्को मयको । मिन्च मञ्चू। सिङ्गं सङ्गं धिट्ठो धहो ॥ १३८ ॥
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प्रथमः पादः ।
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मूल भाषांतर. मसृण मृगांक मृत्यु श्रृंग धृष्ट ए शब्दोना ऋनो इ विकल्पे थाय. सं. मसृणं तेनां मसिणं मसणं एवां रूप थाय. सं. मृगांकः तेनां मिअंको मयंको एवां रूप याय. सं. मृत्यु तेना मिच्चू मच्चू एवां रूप थाय. सं. शृंगं तेना सिंगं संगं रूप याय. सं. धृष्टः तेना धिट्ठो धट्ठो रूप थाय ॥ १३० ॥
॥ ढुंढिका ॥
मसृणं च मृगांकश्च मृत्युश्च शृंगं च धृष्टश्च मसृणमृगांक मृत्यु टंग धृष्टं तस्मिन् ७१ वा ११ मसृण- अनेन वा सृ सि द्वितीये रुतोऽत् ११ क्लीचे सम मोनु० मसिणं मसणं । मृगांकः अनेन वा मृ मि ह्रस्वः संयोगे गा ग कगच जेति लुक् ११ यतः सेर्डोः मिश्रङ्को द्वितीये मृगांक रुतोऽत् मृ म ह्रस्वः कगचजेति गलुक् श्रवर्णो ११ अतः सेडः मयंको मृत्यु अनेन वा मृ मि द्वितीये रुतोऽत् मृम त्योऽचैत्ये त्यस्य च अनादौ द्वित्वं ११ अक्की वे दीर्घः श्रन्त्यव्यंजनस्य लुक् मिच्चू मच्चू । शृंग अनेन वा ट शि इतोऽत् ट श शषोः सः ११ कीबे सम मोनु० सिंगं संगं । धृष्टः अनेन धृधि । द्वितीये इतोऽत ष्टस्यानु० ष्टस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व व ट ११ यतः सेर्डोः धिट्टो धो ॥ १३० ॥
थाय.
टीका भाषांतर. मसृण मृगांक मृत्यु श्रृंग धृष्ट- ए शब्दोना ऋनो विकल्पे इ सं. मसृण तेने चालता सूत्रे सुनो सि थाय. बीजा पदे ऋतोऽत् क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी मसिणं श्रने मसणं रूप सिद्ध थाय. सं. मृगांकः तेने चालता सूत्री मृनो मिश्राय पढी ह्रस्वः संयोगे कगचज० अतः सेडः ए सूत्रोथी मिअंको रूप याय. बीजे पदे मृगांकः तेने ऋतोऽत् ह्रस्वः कगचज अवर्णो अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी मयंको रूप याय. सं. मृत्यु तेने चालता सूत्रे मृनो मि थाय. बीजे पछे ऋतोऽत् त्योऽचैत्ये अनादौ द्वित्वं अक्लीवे दीर्घ अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी मिच्चू मच्च रूप याय. सं. भृंग तेने चालता सूत्रे नो शि थाय पदे ऋतोऽत् शषोः सः क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी सिंगं संगं रूप थाय. सं. धृष्टः तेने चालता सूत्रे धृनो धि श्राय. बीजे पछे ऋतोऽत् ष्टस्यानु० अनादौ द्वित्वं द्वितीयपू० अतः सेडः ए सूत्रोथी धिट्ठो धट्ठो रूप याय. ॥ १३० ॥
वाद ॥ १३१ ॥
ऋतु इत्यादिषु शब्देषु श्रादेईत उद् जवति ॥ उ उ । परामुट्ठों ।
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मागधी व्याकरणम्. पुट्ठो पउहो । पुहई । पजत्ती । पाउसो । पाउन । जुई। पहुडी। पाहुडं । परहु । निहुरं । निजथं । विउभं । संवुकं । वुत्तन्तो। निव्वुझं । निव्वुई । वुन्दं । वुन्दावणो । वुहो । वुढी। उसहो ।मुणालं । उत । जामाउ । माउ । माउथा । नाउ । पिउन । पुहुवी ॥ ऋतु । परामृष्ट स्पृष्ट । प्रवृष्ट । पृथिवी । प्रवृत्ति । प्रावृष् । प्रावृत् । भृति । प्रभृति । प्राभृत । परभृत । निभृत । निवृत । वि. वृत । संवृत । वृत्तांत । निर्वृत । निर्वृति । वृन्द । वृन्दावन । वृक्ष । वृद्धि। रुषन । मृणाल । रुजु । जामातृक । मातृक । मातृका । भ्रातृक । पितृक । पृथ्वी । इत्यादि॥ १३१॥ मूल भाषांतर. ऋतु विगेरे शब्दोना आदि कारनो ऊ थाय. सं. ऋतु तेनुं ऊउ रूप थाय. सं. परामृष्ट तेनुं परामुट्ठो रूप थाय. सं. स्पृष्ट प्रवृष्ट तेनां पुट्ठो पउट्ठी रूप थाय. सं. पृथिवी प्रवृत्ति तेनां पुहई पउत्ती रूप थाय. सं. प्रावृष् प्रावृत तेनां पाउसो पाउओ रूप थाय. सं. भृति प्रन्नृति तेनां भुई पहुडि रूप थाय. सं. प्राभृत परभृत तेनां पाहुडं परहुओ रूप थाय. सं. निभृत निवृत तेनां निहुअं निउअं रूप श्राय. सं. विवृतं संवृतं तेनां विउअं संवुअं रूप श्राय. सं. वृत्तांतः निवृतं तेना वुत्तन्तो निव्वुअं रूप थाय. सं. निवृतिः वृन्दं तेना निव्वुई वुन्दं रूप पाय. सं. वृन्दावनं वृद्धः वृद्धिः तेनां वुन्दारणो बुलो वुही रूप थाय. सं.वृषभः मृणालं ऋजु तेना उसहो मुणालं उज्जु एवा रूप श्राय. सं. जामातृक मातृकः मातृका तेना जामाउओ माउओ माउआ रूप श्राय. सं. भ्रातृक पिकत पृथ्वी तेना भाउओ पिउओ पुहुवी रूप थाय. ॥ १३१ ॥
॥ ढुंढिका ॥ उत् ११ इत्वादि ३१ शतु अनेन इ उ कगचजेति तबुक् अक्की बे सौ दीर्घः उ ऊः अंत्यव्यंज सबुक् उऊ । परामृष्ट थनेन मृ मु ष्टस्यानु थनादौ० ११ परामुट्ठो। स्पृष्ट- अनेन स्ट स्पु कगटडेति सबुक् टस्यानु० ष्ट । अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व थ ट ११ श्रतःसे?ः पुट्ठो। प्रवृष्ट- अनेन वृवु । सर्वत्र रबुक् कगचजेति वबुक् ष्टस्यानु ष्ट तः। अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उ ट ११ अतः सेझैः पउहो । पृथिवी- अनेन पृपु पथिपृथिवीप्रतिभृत् इति थ खघथ थ ह कगचजेति वबुक् सर्वत्र लुक् ११ अक्कीबेसौ दीर्घः
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प्रथमःपादः।
१३ए अंत्यव्यंग स्लुक पुहई। प्रवृत्ति- अनेन वृ वु कगचजेति वबुक सर्वत्र रलुक् ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० स्बुक् पत्ती । प्रावृष्सर्वत्र रखुक् अनेन वृ वु कगचजेति तबुक् दिक्प्रावृषोःसः षः सः श्रतःसेडोंः पाउसो । प्रावृत- सर्वत्र रबुक् अनेन वृ वु कगचजेति वबुक् तलुक्च अतःसे?ः पार्छ । भृति- ११ अनेन भृ जु कगचजेति तबुक् ११ अलीबे० अंत्यव्यं नुई। प्रभृति सर्वत्र श्रनेन न नु खघथा न ह प्रत्यादौडः त डः अंत्य० सदुक पहुडि। प्रानृत- सर्वत्र तरबुक् अनेन नृ नु खघथ न ह प्रत्यादौडःत डः ११ क्लीबे सम् पाहुडं । परतृत अनेन नृ जु खघथ न ह कगचजेति तबुक् ११ अतःसेझैः परहु । निनृत- अनेन भृ नु खघथा न ह कगचजेति तबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु निग्ध । एवं विजयं । संवुझं । वुत्तन्तो । नीबुझं । निबुई। वृंद अनेन वृ वु क्लीबे सम् मोनु वुन्दं । वृंदावन थनेन वृ वु नोणः ११ श्रतःसेडोंः बुन्दावणो। वृद्ध अनेन वृ वु दिग्धविदग्ध वृमिवृके ढः धस्य ढः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्वढस्य डः ११ श्रतःसे?ः वुहो एवं वुडी अक्कीबे दीर्घः । वृषन-थनेन व दु कगचजेति वलुक् शषोः सः खघथ न ह ११ श्रतःसे?ः ऊसहो- मृणाल- ११ अनेन मृ मु क्लीबे सम् मोनु मुणालं जु-अनेन उ ११ अलीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् उजू । जामातृक-अनेन तृ तु कगचजेति तबुक् कबुक् च ११ श्रतः से?ः जामाउ । मातृक-अनेन तृ तु कगचजेति तकयो क ११ अंत्यव्यंग सबुक् माउ । नातृक- सर्वत्र रलुक् अनेन तु तु कगचजेति तकयोर्बुक् ११ अतःसे?ः नाउर्ज. एवं पितृक-अनेन तु तु कगचजेति तकयोर्मुक् ११ अतः सेझैः पिउठे । पृथ्वी अनेन पृ पु तन्वी तुत्येषु इति वप्राग् उकारः खघथ थ ह ११ अंत्यव्यंग सबुक् पुहुवी ॥१३१॥ टीका भाषांतर. ऋतु विगेरे शब्दोना श्रादि ऋनो उ श्राय. सं. ऋतु तेने श्रा चालता सूत्रथी उ थाय पछी कगचज अक्लीबे० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी उक रूप सिद्ध थाय.
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२४०
मागधी व्याकरणम्. सं. परामृष्ट- तेने चालता सूत्रथी मृ नो मु थाय. पनी ष्टस्यानु० अनादौ ए सूत्रोथी परमुट्ठो रूप थाय. सं. स्पृष्ट तेने चालता सूत्रे उ थाय पनी कगटड ष्टस्यानु० अनादौ० द्वितीय पूर्व० अतासेडों: ए सूत्रोथी पुट्टो रूप थाय. सं. प्रवृष्ट तेने चालता सूत्रधी वृनो वु वाय. पळी सर्वत्ररलुक् कगचज० ष्टस्यानु० अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अतःसेझैः ए सूत्रोथी पउट्ठो रूप थाय. सं. पृथिवी तेने चालता सूत्रे उ थाय. पग पथि पृथिवी खघथ० कगचज० सर्वत्र रलुक् क्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी पुहई रूप श्राय. सं. प्रवृत्ति तेने चालता सूत्रथी वृनो वु थाय. पठी कगचज० सवत्र रलुकू अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंज ए सूत्रोथी पउत्ती रूप थाय. सं. प्रावृष तेने सर्वत्र लुक् चालता सूत्रे उ कगचज दिप्रावृषोः अतःसे?: ए सूत्रोथी पाउसो रूप थाय. सं. प्रावृत तेने सर्वत्र रलुक् चालता सूत्रे उ कगचज. अतःसे?ः ए सूत्रोथी पाउओ रूप थाय. सं. भृति तेने चालता सूत्रे भृनो भु कगचज क्लीबेसम् अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी भुई रूप थाय. सं. प्रभृति तेने सर्वत्र चालता सूत्रे उ खघथ० प्रत्यादौडः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी पहुडि रूप थाय. सं. प्राभृत तेने सर्वत्र चालता सूत्रे उ खघथ० प्रत्यादौडः क्लीवेसम् ए सूत्रोथी पाहुडं रूप श्राय. सं. परभृत तेने चालता सूत्रे उ खघथ० कगचज. अतःसेडों: ए सूत्रोथी परहुओ रूप थाय. सं. निभृत तेने चालता सूत्रथी उ पनी कगचज० क्लीबसूम् मोनु० ए सूत्रोथी निहुरं रूप थाय. सं. निवृत तेने चाखता सूत्रथी उ थाय. कगचज़० क्लीये सम् ए सूत्रोथी निउअं रूप थाय. एवीरीते विवृत संवृत वृत्तांत निवृत्त अने निवृत्ति तेनां विउअं संवुअंवुत्तंतो निव्वुअं निव्वुई एवां रूप थाय. सं. वृंद तेने चालता सूत्रे उ थाय. पड़ी क्लीवेसम्० मोनु० ए सूत्रोथी वुन्दं रूप थाय. सं. वृन्दावन तेने चाखता सूत्रे उ थाय. नोणः अतःसे?ः ए सूत्रोथी वुन्दावणो रूप थाय. सं. वृद्ध तेने चालतासूत्रथीउ थाय. पी दिग्धविदग्ध वृद्धिवृद्धेढः अनादौद्रित्वं द्वितीय० अत:से?: ए सूत्रोथी वुदो रूप थाय. एवीरीते वुट्टी रूप थाय. तेने अक्लीवे दीर्घः ए सूत्र लागेने. सं. वृषभ तेने चालता सूत्रे उ थाय. पजी कगचज शषोः सः खघथ० अतः सेझैः ए सूत्रोथी उसहो रूप थाय. सं. मृणाल तेने चालता सूत्रे उ थाय. पठी कीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी मुणालं रूप थाय. सं. झजु- तेने चालता सूत्रे उ थाय. अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी उज्जू रूप थाय. सं. जामातृक तेने चालता सूत्रथी उ थाय कगचज. अतःसे?ः ए सूत्रोथी जामाउओ रूप श्राय. सं. मातृक तेने चालता सूत्रथी उ थाय. कगचज. अंत्यव्यं० ए सूत्रथी माउओ थाय. सं. नातृक तेने सर्वत्र रलुक् चाखता सूत्रे उ थाय. कगचज. अतःसे?: ए सूत्रोथी भाउओ रूप वाय. सं. पितृक तेने चालता सूत्रथी उ थाय. कगचज. अतःसे?ः ए सूत्रोथी पिउओ रूप थाय. सं. पृथ्वी तेने चालता सूत्रे उ थाय. तन्वीतुल्येषु० खघथ० अंत्यव्यं ए सूत्रोथी पुहुवी रूप थाय. ॥ १३१ ॥
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प्रथमःपादः।
१४१ निटत्त-वृन्दारके वा ॥१३॥ अनयोईत उद् वा नवति ॥ निवुत्तं निधत्तं । वुन्दारया वन्दारया॥१३॥ मूल भाषांतर. निवृत्त अने वृन्दारक शब्दना झनो विकटपे उ थाय. सं. निवृत्त तेनां निवुत्तं निअत्तं एवां रूप थाय. सं. वृन्दारकाः तेना वुन्दारया वन्दारया एवां रूप थाय. ॥ १३ ॥
॥ढुंढिका ॥ निवृत्तं च वृन्दारकं च निवृत्तवृन्दारकं तस्मिन् ७१ वा ११ निवृत्त ११ अनेन वा वु क्लीबेसम् मोनु निवुत्तं । निवृत्त ११ शतोऽत् वृ व कगचजेति वबुक् ११ क्लीबेस्म् मोनु नियतं । वृन्दारक अनेन वा वृ वु द्वितीये इतोऽत् वृ व कगचजेति कबुक् अवर्णो १३ जस्शसोर्बुक् जसशस्ङसित्तोदीर्घः वुन्दारया।वन्दारया ॥१३॥ टीका भाषांतर. निवृत्त अने वृन्दारक शब्दना ऋनो विकटपे उ थाय. सं. निवृत्त- तेने चालता सूत्रे वृनो वु थाय पनी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी निवुत्तं रूप सिद्ध थाय. पदे निवृत्त तेने ऋतोऽत् कगचज० क्लीवेसम् मोनु ए सूत्रोथी निअत्तं रूप थाय. सं. वृन्दारकाः तेने चालता सूत्रे वृनोवु थाय. अने बीजे परे ऋतोऽत् कगचज० अवर्णो जसशसो क् जशशसूङसि ए सूत्रोथी वुन्दारया वन्दारया एवां रूप धाय. ॥ १३ ॥
दृषने वा वा ॥१३३॥ वृषने तो वेन सह उद् वा जवति ॥ उसहो वसहो ॥ ३३ ॥ मूल भाषांतर. वृषभ शब्दना ऋनो वनी साथे विकटपे उ थाय. सं. वृषभ तेनां उसहो वसहो एवां रूप थाय. ॥ १३३ ॥
॥ढुंढिका ॥ वृषन्ने ७१ वा १९ वा ३१ वृषन अनेन वा वकारेण सह उ शषोः सः श्रतः सेझैः उसहो । द्वितीये इतोऽत् वृ व शेषं पूर्व. वत् वसहो । ॥ १३३ ॥ टीका भाषांतर. वृषन शब्दना ऋनो वनी साथे विकटपे उ थाय. सं. वृषभ तेने चाखता सूत्रथी वसहित ऋनो उ थयो पनी शषोः सः अतःसे? ए सूत्रोथी उसहो रूप सिद्ध थाय.बीजे पक्षे ऋतोऽत् बाकी पूर्ववत् सूत्र लागी वसहो रूप थाय. ॥१३३॥
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१४२
मागधी व्याकरणम्.
गौणान्त्यस्य ॥१३४ ॥ गौणशब्दस्य योऽन्त्य इत् तस्य उद् नवति ॥ माज-मएडलं ।माउहरं । पिउ-हरं। माउ-सिथा। पिउ-सिथा। पिज-वणं । पिउ-वज्ञ॥१३॥ मूल भाषांतर. गौणशब्दनो अंत्य ऋ तनो उ श्राय. सं. मातृ-मंडल तेनुं माउमण्डलं एवं रूप थाय. सं. मातृ-गृहं तेनुं माउहरं रूप श्राय. सं. पितृ-गृहं तेनुं पिउ-हरं रूप थाय. सं. मातृ-स्वसा तेनुं माउ-सिआ रूप श्राय. सं. पितृस्वसा तेनुं पिउ-सिआ रूप थाय. सं. पितृ-वनं तेनुं पिउ-वणं रूप थाय. सं. पितृ-पति तेनुं पिउ-वई रूप थाय. ॥ १३ ॥
॥ढुंढिका ॥ गौणांत्य-६१ गौणस्य अंत्यः गौणांत्यः तस्य मातृ-मंडलं । मातृणां मंडलं मातृमंडलं । कगटडेति तबुक्अनेन उ क्लीबेसम् मोनु मान-मंडलं । मातृ-गृह- कगटडेति तबुक् अनेन उ गृहस्य घरपतौ इति गृहस्थाने घरादेशः खघथ घस्य हः ११क्कोबे सम् माउ-हरं एवं पितृ-गृहं पिन-हरं मातृस्वस्मृ- कगटमेति तलुक् अनेन क उ मातृपितृ वसु सियाडो स्वसृस्थाने सिधा श्रादेशः अंत्यव्यंज सलुक् माउ-सिधा । एवं पितृ-स्वसृ पिजसिथा। पितृवन- कगटडेति तबुक् अनेन इ उ नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु पिउ-वणं पितृ-पति कगटडेति तबुक् अनेन छ उ । पोवः पस्य वः कगचजेति तबुक् ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् पिउ-वई ॥ १३४ ॥ टीका भाषांतर. गौणशब्दना अंत्य ऋनो उ थाय. सं. मातृ-मंडल तेमां मातृ ए गौणशब्दले. तेने कगटड चालता सूत्रे ऋनो उ आय. क्लीवेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी माउ-मंडलं रूप सिद्ध थाय. सं. मातृ-गृह तेने कगटड चालता सूत्रे ऋनो उ थाय. पगरी गृहस्यघरपतौ खघथ० क्लीबेसम् ए सूत्रोथी माउ-हरं रूप थाय. एवीरीते सं. पितृ-गृहं तेनुं पिउ-हरं रूप थाय. सं. मातृ स्वस् तेने कगटड चालता सूत्रे ऋनो उ श्राय. मातृपितृस्वसुः सिआच्छो अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी माउ-सिआ रूप थाय. एवीरीते पितृ-स्वसा तेनुं पिउसिआ रूप थाय. सं. पितृ-वन कगटड चासता सूत्रे ऋनो उ थाय. नोणः क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पिउ-वणं रूप थाय.
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प्रथमःपादः।
१४३ पितृ-पति कगटड चालता सूत्रे ऋनो उ थाय. पोवः कगचज. अक्लीवेसौ अंत्यव्यंग ए सूत्रोथी पिउ-वई रूप सिख थाय. ॥ १३ ॥
मातुरिछा ॥१३५॥ मातृशब्दस्य गौणस्य ऋत इद् वा नवति॥माश्-हरं।माज-हरं॥ क्वचिदगौणस्यापि । माईणं ॥ १३५ ॥
मूल भाषांतर. गौण एवा मातृ शब्दना ऋनो विकटपे इ थाय. सं मातृ-गृहं तेनुं माश्-हरं थाय. अने पके माउ-हरं थाय. सं. मातॄणां तेनुं माईणं रूप धाय. ॥ १३५॥
॥ढुंढिका ॥ मातृ ६१ श्द् ११ वा ११ मातृ-गृह २३ पदे गौणांत्यस्य क उ गृहस्य घर पतौ गृहस्य घर खघथ घस्य हः ११ क्लीबेस्म् मोनु माश्-हरं । मान-हरं । मातृ ६३ कगटडेति तलुक् अनेन ३ टाधामोर्णः जस्शसईई ई माईणं ॥ १३५ ॥ टीका भाषांतर. गौण एवा मातृ शब्दना स नो विकटपे इ थाय. सं. मातृ-गृह तेने ऋनो इ थाय. बीजे पदे गौणांत्यस्य ए सूत्रथी क्रनो उ थाय. पनी गृहस्य घरपती खघथ० क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी माइ-हरं माउहरं एवां रूप थाय. सं. मातृणां तेने कगटड० चालता सूत्रे इ टा आमोर्णः जशशसइई ए सूत्रोथी माईणं रूप थाय. ॥ १३५ ॥
उददोन्मृषि ॥ १३६ ॥ मृषाशब्दे इत उत् ऊत् उच्च नवंति ॥ मुसा । मूसा । मोसा । मुसा-वा। मूसा-वा । मोसा-वा ॥ १३६ ॥ मूल भाषांतर. मृषा शब्दना ऋकारना उ ऊ ओ श्राय. सं. मृषा तेनां मुसा मूसा मोसा एवां रूप थाय. सं. मृषावाद तेना मुसा-वाओ मूसा-वाओ मोसावाओ एवां रूप थायः॥ १३६॥
॥ढुंढिका ॥ उच्च ऊच्च उच्च उदूदोत् ११ मृषा ७१ अनेन उ ऊ शषोःसः ११ अंत्यव्यंग सलुक् । मुसा । मूसा ।मोसा। मृषावाद-कगचजेति
दबुक् ११ शषोः सः अनेन मु मू मो श्रतः सेझैः मुसा-वा । मूसा-वा । मोसा-वार्ड ॥ १३६ ॥
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१४४
मागधी व्याकरणम् . टीका भाषांतर. मृषा शब्दना ऋना उ ऊ ओ थाय. सं. मृषा- तेने चाखता सूत्रथी उ ऊ ओ थाय पी शषोः सः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मुसा मूसा मोसा एवां रूप थाय. सं. मृषावाद तेने कगजच शषोः सः ए सूत्रथी मु मू मो थाय. पनी अतः सेोः ए सूत्रथी मुसा-वा मूसा-वार्ड मोसा-वार्ड एवां रूप थाय. ॥ १३६ ॥
इज्तौ दृष्ट-रष्टि-पृथङ् मृदङ्ग-नतृके ॥ १३॥ एषु त इकारोकारौ नवतः ॥ विट्ठो वुहो । विट्ठी वुढी । पिहं । पुहं । मिश्ङ्गो मुङ्गो । नत्ति नत्तु ॥ १३७ ॥ मूल भाषांतर. वृष्ट वृष्टि पृथङ् मृदङ्ग नम्रक ए शब्दोना ऋना इकार अने उकार आय. सं. वृष्ट- तेनां विट्ठो वुठो एवां रूप थाय. सं. वृष्टि तेनां विही वुढी एवा रूप थाय. सं. पृथक् तेनां पिहं पुहं रूप थाय. सं. मृदंग तेना मिहंगो मुइंगो रूप थाय. सं. नमृक तेना नत्तिओ नत्तुओ रूप पाय. ॥ १३ ॥
॥ ढुंढिका ॥ श्च उच्च श्छुतौ १५ वृष्टश्च वृष्टिश्च पृथक् च मृदंगं च नतृकश्च वृष्टवृष्टिपृथङ्मृदंगनतृकं तस्मिन् ७१ वृष्ट- अनेन प्रथमे वृ विधितीये वृ वुष्टस्यानुष्टौ ष्ट अनादौहित्वं द्वितीयपूर्व प ट ११ अतः से?ः विट्ठो वुट्ठो वृष्टि-अनेन वृ वि द्वितीये वृ दुष्टस्यानु० टठ अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उ ट ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् विट्ठी वुट्ठी । पृथक् अनेन पृ पि खघथा घस्य हः हितीये पृ पु ११ अव्ययसबुक् वाखरेमश्च बुक् मोनुपिहं पुहं। मृदंग- अनेन प्रथमे मृ मि हितीये मृ मु ः स्वप्नादौ इति दस्य ३ ११ श्रतःसेझैः मिशंगो मुझंगो । नतृक-र कगटडेति पलुक्थनेन तृ ति द्वितीये तृ तु अनादौ हित्वं कगचजेति कबुक ११ अतःसेडोंः नत्ति नत्तु ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. वृष्ट वृष्टि पृथक् मृदंग नसृक ए शब्दोना ऋना इ अने उ थाय. सं. वृष्ट तेने चालता सूत्रे वृनो वि थाय पदे वृनो वु थाय पी ष्टस्यानु अनादौद्वित्वं द्वितीय अतःसे?: ए सूत्रोथी विट्ठो वुट्टो रूप थाय. सं. वृष्टि तेने चाखता सूत्रथी वृनो वि थाय बीजे पदे वृनो वु श्राय पी ष्टस्या० अनादौ० द्वितीय अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी विट्ठी वुट्टी रूप श्राय. सं. पृथक तेने चालता सूत्रे पृनो पि थाय खघथ बीजे परे पृनो पु थाय. पनी अंत्यव्यं० वाख
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प्रथमःपादः।
१४५
रेमश्च मोनु० ए सूत्रोथी पिहं पुहं रूप थाय. सं. मृदंग तेने चालता सूत्रे प्रथम पक्ष मृनो मि अने बीजे पक्ष मृ नो मु थाय. पजी इस्वप्नादौ अतः से?: ए सूत्रोथी मिहंगो मुइंगो एवां रूप थाय. सं. नसृक तेने कगटड चालता सूत्रे तु नो ति तथा तु थाय पठी अनादी द्वित्वं कगचज ११ अतः सेडों: ए सूत्रोथी नत्तिओ नत्तुओ रूप सिद्ध थाय. ॥ १३७ ॥
वा बृहस्पतौ॥१३७ ॥ बृहस्पतिशब्दे शत श्छदौ वा जवतः ॥ बिहप्फई बुहप्फई। पदे बहफई ॥ १३७ ॥
मूल भाषांतर. बृहस्पति शब्दना ऋना इ अने उ थाय. सं. बृहस्पति तेना बिहप्फई वुहप्फई थाय अने पक्ष बुहप्फई पण श्रायः ॥ १३ ॥
॥ टुंढिका ॥ वा ११ वृहस्पति ७१ वृहस्पति- अनेन वृ वि द्वितीये वृ तु पस्पयोः फः स्पस्य फः अनादौ हित्वं । द्वितीयपूर्व फ प कगचजेति तबुक् ११ अक्लीबे सौ दीर्घःई अंत्यव्यं सबुक् बिहप्फई बुहप्फई। यत्र श्छतौन जवतःतत्र तोऽत् बहप्फई तहदेव ॥१३॥ टीका भाषांतर. बृहस्पति शब्दना ऋना इ अने उ थाय. सं. बृहस्पति तेने चालता सूत्रे वृनो वि श्राय बीजे पक्ष वृनो वु थाय. पनी पस्पयोः फः अनादौन द्वितीय० कगचज० अक्लीये सौदीर्घः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी विहप्फई वुहप्फई एवां रूप पाय. ज्यारे इ के उन श्राय त्यारे ऋतोऽत् सूत्रथी बहप्फई रूप श्रायः ॥१३॥
श्देदोद् ढन्ते ॥१३॥ वृन्तशब्दे शत श्त् एत् उच्च जवन्ति ॥ विएटं वेएटं वोएटं ॥१३॥ मूल भाषांतर. वृन्त शब्दना * नो इ ओ ओ श्राय. सं. वृन्त तेनां विण्टं वेण्टं वोण्ट रूप थायः ॥ १३ए॥
॥ टुंढिका ॥ श्देदोत् ११ वृन्त ७१ वृन्त ७ अनेन प्रथमे वृ वि द्वितीये वृ वे तृतीये वृ वो वृन्तएटः इति तस्य एटः ११ क्लीवे समू मोनु विएटं वेएट वोएटं ॥ १३ ॥
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मागधी व्याकरणम् . टीका भाषांतर. वृन्त शब्दना ऋना इ ओ ओ थाय. सं. वृन्त तेने प्रथम पक्ष इ थाय बीजे परे ए थाय. अने त्रीजे परे ओ थाय. पठी वृन्तेण्टः ए सूत्रथी तनो ण्ट थाय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी विण्टं वेण्टं वोटं एवां रूप श्रायः ॥ १३५॥
रिः केवलस्य ॥२४॥ केवलस्य व्यंजनेनासंपृक्तस्य तो रिरादेशोजवति॥रिडी।रिडो॥ मूल भाषांतर. केवल एटले व्यंजन साथे नहीं मलेला एवा नो रि आदेश थाय. सं. ऋद्धि तेनुं रिडी रूप थाय. सं. ऋक्ष तेनुं रिच्छो रूप धाय. ॥ १० ॥
॥ढुंढिका॥ र ११ केवल ६१ कि ११ झ रिश्रलीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् रिकी । कक्ष अनेन शरि दःखःक्वचित्तु इति दस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीय तु पूर्व ः च ११ अतःसेझैः रिबो॥१४॥ टीका भाषांतर. एकला ऋनो रि आदेश वाय. सं. ऋद्धि तेने चालता सूत्रथी नोरि थाय. पची अक्लीये सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी रिद्धी रूप श्राय. सं. ऋक्ष तेने चालना सूत्रथी ऋनो रिथाय परीक्षः खः कचित्तु अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अत:सेडौंः ए सूत्रोश्री रिच्छो रूप श्रायः ॥ १० ॥
झणर्टषनर्स्टर्षों वा॥१४१ ॥ कण रुग षन रुजु ऋषिषु तो रिर्वा जवति ॥ रिणं श्रणं । रिस्क उन । रिसहो ऊसहो । रिऊ उऊ । रिसी इसी ॥ ११ ॥ मूल भाषांतर. ऋण ऋजु ऋषभ ऋतु अने ऋषि शब्दना ऋनो विकटपे रि थाय. सं. ऋणं तेनां रिणं अणं एवां रूप थाय. सं. रुजु तेनां रिजू उजू एवा रूपथाय. सं. ऋषभ तेनां रिसहो उसहो एवां रूप थाय. सं. ऋतु तेनां रिऊ उऊ एवां रूप थाय. सं. ऋषि तेनां रिसी इसी एवां रूप थाय, ॥११॥
॥ टुंढिका ॥ शणं च झजुश्च झषनश्च शतुश्च शषिश्च तस्मिन् ७१ वा ११ झणअनेन क रि द्वितीये इतोऽत् श्र ११ क्लीबे सम् मोनु० रिणं श्रणं । जु- अनेन वा झरि हितीये उदृत्वादौ कउ ११ श्रक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् रिङ्ग उडू ऋषन अनेन रिश
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१४७ षोःसः प स खघथ० ल ह ११ अतः सेडोंः रिसहो हितीये उद्दत्वादौ कउ शेषं पूर्ववत्। उसहो। कतु अनेन वा झरि कगचजेति तबुक् ११ थक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् रिऊ द्वितीये उहत्वादौ कउ शेषं पूर्ववत् नऊ इषि अनेन वा रु रि शषोः सः षः सः ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सलुक् रिसी । द्वितीये ऋषि कृपादौ २ ३ शेषं तत् श्सी ॥ १४१॥ टीका भाषांतर. ऋण झजु झपन झतु अने शषि ए शब्दोना ऋनो विकटपे रि थाय. सं. ऋण तेने चालता सूत्रथी ऋनो रि थाय. बीजे पदे ऋतोऽत् क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी रिणं अणं एवां रूप थाय. सं. ऋजु तेने चालता सूत्रे विकटपे झनो रि थाय बीजे पदे उदृत्वादौ अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं ए सूत्रोथी रिजू उजू एवां रूप थाय. सं ऋषभ तेने चालता सूत्रधी रि थाय. पनी शषोः सः खघथ अतः से?: ए सूत्रोधी रिसहो पाय. अने बीजे पक्ष उदृत्वादौ बाकी पूर्ववत् थई उसहो रूप थाय. सं. ऋतु तेने विकटपे ऋनो रि थाय. पजी कगचज० अक्लीवे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी रिऊ थाय. अने बीजे पदे उदृत्वादौ सूत्र पामी बाकी पूर्ववत् साधन थई उऊ एवं रूप थाय. सं.ऋषि तेने चालता सूत्रथी विकटपे ऋनोरि श्राय पनी शषोः सः अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग ए सूत्रथी रिसी रूप थाय. बीजे पदे इत्कृपादौ अने बाकी पूर्ववत् थई इसी एवं रूप सिद्ध थाय . ॥ २१ ॥
दृशः विप-टक्सकः॥१४॥ क्विए टक् सक् इत्येतदन्तस्य दृशेर्धातोईतो रिरादेशो नवति॥ सहक् । सरि-वलो । सरि-रूवो। सरि-बन्दीणं ॥ सदृशः । सरिसो॥ सहकः । सरिछो ॥ एवं एवारिसो । नवारिसो। जारिसो । तारिसो। के रिसो। एरिसो। अन्नारिसो । ब्रह्मारिसो। तुझा रिसो ॥ टक्सक्साहचर्यात् त्यदाद्यन्यादिसूत्र विहितः किबिह गृह्यते ॥ १४ ॥
मूल भाषांतर. किप टक् सक् ए प्रत्ययो जेने अंते श्रावेला होय एवां दृश धातुना ऋ नो रि आदेश थाय. सं. सहग्वर्णः तेनुं सरि-वलो रूप थाय. सं. सहकरूपः तेनुं सरि-रूवो थाय. सं. सहग्बंदि तेनुं सदगबन्दीणं एवं रूप थाय. सं. सदृशः तेनुं सरिसो रूप थाय. सं. सदृक्षः तेनुं सरिच्छो रूप थाय. एवीरीते सं. एतादृशः तेनुं एआरिसो रूप थाय. सं. भवादृशः तेनुं भवारिसो रूप आय. सं. यादृशः
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२४०
मागधी व्याकरणम्. तेनुं जारिसो रूप धाय. सं. तादृशः तेनुं तारिसो रूप श्राय. सं. कीदृशः तेनु केरिसो रूप थाय. सं. ईदृशः तेनु एरिसो रूप थाय. सं. अन्यादृशः तेनुं अन्नारिओ रूप थाय. सं. अस्मादृशः तेनुं अमारिसो रूप थाय. सं. युष्मादृशः तेनुं तुह्मारिसो रूप थाय. मूलमा टक् अने सक् प्रत्ययनी साथे गण्यांचे तेथी अहि त्यदादि श्रन्यादि सूत्रमा कहेलो किप् प्रत्यय ग्रहण करवो ॥ १४॥
॥ढुंढिका॥ दृश ६१ कि टक् सक् ६१ सदृग्वर्णः सदृग् वर्णो यस्य सः अंत्यव्यं० सबुक् कगचजेति दबुक् धनेन रि सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं ११ श्रतः सेोः सरि-वलो । सहकरूपः सदृक् रूपं यस्य सः अंत्यव्यं० सबुक् कगचजेति दलुक् अनेन रिपोवः श्रतः सेझैः सरि-रूवो । एवं सहग्बंदि- सरि-बन्दीणं । सदृशः कगचजेति दलुक् अनेन रि शषोः सः श्रतःसेडोंः सरिसो। सदृक्षः कगचजेति दलुक् अनेन रि क्षःखःक्वचित्तुबगौ क्षस्य बः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ब च श्रतःसे?ः सरिछो । एतादृशः कगचजेति दबुक् अनेन रि शषोःसः श्रतः सेडोंः एथा रिसो । जवाहशः कगचजेति दलुक् अनेन रि शषोः सः अतः सेझैः जवारिसो। यादृशः श्रादेयो जः यस्य जः शेषं पूर्ववत् जारिसो। तादृशः शेषं पूर्ववत् तारिसो। कीदृशः एत्पीयूषापीडबिजीतके इति की के शेषं पूर्ववत् के रिसो। एवं ईश एरिसो। अन्यादृश- अधोमनयां यदुक् श्रनादौ हित्वं शेषं पूर्ववत् अन्ना रिसो। यस्मादृश-युष्मादृश- सूमश्नष्णनहदणाण्हः युष्मद्यर्थपरेतः तहत् ब्रह्मारिसो तुह्मा रिसो ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. किप टक् सक् ए प्रत्यय जेने श्राव्या होय एवा दृशू धातुना ऋ नो रि थाय. सं सदृग्वर्णः (सरखावर्णवालो) तेने अंत्यव्यं० कगचज० चाखता सूत्रे रि थाय. सर्वत्र रलुक अनादौ द्वित्वं अतःसे? ए सूत्रोथी सरि-वण्णी ए रूप थाय. सं. सदृपः (सरखा रूपवालो) तेने अंत्यव्यंग कगचज चालता सूत्रे रि थाय पोवः अतःसेडोंः ए सूत्रोथी सरि-रूवो एवं रूप धाय. तेवी रीते सं. सहग बंदि तेनुं सरि-बन्दीणं श्राय. सं.सदृशः तेने कगचज चालता सूत्रे रियाय. शषोः सः अतः सेटः ए सूत्रथी सरिसो रूप थाय. सं. सदृक्षः तेने कगचज० चालात
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प्रथमःपादः।
२४ए सूत्रे रि श्राय. पली क्षःख कचित्तुछझौ अनादौ द्वित्वं द्वितीयः अतः सेटः ए सूत्रोथी सरिच्छो रूप थाय. सं. एतादृशः कगचज० चालता सूत्रे रि थाय. शषोः सः अत: सेडोंः ए सूत्रोथी एआरिसो रूप थाय. सं. भवादृशः तेने कगचज. चालता सूत्रे रि थाय. पठी शषोः सः अतः सेों: ए सूत्रोथी भवारिसो रूप थाय. सं. यादृशः आयो जः बाकी पूर्ववत् जारिसो रूप थाय. सं. तादृशः तेने पूर्ववत् साधनश्री तारिसोरूप थाय. संकीदृशः तेने एत्पीयूषापीडषिभीतक ए सूत्र लागी बाकी पूर्ववत् साधनथी केरिसोरूप थाय. एवीरीते सं. इदृश तेनुं एरिसोरूप थाय. सं. अन्यादृश तेने अधोमनयां० अनादौ० बाकी पूर्ववत् साधनथी अन्नारिसो रूप श्राय. सं.अस्मादृश युष्मादृश तेने सूक्ष्मश्नष्ण युष्मद्यर्थपरेतः ए सूत्रश्री अह्मारिसो तुह्मारिसो रूप थाय. ॥ १४ ॥
आहते ढिः॥१४३ ॥ थाहतशब्दे तो ढिरादेशो नवति ॥ श्रादि ॥ १३ ॥ मूल भाषांतर. श्रादृत शब्दना ऋ ने ठेकाणे ढि आदेश श्राय. सं. आहत तेनुं आढिओ रूप थाय. ॥ १४३ ॥
॥ ढुंढिका ॥ थाहत ७१ ढि ११ श्रादृत- अनेन ढि कगचजेति दलुक् ११ अतःसेडोंः बाढि ॥ १४३ ॥ टीका भाषांतर. आदृत शब्दना क नो ढि थाय. सं. आहत शब्द तेने श्रा चाखता सूत्रे ऋनो ढि थाय. पनी कगचज अत :से?: ऐ सूत्रथी आढिओ रूप आय.
अरिईप्ते ॥ १४४ ॥ दृप्तशब्दे तोऽरिरादेशो नवति ॥ दरि । दरिश-सीहेण ॥ १४४ ॥
मूल भाषांतर. दृप्त शब्दना ऋनो अरि श्रादेश थाय. सं. दृप्त तेनुं दरिओ रूप थाय. सं. दृप्त-सिंहेन तेनुं दरिअ-सीहेण एवं रूप थाय. ॥ १४ ॥
॥ढुंढिका ॥ अरि ११ दृप्त १ दृप्त अनेन थरि दरि कगटडेति पलुक् कगचजेति तबुक् ११ श्रतः सेझैः दरि । दृप्त-सिंह- अनेन अरि दरि कगचजेति तबुक् कगटडेति दबुक् ३१ इर्जिव्हासिंहत्रिंश शति सीमांसादेर्वानुखारयुक् टाथामोर्णः टा ण टाणशस्येत् इति हे दरियसीहेण ॥ १४४ ॥
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मागधी व्याकरणम् . टीका भाषांतर. दृप्त शब्दना ऋनो अरि आदेश थाय. सं. दृप्त तेने आ चालता सूत्रे अरि आदेश थाय. एटले दरि थयु. पी कगटड कगचज. अतःसे?ः ए सूत्रोथी दरिओ रूप श्राय. सं. दृप्तसिंह तेने चालता सूत्रे अरि आदेश थाय. पठी कगचज० कगटड ईजिह्वासिंह मांसादेर्वा टा आमोर्णः टाणशस्येत् ए सूत्रोथी दरिअ-सीहण एव॒ रूप थाय. ॥ १४ ॥
खत इलिः क्लुप्त-कृन्ने॥१४॥ अनयोर्तृत इलिरादेशो नवति ॥ कितिन्न-कुसुमोवयारेसु ॥ धारा-किलिन्न-वत्तं ॥ १४५ ॥ मूल भाषांतर. क्लप्त अने क्लन्न ना लने स्थाने इलि आदेश श्राय. सं. क्लुप्तकुसुमोपचारेषु तेनुं किलिन्न--कुसुमोवयारेसु एq रूप थाय. सं. धाराकृप्तपात्रं तेनुं धारा-किलिन्न-वत्तं एवं रूप थाय. ॥ १४५॥
॥ढुंढिका ॥ लत् ६१ इलिः ११ क्वृत्तं च कुन्नं च क्लप्त वन्नं तस्मिन् ७१ क्लृप्तकुसुमोपचार- अनेन क्व स्थाने किलि कगटडे ति पलुक् अनादौ हित्वं त्त पोवः कगचजेति यबुक् अवर्णो ७३ जिस्न्यः सुपि इति एकारः कितिन्नकुसुमोवयारेसु । धाराकुन्नपात्रं- धारानिः क्वन्नं पात्रं यस्य तत् अनेन किलि पोवः सर्वत्र रबुक् अनादौ द्वित्वं ह्रस्वःसंयोगे वा व क्लीबे सम् मोनु धाराकिलिन्न-वत्तं ॥ १४५ ॥ टीका भाषांतर. तृप्त अने क्लन्न ए बे शब्दोना लू ने इलि एवो आदेश थाय. सं. क्लप्तकुसुमोपचारे षु तेने आ चालता सूत्रे क्लने स्थाने किलि आय. पी कगटड अनादौ पोवः कगचज. अवर्णों भिसभ्यः सुपि ए सूत्रोथी किलिन्नकुसुमोक्यारेसु ए रूप सिघ थाय. सं. धाराक्लन्नपात्र एटले धाराथी आर्ष (नीनु) ले पात्र जेर्नु ते तेने आ चालता सूत्रे किलि श्राय पजी पोवः सर्वत्र रलक अनादौ द्वित्वं हस्व:संयोगे क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रथी धाराकिलिन्नवत्तं एवं रूप थाय. ॥ १४ ॥
एत का वेदना-चपेटा-देवर-केसरे ॥१४६॥ वेदनादिषु एत इत्वं वा नवति ॥ विश्रणा वेणा । चविग ॥ विश्रठ-चवेग-विणोश्रा । दिनरो देवरो ॥ मह-महिश-दसणकिसरं । केसरं ॥ महिला महेला इति तु महिलामहेलान्यां शब्दान्यां सिझम् ॥ १४६ ॥
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प्रथमःपादः।
१५१ मूल भाषांतर. वेदना चपेटा देवर केसर ए शब्दोना एनो विकटपे इ थाय. सं. वेदना तेना विअणा वेअणा एवां रूप थाय. सं. चपेटा तेना चविडा चवेडा ऐवां रूप थाय. जेम सं. विकटचपेटाविनोदा तेनुं विअड--चवेडा-विणोआ एवं रूप थाय. सं. देवर तेना दिआरो देवरो एवां रूप थाय. सं. महमहित-दशनकेसरं तेनुं महमहिअ--दसण-किसरं वा केसरं एवं रूप थाय. महिला अने महेला ए बे रूप महिला तथा. महेला शब्दथी सिद्ध थयेला ॥ १६ ॥
॥ढुंढिका ॥ एत् ६१ श्त् ११ वा ११ वेदना च चपेटा च देवरश्च केसरं च वेदनाचपेटादेवरकेसरं तस्मिन् ७१ वेदना- अनेन वा वे वि कगचजेति लुक् नोणः ११ अंत्यव्यंज सलुक् विश्रणा वेणा। चपेटा अनेन वा पि पे पोवः टोडः अंत्यव्यंजन चविडा चवेडा। विकटचपेटाविनोदा कगचजेति दबुक् टोडः चवेडा पूर्ववत् नोणः नस्यणः कगचजेति दलुक् विथडचवेमाविणोथा । देवर अनेन दे दि कगचजेति वबुक् ११ श्रतः सेोंः दियरो देशरो। महमहितदशनकेसर- कगचजेति तबुक् शषोः सः श स नोणः नस्यणः अनेन वा के कि। क्लीबे सम् मोनु० महम हिश्रदसनकेसरं केसर महिला महेला इति ॥ १४६ ॥ टीका भाषांतर. वेदना चपेटा देवर अने केसर ए शब्दोना ए नो विकटपे इ थाय. सं. वेदना तेने चालता सूत्रथी विकटपे वि तथा वे० थाय पनी कगचजनोणः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी विअणा वेअणा एवां रूप थाय. सं. चपेटा तेने चालता सूत्रथी विकटपे पि तथा पे थाय. पोवः टोड: अंत्यव्यंग ए सूत्रोथी चविडा चवेडा रूप थाय. सं. विकटचपेटाविनोदा तेने कगचज टोडः ए सूत्रो लागी पूर्ववत् चवेडा रूप थाय. बाकीने नोणः कगचज ए सूत्रोथी विअडचवेडाविणोआ ऐवं रूप सिद्ध थाय. सं. देवर तेने चालता सूत्रे दे दि वाय. पळी कगच अतः सेझैः ए सूत्रोथो दिआरो देअरो रूप थाय. सं. महमहितदशनकेसर तेने कगचज शषोः सः नोणः आ चालता सूत्रे विकटपे के कि थाय. पठी क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी महमहिअ दसनकिसरं एवं रूप थाय. पदे केसरं पण थाय. सं. महिला तेना महिला अने महेला एवां रूप थाय. ॥ १६ ॥
कः स्तेने वा ॥ २४ ॥ स्तेने एत ऊद् वा नवति ॥ थूणो थेगो ॥ १४ ॥
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९५२
मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. स्तेन शब्दना ए नो विकटपे ऊ थाय. सं. स्तेनः तेना थूणो थेगो एवां रूप थाय. ॥ १४७॥
॥ढुंढिका॥ ऊः ११ स्तेनः ७१ वा ११ स्तेनःस्तस्य थोऽसमस्तस्तंबे इति स्तस्य थः अनेन वा ए उ थे थू नोणः नस्य णः श्रतः सेझैः उडित्वात् टिलोपः श्रूणो पके पूर्ववत् श्रेणो ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. स्तेन शब्दना ए नो विकटपे ऊ थाय. सं.स्तेनः तेने स्तस्यथोऽसमस्तस्तंबे या चालता सूत्रे विकटपे ए नो ऊ थाय. पनो नोणः अतः सेोंः ए सूत्रोथी थूणो रूप थाय. अने पदे पूर्ववत् थेणो रूप थाय. ॥१७॥
ऐत एत् ॥ १४ ॥ ऐकारस्यादौ वर्तमानस्य एत्वं जवति ॥ सेखा सेन्नं । तेलुकं । एरावणो केलासो । वेजो। केढवो । वेहव्वं ॥ १४ ॥ मूल भाषांतर. शब्दनी आदिमां रहेला ऐ नो ए थाय. सं. शैलाः तेनु सेला रूप थाय. सं. त्रैलोक्य तेनुं तेलुकं थाय. सं. औरावतः तेनुं अरावणो रूप थाय. सं. कैलासः तेनु केलासो रूप थाय. सं. वैद्यः तेनु वेजो रूप थाय. सं. कैटभः तेनु केढवो रूप धाय. सं. वैधव्य तेनुं वेहव्वं रूप थाय. ॥ १० ॥
॥ढुंढिका ॥ औत् ६१ एत् ११ शैल अनेन शै शे शषोः सः १३ जस्शस्ङसित्तोदीर्घः जस्शसोर्बुक सेला । सैन्य- अनेन से- अधोमनयां अनादौहित्वं नक्कीबे सम् मोनु० सेन्नं । त्रैलोक्यऐ ए सर्वत्र रलुक् हवः संयोगे लो लु अधोमनयां यबुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् तेवुकं । औरावणः अनेन औ ए १९ अतः से?ः एरावणो । कैलास ११ अनेन कै के शषोः सः अतः सेझैः केलासो। वैद्य ११अनेन वै वे द्यय्यां जः अनादौ हित्वं श्रतःसेझैः वेजो कैटल अनेन कै के मयशकटकैटने ढः डस्य ढः कैटने जोवः नवः ११ श्रतःसे?ः केढवो वैधव्य- अनेन वै वे खघथ ध ह अधोमनयां यबुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु वेहवं ॥ १४ ॥
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प्रथमः पादः ।
१५३
टीका भाषांतर. शब्दनी यादिमां ऐ नो ए थाय. सं. शैल तेने चालता सूत्रे नो शे थाय. पढ़ी शषोः सः जस्शस् ङसित्तो. जस्शसोलुक् ए सूत्रोथी सेला रूप थाय. सं. सैन्य तेने चालता सूत्रे सैनो से थाय. अधोमनयां अनादौ द्वित्वं क्लीवे स्मृ मोनु० ए सूत्रोथी सेन्नं रूप श्राय. सं. त्रैलोक्य तेने चालता सूत्रे ऐ नो ए थाय. सर्वत्र रलुक् ह्रस्वः संयोगे अधोमनयां यलुक् अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् ए सूत्रोथी तेलुक्कं रूप श्राय. सं. ऐरावणः तेने चालता सूत्रे ऐनो ए थाय अतः सेर्डोः ए सूत्री एरावणो रूप याय. सं. कैलास तेने चालता सूत्रे ऐनो ए थाय. शषोः सः अतः सेडः ए सूत्रोथी केलासो रूप थाय. सं. वैद्य तेने चालता सूत्रथी वै नो वे थाय. पत्नी द्यजर्याञ्जः अनादौ द्वित्वं अतः सेडः ए सूत्रोथी वेज्जो रूप थाय. सं. कैटभ तेने चालता सूत्रथी के नो के थाय. मयशकटकैटभे ढः कैटभे भो वः अतःसेड ए सूत्रोश्री केदवो रूप थाय. सं. वैधव्य तेने चालता सूत्रथी वैनो वे थाय. पनी स्वघथ० अधोमनयां अनादी द्वित्वं क्रीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वेहवं रूप थाय ॥ १४८ ॥
इत्सैन्धव-शनैश्वरे ॥ १४९ ॥
एतयोरत इत्वं नवति ॥ सिन्धवं । सबिरो ||
मूल भाषांतर. सैन्धव ने शनैश्वर शब्दना ऐनो इ थाय. सं. सैन्धव तेनुं सिन्धवं याय. सं. शनैश्वर तेनुं सणिच्छरो रूप याय. ॥ १४९ ॥
॥ ढुंढिका ॥
1
इत् ११ सैन्धवं च शनैश्चरश्च सैन्धवशनैश्चरं तस्मिन् ७१ सैन्धव ११ अनेन से सिक्कीबे सम् मोनु० सिन्धवं । शनैश्चर अनेन नै नि शपोः सः नोणः नस्य णः हस्वास्थ्यश्चप्सप्साम निश्चले इति व स्थाने वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व व च ११ श्रतः सेडः सविरो ॥ १४९
टीका भाषांतर. सैन्धव सने शनैश्चरना ऐनो इ थाय. सं. सैन्धव तेने श्र चालता सूत्रे से नो सि याय. क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी सिन्धवं रूप याय. सं. शनैश्वर तेने चालता सूत्रथी नैनो नि थाय. पक्षी शषोः सः नोणः ह्रस्वात् त्थ्यश्व सप्सा अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अतः सेर्डो: ए सूत्रोथी सणिच्छरो रूप थाय. १४० सैन्ये वा ॥ १५० ॥
सैन्यशब्दे ऐतद् वा जवति ॥ सिन्नं सेन्नं ॥ १५० ॥
२०
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मागधी व्याकरणम्.
१५४
मूल भाषांतर. सैन्य शब्दना ऐनो विकल्पे इ याय. सं. सैन्य तेना सिन्नं सेन्नं एवां रूप थाय ॥ १५० ॥
॥ ढुंढिका ||
सैन्य ७९ वा ११ सैन्य अनेन वा सैसि द्वितीये ऐत एत् एकारः श्रधोमनयां यलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ क्लीवे स्म मोनु० सिन्न सेन्नं ॥ १५० ॥
टीका भाषांतर. सैन्य शब्दना ऐनो विकल्पे इ थाय. सं. सैन्य तेने या चालता सूत्रे विकल्पे सैनो सि थाय. बीजे पछे ऐत एत् अधामनयां अनादौ कीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सिन्न सेन्नं एवां रूप थाय ॥ १५० ॥
१५१ ॥
दैत्यादौ च ॥ सैन्यशब्दे दैत्य इत्येवमादिषु च ऐतो इत्यादेशो वति । एत्वापवादः ॥ सन्नं । दइयो । दन्नं । इसरि । जइरवो । वश्जवणो । दश्वत्र्यं । वाली । वइएसो । वएहो । वइदब्जो । इस्सारो । कवं । वश्साहो । वइसालो । सइरं । यत्तं ॥ दैत्य | दैन् । ऐश्वर्य । जैरव । वैजनन । दैवत । वैतालीय । वैदेश । वैदेद । वैदर्ज | वैश्वानर | कैतव । वैशाख । वैशाल | स्वैर । चैत्य | इत्यादि । विश्लेषे न जवति । चैत्यम् । चेयं ॥ श्रार्षे । चैत्यवंदनम् | ची - वन्दणं ॥ १५१ ॥
1
1
1
मूल भाषांतर. सैन्य अने दैत्य विगेरे शब्दोना ऐनो अइ एवो आदेश थाय.
एकारो अपवाद थाय. सं. सैन्य तेनुं सइन्नं रूप थाय. सं. दैत्य तेनुं दइय्यो रूप थाय. सं. दैन्य तेनुं दद्दन्नं रूप याय. सं. ऐश्वर्य तेनुं अइसरिअं रूप याय. सं. भैरव तेनुं भइरवो रूप श्राय. सं. वैजनन तेनुं वइजवणो रूप थाय. सं. दैवतं तेनुं दइवअं रूप थाय. सं. वैतालीयं तेनुं वइआलीअं रूप याय. सं. वैदेशः तेनुं वइएओ रूप थाय. सं. वैदेहः तेनुं वइएहो रूप थाय. सं. वैदर्भ तेनुं वइदन्भो रूप याय. सं. वैश्वानर तेनुं वइस्साणरो रूप थाय. सं. कैतवं तेनुं कइअवं रूप थाय. सं. वैशाखः तेनुं वइसाहो रूप थाय. सं. वैशालः तेनुं वइसालो रूप याय. सं. स्वैरं तेनुं सहरं रूप याय. सं. चैत्यं तेनुं चइन्तं रूप याय. जो चैत्य शब्दमां वर्णविश्लेष करे तो चैत्यनुं चेइअं थाय. श्रार्ष प्रयोगमां चैत्यवंदनं तेनुं ची - वन्दणं थाय ॥ १५१ ॥
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प्रथमःपादः।
१५५ ॥ढुंढिका॥ अश् ११ दैत्यादि ७१ च ११ सैन्य अनेन सैस अधोमनयां ययुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबे स्म् मोनु सन्नं । दैत्य अनेन दै दश त्यौऽचैत्येत्यस्य च अनादौ हित्वं ११ अतः से?ः दश्चो। दैन्य अनेन दश अधोमनयां यबुक क्लीबेस्म् दन्नं । ऐश्वर्य- अनेन ऐ स्थाने अश् सर्वत्र वलुक् शषोः सः स्यानव्यचैत्यचौर्यसमेषु यात् प्राग् कारः कगचजेति यबुक् क्लीबे सम् अश्स रिअं । जैरव अनेन नै नश् श्रतः से?ः नरवो । वैजवन- अनेन व नोणः अतःसे?ः वश्जवणो । देवत ११ अनेन दर कगचजेति दलुक् श्रवों क्लीबेसम् दश्वरं । वैतालीय अनेन व कगचजेतित्बुक् ११ क्लीबे सम् वश्यालीअं । वैदेश अनेत व कगचजेति दबुक् शषोः सः ११ श्रतः सेोः वश्एसो । वैदेह- अनेन वै वर कगचजेति वबुक् अतः सेडोंः वश्एहो । वैदर्भ- अनेन वै व सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्वजस्य वः अतः सेझैः वश्दब्नो । वैश्वानर अनेन व सर्वत्र वलुक् शषोः सः श स श्रतः सेझैः वश्स्लाणरो । कैतवं अनेन कर तबुक् कश्शवं। वैशाख-अनेन व सर्वत्र वबुक् शपोः सः खघथ ख ह अतः सेझैः वश्साहो वैशाल अनेन व शषोः सः १९ श्रतः सेोंः वश्सालो। स्वैरं अनेन सर सर्वत्र लुक् ११ क्लीबे स्म् सरं चैत्य- अनेन च अधोमनयां यलुक् अनादौ हित्वं ११ क्लोबे स्म् चश्त्तं चैत्य ऐत एत् त्य् यो विश्लेषे स्यादनव्यचैत्येति यात् प्राग् कारः कगचजेति ययुक् च च । श्रार्षे-चैत्यवंदणं आर्षत्वात् चैत्यस्थाने
ची-नोणः ची-वंदणं ॥ १५१॥ टीका भाषांतर. सैन्य अने दैत्य विगेरे शब्दोना ऐनो अइ आदेश थाय. एनो अपवाद वाय. सं, सैन्य तेने चाखता सूत्रे सैनो सइ थाय. पती अधोमनयां अनादौ द्वित्वं क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी सइन्नं रूप थाय. सं. दैत्य तेने चालता सूत्रे दैनुदइ थाय. पनी त्योऽचैत्ये अनादौ अतः सेोः ए सूत्रोथी दइच्चो रूप थाय. सं. दैन्य तेने चालता सूत्रे दइ श्राय. अधोमनयां क्लीबे सम् ए सूत्रोश्री दइन्नं रूप श्राय.
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९५६
मागधी व्याकरणम्. सं. ऐश्वर्य तेने चालता सूत्रे अइ थाय. पठी सर्वत्र रलुक् शषोः सः स्याद् भव्यचैत्य० कगचज. क्लीबे सम् ए सूत्रोथी अइसरिअं थाय. सं. भैरव तेने चालता सूत्रे अइ थाय, अतः सेोः ए सूत्रधी भइरवो थाय. सं. वैजवन तेने चालता सूत्रे अइ थाय. नोणः अतः सौंः ए सूत्रोथी वइजवणो रूप थाय. सं. दैवतं तेने चालता सूत्रे दइ थाय पी कगचज. अवर्णो क्लीबे सम ए सूत्रोथी दइवअं रूप श्राय. सं. वैतालीय तेने चालता सूत्रे वइ थाय. पनी कगचज० क्लीबे सम् ए सूत्रोथी वइआलीअं थाय. सं. वैदेश तेने चालता सूत्रे वइ थाय. पजी कगचज० शषोः सः अत: सेडों: ए सूत्रोथी वइएसो रूप थाय. सं. वैदेह तेने चालता सूत्रे वइ थाय. पली कगचज० अतः सेोंः ए सूत्रोथी वइएहो थाय. सं. वैदर्भ तेने चालता सूत्रे वह वाय. पठी सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं दितीय अतः से?ः ए सूत्रोथी वइदभो एवं रूप थाय. सं. वैश्वानर तेने चालता सूत्रे वह थाय. पजी सर्वत्र वलुक् शषोः सः अतः सेडों: ए सूत्रोथी वइस्साणरो एवं रूप थाय. सं. कैतवं तेने चालता सूत्रे कइ थाय. तेने तनो लुक् थ कइअवं रूप थाय. सं. वैशाख तेने चालता सूत्रे वइ थाय. पठी सर्वत्र वलुक् शषोःसः खघथ. अतः सेोंः ए सूत्रोथी वइसाहो रूप श्राय. सं. वैशाल तेने चालता सूत्रे वइ थाय पनी शषोः सः अतः सेडोंः ए सूत्रोथी वइसालो रूप थाय. सं. स्वैरं तेने चालता सूत्रथी अइ वाय. पली सर्वत्र वलुक् क्लीबे सम् ए सूत्रोथी सइरं थाय. सं. चैत्य तेने चालता सूत्रे चइ थाय. पठी अधोमनयां अनादी द्वित्वं क्लीबे सम् ए सूत्रोथी चइत्तं रूप थाय. बीजे पदे चैत्य तेने ऐत एत् त् तथा य् अक्षरनो विश्लेष (उटापणुं ) करी स्यादभव्य चैत्य कगचज० ए सूत्रोथी चइअ रूप थाय. आर्ष प्रयोगमा सं. चैत्यवंदणं तेने आर्षपणाश्री चैत्यने स्थाने ची थाय. तेने नोणः ए सूत्रथी ची-वंदणं रूप सिह थाय. ॥ १५१ ॥
वैरादौ वा ॥१५॥ वैरादिषु ऐतः अश्रादेशो वा नवति ॥ वरं वेरं। कश्लासो केलासो। कश्रवं केरवं । वश्सवणो वेसवणो । वश्सम्पायणो वेसम्पायणो। वश्था लिउँ । वेश्रालिउँ । वसिझं । वेसिकं । चश्त्तो। चेत्तो ॥ वैर । कैलास । कैरव । वैश्रवण । वैशम्पायन । वैतालिक। वैशिक चैत्र । इत्यादि ॥ १५ ॥ मूल भाषांतर. वैर विगेरे शब्दोना ऐने स्थाने विकटपे अइ आदेश थाय. सं. वैर तेनुं वइरं वरं एवां रूप थाय. सं. कैलास तेना कइलासो केलासो रूप थाय. सं. कैरवं तेना कहरवं केरवं रूप थाय. सं. वैश्रवणः तेना वइसवणो वेसवणो रूप थाय. सं. वैशम्पायन तेनां वइसम्पायणो वेसम्पायणो रूप श्राय. सं. वैतालिक
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प्रथमः पादः ।
१५७
तेनां वइआलिओ वेआलिओ रूप याय. सं. वैशिक तेनां वइसिअं वेसिअं रूप थाय. सं. चैत्र तेना चइत्तो चेत्तो रूप थाय ॥ १५२ ॥
॥ ढुंढिका ॥ वैरादि ७१ वा ११ वैर - छानेन वा व द्वितीये ऐत एत् च ११ की स्म मोनु० वरं वैरं कैलास-छानेन कइ द्वितीये ऐत एत् शपोः सः अतः सेर्डोः कलासो केलासो । कैरव - अनेन वाके क द्वितीये ऐत एत् ११ क्लीबे स्म् कइरवं केरवं । वैश्रवण - - नेन वै व द्वितीये वे शषोः सः सर्वत्र वलुक् ११ यतः सेर्डोः वइसवणो वेसण | वैसम्पायन - अनेन वा व द्वितीये वे शषोः सः नोणः ११ अतः सेर्डोः वइसम्पायणो वेसंपायणो । वैतालिक नेन वै व द्वितीये ऐत एत् वे कगचजेति तलुक् कलुक् च ११ अतः सेर्डोः वालि वेथालि | वैशिक अनेन वा वै व द्वितीये ऐत एत् वे शषोः सः श स कगचजेति दलुक ११ की वे सम मोनु० वइसिधं वेसियं चैत्र- अनेन वा वै व द्विती ऐत एत् वे सर्वत्र रलुक् श्रनादौ द्वित्वं त ११ छातः सेडः चइत्तो चेत्तो ॥ १५२ ॥
टीका भाषांतर. वैरादिशब्दना ऐने स्थाने विकल्पे अइ आदेश थाय. सं. वैर तेने चालता सूत्र विकल्पे वै नो वइ थाय. बीजे पछे ऐत एत क्लीबे सम् मोनु० ए सूatra asरं वैरं रूप याय. सं. कैलास- तेने चालता सूत्रे अइ थाय. बीजे पदे ऐत एत् शषोः सः अतः सेडः ए सूत्रोथी कइलासो केलासी रूप याय. सं. कैरवं चालता सूत्रे अइ थाय. बीजे पदे ऐत एत् क्लीवे सम् ए सूत्रथी कइरवं केरवं रूप थाय. सं. वैश्रवणः तेने चालता सूत्रे वइ थाय. बीजे पछे वे थाय. शषोः सः तेने चालता सूत्रे सर्वत्र रलुक् अतः सेडः ए सूत्रोथी वइसवणो बेसवणो रूप थाय. सं. वैसम्पायन तेने चालता सूत्रे अइ थाय. बीजे पछे वै नो वे थाय. पबी शषोः सः नोणः अतः सेडः ए सूत्रोथी वइसम्पायणो वेसंपायणो रूप थाय. सं. वैतालिक तेने चालता सूत्रे वइ थाय. बीजे पदे ऐत एत् सूत्रे वे थाय पढी कगचज० अतः सेडः ए सूत्रोथी व आलिओ वेआलिओ रूप याय. सं. वैशिक तेने चालता सूत्रे वह थाय. बीजे पछे ऐत एत् सूत्रे वे थाय. पबी शषोः सः कगचज० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वइसिअं वेसिअं रूप याय. सं. चैत्र तेने चालता सूत्रे वह बीजे
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ԱՇ
मागधी व्याकरणम्.
पक्षे ऐत एत् सूत्रे वे थाय. सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं अतः सेडः चहत्तो चेत्तो एवां रूप थाय ॥ १५२ ॥
एच्च दैवे ॥ १५३ ॥
श्रादेशो भवति ॥ देव्वं दश्व्वं दश्वं ॥ १५३ ॥
देवशब्दे ऐत एत् मूल भाषांतर. देव शब्दना ऐ नो ए श्राय. ने अइ एवो आदेश पण याय. सं. दैव तेना देव्वं दइव्वं दइवं एवां रूप याय. ॥ १५३ ॥
॥ ढुंढिका ॥
एत् ११ च ११ दैव ७९ अनेन दे दे सेवादौ द्वित्वं कीबे सम० मोनु० देव्वं देव- अनेन दइ सेवादौ द्वित्वं ११ क्कीबे स्म मोनु० दव्वं । दैव अनेन दइ ११ क्लोबे स्म् दश्वं ॥ १५३ ॥
टीका भाषांतर-सं. दैव शब्दना ऐ नो ए थाय. सं. दैव तेने चालता सूत्रे दै नो दे या पी सेवादौ क्लीबेस्म मोनु० ए सूत्रोथी देव्वं रूप थाय. पदे सं. दैवतेने चालता सूत्रे दइ थाय. सेवादौ क्लीबेस्म जोनु० दइव्वं थाय. सं. दैव तेने दइ थाय. की मोनु दइवं थाय. ॥ १५३ ॥
०
उच्चैर्नीचैस्य यः ॥ १५४ ॥
अनयोरैतः ा ा इत्यादेशो भवति ॥ उच्चश्रं । नीचां । उच्चनीचायां के सिद्धम् । उच्चैर्नीचैसोस्तु रूपान्तर निवृत्यर्थं वचनम् ॥
मूल भाषांतर. उच्चैः अने नीचे ए शब्दोना ऐने स्थाने अ अ एवां आदेश याय. सं. उच्चैः तेनुं उच्चअं एवं रूप थाय. सं. नीचैः तेनुं नीचअं रूप याय. उच्चैः अने सं. नीच शब्द केवीरीते सिद्धि थाय. ए प्रश्न माटे उच्चैः अने नीचैः शब्दना बीजा रूप न थाय. ते कहेवाने दिं या वचन कह्युं बे. ॥ १५४ ॥
॥ ढुंढिका ॥
उच्चैश्च नीचैश्च उचैनीचैस् तस्मिन् ७१ का ११ का ११ उच्चैस् नीचैस् वास्वरेमश्च बाहुलकात् सम् अनेन ऐ स्थाने अ अ लोकात् उच्च नीचां ॥ १५४ ॥
टीका भाषांतर. उच्चैः नीचैः ए शब्दाना ऐ ने अ अ एवा आदेश थाय. सं. उच्चैः नीचैः तेने वास्वरेमश्च बाहुलक पथी स्नो म थाय. पबी आ चालता सूत्रे ऐने स्थाने अ अ थाय. पी लोकात् मोनु० ए सूत्रोथी उच्चअं नीचअं रूप थाय ॥ १९४ ॥
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प्रथमःपादः।
१५ए ईये ॥ १५॥ धैर्यशब्दे ऐत ईद नवति ॥ धीरं हर विसायो॥ मूल भाषांतर. धैर्य शब्दना ऐ नो ई श्राय. सं. धैर्य हरति विषादः तेनुं धीरं हरइ विसाओ एवं रूप थाय. ॥ १५५ ॥
॥ढुंठिका॥ इत् ११ धैर्य ७१ धैर्य- अनेन धी धैर्ये वा इति यस्य रम् श्रमोऽस्य श्लुक् मोनु० धीरं हरति त्यादीनां तिस्थाने ३ हर । विषाद शषोः सः ष स कगचजेति दलुक् ११ श्रतःसे?ः विसाउँ ॥१५५॥ टीका भाषांतर. धैर्य शब्दना ऐ नो ई थाय. सं. धैर्य-तेने चालता सूत्रथी धै नो धी थाय. धैर्येवा अमोऽस्य मोनु ए सूत्रोथी धीरं रूप थाय. सं. हरति तेने त्यादीनां ए सूत्रथी हरइ रूप थाय. सं. विषाद तेने शषोः सः कगचज० अतः सेोंः ए सूत्रोश्री विसाओ रूप थाय. ॥ १५५ ॥ उतोछान्योन्य-प्रकोष्ठातोद्य-शिरोवेदना--मनोहर
सरोरुदे क्तोश्च वः ॥ १५६ ॥ एषु उतोत्वं वा नवति तत्संनियोगे च यथासंनवं ककारतकारयो
देशः ॥ श्रन्नन्नं श्रन्नुन्नं । पवट्ठो पउद्यो।श्रावऊं । श्रानुऊं सिर-वि श्रणा । सिरो-विश्रणा । मणहरं मणोहरं। सररुहं सरोरुहं ॥१५६॥ मूल भषांतर. अन्योन्य प्रकोष्ठ आतोद्य शिरोवेदना मनोहर सरोरुह ए शब्दोना ओ नो विकटपे अ थाय. अने तेना योगे यथासंभव क अने त अक्षरने स्थाने व एवो आदेश थाय. सं. अन्योन्य तेना अन्नन्नं अन्नुन्नं एवां रूप थाय. सं. प्रकोष्ठ तेने पवट्ठो पउट्ठो रूप धाय. सं. आतोद्य तेना आवजं आउज्जं रूप थाय. सं. शिरोवेदना तेना सिर-विअणा सिरो-वित्रणा रूप धाय. सं. मनोहरं तेना मणहरंमणोहरं रूप थाय. सं. सरोरुहं तेना सररुहं सरोरुहं रूप थाय. ॥१५६ ॥
॥ढिका ॥ उत् ६१ बत् ११ वा ११ अन्योन्यं च प्रकोष्ठश्च श्रातोयं च शिरोवेदना च मनोहरं च सरोरुहं च अन्योन्यप्रकोष्ठा-तोय शिरोवेदनामनोहरसरोरुहं तस्मिन् ३१ त ६१ च ११ व ११
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१६०
मागधी व्याकरणम्. अन्योन्य- अधोमनयां यलुक् अनादौ हित्वं अनेन वा उकारस्य श्रः द्वितीये हवः संयोगे ११ क्लीबे सम् मोनु अन्नन्नं श्रन्नुन्नं । प्रकोष्ट- सर्वत्र रखुक् अनेन को क कस्य च व ष्टस्यानुष्टासंदष्टे अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्वठस्य टः ११ अतः सेझैः पवट्ठो द्वितीये प्रकोष्ठ सर्वत्रेति रलुक् ह्रखः संयोगे को कु कगचजेति कलुक् शेषं पूर्ववत् पउहो । श्रातोद्य-अनेन तो त तस्य वः यद्यर्थ्यांजः यस्य जः श्रनादौ हित्वं ११ क्लीबे स्म् मोनु आवजं । द्वितीये बातोच- इस्वः संयोगे तो तु कगचजेति तलुक् द्यन्यांजः शेषं तथैव श्राउड । शिरोवेदना- शषोः सः शः सः अनेन रोर ऐतएछावदनचपेटादेवरकेसरे • इति वे वि कगचजेति दलुक् नोणः ११ अंत्य० दलुक् सिर-वीश्रणा । द्वितीये शिरोवेदना- शषोः सः कगचजेति दबुक् नोणः अंत्यव्यंग सबुक् सिरोवित्रणा। मनोहर- अनेन वा नो न नोणः क्लीबे स्म् मणहर मणोहर । सरोरुह-अनेन रो र क्लीबे सम् सररुहं सरोरुहं॥१५६॥ टीका भाषांतर. अन्योन्य प्रकोष्ठ आतोद्य शिरोवेदना मनोहर अने सरो. रुह ए शब्दोना ओनो विकल्पे अ थाय. सं. अन्योन्य तेने अधोमनयां अनादौ० चालता सूत्रे ओ नोअ थाय. बीजे पदे हवः संयोगे क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अन्नन्नं अनुन्नं रूप थाय. सं. प्रकोष्ठ तेने सर्वत्र रलुक् चालता सूत्रे को नो क श्राय. अनेक नो व थाय. ष्टस्यानु अनादौ० द्वितीय अतः सेडोंः ए सूत्रोथी पवट्ठो रूप थाय. बीजे पक्ष सं. प्रकोष्ट तेने सर्वत्र रलुक ह्रस्वः संयोगे कगचज० बाकी पूर्ववत् थई पउट्ठो रूप थाय. सं. आतोद्य तेने चालता सूत्रे तो नो त थाय. त नो व थाय. पी द्यज्या जः अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी आवजं रूप थाय. बीजे पके सं. आतोद्य तेने ह्रस्वःसंयोगे कगचज द्यज्यां जः बाकी पूर्ववत् अई आउज्जं रूप थाय. सं. शिरोवेदना तेने षशोः सः चालता सूत्रे ओ नो अ थाय. ऐतएद्वावदनचपेटादेवर कगचज नोणः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सिर-विअणा रूप थाय. बीजे पक्ष सं. शिरोवेदना तेने शषोः सः कगचज० नोणः अंत्यव्यंज ए सूत्रोधी सिरो-विअणा रूप थाय. सं. मनोहर तेने चालता सूत्रे ओ नो अ थाय. पी नोणः क्लीबे सम् ए सूत्रोथी मणहर मणोहर ए वा रूप श्राय. सं. सरोरुह तेने चालता सूत्रे ओ नो अ थाय. पनी क्लीबे सम् ए सूत्रधी सररुहं सरोरुहं रूप सिद्ध थाय. ॥ १५६ ॥
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प्रथमः पादः ।
ऊत्सोवासे ॥ १५७ ॥
सोवासशब्दे त ऊ जवति ॥ सोवास । सूसासो ॥ १५७ ॥
मूलभाषांतर. सोच्छ्वास शब्दना ओ नों ऊ थाय. सं. सोच्छ्वास तेनुं. सृसासो रूप थाय ॥ १५७ ॥
१६१
॥ ढुंढिका ॥
ऊत् ११ सोवास ७१ सोच्वास अंत्यव्यंज० सलुक् सर्वत्रेति वलुक् अनेन सोसू शषोः सः श्रतः सेर्डोः सूसासो ॥ १५७ ॥
टीका भाषांतर. सोच्छ्वास शब्दना ओनो ऊ थाय. सं. सोच्छ्रास तेने अंत्यव्यं ० सर्वत्र चालता सूत्रे सोनो स् थाय. पी शषोः सः छतः सेर्डो: ए सूत्रोथी सृसासो रूप थाय ॥ १५७ ॥
गव्यन - प्रा अः ॥ १५८ ॥
श्रा इत्यादेशौ भवतः ॥ गर्नु | गया ।
गोशब्दे उतः
गाउँ । हरस्स एसा गाई ॥ १५८ ॥
मूल भाषांतर. गो शब्दना ओने स्थाने अउ छाने आअ एवा बे श्रादेश थाय. सं० गोकः तेनां गउओ गउआ गाओ एवां रूप याय. हरस्य एषा गौः तेनुं हरस्स एसा गाई एवं रूप थाय ॥ १५८ ॥
॥ ढुंढिका ॥
गो ७१ का ११ अ ११ गो अनेन गज स्वार्थे कः ११ यतः सेर्डोः । गर्न गो अनेन गो गज स्वार्थे कः स्वास्वादेर्डाः इति डाः प्रत्ययः श्रा डित्यं संत्यव्यं० सलुक् गजया । गो अनेन श्राश्र - तेयांत नित्यं स्त्रीशूद्रात् डीप्रत्ययः लुक् थालोपः ११ अंत्यव्यं० सलु गाई ॥ १५८ ॥
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टीका भाषांतर. गो शब्दना ओने अउ आअ एवा आदेश याय. सं. गो तेने चालता सूत्रे गउ थाय पबी स्वार्थे कः प्रत्यय यावे पनी अतः सेड: ए सूत्रथी गउओ रूप थाय. सं. गोशब्द तेने चालता सूत्रे गउ थाय पढी स्वार्थे क प्रत्यय आवे पी स्वास्वादेर्डाः ए सूत्रथी डाप्रत्यय यावे पक्षी डित्यं अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गउआ रूप थाय. सं. गो तेने चालता सूत्रे आअ थाय पी डी प्रत्यय यावे आनो लोप थाय. पी अंत्यव्यं० ए सूत्र पामी गाई रूप सिद्ध श्राय ॥ १५८ ॥
२१
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१६२
मागधी व्याकरणम्.
औत उत् ॥ १५॥ औकारस्यादेरोद नवति ॥ कौमुदी। कोमुई ॥ यौवनम् । जोवणं कौस्तुनः कोत्थुहो कौशाम्बी। कोसम्बी ॥ क्रौश्चः। कोश्चो॥ कौशिकः । कोसिः ॥ १५ ॥
मूल भाषांतर. शब्दना श्रादि औ नो ओ बाय. सं. कौमुदी तेनुं कोमुई पाय. सं. यौवनं तेनुं जोव्वणं थाय. सं. कौस्तुभः तेवु कोत्थुहो थाय. सं कौशाम्बी तेनुं कोसम्बी थाय.सं क्रौञ्चः तेनु कोञ्च थाय.सं. कौशिकः तेनुं कोसिओ थाय. १९ए
॥ ढुंढिका ॥ श्रौत् ६१ उत् ११ कौमुदी अनेन को को कगचेतिदलुक् ११ अंत्यव्यं० सबुक् । कोमुई। यौवन अनेन यो श्रादेर्यो जः ज सेवादौ हित्वं व नोणः क्लीबे सम् जोवणं कौस्तुल अनेन को को स्तस्यथोऽसमस्तसं स्तस्यनः श्रनादौहित्वं द्वितीय पूर्वथतखघथा न ह ११ अंतः से?ः कोत्थुहो । कौशाम्बी अनेन को को हखः संयोगे शा श शषोः सः ११ अंत्यव्यंग सबुक् कोसंबी। क्रौंच सर्वत्र रखुक् अनेन को को ११ अंत्यव्यंग अंतसेझैः कोञ्चो । को. शिक अनेन को को शषोः सः कगचजेति कबुक् ११ अतसेझैः कोसि ॥ १५ ॥ टीकाभाषांतर-शब्दना आदि औ नो ओ थाय. सं. कौमुदी तेने चालतासूत्रे को नो को थाय. कगचज अंत्यव्यंग ए सूत्रोथी कोमुइ रूप थाय. सं. यौवन तेने चालता सूत्रे यो नो यो थाय. आयोजः सेवादी नोणः क्लीबेसम् ए सूत्रोथी जोवणं रूप श्राय. सं. कौस्तुभ तेने चालता सूत्रे को नो को थाय. स्तस्यथोऽसमस्त अनादौ द्वितीय खघथ अतःसे?ः ए सूत्रोथी कोत्थुहो थाय. सं. कौशांबी तेने चालता सूत्रे को थाय. ह्रस्वःसंयोगे शषोः संः अंत्यव्य० ए सूत्रोथी कोसंबी रूप थाय, क्रौंच तेने सर्वत्र को नो को थाय. अंत्यव्यंग अतःसे? ए सूत्रे को थाय. सं. कौशिक तेने को श्राय. शषोःसं. कगचज अतःसे?ः ए सूत्रोथी को सिओ थायः ॥ १५ ॥
जत्सौन्दर्यादौ ॥१६०॥ सौंदर्यादिषु शब्देषु श्रौत उद् जवति ॥ सुन्देरं सुन्दरियं । मुजायणो । सुएको । सुशोधणी । कुवारि । सुगन्धत्तणं । पुलो
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प्रथमःपादः।
१६३ मी । सुवलि ॥ सौन्दर्य । मौञ्जायन। शौएफ । शौछोदनी । दौवारिक । सौगन्ध्य । पौलोमी। सौवर्णिकः ॥ १६० ॥ मूल भाषांतर. सौंदर्य विगेरे शब्दोना औनो उ थाय. सं. सौन्दर्य तेनुं सु. न्देरं थाय. सं मौञ्जायन तेनुं मुञ्जायणो थाय. सं. शौण्ड तेनुं सुण्डो थाय. सं० शौद्धोदनि तेनुं सुद्धोअणी थाय. सं. दौवारिक तेनुं वारिओ श्राय. सं० सौगन्ध्य तेनुं सुगन्धत्तणं थाय. सं. पौलोमी तेनुं पुलोमी थाय. सं. सौवर्णिकः तेनुं सुवणियो वाय. ॥ १६० ॥
॥ढुंढिका ॥ उत् ११ सौन्दर्य श्रादौ यस्य सः सौन्दर्यादिस्तस्मिन् ७१ सौन्दर्यअनेन सौ सु एतशय्यादौ दे ब्रह्मचर्यतूर्यसौंदर्य यस्य रः ११ क्लीबे. सम् मोनु० सुंदेरं । सौंदर्य थनेन सौ सु स्यानव्यचैत्यचौर्यसमेषुयात् यात् प्राग ३ कगचजेति यबुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु सुंदरिथ मौञ्जायन अनेन मौ मु नोणः ११ श्रतः सेझैः मुञ्जायणो। शौएडः अनेन शौ शु शषोः सःश्रतः सेझैः सुएको । शौछोदनिः अनेन शौ शु शषोः सः कगचजेतिदलुक् नोणः ११ अक्कीबे दीर्घःणी अंत्यव्यंग सलुक् सुकोणी । दौवारिक अनेन दौ ७ कगचजेतिकबुक् ११ श्रतः सेझैः कुवारि । सौगन्ध्य- अनेन सौ सु स्वस्योपलक्षणत्वात् त्वस्य डिमोत्तणो वा इति यस्यापि त्तणः ११ क्लीबेसम् मोनु सुगंधत्तणं पौलोमी अनेन पौ पु ११ अंत्यव्यंग सबुक पुलोमी। सौवर्णिक अनेन सौ सु सर्वत्ररबुक् कगचजेति कबुक् अतः से?ः सुवलि ॥ १६ ॥ टीका भाषांतर. सौंदर्य विगैरे शब्दोना औनो उ थाय. सं. सौन्दर्य-तेने चालता सूत्रथी सौनो सु थाय. एत्शय्यादौ ब्रह्मचर्यतूर्य क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी सुंदेरं रूप धाय. सं. सौन्दर्य तेने चालता सूत्रथी सौनो सु थाय. पनी स्याद् भव्यचैत्य० कगचज० क्लीबे स्वम् मोनु ए सूत्रोथी सुंदरिअं रूप थाय. सं. मौजायन तेने चालता सूत्रथी मानो मु थाय. नोणः अतः सेोंः ए सूत्रोथी मुशायणो रूप थाय. सं. शौणुः तेने चालता सूत्रे शानो शु थाय. पनी शषोः सः अतः सेझैः ए सूत्रोथी सुण्डो थाय. सं. शौद्धोदनिः तेने चालता सूत्रथी शौनो शु थाय. शषोः सः कगचज० नोण: अक्लीबे दीघ: अंत्यव्यं० ए सूत्रथी सुडोअणी थाय
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१६४
मागधी व्याकरणम्.
त्वप्रत्ययना
सं. दौवारिक तेने चालता सूत्रे दौनो दु श्राय. कगचज० अतः सेड ए सूत्रोथी दुवारिओ थाय. सं. सौगन्ध्य तेने चालता सूत्रे औनो उ थाय. उपलक्षणथी त्वस्य डिमोत्तणोवा ए सूत्रे तण एवो आदेश थाय. क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी सुगंधत्तणं एवं रूप थाय. सं. पौलोमी तेने चालता सूत्रे पानी पु थाय. अंत्यत्र्यं० सूत्रश्री पुलोमी रूप याय. सं. सौवर्णिक तेने चालता सूत्रथी सौनो सु थाय. पबी सर्वत्र रलुक् कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथी सुवणिओ रूप थाय ॥ १६० ॥ कौयेक वा ॥ १६१॥
कौयकशब्दे श्रौत उद् वा जवति ॥ कुछेयं । कोठेयं ॥ १६ ॥ मूल भाषांतर. कौक्षेयक शब्दना औनो विकल्पे उ थाय. सं. कौक्षेयक तेनां कुच्छेअयं कोच्छेअयं एवां रूप थाय. ॥। १६१ ॥
॥ ढुंढिका ॥
कौदेयक ७१ वा ११ कौक्षेयक - नेन वा कौ कु द्वितीये श्रौतउत् कौ को बोsयादो कः वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व च कगचजेति कयोर्लुक् अवर्णीयः श्रुति क्लीबे सम् मोनु० कुछेयं कोछेयं ॥ १६९ ॥
टीका भाषांतर. कौक्षेयक शब्दना और नो विकटपे उ थाय. सं. कौक्षेयक तेने चालता सूत्रे कौनो कु श्राय. बीजे पछे औतओत् छोऽक्ष्यादौ अनादौ द्वित्वं द्वितीय० कगचज अवर्णीयः श्रुति क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कुच्छेअयं कोच्छेअयं एवां रूप थाय ॥ १६९ ॥
प्रः पौरादौ च ॥ १६२ ॥
कौक्षेय के पौरादिषु च श्रौत जरादेशो भवति ॥ कउछेयं ॥ पौरः । पउरो । पचर -जणो ॥ कौरवः । कजरवो ॥ कौशलम् । कउसलं । पौरुषम् | परिसं ॥ सौधम् । सउहं ॥ गौडः । गनडो । मौलिः । मजली ॥ मौनम् मणं ॥ सौराः । सउरा ॥ कौ
लाः । कउला ॥ १६२ ॥
मूल भाषांतर. कौयक छाने पौर विगेरे शब्दोना औने ठेकाणे अउ आदेश थाय. सं. कौक्षेयकं तेनुं कउच्छेयं याय. सं. पौरः तेनुं पउरो थाय. सं. पौर-जन तेनुं पउर- जो थाय. सं. कौरवः तेनुं कउरवो थाय. सं. कौशलं तेनुं कउसलं थाय. सं. पौरुषं तेनुं पउरिसं थाय. सं. सौधं तेनुं सउहं थाय. सं. गौडः तेनुं
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प्रथमः पादः ।
१६५
गउडो थाय. सं. मौलिः तेनुं मउली थाय. सं. मौनम् तेनुं मउणं थाय. सं. सौराः तेनुं सउरा थाय. सं. कौलाः तेनुं कउला थाय. ।। १६२ ॥
॥ ढुंढिका ॥
अ ११ पौरादि ७१ च ११ कौयक अनेन कौस्थाने क श्र य पूर्ववत कछेयं । पौर-अनेन पौस्थाने पच । ११ श्रतः सेडोंः परो । पौरजन अनेन पौस्थाने पउ नोएः अतः सेर्डोः पजरजणो । कौरव ने कौस्थाने कउ ११ अतः सेर्डोः कजरवो कौशल श्रनेन कौ क शषोः सः श स ११ क्वीबे सम् मोनु० कसलं । पौरुष - नेन पर्छ पुरुषेरो रुरि शषोः सः पस ११ क्लीबे सम् मोनु० परिसं । सौध । श्रनेन स खघथ० ह ११ क्लीबे सम् मोनु० सउहं गौड - नेन गट ११ श्रतः सेर्डोः गउडो । मौलि अनेन मठ ११ क्वीबे सौदीर्घः अंत्यव्यंजन० मजली मौन अनेन मउ नोएः ११ क्लीबे सम् मो० मणं । सौर- छानेन स जस्ास्ङसित्तो दीर्घः रा जस्शसोर्लुक् सचरा । कौल - अनेन कन १३ जस्शस्ङसित्तो दीर्घः जा जस्शसोर्लुक् कला ॥ १६२ ॥
1
1
टीका भाषांतर. कौक्षेयक ने पौरादि शब्दोना औनो अउ आदेश थाय. सं. कौक्षेयक तेने चालतासूत्रे कौ नो कऊ थाय. बाकी पूर्ववत् थर कउच्छेअयं रूप सिद्ध थाय. सं. पौर- तेने या चालता सूत्रे पौ नो पर थाय. तेने अतः सेडः सूत्रथी पउरो रूप थाय. सं. पौरजन तेने चालतासूत्रे पौ स्थाने पउ थाय नोणः अतःसेडः ए सूत्रोथी पउरजणो रूप सिद्ध थाय. सं. कौरव तेने चालता सूत्रे कौनो क थाय. तेने अतः सेर्डो: सूत्रथी कउरवो थाय. सं. कौशल तेने चालतासूत्रे कोनो काय. शषोः सः क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी कउसलं रूप याय. सं. पौरुष तेने चालता सूत्रे पर थाय पुरुषेरोः शषोः सः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रेथी पउरिसं एवं रूप थाय. सं. सौध तेने चालता सूत्रे सउ थाय. पनी खधथ० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सउहं रूप श्राय. सं. गौड तेने चालता सूत्रे गउ थाय छातः सेर्डोः सूत्रथी गउडो रूप श्राय. सं. मौलि तेने चालता सूत्रे मउ थाय. क्लीबे सम् दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मउली रूप थाय. सं. मौन तेने चालता सूत्रे मउ थाय. नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मउणं रूप याय. सं. सौर तेने चालता सूत्रे सउ थाय. तेने जस्ास्ङसित्तो. जस्शसोर्लुक् ए सूत्रोथी सउरा रूप थाय.
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१६६
मागधी व्याकरणम्. सं. कौल तेने चालता सूत्रथी कउ श्राय. जसूशसूङसित्तो दीर्घः जशशसोलुंक ए सूत्रोथी कउला रूप थाय. ॥ १६ ॥
आच गौरवे ॥ १६३॥ गौरवशब्दे औत श्रात्वं अतश्च जवति ॥ गारवं । गउरवं ॥
मूल भाषांतर. गौरव शब्दना औनो आ अने अउ आदेश पाय. सं. गौरव तेनां गारवं गउरवं एवां रूप थाय. ॥ १६३ ॥
॥ढुंढिका ॥ आत् ११ च ११ गौरव ३१ गौरव अनेन श्रागा क्लीबे सम् मोनु गारवं द्वितीये चकारात् गौ गज शेषं पूर्ववत् गजरवं ॥ १६३ ॥ टीका भाषांतर. गौरव शब्दना औने स्थाने आ अने अउ आदेश थाय. सं. गौरव तेने चालता सूत्रे आ थाय पी क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी गारवं रूप थाय बीजे चनुं ग्रहण के तेथी सं. गौने स्थाने गउ आदेश श्राय बाकी पूर्ववत् थप गउरवं रूप आय. ॥ १६३ ॥
नाव्यावः ॥१६४॥ नौशब्दे औत आवादेशो जवति ॥ नावा ॥ १६४ ॥ मूल भाषांतर. नौ शब्दना औने स्थाने आव आदेश श्राय. सं, नौ तेनुं नावा रूप थाय. ॥ १६४ ॥
॥ टुंढिका ॥ नौ ७१ श्राव ११ नौ अनेन श्राव थात् थाप ११ अंत्यव्यंग सलुक् नावा ॥ १६४ ॥ टीका भाषांतर. नौ शब्दना औनो आव थाय. सं. नौ तेने चालतासूत्रे आवू थाय तेने आप आवे पनी अंत्यव्यंग ए सूत्रश्री नावा रूप सिद्ध थाय. ॥ १६ ॥
एत्त्रयोदशादौ स्वरस्य सस्वरव्यंजनेन ॥१६५॥ त्रयोदश इत्येवंप्रकारेषु संख्याशब्देषु श्रादेः खरस्य परेण सखरे
ण व्यंजनेन सह एद् नवति ॥ तेरह । तेवीसा । तेतीसा ॥ १६५ ॥ __ मूल भाषांतर. त्रयोदश शब्दना जेवा संख्यावाची शब्दना आदि स्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजन साथे ए थाय. सं. त्रयोदशः तेनुं तेरह थाय. सं. त्रयो. विंशति तेनुं तेवीसा श्राय. सं. त्रयस्त्रिंशत् तेनुं तेतीसा श्राय. ॥ १६५ ॥
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प्रथमः पादः ।
॥ ढुंढिका ॥
एत् ११ त्रयोदश श्रादौ यस्य स त्रयोदशादिः तस्मिन् ७१ स्वर ६१ सखर व्यंजन ३१ त्रयोदशः अनेन त्रयोस्थाने ते संख्यागज देरः दस्य रः । दशपाषाणेहः ह तेरह । त्रयोविंशतिः अनेन त्रयस्थाने ते ईजिव्हा सिंह० वि वी तिलोपश्च विंशत्यादेर्लुक् मलोपः शषोः सः श स १३ जस्शस्ङसित्तोद्वामिदीर्घः स सा जस्सोर्लुक् तेवीसा । त्रयस्त्रिंशत् अनेन त्रयस्थाने ते सर्वत्र वलुक् ईजिव्हा सिंह०ती तैलादौ वा द्वित्वं ती शषोः सः श्रत्यव्यं० तूलुक् १३ जस्ास्ङ सि० दीर्घः जस्शसोर्लुक् तेतीसा ॥ १६५ ॥ टीका भाषांतर. त्रयोदश जेवा संख्याशब्दना श्रादिस्वरनो बीजा स्वरसहित ए थाय. सं. त्रयोदश तेने चालता सूत्रथी त्रयोने स्थाने ते थाय पढी संख्यागद्गदेर: दशपाशाणेहः ए सूत्रोथी तेरह एवं रूप सिद्ध थाय. सं. त्रयोविंशतिः तेने चालता सूत्रे त्रयो स्थाने ते थाय. पी ईजिव्हासिंह विनो वी थाय. तिनो लोप थाय. विंशत्यादेर्लुक् शषोः सः जस्रशस्ङसित्तो. जस्शसोलुक् ए सूत्रोश्री तेवीस रूप सिद्ध थाय. सं. त्रयस्त्रिंशत् तेने चालता सूत्रथी ते थाय. सर्वत्र रलुक् जिहासिंह तैलादौ वा शषोः सः अंत्यव्यं० जस्शस्ङसि० जस्शसोलुक् ए सूत्रोथ तेतीसा रूप श्राय ॥ १६५ ॥
स्थविर - विच किलायस्कारे ॥ १६६ ॥
१६७
एषु आदेः स्वरस्य परेण सस्वरव्यञ्जनेन सह एव जवति ॥ थेरो । वेवं । मुद्ध - विश्व - पसूणपुजा इत्यपि दृश्यते । एक्कारो ॥ १६६॥ मूल भाषांतर. स्थावर विचकिल ने अयस्कार ए शब्दोना आदिस्वरनो स्वरसहित व्यंजन साथे ए थाय. सं. स्थविर तेनुं थेरो रूप थाय. सं. विवकिल तेनुं वेइल्लं रूप थाय. कोइ ठेकाणे सं. मूर्डविचकिलप्रसूनपुञ्जा तेनुं मुद्ध - विअइलसूणपुञ्जा एवं पण थाय बे . सं. अयस्कार तेनुं एक्कारो रूप थाय. ॥ १६६ ॥ ॥ ढुंढिका ॥
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स्थविरश्च विच किल्लं च अयस्कारश्च स्थविरविच किलायस्कारं तस्मिन् ७१ स्थविर अनेन स्थविस्थाने स्थो कगटडेति सलुक् ११ अतः सेर्डोः थेरो । विच किल अनेन विच स्थाने वे कगचजेति कलुक् तैलादौ वा द्वित्वं ११क्कीबे सम् मोनु० वेल्लं । श्रयस्कारः अनेन
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मागधी व्याकरणम् श्रयःस्थाने ए। कगटडेतिसलुक् अनादौ हित्वं ११ अतः से
?ः एक्कारो ॥ १६६ ॥ टीका भाषांतर. स्थविर विचकिल अयस्कार ए शब्दोना आदिस्वरनो स्वरसहितव्यंजन साथे ए थाय. स्थविर- तेने चालता सूत्रे स्थविने स्थो आदेश पाय. कगटड अतः सेोंः ए सूत्रोथी थेरो रूप थाय. सं. विचकिल तेने चालतासूत्रे विचने स्थाने वे थाय कगचज तैलादौ वा क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वेइलं रूप प्रायः सं. अयस्कारः तेने चालतासूत्रे अयाने ठेकाणे ए थाय. कगटड० अनादौ द्वित्वं अतः सेोंः ए सूत्रोथी एक्कारो रूप धाय.॥ १६६॥
वा कदले॥१६॥ कदलशब्दे आदेः स्वरस्य परेण सस्वरव्यंजनेन सह एद् वा नवति ॥ केलं कयलं । केली कयली ॥ १६७ ॥
मूल भाषांतर. सं. कदल शब्दना आदि स्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजनसाथे विकटपे ए थाय. सं. कदलं तेनु केलं तथा कयलं रूप थाय. सं. कदली तेना केली कयली रूप थाय. ॥ १६७ ॥
॥ ढुंढिका ॥ वा ११ कदल ७१ कदल- अनेन कद स्थाने एकारः के ११ क्लीबे स्म् मोनु केलं द्वितीये क्लीबे सम् मोनु कगचजेति दलुक् अवणों कयलं । कदली- अनेन कदस्थाने के द्वितीये कगचजेति दलुक् ११ अंत्यव्यंग सबुक केली कयली ॥ १६७ ॥ टीका भाषांतर. कदल शब्दना आदि स्वरनो आगल रहेला स्वरसहित व्यंजन साथे विकल्पे ए थाय. सं. कदल तेने चालतासूत्रथी कदने स्थाने के थाय. पनी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी केलं रूप थाय. बीजे पदे क्लीबे सम् मोनु० कगचज अवर्णों ए सूत्रोथी कयलं रूप आय. सं. कदली तेने कदने स्थाने के पाय बीजे पदे कगचज० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी केली अने पदे कयली रूप थाय. ॥ १६७ ॥
वेतः कर्णिकारे ॥१६॥ कर्णिकारे इतः सस्वरव्यंजनेन सह एद् वा नवति ॥ करणेरो कमिश्रारो ॥ १६७ ॥ मूल भाषांतर. कर्णिकार शब्दना इनो स्वरसहित व्यंजन साथे विकटपे ए श्राय. सं. कर्णिकार तेना कपणेरो कण्णिआरो रूप थाय. ॥ १६ ॥
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प्रथमःपादः।
१६ए ॥ ढुंढिका ॥ वा ११ श्त् ११ कर्णिकार ७१ कर्णिकार अनेन कर्णिकास्थाने णे सर्वत्र रखुक् ११ श्रतः सेोः करणेरो कर्णिकारः सर्वत्र रबुक् कगचजेति क्लुक् ११ श्रतः सेझैः कमियारो ॥ १६७ ॥ टीका भाषांतर. कर्णिकार शब्दना इनो स्वरसहित व्यंजनसाथे विकटपे ए थाय. सं. कर्णिकार- चालतासूत्रे कर्णिकाने स्थाने पणे थाय. तेने सर्वत्र रलुक् अतःसेडों: ए सूत्रोथी कण्णेरो रूप थाय. सं. कर्णिकार तेने सर्वत्र रलुक् कगचज अतःसेझैः ए सूत्रोथी कपिणआरो रूप थाय. ॥ १६ ॥
अयौ वैत् ॥१६॥ श्रयिशब्दे श्रादेः स्वरस्य परेण सखरव्यंजनेन सह द्वा न. वति ॥ ऐ बीहेमि । अझ उम्मत्तिए । वचनादैकारस्यापि प्राकृते प्रयोगः ॥१६॥ मूल भाषांतर. अयि शब्दना श्रादिस्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजन साथे विकटपे ऐ थाय. सं. अयि बिभेमि तेनुं औ बीहेमि ए, थाय. सं. अयि उन्मत्तके तेनुं अइ उम्मत्तिए एवं रूप वाय. एवं वचन ने तेथी प्राकृतमां ऐकारनो पण प्रयोग थाय बे. १६ए
॥ढुंढिका ॥ अयि ७१ वा ११ ऐत् ११ श्रयि अनेन श्रयिस्थाने ऐ निजी जये जी नियो नावीहौ इति जीस्थाने वीह मिव तृतीय स्यमि इति मिव् स्थाने मि व्यंजनाददंतेऽत् वर्तमाना पंचमी शतृषु वा इति हे ऐ बीहेमि । अयि उन्मत्तके कगचजेति यबुक् अंत्यव्यंजनस्य स्बुक् अनादौ हित्वं कगचजेति कलुक् उम्मत्ति ए ॥ १६ ॥ टीका भाषांतर. अयि शब्दना श्रादिस्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजन साथे विकटपे ऐ वाय. सं. अयि तेने चालता सूत्रे अयिने स्थाने जै थाय. भी ए धातु लयमा प्रवर्ते तेने भियो भाविही ए सूत्रथी भीने स्थाने वीह श्राय. पनी मिप्रत्यय आवे. व्यंजना ददंतेऽत् वर्तमाना ए सूत्रोथी ऐ बीहेमि ए रूप थयु. सं. अयि उन्मत्तके तेने कगचज ए सूत्रश्री उम्मत्तिऐ रूप थाय. ॥ १६ ॥ .:
उत्पूतर-बदर-नवमालिका-नवफलिका-पूगफले ॥१०॥ पूतरादिषु श्रादेः खरस्य परेण सखरव्यंजनेन सह चंद्र नवति॥पोरो। बोरं । बोरी। नोमालिया।नोह लिया। पोप्फलं पोप्फली ॥१७॥
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मागधी व्याकरणम् मूल भाषांतर. पूतर बदर नवमालिका नवफलिका पूगफल विगेरे शब्दोना श्रादिस्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजन साथे ओ थाय. सं. पूतर तेनुं पोरो थाय. सं. बदरं तेनुं बोरं तथा बोरी थाय. सं. नवमालिका तेनुं नोमालिआ थाय. सं. नवफलिका तेनुं नोहलिआ थाय. सं. पूगफलं तेनुं पोप्फलं थाय. सं. पूगफली तेनुं पोप्फली श्रायः ॥ १० ॥
॥ढुंढिका ॥ उत् ११ पूतरश्च बदरं च नवमालिका च नवफलिका च पूगफलं च पूतरबदरनवमालिकानवफलिकापूगफलं तस्मिन् ७१ पूतर-- अनेन पूतस्य पो ११ श्रतः सेोः पोरो । बदर थनेन बदस्य बो ११ क्लीबे सम् मोनु० बोरं बदरी अनेन बदस्य बो ११ अंत्यव्यंजनस्य सबुक् बोरी नवमालिका अनेन नवस्य नो कगचजेति क्लुक् ११ अंत्यव्यं० नोमालिया । नवफलिका थनेन नवस्य नो फो नहीं फ द कगचजेति कबुक् नो हलिया पूगफल पूगस्य फलं पूगफलं अनेन पूगस्य पो सेवादौ वा हित्वं ११ क्लीबे सम् हितीये अंत्यव्यंजनस्य स्खुक् पोप्रफलं एवं पोप्रफली ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. पूतर बदर नवमालिका नवफलिका पूगफल ए शब्दोना श्रादिस्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजनसाथे ओ श्राय. सं. पूतर तेने चालता सूत्रधी पूतनो पो थाय. अतःसे? ए सूत्रश्री पोरो श्राय. सं. बदर तेने चालता सूत्रथी बदनो बो थाय. क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी बोरं थाय. सं. बदरी तेने चालता सूत्रधी बो थाय. अंत्यव्यंज सूत्रथी बोरी थाय. सं. नवमालिका तेने चालता सूत्रथी नवनो नो थाय. फो महौ कगचज ए सूत्रोथी नोहलिआ रूप थाय. सं. पूगफलं (सो. पारीनुं फल ) तेने चालता सूत्रथी पूगनो पो थाय. सेवादौवा क्लीबे सम् बीजे पदे अंत्यव्यंज० ए सूत्रोधी पोप फलं थाय एवी रीते सं. पूगफली नुं पोपफली थाय.१७० - न वा मयूख-लवण-चतुर्गुण-चतुर्थ-चतुर्दश-चतुर्वार
सुकुमार-कुतूहलोदूखलोलूखले ॥१७॥ मयूखादिषु थादेः खरस्य परेण सस्वव्यंजनेन सह उद् वा ज. वति ॥ मोहो मऊहो । लोणं । श्अ लवणुग्गमा । चोग्गुणो चनग्गुणो । चोत्यो चउत्थो । चोत्थी चउत्थी । चोदह चउदह । चोदसी चउदसी । चोबारो चज्वारो । सोमालो सुकुमालो । कोहलं
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प्रथमःपादः। कोउहवं । तह मन्ने कोहलीए । उहलो उऊहलो । उक्खलं । उलूहलं ॥ मोरो मकरोति तु मोरमयूरशब्दान्यां सिझम् ॥१७॥ मूल भाषांतर. मयूख लवण चतुर्गुण चतुर्थ चतुर्दश चतुर्वार सुकुमार कतूहल उदूखल उलूखल- ए शब्दोना आदिस्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजन साथे विकटपे ओ थाय. सं. मयूख तेनां मोहो मउहो रूप थाय. सं. लवणं तेनुं लोणं रूप थाय. सं. इति लवणोद्गमः तेनुं इअ लवणुग्गमा एवं रूप थाय. सं. चतुगुण तेना चोग्गुणो चउग्गुणो रूप थाय. सं. चतुर्थ- तेनां चोत्थो चउत्थो रूप थाय. सं. च. तुर्थी तेनां चोत्थी चउत्थी रूप थाय. सं.चतुर्दश तेनां चोदह चउद्दह रूप थाय. सं. चतुर्दशी तेनां चोद्दशी चउद्दशी रूप थाय. सं. चतुर्वार तेनां चोव्वारो चउव्वारो रूप थाय. सं. सुकुमार तेनां सोमालो सुकुमालो रूप थाय. सं. कुतूहलं तेनां कोहलं कोउहलं रूप थाय.सं. तथा मन्ये कुतूहलेन तेनुं तह मन्ने कोहलिए एवं रूप थाय. सं. उदूखल तेनां ओहलो उऊहलो रूप थाय.सं. उलूखल तेना ओक्खलं उलूहलं रूप थाय. मोर अने मयूर शब्दनां मोरोमऊरो एवां रूप सिद्ध थाय.. १७१
॥टुंढिका॥ न ११ वा ११ मयूखश्च लवणं च चतुर्गुणश्च चतुर्दश च चतुर्वारश्च सुकुमारश्च कतूलं च उलूखलश्च उलूखलं च मयूख-लवणचतुर्गुण चतुर्थचतुर्दशचतुर्वारसुकुमारकतूहलोखलोलूखलं तस्मिन् ३१ मयूख- अनेन मयूस्थाने मोखघथ० ११ अतः सेोः मोहो। पदे कगचजेति यबुक् शेषं पूर्ववत् मऊहो । लवण थनेन लवस्थाने लो ११ क्लीबे सम् मोनु लोणं । इति लवणोजमः इतौ तौ वाक्याथेति अक्ष इस्वः संयोगे णो णु कगटमेति दयुक् अनादौ द्वित्वं श्यलवणुग्गम । चतुर्गुण-अनेन चो सर्वत्र रतुक अनादौ द्वित्वं ११ चोग्गुणो द्वितीये कगचजेति त्लुक शेषं तत् चजग्गुणो चतुर्थ अनेन चतुःस्थाने चो सर्वत्र रलुक् अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्वथस्य तः शक्कीबे सौ श्रतःसे?ः चोत्थो। द्वितीये कगचजेति तलुक् शेषं तहत् चउत्थो । चतुर्थी अनेन चतुःस्थाने चो सर्वत्रेति रलुक् अनादौ हित्वं हितीय पूर्वथस्य तः अक्लीबे सौ दीर्घः ११ अंत्यव्यंज सलुक् चोत्थी चउत्थी। चतुर्दश- श्र
द्वितीय
क शेषं तहत्
त्वं हित
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मागधी व्याकरणम्.
नेन चतुःस्थाने चो सर्वत्रेति रलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ द दशपाषाणे दः श ह चोदह । द्वितीये कगचजेति तलुक् शेषं पूर्ववत् चउद्दह । चतुर्दशी अनेन चतुःस्थाने चो सर्वत्रेति रलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ ६ शषोः सः अक्कीबे सौ दीर्घः छत्यव्यं० सलुकू चोदसी द्वितीये कगचजेति तलुक् शेषं तद्वत् चउदसी । चतुर्वार न चो सर्वत्र लुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ यतः सेड : चोवारो । द्वितीये कगचजेति तलुक् तद्वत् चजवारो । सुकुमार अनेन सुकुस्थाने सो दरिद्रादौ लः रस्य लः । ११ अतः सेर्डोः सोमालो । द्वितीये क गचजेति क्लुक् तद्वत् सुकुमालो | कुतूहल अनेन कुत्स्थाने को ११ क्वीबे सम कोहलं द्वितीये कुतूहल कुतूहलेवा ह्रस्वश्च इति कौ कोतू कगचजेति त्लुक् सेवादौ द्वित्वं ल ११ क्लीबे स्म् को दल्लं । तथा । खघथ० थहाव्ययो भवति उत्खातावदात इति श्रा श्र तह | अतोमनयां यलुक् श्रनादौ द्वित्वं न्न मन्ने कोहल पूर्ववत् कौतूहलमस्यास्ति यतो नेकस्वरस्य इति इक् प्रत्ययः श्रात् श्राप आमंत्रणे वा ए एकार: कोहलिए । उदूखल अनेन उदूस्थाने उ॑ खघथ० ख ढ् ११ अतः सेर्डोः उहलो । द्वितीये उदूखल कगचजेति दलुक् शेषं तद्वत् ऊहलो । उलूखल अनेन उलूस्थाने d सेवादौ वा द्वित्वं पूर्वखस्य कः क्खलं पदे उलूखल खघथ० ११ क्लीबे सम् मोनु० उलूहलं । मोरः श्रतः सेर्डोः मोरो । मयूर - कगजजेति लुक् ११ छातः सेर्डोः मऊरो ॥ १११ ॥
टीका भाषांतर. मयूख लवण चतुर्गुण चतुर्थ चतुर्दश चतुर्वार सुकुमार कुतूहल उदूखल उलूखल ए शब्दोनो बीजा स्वरसहित व्यंजनसाथे विकल्पे ओ याय. सं. मयूख तेने चालता सूत्रथी मयूने स्थाने मो थाय पबी खघथ० अतः सेडः ए सूत्रोथी मोहो रूप थाय. बीजे पदे कगचज ने बाकी पूर्ववत करी मऊहो रूप याय. सं. लवण तेने चालता सूत्रे लवने स्थाने लो थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी लोणं रूप था. सं. इति लवणोद्गमः तेने इतौ तौ वाक्यार्थे ह्रस्वः संयोगे कगटड
नादौ विं ए सूत्रोथी इअ लवणुग्गम एवं रूप थाय. सं चतुर्गुण- तेने चालता सूत्री चो थाय. पी सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोथी चोग्गुणो रूप श्राय. बीजे पछे कगचज बाकी पूर्ववत् थइ चउग्गुणो रूप थाय. सं. चतुर्थ तेने चालता सूत्रे
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प्रथमः पादः ।
१७३
चतुःने स्थाने चो थाय. सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीय अक्लीबे सौ० अतः सेर्डीः ए सूत्रोश्री चोत्थो रूप याय. बीजे पदे कगचज बाकी पूर्ववत् श्रइ चउत्थो रूप याय. सं. चतुर्थी तेने चालता सूत्रे चतुःस्थाने चो थाय. सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी चोत्थी चउत्थी रूप याय. सं. चतुर्दश- तेने चालता सूत्रे च श्राय. सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं दश पाषाहः ए सूत्रोथी चोहह रूप थाय. बीजे पछे कगचज बाकी पूर्ववत् थइ चउद्दह रूप थाय. सं. चतुर्दशी तेने चालता सूत्रथी चो थाय. सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं शषोः सः अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी चोदसी रूप थाय. बीजे पढ़ें कगचज० बाकी पूर्ववत् य चउद्दसी रूप आय. सं. चतुर्वार तेने चालता सूत्रथी वो थाय. सर्वत्र रलुक् अनादी द्वित्वं अतः सेड: ए सूत्रोथी चोव्वारो रूप याय. बीछे कजचज बाकी पूर्ववत् चउव्वारो थाय. सं. सुकुमार तेने चालता सूत्रे सो थाय. पी हरिडादौलः अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी सोमालो रूप थाय. बीजे पछे कगचज बाकी पूर्ववत् थ सुकुमालो रूप याय. सं. कुतूहल तेने चालता सूत्रे कुतू स्थाने को याय क्लीबे सम् ए सूत्रथी कोहलं रूप याय. बीजे पछे सं. कुतूहल तेने कतूहले वा ह्रस्वश्च कगचज सेवादौ द्वित्वं क्लीबे सम् ए सूत्रोथी कोउहलं रूप थाय. सं. तथा तेने खघथ० उत्खातावदात ए सूत्रोथी तह रूप याय. सं. मन्ये तेने अतो मनयां अनादी द्वित्वं ए सूत्रथी मन्ने रूप थाय. कोहल शब्द पूर्ववत् सिद्ध थाय. कुतूहल वे जेने ते अर्थमां अतो अनेक खरस्य आत् आप आ मंत्रणेवा एकारः ए सूत्रोथी कोहलिओ एवं रूप थाय. सं. उदूखल तेने चालता सूत्रे उदूने स्थाने ओ थाय. खघथ अतः सेडः ए सूत्रथी ओहलो रूप थाय. बीजे पछे उदूखल ने कगचज बाकी पूर्ववत् थइ उऊहलो रूप थाय. सं. उलूखल तेने चालता सू
थी उलू स्थाने ओ थाय. सेवादौ वाद्वित्वं पूर्वखस्यकः ए सूत्रोथी ओक्खलं रूप याय. पीछे उलूखल तेने खघथ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री उल्लूहलं रूप थाय. सं. मोरः तेने अतः सेर्डोः ए सूत्रश्री मोरो रूप याय. सं. मयूर तेने कगचज अतः सेड : ए सूत्रोथी मऊरो रूप थाय. ॥ १७१ ॥
वापोते ॥ १७१ ॥
वायोरुपसर्गयोरुत इति विकल्पार्थ निपाते च श्रादेः स्वरस्य परेण सखरव्यंजनेन सह छेद् वा जवति ॥ श्रव । श्रइ । वयर | drासो | अवयासो || अप । उसर अवसर । सारियं । श्रवसारि ॥ उत । ठेवणं । उठावणं । उघणो । उ घणो ऋचिन्नजवति । अवगयं । अवसहो । उरवी ॥ १७२ ॥
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१७४
मागधी व्याकरणम्. ... मूल भाषांतर. अव अने अप उपसर्गना तेमज विकटप अर्थना निपात अर्थवाला उत श्रव्ययना आदि स्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजननी साथे विकटपे ओ थाय. सं. अव उपसर्गना उदा- सं. अवतरति तेनां ओअरइ अवयरइ एवां रूप थाय. सं. अवकाश तेना ओआसो अवयासो एवां रूप थाय. सं. अप उपसर्गना उदा- सं. अपसरति तेनां ओसरइ अवसरइ रूप थाय. सं. अपसारित तेनां ओसारिअं अवसारिअं एवा रूप थाय- उतना उदा-सं. उपवनं तेनां ओवणं उअवणं रूप थाय. सं. उतघनः तेनां ओघणो उअघणो एवां रूप थाय. कोइ ठेकाणे थाय पण नहीं-जेम सं. अवगतं तेनुं अवगयं थाय. सं. अपशब्दः तेनुं अवसद्दो रूप थाय. सं. उतरविः तेनुं उअरवी एवं रूप श्रायः ॥ १७२॥
॥ ढुंढिका ॥ वापोत अव अप उत ७१ अवतरति अनेन अवस्य कगचजे ति तबुक् त्यादीनां ति उपर। पदे अवयर । सं- अवकाशः अनेन अवस्य उकगचजेतिकबुक् शषोः सः ११ श्रतःसे?ः उथासो । पदे कगचजेति कलुक् अवर्णो अवयासो। अपसरति अनेन अपस्थाने उ त्यादीनां ति। उसर। पके पोवः अवसर। अपसारितः अनेन अपस्य उ कगचजेति तबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु उसारियं । पदे पोवः शेषं तहत् श्रवसारिशं उपवनअनेन उपस्य 5 नोणः क्लीबे स्म् मोनु उवणं । पदे कगचजेतिप्रबुक् उथवणं । उतघनः अनेन उतस्य नोणः ११ अतः सेोः ज-घणो पदे कगचजेति उअघणो । कचिन्न नवति अवगतः कगचजेतित बुक् श्रवर्णो ११ क्लीबे सम् मोनुण अवगयं । अपशब्दः पोवः शषोःसः सर्वत्ररलुक् अनादौ हित्वं १९अतःसे?ः श्रवसदो । उतरविः कगचजेतितबुक ११ अक्लीवे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन सबुक् उथरवी ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. अव अने अप उपसर्ग तेम विकल्पार्थनिपात उत तेना थादिस्वरनो पर श्रावेला स्वरसहित व्यंजन साथे विकटपे ओ थाय. सं. अवतरति- तेने चालता सूत्रे अवनो ओ थाय. कगचज त्यादीनां ए सूत्रोथी ओअरइ रूप थाय. बीजे पदे अवयरइ रूप थाय. सं. अवकाश तेने चालता सूत्रे अव नो ओ थाय. पनी कगचज शषोःसः अतःसेझैः ए सूत्रोथी ओआसो रूप थाय. पके कगचज अवर्णो ए सूत्रोथी अवयासो रूप श्राय. सं. अपसरति तेने चालतासूत्रे अपने
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प्रथमःपादः।
१७५ स्थाने ओ पनी त्यादीनां ए सूत्रथी ओसरइ रूप थाय. बीजे पदे पोवः सूत्रथी अवसरइ रूप थाय. सं. अपसारितः तेने चालतासूत्रे अपनो ओ थाय. पळी कगचज क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी ओसारिअं रूप थाय. बीजे परे पोवः बाकी पूर्ववत् सिद्ध थइ अवसारिअं रूप थाय. सं. उपवन तेने चालता सूत्रे ओ श्राय. पली नोणः क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी ओवणं रूप श्राय. बीजे पदे कगचज ए सूत्रथी उअवणं रूप थाय. सं. उतघनः तेने चालता सूत्रथी ओ थाय. नोणः अतः सेडोंः ए सूत्रोथी ओ-घणो रूप थाय. पदे कगचज ए सूत्रे उअघणो रूप थाय. कोइ ठेकाणे न पण थाय. सं. अवगतः तेने कगचज अवर्णीय क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी अवगयं रूप थाय. सं. अपशब्दः तेने पोवः शषोःसः सर्वत्ररलुक अनादौद्वित्वं अतासेडोंः ए सूत्रोथी अवसद्दो रूप थाय. सं. उतरविः तेने कगचज अक्लीबे सौ० अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी उअरवी रूप सिद्ध थाय. ॥ १७॥
ऊच्योपे ॥१३॥ उपशब्दे श्रादेः खरस्य परेण खरव्यंजनेन सह ऊत् उच्चादेशौ वा नवतः ॥ ऊहसिधे उहसिथं उवह सिर्थ । ऊज्जा उज्जा उवऽबा । ऊश्रासो उथासो उववासो ॥ १७३ ॥ मूल भाषांतर. उप शब्दना आदिस्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजननी साणे अ अने ओ एवा आदेश विकटपे थाय. सं. उपहसितं तेनां ऊहसिअं ओहसि उवहसिअं एवां रूप थाय. सं. उपाध्याय तेनां उज्झाओ ओझाओ उवज्झाओ रूप थाय. सं. उपवासः तेनां ऊआसो ओआसो उववासो एवां रूप थाय. ॥१७३॥
॥ढुंढिका ॥ ऊत् ११ च ११ उप ७१ उपहसित- अनेन उपस्य ऊ कगचजेति तबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु उहसिकं । द्वितीये अनेन उपस्य शेषं तत् उहसिकं । तृतीये पोवः कगचजेति तबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु उवह सिकं । उपाध्याय अनेन प्रथमे उपस्य ऊ हितीये उपस्य तृतीये पोवः ह्रस्वः संयोगे इस्वः साध्वसह्यसह्यांजः ध्य ऊ अनादौ हित्वं हितीये तु पूर्व जस्य जः कगचजेति यलुक् अतः सेडोंः जका। उज्जाउँ । थवज्का उपवासअनेन अनेन उपस्य ऊ कगचजेति वलुक् श्रतः सेमों में श्रासो पदे उपस्य : शेषं तत् जयासो। तृतीये उपवासः पोवः ११ अतः सेडोंः उवधासो ॥ १७३ ।।
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मागधी व्याकरणम्. __टीका भाषांतर. उप शब्दना आदिस्वरनो बीजा स्वरसहित व्यंजननी साऊ अने ओ आदेश विकटपे थाय. सं. उपहसित तेने चालता सूत्रे उपनो ऊ थाय. पनी कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी हसिअं थाय. बीजे पदे चालता सूत्रे उपनो
ओ थाय बाकी पूर्ववत् थ ओहसि रूप थाय. त्रीजे पक्ष पोवः कगचज क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी उवहसिअं रूप थाय. सं. उपाध्यायः तेने चालता सूत्रथी प्रथम पदे ऊ थाय. बीजे परे ओ थाय. त्रीजे पदे पोवः स्वः संयोगे साध्वसह्यसह्यांझः अनादौ द्वित्वं द्वितीय० कगचज. अतः से?ः ऊज्झाओ ओज्झाओ अवज्झाओ ए रूप सिघ थाय. सं. उपवास तेने चालता सूत्रथी उपनो ऊ थाय. कगचज अतः सेोंः ए सूत्रोथी ओआसो रूप थाय. बीजे परे ऊ थाय. एटले ऊआसो थाय. त्रीजे पदे पोवः अतः सेोः ए सूत्रोथी उवआसो रूप थाय.॥१७३॥
नमो निषले ॥ १७॥ निषम शब्दे स्वरस्य परेण सखरव्यंजनेन सह उम श्रादेशो वा नवति ॥ णुसलो । णिसलो ॥ १४ ॥ मूल भाषांतर. निषण्ण शब्दना आदि स्वरने बीजा स्वरसहित व्यंजननी साथे उम एवो विकटपे आदेश थाय. सं. निषण्ण तेनां णुमण्णो णिसण्णो एवां रूपथाय.१७४
॥दुढिका॥ उम ११ निषम ११ निषम अनेन वा निष स्थाने नुमादेशः वादौन ११ अतः सेझैः णुमन्नो । निषल वादौ न ण शषोः सः षः सः श्रतः सेझैः णिसमो ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. निषण्ण शब्दना श्रादिस्वरने स्थाने बीजा स्वरसदित व्यंजननी साथे उम आदेश विकटपे श्राय. सं. निषण्ण तेने चालता सूत्रे निषने स्थाने नुम थाय. वादौ० अतः सेडों: ए सूत्रोथी णुमन्नो रूप थाय. सं. निषण्ण तेने वादी शषोः सः अतः सेोंः ए सूत्रोथी णिसण्णो रूप थाय.॥ १७॥
प्रावरणे अङ्ग्वाक ॥१५॥ प्रावरणशब्दे श्रादेः स्वरस्य परेण सखरव्यंजनेन सह था श्रोउ इत्येतावादेशौ वा नवतः ॥ पझणं पारणं पावरणं ॥ १७५ ॥ मूल भाषांतर. प्रावरण शब्दना आदिस्वरने बीजा स्वरसहित व्यंजनसारे विकटपे अङ्गु आउ एवा आदेश थाय. सं. प्रावरणं तेनुं पङ्गुरणं पाउरणं पावरणं एवां रूप थाय. ॥ १७५॥
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प्रथमःपादः।
१७७
॥ढुंढिका ॥ प्रावरण ७१ पवाऊ १२प्रावरण- सर्वत्रेति रखुक् अनेन पावस्य पंगु द्वितीये पावस्य पाउ ११ क्लीबे सम् मोनु० पङ्गरणं पाउरणं । तृतीये सर्वत्रेतिरलुक् पावरणं ॥ १७५ ॥ टीका भाषांतर. प्रावरण शब्दना आदिस्वरने स्वरसहित व्यंजन सारे पङ्गु अने आउ एवा विकटपे आ देश थाय. प्रावरण तेने सर्वत्र चालता सूत्रे पावने ठेकाणे पङ्गु आदेश थाय. बीजा पदे पावनो पाउ थाय. क्लीबे सम् मोनु० पङ्गुरणं पाउरणं एवां रूप थाय. त्रीजे पदे सर्वत्र लुक् पामी पावरणं रूप आय. ॥ १७५॥
स्वरादसंयुक्तस्यानादेः॥ १७६॥ अधिकारोऽयं । यदित ऊर्ध्वमनुक्रमिष्यामस्तत्वरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेर्भवतीति वेदितव्यम् ॥ १७६ ॥
मूल भाषांतर. आ अधिकार सूत्र ने. अहिंथीश्रागल अनुक्रमे जे कहेवामां आवशे ते स्वरथी पर, जोडादर वगरनो अने जे आदि न होय तेने थाय-एम जाणी लेवु.॥१७६॥
॥ ढुंढिका ॥ खर ५१ असंयुक्त ६१ अनादि ६१. ॥ १७६ ॥ टीका भाषांतर. सरख .
क-ग-च-ज-त-द-प-य-वां प्रायो लुक् ॥ १७ ॥ खरात्परेषामना दिनूतानामसंयुक्तानां कगचजतदपयवानां प्रायो बुग् नवति ॥ क । तित्थयरो । लो । सचढं ॥ ग । न । नयरं । मयको । च । सई। कय ग्गहो ॥ ज । रययं । पयावई । गर्न ॥ त । विवाणं । रसा- यलं । जई॥ द । गया। मयणो ॥ प। रिऊ । सुऊरिसो ॥ य । दयालु । नयणं । विउठ ॥ व । लायमं । विउहो । वलयाणलो ॥ प्रायो ग्रहणात्कचिन्न नवति । सुकुसुमं । पयाग- जलं । सुगर्छ । अघरू । सयावं । विजणं । सुतारं । विपुरो । सपावं । समवाउँ । देवो । दाणवो ॥खरादित्येव। संकरो । संगमो । नकंचरो । धणंज । विसंतवो । पुरंदरो । संवुडो । संवरो ॥ असंयुक्तस्येत्येव । श्रको । वग्गो। अब्बो। वऊ ।
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१७८
मागधी व्याकरणम्.
I
धुत्तो । उद्दामो । विप्पो । करूं । सवं । क्वचित् संयुक्तस्यापि । नक्तंचरः । नक्कंचरो ॥ श्रनादेरित्येव । कालो । गन्धो । चोरो । जीरो । तरू । दवो । पावं । वसो । यकारस्य तु जत्वम् श्रादौ वक्ष्यते । समासे तु । वाक्य विजक्त्यपेक्षया जिन्नपदत्वमपि विवदयते । तेन तत्र यथा दर्शनमुजयमपि जवति । सुकरो सुहयरो | श्रागमि श्रायमिर्च | जलचरो जलयरो । बहुतरो बहुअरो । सुहृदो । सु । इत्यादि ॥ कचिदादेरपि । सपुनः । सजण ॥ स च | सो ॥ चिन्हं । इन्धं ॥ कचिच्चस्य जः । पिशाची । पिसाजी ॥ एकत्वं । एगत्तं ॥ एक । एगो ॥ मुकः अमुगो ॥ असुकः । श्रसुगो ॥ श्रावकः । सावगो ॥ श्राकारः । आगारो ॥ तीर्थकरः । तित्यrd || याकर्षः । श्राग रिसो ॥ लोगस्सुको श्रगरा । इत्यादिषु तु व्यत्ययश्च इत्येव कस्य गत्वम् ॥ श्रर्षे अन्यदपि दृश्यते । श्राकुञ्चनं । आउण्टणं । अत्र चस्य टत्वम् ॥ १७७ ॥
॥
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मूल भाषांतर. स्वरथी पर एवां ने संयुक्त ( जोडीजाक्षर ) वगरना आदि जूत एवां क गचज त द प य तेमनो घणुं करीने लुक् थाय. क ना उदा० - सं. तीर्थकर तेनुं तित्थयरो थाय. सं. लोक तेनुं लोओ थाय. सं. शकट तेनुं सयढं थाय. ग ना उदा० - सं. नग तेनुं नओ थाय. सं. नयरं तेनुं नगरं थाय. सं. मृगांक तेनुं मयङ्को थाय. चना उदा० - सं. शची तेनुं सई थाय. सं. कचग्रह तेनुं कयग्गहो थाय. ज ना उदा० सं. रजत तेनुं रययं थाय. सं. प्रजापति तेनुं पयावई रूप याय. सं गज तेनुं गओ थाय. त ना उदा० - सं. वितान तेनुं विआणं रूप थाय. सं. रसातलं तेनुं रसायलं सं. यति तेनुं जई थाय. द ना उदा० सं. गदा तेनुं गया थाय. सं. मदन तेनुं मयणो थाय. प ना उदा० सं. रिपु तेनुं रिऊ थाय. सं. सुपुरुष तेनुं सुऊरिसो थाय. य ना उदा० सं. दयालु तेनुं दयालू थाय. सं. नयन तेनुं नयणं श्राय. सं. वियोग तेनुं विओओ थाय. व ना उदा० - सं. लावण्य तेनुं लायण्णं रूप याय. सं. विबुध तेनुं विउहो रूप थाय. सं. वडवानल तेनुं वलयाणलो थाय. मूलमां प्रायः ए शब्दनुं ग्रहण बे तेथी कोइ ठेकाणे न थाय. सं. सुकुसुम तेनुं सुकुसुम थाय. सं. प्रयागजल तेनुं पयागजलं थाय. सं. सुजग तेनुं सुगओ थाय. सं. अगरु तेनुं अगरू थाय. सं. सचाप तेनुं सचाव थाय. सं. व्यंजन तेनुं विजणं थाय. सं. सुतार तेंनुं सुतारं थाय. सं. विदुर तेनुं विदुरो याय. सं. सपाप तेनुं सपावं थाय. सं. समवाय तेनुं समवाओ थाय. सं. देव तेनुं देवो थाय. सं. दानव तेनुं दाणवो थाय.
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प्रथमःपादः।
१७ए स्वरथकीज थाय. ते कहेले. सं. शंकर तेनुं संकरो श्राय. सं. संगम तेनुं संगमो थाय. सं. नक्तंचर तेनुं नकंचरो थाय. सं. धनंजय तेनुं धणंजओ थाय. सं. द्विषंतप तेनुं विसंतवो थाय. सं. पुरंदर तेनुं पुरंदरो थाय. सं. संवृत्त तेनुं संवुडो थाय. सं. संवर तेनुं संवरो थाय. असंयुक्त (जोडाक्षर वगरना) नेज थाय. जेम के सं. अर्क तेनुं अक्को थाय. सं. वर्ग तेनुं वग्गो थाय. सं. अर्व तेनुं अबो थाय. सं. वयं तेनुं वऊं थाय. सं. धूर्त तेनुं धुत्तो थाय. सं. उद्दाम, उद्दामो थाय. सं. विप्र तेनुं विप्पो थाय. सं. कार्य तेनुं कर्ज थाय. सं. सर्व तेनुं सव्वं श्रआय. (आदि नूत न होय) तेनेज थाय. जेम सं. काल गंध चोर जार तरु दव पाप व्रण तेना कालो गंधो चोरो जारो तरू वो पावो वण्णो एवां रूप थाय श्रादिमां यनो ज थाय ते कहेशे अने समासमां तो वाक्य अने विभक्तिनी अपेक्षाथी तेना जुदा जुदा पद पण कहेशे. तेथी तेमां दर्शन प्रमाणे बंने पण थाय. सं. सुखकर तेनुं सुहकरो तथा सुहयरो रूप थाय. सं. आगमितः तेनुं आगमिओ तथा आयमिओ रूप थाय. सं. जलचर तेनुं जलयरो जलचरो रूप थाय. सं. बहुतर तेना बहुतरो बहुअरो रूप थाय. सं. सुखद तेनुं सुहदो मुहओ रूप थाय. इत्यादि जाणवू. को ठेकाणे आदि ने पण थाय. सं. सपुनः तेनुं सऊण रूप थाय. सं. स च तेनुं सोअ रूप थाय. सं. चिह्न तेनुं इन्धं रूप थाय. को ठेकाणे च नो ज श्राय. सं. पिशाची तेनुं पिसाजी थाय. सं. एकत्वं तेनुं एगत्तं थाय. सं. एक तेनुं एगो रूप थाय. सं. अमुक तेर्नु अमुगो श्राय. सं. असुक तेनुं असुगो श्राय. सं. श्रावक तेनुं सावगो थाय. सं. आकारः तेनुं आगारो थाय. सं. तीर्थकर तेनुं तित्थगरो थाय. सं. आकर्ष तेनुं आगरिसो थाय. सं. लोकस्य उद्योतकराः तेनुं लोगस्सुजोअगरा एवं रूप धाय. इत्यादि शब्दोमां तो व्यत्ययश्च ए सूत्रथीज कनो ग थाय. आर्षप्रयोगमां बीजी रीते पण जोवामां आवे . जेम- सं. आ कुञ्चनं तेनुं आउण्टणं रूप थाय. अहिं चनो ट थाय.
॥ढुंढिका ॥ कश्च गश्च चश्च जश्च तश्च दश्च पश्च यश्च व् च कगचजतदपयवं तेषां ६३ प्रायः ११ लुक् ११ तीर्थकर- हवः संयोगे तीति सर्वत्र रखुक् अनादौ हित्वं द्वितीये तु पूर्व थ त अनेन कबुक् अवर्णोश्रयः ११ श्रतः सेझैः तित्ययरो । लोक ११ अनेन क्लुक् अतः से?ः लो शकटं शषोः सःश स अनेन क्लुक् अवर्णोश्रय सटाश कट कैटन्ने ढः टस्य ढः ११ क्लीबे सम् मोनु० सयढं । नग ११ अ. नेन ग्लुक् श्रतः से?ः नानगर अनेन ग्लुक् श्रवर्णोश्रय क्लीबे सम् मोनु० नयरं । मृगांक-रुतोऽत् मृ म ह्रखः संयोगे गा ग
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१०
मागधी व्याकरणम् . अनेन ग्लुक् श्रवर्णोश्रय ११ श्रतः से?ः मयङ्को । शची शषोः सः अनेन यबुक् ११ अंत्यव्यं. सबुक् सई । कचग्रह- अनेन चबुक् सर्वसयः सर्वत्र रखुक् अनादौ हित्वं ग्ग ११ अतःसेझैः कयग्गहो। रजत अनेन जबुक् त्बुक् श्रवर्णाश्रयः ११ क्लीवे स्म् मोनु र. ययं । प्रजापति अनेन जलुक् सर्वत्र रलुक् अवर्णोश्रय पोवः ११ श्रक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक् पयावई। गज अनेन जलुक् ११ श्रतः से?ः गर्छ । विनात अनेन तबुक् श्रवर्णोश्रयःनोणः ११ विश्राणं । रसातलं अनेन तबुक् अवर्णाश्रयः ११क्लीबे स्म् रसायलं । यति ११ श्रादेर्योजः अनेन तबुक् अक्कीबे दीर्घः जई। गदा अनेन दलुक् श्रवर्णो श्रयः अंत्यव्यं सबुक् गया । मदन अनेन वलुक् अवर्णो. श्रयः नोणः श्रतः सेर्मोः मयणो। रिपु ११ अनेन प्रबुक अक्लीबे दीर्घः रिऊ। सुपुरुष अनेन प्लुक् पुरुषे रोरुरि शषोः सः श्रतः सेझैः सुपुरिसो । दयालु ११ अनेन यबुक् अवर्णो श्रयः अलीबे दीर्घः दयालू । नयन- अनेन यलुक् अवर्णो श्रय नोणः क्लीबे स्म् मोनु० नयणं । वियुत ११ अनेन यलुक तलुक् च अतः से?ः विउ । लावण्य अनेन वलुक् श्रवर्णो श्रय अधोमनयां यबुक् श्रनादौ हित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु० लायमं । सं. विवुध ११ अनेन दबुक् खपथ धस्य ह श्रतः सेझैः विउहो । वडवानल । डोबः ड ल अनेन वबुक् श्रवर्णोश्रयः नोणः श्रतः से?ः वलयाणलो। सुकुसुम ११ क्लीबेस्म् मोनु सुकुसुमं यत्र कलोपो न जातः । प्रयागजल ११ सवत्र रबुक् क्लीबे सम् मोनु पयागजलं । अत्र गलोपो न जातः । सुगत कगटडेति तलुक् ११ श्रतः सेडोंः सुग श्रगरू ११ उतो मु. कुलादिष्वत् गु ग अक्कीबे दीर्घः अगरू । सचाप ११ पोवः क्लीबे सम् मोनु सचावं व्यंजन अधोमनयां यबुक् श्स्वप्नादौ वि नोणः ११ क्लीबे स्म् मोनु विजणं । सुतार ११ क्लीबे सम् मोनु० सु. तारं । विउर ११ श्रतः सेझैः विदुरो। सपाप ११ पोवः क्लीबे सम् मोनु० सपावं । समवाय ११ कगचजेति यलुक् अतः से?ः सम.
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प्रथमः पादः। वा । देवः ११ श्रतः सेझैः देवो । दानव ११ नोणः श्रतः सेझैः दाणवो। शंकरः शषोः सः श्रतः सेझैः संकरो। संगमः ११ श्रतः सेझैः संगमो । नक्तंचर- कगटडेति कबुक् अनादौ हित्वं नकंचरो । धनंजय नोणः कगचजेति यबुक् धणंज । हिषंतप-कगटडेति दबुक् शषोःसः पोवः ११ श्रतः से?ः विसंतवो पुरंदर ११ श्रतः सेझैः पुरंदरो । संवृत्त उदृत्वादौ वृ तु प्रत्यादौ मः तस्य डः ११ अतः सेोः संयुमो । एवं संवरो । अर्क- वर्ग अर्व ११ सर्वत्रेति रलुक् अनादौ हित्वं अतः सेझैः श्रको वग्गो अबो। वर्य सर्वत्रेति रखुक् द्यय्यां जःथनादौ हित्वं ११ क्लीबे स्म् मोनु० वजं धूर्त ह्रखः संयोगे सर्वत्रेति रबुक् ११ श्रतः से? धुत्तो। एवं उद्दामो । विप्र- ११ सर्वत्रेति रखुकू अनादौ हित्वं श्रतः सेडोंः विप्पो । कार्यः ह्रस्वः संयोगे द्यय्यां जः सर्वत्र रखुक् अनादौ छित्वं ११ क्लीबे सम् कऊं । एवं सत्वं नक्तंचर ११ कगचजेति त्बुक् अनादौ हित्वं अतः सेझैः नकंचरो । एवं कालो गंधो चौर
औत उत् ११ श्रतः सेझैः चोरो जारो।तरु ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् तरू । एवं देवो । पाप पोवः ११ क्लीबे सम् मोनु० पावं. सं. व्रण- सर्वत्रेति रलुक् ११ अतः सेोः वलो । सुखकर सुखं करोति ११ खघथ ख ह अतः सेोः सुहकरो द्वितीये वबुक् सुहथरो। आगमितः ११ था समंतात् गमितः श्रागमितः कगचजेति तबुक् ११ श्रतः सेझैः आगमि । द्वितीये गलोपो जातः श्रवर्णोश्रय था यमि । जलचरो द्वितीये चूलुक् जलयरो । बहुतरो द्वितीये तलुक् बहुअरो। सखेद खघथ ख । द। ११ श्रतः से?ः सुददो । द्वितीये दबुक् सुद इत्यादि। सपुनः पबुक् नोणः अंत्यव्यंग सलुक् सजण । सच चबुक् ११श्रतः सेझैः सोश चिह्नकगचजेति चबुक् चिह्वेन्धोवा ह्रस्यन्धः११क्कीबे सम् मोनु० इन्धं। पिशाची शषोःसः चस्यजः ११ अंत्यव्यं० पिसाजी । एकत्व कस्य ग सर्वत्रेति वबुक् अनादौ हित्वं क्लीबे सम् मोनु एगत्तं । एक
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१०२
मागधी व्याकरणम्.
११ कस्य गः छातः सेर्डोः एगो । अमुक ११ कस्यगः छतः सेर्डोः मुगो | सुक कस्यगः १९ श्रतः सेर्डोः असुगो | श्रावकः सर्वत्र रलुक् शषोःसः कस्यगः अतः सेर्डोः सावगो । आकारः ११ कस्यगः अतः सेर्डोः श्रागारो । तीर्थकर ह्रस्वः संयोगे सर्वत्रेति रलुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व थ त कस्य गः तित्थगरो । श्राकर्षः कस्य गः शषतपूर्व वा षात् प्राक् इकारः शषोःसः ११ अतः सेर्डोः श्रागरिसो | लोकस्य उद्योत कराः व्यत्ययसु० कस्य ग ङसस्स लोगस्स द्यर्य्ययांजः द्यस्य जः श्रनादौ द्वित्वं कगचजेति तुलुक जस् शस् ङसित्तो द्वामि दीर्घः जस्शसोर्लुक् लोगस्स उतोयगरा - न्यदपि दृश्यते । आकुंचनं कगचजेति क्लुक् नोणः चस्य टः उटणं ॥ १५७ ॥
टीका भाषांतर. स्वरथीपर जोडाक्षर वगरना ने आदिनूत नहीं एवा क ग चज तद प य व तेमनो घणुंकरीने लुक् थाय. सं. तीर्थकर तेने ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र रलुक अनादौ द्वित्वं द्वितीय० पूर्वथत चालतासूत्रे कलुक् अवर्णोअय अतः सेर्डोः एसूत्रोथी तित्थरो रूप थाय. सं. लोक तेने चालता सूत्रे कनो लुक् थाय. अतः सेड: ए सूत्रधी लोओ थाय. सं. शकटं तेने शषोः सः चालतासूत्रे कलुक अवर्णो सदाशकटकैटभेदः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सयढं रूप याय. सं. नग तेने चा लतासूत्रे गनो लुक् थाय. अतः सेड: एसूत्रोथी नओ रूप याय. सं. नगर तेने चालता सूत्रे ग नो लुक् अवर्णो क्लीबे स्त्रम् मोनु० ए सूत्रोथी नयरं रूप थाय. सं. मृगांक तेने ऋतोऽत् ह्रस्वः संयोगे चालतासूत्रे गनो लुक् थाय. अवर्णो अतःसेर्डी ए सूत्रोथी 'मयंको रूप श्राय. सं. शची तेने शषोः सः चालता सूत्रे चनो लुक् थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रोश्री सई रूप याय. सं. कचग्रह तेने चालता सूत्रथी चनो लुक् थाय. अवर्णोः सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं अतः सेडः ए सूत्रोश्री कयग्गहो रूप थाय. सं. रजत तेने चालता सूत्रथी ज तथा त नो लुक् थाय. अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी रययं रूप थाय. सं. प्रजापति तेने चालतासूत्रथी ज नो लुक् याय. सर्वत्र अवर्णो पोवः अक्लीषेसौदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पयावई रूप थाय. सं. गज तेने चालता सूत्रश्री ज नो लुक् थाय. अतः सेड: ए सूत्रोथी ग ओ रूप थाय. सं. विनात तेने चालता सूत्रथी त लुकू अवर्णो नोणः ए सूत्रोथी विभाणं रूप याय. सं. रसातलं तेने चालता सूत्रोथी त नो लुक् थाय. अवर्णो क्लीबे सम् ए सूत्रोथी रसायलं रूप याय. सं. यति तेने आयोजः चालता सूत्री त नो लुक् याय. अक्लीबे दीर्घः ए सूत्रोश्री जई रूप थाय. सं. गदा तेने
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प्रथमःपादः।
१७३
चालता सूत्रथी द नो लुक् थाय. अवर्णों अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गया रूप थाय. सं. मदनतेने चालता सूत्रथी द नो लुक् थाय. पनी आवर्णों नोणः अतःसे?: ए सूत्रोथी मयणो रूप थाय.सं.रिपु तेने चालतासूत्रे प नो लुक् श्राय पठी अक्लीबे एसूत्रथी रिऊ रूप थाय. सं. सुपुरुष तेने चालता सूत्रे पनो लुक् थाय. पुरुषेरो शषोःसः अतः सेों: ए सूत्रोथी सुपुरिसो रूप थाय. सं. दयालु तेने चालता सूत्रथी य नो लुक् थाय. अवर्णो नोणः क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी नयणं रूप थाय. सं. वियुत तेने चालता सूत्रथी य नो तथा त् नो लुक् थाय. अतः सेों: ए सूत्रथी विओओ रूप सि
थाय. सं. लावण्य तेने चालता सूत्रथी व नो लुक् थाय. अवर्णों अधोमनयां अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी लायण्णं रूप थाय. सं. विबुध तेने चाखता सूत्रथी व नो लुक् थाय. पनी खघथ० अतः सेटः ए सूत्रोथी विउहो रूप थाय. सं. वडवानल तेने डोलः चालता सूत्रथी व नो लुक् थाय. अवर्णीयः नोणः अतः सेडों: ए सूत्रोथी वलयाणलो रूप थाय. सं. सुकुसुम तेने क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सुकुसुमं रूप थाय. अहिं क नो लोप श्रयेलो नथी. सं. प्रयागजल तेने सर्वत्र रलुकू क्लीषे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पयागजलं रूप थाय. श्रा रूपमां ग नो खोप न यो. सं. सुगत तेने कगचज अतः से?: ए सूत्रोथी सुगओ रूप थाय. सं. अगरु तेने ऊतोमुकुला० अलीबे दीर्घः ए सूत्रोथी अगरू रूप थाय. सं. सचाप तेने पोवः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोधी सचावं रूप थाय. सं. व्यंजन तेने अधोमनयां इत्स्वप्नादौ नोणः क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी विजणं थाय. सं. सुतारः तेने क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सुतारं थाय. सं. विदुर तेने श्रतः से?ः ए सूत्रथी विदुरो रूप थाय. सं. सपाप तेने पोवः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सपावं रूप थाय. सं. समवाय तेने कगचज अतः सेोः ए रूत्रोथी समवाओ रूप थाय. सं. देवः तेने अतःसेटः ए सूत्रथी देवो रूप थाय.सं. दानव तेने नोणः अतःसे?ः ए सूत्रोथी दाणवो रूप थाय. सं. शंकर तेने शषोःसः अतःसे?ः ए सूत्रोथी संकरो रूप थाय. सं. संगम तेने अतःसे?: ए सूत्रोथी संगमो रूप थाय. सं न क्तंचर तेने कगटड अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोथी नक्तंचरो रूप थाय. सं. धनंजय तेने नोणः कगचज ए सूत्रोथी धणंजओ रूप थाय. सं. द्विषंतप तेने कगटड शषोःसः पोवः अतःसे?ः ए सूत्रोथी विसंतवो रूप थाय. सं. पुरंदर तेने अतः सेोंः सूत्रथी पुरंदरो रूप थाय. सं. संवृत्त तेने उदृत्वादी प्रत्यादौडः अतः सेडों: ए सूत्रथी संवुडो रूप थाय. एवीरीते संवर नुं संवरो थाय. सं. अर्क तेने वर्गार्व० सर्वत्र अनादौ द्वित्वं अतः सेोंः ए सूत्रोथी अक्को रूप धाय. तेवीरीजे वर्गनुं वग्गो अने अर्व नुं अव्वो थाय. सं. वये तेने सर्वत्रेतिरलुक् द्यय्ययोजः अनादौ बित्वं क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वजं रूप थाय सं धूर्त तेने इस्वःसंयोगे सर्वत्रेतिरलक अतः सेों: ए सूत्रोथी धूतॊ रूप थाय.सं. उद्दाम तेनुं उद्दामो थाय.सं.विप्रतेने सर्वत्र अनादौ द्वित्वं अतः से?: ए सूत्रोथी विप्पो रुप थाय. सं. कार्य तेने हस्वः संयोगे द्य
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रन्
मागधी व्याकरणम्. व्यांजः सर्वत्र रलक अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् एसूत्रथी कज्जरूप थाय. एवी रीते सर्व नुंसव्वं थाय.सं.नक्तंचर तेने कगचज अनादौ द्वित्वं अतःसे?ःए सूत्रोथी नकंचरो रूप थाय. एवी रीते काल , कालो गंधर्नु गंधो एवां रूप श्राय. सं चौर तेने औओत अत् सेझैः ए सूत्रोथी चोरो रूप थाय. सं. जार नुं जारो थाय.सं. तरु तेने अक्लीवे. दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी तरू रूप थाय. एवीरीते देवः नुं देवो थाय. सं. पाप तेने पोवः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पावं रूप थाय. सं.व्रण तेने सर्वत्र अतः सेझैः ए सूत्रोथी वण्णो रूप थाय. सं. सुखकर (सुखनेकरते ) तेने खघथ अतः सेडोंः ए सूत्रोथी मुहकरो रूप थाय. बीजेपदे व नो लुक् थाय. एटले सुहअरो रूप थाय. सं. आगमितः (चारेतरफ प्राप्त थयेल ) तेने कगचज अतः सेोः ए सूत्रोथी आगमिओ रूप थाय. बीजे पदे ग नो लोप थाय पनी अवर्णों ए सूत्रथी आयमिओ रूप श्राय. सं. जलचर तेनुं जलचरो रूप थाय. बीजे पदे च नो लुक् थाय. एटले जलयरो श्राय. सं. बहुतर तेनुं वहुतरो श्राय. बीजे पदे त नो लुक् थ बहुअरो थाय. सं. सुखदः तेने खघथ अतः से?ः ए सूत्रोथी सुहदो रूप वाय. बीजे पक्ष द नो लुक् थ सुहओ रूप श्राय. सं. सपुनः तेने प नो लुक् थाय. नोणः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सउण एवं रूप श्राय. सं. सच तेने च नो लुक् थाय. अतःसे?: ए सूत्रोश्री सोअ रूप थाय. सं चिह्न तेने कगचज चिहेन्धोवा क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी इन्धं रूप थाय. सं. पिशाची तेने शषोः सः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पिसाजी रूप थाय. सं. एकत्व तेने क नो ग थाय. सर्वत्र अनादौ द्वित्वं क्लीके सूम् मोनु० ए सूत्रोथी एगत्तं रूप थाय. सं. एक तेने क नो ग थाय. अतः से? ए सूत्रथी एगो रूप थाय. सं. अमुक तेने क नो ग थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी अमुगो रूप थाय. सं. असुक तेने क नो ग थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी असुगो रूप थाय. सं. श्रा. वक तेने सर्वत्र रलुक् शषोः सः क नो ग थाय. अतः सेटः ए सूत्रथी सावगो रूप थाय. सं. आकार तेने क नो ग थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी आगारो रूप थाय.सं. तीर्थकर तेने हवः संयोगे सर्वत्र अनादौद्वित्वं द्वितीय कनो ग थाय.ए सूत्रोथी तित्थगरो रूप थाय. सं. आकर्ष तेने क नो ग थाय. शषतपूर्वज्जेवा शषोःसः अतः सेोंः ए सूत्रोथी आगरिसो रूप थाय. सं.लोकस्य उद्योतकराः व्यत्ययसु० क नो ग थाय. उसस्स ए सूत्रोथी लोगस्स थाय. सं. उद्योत तेने द्ययरयोजः अनादौ द्वित्वं कगचज जसशसङसित्तो जसशसोलक ए सूत्रोथी लोगस्सउज्जोयगरा रूप थाय बीजीरीते पण थाय. जेम सं. आकुंचनं तेने कगचज नोणः च नो ट थाय. एटले आउण्टणं एवं. रूप श्राय, ॥ १७ ॥ यमुना-चामुण्डा-कामुकातिमुक्तके मोनुनासिकश्च ॥१७॥ एषु मस्य बुग् नवति बुकि च सति मस्य स्थाने अनुनासिको नवति ॥ अँजणा । चानएमा । काज । अणउतयं ॥ क्वचिन्न न. वति । अश्मुन्तयं । श्रश्मुत्तयं ॥ १७ ॥
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प्रथमःपादः।
१५ मूल भाषांतर. यमुना- चामुण्डा कामुक अतिमुक्तक ए शब्दोना मनो लुक् थाय. अने लुक् थया पनी म ने स्थाने अनुनासिक थाय. सं. यमुना तेनुं अँउणा थाय. सं. चामुण्डा तेनुं चाँउण्डा थाय सं. कामुक तेर्नु काउओ श्राय. सं. अतिमुक्तकं तेनुं अणिउतयं श्राय. कोइ ठेकाणे न पण श्राय त्यारे अइमुन्नयं तथा अहमुत्तयं थाय. ॥ १७ ॥
॥ टुंढिका॥ यमुना च चामुणमा च कामुकश्च अतिमुक्तकं च यमुनाचामुणकाकामुकातिमुक्तकं तस्मिन् ७१ म् ६१ अनुनासिक ११ च ११ यमुना- श्रादेर्योजः यस्य जः अनेन मलुक् अनुनासिकश्च नोणः ११ अंत्यव्यंजनस्बुक् अँउणा । चामुण्मा ११ अनेन मलुक् अनुखारश्च जॉजएमा कामुक अनेनमलुक् मस्य स्थाने श्रनुखारः कगचजेति क्लुकू ११ अतः सेझैः काउ अतिमुक्तक ११ कगचजेतित्बुक् कबुक् च वकादावंतः अनुस्वारः कगटडेति क्लुक् अवों क्लीबेसम् मोनु अणिउतयं कचिन्नजवति अश्मुन्नयं अश्मुत्तयं ॥१७॥ टीका भाषांतर. यमुना चामुण्डा कामुक अतिमुक्तक शब्दोना म नोलुक थाय अने म नो अनुनासिक थाय सं. यमुना तेने आर्यो जः चालता सूत्रे म नो लुक् थाय. अने अनुनासिक थाय. पठी नोणः अंत्यव्यंज ए सूत्रोथी अँउणा रूप थाय. सं चामुण्डा तेने चालता सूत्रोथी म नो लुक अने अनुस्वार थाय. एटले चांऊण्डा रूप थाय. सं. कामुक तेने चालता सूत्रे म नो लुक अने अनुस्वार थाय पनी कगचज अतः से?: एसूत्रोथी कांऊउ थाय. सं. अतिमुक्तक तेने कगचज वक्रा दावंतः अनुस्वार थाय. कगटड० अवर्णों क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अणि उत्तयं एवं रूप आय. कोठेकाणे न पाय तो अइमुन्नयं अने अइमुत्तयं एवा रूप श्राय. ॥ १७ ॥
नावात्पः ॥१७॥ अवर्णत्परस्यानादेः पस्य बुग् न नवति ॥ सवहो सावो अनादेरित्येव परउहो ॥ १७ ॥
मूलभाषांतर. अवर्ण अकीपर अने जे आदिनूत न होय तेवा प नो लुक् न श्राय. सं. शपथ तेनुं सवहो अने सं.शाप तेनुं सावो एवं रूप धाय. सं. परपुष्ट तेनुं परउद्दो रूप थाथ. एहिं श्रादिनूत तेथी न थाय. ॥ १७ए॥
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१६
मागधी व्याकरणम्.
॥ टुंढिका ॥ न ११ अवर्ण ५१ प ६१ शपथः ११ शषोः सः पोवः खघथ थ ह सवहो। शापः शषोः सः योवः ११ अतःसे?ः सावो परपुष्ट कगचजेतिपलुक् टस्यानुष्ट ष्ट उः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्वठस्य टः ११ श्रतः सेझैः परउहो ॥ १७॥ टीकाभाषांतर. अवर्ण थकी अने आदिनूत नहीं तेवा प नो लुक् न पाय. सं. शपथः तेने शषोः सः पोवः खघथ० ए सूत्रोथी सवहो रूप थाय. सं. शाप तेने शषोः सः पोवः अतः सेोः ए सूत्रोथी सावो रूप थाय. सं. परपुष्ट तेने कगचज ष्टस्यानु० अनादौ दित्वं द्वितीय० अतः सेोंः ए सूत्रोथी परउद्दो रुप थाय॥१७॥
अवणोयश्रुतिः॥१०॥ कगचजेत्यादिना लुकि सति शेषः अवर्णः अवर्णात्परो लघुप्रयत्नतर यकारश्रुतिर्नवति ॥ तित्थयरो सयढं नयरं मयङ्को । कयग्गहो कायमणी । रचयं । पयावई । रसायलं । पायालं । मयणो। गया। नयणं । दयालु । लायणं । श्रवर्ण इति किम् । सनणो । पजणो। परं । राश्वं । निह। निन । वाऊ। कई। श्रवर्णादित्येव । लोएस्स । देयरो ॥ क्वचिद्गवति पियश ॥ ७ ॥ मूलभाषांतर. कगचज ए सूत्रथी लुक् श्रया पनी बाकी रहेलो जे अ ते अ अकी पर लघु प्रयत्नतर स्थानवाला यनी श्रुति ( श्रवण ) थाय ने तीर्थकर तेर्नु तित्थयरो थाय. सं. शकटं तेनु सयढं रूप थाय. सं. नगरं तेनुं नयरं रूप थाय. सं. मृगाङ्क तेर्नु मयको रूप थाय. सं. कचग्रह तेनुं कयग्गहो थाय. सं. काचमणि तेनुं काय-मणी रूप श्राय. सं. रजतं तेनुं रचयं रूप श्राय. सं. प्रजापति तेनुं पयावई श्राय. सं. रसातलं तेनुं रसायलं थाय, सं. पातालं तेनुं पायालं थाय. सं. मदन तेनुं मयणो थाय. सं. गदा तेनुं गया थाय. सं. नयनं तेनुं नयणं थाय. सं. दयालु तेनुं दयालू थाय. सं. लावण्यं तेनुं लायण्णं थाय. मूलमा अवर्णनुं ग्रहण ने तेथी सं. शकुन तथा प्रगुण तेना सउणो पउणो एवा रूप श्राय. सं. प्रचुर तेनुं परं श्राय. सं. राजीवं तेनुं राईवं थाय. सं. निहित तेनुं निहओ थाय. सं. निनद तेनु निनओ थाय. सं. वायुं तेनुं वाऊ थाय. सं. कति तेनुं कई थाय. अवर्ण श्रकी पर एम कडं तेथी लोकस्य तेनुं लोएस्स एवं थाय. सं. देवर तेनुं देयरो थाय कोई ठेकाणे न पण थाय. जेम सं. पिवति तेनुं पियइ थाय. ॥ १० ॥
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प्रथमःपादः।
१०७
॥ढुंढिका॥ अवर्ण ११ यश्रुतिः ११ तीर्थकरः हवः संयोगे सर्वत्र रखुक् श्रनादौहित्वं द्वितीयपूर्व थ त कगचजेति क्लुक्यनेन य ११ अतः सेडोंः तित्थयरो। शकट शषोः सः कगचजेति कदुक अनेन य सटाशकट टस्य ढः ११ क्लीबे सम् सयढं। मृगांक इतोऽत् म म ह्रस्वःसंयोगे कगचजेतिग्लुक्थनेन य ११ श्रतः सेडोंः मयको । कचग्रह- कगचजेतिकबुक् अनेन य सर्वत्रेति रलुक् अनादौ द्वित्वं ११ अतः सेोंः कयग्गहो। कायमणि- ११ कगचजेति चलुक् अनेन य अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंजण्सलुक कायमणी- रजत- कग चजेतिजबुक् च अनेन य ११ क्लोबे म्स् मोनु० रययं प्रजापति- सर्वत्र रलुक् कगचजेति जत् लुक् अनेन य पोवः ११ अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् पयावई । रसातल कगचजेतित्वुक अनेन य ११ क्ली बे सम् मोनु० रसायलं । एवं पायालं । मदन कगचजेतिदबुक् श्रनेन य ११ श्रतः से?ः मयणो । गदा ११ कगचजेतिदबुक् अनेन य अंत्यव्यं सबुक् गया नयन ११ कगचजेति यलुक् अनेन य क्लीबे स्म् नयणं । एवं दयालु लायएणं । शकुन- प्रगुण शषोः सः सर्वत्र रखुक् कगचजेति कगयोर्बुक् नोणः ११ श्रतः सेोः सजणो पनणो। प्रचुर- सर्वत्र रसुक् कगचजेतिचबुक ११ क्लीबेम्स् मोनु० पउरं । राजीव- ११ कगचजेतिजलुक् क्लीवे स्म् मोनु राश्वं । निहित- कगचजेति लुक् ११ अतः सेः निहिउँ एवं निनद निनोवायु- कगचजेति यलुक ११ अकीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंज सलुक् वाऊ। एवं कई । लोकस्य कगचजेतिक्लुक् ङसस्य लोगस्स एवं देअरो। पिबति- बलुक् त्या दिनां ति।श्रवर्णो पियश् ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. कगचज ए सूत्रवडे लुक् श्रया पनी अनी अवर्ण पजी पर खघुप्रयत्नतर एवा य नी श्रुति याय. एटले अने स्थाने य थाय. सं. तीर्थकरः तेने इस्वः संयोगे सर्वत्र अनादौ द्वित्वं द्वितीय० कगचज० चालता सूत्रे य श्राय.
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१
मागधीव्याकरणम्. अतः सेों: ए सूत्रोथी तित्थयो रूप धाय. सं. शकट तेने शषोः सः कगचज चालतासूत्रे य थाय. पी सदाशकट० क्लीवे सम् ए सूत्रोथी सयदं रूप थाय. सं. मृगांक तेने ऋतोऽत् हस्वः संयोगे कगचज चालता सूत्रे य थाय. अतः सेों: ए सूत्रथी मयको रूप थाय. सं. कचग्रह तेने कगचज चालतासूत्रे य थाय. सर्वत्र अनादौ द्वित्वं अतः सेोंः ए सूत्रोथी कयग्गहो रूप थाय. सं. काचमणि तेने कगचज चालता सूत्रे य थाय. अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोधी कायमणी रूप थाय. सं. रजत तेने कगचज चालतासूत्रे य वाय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी रययं थाय. सं. प्रजापति तेने सर्वत्र कगचज चालतासूत्रे य थाय. पो वः अक्लीषेदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पयावई रूप थाय. सं. रसातल तेने कगचज चालतासूत्रे य थाय. क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी रसायलं थाय. एवीरीते सं. पातालं तेनुं पायालं थाय. सं. मदन तेने कगचज चालतासूत्रे य थाय. अतःसे?ः ए सूत्रथी मयणो थाय. सं. गदा तेने कगचज चालतासूत्रे य थाय. क्लीबे सम् ए सूत्रथी नयणं रूप थाय. एवीरीते सं. दयालु नुं दयालू अने सं. लावण्यं तेनुं लायण्णं रूप थाय. सं. शकुन तथा प्रगुण तेने शषोः सः सर्वत्र रलुक कगचज नोणः अतः सेों ए सूत्रोथी सउणो तथा पउणो रूप थाय. सं. प्रचुर तेने सर्वत्र कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पउरं रूप थाय सं. राजीव तेने कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी राइवं थाय. सं. निहित तेने कगचज अतः सेडोंः ए सूत्रोथी निहिओ रूप थाय. एवीरीते निनद तेनुं निनओ थाय. सं. वायु तेने कगचज अक्लीबे सौदीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी वाऊ रूप थाय. एवीरीते सं. कति न कई थाय. सं. लोकस्स तेने कगचज उसस्य ए सूत्रोथी लोगस्स रूप थाय. एवीरीते सं. देवर तेनुं देअरो थाय. सं. पिबति तेने ब नोलुक् थाय. त्यादीनां अवर्णों ए सूत्रोथी पियइ रूप थाय.॥ १० ॥
कुब्ज-कर्पर-कीले कः खोऽपुष्पे ॥ १७१॥ एषु कस्य खो नवति पुष्पं चेत् कुब्जानिधेयं न नवति ॥खुजो। खपारं । खील । अपुष्प इति किम् । बंधे कुबय-पसूणं । थार्षेऽन्यत्रापि । कासितं । खासिएं । कसितं । खसिएं ॥ मूल भाषांतर. कुब्ज कर्पर की ए शब्दोमां रहेला क नो ख थाय. पण जो कुब्ज नो अर्थ ते नामनुं पुष्प थतो न होयतो. सं. कुब्ज तेनुं खुजो थाय. सं. कपर तेनुं खपारं थाय. सं. कील तेनुं खील ओ थाय. मूलमा पुष्प अर्थ शिवाय एम कर्दा ने तेथी सं. बंधितुं कुञ्जक-प्रसूनं तेनुं बंधेउं कुजय-पसूणं एवं प्राय. आर्ष प्रयोगमा बीजेपण ख श्राय जेम-सं. कासितं तेनुं खासिअं थाय. सं. कसितं तेनुं खसिअं थाय.॥११॥
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प्रथमः पादः ।
॥ ढुंढिका ॥
कुब्जश्च कर्परं च कीलकश्च कुब्जकपरकीलकं तस्मिन् क ११ ख ११ प्रपुष्प ७१ कुब्ज श्रनेन खु सर्वत्र वलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ श्रतः सेर्डोः खुो । कर्पर अनेन क ख सर्वत्रेति रलुक् ११ क्की - बेस मोनु० खप्परं । कीलक अनेन ख कगचजेतिक्लुक् ११ अतः सेर्डोः खील बंधितुं पञ्च क्वातुमतव्यनव्यष्यत्सु धि धे कगचजेतित्लुक् बंधेन । कुब्जकप्रसून सर्वत्ररलुक् श्रनादौ द्वित्वं कगचजेतिकलुकू वर्णो सर्वत्रवलुक नोणः ११ क्कीबे सम् मोनु० कुपसू कासित क ख कंगचजेतित्लुक ११ क्कीबे सम् मोनु० खासि एवं कसितं खसि ॥ १८९ ॥
१८
टीकाभाषांतर. कुब्ज कर्पर कीलक ए शब्दोना क नो ख थाय. पण जो कुब्ज नोर्थ पुष्प था तो नहीं. सं. कुब्ज तेने चालतासूत्रश्री कु नो खु थाय. पती सर्ववूलुक अनादौ द्वित्वं अतः सेडः ए सूत्रोथी खुज्जो रूप याय. सं. कर्परतेने चालतासूत्रे क नो व थाय. सर्वत्र रलुक् कलीबेस मोनु० ए सूत्रोथी खप्परं रूप थाय. सं. कीलक तेने क नो ख थाय. कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथी खीलओ रूप याय. सं. बंधितुं तेने पञ्चक्त्वातुम० ए सूत्रथी धि नो धे थाय. पबी कगचज ऐ सूत्रथी बंधेउ याय. कुब्जकप्रसून तेने सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं कगचज० अव
सर्वत्र लुक् नोणः क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी कुज्जपसूणं एवं रूप याय. सं. कासित तेने चालतासूत्रे क नो व थाय. कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी खासिअं रूप याय. एवीरीते सं. कसितं तेनुं खसिअं थाय. ॥ १०१ ॥ मरकत - मदकले गः कंडुके वादेः ॥ १८२ ॥
अनधोः कस्य गो जवति कंडुके त्वाद्यस्य कस्य ॥ मरगयं । मयगलो गेन्ां ॥ १८२ ॥
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मूल भाषांतर. मरकत काने मदकल शब्दना क नो ग थाय. अने कंदुक शबदना दिनूत क नो ग थाय. सं. मरकतं तेनुं मरगयं थाय. सं. मदकलः तेनुं मयगलो रूप थाय. सं. कंदुक तेनुं गेन्दुअं रूप याय. ॥ १०२ ॥
॥ ढुंढिका ॥
मरकतं च मदकलं च मरकतमदकलं तस्मिन् ७१ ग ११ कंडुक
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१०
मागधी व्याकरणम्. ७१ तु ११ श्रादेः ६१ मरकत अनेन क ग कगचजेतित्बुक् अव. रें ११ क्लीबेस्म् मोनु० मरगयं । मदकल कगचजेति दलुक् श्रवों अनेन क ग ११ श्रतःसेडोंः मयगलो । कंचुक अनेन क ग एन्वय्यादौ ए कगचजेतिकबुक् ११ कलीबेसम् मोनुण गेऽअं॥ टीका भाषांतर मरकत अने मदकल क नो ग बाय अने कंदुक शब्दना आदि क नो ग वाय. सं. मरकत तेने चालता सूत्रधी क नो ग श्राय. पठी कगचज अवो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मरगयं रूप थाय. सं. मद्कल तेने कगचज अवर्णी चालतासूत्रे क नो ग थाय. अतःसेडौँः ए सूत्रथी मयगलो रूप थाय. सं. कंदुक तेने चालतासूत्रश्री क नो ग आय. एच्छय्यादौ कगचज कलीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी गेंदुअं रूप थाय. ॥ १०॥
किराते चः ॥ २३ ॥ किराते कस्य चो नवति ॥ चिला। पुलिन्द एवायं विधिः। कामरूपिणि तु नेष्यते । नमिमो हर-किरायं ॥ १३ ॥ मूल भाषांतर. किरात शब्दना क नो च थाय. सं. किरात तेनुं चिलाओ पाय. जो किरात शब्दनो अर्थ भीलजाति होय तोज आ नियम लागु पडे पण जो श्वाथी भील नुं रूप ली, होय तो न थाय. जेम-सं. नमामो हर-किरातं तेनुं नमिमो हर-किरायं एवं थाय. ॥ १३ ॥
॥ढुंढिका॥ किरात १ च ११ किरात ११ श्रनेन कि चि हरिछादौ र ल कगचजेतित्लुक् अतः सेडोंः चिलाउँ । नम् मस् तृतीयस्य मोमुमाः इति मस्स्थाने मो व्यंजनाददंते थत् श्च मोमुमेवा म मि । हरकीरात कगचजेतित्बुक् अवर्णो ११ क्लीबे स्म् मोनु नमिमो हरकिरायं ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. किरात शब्दना क नो च श्राय. सं. किरात- चालता सूत्रथी कि नो चि थाय. हरिद्रादौ० कगचज अतः से?ः ए सूत्रोथी चिलाओ रूप थाय सं. नम् धातुने मस् प्रत्यय लागे तृतीयस्य मोमुमाः व्यंजनाददंतेऽत् इच्चमोमु० ए सूत्रोथी नमिमो थयु. सं. हरकिरात तेने कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी हरकिरायं एवं रूप थाय. ॥ १३ ॥
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प्रथमःपादः।
११ शीकरे नही वा॥१४॥ शीकरे कस्य नहौ वा जवतः॥सीजरो सीहरो । पदे । सीरो ॥१४॥ मूल भाषांतर. शीकर शब्दना क नो भ अने ह विकटपे थाय. सं. शीकर तेना सीभरो सीअरो एवां रूप थाय. पदे सीहरो एवं रूप थायः॥ १४ ॥
॥ ढुंढिका॥ शीकर ७१ जहाँ १५ वा ११ शीकर-शषोःसः अनेन प्रथमे कस्य नः द्वितीये कस्य इः ११ श्रतःसेझैः सीनरो सीहरो । पदे शाकरः ११ शषोःसः कगचजेतिकबुक् अतःसेझैः। सीरो ॥१॥ टीका भाषांतर. शीकर शब्दना कना भ अने ह किकटपे पाय. सं. शीकर तेने शषोः सः चालता सूत्रथी पेहेला परे कनो भ थाय. अने बीजे परे कनो ह थाय, अतःसे?ः ए सूत्र लागी सीभरो सीहरो एवां रूप श्राय. पदे शीकर तेने शषोःसः कगचज अतःसेडों: ए सूत्रोथी सीअरो रूप थाय. ॥१४॥
चंडिकायां मः॥१५॥ चंडिकाशब्दे कस्य मो जवति ॥ चन्दिमा ॥ १५ ॥ मूल भाषांतर. चंद्रिका शब्दना कनो म थाय. सं. चंद्रिका तेनुं चन्दिमा रूप थाय.॥१५॥
॥ढुंढिका ॥ चंडिका १ म ११ चंडिका अनेन क म सर्वत्ररबुक् ११ अंत्यव्यं० सलुक् चंदिमा ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. चंडिका शब्दना कनो माय. सं. चंद्रिका तेने चालता सूत्रे कनो म थाय. सर्वत्ररलुक् अत्यव्यंजन ए सूत्रोथी चन्दिमा रूप थाय. ॥१०॥
निकष-स्फटिक-चिकुरे दः॥१६॥ एषु कस्य हो नवति ॥ निहसो । फलिहो । चिहुरो । चिहुर शब्दः संस्कृतेपि इति उर्गः ॥ १६ ॥ मूल भाषांतर. निकष स्फटिक अने चिकुर शब्दना कनो ह श्राय. सं. निकष तेनुं निहसो थाय. सं. स्फटिक तेनुं फलिहो थाय. सं. चिकुर तेनुं चिहुरो थाय. चिहुर शब्द संस्कृतमां पण ने, एम उर्ग कोशमां लखेले. ॥ १०६॥
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रएर
मागधी व्याकरणम्.
॥ढुंढिका॥ निकषश्च स्फटिकश्च चिकुरश्च निकषस्फटिकचिकुरं तस्मिन् १६ ११ निकष- अनेन क ह शषोःसः श्रतःसे?ः निहसो । स्फटि
क-११ कगटडेतिस्लुकू स्फटिकेलः टस्य लः अनेन क ह श्रतःसेडोंः फलिहो। चिकुर अनेन क ह अतः सेोः चिहुरो ॥ १६ ॥
टीका भाषांतर. निकष स्फटिक अने चिकुर शब्दना क नो ह वाय. सं. निकष तेने चालता सूत्रथी कनो ह थाय. पनी शषोः सः अतः सेटः ए सूत्रोथी निहसो रूप थाय. सं. स्फटिक तेने कगटड स्फटिकेलः चालता सूत्रे कनो ह थाय. अतःसेझैः ए सूत्रथी फलिहो रूप श्राय. सं. चिकुर तेने चाखता सूत्रथी कनो ह श्राय. पठी अतः सेडोंः ए सूत्रथी चिहुरो रूप थाय. ॥ १६॥
ख-घ-थ-ध-नाम् ॥ २० ॥ स्वरात्परेषामसंयुक्तानामनादिनूतानां ख घ थ धन इत्येतेषां वर्णानां प्रायो हो जवति ॥ ख । साहा । मुहं । मेहल । विह॥ घ । मेहो । जहणं । माहो । जाह ॥ थ नाहो। श्रावसहो । मिहुणं । कह ॥ध । साहु । वाहो बहिरो । बाहर। इन्द-हणू न । सहा । सहावो । नहं । थणहरो । सोहश् ॥ स्वरादित्येव । संखो । संघो । कुंथ । बंधो। खंनो ॥ असंयुक्तस्येत्येव । अक्ख। अग्घ। कत्थई। सिक। बन्ध। लब्न॥ श्रनादेरित्येव । गजंते खे मेहा । ग घणो ॥ प्राय इत्येव सरिसवखलो । पलय-घणो । श्रथिरो । जिण-धम्मो। पणढ-
जननं ॥ मूल भषांतर. स्वरथीपर जोडाक्षर वगरना अने आदिनूत नहीं तेवा ख घ थ ध भ ए अक्षरोनो प्राये करीने ह थाय. ख नाउदा० सं. शाखा तेनुं साहा थाय. सं. मुखं तेनुं मुहं थाय. सं मेखला तेनुं मेहला थाय. सं. लिखति तेनु लिहइ थाय. घ नाउदा० सं. मेघ तेनुं मेहो थाय. सं. जघनं तेनुं जहणं थाय. सं. माघ तेनुं माहो थाय. सं. लाघति तेनुं लाहश् थाय.थ नाउदा-सं. नाथ तेनुं नाहो थाय. सं. आवसथ तेनुं आवसहो थाय. सं. मिथुनं तेनुं मिहुणं थाय. सं. कथति तेनुं कहइ थाय. ध नाउदा०-सं. साधु तेनुं साहू थाय. सं. व्याध तेनुं वाहो थाय. सं. बधिर तेनुं बहिरो थाय. सं. बाधते तेनुं बाहइ थाय. सं. इंद्रधनु तेनुं इन्द-हणू श्राय. भनाउदा०-सं. सभा तेनुं सहा थाय. सं. स्वभाव तेनुं सहावो थाय. सं. नमः
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प्रथमःपादः।
१९३ तेनुं नहं थाय. सं. स्तनभर तेनुं थणहरो थाय. सं. शोभते तेनुं सोहइ थाय. स्वरथकी पर होय तोज थाय. जेमके सं. शंख तेनुं संखो थाय. सं. संघ तेनुं संघो थाय. सं. कंथा तेनुं कंथा थाय. सं. बंध तेनुं बंधो थाय. सं. स्तंभ तेनुं खंभो थाय. जोडाक्षर वगरना एम कडं ने तेथी अहिं न थाय. जेम सं. आख्याति तेनुं अक्खइ थाय: सं. राजति तेनुं अग्घइ थाय. सं. कत्थति तेनु कत्थइ थाय. सं. सिध्रक तेनुं सिद्धओ थाय. सं. बंधति तेनुं बंधइ थाय. सं. लभते तेनुं लभइ थाय. आदिभूत न होय तेम कडं ने तेथी अहिं न पाय. जेम. सं. गर्जते खे मेघाः तेनुं गर्जते खे मेहा ऐवु रूप थाय. सं. गच्छति घनः तेनुं गच्छइ घणो ऐq रूप थाय. मूलमां प्रायः एम कडं ने तेथी अहिं न थाय. जेम. सं. सर्षपखल तेनुं सरिसवखलो एवं थाय. सं. प्रलयघनः तेनुं पलय-घणो रूप श्राय. सं. अस्थिर तेनु अथिरो रूप थाय सं. जिनधर्मः तेनुं जिण-धम्मो रूप श्राय. सं. प्रणष्टभयः तेनुं पण-भओ ए, रूप थाय. सं. नभः तेनुं नभं एवं रूप थाय. ॥ १७ ॥
॥ढुंढिका ॥ खश्च घश्च थश्च धश्च नश्च खघथधनः तेषां ६३ शाखा शषोः सः अनेन खा हा अंत्यव्यंजण स्लुक् साहा एवं मुखं मुहं । मेखला अनेन ख ह मेहला लिखति ख ह त्यादीनां तिइ विदश् । मेघः मेहो । श्लाघृडं सामर्थे श्लाघ० वर्त्त ति अनेन घ ह त्यादीनां ति श्लाह । नाथ नाहो । श्रावसथ श्रावसहो । मिथुने अनेन थ ह नोणः मिहुणं । कथ वर्त्त तिव् त्यादीनां ति : व्यंजनात् अनेन थ ह कह । साधु- ११ श्रनेन ध ह अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंजन सबुक् साहु । व्याध ११ अधोमनयां यबुक् अनेन ध ह श्रतःसेझैः वाहो । बाधते अनेन ध ह त्यादीनां तिवाद ।
धनु सर्वत्र रबुक् अनेन ध ह ११ अक्लीवे सौ दीर्घः नोणः अंत्यव्यंग सबुक् इंदहणू । गुणाद्याः क्लीबेवा इति पुस्त्वं । सजा श्रनेन न ह ११ अंत्यव्यंग सबुक सहा। स्वजावाहअनेन सर्वत्र वूलुक् श्रतःसेडोंः सहावो। ननः अनेन ज द अंत्यव्यंग स्बुक् ११ क्वीबे स् म् मोनु नहं । स्तननर स्तस्य थः नोणः ११ अनेन न ह ११ अतः सेझैः थणहरो। शोजते त्यादीनां ति शषोःसः श्रतः सेझैः संखो । संघो । कंथा । बंधो। स्तंन ११ स्तंनेस्तवेवा ख श्रतः
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मागधी व्याकरणम् . सेझैः खंनो । श्राख्याति ह्रस्वः संयोगे अधोमनयां लुक् स्वराणांस्वराख्यायनादौ हित्वं द्वितीय अरका राज राजेरग्घ बङयसहीररेहा राजस्थाने अग्घ वर्तण तिव् त्यादीनां तिश् श्रग्घर कत्थ श्लाघायां कत्थ तिवू व्यंजनाददंतेऽत् त्यादीनां तिश् कत्थर । सिधक सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व धस्य दः कगचजेति कलुक् ११ अतः सेझैः सिकर्ड लजते। त्यादीनां ति ३ गमादीनां हित्वं द्वितीय पूर्व नस्य ब लब्न । गर्जति बहुष्वाद्यस्यन्ति न्ते रेअंतिस्थाने न्ते व्यंजनात् सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं गर्जते । ख ७१ डेमेघे मिस्थाने डे डित्वं खे मेघ १३ खघथ थ द जस् शसिङसित्तो दीर्घः जस्शसोच्क् मेहा । गति त्यादीनां ति गछ। धन ११ नोणः श्रतः सेझैः घणो ॥ गङते खे मेहा। पुत्रानीवापण चिया मोरा । नको चंदजोयो वासारन्तो हालावत्तो । ११ सर्षपखल शर्षपतप्तवजेवा षात् प्राग् ३ शषोः सः पोवः ११ श्रतः सेझैः सरिसवखलो। प्रलयघन ११ सर्वत्र रबुक् नोणः श्रतः सेोः पलय-घणो।अस्थिर कगटडेति सबुक् ११ श्रतः सेोः श्रथिरो। जिनधर्म नोणः सर्वत्र रलुक् ११ अनादौहित्वं अतः से?ः जिणधम्मो । प्रनष्टनय सर्वत्र रखुक् नोणः ष्टस्यानु ष्टस्य ः। श्रनादौ हित्वं द्वितीय पूर्वठ ट कगचजेति यबुक् ११ श्रतः सेोंः पणन्न । ननस् ११ अंत्यव्यंग सलुकू क्लीबे सम् मोनु० ननं ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. स्वरथीपर जोमादर वगरना आदीनूत नहीं तेवा ख ध थ घ नए अक्षरोनो प्राये करी ह श्राय. सं. शाखा तेने शषोःसः चाखता सूत्रे खा नो हा थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रथी साहा एवं रूप थाय. एवी रीते मुखं तेनुं मुहं थाय. सं. मेखला तेने चालता सूत्रे ख नो ह थाय. एटले मेहला श्राय. सं. लिखति तेने चालता सूत्रे ख नो ह थाय पनी त्यादीनां ए सूत्रथी ति नो इ थाय. एटले लिहइ रूप थाय. सं. मेधः तेनुं मेहो थाय. सं. श्लाघृ धातु सामर्थ्यमा प्रवर्ते तेने वर्त० ति आवे चालता सूत्रे घ नो ह थाय. पनी त्यादीनां ए सूत्रथी श्लाहइ रूप थाय. सं. नाथ तेनुं नाहो रूप श्राय. सं. आवसथ तेनुं आवसहो रूप थाय. सं. मिथुन तेने चालता सूत्रे थ नो ह थाय. नोणः ए सूत्रथी मिहुणं रूप थाय. सं. कथ धातु तेने वर्त्त
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प्रथमः पादः ।
२०५
माना व्यादीनां व्यंजनात् चालता सूत्रे थ नो ह याय. एटले कहइ रूप याय. सं. साधु तेने चालता सूत्रथी ध नो ह थाय. अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंजन० सलुक् ए सूत्रोथी साहु रूप थाय. सं. व्याध तेने अधोमनयां यलुक् चालता सूत्रे ध नो ह थाय. अतः सेर्डोः ए सूत्रथी वाहो रूप थाय. सं. बाधते तेने चालता सूत्रे ध नो ह या पनी त्यादीनां ए सूत्रथी वाहइ रूप याय. सं. इंद्रधनु तेने सर्वत्र चालता सूत्रे धनो ह थाय. अक्लीषे सौदीर्घः नोणः अंत्यव्यं० ए सूत्रथी इन्द- हणू रूप atr. saहिं गुणाद्याः क्लीबेवा ए सूत्रथी पुंलिगपणुं थाय. सं. सभा तेने चालता सूथी भनो ह थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सहा रूप थाय. सं. स्वभाव तेने चालता सूत्री ह थाय. सर्वत्र अतः सेडः ए सूत्रोथी सहावो रूप याय. सं. नभः तेने चालता सूत्री भ नो ह श्राय अंत्यव्यं क्लीबेस्म् ए सूत्रोथी नहं रूप थाय. सं. स्तनभर तेने स्त नो थ थाय. नोण: चालता सूत्रे ह् याय. अतः सेडः ए सूत्रोथी धणहरो रूप याय. सं. शोभते तेने त्यादीनां शषोः सः ए सूत्रोथी सोहइ रूप थाय. सं. शंख तेने अतः सेडः ए सूत्रोथी संखो रूप याय. सं. संघ संघो थाय. सं. कथा नुं कथा थाय. सं. बंध नु बंधो थाय. सं. स्तंभ तेने स्तंभेस्तवेवाखः अतः सेड: ए सूत्रोथी बंभो रूप थाय. सं. आख्याति तेने ह्रस्वः संयोगे अधोमनयां यलुक् स्वराणांस्वरा अनादौद्वित्वं द्वितीय०ए सूत्रोथी अक्खइ रूप थाय. सं. राज् धातु तेने राजेरग्घछज्ज० वर्त्तमाना त्यादीनां ए सूत्रोश्री अग्घइ रूप थाय. सं. कत्थ धातु प्रशंसा करवामां प्रवर्ते तेने तिव प्रत्यय यावे व्यंजनाददंतेऽत् त्यादीनां ए सूत्रोथी कत्थइ रूप थाय. सं. सिधक तेने सर्वत्र अनादौद्वित्वं द्वितीय० कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथी सिद्धओ रूप थाय. सं. लभते तेने त्यादीनां गमादीनांद्वित्वं द्वितीय० ए सूत्रोथी लब्भइ रूप याय. सं. गर्जति तेने बहुष्वाद्य० व्यंजनाददं० सर्वत्र अनादौ ० ए सूत्रोथी गज्जंते रूप थाय. सं. ख तेने डेमेघे० डित्यं ए सूत्रोथी खे रूप थाय. सं. मेघाः तेने खघथ जस्शसि० जस्शसोलुक् ए सूत्रोथी मेहा रूप थाय. सं. गच्छति तेने त्यादीनां ए सूत्रथी गच्छइ रूप थाय. सं. घन तेने नोणः अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी घणो रूप याय. " गते खेमेहा " ए गाथा . सं. सर्षपखल शर्षपतप्तवज्जेवा शषोःसः पोवः अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी सरिसवखलो ए रूप थाय. सं. प्रलयधन तेने सर्वत्ररलुक् नोणः अतः सेर्डो: ए सूत्रोथी पलय - घणो ए रूप थाय. सं. अस्थिर तेते कगटड अतः सेर्डी : ए सूत्रोथी अधिरो रूप थाय. सं. जिनधर्म तेने नोणः सर्वत्ररलुक् अनादौद्वित्वं अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी जिणधम्मो रूप थाय. सं. प्रनष्टभय तेने सर्वत्ररलुक् नोणः ष्टस्यानु० अनादौद्वित्वं द्वितीय० कगचज अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी पणट्टभओ रूप थाय सं. नभस् तेने अंत्यव्यं • क्लीबेस्म मोनु० ए सूत्रोथी नभं एवं रूप याय. ॥ १०७ ॥ थकि धो वा ॥ १८८ ॥ पृथक्शब्दे यस्य धो वा जवति ॥ पिधं पुधं । पिहं पुरं ॥ १८८ ॥
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१९६
मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. पृथक् शब्दना थ नो विकटपे ध थाय. सं. पृथक् तेनुं पिंधं पुधं तथा पिहं पुहं एवां रूप श्रायः ॥ १० ॥
॥ ढुंढिका॥ पृथक् ७१ ध ११ वा ११ पृथक् श्तौवृष्ट वृष्टिपृथक्मृदंगनतृके श्त्वं च अनेन थस्य धः ११ अंत्यव्यंज सलुक् बहुलाधिकारात् वाखरेमश्च कस्य म पिधं पुधं । पदे खघधथ० पिहं पुहं शेषं पूर्ववत् ॥१॥ टीका भाषांतर. पृथक् शब्दना थ नो ध थाय. सं. पृथक् तेने इदुतोवृष्टवृष्टि चालता सूत्रे थ नो ध थाय. पनी अंत्यव्यंज० बहुल अधिकार के तेथी वास्वरेमश्च ए सूत्रथी पिधं पुधं एवा रूप थाय. बीजे पदे खघथ० ए सूत्रथी पिहं पुहं एवां रूप थाय. बाकीनी साधना पूर्ववत् थाय.॥ १७॥
शृङ्खले खः कः ॥२नए॥ शृङ्गले खस्य को नवति ॥ सङ्कलं ॥ १ ॥ मूल भाषांतर. शृंखल शब्दना ख नो क श्राय. सं. शृंखलं तेनुं संकलं एवं रूप थाय. ॥१७॥
॥ टुंढिका ॥ श्रृंखल ७१ ख ११ क ११ शृंखल ऋतोऽत् शषोःसः श स अनेन खस्य कः ११ क्वीबे सम् मोनु संकलं ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. शृंखल शब्दना ख नो क थाय. सं. शृंखल तेने ऋतोऽत् शषोःसः चालता सूत्रधी ख नो क श्राय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोधी संकलं रूप थायः॥ १०ए॥
पुन्नाग-नागिन्योर्गो मः ॥१०॥ श्रनयोर्गस्य मो जवति ॥ पुन्नामा वसन्ते । नामिणी ॥ १९ ॥ मूल भाषांतर. सं. पुन्नाग अने भागिनी ए बे शब्दना ग नो म प्राय. सं. पुन्नागानि वसंते तेनुं पुन्नामाई वसन्ते एवं रूप श्राय. सं. भागिनी तेनुं भामिणी एवं रूप श्रायः ॥ १० ॥
॥ढुंढिका ॥ पुन्नागश्च नागिनी च पुन्नागनागिन्यौ तयोः ७२ ग् ६१ म ११ गस्य मः पुन्नागारं वसंते।पुन्नागस्य पुष्पाणि पुन्नागानि १३ जस्श
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प्रथमःपादः।
सूइंश्णयः सप्राग्दीर्घः इति जस् इंपूर्वस्य च दीर्घःगा अनेन गस्य मः पुनामाई वसंत ७१ डे मिडो मिस्थाने डे डित्यं वसंते नागिनी ११ अनेन नोणः अंत्यव्यंज० स्लुक् नामिण। ॥ १ ॥ टीका भाषांतर. पुन्नाग अने भागिनी शब्दना ग नो म थाय. सं. पुन्नागानि (नागकेशरनां पुष्प ) तेने जस्शसूइंइणयः सप्रागदीर्घः चालता सूत्रथी ग नो म थाय. एटले पुन्नामाइं रूप थाय. सं. वसंत तेने डि प्रत्यय आवे पनी डेमिडो डित्यं ए सूत्रोथी वसंते रूप थाय. सं. भागिनी तेने चालता सूत्रथी म थाय पठी नोणः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी भामिणी रूप थाय. ॥ १० ॥
गगे लः ॥११॥ गगे गस्य लो जवति ॥ बालो । बाली ॥ ११ ॥ मूल भाषांतर. छाग शब्दना ग नो ल थाय. सं. छागः तेनुं छालो रूप थाय. सं. छागी तेनुं छाली रूप थाय. ॥१ए१॥
॥ढुंढिका ॥ गग ७१ ल ११ बगग ११ अनेन गस्य लः अतःसे?ः बालो । बागी- अनेन गस्य लः जातेरयांत्य नित्यं स्त्रीशूजाप्रत्य० ईबुक् - ति अलोपः अंत्यव्यंज सबुक् गली ॥ ११ ॥ टीका भाषांतर. सं. छाग शब्दना ग नो ल श्राय. सं. छाग तेने चालता सूत्रथी ग नो ल थाय. पनी अतःसे?ः ए सूत्रथी छालो रूप थाय. सं. छागी तेने चालता सूत्रथी ग नो ल थाय. जातेरयांत्य स्त्रीशूद्रात् ईप्र० ईलुक्० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी छाली रूप सिह थाय. ॥ ११ ॥
कत्वे उजग-सुनगे वः॥१०॥ श्रनयोरूत्वे गस्य वो नवति ॥ दूहवो सूहवो ॥ ऊत्व इति किम् । उदर्छ । सुहजे ॥ १७ ॥ मूल भाषांतर. दुर्भग अने सुभग शब्दनो ऊ पाय अने ग नो व श्राय. सं. दुभंग- तेनुं दूहवो थाय. अने सं. सुभग तेनुं सूहवो थाय. मूलमां ऊ नुं ग्रहण कर्यु. बे. ज्यारे ऊ थाय त्यारे दुर्भग अने सुभग तेनां दुहओ सुहओ एवां रूप थाय.॥२ए॥
॥ढुंढिका ॥ ऊत्व ७१ उर्जगश्च सुजगश्च उर्जगसुजगं तस्मिन् ७१ वा ११ कुनंग- अंत्यव्यंज० रबुक् बुकिडरोवा इति ऊ दू । खघथ० नस्य
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१८
मागधी व्याकरणम्.
दः
छानेन गस्य वः ११ अतः सेडः दूहवो । सुजग उत्सुजगमुसलेवा इति सुसू खघथधनां जस्य हः अनेन गस्य वः ११ अतःसेर्डोः सुहवो । डुर्जगसुगज- अंत्यव्यं० लुक् खधथ० जस्यदः कगचजेतिग्लुक् ११ यतः सेर्डोः पु सु ॥ १२ ॥
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टीका भाषांतर. दुर्भग ने सुभग शब्दने ऊ थाय. अने ग नो व आय. सं. दुर्भग तेने अंत्यव्यं • लुकिदुरोवा खघथ० अतः सेडः ए सूत्रोथी दूहवो रूप थाय. सं. सुभग तेने उत्सुभगमुशलेवा स्वघथ० चालता सूत्रे ग नो व थाय. अतःसेर्डोः ए सूत्रश्री सुहवो रूप थाय. सं. दुर्भग- सुभग तेने अंत्यव्यंज० खघथ० कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथी दुहओ सुहओ रूप थाय ॥ १७२ ॥ खचित-पिशाचयोश्च स लौ वा ॥ १०३ ॥
नयोश्वस्य यथासंख्यं स ल इत्यादेशौ वा जवतः ॥ खसि खइ । पिसल्लो पिसाई ॥ १०३ ॥
मूल भाषांतर. खचित ने पिशाच शब्दना च ने स ल्ल एवा आदेश विकल्पे थाय. सं. खचित तेनुं खसिओ खइओ एवा रूप थाय. सं. पिशाच तेनां पिसल्लो पिसाओ एवा रूप याय. ॥ १०३ ॥
॥ ढुंढिका ॥
खचितश्च पिशाचश्च खचितपिशाचौ तयोः ७२ च ६१ स ल १२ खचित- अनेन चस्य सः कगचजेतित्लुक् श्रतः सेर्डोः खसि । प कगचजेति जतयोर्लुक् ११ अतः सेर्डोः खर्ज । पिशाच - इस्वःसंयोगे शषोःसः श स अनेन वस्य लः अतः सेर्डोः पिसल्लो | पके पिशाच- ह्रस्वः संयोगे शषोः सः श स कगचजे तिवलुक् ११ यतः सेर्डो: पिसा ॥ १०३ ॥
टीका भाषांतर. खचित अने पिशाच शब्दना अनुक्रमे स नेल एवा - देश थाय. सं. खचित तेने चालता च नो स थाय कगचज अतः सेड : ए सूत्रोश्री खसिओ रूप थाय. पक्षे कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथी खइओ रूप थाय. सं. पिशाच तेने ह्रस्वः संयोगे शषोः सः चालता सूत्रे व नो ल्ल याय. अतः सेडः ए सूत्रोश्री पिसओ रूप याय. पदे पिशाच तेने ह्रस्वः संयोगे शषोःसः कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथी पिसाओ रूप याय. ॥ १०३ ॥
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प्रथमःपादः।
रण
जटिले जो को वा ॥१४॥ जटिले जस्य को वा जवति ॥ जडिलो जडिलो ॥ १ए। ॥ मूल भाषांतर. जटिल शब्दना जनो विकटपे झ वाय. जटिल तेनां झडिलो जडिओ एवां रूप थाय. ॥ १४ ॥
॥ढुंढिका ॥ जटिल ७१ ज ६१ ज ११ वा जटिल- टोडः अनेन जस्य जः ११ श्रतःसे?ः फडिलो जडिलो ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. जटिल शब्दना ज नो विकटपे झ थाय. सं. जटिल तेने टोडः आ चालता सूत्रे जनो झ थाय. अतःसेडोंः ए सूत्रोथी झडिलो जडिलो एवां रूप थाय.॥१ए। ॥
टोडः ॥१५॥ स्वरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेष्टस्य डो नवति ॥ नडो। नडो। घडो। घर ॥ खरादित्येव । घंटा ॥ असंयुक्तस्येत्येव खहा ॥ अनादेरित्येव । टको ॥ क्वचिन्न नवति । अटति । अट॥ १५ ॥
मूल भाषांतर. स्वरथीपर जोडावर वर्जित अने आदि न होय तेवा ट नो ड थाय. सं. नट तेनुं नडो थाय. सं. भट तेनुं भडो थाय. सं. घट तेनुं घडो थाय. सं. घटते तेनुं घडइ श्राय. स्वरथीपर होय तो ज श्राय एम कर्वा ने तेथी सं. घंटा त्यां न थाय. जोडाक्षेरवर्जित एम कडं ने तेथी सं. खट्वा तेनुं खहा थाय. आदिभूत न होय एम कडं बे तेथी. सं. टक्कः तेनुं टक्को थाय. कोइ ठेकाणे न थाय. जेम सं. अटति तेनुं अटइ थाय.॥ १५ ॥
॥टुंढिका ॥ ट ६१ डा ११ नट नट घट ११ अनेन ट ड अतः सेझैः नडो। जडो । घडो । घटते अनेन ट ड त्यादीनां घडो । घटते अनेन ट ड त्यादीनां घडश् । घण्टा ११ अंत्यव्यंग घएटा । खट्टा । ११ सर्वत्र रनुक् श्रनादौहित्वं अंत्यव्यंण सबुक् खट्टा । टक्क । अतः सेझैः टक्को । अटति त्यादीनां ति अटश् ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. स्वरथीपर जोडाकरे वर्जित अने श्रादिभूत न होय तेवा ट नो ड थाय. सं. नट भट घट तेने चालता सूत्रथी ८ नो ड थाय. अतःसेझैः ए सूथी नडो भडो घडो एवां रूप थाय. सं. घटते तेने चाखता सूत्रथी ट नो ड थाय
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२००
मागधी व्याकरणम्. त्यादीनां ए सूत्रोथी घडइ रूप थाय. सं. घंटा तेने अंत्यव्यं० सूत्रधी घंटा रूप थाय. सं. खट्टा तेने सर्वत्रवलुक् अनादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी खट्ठा रूप थाय. सं. टक्कतेने अतःसे?: सूत्रथी को रूप थाय. सं. अटति तेने त्यादीनां ए सूत्री अटइ रूप थाय. ॥ १एए॥
सटा-शकट-कैटन्ने ढः ॥२६॥ - एषु टस्य ढो नवति ॥ सढा । सयढो। केढवो ॥ १६ ॥
मूल भाषांतर. सटा शकट कैटभ ए शब्दोना ट नो ढ श्राय. सं. सटा तेनुं सढा रूप धाय. सं. शकट तेनुं सयढो रूप श्राय. सं. कैटभ तेनुं केढवो रूप थाय. ॥ १६॥ सटा च शकटं च कैटनश्च सटाशकट कैटनं तस्मिन् ७१ ट ११ सटा ११ अनेन ट ढः अंत्यव्यं सूलुक् सढा शकट ११ शषोः सः कगचजेतिस्बुक् श्रवों अनेन ट ढ अतः सेझैः गुणाद्याः क्लीबे वा इति पुंस्त्वं सयढो। कैटज- ११ औत्एत् । कैके अनेन ट ढ कैटने नोवः अतः से?ः केढवो ॥१६॥ टीका भाषांतर. सटा शकट कैटभ ए शब्दोना ट नो ढ थाय. सं. सटा तेने चालता सूत्रथी ट नो ढ थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रथी सढा रूप श्राय. सं शकट तेने शषोः सःकगचज अवर्णों था चालता सूत्रे ट नो ढ थाय. सं. अतः से?ः गुणाद्याः क्लीबे वा ए सूत्रोथी सयढो रूप थाय. सं. कैटभ तेने ऐत एत् चालता सूत्रे ट नो ढ थाय. कैटभे भोवः अतः सेोंः ए सूत्रोथी केढवो रूप धाय. ॥१६॥
स्फटिके लः॥१७॥ स्फटिके टस्य लो जवति ॥ फविहो ॥ मूल भाषांतर. स्फटिक शब्दना ट नो ल थाय. सं. स्फटिक तेनुं फलिहो रूप श्रायः ॥ १७ ॥
॥ढुंढिका ॥ स्फटिक ११ ल ११ स्फटिक- कगटडेति सलुक् अनेन ट ल निषकेति कस्य हः श्रतः सेझैः फलिहो ॥ १९ ॥ टीका भाषांतर. स्फटिक शब्दना ट नो ल श्राय. सं. स्फटिक तेने कगटड चालता सूत्रथी ट नो ल थाय. निषक० ए सूत्रे क नो ह थाय अतः से?ः ए सूत्रोथी फलिहो रूप थाय. ॥ १७ ॥
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प्रथमः पादः
चपेटा - पाटौ वा ॥ १९८ ॥
चपेटाशब्दे एयन्ते च पटि धातौ टस्य लो वा जवति ॥ चवि
ला । चविडा | फालेइ फाइ ॥
मूल भाषांतर. चपेटा शब्द अने एयंत एवा पटि धातुना द नो विकल्पे ल आय. सं. चपेटा तेनां चविला चविडा एवां रूप थाय. सं. पाटयति तेनां फालेइ फाडे एवां रूप याय. ॥ १०८ ॥
॥ ढुंढिका ॥
चपेटा च पाटश्च चपेटापाटिः ७१ वा ११ चपेटा एता वेददा चपेटा इति पे पि पोवः प व छानेन टस्य लः ११ अंत्यव्यं० सलुक् चविला । पदे चपेटा एत इद्वा वे० पिपि पोवः पवः टोमः ११ अंत्यव्यं सलुक् चविका । श्रटू पटू गतौ पट् पटतं प्र युंक्ते प्रयोक्तृ सिग् इ वृद्धिः प पा लोकात् पाटि इति वर्त्तत रदावावे इति टे अनेन टस्य लः पाटि पाटिपरुष फः त्यादीनां फाले पदे इति पूर्ववत् टोमः फाडेइ
॥
२०१
इति पस्य
१०८ ॥
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टीका भाषांतर. चपेटा अने पाटि धातुना ट नो ल विकल्पे थाय. सं. चपेटा तेने एतइदा वेदना चपेटा पोवः चालता सूत्रथी ट नो ल थाय. अंत्यव्यंजन० ए सूत्री चविला रूप याय. पदे चपेटा तेने एत इद्वा पोवः टोड: अंत्य० ए सूत्रश्री चविडा रूप थाय. पट् धातु गतिमां प्रवर्त्ते जे गति करे तेने प्रेरे ते अर्थमां प्रयोक्तृणिग् लोकात् ए सूत्रोथी पाटि रूप थाय. तेने वर्त्तमा० णेरदावावे चालता सूत्रे ट नो ल a. पी पाटिपरुष त्यादीनां ए सूत्रोथी फालेह रूप याय, पछे पूर्ववत् साधी टोड: ए सूत्रोथी फाडेइ रूप याय. ॥ १०८ ॥ FT: || 200 ||
स्वरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेष्ठस्य ढो जवति ॥ मढो । सढो । कमढो । कुढारो । पढ ॥ स्वरादित्येव । वेकुंठगे । श्रसंयुक्तस्येत्येव । चि ॥ नादेरित्येव । हिश्रए गइ ॥ १९ ॥
मूल भाषांतर. स्वरथकीपर जोडाक्षरे वर्जित ने श्रादिभूत न होय तेवा ठ नो ढ थाय. सं. मठः तेनुं मढो थाय. सं. शठः तेनुं सढो थाय. सं कमठः तेनुं कमढो सं. कुठारः तेनुं कुढारो थाय. सं. पठति तेनुं पढइ थाय. स्वरथीपर होय तोज थाय. जेम सं. वैकुंठ तेनुं वेकुंठो थाय. जोडाक्षर वर्जित एम कह्युं बे तेथी सं.
थाय.
२६
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मागधी व्याकरणम्.
२०२
तिष्टति तेनुं चिट्ठह थाय आदिभूत न होय एम कह्युं वे तेथी सं. हृदये तिष्टति तेनुं हिअऐ ठाइ एवं रूप याय. ॥ १९ ॥
॥ ढुंढिका ॥
व ६१ ढ ११ मठ शठ कमठ कुठार ११ अनेन तस्य ढः श्रतः सेडः शषोः सः मढो सढो कमढो । कुढारो । पठति अनेन वस्य ढः त्यादीनां ति इ पढ । वैकुंठ- ११ ऐत एत् वै वे अतः सेडों: वेकुंगे । स्था तिव स्थष्टायक चिट्ठ० स्था चिठ श्रादेशः व्यंजना दर्दतेऽत् लोकात् त्यादीनां ति इ चिट्ठर । हृदय इत्पादौ हि कगचजे ति दययोर्लुक् ७१ डेम्मिडे डिस्थाने डे नित्यंत हिए । स्था-तिव् स्थष्टाः । इति स्था स्थाने वा त्यादीनां ति इव ॥ १०९ ॥
टीका भाषांतर. स्वरथीपर जोडाक्षर वर्जित ने आदिनूत न होय तेवा ठ वो ढ थाय. सं. मठ शठ कमठ कुठार तेने चालता सूत्रथी ठ नो ढ थाय. अतः सेर्डो: शषोः सः ए सूत्रोश्री मढो सढो कमढो कुढारो ए रूप सिद्ध थाय. सं. पठति तेने चालता सूत्रथीठ नो ढ याय. पछी त्यादीनां ए सूत्रथी पढइ रूप थाय. सं. वैकुंठ तेने ऐत एत अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी वेकुंठो थाय. सं. स्था धातु तेने ति प्र० आवे स्थष्टाथक्क चिट्ठ० ए सूत्रथी स्था ने स्थाने चिट्ठ आदेश थाय. व्यंजना ददंतेऽत् लोकात् त्यादीनां ए सूत्रोथी चिट्ठह रूप याय. सं. हृदय तेने इत्कृपादौ कगचज डेम्मिडे० नित्यंत ए सूत्रोथी हिअए थाय. सं. स्था धातु तेने तिवप्र० आवे स्थष्टाः त्यादीनां ए सूत्रोथी ठाइ रूप थाय. ॥ १०९ ॥
कोठे लः ॥ २०० ॥
कोठे वस्य द्विरुक्तो लो जवति ॥ अंकोल तेल-पुष्पं ॥ मूल भाषांतर. अंकोठ शब्दना ठ नो विवालो ( बेवडो ) ल याय. सं. अंकोट तेलतुप्यं तेनुं कोल तेल तुप्पं एवं थाय.
॥ ढुंढिका ॥
कोठ ११ ११ कोठ तैल तुप्पं श्रनेन तस्य लः तेल्ल कोठ तैसे न तुप्पं प्रतिं देश्योऽयं अंकोठतेलतुप्पं - नेन वस्य लः तैल इत्यत्र ऐत एत् ते ते तैलादौ वा द्वित्वं तेल ११ क्लीबे सम् मोनु० अंकोल तेल तुप्पं ॥ २०० ॥
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प्रथमः पादः ।
२०३
टीका भाषांतर. अंकोठ शब्दना ठ नो बेवडो ल ( ल्ल ) थाय. सं. अंकोठ तैल तुम्यं एटले कोवना तेलथी नाखवा योग्य आ देशी शब्द वे सं. अंकोठ तेने चालता सूत्री उनोल थाय. सं. तैल शब्दने ऐत एत् तैलादौवा ए सूत्रोथी तैल नु तेल्ल श्राय. पी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अंकोल्लतेल तुप्यं एवं रूप थाय ॥ २०० ॥ पिठरे हो वा रथ डः ॥ १०१ ॥
पिठरे वस्य हो वा जवति ॥ तत्संनियोगे च रस्य डो जवति ॥ पिरो पिढडो ॥ २०९ ॥
मूल भाषांतर. पिठर शब्दना ठ नो विकटपे ह थाय. तेना योगे र नो ड थाय. सं. पिठर तेनां पिहरो पिढरो एवां रूप श्राय ॥ २०१ ॥
॥ ढुंढिका ॥
पिवर ११ दो ११ वा ११ र ६१ ड ११ पिवर ११ श्रनेन वा वस्य हः रस्य डः ११ छातः सेर्डोः पिहरो । द्वितीये पिठरः ११ वोढः व अतः सेर्डोः पिढरो ॥ २०१ ॥
दीका भाषांतर पिठर शब्दना ठ नो विकल्पे ह थाय. अने तेने योगे र नो ड थाय. सं. पिठर तेने चालता सूत्रथी ठ नो ह थाय. छाने र नो ड थाय. अतः सेर्डोः ए सूत्री पिहरो रूप थाय. बीजे पछे सं. पिठर तेने ठोढः अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी पिढरो रूप श्राय ॥ २०१ ॥
डो लः ॥ २०२ ॥
स्वरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेर्डस्य प्रायो लो जवति ॥ वडवामुखं । वलया - मुहं ॥ गरुलो । तलायं । कील || स्वरादित्येव । मोंडं । कोंडं ॥ श्रसंयुक्तस्येत्येव । खग्गो ॥ श्रनादेरित्येव । रमइ डिजो ॥ प्रायो ग्रहणात् क्वचिद् विकल्पः । वलिसं वडिसं । दालिमं दामिमं । गुलो गुडो । पाली गाडी । पलं एडं । श्रमेलो श्रवेो ॥ कचिन्न जवत्येव । निबिडं । गउडो पीडिां नीडं । उड्डू | तडी ॥ २०२ ॥
मूल भाषांतर. स्वरथी पर जोडाक्षरवर्जित ने आदिनूत न होय तेवा ड नो प्रायेकरीने ल ाय. सं. वडवामुखं तेनुं वलयामुहं एवं रूप थाय. सं. गरुडः तेनुं गरुलो थाय. सं. तडाग तेनुं तलायं थाय. सं. क्रीडति तेनुं कील थाय. स्वरथी पर होय तोज थाय. जेम सं. मुंड कुंड तेनां मोंडं कोडं एवां रूप थाय. जोडाक्षरे
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मागधी व्याकरणम्. वर्जित एम कडं जे. तेथी सं. खगः तेनुं खग्गो रूप पाय. आदिभूत न होय एम कर्दा बे. तेथी सं.रमते डिम्भः तेनुं मूलमा रमडिम्मो थाय प्रायकरीने एम कडं ने तेथी कोइ - काणे विकटपे थाय. जेम सं. वडिसं तेनुं वलिसं वडिसं एवां रूप थाय. सं. दाडिमं तेनां दालिमं दाडिमं एवां रूप थाय. सं. गुड तेनां गुलो गुडो एवां रूप प्राय. सं. नाडी तेनां णाली णाडी रूप थाय. सं. नलं तेनां णलं णडं रूप थाय. सं. आपीड तेनां आमेलो आवेडो रूप थाय. कोई ठेकाणे थाय पण नहीं. जेम-सं. निबिडं तेनुं निबिडं थाय. सं. गौड तेनुं गउडो थाय. सं. पीडितं तेनुं पीडिअं थाय. सं. नीडं तेनुं नीडं थाय. सं. उडु तेनुं उडू श्राय. सं. तडित् तेनुं तडी थाय. ॥ २०॥
॥ढुंढिका ॥ ड ६१ ल ११ वडवामुख अनेन ड लः कगचजेति तदपय इति वबुक् श्रवों अ य खघथधहः ११ क्लीबे सम् मोनु वलयामुहं । गरुड ११ अनेन डस्य लः श्रतः सेडोंः गरुलो । तडाग अनेन डस्य लः कगचजेति ग्बुक् श्रवर्णो थ य ११ क्लीबे सम् मोनु० तलायं । क्रीडति सर्वत्रेति रलुक् अनेन मस्य लः त्यादीनां ति कील । मुंम कुंड ११ उत्संयोगे उत्वं क्लीबे सम् मोनुन मोडं कोंडं । खड्ग कगटडेति डबुक् श्रनादौ द्वित्वं श्रतः सेझैः खग्गो । रमतेत्यादीनां ति : रमश् । डिम्नः ११ अतः से?ः डिम्लो । वडिश प्रायोग्रहणात् कचिछा नवति डस्य सः शषोः सः ११ क्लीबे स्म् मोनु वलिसं वडिसं । दाडिम डस्य लः पदे न नवति ११ क्लीबे सम् मोनु दालिमं दाडिमं । गुड वा डस्य लः ११ अतः सेझैः गुलो गुडो । नामी वाडस्य लः वादौ नणः ११ अंत्यव्यंजन सबुक् णामी णाली । नड वा ड ल वादौ नणः ११ क्लीबे सम् मोनु णडं णलं । श्रापीड नीपापीडेमोवा पस्य मः एत्पीयुषा पीडबित्नी मा मे वा डोलः ११ अतः से?ः श्रामेलो पदे श्रापीड पोवः एत्पीयूषापीमा एत्वं ११ श्रतः सेझैः आवेगो । निविड ११ क्लीबे सम् मोनु निबिडं । गौड श्रवपौर गौ गज ११ श्रतः सेझैः गजडो । पीडित ११ कगचजेति मबुक् क्लीबे स्म मोनु पीडिशं नीड ११ क्वीबे सम् मोनु० नीडं। उकु
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प्रथमःपादः।
२०५ ११ अक्की बे दीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् उडू । तमित् अंत्यव्यंजन तबुक् अक्कीबे सौदीर्घः अंत्यव्यं स्बुक् तमी ॥ २० ॥ टीका भाषांतर. स्वरथीपर जोडाक्षरे वर्जित अने श्रादित न होय तेवा ड नो प्रायेकरी ल श्राय. सं. वडवामुख तेने चालता सूत्रे डनो ल थाय. पनी कगचज० तदपय अवर्णो खघथ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वलयामुहं रूप थाय. सं. गरूड तेने चालता सूत्रे डनो ल श्राय पनी अतः सेोंः ए सूत्रथी गरुलो रूप थाय. सं. तडाग तेने चालता सूत्रथी डनो ल थाय. कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री तलायं रूप थाय. सं. क्रीडति तेने सर्वत्र चालता सूत्रे डनो ल थाय. त्यादीनां ए सूत्रथी कीलइ रूप थाय. सं. मुंड कुंड तेने ओत्संयोगे क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी मोंडं कोंडं एवां रूप श्राय. सं. खड्ग तेने कगटड अनादौ द्वित्वं अतःसेझैः ए सूत्रोथी खग्गो रूप थाय. सं. रमते तेने त्यादीनां ए सूत्रथी रमइ थाय. सं. डिंभः तेने अतः सेोंः ए सूत्रथी डिंभो थाय. सं. वडिश तेने प्राय शब्दनुं ग्रहण तेथी को ठेकाणे विकटपे डनो ल थाय. पनी शषोः सः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वलिसं वडिसं एवां रूप थाय. सं. दाडिम तेने चालता सूत्रे डनो ल थाय. एक पदे न थाय पी क्लीबे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी दालिम दाडिमं एवां रूप थाय. सं गुड तेने विकटपे डनो ल थाय पी अतः सेोंः ए सूत्रथी गुलो गुडो रूप थाय. सं. नाडी तेने विकटपे डनो ल थाय. वादौ नणः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी णाडी णाली एवा रूप थाय. सं. नड तेने विकटपे डनो ल थाय. वादी नणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी णडं णलं एवा रूप धाय. सं. आपीड तेने नीपापीडेमोवा ऐत्पीयूषापीड. डोलः अतः से?: ए सूत्रोधी आमेलो थाय. बीजे पदे आपीड तेने पोवः एत्पीयुषापीड० अतः से?: ए सूत्रोथी आवेडो रूप थाय. सं. निविड तेने क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी निषिडं एवं रूप थाय. सं. गौड तेने अवपौर ए सूत्रथी गौ नो गउ थाय. पनी अतः सेोंः ए सूत्रथी गऊडो रूप थाय. सं. पीडित तेने कगचज क्लीबे सम् मोमु० ए सूत्रोथी पीडिअं रूप थाय. सं. नीड तेने क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी नीडं रूप थाय. सं. उडु तेने अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी उडू रूप थाय. सं. तडित् तेने अंत्यव्यंज० अक्लीबे सौ० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी तडी एवं रूप थाय. ॥२०॥
वेणौ णो वा ॥२०३॥ वेणौ णस्य लो वा जवति ॥ वेलू वेणू ॥ २०३ ॥
मूल भाषांतर. वेणु शब्दना ण नो विकटपे ल थाय. सं. वेणु तेना वेलू तथा वेणू एवा रूप थाय.॥२०३ ॥
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२०६
मागधी व्याकरणम्.
॥ ढुंढिका ॥ वेणु ७१ णू ६१ वा ११ वेणु अनेन वा णस्य लः अलीबे सौ दीर्घः वेलू वेणू ॥ टीका भाषांतर. वेणू शब्दना ण नो विकटपे ल थाय. सं. वेणु तेने आ चालता सूत्रथी ण नो ल थाय. अक्लीबे सौ दीर्घः ए सूत्रोश्री वेलू वेणू एवा रूप धाय. २०३
तुच्छे तश्च-गै वा ॥२०॥ तुबशब्दे तस्य च इत्यादेशौ वा नवतः ॥ चुछ । बुद्धं । तुलं २०४ मूल भाषांतर. तुच्छ शब्दना तने च तथा छ एवा विकटपे आदेश श्राय. सं. तुच्छं तेना चुच्छं छुच्छं एवां रूप थाय. अने विकटप पदे तुच्छं पण आय. ॥२०॥
॥ढुंढिका ॥ तुब ७१ त् ६१ च ब १५ वा ११ तु अनेन वा तस्य चत्वं बत्वं च ११ क्लीबे सम् मोनु चुलं । बुद्धं । तृतीये प्रकृतिरेव तुझं ॥२०॥ टीका भाषांतर. तुच्छ शब्दना तने स्थाने च तथा छ एवा विकटपे श्रादेश थाय. सं. तुच्छ तेने चालता सूत्रधी तनो च तथा छ थाय. पी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चुच्छं छुच्छं एवां रूप थाय. त्रीजा पके मूलरूप तुच्छं एबुं रहे. ॥ २० ॥
तगर-त्रसर-तूबरे टः॥२०॥ एषु तस्य टो नवति ॥ टगरो । टसरो । टूवरो ॥ __ मूल भाषांतर. सं. तगर त्रसर तूबर ए शब्दोना तनोट थाय. सं. तगरः तेनुं टगरो श्राय. सं. त्रसरः तेनुं टसरो रूप थाय. सं. तूबरः तेनुं टूवरो श्रायः ॥२०॥
॥ढुंढिका ॥ तगरश्च त्रसरश्च तूबरश्च तगरत्रसरतूबरं तस्मिन् ७१ ट ११ थनेन तस्य टः श्रतः सेझैः टगरो । त्रसर सर्वत्र रखुक् अनेन तस्य टः ११ श्रतः सेोः टसरो । तूबर तस्य टः ११ श्रतःसे? टूवरो। ॥२०॥ टीका भाषांतर. तगर सर तूबर ए शब्दोना तनो ट थाय. सं. तगरः तेने चाखता सूत्रधी तनोट थाय. अतः सेझैः ए सूत्रथी टगरो रूप थाय. सं. त्रसरः तेने सर्वत्र रलुक् चालता सूत्रथी तनो ट थाय. अतः सेों: ए सूत्रश्री टसरो रूप धाय. सं. तूबर तेने चालता सूत्रथी तनोट थाय. पठी अतः सेोंः ए सूत्रथी टूवरो रूप थायः ॥२०॥
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प्रथमःपादः।
२००
कुष्कृतं । इत्यादि । प्राय ॥ प्रति
प्रत्यादौ डः॥२०६॥ प्रत्यादिषु तस्य मो जवति ॥ पमिवन्नं । पमिहासो । पडिहारो। पामिप्फकी। पमिसारो। पमिनिअत्तं । पडिमा । पडिवया । पडं सुश्रा । पडिकर । पहुडि । पाहुडं वावडो । पडाया। बहेडश्रो । हरडई । मडयं ॥ आर्षे । कुष्कृतं । कुकडं । सुकृतं । सुकडं थाहृतं । श्राहडं ॥ श्रवहृतं । श्रवदडं । इत्यादि ॥ प्रायश्त्येव । प्रतिसमयं । पश्समयं ॥ प्रतीपं । पश्वं ॥ संप्रति । संपश् ॥ प्रतिष्टानं । पश्हाणं ॥प्रतिष्ठा । पश्हा ॥ प्रतिज्ञा । पश्णा ॥ प्रति । प्रभृति । प्रानृत । व्याप्त । पताका । बिजीतक । हरितकी । मृतक । इत्यादि। मूल भाषांतर. प्रतिशब्द जेमने आदि ले तेवा शब्दोना तनो ड श्राय. सं. प्रतिपन्नं तेनुं पडिवन्नं थाय. सं. प्रतिभास तेनुं पडिहासो थाय. सं. प्रतिहार तेनुं पडिहारी थाय. सं. प्रतिस्पर्छिन् तेनुं पाडिप्फडी थाय. सं.प्रतिसार तेनुं पडिसार थाय. सं. प्रतिनिवृत्त तेनुं पडिनिअत्तं श्राय. सं. प्रतिमा तेनुं पडिमा थाय. सं. प्रतिपत् तेनुं पडिवया थाय. सं. प्रतिश्रुत् तेनुं पडंसुआ थाय. सं. प्रति करोति तेनुं पडिकरइ थाय. सं. प्रभृति तेनुं पहुडि श्राय. सं. प्राभृत तेनुं पाहुडं थाय. सं. व्यापृत तेनुं वावडो थाय. सं. पताका तेनुं पडाया थाय. सं. बिभीतक तेनुं बहेडओ थाय. सं. हरीतकी तेनुं हरडई थाय. सं. मृतक तेनुं मडयं थाय. आर्षप्रयोगमां. सं. दुष्कृतं तेनुं दुक्कडं वाय. सं. सुकृतं तेनुं सुकडं थाय. सं. आहृतं तेनुं आहडं थाय. सं. अवहृतं तेनुं अवहडं श्राय. इत्यादि जाणीलेवु. प्रायेकरीने श्राय. एवो पद लइए तो सं. प्रतिसमयं तेनुं पइसमयं थाय. सं. प्रतीपं तेनुं पईवं थाय. सं. संप्रति तेनुं संपइ थाय. सं. प्रतिष्ठानं तेनुं पइठाणं थाय. सं. पतिष्टा तेर्नु पइट्टा थाय. सं. प्रतिज्ञा तेनुं पइण्णा श्रायः ॥ २०६॥
॥ढुंढिका ॥ प्रत्यादि ७१ ड ११ प्रतिपन्न- अनेन तस्य डः पोवः सर्वत्ररबुक् क्कीबे सम् मोनु पडिवन्नं । प्रतित्नास- सर्वत्ररलुक खधथनहः अनेन तस्य डः अतः सेझैः पडिहासो। प्रतिहार सर्वत्र रलुक् अनेन तस्य डः ११ श्रतः सेझैः पडिहारो। प्रतिस्पर्डिन्- सर्वत्र रखुक् अनेन तस्य डः श्रतः समृध्यादौ वा पस्य पा प्पस्पयोः फः श्रना
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२०ज
मागधी व्याकरणम्. दौ हित्वं द्वितीयपूर्वकप अंत्यव्यं तबुक् ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अं. त्यव्यंग सबुक् पाडिप्फही। प्रतिसार- सर्वत्र रखुक् थनेन तस्य डः ११ अतः से?ः पडिसारो । प्रतिनिवृत्त सर्वत्र रवबुक् अनेन तस्य डः । ११ क्लीवे स्म् पमिनिअत्तं । प्रतिमा सर्वत्र रखुक् अनेन तस्य डः ११ स्रव्यंसुपुक् पडिमा । प्रतिपत् सर्वत्ररबुक् अनेन तस्य डः पोवः स्त्रियामादविद्युतः त् था अवर्णो प्रतिपत् ११ अंत्यव्यंग सबुक् पाडिवया । प्रतिश्रुत् सर्वत्ररलुक् अनेन तस्य डः पथुपृथिवीप्रतिश्रुत्मुषि इकार अत्वं वादावंतः इति अनुस्वारः सर्वत्ररबुक् शषोःसः स्त्रियामादविद्युतः त् था ११ अंत्यव्यं सबुक् पडंसुथा। कृ प्रतिपूर्वकः तिव् व्यंजनाददंतेऽत् कृ झवर्णस्यार कर लोकात् त्यादीनां ति सर्वत्र प्रमध्यात् रलोपः अनेन तस्य डः पडिकर । प्रनृति रबुक् उहत्वादौ नृ मु खघथा जस्यहः अनेन तस्य डः ११ अंत्यव्यंग सलुक् पहुडि । प्रानृत- ११ क्लीबे सम् मोनु शेषं पूर्ववत् पाहुडं । व्यापृतः अधोमनयां यलोपः इतोऽत् पृ पः पोवः पस्य वः अनेन तस्य डः श्रतः सेझैः वावडो । पताका अनेन तस्य डः कगचजेति कबुक् अवर्णो श्र य ११ अंत्यव्यंजन सबुक पडाया। बिजीतक- पथिपृथिवी प्रतिश्रु० खघथा जस्य हः एत्पीड पीयूषा एत्वं अनेन तस्य डत्वं कगचजेति कलुक् । ११ श्रतःसेडोंः । बहेड। हरीतकी- हरीतक्यामीतोऽत्री र अनेन तस्य डः कगचजेति क्लुक् अंत्यव्यं० सबुक् हरड । मृतक- तोऽत् अनेन तस्य डः कगचजेति क्लुक् श्रवर्णो थ य ११ क्लीबे स्म् मोनु मडयं पुष्कृत- कगटडेतिडबुक् रुतोऽत् अनादौ हित्वं थार्षत्वात्तस्य डः ११ क्लीबे सम् मोनु उक्कडं एवं सुकडं पाहडं श्रवहडं पश्समयं पश्वं नवति संप्रति । इतोऽत् त्यादीनां ति ३११अंत्यव्यंग स्लुक् संपश् । प्रतिष्ठान- सर्वत्ररलुक् ष्टस्यानुष्ट ष्टस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उट नोणः क्लीबे सम् मोनु पश्टाणं । प्रतिज्ञा- सर्वत्र रखुक् कगचजेति तबुक् म्नझोर्णः झण अनादौहित्वं ११ अंत्यव्यंजन सबुक् पश्णा ।। २०६॥
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प्रथमः पादः ।
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टीका भाषांतर. प्रति शब्द जे मने यदि बे तेवा शब्दोना त नो ड थाय. सं. प्रतिपन्न - तेने चालता सूत्रथी त नो ल थाय. पोवः सर्वत्ररलुक् कीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पतिवन्नं रूप थाय. सं. प्रतिभास तेने सर्वत्र रलुक् खघथ० चालता सूत्रथी तनो ड थाय. पनी अतः सेर्डोः ए सूत्रथी पडिहासो रूप थाय. सं. प्रतिहार तेने सर्वत्र चालता सूत्री त नो ड थाय. अतः सेर्डी : ए सूत्रोथी पडिहारो रूप याय. प्रतिस्पर्छिन् अतः समृध्यादौ वा ष्पस्प योफः अनादौ द्वित्वं द्वितीय अंत्यव्यंजन ० अक्कीबे सौदीर्घः अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी पाडिएफडी रूप याय. सं. प्रतिसार तेने सर्वत्र चालता सूत्री त नो उ थाय. अतः सेड : ए सूत्रोथी पडिसारो रूप थाय. सं. प्रतिनिवृत्त तेने सर्वत्र चालता सूत्रथी त नो ड थाय. क्लीबे स्म ए सूत्री पडिनिअत्तं रूप याय. सं. प्रतिमा तेने सर्वत्र चालता सूत्रथी त नो ड थाय. स्रव्यंसुपुक ए सूत्रे पडिमा रूप थाय. प्रतिपत् तेने सर्वत्ररलुकू चालता सूत्रे त नो ड थाय. पोवः स्त्रियामादविद्युतः अवर्णो अंत्यव्यं ० ए सूत्रोथी पाडिव्या रूप याय. सं. प्रतिश्रुत् तेने सर्वत्र चालता सूत्रे त नोड थाय. पथुपृथिवीप्रतिश्रुत् वक्रादावंतः सर्वत्र शषोः सः स्त्रियामादविद्य० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पडंसुआ रूप श्राय प्रति उपसर्गपूर्वक कृ धातुने तव प्रत्यया पठी व्यंजना० ऋवर्णस्यार् लोकात् त्यादीनां सर्वत्र ए सूत्रे प्र उप० मध्यथी र नो लोप थाय. चालता सूत्रे तनो ड थाय. एटले पडिकरइ रूप थाय. सं. प्रभृति तेने सर्वत्र उद्दत्वादौ खघथ० चालता सूत्रे तनो ड थाय. अंत्यव्यं ० ए सूत्रे पहुडि रूप थाय. सं. प्राभृत तेने क्लीबे सम् मोनु० बाकी पूर्ववत् श्र पाहुडं रूप थाय. सं. व्यापृत तेने अधोमनयां ऋतोडत् पोवः चालता सूत्रे त नो ड थाय. अतः सेर्डो: ए सूत्रश्री वावडो रूप थाय. सं. पताका तेने चालता सू
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थी तनोड थाय. कगचज अवर्णो अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी पडाया रूप थाय. सं. विभीतक तेने पथुपृथिवी प्रतिश्रु० खघथ० एत्पीयूषापीड० चालता सूत्रे तनोड थाय. कगचज अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी बहेडओ रूप थाय. सं. हरीतकी तेने हरीतक्यामीतोऽत् चालता सूत्रे तनो ड थाय. कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी हरडइ रूप याय. सं. मृतक तेने ऋतोऽत् चालता सूत्रे तनो ड थाय. कगचज अवर्णों की सम मोनु० ए सूत्रोथी मडयं थाय. सं. दुष्कृत तेने कगटड ऋतोऽत् अनादौ द्वित्वं प्रयोग होवाथी तनो ड थाय. क्लिबे स्म मोनु० दुक्कडं थाय. तेवी रीते सं. सुकृतनुं सुकडं थाय. सं. आहृतंनुं आहर्ड थाय. सं. अवहृतंनुं अवहडं थाय. सं. प्रतिसमयनुं पइसमयं थाय. सं. प्रतिपनुं पइवं थाय. सं. संप्रति तेने ऋतोत्त्यादीनां अंत्यव्यंज० ए सूत्रोश्री संपइ थाय. सं. प्रतिष्ठान तेने सर्वत्र रलुक् ष्टस्यानुष्ठ अनादौ द्वित्वं द्वितीय० नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पट्ठाणं रूप थाय. सं. प्रतिज्ञा तेने सर्वत्र रलुक् कगचज नज्ञोर्णः अनादी० अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी पइणा रूप श्राय ॥ २०६ ॥
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मागधी व्याकरणम्.
इत्वे वेतसे ॥२०७॥ वेतसे तस्य मो नवति इत्वे सति ॥ वेडिसो ॥ इत्व इति किम् । वेबसो॥ः स्वप्नादौ इति श्कारो न नवति इत्व इति व्यावृत्तिबलात् ॥ २० ॥ मूल भाषांतर. इकार थये बतें वेतस शब्दना तनो ड थाय. सं. वेतसः तेनुं वेडिसो थाय. मूलमा 'इकार थया पी एम कडं ने तेथी बीजे पक्ष वेअसो एवं रूप थाय. अहिं इत्व एव॒ पद मूलमां मुक्युं ने तेथी तेना बले इ: स्वप्नादौ ए सूत्रथी इ न थाय. ॥ २०७॥
॥ ढुंढिका ॥ श्व ७१ वेतस ७१ वेतस ः स्वप्नादौ त ति अनेन तस्य डः ११ श्रतः सेोः वेडिसो । वेतस ११ कगचजेति तबुक् वेधसो २०७ टीका भाषांतर. इकार श्रया पठी वेतस शब्दना तनो ड थाय. सं. वेतस तेने इ: स्वप्नादौ चालता सूत्रे तनो ड थाय. पी अतः सेोः ए सूत्रथी वेडिसो एवं रूप थाय. सं. वेतस तेने कगचज अतः से?ः ए सूत्रोथी वेअसो एवं रूप थाय. ॥२७॥
गर्नितातिमुक्तके णः॥२०॥ अनयोस्तस्य णो नवति ॥ गन्नियो । अणितयं ॥ क्वचिन्न जवत्यपि । अश्मुत्तयं ॥ कथम् एरावणो । ऐरावणशब्दस्य । एरा वश्रो इति तु ऐरावतस्य ॥ मूल भाषांतर. गर्भित अने अतिमुक्तकशब्दना तनो ण थाय. सं. गर्भित तेनुं गम्भिणो श्राय. सं. अतिमुक्तकं तेनुं अणिऊतयं श्राय. कोइ ठेकाणे न पण श्राय त्यारे अइमुत्तयं एवं थाय. जेम सं. ऐरावण शब्दनु एरावणो थाय अने सं. ऐरावत शब्दनुं एरावओ पाय. ॥ २० ॥
॥ ढुंढिका ॥ गर्नितश्च अतिमुक्तकं च गर्जितातिमुक्तकं तस्मिन् ७१ ण ११ गनित- सर्वत्र रखुक् अनादौ हित्वं द्वितीय जब अनेन तस्य णः श्रतः सेोंः गन्नियो । अतिमुक्तक अनेन तस्य णः यमुना चामुंडातिमुक्तके इति मलोपः तस्य स्थाने अनुनासिकश्च कगट
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प्रथमःपादः। डेति कबुक् अवर्णो० अ य ११ क्लीवे स्म् मोनु अणितयं । श्रतिमुक्तक कगचजेति त्बुक् कगटडेति क्बुक् अनादौहित्वं श्रवर्णो थ य ११ क्लीबे स्म् मोनु अश्मुत्तयं ॥ २० ॥ टीका भाषांतर. गर्भित अने अतिमुक्तक शब्दना तनो ण थाय. सं. गर्भित तेने सर्वत्र अनादौ द्वित्वं द्वितीय चालता सूत्रे तनो ण थाय. अतः सेोंः ए सूत्रश्री गम्भिणो रूप थाय. सं. अतिमुक्तक तेने चालता सूत्रथी तनो ण थाय. यमुना चामुंडाती मुक्तके ए सूत्रे मनो लोप थाय. अने तेने स्थाने अनुनासिक थाय पनी कगटड अवर्णो क्लीबे सम् ए सूत्रोथी अणिऊतयं रूप थाय. सं. अतिमुक्तक तेने कगचज कगटड अनादौ द्वित्वं अवर्णो क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी अइमुत्तयं
रूप थाय. ॥ २०७॥
रुदिते दिना णणः ॥२०॥ रुदिते दिना सह तस्य द्विरुक्तो णो नवति ॥ रूएणं ॥ अत्र केचिद् रुत्वादिषु द इत्यारब्धवंतः स तु शौरसेनी मागधी विषय एव दृश्यते इति नोच्यते । प्राकृते हि ऋतुः। रिउ । उऊ ॥ ररुतं । रययं ॥ एतद् । एवं ॥ गतः । गश्रो ॥ थागतः । थागयो ॥ सांप्रतं । संपयं ॥ यतः। जो ॥ ततः। तथो ॥ कृतं । कयं ॥ हतं । हयं ॥ हताशः । हयासो ॥ श्रुतः। सुश्रो ॥ श्राकृतिः । श्राकिई ॥ निर्वृतः । निव्वुश्रो ॥ तातः। ताथो ॥ कतरः। कयरो ॥ द्वितीयः । उश्यो इत्यादयः प्रयोगा नवंति । न पुनः उदू रयदमित्यादि ॥ क्वचिद् नावेऽपि व्यत्ययश्च श्त्येव सिद्धम् ॥ दिही इत्येतदर्थं तु धृतेर्दिहिः इति वदयामः ॥ २० ॥
मूल भाषांतर. रुदित शब्दने दि साथे बेवडो ण ाय. सं. रुदित तेनुं रुण्णं थाय. अहिं केटलाएक ऋतु विगेरे शब्दोना दनो श्रारंन करेचे पण ते द शौरसेनी तथा मागधी नाषाना विषयमा जणायचे तेथी आ स्थाने कहेता नथी. प्राकृत लाषामां तो सं. ऋतु तेना रिउ उऊ एवां रूप थाय. सं. रजतं तेनुं रययं थाय. सं. एतद् तेनुं एअं थाय. सं. गतः तेनुं गओ रूप थाय. सं. आगतः तेनुं आगओ रूप थाय. सं. सांप्रतं तेनुं संपयं रूप श्राय. सं. यतः तेनुं जओ रूप थाय. सं. ततः तेनुं तओ रूप थाय. सं. कृतं तेनुं कयं रूप थाय: सं. हतं तेनुं हयं रूप थाय. सं. हताशः तेनुं
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मागधी व्याकरणम्.
हयासो रूप याय. सं. श्रुतः तेनुं सुओ रूप थाय. सं. आकृति तेनुं आकिई रूप थाय. सं. निर्वृतः तेनुं निव्वुओ रूप थाय. सं. तातः तेनुं ताओ रूप याय. सं. कतरः तेनुं करो रूप थाय. सं. द्वितीयः तेनुं दुइओ याय. इत्यादि प्रयोगो थाय बे प सं. ऋतुनुं उदू छाने सं. रजतंनुं रयदं एवां रूप न थाय. को ठेकाणे जावमां पण व्यत्यय (दलो बदलो) याय एम सिद्ध बे. जेम सं. दिही एवो शब्द बेतेने माटे धृतेदिहिः एवं सूत्र गल कहेवामां आवशे ॥ २०७ ॥
॥ ढुंढिका ॥
रुदित ७१ दि ३१११ रुदित - श्रनेन दिना सहतस्य णः क्लीवे सम् मोनु रुणं । ऋतु कणर्व्वषजर्वषौवा इति इस्थाने रि कगचजेति लुक् ११ की बेसौ दीर्घः अंत्यव्यंज० सलुकू रिऊ । पदे ऋतु उहत्वादौ क उ कगचजेतित्लुक् ११ अक्की वेदीर्घः अंत्यव्यं सलुक् उ ऊ रजतं ११ कगचजेतितलुकू जलुक्च श्रवर्णो यक्की
सम् मोनु रयं । एतद् अंत्यव्यं० दलुक् कगचजेति लुक् ११ क्कीबे स्म मोनु० एथं । गतः श्रतः सेर्डोः विसर्गस्य डो कगचजेतित्लुक् गर्छ | एवं आग | सांप्रतं । ह्रस्वः संयोगे सा स सर्वत्र० रलुक् कगचजेति 'त्लुक् वर्णो अ य ११ अंत्यव्यं० सलुक् मोनु० संपयं । यतः तत श्रादेर्यो जः यस्य जः श्रतः सेर्डोः विसर्गस्य डो । f कगचजेति जनयत्र लुक् जर्ज तर्ज । कृत इत इतोऽत् कृ क कगचजेति उज्जयत्र त्लुक् श्रवर्णो अ य ११ क्लीबे स्म मोनु० कयं हयं । दताशः कगचजेति लुक् अवर्णो अ य शषोः सः अतः सेर्डोः विसर्गस्य डो डित्यं दयासो । श्रुत सर्वत्र रलुक् शषोः सः कगचजेति तलुक् यतः सेर्डो विसर्गस्य डो डित्यं सुर्ज । श्राकृति- इत्कृपादौ कृ कि कगचजेति लुक् ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् श्राकई । निर्वृत- सर्वत्र लुक जहत्वादौ वृ वु श्रनादौ द्वित्वं कगचजेति त्लुक् ११ यतः सेर्डोः निव्वुतो । तातः ११ कगचजेति त्लुक् यवर्णो अ य ११ अतः सेर्डोः ताई । एवं कतरः कयरो । द्वितीयसर्वत्र वक् द्विन्योरुं इ उ पानीयादिष्वित् ती ति कगचजेति तययो लुक् ११ छातः सेर्डोः डुइ ॥ २० ॥
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प्रथमः पादः ।
२१३
टीका भाषांतर. रुदित शब्दना तनो दि साथे बेवको ण थाय. रुदित तेने चालता सूत्रथी दिसहित तनो ण थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी रुपणं रूप थाय. सं. ऋतु तेने ऋणर्वषभतृ० कगचज अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन ● ए सूत्रोथी रिक रूप याय. बीजे पदे उद्दत्वादौ कगचज अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं ० ए सूत्रोथी उऊ रूप थाय. सं. रजत तेने कगचज अवर्णो क्लीबे सूम मोनु० ए सूत्रोथी रययं थाय. सं. एतद् तेने अंत्यव्यं० कगचज० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी एअं रूप थाय. सं. गतः तेने अतः सेर्डोः कगचज ए सूत्रोथी गओ रूप याय. एवी रीते सं. आगतः तेनुं आगओ रूप याय. सं. सांप्रतं तेनुं ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र रलुक कगचज० अवर्णो० अंत्यव्यं० मोनु० ए सूत्रोथी संपयं रूप थाय. सं. यतः ततः तेने आदेर्योजः अतः सेर्डोः कगचज ए सूत्रोथी जओ तओ एवां रूप थाय. सं. कृत हत तेने ऋतोऽत् कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कयं हयं एवां रूप याय. सं. हताशः तेने कगचज अतः सेर्डोः डित्यं ए सूत्रोथी यासो रूप याय. सं. श्रुत तेने सर्वत्र ० शषोः सः कगचज० अतः सेडः डित्यं ए सूत्रोथी सुओ रूप याय. सं. आकृति तेने इत्कृपादौ कगचज अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी आकई रूप याय. सं. निर्वृततेने सर्वत्र रक उहत्वादौ अनादी० कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथ निव्वुतो थाय. सं. तातः तेने कगचज अवर्णो अतः सेडः ए सूत्रोथी ताओ रूप थाय. एवी रीते सं. कतरः तेनुं कयरो रूप थाय. सं. द्वितीय तेने सर्वत्र रलुकू द्विन्योरुत् पानीयादिष्वित् कगचज श्रतः सेर्डोः ए सूत्रोथी दुइओ रूप याय. ॥२०॥ सप्ततौ रः ॥ २२० ॥
सतत तस्य रो जवति ॥ सत्तरी ॥ २२० ॥
मूल भाषांतर. सप्तति शब्दना तनो र थाय. सं. सप्तति तेनुं सत्तरी एवं रूप याय. ॥ ढुंढिका ॥
सप्तति ७१ र ११ सप्तति कगटडे तिपुलुक् श्रनादौ द्वित्वं श्रनेन ति रि ११ अक्की बेदीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् सत्तरी ॥ २२० ॥
टीका भाषांतर. सप्तति शब्दना तनो र थाय. सं. सप्तति तेने कगदड अवं चालता सूत्रे तिनो रि थाय. अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोश्री सतरी रूप थाय ॥ २१० ॥
तसी सातवादने लः ॥ १११ ॥
अनयोस्तस्य लो जवति ॥ अलसी । सालदयो सालवाइयो । सालादणी जसा ॥ २११ ॥
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१४
मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. अतसी अने सातवाहन शब्दना तनो ल श्राय. सं. अतसी तेनुं अलसी बाय. सं. सातवाहन तेनुं सालहणो थाय अने सालवाहणो पण थाय. सं. सातवाहनी भाषा तेनुं सालाहणी भासा एवं रूप धाय. ॥२११॥
॥ ढुंढिका॥ अतसी च सातवाहनश्च अतसीसातवाहनुः तस्मिन् ७१ लः ११ अतसी अनेन तस्य लः अंत्यव्यं सबुक् अलसी । सातवाहन अनेन तस्य लः कगचजेति वलुक् खरस्योत्ते इति निषेधप्राप्तादपि बाहुलकात् संधिर्न नवति तस्मात् समानानां दीर्घः नोणः श्रतः सेझैः सालाहणो । यत्र लुक् न तत्र सालवाहणो पूर्ववत् । सातवाहनो देवता अस्या इति सा सालादणी पदे सातवाहनी देवताश्रण प्रत्ययः श्रपणे अलोपः लोकात् प्रत्ययडीनवा इति डी प्रत्ययः बुक् अलोपः कगचजेति वलोपः अनेन तस्य लः समानानांतेन दीर्घः नोणः अंत्यव्यंग सबुक् सालवाहणी नाषा शषोः सः अंत्यव्यं सलुक् नासा ॥ ११ ॥ टीका भाषांतर. अतसी अने सातवाहन शब्दना तनो ल थाय. सं. अतसी तेने चालता सूत्रधी तनो ल थाय. अंत्यव्यंग ए सूत्रथी अलसी रूप थाय. सं. सातवाहन तेने चालता सूत्रश्री त नो ल श्राय. पनी कगचज सूत्र पामे. अहिं स्वरस्योवृत्ते ए सूत्रथी निषेधश्री प्राप्त थयेला बाहुलकथी संधि न थाय. तेथी समानानां दीर्घ थाय. पी नोणः अतः सेडों: ए सूत्रोथी सालाहणो रूप थाय. ज्यारे वनो लुक् न थाय, त्यारे पूर्ववत् सालवाहणो रूप थाय. सातवाहन जेना देवता ने ते सालाहणी कहेवाय. सं. सातवाहनी तेने देवतार्थमां अण् प्रत्यय आवे पनी अवर्ण लोकात् प्रत्ययडीनवा लुकू कगचज चालता सूत्रे तनो ल थाय. पठी समानानां तेन दीर्घः नोणः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सालवाहणी रूप थाय. सं. भाषा तेने शषोःसः अंत्यव्यंज ए सूत्रोथी भासा रूप थाय. ॥११॥
पलिते वा ॥१॥ पलिते तस्य लो वा नवति ॥ पविलं पक्षियं ॥ मूल भाषांतर. पलित शब्दना त नो विकटपे ल थाय. सं. पलित तेनुं पलिले थाय तथा पलिअं थाय. ॥२१॥
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प्रथमःपादः।
॥ दुंढिका॥ पलित ७१ वा ११ पलित अनेन तस्य लः ११ क्वीबे स्म् मोनु हितीये कगचजेति त्बुक् शेषं पूर्ववत् पलिलं पलियं ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. पलित शब्दना त नो विकटपे ल थाय. सं. पलित तेने चालता सूत्रथी त नो ल थाय. पी क्लीबे सम् मोनु० बीजे पदे कगचज बाकी पूर्ववत् अश् पलिलं तथा पलिअं एवां रूप आय. ॥ २१ ॥
पीते वो ले वा ॥१३॥ पीते तस्य वो वा नवति स्वार्थलकारे परे ॥ पीवलं पीश्रलं ॥ ल इति किम् । पीअं॥ मूल भाषांतर. पीत शब्दना त नो विकल्पे व पाय. स्वार्थ नो ल प्रत्यय परउते. सं. पीतलं तेनुं पीवलं थाय. अने पदे पीअलं थाय. मूलमा ल प्रत्ययनुं ग्रहण डे तेश्री पीतं तेनुं पीअं थाय. ॥ २१३॥
॥ढुंढिका ॥ पीत ७१ व ११ ल ७१ वा ११ पीत- स्वार्थे विद्युत्-पीत पीताधी वः इति ल प्रत्ययः अनेन तस्य व ११ क्लीबे स्म् पीवलं । पदे पीत विद्युत्यनः प्रण कगचजेति त्बुक् ११ क्लीबे सम् पीअलं पीत ११ कगचजेति त्लुक् क्लीवे स्म् पीअं ॥१३॥ टीका भाषांतर. पीत शब्दना त नो विकल्पे व श्राय स्वार्थनो ल प्रत्यय परउते. सं. पीत तेने स्वार्थे विद्युत् पीत पीताधी लः ए सूत्रथी ल प्रत्यय आवे पी आ चालता सूत्रथी त नो व थाय. क्लीबे सम् ए सूत्रथी पीवलं रूप श्राय. बीजे परे पीत विद्युत्य ल्लः प्र० कगचज क्लीबे सम् ए सूत्रोथी पीअलं रूप थाय. सं. पीत तेने कगचज क्लीबे सम् ए सूत्रोथी पीअं रूप थाय. ॥ २१३॥
वितस्ति- वसति-नरत- कातर- मातुलिंगे दः॥१४॥ एषु तस्य हो जवति ॥ विहत्थी । वसही ॥ बहुलाधिकारात्कचिन्न जवति ॥ वसई । नरहो । काहलो । माहुलिंगं । मातुबुंग शब्दस्य तु माउबुंगं ॥ मूल भाषांतर. वितस्ति वसति भरत कातर मातुलिंग शब्दोनात नो ह थाय. सं. वितस्ति तेनुं विहत्थी श्राय. सं. वसति तेनुं वसही थाय. बहुल अधिकार में
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२१६
मागधी व्याकरणम्.
तेथी कोइवेकाणे न थाय. जेम - सं. वसति तेनुं वसई थाय. सं. भरत तेनुं भरहो थाय. सं. कातर तेनुं काहलो थाय. सं. मातुलिंगं तेनुं मातुलुंग याय जो मातुलुंग शब्द होय तो तेनुं माउलुंग थाय. ॥ २१४ ॥
॥ ढुंढिका ॥
वितस्तिश्च वसतिश्च जरतश्च कातरश्च मातुलिंगं च वितस्तिव - सतिनरतमातुलिंगं तस्मिन् ह ११ वितस्ति श्रनेन तस्य हः स्तस्य थोऽसमस्तस्तंबे वा इति स्तस्य यः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय० पूर्व थ तः ११ अंत्यव्यं० सलुक् विहत्थी । वसति अनेन तस्य हः अक्की वे सौ दीर्घः त्यव्यं० सलुक् वसही । बहुला धिकारात् कचिन्न जवति वसति ११ कगचजेति लुकू अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं लुक् वसई । जरत ११ श्रनेन तस्य हः श्रतः सेर्डोः हो । कातर नेन तस्य दः ११ अतः सेर्डोः दरिद्रादौ लः र ल कालो । मातुलिंगं श्रनेन तस्य हः क्कीबे सम् मोनु० माहुलिंगं । मातुलुंगशब्दे तु कगचजेति लुक् माजलुंगं ॥ २१४ ॥
टीका भाषांतर. वितस्ति वसति भरत कातर अने मातुलिंग शब्दना त नो ह यय. सं. वितस्ति तेने चालता सूत्रथी त नो ह थाय. स्तस्यथोऽसमस्त अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी विहत्थी रूप याय. सं. वसति तेने चालता सूत्रथी त नो ह थाय. पबी अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी बसही रूप याय. बहुल अधिकार बे तेथी कोइ ठेकाणे न थाय जेम. सं. वसति तेने कगचज अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं ० ए सूत्रोथी वसई रूप थाय. सं. भरत तेने चालता सूत्रे तनी ह थाय. अतः सेर्डोः ए सूत्रथी भरहो रूप याय. सं. कातर तेने चालता सूत्रथ तनो हाय बी अतः सेडः हरिप्रादौ लः ए सूत्रोथी काहलो रूप थाय. सं. | मातुलिंगं तेने चालता सूत्रथी त नो ह थाय. पबी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी माहुलिंगं रूप थाय. जो मातुलुंग शब्द होय तो कगचज ए सूत्रोथी माउलुंगं एवं 'रूप थाय. ॥ २१४ ॥
मेथि - शिथिर - शिथिल प्रथमे यस्य ढः ॥ २१५ ॥
एषु यस्य ढो जवति ॥ हापवादः ॥ मेढी | सिढिलो । सिढिलो । पढमो ॥ २१५ ॥
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प्रथमःपादः।
मलभाषांतर. मेथि शिथिर शिथिल प्रथम ए शब्दोना थ नो ढ श्राय. ह नो अपवाद थाय. सं. मेथि तेनु मेढी रूप थाय. सं. शिथिर तेनुं सिढिलो रूप थाय. सं. शिथिल तेनुं सढिलो रूप थाय. सं. प्रथम तेनुं पढमो रूप धाय.
॥ढुंढिका ॥ मेथिश्च शिथिरश्च शिथिलश्च प्रथमश्च मेथि शिथिरशिथिलप्रथमं तस्मिन् ७१ थ ६१ ढ ११ मेथि- ११ अनेन थस्य ढः श्रक्लीबे सौदीर्घः मेढी। शिथिरः ११ अनेन थ ढः हरिजादौ लः रस्य लः अतः सेझैः सिथिलो। शिथिल ११ शषोः सः शिथिलें गुदे वा इति सि स अनेन थस्य ढः अतः सेझैः सढिलो। प्रथम ११ सर्वत्र रलुक् अनेन थस्य ढः श्रतः से?ः पढमो॥१५॥ टीका भाषांतर. मेथि शिथिर शिथिल प्रथम ए शब्दोना थनो ढ थाय. सं. मेथि तेने चालता सूत्रथी थ नो ढ श्राय. अक्लीबे सौ दीर्घः ए सूत्रथी मेढी रूप थाय. सं. शिथिर तेने चालता सूत्रथी थनो ढ थाय. पी हरिद्रादी लः अतः से?ः ए सूत्रोथी सिथिलो रूप थाय. सं. शिथिल तेने शषोः सः शिथिलें गुदे वा चालता सूत्रथी थनो ढ थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी सढिलो रूप थाय. सं. प्रथम तेने सर्वत्र रलुक चालता सूत्रधी थनो ढ श्राय. अतः सेोंः ए सूत्रथी पढमो रूप थाय. ॥ २१५॥
निशीथ-पृथिव्योर्वा ॥१६॥ श्रनयोस्थस्य ढो वा नवति ॥ निसीढो । निसीहो । पुढवी । पुहवी॥
मूल भाषांतर. निशीथ अने पृथिवी शब्दना थनो विकटपे ढ श्राय. सं. निशीथ तेनां निसीढो निसीहो एवां रूप थाय. सं. पृथिवी तेना पुढवी पुहवी एवां रूप थाय. ॥ १६॥
॥ ढुंढिका ॥ निशीथश्च पृथिवी च निशीथपृथिव्यौ तयोः १५ वा ११ निशीथः शषोः सः अनेन थस्य ढः ११ अतः से?ः निसीढो । निशीथ- शषोः सः खघथधनां अतः सेोः निसीहो । पृथिवी ११ पथिपृथिवीप्रतिश्रुत् थि थ उदृत्वादौ पृ पु अनेन थ ढः अंत्यव्यंग स्बुक् पुढवी । पदे पृथिवी- पथिपृथिवी० थि थ उद्दत्वादौ पु खघथ थस्य हः पुहवी ॥ १६ ॥
२८
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२१
मागधी व्याकरणम्.
टीका भाषांतर. निशीथ अ पृथिवी शब्दना थनो विकल्पे ढ थाय. सं. निशीथ तेने शषोः सः चालता सूत्रे थनो ढ याय. अतः सेड: ए सूत्रथी निसीढो रूप थाय. बीजे पछे सं. निशीथ तेने शषोः सः खघथ० अतः सेड : ए सूत्रोथी निसीहो थाय. सं. पृथिवी तेने पथिपृथिवी० उद्यत्वादौ चालता सूत्रथी थनो ढ थाय. अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी पुढवी रूप थाय. बीजेपदो सं. पृथिवी तेने पथिष्टथिवी० उद्यत्वादौ खघथ० ए सूत्रोथी पुहवी रूप याय. ॥ २१६ ॥
दशन-दष्ट-दग्ध - दोला-दंड-दर- दाद-दंग-दर्ज - कदन - दोहदे दो वा ङः ॥
१७ ॥
एषु दस्य डो वा जवति ॥ डसणं दसणं । डट्टो दट्ठो । डड्डो दो डोला दोला । डंडो दंडो । डरो दरो । डाहो दाहो । जो दंजो । डब्जो दब्जो । कडणं कयणं । डोहलो दोहलो || दरशब्दस्य च जयार्थवृत्तेरेव जवति । अन्यत्र दर - दलिय ॥
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मूल भाषांतर. दर्शन दृष्ट दग्ध दोला दंड दर दाह दंभ दर्भ कदन दोहद ए शब्दोना डनो विकल्पे द थाय. सं. दशनं तेनुं उसणं दसणं थाय. सं. दष्ट तेनुं डट्ठो दट्ठो थाय. सं. दग्ध तेना डड्डो दड्डो थाय. सं. दोला तेना डोला दोला थाय. सं. दंभ तेना डण्डो दण्डो थाय. सं. दर तेना डरो दरो थाय. सं. दाह तेना डाहो दाहो थाय. सं. दंभ तेना डंभो भो थाय. सं. दर्भ तेना डब्भो दम्भो थाय. सं. कदनं तेना कडणं कयणं थाय. सं. दोहद तेनां डोहलो दोहलो रूप थाय. दर शब्दनो अर्थ जो भय थतो होय तोज थाय. नहीं तो सं. दर - दलित तेनुं दर - दलिअ थाय. ॥ २१७ ॥
॥ ढुंढिका ॥
दशनं च दष्टश्च दग्धश्च दोला च दंडश्च दरश्च दायश्च दंश्च दश्च कदनं च दोहश्च दशनदष्टदग्धदोलादंडदरदाह र्दजदर्ज कदनदोहदं तस्मिन् ७१ द ६१ वा ११ ड ११ दशन अनेन वा द ड शषोः सः नोणः ११ क्कीबे स्म डसणं दसणं । दष्ट ष्ट क - नादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः डट्टो पदे दष्ट ष्टस्यानु ष्टक अनादौद्वित्वं द्वितीय पूर्वथस्य टः ११ अतः सेर्डोः दडो । दग्ध दोला दण्ड दर दाह - अनेन विकल्पेन सर्वत्र दस्य डः ११ प्रथमे अंत्य
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प्रथमःपादः।
२१ए व्यंण सबुक् अन्यत्र श्रतः से?ः डम्लो दम्लो।डोला दोलाडण्डो दएडो। डरो दरो । डाहो दाहो । डम्नो दम्नो दर्ज- अनेन वा दस्य डः सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं द्वितीये पूर्वजस्य बः श्रतः सेझैः डब्नो दब्नो । कदन अनेन दस्य मः नोणः क्लीबे स्म् मोनु० कडणं पदे कगचजेति दबुक् अवर्णो अ य नोणः नस्य णः ११ क्लीबे सम् मोनु कणयं । दर-दलित ॥ कगचजेति तलुक दर दलिथ ॥१७॥ टीका भाषांतर. दशन विगेरे शब्दोना दनो विकल्पे ड श्राय. सं. दशन तेने चालता सूत्रथी दनो ड थाय. पठी शषोः सः नोणः क्लीबे सम् ए सूत्रोथी डसणं दसणं रूप थाय. सं. दष्ट तेने ष्टनो ट थाय. अनादौ द्वित्वं अतः सेोःए सूत्रोथी डट्ठो रूप थाय. बीजे पदे दष्ट तेने ष्टस्यानु० अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अतः सेझैः एसूत्रोथी दट्ठो रूप थाय. सं. दग्ध दोला दण्ड दर दाह दंभ ए शब्दोने चालता सूत्रे विकल्पे दनो ड थाय. प्रथमपके दोला ने अंत्यव्यं० अने बीजे अतः सेोंः ए सूत्रोथी डम्भो दम्भो डोला दोला डण्डो दण्डो डरो दरो डाहो दाहो डम्भो दम्भो रूप थाय. सं. दर्भ तेने चाखता सूत्रधी दनो ड थाय. सर्वत्र रलुक अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अतः सेोंः ए सूत्रोथी डम्भो दम्भो रूप थाय. सं. कदन तेने चालता सूत्रथी दनो ड वाय. नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कडणं थाय. बीजे पक्ष कगचज अवर्णो नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कणयं रूप थाय. सं. दर-दलित तेने कगचज ए सूत्रथी दर-दलिअ एवं रूप श्रायः ॥ १७ ॥
दंश-दहोः॥१७॥ अनयोर्धात्वोर्दस्य डो जवति ॥ डस । डह ॥ मूल भाषांतर. दंश अने दह धातुना दनो ड थाय. सं. दशति तेनुं डसइ थाय. सं. दहति तेनुं डहइ आय. ॥ २१ ॥
॥ढुंढिका ॥ दंशदह ७२ दशति- अनेन द ड त्यादीनां ति : डस । दहति अनेन द ड त्यादीनां ति : डहश् ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. दंश अने दह धातुना दनो ड थाय. सं. दशति तेने चालता सूत्रथी दनो ड थाय पछी त्यादीनां सूत्र श्री डसइ थाय. सं. दहति तेने चालता सूत्रधी दनो ड थाय पनी त्यादीनां सूत्रथी डहइ थाय. ॥ १० ॥
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मागधी व्याकरणम्.
संख्या-गजदे रः॥२१॥ संख्यावाचिनि गद्गदशब्दे च दस्य रो जवति ॥ ए श्रारह । बारह । तेरद । गग्गरं ॥ अनादेरित्येव । ते दश ॥ असंयुक्तस्येत्येव ॥ चउद्दह ॥१॥ मूल भाषांतर. संख्यावाची शब्द अने गद्गद शब्दना दनो र थाय. सं. एकादश तेनुं एआरह थाय. सं. द्वादश तेनुं बारह श्राय. सं. त्रयोदश तेनुं तेरह थाय. सं. गदगदं तेनुं गग्गरं थाय. आदिजूत न होय तो थाय तेथी सं. ते दश तेनुं ते दस थाय. जोडादरे वर्जित होय तो श्राय. तेथी सं. चतुर्दश तेनुं चउद्दह थाय. ॥ १५ ॥
॥ टुंढिका ॥ संख्या च गदगदं च संख्यागद्गदं तस्मिन् ७१ र ११ एकादशकगचजेति कलुक् दश पाषाणे हः शस्य दः अनेन दस्य रः १३ जस्शसोच॑क् एवारह। छादश कगटडेति दबुक् अनेन दस्य रः दशपाषाणे हः शस्य हः १३ जस्शसो क् बारह । त्रयोदश- १३ एत्रयोदशादौ खरस्यसवरव्यंजनेन त्रयोस्थाने ते अनेन दस्य रः दशपाषाणे हः शस्य हः १३ जस्शसोर्बुक् तेरह । गद्गद कगटमेति दबुक् अनादौ हित्वं अनेन दस्य रः ११ क्लीबे सम् मोनु० गग्गरं । दश-शषोः सः दस। चतुर्दश कगचजेति त्बुक् सर्वत्र रनुक् दशपाषाणे हः श ह चउदह ॥१५॥ टीका भाषांतर. संख्यावाची शब्द अने गद्गद शब्दना दनो र थाय. सं. एकादश तेने कगचज दशपाषाणे हः चालता सूत्रे दनो र थाय. जसूशसोलुंक ए सूत्रथी एआरह रूप थाय. सं. द्वादश तेने कगटड० चालता सूत्रे दनो र थाय. दशपाषाणे हः जस्शसोलुक ए सूत्रोथी बारह रूप थाय. सं. त्रयोदश तेने एत्रयोदशादी स्वरस्यसस्वरव्यंजनेन ए सूत्रथी त्रयो ने स्थाने ते श्राय. पळी चा. लता सूत्रधी दनो र थाय. दशपाषाणे हः जसशसोलक ए सूत्रोथी तेरह रूप थाय. सं. गद्गद तेने कगटड अनादौ द्वित्वं चालता सूत्रथी दनो र थाय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी गग्गरं रूप थाय. सं. दश तेने शषोः सः ए सूत्रथी दस एवं रूप थाय. सं. चतुर्दश तेने कगचज सर्वत्र दशपाषाणे हः ए सूत्रोथी चउद्दह रूप याय. ॥ २१॥
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प्रथमः पादः ।
कदल्यामडुमे ॥ २२० ॥
कदलीशब्दे श्रमवाचिनि दस्य रो जवति ॥ करली ॥ श्रडुम
इति किम् । कयली केली ॥
२२१
मूल भाषांतर. कदली शब्दनो अर्थ जो वृक्ष थतो न होय तो तेना दनो र थाय. सं. कदली तेनुं करली थाय. मूलमां वृक्षवाचक होय तो एम कह्युं वे तेथी कदली तेनुं कयली थाय. पदे केली पण याय. ॥ २२० ॥
॥ ढुंढिका ॥
कदली ७१ म ७१ कदली ११ अनेन दस्य रः अंत्यव्यं० सुलुक् करली मृगविशेषः । कदली- कगचजेति लुक् श्रवर्णो अ य ११ त्यव्यं० सलुक् कयली कदली वा कदले इति दकारेण कस्य के ११ अंत्यव्यं० सलुक केली ॥ १२० ॥
टीका भाषांतर. वृक्षवाची न होय तेवा कदली शब्दना द नो र थाय. सं. कदली- - या चालता सूत्रश्री द नो र थाय. अंत्यव्यं ० स्लुक् ए सूत्रथी करली रूप थाय. करली एक जातना मृगनुं नाम बे वृक्षवाची कदली शब्द तेने कगचज अवर्णो अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी कयली थाय. पछे कदली तेने वा कदले ए सूत्रे दकार साक नो के थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी केली रूप थाय. ॥ २२० ॥
प्रदीप - दोहदे लः ॥ २२२ ॥
प्रपूर्वे दीप्यतौ धातौ दोहद शब्दे च दस्य लो जवति ॥ पलीवे | पवित्तं । दोहलो ॥ २२९ ॥
प्रउपसर्गवाला दीप धातु अने दोहद शब्दना द नो ल थाय. सं. प्रदीपयति तेनुं पली वेइ थाय. सं. प्रदीप्त तेनुं पलितं थाय. सं. दोहद तेनुं दो हलो थाय. ॥ २२१ ॥ ॥ ढुंढिका ॥
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प्रदीपिश्च दोहदश्व प्रपीपिदोहदं तस्मिन् ७१ ल ११ प्रपूर्व इदीपाव् दीप्तौ दीप प्रदीप्यंतं प्रयुक्ते प्रयोक्तृव्यापारे सिग् इ वर्त्तमाना ति ऐरदादावे एत्वं अनेन दस्य लः पोवः त्यादीनां ति इ पलीवेश | प्रदीप्त अनेन दस्य लः हखः संयोगे दी दि कगटडेति प्रलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु० पलितं । दोहदअनेन दस्य लः ११ क्लीबे स्म मोनु० तः सेर्डोः दोहलो ॥ २२९ ॥
I
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२२२
मागधीव्याकरणम्.
टीका भाषांतर. प्रदीप धातु अने दोहद शब्दना द नो ल थाय. प्र उपसर्गवाला दीप धातुने प्रेरणार्थमा प्रयोक्तव्यापारे णिम् ए सूत्रथी इ प्रत्यय आवे पछी वर्त० तिव् प्रत्यय आवे णेरदादावे ए सूत्रे ए थाय. चालता सूत्रथी द नो ल थाय. पनी पोवः त्यादीनां ए सूत्रोथी पलीवेइ रूप थाय. सं. प्रदीप्त तेने चालता सूत्रथी द नो ल थाय पनी इस्वः संयोगे कगटड अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पलित्तं रूप श्राय. सं. दोहद तेने चालता सूत्रथी द नो ल थाय. क्लीबे सम् मोनु० अतः से?ः ए सूत्रोथी दोहलो रूप आय. ॥ २१॥
कदंबे वा ॥२२॥ कदंबशब्दे दस्य लो वा नवति ॥ कलम्बो । कयम्बो ॥ ॥
मूल भाषांतर. कदंब शब्दना दनो विकटपे ल ाय. सं. कदंब तेना कलम्पो कयम्बो एवा रूप थाय. ॥ २२ ॥
॥ढुंढिका ॥ कदंब ७१ वा ११ कदंब-श्रनेन दस्य लः ११ श्रतः सेोः कलम्बो कदंब- कगचजेति दबुक् अवर्णो श्र य कयम्बो ॥ २ ॥ टीका भाषांतर. कदंब शब्दना द नो विकटपे ल थाय. सं. कदंब तेने चालता सूत्रथी द नो ल थाय. पी अतः से?ः ए सूत्रथी कलंबो रूप थाय. बीजे पदे कदंब तेने कगचज अवर्णों ए सूत्रोथी कयंबो रूप पाय. ॥ २२ ॥
दीपो धो वा ॥२२३ ॥ दीप्यतौ दस्य धो वा जवति ॥ धिप्पर दिप्प ॥ मूल भाषांतर. दीप धातुना दनो विकल्पे ध श्राय. सं. दीप्यते तेना धिप्पड़ तथा दिप्पइ एवां रूप श्रायः ॥ २२३ ॥
॥ टुंढिका ॥ दीपि ७१धः ११ वा ११ दीप्यते- अनेन दस्य धः ह्रस्वः संयोगे धी धि अधोमनयां धूलुक् शकादीनां हित्वं प त्यादीनां ति धिप्प दीप्यते ह्रस्वः संयोगे दी दिअधोमनयां यलुक् शकादीनां हित्वं प्प त्यादीनां ति ३ दिप्प३ ॥ २२३ ॥ टीका भाषांतर. दीपि धातुना द नो विकटपे ध श्राय. सं. दीप्यते तेने चालता सूत्रे द नो ध थाय. इस्वः संयोगे अधोमनयां शकादीनां हित्वं त्यादीनां ए
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प्रथमः पादः ।
२२३
सूत्रोथी धिप्पe थाय. सं. दीप्यते तेने ह्रस्वः संयोगे अधोमनयां शकादीनां fari त्यादीनां ए सूत्रोथी दिप्पइ रूप थाय. ॥ २२३ ॥
कदर्थिते वः ॥ २२४ ॥
दर्थिते दस्य व जवति ॥ कवहि ॥
मूल भाषांतर. कर्थित शब्दना दनो व थाय. सं. कदर्थितः तेनुं कवडिओ
थाय ॥ २२४ ॥
॥ ढुंढिका ॥
कदर्थित ११ व ११ कदर्थित ११ अनेन दस्य वः वृत्तप्रवृत्तमृत्तिकापत्तनकदर्थिते टः यस्य टः सर्वत्र रलुक् छनादौ द्वित्वं कगचजेति लुक् छातः सेर्डोः कव हि ॥ २२४ ॥
टीका भाषांतर. कदर्थित शब्दना दनो व थाय. सं. कदर्शित तेने चालता सूत्री दनो व थाय. पी वृत्त प्रवृत्त मृतिका० सर्वत्र अनादौ द्वित्वं कगचज अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी कवडिओ रूप थाय ॥ २२४ ॥
ककुदे दः ॥ २२५ ॥
ककुदे दस्य हो जवति ॥ कहं ॥
मूल भाषांतर. ककुद शब्दना दनो ह थाय. सं. ककुद तेनुं कउहं श्राय ॥ १२५ ॥ ॥ ढुंढिका ॥
ककुद ७१ हः ११ ककुद - कगचजेति क्लुक् छानेन दस्य हः कलहं ॥ १२५ ॥ टीका भाषांतर. ककुद शब्दना दनो ह थाय. सं. ककुदं तेने कगचज चालता सूत्रे दनो ह थाय. एटले कउहं एवं रूप श्राय ॥ २२५ ॥
निषधे धोढः ॥ २२६ ॥
निषधे धस्य ढो जवति ॥ निसढो ||
मूल भाषांतर. निषध शब्दना धनो ढ याय. सं. निषध तेनुं निसढो थाय. ॥ ढुंढिका ॥
निषेध ७१ ध ६१ व ११ निषध - शषोः सः ष स अनेन धस्य ढः ११ अतः सेर्डोः निसढो ॥ २२६ ॥
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२२४
मागधी व्याकरणम्.
टीका भाषांतर. निषेध शब्दना धनो द थाय. सं. निषध तेने शषोः सः चालता सूत्रे धनो द थाय. अतः सेडः ए सूत्रोथी निसढो रूप थाय. ॥ २२६ ॥ वौषधे ॥ २२७ ॥
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औषधे धस्य ढो वा जवति ।। उसढं जैसहं ॥
मूल भाषांतर. औषध शब्दना धनो विकल्पे ढ थाय. सं. औषधं तेनुं ओसदं तथा ओसहं एवां रूप याय. ॥ २२७ ॥
॥ ढिका ॥
वा ११ औषध ७१ औषध - श्रौत उत् श्रौ अनेन धस्य ढः ११ क्वीबे स्म मोनु० घोसढं द उस ॥ २२७ ॥
शषोः सः शस । पदे खघथ० ध
टीका भाषांतर. औषध शब्दना धनो विकल्पे ढ थाय. सं. औषध तेने औत ओत् शषोः सः चालता सूत्रथी धनो ढ थाय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी ओस एवं रूप श्राय. पदे वघथ० ए सूत्रश्री ओसहं रूप श्राय ॥ २२७ ॥ नो एः ॥ २२८ ॥
स्वरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेर्नस्य पो जवति ॥ कणयं । मयणो । वयणं । नयणं । माणइ ॥ श्रार्षे । श्ररनालं । निलो । अनलो । इत्याद्यपि ॥
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मूल भाषांतर. स्वरथी पर जोडाक्षरे वर्जित ने दिनूत न होय तेवा ननो ण थाय. सं. कनकं तेनुं कणयं श्राय. सं. मदनः तेनुं मयणो थाय. सं. वचनं तेनुं वयणं श्राय. सं. नयनं तेनुं नयणं श्राय. सं. मानति तेनुं माणइ श्राय. आर्ष प्रयो गमां. सं. आरनालं तेनुं आरनालं थाय. सं. अनिल तेनुं अनिलो थाय. सं. अनलः तेनुं अनलो थाय. इत्यादि जाणी लेवुं ॥ २२८ ॥
॥ ढुंढिका ॥
न् ६१ ः १९ कनक ११ अनेन न प कगचजेति क्लुक्
वर्णो य कीबे सम् मोनु० कणयं । मदन- अनेन न ए कगचजेति दलुक् श्रवर्णो यतः सेर्डोः मयणो । वचन - नयन अनेन न प ११ कीबे सम् मोनु० वयणं नयणं । मानि पूजायां मान् तिवू व्यं
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प्रथमःपादः।
२२५ जनाददंतेऽत् लोकात् त्यादीनां ति अनेन नस्य ः माण। बारनाल अनिल अनल ११ प्रथमे क्लीबे स्म् मोनु० अन्यत्र श्रतः से?ः थारनालं अनिलो अनलो ॥ २७ ॥ टीका भाषांतर. स्वरथी पर जोडाकरे वर्जित अने आदिनूत न होय तेवा ननो ण थाय. सं. कनक तेने चालता सूत्रथी ननो ण थाय. पली कगचज अवर्णों क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी कणयं रूप पाय. सं. मदन तेने चालता सूत्रथी ननो ण थाय. पनी कगचज अवर्णो अतः सेों: ए सूत्रोथी मयणो रूप थाय. सं. वचन तथा नयन तेने चालता सूत्रथी ननो ण श्राय पनी क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी वयणं नयणं एवां रूप थाय. सं. मान् धातु पूजा करवाना अर्थमा प्रवर्ते तेने तिवू प्रत्यय श्रावे पनी व्यंजनाददंतेऽत् लोकात् त्यादीनां पठी चालता सूत्रे ननो ण थाय. एटले माणइ रूप थाय. सं. आरनालं आनिलः अनलः तेने प्रथम रूपमा क्लीबे सम् मोनु बाकीना बे रूपमां अतः सेझैः ए सूत्रोथी आरनालं अनिलो अनलो रूप थाय. ॥ २२ ॥
वादौ ॥ शशए॥ संयुक्तस्यादौ वर्तमानस्य नस्य णो वा जवति ॥ परो नरो। पई नई । णेश ने॥असंयुक्तस्येत्येव । न्यायः । नाउँ ॥ २ ॥ मूल भाषांतर. जोडादरे वर्जित अने आदिमां रहेला ननो विकटपे ण थाय. सं. नरः तेना जरो नरो एवां रूप पाय. सं. नदी तेना गई नई एवां रूप श्राय. सं. नयति तेना णेइ नेइ एवां रूप थाय. जोडाक्षरे वर्जित एम कडं ने तेथी सं. न्याय तेनुं नाओ थाय. ॥ २ए॥
॥ढुंढिका ॥ वा ११ श्रादि ७१ नर ११ अनेन वा नस्य णः श्रतः से?ः णरो नरो । नदी अनेन वा ण कगचजेति दलुक् ११ अंत्यव्यं० सदुक् गई नई। पीञ् प्रापणे णी पाठे धात्वादेः नी तिव् युवर्णस्य गुणः नी ने त्यादीनां ति व अनेन वा ण न णेश नेश । न्याय ११ अधोमनयां लुक् श्रतः सेझैः नाउँ ॥ शए ॥ टीका भाषांतर. जोडादरे वर्जित अने श्रादिजूत एवा ननो विकटपे ण ाय. सं. नर तेने चालता सूत्रथी ननो ण थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी णरो नरो एवां रूप थाय. सं. नदी तेने चालता सूत्रथी विकटपे ण थाय. कगचज अंत्यव्यंज० ए
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२२६
मागधी व्याकरणम्. सूत्रोथी णई नई रूप थाय. सं. णीञ् धातु लईजवाना अर्थमा प्रवर्ते तेने पाठे धात्वादे ए सूत्रथी णीनो नी थाय. पनी तिवू प्रत्यय श्रावे. युवर्णस्य गुणः त्यादीनां अने चालता सूत्रथी विकटपे ननो ण थाय. एटले णेइ नेइ एवां रूप थाय. सं. न्याय तेने अधोमनयां अतः सेटः ए सूत्रोथी नाओ रूप श्रायः॥ २२ए॥
निम्ब-नापिते ल-एदं वा ॥ २३० ॥ अनयोर्नस्य ल एह इत्येतो वा नवतः ॥ लिम्बो निम्बो । एहाविठ नावि ॥ ३० ॥ मूल भाषांतर. निम्ब अने नापित शब्दना न स्थाने ल अने ण्ह एवा विकटपे धे आदेश थाय. सं. निम्बः तेना लिम्बो निम्बो एवां रूप थाय. सं. नापितः तेना पहाविओ नाविओ एवां रूप थाय. ॥ २३० ॥
॥ढुंढिका ॥ निम्बश्च नापितश्च निम्बनापितं तस्मिन् ७१ लश्च एहश्च खएहं ११ वा ११ निम्ब- अनेन वा नस्य लः ११ श्रतः सेोः लिम्बो निम्बो । नापित- अनेन वा नस्य एहः पोवः कगचजेति त्लुक ११ अतः सेझैः एहाविठ । नावि । ॥२३० ॥ टीका भाषांतर. निंब अने नापित शब्दना नने स्थाने ल अने ग्रह एवा आदेश थाय. सं. निम्बः तेने चालता सूत्रथी ननो ल थाय. पनी अतः से?ः सूत्रलागी लिम्बो निम्बो एवां रूप थाय. सं. नापित तेने चालता सूत्रथी ननो पह थाय. पी पो वः कगचज अतः सेोंः ए सूत्रोथी पहाविओ नाविओ एवां रूप थाय.॥२३० ॥
पो वः॥ २३ ॥ खरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेः पस्य प्रायो वो नवति ॥ सवहो । सावो । उवसग्गो । पश्वो । कासवो । पावं । उवमा । कविलं । कुणवं । कलावो । कवालं । महि-वालो । गो-वश् । तव ॥ स्वरादित्येव । कम्पश् ॥ असंयुक्तस्येत्येव । अप्पमत्तो ॥ अनादेरित्येव । सुहेण पढ॥ प्रायश्त्येव । कई। रिऊ ॥ एतेन पकारस्य प्राप्तयोर्लोपवकारयोर्यस्मिन् कृते श्रुतिसुखमुत्पद्यते स तत्र कार्य।२३१॥
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प्रथमः पादः।
२२७
मूल भाषांतर. स्वरथी पर जोडाक्षरे वर्जित अने श्रादिनूत न होय तेवा पनो प्रायेकरीने व याय. सं. शपथ: तेनुं शवहो थाय. सं. शापः तेनुं सावो थाय. सं. उपसर्गः तेनुं उवसग्गो थाय. सं. प्रतीपः तेनुं पईवो थाय. सं. काश्यपः तेनुं कासवो थाय. सं. पापं तेनुं पावं थाय. सं. उपमा तेनुं उवमा थाय. सं. कपिलं तेनुं कविलं थाय. सं. कुणपं तेनुं कुणवं थाय. सं. कलापः तेनुं कलावो थाय. सं. कलापं तेनुं कवालं थाय. सं. महीपालः तेनुं महिवालो थायं. सं. गोपतिः तेनुं गोवइ थाय. सं. तपति तेनुं तवइ थाय. स्वरथी पर होय तोज थाय. जेमके सं कम्पते तेनुं कम्पइ थाय. जोडाक्षरे वर्जित होय तो थाय. सं. अप्रमत्तः तेनुं अप्पमत्तो a. आदिनूत न होय तोज थाय. जेम सं. सुखेन पठति तेनुं सुहेण पढइ थाय. मूलमां प्रायनुं ग्रहण बे तेथी कोइ ठेकाणे न पण थाय. जेम सं. कपि तेनुं कई थाय. सं. रिपु तेनुं रिक थाय. आथी एम सिद्ध श्रयुं के, पकारनो लोप पण थाय अने सूत्री व पण याय - ए बनेनी प्राप्तिमां ज्यां श्रवणने सुख उत्पन्न श्राय त्यां ते करवो. ॥ २३९ ॥
॥ ढुंढिका ॥
प ६१ व ११ शपथ ११ शषोः सः स श श्रनेन प व खघथ० य द यतः सेर्डोः सवहो । शाप ११ शषोः सः अनेन प व यतः सेडः सावो । उपसर्ग - अनेन पस्य वः सर्वत्र वलुक् नादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः उवसग्गो । प्रदीपः ११ सर्वत्र रलुक् कगचजेति दलुक् अनेन पस्य वः श्रतः सेर्डोः पईवो । काश्यपः शषोः सः अधोमनयां यलुक् श्रनेन प वः श्रतः सेर्डोः कासवो । पाप
नप व ११ क्लीबे स्म मोनु० पावं । उपमा - ११ अनेन पस्य वः अंत्यव्यं० सूलुक् उवमा । कपिल - ११ छानेन प व क्लीबे सूम् कविलं । कुणप ११ छानेन प व क्कीबे स्म मोनु० कुणवं । कलाप ११ नेन प व अतः सेर्डोः कलावो कलाप ११ अनेन प व क्लीबे सम् मोनु० कवालं महीपाल - ११ ह्रस्वः संयोगे अनेन प व अतः सेर्डोः महिवालो । गुपू गोपने गुप् तिवू त्यादीनां ति इ युवर्णस्य गुणः गु गो व्यंजनाद दंतेऽत् अनेन पस्य वः गोवइ । तपति न पस्य वः त्यादीनां ति इ तवइ । कम्पते त्यादीनां ति इ कम्मइ । श्रप्रमत्त ११ सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं श्रतः सेर्डोः
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श्त
मागधी व्याकरणम्. थप्पमत्तो । सुख ३१ खघथा ख ह टा श्रामोर्णः टा णशस्येत् एत्वं सुदेण । पठति वोढः त्यादीनां ति पढ कपि रिपु- कगचजेति पलुक् ११ अक्कीबे दीर्घः कई । रिऊ ॥ ३१ ॥ टीका भाषांतर. स्वरथी पर जोडादरे वर्जित अने आदिजूत न होय तेवा पनोप्रायेकरी व थाय. सं. शपथ तेने शषोः सः चालता सूत्रे पनो व थाय. खघथ० अतः सेोः ए सूत्रोथी सवहो रूप थाय. सं. शापः तेने शषोः सः चालता सूत्रे पनो व थाय. सर्वत्र वलुक् अनादौ द्वित्वं अतः सेझैः ए सूत्रोथी उवसग्गो रूप थाय. सं. प्रदीपः तेने सर्वत्र कगचज चालता सूत्रे पनो व थाय. अतः से?: ए सूत्रोथी पईवो रूप श्राय. सं. काश्यपः तेने शषोः सः अधोमनयां चालता सूत्रे पनो व थाय. अतः सेझैः ए सूत्रोथी कासवो रूप थाय. सं. पाप तेने चालता सूत्रे पनो व थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पावं रूप थाय. सं. उपमा तेने चालता सूत्रथी पनो व थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रथी उवमा रूप थाय. सं. कपिल तेने चालता सूत्रथी पनो व श्राय. क्लीबे सम् ए सूत्रथी कविलं श्राय. सं. कुणपं तेने चालता सूत्रथी पनो व थाय. क्लीबे सम् मोनु० कुणवं थाय. सं. कलाप तेने चालता सूत्रथी पनो व थाय. पठी अतः सेोः सूत्र पामी कलावो थाय. सं. कलाप तेने चालता सूत्रथी पनो व थाय. क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी कवालं रूप थाय. सं. महीपाल तेने इस्वः संयोगे चालता सूत्रधी पनो व थाय. अतः से?ः ए सूत्रथी महिवालो रूप थाय. सं. गुप् धातु गोपववामां प्रवः तेने तिव् प्रत्यय श्रावे. पडी त्यादीनां० युवर्णस्य गुणः व्यंजनाददंतेऽत् चालता सूत्रे पनो व थाय. एटले गोवह रूप थाय. सं. तपति तेने चालता सूत्रथी पनो व थाय. पनी त्यादीनां ए सूत्रथी तवइ रूप थाय. सं. कम्पते तेने त्यादीनां ए सूत्रथी कम्मइ रूप थाय. सं. अप्रमत्त तेने सर्वत्र अनादौ द्वित्वं अतः सेडोंः ए सूत्रोथी अप्पमत्तो रूप थाय. सं. सुख तेने खघथ टा आमोर्णः टाणशस्येत् ए सूत्रोथी सुहेण रूप थाय. सं. पठति तेने वोढः त्यादीनां ए सूत्रोथी पढइ रूप थाय. सं. कपि तथा रिपु तेने कगचज अक्लीवे दीर्घः ए सूत्रोथी कई तथा रिऊ रूप थाय. ॥ २३१॥
पाटि-परुष-परिघ-परिखा-पनस-पारिन फः॥२३॥ एयंते पटिधातौ परुषादिषु च पस्य फो नवति ॥ फालेर फाडे । फरसो । फलिहो । फलिहा । फणसो । फालिहदो ॥ मूल भाषांतर. एयंत (प्रेरणार्थ ) एवा पटि धातु अने परुष विगेरे शब्दोना पनो फ थाय. सं. पाटयति तेनुं फालेइ फाडेइ थाय. सं. परुष तेनुं फरसो थाय. सं. परिघ तेनुं फलिहो पाय. सं. परिखा तेनुं फलिहा थाय. सं. पनस तेनुं फणसो थाय. सं. पारिभद्र तेनुं फालिहद्दो थाय. ॥ २३२॥
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प्रथमःपादः।
श्यप
॥ ढुंढिका ॥ पाटिश्च परूषश्च परिघश्च परिखा च पनसश्च पारिजश्च पाटिपरुषपरिघपरिखापनसपारिजथं तस्मिन् ७१ क् ११ अट् पट् श्द्र गतौ पट् पटतं प्रयुक्त प्रयोक्तृ० णिग् श्रादेर्लुक्यादेरतः श्राप पपा लोकात् तिवू णेरदादावावेति ढः चपेटापाटे वा टस्य लः श्रनेन पफ त्यादीनां तिर फालेश् । पटू पटतं प्रयुक्त प्रयोक्तृ० णिग् श्रादेर्लुक्यादे० पपा लोकात् तिवू णेरदादावावे ढिढेढो मः अनेन पफ त्यादीनां ति फाडे । परुष अनेन पफ शषोः सः षस ११ श्रतः सेझैः फरूसो। परिघ अनेन पफ हरिसादौ लः रस्य लः खघथा धस्य हः श्रतः सेझैः फलिहो । परिखा ११ अनेन पफ हरिजादौ रस्य लः खघथा नस्य हः सर्वत्र रखुक् अनादौ छित्वं ११ श्रतः सेझैः अंत्यव्यंज स्बुक् फलिहा । पनस थनेन पस्य फः नोणः ११ श्रतः से?ः फणसो । पारिनज- अनेन पफ हरिजादौ लः रस्य लः खघथा नस्य हः सर्वत्र लुक् अनादौ हित्वं ११ अतः सेोंः फालिनदो ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. प्रेरणार्थ पाटि धातु अने परुष विगेरे शब्दोना पनो फ थाय. अट् पट् इट् ए धातु गतिमा प्रवर्ते. पट् धातु गति करनारने प्रेरवाना अर्थमा प्रयोक्तृ० ए सूत्रश्री णिक् प्रत्यय आवे. पनी आदेर्लुक्यादेरतः लोकात् ति प्र० णेरदादावावति ढः चपेटा पाटे वा चालता सूत्रथी पनो फ ाय. पनी त्यादीनांए सूत्र पामी फालेइ थाय. बीजे पदे पट् धातुने प्रयोक्त० आदेलक्यादे० लोकात् तिव् प्र० णेरदादावे ढोडः चालता सूत्रे पनो फ थाय. त्यादीनां ए सूत्रोथी फाडेइ रूप थाय. सं. परुष तेने चालता सूत्रथी पनो फ थाय. पनी शषोः सः अतः सेोंः ए सूत्रोथी फरुसो थाय. सं. परिघ तेने चालता सूत्रथी पनो फ थाय. पी हरिद्रादौ लः खघथा अतः सेोः ए सूत्रोथी फलिहो रूप श्राय. सं. परिखा तेने चालता सूतथी पनो फ थाय. पनी हरिद्रादौ लः खघथ० सर्वत्र लुक् अनादौ द्वित्वं अतः से?ः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी फलिहा रूप थाय. सं. पनस तेने चालता सूत्रथी पनो फ थाय. पली नोणः अतः से?: ए सूत्रोथी फणसो रूप थाय. सं. पारिभद्रः तेने चालता सूत्रथी पनो फ थाय. पनी हरिद्रादौ लः खघथ० सर्वत्र रलुक् अनादौ द्वित्वं अतः सेडोंः ए सूत्रोथी फालिभद्दो रूप थाय. ॥१३॥
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२३०
मागधी व्याकरणम्.
प्रनूते वः ॥२३३ ॥ प्रजूते पस्य वो जवति ॥ वहुत्तं ॥ मूल भाषांतर. प्रभूत शब्दना पनो व थाय. सं. प्रभूतं तेनुं वहुत्तं रूप थाय ॥२३३ ॥
॥ढुंढिका ॥ प्रजूत ७१ व ११ प्रजूत- सर्वत्र रखुक् अनेन पस्य वः खघथ। जस्य हः तैलादौ वा हित्वं हृखः संयोगे ११ श्रतः सेझैः वहुत्तं ॥ २३३॥ टीका भाषांतर. प्रभूत शब्दना प नो व थाय. सं. प्रभूत तेने सर्वत्र चालता सूत्रथी पनो व थाय. पनी खघथ० तैलादौ वा द्वित्वं इस्वः संयोगे अतः सेों: ए सूत्रोथी वहुत्तं एवं रूप थाय. ॥ २३३ ॥
नीपापीडे मो वा ॥ ३४ ॥ अनयोः पस्य मो वा नवति ॥ नीमो नीवो। थामेलो थावेमो॥ मूल भाषांतर. नीप श्रने आपीड शब्दना पनो विकरपे म थाय. सं. नीपः तेना नीमो नीवो एवां रूप थाय. सं. आपीडः तेना आमेलो आवेडो रूप थाय. ॥ ३४ ॥
॥ढुंढिका ॥ नीपश्च थापीमश्च नीपापीडं तस्मिन् ७१ म ११ वा ११ नीप श्रनेन वा यस्य मः श्रतः सेडोंः नीमो । पदे पोवः नीवो । थापीड अनेन वा पस्य मः एत्पीयूषापीमविजीतकेति एत्वं मोलः ११ श्रतः सेडोंः आमेलो । पदे आपीम-पोवः एत्पीयूषापीडेति एत्वं ११ यतः सेझैः थावेमो ॥ १३४ ॥ टीका भाषांतर. नीप अने आपीड शब्दना पनो विकटपे म थाय. सं. नीप तेने चालता सूत्रथी पनो म थाय. पनी अतः से?: ए सूत्र पामी नीमो रूप थाय. पक्ष पोवः ए सूत्रथी नीवो रूप थाय. सं. आपीडः तेने चाखता सूत्रथी विकटपे पनो म थाय. पनी एत्पीयूषापीड डोलः अतः से?: ए सूत्रोथी आमेलो रूप थाय. पदे आपीडः तेने पोवः एत्पीयूषापीड अतः सेटः ए सूत्रोथी आवेडो रूप श्रायः॥ २३ ॥
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२३१
प्रथमःपादः।
पापस रः॥२३५॥ पाप वपदादौ पकारस्य रो जवति ॥ पारडी ॥
मूल भषांतर. जेनी आदिमां पद न होय तेवा पापईि शब्दना पनो र थाय. सं. पापर्द्धि तेनुं पारद्धी श्राय
॥ढुंढिका ॥ पाप ि७१ र ११ पापर्डि- अनेन पस्य रः सर्वत्र रबुक् ११ श्रक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक पारसी ॥ ३५ ॥ टीका भाषांतर. पदनी आदि न होय तेवा पापछि शब्दना पनो र थाय. सं. पापाई तेने चालता सूत्रथी पनो र थाय. पठी सर्वत्र अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी पारडी एवं रूप पाय. ॥ २३५॥
फो नदौ ॥ १३६॥ खरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेः फस्य नहौ नवतः ॥ कचिद् नः। रेफः । रेजो ॥ शिफा । सिना ॥ क्वचित्तु हः मुत्ताहलं ॥ क्वचितुजावपि । सजलं सहलं । सेनालिया सेहालिया । सजरी सहरी। गुनश् गुहः ॥ स्वरादित्येव । गुंफर ॥ संयुक्तस्येत्येव । पुष्पं ॥
अनादेरित्येव । चिट्ठर फणी ॥ प्राय इत्येव । कसणफणी ॥३६॥ __ मूल भाषांतर. स्वरथी पर जोमादरे वर्जित अने आदिनूत न होय तेवा फना भ तथा ह पाय. कोइ ठेकाणे भ थाय. जेम सं. रेफः तेनुं रेभो थाय. सं. शिफा तेनुं सिभा थाय. कोइ ठेकाणे ह थाय. सं. मुक्ताफलं तेनुं मुत्ताहलं वाय. कोइठेकाणे बंने पण श्राय. जेम सं. सफलं तेना सभलं सहलं एवां रूप थाय. सं. शेफालिका तेना सेभालिआ सेहालिआ रूप थाय. शफरी तेना सभरी सहरी रूप थाय. गुंफति तेना गुभइ गुहइ रूप थाय. मूलमा स्वरथी पर एम कडं ने तेथी सं. गुंफति तेनुं गुंफइ रूप थाय. जोडादरे वर्जित एम कडं ने तेथी सं. पुष्पं तेनुं पुप्फ थाय. आदिनूत न होय तो वाय. एम कडं ने तेथी सं. तिष्ठति फणी तेनुं चिट्ठइ फणी एवं रूप वाय. प्रायेकरीने एम कडं ने तेथी सं. कृष्णफणी तेनुं कसणफणी एवं रूप थाय. ॥ २३६॥
॥ढुंढिका ॥ फ ६१ न ह १२ रेफ अनेन फ न अतः सेोंः रेनो । शिफा शषोः सः श स अनेन फस्य नः ११ अंत्यव्यंग सबुक् सिना।
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१३२
मागधी व्याकरणम्.
मुक्ताफल- कगटडेति कुलक अनादौ द्वित्वं अनेन फस्य दः ११ कीबे स्म मोनु० मुत्तादलं । सफलं - अनेन फ ज दश्च १९ क्की बे सम् मोनु० सजलं सहलं । सफालिका अनेन फ ज द कगचजेति तुलु अंत्यव्यं सलुक् सेजालिया । सेहालिश्रा । शफरी - शषोः सः अनेन फस्य जः दश्व ११ अंत्यव्यंज० लुक् सजरी । सहरी गुप् गुंकू ग्रंथे गुफ् तिब्रू व्यंजनाददतेऽत् अनेन फस्य जः दश्च त्यादीनां तिगुन गुंफ तिव्र व्यंजनाददंतेऽत् त्यादीनां ति इ गुजइ गुहइ गुफ तिब्रू व्यंजनाददतेऽत् त्यादीनां ति इ गुंफइ । पुष्प ११ ष्पस्य पोफः ष्पस्य फः अनादौ द्वित्वं द्वितीये तुपूर्वकस्य पक्कीबे सम् मोनु० पुष्कं । स्था तिव्र स्वष्टा य क - चिनिरप्पा इति स्थास्थाने चिह्न त्यादीनां ति इ व्यंजनात् चिट्ठश् । कृष्णफणी कृष्णश्चासौ फणी च कृतोऽत् कृ क कृष्णवर्णे वा णात् प्राग् इषः लोकात् शषोः सः षः सः ११ अंत्यव्यं० नलुक् बे सौ दीर्घः त्यव्यं सबुक कसणफणी ॥ २३६ ॥
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टीका भाषांतर. स्वरथी पर जोडाक्षरे वर्जित आदिनूत न होय तेवा फना भ तथा ह थाय. सं. रेफ तेने चालता सूत्रे फ नो भ थाय. पढी अतः सेडः सूत्रथी रेभो रूप थाय. सं. शिफा तेने शषोः सः चालता सूत्रे फनो भ थाय. पबी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी सिभा रूप थाय. सं. मुक्ताफल तेने कगटड अनादौ द्वित्वं चालता सूत्रयी फनो ह याय. पी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मुत्ताहलं रूप थाय. सं. सफलं तेने चालता सूत्रथी फनो न तथा ह थाय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सभलं सहलं एवां रूप याय. सं. सेफालिका तेने चालता सूत्रथी फू नो ह थाय. पबी कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सेभालिआ सेहालिका एवा रूप याय. शफरी तेने शषोः सः चालता सूत्रथी फनो भ तथा ह थाय. पनी अंत्यव्यंज० ए सूत्री सभरी सहरी एवां रूप थाय. सं. गुफू गुंफ ए धातु गुंथवामां प्रवर्त्ते. गुफ़ धातुने ति प्र० थाय. पबी व्यंजनाददतेऽत् चालता सूत्रथी फनो भ तथा ह थाय. त्यादीनां ए सूत्रथी गुभइ रूप याय. सं. गुंफ तेने तिव् प्रत्यय आवे. पी व्यंजनाददतेऽत् त्यादीनां ए सूत्रोथी गुभइ गुंहइ एवां रूप थाय. सं. गुफ धातुने तिव् प्रत्यय यावे. व्यंनार्दतेऽत् त्यादीनां ए सूत्रोथी गुंफइ रूप याय. तेने रूपस्प योः फः अनादौ द्वित्वं द्वितीय० क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पुष्कं
सं. पुष्प
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प्रथमः पादः ।
२३३
रूप याय. सं. स्था धातुने तिबू प्रत्यय आवे तेने स्वष्टाथकचिद्वनिप्पा त्यादीनां ए सूत्रोथी चिट्ठइ रूप याय. सं. कृष्ण फणी ( कालो सर्प ) तेने ऋतोत् कृष्णवर्णे ठा लोकात् शषोः सः अंत्यव्यंज० तलुक् अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंजन० सलुक् ए सूत्रोथी कसणफणी रूप थाय. ॥ २३६ ॥
बो वः ॥ २३७ ॥ स्वरात्परस्यासंयुक्तस्यानादेर्बस्य वो जवति ॥ श्रलाबू । अलावू । अलाऊ ॥ शबलः । सवलो ॥
मूल भाषांतर. स्वरथी पर जोडाक्षरे वर्जित ने आदिनूत न होय तेवा बनो व थाय. सं. अलाबू तेनुं अलावू याय. अने पदे अलाऊ पण थाय. सं. शबलः तेनुं सवलो रूप याय. ॥ २३७ ॥
॥ ढुंढिका ॥
ब ६१ व ११ अलाबु - शबल - ११ शषोः सः अनेन बस्य वः लावू पदे अलाऊ । अतः सेर्डोः सबलो ॥ २३७ ०
टीका भाषांतर. स्वरथी पर जोडाक्षरे वर्जित ने श्रादि न होय तेवा बनो व थाय. सं. अलाबू तेने या चालता सूत्रे बनो व थाय. एटले अलाबू थाने प अलाऊ पण थाय. सं. शबलः तेने शषोः सः चालता सूत्रे बनो व थाय. अतः सेड : ऐ सूत्रोथी सबलो रूप थाय. ॥ २३७ ॥
बिसिन्यां जः ॥ २३८ ॥
विसिन्यां वस्य जो जवति ॥ जिसिणी ॥ स्त्रीलिंग निर्देशादिह न
वति । बिसतन्तु - पेलवाणं ॥
मूल भाषांतर. बिसिनी शब्दना बनो भ थाय. सं. बिसिनी तेनुं भिसिणी थाय. मूलमां स्त्रीलिंग शब्दनो निर्देश बे तेथी अहिं न थाय. जेम के, सं. बिसतन्तु पेलवानां तेनुं बिसतन्तु- पेलवाणं एवं रूप श्राय ॥ २३८ ॥
॥ ढुंढिका ॥
बिसिनी ७१ ज ११ बिसिनी - श्रनेन बस्य जः नोएः अंत्यव्यं० सलुक् जिसि । बिस-तंतु-पेलव श्राम टाआमोर्णः श्रामोर्णत्वं जस् शस् ङसितोद्वामि दीर्घः व वा त्कास्यादेर्णवोर्वानुस्वारः विस-तंतु- पेलवाणं ॥ २३८ ॥
३०
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२३४
मागधी व्याकरणम्. __टीका भाषांतर. बिसिनी शब्दना बनो भ श्राय. सं. बिसिनी तेने चालता सूत्रथी बनो भ थाय. नोणः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी भिसिणी रूप थाय. सं. बिसतंतु पेलव तेने षष्ठी बहुवचन आम् प्रत्यय श्रावे. पनी टाआमोर्णः आमोर्णत्वं जस् शस् ङसित्तो० कास्यादेर्णस्वोर्वानुखारः ए सूत्रोथी बिस-तंतु-पेलवाणं एवं रूप थाय. ॥ २३०॥
कबंधे- मयौ ॥२३॥ कबंधे बस्य मयौ नवतः ॥ कमन्धो । कयन्धो॥
मूल भाषांतर. कबंध शब्दना बने स्थाने म अने य श्राय. सं. कबंधः तेनुं कमन्धो तथा कयन्धो थाय.॥
॥ढुंढिका॥ कबंध ७१ मश्च यश्च मयौ १५ कबंध ११ श्रनेन बस्य मः श्रतः से?ः कमंधो । कबंधः अनेन बस्य यः ११ अतः सेझैः कयंधो॥२३॥ टीका भाषांतर. कबंध शब्दना बना म अने य श्राय. सं. कबंध तेने चालता सूत्रथी बनो म ाय. अतः सेटः ए सूत्रथी कमंधो रूप थाय. सं. कधः तेने चालता सूत्रथी बनो य श्राय. पनी अतः सेटः ए सूत्रथी कयंधो रूप थाय. ॥१३॥
कैटने नो वः ॥२४० ॥ कैटने नस्य वो जवति ॥केढवो ॥ मूल भाषांतर. कैटभ शब्दना भनो व श्राय. सं. कैटभ तेनुं केढवो थाय २०
॥ टुंढिका ॥ कैटन १ ज ६१ व ११ कैटन- ऐत एत् कै के शटाशकटकैटने ढः टस्य ढः श्रनेन नस्य बः ११ श्रतः सेझैः डित्वाहिलोपः केढवो।॥ २० ॥ टीका भाषांतर. कैटभ शब्दना भनो व थाय. सं. कैटभ तेने ऐत एत् शटाशकटकैटभे ढः चालता मूत्रथी भनो ब श्राय. अतः सेों: टिनो लोप थाय. एटले केढवो रूप थाय. ॥ २० ॥
विषमे मो ढो वा ॥२४॥ विषमे मस्य ढो वा जवति ॥ विसढो । विसमो ॥
मूल भाषांतर. विषमशब्दना मनो विकटपे ढ थाय. सं. विषमः तेनुं विसढो तथा विसमो रूप थाय.॥
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प्रथमः पादः ।
॥ ढुंढिका ॥
विषम ७१ म ६१ ढ ११ वा ११ विषमः शषोः सः षः सः अनेन वा मस्य ढः छतः सेर्मोः विसढो । विषम ११ शषोः सः श्रतः सेर्डोः विसमो ॥ २४९ ॥
टोका भाषांतर. विषम शब्दना मनो विकल्पे ढ थाय. सं. विषमः तेने शषोः सः चालता सूत्रे मनो ढ याय. अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी विसढो रूप थाय. सं. विषमः तेने शषोः सः अतः सेर्डी : ए सूत्रोथी विसमो एवं रूप याय. ॥ २४९ ॥ मन्मथे वः ॥ २४२ ॥
२३५
मन्मथे मस्य वो जवति ॥ वम्मदो ॥
मूल भाषांतर. मन्मथ शब्दना मनो व थाय. सं. मन्मथः तेनुं वम्महो थाय. ॥ ढुंढिका ॥
मन्मथ ७१ व ११ मन्मथ अनेन मस्य वः न्मोमः न्मस्य मः श्रनादौ द्वित्वं श्रतः सेर्डोः वम्महो ॥ २४२ ॥
टीका भाषांतर. मन्मथ शब्दना मनो व थाय. सं. मन्मथ तेने चालता सूत्रथी मनो व याय. पी न्मोमः अनादौ दित्वं अतः सेडः ए सूत्रोथी वम्महो रूप थाय ॥ २४२ ॥
वामिन् ॥ २४३ ॥
श्रमिन्युशब्दे मो वो वा जवति ॥ अहिवन्नू हिमन्नू ॥
मूल भाषांतर. अभिमन्यु शब्दना मनो विकल्पे व याय. सं. अभिमन्यु तेना अहिवन्नू तथा अहिमन्नू एवां रूप याय. ॥ २४३ ॥
॥ ढुंढिका ॥
वा ११ श्रमिन्यु ७१ खघथ० जस्य हः अनेन वा मस्य वः अधोमनयां लुकू नाद द्वित्वं ११ अक्कीबे दीर्घः अहिवन्नू पदे अहिमन्नू मस्य वत्वं मुक्त्वा शेषं पूर्ववत् ॥ २४३ ॥
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टीका भाषांतर. अभिमन्यु शब्दना म नो विकल्पे व थाय. सं. अभिमन्यु तेने खघथ० चालता सूत्रे विकल्पे मनो व थाय. अधोमनयां अनादौ द्वित्वं अक्कीबे दीर्घः ए सूत्रोथी अहिवन्नू थाय. पछे अहिमन्नू थाय. अहिं मात्र मनो व न थाय. बाकी बीजूं बधुं पूर्ववत् साधकुं. ॥ २४३ ॥
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२३६
मागधी व्याकरणम.
मरे सो वा ॥ २४४ ॥
चमरे मस्य सो वा जवति ॥ जसलो जमरो ॥
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मूल भाषांतर. भ्रमर शब्दना मनो विकल्पे स श्राय. सं. भ्रमरः तेनुं भसलो तथा भमरो थाय.
॥ ढुंढिका ॥
चमर ७१ स ११ वा ११ उमर सर्वत्र रलुक् छानेन मस्य सः हरिप्रादौ लः रस्य लः श्रतः सेडः जसलो प मर - ११ सर्वत्र रलुक् श्रतः सेडः नमरो ॥ २४४ ॥
टीका भाषांतर. भ्रमर शब्दना मनो विकल्पे स याय. सं. भ्रमरः तेने सर्वत्र चालता सूत्रथी मनोस थाय. पी हरिद्रादौ लः अतः सेडः ए सूत्रोथी भसलो रूप थाय. पदे भ्रमर तेने सर्वत्र अतः सेडः ए सूत्रोथी भमरो रूप थाय. ॥ २४४ ॥ देर्यो जः ॥ २४८ ॥
पदादेर्यस्य जो जवति ॥ जसो । जमो । जाइ ॥ श्रादेरिति किम् । tarai | विd || बहुला धिकारात् सोपसर्गस्यानादेरपि । संजमो । संजोगो । श्रवजसो ॥ कचिन्न नवति । पर्जने ॥ श्रार्षे लोपोऽपि । यथाख्यातं । यहकखायं ॥ यथाजातं अहाजायं ॥
I
मूल भाषांतर. पदना यदि एवा यनो ज थाय. सं. यशस् तेनुं जसो थाय. सं. यमः तेनुं जम्मो थाय. सं. याति तेनुं जाइ न्याय. पदनो आदि एम कह्युं बे तेथी सं. अवयवः तेनुं अवयवो थाय. सं. विनयः तेनुं विणओ थाय. बहुल अधिकार ad उपसर्गसहित वा पदनी श्रादिमां न हो य तोपण थाय. जेम - सं. संयमः तेनुं संयमो थाय. सं. संयोगः तेनुं संजोगो थाय. सं. अपयशस् तेनुं अवजसो था. कोइ ठेकान पण साय. जेम सं. प्रयुक्त तेनुं पओओ थाय. श्रार्षप्रयोगमां लोप पण याय. जेम सं. यथाख्यातं तेनुं अहकखायं थाय. सं. यथाजातं तेनुं अहाजायं थाय. ॥ २४५ ॥
॥ ढुंढिका ॥
यदि ६१ य ६१ ज ११ यशस् अनेन यस्य जः शषोः सः अंत्यव्यंज० लुक् ११ छातः सेर्डोः जसो । स्रमदाम शिरोननः इति
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प्रथमः पादः
२३७
पुंस्त्वं यम १९ अनेन यस्य जः तैलादौ वा द्वित्वं म्म छातः सेडों जम्मो । याति यस्य जः त्यादीनां ति इ जाइ । श्रवयवः कगचजेति यलुक् वर्णो अ य ११ श्रतः सेडः श्रावयवो | विनय नोणः कगचजेति यूलुक् ११ छातः सेर्डोः विष संयम संयोग १९ बहुलाधिकरात् अनेन य ज अतः सेर्डोः संयजमो संजोगो. अपविरुद्धं यशः अपयशः अपयशस् अनेन य ज शषोः सः अंत्यव्यं ० सलुक् समदाम शिरोननः इति पुंस्त्वं ११ अतः सेर्डोः श्रवजसो । प्रयुत सर्वत्र रलुक् कगचजेति यलुक् ११ अतः सेर्डोः पर्ज यथाख्यात श्रार्षे यलोपः स्वः संयोगे खघथ० यस्य हः श्रधोमनयां लुक् छनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व ख क कगचजेति लुक् छा - वर्णो य ११ क्लीबे स्मू कखायं । यथाजात - आर्षेय्लुक् खघथ० थ द कगचजेति त्लुक् श्रवर्णो ा य ११ क्लीबे सम मोनु अहाजायं ॥ २४५ ॥
टीका भाषांतर. पदना आदि एवा य नो ज थाय. सं. यशस् तेने चालता सूनोज था. पती शषोः सः अंत्यव्यं० अतः सेडः ए सूत्रोथी जसो रूप थाय. समदामशिरोनभः ए सूत्रथी श्रा शब्दने पुलिंगे थाय. सं. यम तेने चालता सूत्रीय नोज थाय. तैलादौ वा अतः सेडः ए सूत्रोथी जम्मो रूप याय. सं. याति तेने चालता सूत्रे य नो ज थाय. त्यादीनां ए सूत्रथी जाइ रूप याय. सं. अवयवः तेने कगचज अवर्णो अतः सेड: ए सूत्रोथी अवयवो एवं रूप थाय. सं. विनयः तेने नोणः कगचज अतः सेर्डीः ए सूत्रोथी विणओ रूप याय. सं. संयम संयोग तेने बहुल अधिकार बे तेथी य नो ज थाय. अतः सेर्डोः ए सूत्रश्री संजमो संजोगो एवां रूप थाय. अप एटले विरुद्ध एवं जे यश ते अपयश कहेवाय. तेने चालता सूत्रीय नो ज याय. शषोः सः अंत्यत्र्यंज • स्रमदामशिरो नभः श्रतः सेर्डोः | ए सूत्रोथी अवजसो एवं रूप याय. सं. प्रयुत तेने सर्वत्र कगचज अतः सेडौः ए सूत्रोथी पओओ रूप याय. सं. यथाख्यात तेने आर्षप्रयोगमां य नो लोप थाय. ह्रस्वः संयोगे खघथ० अधोमनयां अनादी द्वित्वं द्वितीयपूर्व कगचज अवर्णो क्ली म ए सूत्रोथी अहकखायं रूप श्राय. सं. यथाजात तेने आर्षप्रयोगमां यनो लुक् थाय. खघथ० कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अहाजायं एवं
रूप थाय. ॥ २४५ ॥
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সুইট
मागधी व्याकरणम् .
युष्मदर्थपरे तः ॥ २४६॥ युष्मछब्देऽर्थपरे यस्य तो जवति ॥ तुह्मा रिसो। तुझकेरो ॥ श्रर्थपर इति किम् । जुह्मदम्प- पयरणं ॥ मूल भाषांतर. जो युष्मद् शब्दनो अर्थ श्रतो होय तो तेना य नो त थाय. सं. युष्मादृश तेनुं तुह्मारिसो थाय. सं. युष्मदीय तेनुं तुह्मकेरो थाय. मूलमां युष्मद् शब्दनो अर्थ थतो होय एम लख्युं ने तेथी सं. युष्मदस्मत् प्रकरणं तेनुं जुह्मदह्मपयरणं एq थाय.
॥ ढुंढिका ॥ युष्मद् ७१ अर्थपर १ त ११ युष्मादृश अनेन यस्य त पदमश्ममस्महमा ह्यः ष्मस्य हः दृशः क्विप् टक् सहस्थाने रिशषोः सः शः सः ११ अतः सेझैः तुझारिसो। युष्मद् युष्माकं श्रयं युष्मदीयः दोरीय इति श्य प्रत्ययः श्दमर्थस्य केर इति ईयस्याक्यः श्रनेन यस्य तः पदमश्मष्मेति ष्मस्य लः अंत्यव्यंग बुक् ११ अतः से?ः तुझकेरो। युष्मदस्मत्प्रकरणं आदेर्योजः यस्य जः पदमश्मष्मेति मः इति ष्मस्मस्य सः लोकात् अंत्यव्यंग दलुक् सर्वत्र रखुक् कगचजेति क्लुक् अवर्णो थ य ११ क्लीबे सम् मोनु तुह्म दह्म-पयरणं ॥२४६ ॥ टीका भाषांतर. जो युष्मद् शब्दनो अर्थ श्रतो होय तो य नो त थाय. सं. युष्मादृश तेने चालता सूत्रथी य नो त थाय. पनी पक्ष्मश्मष्म दृशः किए शषोः सः अतः सेझैः ए सूत्रोथी तुह्मारिसो एवं रूप थाय. सं. युष्मदीय (तमारो) तेने दोरीय इदमर्थस्य केर चालता सूत्रे य नो त थाय. पक्ष्मश्मष्म० अंत्यव्यं० अतः से?: ए सूत्रोथी तुह्मकेरो ए रूप वाय. सं. युष्मदस्मदप्रकरणं तेने आयोजः पक्ष्मश्मष्म० लोकात् अंत्यव्यंज० सर्वत्र कगचज० अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० । सूत्रोथी तुह्मदह्म-पयरणं एवं श्राय. ॥ २॥६॥
यष्टयां लः॥२४॥ यष्टयां यस्य लो नवति ॥ लही। वेणु-लही। उच्छ-लही। महु-लट्ठी॥ मूल भाषांतर. यष्टि शब्दना य नो ल श्राय. सं. यष्टि तेनुं लट्ठी थाय. सं. वेणुयष्टि तेनुं वेणुलट्ठी थाय. सं. इक्षुयष्टि तेनुं उच्छलट्ठी एवं रूप थाय. सं.. मधुयष्टि तेनुं महुलट्ठी श्राय.
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प्रथमःपादः।
॥ढुंढिका॥ यष्टि ७१ ल ११ यष्टि वेणुयष्टि- अनेन य ल ष्टस्यानुष्टेष्ट्रा संदष्टेष्टस्य उः अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व उस्य टः ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन स्लुक् लट्ठीवेणु- वेणुलट्ठी । इकुयष्टि-प्रवासीदौ कारस्य उकारः बोऽदया दौ दस्य बः अनादौ हित्वं द्वितीयस्य च अनेन यस्य सः ष्टस्यानुष्टे ष्टस्य ः अनादौ छित्वं हितीये तु पूर्वट उः ११ अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् उच्चुलही। मधुयष्टि ११ खघथ ध ह अनेन यस्य लः ष्टस्यानुष्ट्रे० ष्टस्य ः अनादौ हित्वं तु पूर्वठस्य टः अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंग
स्लुक् महुलही ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. यष्टिशब्दना य नो ल थाय. संयष्टि- वेणुयष्टि तेने चालता सूत्रथी यनो ल थाय. पनी ष्टस्यानु० अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व० अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी लट्ठी तथा वेणुलट्ठी एवां रूप थाय. सं. इक्षुयष्टि तेने प्रवासीक्षी छोऽक्ष्यादौ अनादौ० द्वितीय चालता सूत्रे य नो ल थाय. ष्टस्यानुष्टे० अनादौ द्वितीय० अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी उच्छुलट्ठी रूप थाय. सं. मधुयष्टि तेने खघथ. चालता सूत्रे यनो ल थाय. ष्टस्यानुष्टे० अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व० अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग ए सूत्रोथी महुलट्ठी रूप थाय. ॥ २७॥
वोत्तरीयानीय-तीय-कृद्ये जाः॥२४॥ उत्तरीयशब्दे अनीयतीयकृद्यप्रत्ययेषु च यस्य द्विरुक्तो जो वा जवति ॥ उत्तरिऊं उत्तरीअं ॥ अनीय । करणिऊं करणी। विम्हयणि विम्हयणीधे । जवणिजं । जवणीयं ॥ तीय । बि
जो बीउ ॥ कृय । पेजा पेया ॥ २४ ॥ मूल भाषांतर. उत्तरीय शब्द अने अनीय तीय तथा कृद्य प्रत्ययना य नो विकटपे बेवडो ज थाय. सं. उत्तरीयं तेनुं उत्तरिजं अने बीजे पदे उत्तरीअं एवं रूपं श्राय. अनीय प्रत्ययना उदा० सं. करणीयं तेना करणिज्जं करणीअं एवां रूप थाय. सं. विस्मयनीयं तेना विह्मयणिज्ज विह्मयणीअं एवां रूप थाय. सं. यापनीयं तेना जवणिजं जवणीअं एवां रूप थाय. तीय प्रत्ययना नदा- सं. द्वितीयः तेना बिइज्जे बीओ एवां रूप थाय. कृदंतना य प्रत्ययना उदा- सं. पेया तेना पेज्जा पेआ एवां रूप थाय. ॥ २४ ॥
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२४०
मागधी व्याकरणम्.
॥ ढुंढिका ॥ वा ११ उत्तरीयं च अनीयश्च तीयश्च कृयश्च उत्तरीयानीयतीयकृयं तस्मिन् ७१ ज ११ अनेन वा यस्य ऊः हवः संयोगे री रि ११ क्लीबे सम् मोनु उत्तरिऊं । पदे उत्तरीय कगचजेति यबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु उत्तरीथं । अनीयं दर्शयति करणीय ११ अनेन वा यस्य जः इखः संयोगेणीणि ११ क्लीबे सम् मोनु० करणिऊं पदे करणीय ११ कगचजेति यलुक् ११ क्लीबे करणी। विस्मयनीय पक्ष्मश्मष्मस्मेति स्म म्ह अनेन वा यस्य जाः ह्रखः संयोगे पीणि ११ क्लीबे सम् विह्मयपिऊ पदे विस्मयनीय पदाश्म स्मस्य ह्म नोणः कगचजेति यूलुक् ११ क्लीबे स्म मोनु० विह्मयणीधे । यापनीयं यापेजवः यापूस्थाने जवः बुक् वमध्यादबुक् अनेन ज ११ क्लीबे सम् ह्रखः संयोगे नोणः जवणिऊं।पदे कगचजेति यलुक्जवणी। तीयं दर्शयति द्वितीय कगटडेति ढुक् कगचजेति व्लुक्यनेन वा यस्य जाः हवः संयोगे ईथतः सेझैः विश्जो । पदे कगटडे ति बुक् कगचजेति तबुक् च बाहुलकात् समानानां दीर्घः वा ११ अतः से?ः बी। कृतो यः कृद्यः तं दर्शयति पेया- ११ अनेन यस्य जाः अंत्यव्यंग सबुक् पेजा। पदे पेया कगचजेति यलुक् ११ अंत्यव्यंजन स्लुकू पेथा ॥श्वना टीका भाषांतर. उत्तरीय शब्द अने अनीयतीय तथा कृदंतना य प्रत्ययनो विकटपे बेवडो ज थाय. सं. उत्तरीयं तेने चालता सूत्रथी यनो ज थाय. पनी इखः संयोगे क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी उत्तरिजं थाय. बीजे पदे सं. उत्तरीय तेने कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी उत्तरीअं रूप थाय. हवे अनीय प्रत्ययना उदाहरण बतावे . सं. करणीय तेने चालता सूत्रथी विकटपे ज थाय. हवः संयोगे क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी करणिजं रूप थाय. पदे सं. करणीय तेने कगचज क्लीबे सम् ए सूत्रोथी करणीअं रूप थाय. सं. विस्मयनीय तेने पक्ष्मश्मष्म० चाखता सूत्रे यनो ज थाय. हखः संयोगे क्लीबे सम् ए सूत्रोथी विस्मयणिज रूप थाय. पक्ष सं. विस्मयनीय तेने पक्ष्मश्म० नोणः कगचज० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी विह्मयणीअं रूप थाय. सं. यापनीय तेने यापेर्जव: ए सूत्रथी याप्ने स्थाने जव आदेश थाय. पळी वमांश्री अनो लुक् थाय. चालता सूत्रे यनो ज थाय.
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प्रथमःपादः।
२४१ क्लीबे सम् हखः संयोगे नोणः ए सूत्रोथी जवणिज्जं रूप थाय. बीजे पक्ष कगचज ए सूत्र लागी जवणीअं रूप थाय. सं. तीय प्रत्ययनुं उदाहरण दर्शावे . सं. द्वितीय तेने कगटड कगचज० चालता सूत्रे यनो ज थाय. हवः संयोगे अतः सेडों: ए सूत्रोथी विइजो रूप थाय. बीजे पक्ष कगटड कगचज बाहुलक अधिकारथी समानांनां दीर्घः पामे पी अतः सेझैः ए सूत्रथी बीओ रूप थाय. हवे कृदंतना य प्रत्ययनुं उदाहरण दर्शावे बे-सं. पेया तेने चाखता सूत्रथी यनो न वाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी पेज्जा रूप थाय. पदे सं. पेया शब्दने कगचज० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पेआ रूप थाय. ॥ २४ ॥
गयायां दोऽकांतौ वा २४ए॥ श्रकांतौ वर्तमाने बायाशब्दे यस्य हो वा जवति॥वच्छस्स गही वलस्स बाया। श्रातपानावः । सच्चाई सच्चायं ॥ अकांताविति किम् ॥ मुह-च्चाया। कांतिरित्यर्थः॥ मूल भाषांतर. जेनो अर्थ कांति श्रतो न होय एवा छाया शब्दना यनो विकटपे ह थाय. सं. वृक्षस्य छाया तेनुं वच्छस्स छाही एवं रूप वाय. पके वच्छस्स छाया एवं रूप थाय. अहिं छाया एटले तडकानो अनाव. सं. सच्छायं तेनुं सच्छाहं तथा सच्छायं रूप थाय. कांति अर्थ थतो होय तो न थाय. जेम-सं. मुखच्छाया तेनुं मुहच्छाया एवं रूप थाय. अहीं मुखनी कांति एवो अर्थ थाय जे.
॥ढुंढिका ॥ बाया ७१ ह ११ थकांति ७१ वा ११ वृक्षस्य कृतोऽत् वृ व बोsयादौ दस्य बः श्रनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ब च ६१ ङसस्स ङसस्थाने स्त वच्चस्स गया थनेन वा यस्य हा बहा हरिजायाः डीप्रत्ययः बुक् थालोपः लोकात् ११ अंत्यव्यंग सबुक् बाही। पदे वच्चस्स बाया पूर्ववत् । सहायः सह बायया वर्तते यत् तत् संस्थायां अनेन वा यस्य हः खरेज्यः उस्य हित्वं द्वितीये तु पूर्व बच ११ क्लीबे सम् मोनु सबाहं पदे सबाया कगचजेति यबुक् श्रवर्णो थ य ११ क्लीबे स्म् मोनु० सन्चायं । मुखछाया मुखस्य बाया खरेन्यः बस्य हित्वं द्वितीयपूर्व उ च खघथध० ख ह ११ अंत्यव्यं० सलुक् मुहछाया ॥२४ए ॥ . .
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२४२
- मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. कांति अर्थ वर्जित एवा छाया शब्दना य नो विकटपे ह थाय. सं. वृक्षस्य तेने ऋतोऽत् छोऽक्ष्यादौ अनादौ द्वितीय. उसस्स ए सूत्रोथी वच्छस्स रूप थाय. सं. छाया तेने चालता सूत्रथी विकटपे य नो ह थाय.: पी हरिद्रायाः डीप्रत्ययः लुक लोकात् अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी छाही रूप श्राय. बीजे पः पूर्ववत् वच्छस्स छाया एवं रूप थाय. सं. सच्छाय (गयासहित ) तेने चालता सूत्रथी विकटपे यनोह थाय. पठी खरेभ्यः छस्य द्वित्वं द्वितीय० क्लीये सम् मोनु ए सूत्रोथी सच्छाहं रूप थाय. बीजे पदे सच्छाया तेने कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सच्छायं रूप थाय. सं. मुखच्छाया (मुखनी बाया) तेने खरेभ्यः छस्य हित्वं द्वितीयपूर्व० खघथध० अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी मुहच्छाया एबुं रूप थाय. ॥श्वए॥
डाहवौ कतिपये ॥ ॥ कतिपये यस्य डाह व इत्येतौ पर्यायेण नवतः ॥ कश्वाहं । कश्वं ॥ मूल भाषांतर. कतिपय शब्दना य ने स्थाने अनुक्रमे डाह अने व एवा श्रादेश थाय. सं. कतिपय तेनुं कइवाहं तथा कइअवं एवं रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ डाहश्च वश्च डाहवौ १५ कतिपय ७१ कतिपय कगचजेति बुक् पोवः अनेन यस्य डाद डित्यं यस्य अनुक् लोकात् ११ कीबे स्म् मोनु कश्वाहं पदे कतिपय- कगचजेति पयोर्बुक् अनेन पस्य वः ११ क्लीबे सम् मोनु० कश्वं ॥ २५० ॥ टीका भाषांतर. कतिपय शब्दना य ने डाह अने व एवा आदेश श्राय. सं. कतिपय तेने कचचज पोवः चालता सूत्रे य नो डाह थाय. डित्यं लोकात् क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी कइवाहं रूप थाय. पदे कतिपय तेने कगचज चालता सूत्रे पनो व थाय. क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी कइअवं रूप थाय. ॥ २५ ॥
किरि-नेरे रो मः ॥ श्य१॥ श्रनयोरस्य डो जति ॥ किडी नेडो ॥ मूल भाषांतर, किरि अने भेर शब्दना रनो ड श्राय. सं. किरि तेनुं किडी वाय. सं. भेरः तेनुं भेडो रूप थाय. ॥ २५१ ॥
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प्रथमःपादः।
२४३
॥ ढुंढिका ॥ किरिश्च नेरश्च किरिनेरं १ र ६१ डः ११ किरि ११ श्रनेन रस्य डः अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंज सबुक् किडी ।नेर ११ अनेन र ड अतः सेझैः नेरो ॥ २५१॥ टीका भाषांतर. किरि अने भेर शब्दना रनो ड थाय. सं. किरि तेने चालता सूत्रथी र नो ड थाय. पनी अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी किडी रूप थाय. सं. भेर तेने चालता सूत्रथी रनो ड थाय. पठी अतः सेझैः ए सूत्रथी भेरो रूप धाय. ॥ २५१॥
पर्याणे डा वा ॥ ५॥ पर्याणे रस्य डा इत्यादेशो वा नवति ॥ पडायाणं पहाणं ॥२५॥ मूल भाषांतर. पर्याण शब्दना रने स्थाने डा एवो आदेश विकटपे थाय. सं. पयोणं तेनुं पडायाणं तथा पल्लाणं रूप थाय. ॥ २५२॥
॥ढुंढिका ॥ पर्याण ७१ डा ११ वा ११ पर्याण ११ रकारयकारयोविश्लेषं कृत्वा अनेन वा र डा ११ क्लीबे सम् मोनु पडायाणं पदे पर्याण- प
[स्तपर्याणसौकुमार्ये वः यस्य सः क्लीवे स्म् मोनु पहाणं ॥२५॥ टीका भाषांतर. पर्याण शब्दना रने स्थाने विकटपे डा एवो आदेश थाय. सं. पर्याण तेने र अने य ने जुदा करी चालता सूत्रश्री रनो विकटपे डा श्राय. पनी ल्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पडायाणं रूप थाय. बीजे पड़े सं. पर्याण शब्दने पय॑स्तपाणसौकुमार्य० ए सूत्रथी यनो ल्ल थाय पनी क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी पल्लाणं रूप थाय. ॥ २५ ॥
करवीरे णः ॥ २५३ ॥ करवीरे प्रथमस्य रस्य णो नवति ॥ कणवीरो ॥ २५३ ॥ मूल भाषांतर. करवीर शब्दना पेहेला रनो ण श्राय. सं. करवीर तेनुं कणवीरो थाय. ॥ २५३ ॥
॥ टुंढिका ॥ करवीर ७१ णः १९ करवीर श्रनेन प्रथमस्य णः श्रतः सेझैः कणवीरो ॥२५३ ॥
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२४४
मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. करवीर शब्दना प्रथम रनो ण थाय. सं. करवीर तेने चा. सता सूत्रथी पेहेला रनोण थाय पी अतः सेझैः ए सूत्रथी कणवीरो रूप थाय ॥२५३॥
दरिजादौ लः॥॥. हरिमादिषु शब्देषु असंयुक्तस्य रस्य लो जवति ॥ हसिद्दी । दखिदा । दलिदो । दालिदं । हलिहो । जहुहिलो। सिढिलो । मुहलो । चलयो । वलुणो। कबुणो। कंगालो । सकालो । सोमालो। चिलाउँ । फलिहा । फलिहो । फातिहहो । काहलो । लुक्को । थवहालं । जसलो। जढलं । बढलो। निठुलो । बहुलाधिकाराचरपशब्दस्य पादार्थवृत्तेरेव।अन्यत्र चरण-करणं ॥नमरे ससंनियोगे एव । अन्यत्र जमरो ॥ तथा जढरं । बढरो। निहुरो इत्यायपि ॥ हरिता ॥ दरिमाति । दरिज । दारिज्य । हरिज । युधिष्ठिर । शिथिर । मुखर । चरण । वरुण । करुण । अंगार । सत्कार । सु. कुमार । किरात । परिखा । परिघ । पारिनन । कातर । रुवण । अपहार । ब्रमर । जठर । बगर । निष्ठुर । इत्यादि ॥ आर्षे ऽवा. लसंगे इत्याद्यपि ॥ २५४ ॥ मूल भाषांतर. हरिद्र विगेरे शब्दोना जोडादरे वर्जित एवा रनो ल थाय. सं. हरिद्रा तेनुं हलीद्दी थाय. दरिद्राति तेनुं दलिद्दाइ थाय. सं. दरिद्र तेनुं दलिदो थाय. सं. दारिद्य तेनुं दालिदं थाय. सं. हरिज तेनुं हलिदो थाय. सं. युधिष्ठिरः तेनुं जहुढिलो थाय. सं. शिथिर तेनुं सिढिलो थाय. सं. मुखर तेनुं मुहलो थाय. सं. चरण तेनुं चलणो थाय. सं. वरुण तेनुं वलुणो थाय. सं. करुण तेनुं कलुणो थाय. सं. अंगारः तेनुं इंगालो थाय. सं. सत्कार तेनुं सकालो थाय. सं. सुकुमार तेनुं सोमालो थाय. सं. किरात तेनुं चिलाओ थाय. सं. परिखा तेनुं फलिहा थाय. सं. परिघ तेनुं फलिहो थाय. सं. पारिभद्र तेनुं फालिहद्दो थाय. सं. कातर तेनुं काहलो थाय. सं. रुठण तेनुं लुक्को थाय. सं अपद्वार तेनुं अवद्दालं थाय. सं. भ्रमर तेनुं भसलो थाय. सं. जठर तेनुं जढलं श्राय. सं. वठर तेनुं बढलो थाय. सं. निष्ठुर तेनुं निलो थाय. बहुल अधिकार ने तेथी चरण शब्दनो अर्थ जो श्लोकनो पाद ( एक चरण ) एवो थतो होय तो ज आय. नहीं तो चरण-करणं एवं थाय. भ्रमर शब्दनो अर्थ संनियोगमां श्रतो होय तोज पाय. नहीं तो भमरो थाय. इत्यादि जाणी लेवा. आर्ष प्रयोगमां सं. द्वादशांगे तेनुं दुवालसंगे इत्यादि रूप पण पाय. ॥ २५४ ॥
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प्रथमः पादः ।
॥ ढुंढिका ॥
हरिद्रादि ७१ ल ११ दरिद्रा पथि पृथिवी० र छानेन रस्य लः हेरोनवा मध्यात् रकारलोपः श्रनादौ द्वित्वं हा बायाहरिs - योः इति डी प्रत्ययः लोकात् ११ अंत्यव्यं० सलुक् दलिद्दी दरि प्राक् दुर्गतौ दरिद्रा तिव् अनेन रस्य लः रो नवा रलोपः - नादौ द्वित्वं यात्यादीनां ति दलिद्दाइ । दरिद्र अनेन रस्य लः रो नवा लुक् अनादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डे : दलिदो | दारि- अनेन र ल अधोमनयां यलोपः प्रेरोनवा रलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ क्लीबे स्म दालिदं । हारिद्र- हारिद्रवायव्योत्खाता हा द अनेन र लः प्रेरोनवा रलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः दलिदो । युधिष्ठिर श्रादेर्योजः ज उतोमुकलजुजयुं युधिष्ठिरे वा धि धु खघro धस्य दः ष्टस्यानुष्ट० ष्टस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीपूर्व व ट अनेन र लः ११ श्रतः सेर्डोः जुहुट्टिलो । शिथिर शषोः सः मेथि शिथिर० य ढ । अनेन र ल अतः सेर्डोः सिढि - लो । मुखर - खघro खस्य दः अनेन र लः ११ अतः सेडः मुहलो | चरण - ११ अनेन र ल अतः सेर्डोः चलो। वरुण करुण अनेन र लः अतः सेर्डोः वलुणो कलुषो । अंगार - पक्कांगार० श्रं इ अनेन रस्य लः ११ अतः सेर्डोः इंगालो | सत्कार - कगटडेति लुक् अनादौ द्वित्वं ११ अनेन र ल यतः सेर्डोः सकालो । सुकुमार- नवा मयूखलवण० कुशब्देन सह त्वं सो अनेन र ल सोमालो । किरात किराते चकस्य चः अनेन र ल क - गचजेति लुक् ११ श्रतः सेर्डोः चिलाई । परिखा - पाटि परुषमपरिघेति पस्य फः अनेन र ल खघथ० ख ह ११ अंत्यव्यं० स्लुक् फलिहा । परिघ - पाटि परुष परिघेति पस्य फः अनेन र ल खघथ० ११ श्रतः सेर्डो: फलिहो । पारिज पापिरुषेति पस्य फः अनेन र लः खघथ० ख ह ११ मेरो नवा रलुक् श्रनादौ द्वि
२४५
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२४६
मागधी व्याकरणम्. त्वं ११ अतः से?ः फालिहद्दो । कातर- वितस्ति वसति तस्य हः अनेन रस्य लः श्रतः सेडोंः काहलो । रुग्ण- अनेन रस्य लः शक्त मुक्तग्लस्य कः अनादौ हित्वं ११ बुको । अपहार-- पो वः सर्वत्र लुक् अनादौ हित्वं अनेन र ल ११ क्लीवे स्म् मोनुन श्रवद्दालं । भ्रमर- सर्वत्र रबुक् चमरे सो वा मस्य मो अनेन रस्य लः अतः सेझैः नसलो । जठरा वोढः अनेन र लः ११ क्लीबे सम् मोनु जढलं । बठर- वोढः गेढः अनेन र ल बढलो। निठुर- ष्टस्यानुष्ट ष्टस्य ः अनादौ हित्वं अनेन र ल अतः सेोः निहलो। चरणकरण- ११ क्लीबे सम् मोनु० चरणकरणं । भ्रमर ११ सर्वत्र रबुक् श्रतः से?ः नमरो । बहुलाधिकारात् जठर ११ क्लीबे सम् मोनु जठरं । बठर ११ श्रतः सेझैः बढरो । निष्ठुर११ ष्टस्यानु० ष्टस्य उः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्वठस्य टः ११ अतः सेडोंः निरो। आर्षे छादशांगहारे वा इति दवयोविश्लेषं कृत्वा वात् प्राग् उकारः लोकात् श्रार्षत्वादस्य लः शषोः सः ह्रस्वः संयोगे ह्रस्वः ११ श्रतः ए सौ पुंसि मागध्यां सिना सह एकारः उवालसंगे ॥ २५४ ॥ टीका भाषांतर. हरिजा विगेरे शब्दोना जोडाक्षरे वर्जितं एवा रनो ल श्राय. सं. हरिद्रा तेने पथि पृथिवी० चालता सूत्रे रनो ल थाय. इरोनवा ए सूत्रथी द्रमां रहेला रनो लोप थाय. पनी अनादौ द्वित्वं छायाहरिद्रयोः लोकात् अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी हरिही रूप थाय. सं. दरिद्रा ए धातु उर्गतिमा प्रवर्ते तेने तिब् प्रत्यय आवी रनो ल थाय. द्रेरोनवा अनादौ द्वित्वं त्यादीनांए सूत्रोथी दलिदाइ रूप श्राय. सं. दरिद्र तेने चालता सूत्रथी रनो ल थाय. द्रेरोनवा अनादौ द्वित्वं अतः से?ः ए सूत्रोथी दरिदो रूप थाय. सं. दारिद्रय तेने चाखता सूत्रथी रनो ल श्राय. पनी अधोमनयां डेरो नवा अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् ए सूत्रोथी दालिदं रूप थाय. सं. हारिद्र तेने हारिजवायव्योत्खाता चालता सूत्रे रनो ल ाय. द्रेरोनवा अनादौ द्वित्वं अतःसे?ः ए सूत्रोथी हलिदो रूप थाय. सं. युधिष्ठिर तेने आयोजः उतो मुकलजुजयुं युधिष्ठिरे वा खघथ० ष्टस्यानुष्ठ० अनादौ द्वित्वं द्वितीय. चालता सूत्रे रनो लाय. अतःसे?ः ए सूत्रोथी जुहुहिलो रूप श्राय. सं. शिथिर तेने शषोः सः मेथिशिथिर० चालता सूत्रे रनो ल थाय.
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प्रथमःपादः।
२४७
अतः से?ः ए सूत्रोश्री सिढिलो रूप श्राय. सं. मुखर तेने खघथ० चालता सूत्रे रनो ल थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी मुहलो रूप थाय. सं. चरण तेने चालता सूत्रयी र नो ल थाय. अतः सेडोंः ए सूत्रथी चलणो रूप धाय. सं. वरुण करुण तेने चालता सूत्रथी रनो ल थाय. अतः से?: वलुणो कलुणो रूप थाय. सं. अंगार तेने पक्कांगार० चालता सूत्रे र नो ल थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी के गालो रूप थाय. सं. सत्कार तेने कगटड० अनादौ० चालता सूत्रे रनो ल थाय. अतः से?: ए सूत्रोथी सकालो रूप थाय. सं. सुकुमार तेने नवामयूखलवण ए सूत्रथी कु शब्द साथे ओकार थाय. पनी चालता सूत्रे रनो ल थाय. एटले सोमालो रूप थाय. सं. किरात तेने किराते च ए सूत्रे क नो च थाय. चालता सूत्रे रनो ल थाय. कगचज. अतः सेडोंः ए सूत्रोथी चिलाओ रूप थाय. सं. परिखा तेने पाटिपरुषमपरिघ० ए सूत्रे पनो फ थाय. पठी चालता सूत्रे रनो ल थाय. खघथ० अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी फलिहा रूप थाय. सं. परिघ तेने पाटिपरुषपरिघ० चालता सूत्रे रनो ल थाय. खघथ अतः सेडों: ए सूत्रोथी फलिहो रूप थाय. सं. पारिभद्र तेने पाटिपरुष. चालता सूत्रे रनो ल ाय. खघथ० रोनवा अनादौ० अतः सेझैः ए सूत्रोथी फालिहद्दो रूप प्राय. सं. कातर तेने वितस्तिवसति० ए सूत्रे तनो ह वाय. चालता सूत्रे रनो ल थाय. अतः सेझैः ए सूत्रथी काहलो रूप थाय. सं. रुग्ण तेने चालता सूत्रे र नो ल थाय. शक्तमुक्तदष्ट० कः अनादौ० ए सूत्रोथी लुक्को रूप थाय. सं. अपद्वार तेने पोवः सर्वत्र वलुक् अनादी० चालता सूत्रे रनो ल थाय. क्लीबे सम् मोनु० अवद्दालं रूप थाय. सं. भ्रमरः तेने सर्वत्र भ्रमरेसोवा ए सूत्रथी मनो मो थाय. पली चालता सूत्रे रनो ल थाय. अतः सेों: ए सूत्रथी भसलो रूप पाय. सं. जठर तेने वोढः चालता सूत्रे रनो ल थाय. पगी क्लीबे नुम् मोनु० ए सूत्रोथी जढलं रूप थाय. सं. बठरः तेने वोढः ठोढः चालता सूत्रे रनो ल थाय. एटले बढलो रूप थाय. सं. निष्टर तेने ष्टस्यानुष्ट० अनादौ० चालता सूत्रे रनो ल थाय. पनी अतः सेडों: ए सूत्रथी निठुलो रूप थाय. सं. चरण-करण तेने क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चरण-करणं रूप थाय. सं. भ्रमर तेने सर्वत्र अतः सेझैः ए सूत्रोथी भमरो रूप थाय. बदुल अधिकार के तेथी सं. जठर तेने क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी जठरं रूप श्राय. सं. बठर तेने अतः सेोंः ए सूत्रथी बढरो रूप थाय. सं. निष्ठुर तेने ष्टस्यानु अनादौ० द्वितीय० अतः सेटः ए सूत्रोथी निठुरो रूप थाय. आर्ष प्रयोगमां सं. द्वादशांग तेने द्वारेवा ए सूत्रधी द अने व ने जुदा करी वनी पेहेला उ कार थाय. लोकात् अने आर्ष पणांथी ल नो ल थाय. शषोः सः इस्वः संयोगे पजी भागधीनाषामां पुंलिगे सिसहित ए वाय. एटले कुवालसंगे ए रूप थाय.॥२५४
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मागधी व्याकरणम्.
॥ स्थूले लो रः ॥ २५५ ॥
स्थूले लस्य रो जवति ॥ थोरं ॥ कथं धूलजद्दो स्थूरस्य दरिद्रा
- दिवे जविष्यति ॥
मूल भाषांतर. स्थूल त्यारे स्थूलभद्रनुं थूरभद्दो ल कार थशे.
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शब्दना ल नो र याय. सं. स्थूल तेनुं धोरं रूप याय. केम थाय ? त्यां स्थूर शब्दने हदिवादी लः ए सूत्रश्री
॥ ढुंढिका ॥
स्थूल ७१ ल ६१ र ११ स्थूल- कगटडेति लुक् उत्कुष्मांडी तूपीर - कूपर स्थूल इति थ यो अनेन लस्य रः ११ क्लीबे सम् मोनु० थोरं स्थूरिज कगटडेति सुलुक् दरिद्रादौलः रस्य लः प्रेरोनवा र लुक्नादौ वं ११ यतः सेर्डोः थूल हो ॥ २५५ ॥
टीका भाषांतर. स्थूल शब्दना ल नो र थाय. सं. स्थूल तेने कगटड ओत्कुष्मांडी तूणीर० चालता सूत्रे ल नो र थाय. क्लीवे सम् मोनु ए सूत्रोथी थोरं रूप याय. सं. स्थूरिभद्र तेने कगटड हरिद्वादौल: प्रेरोनवा अनादौ द्वित्वं अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी थूलभद्दो रूप याय. ॥ २५५ ॥
बादल - सांगल-लांगूले वादेः ॥ २५६ ॥
एषु श्रादेर्लस्य णो वा जवति ॥ बाहलो । लाइलो || एङ्गलं । लङ्गूलं । शूलं लङ्गूलं लङ्गूलं ॥
मूलभाषांतर. लाहल लांगल लांगूल शब्दना पेला ल नो विकल्पे ण श्राय. सं. लाहल तेना णाहलो लाहलो एवा रूप थाय. सं. लांगलं तेना जंगलं लंगलं रूप याय. सं. लांगूल तेना गंगूलं लंगूलं एवां रूप याय. ॥ २५६ ॥
॥ ढुंढिका ॥
लालश्च लांगलं च लांगूलं च लादललांगललांगूलं तस्मिन् ७१ वा ११ आदि ६१ प ११ लाइल- श्रनेन वा लस्य णः ११ श्रुतः सेर्डोः पाहलो लाइलो । एव विशेषः लांगल श्रनेन लस्य णः ह्रस्वः संयोगे ११ क्लीबे सम् मोनु० एंगलं लंगलं । लांगूल अनेन वा लस्य णः ह्रस्वः संयोगे ११ क्लीबे सम् मोनु० जंगलं जंगलं ॥ २५६ ॥
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प्रथमः पादः ।
२४ए
टीका भाषांतर. लाहल लांगल लांगूल ए शब्दोना आदि लनो विकल्पे ण थाय. सं. लाहल तेने चालता सूत्रथी लनो ण याय. अतः सेर्डो: ए सूत्रथी णाहलो लाहलो एवां रूप थाय. लाहलनो अर्थ देशविशेष थाय बे . सं. लांगल तेने चालता सूत्रथी लनो ण थाय ह्रस्वः संयोगे क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी जंगलं लंगलं एवां रूप थाय. सं. लांगूल तेने चालता सूत्रथी लनो ण थाय. ह्रख संयोगे क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी गंगलं तथा लंगलं रूप याय. ॥ २५६ ॥ ललाटे च ॥ २५७ ॥
ललाटे च श्रादेर्लस्य णो जवति ॥ चकार श्रादेरनुवृत्त्यर्थः ॥ पिडालं । डालं ॥
मूल भाषांतर. ललाट शब्दना आदि लनो ण थाय. मूलमां च शब्दनुं ग्रहण यदि लकारनी अनुवृत्तिने अर्थे बे . सं. ललाट तेनां णिडालं णडालं एवां
रूप थाय. ॥ २५७ ॥
॥ ढुंढिका ॥
ललाट ७१ च ११ ललाट अनेन वा लस्य एः पक्कांगार इति वा लट ललाटे लडोः इति व्यत्ययेन यणि टाल इति स्थिते टो डः ११ क्लीबे सम् मोनु० किालं पडलं ॥ २५७ ॥
टीका भाषांतर. ललाट शब्दना आदि लनो ण थाय. सं. ललाट तेने चालता सूत्रथी विकल्पे लनो ण थाय. पती पक्वांगार ललाटे लडो टो डः क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी णिडालं णडालं रूप थाय. ॥ २५७ ॥
शवरे बो मः ॥ २५८ ॥
aat ata मो जवति ॥ समरो ॥ २५८ ॥
मूल भाषांतर शबर शब्दना बनो म थाय. सं. शबर तेनुं समरो रूप थाय. ॥ २९८ ॥
॥ ढुंढिका ॥
शबर ११ ब ६१ म ११ शबर - शषोः सः अनेन वस्य मः यतः सेर्डोः । समरो ॥ २५८ ॥
टीका भाषांतर. शबर शब्दना बनो म थाय. सं. शबर तेने शषोः सः चालता सूत्रे बनो म थाय. अतः सेड : ए सूत्रथी समरो रूप याय. ॥ २५८ ॥
३२
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मागधीव्याकरणम्.
स्वप्ननीव्योर्वा ॥ श्याए ॥ अनयोर्वस्य मो वा नवति॥ सिमिणो। सिविणो । नीमी नीवी ॥२५॥ मूल भाषांतर. स्वप्न अने नीवी शब्दना वनो विकल्पे म थाय. सं. स्वप्नः तेनां सिमिणो सिविणो रूप थाय. सं. नीवि तेना नीमी नीवी एवां रूप श्रायः ॥२५॥
॥ढुंढिका ॥ स्वप्नश्च नीवी च स्वप्ननीव्यौ तयोः ७२ वा ११ स्वप्न सर्वत्र वबुक् : स्वप्नादौ श्रागमः लोकात् सि पनयोविश्लेषं कृत्वा पो वः पस्य वः स्वप्ने नात् कारागमः वि अनेन वा व म सर्वत्र वलुक्
श्रनादौ हित्वं ११ श्रतः सेोः सिमिणो सिविणो । नीवी अनेन .वा वस्य मः ११ अंत्यव्यंग स्लुक् ॥ नीमी नीवी ॥ २५ ॥ टीका भाषांतर. स्वप्न अने नीवी शब्दना वनो विकल्पे म ाय. सं. स्वप्न तेने सर्वत्र इः स्वभादौ लोकात् ए अने न् ने जुदा करी पो वः ए सूत्रथी पनो व थाय. अने स्वम शब्दना न नी पेहेला इकार आगम थाय. पठी चालता सूत्रे विकटपे व. नो म थाय. पजी सर्वत्र अनादौ अतः सेझैः ए सूत्रोथी सिमिणो सिविणो एवां रूप श्राय. सं. नीवी तेने चालता सूत्रे विकल्पे व नो म थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रयी नीमी तथा नीवी एवां रूप थायः॥ २५ ॥
शषोः सः ॥२६॥ शकारषकारयोः सो नवति ॥ श । सद्दो । कुसो । निसंसो । वंसो । सामा। सुझं । दस । सोह। विस ॥ ष । सएडो । निसहो । कसा । घोस ॥ उन्नयोरपि । सेसो । विसेसो ॥ २६ ॥ मूल भाषांतर. शकार अने षकारनो स थाय. श नाउदा- सं. शब्द तेनुं सद्दो थाय. सं. कुश तेनुं कुसो थाय. सं. नृसंश तेनुं निसंसो थाय. सं. वंश तेनुं वंसो थाय. सं. श्यामा तेनुं सामा थाय. सं. शुद्ध तेनुं सुद्धं थाय. सं. दश तेनुं दस थाय. सं. शोभते तेनुं सोहइ थाय. सं. विशति तेनुं विसइ थाय. ष नाउदा- सं. षण्डः तेनुं सण्डो थाय. सं. निषक तेनुं निसहो थाय. सं. कषाय तेनुं कसओ थाय. सं. घोषति तेनुं घोसइ श्राय. एक शब्दमां बे श के ष होय तोपण श्राय. सं. शेष तेनुं सेसो थाय. सं. विशेष तेनुं विसेसो थाय.
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प्रथमःपादः।
२५१ ॥ टुंठिका॥ शश्च षश्च शषौ तयोः ७२ स ११ शब्द अनेन श स सर्वत्र वबुक् अनादौ हित्वं श्रतः सेझैः सहो। कुश ११ अनेन श स ११ अतः सेझैः कुसो । नृसंश इतोऽत् नृ न अनेन श स ११ अतः से?ः नसंसो । वंश ११ अनेन श स अतः सेझैः वंसो श्यामा११ अधोमनयां यबुक् अनेन श स अंत्यव्यंग सबुक् सामा शुद्ध ११ अनेन श स क्लीबे सम् मोनु सुझं । दश- १३ अनेन श स जस्शसोर्बुक् लोपः दस । शोजते- अनेन श स खघथध जस्य हः त्यादीनां ति : सोहर । विशति अनेन श स त्यादीनां तिश् विसर षएढ अनेन ष स ११ ढोमः अतः सेोः सएडो। नि-षक११ निकषस्फटिकचिकुरेहः कस्य हः अनेन ष स कगचजेति क्लुक् श्रतः सेडोंः निसहो । कषाय अनेन ष स कगचजेति यलुक् ११ अतः से?ः कसा । घोषति अनेन ष स त्यादीनां ति
घोस । शेष अनेन शपोः सः अतः सेझैः सेसो। विशेषअनेन शषोः सः अतः सेझैः विसेसो ॥ २६ ॥ टीका भाषांतर. श अने ष नो स थाय. सं. शब्द तेने चालता सूत्रथी शनो स थाय. सर्वत्र अनादौ अतः सेोंः ए सूत्रोधी सद्दो रूप श्राय. सं. कुश तेने चालता सूत्रथी शनो स थाय. अतः सेडोंः ए सूत्रथी कुसो श्राय. सं. नृसंश तेने
तोऽत् चालता सूत्रे शनो स थाय. पनी अतः सेोंए सूत्रथी नसंसो रूप थाय. सं. वंश तेने चालता सूत्रथी श नो स थाय. अतः से?: ए सूत्रधी वंसो रूप धाय. सं. श्यामा तेने अधोमनयां चालता सूत्रे शनो स ाय. अंत्यव्यंजन ए सूत्रथी सामा रूप थाय. सं. शुद्ध तेने चालता सूत्रे शनो स थाय. क्लीवे सूम् मोनु ए सूत्रोथी सुद्ध रूप थाय. सं. दश तेने चालता सूत्रथी शनो स थाय. पनी जसशसोलुंक ए सूत्रथी दस एवं रूप थाय. सं. शोभते तेने चालता सूत्रे शनो स थाय. खघथ त्यादीनां ए सूत्रोथी सोहइ रूप थाय. सं. विशति तेने चालता सूत्रे शनो स थाय. पनी त्यादीनां ए सूत्रथी विसइ रूप थाय. सं. षण्ढ तेने चालता सूत्रे षनो स थाय. ढ नो ड श्राय. पडी अतः से?ः ए सूत्रथी सण्डो रूप थाय. सं. निषक तेने निकषस्फदिकचिकुरे हा चालता सूत्रे षनो स थाय. कगचज अतः
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२५१
मागधी व्याकरणम्.
सेड: ए सूत्रोथी सिहो रूप याय. सं. कषाय तेने चालता सूत्रथी षनो स आय. कगचज अतः सेर्डी ए सूत्रोथी कसाओ रूप थाय. सं. घोषति तेने चालता सूत्रे पनो स थाय. त्यादीनां ए सूत्रथी घोसइ रूप थाय. सं. शेष तेने चालता सूत्रे बनेश तथा पनोस थाय छतः सेर्डोः ए सूत्रोथी सेसो रूप श्राय. सं. विशेष तेने चालता सूत्रथी बने श ष नो स थाय पी अतः सेडः ए सूत्री विसेसो
रूप थाय. ॥ २६० ॥
स्नुषायां एहो न वा ॥ २६२ ॥
स्नुषाशब्दे षस्य एहः काराक्रांतो हो वा जवति ॥ सुहा सुसा ॥ २६९ ॥
मूल भाषांतर. स्नुषा शब्दना ष नो विकल्पे पह थाय. एटले णकारयुक्त ह थाय. सं स्नुषा तेना सुन्हा तथा सुसा एवां रूप याय.
॥ ढुंढिका ॥
स्नुषा ११ एह ११ नवा ११ स्नुषा - अधोमनयां नलोपः सु - नेन वा षस्य ह ११ अंत्यव्यंज० सलुक् सुरह | पदे स्नुषा - धोमनयां नलुक् शषोः सः षस्य सः ११ अंत्यव्यंज० सलुक सुसा
0
टीका भाषांतर. स्नुषा शब्दना ष नो यह विकल्पे थाय. सं. स्नुषा तेने अधोमनयां नलुकू चालता सूत्रे विकल्पे ष नो यह थाय. अंत्यव्यं स्लुक् ए सूत्रथी सुहा रूप याय. बीजे पछे स्नुषा तेने अधोमनयां शषोः सः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी मुसा रूप याय. ॥ २६९ ॥
दश पाषाणे दः ॥ २६२ ॥
दशन्शब्दे पाषाणशब्दे च शषोर्यथादर्शनं हो वा जवति ॥ द-मुद्दो दस-मुद्दो | दह-बलो दस-बलो दह-रहो । दस-रहो । दह दस । एयारह । बारह | तेरह | पाहाणो । पासाणो ॥
मूल भाषांतर. दशन् तथा पाषाण शब्दना श ाने ष नो अनुक्रमे विकल्पे ह याय. सं. दशमुख तेनां दह-मुहो दस-मुहो एवां रूप याय. सं. दश-बल तेनां दह-बलो दस-बलो एवां रूप याय. सं. दशरथ तेनां दह-रहो दसरहो एवां रूप थाय. सं. दश तेनां दह दस एवां रूप याय. सं. एकादश तेनुं एआरह एवं रूप थाय. सं. द्वादश तेनुं बारह रूप थाय. सं. त्रयोदश तेनुं तेरह रूप याय. संपाषाण तेनुं पाहाणी तथा पासाणो रूप याय. ॥ २६२ ॥
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मागधी व्याकरणम्. ॥ ढुंढिका ॥
दश च पाषाणश्च दशपाषाणं तस्मिन् ७१ ह ११ दशमुख - - नेन वा शस्य ह खघथ० ख द ११ अतः सेर्डोः दह-मुहो । पदे दशमुख - शषोः सः खघथ० ख ह दसमुहो दशबल - दशबलानि श्रागमप्रसिद्धानि दांत्यादीनि श्रस्य दशबलः अनेन वा श द बोवः बस्य वः ११ यतः सेर्डोः दहबलो पदे शषोः सः बो वः अतः सेर्डोः दसबलो । दशरथ - अनेन श ह खघथ० थस्य हः ११ अतः सेर्डोः दहरहो पदे दशरथ शषोः सः खघथ० य ह यतः सेर्डोः दसरहो । दश- अनेन वा शह दह पके दस एकादश कगचजेति क्लुक् संख्या गद्गदे रः दस्य र अनेन शस्य हः एश्रारह । द्वादश- कगटडेति दलुक् संख्यागद्गदे रः दस्य रः अनेन शस्य हः बारह । त्रयोदश त्रयोदशादौ स्वरस्य इति त्रयोस्थाने ते संख्यागद्गदे रः दस्य रः अनेन शस्य ह तेरह | दशादयः शब्दाः संस्कृत सिद्धा ज्ञातव्याः अन्यथा जस्शस् ङसिद्धामि दीर्घः इति दीर्घः स्यात् । पाषाण - अनेन वा षस्य हः १९ पाहाणी | पदे पाषाण - शषोः सः ११ यतः सेडः पासाणो ॥ २६२ ॥
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૫૨
टीका भाषांतर. दशन् अने पाषाण शब्दना श तथा ष नो अनुक्रमे विकल्पे ह थाय. सं. दशमुख - तेने चालता सूत्रथी श नो ह थाय. खघथ० अतः सेडः ए सूत्री दह - मुहो रूप थाय. बीजे पछे सं. दशमुख तेने शषोः सः खद्यथ० ए सूत्र दसमुह रूप याय. सं. दशबल एटले जेने शास्त्र प्रसिद्ध एवा क्षमा विगेरे दशबल होय ते तेने चालता सूत्रथी श नो ह थाय. बोवः ए सूत्रधी व नो व थाय. पबी अतः सेडः ए सूत्रथी दहबलो रूप याय. बीजे पछे दशबल तेने शषोः सः बोवः अतः सेर्मोः ए सूत्रोथी दसबलो रूप थाय. सं. दशरथ तेने चालता सूत्रश्री श नोह थाय. पी खघथ० अतः सेड : ए सूत्रोथी दहरहो थाय. बीजे पदे दशरथ तेने शषोः सः खघथ० अतः सेड: ए सूत्रोथ दसरहो रूप थाय. सं. दश तेने चालता सूत्रथी श नो ह थाय. एटले दह रूप थाय. बीजे पढ़े दस एवं रूप याय. सं. एकादश तेने कगचज संख्यागद्गदेरः ए सूत्रश्री द नो र थाय. पी चालता सूत्रश्री शनो ह थाय. एटले एआरह रूप याय. सं. द्वादश तेने कगटड
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२५४
प्रथमःपादः। संख्यागदगदे रः चालता सूत्रे श नो ह थाय. एटले बारह रूप थाय. सं. त्रयोदश तेने त्रयोदशादौ खरस्य ए सूत्रथी त्रयो ने स्थाने ते थाय. पठी संख्यागद्गदे र: चालता सूत्रे श नो ह आय. एटले. तेरह रूप थाय. अहिं दश विगेरे शब्दो संस्कृत प्रमाणे सिख थयेला जाणवा. नहीं तो जसूशसूङसि० ए सूत्रथी दीर्घ थाय. सं. पाषाण तेने चालता सूत्रथी ष नो ह थाय. एटले पाहाणो रूप थाय. विकटपपदे सं. पाषाण तेने शषोः सः अतः सेटः ए सूत्रोश्री पासाणो रूप थाय. ॥ २६५ ॥
दिवसे सः॥२६३ ॥ दिवसे सस्य हो वा नवति ॥ दिवहो । दिवसो॥
मूल भाषांतर. दिवस शब्दना स नो विकटपे ह ाय. सं. दिवस तेनां दिवहो तथा दिवसो एवां रूप थाय. ॥ २६३॥
॥ढटिका॥ दिवस ७१ स १९ दिवस- अनेन वा सस्य हः श्रतः सेझैः दिवहो । पदे दिवसः ११ श्रतः सेझैः दिवसो ॥ टीका भाषांतर. दिवस शब्दना स नो विकल्प ह थाय. सं. दिवस तेने चालता सूत्रथी विकल्पे स नो ह थाय. पती अतः सेोंः ए सूत्रथी दिवहो थाय. विकल्प पदे सं. दिवस तेने अतः सेोंः ए सूत्रथी दिवसो थाय. ॥ २६३ ॥
हो घोनुस्वारात् ॥ २६४ ॥ अनुस्वारात्परस्य हस्य घो वा नवति ॥ सिंघो। सीहो ॥ संघारो। संहारो । क्वचिदननुस्वारादपि दाहः । दाघो ॥ २६ ॥ मूल भाषांतर. अनुस्वारनी पनी आवेला ह मो विकटपे घाय. सं. सिंह तेना सिंघो सीहो एवां रूप थाय. सं. संहार तेना संघारो संहारो रूप पाय.
॥ ढुंढिका ॥ ह ६१ घ ११ अनुस्वार ५१ सिंह अनेन ह घ ११ अतः सेझैः सिंघो पदे सिंह- मांसादेर्वा अनुस्वारलोपः व्हिासिंदत्रिंशत्या स सी ११ अतः से?ः सीहो । संहार अनेन हस्य घः ११ अतः सेोंः संघारो संहारो। क्वचिदननुस्वारात् घत्वं यथा दाह अनेन वा हस्य घः अतः सेझैः दाघो पदे दाहो ॥ २६४ ॥ टीका भाषांतर. अनुस्वार पठी आवेला हनो विकटपे घ थाय. सं. सिंह तेने चालता सूत्रथी हनो घ थाय. अतः सेडोंः ए सूत्रधी सिंघो पाय. पदे सिंह तेने
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प्रथमःपादः।
२५५ मांसादेर्वा अनुस्वारलोपः ईर्जिव्हा सिंह त्रिंशत् अतः सेोंः ए सूत्रोधी सीहो रूप थाय. सं. संहार तेने चालता सूत्रथी ह नो घ थाय. अतः सेडोंः ए सूत्रथी संघारो संहारो एवां रूप श्राय. कोइ ठेकाणे अनुस्वार शिवाय पण घ थाय जे जेम-सं. दाह तेने आ सूत्रश्री ह नो घ थाय. अतः सेझैः ए सूत्रथी दाघो अने बीजे पदे दाहो एवां रूप श्राय. ॥ २६ ॥
षट्-शमी-शाव-सुधा-सप्तपर्णेष्वादेव ॥ १६५ ॥ एषु श्रादेर्वर्णस्य बो नवति ॥ बहो । बह। बप्पङ । बंमुहो। बमी। बावो । बुहा । बत्तिवलो ॥ मूल भाषांतर. षष्ठ शमी शाव सुधा अने सप्तपर्ण ए शब्दोना आदि अक्षर नो छ थाय. सं. षट् तेनु छट्ठो थाय. सं. षष्टी तेनुं छट्ठी थाय. सं. षट्पद तेनुं छप्पओ थाय. सं. षण्मुख तेनुं छंमुहो थाय. सं. शमी तेनुं छमी थाय. सं. शाव तेनुं छावो थाय. सं. सुधा तेनुं छुहा थाय. सं. सप्तपर्ण तेनु उत्तिवणो थाय.
॥ढुंढिका ॥ षट्र च शमी च शावश्च सुधा च सप्तपर्णश्च षट्शमीसुधासप्तपर्णाः तेषु- बहुवचन षट् शब्दस्य प्रत्ययांतस्यापि ग्रहणार्थं श्रादि ६१ ब ११ षलां पूरणः षष्ठः षट्- कति-कतिपयात् थट् प्रत्ययः षतवर्गस्य वर्ग ष्टवर्ग थट्र षट् संयोगे ष्ट षष्ट अनेन षस्य ब ष्टस्यानुष्ट व अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उस्य ट ११ अतः से?ः
हो षष्ठी- प पूर्ववत् अणडेकणजसटितात् इति डी प्रत्ययः बुक् उमध्याबुक् लोकात् अंत्यव्यंग सूलुक बठी षट्पद अनेन षस्य बः कगटडेति लुक् अनादौ हित्वं प्प कगचजेति ढुक् ११ अतः सेोः उप्प षएमुख- अनेन षस्य उ ऊणनो व्यंजनेण अनुस्वारः खघथधनां खस्य हः ११ श्रतः से?ः बंमुहो । सप्तपर्ण- ११ अनेन 3 अंत्यव्यंज सबुक मी वो बुहा बत्तिवणो ॥२६॥ टीका भाषांतर. षट् शमी शाव सुधा अने सप्तपर्ण शब्दना श्रादिवर्णनो छ थाय. अहिं बहुवचनवाला षष् शब्दनुं बहुवचन लीधुं ने ते प्रत्ययांतना ग्रहणने माटे . उनी संख्या पूरे ते षष्ठ कहेवाय. सं. षट् तेने कतिकतिपयात् थट् प्रत्ययः ए सूत्रे थट् प्रत्यय भावे पनी षतवर्गस्य छवर्गष्टवर्ग: अने ष तथा ट ने योगे ष्ट थाय. एटले षष्ठ
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२५६
मागधी व्याकरणम्. थाय. पनी था चालता सूत्रे ष नो छ थाय. ष ष्टस्यानुष्ट० अनादौ दित्वं द्वितीय अतः सेोंः ए सूत्रोथी छठो रूप थाय. सं. षष्टी तेने पूर्ववत् छ नो थाय. पनी अणडेकण्झ टितात् ए सूत्रथी डी प्रत्यय आवे लुक् थाय. लोकात् अंत्यव्यं सलुक् अश् छठी रूप थाय. सं. षट्पद तेने चालता सूत्रथी ष नो छ थाय. कगटड अनादौ द्वित्वं कगचज अतः सेोंः ए सूत्रोथी छप्पओ रूप थाय. सं. षण्मुख तेने चालता सूत्रथी ष नो छ थाय. झणनोव्यंजनेण अनुस्वारः खघथा अतः सेनॊः ए सूत्रोथी छंमुहो रूप थाय. सं. सप्तपर्ण तेने चालता सूत्रथी छ थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी छमी छावो छुहा छत्तिवणो एवां रूप थाय. ॥२६५ ॥
शिरायां वा ॥ २६६ ॥ शिराशब्दे थादेखो वा नवति ॥ बिरा सिरा ॥ मूल भाषांतर. शिराशब्दना आदि अक्षरनो विकटपे छ थाय. सं. शिरा तेनां छिरा सिरा एवा रूप थाय.
॥ढुंढिका॥ शिरा ७१ वा ११ शिरा अनेन वा शस्य ः अंत्यव्यंग स्लुक् बिरा सिरा ॥२६६ ॥ टीका भाषांतर. शिराशब्दना आदि अदरनो विकल्पे छ थाय. सं. शिरा तेने चालता सूत्रथी विकटपे श नो छ थाय. पी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी छिरा सिरा एवां रूप थाय. ॥ २६६॥ दुग नाजन-दनुज-राजकुले जः सस्वरस्य न वा ॥ २६७ ॥ एषु सस्वरजकारस्य बुग् वा नवति ॥ नाणं जायणं । दणु-वहो । दणुय-वहो । राजलं राय-जलं ॥ मूल भाषांतर. भाजन दनुज राजकुल ए शब्दोना स्वरसहित जनो विकटपे लुक् थाय. सं. भाजनं तेनुं भाणं भायणं एवां रूप थाय. सं. दनुजवध तेनां दणुवहो दणुअ-वहो एवां रूप थाय. सं. राजकुंलं तेनां राउलं राय-उलं एवां रूप थाय. ॥२६७ ॥
॥ढुंढिका ॥ बुक् ११ नाजनं च दनुजश्च राजकुलं च नाजनदनुजराजकुलं तस्मिन् ७१ ज ६१ सस्वर ६१ न ११ वा ११ नाजन- अनेन वा जबुक् नोणः ११ क्लीवे सम् मोनु नाणं पदे नाजन- कगच
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प्रथम:पादः।
२५७ जेति जलुक् अवर्णो थ य नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु० जायणं । दनुजवध- अनेन वा जलुक् दणुवहो पदे कगचजेति जलुक् खघथ धस्य हः ११ अतः सेझैः दणुश-वहो । राजकुल-अनेन जलुक् कगचजेति क्लुक् ११ क्लीबे सम् मोनु० राउलं । राजकुल- कगचजेति कजयो क् श्रवर्णो क्लीबे सम् राज-उलं २६७ टीका भाषांतर. भाजन दनुज राजकुल ए शब्दोना स्वरसहित जनो विकटपे खुक् आय. सं. नाजन- तेने चालता सूत्रथी विकटपे जनो लुकू थाय. नोणः क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी भाणं रूप थाय. पदे भाजन तेने कगचज अवर्णो नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी भायणं रूप थाय. सं. दनुजवध तेने चालता सूत्रथी विकटपे जनो लुक् थाय. एटले दणुवहो थाय. बीजे पते कगचज खघथ अतः से?ः ए सूत्रोथी दणुअ-वहो रूप थाय. सं. राज-कुल तेने चालता सूत्रथी ज नो लुक् थाय. कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी राउलं रूप थाय. बीजे परे राजकुल तेने कगचज० अवर्णो० क्लीबे सम् मोनु० ५ सूत्रोथी राय-उल रूप थाय.
व्याकरण-प्राकारागते कगोः॥ २६ ॥ एषु को गश्च सखरस्य दुग् वा जवति ॥ वारणं वायरणं । पारो पायारो॥ था श्राग ॥ मूल भाषांतर. व्याकरण प्राकार आगत ए शब्दोना स्वरसहित क अने गनो विकटपे लुक् श्राय. सं. व्याकरणं तेनुं वारणं अने वायरणं रूप थाय. सं. प्राकार तेनां पारो पायारो रूप श्राय. सं. आगत तेनां आओ आगओ रूप थाय. ॥ २६ ॥
॥ ढुंढिका॥ व्याकरणं च प्राकारश्च श्रागतश्च व्याकरणप्राकारागतं तस्मिन् क च गूच कगौ तयोः व्याकरण अधोमनयां ययुक् अनेन वा कस्य लुक् ११ क्लीबे सम् मोनु वारणं । पके व्याकरण- अधोमनयां लुक् कगचजेति क्लुक् श्रवणों थ य ११ क्लीबे सम् मोनु वायरणं प्राकार- सर्वत्र रलुक् अनेन कबुक् ११ अतः से. डोंः पारो । पक्षे प्राकार- सर्वत्र रबुक् कगचजेति क्लुक् श्रव
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२५०
मागधी व्याकरणम् . ० अ य ११ अतः सेझैः पायारो। आगतः अनेन ग्रबुक् कगचजेति त्दुक ११ श्रतः से?ः पाउँ पक्ष बागलं ॥ २६ ॥ टीका भाषांतर. व्याकरण प्राकार आगत ए शब्दोना स्वरसहित क अने गनो विकटपे लुक् थाय. सं. व्याकरण तेने अधोमनयां चालता सूत्रे विकटपे कनो लुक् थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वारणं रूप थाय. पक्ष व्याकरण तेने अधोमनयां कगचज० अवर्णो० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वायरणं रूप थाय. सं. प्राकार तेने सर्वत्र चालता सूत्रे कनो लुक् थाय. अतः सेझैः ए सूत्रोथी पारो रूप थाय. पदे प्राकार तेने सर्वत्र कगचज अवर्णो अतः से?: ए सूत्रोथी आओ रूप थाय. अने पदे आगओ रूप थाय. ॥ २६ ॥
किसलय-कालायस-हृदये यः॥ २६ए॥ एषु सखरयकारस्य बुग् वा नवति ॥ किसलं किसलयं । काखासं कालायसं । महलव-समा सदिया। जाला ते सहिथ एहिं घेप्पन्ति । निसमएड प्पिथ-हिसस्स हिश्रयं ॥
मूल भाषांतर. किसलय कालायस हृद्य ए शब्दोमां स्वरसहित यकारनो विकटपे लुक् थाय. सं. किसलय तेनां किसलं किसलयं एवां रूप थाय. सं. कालायस तेनां कालासं कालायसं रूप थाय. सं. महार्णव समाः सहृदयाः तेनुं महण्णव-समा सहिआ एवं रूप थाय. सं. यस्मिन् ते सहृदयगृह्यते तेनुं जाला ते सहि एहिं घेप्पंति । सं. निशमनार्पितहृदयस्य हृदयं तेनुं निसमएमप्पिथ-हिस्स हिश्रयं ॥ २६ए॥
॥ ढुंढिका ॥ किसलयं च कालायसं च हृदयं च किसलयकालायसहृदयं तस्मिन् ७१ य ६१ किसलय- अनेन वा यस्य बुक् ११ क्लीबे सम् मोनु किसलं किसलयं । कालायस- अनेन यदुक् ११ क्लीबे सम् मोनु कालासं कालायसं।महार्णवसम १३ इस्वः संयोगे हा ह सर्वत्र रमुक् जसशस् ङसिहामि दीर्घः समा जस्शसबुक् महलव-समा । सहृदय अनेन बुक् कृपादौ हृ हि कगचजेति दबुक् १३ जस्शस्दीर्घः जस्शसोर्बुक् सहिथा । सहृदयाः महाविसमा इत्यर्थः। यद् ७१ श्रादेर्योजः अंत्यव्यंण् दबुक् र्डाहेडाला
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प्रथमः पादः ।
लोकात् जाला तद् १३ अंत्यव्यं० दलुक् श्रतः सर्वादेः जस्स्थाने एते सहृदय जिस इत्कृपादौ ढ हि कगचजेति दययोर्लुक् जिसोहि सहिहिं । रहीशपादाने गृह वर्त्तति बहुष्वाद्यस्य अंतिस्थाने ति क्यतिक्य प्र० गृहेर्घेप्पः गृहस्थाने घेप्पः क्यलुक् घेपंति यदा सहृदयैस्ते गुणा गृह्यंते इत्यर्थः । निशमने श्रवणे - र्पितं हृदयं येन स निशमनार्पितहृदयः तस्य शषोः सः नोणः वा इति र्पे याकारस्य उत्वं लुक् स्य लुक् सर्वत्र रलुक् कगचजेति लुक् इत्कृपादौ ह हि कगचजेति लुक् छानेन यलुक् ६१ इसस्स नीसमण पिश्रहिस्स हृदय इत्कृपादौ हृ हि कगचजेति लुक ११ क्लीवे सम् हिश्रयं ॥ २६९ ॥
श्र
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टीका भाषांतर. किसलय कालायस हृदय ए शब्दोना स्वरसहित य नो विकल्पे लुक् याय. सं. किसलय तेने चालता सूत्रोधी विकल्पे यनो लुक् थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी किसलं किसलयं एवां रूप याय. सं. कालायस तेने चालता सूत्रश्री य नो लुक् थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कालासं कालायसं रूप थाय. सं. महार्णवसम तेने ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र जस्ास्ङसिद्वामिदीर्घः जस्शस्लुक् ए सूत्रोथी महण्णव- समा एवं रूप याय. सं. सहृदय तेने चालता सूत्रयी य नो लुक थाय. इत्कृपादौ ० कगचज० जस्शस् दीर्घः जस्शसोलुक् ए सूत्रोथी सहिआ रूप याय. ए सर्व पदनो अर्थ एवो बे के समान हृदयवाला रसिक पुरुषो मोटा समुद्र जेवा बे . सं . यद् तेने आदेर्योजः अंत्यत्र्यं० डेर्डाहेडाला लोकात् ए सूत्रोथ जाला रूप याय. सं. तद् तेने अंत्यव्यं ० अतः सर्वादेः ए सूत्रोथी ते रूप थाय. सं. सहृदयतेने भिस् प्रत्यय वे पढ़ी इत्कृपादौ कगचज भिसो हि ए सूत्रो सहिअ एहिं एवं रूप याय. सं. गृह धातु ग्रहण करवामां प्रवर्ते तेने वर्त्त ० ए सूत्री अंति वे पबी बहुष्वाद्यस्य० क्मशतिक्य प्रत्यय आवे गृहेर्घेप्यः ए सूत्रे गृहने स्थाने घेप्प आदेश थाय. क्य नो लुक् थाय. पबी घेप्पंति एवं रूप याय. तेनोवो के के, ज्यारे समान हृदयवाला रसिक पुरुषोथी ते गुणो ग्रहण कराय बे. सं. निशमनार्पितहृदयस्य एटले जेणे पोतानुं हृदय श्रवण करवामां अर्पण करलु बे ते श्रहिं शषोः सः नोणः वाप्प अपिधातुना आकारनो उ थाय. लुकू ण नो लुक् थाय. सर्वत्र कगचज० इत्कृपादौ ० कगचज दलुकू चालता सूत्रे य नो लुक् श्राय. प षष्टीना एकवचनमां ङसस्स ए सूत्रलागी निसमणप्पिअहिअस्स एवं रूप थाय. सं. हृदय तन इत्कृपादौ कगचज० क्लीबे स्म् ए सूत्रोथी हिअयं रूपं याय. २६
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२६०
मागधी व्याकरणम. मुर्गादेव्युअम्बर-पादपतन-पादपीठेन्तर्दः॥॥ एषु सखरस्य दकारस्य अंतर्मध्ये वर्तमानस्य बुग् वा जवति ॥ पुग्गा-वी। मुग्गा-एवी। उम्बरो । उनम्बरो। पा-वडणं । पायवडणं । पा-वीढं । पाय-वीढं ॥ अंतरिति किम् । मुर्गादेव्यामादौ माजूत् ॥ २० ॥ मूल भाषांतर. दुर्गादेवी उदुम्बर पादपतन पादपीठ ए शब्दोनी अंदर रहेला द नो विकटपे लुक् थाय. सं. दुर्गादेवी तेनां दुग्गा-वी दुग्गा-एवी एवा रूप थाय. सं. उदुम्बर तेनां उम्बरो उउम्बरो एवां रूप थाय. सं. पाद-पतन- तेनां पा-वडणं पाय-वडणं रूप थाय. सं. पादपीठ तेनां पा-वीढं पाय-वीढं रूप पाय. मूलमां अंतरनुं ग्रहण के तेथी दुर्गादेवी ए रूपमा आदि रहेला दकारमा न पाय. २७०
॥ढुंढिका ॥ उर्गादेवी च उडुंबरश्च पादपतनं च पादपीठं च पुर्गादेव्युउंबरपादपतनपादपीठं तस्मिन् ३१ अंतर ७१ द ६१ कुर्गादेवी सर्वत्ररलुक् अनेन ॥ वा दलुक् ११ अंत्यव्यंग सलुक उग्गावी पदे उ. र्गादेवी सर्वत्र रबुक् कगचजेति दलुक् ११ अंत्यव्यंग सबुक् छग्गाएवि । उकुम्बर- अनेन वा दबुक् ११ अतः सेोंः नम्बरो। पदे कराचजेति लुक् ११ अतः से?ः उचंबरो। पाद-पतन अनेन वा सखरस्य दस्य बुक् पोवः शतोऽपतो डः तस्य डःनोणः ११ क्लीबे सम् मोनु पावडणं पदे कगचजेति ढुक् श्रवर्णो श्र य पोवः शतोपतो डः तस्य डः नोणः क्लीबे सम् मोनु० पायवडणं । पादपीठ अनेन दबुक् पोषः ठोढः ११ क्लीबे स्म् मोनु० पा-विढं । पदे कगचजेतिदलुक् अवर्णो अ य पोवः गोढः ११ क्लीबे सम् मोनु० पाय-वीढं ॥ २० ॥ टीका भाषांतर. दुर्गादेवी उदुंबर पादपतन पादपीठ ए शब्दोनी अंदर रहेला द नो विकटपे लुक् थाय. सं. दुर्गादेवी तेने सर्वत्र चालता सूत्रे विकटपे दनो लुक् आय. अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी दुग्गा-ची श्राय. पक्ष सं. दुर्गा-देवी तेने सर्वत्र कगचज अंत्यव्यं ए सूत्रोथी दुग्गा-एवी एवं रूप थाय. सं. उदुम्बर तेने चालता सूत्रोत्री विकल्पे दनो लुक् थाय. अतः सेझैः ए सूत्रोथी उम्बरो रूप प्राय
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प्रथमः पादः ।
२६१९
पछे कगचज० अतः सेड : ए सूत्रोथी उउम्बरो रूप थाय. सं. पाद- पतन तेने चालता सूत्री स्वरसहित द नो लुक् थाय. पोवः शदपतो डः नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पावडणं रूप थाय. पछे कगचज० अवर्णो० पोवः शतोऽपतो डः नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पायवडणं रूप थाय. सं. पादपीठ तेने चालता सूत्रथी द नो लुक् . आय. पोवः ठोढः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पा- वीढं रूप थाय. पदे कगचज० अवर्णी० पो वः ठोढः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पाय - वीढं रूप थाय. ॥ २७० ॥
यावत्तावजीवितावर्त्तमानावट प्रावारक- देवकुलैवमेवे वः ॥ २७२ ॥
यावदादिषु सस्वरवकारस्यान्तर्वर्त्तमानस्य लुग्वा जवति ॥ जी जी - ब । ताताव। जीयं जीवीत्र्यं । श्रत्तमाणो श्रावत्तमाणो । डो वडो | पार पावार । दे-उलं देव - उलं । एमेव एवमेव ॥ तरित्येव । एवमेवेन्त्यस्य न जवति ॥ २७२ ॥
मूल भाषांतर. यावत् तावत् जीवित आवर्त्तमान अवट प्रावारक देवकुल एवमेव ए शब्दोनी अंदर रहेला वनो विकल्पे लुकू याय. सं. यावत् तेनां जी जीव एवां रूप थाय. सं. तावत् तेनां ता ताव रूप थाय. सं. जीवित तेनां जीअं जीव एवां रूप याय. सं. आवर्त्तमान तेनां अत्तमाणो आवत्तमाणो एवां रूप याय. सं. अवट तेनां अडो अवडो रूप थाय. सं. प्रावारक तेनां पारओ पावारओ रूप थाय. सं. देवकुलं तेनां दे - उलं देव- उलं रूप थाय. सं. ऐवमेव तेनां एमेव एवमेव एवां रूप याय. मूलमां अंतर शब्दनुं ग्रहण बे तेथी सं. एवमेव शबदना अंत्य व नो लुक् न याय. ॥ २७१ ॥
॥ ढुंढिका ॥
यावच्च तावच्च जीवितं च श्रावर्त्तमानश्च अवटश्च प्रावारकश्च देवकुलं च एवमेवश्चयावत्तावजी वितवर्त्तमानावट - प्रावारक - देवकुलैवमेवं तस्मिन् ७१ व ६१ यावत् श्रदेर्योजः अनेन वा सखरस्य लुक् अंत्यव्यं० त्लुक् ११ अंत्यव्यं० स्लुक् जी । पदे या• वत् श्रादेर्योजः अंत्यव्यंजन० तूलुक् ११ अंत्यव्यं० सलुक् जीव | तावत् पूर्ववत् अनेन दलुक् ११ अंत्यव्यं० सलुक् ता । पदे ताव | जीवित - ११ अनेन सखर लुक् कगचजेति तुलुक ११ क्वीबे सम
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२६१
मागधी व्याकरणम्.
1
मोनु० जी । पके जीवी । श्रवर्त्तमान- अनेन व् लुक् हखः संयोगे श्राश्र सर्वत्र रलुक् नोणः ११ अतः सेर्डोः श्रात्तमाणो पदे श्रावत्तमाणो | वट - छानेन वा सखर व्लुक् टोड: ११ अतः सेर्डोः अडो । पदे अवट - ११ ट ड श्रतः सेर्डोः अवडो प्रावारक - छानेन वा सखर वलोपः सर्वत्र रलोपः कगचजेति क्लुक् ११ छातः सेर्डोः पारउ । पदे प्रावारक- सर्वत्र रलुक् कगचजेति क्लुक् ११ यतः सेर्डोः पावार । देवकुल- श्रनेन वा सखर वलुकू कगचजेति कलुक ११ क्लीवे स्म मोनु० दे - उलं । पदे देवकुल कगचजेति क्लुक् ११ क्कीबे सम् मोनु० देवडलंएवमेव - अनेन वा सखर व्लुक् ११ अंत्यव्यंजन - सलुक् एमेव पदे ११ अव्य० लुक् एवमेव ॥ २७९ ॥
टीका भाषांतर. यावत् तावत् जीवित आवर्त्तमान अवट प्रावारक देवकुल एवमेव ए शब्दोनी अंदर रहेला वनो विकटपे लुक् श्राय. सं. यावत् तेने आदेयजः चालता सूत्रे स्वरसहित कनो लुक् थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी जी रूप याय. प यावत् तेने आदेर्योजः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी जीव थाय. सं. तावत् तेने पूर्ववत् सूत्र लागे पछी चालता सूत्रे दनो लुक् थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रयी ता रूप याय. पक्षे ताव थाय. सं. जीवित तेने चालता सूत्रथी स्वरसहित वनो लुक् आय. कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी जीअं थाय. प जीवीअं थाय. सं. आवर्त्तमानतेने चालता सूत्रधी व नो लुक् थाय. ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र नोणः अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी आत्तमाणो रूप थाय. पदे आवत्तमाणो रूप थाय. सं. अवट तेने चालता सूत्रथी विकल्पे स्वर सहित व नो लुक् थाय. दोडः अतः सेर्डीः ए सूत्रोथी अठो रूप थाय. पक्षे अवट तेने पूर्ववत् ट नो ड थाय छातः सेर्डीः ए सूत्रोथी अवडो रूप थाय. सं. प्रावारक तेने चालता सूत्रे स्वरसहित वनो लोप थाय. सर्वत्र कगचज श्रतः सेर्डोः ए सूत्रोथी पारओ रूप याय. पदें प्रावारक तेने सर्वत्र कगचज अतः सेर्डो: ए सूत्रोथी पावारओ रूप थाय. सं. देवकुल तेने चालता सूत्रे स्वरसहित व नो लुक् थाय. कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी देउलं रूप थाय. पदे देवकुल तेने कगचज कीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी देव - उलं रूप याय. सं. एवमेव तेने चालता सूत्रे स्वरसहित वनो लुक् अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी एमेव रूप थाय. पक्षे अव्यय लुक् ए सूत्रथी एवमेव रूप थाय. ॥ २७१ ॥
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प्रथमःपादः।
२६३ इत्याचार्यश्रीहेमचंडविरचितायांसिझमचंझानिधानस्थोपा
शब्दानुशासनवृत्तौ अष्टमस्याध्यायस्य प्रथमःपादः॥ टीका भाषांतर. आचार्य श्री हेमचंजे रचेली सिद्ध हेमचंद्र नामनी स्वोपज्ञ . शब्दानुशासन व्याकरणनी वृत्तिना आठमा अध्यायनो श्रा प्रथमपाद समाप्त अयो. १
यद्दोमंडलकुंडलीकृतधनुर्दण्मेन सिहाधिपक्रीतं वैरिकुलात् त्वया किल दलत्कुंदावदातं यशः । ब्रांत्वा त्रीणि जगन्ति खेदविवशं तन्मालवीनां व्यधा
दापांडौ स्तनमंडले च धवले गण्डस्थले च स्थितिम्॥१॥ मूल भाषांतर. हे सिद्धराज महाराजा, नुजदंडमां कुंडलाकार करेला धनुष्यवडे शत्रुओनी पांसेथी विकाश पामेला डोलरना पुष्पजे, उज्वल यश तमे खरीद करेलुं ने, ते यशे त्रण जगत्मां नमी नमी श्रांत थ मालवदेशनी स्त्रीरोना श्वेत स्तनमंडल अने धोला गंडस्थल उपर स्थिति करेली . अर्थात् थाकीने तेमां बेसी गयेलुं . १
इति प्रथमःपादः
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२६४
मागधी व्याकरणम्. अथ द्वितीयः पादः = ॥ संयुक्तस्य ॥ १ ॥ अधिकारोऽयं ज्यायामीत् (२.११५ ) इति यावत् । यदित ऊर्ध्वमनुक्रमिष्यामस्तत्संयुक्तस्येति वेदितव्यम् ॥
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मूल भाषांतर. संयुक्तस्य एटले अहींथी जोमादरनो अधिकार बे ते बीजा पादना ज्यायामीत् ए सूत्रसुधी चालशे हवे अहिंथी श्रगल मे जे अनुक्रम लइशुं, ते जोडाक्षरनो जाणी लेवो. ॥ १ ॥
शक्त-मुक्त-दष्ट-रुग्ण-मृत्वे को वा ॥ २ ॥
एषु संयुक्तस्य को वा जवति ॥ सक्को सत्तो । मुक्को मुत्तो । डक्का दो | लुक्को लुग्गो | मानकं माउत्तणं ॥ २ ॥
मूल भाषांतर. शक्त मुक्त दष्ट रुग्ण मृदुत्व ए शब्दोना जोडाक्षरनो विकल्पे क थाय. सं. शक्त तेनां सक्को सत्तो रूप थाय. सं. मुक्त तेनां मुक्को मुत्तो रूप थाय. सं. दष्ट तेना डक्को दट्ठो रूप थाय. सं. रुग्ण तेनां लुक्को लुग्गो रूप याय. सं. मृदुत्व तेना माउक्कं माउत्तणं रूप थाय. ॥ २ ॥
॥ ढुंढिका ॥
शक्तश्च मुक्तश्च दृष्टश्च रुग्णश्च मृदुत्वं च शक्तमुक्त-दष्टरुग्णमृदुत्वं तस्मिन् ७१ क १९ वा ११ शक्त शषोः सः अनेन वा तस्य कः श्रनादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः सक्को पदे शक्त शषोः सः कगटडेति क्लुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ यतः सेर्डोः सत्तो । मुक्त अनेन तस्य कः श्रनादौः द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः मुक्को । पके मुक्त - कगटडेति क्लुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः मुत्तो । दष्ट - अनेन वा ष्टस्य कः दशनदष्टदग्धदोलादंड इति दस्य डः ११ नाद द्वित्वं यतः सेडः डक्को पछे दष्ट दशनदष्टेति दस्य डः ष्टस्यानु० ष्टस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व० व ट ११ श्रतः सेर्डोः दट्टो रुग्ण हरिद्रादौ लः रस्य लः अनेन ग्णस्य कः श्रनादौ द्वित्वं ११ अतः सेडः लुक्को मडः पदे रुग्ण - हरिद्रादौ लः रस्य लः क्तेनाप्कुणादयः णलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ श्रतः सेर्डोः लुग्गो ।
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हितीयःपादः।
२६५ मृत्व- श्राकृशा मृङक-भूपुत्वे वा इति मृस्थाने मा कगचजेति दबुक् अनेन वा त्वस्य कः अनादौ हित्वं ११. क्लीबे सम् मोनु माउकं पझे मृत्व आत्कृशामृकत्वेवा इति मृस्थाने मा कगचजेति दलुक् त्वस्य डिमात्तणोवा त्वस्य त्तणादेशः ११ क्लीवे स्म् मोनु माउत्तणं ॥२॥ टीका भाषांतर. शक्त मुक्त दष्ट रुग्ण अने मृदुत्व ए शब्दोना संयुक्त एवा अदरनो विकटपे क थाय. सं. शक्त तेने शषोः सः चालता सूत्रे विकटपे क्तनो क थाय. अनादौ० अतः सेोंः ए सूत्रोथी सको रूप थाय. बीजे पक्ष सं. शक्त तेने शषोः सः कगटड अनादौ अतः से?ः ए सूत्रोथी सत्तो रूप थाय. सं मुक्त तेने चालता सूत्रथी क्तनो क थाय. अनादौ द्वित्वं अतः सेोंः ए सूत्रोथी मुक्को रूप थाय. पद सं. मुक्ततेने कगटड अनादौ० अतः सेोंः ए सूत्रोथी मुत्तो रूप थाय. सं. दष्ट तेने चालता सूत्रे ष्टनो क थाय. दशनदष्टदग्ध अनादौ० अतः से?: ए सूत्रोथी डक्को रूप थाय. पदे दष्ट तेने दशन दष्ट० ष्टस्यानु० अनादौ० द्वितीयतुर्य अतः सेोंः ए सूत्रोथी दट्ठो रूप थाय. सं. रुग्ण तेने हरिद्रादौ लः चालता सूत्रे ग्ण नो क थाय. अनादौ अतः सेटः ए सूत्रोथी लुको रूप थाय. पदे रुग्ण तेने हरिद्रादौलः क्तेनाप्कुणादयः अनादौ द्वित्वं अतः सेोंः ए सूत्रोथी लुग्गो रूप थाय. सं. मृदुत्व तेने आत्कृशामृदुक० कगचज. चालता सूत्रे त्वनो क थाय. अनादौ० क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी माउकं रूप थाय. पदे मृदुत्व तेने आत्कृशा मृदुक० कगचज० त्वस्यडिमात्तणोवा क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी माउत्तणं रूप घाय. ॥२॥
दः खः क्वचित्तु -कौ ॥ ३ ॥ क्षस्य 5 जवति । क्वचित्तु उकावपि ॥ खः । लरकणं ॥ कचितु बजावपि । खीणं । बीणं । जीणं । फिजा ॥
मूल भाषांतर. इनो ख थाय. अने को ठेकाणे छ तथा ऊ पण आय. सं. क्षय तेनुं खओ रूप थाय. लक्षण तेनुं लक्खणं रूप थाय. कोश् ठेकाणे छ अने ऊ पण थाय तेनाउदाह. सं. क्षीण तेनां खीणं छीणं झीणं एवां रूप थाय. सं. क्षयति तेनुं झिजह रूप थाय. ॥३॥
॥टुंढिका॥ ६ ६१ ख ११ क्वचित् ११ तु ११ बश्च ऊश्च बौ १५ दय अनेन ।
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२६६
मागधी व्याकरणम्.
कस्य व कगचजेति यूलुक ११ अतः सेर्डोः खर्ज । लक्षण ११ अनेन कस्य खः अनादौ द्वित्वं द्वितीय तु० पूर्वखस्य कः ११ क्लीवे सम् मोनु० लरकणं कचितु दस्य बौ अपि स्यातां यथा कीण - श्रनेन दस्य बः क्लीवे सम् मोनु० बीणं पदे क्षीणश्रनेन दस्य ऊ ११ क्लीबे सम् मोनु० जीणं । दि दये श्यलि - क्य प्रoत्यादीनां श्रद्ययत्रस्याद्यस्ये चे चौ इति तिस्थाने इ ई
क्यस्य इति क्यस्य तादेशः अनेन दा ऊ लुक् इति जिज्यइ । टीका भाषांतर. क्षनो ख थाय. अने कोइ ठेका छ तथा झ पण थाय. सं. क्षय तेने चालता सूत्रथी क्षनो ख थाय. पठी कगचज अतः सेड : ए सूत्रोथी खओ रूप थाय. सं. लक्षण तेने चालता सूत्रश्री क्षनो ख थाय. अनादौ ० द्वितीय० क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी लक्खणं रूप याय. कोइ ठेकाणे क्ष ने स्थाने छ तथा झ पण थाय. जेम के-सं. क्षीण तेने चालना सूत्रे क्ष नो छ थाय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी छीणं रूप थाय. पछे सं. क्षीण तेने चालता सूत्रथी क्ष नो झ था. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी झीणं रूप थाय. सं. क्षि धातु दय थवामां प्रवर्त्ते तेने क्यः श्यतिक्य प्र० त्यादीनां आद्यत्रयस्येचेचौ ए सूत्रे तिने स्थाने इ था. ईअइज्जौक्यस्य ए सूत्रश्री क्यने स्थाने इज्ज आदेश थाय. पी या चालता सूत्रे क्षनो झ थाय. इ नो लुक् थाय. एटले झिज्जर रूप याय. ॥ ३ ॥
क-स्कयोर्नानि ॥ ४ ॥
यो र्नानि संज्ञायां खो जवति ॥ ष्क । पोरकरं । पोरकरिणी । निरकं ॥ स्क । खन्धो । खन्धावारो । अवस्कन्दो || नाम्नीति किम् । डुक्करं । निक्कम्पं । निकटं । नमोकरो । सक्कयं । सक्कारो ॥ मूल भाषांतर. एक ने स्क हरने स्थाने नाम के संज्ञा अर्थ होय तो ख कनां उदाह० - सं. पुष्कर तेनुं पोक्खरं थाय. सं. पुष्करिणी तेनुं पोकुखरिणी थाय. सं. निष्क तेनुं निरुखं थाय. स्कनां उदा० सं. स्कंध तेनुं खन्धो थाय. सं. स्कंधावार तेनुं खन्धावारो थाय. सं. अवस्कंद तेनुं अवख्खंदो श्राय. मूलमां नाम के संज्ञा अर्थ होय तो थाय. एम कह्युं वे तेथी सं. दुष्कर तेनुं दुकरं थाय. सं. निष्कम्प तेनुं निकम्पं थाय. सं. निष्क्रय तेनुं निक्कयो थाय. सं. नमस्कार तेनुं नमोकारो थाय. सं. संस्कृत तेनुं सकयं थाय. सं. सत्कार तेनुं सकारो थाय. सं. तस्कर तेनुं तकरो थाय.
थाय.
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द्वितीयःपादः।
२६० ॥ढुंढिका ॥ कश्च स्कश्च कस्को तयोः ७२ नामन् ७१ क दर्शयति- पुष्कर उत्संयोगे पु पो अनेन एकस्य ख अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ख क ११ क्लीबे सम् मोनु पोस्करं । पुष्करिणी उत्संयोगे पु पो अनेन एकस्य ख थनादौ हित्वं अंत्यव्यंग सबुक् पोरकरणी निक- ११ अनेन कस्य खः श्रनादौ हित्वं पितीयपूर्व क ख क्लीबे सम् मोनु निकं सुवर्ण । अथ स्कस्य खः यथा स्कंध- स्कंधा. वार- अनेन उन्नयत्र स्कस्य खः श्रतः सेझैः खंधो । खंधावारो। श्रवस्कंधः ११ थनेन स्क ख अनादौ हित्वं हितीये पूर्व क ख ११ यतः सेः अवस्कंन्दो धाटी । पुष्कर- कगटमेति व्लुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीवे सम् मोनु उकरं । निष्कंप-कगटमेति बुक् थनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु निकम्पं । निष्क्रयन विद्यते क्रयो यस्य स निष्क्रयः कगटडेति ष्लुक् अनादौ छित्वं कगचजेति यलुक् ११ अतः से?ः निकर्म नमस्कार- परस्परे द्वितीयश्च म मो कगटडे ति सबुक् अनादौ हित्वं ११ श्रतः सेझैः नमोकारो । संस्कृत विंशत्यादेर्लुक् अनुस्वारलुक् कगटडेति स्लुक् तोऽत् कृ क अनादौ हित्वं कगचजेति तलुक् अवर्णो थ य ११ क्लीबे सम् सकयं । सत्कार कगटडेति त्बुक् अनादौ छित्वं ११ अतः से?ः सकारो । तस्कर- ११ कगटडेति सबुक् अनादौ हित्वं श्रतः सेोः तकरो ॥४॥ टीका भाषांतर. ष्क अने स्क ने स्थाने जो नाम के संझा अर्थ होय तो ख थाय. ष्क ना उदा० दावे -सं. पुष्कर तेने उत्संयोगे चालता सूत्रे एक नो ख श्राय. अनादौ द्वितीय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पोक्खरं रूप थाय. सं. पुष्करिणी तेने उत्संयोगे चालता सूत्रे ष्क नो ख थाय. अनादौ० अंत्यव्यंज ए सूत्रोथी पोवखरणी रूप थाय. सं. निष्क तेने चालता सूत्रे ष्क नो ख थाय. अनादौ० द्वितीयपूर्व० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी निक्खं रूप थाय. निक्खं एटले सोनामोर हवे स्कना उदाहरण- सं. स्कंध स्कंधावार तेने चालता सूत्रथी बने रूपमा स्क नो ख थाय. अतः सेडों: ए सूत्रथी खंधो खंधावारो रूप थाय. सं. अवस्कंध तेने
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२६न
मागधी व्याकरणम् . चालता सूत्रथी स्क नो ख बाय. अनादौ द्वित्वं द्वितीय० अतः मेर्टोः ए सूत्रोथी अवक्खन्दो रूप थाय. तेनो अर्थ धाटी (धाड) थाय . सं. दुष्कर तेने कगटड० अनादौ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी दुक्करं रूप थाय. सं. निष्कंप तेने कगटड अनादौ क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी निकम्पं रूप थाय. सं. निष्क्रय एटले जेनी खरीदी न थती होय ते तेने कगटड अनादौ० कगचज० अतः सेडोंः ए सूत्रोथी निकओ रूप थाय. सं. नमस्कार तेने परस्परे द्वितीयश्च कगटड अनादी अतः सेझैः ए सूत्रोथी नमोकारो रूप थाय. सं. संस्कृत तेने विंशत्यादेलक कगटड० ऋतोऽत् अनादी कगचज अवर्णो क्लीबे सूम् ए सूत्रोथी सक्कयं रूप थाय. सं. सत्कार तेने कगटड अनादौ० अतः से?: ए सूत्रोथी सक्कारो रूप थाय. सं तस्कर तेने कगटड अनादौ अतः सेडोंः ए सूत्रोथी तक्करो रूप थाय.॥४॥
शुष्क-स्कन्दे वा ॥५॥ श्रनयोः कस्कयोः खो वा नवति ॥ सुकं सुकं । खन्दो कन्दो ॥ मूल भाषांतर. शुष्क अने स्कन्द शब्दना क अने स्क नो विकल्पे व श्राय. सं. शुष्क तेना सुख्खं सुकं रूप थाय. सं. स्कंद तेना खन्दो कन्दो रूप पाय.
॥ ढुंढिका ॥ शुष्कश्च स्कंदश्च शुष्कस्कंदं तस्मिन् ७१ वा ११ शुष्क शपोः सः शस्य सः अनेन वा कस्य खः अनादौ द्वितीयतुर्यपूर्व ख क ११ क्लीवे स्म् मोनु सुक्कं । पदे शुष्क- शषोः सः कगटडेति स्लुक् अनादौ द्वित्वं ११ क्लीबे स्म् मोनु सुक्खं सुकं । स्कंद- अनेन वास्कस्य खः ११ अतः सेोंः खन्दो । पदे स्कंद-११ कगटडेति स्लुक् श्रतः से?ः कंदो ॥५॥ टीका भाषांतर. शुष्क अने स्कंद नाश नो स श्राय. सं. शुष्क तेने शपोः सः चालता सूत्रे एक नो ख श्राय. अनादौ द्वितीय० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री सुक्खं वाय. बीजे पक्ष सं. शुष्क तेने शषोः सः कगटड अनादी क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सुक्कं रूप थाय. सं. स्कंद तेने विकल्पे स्क नो ख थाय. अतः सेझैः खन्दो रूप श्राय. पदे स्कंद- तेने कगटड अतः सेटः ए सूत्रोथी कंदो एवं रूप थाय. ॥५॥
क्ष्वेटकादौ ॥ ६॥ दवेटकादिषु संयुक्तस्य खो नवति ॥ खेडर्ड । दवेटक शब्दो विष
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द्वितीयःपादः।
२६५ पर्यायः॥ वोटकः। खोड ॥ स्फोटकः। खोड ॥ स्फोटकः । खोडळ ॥ स्फेटकः। खेड ॥ स्फेटिकः खेडि॥ मूल भाषांतर. श्वेटक विगेरे शब्दोमां जोडाक्षरनो ख थाय. सं. श्वेटक तेनुं खेडओ थाय. अहिं श्वेटक शब्दनो अर्थ विष थाय ने. सं. क्ष्वोटकः तेनुं खोडओ थाय. सं. स्फोटकः तेनुं खोडओ थाय. सं. स्फेटकः तेनुं खेडओ थाय. सं. स्फेटिकः तेनुं खेडिओ थाय.
॥ ढुंढिका ॥ वेटक श्रादौ यस्य सः दवेटकादिः तस्मिन् ७१ दवेटक अनेन वस्य खः टोडः कगचजेति क्लुक् ११ श्रतः सेोंः खेडर्छ । दवोटक अनेन दवोस्थाने खो टोडः कगचजेति कबुक् ११ श्रतः सेडोंः खोड । स्फोटक- स्फेटिक- स्फेटक- अनेन त्रिष्वपि खः टोडः त्रिष्वपि कगचजेति क्लुक् ११ अतः सेोंः खोड। खेडि5 खेडजे ॥६॥ टीका भाषांतर. श्वेटक विगेरे शब्दोना जोडाक्षरनो ख थाय. सं. श्वेटक तेने चालता सूत्रधी व नो ख थाय. टोडः कगचज अतः सेोंः ए सूत्रोश्री खेडओ रूप थाय. सं. वोटक तेने चालता सूत्रे वो ने स्थाने खो थाय. पनी टोडः कगचज अतः से?ः ए सूत्रोथी खोडओ रूप थाय. सं. स्फोटक स्फेटिक स्फेदक ए त्रण शब्दोने चालता सूत्रे ख थाय. पनी टोडः कगचज अतः सेडों: ए सूत्रोथी खोडओ खेडिओ खेडओ एवां रूप थाय. ॥ ६॥
स्थाणावहरे ॥७॥ स्थाणौ संयुक्तस्य खो जवति हरश्चेद् वाच्यो न भवति ॥ खाणू ।। शहर इति किम् थाणुणो रेहा ॥७॥ मूल भाषांतर. स्थाणु शब्दनो अर्थ जो शंकर श्रतो न होय तो तेना जोडाक्षर नो ख थाय. सं. स्थाणु तेनुं खाणू एवं रूप थाय. मूलमा शंकर अर्थ थतो न होय एम कडं ने तेथी सं. स्थाणु नो रेखा तेनुं थाणुणो रेहा एवं रूप थाय.॥७॥
॥ढुंढिका॥ स्थाणु ७१ अहर ७१ स्थाणु ११ अनेन स्थास्थाने खा क्लीवे सौदीर्घः अंत्यव्यंग स्लुकू खाणु । स्थाणु ६९ कगचजेति स्लुक् ङ
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990
मागधी व्याकरणम्. सिङसौ पुंक्लीवे वा इत्यनेन अस् स्थाने णो थाणुणो इति जातं रेखा- ११ खघथ ख द अंत्यव्यं सबुक् रेहा ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. स्थाणु शब्दनो अर्थ जो शंकर श्रतो न होय तो तेना जोडादरनो ख थाय. सं स्थाणु तेने चालता सूत्रे स्था ने ठेकाणे खा थाय. पनी अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी खाणू रूप थाय. शंकर अर्थवाला स्थाणु शब्दने कगचज. ङसिङसौ पुंक्लीबे वा ए सूत्रे असू ने स्थाने णो थाय. एटले थाणुणो एवं रूप थाय. सं. रेखा तेने खघथ० अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी रेहा रूप वाय. ॥ ७॥
स्तंने स्तो वा ॥ ७ ॥ स्तंन शब्दे स्तस्य खो वा नवति ॥ खंजो । थम्नो । काष्ठादिमयः मूल भाषांतर. स्तंभ शब्दना स्तनो विकटपे ख थाय. सं. स्तंभः तेनां खंभो थम्भो एवां रूप धाय. तेनो अर्थ काष्ठनो स्तंल एवो पाय.
॥ टुंढिका ॥ स्तंन ७१ स्त ६१ वा ११ स्तंज अनेन वा स्त ख ११ अतः सेझैः खंनो । पदे स्तंजस्तस्य थो ११ अतः सेझैः थनो ॥ ७॥ टीका भाषांतर. स्तंभ शब्दना स्तनो विकटपे ख थाय. सं. स्तंभ तेने चालता सूत्रथी स्तनो ख थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी खंभो रूप थाय. पदे स्तंन शब्दना स्तनो थ थाय. अतः सेोंः ए सूत्रथी थंभो रूप थाय. ॥ ७ ॥
थ-गवस्पंदे ॥ ए॥ स्पंदाजाववृत्तौ स्तंने स्तस्य थगै जवतः ॥ थंजो। ठंनो ॥ स्तंज्यते । निजा। ठंनिङ॥ मूल भाषांतर. स्पंद-चेष्टाना अर्थनां अनावमा प्रवर्तता एवा स्तंभ शब्दना स्त ना थ अने ठ श्राय. सं. स्तंभ तेनां थंभो ठंभो एवां रूप श्राय. सं. स्तंभ्यते तेनां थंभिज्जइ ठंभिज्जइ एवां रूप थाय. ॥ ए॥
॥ढुंढिका ॥ थश्च उश्च थगै १५ अस्पंद ७१ स्तंन- अनेन स्तस्य थः हितीये स्तस्य ः ११ अतः से?ः थंनो ठंजो । स्तंनो इति हसांतो धा. तुर्वर्त्तते केस्यति क्य प्रत्ययः लोकात्स्तस्य ते इति स्थितोऽनेन
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द्वितीयः पादः ।
खस्य यः प्रययौक्यस्य इत्यनेन क्यस्य इकः लोकात् त्यादीनां तिथंनि । द्वितीये स्तंभ्यते पूर्ववत् ततो श्रनेन स्तस्य ठः तेषां तथैव निश् ॥ ॥
२७१
टीका भाषांतर. स्पंद - चेष्टा अर्थना श्राववाला स्तंभ शब्दना स्तना थ अठ थाय. सं. स्तंभ तेने चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. बीजे पदे स्तनो ठ थाय. तः सेर्डोः ए सूत्री थंभो ठंभो एवां रूप याय. स्तंभ ए धातु बेतेने केस्यति ए सूत्रे क्य प्रत्यय वे पी लोकात् स्तस्य ते अने चालता सूत्रे व नो थ थाय. ral इयइजौ क्यस्य ए सूत्रे क्यनो इज्ज थाय. पी लोकात् त्यादीनां ए सूत्रोथी थं भिज्जइ एवं रूप थाय. बीजे पदे पूर्वनी जेम स्तंभ्यते रूप थाय. पी चालता सूत्रे स्त नो ठ थाय. एटले ठंभिज्जइ एवं रूप थाय. ॥ ८ ॥ रक्ते गो वा ॥
१० ॥ ग्गो रत्तो ॥
रक्तशब्दे संयुक्तस्य गो वा जवति ॥
मूल भाषांतर. रक्तशब्दना जोमादरनो विकल्पे ग थाय. सं. रक्त तेनां रग्गो रतो एवां रूप याय. ॥ १० ॥
॥ ढुंढिका ॥
रक्त ७१ ग १९ वा ११ रक्त- अनेन वा तस्य गः अनादौ द्वित्वं ११ श्रतः सेर्डोः रग्गो । रक्तः कगटडेति क्लुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ छतः सेर्डोः रत्तो ॥ १० ॥
टीका भाषांतर. रक्त शब्दना जोडाक्षरनो विकल्पे ग थाय. सं. रक्त शब्द तेने चालता सूत्रे विकट तनो ग थाय. पनी अनादी अतः सेडः ए सूत्रोथी रग्गो रूप याय. पदे रक्त तेने कगटड अनादौ ० अतः सेर्डोः ए सूत्रोश्री रत्तो रूप
थाय. ॥ १० ॥
शुल्के ङ्गो वा ॥ ११ ॥
शुल्क शब्दे संयुक्तस्य ङ्गो वा जवति ॥ सुङ्गं सुक्कं ॥
मूल भाषांतर. शुल्कशब्दना जोडाक्षरनो विकल्पे ङ्ग थाय. सं. शुल्क तेनां मुङ्ग सुकं एवां रूप थाय.
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॥ ढिका ॥
शुल्क ०१ ङ्ग ११ वा ११ शुल्क - छानेन कस्य ङ्ग ११ क्लीबे सम
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मागधी व्याकरणम् . मोनु० शषोः सः सुझं पदे शुल्क- शषोः सः सर्वत्र ललोपः श्र. नादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु सुकं ॥ ११ ॥ टीका भाषांतर. शुल्क शब्दना जोडादरनो विकटपे ग थाय. सं. शुल्क तेने चालता सूत्रे ल्क नो ङ्ग थाय. पनी क्लीबे सम् मोनु० शषोः सः ए सूत्रोथी शुङ्गं रूप वाय. पके शुल्क तेने शषोः सः सर्वत्र अनादी क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री सुकं एवं रूप थाय. ॥ ११ ॥
कृत्ति-चत्वरे चः ॥१२॥ श्रनयोः संयुक्तस्य चो नवति ॥ किच्ची। चच्चरं ॥ मूल भाषांतर. सं. कृति अने चत्वर शब्दना जोडाक्षरनो च वाय. सं. कृत्ति तेनुं किच्ची रूप थाय. सं. चत्वर तेनुं चच्चरं रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ कृत्तिश्च चत्वरं च कृत्ति-चत्वरं तस्मिन् ७१ च ११ कृत्ति- इत्कृपादौ कि अनेन तस्य चः अनादौ हित्वं ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक् किच्ची । चत्वर- ११ अनेन त्वस्य चः श्रनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु० चच्चरं ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. कृत्ति अने चत्वरशब्दना जोडाक्षरनो च श्राय. सं. कृत्ति तेने इत्कृपादौ चालता सूत्रे त्त नो च थाय. अनादी अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी किच्ची रूप थाय. सं. चत्वर तेने चालता सूत्रे त्वनो च थाय. अनादौ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चच्चरं रूप थाय. ॥ १२ ॥
त्योऽचैत्ये ॥१३॥ चैत्यवर्जिते त्यस्य चो जवति ॥ सच्चं । पञ्च ॥ अचैत्य इति किम् चश्त्तं ॥
मूल भाषांतर. चैत्यशब्दशिवाय बीजा जोमादर त्यनो च थाय. सं. सत्यं तेनुं सचं थाय. सं. प्रत्यय तेनुं पच्चओ रूप थाय. मूलमां चैत्यशब्दशिवाय एम कडं बे तेथी सं. चैत्य तेनुं चइत्तं रूप थाय.
॥ टुंढिका ॥ त्य ६१ न चैत्यं अचैत्यं तस्मिन् ७१ चैत्य- अनेन त्यस्य चः श्रनादौ हित्वं क्लीबे सम् सचं । प्रत्यय- सर्वत्र रबुक् अनेन त्यस्य
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प्रथमःपादः।
२७३ चः श्रनादौ हित्वं कगचजेति यलुक् ११ श्रतः सेोः पञ्च चैत्य अश्त्यादौ च चै स्थाने चश् अधोमनयां यबुक् अनादौ हित्वं क्लीबे सम् मोनु चश्त्तं ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. चैत्यशब्दशिवायना जोडादर त्यनो च थाय. सं. सत्य-तेने चालता सूत्रे त्यनो च श्राय. अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् ए सूत्रोथी सच्चं रूप थाय. सं. प्रत्ययः तेने सर्वत्र चालता सूत्रे त्यनो च थाय. अनादौ० कगचज अतःसे?: ए सूत्रोथी पच्चओ रूप थाय. सं. चैत्य तेने अइत्यादौ च ए सूत्रथी चैने स्थानेचइ श्राय. पजी अधोमनयां अनादौ क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चइत्तं रूपथाय.॥१३॥
प्रत्यूषे षश्च दो वा ॥१४॥ प्रत्यूपे त्यस्य चो जवति तत्संनियोगे च षस्य हो वा जवति ॥ पच्चूहो । पच्चूसो ॥ मूल भाषांतर. प्रत्यूष शब्दना त्यनो च थाय. अने तेनां योगे ष नो विकटपे ह थाय. सं. प्रत्यूष तेनां पच्चूहो अने पच्चूसो एवां रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ प्रत्यूष ७१ प ६१ च ११ ह ११ वा ११ प्रत्यूष- सर्वत्र रखुक् अनेन त्य च अनादौ हित्वं अनेनैव षस्य वा हः ११ श्रतः सेझैः पञ्चहो यत्र इकारो न स्यात् तत्र प्रत्यूष- सर्वत्र रलुक् अनेन त्य च अनादौ हित्वं शषोः सः श्रतः से?ः पञ्चूसो ॥१४॥ टीका भाषांतर. प्रत्यूष शब्दना त्यनो च थाय. अने तेने योगे षनो विकटपे ह श्राय. सं. प्रत्यूष तेने सर्वत्र चालता सूत्रे त्यनो च थाय. अनादी अने ते चालता सूत्रेज षनो विकल्प ह थाय. पी अतः सेझैः ए सूत्रथी पञ्चहो रूप थाय. ज्यांरे ह न थाय. त्यारे सं. प्रत्यूष तेने सर्वत्र चालता सूत्रे त्यनो च थाय. पनी अनादौ शषोः सः अतः से?ः ए सूत्रोथी पचूसो रूप थाय. ॥ १५ ॥
त्व-थ्व-ह-ध्वां च-ब-ज-काः क्वचित् ॥ १५॥ एषां यथासंख्यमेते क्वचिद् नवंति ॥ जुक्त्वा । नोच्चा ॥ ज्ञात्वा । णच्चा ॥ श्रुत्वा । सोचा ॥ पृथ्वी । पिच्छी ॥ विछान् । विजं ॥ बुध्वा ॥ बुज्का ॥ जोच्चा सयलं पिच्छिं विऊ बुबा श्रण प्पाय-ग्गामि । चऊण तवं कालं सन्ती पत्तो सिवं परमं ॥
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२७४
माधी व्याकरणम्.
मूल भाषांतर. व थ्व व ध्व ते अहरोने स्थाने अनुक्रमे च ब ज झ ए - दरो को ठेकाणे थाय बे. सं. भुक्त्वा तेनुं भोच्चा रूप थाय. सं. ज्ञात्वा तेनुं णच्चा रूप याय. सं. श्रुत्वा तेनुं सोच्चा रूप थाय. सं. पृथ्वी तेनुं पिच्छी रूप थाय. सं. विद्वान् तेनुं विज्जं रूप थाय. सं. वुध्वा तेनुं वुज्झा रूप थाय. ते उपर नींचे प्रमाणे गाथानो अर्थ बे.
जेना जेवी बीजाने प्राप्ति नयी एवा हे शांत नाथ प्रभु, तमे सर्व पृथ्वीने जोगवी, प्रतिबोधने पामी ने तपस्याने चरी परम शिवने ( मोक्ष ) ने प्राप्त थया बो. ॥ ढुंढिका ॥
त्वश्च श्वश्च द्वश्च ध्वश्च त्वथ्वद्वध्वः तेषां ६३ चश्च टश्च जश्च कश्च चबजझाः १३ क्वचित् ११ मुक्त्वा - उत्संयोगे तु जो अनेन क्वा स्थाने चा अनादौ द्वित्वं ११ अव्यय० सूलुक् नोच्चा । ज्ञात्वा ह्रस्वः संयोगे झा इ म्नझोर्णः ज्ञास्थाने ः अनेन क्त्वा - स्थाने चा अनादौ द्वित्वं ११ अव्यय सलुक् एच्चा । श्रुत्वा - - संयोगे श्रु श्रो सर्वत्र रलुक् अनेन स्वास्थाने चा अनादौ खिं द्विलं सोच्चा । पृथ्वी - इत्कृपादौ पृपि अनेन ध्वस्य बः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयतुपूर्व छ च ११ अंत्यव्यं० सलुक् पछी । विद्वान् अंत्यव्यं० सलुक् अनेन हा जः श्रनादौ द्वित्वं ज वाव्ययोत्खातादावदातः अकारस्य त्वं ११ क्लीवे सम मोनु० वि । बुद्ध - नेन ध्वस्यः धनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्वकस्य जः श्रव्यय० स्लुक बुज्का | जोच्चा इत्यादि जोक्ता उत्संयोगे जु जो अनेन तस्य चः
नादौ त्वं द्वितीयपूर्व २१ श्रव्यय० सलुक जोच्चा । सकलं । २१ शेषेऽदतवत् इति ज्ञायात् हखोमि इत्यनेन हखः ला ले था - मोsस्य अति श्रमो लोपः मोनु० सयलं । पृथ्वी - इत्कृपादों पृपि थनेन यस्य वः श्रनादी द्वित्वं द्वितीयपूर्व व च २१ अम् लो
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प्रथमः पादः।
२७५ पः शेषेऽदंतवत् इति ज्ञायात् खोमि बी वि पिचिं । विधिः स् ११ अंत्यव्यं सबुक अनेन धस्य जः अनादौ हित्वं ज बादुलकात् वावरेमश्च इत्यनेन सम् मोनु विडं । बुधा अनेन जः अनादौ द्वित्वं द्वितीय तु पूर्व जस्य ऊः ११ अंत्यव्यंग सबुक् बुज्का । हे अनन्यकगामिन् न विद्यते अन्यत्कं गामित्वं यस्य सः अनन्यकगामी तस्य संवोधनं नवान् शांतिः परमं शिवं प्राप्तः किं कृत्वा सकलां पृथ्वी ततस्त्यक्त्वा बुवा प्रतिबोधं प्राप्य पुनः किं कृत्वा तपः कृत्वा किं नगवान् विछानिति गाथार्थः अनन्यकगामिन् नोणः अधोमनयां चबुक् नोणः अनादौ हित्वं कगचजेति कबुक् अवर्णो अस्य यः सेवादौ वागमस्यहिः अंत्यव्यं जबुक् स्यम्जस् बासांलुक् सलोपः श्रयगामि। त्यहानौ त्यज त्यजनं पूर्वं त्यक्त्वा प्राक्काले क्त्वा । प्रत्ययः त्योऽचैत्ये त्यस्य चः वज् इति स्थिते व्यंजना ददंते अप्रत्य लोकात् चज स्थिते कगचजेति जलुक् पञ्चकातुम् तव्यनविष्यत्सु अश्वस्तु मत्तूणतुआणा त्वा प्रत्ययस्य तूणादेशः कगचजेति तलुक् चश्ऊण तपस् ११ अंत्यव्यंग स्बुक् वा खरेमश्च क्लीबे सम् मोनु० तवं कृ करणं पूर्वं कृत्वा प्राकाले त्वा कृत्वावस्तु मत्तुणतु आणा वास्थाने तूण श्राकृगो नूतनवि कृ का कगचजेति तबुक् मोनु काउं शांति ११ शषोः सः ह्रस्वः संयोगे सा स शक्तीबे सौदीर्घः अंत्यव्यं० स्बुक् संती । प्राप्तसर्वत्र ह्रखः संयोगे पा प कगचजेति प्रबुक् अनादौ हित्वं ११ अतः सेडोंः पत्तो। शिव ११ शषोः सः ११ क्लीबे सम् मोनु सिवं । परम ११ क्लीबे सम् मोनुण परमं ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर व थ्व द थ्व ते अक्षरोने स्थाने अनुक्रमे च छ ज झ ए अकरो क्वचित् थाय ने. सं. भुक्त्वा तेने उत्संयोगे ए सूत्रे भु नो भो थाय. पली चालता सूने क्त्वा ने स्थाने चा थाय. अनादौ अव्यम० सूलुक् ए सूत्रोथी भोच्चा रूप थाय. सं. ज्ञात्वा तेने इस्वः संयोगे म्नज्ञो: ए सूत्रे ज्ञा ने स्थाने ण
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२७६
माधी व्याकरणम्.
थाय. पी चालता सूत्रे क्त्वा ने स्थाने चा थाय. अनादौ ० अव्यय लुक् ए सूत्रोश्री णच्चा रूप याय. सं. श्रुत्वा तेने उत्संयोगे सर्वत्र रलुक् चालता सूत्रे क्त्वा ने स्थाने चा थाय. पती अनादौ० ए सूत्रे सोच्चा रूप थाय. सं. पृथ्वी तेने इत्कृपादौ चालता सूत्रे थ्व नो छ थाय. पठी अनादी द्वितीय० पूर्वछच अंत्यव्यं ० सलुक् ए सूत्रोथी पिच्छी रूप थाय. सं. विद्वान् तेने अंत्यव्यं ० चालता सूत्रे द्वा नोज थाय. अनादौ ० वाव्ययोत्खातादावदातः क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी विज्जं रूप थाय. सं. बुद्धा तेने चालता सूत्रे ध्व नो झ थाय. अनादौ ० द्वितीयपूर्व० अव्यय० ए सूत्रोथी बुज्झा रूप थाय. भोच्चा ए गाथानी शब्द साधनिका आप्रमाणे
सं. भोक्ता तेने उत्संयोगे चालता सूत्रे क्त नो च थाय. अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व० अव्यय० सलुक ए सूत्रोथी भोच्चा रूप थाय. सं. सकलं तेने शेषेऽदंत वत् हखोमि आमोऽस्य अमोलोपः मोनु० ए सूत्रोथी सयलं रूप श्राय. सं. पृथ्वी तेने इत्कृपादौ चालता सूत्रे थ नो छ थाय. पढी अनादौ ० द्वितीय० अम् लोपः शेषेऽदंतवत् खोमि ए सूत्रोथी पिच्छ रूप याय. सं. विद्धि: तेने अंत्यव्यंजन ० चालता सूत्रे ध नो ज थाय. अनादौ ० बाहुलकात् वाखरे मश्च मोनु० ए सूत्रोथी विज्जं रूप याय. सं. बुद्धा तेने चालता सूत्रे ज थाय. पती अनादौ द्वितीयपूर्व० अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी बुज्झा रूप याय. ते गाथानो शब्दार्थ प्रमाणे हे न्यगामिन् एटले जेना जेवी गति बीजाने नथी एवा हे शांतिनाथ प्रभु, तमे परमशिव (मोक्ष) ने प्राप्त थयेलाबो. शुं करीने ते कहे बे-सर्व पृथ्वीनो बोध प्राप्त करी तपस्याने चरी, विधान् एवा तमे मोहने प्राप्त न्यगामिन् तेने अधोमनयां नोणः अनादौ० कगचज० वा अंत्यव्यं० स्यम्जस् बासांलुक्स्लोपः ए सूत्रोथी अयगामि एवं रूप याय. त्यज धातु हानि अर्थमां प्रवर्त्ते त्यजने क्त्वा प्रत्यय यावी त्योचैत्ये ए सूत्रथ त्य नो ज थाय. एटले चजू एवं रूप थाय. पबी व्यंजनाददते० लोकात् कगचज पञ्चका तुम् तव्य भविष्यत्सु अइकस्तु मत्चूणतु आणा ए सूत्रे त्वा प्रत्ययने तूण आदेश आय. पी कगचज ए सूत्रे चइऊण एवं रूप थाय. सं. तपस् तेने अंत्यव्यं० वास्वरेमश्च क्लीषे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तवं रूप याय. सं. कृ धातुने त्वा प्रत्यय
त्याग करी, प्रतिथयेलाबो. सं . अनअवर्णो सेवादौ
वे पीत्वाकस्तु मतृणतु आणा ए सूत्रे त्वा ने स्थाने तृण आदेश थाय. पी आकृगोभूत० कगचज मोनु० ए सूत्रोश्री काउं रूप थाय. सं. शांति तेने शषोः सः ह्रस्वः संयोगे अक्लीबे दीर्घ अंत्यव्यं ए सूत्रोथी संती रूप थाय. सं. प्राप्त तेने सर्वत्र ह्रस्वः संयोगे कगचज अनादौ तः सेर्डोः ए सूत्रोथी पत्तो रूप थाय. सं. शिव तेने शषोः सः क्लीबै सम मोनु० ए सूत्रोथी सिवं रूप थाय. सं. परम तेने क्लीबे सम मोनु ए सूत्रोथी परम रूप थाय. १५
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२
प्रथमःपादः।
वृश्चिके श्येचुर्वा ॥ १६॥ वृश्चिके श्वेः सखरस्य स्थाने चुरादेशो वा जवति । बापवादः॥ विञ्चुन विचु । पदे विधि ॥ मूल भाषांतर. वृश्चिक शब्दना स्वर सहित श्चि नो विकटपे अ आदेश थाय. छ नो अपवाद आय.सं. वृश्चिक तेना विचओ विंचुओ एवां रूप थाय पक्ष विञ्चि रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ वृश्चिक ३१ श्चि ६१ ञ्चु ११ वा ११ वृश्चिक इत्कृपादौ वृ वि अनेन वा श्चिस्थाने चु कगचजेति कबुक् ११ श्रतः से?ः विञ्चू । ङझणनो व्यंजने इति अनेन अस्य अनुस्वारोऽपि नवति तेन रूपठ्यं विंचूर्व इति । वृश्चिक इत्कृपादौ वृ वि हृवात्थ्यश्चप्सामनिश्चले इति अस्य बः बकादावंतः अनुस्वारः कगचजेति क्लुक् ११ अतः सेोः विंनि ॥ १६ ॥ टीका भाषांतर. वृश्चिक शब्दना श्चि ने स्थाने स्वर सहित चु आदेश विकटपे थाय. छ नो अपवाद थाय. सं. वृश्चिक तेने इत्कृपादौ चालता सूत्रे श्चि ने स्थाने त्रु वाय. कगचज अतः से?: ए सूत्रोथी विचओ रूप थाय. ङञणनोव्यंजने ए सूत्रे आ नो अनुस्वार थाय. तो बे रूप थाय. एटले बीजुं रूप विंचूओ थाय. पक्ष सं वृश्चिक तेने इत्कृपादौ इस्वास्थ्यश्चपसा ए सूत्रे श्च नो छ थाय. वकादावंतः कगचज अत: सेझैः ए सूत्रोथी विछिओ रूप थाय. १६
गेऽदयादौ ॥१७॥ अयादिषु संयुक्तस्य नो नवति । खस्यापवादः ॥ अच्छि । उच्च । लबी। कबो। बीअं । बीई । सरिलो । वडो । मबिया बेत्तं । बुहा । दबो । कुछी । वळं । बुलो कछा । गरो । कुलेश्रयं । बुरो। उबा । अयं । सारिखें ॥ अदि । श्छु । लाम। । कद । कुत । कीर । सहद । वृद । मदिका । देत्र । दुई । दद । कुदि । वदस् । कुम । कदा । दार । कौदेयक । र । उदन् । दत।
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मागधी व्याकरणम् . सादृश्य । कचित् स्थगितशब्देऽपि । श्यं ॥ आर्षे । श्वरवू । खीरं । सारिक्खमित्याद्यपि दृश्यते ॥ मूल भाषांतर. अक्षि विगेरे शब्दोना जोडाक्षरनो छ थाय. सं. अक्षि तेनुं अच्छि श्राय. सं. इछु तेनुं उच्छृ श्राय. सं. लक्ष्मी तेनुं लच्छी श्राय. सं. कक्ष तेनुं कच्छो थाय. सं. क्षुत तेनुं छीअं श्राय. सं. क्षीर तेनुं छीरं थाय. सं. सदृक्ष तेनुं सरिच्छो वाय. सं. वृक्ष तेनुं वच्छो श्राय. सं. मक्षिका तेनुं मच्छिआ थाय. सं. क्षेत्र तेनु छेत्तं श्राय. सं. क्षुधा तेनुं छुहा थाय. सं. दक्ष तेनुं दच्छो श्राय. सं. कुक्षि तेनुं कुच्छी थाय. सं. वक्षस तेनुं वच्छं थाय. सं. क्षुण्ण, तेनुं छुण्णो श्राय. सं. कक्षा तेनुं कच्छा थाय. सं. क्षार तेनुं छारो श्राय. सं. कौक्षेयक तेनुं कुच्छेअयं थाय. सं. क्षुर तेनुं छुरो श्राय. सं. उक्षन् तेनुं उच्छा थाय. सं. क्षत तेनुं छयं थाय. सं. सादृश्य तेनुं स्वारिच्छं वाय. कोइ ठेकाणे स्थगित शब्दने पण थाय. सं. स्थगितं तेनुं छइ थाय. आर्ष प्रयोगमां सं. इक्षु तेनुं इक्खु सं. दीरं तेनुं खीरं सं. सादश्य तेनुं सारिक्खं एवा रूप पण जोवामां आवे . ॥ १७ ॥
॥ ढुंढिका ॥ ब ११ अदि आदौ यस्य सः अयादिः ७१ अदि- अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व ब च ११ क्लीबे सम् मोनु० अछि । ३नु प्रवासीदो० इ उ अनेन दस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ब च ११ थक्लीबे सौदी: अंत्यव्यं० सबुक् उ बू । लक्ष्मी ११ अधोमनयां मबुक् अनेन कस्य बः अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उ च ११ अंत्यव्यंग सबुक् लबी/। कद ११ अनेन द बः श्रनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ब च ११ अतः सेझैः क्षत ईदते ८ वी अनेन दस्य ः कगचजेति त्लुक् ११ क्लीवे स्म् मोनु बीअं दीरं ११ अनेन दस्य ः क्लीवे स्म् मोनु बीरं । सदृश दृशः क्वि टक् सहस्थाने रि अनेन दस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व बच ११ अतः सेडोंः सरिछो । वृद इतोऽत् अनेन कस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उ च ११ श्रतः सेझैः वडो मदिका-. अनेन दस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उ च कगचजेति कबुक् ११ अंत्यव्यंग सेलुकू ११ मठिया । क्षेत्र अनेन कस्य बः
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प्रथमःपादः।
ए
सर्वत्र रखुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबे स्म् मोनु० बेत्तं । कुध् ११ अनेन ६ ः कुधोहा अंत्यव्यंग स्नुकू बुहा । ददा- ११ अनेन दस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उ चः श्रतः से?ः दृछो कुदि- ११ अनेन दस्य ः अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व उः श्रक्लीवे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग स्बुक् कुछी । वक्षस् ११ अनेन कस्य ः अनादौ पित्वं हितीये बाहुलकात् स्नमदामशिरोननः इति पुंस्त्वं न नवति क्लीवे खरान्मसे स्म् मोनु० वर्छ । कुल- ११ अनेन दस्य बः श्रतः सेझैः बुलो कद । अनेन द ब ११ अंत्यव्यंग स्लुक् कख्का-दार ११ अनेन द ब अतः से?ः गरो। को देयक ११ कोदेयकेवा को कु अनेन ६ बः अनादौ हित्वं द्वितीय० कगचजेति यबुक कबुक् च अवर्णो अ य गुणाद्याः क्लीवे वा शति क्लीबत्वं ११ क्लीबे सम् मोनु कुछेश्रयं । कुर- ११ अनेन द बः श्रतः सेडोंः बुरो उदन अनेन अनादौ हित्वं पितीय पुनस्य आणोनस्यः श्रात्वं समानानां दीर्घः ११ अंत्यव्यं० सलुक् उबा । दत- श्रनेन द ब-कगचजेति त्लुक् अवर्णो थ य ११ क्वीबे स्म् मोनु० व्यं । दृशः क्विए टक् सहक् द रि अनंत्यस्य कः अनादौ हित्वं घितीयपूर्व उ च ११ क्लीबे सम् मोनु सारिखं । स्थगित शब्देऽपि बो नवति । स्थगित- अनेन स्थस्य ः कगचजेति ग्लुक् तबुक् ११ क्वीबे स्म् मोनु श्यं । आर्षे- श्दु ११ दः खः क्यचित् द ख अनादौ हित्वं पितीयपूर्व ख कः अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् श्क्खू । दीर- ११ आर्षत्वात् ६-ख क्लीवे स्म् मोनु खीरं । सदृश्य- दृशः क्विप हस्थाने रि आर्षत्वात् ख ११ क्लीवे स्म् मोनु सारिक्ख ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. अक्षि विगेरे शब्दोना जोडाक्षरनो उ श्राय. सं. अक्षि तेने अनादौ० द्वितीयपूर्वछच क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अच्छि रूप थाय. सं. इक्षु तेने प्रवासीक्षो० ए सूत्रे ई नो उ थाय. चालता सूत्रे क्ष नो छ श्राय. सं. अनादौ० द्वितीयपूर्व छ च अक्लीब सौ दीर्घः यव्यं० ए सूत्रोथी उच्छू रूप
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श्न
मागधी व्याकरणम्. थाय. सं. लक्ष्मी तेने अधोमनयां चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. अनादौ० द्वितीयपूर्व० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी लच्छी रूप थाय. सं. कक्ष तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. पनी अनादी द्वितीयपूर्व० अतः सेोंः ए सूत्रोथी कच्छो रूप श्राय. सं. क्षत ईक्षते ए सूत्रे क्ष नो क्षी थाय. पनी चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी छीअं रूप थाय. सं. क्षीर तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी छीरं रूप थाय. सं. सदृश तेने दृशः किप टकू लागे पनी हुने स्थाने रि थाय. चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. पनी अनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व छ च अतः से?ः ए सूत्रोथी सरिच्छो रूप थाय. सं. वृक्ष तेने ऋतोऽत् चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. पनी अनादौ द्वितीयपूर्व० अतः से?ः ए सूत्रोथी वच्छो रूप थाय. सं. माक्षिका तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मच्छिआ रूप आय. सं. क्षेत्र तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. सर्वत्र अनादौ क्लीवे मम् मोनु० ए सूत्रोथी छेत्तं रूप थाय. सं क्षुधा तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. क्षुधोहा ए सूत्रे ध नो हा थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रे छुहा रूप थाय. सं. दक्ष तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व अतः सेझैः ए सूत्रोथी दच्छो रूप थाय. सं. कुक्षि तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व अक्लीये दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी कुच्छी रूप थाय. सं. पक्ष तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. पली अनादौ द्वितीय पद बाहुलक अधिकारथी स्लमदामशिरोनभः ए सूत्रे पुंलिंग पणुं न श्राय. क्लीवे स्वरान्मसे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वच्छं रूप थाय. सं. क्षुण्ण तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. पी अतः सेडोंः ए सूत्रे छुण्णो रूप थाय. सं. कक्ष तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. पनी अंत्यव्यंज० ए सूत्रे कख्का रूप थाय. सं. क्षार तेने क्ष नो छ थाय. पडी अतः सेोंः ए सूत्रे छारो रूप थाय. सं. कौक्षेयक-तेने कौक्षेयकेवा ए सूत्रे को नो कु थाय. पनी चालता सूत्रे क्ष नो छ आय. अनादौ द्वितीय० कगचज अवणी गुणाद्याः क्लीबे वा क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रे कुच्छेअयं रूप थाय. सं. क्षुर- तेने सेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. अतः सेझैः ए सूत्रे छुरो रूप श्राय. सं. उक्षन् तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व० पुनस्य आणो ए सूत्रे न नो आ थाय. पठी समानानां दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी उच्छा रूप थाय. सं. क्षत तेने चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. पी कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी छयं रूप थाय. सं. सादृश्य तेने दृशः किप टकू ए सूत्रे द नो रि थाय. मी अनंत्यस्यदः अनादौ द्वितीयपूर्व क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सारिच्छं रूप थाय. सं. स्थगित शब्दनो पण छ थाय. सं. स्थगित तेने चालता सूत्रे स्थ नो छ थाय. कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी छइअं रूप थाय. आर्ष प्रयोगमां. सं. इक्षुतेने क्षः खः क्वचित् ए सूत्रे क्ष नो ख थाय. अनादौ
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हितीयःपादः।
श्र द्वित्वं द्वितीयतुर्य ग्वक अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी इक्खू रूप श्राय. सं. क्षीर तेने आर्ष प्रयोग होवाथी क्ष नो ख थाय. क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी खीरं रूप थाय. सं. सादृश्य तेने दृशाकिर आर्ष पणाश्री ख श्राय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सारिक्खं रूप थाय. ॥१७॥
दमायां कौ ॥ १७ ॥ कौ पृथ्व्यां वर्तमाने दमा शब्दे संयुक्तस्य दो नवति ॥ दमा पृथिवी ॥ लादणिकस्यापि दमादेशस्य नवति । दमा । उमा । काविति किम् । दमा दान्तिः ॥ मूल भाषांतर. क्षमा शब्दनो अर्थ जो पृथ्वी थतो होय तो तेना जोडाक्षरनो छ थाय. क्षमा एटले पृथिवी लादणिक एवा दमा आदेशने थाय. सं. क्ष्मा तेनुं छमा थाय. मूलमां क्षमा शब्दनो अर्थ पृथ्वी होय तो एम कडं ने तेथी क्षमानो अर्थ जो क्षांति अतो होय तो तेनुं खमा रूप पाय.
॥ढुंढिका ॥ दमा-७१ कु ७१ दमा ११ अनेन दबः अंत्यव्यंग सबुक् उमा क्ष्मा माश्लाघारत्नेऽन्त्य व्यंजनात् इति क्षमयोविश्लेषं कृत्वा मात् प्राग्जकारः अनेन दबः अंत्यव्यंग सबुक् उमा दमा- ११ दाः
खः कचित् दस्य खः अंत्यव्यं० स्लुक् खमा ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. पृथ्वी अर्थवाला क्षमा शब्दना जोडाझरनो छ श्राय. सं. क्षमा तेने चालता सूत्रे क्षनो छ वाय. पछी अंत्यव्यंज० ए सूत्रथी छमा श्राय. पदे सं. क्ष्मा तेने क्षमाश्लाघारत्नेऽन्त्यव्यंजनात् ए सूत्रश्री क्ष अने म नो विश्लेष करी मनी पेहेला उ थाय. पनी चालता सूत्रे क्ष नो छ श्रेय. अंत्यव्यं० ए सूत्रथी छमा रूप थाय. सं. क्षमा ( दांति ) तेने क्षः खः कचित् अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी खमा रूप थाय.
शदे वा ॥१ ॥ श्द शब्दे संयुक्तस्य नो वा नवति । रिछ । रिकं । रियो । रिको ॥ कथं बूढं दितं । वृद- दिप्तयो रुक्ख-बूढौ (२१२७) इति नविष्यति ॥ मूल भाषांतर. ऋक्ष शब्दना जोडादरनो विकटपे के थाय. सं. ऋक्ष तेनां रिच्छं रिख्खं एवां रूप थाय. तथा पुंलिंगे रिच्छो रिख्खो एषां रूप थाय. सं. क्षिप्त तेनुं छूढं केवी रीते थाय ? एम जो कहो तो ते रूपवृक्ष-क्षिप्तयो रुक्ख-छूढौ ए सूत्रथी सिद्ध थशे. ॥१०॥
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श्
मागधी व्याकरणम्. ॥ ढुंढिका ॥
६ - ७१ वा ११ रुक्ष - ११ रिः केवलस्य रुरि अनेन द बः नादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्वढ चक्कीबे स्म मोनु० रिछं । पदे रुक्ष दः खः क्वचित् दख ११ क्वीबे स्म मोनु० रिरक | गुणाद्याः क्की बे वा त रिछोरिको पूर्ववत् दिप्त ११ वृक्ष दिसयो रिको दौ इति दितस्थाने बूढं क्कीबे सम् मोनु० बुढं ॥ १५ ॥
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टीका भाषांतर. रुक्ष शब्दना जोडाक्षरनो छ थाय. सं. इक्ष - तेने रिः केवलस्य ए सूत्रे ऋ नोरि थाय. चालता सूत्रे क्ष नो छ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी रिच्छं रूप थाय. प ऋक्ष तेने क्षः खः क्वचित् ए सूत्रश्री क्ष नो ख थाय. पी क्लीवे सम मोनु० ए सूत्रोथी रिक्खं रूप थाय. पनी गुणाद्याः क्लीबे वा ए सूत्रश्री रिच्छो रिस्को एवा पुंलिंगे पूर्ववत् रूप पण सिद्ध थाय. सं. क्षिप्त तेने वृक्ष क्षिप्तयो ए सूत्रथी क्षिप्तने स्थाने छुढ याय. पबी क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी छुढं रूप याय. ॥ १५ ॥
क्षण उत्सवे ॥ २० ॥
क्षणशब्दे उत्सवानिधायिनि संयुक्तस्य बो जवति ॥ उणो ॥ उत्सव इति किम् । खणो ॥
मूल भाषांतर. जेनो अर्थ उत्सव छथाय. सं. क्षण तेनुं छणो रूप थाय. तेथी ज्यारे क्षणनो अर्थ वखत तो होय
थतो होय तेवा क्षणशब्दना जोमाक्षरनो मूलमां उत्सव श्रर्थ तो होय तेम क त्यारे . सं. क्षण तेनुं खणो रूप श्राय. टिका ॥
॥ द ७१ उत्सव ७१ दण- ११ दण ११ कः खः क्वचित् द/ख टीका भाषांतर. उत्सव अर्थाला तेने चालता सूत्रे क्षनो छ थाय पी
नेन दस्य वः श्रतः सेडः बो तः सेर्डोः खणो ॥ २० ॥ क्षणशब्दना जोडाक्षरनो छ थाय. सं. क्षण अतः सेर्डोः ए सूत्रथी छणो रूप थाय. उत्सव वरना क्षण शब्दने क्षः खः क्वचित् अतः सेडः ए सूत्रथी खणो रूप श्राय. २० ह्रस्वात् थ्य-व-त्स - प्साम निश्चले ॥ २१ ॥
दस्वात्परेषां भ्यश्चत्सप्सी बो जवति निश्चले तु न जवति ॥ थ्यपर्छ । पन्छा मिठा ॥ श्च । पत्रिमं । अहेरं । पञ्चा ॥ त्स | उछाहो । मछली | मरो । संवहलो । संवछरो । प्स | लिन्छ । जु
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द्वितीयःपादः।
२३ गुबइ । अछरा ॥ हवा दिति किम् ऊसारि ॥ श्रनिश्चल इति किम् निश्चलो ॥ आर्षे तथ्ये चोपि । तच्यं ॥ मूल भाषांतर. ह्रस्व थकी पर एवा थ्य-श्व-त्स-प्स ए चार जोडादरनो छ थाय. अने निश्चल शब्दने न थाय. थ्यनां उदाहरण- सं. पथ्यं तेनुं पच्छं रूप थाय. सं. पथ्या तेनुं पच्छा रूप थाय. सं. मिथ्या तेनू मिच्छा रूप थाय. श्चनां उदाहरण- सं. पश्चिमं तेनुं पच्छिम रूप थाय. सं. आश्चर्य तेनुं अच्छेरं रूप थाय. सं. पश्चात् तेनुं पच्छा रूप थाय. त्सनां उदाहरण- सं. उत्साह तेनुं उच्छाहो रूप थाय. सं. मत्सरः तेनु मच्छलो तथा मच्छरो रूप थाय. सं. संवत्सर तेनुं संवबलो तथा संवच्छरो रूप थाय. सं. चिकित्सति तेनुं चिइच्छइ रूप थाय. प्सना उदा०-सं. लिप्सते जुगुप्सते तेनां लिच्छइ जुगुच्छइ रूप थाय. सं. अप्सरा तेनुं अच्छरा रूप बाय. मूलमा हस्व थकी एम का रे तेथी सं. उत्सारित तेनुं ऊसारिओ रूप थाय. निश्चल शब्दने वर्जिने एम कडं ने तेथी सं. निश्चल तेनुं निचलो रूप थाय. आर्षप्रयोगमां तथ्य शब्दनो च पण थाय. एटले सं. तथ्यं तेनुं तच्चं रूप थाय.
॥ढुंढिका॥ ह्रस्व ५१ थ्यश्च श्च सश्च प्सश्च थ्यश्चत्सप्सः तेषां ६३ अनिश्चल ७१ पथ्य- अनेन थ्यस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयतुपूर्व बच ११ क्लीबे सम् मोनु पर्छ । पथ्या अनेन थ्यस्य ः अ. नादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उ च ११ अंत्यव्यंग स्लुक् पछा। मिथ्या अनेन थ्यस्य ः श्रनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ब च ११ अंत्यव्यंग स्बुक् पिडा । पश्चिम ११ अनेन श्चस्य बः अनादौ हित्वं हितीय ११ क्लीबे स्म् मोनुपाबिमं आश्चर्य- ह्रस्वः सं. योगे था श्र अनेन श्च उ अनादौ हित्वं । द्वितीय च न वद्यु करपर्यंताश्चर्ये वान डे आश्चर्य र ११ क्लीबे सम् मोनु थरं । पश्चात् अनेन श्च अनादौ हित्वं । द्वितीय अंत्यव्यंग स्लुक् पठा। उत्साह- अनेन त्स्यस्य बः अनादौ हित्वं ।तीयतु ११ श्रतः सेोः बाहो मत्सर- संवत्सर- अनेन त्स स्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयतु पूर्व च हरिनादौ लः इति बाहुलकात् वा लत्वं ११ अतः सेझैः मबले मबरो । संवबलो संवनरो।चिकित्सति कगचजेति कलुकू अनेनात्सस्य ः अनादौ हित्वं
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मागधी व्याकरणम्. हितीयतुपूर्व उच त्यादीनां ति चिश्व । लिप्सते जुगुप्सते अनेन त्सस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व न च त्यादीनां ति
लिब जुगुब। अप्सरा ११ अनेन प्सस्य बः अनादौ हित्वं द्वितीय ११ अंत्यव्यंग स्लुक् अबरा । उत्सारित- अनुत्साहोत्सन्नेत्सछे उऊ कगटडेति बबुक् कगचजेति त्लुक् ११ अतः से?ः उसारि । निश्चल- कगटडेति सबुक् अनादौ हित्वं ११ अतः सेझैः निश्चलो। तथ्य- ११ आर्षत्वात् थ्यस्य च अनादौ हित्वं क्लीबे सम् मोनु तच्यं ॥१॥ टीका भाषांतर. इस्वथी पर एवा थ्यश्च त्सप्स एअरोनो छ थाय. अने निश्चल शब्दने न थाय.सं. पथ्य तेने चालतासूत्रे थ्यनो छ थाय. पठी अनादौ द्वितीय पूर्व क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पच्छं रूप थाय. सं. पथ्या तेने चालता सूत्रे थ्यनो छ थाय. पठी अनादौ० द्वितीयपूर्व अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी पच्छा रूप श्राय. सं. मिथ्या तेने चालता सूत्रथी थ्यनो छ थाय. अनादौ० दितीयपूर्व अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मिच्छा रूप थाय. सं. पश्चिम तेने चालता सूत्रे श्वनो छ थाय. पी अनादौ द्वितीय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पच्छिमं रूप थाय. सं. आश्चर्य तेने इवः संयोगे चालता सूत्रे श्चनो छ थाय. पगी अनादौ द्वितीयपूर्व वल्युत्कर पयंता श्चर्यरः क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी अच्छेरं रूप थाय. सं. पश्चात् तेने चालता सूत्रे श्चनो छ थाय. अनादौ द्वितीय अंत्यव्यंज ए सूत्रोथी पच्छा रूप याय. सं. उत्साह तेने चालता सूत्रे त्सनो छ थाय. अनादौ द्वितीय अतःसे?ः ए सूत्रोथी उच्छाहो रूप थाय. सं. मत्सर संवत्सर तेने चालता सूत्रे त्स नो छ थाय. अनादौ द्वितीय हरितादौलः (बाहुलकपणाथी आ सूत्रे विकटपे ल थाय.) अतःसेडोंः ए सूत्रोथी मच्छलो मच्छरो रूप थाय. तथा संवच्छलो संवच्छरो रूप थाय. सं. चिकित्सति तेने कगचज चालता सूत्रे त्सनो छ थाय. अनादौ द्वितीय त्यादीनां ए सूत्रोथी चिइच्छइ रूप थाय. सं. लिप्सते तथा जुगुप्सते तेने चालता सूत्रे प्सनो छ थाय. अनादौ द्वितीय त्यादीनां ए सूत्रोथी लिच्छइ जुगुच्छइ एवां रूप थाय. सं. अप्सरा तेने चालता सूत्रे प्सनो छ थाय. अनादौ द्वितीय अंत्यव्यंग ए सूत्रोथी अच्छरा रूप थाय. सं. उत्सारित तेने अनुत्साहोत्सारित कगटड कगचज अतः से?ः ए सूत्रोथी ऊसारिओ रूप थाय. सं. निश्चल तेने कगट अनादौ अतः से?ः ए सूत्रोथी निश्चलो रूप पाय. सं. तथ्य तेने आप प्रयोगयी थ्यनो च थाय. पनी अनादौ क्लीवे सूम मोनु ए सूत्रोथी तच्यं रूप थायः ॥२६॥
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द्वितीयः पादः ।
सामर्थ्योत्सुकोत्सवे वा ॥ २२ ॥
एषु संयुक्तस्य वो वा जवति ॥ सामयं सामत्थं । उच ऊसु । aai ऊसवो ॥
शन्य
मूल भाषांतर. सामर्थ्य उत्सुक ने उत्सव ए शब्दोना जोडाक्षरनो विछ.सं. सामर्थ्यं तेनां सामच्छं सामत्थं एवां रूप थाय. सं. उत्सुक तेनां उच्छुओ ऊसुओ एवां रूप थाय. सं. उत्सव तेनां उच्छवो ऊसको रूप थाय. सांमर्थ्यं च उत्सुक श्च उत्सवश्च सामर्थ्योत्सुकोत्सवं तस्मिन् ७१
॥ ढुंढिका ॥
वा ११ सामर्थ्य - अनेन वा यस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयपूर्व ११ क्लीवे सम मोनु० सामन | पदे सामर्थ्य - अधोमनयां कलुक् श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय ११ कीबे सम् मोनु० सामत्थं । उत्सुक - श्रनेन वा त्सस्य बः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीये ११ कगजेति कलुक् श्रतः सेर्डो: उन्छ । पदे उत्सुक अनुत्साहोसत्सेउ ऊ कगटडेति त्लुक् कगचजेति क्लुक् ११ ऊसुने । उ. त्सव अनेन त्सस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय ११ अतः सेर्डोः aar | पदे उत्सव - अनुत्साहोत्सन्नेत्सच्छेऊ कगटडेति त्लुक् अतः सेर्डोः ऊसवो ॥ २२ ॥
टीका भाषांतर. सामर्थ्य उत्सुक असे उत्सव शब्दना जोडाक्षरनो विकल्पे छ थाय. सं. सामर्थ्य तेने चालता सूत्रे ध्यानो छ थाय पछी अनादौ द्वितीय० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सामच्छं रूप याय. पदे सं. सामर्थ्य तेने अधोमनयां अनादौ द्वितीय० क्लीवे सम् मोनु ए सूत्रोथी सामत्थं रूप याय. सं. उत्सुकतेने चालता सूत्रे त्सनो छ थाय. पठी अनादौ द्वितीय कगचज अतः सेडः ए सूत्रोथी उच्छुओ रूप याय. पदे सं. उत्सुक तेने अनुत्साहोत्सत्सेकगटड कगचज ए सूत्रोथी ऊसुओ रूप थाय. सं. उत्सव तेने चालता सूत्रे त्सनो छ था. अनादी द्वितीय अतः सेडः ए सूत्रोथी उच्छवो रूप याय. पदे सं. उत्सव तेने अनुत्साहोत्सन्ने कगदड० अतः सेर्डोः ए सूत्रोश्री ऊसवो रूप श्राय ॥ २२ ॥ स्टायाम् ॥ २३
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स्पृहाशब्दे संयुक्तस्य बो जवति । फस्यापवादः ॥ विहा ॥ बहुलाधिकारात्कचिदन्यदपि । निष्पिहो ॥
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२०६
मागधी व्याकरणम्.
मूल भाषांतर. स्पृहा शब्दना जोडाक्षरनो छ थाय. अने फनो अपवाद थाय. सं. स्पृहा तेनुं छिहा रूप याय. बहुल अधिकार बे तेथी कोइ ठेकाणे जुदी रीते पण थाय. सं. निःस्पृहः तेनुं निष्पिहो रूप थाय. ॥ २३ ॥
॥ ढुंढिका ॥
स्पृहा ७१ स्पृहा अनेन स्पृ स्थाने बः ११ अंत्यव्यं० सलुक इत्कुपादौ a fafa | निस्पृह अंत्यव्यं० सलुकू कगटडेति सलुक् इत्पादौ प्रस्थाने पि- श्रनादौ द्वित्वं ११ अतः सेडोंः निप्पिदो २३
टीका भाषांतर. स्पृहा शब्दना जोडाक्षरनो छ थाय. सं. स्पृहा तेने चालता सूत्रे स्पृनो छ थाय. पनी अंत्यव्यं इत्कृपादौ ए सूत्रोथी छिहा रूप थाय. सं. निस्पृह तेने अंत्यव्यं॰ कगटड इत्कृपादौ अनादौ अतः सेडः ए सूत्रोथी निप्पिहो रूप याय. द्य य्य-य जः ॥ २४ ॥
I
एषां संयुक्तानां जो जवति ॥ य । मऊं । श्रवतं । वेजो। जुई । जो ॥ य्य । श्रो । सेा ॥ र्य । नका । चौर्य समत्वात् जारिश्रा । करूं । वज्रं । पकाने । पत्तं । मया ॥
मूल भाषांतर. द्यय्य र्य ए जोडाक्षरोनो ज थाय यनां उदाहरण - सं. मद्यं तेनुं मज्जं थाय. सं. अवधं तेनुं अवजं थाय. सं. वैद्यः तेनुं वेज्जो थाय. सं. द्युति तेनुं जुई थाय. सं. द्योतः तेनुं जोओ थाय. सं. य्यनां उदाहरण - सं. जय्यः तेनुं जजो थाय. सं. शय्या तेनुं सेज्जा रूप याय. र्यनां उदाहरण - सं. भार्या तेनुं भज्जा थाय. भार्या शब्द चौर्यना वो बे तेथी भारिआ एवं पण रूप याय. सं. कार्य तेनुं कज्जं रूप थाय. सं. व तेनुं वज्जं रूप थाय. सं. पर्याय तेनुं पजाओ रूप थाय. सं. पर्याप्त तेनुं पज्जन्तं थाय. सं. मर्य्यादा तेनुं मज्जाया रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥
द्यश्च यश्च यश्च द्यय्यर्यः तेषां ६३ ज ११ मद्य - वा श्रवद्य - श्रनेन यस्य जः श्रनादौ द्वित्वं क्लीवे स्म मोनु० मऊं श्रवऊं वैद्य ऐत् एत् वैव नद्यज अनादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः वेको । युति ११ अन द्य ज कगटुडेति लुक् अक्की वे दीर्घः श्रत्यव्यं जुई । द्योत ११ नेन य ज कगचजेति लुक् अतः सेर्डोः जोर्ज । जय्य अनेन द्यस्य जः श्रनाद्वित्वं ११ अतः सेर्डोः जो । शय्या | अनेन य्य जः शषोः सः श स एत्शय्यादौ एवं अनेन ययस्य
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हितीयःपादः। जः श्रनादौ हित्वं अंत्यव्यंग स्लुक सेजा जार्या- ह्रस्वः संयोगे ना न बनेन र्यस्य जः अनादौ हित्वं ११ अंत्यव्यं० स्बुक जजा । पके चौर्य समत्वात् नारिया । कार्य अनेन र्यस्य जः हवः संयोगे का क अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु की । वर्य- ११ अनेन र्य जः अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु० वऊं । पर्याय- अनेन य ज अनादौ हित्वं कगचजेति यबुक् ११ अतः से?ः पजाउँ । पर्याप्त- अनेन य ज इखः संयोगे जः अनादौ हित्वं कगटडेति प्रबुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु० पङत्तं । मर्यादा- ११ श्रनेन य ज धनादौ हित्वं कगचजेति दलुक अवर्णो अंय अंत्यव्यंग स्लुक मजाया ॥२४॥ टीका भाषांतर. द्य यय र्य ए जोडादरनो ज थाय. सं. मद्य- अवद्य तेने चाखता सूत्रे द्यनो ज थाय. पठी अनादौ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मजं तथा अवज्ज रूप थाय. सं. वैद्य तेने ऐतएत् चालता सूत्रे द्य नो ज थाय. अनादौ अतः से?ः ए सूत्रोथी वेजो रूप थाय. सं. द्युति तेने चालता सूत्रे व नोज थाय. कगटड अक्लीये दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी जुई रूप थाय. सं. द्योत तेने चालता सूत्रे धनो ज थाय. कगचज अतः सेों: ए सूत्रोथी जोओ रूप थाय. सं. जय्य तेने चालता सूत्रे द्यनो ज थाय. अनादौ अतः सेझैः ए सूत्रोथी जजो रूप थाय. सं. शय्या तेने चालता सूत्रे द्यनो ज थाय. पनी शषोः सः एत्शय्यादी चालता सूत्रे य्यनो ज थाय. अनादी अंत्यव्यं० सूत्रोथी सेजा रूप थाय. सं. भार्या तेने हवः संयोगे चालता सूत्रे र्यनो ज थाय, अनादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी भन्जा रूप थाय. बीजे परे चौर्य शब्दना जेवो गई। सं. भार्या शब्दनुं भारिआ रूप थाय. सं. कार्य तेने चालता सूत्रे र्यनो ज श्रायः पनी हवः संयोगे अनादौ क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कजं रूप आय. सं. वर्ष तेने चालता सूत्रे यनो ज थाय. अनादौ क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी वजं रूप थाय. सं. पर्याय तेने चालता सूत्रे र्यनो ज थाय. अनादौ कगचज अतः सेडोंए सूत्रोधी पन्जाओ रूप थाय. सं. पर्याप्त तेने चालता सूत्रे र्यनो ज थाय. हवः संयोगे अनादौ कगटड क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी पजत्तं रूप थाय. सं. मर्यादा तेने चालता सूत्रे र्यनो ज श्राय. सं. अनादौ कगचज अवर्णो अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मजाया रूप थाय. ॥२॥
अनिमन्यौ ज-ौ वा ॥५॥ अजिमन्यौ संयुक्तस्य जो अश्च वा जवति । अहिमत । अहिमञ्जू । पदे । अहिमन्नू ॥ अनिग्रहणादिव न नवति । मन्नू ॥
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श्न्न
मागधी व्याकरणम् . मूल भाषांतर. अभिमन्यु शब्दना जोडाक्षरनो ज अने विकटपे याय. सं. आभिमन्यु तेना अहिमजू तथा अहिमञ्जू एवां रूप थाय. पदे अहिमजू एवं रूप थाय. अभिनुं ग्रहण के तेथी एकला मन्यु शब्दने न थाय. सं. मन्यु तेर्नु मन्नू एबुं रूप पाय. ॥२५॥
॥ ढुंढिका॥ अनिमन्यु ७१ जश्च श्वश्च जञ्जौ १५ वा ११ बजिमन्यु ११ खपथ जस्य हः अनेन वा न्युस्थाने जु अनादौ हित्वं द्वितीय श्रहिमत पदे अनिमन्यु- खघथ जस्य हः अनेन न्यु स्थाने झुः अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग अहिमञ्जू पदे अजिमन्यु- खघथधनां न हः अधोमनयां यदुक् ११ अनादौ हित्वं अलीबे सौ दीर्घः नू अंत्यव्यंग स्बुक् अहिमन्नू । मन्यु- अधोमनयां यबुक् अनादौ हित्वं ११ अक्लीवे दीर्घः मन्नू ॥ २५ ॥ टीका भाषांतर. अभिमन्यु शब्दना जोडाक्षरनो ज तथा अ विकटपे थाय. सं. अभिमन्यु तेने खघथ चालता सूत्रे विकटपे न्यु ने स्थाने जु थाय. पनी अनादौ द्वितीय ए सूत्रोथी अहिमजू श्राय. पदे अभिमन्यु तेने खघथ चालता सूत्रे न्यु स्थाने जू थाय. पनी अक्लीये सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी अहिम रूप श्राय. पदे अभिमन्यु तेने खघथ० अधोमनमां अनादौ अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी अहिमन्नू रूप श्राय. सं. मन्यु तेने अधोमनयां अनादौ अक्कीबे ए सूत्रोथी मन्नू रूप थाय. ॥२५॥
साध्वस-ध्य-यां छः ॥२६॥ साध्वसे संयुक्तस्य ध्यायोश्चको नवति ॥ सससं ॥ध्य । वसए । काणं । उवसा । ससा । ससं। विसो॥ ह्य । सो। मशं । गुरुं । णस ॥२६॥ मूल भाषांतर. साध्वस शब्दना जोडाझरनो अने ध्य तथा ह्य अरनो झ थाय. सं. साध्वस तेनुं सज्झसं रूप प्राय. ध्यनां उदाहरण- सं. वध्येन तेनुं वज्झ ए थाय. सं. ध्यान तेनुं झाणं थाय. सं. उपाध्याय तेनुं उवज्झाओ थाय. सं. स्वाध्यायः तेनुं सज्झाओ थाय. सं. संध्य तेनुं सज्झं थाय. सं. विंध्य तेनुं विञ्झो थाय. ह्यनां उदाहरण- सं. सह्य तेनुं सझो रूप थाय. सं. मह्य गुह्य तेनां मज्झं गुज्झं रूप थाय. सं. नाति तेनुं णज्झइ प प्राय. ॥ २६ ॥
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द्वितीयःपादः।
॥ ढुंढिका ॥ साध्वसं च ध्यश्च ह्यश्च साध्वसध्ययः तेषां ६३ क ११ साध्वस ११ ह्रस्वः संयोगे सा स अनेन ध्वस्य ऊः अनादौ हित्वं द्वितीय ऊ ज क्लीबे सम् मोनु सज्जसं.। वंध्येन अनेन ध्य ऊ वंज्जए । ध्यान- ११ अनेन ध्य ज नोणः क्लीबे सम् मोनु० जाणं । उपाध्याय- हवः संयोगे पाप अनेन ध्य ऊः पोवः अनादौ हित्वं द्वितीय ११ श्रतः सेझैः उवज्का । सं. खाध्याय सर्वत्र चुक् ह्रस्वः संयोगे सा स श्रनेन जः श्रतः सेझैः सज्जाउँ । संध्य-श्रनेन ध्य कः अनादौ हित्वं द्वितीय ११ क्लीबे सम् मोनु संज्जं । विंध्य ११ अनेन ध्य ऊ अनादौ हित्वं द्वितीय तु अतः से?ः विंशो। सं० सह्य- ११ अनेन ह्यस्य ऊः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्वकजः अतः से?ः सज्को। मह्य- गुह्य अनेन ध्य ऊ अनादौ हिवं द्वितीयपूर्व क ज क्लीबे सम् मोनु मज्जं गुज्कं । मह्यं चतुर्थ्यंत संस्कृत सिर्फ नाति । नोणः अनेन ह्यस्य ऊः अनादौ हित्वं हितीयपूर्व ऊस्य जः त्यादीनां तिणस बध्नातीत्यर्थः॥२६॥ टीका भाषांतर. साध्वस ना जोडाईरनो अने ध्य तथा ह्य नो झ थाय. सं. साध्वस तेने हवः संयोगे चालता सूत्रे व नोज थाय. पनी अनादौ द्वितीय क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोश्री सज्झसं रूप'थाय. सं. वंध्येन तेने चालता सूत्रे ध्य नो झ थाय. बाकी पूर्ववत् थइ वंज्झए रूप 'य. सं. ध्यान तेने चालता सूत्रे ध्य नो झ थाय. पली नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी झाणं रूप थाय. सं. उपाध्याय तेने इस्वः संयोगे चालता सूत्रे ध्य नो थाय. पोवः अनादी द्वितीय अतः से?ः ए सूत्रोथी उवज्झाओ रूप थाय.. स्वाध्याय तेने सर्वत्र हस्वः संयोगे चालता सूत्रे झ थाय. अतः सेोः ए सूत्रोथी सज्झाओ रूप थाय. सं. संध्य तेने चालता सूत्रे ध्य नो झ थाय. अनादौ द्वितीय क्लीबे सूम् मोनु० संज्झं रूप थाय. सं. विंध्य तेने चालता सूत्रे ध्य नो झ श्रायः अनादौ द्वितीय अतः सेोः ए सूत्रोथी विज्झो रूप थाय. सं. सह्य तेने चालता सूत्रै ह्य नो झ थाय. अनादौ० द्वितीय० अतः सेोंः ए सूत्रोथी सज्झो रूप थाय, सं. मह्य-गुह्य तेने चालता सूत्रे ध्य नो झ थाय. अनादौ द्वितीय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मज्झं गुज्झं रूप थाय. सं. मह्यं ए चतुर्थीना एक वचन- रूप संस्कृतप्रमाणे सिख थाय . सं.
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शए
मागधी व्याकरणम् . नयति तेने नोणः चालता सूत्रे ह्य नो झ थाय. पनी अनादौ० द्वितीय० त्यादीनां ए सूत्रोथी णज्झइ रूप थाय. तेनो अर्थ " बांधेछे ” एम आय . ॥ २६॥
ध्वजे वा ॥२७॥ ध्वज शब्दे संयुक्तस्य को वा नवति ॥ धर्म ॥२७॥ _ मूल भाषांतर. ध्वज शब्दना जोडाक्षरनो विकटपे झ थाय. सं. ध्वज तेनुं झओ तथा. धओ रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ ध्वज ११ वा ११ ध्वज ११ अनेन विकल्पेन ध्वस्य जः कगचजेति जबुक् अतः सेझैः ऊ । पदे ध्वज- सर्वत्र वलुक् कगचजेति जबुक् ११ अतः से?ः ध ॥ २७ ॥ टीका भाषांतर. ध्वज शब्दना जोडाक्षरनो चिकटपे झ श्राय. सं. ध्वज तेने चालता सूत्रे विकटपे ध्व नो झ थाय. पली कगचज० अतः सेों: ए सूत्रोथी झओ रूप थाय. पक्षे ध्वज तेने सर्वत्र कगचज अतः सेडोंः ए सूत्रोथी घओ रूप थाय.
इन्धौ का ॥ २ ॥ इन्धौ धातौ संयुक्तस्य जा इत्यादेशो जवति ॥समिज्जा। विज्का॥ मूल भाषांतर. इंध धातुना जोडाक्षरनें झा एवो आदेश श्राय. सं. समिन्धते तेनुं समिझाइ रूप थाय. सं. विन्धते तेनुं विझाइ रूप थाय.
॥दुहिका ॥ इंधि ७१ का ११ विश्धेप दीप्त इन्ध् सम्पूर्व ३ वर्तमाने तेलुक श्लोपः अनेन न्धस्य का अनादौ हित्वं द्वितीयतु पूर्वऊ ज व्यंजनात् लोकात् अलोपः मादीनां ति समिशाश् । यिधै दीप्तौ इंन्ध विपूर्ववत् वर्त्त बुक् श्लोपः अनेन न्धस्य का अनादौ हि द्वितीयतुपूर्व ज त्यादीनां ति ३ विज्जा ॥ २ ॥ टीका भाषांतर. इन्धि धाना जोडाक्षरने झा एवो आदेश वाय. इंन्ध धातु प्रकाशवामा प्रवर्ते, तेने सम् उपसर्ग आवे इत् नो लुक् थाय. पनी वर्त्तमाने ए सूत्रे त प्रत्यय आवे चालता सून्ध ने झा आदेश पाय. पनी अनादौ द्वितीय व्यंजनात् लोकात् त्यादीनां ए सूत्रोथी समिज्झाइ रूप पाय. सं. इन्ध धातुने वि उपसर्ग श्रावे बाकी पूर्ववत् अ आ चालता सूत्रे न्ध ने स्थाने झा आदेश थाय. पठी अनादौ द्वितीय त्यादीनां ए सूत्रोथी विज्झाइ रूप श्रायः ॥ २० ॥
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हितीयःपादः। वृत्त-प्रवृत्त-मृत्तिका-पत्तन-कदर्थिते टः ॥२॥ एषु संयुक्तस्य टो नवति ॥ वट्टो । पयहो । महिश्रा। पट्टणं । कव हि ॥ ए॥ मूल भाषांतर. वृत्त प्रवृत्त मृत्तिका पत्तन कदर्थित-ए शब्दोना जोडाक्षरनो ट थाय. सं. वृत्त तेनुं वहो थाय. सं. प्रवृत्त तेनुं पयहो थाय. सं. मृत्तिका तेनु महिआ थाय. सं. पत्तन तेनुं पट्टणं थाय. सं. कर्थित तेनुं कवहिओ थाय. ॥श्ए॥
॥टुंढिका॥ वृत्तश्च प्रवृत्तश्च मृत्तिकाच पत्तनं च कदर्थितश्च वृत्तप्रवृत्तमृत्तिका पत्तन कर्थितं तस्मिन् ७१ ट ११ वृत्त ११ इतोऽत् वृ व अनेन त्तस्य ट अनादौ हित्वं श्रतः सेोः वट्टो । प्रवृत्त- सर्वत्र रलुक् ऋतोऽत् वृ व अनेन तस्य टः श्रनादौ हित्वं नोणः ११ श्रतः सेझैः पयहो । मृत्तिका इतोऽत् मृ म अनेन तस्य टः अनादौ हित्वं कगचजेति कलुक् ११ अंत्यव्यंग सलुक् महिथा। पत्तनअनेन तस्य टः अनादौ हित्वं नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु० पदृणं । कदर्थित- कर्थिते वः दस्य वः अनेन थस्य ट अनादौ द्वित्व कगचजेति तबुक् ११ श्रत, सेझैः कव हि ॥ ए॥ टीका भाषांतर. वृत्त प्रवृत्त मृत्तिका पत्तन कर्थित ए शब्दोना जोडावनो ट थाय. सं. वृत्त तेने ऋतोऽत् चालता सूत्रे त्त नो ट थाय. अनादौ अतः सेों: ए सूत्रोथी वट्टो रूप थाय. सं. प्रवृत्त तेने सर्वत्र इतोऽत् चालता सूत्रे त नोट थाय. अनादी नोणः अतः से?ः ए सूत्रोथी पयहो रूप थाय. सं. मृतिका तेने ऋतोऽत् चालता सूत्रे त्त नो ट थाय. अनादी कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी महिआ रूप श्राय. सं. पत्तन तेने चालता सूत्रं त्त नो ट थाय. अनादी नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पट्टणं रूप थाय. सं. कर्थित तेने कदर्थितेवः चालता सूत्रे थ नोट थाय. पनी अनादी कगचज मतः सेोंः ए सूत्रोथी कचदिओ रूप थाय. ॥ ए॥
तस्याधूर्तीदौ ॥ ३० ॥ तस्य टो नवति धूर्तादीन् वर्जयित्वा ॥ केवट्टो । वट्टी। जहो। पयदृश् ॥ वलं । रायवयं । नट्टई। संवहिथं ॥ अधूर्तीदा।
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मागधी व्याकरणम्. विति किम् । धुत्तो। कित्ती । वत्ता । श्रावत्तणं । निवत्तणं । पवत्तणं । संवत्तणं । थावत्त । निवत्त । निवत्त । पवत्त । संव त्त । वत्तिथा । वत्ति । कात्त । उक्कत्ति। कत्तरी । मुत्ती। मुत्तो । मुहुत्तो ॥ बहुलाधिकारात् वट्टा ॥ धूर्त । कीर्ति । वार्ता ।
आवर्तन । निवर्त्तन । प्रवर्तन । संवर्तन । आवर्तक । निवर्तक । निर्वर्त्तक । प्रवर्तक । संवर्तक । वर्तिका । वार्त्तिक । कार्तिक । उकर्तित । कर्तरी । मूर्ति । मूर्त । मुहूर्त । इत्यादि ॥ मूल भाषांतर. धूर्त विगेरे शब्दोने वर्जीने तं नो ट थाय. सं. कैवर्त तेनुं केवट्टो वाय. सं. वत्तित तेनुं वहिअ थाय. सं. जत तेनुं जट्टो आय. सं. प्रवर्तते तेनुं पयदृइ थाय. सं. वत्तुल तेनुं वट्टलं थाय. सं. राजावतक तेनुं रायवयं थाय. सं. नर्तकी तेनुं नइ श्राय. संवर्तित तेनुं संवदिअंथाय. धूत्तोदिक नेवर्जिने एम कर्दा ने तेथी सं. धूर्त तेनुं धुत्तो थाय. सं. कीर्ति तेनुं कित्ती श्राय. सं. वार्ता तेनुं वत्ता थाय. सं. आवत्तेन तेनुं आवत्तणं थाय. सं.निवर्त्तन तेनुं निवत्तणं थाय. सं. प्रवर्तन तेनुं पवत्तणं थाय. सं. संवर्तन तेनुं संवत्तणं पाय. सं. आवर्तक तेनुं आवत्तओ थाय. सं. निवर्तक तेनुं निवत्तओ थाय. सं. निर्वतक तेनुं निव्वत्तओ श्राय. सं. प्रवर्तक तेनुं पवत्तओ थाय. सं. संवर्तक तेनुं संवत्तओ श्राय. सं. वतिका तेनुं वत्तिआ थाय. सं. वार्तिक तेनुं वत्तिओ थाय. सं. कार्तिक तेनुं कत्तिओ थाय. सं. उत्कर्तित तेनुं उक्कात्तिओ थाय. सं. कर्तरी तेनुं कत्तरी थाय. सं. मूर्ति तेनुं मुत्ती श्राय. सं. मूर्त तेनु मुत्तो थाय. सं. मुहूर्त तेनुं मुहुत्तो थाय.३०
॥दुढिका ॥ त ६१ न धूर्त्तादिः अधूर्तातिः तस्मिन् ७१ कैतव ११ ऐतएत् अनेन तस्य टः थनादौ हि अतः सेोंः केवट्टो। वर्त्ति ११ अनेन तस्य टः अनादौ छिवं अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक वट्टी। जर्त्त ११ अनेन स्य टः अनादौ हित्वं अतः से?ः जद्दो वृत्तमु वर्त्तने वृत् वत्त ते प्रपूर्वः ३ व्यंजनाददंतेऽत् लोकात् कवर्णस्यार् वृ वर प्रवर्तते इति जाते अनेन तस्य टः अनादौ द्वित्वं त्यादीनां ति पवट्ट। वर्तुल ११ अनेन तस्य टः श्रनादौ द्वित्वं क्लीवे स्म् मोनु वट्टलं राजावतक- स्वराणां खरा इ. तिजा ज कगचजेति जबुक् श्रवों अ य अनेन तस्य टः श्र
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द्वितीयःपादः।
श्ए३ नादौ द्वित्वं कगचजेति कबुक् ११ अतः सेोंः रायवां । लकण विशेषः । नर्तकी- अनेन र्तस्य टः अनादौ हित्वं कगचजेति अंत्यव्यंग सबुक् न । संवर्त्तक ११ अनेन तस्य टः श्रनादौ द्वित्वं कगचजेति तबुक् क्लीबे स्म् मोनु० संवट्टिकं धुर्त हखः संयोगे धू धु सर्वत्र रखुक् ११ अतःसे?ः धुत्तो कीर्ति ११ ह्रस्वः संयोगे की कि सर्वत्र रबुक् अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् कित्ती । वार्ता- ह्रस्वः संयोगे वा व सर्वत्र रखुक् ११ अंत्यव्यं० सबुक् वत्ता । आवर्तन । निवर्त्तन- सर्वत्र रबुक् नोणः क्वीबे स्म् मोनु० श्रावत्तणं निवत्तणं । प्रवत्तन- संवर्त्तन- सर्वत्र रखुक् नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु पवत्तणं संवत्तणं । आवर्तक११ सर्वत्र रखुक् कगचजेति कलुक् अतः से?ः श्रावत्ति । निवतक- सर्वत्र रसुक् कगचजेति कलुक् ११ श्रतः से?ः निवत्त । निवर्तित सर्वत्र योरपि रयोर्लोपः कगचजेति श्रतः से?ः निवति । प्रवर्तक- सर्वत्र व्यो रपि रखुक् कगचजेति कबुक् ११ श्रतः सेझैः पवत्त । संवर्तक- सर्वत्र रबुक् कगचजेति कलुक् श्रतः सेझैः संवत्ति । वर्तिका-र्वत्र रबुक् कगचजेति कबुक् ११ अंत्यव्यं० सबुक् वत्तिा । वार्तिक- सर्वत्र रखुक् कगचजेति कबुक् ११ ह्रस्वः संयोगे अतः सेडो वत्ति । कार्तिक- पूर्ववत् कत्ति । उत्कर्त्तित- कगटडेति तबुक पर्वत्र रबुक् कगचजेति कलुक् अनादौ हित्वं क ११ श्रतः सेझैः उत्तिः । कर्तरी- सर्वत्र रबुक्- अंत्यव्यं सबुक् कत्तरी । मूर्तिः स्वः संयोगे मू मु सर्वत्र रखुक् थक्लीवे दीर्घः मुत्ती मूर्त- ह्रस्वः योगे मू मु सर्वत्र रबुक् ११ श्रतः सेझैः मुत्तो । मुहूर्त्त- ह्रस्वः सोगे हु हु सर्वत्र रखुक ११ अतः सेोंः मुहुत्तो। बहुलाधिकारात् धूर्तादौ नवति । वार्ता ह्रस्वः संयोगे वा व सर्वत्र रखुक् अनेन त्तीय टः अनादौ हित्वं ११ अंत्यव्यंग स्लुक् मुहुत्तो ॥ ३० ॥ . टीका भाषांतर. धूर्त्तादि शब्दोने वजींने तं नोट थाय. सं. कैवर्त-तेने ऐत्
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श्एव
मागधी व्याकरणम. एत् चालता सूत्रे - नो ट थाय. पजी अनादी अतासेडोः ए सूत्रोथी केवट्टो रूप थाय. सं. वर्ति तेने चालता सूत्रे - नो ट थाय. पनी अनादौ अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वही रूप थाय. सं. जत तेने चालता सूत्रे तं नोट थाय. पजी अनादौ अतः से?: ए सूत्रोथी जद्दो रूप थाय. वृत् धातु वर्त्तवामां प्रवर्ते तेने प्र उपसर्ग पूर्वे श्रावी ते प्रत्यय लागी व्यंजनादंतेऽत् लोकात् ऋवर्णस्यार ए सूत्रोथी प्रवर्त्तते एवं रूप वाय. पनी तेने चालता सूत्रे तं नोट थाय. अनादौ त्यादीनां ए सूत्रोथी पवदृइ रूप थाय. सं. वर्तुल तेने चालता सूत्रे तं नो ट थाय. पजी अनादी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वद्दलं रूप थाय. सं. राजावतक तेने खराणां खरा ए सूत्रे जा नो ज थाय. कगचज अवर्णों चालता सूत्रे ते नोट थाय. अनादौ० कगचज अतः से?: ए सूत्रोथी रायवओ रूप थाय. राजावत नो अर्थ एक जातनुं शारीरिक लक्षण थाय. जे. सं. नर्तकी तेने चालता सूत्रे त्तै नो ट आय. अनादी कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोश्री नई रूप थाय. सं. संवर्तक तेने चालता सूत्रे तं नो ट बाय. अनादौ कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोधी संवद्दि रूप थाय. सं. धूर्त तेने ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र अतः सेटः ए सूत्रोथी धुत्तो रूप थाय. सं. कीर्ति तेने ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी कित्ती रूप थाय. सं. वार्त्ता तेने हस्वः संयोगे सर्वत्र अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वत्ता रूप थाय. सं. आवर्तन निवर्त्तन तेने सर्वत्र नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री आवत्तणं निवत्तणं रूप थाय. सं. प्रवर्तन संवर्तन तेने सर्वत्र० नोण क्ली सम् मोनु० ए सूत्रोथी पचत्तणं संवत्तणं रूप थाय. सं. आवर्तक तेनेः सर्वत्र कगचज अतः सेडोंः ए सूत्रोथी आवत्तिओ रूप श्राय. सं. निवर्तक तेने सर्वत्र कगचज अतः सेडोंः ए सूत्रोथ निवत्तओ रूप थाय. सं. निवर्तित तेने सर्वत्र ए सूत्रे र अपे य बनेनो लोप पाय. पनी कगचज अतः सेोः ए सूत्रोथी निवत्तिओ रूप याय. सं. प्रवर्तक तेने सर्वत्र ए सूत्रे र तथा यनो लोप थाय कगचज अतः सेडोंः ए सूत्रोथी पत्तिओ रूप थाय. सं. संवर्तक तेने सर्वत्र कगचज अतः सेडोंः ए सूत्रोथी संपत्तिओ रूप थाय. सं. वर्तिका तेने सर्वत्र कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वत्तिआ रूप थाय. सं. वार्तिक तेने सर्वत्र कगचज म्हस्वः संयोगे अतः से? ए सूत्रोथी वत्तिओ रूप श्राय. सं. कार्तिक तेने पूर्ववत् कत्तिओ रूप थाय. सं. किर्तित तेने कगटड सर्वत्र कगचज अनादी अतः सेों: ए सूत्रोथी उक्क त्तओ रूप थाय. सं. कर्तरी तेने सर्वत्र अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी कत्तरी रूप थाय. सं. मूर्ति तेने इस्वः संयोगे सर्वत्र अक्लीबे दीर्घः ए सूत्रोथी मुत्ती रूप थाय. से. मूर्त तेने इस्वः संयोगे सर्वत्र अतः सेटः ए सूत्रोथी मुत्तो रूप थाय, सं. महतं तेने इस्वः संयोगे सर्वत्र चालता सूत्रे त नोट थाय. पजी अनादौ० अंत्यव्यं० ए सूत्रोत्री मुहुत्तो रूप थाय. ॥ ३० ॥
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द्वितीयः पादः । वृन्ते टः ॥ ३१ ॥
वृन्ते संयुक्तस्य एटो जवति ॥ वेष्टं । तालवेएटं ॥
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२५
मूल भाषांतर. वृन्त शब्दना जोमादरनो ण्ट थाय. सं. घृन्त तेनुं वेण्यं रूप ग्राय. सं. तालवृन्तं तेनुं तालवेण्टं रूप थाय. ॥ ३१ ॥
॥ ढुंढिका ॥
वृन्त ७१ एट ११ वृन्त- तालवृन्त - दे दोघंते वृ वे अनेन न्त स्य एटः ११ क्लीवे सम् मोनु० वेष्टं वेतालवेष्टं ॥ ३१ ॥
टीका भाषांतर. वृन्त शब्दना न्त नो ण्ट याय. सं. वृन्त तथा तालवृन्त तेने इदेदोद्धृते ए सूत्रे वृनो वे थाय. पबी श्रा चालता सूत्रे न्त नो ष्ट श्राय. पी की स्म मोनु० ए सूत्रोथी वेण्टं तथा तालवेण्टं रूप याय. ॥ ३१ ॥
वोऽस्थि-विसंस्थुले ॥ ३२ ॥
अनयोः संयुक्तस्य वो नवति ॥ श्रट्टी । विसंकुलं ॥
मूल भाषांतर. अस्थि अने विसंस्थुल शब्दना जोडाक्षरनो ठ थाय. सं. अस्थि तेनुं अट्ठी थाय. सं. विसंस्थुलं तेनुं विसंकुलं थाय. ॥ ३२ ॥
॥ ढुंढिका ॥
११ संस्थूलं च अस्थि विसंस्थुलं तस्मिन् 32 अस्थि ११ नेन स्थिवि नाही द्वित्वं द्वितीय पूर्व तस्य टः नमदाम शिरोननः इति पुंस्त्वं श्रक्वीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं ० . सलुक् छी । विसंस्थुल - अनेन स्थस्य वः ११ क्लीबे सम्
मोनु० विसंकुलं ॥ ३२ ॥
टीका भाषांतर. अस्थि विसंस्थुल शब्दना जोमाक्षरनो ठ थाय. सं. अस्थि तेने आ चालता सूत्रे स्थिनो ठि थाय. प अनादौ द्वितीय लमदामशिरोनभः ए सूत्रे पुंलिंग पणुं याय. पबी अक्लीबे सो दीर्घः अंत्यव्यं ० ए सूत्रोथी अट्ठी रूप थाय. सं. विसंस्थुल तेने चालता सूत्रे स्थानो ठ थाय. पबी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी विसंकुलं रूप श्राय ॥ ३२ ॥
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स्त्यान-चतुर्थार्थे वा ॥ ३३ ॥
एषु संयुक्तस्थ वो वा जवति ॥ ठीणं श्रीणं । चट्टो । अट्टो प्रयोजनं । त्यो धनम् ॥
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श्ए६
मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. स्त्यान चतुर्थ अर्थ ए शब्दोना जोमादरनो विकटपे ठ पाय. सं. स्त्यानं तेना ठीणं थीणं एवां रूप थाय. सं. चतुर्थः तेनुं चउट्ठो रूप थाय. सं. अर्थ तेनो अर्थ जो प्रयोजन अर्थ थाय तो अट्ठो रूप थाय. अने जो धन अर्थ थाय तो अत्थो रूप थाय.॥ ३३ ॥
॥ ढुंढिका ॥ स्त्यानं च चतुर्थं च अर्थश्च स्त्यान चतुर्थार्थ तस्मिन् ७१ वा ११ स्त्यान ईस्त्यान खल्वाटे स्त्यी अनेन वा स्त्यी ती नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु ठीणं पदे श्रीणं चतुर्थ- कगचजेति तुबुक् अनेन वा थस्यवः अनादौ हित्वं द्वितीय ११ श्रतःसे?ःचजहो।पदे चतुर्थः कगचजेति त्बुक् धनादौ हित्वं द्वितीयतुपूर्वः ११ श्रतः सेोः चउत्थो । अर्थः ११ अनेन वा थस्य ः अनादौ हित्वं हितीय तुपूर्वथ उ ११ श्रतः सेझैः अहो । पदे अर्थः सर्वत्र रखुक् श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय तुपूर्वथतः ११ श्रतः सेझैः श्रत्यो अत्र श्रर्थ शब्देन प्रयोजनं यदा धनमुच्यते तदा गे न स्यात् अर्थः सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं द्वितीय तु थस्य त ११ अतः से?ः अत्थो ॥३३॥ टीका भाषांतर. स्त्यान चतुर्थ अ ए शब्दोना जोमानो विकटपे ठ श्राय. सं. स्त्यान तेने ईस्त्यानखल्वाटे ए सूत्रथी ई पाय. पनी चालता सूत्रे स्त्यी नो ठी थाय. पी नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी ठीणं रूप थाय. पदे श्रीणं रूप पाय. सं. चतुथं तेने कगचज चालता सूत्रे विकटपेय नो ठ थाय. अनादौ द्वितीय अतः सेडों: ए सूत्रोथी चउडो रूप धाय. पक्ष चतुर्थ तेने कगचज अनादौ द्वितीय अतः सेडों: ए सूत्रोथी चउत्थो थाय. सं. अतेने चालता सूत्रथी विकटपे थ नो ठ वाय. पनी अनादौ द्वितीय. अतः सेः ए सूत्रोथी अट्ठो रूप थाय. पदे सं. अर्थ तेने सर्वत्र अनादौ द्वितीयपूर्वतः सेडोंः ए सूत्रोथी अत्थो रूप थाय. अहिं अर्थ नो अर्थ प्रयोजन . ज्यारे तेन अर्थ धन श्राय त्यारे त्यां ठ न थाय. ते. रूप सवत्र अनादौ द्वितीय० अतः सेड़ी ए सूत्रोथी अत्थो एवं सिद्ध श्राय . ॥ ३३ ॥
ष्टस्यानुष्ट्रे ष्टा संदृष्टे ॥ ३४॥ जष्ट्रादिवर्जिते ष्टस्य गे जवति ॥ लही । मुट्ठी। दिट्टी। सिट्टी।
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श्ए
प
द्वितीयःपादः। पुट्ठो। कटं । सुरठा । इहो । अणिटं ॥ अनुष्टेष्ट्रष्टासंदष्ट इति किम् । उहो । इहा । चुम व । संदहो ॥ मूल भाषांतर. उष्ट्रादि शब्दोने वर्जिने ष्ट नो ठ थाय. सं. यष्टि तेनुं लट्ठी आय. सं. मुष्टि तेनुं मुट्ठी थाय. सं.दिष्टि तेनुं दिट्ठी थाय. सं. सृष्टि तेनु सिट्टि थाय. सं. पुष्ट तेनुं पुट्ठो थाय. सं. कष्ट तेनुं कहें थाय. सं. सुराष्ट्रा तेनुं सुरहा थाय. सं. इष्ट तेनुं इहो थाय. सं. अनिष्ट तेनुं अणिठं थाय. मूलमा उष्ट्र इष्टा संदष्ट ए शब्दोने वर्जिने एम कडं बे, तेथी सं. उष्ट्रः तेनुं उट्ठो थाय. सं. इष्टाचूर्णइव तेनुं इट्ठाधुण्ण व थाय. सं. संदष्ट तेनुं संघो थाय. ॥ ३४॥
॥ढुंढिका ॥ ष्ट ६१ जष्टश्च इष्टा च संदृष्टश्च उष्टेष्टासंदष्टं न उष्टेष्टासंदृष्टं श्रनुष्टेष्टासंदृष्टं तस्मिन् ७१ यष्टि- ११ यष्टयांलः यस्य लः अनेन टस्य तः श्रनादौ हित्वं द्वितीय तु पूर्व उ टःअक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् लट्ठी । मुष्टि- ११ अनेन टस्य ः अनादौ हित्वं हितीयपूर्व उ ट अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग सलुक् मुट्ठी। दृष्टि-सृष्टि इत्कृपादौ दृ दि मृ सि अनेन टस्य ः ११ अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् दिट्टी सिट्टी पुष्ट ११ अनेन ट ट अनादौ हित्वं द्वितीय अतः से?ः पुट्टो । कष्ट ११ अनेन ट ट क्वीबे स्म मोनु० कटं । सुराष्ट्र- ह्रस्व संयोगे रा र सर्वत्र रलुक् अनेन टस्य ठः श्रनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व उ ट ११ अंत्यव्यं० स्बुक् सुरट्टा । इष्ट ११ अनेन ष्ट वः अतः सेोंः अनादौ हित्वं द्वितीय श्ट्टो । अनिष्ट- अनेन ष्टस्य वः श्रनादौ हित्वं ११ अंत्यव्यंग सलुक् अणिटं श्ष्टाचूर्ण श्व हस्वः संयोगे चू चु सर्वत्र रखुक् मिवपिव विवववविध श्वार्थे वा शत श्वस्थानेव इट्टा चुमं व । संदृष्टः कगटडेति षबुक् धनादौ हितं श्रतः सेझैः संदृट्टो॥३॥ टीका भाषांतर. उष्ट्र इष्टा संदष्ट ए शब्दोने वर्जिने टनो ठ थाय. सं. यष्ठि तेने यष्टयां लः चालता सूत्रे ष्टनो ठ श्राय. अनादौ द्वितीय० अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोधी लट्ठी रूप आय. सं. मुष्टि तेने चालता सूत्रे टनो ठ थाय.
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मागधी व्याकरणम्. अनादौ द्वितीय० अक्लीबे सौ० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मुट्ठी रूप थाय. सं. दृष्टि तथा सृष्टि तेने इत्कृपादौ चालता सूत्रे ष्टनो ठ थाय. पठी अक्लीवे सौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी दिट्ठी सिट्ठी रूप थाय. सं. पुष्ट तेने चालता सूत्रे ष्ठनोट थाय. पठी अनादौ द्वितीय० अतः सेोंः ए सूत्रोथी पुट्ठो रूप थाय. सं. कष्ट तेने चालता सूत्रे ष्ट नोट थाय. पनी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कह रूप थाय. सं. सुराष्ट्रा तेने ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र चालता सूत्रे ष्टनो ठ थाय. पनी अनादौ द्वितीय० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मुरहा रूप थाय. सं. इष्ट तेने चालता सूत्रथी ष्ट नोट थाय. पनी अतः सेोः अनादौ वितीय ए सूत्रोथी इहो रूप थाय. सं. अनिष्ट तेने चालता सूत्रश्री ष्टनो ठ थाय. पठी अनादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी. अणिटुं रूप थाय. सं. इष्टाचूर्ण इव तेने इस्वः संयोगे सर्वत्र मिवपिव विवव्ववविअइवार्थे ए सूत्रथी इव ने स्थाने व थाय. एटले इहाचुण्णं व एवं रूप थाय. सं. संदृष्ट तेने कगटड अनादौ अतः सेोंः ए सूत्रोथी संदठो रूप थाय. ॥ ३४ ॥
गर्ने मः॥ ३५॥ गर्त शब्दे संयुक्तस्य डो जवति । टापवादः ॥ गड्डो गड्डा ॥
मूल भाषांतर. गर्त शब्दना जोमादरनो ड श्राय. अने ट नो अपवाद थाय. सं. गर्त तेनुं गड्डो रूप थाय. अने पक्ष सं. गर्त तेनुं गड्डा रूप पाय.
॥ हुँदिका ॥ गत १ ड ११ गत ११ अनेन तस्य डः अनादौ हित्वं अतः से?ः गड्डो । गर्त- अनेन तस्य डः श्रनादौ हित्वं स्वस्त्रादेर्डा शति डा प्रत्ययः अंत्यव्यंग सखोपः गड्डा ॥ ३५॥ टीका भाषांतर. गर्त शब्दना जोडाक्षरनो ड श्राय. अने ट नो अपवाद श्राय. सं. गर्त्त तेने चालता सूत्रथी र्त्तनो छाय. पठी अनादौ अतः सेटः ए सूत्रोथी गड्डो रूप थाय. सं. गतं तेने चालवा सूत्रथी र्त्तनो ड थाय. अनादौ स्वस्रादेडों अंत्यव्यं ए सूत्रोथी गड्डा रूप धार॥ ३५ ॥
संमई-वितर्दि-विचर्दि -कपर्द-मर्दिते र्दस्य ॥३६॥ एषु र्दस्य डत्वं नवति ॥ सम्मड्डो । विअड्डी । विछड्डो । उड्डी। बड्डी । कवड्डो । महिउँ । सम्माड्डी ॥ ३६ ॥ मूल भाषांतर. सम्मद वितर्दि विच्छद च्छदि कपर्द मर्दित ए शब्दोना र्दनो ड श्राय. सं. सम्मर्द तेनु सम्मड्डो थाय. सं. वितर्दि तेनुं विअड्डी थाय.
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द्वितीयःपादः।
शएए सं. विच्छर्द तेनुं विच्छड्डा थाय. सं. च्छर्दि तेनुं छड्डइ तथा छड्डी थाय. सं. कपर्द तेनुं कबड्डो थाय. सं. मर्दित तेनुं मड्डिओ थाय. सं. संमर्दित तेनुं सम्मड्डिओ थाय.
॥दंढिका ॥ सम्मर्दश्च वितर्दिश्च विछर्दश्च बर्दिश्च कपर्दश्च मर्दितश्च सम्मर्द वितर्दिविबर्दर्दिकपर्दमर्दितं तस्मिन् ७१ द ६१ सम्मर्द-अनेन दस्य डः अनादौ हित्वं ११ अतः सेझैः सम्मड्डो । वितर्दि कगचजेति त्लुक् अनेन दि डि अनादौ हित्वं ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् वितड्डी । विबर्द- अनेन र्दस्य डः श्रनादौ हित्वं ११ श्रतः सेोः विबड्डो बर्दि अनेन दस्य डः अनादौ हित्वं ११ अक्कीबे सौ दीर्घः बड़ी। कपर्द- अनेन दस्य डः अनादौ हित्वं पोवः अतः सेझैः कवड्डो । मर्दित- संमर्दित अनेन दि डि अनादौ हित्वं अतः से?ः मड्डि । समड्डि ॥ ३६ ॥ टीका भाषांतर. सम्मद वित िविच्छर्द छर्दि कपर्द मर्दित ए शब्दोना जोडाक्षर र्दनो ड थाय. सं. सम्मद तेने चालता सूत्रे दनो ड थाय. अनादौ अतः से?: ए सूत्रोथी सम्मड्डो रूप थाय. सं. वितर्दि तेने कगचज चालता सूत्रे र्दिनो डि थाय. पठी अनादौ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वितड्डी रूप थाय. सं. विच्छर्द तेने चालता सूत्रे दनो ड माय. अनादौ अतः सेोंः ए सूत्रोथी विच्छड्डो रूप थाय. सं. छर्दि तेने चालत सूत्रे दनो ड थाय. अनादौ अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी छड्डी रूप पाय. सं. कपर्द तेने चालता सूत्रे दनो ड थाय. अनादौ पोवः अतः से?: ए सूत्रोत्री कवड्डो रूप थाय. सं. मर्दित तथा संमर्दित तेने चालता सूत्रे दिनो डि थाय. अनादौ अतः सेझैः ए सूत्रोश्री मडिओ समड्डिओ रूप थाय. ॥ ३६॥
गर्दने वा ॥६॥ गर्दने द स्य डो वा जवति ॥ गड्डहो । गदहो । मूल भाषांतर. गर्दभ शब्दना दनो विकटपे थाय. सं. गर्दभ तेना गड्डहो गद्दहो रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ गर्दन ७१ वा ११ गर्दन- अनेन दस्य डः श्रनादौ हित्वं खघथ धजस्य हः श्रतः सेोः गड्डहो । पदो गर्दन- ११ सर्वत्र रखुक् खघथ अतः सेोः गदहो ॥ ३ ॥
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३००
मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. गर्दभ शब्दना दनो विकटपे ड थाय. सं. गर्दभ तेने चाखता सूत्रे र्दनो ड श्राय. अनादौ खघथ० अतः से?: ए सूत्रोथी गडहो रूप थाय. पक्ष सं. गर्दभ तेने सर्वत्र खघथ अतः से?: ए सूत्रोथी गद्दहो रूप श्राय. ॥ ३७ ॥
कन्दरिका-निन्दिपाले एडः ॥ ३० ॥ श्रनयोः संयुक्तस्य एडो नवति ॥ कण्डलिया निएिडवालो ॥ मूल भाषांतर. कन्दरिका भिन्दिपाल ए शब्दोना जोडाक्षरनो ण्ड श्राय. सं. कन्दरिका तेनुं कण्डलिआ रूप थाय. सं. भिन्दिपाल तेनु भिण्डिवालो रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ कन्दरिका च निन्दिपाल श्च कन्दरिकानिन्दिपालं तस्मिन् ७१ एड ११ कन्दरिका- अनेन न्दस्य एडः हरिसादौ लः रस्य लः कगचजेति क्लुक् ११ अंत्यव्यं सलुक् कएडलिया। निन्दिपाल अनेन न्दस्य एडः पोवः श्रतः से?ः निएिडवालो ॥ ३० ॥ टीका भाषांतर. कन्दरिका अने भिन्दिपाल शब्दना जोडाक्षरनो ण्ड थाय. सं. कन्दरिका तेने चालता सूत्रे न्दनो ण्ड थाय. पड़ी हरिद्रादौ कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी कण्डलिआ रूप थाय. सं. भिन्दिपाल तेने चालता सूत्रे न्दनो ण्ड थाय. पठी पोवः अतः सेझैः ए सूत्रोथी भिण्डिवालो रूप थायः ॥ ३० ॥
स्तब्धे हो ॥ ३॥ स्तब्धे संयुक्तयोर्यथाक्रमं उढौ नवतः ॥ हो ॥
मूल भाषांतर. स्तब्ध शब्दना बी जोमारना अनुक्रमे ठ श्रने ढ श्राय. सं. स्तब्ध तेनां ठड्डो रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ स्तब्ध ७१ वश्च ढश्च उढौ/१२ स्तब्ध- अनेन स्तस्य तः ब्धस्य च ढः अनादौ हित्वं ११/अतः से? ठहो ॥ ३५ ॥ टीका भाषांतर. स्तब्ध इदना बंने जोडाक्षरना अनुक्रमे ठ अने ढ थाय. सं. स्तब्ध तेने चालता सूत्रथी स्तमी ठ श्राय. अने धनो ढ श्राय. अनादौ अतः सेटः ए सूत्रोश्री ठड्डो रूप श्रय. ॥ ३ए॥
दग्ध-विदग्ध-हि-तुझे ढः ॥४०॥ एषु संयुक्तस्य ढो नवति ॥ दहो । विश्रहो । वुहो । वुहो ॥ क्वचिन्न नवति । विझ-कश्-निरूविथं ॥ ४० ॥
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हितीयःपादः।
३०१ मूल भाषांतर. दग्ध विदग्ध वृद्धि वृद्ध ए शब्दोना जोडाक्षरनो ढ थाय. सं. दग्ध तेनुं दड्डो रूप थाय. सं. विदग्ध तेनुं विअड्डो रूप थाय. सं. वृद्धि तेनुं बुडी रूप श्राय. सं. वृद्ध तेनुं वुड्डो रूप थाय. कोइ ठेकाणे न पण श्राय-जेम-सं. वृद्धकविनि रूपितं तेनुं विच-कश्-निरूविरं एवं रूप पाय. ॥ ४० ॥
॥ टुंढिका ॥ दग्धश्च विदग्धश्च वृद्धिश्च वृक्षश्च दग्धविदग्धवृमिवृक्षं तस्मिन् ७१ ढ ११ दग्ध- विदग्ध- अनेन ग्धस्य ढः श्रनादौ द्वित्वं अतःसे?ः दहो विश्रहो । वृद्धि- उदृत्वादौ वृ वु अनेन इस्य ढः अनादौ द्वित्वं ११ अक्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यं सबुक वुढी । वृद्ध- उदृत्वादौ वृ तु अनेन छस्य ढः अनादौहित्वं ११ श्रतःसेझैः वुहो । वृक्षक विनिरूपितः उहत्वादौ वृ वि सर्वत्ररखुक् शषोःसः पोवः कगचजेति त्लुक् ११ क्लीबेसम् मोनु विझकशनिरूविकं ॥ ४० ॥ टीका भाषांतर. दग्ध विदग्ध वृद्धि वृद्ध ए शब्दोना जोडाक्षरनो ढ थाय. सं. दग्ध- विदग्ध- तेने आलता सूत्रे ग्ध नो ढ थाय. अनादौ० अतःसे?ः ए सूत्रोथी दड्डो विअटो एवां रूप थाय. सं. वृद्धि तेने उदृत्वादी आलता सूत्रे ईनो ढ वाय. पनी अनादौ० अक्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यं०ए सूत्रोथी वुड्डी रूप थाय सं. वृद्ध तेने उदृत्वादौ आलतासूत्रे इनो ढ थाय. अनादौ० अतःसेोंः ए सूत्रोथी बुड्डो रूप थाय. सं. वृद्धकविनिरूपितः तेने इत्कृपादौ सर्वत्रन शषोःसः पोवः कगचज० क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी विडकइनिरुपिअं एवं रूप थाय. ॥५०॥
श्रददि-मूर्धार्धेन्ते वा ॥४॥ ऐषु अंते वर्तमानस्य संयुक्तस्य ढोवा, नवति ॥ सहा सझा । कही रिकी । मुएढा मुछा । श्रहं अछ
मूल भाषांतर. श्रद्धा ऋद्धि मूर्धा अर्ध ए शब्दोमा रहेला जोडादरनो विकटपे ढ थाय. सं श्रद्धा तेनुं सड्डा सहा एवां रूप थाय. सौद्धि तेनां कड्डी रिडी रूप थाय. सं. मूर्धा तेनां मुढा मुडा एवां रूप थाय. सं अर्द्ध तेना अड्ढे अद्धं एवां रूप पाय. ॥३१॥
॥ढुंढिका ॥ श्रद्धा च झकिश्च मूळ च अर्ड च श्रद्धमूर्डि तस्मिन् ७१ अन्त ७१ वा ११ श्रद्धा- सर्वत्ररलुक् शपोःसः श सः अनेन वा
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३०२
मागधी व्याकरणम्. कस्य ढ श्रनादौहित्वं ११ अंत्यव्यंग स्बुक् सहा पदे श्रद्धा-स र्वत्ररत्लुक् शषोःसः ११ अंत्यव्यं त्बुक् सझा झछि- ११ इत्कृपा दौ अनेन झस्य ढः अनादौहित्वं अक्लीबेसौदीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् रिडी पदे कि रिःकेवलस्य करि ११ अक्लीवेदीर्घः अं त्यव्यं. सबुक् रिद्धी । मूर्धन्- ह्रस्वःसंयोगे मूमु वक्रादावंतः श्र नुस्वारः अनेन इस्य ढः सर्वत्र रबुक् पुंस्यन आणोराज्वच्च इति श्रात्वं अंत्यव्यं. न्बुक् ११ अंत्यव्यं सूलुक् मुटा पके मून् ह्र स्वःसंयोगे सर्वत्र पुंस्यनाणो अंत्यव्यं. लुक् मुझा । अर्धसर्वत्र रबुक् अनेन छस्यढः श्रनादौहित्वं ११ अक्लीबेस्म् मोनु श्रहं । पके अई ११ सर्वत्ररबुक् क्लीवेसम् मोनु० अकं ॥१॥ टीका भाषांतर. श्रद्धा ऋद्धि मूर्धा अर्ध ए शब्दोमा रहेला जोडाक्षरनो विकटपेढ थाय. सं.श्रहातेने सर्वत्र शषोःसःचालतासूत्रे विकल्प छनो ढ श्राय. अनादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सड्डा रूप थाय. पदे सं.श्रद्धा तेने सर्वत्र शषोःसःअंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सद्धा रूप थाय. सं. रुद्धि तेने इत्कृपादौ आलतासूत्रे हनो ढ थाय. अनादी अक्लीबेसौ० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी रिडी रूप थाय. पदे ऋद्धि तेने रिकेवलस्य अक्लीवेदीर्घ अंत्य:व्यं० ए सूत्रोथी रिडी रूप थाय. सं. मूर्द्धन् तेने हस्वः संयोगे वक्रादावंतः चालतासूत्रे हनो ढ थाय. सर्वत्र पुंस्थनआषीराज्वच्च अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मुडा रूप थाय. पदे मूर्छन् तेने हस्वःसंयोगे सर्वत्र पुंस्यनआणो अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मुद्धा रूप आय. सं अई तेने सर्वत्र चालतासूत्रे हुनो ढ थाय. अनादौ अक्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी अर्यु रुप थाय. बीजे पदे सं. अर्ड तेने सर्वत्र क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी अहं रूप श्रायः॥४१॥
नझोर्णः ॥४२॥ अनयोों जवति ॥ म्न । निएणं । पङ्गुणो ॥ । णाणं । सरणा पएणा विएणाणं ॥ मूल भाषांतर. म्न अने नो ण थाय. ननां उदाहरण-सं निम्न तेनुं निणं वाय.सं. प्रद्युम्न तेनुं पज्जुणो थ य. हवे ज्ञना उदा-सं ज्ञानं तेनुं गाणं थाय.सं. संज्ञा तेनुं सण्णा आय.सं. प्रज्ञा तेनुं पण्णा थाय. सं. विज्ञानं तेनुं विण्णाणं श्राय.॥
॥ढुंढिका॥ म्नश्च ज्ञश्च नझौ तयोः ७२ ण ११ निम्न- ११ अनेन नस्य णः
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३०३
द्वितीयःपादः। अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु निमं । प्रद्युम्न- सर्वत्र रखुक् द्यय्यर्यां जः द्य जः अनादौ हित्वं अनेन न णः श्रनादौ हित्वं ११ अतःसे?ःपझुणो। संझा-अनेन झाणा पुंस्यनाणोराजवच्च इति थात्वं अंत्यव्यं० सलुक् संसा । प्रज्ञा- सर्वत्र रबुक् अनेन । अनादौ द्वित्वं ११ अंत्यव्यंग सबुक् पला । विज्ञान- अनेन ण थनादौ हित्वं नोणः क्लीबे सम् मोनु विमाणं ॥ ४२ ॥ टीका भाषांतर. म्न अने ज्ञ नो ण श्राय. सं. निम्न तेने चालता सूत्रे न नो ण थाय. अनादौ क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी निण्णं थाय. सं. प्रद्युम्न तेने सर्वत्र यय्यांजः अनादौ चालता सूत्रे न नो ण थाय. अनादौ अतः सेझैः पुंस्यन आणो ए सूत्रोथी पज्जूणो रूप थाय. सं. संज्ञा तेने चालता सूत्रे ज्ञा नो णा थाय. पनी राजवच्च ए सूत्रे आ थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रे सण्णा रूप थाय. सं. प्रज्ञा तेने सर्वत्र तेने चालता सूत्रे न नो ण थाय. पनी अनादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पण्णा रूप थाय. सं. विज्ञान तेने चालता सूत्रे ण थाय. अनादौ नोणः क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी विण्णाणं रूप थाय. ॥४॥
पंचाशत्पंचदश-दत्ते ॥४३॥ एषु संयुक्तस्य णो नवति ॥ पलासा । पसरह । दिलं ॥
मूल भाषांतर. पंचाशत् पंचदश दत्त ए शब्दोना जोडाक्षरनो ण थाय. सं. पंचाशत् तेनुं पण्णासा थाय. सं. पंचदा तेनुं पण्णरह रूप थाय. सं. दत्त तेनुं दिण्णं रूप थाय.॥४२॥
॥ढुंढिका॥ पंचाशत् च पंचदश च दत्तं च पंचाशत्पंचदशदत्तं तस्मिन् ७१ पंचाशत्- अनेन चस्य णत्वं श्रनादौ हित्वं शषोः सः स्त्रियामादविद्युतः था अंत्यव्यं० सबुक् पलासा पंचदश- अनेन चस्य णः अनादौ हित्वं संख्या गद्गदेरः दस्य रः सपाषाणे हः शस्य हः १३ जस्शसो क् पसरह । दत्त ः स्वप्नादौ इदि अने त्तस्य णः अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु० दिसं ॥३॥ टीका भाषांतर. पञ्चाशत् पञ्चदश दत्त ए शब्दोना जोडादरनो ण थाय. सं. पञ्चाशत् तेने चालता सूत्रथी ञ्च नो ण थाय. पनी अनादौ शषोः सः स्त्रियामा दविद्युतः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी पण्णासा रूप थाय. सं. पंचदश तेने चालता
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३०४
मागधी व्याकरणम्.
सूत्री ञ्च नो ण थाय पी अनादौ संख्यागद्गदेर: दस पाषाणे हः जस्शसोर्लक् ए सूत्रोथी पण्णरह रूप थाय. सं. दत्त तेने इः खमादौ चालता सूत्रे उत नो ण थाय. अनादौ ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी दिण्णं रूप थाय ॥ ४३ ॥ मन्यौ न्तो वा ॥ ४४ ॥
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मन्युशब्दे संयुक्तस्य न्तो वा जवति ॥ मन्तू मन्नू ॥ मूल भाषांतर. मन्यु शब्दना जोडाक्षरनो विकल्पे न्त थाय. मन्तू मन्नू एवां रूप थाय.
सं. मन्यु
॥ ढुंढिका ॥
मन्यु ७१ त ११ वा ११ मन्यु- अनेन न्यस्य न्तः ११ क्कीबे सम दीर्घः न्तु तू अंत्यव्यं० सलोपः मन्तू पदे मन्यु अधोमनयां चलोपः श्रनादौ द्वित्वं त्रु ११ अक्की वे दीर्घः न्नू नू अंत्यव्यं० सलोपः ः मन्नू सिद्धं ॥ ४४ ॥
टीका भाषांतर. मन्यु शब्दना जोडाक्षरनो न्त विकल्पे थाय. सं. मन्यु-ते -तेने चालता सूत्रे न्य नो न्त श्राय क्लीबे सम् दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी मन्तू रूप आय. पदे मन्युतेने अधोमनयां अनादौ० अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं ए सूत्रोथी मन्नू रूप सिद्ध थाय ॥ ४४ ॥
स्तस्य थोऽसमस्त स्तम्बे ॥ ४५ ॥
समस्तस्तम्बवर्जिते स्तस्य यो नवति ॥ इत्थो । थुई । थोत्तं । थो पत्थरो | पत्थो । प्रत्थि । संत्थि ॥ समस्त स्तम्ब इति किम् | समत्तो | तम्बो ॥
•
मूल भाषांतर. समस्त ने स्तम्ब शब्दे तेनुं हत्थो थाय. सं. स्तुति तेनुं थुई याय. सं. तेनुं थोअं थाय. सं. प्रस्तर अस्ति तेनुं अस्थि थाय. सं. वर्जिने म क बे तेथी. सं
ते
तेना
वर्जित एवां स्त नो थ याय. सं. हस्त स्तोत्रं तेनुं थोत्तं थाय. सं. स्तोक पत्थरो थाय. सं. प्रशस्त तेनुं पसत्थो थाय. सं. स्वस्ति तेनुं सत्थि याय. मूलमां समस्त ने स्तंब समस्त तेनुं समत्तो थाय. सं. स्तंब तेनुं तम्बो थाय. ॥ ढुंढिका ॥
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स्त ६१ य ११ समस्तश्व स्तंबश्च समस्तस्तंबं न समस्तंबं सम स्तस्तंबं तस्मिन् ७१ हस्त- अनेम स्तस्य यः श्रनादौ द्वित्वं
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द्वितीयःपादः।
३०५ द्वितीयतुपूर्व थस्य तः ११ अतः सेझैः इत्यो। स्तुति-श्रनेन स्तस्य थः कगचजेति त्लुक ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक् थुई स्तोत्रं थनेन स्तस्य थः सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीवे सम् मोनु थोत्तं । स्तोक- अनेन स्त थ कगचजेति बुक् ११ क्लीवे स्म् मोनु थोरं । प्रस्तर- सर्वत्र लुक् अनेन स्तस्य थः अनादौ हित्वं द्वितीयतु पूर्वथतः ११ श्रतः सेझैः पत्थरो । प्रशस्त- सर्वत्र रलुक् शषोः सः अनेन स्तस्य थः अनादौ हितीयतु पूर्व थ तः ११ अतः सेझैः पसत्थो । अस्ति- अनेन स्तस्य थः श्रनादौ हित्वं द्वितीयतु पूर्वथतः अस्थि । खस्ति- सर्वत्र स्लुक् अनेन स्तस्य थः अनादौ हित्वं हितीय पूर्व थ तः ११ अव्यय सबुक् सत्थि समस्त- कगचजेति सबुक् अनादौ हित्वं द्वितीय ११ अतः सेझैः समत्तो । एवं स्तंबस्य तम्बो ॥ ४५ ॥ टीका भाषांतर. समस्त अने स्तंय शब्दने वर्जीने स्तनो थ थाय. सं. हस्त तेनुं हत्थो थाय. सं. स्तुति तेने चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. कगचज अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी थुई रूप श्राय. सं. स्तोत्र तेने चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. सर्वत्र अनादी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी थोत्तं रूप थाय. सं. स्तोक तेने चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी थो रूप थाय. सं. प्रस्तर तेने सर्वत्र चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. अनादौ० द्वितीय पूर्व थतः अतः सेोंः ए सूत्रोथी पत्थरो रूप थाय. सं. प्रशस्त तेने सर्वत्र शषोः सः चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व अतः से?: ए सूत्रोथी पसत्थो रूप थाय. सं. अस्ति तेने चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व० ए सूत्रोथी अस्थि रूप श्राय. सं. खस्ति तेने सर्वत्र चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. अनादौ द्वितीयपूर्व अव्यय० ए सूत्रोथी सत्थि रूप थाय. सं. समस्त तेने कगचज अनादौ द्वितीय० अतः सेडोंः ए सूत्रोथी समत्तो रूप थाय. एवीरीते सं. स्तंब तेनुं तम्बो श्राय.॥ ४५ ॥
स्तवे वा ॥४६॥ स्तव शब्दे स्तस्य थो वा नवति ॥ थवो तवो ॥ मूल भाषांतर. स्तव शब्दना स्तनो विकटपे थ थाय. सं. स्तव तेनां थवो तवो एवां रूप थाय. ॥४६॥
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३०६
मागधी व्याकरणम्.
॥ढुंढिका॥ स्तव ७१ वा ११ स्तव अनेन श्रः कगटडेति सलुक् ११ श्रतः से?ः थवो पदे तवो ॥ टीका भाषांतर. स्तव शब्दना स्तनो विकटपे थ थाय. सं. स्तव तेने चालता सूत्रे थ थाय. कगटड अतः सेोंः ए सूत्रोधी थवो रूप थाय. पदे तवो एवं रूप थाय.
पर्यस्ते थटौ ॥ ४ ॥ पर्यस्ते स्तस्य पर्यायेण थटो जवतः ॥ पल्लत्यो पलहो ॥ मूल भाषांतर. पर्यस्तना स्तना अनुक्रमे थ तथा ट थाय. सं. पर्यस्त तेनां पल्लत्थो पल्लट्टो एवां रूप श्राय.
॥ढुंढिका॥ पर्यस्त ७१ थश्च टश्च थटौ १५ पर्यस्त-पर्यायसौकुमार्ये णसः इति यस्य सः अनेन स्तस्य थः श्रनादौ हित्वं । द्वितीय ११ अतः सेोः पल्लत्थो । पर्यस्त पर्यस्तपर्यायेणेति यस्य सः अनेन स्तस्य थः श्रनादौ हित्वं श्रतः सेझैः पबहो ॥ ४ ॥ टीका भाषांतर. पर्यस्त शब्दना स्तना अनुक्रमे थ तथा टाय. सं. पर्यस्त तेने पर्यस्तपर्यायसौकुमार्येणल्लः ए सूत्रे ये नो ल्ल थाय. तेने चालता सूत्रे स्तनो थ वाय. पजी अनादौ द्वितीय अंतः सेोः ए सूत्रोयी पल्लत्थो रूप थाय. पदे सं. पर्यस्त तेनेपर्यस्लपर्यायेण ए सूत्रे य नो ल वाय. चालता सूत्रे स्तनो थ थाय. अनादौ अतः सेडोंः ए सूत्रोथी पल्लहो रूप थाय. ॥४॥
वोत्साहे थो हश्च रः ॥ ७ ॥ उत्साह शब्दे संयुक्तस्य थो वा नवति तत्संनियोगे च हस्य रः ॥ उत्थारो जन्बाहो ॥४॥ मूल भाषांतर. उत्साह शब्दना जोमाझरनो विकटपे थ थाय. अने तेने योगे हनो र श्राय. सं. उत्साह तेनुं उत्थारो तथा उच्छाहो रूप पाय.
॥ढुंढिका॥ वा ११ उत्साह ७१ या २१ ह ६१ र ११ सं. उत्साह- अनेन वा सस्य थः हस्य च रः ११ अतः सेोंः उत्थारो । पद उत्साहः ह्रस्वात्थ्यश्च० स्सस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व० ११ अतः सेझैः उछाहो ॥ ४ ॥
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द्वितीयः पादः ।
३०
टीका भाषांतर. उत्साह शब्दना जोडाक्षरनो विकल्पे थ थाय. अने तेने योगे हनो र थाय. सं. उत्साह तेने चालता सूत्रे विकल्पे त्स नो थ थाय ने हनो र थाय. सं. उत्साह तेने चालता सूत्रे त्सनो थ याय. अने हनो र थाय. पनी अतः सेर्डोः ए सूत्री उत्थारो रूप याय. पके उत्साह तेने हवात्थ्यश्च० ए सूत्रे त्सनो छ थाय. अनादौ द्वितीय० अतः सेर्डीः ए सूत्रोथी उच्छाहो रूप थाय. आश्लिष्टे ल-धौ ॥ ४
॥
आश्लिष्टे संयुक्तयोर्यथासंख्यं ल ध इत्येतौ भवतः ॥ श्रद्धिो ॥ मूल भाषांतर. आश्लिष्ट शब्दना बने जोडाक्षरना ल अने ध एवा आदेश थाय. सं. आश्लिष्ट तेनुं आलिडो रूप थाय ॥ ४५ ॥
॥ ढुंढिका ॥
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आश्लिष्ट ११ लश्च धश्च लधौ १२ श्राश्लिष्ट अनेन श्लि लिष्टस्य धः अनयोर्द्वत्वं द्वितीय पूर्व ध दः ११ अतः सेर्डोः श्रालिको ||४||
टीका भाषांतर. आश्लिष्ट शब्दना बने जोडाक्षरना ल ने ध थाय. सं. आश्लिष्टतेने चालता सूत्रे लिनोलि याय ने नोध थाय. पबी बनेने विर्भाव श्राय. द्वितीय अतः सेडः ए सूत्रोथी आलिडो रूप थाय ॥ ४९ ॥ चिहे न्धो वा ॥ ५० ॥
एहापवादः ॥ पक्षे सोऽपि ॥
चिन्हे संयुक्तस्यन्धो वा जवति
चिन्धं इन्धं चिहं ॥ ५० ॥
मूल भाषांतर चिह्न शब्दना जोडाक्षरनो विकल्पे न्ध थाय. छाने पहनो अपवाद थाय. बीजे पदे ण्ह पण याय. सं. चिह्न तेनां चिन्धं इन्धं चिन्हं एवां रूप याय. ५० ॥ ढुंढिका ॥
I
चिह्न ७१ न्ध १९ वा ११ चिह्न अनेन वा न्ध श्रादेशः ११ क्लीबे सम् मोनु० चिन्धं । पदे चिह्न प्रायोग्रहणात् कगचजेति थादेरपि चलुक् श्रनेत ह्रस्य न्धः ११ क्लीवे सम् इन्धं । पदे चिह्न सूक्ष्मश्नष्णस्नह्नण्णां एहः हस्य एहः ११ क्लोवे सम् मोनु० चिएडं
टीका भाषांतर. चिह्न शब्दना जोडाक्षरनो विकल्पे न्ध थाय. सं. चिह्न तेने चालता सूत्रथी विकल्पे न्ध आदेश थाय. क्लीचे सम मोनु० ए सूत्रोथी चिन्धं रूप याय. पत्रे चिह्न तेने प्राये करीने एम कह्युं छे. तेथी कगचज ए सूत्रे आदि च
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३००
मागधी व्याकरणम्. नो लुक् थाय. पठी चालता सूत्रे ह्रनो न्ध थाय. क्वीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी इन्धं रूप थाय. पदे सं. चिह्न तेने सूक्ष्मश्नष्ण० ए सूत्रे ह्रनो ग्रह थाय. पनी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चिण्हं रूप थाय. ॥ ५० ॥
नस्मात्मनोः पो वा ॥५॥ अनयोः संयुक्तस्य पो वा जवति ॥ नप्पो नस्सो । श्रप्पा श्रप्पाणो । पदे अत्ता ॥ मूल भाषांतर. भस्मन् अने आत्मन्ना जोडाक्षरनो विकल्पे प थाय. सं. भस्मन् तेनां भप्पो तथा भस्सो थाय. सं. आत्मा तेनां अप्पा अप्पाणो रूप थाय. पक्ष सं. आत्मा तेनुं अत्ता एवं रूप पण थाय. ॥ ११ ॥
॥ढुंढिका ॥ नस्म च श्रात्मा च जस्मात्मानौ तयोः ७२ प ११ वा ११ नस्मन् अंत्यव्यंज नलोपः अनेन च स्मस्य पः अनादौ हित्वं स्रगदामशिरोननः इति पुंस्त्वं । ११ अतः सेडोंः नप्पो पदे जस्मन् अंत्यव्यंग न्बुक् अधोमनयां मलोपः श्रनादौ हित्वं श्रतः सेझैः नस्सो । आत्मन् हवः संयोगे था अ अनेन वा त्मस्य पः श्रनादौ हित्वं पुंस्यनाणोराज्वच्चेत्य निर्देशः अन्यत्र कथिते अन्यत्र ज्ञापिते स इति निर्देशात् राइ इति न् था ११ अंत्यव्यंजा सबुक् श्रप्पा । आत्मन् ह्रस्वःसंयोगे आ अ अनेन त्मस्य पः अनादौ हित्वं पुंस्यनाणोराजवच्च नकारस्य श्राण समानानां दीर्घः ११ श्रतः से?ः अप्पाणो । पदे श्रात्मन् हवः संयोगे श्रा श्र अधोमनयां न् लोपः श्रनादौ हित्वं पुंस्यनथाणोराजवञ्च था प्र० अंत्यव्यंग स्बुक् यत्ता ११ ॥५१॥ टीका भाषांतर. भस्मन् श्री आत्मन् शब्दना जोमादरनो विकटपे प थाय. सं. भस्मन् तेने अंत्यव्यं० सूत्रे ननो लोप थाय. चालता सूत्रे स्मनो प थाय. पगी अनादी लगदामशिरोनभः ए सूत्रे पुंलिंगपणुं थाय. अतः सेोः ए सूत्रथी भप्पो रूप थाय. पदे भस्मन् तेने अंत्यव्यंग अधोमनयां अनादौ द्वित्वं अतः से?: ए सूत्रोथी भस्सो रूप थाय. सं. आत्मन् शब्द तेने हखः संयोगे चालता सूत्रे त्मनो प थाय. अनादौ द्वित्वं पची पुंस्य नआणोराजवच्च ए निर्देश नथी पण जे बीजे ठेकाणे को होय अने बीजे ठेकाणे जणाव्यो होय ते निर्देश
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द्वितीयः पादः ।
३०
हे वाय. तेी राजन् शब्दने आ न थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रथी अप्पा रूप श्राय पदे सं. आत्मन् शब्द तेने ह्रखः संयोगे चालता सूत्रे त्मनो प थाय. अनादौ पुंस्य न आणो ए सूत्रे आत्मा थाय. पती समानानां दीर्घः अतः सेड ए सूत्रोथी अप्पाणो रूप थाय. पछे आत्मन् शब्द तेने ह्रस्वः संयोगे अधोमनयां अनादौ पुंस्य न आणो अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी अत्ता रूप थाय. ५१ - मोः ॥ ५२ ॥
ड्रमक्मोः पो जवति ॥ कुड्रमलं । कुम्पलं । रुक्मिणी | रुपिणी ॥ क्वचिच्च्मोपि । रुच्मी रुप्पी ॥
मूल भाषांतर. ड्रम अने क्मनो प थाय. सं. कुड्मलं तेनुं कुम्पलं थाय. सं. रुक्मिणी तेनुं रुपिणी थाय. कोइ ठेकाणे म पण थाय. सं. रुक्मी तेनां रुच्मी अनेरुप्पी एवां रूप थाय ॥५॥
॥ ढुंढिका ॥
डूमश्च क्मश्च मक्मौ तयोः ड्रमक्मोः ७२ कुड्रमल - श्रनेन ड्रमस्य पः व क्रादावंतः अनुखारः ११ क्की वे सम् मोनु०कुम्पलं । रुक्मिणी श्रनेनक्मस्य पादौ द्वित्वं ११ अंत्यव्यं० सलोपः रुप्पिणी क्वचित् क्मस्य मोपि रुक्मी क्मस्य चमः अनादौ द्वित्वं ११ अंत्यव्यं० सलोपः रुच्मी ॥ ५२ ॥
टीका भाषांतर. ड्रम अने क्मना प श्राय. सं. कुड्मल तेने ड्रमनो प थाय. पी वक्रादावंतः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री कुम्पलं रूप थाय. सं. रुक्मिणी तेने चालता सूत्रथी क्मनो प थाय. अनादी अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी रुप्पिणी रूप थाय. कोइ ठेकाणे म पण थाय. सं. रुक्मी तेने क्मनो चम थाय. अनादौ अंत्यव्यं ० ए सूत्रोथी रुच्मी रूप थाय. छाने पदे रुप्पी पण थाय ॥ ५२ ॥
O
ष्प - स्पयोः फः ॥ ५३ ॥
पपयोः फो जवति ॥ पुष्पम् । पुष्कं ॥ शष्पम् सप्कं ॥ निष्पेषः निप्फेसो ॥ निष्पावः । निष्फावो ॥ स्पन्दनम् । फन्दणं ॥ प्रतिस्पर्किन् । पामिष्फी ॥ बहुला धिकारात् कचिद्विकल्पः । बुहरफई बुहपई ॥ कचिन्न नवति । निष्यहो । विष्णुंसणं । परोप्परं ॥ मूल भाषांतर. प ने स्पनो फ थाय. सं. पम् तेनुं सफं थाय. सं. निष्पेष तेनुं निप्फेसो फावो थाय. सं. स्पंदनम् तेनुं फन्दणं थाय. सं.
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पुष्पम् तेनुं पुष्कं याय. सं. शथाय. सं. निष्पावः तेनुं निप्रतिस्पर्धिन् तेनुं पाडिफडी
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३१०
मागधी व्याकरणम्. थाय. बहुल अधिकार के तेथी को ठेकाणे विकटपे थाय. सं. वृहस्पति तेर्नु वुहप्फई तथा बुहप्पई वाय. को ठेकाणे न पण थाय. सं. निःस्टह तेनुं निप्पहो आय. सं. निष्पुमन तेनुं णिप्पुंसणं थाय. सं. परस्पर तेनु परोप्पर वाय. ॥ ५३॥
॥टुंढिका॥ पश्च स्पश्च ष्पस्पो तयोः पस्पयोः ७२ फ ११ पुष्प- अनेन पस्य फः अनादौ हित्वं हितीय पूर्व फस्य पः ११ क्लीबे सम् मोनु पुफं। शष्प- शषोः सः अनेन पस्य फः अनादौ हित्वं द्वितीय तु पूर्व फ पः ११ क्लीबे सम् मोनु० सप्फ । निष्पेष- अनेन पस्य फः अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व फ पः शषोः सः ११ अतः सेडोंः निप्फेसो। निष्पाव- अनेन पस्य फः अनादौ हित्वं द्वितीय तु पूर्व फस्य पः ११ अतः से?ः निष्फावो । स्पंदन- अनेन स्पस्य फः नोणः ११ क्लीवे स्म् मोनु० फंदणं । प्रतिस्पर्छिन् सर्वत्र रबुक् अतः समृड्यादौ वा प पा प्रत्यादौ मः अनेन पस्य मः अनादौ हित्वं द्वितीय तु अंत्यव्यंजन- तबुक् ११ अक्कीबे सौ दीर्घः पाडिफझी । बृहस्पति
वा बृहस्पतौ वृ वु बहुलाधिकारात् विकल्पेन स्पस्य फः अनादौ द्वितीयतु कगचजेति त्बुक् ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं सबुक् दुहप्फई । पदे बृहस्पति- वा बृहस्पतौ ३ वु सर्वत्र रखुक् अनादौ द्वित्वं खघयघधनां नस्य हः ११ अतः सेझैः निप्पहो । निष्पुमनकगटडेतिष अनादौ हित्वं नोणः ११ क्वीचे स्म् मोनु निप्पुंसणं । परस्परनमस्कारपरस्परेद्वितीयस्यरो कगटडेति सबुक् अनादौ हित्वं ११ क्वीबे सम् मोनु० परोप्परं ॥ ५३ ॥ टीका भाषांतर प अने स्पनो फ थाय. सं. पुष्प तेने चालता सूत्रे पनो 'क थाय. अनादौ द्वितीय क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी पुप्फ रूप थाय. सं. शष्प तेने शषोः सः चालता सूत्रे पनो के थाय. अनादौ द्वितीय क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सप्फ रूप थाय. सं. निष्पेषः तेने चालता सूत्रे पनो फ थाय. अनादी० द्वितीय शषोः सः अतः सेडोंः ए सूत्रोथी निप्फेसो रूप धाय. सं. निष्पाव तेने चालता सूत्रे पनो फ थाय. अनादौ० द्वितीय० अतः सेोः ए सूत्रोधी निप्फावो रूप श्राय. सं. स्पंदन तेने चालता सूत्रे स्पनो फ थाय. नोणः क्लीयेसूम मोनु० ए सूत्रोथी फंदणं थाय. सं, प्रतिस्पडिन् तेने सर्वत्र अतः समृद्रियादी
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द्वितीयःपादः। प्रत्यादौडः चालता सूत्रे पनो ड श्राय. अनादौ० द्वितीय० अंत्यव्यंजन अक्लीबे दीर्घ ए सूत्रोथी पाडिप्फडी रूप श्राय. सं. बृहस्पति तेने वा वृहस्पती विकल्पे स्पनो फ थाय. अनादौ द्वितीय कगचज अक्लीबे अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वुहप्फई रूप श्राय. पके बृहस्पति तेने वा वृहस्पती सर्वत्र सूलुक् अनादौ० बुहप्पई रूप श्राय. सं. नि:स्पृह तेने सर्वत्र मुलुक अनादौ ग्वघथ० अतः सेडोंः ए सूत्रोश्री निप्पहो रूप श्राय. सं. निष्पुमन तेने कगटड अनादौ नोणः क्लीबे सम् मानु० ए सूत्रोथी निप्पुमणं रूप श्राय तेनो अर्थ नपुंसकपणुं यायचे. सं परस्पर तेने नमस्कार परस्परे द्वितीयस्परो कगटड अनादौ क्लीबेमम् मोनु० ए सूत्रोथी परोप्परं रूप थाय. ५३
नीष्मे ष्मः॥४॥ जीमे मस्य फो नवति ॥ निप्फो । मूल भाषांतर भीष्म शब्दना धमनो फ ाय. सं. भीष्मतेनुं भिप्फो रूप थाय.
॥टुंढिका ॥ जीष्म ७१ म ६१ जीष्म हस्वःसंयोगे नी नि अनेन प्मस्य फः अनादी हित्वं छितीय तु० ११ श्रतःसे?ः निप्फो॥५४॥
मृल भाषांतर भीष्म शब्दना ष्मनो फथाय. सं. भीष्म तेने हस्वःसंयोगे चालता सूत्रे मनो फ ाय. अनादौद्वितीय अतःसे?: ए सूत्रोथी भिप्फो रूप थाय.५४
श्लेष्मणि वा ॥५॥ श्लेष्मशब्दे मस्य फो वा नवति ॥ सेफो सिलिम्हो॥
मूल भाषांतर श्लेष्म शब्दना मनो विकल्पे फ थाय. सं. श्लेष्म तेना सेफो तथा सिलिम्हो एवां रूप वाय.
॥डंढिका॥ श्लेष्मन् ७१ वा ११ श्लेष्मन् सर्वत्रलबुक् ह्रस्वः संयोगे शे शषोःसः अनेन वा प्मस्यफःअंत्यव्यं नलुक् ११ अतःसे?ः सेफो । पदे श्लेरमन्- इस्वःसंयोगे लि शलयोविश्लेषं कृत्वा लात् प्राग् शिषोःसः पदमश्मष्मस्मह्यांम्हःअंत्यव्यंग न्बुक ११ अंतःसे?ः सिलिम्हो ॥५५॥
टीका भाषांतर. श्लेष्मन् शब्दना प्मनो विकटपे फ थाय. सं. श्लेष्मन् तेने सर्वत्र लल्लुक ह्रस्वः संयोगे शषोः सः चालता मूत्रे विकटपे धमनो फ थाय. अंत्यव्यं० नलुक अतः सेोः ए सूत्रोथी सेफो रूप थाय. पदे श्लेष्मन् तेने इस्वः संयोग ए सूत्रे लि थाय. पनी श अने ल नो विश्लेष करी लनी पेहेलां फ थाय. परी शषोः सः पक्ष्मश्मष्म० अंत्यव्यं० अतः सेडोंः ए सूत्रोथी सिलिम्हो रूप थाय.
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मागधी व्याकरणम्.
ताम्राने म्बः॥५६॥ श्रनयोः संयुक्तस्य मयुक्तो बो नवति ॥ तम्बं । अम्बं ॥ अम्बिर तस्बिर ति देश्यो॥ मूल भाषांतर. ताम्र अने आम्र शब्दना जोडाक्षरनो म युक्त ब थाय. सं. ताम्र तेनुं तम्बं थाय. सं. आम्र तेनुं अम्बं रूप याय. अम्बिर अने तम्बिर एवा शब्दो देश लाषामां वपराय जे. ॥ ५६॥
॥ढुंढिका ॥ तानं च श्रानं च ताम्रानं तस्मिन् ७१ म्ब ११ ताम्र- हवः संयोगे ता तः अमेन म्रस्य म्बः ११ क्लीबे स्म् मोनु तम्बं । थाम्र- हवः संयोगे था अ अनेन म्र म्ब ११ क्लीवे स्म् मोनु० अम्बं । श्राम्रवाचकौ छौ ॥५६॥ टीका भाषांतर. ताम्र अने आम्र शब्दना जोडाक्षरनो म युक्त ब श्राय. सं. ताम्र तेने ह्रस्वः संयोगे चालता सूत्रे म्रनो म्ब वाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तम्वं रूप थाय. सं. आम्र तेने इस्वः संयोगे चालता सूत्रे म्रनो म्ब थाय. क्लीये सम्० मोनु० ए सूत्रोथी अम्बं रूप थाय. ॥ ५६ ॥
हो नो वा ॥ ॥ हस्य नो वा नवति ॥ जिब्ना जीहा ॥ मूल भाषांतर. हनो विकटपे भ श्राय. सं. जिह्वा तेना जिन्भा जीहा एवां रूप थाय.
॥ टुंढिका ॥ हृ ६१ ज ११ वा ११ जिह्वा- अनेन ह्वा ना । श्रनादौ हित्वं छितीय अंत्यव्यं सबुक् जिन्ना । पदे र्जिव्हा सिंहत्रिंशशित्यो जि जी सर्वत्र रखक ११ अंत्यव्यंजन सलक जीहा ॥७॥ टीका भाषांतर. हनो विकटपे भ थाय. सं. जिह्वा तेने चालता सूत्रे ह्वानो भा थाय. पनी अनादौ द्वितीय अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी जिन्भा रूप थाय. पदे सं. जिह्ना तेने सिंहत्रिंशत् ए सूत्रे ई थाय. पी सर्वत्र अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी जीहा रूप घाय. ॥ ५ ॥
वा विकल्पे वौ वश्च ॥ ५॥ विकल्पे हस्य नो वा नवति तत्संनियोगे च विशब्दे वस्य वा नो नवति ॥ जिब्नलो विब्जलो विहलो ॥
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द्वितीयःपादः। मूल भाषांतर. विह्वल शब्दना तु नो विकटपे भ थाय. अने तेने योगे विनो विकल्पे भ ाय. सं. विह्वल तेनां भिन्भलो विभलो विहलो एवां रूप थाय. ५०
॥ढुंढिका॥ वा ११ विह्वल ११ वि ७१ व ११ च ११ विह्वल- अनेन ह्रस्य नः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ज ब अनेन वा वि नि ११ अतः सेोः विन्जलो। विह्वल- यत्र वेर्न न स्यात् तदा श्रनेन ह्रस्य न श्रनादौ द्वित्वं हितीयपूर्वज- ब ११ अतः सेोः निब्नलो। यत्र किमपि न स्यात् तत्र विह्वल- सर्वत्र वबुक् श्रतः सेोः विहलो ॥ ५ ॥
टीका भाषांतर. विह्वल शब्दना ह नो विकटपे भ आय. अने ते योगे वि शब्दना वनो विकटपे भ थाय. सं. विह्वल तेने चालता सूत्रे हनो भ थाय. पनी अनादौ द्वितीय चालता सूत्रे विकटपे वि नो भ थाय. पी अतः सेोंः ए सूत्रे विभलो रूप थाय. पळे विह्वल तेने ज्यारे विनो भ न थाय. त्यारे आ चालता सूत्रे व्ह नो भ श्राय. पनी अनादो द्वितीयपूर्व० अतः सेोंः ए. सूत्रोथी भिन्भलो रूप थाय. ज्यारे कां पण न थाय. त्यारे सं. विह्वल तेने सर्वत्र अतः मेडोंः ए सूत्रोणी विहलो रूप थाय. ॥ १७ ॥
वोर्चे ॥ पाए॥ जवंशब्दे संयुक्तस्य जो वा नवति ॥ जब्नं उऊं ॥॥
मूल भाषांतर. ऊर्ध्व शब्दना जोडाक्षरनो विकटपे भ थाय. सं. ऊर्ध्व तेनां उभं उन्हं एवां रूप श्राय.
॥ टुंढिका॥ वा ११ ऊर्ध्व ७१ ऊर्ध्व- हवः संयोगे ऊ उ अनेन ईस्य नः श्रनादौ हित्वं द्वितीय० ११ श्रतः सेडोंः उन्नो पदे ऊर्ध्व- हवः सं. योगे ऊ उ सर्वत्र रवयोर्बुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीयतुपूर्वधस्य दः ११ क्वीबे सम् मोनु० उऊं ॥ ५ ॥
टीका भाषांतर. ऊर्ध्व शब्दना जोडाक्षरनो विकरपे भ श्राय. सं. ऊर्ध्व तेने हखः संयोगे चालता सूत्रे ईनो भ थाय. पली अनादौ द्वितीयः अतः सेोंः ए सूत्रोथी उभो रूप थाय. पक्षे सं. ऊर्ध्व तेने इखः संयोगे सर्वत्र अनादौ द्वितीय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी उद्धं रूप श्रायः ॥ एए ॥
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३१४
मागधी व्याकरणम्.
कश्मीरे म्लो वा ॥ ६० ॥ कश्मीर शब्दे संयुक्तस्य म्नो वा नवति ॥ कम्नारा कम्हारा ॥६॥
मूल भाषांतर. कश्मीर शब्दना जोमादरनो म्भ विकटपे थाय. सं. कश्मीराः तेनां कम्भारा अने कम्हारा एवां रूप थाय. ॥ ६ ॥
॥ढुंढिका ॥ कश्मीर ७१ म्न ११ कश्मीर- अनेन वा इम म्न श्रात् कश्मीरे श्राञ्च १३ जस्शसोर्बुक् जस्लोपः जसशस्ङसित्तोछामि दीर्घः र रा कम्नारा पदे कश्मीर आत् कश्मीरे श्मी इमा पश्मष्मेति श्दमस्य म्हः १३ जस्शसोर्बुक् सलोपः जसशस्ङसित्तोछामि दीर्घः रा कह्मारा टीका भाषांतर. कश्मीर शब्दना जोमादरनो म्भ विकटपे श्राय. सं. कश्मीर तेने चालता सूत्रथी विकटपे इम नो म्भ थाय. पनी आत् काश्मीरे १३ जशशसोलक् जसूशसूङसित्तोद्वामिदीर्घः ए सूत्रोथी कम्भारा रूप श्राय. पदे कश्मीर तेने आत् कश्मीरे पद्मश्मष्म० ए सूत्रे इमनो म्ह श्राय. पठी जशशसोलुंकू जसशसूङसित्तो० ए सूत्रोथी कम्हारा रूप थाय. ॥ ६ ॥
न्मो मः॥६१ ॥ न्मस्य मो जवति । अधोलोपापवादः ॥ जम्मो । वम्महो। मम्मणं ॥
मूल भाषांतर. न्मनो म थाय. अने अधोलोपनो अपवाद थाय. सं. जन्मन् तेनुं जम्मो थाय. सं. मन्मथ तेनुं वम्महो थाय. सं. मन्मन तेनुं मम्मणं थाय.॥६१
॥ढुंढिका ॥ न्म ६१ म ११ जन्मन् अनेन न्मस्य मः अनादौ हित्वं अंत्यव्यंग न्लुक ११ श्रतः से?ः जम्मो मन्मथ मन्मथे वः मस्य वः अनेन न्मस्य मःअनादौ हित्वं अतःसेझैःवम्महो। मन्मन-श्रनेन न्मस्य माथनादौ हित्वं नोणः११क्लीबे स्म् मोनुगमम्मणं अस्पृष्टलपनं ॥१॥ टीका भाषांतर. न्म नो माय. अने अधोलोपनो अपवाद थाय. सं. जन्मन् तेने चालता सूत्रे न्म नो म थाय. अनादौ अंत्यव्यं० अतः सेझैः ए सूत्रोथी जम्मो रूप थाय. सं. मन्मथ तेने मन्मथे वः चालता सूत्रे न्मनो म थाय. अनादौ अतः से?: ए सूत्रोथी वम्महो रूप श्राय. सं. मन्मन तेने चालता सूत्रे न्म नो म थाय. अनादी नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मम्मणं रूप आय. मम्मण शब्दनो अर्थ 'अस्पष्ट नाषण करवू ' एंवो श्राय ॥ ६१॥
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द्वितीयःपादः।
३१५ ग्मोवा ॥६॥ ग्मस्य मो वा नवति ॥ युग्मम् । जुम्म जुग्गं ॥ तिग्मम् । तिम्मं तिग्गं॥ __ मूल भाषांतर. ग्मनो विकटपे म थाय. सं. युग्म तेनां जुम्मं जुग्गं एवां रूप थाय. सं. तिग्मम् तेना तिम्मं तिग्गं एवां रूप थाय. ॥ ६ ॥
॥ ढुंढिका ॥ ग्म ६१ वा ११ युग्म- श्रादेोजः यस्य जः अनेन वा ग्मस्य मः अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु० जम्मं पदे युग्म-अधोमनयां मलोपः अनादौ हित्वं जुग्गं । तिग्म- अनेन ग्मस्य मः श्रनादौ हित्वं क्लीबे स्म् मोनु तिम्मं । पदे तिग्म अधोमनयां मलोपः श्रनादौ द्वित्वं ११ क्लीवे स्म मोनु० तिग्गं ॥ ६ ॥ टीका भाषांतर. ग्मनो विकटपे म थाय. सं. युग्म तेने आयोजः चालता सूत्रे ग्म नो म पाय. अनादौ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी जम्मं रूप थाय. पदे युग्म तेने अधोमनयां अनादौ ए सूत्रोथी जुरगं रूप थाय. सं. तिग्म तेने चाखता सूत्रे ग्म नो म थाय. अनादी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तिम्मं रूप थाय. पदे तिग्म तेने अधोमनयां अनादौ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तिग्गं रूप थाय.
ब्रह्मचर्य-तूर्य-सौन्दर्य-शौण्डीर्ये र्यो रः॥६३ ॥ एषु यस्य रो जवति । जापवादः ॥ बह्मचेरं । चौर्यसमत्वाद् बह्मचरिअं । तूरं । सुन्दरं । सोएगीरं ॥ मूल भाषांतर. ब्रह्मचर्य तृर्य सौन्दर्य शौण्डीर्य ए शब्दोना यनो र थाय. अने ज ( आदेखेंजः ) नो अपवाद थाय. सं. ब्रह्मचर्य तेनुं बह्मचेरं थाय. आ चौर्य शब्दना जेवो ने तेथी ब्रह्मचरिअं एवं पण थाय. सं. तूर्य तेनुं तूरं प्राय. सं. सौंदर्य तेनुं सुन्दरं श्राय. सं. शौण्डीर्य तेनुं सोण्डीरं पाय. ॥ ६३ ॥
॥ढुंढिका ॥ ब्रह्मचर्यं च तूर्यं च सौन्दर्यं च शौएलीयं च ब्रह्मचर्यतूर्यसौंदर्यशौएकीर्यं तस्मिन् ७१ र्य ६१ र ११ ब्रह्मर्च- सर्वत्र रबुक् पदमश्मष्मेति म्हः क्वचिन्म्नोऽपि दृश्यतेततो ह्मस्थाने म्हः ब्रह्मचर्येचःचचै अनेन र्यस्य रः ११ क्लीवे स्म् मोनु बह्मचेरं। ब्रह्मचर्य-सर्वत्र रलुक् पदमश्मष्मेति म्हः स्यानव्यचैत्यचौर्यसमेषु यात् रययोर्विश्वेषं कृत्वा
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मागधी व्याकरणम्.
३१६
यात् इ लोकात् कगचजेति यू लुक् ११ क्लीवे स्म मोनु० वम्हचरि| तूर्य - श्रनेन र्यस्य रः ११ क्कीबे सम् मोनु० तूरं । सौंदर्यश्रतः सौंदर्यादौ सौ सु एत्शय्यादौ द दे अनेन वार्यस्य रः ११ क्लीवे सम मोनु० सुंदरं । शौकीर्य विंशत्यादेर्लुक् अनुखारलोपः कतः शौ शो शषोः सः श्रनेन र्यस्य रः ११ क्वी बे सम् मोनु० सोएकी रं
टीका भाषांतर. ब्रह्मचर्य तूर्य सौंदर्य शौण्डीर्य ए शब्दोना र्यनो र थाय. अने जनो अपवाद याय. सं. ब्रह्मचर्य तेने सर्वत्र पक्ष्ममष्म० को ठेकाणे न पण थाय. तेथी ह्म ने स्थाने म्ह थाय. ब्रह्मचर्येचः पढी चालता सूत्रे र्यनो र थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री बम्हचेरं रूप थाय. सं. ब्रह्मचर्य तेने सर्वत्र पक्ष्म इम ष्म० स्याद्भव्य चैत्य० ए सूत्रो लाग्या पती र अने यनो विश्लेष करीय नी पेलाइ थाय. लोकात् कगचज क्लीबेस्म् मोनु० ए सूत्रोथी बम्हचरिअं रूप थाय. सं. सूर्य तेने चालता सूत्रे र्य नो र थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तुरं रूप याय. सं. सौंदर्य तेने तउः ए सूत्रे सौंदर्यना सौनो सु थाय. एत्शय्यादौ ए सूत्रे दनो दे थाय. बी चालता सूत्रे विकटुपे र्यनो र थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सुंदेरं रूप याय. सं. शौण्डीर्य तेने विंशत्यादेर्लुक् औतओत् शषोः सः चालता सूत्रे नोर याय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सोण्डीरं रूप याय. ॥ ६३ ॥
धैर्ये वा ॥ ६४ ॥
धैर्ये र्यस्य रो वा जवति । धीरं धिऊं । सूरो सुको इति तु सूरसूर्यप्रकृतिभेदात् ॥
मूल भाषांतर. धैर्य शब्दना र्य नो विकल्पे र थाय. सं. धैर्य तेना धीरं धिजं एवां रूप याय. सूर ने सूर्य शब्दनी प्रकृति ( मूल रूप ) उपरथी सं. सूर तेनुं सूरो थाय. सं. सूर्य तेनुं सुज्जो एवं श्राय ॥ ६४ ॥
॥ ढुंढिका ॥
धैर्य ७९ वा ११ धैर्य ऐत एत् धे धैर्ये धी अनेन र्यस्य रः क्कीबे सम् मोनु० धीरं । प धैर्य - ह्रस्वः संयोगे धै धि द्यय्यजः
नादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः धिको सूर्य - ११ अनेन र्यस्य रातः सेर्डोः सूरो । सूर्य - ह्रस्वः संयोगे सू सु द्यय्यर्याजः श्रनादौ द्वित्वं ११ तः सेडः सुमो ॥ ६४
॥
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द्वितीय पादः।
३१७ टीका भाषांतर: धैर्य शब्दना ये नो विकटपे र थाय. सं. धैर्य तेने ऐतएत् ई धैर्ये चालता सूत्रे यं नो र थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी धीरं रूप थाय. पदे धैर्य तेने इस्वः संयोगे द्यय्ययोजः अनादौ अतः से?: ए सूत्रोथी धिजो रूप थाय. सं. सूर्य तेने चालता सूत्रे ये नो र थाय. अतः सेझैः ए सूत्रोधी सूरो रूप थाय. सं. सूर्य तेने हखः संयोगे द्यय्यांजः अनादौ अतः सेोंः ए सूत्रोथी सुजो रूप श्रायः ॥ ६ ॥
एतः पर्यते ॥ ६५॥ पर्यते एकारात्परस्य यस्य रो नवति ॥पेरन्तो॥एत इति किम् पजान्तो॥
मूल भाषांतर. पर्यंत शब्दना ए कारकीपर एवां यं नो र श्राय. सं. पर्यंत तेनुं पेरन्तो रूप थाय. मूलमा एकार नुं ग्रहण के तेथी सं. पर्यंत तेनुं पजंतो श्राय.
॥ढुंढिका ॥ एत् ५१ पर्यंत ७१ पर्यंत- वड्युत्करपर्यंताश्चर्येवा अनेन यस्य रः श्रतः से?ः पेरंतो । पर्यंत- द्यय्यर्यांजः अनादौ हित्वं ११ श्रतः से?ः सर्वत्र रबुक् पङांतो ॥ ६५ ॥ टीका भाषांतर. पर्यंत शब्दने एकारथी पर एवां यं नो र थाय. सं. पर्यंत-वड्युकर पयंताश्चर्येवा ए सूत्रे प नो पे श्रायः पठी चालता सूत्रे ये नो र थाय. अतः से : ए सूत्रे पेरंतो रूप थाय. सं. पर्यंत तेने द्यय्यांजः अनादौ अतः से? सर्वत्र ए सूत्रोथी पजंतो रूप आय. ॥ ६५॥
आश्चर्ये ॥६६॥ श्राश्चर्ये एतः परस्य यस्य रोजवति॥अच्छेरं॥ एत इत्येव। अच्छरिशं॥
मूल भाषांतर. आश्चर्य शब्दने एकार थीपर एवां र्यनो र थाय. सं. आश्चर्य तेनुं अच्छेरं पाय. मूलमा ए कारनुं ग्रहण तेथी सं. आश्चर्य तेनुं अच्छरिअं एवं रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥ श्राश्रर्य ७१ श्राश्चर्य ११ ह्रस्वः संयोगे श्र ह्रखाच्ब्यश्च अनादौ हित्वं द्वितीय वद्युत्करपर्यंताश्चर्ये वा डे अनेन र्यस्य रः ११ क्लीबे सम् मोनु० अच्छेरं- श्राश्चर्य- हवः संयोगे था अ ह्रस्वाव्य श्चस्य ः अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व ब चः श्रतोरिश्राररि जारीअशति यस्य रिअ आदेशः ११ क्वीबे स्म् मोनु अबरिअ६६
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३१०
मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. आश्चर्य शब्दने ए श्रीपर एवां यं नो र श्राय. सं. आश्चर्य तेने हस्वः संयोगे इखाच्छयश्च० अनादौ० द्वितीय० वल्युत्करपयंताश्चर्येवा चालता सूत्रे ये नो र थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अच्छेरं रूप थाय. सं आश्वयं तेने हवः संयोगे हस्वाच्छ० अनादौ० द्वितीय० अतोरिआररिजरीअंग क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोधी अच्छरिअं एवं रूप श्राय. ॥ ६६ ॥
अतो रिचार-रिज-रीअं॥ ६ ॥ आश्चर्ये अकारात्परस्य यस्य रिअ अर रिज रीअ इत्येते आदेशा जवन्ति ॥अबरिशंअबअरं अचरिङ अबरीश्र॥श्रत इति किम् अबेरं॥
मूल भाषांतर. आश्चर्य शब्दने अकार अकीपर एवां र्य ने स्थाने रिअ अर रिज रीअ एवां आदेश थाय. सं. आश्चर्य तेना अच्छरिअं अच्छ अरं अच्छरिजं अच्छरीअं एवां रूप थाय. मूलमां अकार श्रीपर एम कडं ने तेश्री सं. आश्चर्य तेनुं अच्छेरं एवं रूप थाय. ॥ ६७॥
॥ टुंढिका ॥ अत्५१ रिश्रश्च पारश्च रिजश्व रीश्च रिश्राररिजरीअं ११ आश्चर्यहस्वःसंयोगे आ अ हस्वाधयश्चत्सप्सा मनिश्चले श्वस्य रिआदि आदेशाः अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व ब च अनेन र्यस्य प्रथमे रिश्र द्वितीये अर । तृतीये रिङ । चतुर्थे रीअ ११ क्लीबे सम् मोनु अबरियं । अपरं । अचरिऊं । अश्चरीअं । आश्चर्य-हवः संयोगे
आ अ वदयुत्करपर्यंताश्चर्येण श्च श्चे हस्वास्थ्यश्च० श्वस्यः अनादौ हित्वं द्वितीय आश्चर्येर्यस्य रः ११ क्लीबे स्म् मोनुं० अरं ॥ ६७ ॥
टीका भाषांतर. आश्चर्य शब्दने अकारथीपर एवां र्य ने स्थाने रिअ अर रिज रीअ एवां आदेश थाय. सं. आश्चर्य तेने ह्रस्वः संयोगे हस्वास्थ्यश्च चालता सूत्रे रिअ विगेरे अनुक्रमे आदेश थाय. पनी अनादी० द्वितीय० ए सूत्रो लागे-चालता सूत्रे पेहेला रूपमा र्य ने स्थाने रिअ थाय. बीजा रूपमां अर थाय. त्रीजा रूपमां रिज थाय. अने चोथा रूपमा रीअ थाय. पनी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रलागे एटले अच्छरिअं अच्छअरं अच्छरिज्ज अश्चरीअं एवां चार रूप थाय. सं. आश्चय तेने हस्वः संयोगे वल्युत्करपर्यंताश्चर्ये हस्वास्थ्यश्च० अनादौ द्वितीय० आश्वर्ये० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अच्छेरं रूप थाय. ॥ ६७ ॥ ।
पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये क्षः ॥ ६७ ॥ एषु यस्य लो नवति॥ पर्यस्तं पलटं पलत्थं । पहाणं । सोअमवं॥
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३१ए
हितीयःपादः। पलको इति च पव्यङ्कशब्दस्य यलोपे द्वित्वे च ॥ पलिश्रङ्को - त्यपि चौयसमत्वात् ॥ मूल भाषांतर. पर्यस्त पर्याण सौकुमार्य ए शब्दोना ये नो ल्ल श्राय. सं. पयस्त तेना पल्लटं पल्लत्थं रूप थाय. सं. पर्याण तेनुं पल्लाणं रूप श्राय. सं. सौकुमार्य तेनुं सोअमल्लं रूप थाय. सं. पल्यङ्क शब्दनुं पहुंको रूप थाय. अने ते शब्द चौर्य शब्दना जेवो ने तेश्री पलिअङ्को ए, पण रूप श्राय.॥ ६ ॥ पर्यस्तं च पर्याणं च सौकुमार्य च पर्यस्तपर्याण सौकुमार्य तस्मिन् ७१ ब ११ पर्यस्त- अनेन र्यस्य सः पर्यस्तेघटौ स्तस्य थः अनादौ हित्वं द्वितीयतुपूर्व थ तः ११ क्लीबे स्म् मोनु पवटै पके पसत्यं । पर्याण अनेन यस्य सः क्लीबे सम् मोनु० पक्षणं । सौकुमार्य-थनेन सौ सो क्लीबे स्म् मोनु० सोश्रमलं । पदयंक- अधोमनयां लुक् अनादौ हित्वं ब ११ श्रतः सेझैः पल्सको । पर्यंक- चौर्यसमत्वात् यात् इत्यनेन रययोविश्लेषं कृत्वा यात् प्राग् कारः ह. रिजादौलः लोकात् कगचजेति यलुक् श्रतः सेझैः पलिश्रङ्को ॥६॥ टीका भाषांतर. पर्यस्त पर्याण सौकुमार्य ए शब्दोना र्यनो ल्ल थाय. सं. पर्यस्त तेने चालता सूत्रे यनो ल्ल थाय. पछी पर्यस्तेथटौ अनादौ द्वितीय क्लीवे. सम् मोनु० ए सूत्रोथी पल्लर्ट रूप थाय. पक्षे पल्लत्थं रूप थाय. सं. पर्याण तेने चालता सूत्रे यनो ल्ल थाय. पनी क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पल्लाणं रूप थाय. सं. सौकुमार्य तेने चालता सूत्रे ल्ल थाय. पनी सौनो सो थाय. क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सोअमलं रूप थाय. सं. पल्यंक तेने अधोमनयांयलुकू अनादौ० अतःसेडोंः ए सूत्रोथी पल्लंङ्को रूप थाय. सं. पर्यंक शब्द चौर्य शब्दनीतुल्यने तेथी यात् ए सूत्रथी नो विश्लेषकरी य नी पेहेला इ थाय.. पी हरिद्रादौलः लोकात कगचज अतःसे ः ए सूत्रोथी पलिअङ्को रूप श्रायः ॥ ६ ॥
बृहस्पति वनस्पत्योः सो वा ॥६॥ अनयोः संयुक्तस्य सो वा जवति ॥ बहस्सई बहप्फई । नयस्सई नयप्फई । वमस्सई वमप्फई । मूल भाषांतर. बृहस्पति अने वनस्पति ना जोमाभरनो विकटपे स ाय. सं. बृहस्पति तेना वहस्सई बहप्फई रूप थाय. पदे सं. बृहस्पति तेना भयस्सई भयष्फई एवा रूप थाय. सं. वनस्पति तेना वणस्सई वणफ्फई एवा रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ वृहस्पतिश्च वनस्पतिश्च बृहस्पतिवनस्पती तयोः ७२ स ११ वा
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मागधी व्याकरणम् -
३२०
११ बृहस्पति तो त् व अनेत वा स्पस्य सः अनादौत्वं द्वितीय० कगचजेतितलुक ११ अक्की बेसौदीर्घः श्रत्यव्यंसलुक् वहसई तो वृ व ष्पस्ययोः फः स्पस्य फः श्रनादौ द्वित्वं द्विती० पूर्वस्य पः कगचजेतित्लुक् १९१ अक्की बेदीर्घः त्र्त्यव्यं ०स्लुक वह फइ । बृहस्पति झतोऽत् बृहस्पतौ वहोजयः वहजय श्रनेन वा स्पस्य सः नादौत्वं कगचजेतित्लुक् अक्कीबे० श्रत्यव्यं सलुक्
फई | वनस्पति नोएः अनेन स्पस्यसः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय कगचजेतित्लुकू अक्की वेदीर्घः अत्यव्यं० सलुकू वणस्सई पदे वनस्प ति नोणः पस्पयोः फः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय० कगचजेतित्लुक् ११ अत्यव्यंजद लुक् अक्की वेदीर्घः वणप्फई ॥ ६७ ॥
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टीका भाषांतर. बृहस्पति अने वनस्पति शब्दना जोडाक्षर नो विकल्पे स श्राय. सं. बृहस्पति तेने ऋतोडत् चालता सूत्रे विकल्पे स्पनो स थाय. अनादौ० द्वितीय० कगचज० अक्लीवेसौदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वहफ्फई रूप थाय. सं. बृहस्पति तेने ऋतोत् बृहस्पतौ वहोभयः चालता सूत्रे विकल्पे स्पनो स थाय अनादौ कगचज० अक्लीबे० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी भयफ्फई थाय. सं. वनस्पति तेने नोणः चालता सूत्रे स्पनो स थाय. पबी अनादी० द्वितीय० कगचज० अक्कीबेसौदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वणस्सई रूप थाय. पदे सं. वनस्पति तेने नोणः ष्पस्पयोःफः अनादौ द्वितीय कगचज० अंत्यव्यं ० अक्लीबेदीर्घः ए सूत्रोथी वणफ्फई रूप याय ६५|| बाप्पे होश्रुणि ॥ ७० ॥
श्रुष्य निधेये ॥ बाहो नेत्रजलं ॥
बाष्पशब्दे संयुक्तस्य हो जवति ॥ णीति किम् ॥ बप्फो उष्मा ॥
मूल भाषांतर. बाष्प शब्दने जो तेनो अर्थ अश्रु ( प्रांसु ) होयतो तेना जोडा करनो ह याय. सं. बाष्प तेनुं बाहो थाय. जो तेनो अश्रु ( आंसु ) अर्थ न होय तो सं. बाष्प तेनुं बफ्फो रूप याय. एटले तनो अर्थ उष्मा ( बाफ ) थाय बे. ॥ १० ॥
॥ ढुंढिका ॥
बाष्प ७१ ह ११ अश्रु ७१ बाष्प श्रनेन ष्पस्य हः ११ श्रतः सेर्डोः बाहो नेत्रजलं बाष्प - ह्रस्वःसंयोगे वा बप्पयोः फः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व फस्य पः अतः सेर्डोः बप्पो उष्मा ॥ १० ॥
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द्वितीयःपादः।
३१ टीका भाषांतर. बाष्प शब्दने जो तेनो अर्थ अश्रु (आंसु ) श्रतो होय तो तेना जोडाक्षरनो ह थाय. सं बाष्प तेने चालता सूत्रे ष्पनो ह वाय. पड़ी अतः सेझैः ए सूत्रथी बाहो रूप थाय. सं. बाष्प तेने इस्वः संयोगे पस्पयोः फः अनादौ द्वितीय० अतः सेोंः ए सूत्रोथी बप्पो रूप थाय. ॥ ७० ॥
कार्षापणे ॥१॥ कार्षापणे संयुक्तस्य हो जवति ॥ काहावणो ॥ कथं कदावणो ॥ ह्रस्वः संयोगे ( १.४ ) इति पूर्वमेव ह्रस्वत्वे पश्चादादेशे कर्षापणशब्दस्य वा नविष्यति ॥ ११ ॥ मूलभाषांतर. कार्षापण शब्दना जोडाक्षरनो ह वाय. सं. कार्षापण तेनुं काहावणो रूप थाय. कोई काणे काहावणो एवं रूप यायचे. तेने इस्वः संयोगे ए सूत्रथी प्रथम इस्वपणुं करी पड़ी आदेशकरवायी ते रूप थायजे. अथवा सं. कर्षापण 'शब्द खरए तो तेनुं कहावणो रूप थाय. ॥ ७१ ॥
॥ढुंढिका ॥ कार्षापण ३१ कार्षापण अनेन र्षस्य हः पोवः पस्य वः ११ श्रतः से?ः काहावणो। कार्षापण ह्रस्वः संयोगे काक श्रनेन र्षस्य दः पोवः ११ अतः सेोः काहावणो अथवा कर्षापणशब्दस्य कहावणो इति रूपं नवति ॥ १ ॥ टीका भाषांतर. कार्षापण शब्दना जोडाक्षरनो ह श्राय. सं. कार्षापण तेने चाखता सूत्रथी र्षनो ह वाय. पनी पोवः अतः सेोंः ए सूत्रोथी काहावणो रूप वाय. पके-सं. कार्षापण तेने हवः संयोगे चालता सूत्रे पनो ह थाय. पनी पो वः अतः सेोंः ए सूत्रोथी कहावणो रूप थाय. अथवा सं. कर्षापण शब्दनुं कहावणो रूप श्रायः॥ ७१॥
मुःख-दक्षिण-तीर्थे वा ॥ २ ॥ एषु संयुक्तस्य हो वा नवति ॥ उहं मुक्खं पर-मुक्खे उक्खिश्रा विरला दाहिणो दक्खिणो तुहं तित्थं ॥ मूल भाषांतर. दुःख दक्षिण तीर्थ ए शब्दोना जोडाक्षरनो विकटपे ह श्राय. सं. दुःखं तेनुं दुहं दुक्खं एवां रूप थाय. सं. परदुःखैदुःखिता विरलाः तेनुं परदुक्खे दुक्खिआ विरला एवं रूप थाय. सं. दक्षिण तेनुं दाहिणो दक्खिणो एवां रूप थाय. सं. तीर्थ तेनां तूहं तित्थं एवां रूप थाय.
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३२२
मागधी व्याकरणम्.
॥ टुंढिका ॥ दुःखं च दक्षिणश्च तीर्थं च दुःखदक्षिणतीर्थ तस्मिन् ७१ वा पुःख-अनेन वा खस्य हः क्लीवे स्म् मोनु ऽहं पदे फुःख कगटडेति जिव्हामूलीयस्य लुक् अनादौ हित्वं द्वितीयस्य तु पूर्व ख क क्लीबे सम् मोनु मुक्खं परफुःखं ११ डेम्मिः स्थाने ए डित्यं त्य कगटडेति स्लुक् अनादौ हित्वं द्वितीयेतु पूर्वखस्य क परक्खे कुःखित कगटडेति लुक् अनादौ हित्वंद्वितीय तु पूर्व ख क कगचजेति त्लुक् १३ जस्शसोहामि दीर्घः अ श्रा जस्शसोच्क् जसबुक् मुक्खिथा विरला १३ जस्शस् ङसि दीर्घः ल ला जस्शसोर्बुक् विरला दक्षिण- अनेन कस्य हः दहिणे हे हे दहा ११ श्रतःसेझैः दाहिणो पदे दक्षिणः कः खः कचित्तु बों रुख अनादौ हित्वं द्वितीयस्य तु पूर्व ख कः ११ अतः सेझैः दिख्किणो तीर्थः अनेन वा र्थस्य हः तीर्थेदेती तु ११ क्लीबे सम् मोनु तुहं पदे तीर्थ ह्रखः संयोगेतीति सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं द्वितीयस्य तु पूर्वथस्य तः क्लीवे स्म् मोनु० तित्थं ॥ टीका भाषांतर. दुःख दक्षिण तीर्थ ए शब्दोना जोडाझरनो विकटपे ह थाय. सं: दुःख तेने चाखता सूत्रथी खनो ह थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी दुहं रूप थाय. पदे सं. दुःख तेने कगटड० जिव्हामूलीयस्य लुक् अनादौ० द्वितीय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी दुक्खं रूप आय. सं. परदुःख तेने डेम्मिः ए सूत्रे इ ने स्थाने ए थाय. डित्यं कगटड० अनादी द्वितीय० ए सूत्रोथी परदुक्खे एवं रूप थाय. सं. दुःखित तेने कगटड अनादौ द्वितीय० कगचज० जसूशसोद्वामिदीर्घः जसूशसोलक ए सूत्रोथी दुक्खिआ रूप श्राय. सं. विरला तेने जसशस्ङसि दीर्घ जसूशसोलक ए सूत्रोश्री विरला रूप थाय. सं. दक्षिण तेने चालता सूत्रे क्षनो ह थाय. पजी दक्षिणे हे अतः सेोंः ए सूत्रोथी दाहिणो रूप थाय. पो. सं. दक्षिण तेने क्षःखःकचित्तु छझौ अनादौ द्वितीय० अतःसेझैः ए सूत्रोथी दिख्किणो रूप थाय. सं. तीर्थ तेने चालता सूत्रे विकटपे थनो ह थाय. तीर्थे ह ए सूत्रे तीनो तु वाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तीहं रूप थाय. पद तीर्थ तेने इस्वः संयोगे सर्वत्र अनादौ द्वितीय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तित्थं रूप थाय. १२
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द्वितीयःपादः।
३२३ कूष्माण्ड्यां ष्मो लस्तु ण्डो वा ॥ ३॥ कूष्माएड्यां ष्मा इत्येतस्य हो जवति एड इत्यस्य तु वा लो जवति ॥ कोहली कोहण्डी ॥ ३ ॥ मूल भाषांतर. कूष्माण्डी शब्दना ष्मा अझरनो ह वाय. अने ण्ड अदरनो विकटपे ल थाय. सं. कूष्माण्डी तेनां कोहली कोहण्डी एवां रूप श्राय. ॥७३॥
॥ दुढिका ॥ कूष्मांडी ७१ ष्मा ६१ ल ११ तु ११ एड ६१ वा ११ कूष्मांडी अनेन प्मास्थाने हःः कूष्माएडीतूणीरकूपरस्थूलतांबूलगडूचीमूल्ये कू को ततोऽनेन वा एडस्य लः ११ अंत्यव्यंग स्लुक् कोहली लकार विकल्पपदे कूष्माण्डी उत् कूष्माएडीतूणी कू को अनेन ष्मस्थाने इः ११ अंत्यव्यंजनस्य स्लुक् कोहएडी॥३॥ टीका भाषांतर. सं. कूष्मांडी शब्दना ष्मा नो ह वाय. अने ण्ड अदरनो विकटपे ल थाय. सं कुष्माण्डी तेने चालता सूत्रे ष्माने स्थाने ह थाय. पी कूष्माण्डी तूणीर ए सूत्रथी कूनो को वाय. पजी आ सूत्रे विकटपे ण्डनो ल थाय. अंत्यव्यंजन ए सूत्रथी कोहली एवं रूप थाय. लकारना विकट्पपदे सं. कूष्माण्डी तेने
ओत्कृष्माण्डीतूणी. चालता सूत्रे ष्मानो ह थाय. अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी कोहण्डी रूप श्राय ॥ ७३॥
पदम-इम-प्म-स्म-मां म्हः॥ ४ ॥ पदम शब्दसंबंधिनः संयुक्तस्य इमष्मस्ममां च मकाराक्रांतो हकार श्रादेशो नवति ॥ पदमन् पम्हाइं । पम्हल-लोषणा ॥ कुश्मानः । कुम्हाणो कश्मीराः कम्हारा ॥ म ग्रीष्मः । गिम्हो । ऊष्मा । ऊम्हा ॥ स्म । अस्मादृशः अम्हारिसो । विस्मयः । विम्ह ॥म ब्रह्मा। बम्हा ॥सुम्हाः। सुम्हा ॥ बम्हणो बम्हचेरं ॥ क्वचित् मनोपि दृश्यते । बम्नणो । बम्नचेरं सिम्नो । क्वचिन्न नवति । रश्मिः । रस्सी । स्मरः । सरो॥
मूल भाषांतर. पक्ष्म शब्दसंबंधी जोडाक्षरनो अने बीजा इम ष्म स्म अने म अदरने स्थाने मसहित ह एवो आदेश थाय. सं. पक्ष्मन् तेनुं पम्हाइं रूप थाय. सं. पक्ष्मललोचना तेनुं पम्हल-लोअणा एवं रूप थाय. श्मनां उदाहरण- सं.
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३२४
मागधी व्याकरणम्.
कुश्मानः तेनुं कुम्माणो रूप याय. सं. कश्मीराः तेनुं कुम्हारा रूप याय. मनां उदाहरण– सं. ग्रीष्मः तेनुं गिम्हो रूप थाय. सं. ऊष्मा तेनुं उम्हा रूप थाय. स्मनां उदाहरण - सं. अस्मादृशः तेनुं अम्हारिसो रूप थाय सं. विस्मयः तेनुं विम्हओ रूप याय. ह्मनां उदाहरण - सं. ब्रह्मा तेनुं बम्हा थाय. सं. सुम्हाः तेनुं सुम्हा रूप याय. सं. ब्राह्मण तेनुं बम्हणो रूप थाय. सं. ब्रह्मचर्यं तेनुं बम्हचेरं रूप थाय. कोई ठेकाणे मम अक्षर पण जोवामां आवे . सं. ब्राह्मण तेनुं बम्मणो रूप थाय. सं. ब्रह्मचर्यं तेनुं बम्मचेरं रूप थाय. सं. श्लेष्म तेनुं सिम्मो थाय. कोई बेकाणे न पण थाय. सं. रश्मि तेनुं रस्सी रूप याय. सं. स्मरः तेनुं सरो रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥
पक्ष्म च श्मश्च ष्मश्च स्मश्च ह्मश्च परमष्ममह्माः तेषां पदमश्ममस्मानां ६३ म्ह ११ पदमन् अनेन दमस्य म्हः अंत्यव्यंजनस्य सलुक् १३ जस्ास्श्श्णयः सप्राग् दीर्घः जस्स्थाने इ पूर्वस्य दीर्घः म्ह | पम्हाईं पद्मललोचना अनेन श्मस्य म्हः कगचजेति लुक् नोएः ११ अंत्यव्यं सलुक् पम्हमलोचणा कुश्मान- ११ अनेन श्म म्ह नोणः श्रतः सेडः कुम्हाणो | कश्मीरः श्रत्काश्मीरे श्मी श्मा अनेन श्मस्य म्हः १३ जस्ास्ङसि०दीर्घः र रा जस्शसोलुक् कुम्हारा । ग्रीष्म- ११ सर्वत्र रलुक् ह्रस्वः संयोगे गी गि अनेन ष्मस्य म्हः अतः सेर्डोः गिम्हो | उष्मन् - ह्रस्वः संयोगे उ ऊ अनेन ष्मस्य म्हः त्र्त्यव्यं० नूलुक् ११ त्र्त्यव्यं० सलुक् तुम्हा । श्रस्मादृश - अनेन स्मा म्हाः इत्कृपादौ द रि शषोः सः ११ यतः सेडः - म्हारिसो विस्मयः श्रनेन स्म म्हः कगचजेति यलुक् ११ श्रतः से: विम्यो । ब्रह्मन् सर्वत्र रलुक् श्रनेन म्ह पुंस्यनश्राणोराजवच्च त् या ११ अंत्यव्यं० सलुक् बम्हा सं सुह्मन् श्रनेन पुंस्यन श्रणो राजवच्च अस् य ११ अंत्यव्यं स्लुक् सुम्हा ब्राम्हणसर्वत्र रलुक् ह्रस्वः संयोगे वा व अनेन म्ह ११ अतः सेर्मोः ब्रम्हणो ! बम्हचर्य - सर्वत्र रलुक् अनेन ह्मस्य म्ह ब्रम्हचर्ये चचे ब्रम्हचर्यतूर्यसौंदर्ये रः यस्य रः ११ क्लीबे सम् मोनु० बम्हचेरं । क्वचित् एतेषां म्मोऽपि जवति ब्राम्हणः सर्वत्र रलुक् ह्रस्वः संयोगे वा व
म्ह
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द्वितीयःपादः।
३२५ अनेन म्न ११ श्रतः सेझैः बम्हणो। ब्रम्हचर्य सर्वत्र रखुक् श्रनेन म्हस्य म्मः ब्रम्हचर्येचचे ब्रम्हचर्यतुर्यस्य रः ११ क्लीबे सम् मोनु बम्नचरं श्लेष्मन् सर्वत्र ललुक् ह्रखः संयोगे शषोः सः शस्यसः श्रनेन म्हस्य म्नः अंत्यव्यंग लुक् ॥११ श्रतः सेझैः सिम्जो रश्मि अधोमनयां मलोपः शषोःसः अनादौ हित्वं श्र क्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् रस्सी । स्मरः अधोमनयां मलोपः ११ अतःसेझैः सरो व टीका भाषांतर. पक्ष्म शब्दना जोडाक्षरने अने इम ष्म स्म म ए अकरने स्थाने म्ह एवो आदेश थाय. सं पक्ष्मन् तेने चालता सूत्रथी क्ष्मनो म्ह थाय. पनी अंत्यव्यंजन जस्शसइइणयः० जसूने स्थाने इ थाय. पूर्वने दीर्घ श्राय एटले पम्हाइं रूप थाय. सं. पक्ष्मललोचना तेने चालता सूत्रथी क्ष्मनो म्ह थाय. पी कगचज नोणः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी पम्हललोअणा एवं रूप थाय. सं. कुश्मान तेने चालता सूत्रथी श्मनो म्ह थाय. पनी नोणः अतः सेोंः ए सूत्रोथी कुम्हाणो रूप थाय. सं. कश्मीर तेने आत्काश्मीरे चालता सूत्रे श्मनो म्ह थाय. पनी जसूशस्ङसि जसूशसोलक ए सूत्रोथी कम्हाय रूप थाय. सं० ग्रीष्म तेने सर्वत्र हवः संयोगे चालता सूत्रे ष्मनो म्ह थाय. अतः सेोंः ए सूत्रोथी गिम्हो रूप थाय. ऊष्मन् तेने हवः संयोगे चालता सूत्रे मनो म्ह थाय. अंत्यव्यं न तथा स् नो बुक् आय. एटले उम्हा रूप श्राय. सं अस्मादृश तेने चालता सूत्रथी स्मनो म्ह थाय. तेने इत्कृपादौ शषोः सः अतः सेझैः ए सूत्रोथी अम्हारिओ रूप थाय. सं० विस्मय तेने चालता सूत्रथी स्मनो म्ह थाय. कगचज अतः सेडों: ए सूत्रोथी विम्हओ रूप थाय. सं. ब्रह्मन् तेने सर्वत्र चालता सूत्रे म्ह थाय. पठी पुंस्यन आणोराजवच्च अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी बम्हा रूप थाय. सं. सुह्मन् तेने चालता सूत्रथी म्ह थाय. पुंस्यनआणो अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी सुम्हा रूप थाय. सं. ब्राम्हण तेने सर्वत्र इखः संयोगे चालता सूत्रे म्ह थाय. पनी अतः सेोंः ए सूत्रथी बम्हणो रूप थाय. सं. ब्रम्हचर्य तेने सर्वत्र चालता सूत्रे ह्मनो म्ह थाय. ब्रम्हचर्ये चचे ब्रम्हचर्यतूर्य क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी ब्रम्हचेरं रूप थाय. को ठेकाणे तेनो म्भ पण थाय. सं. ब्राम्हण तेने सवेत्र इवः संयोगे चालता सूत्रे म्भ थाय. अतःसेडों: ए सूत्रोथी बम्हणो रूप श्राय. सं. ब्रम्हचर्य तेने सर्वत्र चालता सूत्रे म्ह नो म्भ थाय. ब्रम्हचर्येवाचे ब्रम्हचयतूर्य क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी बम्भचेरं एवं रूप श्राय. सं. श्लेष्मन् तेने सर्वत्र हस्वः संयोगे शषोः सः चालता सूत्रे मनो म्भ थाय. पनी अंत्यव्यं अतः सेों: ए सूत्रोथी सिम्भो रूप थाय. सं रश्मि तेने अधोमनयां शषोः सः अनादौ० अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी रस्सी रूप थाय. सं. स्मर तेने अधोमनयां अतःसे?ः ए सूत्रोथी सरो एवं रूप थाय. ॥ १४॥
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मागधी व्याकरणम् . सूम-स्न-ष्ण-स्न-ह-ह-दणां एहः ॥ ५॥ सूक्ष्मशब्दसंबंधिनः संयुक्तस्य स्नष्णस्नगणदणां च णकाराक्रांतो हकार श्रादेशो नवति ॥ सूक्ष्मं सहूं ॥ न पण्हो सिण्हो ॥ ष्ण विण्ह । जिएह कण्हो ।ऊण्हीसं ।न। जोण्हा । ह्र । पएहुउँ॥ह्न। वण्ही जण्हू हू | पुवण्हो अवरण्हो॥ दण । सोहं । तिण्डं ॥ विप्रकर्षे तु कृष्ण कृत्स्नशब्दयोः कसणो । कसिणो ॥
मूल भाषांतर. सूदनशब्दसंबंधी एवा जोडादरने अने इन ष्ण नह ह क्ष्ण एअक्षरोने णकारसहित ह (ल) एवो आदेश थाय. सं. सूक्ष्म तेनुं सहं थाय. ननां उदाहरण-सं. प्रश्न तेनुं पलो थाय. सं. शिश्न तेनुं सिलो रूप थाय. ष्णनां उदाहरण सं. विष्णु तेनुं विण्हू रूप थाय. सं. जिष्णु तेनुं जिण्ह रूप थाय. सं. कृष्ण तेनुं कण्हो रूप थाय. सं उष्णीष तेनुं उण्हीसं एवं रूप श्राय. स्ननां उदाहरण सं. ज्योत्स्ना तेनुं जोहा रूप थाय. सं. स्नात तेनुं हाओ रूप थाय. सं. प्रस्नुत तेनुं पण्हओ रूप थाय. हनां उदाहरण-सं. वह्नि तेनुं वही रूप थाय सं० जह तेनुं जगहू रूप थाय. हूनां उदाहरण-सं. पूर्वाह तेनुं पुव्वण्हो रूप थाय. सं. अपराह्नो तेनुं अवरण्हो रूप थाय. क्ष्णनां उदाहरण-सं श्लक्षण तेनुं सण्हं रूप थाय. सं. तीक्ष्णं तेनुं तीहं रूप थाय. जो विप्रकर्ष अर्थ लइए तो कृष्ण अने कृत्स्न शब्दना कसणो कसिणो एवां रूप थाय. ॥ १५॥
॥ ढुंढिका ॥ सूक्ष्मं च श्नश्च णश्च स्नश्च हश्च हश्च दणश्च सूदमनष्णस्नह्नह्नः तेषां ६३ एह ११ सूक्ष्म अकुलः सूझे वा सू स अनेन दमस्य ग्रहः क्लीवे स्म् मोनु० सह्न । प्रश्न सर्वत्र रलुक् अनेन श्नस्य एहः ११ अतः सेोः पण्हो शिश्न-शषोः सः अनेन स्नस्य एहः ११ श्रतः सेझैः सिण्हो मेढः विष्णुः ११ अनेन श्नस्य एहः अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंजन सलुक् क. चित् विण्हू कृष्णः इतोऽत् कृ क अनेन पण एहः श्रतः सेझैः कण्हो उष्णीष श्रनेन पण एह शषोः सः ११ क्लीबे स्म् जण्डें । ज्योत्स्ना श्रधोमनयां यलुकू ११ अनेन स्ना एहा ११ अंत्यव्यंजन सलुक् जोण्हा स्नान अनेन स्न एह कगचजेति त्लुक ११ श्रतः सेडोंः राहाङ । प्रस्तुत सर्वत्र रखुक्थनेन स्नु गुहु कगटडेति त्लुक् ११श्रतः सेडोंः पण्ड। वह्नि ११ अनेन ह्रस्य एहः अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् वण्ही जहु अनेन
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३२७
द्वितीयःपादः। एहः ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् जण्हु । पूर्वाह्न हवःसंयोगे पू पु सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं वा इवः संयोगे वा व अनेन ह्रस्य एहः ११ श्रतःसेझैः पुवण्हो अपराह्न पोवः ह्रस्वः संयोगे रा र अनेन ह्रस्य एहः ११ अतःसे?ः श्रवरणहो । श्लदण- सर्वत्र लबुक् शषोः सः अनेन दणस्य एहः ११ क्लीबे सम् मोनु० सण्हं । तीक्ष्ण- इस्वः संयोगे ती ति अनेन दणस्य एहः क्लीबे सम् मोनु तिण्हं । कृष्ण कृतोऽत् कृष्णवणे षणयोर्विश्लेषं कृत्वा नात् प्राग् अबोकात् शषोः सः अतःसे
?ः कसणो कृष्णः कृतोऽत् क क कगचजेति लुक् श्रर्दश्री ही कृष्णक्रिया दियावात् षणयोर्विश्लेषं कृत्वा नात् प्राग् इ लोकात् नोणः ११ श्रतः सेझैः किसिणो ॥ ५ ॥ टीका भाषांतर. सूक्ष्म शब्दना जोडादने अने न ण स्न ह ह क्षण ए अक्षरोने स्थाने ण्ह एवो आदेश थाय. सं सूक्ष्म-तेने अदूतः सूक्ष्मे वा ए सूत्रे सूनो स थाय. पनी चालता सूत्रे मनो ण्ह थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सण्हं रूप थाय. सं प्रश्न तेने सर्वत्र चालता सूत्रे ननो पह थाय. पनी अतः सेोः ए सूत्रथी पण्हो रूप श्राय. सं. शिश्न तेने शषोः सः तेने चालता सूत्रे स्ननो पह थाय. पी अतः सेटः ए सूत्रथी सिण्हो रूप थाय. तेनो अर्थ लिंग थाय . सं. विष्णु तेने चालता सूत्रे भनो पह थाय पनी अक्लीये दीर्घः अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी विण्ड थाय. सं. कृष्ण तेने ऋतोऽत् चालता सूत्रे ष्ण नो पह थाय. पजी अतः सेोंः ए सूत्रोथी कण्हो रूप बाय सं. ऊष्णीष तेने चालता सूत्रे ष्णनो पह थाय. पनी शषोः सः क्लीवे सम् ए सूत्रोथी ऊण्हं रूप थाय. सं. ज्योत्स्ना तेने अधोमनयां० चालता सूत्रे स्नानो पहा थाय. पनी अंत्यव्यंज० ए सूत्रे जोण्हा रूप थाय. सं स्नान तेने चालता सूत्रे स्ननो पह थाय. पठी कगचज अतः सेडोंः सूत्रोथी पहाओ रूप थाय. सं. प्रस्तुत तेने सर्वत्र चालता सूत्रे स्नु नो ण्हु थाय. पनी कगटड अत:से?: ए सूत्रोथी पण्हुओ रूप थाय. सं. वह्नि तेने चालता सूत्रे ह्र नो पह थाय. पनी अलीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वण्ही रूप वाय. सं. जह्न तेने चालता सूत्रे ह्र नो पह थाय. पली अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी जण्हु रूप थाय. सं. पूर्वाह्न तेने हवः संयोगे सर्वत्र अनादौ० इस्वः संयोगे चालतासूत्रे ह नो पह थाय. अतः सेोंः ए सूत्रोथी पुवण्हो रूप श्राय. सं. अपराह्न तेने पोवः न्हव:संयोगे चालता सूत्रे ह्र नो पह थाय. अतःसे?: ए सूत्रोथी अवरण्हो रूप थाय. सं श्लक्ष्ण तेने सर्वत्र शषोःस चालता सूत्रे णनो ग्रह थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सण्हं थाय. सं. तीक्ष्ण तेने हस्वः संयोगे चालता सूत्रे क्ष्णनो पह थाय
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३२
मागधी व्याकरणम् . क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तिण्हं रूप थाय. सं. कृष्ण तेने ऋतोऽत् कृष्णवर्णे ए सूत्रे ष तथा णनो विश्लेष करी तेनी पेहेली अ थाय. लोकात् शषोः सः अत:सेझैः ए सूत्रोथी कसणो रूप थाय. सं. कृष्ण तेने ऋतोऽत् कगचज० अर्हश्रीहीकृष्ण क्रियादिष्टया ए सूत्रे ष तथा णनो विश्लेष करी तेनी पेहेलां फ थाय. पनी लोकात् नोणः अतःसेझैः किसिणो रूप थाय. ॥ १५ ॥
ह्लो ददः॥६॥ ह्नः स्थाने लकाराक्रांतो इकारो नवति ॥ कल्हारं पदहा ॥ - मूल भाषांतर. हू ने स्थाने ल सहित ह (ल्ह ) थाय. सं. कलारं तेनुं कल्हारं थाय. सं. प्रह्लाद तेनुं पल्हाओ थाय.
॥ ढिका ॥ हू ६१ व्ह ११ कलार अनेन ह्रस्य व्हः ११ क्लीबे सम् मोनु० कटहारं प्रह्लाद सर्वत्र रखुक् थनेन ह्रस्य दहः कगटडेति दबुक् ११ श्रतः सेझैः पन्हा.
टीका भाषांतर. हू ने स्थाने ल्ह एवो आदेश थाय. सं. कह्नार तेने चालता सूत्रे ह्न नो ल्ह श्राय. पठी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कल्हारं रूप थाय. सं. प्रह्लाद तेने सर्वत्र चालता सूत्रे हू नो ल्ह थाय. पनी कगटड अतःसे?ः ए सूत्रोथी पल्हाओ रूप धाय. ॥ ६॥
क-ग-ट-ड-त-द-प-श-ष-स-४क पामूर्ध्व बुक् ॥ ७॥ एषां संयुक्तवर्णसंबंधिनामूर्ध्व स्थिता नां बु ग् नवति ॥ क- जुत्तं सित्यं ॥ ग मुद्धं । मुहं ॥ ट । षट्पदः बप्प ॥ कट्रफलम् । कप्फलं ॥ ड खगः। खग्गो ॥ षड्जः सजो ॥ त-उत्पदं । जप्पा ॥६॥ ममुः। मग्गू । मोग्गरो॥५ सुत्तो। गुत्तो॥श। लण्हं । निचलो। चुल।ष।गोट्टी। बहो। निहुरो ॥स । खलिउँ । नेहो ॥४क।पुःखं कुक्खं॥४प। अंतःपातः। अंतप्पा ॥
मूल भाषांतर. क गट ड द प श ष स क पा अक्षरो जो उपर जोडाक्षरमां होय तो तेमनो लुक थाय. कनां उदाहरण-सं. भुक्त तेनुं भुत्तं थाय. सं. सिक्त तेनुं सित्थं थाय. गनां उदाहरण-सं. दुग्ध तेनुं दुद्धं थाय. सं मुग्ध तेनुं मुद्धं थाय. टनां उदाहरण-सं. षट्पदः तेनुं छप्पओ रूप थाय. सं कट्फलम् तेनुं कप्फलं थाय. डनां उदाहरण-सं खङ्ग तेनुं खरगो थाय. सं. षड्जः तेनुं सज्जो रूप थाय त.
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द्वितीयः पादः ।
३१
नां उदाहरण-सं उत्पलं तेनुं उप्पलं थाय. सं. उत्पात तेनुं उपाओ थाय. दनां उदाहरण-सं मद्गुः तेनुं मग्गू थाय. सं. मुद्गरः तेनुं मोग्गरो थाय. पनां उदाहरणसं सुप्त तेनुं सुत्तो थाय. सं. गुप्त तेनुं गुत्तो थाय. शनांउदाहरण- सं. श्लक्ष्णं तेनुं लहं याय. सं. निश्चलः तेनुं निच्चलो थाय. सं. श्रयुतति तेनुं चुअइ थाय. पनां उदाहरण - सं. गोष्टी तेनुं गोट्ठी थाय. सं. षष्ट तेनुं छडो थाय. सं. निष्ठुरः तेनुं निहरो थाय. सनां उदाहरण-सं स्खलित तेनुं खलिओ थाय. सं. स्नेह तेनुं नेहो थाय. ५ कनां उदाहरण- सं. दुखं तेनुं दुक्खं थाय. ५ पनां उदाहरण-सं. अंतपातः तेनुं अंतरपाओ थाय.
॥ ढुंढिका ॥
कश्च गश्च टश्च डश्च तश्च दश्च पश्च शश्च पश्च सश्च कश्च पश्च क
गटडतद पशषस क ५ पः तेषां ६३ ऊर्ध्व ११ लुक् ११ जुक्त ११ अने न लुक् श्रनादौ द्वित्वं क्लीबेस्म मोनु० जुत्तं । सिक्त श्रनेन क्लुक् नादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व य तः ११ क्लीबेस्म् सित्थं । दुग्ध - श्रनेन गलुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीय तु पूर्व धस्य दः ११ क्लीवेसम् मोनु० डुङ्कं । मुग्ध । मुग्ध - अनेन तथैव मुरुं । षट्पद षट्शमीशावसुधा सप्तपर्णेष्वादे वः षस्य बः अनेन टलुकू अनादौ द्वित्वं कगचजेतिदलुक् ११ यतः सेर्डोः उप्पर्छ । कट्फलं अनेन टलुक् श्रनादौद्वित्वं प्फ ११ क्ली बेस्म मोनु० कप्फलं खड्ड श्रनेन डलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ - तः सेडः खग्गो । षड्रज- छानेन डलुक् श्रनादौत्वं ११ अतः सेर्डोः सो । उत्पल श्रनेन लुक् श्रनादौ द्वित्वं ११क्की बेस्म् मोनु० उप्पलं उप्फाल - नेन तूलुक् नादौ द्वित्वं कगचजेति त्लुक् ११ यतः सेर्डोः उप्पार्क । म अनेन दलुक् श्रनादौ हि ११ अक्की वे दीर्घः । मग्गू | काकः । मुङ्गर- उत्संयोगे मु मो अनेन दल अनादौ द्वित्वं ११ श्रतः सेर्डोः मोग्गरो । सुप्त - गुप्त अनेन पलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ यतः - सेर्डोः सुत्तो गुत्तो । श्लक्ष्ण अनेन शलुक् श्लक्ष्णस्त्र ष्ण स्त्रेतिक्ष्ण स्य एहः ११ क्की बेस्म मोनु० लएं । निश्चल ११ श्रनेन शलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ यतः सेडोंः निच्चलो युत्- अनेन शलुक् च तिव्र अधोमनयां यलुक् व्यंजनाददंते युतति इति जातेत्यादीनां माद्यति कगचजेति
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मागधी व्याकरणम्. त्बुक् चुथइ। गोष्ठी- अनेन षबुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीयतु पूर्व उ ट ११ अंत्यव्यंजनस्य सबुक् गोही। षष्ठ ११ षट्शमीशावेति षषबुक् अनादौ हित्वं द्वितीय ११ अतःसेझैः बहो । निष्ठुर- अनेन षबुक् अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ट ठ ११ अतःसेझैः। निहुरो । स्खलितः११ श्रनेन स्बुक् कगचजेति लुक् श्रतःसेडोंः खलिउँ स्नेह- अनेन शदक् ११ अतःसे?ः नेहो ख- अनेन शबुक् अनादौहित्वं द्वितीय तु पूर्वखस्य कः ११ क्लीबेसम् मोनु उक्खं । अंत - पात अनेन मूर्धन्यबुक् अनादौ हित्वं कगचजेति त्यु११अतःसेडोंःअंतप्पार्ड टीका भाषांतर.क गट ड तद प श ष स कपए अदरोना आगलना जोडादर नो लुक् थाय. सं. भुक्त तेने चालतासूत्रे कनो लुक् श्राय. पगी अनादी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी भुत्तं रूप थाय. सं. सिक्त तेने चालता सूत्रथी कनो लुक् थाय. अनादौ० द्वितीय क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सित्थं रूप श्राय. सं. दुग्ध तेने चालता सूत्रथी गनो लुक् थाय. अनादौ द्वितीय० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी दुद्धं रूप प्राय. सं. मुग्ध तेने चालता सूत्रधी गनो लुक् थाय. पनी पूर्ववत् थइ मुद्धं रूप थाय. सं. षट्पद तेने षट्शमीशावसुधासप्तपणेष्वादेः बः चालता सूत्रे ट नोलुक् थाय. अनादौ० कगचज० अतःसेडोंः ए सूत्रोथी छप्पओ रूप थाय. सं. कट्फलं तेने चालता सूत्रे टनो लुक् थाय. अनादी० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी कप्फलं रूप श्राय. सं. खड्ग तेने चालता सूत्रे डनो लुक् थाय. अनादौ० अतःसेझैः ए सूत्रोथी वग्गो रूप थाय. सं. षड्ज तेने चालता सूत्रथी डनो लुक् थाय. पठी अनादौ अतःसेटः ए सूत्रोथी सज्जो रूप थाय. सं. उत्पल तेने चालता सूत्रथी तनो लुक् थाय. अनादी० क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी उप्पलं रूप थाय. सं. उत्फाल तेने चालता सूत्रे तनो लुक् थाय. अनादौ० कगचज० अतःसेडोंः ए सूत्रोथी उप्पाओ रूप थाय. सं. मद् तेने चालता सूत्रे दनो लुक् थाय. अनादी अक्लीबे दीर्घः ए सूत्रोथी मग्गू रूप थाय. तेनो अर्थ काकपक्षी थाय ने. सं. मुद्गर तेने उत्संयोगे चालता सूत्रे दनो लुक् श्राय. अनादौ अतासेडोंः ए सूत्रोथी मोग्गरो रूप थाय. सं. सुप्त गुप्त तेने चालता सूत्रे पनो लुक् थाय. अनादौ० अतःसेडोंः ए सूत्रोथी सुत्तो गुत्तो ए रूप थाय. सं. लक्ष्ण-तेने चालता सूत्रे शनोलुक् थाय. श्लक्ष्णनष्ण० क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी लण्हं रूप धाय. सं. निश्चल तेने चालता सूत्रे शनोलुक् थाय अनादौ० अतःसेडर्डीः ए सूत्रोथी निच्चलो रूप श्राय. सं. श्युत् धातु तेने चालता सूत्रे शनो लुक् थाय. तिव् प्रत्यय आवे अधोमनयां व्यंजनाददंते ए सूत्रोथी च्युतति रूप थाय. पी त्यादीनां माद्यति कगचज ए सूत्रोथी चुअइ रूप थाय. सं. गोष्टी तेने चालता सूत्रे षनोलुक् श्राय. अनादौ० द्वितीय. अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी गोट्ठी रूप
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द्वितीयःपादः।
३३१ थाय. सं. षष्ट तेने षट्शमीशाव० अनादौ० द्वितीय० अतःसेझैः ए सूत्रोथी छट्ठो रूप श्राय. सं. निष्ठुर तन चालता सूत्रे षनोलुक् थाय. अनादौ द्वितीय० अतःसे?: ए सूत्रोथी निट्टरो रूप थाय. सं. स्खलित तेने चालता सूत्रे सनो लुक् थाय. कगचज० अतःसे?ः ए सूत्रोथी खलिओ रूप थाय. सं. स्नेह तेने चालता सूत्रे सनो लुक् थाय. अतःसे?ः ए सूत्रोथी नेहो रूप थाय. सं. ५ ख तेने चालता सूत्रे शनोलुक् थाय. अनादौ द्वित्वं द्वितीय क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी दुक्खं रूप थाय. अंत:पात तेने चालता सूत्रे मूईन्यनो लुक् थाय. अनादी० कगचज० अतःसेोः ए सूत्रोथी अंतप्पाओ रूप थाय. ॥ ७ ॥
अधो मनयाम् ॥ ७ ॥ मनयां संयुक्तस्याधो वर्तमानानां लुग् नवति म-जुग्गं । रस्सी। सरो। सेरं ॥ न । नग्गो। लग्गो ॥ य । सामा। कुटुं । वाहो ॥
मूल भाषांतर. जोडाक्षरनी नीचे रहेला एवा म न य तेनो लुक् थाय. मनां उदाहरण-सं. युग्मम् तेनुं जुग्गं श्राय. सं. रश्मि तेनुं रस्सी रूप थाय. सं. स्मर तेनुं सरो थाय. सं. स्मेरं तेनुं सेरं थाय. ननां उदाहरण-सं. नग्न तेनुं नग्गो पाय. सं. लग्न तेनुं लग्गो रूप थाय. यनां उदाहरण-सं. साम्या तेनुं सामा थाय. सं. कुडयं तेनुं कुटुं श्राय. सं. व्याध तेनुं वाहो रूप पाय. ॥ ७० ॥
॥ टुंढिका ॥ थधस् ११ श्रव्यय सबुक् मश्च नश्च यश्च मनयः तेषां ६३ युग्मश्रादेर्योजः यस्य जः अनेन मलुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीवे स्म् मोनु० जुग्गं । रश्मि- अनेन मलोपः शषोः सः अनादौ हित्वं ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक रस्सी । स्मर ११ अनेन मलुक् श्रतः से?ः सरो । स्मेर- ११ अनेन मबुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु० सेरं । नग्न ११ लग्न ११ अनेन नलुक अनादौ ११ अतः सेोः नग्गो लग्यो। शाम्या- अनेन य्बुक् शषोः सः ११ अंत्यव्यंग स्बुक् सामा कुडयं अनेन यबुक अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु कुटुं । व्याध-थनेन लुक् खघथ धस्य हः ११ श्रतः सेझैः वाहो ॥ ७ ॥
टीका भाषांतर. जोडाक्षर नीचे आवेला म न य तेनो लुकू थाय. सं. युग्म तेने आयोजः चालता सूत्रे मनो लुक् थाय. अनादौ क्लीवे मुम् मोनु० ए सूत्रोथी जुग्गं रूप थाय. सं. रश्मि तेने चालता सूत्रे मनो लोप थाय. शषोः सः अनादौ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी रस्सी रूप श्राय. सं. स्मर तेने चालता सूत्रे म
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मागधी व्याकरणम्.
३३२
नो लुक् थाय. अतः सेड: ए सूत्रोथी सरो रूप याय. सं. स्मेर तेने चालता सूत्रे मनो लुक् श्राय. कीबे स्म मोनु० ए सूत्रोथी सेरं रूप याय. सं. नग्न लग्न तेने चा लता सूत्रश्री ननो लुक् थाय. अनादौ अतः सेडः ए सूत्रोथी नग्गो लग्गो रूप थाय. सं. शाम्या तेने चालता सूत्रथी यनो लुक् थाय. शषोः सः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सामा रूप याय. सं. कुडथ तेने चालता सूत्रे यनो लुक् थाय. अनादौ क्लीवे सम मोनु० ए सूत्रोथी कुड्डुं रूप याय. सं. व्याध तेने चालता सूत्रथी यनो लुक् श्राय. खघथ० अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी वाहो रूप श्राय ॥ ७८ ॥ सर्वत्र ल-व- रामवन्द्वे ॥ ७९ ॥
बन्द्र शब्दादन्यत्र लवरां सर्वत्र संयुक्तस्योर्ध्वमधश्च स्थितानां लुग् जवति ॥ ऊर्ध्वं ॥ ल । उल्का | उक्का ॥ वल्कलं । वक्कलं ॥ व । शब्दः । सहो || अब्दः । श्रहो ॥ लुब्धकः । लोद्धनं ॥ र । अर्कः । श्रक्को ॥ वर्ग: । वग्गो ॥ व्यधः । लक्षणम् | सरहं ॥ विक्लवः | विक्कवो ॥ पक्व - म् । पक्कं । पिक्कं ॥ ध्वस्तः । धत्थो ॥ चक्रं । चकं ॥ ग्रहः । गहो । रात्रिः ः । रत्ती ॥ त्र इत्यादि संयुक्तानामुजयप्राप्तौ यथादर्शनं लोपः ॥ कचिदूर्ध्वम् । उद्विग्नः । उद्विग्गो || द्विगुणः । वि-उणो ॥ द्वितीयः । वी ॥ कल्मषम् । कम्मसं ॥ सर्वम् । सर्व्वं ॥ शुल्वम् । सुब्बं ॥ कचित्त्वधः । काव्यम् । कव्वं ॥ कुट्या | कुल्ला ॥ माध्यम । मत्रं ॥ द्विपः दि ॥ द्विजातिः । श्राई ॥ कचित्पर्यायेण । द्वारम् । बारं । दारं ॥ उद्विग्नः । उद्विग्गो । उष्णिो ॥ अवन्द्र इति किम् । वन्द्रं । संस्कृत समोऽयं प्राकृतशब्दः । अत्रोत्तरेण विकल्पोऽपि न जवति निषेधसामर्थ्यात्
मूल भाषांतर. वन्द्र शब्दने वर्जिने जोडाक्षरमां उपर के नीचे रहेला एवा बीज ल ब र अहरोनो लुक् थाय. जोडाक्षरमां उपर रहेला लनां उदाहरण - सं. उल्का तेनुं उक्का रूप थाय. सं. वल्कल तेनुं वक्कलं याय. बनां उदाहरण - सं. शब्द तेनुं सद्दो रूप थाय. सं. अब्द तेनुं अद्दो रूप थाय. सं. लुब्धक तेनुं लोडओ रूप थाय. रनां उदाहरण-सं. अर्क तेनुं अक्को रूप थाय. सं. वर्ग तेनुं वग्गो रूप थाय. जोडाक्षरमां नीचे वेलानां उदाहरण-सं. लक्ष्णं तेनुं सण्हं रूप थाय. सं. विक्लवः तेनुं विकवो रूप याय. सं. पक्कम् तेनुं पक्कं पिक्कं एवां रूप थाय. सं. ध्वस्त तेनुं धत्थो रूप याय. सं. चक्र तेनुं चक्कं रूप थाय. सं. ग्रह तेनुं गहो रूप याय. सं. रात्रिः तेनुं रती रूप याय. हिंद इत्यादि जोडाक्षरने बनेने लुक् थवा श्राव्यो पण तेनो यथा. दर्शन लोप याय. कोइ ठेकाणे उपरना जोडाक्षरनो पण याय. जेम-सं. उद्विग्न तेनुं
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द्वितीयःपादः।
३३३ उव्विग्गो रूप थाय. सं. द्विगुणः तेनु विउणो रूप थाय. सं. द्वितीयः तेनुं बीओ रूप थाय. सं. कल्मषम् तेनुं कम्मसं रूप थाय. सं. सर्व तेनु सव्वं रूप थाय. सं. शुल्वम् तेनुं सुब्बं रूप थाय. को ठेकाणे नीचेना जोमादरनो लुक् श्राय. जेम-सं. काव्यम् तेनुं कव्वं रूप थाय. सं. कुल्या तेनु कुल्ला रूप श्राय. सं. माल्यम् तेनु मल्लं पाय. सं. द्विषः तेनु दिओ श्राय. सं. द्विजातिः तेनु दुआई थाय. कोइ ठेकाणे पोये ( अनुक्रमे ) थाय. जेम-सं. द्वारम् तेनां बारं तथा दारं एवां रूप थाय. सं. उद्विग्न तेनां उविग्गो तथा उव्विणो रूप थाय. मूलमां वन्द्र शब्दने वर्जिने एम कडं ने तेथी सं. चन्द्रं तेमां जोडाक्षरनो लुक् थाय. श्रा प्राकृत शब्द संस्कृतना जेवो के. अहिं उत्तरमा निषेधना सामर्थ्यथी विकटप पण न थाय. ॥ ए॥
॥ ढुंढिका ॥ सर्वत्र १ लश्च वश्च रश्च लवरः तेषां ६३ न वंडं अवंडं तस्मिन् ७१ उटका अनेन ललुक् अनादौ हित्वं ११ अंत्यव्यंग सलुक् उका वकल अनेन ललुक् अनादौहित्वं ११ अंत्यव्यंग सलुक् क्लीबेस्म् मोनुण्वकलं शब्द शषोःसः अनेन वलुक् अनादौहित्वं ११ श्रतःसेझैः सहो । अब्द अनेन वलुक् ११ अतःसे?ः अहो बुब्धक उत्संयोगे लो अनेन वलुक् अनादौहित्वं द्वितीयतुपूर्वधदः११ कगचजेति क्लुक् लोको उरा अर्क वर्ग अनेन रबुक् अनादौहित्वं ११ अतःसेझैः अको वग्गो। श्लदण अनेन ललुक् शषोः सःसूमश्ममण्ह ११ क्लीबेसम् मोनु० सण्ड वि क्लव अनेन ललुक् धनादौहित्वं ११ अतःसेझैः विकवो । पक्क पक्वांगारललाटे प पिअनेन वलुक् अनादौहित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु पिकं । ध्वस्त बनेन वबुक् स्तस्यथोऽसमस्तस्तंबे वा स्तस्य थः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व थ त ११ अतःसे ः धत्यो । चक्र अनेन रखुक् अ नादौहित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु चकं । ग्रह अनेन रबुक् ११ अतःसे?ः गहो । रात्रि ह्रस्वःसंयोगे रा रः अनेन रलुक् अनादौहित्वं ११ अक्लीवेदीर्घः अंत्यव्यंग सलुक् रत्ती 5 इत्यादिसंयुक्तानामकराणां सूत्रहयप्राप्तौ यादृशं रूपं दृश्यते तदनुसारेण तत्र प्राप्यतेक्वचिदूर्ध्वाक्षरस्यैव लो पो नाधोवर्तिनः यथा उद्विग्नः कगटडेतिदक् अनादौहित्वं अधोमनयां यबुक् अंत्यव्यंग स्बुक् नविग्गो । द्विगुण ततः समानानां दीर्घः कग चजेति वबुक् ११ अतःसे?ः विजणो द्वितीय, कगटडेति दबुक् कगच
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३३४
मागधी व्याकरणम्. जेति वलुक् खरस्योवृत्ते इति क्वचित्संधिरेव ततः अतःसे?ः बी कमष-सर्वत्र लबुक् अनादौहित्वं शषोः सः ११ अनादौहित्वं क्लीबेसम् मोनु कम्मसं सर्व-सर्वत्र रबुक् क्लीबेसम् मोनु सव्वं । शुब्व-सर्वत्र लबुक् शषोः सः अनादौ हित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु सुवं । क्वचिदधोवर्तिनः एव बुग्नवति यथा काव्य- हवःसंयोगे का क अधोमनयां यबुक् अनादौहित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु कई । कुट्या- ११ अधोमनयां यलुक् अनादौहित्वं ११ अंत्यव्यंण सबुक् कुरा । मादय- ह्रस्वःसंयोगे मा म अधोमनयां यबुक् अनादौहित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु मह्यं । हिप सर्वत्र वबुक् कगचजेतिप्लुक् ११ अतःसे?ः दिउँ द्विजाति-सर्वत्र वबुक् हिन्योरुत् दि छ कगचजेति जतयोर्बुक ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं० स्लुक पुथाई क्वचिदनुक्रमेण बुक ऊर्ध्ववत् अधोवर्त्तिनश्च यथा हार-कगटडेति दबुक् ११ क्वीबेस्म् मोनु दारं छारं सर्वत्र वलुक् दारं- उछिन्न- कगटडेतिदबुक् अनादौ हित्वं अधोमनयां वलुक् अनादौद्रित्वम् ११ श्रतःसे?ः नविग्गो। कगटडेति दक् अनादौहित्वं कगटडेति गलुक् नोणः श्रनादौ हित्वं ११ श्रतःसेडोंः उविमो वंश ११ क्लीबेसम् मोनु वंडं समूहः ॥ ए॥
टीका भाषांतर. वंज शब्दने वर्जीने ल व र ए श्रदरोना जोडाक्षरो जे उपर के नीचे रह्या होय तेमनो लुक् थाय. सं. उल्का तेने चालता सूत्रे लनो लुक् थाय. पनी अनादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी उक्का रूप थाय. सं. वल्कल तेने चालता सूत्रथी लनो लुक् थाय. पगी अनादौ० अंत्यव्यं० क्लीबसम् मोनु० ए सूत्रोथी वक्कलं रूप थाय. सं. शब्द तेने शषोः सः चालता सूत्रे वनो लुक् आय. अनादौ० अतःसे?ः ए सूत्रोथी सद्दो रूप थाय. सं. लुब्धक तेने ओत्संयोगे चालतासूत्रे वनो लुक् थाय. अनादौ० द्वितीय कगचज अतःसे?ः लोडो रूप थाय. सं. अर्क वर्ग तेने चालता सूत्रे रनो लुक् थाय. अनादौ अतःसेडों: ए सूत्रोथी अक्को वग्गो रूप श्राय. सं सक्ष्ण तेने चालता सूत्रे लनो लुक् थाय. शषोःसः सूक्ष्मश्मष्मण० क्लबसम् मोनु० ए सूत्रोथी सण्हं रूप श्राय. सं. विक्लव तेने चालता सूत्रे लनो लुक् थाय. अनादौ०अतःसेटः ए सूत्रोथी विकयो रूप थाय. सं. पक्व तेने पक्वांगार० चालतासूत्रे वनोलुक् थाय. अनादौ० क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पिकं रूप पाय. सं ध्वस्त तेने चालता सूत्रधी वनो लुक् थाय. पठी स्तस्यथोसमस्तस्तंबे अनादौ० दितीय० अतः. से?ः ए सूत्रोथी धत्थो रूप थाय. सं. चक्र तेने चालता सूत्रोथी रनो लुक् थाय.
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छितीयःपादः।
३३५ अनादौ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चक्क रूप श्राय. सं. ग्रह तेने चालतासूत्रथी रनो लुक् थाय. अतःसेझैः ए सूत्रथी गहो रूप थाय. सं. रात्रि तेने हस्वःसंयोगे चालता सूत्रे रनो लुक् थाय. अनादौ० अक्लीबेदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी रत्ती रूप थाय. जे अदरो द ए अकरथी संयुक्त होय त्यां बे सूत्रोनी प्राप्ति थतां जेवू रूप जोवामां आवे तेने अनुसारे त्यां तेवु सूत्र प्राप्त थाय. कोइ ठेकाणे नीचेना जोडाक्षरनो लोप न अतां जपरना जोडाक्षरनो लोप पाय. जेम सं. उद्विग्न तेने कगटडअनादी०अधोमनयां अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी उविग्गो रूप थाय. सं. द्विगुण तेने समानानां दीर्घः कगचज अतःसे?ः ए सूत्रोथी विजणो रूप थाय. सं. द्वितीय तेने कगटडकगचज० स्वरस्योवृत्ते ए सूत्रे को ठेकाणे संधिज थाय. पठी अतःसे?ः ए सूत्रोथी बीओ रूप थाय. सं कल्मष तेने सर्वत्र अनादौ० शपोः सःक्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी कम्मसं रूप थाय. सं. सर्व तेने सर्वत्र क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सव्वं रूप श्राय. सं शुल्व तेने सर्वत्र शषोः सः अनादौ क्लीयेसम्मोनु० ए सूत्रोधी सुवं रूप पाय. को ठेकाणे नीचे आवेला जोडादरनो लुक् थाय. जेम-सं. काव्य तेने हस्वः संयोगे अधोमनयां अनादौ० क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी कव्वं रूप थाय. सं. कुल्या तेने अधोमनयां अनादी० क्लीबेसम् मोनु०ए सूत्रोथी कुवारूप थाय तेवीरीते सं.माट्य तेनुं इस्वःसंयोगे अधोमनयां अनादौ तीबे सूम् मोनु मल्लं रूप थाय. सं.द्विप तेने सर्वत्र कगचज एसूत्रोथी अतःसेटः ए सूत्रोथी दिओ रूप श्राय.सं.द्विजाति तेने सर्वत्र द्विन्योरुत् कगचज ७ अक्लीवेदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी दुआइ रूप थाय. कोश्ठेकाणे अनुक्रमे नपरना जोडादरनी जेम नीचेना जोडाक्षरनो लुक् थाय. जेम- सं. घार-- तेने कगटड क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी दारं थाय. पके द्वार तेने सर्वत्र ए सूत्रे हारं रूप थाय. सं. उद्विग्न तेने कगटड अनादौ० अधोमनयां अतःसे?ः ए सूत्रोथी उविग्गो रूप श्राय. पदे सं. उद्विग्न तेने कगटड अनादौ नोणः अतःसेट: ए सूत्रोथी उव्विणो रूप श्राय. सं. वंद्र तेने क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी वंद्रं रूप थाय. चंद्रनो अर्थ समूह थायचे. पुए
रो न वा ॥6 ॥ प्रशब्दे रेफस्य वा लुग् नवति ॥ चंदो चंडो रुद्दो रुखो । नई नई। समुद्दो समुसो ॥ ह्रदशब्दस्य स्थितिपरिवृत्तौ उह इति रूपं तत्र हो दहो केचिद् रलोपं नेवन्ति । उहशब्दमपि कश्चित् संस्कृतं मन्यते ॥ वो हादयस्तु तरुणपुरुषादिवाचका नित्यं रेफसंयुक्ता देश्या एव । सिक्खन्तु वोहीवो वोह- अहम्मि पडिया ॥ ७ ॥
मूल भाषांतर. द्र शब्दना रेफनो विकटपे लुक् थाय. सं. चंद्र तेनां चंदो चंद्रो एवां रूप थाय. सं. रुद्र तेनां रुद्दो रुद्रो एवां रूप श्राय. सं. भद्रं तेनां भई भद्रं रूप थाय. सं. समुद्रः तेनां समुद्दो समुद्रो रूप थाय. सं. ह्रद शब्दने स्थितिना परिवर्तनमां
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मागधी व्याकरणम्.
द्रह एवं रूप याय. त्यारे द्रहो दहो एवां रूप याय. त्यां केटलाएक रनो लोप इच्छता नथी. कोइ द्रह शब्दने संस्कृत गणे. बोद्रह विगेरे शब्दो युवान पुरुष विगेरेना वाचनित्ये रेफयुक्त तथा देशी जाषाना बे . सं. शिक्षतु वोद्रवीकः तेनुं सिक्खन्तु वोद्र होओ एवं थाय. सं. वोद्रहद्रहेऽस्मिन् पतिताः तेनुं वो द्रह- ब्रहम्भि पडिआ एवं रूप थाय ॥ ८० ॥
॥ ढुंढिका ॥
७१ र ६१ न ११ वा ११ चंद्र- अनेन वा चन्दो | पदे चंद्र - ११ यतः सेडः चंद्रो । रुद्र सेर्डोः रुद्दो । पदे रुद्र - ११ अतः सेः रुद्रो । नादौ त्वं क्लीम् मोनु० जदं पदे न समुद्र - अनेन वा लुक् श्रभ्यादौ द्वित्वं ११ समुद्र - ११ यतः सेर्डोः समुद्रो । ह - ११ अतः सेर्डोः हो । प्रहअनेन रलुक् ९१ अतः सेर्डोः दहो । शिक्षा विद्यापादने शिक्ष- पंचमीअतु वहुपुत्रमौ अतुस्थाने तु व्यंजना दर्दतेऽत् लोकात् शिक्षतु इति स्थिते शपोः सः कः खः क्वचितु बकौ दे खे श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयतु पूर्व ख क सिक्खंतु वो ही १३ स्त्रियामुदौ तौ वा जस् स्थाने उ वोSहान तरण्यः स्त्रियः वोsहः ७१ डेमिके ङि स्थाने डे तरुष्य इत्यर्थः । पतिता सदपो नामः तस्य डः कगचजेति तलुक् १३ जस्शस् ङसित्तो हामिदीर्घःत ता जस्श सोर्लुक् जस् लोपः ११ त्र्यंत्यव्यंज० लुकू वधांराविश्रा
टीका भाषांतर. व शब्दना रेफनो विकल्पे लुक् थाय. सं. चंद्र- तेने चालता सूत्री विकट रनो लुक् थाय. अतः सेडों: ए सूत्रश्री चन्दो रूप थाय. पदे चंद्र तेने अतः सेडः ए सूत्री चंदो रूप थाय. सं. रुद्र तेने चालता सूत्रथी विकल्पे रनो लुक थाय. अतः सेडः ए सूत्रथी रुद्दो रूप थाय. पदे रुद्र तेने अतः सेडों: ए सूत्रथी रूद्रो रूप थाय. सं. भद्र तेने चालता सूत्रथी रनो लुक् थाय. पबी अनादौ क्लीवेस मोनु० ए सूत्रोथी भद्रं रूप थाय. पदे भद्र - तेने क्लीबेस्म मोनु०ए सूत्रोयी भद्रं रूप याय. सं. समुद्र तेने चालतासूत्रे विकल्पे रनो लुक् थाय. अग्न्यादौ द्वित्वं अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी समुद्दो रूप थाय. पदे सं. समुद्र तेने अतः सेड : ए सूत्रोथी समुद्रो रूप थाय. स. द्रह तेने अतः सेड: एसूत्रोथी द्रहो रूप थाय. पदे द्रह - तेने चालतासूत्रे रनो लुक् थाय. अतः सेड: एसूत्रथी द्रहो रूप थाय. सं. शिक्षू धातु विद्या शिखववामां प्रवर्त्ते, शिक्षु धातु श्रार्थमां अतु प्रत्यय यावे पड़ी बहुपुत्रहमौ व्यंजनाददतेऽत् लो
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रलुक् ११ अतः सेर्डोः श्रनेन वा रलुक् यतः
- श्रनेन लुक् अ
११
की बेस्म मोनु०न । श्रतः सेर्डोः समुदो पदे
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द्वितीयःपादः।
३३७ कात् ए सूत्रोथी शिक्षतु रूप वाय. पठी शषोः सः क्षः खः कचित्तु छझौ अनादौ द्वितीय० ए सूत्रोश्री सिक्खंतु रूप थाय. सं. वोद्रही तेने स्रियामुदौतौ ए सूत्रे जस्त्र ने स्थाने ऊ थाय. एटले वोद्रहाउ रूप थाय तेनो अर्थ तरुण स्त्रीश्रो थायजे. सं. वोद्रह तेने डेमिडे ए सूत्र लागी ते रूप सिद्ध थाय ने सं. पतिताः तेंने सदपतोर्डः कगचज जसू शस् सित्तो द्वामिदीर्घः ए सूत्रथी तनो ता थाय. पनी जम् शसोलुक अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पडिआ रूप पायजे. ७०
धात्र्याम् ॥१॥ धात्रीशब्दे रस्य बुग् वा नवति ॥ धत्ती। हखात्प्रागेव रलोपे धाई। पदे । धारी ॥१॥
मूल भाषांतर. धात्री शब्दना रनो विकटप लुग श्राय. सं. धात्री शब्द तेनु धत्ती रूप थाय. इस्वनी पेहेला र नो लोप थाय तो धाई एवं रूप थाय. पक्ष सं. धात्री तेनुं धारी रूप थाय. ॥१॥
॥ढुंढिका ॥ धात्री ७१ धात्री- अनेन वा रखुक अंत्यव्यं. सबुक् धत्ती । धात्रीहस्वात् पूर्वमेव अनेन रबुक् कगचजेति तलुक् ११ अंत्यव्यंग सबुक् धाई पदे धात्री कगटडेति त्बुक् धारी ॥ १ ॥
टीका भाषांतर. धात्री शब्दना रनो लुक् श्राय. सं. धात्री तेने चालता सूत्रे विकल्पे रनो लुक् थाय. पनी अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी धत्ती रूप थाय. पक्ष इस्वनी पेहेला लोप पाय तो. सं. धात्री तेने चालता सूत्रे रनो लुक् थाय. पजी कगचज० अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी धाई रूप थाय. पद धात्री० तेने कगटड० ए सूत्रे तनो लुक् थाय. एटले धारी रूप थाय. ७१
तीदणे ः॥॥ तीक्ष्णशब्दे णस्य बुग वा जवति ॥ तिक्खं । तिएहं ॥ २ ॥ मूल भाषांतर. तीक्ष्ण शब्दना णनो विकटपे लुकू थाय. सं. तीक्ष्णं तेनुं तिक्खं तथा तिण्हं थायः ॥ २ ॥
॥ढुंढिका ॥ तीक्ष्ण-७१ ण ६१ तीक्ष्ण- हवः संयोगे ती ति अनेन वा स्य लुक् कः खः क्वचित्तु बजौ ६ खः अनादा हित्वं द्वितीय तु पूर्व ख
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मागधी व्याकरणम्. क ११ क्लीवे स्म् मोनु तिक्खं । तीक्ष्ण- ह्रस्वः संयोगे ती ति सूक्ष्मस्नष्णेतिकण्हः ११ क्लीबे सम् मोनु० तिण्हं ॥ २ ॥ टीका भाषांतर. तीक्ष्ण शब्दना णनो विकटपे लुक् थाय. सं. तीक्ष्ण तेने हस्वः संयोगे चालता सूत्रे णनो लुक् थाय. क्षः खः क्वचितू अनादौ० द्वितीय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री तिक्खं रूप थाय. सं. तीक्ष्ण तेने ह्रस्वः संयोगे० सूक्ष्मलष्ण क्लीये स्म् मोनु० ए सूत्रोथी तिण्हं रूप थाय. ७२
झो ञः ॥७३॥ इसंबंधिनो अस्य लुग् वा नवति ॥ जाणं गाणं । सबको सब एम् । अप्पो अप्पाम् । दश्वजो दश्वसू । इङ्गिअजो इङ्गिया । मणोड मणोमं । अहिजो अहिएणू । पजा पला । अजा आणा । संजा सप्ला ॥ क्वचिन्न नवति । विमाणं ॥ ३ ॥
मूल भाषांतर. ज्ञ संबंधी अनो विकटपे लुक् थाय. सं. ज्ञानं तेनुं जाणं तथा णाणं थाय. सं. सर्वज्ञः तेनुं सव्वजो तथा सव्वण्णू रूप थाय. सं. आत्मज्ञ तेनां अप्पज्जो अप्पण्णू रूप थाय. सं. दैवज्ञ तेनां दइवजो दईवण्णू एवां रूप पाय. सं. इंगितज्ञ तेनां इङ्गिअन्जो इङ्गिअण्णू एवां रूप थाय. सं. मनोझं तेनां मणोज मणोण्णं रूप थाय. सं. अभिज्ञ तेना अहिजो अहिण्णू रूप थाय. सं. प्रज्ञा तेनां पजा पण्णा रूप थाय. सं. आज्ञा तेनां अज्जा आणा एवां रूप थाय. सं. संज्ञा तेनां संजा सण्णा एवां रूप श्राय. कोइ ठेकाणे नपण थाय. जेम सं. विज्ञानं तेनुं विण्णाणं रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ ज्ञ ६१ ज ११ ज्ञान-- अनेन वा बुक् नोणः क्वीबे सम् मोनु नाणं जाणं पदे ज्ञानं झोणः इस्य णः नोणः ११ क्लीबे सम् णाणं सर्वज्ञ सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं अनेन वाबुक् अनादौ हित्वं ११ श्रतः सेझैः सबको पदे सर्वज्ञः सर्वत्र रखुक् श्रनादौ हित्वं नझोर्णः इण झोणत्वे निझादौ ण णू ११ अंत्यव्यंग स्लुक् सवसू । श्रात्मज्ञः-हस्वः संयोगे । आ अ तस्मान्मनो पोवः त्मस्य पः अनादौ हित्वं अनेन वा बुक् अनादौ हित्वं थप्पजो-पदे आत्मज्ञः स्वःसंयोगे श्रास्वात्मस्यत्यनो पोवः त्मस्य पः अनादौ हित्वं नझोर्णः झस्य णः अनादौ द्वित्वं झोणत्वे निसादौ ण म ११ अंत्यव्यं० सबुक् थप्पल दैवज्ञ-एञ्च दैवे दे दश अनेन वा अस्यलुक् अनादौ हित्वं११अतःसे?ःदश्वजो पड़े दैवज्ञ-एच्च
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द्वितीयःपादः।
३३ए देवे दैदश् म्नझोर्णः इस्यणः श्रनादौ हित्वं ण झोणत्वेनिसादौ ण णू ११ अंत्यव्यंग सलुक् दश्वम् । इंगितज्ञः-कगचजेति तबुक् अनेन वा अस्य बुक् धनादौ द्वित्वं ११ श्रतः सेोः इंगिशजो पदे इंगित कगचजेति त्बुक् नझोर्णः इस्य णः श्रनादौ हित्वंशो णत्वे निसादौ ण णू ११ अंत्यव्यंजन सबुक् इंगिएणू । मनोज्ञ नोणः अनेन वा अस्य लुक् अनादौ हित्वं क्लीबे स्म् मोनु मणोऊं । पदे मनोज्ञ नोणः नझोर्णः श्रनादौ द्वित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु० मणोएणं अनिश खघथ नस्य हः अनेन वा त्रस्य बुक् अनादौ हित्वं ११ अतः सेझैः अहिजो । पदे अनिश खघथधनां नस्य हः नझोर्णः ज्ञस्य णः अनादौ हित्वं झोणत्वे निसादौ ण णू ११ अंत्यव्यं जन सबुक् अहिणू । प्रज्ञा सर्वत्र रखुक् अनेन अस्य लुक् अनादो हित्वं ११ अंत्यव्यंग सबुक् अनादौ हित्वं ११ अंत्यव्यं० सलुक् पङा। पः प्रज्ञा-सर्वत्र रबुक् म्नझोर्ण झस्य णः अनादौ हित्वं ११ अंत्यव्यंग स्खुक् पमा थाइा ह्रखः संयोगे था श्र अनेन वा लुक् श्रनादौ हित्वं द्वितीयतु अंत्यव्यं० सलुक् अजा । पदे थाान्हस्वः संयोगे था थ म्नझोर्णः इस्य णः११ अंत्यव्यंग सबुक् थामा । संज्ञान झोर्णः झस्य णः वेसति मांसादेर्वानुस्वारेण लोपः अनादौ हित्वं अंत्यव्यंजन सबुक संजा संज्ञा अनेन वा झुक् ११ अंत्यव्यंग सलुक् समा विज्ञान- म्नझोर्णः इस्य णः अनादौ हित्वं नोणः नस्य णःक्लीबे सम् मोनु विन्नाणं ॥ ३ ॥ टीका भाषांतर. ज्ञसंबंधी अनो विकटपे लुक् श्राय.सं. ज्ञान तेने चालता सूत्रे अनो लुक् थाय. पनी नोणः क्लीबे सम् मोनु०ए सूत्रोथी नाणं तथा जाणं एवां रूप श्राय. पदे ज्ञान तेने नज्ञोर्णः नोणः क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी णाणं रूप थाय. सं. सर्वज्ञ तेने सर्वत्र अनादौ० चालता सूत्रे अनो लुक् थाय. अनादौ० अतः सेझैः ए सूत्रोथी सव्वजो रूप श्याय. बीजे पक्ष सर्वज्ञ तेने सर्वत्र अनादौ० नज्ञोर्णः शोणत्वेनिसादौ अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी सव्वणू रूप थाय. सं. आत्मज्ञ तेने हस्वः संयोगे तस्मात्मनोः पोवः अनादौ द्वित्वं चालता सूत्रे अनो विकटपे लुक् थाय. अनादौ ए सूत्रोथी अप्पज्जो रूप थाय. पदे आत्मज्ञः हस्वः संयोगे तस्मात्मनोः पोव: अनादौ द्वित्वं नज्ञोणः अनादौ द्वित्वं ज्ञोणत्वेभिसादौ० अंत्यव्यं ए सूत्रोथी
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३४०
मागधी व्याकरणम् -
अप्पण्णू रूप याय. सं. दैवज्ञ तेने एच्च दैवे चालता सूत्रे जनो विकल्पे लुक् श्राय. अनादौ द्वित्वं अतः सेड: ए सूत्रोथी दवज्जो रूप थाय. पछे सं. दैवज्ञ तेने एच्च दैवे नज्ञोर्णः अनादी० ज्ञोणत्वेऽभिसादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी दइवण्णू रूप याय. सं. इंगितज्ञतेने कगचज० चालता सूत्रे विकल्पे ञनो लुक थाय. अनादौ० अतः सेर्डी ए सूत्रोथी इंगिअजो रूप थाय. प. सं. इंगितज्ञ तेने कगचज० नज्ञोर्ण: अनादौ ० ज्ञोणत्वेऽभिसा अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी इंगिअण्णू रूप याय. सं. मनोज्ञ तेने नोणः चालता सूत्रे विकल्पे अनो लुक् थाय. अनादौ ०क्कीबे सम् मोनु०ए सूत्रोथी मणोज्जं रूप थाय. प. सं. मनोज्ञ नोणः तेने नज़ोर्णः अनादौ ० क्लीबे सम मोनु०ए सूत्रोथी मणोष्णं रूप याय. सं. अभिज्ञ तेने खघथ० चालता सूत्रे विक नो लुक थाय. अनादौ अतः सेडः ए सूत्रोथी अहिजो रूप याय. प. सं. अभिज्ञ तेने खघथ० म्नज्ञोर्णः अनादी०ज्ञोणत्वेऽभिसादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी अहिष्णू रूप थाय. सं प्रज्ञा तेने सर्वत्र ० चालता सूत्रे अनो लुक् थाय. अनादौ ० अंत्यव्यं • ए सूत्रोथी पज्जा रूप थाय. पदे सं. प्रज्ञा तेने सर्वत्र नज्ञोर्णः अनादौ ० अंत्यव्यं or सूत्रोथी पण्णा रूप थाय. सं. आज्ञा तेने न्हखः संयोगे चालता सूत्रे विकरूपे नो लुक् श्राय. अनादौ ० द्वितीय० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी अज्जा रूप याय. पछे सं. आज्ञा तेने ह्रस्वः संयोगे नज्ञोर्णः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी आणा रूप याय. सं. संज्ञा तेने नज्ञोर्णः ज्ञस्यणो० मांसादेर्वा० अनादौ० अंत्यव्यं० ए सूत्रोश्री संजा रूप याय. पक्षे संज्ञा तेने चालता सूत्रे विकल्पे जूनो लुक् थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सण्णा रूप याय. सं विज्ञान तेने नज्ञोर्णः अनादौ० नोणः क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी विन्नाणं रूप याय. ॥ ८३ ॥
मध्याह्ने दः ॥ ८४ ॥
मध्याह्ने हस्य लुग् वा जवति ॥ मज्जन्नो मज्ऊ हो || ८४ ॥
मूल भाषांतर. मध्याह्न शब्दना हनो विकल्पे लुकू थाय. सं. मध्याह्न तेनां मज्झन्नो मज्झण्हो एवां रूप याय. ८४
॥ ढुंढिका ॥
मध्याह्न ७१ ६ ६१ मध्याह्न - ह्रस्वः संयोगे ध्याध्य साध्व सध्यह्यां ऊः ध्यस्य कः श्रनादौ द्वित्वं शेषादेशयोर्द्वित्वं क द्वितीयेतु पूर्व कस्य जः अनेन वा हस्य लोपः अनादौ द्वित्वं ११ अतः सेर्डोः मन्नो | पदे मध्याह्न - ह्रस्वः संयोगे ध्या ध्य साध्वस० ध्यस्य कः नादौ द्वित्वं द्वितीयतु पूर्व ऊजः श्रतः सेर्डोः मज्जहो ॥ ८४ ॥ टीका भाषांतर. मध्याह्न शब्दना ह नो विकल्पे लुक् थाय. सं. मध्याह्न तेने
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द्वितीयःपादः।
३४१ हस्वःसंयोगे साध्वस संध्यसां० अनादौ० द्वितीय चालता सूत्रे विकटपे हनो लुक् थाय. अनादौ० अतः सेडोंः ए सूत्रोथी मज्झन्नो रूप थाय. पदे मध्याह्न तेने हस्वः संयोगे साध्वससांध्य० अनादौ० द्वितीय० अतः सेडों: ए सूत्रोथी मज्झण्हो रूप थाय. न्।
दशा ॥ ५॥ पृथग् योगाति निवृत्तं । दशाहें हस्य बुग् जवति ॥ दसारो ॥ ५ ॥
मूल भाषांतर. पृथग् योगथी वा ए पद निवृत्त थई गयु. एटले एवो अर्थ थायके दशाह शब्दना हनो लुक् थाय. सं. दशाह तेनुं दसारो रूप धाय. ॥ ५ ॥
॥दुढिका ॥ दशाई- ७१ दशाई-शषोः सः शस्य सः अनेन दबुक् ११श्रतःसेझैः दसारो ॥ ५ ॥ टीका भाषांतर. दशाह शब्दना हनो लुक् थाय. सं. दशाह तेने शषोः सः चालता सूत्रे हनो लुक् थाय. पनी अतःसे?ः ए सूत्रथी दसारो रूप थाय. ७५
आदेः श्मश्रु- श्मशाने ॥६॥ अनयोरादे ग् नवति ॥ मासू मंसू मस्सू । मसाणं ॥ आर्षे श्मशानशब्दस्य सीआणं ॥६॥
मूल भाषांतर. इमथु अने श्मशान शब्दना आदि नो लुक् थाय. सं. श्मश्रु तेनुं मासू मंसू मस्सू एवां रूप थाय. सं. श्मशान तेनुं मसाणं रूप थाय. आर्ष प्रयोगमा सं. श्मशान शब्दनुं सीआणं रूप थाय. ७६
॥ढुंढिका ॥ आदि ६१ श्मश्रु च श्मशानं च श्मश्रुश्मशानं तस्मिन् ७१ श्मश्रुअनेन सबुक् सर्वत्र रबुकू लुप्तयरयश शषोः सः ११ अक्लीबे दीर्घः अं त्यव्यं सलुक् मबुक् मासू । द्वितीये श्मश्रु अनेन शबुक् शषोः सः वक्रादावंतः अनुस्वारः सर्वत्र रलुक्लुप्तयवरमांसादिष्वनुस्वारे मा म शषोः सः ११ अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सलुक् मंसू । तृतीये श्मश्रु-अनेन शलुक् शषोः सः मस्सू श्मशान शषोः सः नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु मसाणं ॥ ६ ॥ टीका भाषांतर. इमश्रु अने श्मशान शब्दना आदिनो लुक् श्राय. सं. इमनु
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मागधी व्याकरणम्. तेने चालता सूत्रे सनो लुक श्राय. सर्वत्र लुप्सयर० ए सूत्रे मनो मा शान. शषोः सः अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी मासू रूप थाय. बीजे पदे श्मश्रु तेने चालता सूत्रे शनो लुक् थाय. शषोः सः वादावंतः सर्वत्र लुप्तयवरमो सादि ध्वनुस्वारे० शषोः सः अक्लीबेदीघः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी मंसू रूप थाय. बीजे पदे सं. श्मश्रु तेने चालता सूत्रे शनो लुक थाय. शषोः सः ए सूत्रोथी मस्तू थाय. सं. श्मशान तेने शषोः सः नोणः ढेरोनवा अतः सेोंः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मसाणं रूप थाय. ७६
श्चो हरिश्चं ॥ ७ ॥ हरिश्चन्छ शब्दे श्च इत्यस्य लुग् नवति ॥ हरि अन्दो ॥ ७ ॥
मूल भाषांतर. हरिश्चन्द्र शब्दना श्वनो लुक् आय. सं. हरिश्चन्द्र तेनुं हरिअन्दो रूप थाय. ०७
॥ढुंढिका ॥ श्च ६१ हरिश्चन्द्र ७१ हरिश्चन्द्र- अनेन श्च लुक् सर्वत्र रलुक् श्रतः से?ः हरिश्रन्दो ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. हरिश्चन्द्रना श्वनो लुक् थाय. सं. हरिश्चंद्र तेने चालता सूत्रे श्वनो लुकू थाय. पनी सर्वत्र अतः सेोंः ए सूत्रोश्री हरिअन्दो रूप पाय. ७७
रात्रौ वा ॥ 1 ॥ रात्रिशब्दे संयुक्तस्य बुग् वा जवति ॥ राई रत्ती ॥ ७ ॥
मूल भाषांतर. रात्रिशब्दना जोडादरनो विकटपे लुक् श्राय. सं. रात्रि तेनां राई रत्ति एवां रूप प्रायः ॥ ७ ॥
॥ढुंढिका ॥ रात्रि १ वा ११ रात्रि अनेन वा त्रस्य बुक् ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंजन सलुक् राई । पदे रात्रि-हस्वः संयोगे. रा रः सर्वत्र रनुक् अनादौ हित्वं ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् रत्ती ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. रात्रि शब्दना जोडाक्षरनो विकटपे लुक् श्राय. सं. रात्रि तेने चालता सूत्रथी त्रनो लुक् थाय. पनी अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी राई रूप थाय. पके रात्री तेने न्हवः संयोगे सर्वत्र अनादौ० अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी रत्ती रूप श्रायः॥ ८ ॥
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द्वितीयःपादः।
३४३ अनादौ शेषादेशयोर्डित्वम् ॥नए॥ पदस्यानादौ वर्तमानस्य शेषस्यादेशस्य च द्वित्वं नवति ॥ शेष । कप्पतरू । जुत्तं । पुळं । नग्गो। उक्का । अको।मुक्खो ॥ आदेश।श्रडको । जक्खो । रग्गो। किच्ची । रुप्पी ॥ क्वचिन्न नवति । कसिणो ॥ अनादाविति किम् खतिथं । थेरो । खम्नो ॥ योस्तु द्वित्वमस्त्येवेति न नवति विञ्च । निएिमवालो नए । __ मूल भाषांतर. पदनी आदिमां नहीं रहेला एवा शेष अने आदेश नो दिर्जाव थाय. शेषना उदाहरण संकल्पतरू तेनुं कप्पतरू थाय. सं भुत्तं तेन भुत्तं थाय. सं. दुग्धं तेनुं दुद्धं श्राय. सं. नग्नः तेनुं नग्गो श्राय. सं उल्का तेनुं उक्का थाय. सं. अर्क तेनुं अको श्राय. सं. मुख्य तेनुं मुक्खो थाय. आदेशना उदाहरण सं. दृष्ट तेनुं डको श्राय. सं. यक्ष तेनुं जक्खो थाय. सं. रक्त तेनुं रग्गो थाय. सं. कृति तेनुं किच्ची थाय. सं. रुक्मी तेनुं रुप्पी थाय. कोइ ठेकाणे न पण थाय. सं कृष्ण तेनुं कसिणो रूप थाय. आदिमां न होयतो थाय एम कडं ने तेथी सं. स्खलित तेनुं खलिअं थाय. सं. स्थविर तेनुं थेरो थाय.सं स्तंभ तेनुं खम्भो थाय. बंनेनोद्विावज थाय एम न जाएवं. जेम सं. वृश्चिक तेनुं विचओ थाय.सं.भिन्दिपाल तेनुं भिण्डिवालो रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥ अनादि १ शेषश्च श्रादेशश्च शेषादेशौ तयोःशहित्वं ११ कल्पतरु-स र्वत्र लबुक् अनेन द्वित्वं प्प ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सलुक् कप्पतरू-जुक्त कगटडेति कबुक् अनेन त ११ क्लीबे सम् मोनु० जुत्तं मुग्ध कगटडेति गबुक् थनेन द्वित्वं द्वितीयतु पूर्व ध द ११ क्लीबे सम् मोनु० मुझं । नग्न- अधोमनयां न बुक् अनेन हित्वं ग्ग ११ अतःसे?ः नग्गो । उन्का- सर्वत्र ललुक् श्रनेन द्वित्वं क ११ अंत्यव्यंग सबुकू उका अर्क सर्वत्र रबुक् अनेन हित्वं क ११ अतःसेडोंः अक्को मूर्ख-- ह्रस्वःसंयोगे मू मु सर्वत्र रलुक् अनेन हित्वं द्वितीय क ख ११ अतः सेझैः मुक्खो दष्ट- दृष्ट दशन दष्ट दग्धति दस्य डः शक्तमुक्त दष्टइति कः अनेन हित्वं ११ श्रतः से?ःडको यह आदेखेंजः यस्यजः कस्य खः अनेन हित्वं द्वितीय ११ श्रतः से?ः जक्खो रक्त रक्तेगोवा क्तस्य गः अनेन हित्वं ११ अतःसे?ः रग्गो । कृति इत्कृपादौ क कि कृतिचत्वरेचः ति
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मागधी व्याकरणम्. चि अनेन हित्वं ११ अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक् किच्ची । रुक्मिन् ह्यक्ये क्मस्य पः अनादौ हित्वं ११ अक्कीबे दीर्घअंत्यव्यं सलुक् रुप्पी। कृष्ण तोऽत् कृक कगटडेति सबुक् तबुक ईश्रीही कृत्स्नक्रियादिष्टयामित् सनयोर्विश्लेषं कृत्वा नात् प्राग् ः लोकात् नोणः ११ अतःसेझैः कसिणो स्खलित कगटडेति सलुक् कगचजेति लुक् ११ कगचजेति त्बुक् ११ मोनु खलिशं । स्थविर- स्थविर विचकिलायस्कारे स्थविस्थाने थे ११ अतः सेडोंः थेरो स्तंज-स्तंनेऽस्तो वा स्तस्य खः११ अतः से?ः खम्नो वृश्चिक- कृपादौ वृ वि वृश्चिकेश्वेचुर्वा श्चिस्थाने चुः कगचजेति क्बुक् ११ अतःसे?ः विचुनानिन्दिपाल- कन्दरिका निन्दिपालेएमः न्दिकि पोवः ११ अतः सेझैः निएिडवालो ॥ नए ॥
टीका भाषांतर. पदनी आदिमां नहोय तेवा शेष अने आदेशनो दिर्जाव पाय. सं. कल्पतरु तेने सर्वत्र चालता सूत्रे दिवि थाय. पनी अक्लीये दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी कप्पतरु रूप थाय. सं. भुक्त तेने कगटड० चालता सूत्रे दिलाव थाय. क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी भुत्तं थाय. सं. दुग्ध तेने कगटड० चालता सूत्रे विर्भाव थाय. द्वितीय० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी दुद्धं रूप श्राय. सं. नन्नतेने अधोमनयां चालता सूत्रे द्विर्भाव थाय. अतःसेझैः ए सूत्रोथी नग्गो रूप थाय. सं. उल्का तेने सर्वत्र चालता सूत्रे विर्भाव थाय. अंत्यव्यंज. ए सूत्रोथी उक्का रूप थाय. सं. अर्क तेने सर्वत्र चालता सूत्रे द्विर्भाव थाय. अतःसे?: ए सूत्रोथी अक्को रूप धाय सं. मूर्ख तेने इस्वःसंयोगे सर्वत्र चालता सूत्रे द्विर्भाव थाय. द्वितीय० अतः सेड ए सूत्रोथी मुक्खो रूप थाय. सं. दृष्ट तेने दृष्ट दशन दग्ध० शक्तमुक्तदृष्टः चालता सूत्रे हिर्जाव थाय. अतःसे?ः ए सूत्रोथी डको रूप थाय. सं. यक्ष तेने आदेर्योजः क्षः खः कचि० चालता सूत्रे मिर्जाव श्राय द्वितीय अतः से?: ए सूत्रोथी जक्खो रूप पाय. सं. रक्त तेने रक्ते गोवा चालता सूत्रे पि व थाय. पठी अतः से?ः ए सूत्रोथी रग्गो रूप थाय. सं. कृति तेने इत्कृपादौ कृतिचत्वरे चः चालता सूत्रे दिवि थाय. अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी किच्ची रूप श्राय. सं. रुक्मिन् तेने झकये क्मस्य पः अनादौ० अक्लीवे दीर्घः अंत्यध्यंज० ए सूत्रोथी रुप्पी रूप आय. सं. कृष्ण तेने ऋतोऽत् कगटड० हश्रीहीकृत्स्नक्रिया० स् अने न्नो विश्लेप करी ननी पेहेला इ थाय. पत्री लोकात नोणः अतः से?ःए सूत्रोथी कसिणो रूप पाय. सं. स्खलित तेने कगटड० कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी खलिअं रूप थाय. सं. स्थविर तेने स्थविर विचकिलायस्कारे अतः सेों:
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द्वितीयःपादः।
३४५ ए सूत्रोथी थेरो रूप थाय. सं. स्तंभ तेने स्तंभेऽस्तोवा अतःसेझैः ए सूत्रोथी खम्भो रूप थाय. सं. वृश्चिक तेने इत्कृपादौ वृश्चिके श्चेञ्चुवा कगचज० अतःसेझैः ए सूत्रोथी विञ्चुओ रूप थाय. सं. भिन्दिपाल तेने कन्दरिकाभिन्दिपाले ण्डः पोवः अतः सेटः ए सूत्रोथी भिण्डिवालो रूप थाय. ॥ ए॥
द्वितीयतुर्ययोरुपरि पूर्वः ॥ ए॥ हितीयतुर्ययो हित्वप्रसंगे उपरि पूर्वी नवतः ॥ द्वितीयस्यो परि प्रथमश्चतुर्थस्योपरि तृतीय इत्यर्थः ॥ शेष । वक्खाणं । वग्यो । मुछा। निज्झरो । कहूँ । तित्थं । निझणो । गुप्फ । निन्नरो ॥ श्रादेश । ज
को ॥ घस्य नास्ति ॥ अली । मज्झं। पछी । वुढो हत्थो। श्रालिको। पुप्फं। निब्जलो ॥ तैलादौ [२०] हित्वे उक्खलं ॥ सेवादौ [ ए] नक्खा । नहा ॥ समासे । कश्-क कश्-धळ । छित्व इत्येव । खाजे॥ए ॥
मूल भाषांतर. बीजा अने चोथा अदरने जो हि वनो प्रसंग आवे तो ते उपरना बे पूर्व अदर थाय. एटले बीजा उपर पेहेलो अने चोथा उपर त्रीजो आवे. एवो अर्थ थाय. शेषनां उदाहरण- सं. व्याख्यान तेनुं वक्खाणं रूप थाय. सं व्याघ्र तेनुं वग्यो रूप थाय. सं. मूर्छा तेनुं मुच्छा रूप थाय. सं. निझर नेनुं निज्झरो रूप थाय. सं. कष्टं तेनुं कर्ट रूप थाय. सं. तीर्थ तेनुं तित्थं रूप थाय. सं. निर्धन तेनुं निडण रूप थाय. सं. गुल्फं तेनुं गुप्फ रूप थाय. सं. निर्भरः तेनु निन्भरो रूप श्राय. आदेशनां उदाहरण-सं. यक्ष तेनुं जक्खो घ ने न थाय. जेम-सं. अक्षि तेनुं अच्छी रूप
य. सं. मध्यं तेलु मज्झं रूप थाय. स्टष्टि तेनुं पट्टी थाय. सं. वृह तेनुं वुलो रूप बाय. सं हस्त तेनुं हत्थो रूप थाय. सं. आश्लिष्ट तेनुं आलिडो रूप थाय. सं. पुष्पं तेनुं पुप्फ रूप थाय. सं. विह्वल तेनुं भिन्भलो थाय. तैलादी (२.एG ) ए सूत्रथी बिर्ताव थाय. जेम- सं. उदूखल तेनुं ओक्वलं रूप पाय. सेवादी (२.ए) ए सूत्रयी सं. नखाः तेनुं नक्खा तथा नहा रूप थाय. समासमां पण थाय- जेम के, सं. कपिध्वज तेनुं कइ-डओ कइ-धओ रूप थाय. द्विावपणामां ज थाय. जेम- सं. ख्यात तेनुं खाओ रूप थाय.॥ ए० ॥
॥ढुंढिका ॥ हितीयश्च तुर्यश्च हितीयतुयॊ तयोः ६५ उपरि ७१ पूर्व ११ व्याख्यान श्रधोमनयां यलोपः अनादौ हित्वं अनेन पूर्वखस्य कः इखःसंयोगेवा व ११ क्लीबे स्म् मोनु० वक्खाणं व्याघ-अधोमनयां । यलोपः।
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मागधी व्याकरणम् ह्रस्वःसंयोगे वा व सर्वत्र रबुक् अनादौ द्वित्वं अनेन घस्य गः ११ श्रतः सेझैः वग्यो। मूर्ग-हृखः संयोगे मू मु सर्वत्र रलुक् अनादौ हित्वं अनेन पूर्व उस्य चः ११ अंत्यव्यंग सबुक् मुठा । निर्जर- सर्वत्र रखुक् अनादौ द्वित्वं अनेन पूर्व नस्य बः ११ अतःसे?ः निन्नरो। काष्ठ- हवःसंयोगे का कष्टस्यानु० ष्टस्य ः अनादौ हित्वं अनेन पूर्व उस्य टः ११ क्वीबे सम् मोनु० कई । तीर्थ- ह्रखःसंयोगे ती ति सर्वत्र रखुक् अनादौ हित्वं अनेन थस्य तः ११ क्लीबे सम् मोनु तित्थं । निर्डन- सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं अनेन धस्य दः नोणः ११ अतःसेर्मोः निकणो। गुदफ-सर्वत्र ललुक् अनादौ हित्वं अनेन पूर्वफस्य पः ११ क्लीवे स्म् मोनु गुप्फं। निज़र-सर्वत्ररबुक् अनादौ हित्वं अनेन पूर्वज ब ११ श्रतःसे?ः निब्जरो। यद- श्रादेर्योजः यस्य जः दः खः क्वचित्तु बौ दस्य खः अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व ख क ११ श्रतःसेझैः जख्को । कस्यापि वर्णस्य घः इत्यादेशो नास्ति ततस्तदाहरणं नोक्तं अदि बोऽदयादौ-दस्य ः श्रनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व च ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंजन सबुक् अछी । मध्य साध्वसध्य ह्यां ध्यस्य ऊः अनादौ हित्वं अनेन पूर्व ऊ जः ११ क्लीबे सम् मोनु मज्जं । स्पृष्टि कगटडेति सलुक् तोऽत् ष्टः- ष्टस्यानुष्टेष्टासंदष्टे ष्टस्य ः अनादौ हित्वं अनेन उस्य टः ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सबुक् पट्टी । वृद्ध-उकृत्तादौ वृ वु दग्ध विदग्ध वृद्धि वृझे ढःधस्य ढः अनादौ हित्वं अनेन पूर्व धस्य ढः ११ अतःसेझैः वुहो। हस्त स्तस्य थोऽसमस्त स्तंबे स्तस्य थः श्रनादौ हित्वं अनेन पूर्व थ त ११ श्रतःसे?ः हत्थो । श्राश्लिष्ट श्राश्लिष्टे लौ श्लिष्टस्य लिष्टः अनादौ हित्वं थनेन पूर्व धस्य दः ११ अतः सेझैः श्रालिको । पुष्प- पस्पयोः फः ष्पस्य फः श्रनादौ हित्वं अनेन पस्य पः ११ क्लीवे स्म् मोनु पुप्फ । विह्वल- विह्वले वौनश्च विनि बस्य नः श्रनादौ हित्वं हितीयः अनेन पूर्व न ब ११ अतःसे?ः निब्जलो । उदूखल- खलम रामयूष लवणचतुर्गुण छनणेन सहः उ तैलादौवा हित्वं अनेन पूर्व
अनविनि ह्रस्य नसलो । उदूखलअनेन पूर्व
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ख - क ११ क्लीबे सम् मोनु० क्खलं । नख - सेवादौ द्वित्वं श्र नेन पूर्व ख क १३ जस् शस् दीर्घः जस् शसोर्लुक् नक्खा १३ खघथध ज० जस् शस् ङसित्तो कामि दीर्घः जस्शसोर्लुक् नदा । कपिध्वज-कपिजे यस्य सः कपिध्वजः कगचजेति लुक् ११ सर्वत्र वलुक् समासे वा द्वित्वं अनेन पूर्व धदः कगचजेति जलुक् ११ यतः सेर्डोः कश्व । पदे कपिध्वजः कगचजेति प्रलुक् सर्वत्रवलुक् कगचजेति जलुक् ११ कश्ध । ख्यात अधोमनयां यलुक् कगचजेति त्लुक् ११ अतः सेर्डोः डित्यं खार्ज ॥ टीका भाषांतर. बीजा ने चोथा रनो जो द्विर्भाव थाय. तो ते उपरना बे पूर्व अक्षर थाय. सं. व्याख्यान- तेने अधोमनयां अनादी० चालता सूत्रे पूर्वना ख नो काय. ह्रस्वः संयोगे क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी वक्खाणं रूप याय. सं. व्याघ्र तेने अधोमनयां ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र रलुक् अनादौ ० चालता सूत्रे घनो ग थाय. अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी वग्घो रूप थाय. सं. मूर्छा तेने ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र ० अनादौ ० चालता सूत्रे पूर्व छनो च थाय. अंत्यव्यं० ए सूत्रयी मुच्छा रूप याय. सं. निर्झर तेने सर्वत्र अनादौ ० चालता सूत्रे पूर्व भनो व थाय. अतः सेड : ए सूत्रोथी निर्झरो रूप थाय. सं. काष्ट तेने ह्रस्वः संयोगे ष्टस्यानु० अनादौ० चालता सूत्रे पूर्व नोद था. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कट्टं रूप याय. सं. तीर्थ तेने ह्रस्वः संयोगे सर्वत्र० अनादौ० चालता सूत्रे थनो त याय. क्लीबे स्म मोनु० ए सूत्रोथी तित्थं रूप याय. सं. निर्धन तेने सर्वत्र अनादौ ० चालता सूत्रे धनो द याय. नोणः अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी निडणो रूप याय. सं. गुल्फ तेने सर्वत्र० अनादौ ० चालता सूत्रे पूर्व फनो प याय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी गुप्फं रूप थाय. सं. निर्भर तेने सर्वत्र अनादौ ० चालता सूत्रे पूर्व भनो व थाय. अतः सेडोंः ए सूत्रोथी निब्भरो रूप याय. सं यक्ष तेने आदेर्योजः क्षः खः कचितु० अनादौ ० चालता सूत्रे खनो क थाय. अतः सेडः ए सूत्रथी जरूको रूप थाय. कोइ अक्षरनो थ थायडे. तेने एवो देश न थाय. तेथी तेनुं उदाहरण कहेलुं नथी. सं. अक्षितेने छोऽक्ष्यादौ अनादौचालता सूत्रे छनो च थाय. अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोश्री अच्छी रूप थाय. सं. मध्य तेने साध्वसध्यह्यां॰ अनादौ ० चालता सूत्रे झनो ज थाय. पटी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मज्झं रूप याय. सं. स्पृष्टि तेने कगटड ऋतोत् ष्टस्यानु० अनादी० चालता सूत्रे नोट थाय. अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पट्टी रूप याय. सं. वृद्धतेने उद्दत्वादौ दग्ध विदग्ध वृद्धि० अनादौ ० चालता सूत्रे पूर्व घनो ड थाय. अतःसेर्डोः ए सूत्रथी बुड्डो रूप याय. सं. हस्त तेने स्तस्यथोऽसमस्त० अनादौ ० चालता सूत्रे धनो त थाय. अतः सेडः ए सूत्रोथी हत्थो रूप याय. सं. आश्लिष्ट तेने आश्लिष्टे लडौ अनादौ ० चालता सूत्रे पूर्व धनो द थाय. अतः सेडः ए सूत्रोथी
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३४८
मागधी व्याकरणम् .
आलिडो रूप थाय. सं. पुष्प तेने ष्पस्पयोः फः अनादौ० चालता सूत्रे फनो प श्राय. क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री पुष्कं रूप याय. सं. विह्वल तेने विह्नलेवौभश्चस्य० अनादौ० चालता सूत्रे पूर्व भनो ब श्राय. अतः सेडः ए सूत्रोथी भिभलो रूप थाय. सं. उदखल तेने खलमरायूष० तैला दौवा चालता सूत्रे पूर्व खनो क था. क्लीवे स्म मोनु० ए सूत्रोथी ओक्खलं रूप थाय. सं. नख तेने सेवा दौ द्वित्वं चालता सूत्रे पूर्व खनो क श्राय. जशशसुदीर्घः जस्शसोलुक ए सूत्रोश्री नका रूप श्राय पनी खघथख० जस्सू ङसित्तो द्वामिदीर्घः जशशसोलुक ए सूत्रोथी नहा रूप याय. सं. कपिध्वज ( जेनी ध्वजामां कपि बे ते ) तेने कगचज० सर्वत्र समासमां विकल्पे विर्भाव थाय पनी य चालता सूत्रे पूर्व धनो द थाय. कगचज० अतःसेडः ए सूत्रोथी कइडओ रूप थाय. पछे कपिध्वज तेने कगचज० पलुक् सर्वत्र कगचज० जलुकू ए सूत्रोथी कइधओ रूप थाय. सं. ख्यात तेने अधोमनयां कगचज० अतः सेर्डोः डित्यं ० ए सूत्रोथी खाओ एवं रूप श्राय ॥ ५० ॥ दीर्घे वा ॥ १ ॥
१ ||
दीर्घ शब्दे शेषस्य घस्य उपरि पूर्वो वा जवति ॥ दिग्घो दी हो || मूल भाषांतर. दीर्घ शब्दना शेष घनी उपर विकल्पे पूर्व अक्षर थाय. सं. दीर्घ तेनां दिग्घो दीहो एवां रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥
दीर्घ ७१ वा ११ दीर्घ- सर्वत्र रलुक् अनेन वा पूर्व ग ह्रस्वः संयोगे दी दि ११ अतः सेर्डोः दिग्धो पदे दीर्घः सर्वत्र रलुक् खघथधनां धस्य दः अतः सेर्डोः दी हो ॥ १ ॥
टीका भाषांतर. दीर्घ शब्दना शेष घनी उपर विकल्पे पूर्व श्राय. सं. दीर्घ तेने सर्वत्र चालता सूत्रे पूर्व ग थाय. -हस्वःसंयोगे अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी दिग्धो रूप थाय. प सं. दीर्घ तेने सर्वत्र वद्यथभां० अतः सेडः ए सूत्रोथी दीहो रूप याय. न दीर्घानु स्वारात् ॥ २ ॥
दीर्घानुखाराज्यां लाक्षणिकाञ्यामलाक्ष पिकान्यां च परयोः शेषादेशयो द्वित्वं न जवति ॥ बूढो । नीसासो । फासो ॥ खलादिक-पार्श्व | पासं ॥ शीर्ष । सीसं । ईश्वरः । ईसरो ॥ द्वेष्यः । वेसो ॥ लास्यं । लासं ॥ स्यं श्रासं ॥ प्रेष्यः । पेसो ॥ श्रवमाल्यम् । उमालं ॥ श्राज्ञा । श्रणा ॥ श्रइतिः । श्रापत्ती ॥ श्राज्ञपनं । श्रवणं ॥ श्रनुखारात् । त्र्यत्रम् । तंसं ॥ श्रलाक्षणिक | संजा । विंको । कंसालो ॥
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द्वितीयःपादः।
३४ मूल भाषांतर. लाक्षणिक अने अलाक्षणिक एवा दीर्घ तथा अनुस्वारथी पर एवा शेष अने आदेशनो बिर्ताव न थाय. जेम-सं. क्षिप्त तेनुं छूढो थाय. सं. नि:श्वास तेनुं नीसासो थाय. सं. स्पर्श तेनुं फासो थाय. अलाक्षणिकनां उदाहरणसं. पावं तेनुं पासं थाय. सं शीर्षम् तेनुं सीसं थाय. सं. ईश्वरः तेनुं ईसरो थाय. सं. द्वेष्यः तेनुं वेसो थाय. सं. लास्यम् तेनुं लासं थाय. सं. आस्यम् तेनुं आसं श्राय सं. प्रेष्यः तेनुं पेसो श्राय. सं. अवमाल्यम् तेनुं ओमालं थाय. सं. आज्ञा तेनुं आणा थाय. सं. आज्ञप्तिः तेनुं आणत्ती थाय. सं. आज्ञपनं तेनुं आणवणं थाय. अनुस्वारथी पण श्राय जेमके, सं. व्यस्रम् तेनुं तंसं थाय. अलाक्षणिकनां जदाहरण-सं संध्या तेनुं संझा थाय. सं. विंध्यः तेनुं विंझो श्राय. सं. कांस्य तेनुं कंसालो थाय. ॥ ए॥
॥ टुंढिका ॥ न ११ दीर्घश्च अनुस्वारश्च दीर्घानुस्वारं तस्मिन् ७१ दिप्त- दिप्तवददिप्तव्यो रुरुख बूढौ । दिप्तस्य बूढः अनादौ इति हित्वप्राप्तौ अनेन निषेधः ११ अतःसे?ः बूढो । निरः श्वास- निरोर्वा रलुक् लुकि निरः नी सर्वत्र वबुक् शषोः सःशस अतःसे?ः नीसासो।स्पर्श-प्पस्पयोः फः स्पस्य फः११श्रतःसेझैः फासो अथवा स्पृशनं स्पर्शः स्पर्शःअस्ति यस्यसः नावेद्यञ् सकर्मेद्यञ् स्पृशः फासफंसफरिस दिवबिहाझुंखालिहाःस्पृशस्य फासः आदेशः११ अतःसे?ः फासो।पार्श्व सर्वत्र वबुक् श्रधोमनयां यलुक् शषोः सः अतःसे?ः वेसो । लास्य आस्य अधोमनयां यलोपः ११ क्लीबे स्म् मोनु लासं एवं आसं । प्रेष्य- सर्वत्रेति यबुक् अधोमनयां यबुक् शपोः सः श्रतःसेडोंः पेसो । अवमादय-श्रवापोत अतःपोते अवस्य : अधोमनयां यबुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु० उमालं । श्राज्ञा- म्नझोर्णः झस्यणः ११ अंत्यव्यंग सूलुक् थाणा। श्राज्ञप्ति म्नझोर्णः झस्य णः नोणः ११ क्लीवे स्म मोनु कगटडेति पबुक् अनादौ हित्वं ११ थक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंग स्लुक् आणत्ती। श्राझापनं नझोर्णः झस्य णः ११ क्लीबे सम् मोनु आणावणं त्र्यस्त्र- सर्वत्र रखुक् ११ क्लीबे स्म् मोनुस्वारः अधोमनयां यलुक् प्लुक् हौ स्तः वादावंतः अम् तंसं वंध्य संध्या- साध्वसध्या ध्यस्य ऊः ११ अतःसे?ः विको। एवं संध्या-कांस्य कांस्यनीला ह्रस्वःसंयोगे का क श्र
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मागधी व्याकरणम् . धोमनयां यलुक् शषोः सः शस्य सः कगचजेति त्लुक् बाहुलकारात् संधिः समानानां दीर्घः ११ अतःसेझैः कंसालो ॥ ए॥
टीका भाषांतर. लाक्षणिक अने अलाक्षणिक एवा दीर्घ अने अनुस्वारथी पर एवा शेष तथा श्रादेशने दिर्नाव न थाय. सं. क्षिप्त तेने क्षिप्तवक्षक्षिप्तव्यो० ए सूत्र पनी अनादौ द्वित्वं ए सूत्रनी प्राप्ति थवा आवी पण आसूत्रथी तेनो निषेध अयो. पनी अतः सेडोंः ए सूत्रथी छूढो एवं रूप श्राय. सं. निश्वास तेने निहुँरोर्वा रलुक् निरनी सर्वत्र शषोःसः अतःसे?ः ए सूत्रोधी नीसासो थाय. सं. स्पर्श तेने पस्पयोः फः अतःसेडों: ए सूत्रोथी फासो रूप थाय. अथवा स्पृश् धातुने स्पर्शनं स्पर्शः एटखे जे स्पर्श करवं ते स्पर्श कहेवाय. ते स्पर्श जेने होय ते स्पर्श कहेवाय. अहिं भावेघञ् प्रत्यय आवे तेने फासफंसफरिसछिवछिवाहालुंखालिहा० ए सूत्रथी स्पर्शने स्थाने फास आदेश थाय. पठी अतःसे?: ए सूत्रथी फासो रूप थाय. सं. पार्श्व तेने सर्वत्र ए सूत्रे र तथा वनो लुक् पाय. लुप्सयवरदीर्घः शषोःसः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पासं रूप थाय. सं. शीर्ष तेने शषोः सः सर्वत्र क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सीसं रूप थाय. सं. ईश्वर तेने सर्वत्र शषोः सः अतःसेझैः ए सूत्रोथी इसरो रूप थाय. सं. द्वेष्य तेने कगटड० अधोमनयां अतःसेटः ए सूत्रोथी वेसो रूप श्राय. सं. लास्य तेने अधोमनयां क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी लासं रूप थाय. एवी रीते सं. आस्य तेनु आसं रूप थाय. सं. प्रेष्य तेने सर्वत्र अधोमनयां शषोः सः अतःसे?ः ए सूत्रोथी पेसो रूप थाय. सं. अवमाल्य तेने अवापोतः अतःपोते अधोमनयां क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी ओमालं रूप थाय. सं. आज्ञा तेने नज्ञोर्णः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी आणा रूप थाय. सं. आज्ञप्ति तेने नज्ञोणः नोणः कगटड० अनादौ अक्लीवेदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी आणत्ती रूप थाय. सं. आज्ञापनं तेने म्नज्ञोर्णः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी आणावणं रूप थाय. सं. व्यत्र तेने सर्वत्र अधोमनयां वक्रादावंतः क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तंसं रूप थाय. सं. संध्या तेने साध्वत्य० अंत्यव्यं० सूत्रोथी संझा रूप थाय. सं. विंध्य तेने साध्वध्स० अतःसे?: ए सूत्रोथी विंझो रूप थाय. सं. कांस्य तेने हवःसंयोगे अधोमनयां शषोःसः कगचज० बाहुलकपणुं ने तेथी संधि श्राय पनी समानानां दीर्घः अतःसे?: ए सूत्रोथी कंसालो रूप श्राय. ॥ ए॥
रदोः ॥ ३ ॥ रेफहकारयो पित्वं न जवति ॥ रेफः शेषो नास्ति ॥ आदेश । सुन्देरं। बम्हचेरं । पेरन्तं ॥ शेषस्य । हस्य । विहलो ॥ श्रादेशस्य । कहावणो ॥ __ मूल भाषांतर. रेफ अने हकारनो बिर्ताव न थाय. अहीं रेफ शेष होयतो न थाय. आदेशनां नदाहरण- सं. सौंदर्य तेनुं सुन्दरं थाय. सं. ब्रह्मचर्य तेनुं बम्हचेरं
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हितीयःपादः।
३५१ थाय. सं. पर्यंत तेनुं पेरन्तं श्रायः शेष हकारनां उदाहरण- जेम- सं. विह्वल तेनु विहलो श्राय. आदेशनां उदाहरण- जेम सं. कार्षापण तेनुं कहावणो रूप थाय. ए३
॥डंढिका ॥ रश्च हश्च रहौ तयोः ७२ सौंदर्य- उत्सौंदर्यवस्तौ सुपत्सय्यादौ द दे ब्रह्मचर्य तुर्य सौंदर्य यस्य रः क्लीबे सम् मोनु सुन्देरं । ब्रह्मचर्य- सर्वत्र रखुक् क्वचित् झोपि नस्य सः ब्रह्मचर्ये च ब्रह्मचर्य तूर्य सौंदर्य र्यस्य रः ११ क्लीवेस्म् मोनु० बंदचेरं । पर्यंत वव्युत्कर पर्यंताश्चर्येवा पपे एतः पर्यंते यस्य रः ११ क्लीबे सम् मोनु० पेरन्तं । विह्वल- सर्वत्र हलुक् ११ श्रतःसे?ः विहलो । कार्षापण-हस्वःसंयोगे क कार्षापणे हः र्षस्य हः पोवः ११ अतःसेझैः कहावणो ॥ ए३ ॥
टीका भाषांतर. र अने हनो बिर्ताव न थाय. सं. सौंदर्य तेने ओत्सौंदर्य० ब्रह्मचर्य० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सुन्दरं रूप श्राय. सं. ब्रह्मचर्य तेने सर्वत्र कचित्म्होऽपि ब्रह्मचर्य क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी बम्हचेरं रूप थाय. सं. पर्यंत तेने वल्युत्कर० क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी परन्तं रूप थाय. सं. विह्वल तेने सर्वत्र अतःसे?: ए सूत्रोथी विहलो रूप थाय. सं. कार्षापण तेने हवःसंयोगे कार्षापणे हः पोवः अतःसेडोंः ए सूत्रोथी कहावणो रूप थाय. ॥ ए३ ॥
धृष्टद्युम्ने णः ॥ए४॥ धृष्टद्युम्नशब्दे आदेशस्य णस्य हित्वं न नवति ॥ धठझुणो॥ मूल भाषांतर. धृष्टद्युम्न शब्दना आदेशना णनो बिर्लाव न थाय. सं. धृष्टद्युम्न तेनुं धट्ठज्जुणो रूप पाय.
॥ढुंढिका ॥ धृष्टद्युम्न ३१ ण ११ धृष्टद्युम्न-इतोऽत् ध ष्टस्यानुष्ट्रेप्टासंदष्टो ष्टस्य तः अनादौ हित्वंद्वितीयपूर्व उ ट द्य जः धुजु अनादौ हित्वं म्नझोर्णः म्नस्य णः अतःसेझैः घट्टमुणो ॥ ए४ ॥
टीका भाषांतर. धृष्टद्युम्न शब्दना श्रादेशना ण नो दि व थाय. सं. धृष्टद्युम्न तेने ऋतोऽत् ष्टस्यानुष्टे अनादौ० द्वितीय० अनादौ० नज्ञोर्णः अतःसेझैः ए सूत्रोथी धट्ठज्जुओ एवं रूप थाय. ॥ एच ॥
कर्णिकारे वा ॥ ५ ॥ कर्णिकार शब्दे शेषस्य णस्य हित्वं वा न नवति ॥ कणिआरो॥कमिश्रारो
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मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. कर्णिकार शब्दना शेष णनो विकटपे दिर्जाव श्राय. सं. कर्णिकार तेनां कणिआरो कण्णिआरो एवां रूप थाय. ॥ ५ ॥
॥ढुंढिका ॥ कर्णिकार ११ वा ११ कर्णिकार- सर्वत्र रखुक् अनेन वा हित्वं न नववति यत्र नवति तत्र अनादौ हित्वं कगचजेति कबुक् ११ अतःसेझैः कणिआरो। पदे कर्णिकार सर्वत्र रखुकू कगचजेति क्लुक् ११ अतः सेडोंः कलियारो ॥ एए॥ टीका भाषांतर. कर्णिकार शब्दना शेष णनो विकटपे हिर्जाव न थाय. सं.कर्णिकार तेने सर्वत्र चालता सूत्रे विकटपे बिनाव न थाय. ज्यारे दिलोव थाय त्यारे अनादो द्वित्व कगचज अतःसे?ः ए सूत्रोथी कणिआरो रूप थाय. पदे कर्णिकार तेने सर्वत्र कगचज अतः से?ः ए सूत्रोधी कणिआरोरूप श्रायः ॥ ५ ॥
दृप्ते ॥ ६ ॥ दृप्तशब्दे शेषस्य हित्वं न नवति ॥ दरिअ- सीहेण ॥
मूल भाषांतर. दृप्त शब्दना शेषनो दिर्जाव न घाय. सं दृप्तारिसिंहेन तेनुं दरिअ-सीहेण एव॒ रूप थाय. ॥ ए६॥
॥ढुंढिका ॥ दृप्त ७१ दृप्तारिसिंह- अरिदृप्तेदृप्तस्य अरिः कगटडेति प्लुक् सिंह ३१ मांसादेर्वा अनुस्वार बुक् र्जिह्वासिंहत्रिंशविंशतौं त्या ३१ टाआमोर्णः टास्याने ण टाणशस्येत् हे दरिअसीहेण ॥ ए६ ॥ टीका भाषांतर. दृप्त शब्दना शेषनो दिर्जाव न थाय. सं. दृप्तारिसिंह एटले (गर्व पामेला शत्रुमां सिंह समान) तेने अरिदृप्ते कगटड० ए सूत्रोथी दरिअ रूप थाय. सं. सिंह तेने मांसादेर्वा ईर्जिह्वासिंहत्रिंश० टाआमोर्णः टाणशस्येत् ए सूत्रोथी सीहेण रूप धाय. सर्व सूत्रोथी दरिअसीहेण एवं रूप थाय. ए६
समासे वा ॥ ए॥ शेषादेशयोः समासे हित्वं वा नवति ॥ नश्-ग्गामो नश्गामो। कुसुमप्पयरो । कुसुम-पयरो । देव-त्थुई देवथुई । हर-क्खन्दा । हरखन्दा श्राणाल-क्खम्मो । श्राणाल-खम्नो ॥ बहुलाधिकारादशेषादेशयोरपि स-प्पिवासो स-पिवासो। बझ-प्फलो बङ-फलो। मलय-सिहर क्ख
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द्वितीयः पादः ।
३५३
एडं मलय - सिहर - खएडं । पम्मुक्कं पमुक्कं । श्रदंसणं असणं । पडिकूलं पडिकूलं तेल्लोकं तेलोकं इत्यादि ॥
मूल भाषांतर. शेष तथा आदेशने समासमां विकल्पे विर्भाव थाय. सं. नदीग्राम तेनां नइ -ग्गामो नइ - गामो एवां रूप थाय. सं. कुसुमप्रकर तेनां कुसुमपयरो कुसुम - पयरो एवां रूप याय. सं. देवस्तुति तेनां देव-त्थुई देव- धुई एवां रूप याय. सं. हरस्कंदा: तेनां हर-क्खन्दा हर- खन्दा एवां रूप याय. सं. आलानस्तंभ तेनां आणाल-क्खम्भो आणाल - खम्भो एवां रूप थाय. बहुलअधिकार a तेथी शेष आदेशने पण थाय. सं. सपिपास तेनां सप्पिवासो स-पिवासो सं. बहूफलः तेनां बद्धफलो बड- फलो एवां रूप याय. सं. मलयशिखरखण्ड तेनां मलय सिहर-क्खण्डं एवां रूप याय. सं. प्रमुक्त तेनां पमुक्कं पमुकं एवां रूप याय. सं. अदर्शन तेनां अहंसणं असणं एवां रूप थाय. सं. प्रतिकूलं तेनां पडिक्कूलं पडिकूलं एवां रूप याय. सं. त्रैलोक्य तेनां तेल्लोक्कं तेलोक्कं एवां रूप थाय. ॥ ए ॥
॥ ढुंढिका ॥
समास ७१ वा ११ नदीयुक्तो ग्रामो नदीग्रामः दीर्घहस्वौ मिथोवृत्तौ दी दि कगचजेति दलु सर्वत्र रलुक् श्रनेन वा द्वित्वं ग्ग ११ अतः - सेर्डोः नई-ग्गामो | पदे - नदीग्राम - दीर्घह्रस्वो मिथोवृत्तौ दी दि कगचजेति दलु सर्वत्र लुक् ११ अतः सेडः नईगामो कुसुम प्रकर-सर्वत्र लुक् अनेन वा द्वित्वं प्प कगचजेति कलुक् ११ श्रतः सेर्डोः कुसुमप्पयरो | पदे कुसुम - पयरो | देवस्तुति - स्तस्यथोऽसमस्तस्तंबे वा स्त थ अनेन वाद्वित्वं द्वितीयतुर्ययोरुपरि० पूर्व य त कगचजेति त्लुक् ११ अक्की वे दीर्घः त्यव्यं० सलुक् देव-त्थई पदे देवस्तुति- -स्तस्य थोऽसमस्त स्तथ कगचजेति त्लुक् ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् । देव - थुई | दरश्च स्कन्दश्च हरस्कन्दौ शुष्कास्कंदे वा स्कस्य खः -
वावं द्वितीयतुर्य० पूर्व ख क १२ द्विवचनस्य बहुवचनं १३ जस्ास् ङसित्तोद्वामिदीर्घः द दा जस्शसोलुक दरक्खन्दा । पके हरस्कन्दौ । शुष्क स्कंदे वा स्कस्य खः पूर्ववत् हरकन्दा । श्रालान स्तंन - श्रालानश्वासौ स्तंनश्च खालानस्तंनः श्रालानेलनोः लानस्थाने नाल नोपः स्तंनेऽस्तंबे वा स्तस्य खः अनादौ द्वित्वं द्वितीयतुर्य० पूर्व-रक कः ११ - तः सेर्डोः श्राणालख्कंजो पदे खालानस्तंज- द्वित्वं मुक्तत्वा शेषं पूर्वव
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३५४
मागधी व्याकरणम् . त् । श्राणा पूर्ववत् श्राणालखंनो। सपिपासः सदपिपासया वर्तते यः स सपिपासः पुरुषः बहुलाधिकारात् शेषादेशौ मुक्त्वा अन्यत्रापि जवति हित्वं ततो अनेन वा हित्वं पि पि पोवः पस्य वः १२ अतः सेझैःसप्पिवासो।बहफलः बझं फलं यत्र स बझफलः अनेन वा हित्वं द्वितीयतुर्य पूर्व फ प ११ श्रतः सेझैः बद्धप्फलो। पदे बफलो । मलयशिखरखंडम्। शषोः सः खघथ खस्य डः अनेन वा हित्वं म्मु शक्तमुक्तदष्टरुष्णामृत्वे को वा कस्य कः ११ श्रनादौ हित्वं क्लीबे स्म् मोनु मलय-सिहर-ख्कएडं पदे हित्वं मुक्वा मलय-सिहर-खंडं । प्रमुक्तसर्वत्र रलुक् अनेन वा हित्वं म्मु शक्तमुक्तदष्ट० त्तस्य कः श्रनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् पम्मुकं । पदे प्रमुक्त मस्य हित्वं मुक्त्वा। शेषं पू. र्ववत् पमुक्क- । श्रदर्शन वक्रादावंतः अनुस्वारः दं अनेन वा हित्वं श्रदंसणं तथा श्रदंसणं । प्रतिकूलं-श्रनेन वा द्वित्वं कू कू ११ क्लीवे स्म् मोनु पडिकूलं पदे प्रतिकूल द्वित्वं मुक्त्वा शेषं पूर्ववत् पडिकूलं । त्रैलोक्य-ऐतएत् त्रै त्रे सर्वत्र रबुक् अनेन वा हित्वं लो हो श्रधोमनयां यबुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु तेबोकं । पदे तेलोकं पूर्ववत् ॥ ए॥
टीका भाषांतर. शेष अने श्रादेशने समासमां विकटपे दिलाव न थाय. सं. नदीग्राम (नदीयुक्त एवं गाम ) तेने दीर्घहस्वी० कगचज० सर्वत्र चालता सूत्रे विकटपे Eिजोव थाय. अतःसेझैः ए सूत्रोथी नईग्गामो एवं रूप थाय. पके सं. नदीग्राम तेने दीर्घहखौ० कगचज० सर्वत्र अतःसे : ए सूत्रोथी नई-गामो एवं रूप थाय. सं. कुसुम-प्रकर तेने सर्वत्र चालता सूत्रे विकल्पे द्विर्भाव थाय. कगचज० अतःसेझैः ए सूत्रोथी कुसुम-प्पयरो रूप थाय. पदे सं. कुसुम-प्रकर तेने दिर्जाव न थाय एटले कुसुम-पयरो एवं रूप थाय. सं. देवस्तुति तेने स्तस्यथोऽसमस्त. चालता सूत्रे विकल्पे दिर्जाव थाय. पनी द्वितीयतुर्य० कगचज अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी देवत्थुई रूप थाय. पदे देवस्तुति तेने स्तस्यथोऽसमस्त० कगचज० अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी देव-थुई रूप थाय. सं. हरस्कन्दी (शंकर अने कार्तिकेय ) तेने शुष्कास्कंदेवा० चालता सूत्रे विकटपे दिर्जाव थाय. द्वितीयतुर्य द्विवचनस्य बहुवचनं जमशसूङसित्तोद्वामि० जसशसोलक ए सूत्रोथी हरक्खन्दा एवं रूप थाय. पई सं. हरस्कन्दौ तेने शुष्कास्कंदेवा बाकी वि व शिवाय पूर्ववत् सूत्रो पामी हरकन्दा रूप थाय. सं. आलानस्तंभ ( हाथी बांधवानो खीलो)
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द्वितीयः पादः ।
३५५
तेने आलाने नलो० ए सूत्रे लानने स्थाने नाल थाय. पबी नोण: स्तंभेऽस्तंबे अनादी० द्वितीयतुर्य • अतः सेडः ए सूत्रोथी आणालक्खंभो एवं रूप याय. पदे सं. आलानस्तंभ तेने विर्भाव शिवाय बीजां सूत्रोयी आणालखंभो एवं रूप थाय. सं. सपिपास: ( तृष्णा सहित पुरुष ) काहिं बहुल अधिकारथी शेष - आदेशने मुकीने पण जिव थाय. तेथी तेने चालता सूत्रे विकल्पे विर्भाव थाय. पी पोवः अतः सेडः ए सूत्रोथी सनिवासी रूप थाय तथा सपि वासो रूप याय. सं. बद्धफलः (जेमां फल बांध्यं वे ते ) तेने चालता सूत्रे विर्भाव थाय. पी द्वितीयतुर्य० अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी बडष्फलो रूप थाय. पदे बद्धफलो रूप थाय. सं. मलयशिखरखंडम् तेने शषोः सः खघध० चालता सूत्रे विकटपे विर्भाव याय. पठी शक्तमुक्तदृष्टा० अनादौ ० क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मलय- सिहरत्कण्ड एवं रूप याय. पवि मुकी बीजां सूत्रोथी मलय- सिहर - खण्डम् एवं रूप थोय. सं. प्रमुक्त तेने सर्वत्र चालता सूत्रे विकल्पे विर्भाव थाय. शक्तमुक्तदष्ट० अनादौ ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पम्मुक्कं रूप थाय. पके सं. प्रमुक्त तेने व शिवाय बीजां सूत्रोथी पमुक्त एवं रूप थाय. सं. अदर्शन तेने वक्रादावंतः चालता सूत्रे विकल्पे जिव थाय. एटले अहंसणं एवं रूप याय. पदे असणं रूप याय. सं. प्रतिकूल तेने चालता सूत्रे विकल्पे द्विजव थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पडिक्कूलं रूप याय. पदे विर्भाव शिवाय बीजां सूत्रोथी पडिकूलं रूप थाय. सं. त्रैलोक्य तेने ऐतएत् सर्वत्र चालता सूत्रे विर्भाव याय. अधोमनयां अनादौ ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तेल्लोकं रूप याय. पदे सं. त्रैलोक्य तेनुं तेलोकं थाय. ॥ ए ॥ तैलादौ ॥ ए८ ॥
तैलादिषु श्रनादौ यथादर्शनमन्त्यस्यानन्त्यस्य च व्यंजनस्य द्वित्वं वति ॥ तेवं मडुक्को | वेल्लं । उजू । विड्डा । बहुत्तं ॥ अनन्त्यस्य । सोत्तं । पेम्मं । जुखणं ॥ श्रार्षे । पडिसोर्ट । विस्सोसिया ॥ तैल | मंडूक | विच किल । जु । व्रीडा । प्रभूत। स्रोतस् । प्रेमन् । यौवन इत्यादि ॥
मूल भाषांतर. तैलादिशब्दोना आदि न होय तेवा यथाक्रमे त्याने त्ये न होय तेवा व्यंजननो विर्भाव थाय. सं. तैलम् तेनुं तेलं याय. सं. मण्डुक तेनुं मण्डुक्को थाय. सं. विचकिल तेनुं वेइल्लं श्राय. सं. ऋजु तेनुं उज्जू थाय. सं. व्रीडा तेनुं विड्डा थाय. सं. प्रभूत तेनुं बहुत्तं योय. ते न होय तेना उदाहरण- सं. स्रोतस् तेनुं सोत्तं थाय. सं. प्रेमन् तेनुं पेम्मं थाय. सं. यौवनम् तेनुं जुव्वणं श्राय. आर्षप्रयोगमां - सं. प्रतिश्रोतस तेनुं पडिसोओ रूप थाय. सं. विश्रोतसिका तेनुं विस्सोअसिआ रूप थाय. ॥ ए८ ॥ ॥ ढुंढिका ॥
तैलं श्रदिर्यस्य स तैलादि ११ तैल- ऐत एत ते ते अनेन द्वित्वं ल ११
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३५६
मागधी व्याकरणम्. क्लबे सम् मोनु तेवं मंडूक अनेन हित्वं क हवः संयोगे एडू एमु ११ श्रतः सेडोंः मएमुक्को । विचकिल- विचकिलायस्कारे विवे देषुक अ. नेन हित्वं क्लीबे सम्॥ मोनु वेश्वं । रुजु उदृत्वादो छ न अनेन हित्व झु ११ अक्कीबे दीर्घः ल अंत्यव्यंग स्बुक् उत। ब्रीडा- सर्वत्र रलुक् अनेन हित्वं ड्डा हवः संयोगे वी वि ११ अंत्यव्यंग स्लुक विड्डा। प्रनूत सर्वत्र रबुक् खघथ नू । हू अनेन हित्वं त्त ह्रस्वः संयोगे हू हु ११ क्लीबे सम् मोनु पोवः बहुत्तं । श्रोतस् सर्वत्र लुक् शषोः सः अनेन हित्वं अंत्यव्यंग स्लुक् ११ क्लीबे सम् मोनु० सोत्तं । प्रेमन् सर्वत्र रबुक् अनेन हित्वं म्म अंत्यव्यंग न्लुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु० पेम्मं । यौवन- श्रौतर्गत् । यौ यो श्रादेर्योजः यो जो अनेन हित्वं वव नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु० जोवणं । श्राचे प्रतिश्रोतस् पडिसोचें। विश्रोतसिका विस्सोअसिया ॥ एG ॥
टीका भाषांतर. तैल विगेरे शब्दोने आदिमां न होय तेवा अंत्य अने अंत्य न होय तेवा व्यंजननो द्वि व श्राय. सं. तैल तेने ऐतएत् चालता सूत्रे विर्भाव थाय क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तेल्लं रूप पाय. सं.मंडूक तेने चालता सूत्रे दिवि थाय. हवःसंयोगे अतः सेोंः ए सूत्रोथी मण्डूक्को रूप थाय.सं. विचकिल तेने विचकिलायस्का० चालता सूत्रे हि व थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वेइल्लं रूप थाय. सं. ऋजु तेने उहत्वादौ चालता सूत्रे हि व थाय. अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी उज्जू रूप थाय. सं. ब्रीडातेने सर्वत्र चालता सूत्रे दिर्जाव थाय. इखःसंयोगे अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी विड्डा रूप थाय. सं. प्रभूत तेने सर्वत्र खघथ० चालता सूत्रे वि व थाय. ह्रस्वःसंयोगे क्लीवे मम् मोनु० पोवः ए सूत्रोथी बहुत्तं रूप थाय. सं. श्रोतस् तेने सर्वत्र शषोः सः चालता सूत्रे द्विर्भाव अंत्यव्यं० क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सोत्तं रूप थाय. सं. प्रेमन् तेने सर्वत्र चालता सूत्रे दिर्जाव श्राय. अंत्यव्यं० क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोश्री पेम्मं रूप थाय. सं. यौवन तेने औतओत् आयोजः चालता मूत्रे दिर्जाव थाय. नोणः क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोधी जोवण्णं रूप थाय. आर्षप्रयोगमां सं. प्रतिश्रोतम् तेनुं पडिसोओ थाय. सं. विश्रोतसिका तेनुं विस्सोअसिआ रूप थाय. ॥ ए ॥
सेवादौ वा ॥ एए॥ सेवादिषु अनादौ यथादर्शनमन्त्यस्यानन्त्यस्य च हित्वं वा नवति ॥ सेवा सेवा ॥ ने९ नीडं । नक्खा नहा । निहितो निहिर्ज । वाहित्तो
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द्वितीयःपादः।
३५७ वाहि । माउकं माउथं । एक्को ए । कोउहवं कोउहलं । वाउदो वाजलो । थुलो थोरो । हुत्तं इथं । दश्व्वं दश्वं । तुएिहको तुहिउँ । मुक्को मू। खएणू । खाणू थिएणं थीणं ॥ अनन्त्यस्य श्रम्हकेरं श्रम्हकेरं। तंञ्चेश तंचेश्र । सोच्चि सोचिश्र । सेवा । नीड नख । निहित । व्याहृत । मृछुक । एक । कुतूहल । व्याकुल । स्थूल । हूत । दैव । तूष्णीक । मूक । स्थाणु । स्त्यान । अस्मदीय । चेय। चिथ । इत्यादि ॥
मूल भाषांतर. सेवादि शब्दोने आदि न होय तेवा यथाक्रमे अंत्यनो तथा अंत्य न होय तेनो विकटपे हि व थाय. सं. सेवा तेनां सेव्वा सेवा एवां रूप थाय. सं. नीडं तेनां नेहूं नीडं एवां रूप थाय. सं. नखा तेना नक्खा नहा एवां रूप थाय. सं. निहित तेना निहित्तो निहिओ रूप थाय. सं. व्याहृत तेनां वाहित्तो वाहिओ रूप श्राय. सं. मृदुक तेनां माउक्कं माउअं रूप थाय.सं. एक तेनां एक्को एओ रूप श्राय. सं. कुतुहल तेनां कोउहलं कोउहलं एवां रूप थाय. सं. व्याकुल तेनां वाउल्लो वाउलो रूप थाय.सं. स्थूल तेनां थुल्लोथोरो एवां रूप थाय. सं.हूत तेनांहुत्तं हूअंएवां रूप श्राय. सं. दैव तेनां दइव्वं दइवं रूप थाय. सं. तूष्णीक तेनां तुहिको दुण्हिओ रूप थाय. सं. सूक तेनां मुक्को मूओ रूप थाय. सं. स्थाणु तेनां खण्णू खाणू रूप थाय. सं. स्त्यान तेनां थिण्णं थीणं रूप थाय. अंत्य न होय तेनां उदाहरण- सं. अस्मदीय तेनां अम्हकरं तथा अम्हकेरं एवां रूप थाय. तेमज सं. चेअ चिअ तेनां तंच्चेअ तंचेअ रूप थाय. तेमज सोचिअ सोचिअ एवां रूप थाय.
॥ढुंढिका॥ सेवादि ७१ वा ११ सेवा अनेन वा हित्वं ११ अंत्यव्यं सबुक् सेव्वा पदे सेवा । नीड नीमपीठेवा नी ने अनेन हित्वं डु ११ क्लीबे स्म् मोनुन नेहुं । पदे नेडं । नख-अनेन वा हित्वं द्वितीयस्य पूर्व-ख-क १३ ज. सशसोछामि दीर्घः जस्शसोर्बुक् नखा पदे नख खघथ ख ह नह जशशस् दीर्घः जसूशसोर्बुक् नहा निहित-श्रनेनहित्वं त्त ११ अतः से?ः निहित्तो। पदे निहित- कगचजेति लुक् ११ श्रतःसे?ः निहि व्याहृत- अधोमनयां १३ बुक् कृपादौ हृ हि अनेन वा हित्वं त ११ अतः सेझैः वाहित्तो । पदे व्याहृतः अधोमनयां य्लुक् इत्कृपादौ ह हि कगचजेति त्बुक् ११ अतः से?ः वाहि मृङककृशमृडकमृत्वे मृ मा कगचजेति दबुक् थनेन वा हित्वं क ११ क्ली
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३५०
मागधी व्याकरणम्. बे स्म् मोनु माउकं पदे हित्वं विना कगचजेति क्बुक् माउयं । एक-अनेन वा हित्वं क ११ अतः सेोंः एको पदे कगचजेति क्लुक एको। कुतूहल-ऐतएत् कौ को कुतूहले वाहवः स्यात् तू तु कगचजेति त्लुक् अनेन वा हित्वं ब ११ क्वीबे सम् मोनु कोजहद्धं । पदे हित्वं विना शेषं पूर्ववत् कोउहलं व्याकुल- अधोमनयां ययुक् कगचजेति यलुक् बुक् अनेन वा हित्वं ११ अतःसेझैः पदे वाउलो। स्थूल-कगटडेति सबुक् अनेन वा हित्वं ब हस्वः संयोगे थू थु ११ क्लीबे सम् मोनु थुखं पदे स्थूल-उत्कूष्मांडीतूणीरे स्थूस्थो कगटडेति सबुक् स्थूले लोरः वा लस्य रः ११ क्वीबे सम् मोनु थोरं । हत- अनेन वा हित्वं त्त हवः संयोगे हु हु ११ क्लीवे सम् मोनु हुत्तं पके हूत-कगचजेति त्बुक् ११ क्लीबे सम् मोनु० हुकं । देव एव दैव दैदर अनेन वा हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु० दश्वं पदे दैव हित्वं वि. ना पूर्ववत् दश्वं । तूष्णीक- इस्खः संयोगे तू तु सूक्ष्मनष्ननहरुदणां अनेन वा हित्वं क हस्वः संयोगे एही एिह ११ अतः सेडोंः तूहिको । पदे तूष्णीक-द्वित्वं विना कगचजेति त्बुक् तूहिउँ । मूक-अनेन वा हित्वं न्हस्वःसंयोगे मू मु ११ अतःसे?ः मुक्को पक्ष मूक- कगचजेति क्लुक् मुठ । स्थाणु- स्थाणा स्था खा अनेन वा द्वित्वं णु-हस्वः संयोगे ख अलीबे दीर्घः । अंत्यव्यंग सलुक् खएणू पदे स्थाणु स्थाणा वहरे स्था खा११ अक्लीबे दीर्घः खाणू स्त्यान ईस्त्या नखल्वाटेस्त्या स्ती अधोमनयां यलुक् स्ती स्तस्यथो स्तीथी नोणः अंत्यव्यंग स्बुक् अनेन वा द्वित्वंस इखः संयोगे थी थि । ११ क्लीवे स्म् मोनु थिणं पदे स्त्यान ईस्त्यानखल्वाटे श्रधोमनयां स्तस्यथो स्तीथी नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु थीणं अस्मदीय-पदमश्मष्मस्मह्मां स्मस्य हः श्दमर्थ केर यस्य केरः कगचजेति दबुक् अनेन वा हित्वं के के अम्हकेरं पदे अस्मदीय हित्वं मुक्त्वा शेषं पूर्ववत् ब्रह्मकेरं। नद एव अंत्यव्यंग दलुकू ११ क्लीबे सम् मोनु तंणिवे अवि श्रव्वेत्ति एवस्य वे अनेन वा हित्वं व्वे ११ अंत्यव्यंग स्लुक् ११ तंव्वे पदे हित्वं मु
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द्वितीयःपादः।
३५ क्त्वा शेषं पूर्ववत् नद एव अंत्यव्यं० दबुक् एतदश्च तसौ क्लीवे मस्य सः ११ अतः सेझैः सोवियं वे अत्वएव विथ अनेन वाहित्वं वि ११ अंत्यव्यंग स्बुक् सोचिथ एते हित्वं मुक्त्वा सोचिथ ॥ एy ॥
टीका भाषांतर. सेवादि शब्दोने आदि न होय तेवा यथाक्रमे अंत्यनो तथा अंत्य न होय तेनो विकटपे दिनोव थाय. सं. सेवा तेने चालता सूत्रथी विकटपे दिलाव थाय. पजी अंत्यव्यं० ए सूत्रे सेव्वा एवं रूप थाय. पदे सेवा रूप धाय. सं. नीड तेने नीडपीठेवा चालता सूत्रे दिर्जाव थाय. क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी नेड्डु रूप थाय. सं. नख तेने चालता सूत्रे विकटपे हि व थाय. द्वितीयतुर्य० जसुशसोहामिदीर्घः जस शसोलुंक् ए सूत्रोथी नखा रूप थाय. पदे नख तेने खघथ० जस् शस् दीर्घः जश शसालक ए सूत्रोथी नहा रूप थाय. सं. निहित तेने चालता सूत्रे मिर्जाव थाय अतःसेडोंः ए सूत्रोथी निहित्तो रूप थाय. पदे सं. निहित तेने कगचज० अतःसेोः ए सूत्रोथी निहिओ रूप थाय. सं. व्याहृत तेने अधोमनयां इत्कृपादौ चालता सूत्रे विकटपे बिर्ताव थाय. अत सेटः ए सूत्रोथी वाहित्तो रूप थाय. पक्ष सं. व्याहृत तेने अधोमनयां इत्कृपादौ कगचज अतःसे?: ए सूत्रोथी वाहिओ रूप थाय. सं. मृदुक तेने कृशमृदुकमृदुत्वे कगचज चालता सूत्रे विकरपे बिर्ताव वाय. क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी माउक्कं रूप थाय. पदे हि व शिवाय कगचज ए सूत्रे माउअं रूप थाय. सं. एक तेने चालना सूत्रे विकटपे दिलाव थाय. अतःसेझैः ए सूत्रोथी एको रूप थाय. पदे. कगचज ए सूत्रे एको रूप धाय. सं. कुतूहल तेने एत एत् वाहवःस्यात् कगचज चालता सूत्रे विकटपे हि व थाय. क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी कोउहल्लं रूप थाय. पदे दिवि विना बाकी पूर्ववत् थाय एटले कोउहलं रूप थाय. सं. व्याकुल तेने अधोमनयां कगचज चालता सूत्रे विकटपे बिर्ताव थाय. अतासे?: ए सूत्रोथी वाउल्लो रूप थाय. पदे वाउलो थाय. सं. स्थूल तेने कगटड चालता सूत्रे विकटपे छिनाव थाय. इस्वःसंयोगे क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी थुलं रूप वाय. पदे स्थूल तेने ओत्कूष्मांडी० कगटड० स्थूले लोरः क्लीवेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी थोरं रूप थाय. सं. हृत तेने चालता सूत्रे विकटपे द्विर्भाव थाय. इखःसंयोगे कीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी हुत्तं रूप थाय. पदे सं. हूत तेने कगचज क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी हूअं रूप थाय. सं. दैव तेने दै दइ चालता सूत्रे विकटपे दिर्जाव थाय. क्लीवेसम् मोनु ए सूत्रोथी दइव्वं रूप थाय पक्ष सं. दैव तेने बिर्ताव शिवाय पूर्ववत् सूत्रोथी दइवं रूप थाय. सं. तूष्णीक तेने इस्वःसंयोगे सूक्ष्मष्नल. चालता सूत्रे विकटपे द्वि व श्राय. पडी हवःसंयोगे अतःसे?ः ए सूत्रोथी तुहिको रूप थाय. प. सं. तूष्णीक तेने चिर्नाव शिवाय कगचज ए सूत्रथी तुण्हिओ रूप थाय. सं. मूक तेने चालता सूत्रे विकटपे हि व थाय. पनी इस्वःसंयोगे अतःसेटः ए सूत्रोथी मुक्को रूप पाय. पदे मूक तेने कगचज ए सूत्र लागी मुओ रूप श्राय. सं.
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मागधी व्याकरणम् स्थाणु तेने स्थाणा वहरे ए सूत्रे स्थानो वा थाय. पळी श्रा चालता सूत्रे विकरपे हि व थाय. ह्रस्वःसंयोगे अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी ग्वाणू रूप थाय. पदे स्थाणु तेने स्थाणा वहरे अक्लीबे दीर्घः ए सूत्रोंथी खाणू रूप थाय. सं. स्त्यान तेने ईस्त्याखल्वा० ए सूत्रे स्त्यानोस्ती थाय. अधोमनयां स्तस्य थोऽसमस्त० अंत्यव्यं० चालता सूत्रे विकटपे द्विांव थाय. पनी हस्वःसंयोगे क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी थीणं रूप थाय. प३. सं. स्त्यान तेने ईस्त्यान अधोमनयां स्तस्यथो० नोणः क्लीवेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी थीणं रूप थाय. सं. अस्मदीयतेने पक्ष्म इमष्म० इदमर्थ केरइ कगचज. चालता सूत्रे विकल्पे द्वि व श्राय. एटले अम्हकरं एवं रूप वाय. पदे सं. अस्मदीय तेने द्विर्भाव शिवाय बीजां सूत्रोथी अम्हकरं रूप थाय. सं. नद एव तेने अंत्यव्यं० क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी तंणि अवे एवं रूप थाय. सं. एव तेने अश्वि अव्वेत्ति अवनो वे थाय. चालता सूत्रे विकटपे द्विाव थाय. एटले व्वे थाय. पनी अंत्यव्यंजन ए सूत्रथी तंव्वे रूप थाय. पक्ष द्विलाव शिवाय बाकी पूर्ववत् थाय. सं. नद एव तेने अंत्यव्यंजन० अतदश्च तसौ क्लीवे मस्य सः अत:से?ः सोचिरं रूप थाय. वे तेने अत्व एव ए सूत्रे विअ थाय. पनी चालता सूत्रे विकटपे द्विाव थाय. पठी अंत्यव्यंजन० ए सूत्रे सोच्चिअ रूप थाय. पदे द्विर्भाव बगेडी बीजां सूत्रोथी सोचिअ एवं रूप श्राय. ॥ एए॥
शाङ्गै ङात्पूर्वोत् ॥ १० ॥ शाङ्गे ङात्पूर्वो अकारो नवति ॥ सारङ्गं ॥ मूल भाषांतर. शार्ङ्ग शब्दनाङ्नी पूर्वे अकार थाय. सं. शाङ्ग तेनुं सारङ्गं पाय.
॥दुढिका ॥ शाई ७१ ङ ५१ पूर्व ११ अत् ११ शाई अनेन शकाररेफर्योंविश्लेष कृत्वा पूर्व अः लोकात् ११ क्लीबे स्म् मोनु सारङ्गं ॥ १० ॥
टीका भाषांतर. शाहू शब्दना ङ नी पूर्वे अकार थाय. सं. शाङ्ग तेने चालता सूत्रे श तथा र नो विश्लेष करी पूर्वे अ श्राय. पनी लोकात् क्लीरे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सारङ्गं रूप थाय.
दमा-लाघा-रत्नेऽन्यव्यंजनात् ॥ ११ ॥ एषु संयुक्तस्य यदन्त्यव्यंजनं तस्मात्पूर्वोऽद् भवति ॥ उमा । सलहा । रयणं । पार्षे सूदमेऽपि । सुहमं ॥ ११ ॥ - मूल भाषांतर. क्षमा श्लाघा अने रत्न ए शब्दोना जोमादरनो जे अंत्यव्यंजन तेनी पूर्व अ श्राय. सं. क्ष्मा तेनुं छमा श्राय. सं. श्लाघा तेनुं सलाहा रूप थाय. सं. रत्नं तेनुं रयणं रूप थाय. आर्ष प्रयोगमां पण थाय. सं. सूक्ष्म तेनुं सुहमं रूप थाय.
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हितीयःपादः।
३६१ ॥ढुंढिका॥ दमा च श्लाघा च रत्नं च माश्लाघारत्नं तस्मिन् ७१ अंत्यव्यंजन ५१ दमा क् मा इति विश्लेषं कृत्वा अनेन मात् पूर्वं अः लोकात् कमायां को दस्य ठः ११ अंत्यव्यं स्लुक बमा । श्लाघा- शू ला इति विश्लेषं कृत्वा अनेन लात् पूर्व अः लोकात् शपोः सः खघथ घा हा ११ अंत्यव्यंग स्लुक सलाहा। रत्न- त् न इति विश्लेषं कृत्वा नपूर्वः लोकात् कगचजेति त्लुक् अवर्णो अ य नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु० रयणं । आर्षे सूक्ष्म ह्रस्वः संयोगे सू सु द म् इति विश्लेषे मपूर्वः अः लोकात् ११ क्लीवे सम् मोनु सुहमं ॥ १०१ ।।
टीका भाषांतर. क्षमा श्लाघा रत्न ए शब्दोना जोडाक्षरनो जे अंत्यव्यंजन तेनी पूर्व अ थाय. सं. क्षमा- तेने क्षु मा एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे म नी पेहेला अ थाय. पनी लोकात् क्षमायां को क्षस्य छ: अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी छमा एवं रूप थाय. सं. श्लाघा तेने श ला एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे ल नी पूर्वे अ थाय पली लोकात् शषोः सः खघथ अंत्यव्यंग ए सूत्रोथी सलाहा रूप बाय. सं. रत्न तेने त् न् एवो विश्लेप करी न पूर्व अ थाय. लोकात् कगचज० अवर्णो० नोणः क्लीबे. सम् मोनु० ए सूत्रोथी रयणं रूप थाय. आप प्रयोगमां सं. सूक्ष्म तेने हवःसंयोगे आर्ष प्रयोगमां क्ष म एवो विश्लेप करी म पूर्व अ थाय. पी लोकात् क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सुहम रूप थाय. १०१
स्नेहारन्योर्वा ॥१०॥ अनयोः संयुक्तस्यान्त्यव्यंजनात्पूर्वोकारो वा नवति ॥ सणेहो नेहो॥ अगणी अग्गी ॥ मूल भाषांतर. स्नेह अने अग्नि शब्दना जोडाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्व विकले अ थाय. सं. स्लेह तेनां सणेहो नेहो एवां रूप थाय. सं अग्नि तेनां अगणी अग्गी एवां रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥ स्नेहश्च श्रग्निश्च स्नेहाग्नी तयोः ७२ वा ११ स्नेह स् न इति विश्लेपे अनेन वा। न पूर्वः अः लोकात् नोणः ११ अतः सेोः सणेहो । पदे स्नेह ११ कगटमेति सबुक् अतः सेोः नेहो । अग्नि- ग् नि इति
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३६२
मागधी व्याकरणम्. विश्लेपे अनेन वा निपूर्वः थः लोकात् नोणः ११ अलीबे दीर्घः अंत्यव्यं सूलुक् अगणी- पदे श्रग्नि- अधोमनयां छुक् श्रनादौ द्वित्वं अक्लीवेदीर्घः अंत्यव्यं स्बुक् अग्गी ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. स्नेह अने अग्नि शब्दना जोडाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्व विकटपे अ थाय. सं. स्नेह तेने नान एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे विकटपे न पूर्वक अ थाय. पठी लोकात् नोणः अतःसे?: ए सूत्रोथी सणेहो रूप थाय. पदे सं. स्नेह तेने कगटड अतःसेडोंः ए सूत्रोथी नेहो रूप पाय. सं. अग्नि तेने गू नि एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे विकटपे नि पूर्वक अ श्राय. पछी लोकात् नोणः अक्लीबेदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी अगणी रूप थाय. पक्ष- सं. अग्नि तेने अधोमनयां अनादी० अक्लीवे अंत्यव्यं० ए सूत्रोयी अग्गी रूप थाय. १०२
प्लदे लात् ॥ १०३ ॥ प्लद शब्दे संयुक्तस्यान्त्यव्यंजनासात्पूर्वोऽद् नवति ॥ पलक्खो ॥
मूल भाषांतर. प्लक्ष शब्दना जोडादरना अंत्यव्यंजन ल थकी पूर्व अ थाय. सं. प्लक्ष तेनुं पलकबो रूप थाय. १०३ ।
॥ टुंढिका ॥ प्लद १ ल ५१ प्लद-पल इति विश्लेपे लात् पूर्वं अः लोकात् । कः खः क्वचित् अनादौ हित्वं द्वितीय तूर्य पूर्व ख क ११ अतः से?ः पलक्खो ॥ १३॥ टीका भाषांतर. प्लक्ष शब्दना जोडावना अंत्यव्यंजन ल नी पूर्वे अ श्राय. सं. प्लक्ष तेने पल एवो विश्लेप करील नी पूर्वे अ आय पी लोकात् क्षः ग्वः कचित् अनादौ द्वितीयतुर्य अतःसेटः ए सूत्रोश्री पलक्ग्बो रूप पाय. १०३
ई-श्री-बी० कृत्स्न-क्रिया-दिष्टया स्वित् ॥ १॥४॥ एषु संयुक्तस्यान्त्यव्यंजनात्यूर्व कारो नवति ॥ई । अरिहश् । अरिहा । गरिहा । वरिहो ॥ श्री। सिरी॥ ह्री। हिरी ॥ ह्रीतः। हिरीयो ॥ अहीकः । अहिरीयो ॥ कृत्स्नः । कसिणो ॥ क्रिया। किरि आ ॥ आर्षे तु हयं नाणं किया-हीणं॥दिष्टया । दिहिया॥ मूल भाषांतर. है श्री ही कृत्स्न क्रिया अने दिष्ट्या ए शब्दोना जोडादरना अंत्यव्यंजननी पूर्व इकार श्राय. हनां उदाहरण-- सं. अहति तेनुं अरिहइ रूप
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द्वितीयः पादः ।
३६३
थाय. सं. अर्हन् तेनुं अरिहा रूप याय. सं. गर्हिन् तेनुं गरिहा रूप थाय. सं. बर्हिन् तेनुं वरिहो रूप थाय. सं. श्री तेनुं सिरी रूप याय. सं. ही तेनुं हिरी रूप थाय. सं. ह्रीतः तेनुं हिरीओ रूप थाय. सं. अह्नीकः तेनुं आहेरीओ रूप याय. सं. कृत्स्नः तेनुं कसिणो रूप याय. सं. क्रिया तेनुं किरिया थाय. या प्रयोगमां सं. हतं ज्ञानं क्रियाहीनं तेनुं हवं नाणं क्रिया - हीणं एवं रूप याय. सं. दिष्टया तेनुं दिडिआ रूप याय. १०४
॥ इंडिका ॥
इ
श्व श्रीश्च ह्रीश्च कृत्स्नश्च क्रिया च दिष्टया च श्रीही कृत्स्त्रक्रियादिष्ट्या स्तासु ७३ इत् ११ श्रई मह पूजायां श्रविव व्यंजना ददंते तू लोकात्त्यादीनां ति अनेन र इति विश्लेषं कृत्वा श्रनेन पूर्व: : लोकात् रिह । श्रईन् त्र्त्यव्यंजन० त्लुक् र् ह् इति विश्लेषेर् इ पूर्व इ: लोकात् ११ त्र्त्यव्यंज०सूलुक् अरिहा गर्द - र् इति विश्लेषे द पूर्वः ः लोकात् शषोः सः ११ अंत्यव्यंजन० सलुक् गरिदा बर्हिन्- त्य० लुक् र् द् इति विश्लेषे श्रनेन दः पूर्व इः लोकात् १३ जस्स्ङति दीर्घः जस्शसोलुक् बरिहा | श्री शू रि इति विश्लेषे रात् इः लोकात् शषोः सः ११ अंत्यव्यं० सलुक् सिरी 1 ह्री हरि इति विश्लेषे श्रनेन री पूर्व : लोकात् ११ अंत्यव्यं ० सलुक हिरी ह्रीतः दूरी इति विश्लेषे अनेन री पूर्व : लोकात् कगचजेति लुक् ११ श्रतः सेडः हिरीओ । यहीकः- दरी इति विश्लेषे पूर्व : लोकात् दि क कगचजेति क्लुक् श्रतः सेडः अहिरीयो । कृत- कुतोऽत् कृ के कगटमेति लुक् सन इति विश्लेपे न पूर्व इ लोकात् नोणः श्रतः सेर्डोः कसियो । क्रिया करि इति विश्लेपेन र पूर्व : लोकात् कि कगचजेति लुक् ११ य व्यंज सलुक् किरिया | दत- कगचजेति त्लुक् र्णो अ य ११ क्लोबेस्म् मोनु० हवं | ज्ञान- म्नझोर्णः इस्य णः व्यत्ययस्येति न्यायात् नोटः : पस्य ह नः नोणः कस्य एः ११ क्लीवे सम् मोनु० नाणं । श्रार्षे किया - सर्वत्र रलुक् कगचजेति लुक्
वर्णात् लुक् श्रव
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मागधी व्याकरणम्. श्रवर्णो अ य ११ क्लीबे स्म् मोनु० अंत्य स्बुक किया- हीन- नोणः ११ क्लीवे सम् मोनु होणं । दिष्टया ष्ट्र या इति विश्लेपे यात्पूर्व
लोकात् ष्टस्यानुष्ट ष्टस्य वः श्रनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व उ ट कगचजेति यलुक् दिहिया ॥ १०४ ॥
टीका भाषांतर. हं श्री ही कृत्स्न क्रिया अने दिष्टया ए शब्दोना जोडाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्वे इ थाय. सं. अहं धातु पुजामां प्रवत्त. तेने व्यंजनाददंतेऽत् त्यादीनां चालता सूत्रे हू एवो विश्लेष करी पूर्व इ थाय. पनी लोकात् ए सूत्रे अरिहइ रूप थाय. सं. अर्हत् तेने अंत्यव्यं० ए सूत्रे त् नो लुक् थाय. पनीर हु एवो विश्लेष करी हनी पूर्वे इ थाय. लोकात् अतः सेोंः ए सूत्रोथी अरिहारूप श्राय. सं. गह तेने र ह एवो विश्लेष करी हनी पूर्वे इ थाय. पी लोकात् शपोः सः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गरिहा रूप थाय. सं. वहिन् तेने अंत्यव्यं० ए सूत्रे र ह एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे ह पूर्वे इ थाय. पनी लोकात् जशू शस् ङसिदीर्घः जशू शसोदीर्घः जशशसोलक् ए सूत्रोथी बरिहा रूप वाय. सं. श्री तेने शरी एवो विश्लेप करी रनी पूर्व इ थाय. पनी लोकात् शषोः सः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सिरी रूप थाय. सं. ही तेने हरी एवो विश्लेष करी चाजता सूत्रे रीनी पूर्वे इ वाय. पनी लोकात् अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी हिरी रूप थाय. सं. हीत तेने हरी एवो विश्लेप करी चालता सूत्रे रीनी पूर्वे इ थाय. पी कगचज. अतः सेडोंः ए सूत्रोथी हिरीओ रूप थाय. सं. अह्रीक तेने हरी एवो विश्लेष करी रीनी पूर्वे इ थाय. लोकात् कगचज. अतः सेोः ए सूत्रोथी अहिरीओ रूप थाय. सं. कृत्स्न तेने ऋतोऽत् कगटड० विश्लेष करीन्नी पूर्वे इ थाय. लोकात् नोणः अतः सेडोंः ए सूत्रोथी कसिणो रूप थाय. सं. क्रिया तेने करि एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे रिनी पूर्व इ थाय. पत्री लोकात् कगचज. अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी किरिआ रूप श्राय. सं. हृत तेने कगचज० अवर्णात् अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी हयं रूप थाय. सं. ज्ञान तेने नज्ञोण: व्यत्ययस्य एवो न्याय ३ तेथी नोणः पनी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री नाणं रूप थाय. आर्षप्रयोगमां. सं. क्रिया तेने सर्वत्र कगचज अवर्णी अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी किया रूप थाय. सं. हीन तेने नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी होणं रूप थाय. सं. दिष्टया तेने ष्ट्र या एवो विश्लेप करी यनी पूर्व इ याय. पती लोकात् ष्टस्यानु० अनादौ० दितीय० कगचज० ए सूत्रोथी दिहिआ रूप श्राय. ॥१०॥
र्श-र्ष-लप्त-वचे वा ॥ २०५॥ र्पयोस्तप्तवज्रयोश्च संयुक्तस्यांत्यव्यंजनात्पूर्व श्कारो वा जवति ॥र्श। थायरिसो श्रायसो । सुदरिसणो सुदंसणो । दरिसणं दसणं ॥ -।
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द्वितीय पादः।
३६५ वरिसं वासं । वरिसा वासा । वरिस-सयं वास-सयं ॥ व्यवस्थितविनाषया कचिन्नित्यं । परामरिसो। हरिसो। श्रम रिसो। तप्त । तवि तत्तो ॥ वज । वरं वऊं ॥ - मूल भाषांतर. श प शब्द अने तप्त तथा वज्र शब्दना जोडाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्वे विकटपे इकार थाय. र्शनां उदाहरण-सं. आदर्शतेनां आयरिसो आयसो एवा रूप थाय. सं. सुदर्शन तेनां सुरिसणो सुदंसणो एवां रूप थाय. सं. दर्शन तेनां दरिसणं दंसणं एवां रूप थाय. र्षनां उदाहरण-सं. वर्ष तेना वरिसं वासं एवां रूप थाय. सं. वर्षा तेनां वरिसा वासा एवां रूप थाय. सं. वर्षशतं तेनां वरिस-सयं वास-सयं एवां रूप थाय. व्यवस्थित विनाषावडे को ठेकाणे नित्ये थाय. सं. परामर्श तेनुं परामरिसो रूप श्राय. सं. हर्ष तेनुं हरिसो रूप थाय. सं. अमर्ष तेनुं अमरिसो रूप थाय. सं. तप्त तेनां तविओ तत्तो एवां रूप थाय. सं. वज्र तेनां वरं वज एवां रूप थाय. ॥१५॥
॥ढुंढिका॥ र्शश्च पश्च तप्तश्च वनं च शर्षतप्तवज्रं तस्मिन् ७१ वा ११ श्रादर्शकगचजेति ढुक् अवर्णो अ य र श इति विश्लेषे न शात्पूर्व क्ष वालोकात् शपोः सः ११ श्रतः सेझैः आयरिसो पदे श्रादर्श- कगचजेति बुक् श्रवर्णो थ य वक्रादावंतः अनुस्वारः य सर्वत्र रखुक् शपोः सः ११ श्रतः सेझैः श्रायंसो। सुदर्शन- अनेन वा र श इति विश्लेषे नात्पूर्व : लोकात् शषोः सः नोणः ११ श्रतः सेझैः सुदरिसणो । सुदर्शन- वादावंतः दं सर्वत्र रखुक् शपोः सः नोणः ११ श्रतः सेझैः सुदंसणो । दर्शन- अनेन र श विश्लेषे शात्पूर्व लोकात् शषोः सः नोणः श्रतः से?ः दरिसणो । पदे दर्शन- वक्रादावंतः दं पूर्ववत् दंसणो । वर्षा- र्ष इति विश्लेषे अनेन पात्पूर्व लोकात् शषोः सः षसयोः सः क्लीवे सम् मोनु वरिसं । पदे वर्ष- सर्वत्र सबुक् शषोः सः लुसयवरवा ११ क्लीबे सम् मोनु वासं । वर्षा र षा इति विश्लेषे अनेन वा पात्पूर्व ३ शषोः सः कगचजेति सबुकू ११ वरिसा एवं पदे वासा । वर्षशतं तस्य वरिससयं पदे वर्षशत- सर्वत्र रखुक् शषोः सः षसयोः सः लुप्तयवरदीर्घ व वा वाससयं । परामर्षः हर्षः श्रमर्ष- र्ष
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मागधी व्याकरणम्. इति विश्लेषात्पूर्व शषोः सः ११ अतः सेझैः परामरिसो । हरिसो। अमरिसो। तप्त- अनेन वा पूर्व : पोवः कगचजेति त्लुक् ११ श्रतः सेोंः तविठ । पद तप्त- कगटडेति प्लुक् अनादौ हित्वं २१ अतः से?ः तत्तो । वज्र- जू र इति विश्लेषे अनेन रपूर्वं लोकात् कगचजेति जवुक ११ क्लीबे स्म् मोनु० वरं । पदे वज्र- सर्वत्र रलुक् अनादौ हित्वं वऊं ॥ १५ ॥
टीका भाषांतर. र्श र्ष अने तप्त वज्र ए शब्दोना जोडाक्षरने अंत्यव्यंजननी पूर्वे विकल्पे इकार थाय. सं. आदर्श तेने कगचज. अवर्णो र शनो विश्लेष करी पूर्वने विकटपे इ थाय. पनी लोकात् शषोः सः अतः से?ः ए सूत्रोथी आयरिसो रूप थाय. पदे सं. आदर्श तेने कगचज० अवर्णो० वक्रादावंतः सर्वत्र शषोः सः अतः सेों: ए सूत्रोथी आयंसो रूप थाय. सं. सुदर्शन तेने चालता सूत्रे र श एवो विश्लेष करी न नी पूर्वे इ थाय. पनी लोकात् शषोः सः नोणः अतः सेझैः ए सूत्रोथी सुरिसणो रूप थाय. सं. सुदर्शन तेने वकादा० सर्वत्र० शषोः सः नोणः अतः सेोः ए सूत्रोथी सुदंसणो रूप थाय. सं. दर्शन तेने चालता सूत्रे र श एवो विश्लेष करी शनी पूर्व इ थाय. पनी लोकात् शषोः सः नोणः अतः सेडोंः ए सूत्रोथी दरिसणो रूप थाय. पदे दर्शन तेने वक्रादावंतः बाकी पूर्ववत् अश् दसणो रूप थाय. सं. वर्ष तेने र ष एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे बनी पूर्व इ थाय. पत्री लोकात् शषोः सः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वरिसं रूप थाय. पदे वर्ष तेने सर्वत्र शषोः सः लुप्तयवर० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वासं रूप थाय. सं. वर्षा तेने चालता सूत्रे विश्लेष करी पनी पूर्व र थाय. पठी शषोः सः कगचज. ए सूत्रोथी वरिसा तथा वासा रूप थाय. सं. वर्षशत तेनुं वरिससयं रूप थाय. पदे वर्षशत तेने सर्वत्र शषोः सः लुसयव० ए सूत्रोथी बाससयं रूप थाय. सं. परामर्षे हर्षे अमर्ष ए शब्दोने र ष एवो विश्लेष करी पनी पूर्वे इ थाय. पठी शषोः सः अतः सेटः ए सूत्रोथी परामसिओ हरिसो अमरिसो एवां रूप पाय. सं. तप्त तेने चालता सूत्रे पूर्वने थाय. पनी पोवः कगचज. अतः सेोंः ए सूत्रोथी तविओ रूप थाय. पदे सं. तप्त तेने कगटड अनादौ अतः सेझैः ए सूत्रोथी तत्तो रूप थाय. सं. वन तेने ज र एवो विश्लेष करी रनी पूर्व इ थाय. पठी लोकात् कगचज० क्लीबे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी वइरं रूप थाय. पदे सं. वज्र तेते सर्वत्र अनादौ० ए सूत्रोथी वजं रूप थाय. ॥ १०५॥
लात् ॥ १०६॥ संयुक्तस्यांत्यव्यंजनावात्पूर्व श्द् भवति ॥ किलिन्नं । किलिहूं ।
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द्वितीयःपादः। सिलिटं। पिवुड । पिलोसो। सिलिम्हो। सिलेसो। सुकिलं । सुश्लं । सिलोयो। किलेसो । अम्बिलं । गिला। गिलाणं मिला। मिलाणं । किलम्न। किलन्तं ॥ क्वचिन्न नवति ॥ कमो। पवो । विप्पवो । सुक्क-पक्खो ॥ उत्प्लावयति । उप्पावे ॥ १६ ॥
मूल भाषांतर. जोडाक्षर एवा अंत्यव्यंजन ल नी पूर्व इ आय. सं. क्लिन्न तेनुं किलिन्नं थाय. सं. क्लिष्ट तेनु किलिटुं थाय. सं. श्लिष्ट तेनुं सिलिटं श्राय. सं. प्लष्ट तेनुं पिलुटुं थाय. सं. प्लोष तेनुं पिलोसो थाय. सं. श्लेष्म तेनुं सिलिम्हो थाय. सं. श्लेष तेनुं सिलेसो रूप थाय. सं. शुक्ल तेनां सुकिलं सुइदं रूप थाय. सं. श्लोक तेनुं सिलोओ रूप थाय. सं. क्लेश तेनुं किलेसो रूप थाय. सं. अम्ल तेनुं अम्बिलं रूप थाय. सं. ग्लायति तेनुं गिलाइ रूप थाय. सं. ग्लान तेनुं गिलाणं रूप थाय. सं. म्लायति तेनुं मिलाइ रूप थाय. सं. म्लान तेनुं मिलाणं रूप थाय. सं. क्लाम्यति तेनुं किलम्भइ रूप थाय. सं. क्लान्त तेनुं किलन्तं रूप थाय. कोइ ठेकाणे न पण थाय. सं. कलम तेनुं कमो थाय. सं. प्रव तेनुं पवो रूप थाय. सं. विप्लव तेनुं विप्पयो रूप थाय. सं. शुक्ल पक्ष तेनुं सुक्क-पक्खो रूप थाय. सं. उत्प्लावयति तेनुं उप्पावेइ रूप थाय. ॥ १०६॥
॥ ढुंढिका ॥ ल ५१ क्विन्न-लि इति विश्लेषे पूर्व लोकात् क्लीबेसम् मोनु० किलिन्नं । क्लिष्ट-क् लि शति विश्लेषेल पूर्व लोकात् ष्टस्यानुष्टे ष्टस्य टः अनादौ किलिटं श्लिष्ट-शू लि शति विश्लेषे अनेन ल पूर्व वा शषोः सः ष्टस्यानु ष्टस्य ः अनादौ सिलिटुं । प्लुष्ट-बु इति विश्लेषे अनेन लात् पूर्व : ष्टस्यानु ट ठ अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु पिलुटुं । प्लोष-प्र लो इति विश्लेषे ल पूर्व ः शषोःसः११ अतः सेझैः पिलोसो । श्लेष्मन्- अंत्यव्यं न बुक् पदम- इम ष्मस्म म्हः २ ले इति विश्लेषे ल पूर्व ः शषोः सः ११अतःसेडोंः सिलिम्हो । श्लेष- शू खे इति विश्लेषे ३ शषोः सः ११ अतः सेझैः सिलोसो शुक्ल- शषोः सः क् ल इति विश्लेषे अनेन पूर्व : सेवादौवा हित्वं कि कि ११ क्लीबे सम् मोनु सुकिलं । हित्वं विकल्पत्वात् । सुश्लं । शुक्ल- कगचजेति कूलुक् शेषं पूर्ववत् । श्लोक
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मागधी व्याकरणम्. लो इति विश्लेषे ल पूर्व : लोकात् शपोः सः कगचजेति कबुक् ११ अतः सेोः सिलोश्रो क्वेश-क् ले इति विश्लेषे शषोः सः ११ श्रतः सेझैः किलेसो । अम्ल- म् ल इति विश्लेषे ३ व्यत्ययश्चेति मो नुनासिको वोवा इति मात् अधो वकार थानीयते बवयोरै क्यं ज्ञेयं ११ क्लीवे स्म् मोनु० अंबिलं । ग्लै गात्रविनामे- ग्लै- स्वराणां स्वरा ग्लै ग्ला वर्तण तिव् ग् ला इति विश्लेषे अनेन लात् पूर्व
त्यादीनां ति : गिलाइ । ग्लान- ग ला इति विश्लेषे लात्पूर्व : लोकात् गि नोणः ११ क्लीबे सम् मोनु० गिलाणं । म्लै गात्रविनामे खराणां खराः म्लै म्ला म् ला इति विश्लेषे अनेन लात्पूर्व ३ त्यादीनां ति मिलाइ । म्लान- म् ला- इति विश्लेषे लात् पूर्वं लोकात् मि नोणः ११ क्लीबे स्म् मोनु० मिलाणं क्लमु क्वामे क्वम् ति व्यंजनात् लोकात् क् ल इति विश्लेषे अनेन ल पूर्वं ः शकादीनां हित्वं म्म त्यादीनां ति किलम्मर कलात- क् ला इति विश्लेषे इति थनेन ल पूर्व ः लोकात् कि ह्रखः संयोगे लो लः ११ क्लीबेसम् मोनु० किलंतं क्लम- प्लव- विवव क् ल प ल इति विश्लेषेसर्वत्र लबुक् तृतीये श्रनादौ द्वित्वं प्प ११ श्रतः सेडोंः कमो पवो विप्पवो । शुक्ल- पदः शषोः सः सर्वत्र ल बुक् अनादौ हित्वं क्षः खः क्वचित्तु को कः खः अनेन हित्वं द्वितीय-पूर्व खक ११ अतः सेोंः सुकपक्खो । प्लुडू गतौ उत्पूर्व प्रपोत्तव्यापरिणग् उवर्ण स्यात् प्लुत् प्लाव् तिव त्यादीनां ति ३ णेरदादौ णिग् तुं काववे सर्वत्र व्बुक् श्रनादौ द्वित्वं प्पाउप्पावे ॥ १६ ॥ टीका भाषांतर. जोमादर एवा अंत्यव्यंजन लनी पूर्व इ थाय. सं. क्लिन्न तेने कू लि एवो विश्लेषकरी पूर्वे इ थाय. पी लोकात् क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी किलिन्नं रूप थाय. सं. क्लिष्ट तेने विश्लेष करी पूर्व इ थाय. सं. लोकात् ष्टस्यानु० अनादी ए सूत्रोथी किलिटुं रूप थाय. सं. श्लिष्ट तेने विश्लेष करी लनी पूर्व इ श्राय. पठी शषोः सः प्टस्यानु० अनादौ० ए सूत्रोथी सिलिट्ठ रूप श्राय. सं. प्लुष्ट तेने विश्लेष करी चालता सूत्रे ल नी पूर्वे इ थाय. पनी ष्टस्यानु० अनादी० क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पिलुटुं रूप थाय. सं प्लोष तेने
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द्वितीयःपादः।
३६ए विश्लेष करी ल नी पूर्वे इ थाय. शषोः सः अतःसे?ः ए सूत्रोधी पलोसो रूप थाय. सं. श्लेष्मन् तेने अंत्यव्यं० पक्ष्मश्मष्म० चालता सूत्रे विश्लेष करी पूर्वे इ थाय. पड़ी शषोः सः अतः से?ः ए सूत्रोथी सिलिम्हो रूप थाय. सं. श्लेष तेने विश्लेष करी इ थाय. पनी शषोः सः अतःसेटः ए सूत्रोथी सिलिओ रूप थाय. सं. शुक्ल तेने शषोः सः विश्लेष करी पूर्व ने इ थाय- पनी सेवादौवा क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी मुकिल्लं रूप थाय. ज्यारे दिर्जावनो विकटप थाय. त्यारे सुइलं एq रूप थाय. सं. शुक्ल तेने कगचज बाकी पूर्ववत् थई सिद्ध थाय. सं. श्लोक तेने विश्वेष करी ल नी पूर्वे इ थाय. पनी लोकात् शषोः सः कगचज अतःसे?ः ए सूत्रोथी सिलोओ रूप पाय. सं. क्लेश तेने विश्लेष करी शषोः सः अतःसे?: ए सूत्रोथी किलेसो रूप थाय. सं. अम्ल तेने विश्लेष करी इनो फारफेर करवो पनी मनी नीचे वकार थाय. अने व तथा बर्नु ऐक्य थाय. पढी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी अंबिलं रूप श्राय. सं. ग्लै धातु गात्रना संकोचमा प्रवर्ते तेने स्वराणां खराः ए सूत्रे ग्लैर्नु ग्ला श्राय. पनी वत्तेमाने विश्लेष करी चालता सूत्रे लनी पूर्वे इ थाय. त्यादीनां ए सूत्रथी गिलाइ रूप थाय. सं. ग्लान तेने विश्लेष करी लनी पूर्वे इ थाय. पनी लोकात् नोणः क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोधी गिलाणं रूप थाय. सं. म्लै धातु गात्र संकोचमा प्रवर्ते तेने स्वराणां स्वराः विश्लेष करी लनी पूर्वे इ थाय. पठी त्यादीनां ए सूत्रोश्री मिलाइ रूप थाय. सं. म्लान तेने विश्लेष करी इ थाय. पनी लोकात् नोणः क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी मिलाणं रूप थाय. सं. क्लमु धातु ग्लानिमां प्रवर्ते सं. क्लम् धातुने व्यंजनात् लोकात् विश्लेष करी लनी पूर्वे इ थाय. पठी शकादीनांद्वित्वं त्यादीनां ए सूत्रोथी किलम्मइ रूप श्राय. सं. क्लांत तेने क् ला एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे लनी पूर्व इ थाय. पनी लोकात् इस्वःसंयोगे क्लीबसूम् मोनु० ए सूत्रोथी किलंतं एवं रूप थाय. सं. क्लम प्लव तेने विश्लेष करी सर्वत्र अने त्रीजा रूपमां अनादौ अतःसे?: ए सूत्र लागे पनी कमो पवो विप्पवो एवां रूप श्राय. सं. शुक्लपक्ष. तेने शषोः सः सर्वत्र अनादौ क्षः खः कचितु पनी बिर्ताव थाय. द्वितीय अतः सेडोंः ए सूत्रोथी सृक्क पक्खो रूप थाय. प्लु ए धातुगतिमां प्रवर्ते उत् उपसर्ग पूर्वे आवे पनी णिग् आवे पनी वृद्धि आय. तिव प्रत्यय आवे त्यादीनां णेरदादौ सर्वत्र अनादौ दिर्जाव थाय. एटले उप्पावेइ रूप थाय. १०६
स्थाद्-नव्य-चैत्य-चौर्यसमेषु यात् ॥ १० ॥ स्यादादिषु चौर्यशब्देन समेषु च संयुक्तस्य यात्पूर्व इद जवति ॥ सि
आ। सिधा-वा । नविउँ । चेश्यं ॥ चौर्यसम । चोरियं । थेरियं जारिश्रा । गम्जीरियं । गहीरियं । शायरि । सुन्दरियं । सोरिथं वीरिअं । वरिअं । सूरिन । धीरियं । बम्हचरिशं ॥
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३४०
मागधी व्याकरणम. मूल भाषांतर. स्याद भव्य चैत्य अने चौर्य शब्दना जेवा शब्दोना जोमादरने यनी पूर्वे इ थाय. सं. स्यात् तेर्नु सिआ थाय. सं. स्याद्वाद तेनुं सिआ-वाओ थाय. सं भव्य तेनुं भविओ श्राय. सं. चैत्य तेनु चेइअं थाय. चौर्य शब्दना जेवां बीजा शब्दोनां उदाहरण-सं. चौर्य तेनुं चोरिअं वाय. सं. स्थैर्य तेनुं थेरिअं श्राय.सं. भार्या तेनुं भारिआ रूप प्राय. सं. गांभीर्य तेनुं गंभीरिअं रूप आय. सं. गर्छ तेनुं गहीरिअं रूप थाय. सं. आचार्य तेनुं आयरिओ रूप थाय. सं. सौंदर्य तेनुं सुंदरिअं रूप थाय. सं. शौर्य तेनुं सोरिअं थाय. सं. वीर्य तेनुं वीरिअं रूप थाय. सं. वर्य तेनुं वरिअं रूप पाय. सं. सूर्य तेनुं सरिओ श्राय. सं. धैर्य तेनुं धीरिअं थाय. सं. ब्रह्मचर्य तेनुं बम्हचरिअं थाय.॥१७॥
॥दढिका ॥ स्याञ्च जव्यश्च चैत्यं च चौर्यसमं च स्यान्नव्यचैत्यचौर्यसमाः तेषु ७३ य ५१ स्थान से सि श्रावाया पूर्वः कगचजेति यबुक् अंत्यव्यं त्बुक् सिधा स्याहाद-सिया पूर्ववत् वाद इत्यत्र कगचजेति दलुक् ११ अतःसे?ः सियावा । जव्य व् य इति विश्लेषे वपूर्व लोकात् वि कगचजेति यलुक् ११ अतःसे?ः नविन चैत्य ऐतएत् चै चे त् य इति विश्लेषे तपूर्व ३ लोकात् ति कगचजेति तययोविश्लेषे तबुक् ११ क्लीबेस्म् मोनु चेश्यं । चौर्य र य इति विश्लेषे अनेन यपूर्वः लोकात् शरि औउत् चौ चो कगचजेति यदुक् ११ क्वीबे स्म् मोनु० चोरिशं। स्थैर्य ऐतएत् स्थै स्थे कगटमेति सबुक् र य इति विश्लेषे श्रनेन च यपूर्व कगचजेति यबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु थेरियं । नार्या र या इति विश्लेषे अनेन यपूर्व श लोकात् रि अंत्यव्यंग स्लुक् नारिया। गांजीर्य ह्रस्वःसंयोगे गा ग र य इति विश्लेषे अनेन यपूर्व : लोकात् रि कगचजेति यलुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु गंनिरियं । गंजीर्य खघथधा र य इति विश्लेषे अनेन यपूर्व लोकात् रि कगचजेति बुक ११ क्लीवे स्म् मोनु गहरियं । आचार्य श्राचार्येचोच्च चा च कगचजेति व्लुक् अवर्णो अ य र य इति विश्लेषे अनेन यपूर्व ३. लोकात् कगचजेति यलुक् ११ अतःसेडोंः आयरिङ सौंदर्य औतउत् सौं सों ह्रस्वःसंयोगे सो सु र य इति विश्लेषे अनेन यपूर्व इकगचजेति यत्नुक् ११ क्लीबे स्म् मोनुण्सोरिअं । वर्य रियं पूर्ववत् वी
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द्वितीयःपादः।
३७१ रिझं । वरिअं । सूर्य र य इति विश्लेषे यात्पूर्व : ११ कगचजेति यबुक अतःसेर्मोः सूर धैर्य रिश्र पूर्ववत् धीरिअं ब्रह्मचर्य सर्वत्र रखुक् झो. जोवा रिक्षं पूर्ववत् बंनचरियं ॥ १७ ॥
टीका भाषांतर. स्याद् भव्य अने चैत्य तथा चौर्य शब्दना जेवा बीजा शब्दोना जोमारना यनी पूर्व इ थाय. सं. स्याद तेने यानी पूर्वे इ थाय. पी कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सिआ रूप थाय. सं. स्याबाद तेने सिआ ए रूप पूर्वनी प्रमाणे थाय. बाकी वाद शब्दने कगचज अतःसेटः ए सूत्रोथी सिआवाओ रूप थाय. सं. भव्य तने व य एवो विश्लेष करी पूर्वने इ थाय. पी लोकात् कगचज अतःसे?ः ए सूत्रोथी भविओ रूप थाय. सं. चैत्य तेने ऐतएत् त् य एवो विश्लेष करी तनी पूर्व इ थाय पी लोकात् कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी चेइअं रूप थाय. सं. चौर्य तेने र य एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे यनी पूर्वे इ वाय. पनी लोकात् औओत् कगचज क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी चोरिअं रूप थाय. सं. स्थैर्य तेने ऐतएत् कगटड र य एवो विश्लेष करी पूर्वने इ थाय कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी थेरिअं रूप थाय. सं. भायों तेने र य एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे यनी पूर्वे इ श्राय पठी लोकात् अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी भारिआ रूप थाय. सं. गांभीर्य तेने हवासंयोगे र यनो विश्लेष करी चालता सूत्रे यनी पूर्वे इ थाय. लोकात् कगचज क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी गहीरिअं थाय. सं. आचार्य तेने आवापेवा कगचज अवर्णो र य एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे यनी पूर्वे इ थाय. पठी लोकात् कगचज अतःसे?: ए सूत्रोथी आयरिओ रूप श्राय. सं. सौंदर्य तेने औतओत् हस्वःसंयोगे र य एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे पूर्वने इ थाय. पी कगचज क्लीबे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी सोरिअं रूप थाय. सं. वीर्य तथा वर्य तेने पूर्वनी जेम रियं रूप थाय एटले वीरिअं वरिअं एवां रूप धाय. सं सूर्य तेने र य एवो विश्लेष करी यनी पूर्वे इ थाय. पनी कगचज अतः सेझैः ए सूत्रोथी सरिओ रूप थाय. सं. धैर्य तेने पूर्ववत् थ धीरिअं रूप थाय. ब्रम्हचर्य तेने सर्वत्र माभोवा ए सूत्रो लागे अने पूर्ववत् रिअं थाय. एटले बंभचरिअं एवं रूप थाय. ॥ १० ॥
स्वप्नेनात् ॥१०॥ स्वप्नशब्दे नकारात्पूर्व इद् नवति ॥ सिविणो ॥ मूल भाषांतर. स्वम शब्दना न नी पूर्वे इ याय. सं. स्वप्न तेनुं सिविणो रूपयाय.१०७
॥ द्वंढिका॥ स्वप्न ७१ न ५१ स्वप्न- प न इति विश्लेषे नात् पूर्व : स्वप्नादौ स् सि सर्वत्र स्वमध्ये बुक् पोवः नोणः ११ अतः सेझैः सिविणो १०७
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३७२
मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. स्वम शब्दना न नी पूर्वे इ थाय. सं. स्वप्न तेने प न एवो वि. श्लेष करी न नी पूर्व इ थाय. पनी इःस्वप्नादौ सर्वत्र पोवः नोणः अतः सेझैः ए सूत्रोथी सिविणो रूप थाय. ॥ १० ॥
स्निग्धे वादितौ ॥ १०ए ॥ स्निग्धे संयुक्तस्य नात्पूर्वी अदितौ वा नवतः ॥ सणिकं सिणिकं । पदे निकं ॥
मूल भाषांतर. लिग्ध शब्दना जोडाक्षरने न नी पूर्वे विकटपे अ तथा इ थाय. सं. लिग्ध तेना सणिद्धं सिणिद्धं एवां रूप थाय. पदे निडं रूप थाय. ॥१०॥
॥ ढुंढिका ॥ स्निग्ध ७१ वा ११ थत् च इच्च अदितौ । स्निग्ध स् नि इति विश्लेषे निपूर्व ः लोकात् सि नोणः कगटडेति गबुक् अनादौ हित्वं हितीयपूर्व ध द ११ क्लीबेसम् मोनु सणिकं पदे सिणिकं पदे स्निग्ध कगटमेति सबुक् ग्लुक् च अनादौ हित्वं ११ क्लीवेसम् मोनु निकं ॥ १० ॥
टीका भाषांतर. स्निग्ध शब्दना जोडावरना न नी पूर्वे अ अने इ विकटपे श्राय. सं. स्निग्ध तेने स् नि एवो विश्लेष करी नि पूर्वे इ थाय. पनी लोकात् नोण: कगटड अनादौ द्वितीय० क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोधी सणिद्धं रूप आय. पदे सिणिडं थाय. बीजे पदे सं. स्निग्ध तेने कगटड अनादौ० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी निद्धं रूप थाय. ॥ १०॥
कृष्णे वर्णे वा ॥ १२० ॥ कृष्णे वर्णवाचिनि संयुक्तस्यान्त्यव्यंजनात्पूर्वी अदितौ वा जवतः॥ कासको कसियो कएहो ॥ वर्ण इति किम् ॥ विष्णौ कएहो ॥ मूल भाषांतर. वर्ण वाची एवा कृष्ण शब्दना जोमाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्वे विकटपे अ तथा इ थाय. सं. कृष्ण तेना कसणो कसिणो एवां रूप थाय. मूलमां वर्णवाची एम कडं वे तेथी जो कृष्ण शब्दनो अर्थ विष्णु होय तो कण्हो एवं रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ कृष्ण ७१ वर्ण ७१ वा ११ कृष्ण- ष ण इति विश्लेषे प्रथमे पपूर्व हितीये श्रलोकात् शषोः सः नोणः ११ अतः से?ः किसिणो
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द्वितीयःपादः।
३३ कसणो पदे कृष्ण- कृतोऽत् कृ क सूदमश्नष्णेतिएहः श्रतः सेझैः कएहो विष्णो विएहो पूर्ववत् ॥ ११० ॥ टीका भाषांतर. वर्णवाची एवा कृष्ण शब्दना जोडाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्वे अ तथा इ विकटपे थाय. सं. कृष्ण तेने ष ण एवो विश्लेष करी प्रथम पदे णनी पूर्वे इ थाय. बीजे परे अल्लोकात् शषोः सः नोणः अतःसेझैः ए सूत्रोथी किसिणो तथा कसणो एवां रूप थाय. त्रीजे पदे ऋतोऽत् सूक्ष्मश्नष्ण अतःसेटः ए सूत्रोथी कण्हो रूप श्राय. सं. विष्णो तेनुं पूर्ववत् विण्हो रूप थाय. ॥ ११ ॥
उच्चाईति ॥ १११॥ अर्हत् शब्दे संयुक्तस्यान्त्यव्यंजनात्पूर्व उत् अदितौ च नवतः ॥ अरुहो थरहो अरिहो । अरुहन्तो अरहन्तो अरिहन्तो ॥
मूल भाषांतर. अर्हत् शब्दना जोडावना अंत्यव्यंजननी पूर्वे उ अ इ एवा अझरो थाय. सं. अर्हत् तेना अरुहो अरहो अरिहो एवा रूप थाय. सं. अहंत तेनां अरुहन्तो अरहतो अरिहन्तो एवां रूप पाय. ॥ १११॥
॥ ढुंढिका ॥ उत् ११ च ११ अर्हत् ७१ अर्हत् अर्हतीति अझैव् श्रव् प्रत्ययः लोकात् अर्ह इति जाते रह इति विश्लेषे अनेन प्रथमे हपूर्व उहितीये हपूर्व थ तृतीये हपूर्व सर्वत्र लोकात् ११ श्रतःसे?ः अरुहो । अरहो थरिहो ॥ अर्हतीति अर्हत् श्रुगहिषाहः शतृशतुस्तुत्येशम्हतप्रत्ययः अत् लोकात् अर्हतत्तमाणो अतःस्थाने त्त व्यंजनाददंतेऽत् लोकात् अनेन र ह इति विश्लेषे प्रथमं हपूर्वं जः द्वितीये.थः तृतीये ः लोकात् ११ अरुदन्तो अरदन्तो अरिहन्तोः ॥ ११ ॥
टीका भाषांतर. अर्हत् शब्दना जोडादरना अंत्यव्यंजननी पूर्वे उ अ इ एवा अदरो थाय. सं अहत् (योग्य थाय) ते तेने वर्तमान कृदंतनो प्रत्यय आवे पनी रह एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे प्रथम हनी पूर्व उ थाय. बीजे पदे हनी पूर्व अ थाय. बीजे हनी पूर्वे इ थाय. सर्वत्र लोकात् अतःसे?: ए सूत्रोथी अरुहो अरहो अरिहो एवां रूप थाय. सं. अहंत् (योग्य थाय ते) ते ठेकाणे शतृ प्रत्यय आवे. पनी लोकात् अर्हत्तमाणो व्यंजनार्दतेऽत् लोकात् चालता सूत्रे र ह एवो विश्लेष करी प्रथम पदे ह नी पूर्वे उ थाय. बीजे पदे ह नी पूर्वे अ थाय. बीजे परे हनी पूर्वे इ थाय. पी लोकात् ए नियमथी अरुहन्तो अरहन्तो अरिहन्तो एवां रूप पाय.
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मागधी व्याकरणम्.
पद्म-बम-मूर्ख-छारे वा ॥ ११ ॥ एषु संयुक्तस्यान्त्यव्यंजनात्पूर्व उद् वा नवति ॥ पउमं पोम्मं । उउमं बम्मं । मुरुक्खो मुक्खो । कुवारं पदे वारं । देरं । दारं ॥
मूल भाषांतर. पद्म छद्म मूर्ख अने द्वार ए शब्दोना जोडाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्व विकटपे उ श्राय. सं. पद्म तेनुं पउमं पोम्म एवां रूप थाय. सं. छद्म तेनां छउमं छम्मं एवा रूप धाय. सं. मूर्ख तेनां मुरुक्खो मुक्खो रूप श्राय. सं. दार तेना दुवा. रं वारं देरं दारं एवां रूप थाय. ॥ ११२॥
॥ ढुंढिका ॥ पद्मं च बद्म च मूर्खश्च घारं च पद्मबद्ममूर्खछारं तस्मिन् पद्मउद्ममूखंधारे ७१ वा ११ पद्म-दम इति विश्लेषे अनेन वापूर्व उः लोकात् पनमं उत् पञए वा ११ प्पो कगचजेति । ढुक् ११ क्लीबे सम् मोनु पजमं पदे पद्म- उत्पदहेसह उ पोम्मं । बद्मन् अंत्यव्यंग न्बुक् द्मविश्लेषे अनेन वा मपूर्व उ लोकात् बकुम इति स्थिते कगचजेति बुक् ११ क्लीबे सम् मोनु बउमं । पदे बद्मन्-अंत्यव्यंग नलुक् कगटडेति दलुक् अनादौ हित्वं ११ क्लीबे सम् मोनु उम्मं । मूर्ख-हवःसंयोगे मू मु र ख इति विश्लेषे अनेन खपूर्व उः अनादौ हित्वं हि. तीयपूर्व ख कः ११ अतःसे?ः मुरुक्खो । पदे मूर्ख-हस्वःसंयोगे मू मुर्ख सर्वत्र रखुक् अनादौ द्वित्वं द्वितीय० ११ अतःसे?ः मुक्खो। छार-द् वा इति विश्लेषे अनेन वा पूर्व श लोकात् ११ क्लोवे स्म् मोनु० कुवारं । पदे कगचजेति दबुकू वारं सर्वत्र वबुक् दारं ॥ ११ ॥
टीका भाषांतर. पद्म छद्म मूर्ख अने द्वार शब्दना जोडाकरना अंत्यव्यंजननी पूर्व विकटपे उ थाय. सं. पद्म तेने दम एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे द नी पूर्व उ थाय. पनी लोकात् नियमश्री पदुमं रूप थाय. पी उत्पद्मएवा कगचज क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोधी पउमं रूप थाय. पदे पद्म तेने उत्पदहेसहउओ ए सूत्रथी पोम्मं रूप थाय. सं. छद्मन् तेने अंत्यव्यं० द म एवो विश्लेष करी आसूत्रे विकल्पे म नी पूर्वे उ थाय. लोकात् ए सूत्रोथी छदुम एवं थाय पनी कगचज क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी छउभं रूप थाय. पदे छद्मन् तेने अंत्यव्यं० कगटड अनादरै क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी छम्मं रूप थाय. सं. मूर्ख तेने हस्वःसंयोगे र ख एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे व नी पूर्वे उ थाय. पठी अनादौ० द्वितीय० अतःसेडोंः
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द्वितीयःपादः।
३७५ ए सूत्रोश्री मुरुक्खो रूप थाय. पक्ष सं. मूर्ख तेने इस्वःसंयोगे सर्वत्र अनादौ द्वितीय० अतःसेझैः ए सूत्रोथी मुक्खो रूप पाय. सं. द्वार तेने द् वा एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे विकटपे पूर्वने इ थाय. लोकात् क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी दुवारं रूप श्राय पदे कगचज० ए सूत्रथी वारं रूप थाय. ज्यारे सर्वत्र ए सूत्रे व नोलुक् थाय त्यारे दारं एवं रूप थाय. ॥ ११२ ॥
तन्वीतुल्येषु॥११३ ॥ उकारांता ङी प्रत्ययांतास्तन्वीतुख्याः। तेषु संयुक्तस्यान्त्यव्यंजनात्पूर्व जकारो नवति ॥ तणुवी । लहुवी । गरुवी । बहुवी । पुहुवी । मनवी॥ क्वचिदन्यत्रापि । त्रुघ्नम् ॥ आर्षे । सूक्ष्मम् । सुहुमं ॥
मूल भाषांतर. उकारांत अने ङी प्रत्ययांत एवा तन्वी जेवा शब्दोना जोडाक्षरना अंत्यव्यंजननी पूर्व उकार श्राय. सं. तन्वी तेनुं तणुवी थाय. सं. लघ्वी तेनुं लहुवी थाय. सं. गुर्वी तेनुं गरुवी थाय. सं. बह्री तेनुं बहुवी थाय. सं. पृथ्वी तेनुं पुहुवी थाय. सं. मृद्धी तेनुं मउवी श्राय. कोइ ठेकाणे बीजे पण श्राय . जेम सं. स्रुघ्नम् तेनुं सुरुग्धं थाय. आर्ष प्रयोगमां सं. सुक्ष्म्म् तेनुं सुहुमं थाय.
॥ढुंढिका ॥ तन्व्या तुझ्याः तन्वीतुल्यास्तेषु ७३ तन्वी लध्वी- न् वी इति विश्लेषे अनेन वा पूर्व उः लोकात् प्रथमे नोणः द्वितीये खघथ उतो मुतुकुलादिष्वत् ११ अंत्यव्यंग स्बुक् तणुवी लहुवी उतो मुकुलादिप्वत् गुगवी र वी इति विश्लेषे अनेन वा पूर्वं उः लोकात् ११ अंत्यव्यंग गरुवी । बह्वी- ह वी इति विश्लेषे अनेन वा पूर्व उः ल उः बहुवी पृथ्वी- थू वी इति विश्लेषे अनेन वी पूर्व उः लोकात् खघथध० ११ अंत्यव्यंजन पुहुवी । मृही इतोऽत् मृ म द् वी इति विश्लेषे अनेन वा पूर्व उः कगचजेति ढुक् ११ अंत्यव्यंज स्बुक् मजवी त्रुघ्न-स् र विश्लेषे अनेन पूर्व अधोमनयां यलुक् अनादौ हित्वं द्वितीयतु पूर्व घ गः ११ क्लीबेस्म् मोनु सुरुग्धं पार्षे सूदा शब्देऽपि ऊकारः सूमः ह्रस्वःसंयोगे सू सु झू म इति विश्लेषे मपूर्व उः लोकात् सूक्ष्मे होवा हु ११ क्वीबे सम् मोनु सुहुमं ॥ ११३ ॥ टीका भाषांतर. उकारांत डी प्रत्ययांत एवा तन्वी तुल्य शब्दोना जोडाक्षरने अंत्यव्यंजननी पूर्वे उ थाय. सं. तन्वी लघ्वी तेने न् वी म् वी एवो विश्लेष करी
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मागधी व्याकरणम् . चालता सूत्रे तेने न वी एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे पूर्वे न श्राय पठी लोकात प्रथम पदे नोणः बीजे पदे खघथ० उतो मुकुला० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी तणुवी लहुवी एवां रूप थाय. सं. गुर्वी तेने उतोमुकुलादिष्वत् र् वी एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे पूर्व उ थाय. पनी लोकात् अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गरूवी रूप थाय. सं. बह्री तेने हू वी एवो विश्लेषे करी चालता सूत्रे पूर्व ने उ थाय. एटले बहुवी रूप थाय. सं. पृथ्वी तेने तू वी एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे पूर्वे उ थाय. पी लोकात खघय अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पुहुवी रूप आय. सं. मृही तेने ऋतोऽत दूवी एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे पूर्वने उ थाय. पनी कगचज अंत्यव्यंए सूत्रोथी मउवी रूप
थाय. सं. सुघ्न तेने स् र एवो विश्लेष करी चालता सूत्रे पूर्वने उपाय अधोमनयां अना दौ० द्वितीय० ए सूत्रे पूर्वना घ नो ग थाय. पंजी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सुरुग्धं रूप थाय. आर्ष प्रयोगमां सं. सूक्ष्म तेने पण उ थाय. सं. सूक्ष्म तेने इस्वःसंयोगे क्षु म एवो विश्लेष करी म नी पूर्वे उ थाय. पजी लोकात् सूक्ष्मे होवा क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी सुहुमं रूप थायः॥ ११३ ॥
एकस्वरे श्वः स्वे ॥ १२४ ॥ एकस्वरे पदे यौ श्वस् स्व ३ त्येतो तयोरन्त्यव्यंजनात्पूर्व उद् जवति ॥ श्वः कृतम् । सुवे कयं ॥ स्वेजनाः । सुवेजणा ॥ एकस्वर इति किम् । स्व-जनः । स-यणो ॥
मूल भाषांतर. एकस्वरवाला पदमां जो श्वस स्व आवे तेमना अंत्यव्यंजननी पूर्वे उ श्राय. सं. श्वः कृतं तेनुं सुवे कयं वाय. सं. स्वे जनाः तेनुं सुवेजणा एq थाय. मूलमा एकस्वरवाला एम कडं बे तेथी सं. स्वजनः तेनुं स-यणो थाय.॥ ११४॥
॥ ढुंढिका ॥ एकस्वर ३१ श्वश्च स्वश्च श्वःस्वं तस्मिन् ७१ श्वस् अंत्यव्यं स्लुक् शू व इति विश्लेषे अनेन वपूर्व उ लोकात् शषोः सः सु एबयादौ वा वे सुवे कृत कृतोऽत् क क कगचजेति स्बुक् अवर्णो अ य ११ क्लीबे सम् मोनु कयं । स्व १३ स् व इति विश्लेषे व पूर्व उ श्रतः सर्वादेर्वाजस् जसु स्थाने ए सर्वादेर्जस् स्थाने ए मित्यं सुवे जन १३ नोणः जस् शस् ङ सि सामि दीर्घः ण णा जस् शसोर्बुक् जणा । स्वजन- सर्वत्र वबुक् कगटडेति लुक् अवर्णो अ य नोणः ११ श्रतः सेझैः सयको ॥ ११५ ॥
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द्वितीयःपादः।
३७७ टीका भाषांतर. एक स्वरवाला पदमां जे श्वस् अने स्व आवे तेमना अंत्यव्यंजननी पूर्वे उ थाय. सं. श्वस् तेने अंत्यव्यंजन ण व एवो विश्लेष करी वनी पूर्वे उ थाय. पी लोकात् शसोः सः एच्छय्यादौ ए सूत्रोथी सुवे रूप थाय. सं. कृत तेने ऋतोऽत् कगचज० अवर्णो क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी कयं रूप थाय. सं. स्व० तेने स व एवो विश्लेष करी व नी पूर्वे उ थाय. पजी अतः सर्वादेर्वाजम् ए सूत्रे जस् ने स्थाने ए श्राय. डित्यं ए सूत्रोथी सुवे रूप थाय. सं. जनाः तेने नोणः जस् शम्ङसि जस् शसोलुक ए सूत्रोथी जणा रूप थाय. सं. स्वजन तेने सर्वत्र कगटड० अवर्णो नोणः अतःसे?ः ए सूत्रोथी सयणो रूप थाय. ॥ ११४ ॥
॥ ज्यायामीत् ॥ ११५॥ ज्याशब्दे अंत्यव्यंजनात्पूर्व ईद नवति ॥ जीया ॥
मूल भाषांतर. ज्या शब्दना अंत्यव्यंजननी पूर्वे ई थाय. सं. ज्या शब्द तेनुं जीआ रूप थाय. ॥ ११५॥
॥ढुंढिका॥ ज्या- ११ ईत् ११ ज्या- ज् या इति विश्लेषे अनेन यापूर्वं ६: लोकात् कगचजेति यबुक् ११ अंत्यव्यंग सबुक् जीया ॥ ११५ ॥
टीका भाषांतर. ज्या शब्दना अंत्य व्यंजननी पूर्व ई पाय. सं. ज्या- तेने ज् या एवो विश्लेप करी चालता सूत्रे यानी पूर्व ई थाय. लोकात् कगचज० अंत्यव्यं ए सूत्रोथी जीआ रूप धाय. ॥ ११५॥
करेणू-वाराणस्योर-णोर्व्यत्ययः ॥ १२६॥ अनयो रेफणकारयोर्व्यत्ययः स्थितिपरिवृत्तिनवति ॥ करू । वाणा रसी ॥ स्त्रीलिंगनिर्देशात्पुंसि न भवति । एसो करेणू ॥
मूल भाषांतर करेणू अने वाराणसी शब्दना रेफ तथा ण अक्षरनो व्यत्यय ( उलटापालटुं) थाय. सं. करेणू तेनु कणेरू थाय. सं. वाराणसी तेनुं वाणारसी थाय. स्त्रीलिंगनो निर्देश के तेथी पुंलिंगे करेणू शब्द होय तो सं. एषः करेणू तेनुं एसो करेणू एवं रूप थाय. ॥ ११६॥
॥ टुंढिका ॥ करेणूश्च वाराणसी च करेणूवाराणस्यौं तयोः ६५ र च णू च रणौ तयोः ६५ व्यत्यय ११ करेणू अनेन व्यत्ययः रेणू स्थाने णेरू ११ अंत्यव्यंग स्बुक् कणेरू वाराणसी- अनेन व्यत्ययः राणस्थाने णार ११
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इन
मागधी व्याकरणम्. अंत्यव्यं स्लुक् वाणारसी। एतद् अंत्यव्यं बुक् तदश्च अक्लीवे दस्य सः ११ श्रतःसे?ः एसो अक्कीबे लुक् करेणू ॥ ११६ ॥
टीका भाषांतर. करेणू अने वाराणसी शब्दना र तथा णनो व्यत्यय थाय. सं. करेणू तेने चालता सूत्रे व्यत्यय थाय एटले रेणू ने स्थाने णेरू थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रे कणेरू रूप थाय. सं. वाराणसी तेने चालता सूत्रे व्यत्यय वाय. एटले राणने स्थाने णार थाय. पळी अंत्यव्यं० ए सूत्रे वाणारसी रूप श्राय. सं. एतद् तेने अंत्यव्यं० तदश्च अक्लीवे अतः से?: ए सूत्रोथी एसो एवं रूप थाय. सं. करेणू तेने अक्लीबे ऋक् ए सूत्रथी करेणू रूप थाय. ११६
आलाने लनोः ॥ १२७॥ आलानशब्दे लनोर्व्यत्ययो भवति । आणालो । श्राणाल- क्खम्नो ॥ मूल भाषांतर. आलान शब्दना ल अने ननो व्यत्यय ( अदलोबदलो) थाय. सं. आलान तेनुं आणालो थाय. सं. आलान-स्तंभ तेनुं आणालक्खम्भो रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ आलान ७१ च च लनौ तयोः ६२ श्रालान- अनेन व्यत्ययः लानस्थाने नालः नोणः श्रतः सेोंः आणालो बालानस्तंनः आणालो पूर्ववत् स्तंजः स्तंनेस्तोवा स्तस्य खः अनादौ हित्वं द्वितीयतुर्य पूर्व स्ख कर१ श्रतः से?ः आणालक्खम्नो ॥ ११७ ॥ टीका भाषांतर. आलान शब्दना ल अने ननो व्यत्यय थाय. एटले लान शब्दने स्थाने नाल थाय. नोणः अतः सेोंः ए सूत्रोधी आणालो थाय. सं. आलानस्तंभ तेमां आणालो पूर्ववत् सिद्ध थाय. सं. स्तंभ तेने स्तंभेस्तोवा अनादौ० द्वितीय० अतः सेझैः ए सूत्रोथी आणाल- क्खम्भो एवं रूप पाय. ॥ ११७॥
अचलपुरे च-लोः॥ ११७ ॥ अचलपुरशब्दे चकार- लकारयो यंत्ययो नवति ॥ अलचपुर ॥
मूल भाषांतर. अचलपुर शब्दना च तथा लनो व्यत्यय श्राय. सं. अचलपुरं तेनुं अलचपुरं श्राय. ॥ ११ ॥
॥ टुंढिका ॥ अचलपुर ७१ य च ल च यलो तयोः ६२ अचलपुर- अनेन व्यत्ययः चलस्थाने लच ११ क्वीबे सम् मोनुस्वारः श्रलचपुरं ॥ ११ ॥
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द्वितीयःपादः।
३७ टीका भाषांतर. अचलपुर शब्दना च तथा लनो व्यत्यय थाय. एटले चलने स्थाने लच थाय. क्ली सम् मोनु० ए सूत्रोश्री अलचपुरं एबुं रूप थाय. ॥११॥
महाराष्ट्र ह-रोः ॥११॥ महाराष्ट्र शब्दे हरोर्व्यत्ययो नवति ॥ मरहट्टं ॥
मूल भाषांतर. महाराष्ट्र शब्दना ह तथा रनो व्यत्यय श्राय. सं. महाराष्ट्र तेनुं मरहट्टं रूप थाय. ॥ ११ ॥
॥ढुंढिका ॥ महाराष्ट्र ७१ ह च र च हरौ तयोः ६५ महाराष्ट्र महाराष्ट्र हा ह हस्वः संयोगे रा रः अनेन व्यत्ययः हरस्थाने रह सर्वत्र रलुक् ष्टस्यानु० ट ठ अनादौ हित्वं द्वितीय० ११ क्लीबे सम् मोनु मरहटं ॥
टीका भाषांतर. महाराष्ट्र शब्दना ह तथा रनो व्यत्यय थाय. सं. महाराष्ट्र तेने महाराष्ट्र इस्वः संयोगे चालता सूत्रे व्यत्यय थाय. एटले हरने स्थाने रह थाय. सर्वत्र ष्टस्यानु० अनादौ० द्वितीय क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी मरहट्ट रूप थाय.
ह्रदे ह्र-दोः ॥ १२०॥ हृदशब्दे हकारदकारयोर्व्यत्ययो भवति ॥ अहो ॥ आर्षे । हरए मह पुएडरिए ॥ १० ॥
मूल भाषांतर. हद शब्दना ह तथा दनो व्यत्यय थाय. सं. हद तेनुं द्रहो रूप थाय. आर्ष प्रयोगमा सं. हृद् महापुण्डरीक तेनुं हरए महपुण्डरिए एवं रूप थाय.
॥ढूंढिका॥ हृद १ हश्च द् च ददौ तयोः ६२ हृद- अनेन व्यत्यय हद स्थाने दह ११ श्रतः सेझैः दहो । हद ११ अत एत् सोतु समागध्यां द. दे अंत्यव्यंजन सबुक् आर्षत्वात् ह्वदस्य हरः कगचजेति दूलुक् हरए । महापुंडरीक दीर्घह्वस्वी मिथो वृत्तौ दाहपानीयादिष्वव री रि ११ श्रतः एत्सौपुंसि मागध्यां क कगचजेति कूलुक् अंत्यव्यंग स्बुक् महपुंडरीए ॥ १० ॥
टीका भाषांतर. हृद शब्दना ह तथा दनो व्यत्यय थाय. सं. हद तेने चालता सूत्रे व्यत्यय थाय. पनी हद ने स्थाने दह थाय. पनी अतः सेझैः ए सूत्रोथी दहो
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३०
मागधी व्याकरणम् . रूप श्राय. सं. ह्रद तेने अत एत् सोतु समागध्यां अंत्यव्यं० आर्ष प्रयोग होवाश्री हृद नो हर थाय. पली कगचज० ए सूत्रे हरए रूप श्राय. सं. महापुंडरीक तेने दीर्घ हृस्वौ मिथो वृत्तौ दाह पानीयादि० एतः एत सौपुंसि मागध्यां कगचज० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी महपुंडरीए एबुं रूप थाय. ॥ १२० ॥
हरिताले रखोर्न वा ॥११॥ हरितालशब्दे रकारलकारयोर्व्यत्ययो वा जवत्ति ॥ हलियारो हरियालो
मूल भाषांतर. हरिताल शब्दना र तथा लनो विकल्पे फारफेर थाय. सं. ह. रिताल तेनां हलिआरो हरिआलो एवां रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ हरिताल ७१रश्च लू च रलौ तयोः ६५ न ११ वा ११ हरिताल- अनेन वा व्यत्ययः रिस्थाने लि लस्थाने रः कगचजेति तलुक् ११ श्रतः सेडोंः हलियारो पदे हरिताल- कगचजेति तबुक् ११ अतः सेर्मोः हरियालो ॥ ११ ॥
टीका भाषांतर. हरिताल शब्दना र तथा लनो विकटपे व्यत्यय थाय. सं. हरिताल तेने चालता सूत्रे विकटपे व्यत्यय थाय एटले रि स्थाने लि थाय. लने स्थाने र थाय. पनी कगचज अतःसेडोंः ए सूत्रोथी हलिआरो रूप थाय. पदे हरिताल तेने कगचज अतःसे?: ए सूत्रोथी हरिआलो रूप थाय. ॥ ११ ॥
लघुके ल-होः ॥ १२॥ लघुकशब्दे घस्य हत्वे कृते लहोर्व्यत्ययो वा जवति ॥ हबुझं । लहुयं ॥ घस्य व्यत्यये कृते पदादित्वात् हो न प्राप्नोतीति हकरणम् ॥
मूल भाषांतर. लघुक शब्दना घनो ह कर्या पनी ल तथा हनो विकटपे व्यत्यय थाय. सं. लघुक तेनां हलु लहुअं एवां रूप थाय. घनो अदलो बदलो करवाश्थी पदना आदिपणाथी हनी प्राप्ति न वाय. तेथी ह करवानी जरूर . ॥ १२ ॥
॥ढुंढिका ॥ लघुक ७१ लश्च ह च लहौ तयोः६५ लघुक-खघथ घु हु थनेन व्यत्ययः लहुस्थाने हबु- कगचजेति कबुक् ११ क्लीवे स्म् मोनु हबुझं पदे लघुक-खघथ घु हु कगचजेति क्लुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु लहुरं घस्य व्यत्यये कृते पदादित्वात् हो न प्राप्नोति इति हकरणं ॥१२॥
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३०१
हितीयःपादः। टीका भाषांतर. लघुक शब्दना घनो ह करी ल तथा हनो विकल्पे व्यत्यय थाय. सं. लघुक तेने खघथ० चालता सूत्रे व्यत्यय थाय एटले लहुने स्थाने हलु थाय. पठी कगचज क्लीबेसूम मोनु० ए सूत्रोथी हलुअं रूप थाय. पदे लघुक तेने खघथ० कगचज० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी लहुअं रूप थाय. घनो व्यत्यय करी पदना आदिपणांथी ह प्राप्त न थाय. तेथी ह करवानी जरुर . ॥ १२ ॥
ललाटेल-डोः॥१२३ ॥ ललाटशब्दे लकारडकारयोर्व्यत्ययो नवतिवा। णडालं णलाडं। ललाटे च [१०२५७] इति श्रादेलस्य ण विधानादिह द्वितीयो लः स्थानी॥
मूल भाषांतर. ललाट शब्दना ल तथा डनो विकटपे व्यत्यय श्राय. सं. ललाट तेनां णडालं णलाडं एवां रूप आय. ललाटेच ए प्रथम पादना २५७ ना सूत्र प्रमाणे आदि लनो ण थाय तेथी अहिं बीजो ल स्थानी जाणवो.
॥ढुंढिका॥ ललाट ३१ लश्च ड च लडौ तयोः ६५ ललाट- ललाटे च श्रादिलस्य णः अनेन व्यत्ययः लाटस्थाने माल टामान टस्याजाणःअनेन व्यत्ययः लान टस्य डः११ क्लीबे स्म् मोनु एमालं पदे ललाटे च आदि लस्य णः टोडः टस्य मः ११ क्लीबे सूम् मोनु० णमालं ॥ १२३॥
टीका भाषांतर. ललाट शब्दना ल तथा डनो विकटपे व्यत्यय थाय. सं. ललाट तेने ललाटेच ए सूत्रे आदि लनो ण थाय. चालता सूत्रे व्यत्यय आय. पी लाटने स्थाने काल थाय. पी टोड: क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी णडालं रूप थाय. पदे ललाट तेने आदि लनो ण थाय. पी टोडः क्लीवे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी णडालं रूप थाय. ॥ १२३ ॥
ह्ये ह्योः ॥ १२४॥ ह्यशब्दे हकार यकारयोर्व्यत्ययो वा नवति ॥ गुह्यम् गुय्हं गुज्जं ॥ सह्यः । सय्हो सज्जो ॥ १२४ ॥
मूल भाषांतर. ह्य शब्दना ह अने यनो विकटपे व्यत्यय थाय. सं. गुह्य तेना गुरहं गुज्झं एवा रूप थाय. सं. सह्यः तेनां सरहो सज्झो एवा रूप थाय. ॥१४॥
॥ढुंढिका ॥ दू च यश्च ह्यः तस्मिन् ७१ ह च यश्च ह्यौ तयोः ६२ गुह्य- अनेन वा हस्थाने य यस्थाने इ ११ क्लीबे सम् मोनुण गुय्हं- पदे गुह्य- साध्व
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मागधी व्याकरणम्. सध्येह्यज्ञः ह्य ऊ अनादौ हित्वं द्वितीय पूर्व जजः ११क्कीबे स्म् मोनु गुज्कं । सह्य- अनेन वा हस्थाने यः यस्थाने हः११ श्रतः से?ः सय्हो पदे सह्य- साध्वसध्यह्यांः कः ह्यस्य ऊः श्रनादौ हित्वं द्वितीयतुर्य पूर्वजः जः ११ अतः सेझैः सज्जो० ॥ १४ ॥
टीका भाषांतर. ह्य शब्दना ह तथा यनो विकल्पे व्यत्यय थाय. सं. गुह्य- तेने चालता सूत्रे विकटपे हने स्थाने य थाय. अने यने स्थाने ह थाय. पली क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी गुरहं रूप थाय. पके गुह्य तेने साध्वसध्य० अनादौ० द्वितीयतुर्य० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी गुज्झं रूप धाय. सं. सह्य तेने चालता सूत्रे हने स्थाने य थाय. अने यने स्थाने ह थाय. पनी अतासेडोंः ए सूत्रथी सय्हो रूप थाय. पक्ष सं. सह्यः तेने साध्वसध्या० अनादौ० दितीयतुर्य अतःसे?: ए सूत्रोथी सज्झो रूप थाय. ॥ १२ ॥
स्तोकस्य थोक-थोव-थेवाः ॥ १२५॥ स्तोकशब्दस्य एते त्रय आदेशा नवन्ति वा ॥ थोकं थोवं थेवं । पदे थोकं ॥
मूल भाषांतर. स्तोक शब्दने थोक थोव थेव एवा त्रण आदेश विकटपे पाय. सं. स्तोक तेनां थोक थोव थेव एवां रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ स्तोक ६१ थोकश्च थोवश्च थेवश्च थोकथोवथेवाः १३ स्तोक अनेन वा प्रथमे स्तोकस्य थोक द्वितीये स्तोकस्य थोव तृतीये स्तोकस्य थेव ११ क्लीबे सम् मोनु थोकं थोवं थेवं पदे स्तोक- स्तस्य थोड समस्त थोक- कगचजेति कबुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु थोकं ॥ १२५॥
टीका भाषांतर. स्तोक शब्दने थोक थोव थेव एवा आदेश थाय. सं. स्ताक तेने चालता सूत्रे विकटपे प्रथम पके स्तोक ने थोक थाय बीजे थोव अने त्रीजे थेवएवा आदेश थवाथी थोकं थोवं थेवं एवां त्रण रूप थाय. पदे सं. स्तोक तेने स्तस्य थोडसम० कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी थोअं रूप थाय. ॥ १२५ ॥
उहित-नगिन्यो—ा-बहिण्यौ ॥ ११६॥ अनयोरेतावादेशो वा नवतः ॥ धूश्रा उहिया । बहिणी नश्णी ॥ मूल भाषांतर. दुहित अने भगिनी शब्दने धूआ तथा बहिणी एवा विकटपे
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द्वितीयः पादः ।
३८३
आदेश थाय. सं. दुहिता तेनां धूआ दुहिआ एवां रूप याय. सं. भगिनी तेनां बहिणी भइणी एवां रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥
डुहिता च जगिनी च दुहितृ- जगिन्यौ तयोः ६२ धूया च बहिणी च धूया - बहिण्यौ तयोः १२ हित- अनेन दुहितु स्थाने धूथा ११ अंत्यव्यंजन सलुक धूा पदे पुहित ११ खखादेम सिस्थाने डा श्रा इति मित्यं लुक कटडेति तुलुक डुद्दिश्रा जगिनी - अनेन वा जगिनी स्थाने बहिणी ११ अंत्यव्यं० सलुक् बहिणी पदे जगिनी कगचजेति लुक् नोणः अंत्यव्यं० सलुक् इणी ॥ १२६ ॥
टीका भाषांतर. दुहितु अने भगिनी शब्दने विकल्पे धूआ तथा बहिणी एवा अनुक्रमे आदेश थाय. सं. दुहितृ तेने चालता सूत्रे दुहितृने स्थाने धूआ थाय. पी अंत्यव्यं ए सूत्रे धूआ रूप याय. पछे दुहितृ तेने स्वस्रादेर्डा ० डित्वपणार्थी ऋनो लुकू याय. कगटड० ए सूत्रे दुहिआ रूप याय. सं. भगिनी तेने चालता सूत्रे विकल्पे भगिनीने स्थाने बहिणी थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रे बहिणी रूप थाय. पदे सं. भगिनी तेने कगचज० नोणः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी भइणी रूप याय. १२६ वृक्ष - दिप्तयो रुक्ख - बढौ ॥ १२७ ॥
वृक्ष क्षिप्तयोर्यथासंख्यं रुक्ख छूढ इत्यादेशौ वा जवतः ॥ रुक्खो वच्छो । छूढं । खित्तं । जज्छूढं । क्खित्तं ॥
मूल भाषांतर. वृक्ष ने क्षिप्त शब्दने अनुक्रमे रुक्ख ने छूढ एवा विकल्पे आदेश याय. सं. वृक्ष तेनां रूक्खो बच्छो एवां रूप थाय. सं. क्षिप्त तेनां छूढं वित्तं एवां रूप याय. सं. ऊत्क्षिप्त तेना ऊच्छूढं ऊक्वित्तं एवां रूप याय. १२७ ॥ ढुंढिका ॥
वृक्षश्च दितं च वृक्ष क्षिप्ते तयोः ६२ रूक्खश्च छूढश्च रूक्खछूढौ १२ वृक्ष - श्रनेन वा वृक्षस्थाने रुक्ख ११ अतः सेर्डोः रुक्खो प वृक्ष ११ रुतोऽत् वृ व बोऽक्षादौ तस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय० पूर्व व बः ११ अतः सेर्डोः वचो । दिप्त - अनेन वा दिप्त स्थाने छूढः ११ क्लीबे सम् मोनु० बुढं पदे दिप्स- कः खः हि ख कगटडेति प्रलुक् श्रनादौ द्वित्वं द्वितीय० मोनु० खित्तं । उत्पूर्व छूढं उच्छूढं उक्खित्तं पूर्ववत्
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कचित्तु बौ
११ क्लीबे सम्
१२७ ॥
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३४
मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. वृक्ष अने क्षिप्त शब्दने अनुक्रमे रूक्ख छूढ एवा विकटपे आदेश थाय. सं. वृक्ष तेने चालता सूत्रे विकटपे वृक्ष ने स्थाने रुक्ख थाय. पठी अतः सेझैः ए सूत्रे रुक्खो रूप थाय. पदे वृक्ष तेने ऋतोऽत् छोऽक्षादौ अनादौ दितीय० अतःसेझैः ए सूत्रोथी वच्छो रूप थाय. सं. क्षिप्त तेने चालता सूत्रे क्षिप्त ने स्थाने विकटपे छूढ एवो आदेश थाय पछी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी छूढं रूप थाय पद संक्षिप्त तेने क्षः खः कचित्तु छझौ कगटड० अनादौ० द्वितीय० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी खित्तं रूप पाय. उत्त उपसर्ग पूर्वक क्षिप्सने छूढ आदेश श्रवाशी ऊच्छूढं एवं रूप थाय. पक्ष उक्खितं एवं रूप पूर्व प्रमाणे सिद्ध थाय. ॥ १७ ॥
वनिताया विलया ॥१७॥ वनिताशब्दस्य विलया इत्यादेशो वा जवति ॥ विलया वणिया ॥ विलयेति संस्कृतेपीति केचित् ॥ १२ ॥
मूल भाषांतर. वनिता शब्दने विलया एवो आदेश विकटपे थाय. सं. वनिता तेनां विलया वणिआ एवां रूप थाय. विलया एवं रूप संस्कृतमां पण थाय बे एम केटलाएक कहे . ॥ १२ ॥
॥ढुंढिका ॥ वनिता ६१ विलया ११ वनिता अनेन वनिता स्थाने विलया इति ११ अंत्यव्यंग सबुक् विलया- पदे वनिता- नोणः कगचजेति त्लुक् अंत्यव्यंग स्लुक् वणिया ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. वनिता ने विलया एवो विकल्पे आदेश थाय. सं. वनिता तेने चालता सूत्रे विलया एवो आदेश थाय. पनी अंत्यव्यं० ए सूत्रे विलया रूप थाय. पदे सं. वनिता तेने नोणः कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वणिआ रूप श्राय.
गौण स्येषतः कूरः॥ १७॥ षत् शब्दस्य गौणस्य कूर इत्यादेशो वा चवति ॥ थिंचव कूरपिका । पदे । इसि ॥
मूल भाषांतर. गौण ( अप्रधान ) एवा ईष शब्दने कूर एवो आदेश विकरूपे श्राय. सं. चिंचा इव ईषत् पक्का तेनुं चिंचव्व कूर-पिक्का एवं रूप थाय. पदे सं. ईषत् तेनुं ईसि एवं रूप थायः ॥ १२॥
॥ळढिका॥ गौण ६१ ईषत् ६१ कूर ११ चिंचा श्व मिव पिव तिवः व व विथ वार्थे श्वस्य वः हवः संयोगे वा वं चिव्व ईषत् पक्वा अनेन वा
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द्वितीयः पादः ।
३८५
ईषत् कूरः पक्व पक्वांगारललाटेवा पपि सर्वत्र वलुक् श्रनादौ द्वित्वं ११ त्र्त्यव्यं० सलुकू क्रूर पिक्का बाला लायन्न निहीऽ दिएब बिमाहुलिंगस्स विवरकर पक्का करे लालाजलं हिश्रयं ॥ १ ॥ श्रस्य व्याख्यालावण्य निधिर्वाला मातुलिंगी बीजपुरस्य श्रजिनवत्वगिव ईषत् पक्वा चिंचा व आलिका इव पुरुषाणां हृदयं लालाकुलं करोति श्रत्र पूर्वपदं गौणं उत्तरपदं मुख्यं पदे ईषत् त्र्त्यव्यं मूलुक् शषोः सः ईत्स्वनादौ ससि ११ अव्यय सलुक् ईसि ॥ १२० ॥
arer भाषांतर. गौण एवा ईषत् शब्दने क्रूर एवो विकल्पे आदेश थाय. सं. चिंचा व तेने विवितिव ह्रखः संयोगे ए सूत्रोथी चिंचव्व एवं रूप याय. सं. ईषत् पक्वा तेने चालता सूत्रे ईषत् ने विकल्पे क्रूर आदेश थाय. सं. पक्व तेने पक्वांगारललाटेवा सर्वत्र अनादौ अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी कुरपिचा एवं रूप थाय. बाला ए गाथानो अर्थ लावण्यनो जंडार एवी बाला स्त्री बीजोरानी नवीन त्वचानीम अथवा जरा पाकेली यांमलीनी जेम पुरुषोना हृदयने लाळथी जिंजवी दे े. हिं पूर्वपद गौण ने उत्तरपद मुख्य वे तेथी गौण ने ते आदेश थाय. पदे सं. ईषत् तेने अंत्यव्यं० शषोः सः ईत्वमादौ अव्यय सलुक ए सूत्रोथी ईसि रूप याय. १२० स्त्रिया इत्थी ॥ १३० ॥
स्त्री शब्दस्य इत्थी इत्यादेशो वा जवति ॥ इत्थी । यी ॥
मूल भाषांतर. स्त्री शब्दने इत्थी एवो आदेश विकल्पे थाय. सं. स्त्री तेनुं इत्थी तथा थी एवां रूप थाय ॥ १३० ॥
॥ ढुंढिका ॥
स्त्री ६१ इत्थी ११ स्त्री श्रनेन वा स्त्री शब्दस्य इत्थी ११ अंत्यव्यं सलुक् इत्थी पदे स्त्री सर्वत्र रलुक् स्तस्यथोऽसमस्तस्तंबे स्तवे वा स्त्री स्ती ११ अंत्यव्यं लुक् थी ॥ १३० ॥
टीका भाषांतर. स्त्री शब्दने इत्थी एवो विकल्पे आदेश थाय. सं. स्त्री तेने चालता सूत्रे विकल्पे स्त्री शब्दने इत्थी एवो विकल्पे आदेश थाय. अंत्यव्यं ० ए सूart इत्थी रूप याय. पदे स्त्री शब्दने सर्वत्र ० स्तस्यथोऽसमस्त अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी थी एवं रूप थाय. ॥ १३० ॥
धृतेर्दिदिः ॥ १३१ ॥
घृति शब्दस्य दिहि रित्यादेशो वा जवति ॥ दिई । धिई ॥
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३६
मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. धृति शब्दने दिहि एवो आदेश विकटपे थाय. सं. धृति तेनां दिही धिई एवां रूप थाय.॥ १३१ ॥
॥ ढुंढिका ॥ धृति ६१ दिहि ११ धृति- अनेन दिहि अलीबे दीर्घः दिही पदे इत्कृपादौ धृ धि कगचजेति त्लुक् ११ थक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यंग स्बुक् धिई ॥ १३१ ॥
टीका भाषांतर. धृति शब्दने दिहि एवो विकटपे आदेश थाय. सं. धृति तेने चालता सूत्रे दिहि आदेश वाय. पठी अक्लीवे दीर्घः ए सूत्रे दिही रूप थाय. पके धृति तेने इत्कृपादौ कगचज० अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी धिई रूप थाय.
मार्जारस्य मञ्जर-वञ्जरौ॥ १३२॥ मार्जार शब्दस्य मञ्जर वञ्जर इत्यादेशौ वा जवतः ॥ मञ्जरो वञ्जरो॥ पदे । मजारो॥
मूल भाषांतर. मार्जार शब्दने मञ्जर अने वञ्जर एवा आदेश विकटपे थाय. सं. मार्जार तेनां मञ्जरो वञ्जरो एवां रूप थाय. पदे सं. मार्जार तेनुं मज्जारो एवं रूप थाय. ।। १३२॥
॥ टुंढिका ॥ मार्जार ६१ मञ्जरश्च वजरश्च मञ्जर वञ्जरौ १५ मार्जार अनेन वा मार्जारस्य मञ्जर वञ्जर इत्यादेशौ ११ श्रतःसे?ः मञ्जरो वञ्जरो । पदे मार्जार ह्रस्वःसंयोगे मा म सर्वत्र रखुक् अनादौ हित्वं ११ अतः सेझैः मजारो ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. मार्जार शब्दने मञ्जर अने वञ्जर एवा आदेश थाय. सं माार तेने चालता सूत्रे विकल्पे मञ्जर अने वञ्जर एवा आदेश थाय. पठी अतःसेडों: ए सूत्रथी मञ्जरो वञ्जरो एवा रूप थाय. पदे मार्जार तेने हवःसंयोगे सर्वत्र अनादौ० अतःसेडोंः ए सूत्रोथी मज्जारो रूप थाय. ॥ १३२॥
वैडूर्यस्य वेरुलिअं॥१३३ ॥ वैडूर्यशब्दस्य वेरुविय इत्यादेशो वा नवति ॥वेरुलि। वेमुळं॥१३३ ॥ मूलभाषांतर. वैडूर्य शब्दने वेरुलिअ एवो आदेश विकटपे आय. सं वैडूर्य तेना वेरुलिअं वेडुजं एवां रूप थाय. ॥ १३३ ॥
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द्वितीयःपादः।
३७
॥ ढुंढिका ॥ वैडूर्य ६१ वेरुविधा ११ वैडूर्य- अनेन वैडूर्यस्य वेरुलिय ११ क्लीबे सूम् मोनु वेरुलियं । वैडूर्य ऐत एत् वै वे ह्रस्वः दू मु द्यय्यांजाः यस्य जः अनादौ हित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु वेडूऊं ॥ १३३॥
टीका भाषांतर. वैर्य शब्दने वेरुलिअ एवो विकटपे आदेश थाय. सं- वैडूर्य तेने चालता सूत्रे वेरुलिय एवो आदेश थाय. पनी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी वेरुलियं रूप पाय. पदे वैडूर्य तेने ऐत एत् इस्वाद्यय्यर्याजःअनादौक्लिवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी वेडुज रूप थाय. ॥ १३३ ॥
एहिं एत्ता इदानीमः ॥ १३४ ॥ अस्य एतावादेशौ वा नवतः ॥ एम्हि । एत्ताहे । श्वाणि ॥ __ मूल भाषांतर. इदानीम् शब्दने एलि एत्ताहे एवा आदेश विकटपे श्राय. संइदानीम् तेनां अहिं एत्ताहे एवां रूप वाय. पर इआणिं एवं रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ एम्हि ११ एत्ताहे११ श्दानीम् ६१श्दानीम् अनेनवा श्दानी स्थानेएह्नि एत्ताहे इत्यादेशौ श्रव्यय० सूलुक् एह्नि एत्ताहे पदे श्दानीम् कगच जेति दलुक् पानीयादिष्वत् नी नि नोणः श्याणिं ॥ १३४ ॥
टीका भाषांतर. इदानीम् शब्दने एह्नि एत्ताहे एवा आदेश विकटपे थाय. संइदानीम् तेने चालता सूत्रे इदानीम् ने स्थाने एहिं एत्ताहे एवा आदेश थाय. पी अव्यय० मुलुक ए सूत्रे एहि एत्ताहे एवां रूप थाय. पदे इदानीम् तेने कगचज पानीयादिष्वत् नोणः ए सूत्रोथी इयाणिं एवं रूप थाय. ॥ १३ ॥
पूर्वस्य पुरिमः ॥ १३५॥ पूर्वस्य स्थाने पुरिम इत्यादेशो वा नवति ॥ पुरिमं पुवं ॥.
मूल भाषांतर. पूर्व ने स्थाने पुरिम एवो आदेश विकटपे थाय. सं. पूर्व तेनां पुरिमं पुब्वं एवां रूप श्रायः ॥ १३५ ॥
॥ लुढिका ॥ पूर्व ६१ पुरिम ११ पूर्व- अनेन वा पूर्वस्य पुरिमः ११ क्वीबे सम् मोनु पुरिमं पदे पूर्व सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं व ह्रस्वःसंयोगे पु ११ क्लीबे सम् मोनु पुत्वं ॥ १३५ ॥
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३न्ज
मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. पूर्व शब्दने पुरिम एवो 'आदेश विकटपे पाय. सं. पूर्व तेने चाखता सूत्रे विकल्पे पूर्व ने पुरिम आदेश थाय. पी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पुरिमं रूप थाय. बीजे पदे पूर्व तेने सर्वत्र अनादी० हखःसंयोगे क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी पुव्वं रूप थाय. ॥ १२५॥
त्रस्तस्य हित्थ-तट्ठौ ॥ १३६ ॥ त्रस्त शब्दस्य हित्थ तट्ट इत्यादेशौ वा जवतः॥हित्थं तद्वं तत्थं ॥ - मूल भाषांतर. त्रस्त शब्दने हित्थ अने तट्ट एवा आदेश विकटपे थाय. सं. त्रस्त तेनां हित्थं तटुं तत्थं एवा रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ त्रस्त ६१ हित्थश्च तहश्च हित्थतहो १५ त्रस्त- अनेन वा त्रस्तस्य हित्थः तहश्च ११ क्लीबे सम् मोनु हत्यं तह ॥ १३६ ॥
टीका भाषांतर. त्रस्त शब्दने हित्थ अने तट्ट एवा आदेश थाय. सं. त्रस्त तेने चालता सूत्रे विकटपे त्रस्तने हित्थ तया तट्ट एवा आदेश थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी हत्थं तहँ एवां रूप श्राय. ॥ १३६॥
बृहस्पतौ बहो नयः॥१३॥ बृहस्पति शब्दे बह इत्यस्यावयवस्य नय इत्यादेशो वा जवति ॥ नयस्सई जयप्फई जयप्पई ॥ पदे । बहस्सई । बहप्फई। वहप्पई ॥ वा बृहस्पतौ ( १० १३७ ) इति श्कारे उकारे च विहस्सई । बिहफई। बिहप्पई । बुहस्सई । बुहप्फई । बुहप्पई ॥ १३७ ॥
मूल भाषांतर. बृहस्पति शब्दनां वृह एटला अवयवने भय एवो आदेश विकटपे थाय. सं. बृहस्पति तेनां भयस्सई भयप्फई भयप्पई एवां रूप आय वा बृहस्पती ए सूत्रे इ तथा उ थाय. एटले इकारे विहस्सई बिहप्फई बिहप्पई एवां रूप थाय. उकारमा बुहस्सई बुहप्फई बुहप्पई एवां रूप थाय. १३७
॥ टुंढिका ॥ बृहस्पति ७१ बह ६१ जय ११ बृहस्पति- इतोऽत् वृ व अनेन वा बह इत्यस्य जय श्रादेशः बृहस्पतिवनस्पत्योःसोवा सस्य गः श्रनादौ हित्वं स्स कगचजेति नलुक् ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् नयस्सई । बृहस्पति- स्पस्य फः शेषं तथैव नयप्फई। बृहस्पति कगटडेति सबुक् अनादौ हित्वं जयप्फई । बृहस्पति वा बृहस्पति वृ
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द्वितीय पादः।
३नए वि इतोऽत् वृ व वृहस्पतिवनस्यत्यो सोवा पस्य सः अनादौहित्वं स्स कगचजेति त्बुक् शक्लीबे दीर्घःअंत्यव्यंग स्लुक् वहस्सई।बृहस्पति ष्पस्पयोःफः स्पस्य फः शेषं तथैव र बृहस्पति वा बृहस्पत्यो वृ वि प्रथमे बृहस्पति वनस्पत्योःसोवा सस्य सः अनादौहित्वं द्वितीय कगचजेति त्बुक् ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंग स्खुक् विहस्सई । द्वितीये बृहस्पति वनस्पत्योःसोवा स्पस्फयोः फः शेषं तथैव विहप्फर तृतीये विहप्पई शेष तथैव बृहस्पतिः वृ वु वुहस्सई वुहप्प वा बृहस्पति श्कारे उकारे च विहस्सई विहफई विहप्पई । वुहस्सई वुहप्फई वुहप्पई ॥१३॥
टीका भाषांतर. बृहस्पति शब्दना बह एवा अवयवने भय एवो विकटपे आदेश थाय. सं. बृहस्पति तेने ऋतोऽत् चालता सूत्रे विकटपे बहने स्थाने भय एवो आदेश थाय. पली बृहस्पतिवनस्पत्योःसोवा नादौ० कगचज० अक्लीबेदीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी भयस्सई रूप श्राय. सं. बृहस्पति तेने ष्पस्पयोःफः बाकी पूर्ववत् श्रश् भयप्फई सं. बृहस्पति तेने कगटड० अनादौ० ए सूत्रोथी भयप्फई रूप थाय. सं. बृहस्पति तेने ऋतोऽत् वृहस्पति वनस्पत्योःसोवा आनादौ० कगचज० अक्लीबे० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी वहस्सई रूप पाय. सं. बृहस्पति तेने ष्पस्पयोःफः बाकी पूर्ववत् सिद्ध श्राय. सं. बृहस्पति तेने प्रथम पदे बृहस्पति तेने बृहस्पतिवनस्पत्योः सोवा अनादौ० द्विती० कगचज अक्लीवे दीर्घः । अंत्यव्यं ए सूत्रोथी विहसई रूप थाय. बीजे पदे बृहस्पति तेने वृहस्पति वनस्पत्योः पस्पयोः फः बाकी पूर्ववत् थाय एटले विहप्फई रूप थाय. त्रीजे पके पूर्वनीजेम विहप्पई रूप थाय. तेवीरीते वुहस्सई वुहप्पई रूप थाय. बृहस्पति शब्दने इ तथा उ अवाश्री विहस्सई विहप्फई विहप्पई वुहस्सई बुहप्फई वुहप्पई एवां रूप थाय. ॥ १३७ ॥
मलिनोनयशुक्ति-बुप्तारब्ध-पदातेर्मश्लावद
सिप्पि-बिक्का-ढत्त-पाश्कं ॥ १३७॥ मलिनादीनां यथासंख्यं मश्लादय श्रादेशा वा जवन्ति ॥ मलिन । मश्लं मलिणं ॥उन्नय । श्रवहं । उवह मित्यपि केचित्। अवहो-श्रासं। उन्नयबलं ॥आर्षे । उनयोकालं ॥ शुक्ति । सिप्पी सुत्ती ॥ बुप्त । [बको जुत्तो ॥ श्रारब्धः। आढत्तो आरो ॥ पदाति । पाश्को पयाई॥
मूल भाषांतर. मलिन उभय शुक्ति छुप्त आरब्ध पदाति ए शब्दोने अनुक्रमे भइल अवह सिप्पि छिक्क आढत्त पाइक एवा आदेश विकटपे थाय. सं. मलिन तेनुं मइलं वाय. पक्ष मलिणं थाय. सं. उभय तेनुं अवहं थाय. केटलाएक उवहं
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३०
भागधी व्याकरणम्. एवं पण कहे . जेभ के, सं. उभयावकाश तेनुं अवहो- आसं एवं रूप थाय. पहे उभयबलं एवं थाय. आर्ष प्रयोगमां उभयोकालं एवं रूप थाय. सं. शुक्ति तेनां सिप्पी पदे सुत्ती एवां रूप थाय. सं. छुप्त तेनां छिक्को छुत्तो एवां रूप थाय, सं. आरब्ध तेनां आढत्तो आरद्धो एवां रूप थाय. सं. पदाति तेनां पाइक्को अने पदे पयाई एवां रूप श्रायः ॥ १३ ॥
॥ढुंढिका॥ मलिनं च उन्नयं च शुक्तिश्च बुप्तश्च श्रारब्धश्च पदातिश्च मलिनोजय शुक्तिबुप्तारब्धपदाति तस्य ६१ मश्वं च अवहं च सिप्पिश्च विकश्च थाढत्तश्च पाश्कश्च मश्लावह सिप्पिबिकाढत्त पाश्कं ॥ ११ मलिन अनेन वा मलिन शब्दस्य मश्व इति ११ क्लीबेसम् मोनु मश्लं पदे मखिन- नोणः ११ क्लीबेस्म् मोनु मलिणं उन्नय-अनेन वा उन्नयस्य अवह इति ११ क्विबेसम् मोनु० श्रवहं केचित् उवहमपीछत्ति उवहं उजयावकाश अनेन वा उन्नयस्य श्रवहःश्रवापोते अवस्य उखुक मध्यादलोपः लोकात् कगचजेति क्लुक् शषोःसः ११ क्लीबेसम् मोनु श्रवहं श्रासं पदे उन्नयबलं ११ क्लिवेसम् मोनु उन्नयबलं आर्षे उन्नयोः काल मिति शुक्ति अनेन वा शुक्तिस्थने सिपि ११ शक्तीबेदीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् सिप्पि । शुक्ति- कगटडेति क्लुक् अनादौहित्वं ११ अक्कीबेदीर्घः अंत्यव्यं० सलुक् सुत्ती । बुप्तस्य बिकः ११ अतःसेझैः बिको । पदे हुप्त कगटडेति प्रबुक् अनादौहित्वं ॥ अतःसे?ः बुत्तो स्पृष्टः थारब्ध -अनेन वारब्धस्य थाढत्त इति ११ श्रतःसेझैः थाढत्तो पदे थारब्ध- सर्वत्र रलुक् अनादौहित्वं द्वितीयतुर्य पूर्वधस्य दः ११ अतःसेझैः आरझो । पदाति-अनेन पदातिस्थाने पाश्क ११ अतः सेडोंः पाश्को पदाति कगचजेति दलुक् च ११ अवर्णो थ य अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यं० सलुक पयाई॥ १३ ॥
टीका भाषांतर. मलिन विगेरे शब्दोने मइल विगेरे आदेश आय. सं. मलिन तेने चालता सूत्रे मइल एवो आदेश थाय. पजी क्लीबे सम् मानु० ए सूत्रोथी मइलं रूप थाय. पदे मलिन तेने नोणः क्लीबे सम् मोनु० ऐ सूत्रोथी मलिणं रूप थाय. सं. उभय तेने चालता मूत्रथी विकटपे अवह एवो आदेश थाय. पठी क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अवहं एवं रूप श्राय. केटलाएक उवह एवं रूप पण श्वे ने सं.
टीका सूत्रे महल ने नोविकटपे अटला
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द्वितीयःपादः।
३ए? उभयावकाश तेने चालता सूत्रे उभय ने उवह एवो आदेश थाय. पनी अवापोते ए सूत्रे अवना उनोलुक् थाय. मध्यमांथी अनो लोप थाय. पनी लोकात् कगचज. शषोः सः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अवहं आसं एवं रूप थाय. पदे उभय बल तेने क्लीबे सूम् मोनु० ए सूत्रोथी उभय बलं एवं रूप थाय. आर्ष प्रयोगमां उभयोः कालं एम पण थाय. सं. शुक्ति तेने चालता सूत्रे शुक्ति ने स्थाने सिप्पि एवो आदेश थाय. अक्लीये दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सिप्पी रूप थाय. पदे शुक्ति तेने कगटड अनादौ० अक्लीवे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सुत्ती रूप थाय सं. छुप्त तेने चालता सूत्रे छिक्क आदेश थाय. पनी अतः सेों: ए सूत्रे छिको रूप थाय. पदे क्षुप्त ते कगटड० अनादौ० अतः सेोंः ए सूत्रोथी छुत्तो रूप थाय. सं. आरब्ध तेने चालता सूत्रे आढत्त श्राय. पजी अतः सेझैः ए सूत्रे आढत्तो रूप थाय पदे आरब्ध तेने सर्वत्र अनादौ० द्वितीयतु० अतः से?ः ए सूत्रोथी आरद्धो रूप थाय. सं. पदाति तेने चालता सूत्रे पाइक्क आदेश थाय. पनी अतः सेोंः ए सूत्रे पाइको रूप पाय. पदे पदाति तेने कगचज अवर्णो० अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पयाई रूप श्रायः ॥ १३ ॥
दंष्टाया दाढा ॥ १३ए पृथग्योगाछेति निवृत्तम् । दंष्ट्रा शब्दस्य दाढा इत्यादेशो नवति ॥ दाढा । अयं संस्कृतेऽपि ॥
मूल भाषांतर. अहिं पृथग् योगश्री विकल्पनो वा काढीनाखवो दंष्ट्रा शब्दने दाढा एवों आदेश श्राय. सं. दंष्ट्रा तेनुं दाढा एवं रूप थाय. आशब्द संस्कृतमां पण थाय. ॥ १३ए॥
॥ ढुंढिका॥ दंष्ट्रा ६१ दाढा ११ दंष्ट्रा अनेन दंष्ट्राया दाढा अंत्यव्यंजन स्लुक् दाढा
टीका भाषांतर. दंष्ट्रा शब्दने दाढा एवो आदेश थाय. सं. दंष्ट्रा तेने चालता सूत्रे दाढा एवो आदेश थाय. पठी अंत्यव्यं० ए सूत्रे दाढा एवं रूप थाय. ॥ १३ए ॥
बहिंसो बाहिं-बाहिरौ॥१४० ॥ बहिः शब्दस्य बाहिं बाहिर इत्यादेशौ जवतः ॥ बाहिं बाहिरं ॥
मूल भाषांतर. बहिस् शब्दने बाहिं बाहिर एवां आदेश थाय. सं. बहिस् तेना बाहिं बाहिरं एवां रूप थाय. ॥ १४ ॥
॥द्वंठिका॥ बहिस् ६१ बहिं च बाहिरश्च बाहिंबाहिरौ १२ बहिस् अनेन ब
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३ए
मागधी व्याकरणम्. हिस् स्थाने बाहिं ११ अव्ययस्यबुक् बाहिं बाहिस् अनेन बहिस् स्थाने बाहिर ११ बाहुलकात् क्लीबेसम् मोनु बाहिरं ॥ १४ ॥
टीका भाषांतर. बहिस् शब्दने बाहिं बाहिर एवां आदेश श्राय. सं. बहिस् तेने चालता सूत्रे बहिस् स्थाने बाहिं थाय. पनी अव्ययस्य लुक ए सूत्रे बाहिं रूप थाय. से. बाहिस् तेने चालता सूत्रे बहिस् ने स्थाने बाहिर वाय. पठी सेबाहुलकात् क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी बाहिरं रूप पाय. ॥ १० ॥
अधसो देठं॥२४॥ अधस् शब्दस्य हेट इत्ययमादेशो नवति ॥ हे ॥
मूल भाषांतर. अधस् शब्दने हे? एवो आदेश पाय. सं. अधस् तेनुं हेडं एवं रूप श्राय. ॥ १५१॥
॥ टुंढिका॥ अधस् ६१ हेड ११ अधस् अनेन अधस् स्थाने हेड ११ क्लीबे सम् मोनु हेड ॥ १४१॥
टीका भाषांतर. अधस शब्दने हेतु एवो आदेश श्राय. सं. अधस् तेने चालता सूत्रं हेड थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी हेढे रूप थाय. ॥ ११ ॥
मातृ-पितुः स्वसुः सिआ-बग ॥१४॥ मातृपितृभ्यां परस्य खस्मृ शब्दस्य सियाग इत्यादेशौ नवतः॥ माउ-सिथा। माउ-छा। पित-सिया । पिन्छा ॥
मूल भाषांतर. मातृ अने पितृ शब्दश्री पर एवा स्वस शब्दने सिआ अने छा एवा आदेश थाय. सं. मातृ-स्वसा तेना माउ सिआ तथा माउच्छा एवा रूप थाय. सं. पितृ-स्वसा तेना पिउसिआ तथा पिउच्छा एवा रूप थाय.
॥ढुंढिका ॥ माता च पिता च मातृ पितृ ६१ स्वसृ६१ लिया च नाच सिधाडौ १२ मातृ स्वस्मृ स्थाने सिक्षा गौणांत्यस्य तु कगचजेति त्बुक् अंत्यव्यंग स्बुक माउसिया मातृस्वस्मृ-अनेन स्वसृस्थाने बः गौणांत्यस्य तृ कगचजेति त्लुक् ११ आताताकुः मस्थानेडा श्रामित्यं त्यलेकानो माउछा। एवं पितृखस्ट पिजसिश्रा पिउछा ॥ १४ ॥ . टीका भाषांतर. माता अने पिता शब्दथी पर एवा स्वस शब्दने सिआ श्रने छा एवा आदेश श्राय. सं. मातृस्वस तेने चालता सूत्रे सिआ आदेश थाय. पी गौ
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द्वितीयः पादः ।
३३
णांत्यास्तु कगचज० अत्यव्यंजन ए सूत्रोथी माउसि रूप याय. सं. मातृस्वसृ तेने चालता सूत्रे स्वसृ ने स्थाने छ थाय. पठी गौणांत्यस्य तृ कगचज० आतां - ताडु: डित्यंत्यलेकोनो ए सूत्रोथी माउच्छा रूप याय. एवीरीते सं पितृस्वसृ तेनां पिउसिआ तथा पिउच्छा एवां रूप थाय ॥ १४२ ॥
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तिर्यचस्तिरिचिः ॥ १४३॥
तिर्यच् शब्दस्य तिरिति रित्यादेशो भवति ॥ तिरिहि पेठ ॥ श्रर्षे तिरिया इत्यादेशोपि । तिरिया ॥
टीका भाषांतर. तिर्यच् शब्दने तिरिच्छि एवो आदेश थाय. सं. तिर्यच् तेनुं तिरिच्छि रूप याय सं दृश्यति तेनुं पेच्छइ रूप याय. आर्ष प्रयोगमां तिरिआ एवो पण आदेश थाय. सं तिर्यच् तेनुं तिरिआ रूप थाय ॥ १४३ ॥
॥ ढुंढिका ॥
तिर्यच् ६१ तिरिनि ११ तिर्यच् अनेन तिर्यच् स्थाने तिरिचि ११ - त्यव्यं० लुक् तिरिहि दृश दशोनिष्ठ पेछावया दृशःस्थाने पछ श्रादेशः तिव्रप्रपत्यादीनां ति इपेइ श्रार्षे तिरिया ॥ १४३ ॥
टीकाभाषांतर. तिर्यच शब्दने तिरिच्छि एवो आदेश थाय. सं. तिर्यच् तेने चालता सूत्रे तिरिच्छि थाय पबी अंत्यव्यं० ए सूत्रे तिरिच्छि एवं रूप थाय. सं. दृश् धातु तेने दृशोनिअच्छपिच्छावयच्छा ए सूत्रे दृश्ने स्थाने पच्छ आदेश थाय. पीत्यादीनां ए सूत्रे पेच्छइ रूप थाय. आर्ष प्रयोगमां तिरिआ एवं रूप याय. १४३ घरस्य घरोsपतौ ॥ १४४ ॥
गृहशब्दस्य घर इत्यादेशो भवति पतिशब्दश्चेत्परो न जवति ॥ घरो घरसामी | राय-दरं ॥ श्रपतावितिकिम् । गढ़-वई ॥
मूल भाषांतर. गृह शब्दने घर एवो आदेश थाय. पण जो तेनी पत्नी पति शब्द न होय तो सं. गृह तेनुं घरो थाय. सं. गृहस्वामी तेनुं घरसामी एवं रूप याय. सं. राजगृह तेनुं रायहरं एवं रूप याय. पति शब्दपर न होय तो एम कह्युं बे तेथी सं. गृहपति तेनुं गह - वई एवं रूप थाय ॥ १४४ ॥
॥ ढुंढिका ॥
५०
गढ़ ६१ घर ११ पति ७१ गृह अनेन गृहस्थाने घर श्रादेशः ११ अतः सेर्डोः घरो । गृहस्य स्वामी घरस्वामी सर्वत्र वलुक् घरसामी राजगृह कगचजेति जलुकू वर्णो अ य अनेन गृहस्य घर
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३ए।
मागधी व्याकरणम्. खघथ ह ११ क्लीबेसम् मोनु रायहरं गृहपति इतोऽत् गृ ग पोवः क गचजेति लुक् ११ अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं सूलुक् गहवई ॥ १४४ ॥
टीका भाषांतर. जो पति शब्द आगल न होय तो गृह शब्दने घर एवो आदेश थाय. सं. गृह तेने चालता सूत्रे घर एवो आदेश श्राय. अतःसे?: ए सूत्रे घरो एवं रूप थाय. सं. गृहस्वामी (घरनो स्वामी) तेने चालता सूत्रे घर आदेश थाय. पनी सर्वत्र पठी घरसामी एवं रूप थाय. सं. राजगृह तेने कगचज अवर्णो चालता सूत्रे गृहने स्थाने घर वाय. पनी खघथ० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी रायहरं रूप थाय. सं. गृहपति तेने ऋतोऽत् पोवः कगचज अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोधी गहवई रूप थाय. ॥१५॥
शीलाद्यर्थस्येरः॥१४॥ शीलधर्मसाध्वर्थे विहितस्य प्रत्ययस्य र इत्यादेशो जवति ॥ हसनशीलः इसिरो। रोविरो। लझिरो । जम्पिरो । वेविरो। जमिरो । उससिरो ॥ केचन तृन एव माहुस्तेषां नमिरगमिरादयो न सिध्यन्ति । तृनोऽत्र रादिना बाधितत्वात् ॥ १४५ ॥
मूल भाषांतर. शीलधर्म अने साधु अर्थमां आवेला प्रत्ययने इर एवो आदेश थाय. हसवानुं जेने शील ( स्वनाव) होय तेनुं हसिरो एवं रूप थाय. रुदन करवाना शीलवालो होय तेनुं रोविर रूप थाय. लज्जा पामवाना शीलवालो होय तेनुं लज्जिरो एवं थाय. जम्प करवाना शीलवालो तेनुं जम्पिरो एवं रूप थाय. वरवाना शील. वालो तेनुं वेविरो एवं रूप थाय. नमवाना शीलवालो तेनुं भमिरो एवं रूप आय. उच्छ्वास लेवाना शीलवालो तेनुं उससिरो एवं रूप थाय. केटलाएक तृन् प्रत्ययने पण इर आदेश थाय एम कहे . तेउना मत प्रमाणे नमिर गमिर विगेरे शब्दो सिद्ध थता नथी. अहिं तृन् प्रत्ययने रादि वडे बाधितपणुं थाय. . ॥ १४५ ॥
॥ढुंढिका ॥ शीलाद्यर्थ ६१ र ११ हसेहंसने हस् हसतीत्येवंशीलो हसतीत्येवंधर्माऽथवा हसतीत्येवंसाधुः हसिरो । तृन् शीलधर्मसाधुषुतन् प्रत्ययः अनेन तृनस्थाने रः लोकात् ११ श्रतःसेः हसिरो रुदम् श्रश्रुविमोचने रुदू रोदितीत्येवंधर्मा रोदितीत्येवंसाधुः रोदिरो तृन् शीलधर्मसाधुषुतन् प्र युवर्णस्य गुणः रुरो अनेन तृन्स्याने र लोकात् रोदिर इतिजाते रुदिनमोर्वदिवि ११ रोविरो उलस्जैबीमे लङ लड़ते इ. त्येवंशीलो धर्मा साधुर्वा इति लडिरो । तृन् शीलधर्मसाधुषु तृन् त्
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द्वितीयःपादः।
३९५ ११ कगटडेति स्बुक् अनादौद्वित्वं थनेन तृन्स्थाने रः लोकात् ११ श्रतःसे?ः लजिरो कथणू वाक्यप्रबोधे कथबंधे कथयतीत्येवंशीलो धर्मो साधुर्वा इति जंपिरो तृन् शीलतन् कर्वजारपजरोप्पाल पिसुणसंघबो बचव इत्यनेन कथस्थाने जंप इति अनेन तृन् स्थाने र लोकात् ११ अतःसे?ः जंपिरो । टुवेट कंपने केपुड चलने वेपत इत्येवंशीलः धर्मः साधुर्वा इति वेपिरो विवशब्दार्थादकर्मकात् इत्यत्प्रत्ययः अनेन तृनस्थाने रः लोकात् वेपिर इति स्थिते पोवः पि वि ११ श्रतःसेझैः वेपिरो । बम चलने नमतीत्येवंशीलो धर्मा साधुर्वा नमिरो शमकाष्टकाथिनण् प्रत्ययः अनेन थिनस्थाने श्रः लोकात् सर्वत्र नमधातु. रखुक् ११ श्रतःसेझैः नमिरो श्वस् प्राणने उत् पूर्व उबसतीत्येवंशीलो धर्मा साधुर्वा इति उस सिरो । अनुत्साहोत्सन्नेसछे उतस्थाने उतन्शीले तृन् प्रत्ययः अनेन तृनूस्थाने रः लोकात् सर्वत्र वसुक् ११ श्रतःसेडोंः उससिरो । नम् नमतीत्येवंशीलो धर्मा वा साधु नमिरो केचित् उत्प्रत्ययस्यैव रमिछति तेषां नमिरगमिरादयो न जायंते स्म्यजसिहसदीपकपमननोरः इति तम् अग्रेरप्रत्ययः वेत् तृनू प्रत्ययस्यैव रः श्रादेशो विधीयते तदा तन्मते दिप्रत्ययस्यः रो न स्यात् तच्चायुक्तं ततो अनेन रस्थाने रः लोकात् ११ अतःसेझैः नमिरो गम् गबतीत्येवंशीलो धर्मा वा साधुर्वा इति गमिरो तृकमममहनवृषनूस्था उकण इत्युकण् प्रत्ययः अनेन उकणस्थाने उ इरः लोकात् ११ अतःसेझैः गमिरो ॥ १४५ ॥
टीका भाषांतर. शीलधर्म अने साधु अर्थमां कहेला प्रत्ययने इर एवो आदेश थाय. हस् धातु हसवामां प्रवत्र्ते. हसवानुं जेनुं शील होय अथवा हसवानो जेनो धर्म होय अथवा हसवामां साधु होय ते हसिरो कहेवाय. अहीं तृन् शीलधर्मसाधुषु ए सूत्रे तृन् प्रत्यय आवे पनी चालता सूत्रे तृनने स्थाने इर थाय पी लोकात् अतःसेझैः ए सूत्रोथी हसिरो रूप थाय. रुद्ग् ए धातु आंसुं पग्डवा ( रोवा) मां प्रवर्ते. रुदू धातु तेने रोवानुं जेनुं शील होय अथवा रोवानो धर्म होय के रोवामां साधु होय ते रुदिरो कहेवाय. त्यां तृनशीलधर्म० युवर्णस्य चालता सूत्रे तृन्ने स्थाने इर थाय पठी लोकात् ए नियमयी रोदिर एवं रूप थाय. पी रुदिनमोर्वदिवि ए सूत्रथी रोदिरो रूप थाय. लज्ज धातु लाज पामवामां प्रवर्ते लज्जा पामवानुं जेनुं शील होय,
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२०६
मागधी व्याकरणम्.
अथवा ला पामवानो जेनो धर्म वा तेमां जे साधु होय ते लज्जिरो कहेवाय. हिं तृनशीलधर्मसाधुषु कगटड० अनादौ ० चालता सूत्रे तुन्ने स्थाने इर थाय. पी लोकात् अतः सेर्डोः ए सूत्रोयी लज्जिरो रूप थाय. सं. कथण धातु कहेवाना मां प्रवर्त्ते कहेवानुं जेनुं शील होय धर्म होय अथवा तेमां साधु होय ते जंपिरो कहेवाय. हि तृन् प्रत्ययने कथेर्बज्जरपज्जरो० चालता सूत्रे तुन्ने स्थाने इर वे पी लोकात् अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी जंपिरो रूप याय. वेष धातु कंपवामां प्रवर्त्ते. कंपवानुं जेनुं शील होय वा तेवा धर्मवालो के तेमां साधु होय ते वेपिरो कहेवाय. विवशब्दार्थादकर्मकात् चालता सूत्रे तृन्ने स्थाने इर थाय पछी लोकात् पोवः अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी वेपिरो रूप थाय. सं. भ्रम धातु चालवाना मां प्रवर्त्ते जमवानुं जेनुं शील होय वा तेना धर्मवालो के तेमां साधु होय ते भमिरो कहेवाय. हिं भ्रम् धातुने शमकाष्ठकाथिनण् चालता सूत्रे थिनणूने स्थाने इर थाय पी लोकात् सर्वत्र अतः सेड ए सूत्रोथी भमिरो रूप थाय. श्वस् धातु श्वास लेवाना अर्थमां प्रवर्त्ते तेने उत् उपसर्ग श्रवे जे उल्लास लेवाना शीलवालो तेवा धर्मवालो के तेमां साधु होय ते उससिरो कहेवाय अहिं अनुत्साहोत्सन्ने तृन् प्रत्ययने स्थाने चालता सूत्रे इर थाय. पबी लोकात् सर्वत्र अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी उससिरो रूप याय. सं. नम् धातुने नमवाना शीलवालो वा धर्मवालो अथवा तेमां साधु ते नमिरो कहेवाय. केटलाएक उत्प्रत्ययनेज इर प्रत्यय इबे वे तेर्जना मतमां नमिर गमिर विगेरे रूप न थाय. नम् धातुने स्म्यजसिहसदीपक० ए सूत्रे र प्रत्यय यावे पबी तृन् प्रत्ययने इर थाय. त्यारे तेमना मतमां दिप्रत्ययने इर न थाय. ते घटतुं नथी पी श्र सूत्रे रने स्थाने इर थाय. लोकात् अतः सेर्डोः ए सूत्रोथी नमिरो रूप याय. गम एटले जनुं जवाना शीलवालो ते धर्मवलो अथवा तेमां साधु ते गमिरो कहेवाय. गम् शब्दने तृकगमहनवृषभू ए सूत्रे कण प्रत्यय वे पढी चालता सूत्रे उकण्ने स्थाने इर थाय. लोकात् अतः सेडः ए सूत्रोथी गमिरो रूप याय. ॥ १४९ ॥
कस्तुमत्तूण - तुप्राणाः ॥ १४६ ॥
क्त्वा प्रत्ययस्य तुम् अत् तू तुझा इत्येते श्रादेशा जवन्ति ॥ तुम् | दहुं । मोतुं ॥ श्रत् । न मिश्र । र मिश्र ॥ तूण | घेतूण | काऊ || तुश्राप । नेत्तु । सोजाण ॥ वन्दित्तु इत्यनुस्वारलोपात् ॥ वन्दिता इति सिद्धसंस्कृतस्यैव वलोपेन ॥ कट्टु इतितु श्रार्षे ॥
मूल भाषांतर. क्त्वा प्रत्ययने तुम् अत् तृण तुआण एवा आदेश थाय. तुम् नुं उदाहरण - सं. दृष्ट्वा तेनुं दहुं एवं रूप याय. सं. मुक्त्वा तेनुं मोत्तुं रूप याय. अत् प्रत्ययनां उदा० सं. भ्रमित्वा तेनुं भमिअ थाय. सं. रमित्वा तेनुं रमिअ थाय. तूण प्रत्ययनां उदाहरण - सं. गृहीत्वा तेनुं घेत्तृण थाय. सं. कृत्वा तेनुं काऊण रूप
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द्वितीयः पादः ।
३५
थाय. तुआण प्रत्ययनां उदाहरण-सं. भित्त्वा तेनुं भेत्तुआण एवं रूप थाय. सं. श्रुत्वा तेनुं सोउआण एवं रूप याय. सं. वंदित्वा तेनुं अनुस्वारनो लोप करी वन्दितुरूप याय ने सिद्ध एवा संस्कृत रूपमांथी वनो लोप करवाथी वन्दित्ता एवं रूप थाय. श्रार्ष प्रयोगमां. सं. कृत्वा तेनुं कड्ड एवं रूप याय. ॥ १४५ ॥
ढुंढिका
क्त्वा लुगातौ नोपः श्रालोपः ६१ तुम् च श्रच्च तूपश्च तूयाणश्च तुमत्तूणतुश्राणाः १३ दृश दर्शने पूर्वप्राक्कालेक्त्वा क्त्वा प्र० श्रनेनत्वा स्थाने तुम्
तोऽत् ह द दृशस्तद्वशकारस्य तकारेण सह तुम इति स्थाने मोनुं दट्टु मुंचतीमोक्षणे मुच् मोचनंपूर्वं त्वा श्रनेन त्वास्थानेतुम् युवर्णस्य गुणः मु मो लोकात् मोनु० मोतु । चम चलने चम् रमिक्रीडायां च चमणं पूर्व०रम् रमणं पूर्वं त्वा प्रत्ययः अनेन त्वा प्रत्ययस्थाने तु सर्वत्र जम ध्यादुर लोपः व्यंजनाददंतेत् चमु रम् श्र
लोकात् जमत इति जातः ए प्रत्कातुमनव्य इत्यनेन जमि र मिश्र हे गुपादाने ग्रह ग्रहणं पूर्वं त्वा अनेन स्वास्थाने तु क्त्वातुम तव्येषुप्येत् स्थाने घेव लोकात् घेत्तु । कृ करणं पूर्वक्त्वा प्र० अनेन स्वास्थाने तुः श्राः कृगोनूतन विष्यतोश्च का कगचजेति तूप मध्यात् तलुक् काउण जदपि विदारणे जिद जेदनं पूर्वत्वा युवर्णस्य गुणः निने नेन त्वास्थाने तुश्राण । श्रघोषे प्रथमो शिटदत् लोकात् जो श्राप ईस्तु गतौश्रु श्रवणंपूर्वं त्वा प्र०ानेन त्वा स्थाने तुआ युवर्णस्य गुणः श्रु श्रो सर्वत्र रलुक् कगचजेति दलुक् सोनथाप व स्तुत्य निवादनयोः बंद वंदनं पूर्वत्वा प्र० उदित खरातो तन थागमः अनेन त्वा स्थाने तुम् मीसादेवम्लुक् वेलादेवा उद्वितु व्यंजनाददतेऽत् लोकात् वंदितु इति जाते श्रंचेकातुमतव्य जविष्यत्सु दष्टि वदि तुवन्दित्वा सर्वत्र वलुक् अनादौ द्वित्वं त्ता वंदित्ता करणं पूर्वत्वा प्र० अनेन त्वाप्रत्ययस्य तुम् इतोऽत् कृ क श्रार्षत्वात् कट्टु इति ॥ १४५
टीका भाषांतर. क्त्वा प्रत्ययने तुम् अत् तूण तूआण एवा आदेश थाय. दृश् धातु जोवामां प्रवत्ते तेने पूर्वप्राक्काले ए सूत्रे क्त्वा प्रत्यय श्रावे पढी चालता सूत्रे स्वाने स्थाने तुम्ावे पी ऋतोऽत् दृशस्ते तदशका० मोनु० ए सूत्रोथी द्वं रूप याय.
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३एज
मागधी व्याकरणम्. मुंच धातु मुकवामा प्रवर्ते तेने क्त्वा प्रत्यय आवे पंछी चालता सूत्रे त्वाने स्थाने तुम् आवे युवर्णस्य दभुजमुथातो लोकात् मोनु० ए सूत्रोथी मोत्तुं रूप थाय. भ्रम् धातु चालवामा प्रवर्ते अने रम् धातु क्रीडा अर्थमा प्रवर्ते तेने त्तवा प्रत्यय आवे पठी चालता सूत्रे त्तवा प्रत्ययने स्थाने अत् थाय. सर्वत्र व्यंजनाददंतेऽत् लोकात् ए सू त्रोथी भमत रमत एवां रूप थाय. एम क्त्वातम तव्य० ए सूत्रे भमिअ रमिअ एवां रूप थाय. ग्रह धातु ग्रहण करवाना अर्थमा प्रवर्ते ग्रह धातुने क्त्वा प्रत्यय आवे पजी चालता सूत्रे त्वाने स्थाने तूण थाय. पनी त्वा तुमतव्य ग्रहस्थाने घेव लोकात् ए सूत्रोथी घेत्तुण एवं रूप थाय. कृ धातु करवाना अर्थमा प्रवर्ते तेने क्त्वा प्रत्यय आवे चालता सूत्रे त्वाने स्थाने तूण आदेश थाय. आःकृगो भूतभवि० कगचज० ए सूत्रोथी काउण रूप धाय. भिद् धातु नेदवाना अर्थमां प्रवर्ते तेने क्त्वा प्रत्यय आवे युवर्णस्य चालता सूत्रे त्वाने स्थाने तुआण आदेश थाय. पठी अघोषे प्रथमोशिट लोकात् ए सूत्रोथी भेत्तु आण रूप थाय. श्रु धातु सांजलवामां प्रवः तेने का प्र. त्यय आवे पनी चालता सूत्रे त्वा तेने स्थाने तुआण आदेश थाय. युवर्णस्य सर्वत्र कगचज० ए सूत्रोथी सोउआण एq रूप थाय. वंद् धातु नमवामां प्रवर्ते तेने क्त्वा प्रत्यय आवे पनी उदित स्वरांतो श्रा चालता सूत्रे त्वाने स्थाने तुम् श्राय. मीसादेामलुक् वेलादेवा व्यंजनार्दतेऽत् लोकात् ए सूत्रोथी वंदित्तु एवं रूप थाय. पी एच्चकातुम तव्यभवि० दृष्टिवक्षि० ए सूत्रोथी वंदित्वा रूप थाय. पी सर्वत्र अनादौ० ए सूत्रोथी वंदित्ता रूप थाय. कृ धातु करवामां प्रवर्ते तेने क्त्वा प्रत्यय आवे चालता सूत्रे तवा ने स्थाने तुम् आदेश थाय. पी ऋतोत् आर्षे प्रयोग के तेथी कट्ठ एवं रूप थाय. ॥ १६ ॥
इदमर्थस्य केरः॥१४॥ श्दमर्थस्य प्रत्ययस्य केर इत्यादेशो जवति ॥ युष्मदीयः । तुम्हकेरो॥ अस्मदीयः। श्रम्हकेरो॥ न च नवति । मईथ- पक्खे । पाणिणीश्रा ॥
मूल भाषांतर. इदम् अर्थना तछित प्रत्ययने केर एवो आदेश थाय. सं. युष्मदीयः तेनुं तुम्हकेरो एवं रूप थाय. सं अस्मदीयः तेनुं अम्हकेरो रूप थाय. कोइ ठेकाणे न पण थाय. सं मदीयपक्षे तेनुं मईअ-पक्खे एवं रूप थाय. सं. पाणिनीया तेनुं पाणिणीआ एवं रूप थाय. ॥ १४ ॥
॥ ढुंढिका ॥ इदमर्थ ६१ केर ११ युष्मत् शब्दः अंत्यव्यंग दलुक् ११ कात् युष्मदीयः अनेन श्यस्य केरः युष्मद्यर्थपरेतःयुतु पदमष्म इति मस्थ म्हः अंत्यव्यं० दबुक ११ श्रतःसे?ः तुम्हकेरो । अस्म
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द्वितीयः पादः ।
Ruu
दीयः अस्माक मयमिति श्रस्मदीयः दोरयं दारीयः श्यमप्र० ईयस्य केरः प्रत्यव्यं० दलुक् पक्ष्ाश्मष्मस्यन्दः ११ अतः सेर्डोः श्रम्हकेरो मदीप ईयस्य केरो न स्यात् बाडुलाधिकारात् कगचजेति लुक् यलुक् च कःखःकचि० कः खः श्रनादौद्वित्वं द्वितीयपूर्व० ख क ११ अतः सेडः मई - पक्खे | वा पाणिनीया पाणिनेरिमे छात्रा इति पाणिनीयाः नोणः कगचजेति यलुक् १३ जस्शसङ सिदीर्घः जस्शसोलुक पाणिपीया ॥ १४७ ॥
arat भाषांतर. इदमर्थना प्रत्ययने केर एवो आदेश थाय. सं. युष्मद् शब्द तेने अंत्यव्यं • अतः सेडः तुझे केरोकात् ए सूत्रोथी युष्मदीयः एवं रूप याय. सं. युष्मदीयतेने चालता सूत्रे ईय ने स्थाने केर एवो आदेश याय. युष्मद्यर्थ रेतः पक्ष्महमस्म० अंत्यत्र्यं० अतः सेडः ए सूत्रोथी तुम्हकेरो एवं रूप याय. सं. अस्मदीय: ( जे मारा संबंधी ते ) दोरयं दारियः चालता सूत्रे केर थाय. अंत्यव्यं० पक्ष्मश्मष्म० अतःसेड : ए सूत्रोथी अम्हकेरो रूप याय. सं मदीयपक्षे तेने चालता सूत्रे ई प्रत्ययने केर एवो आदेश न थाय. कारण के, आ बाहुल अधिकार बे. पी कगचज० क्षःखःक्वचि० अनादौ० द्वितीय० अतः सेडः ए सूत्रोथी मईअ - पक्खे एवं रूप थाय. सं. पाणिनीयाः एटले व्याकरणना कर्त्ता पाणिनि श्राचार्यना शिष्यो. सं. पाणिनीयतेने नोणः कगचज०जस्ास् ङसि० जशुशसोर्लुक् ए सूत्रोथी पाणिणीया एवं रूप सिद्ध थाय ॥ १४७ ॥
पर- राजन्यां कक्कौ च ॥ १४८ ॥
पर राजन् इत्येताभ्यां परस्येदमर्थस्य प्रत्यस्य यथासंख्यं संयुक्तौ को मित् कश्वादेशौ भवतः । चकारात्केरश्च ॥ परकीयं । पारकं । परकं । पारकेरं ॥ राजकीयम् । राइकं । रायकेरं ॥
मूल भाषांतर. पर अने राजन् शब्दथी पर एवा इदमर्थ प्रत्ययने अनुक्रमे संयुक्त एवा काने डित् एवो इक्क आदेश थाय. चकारनुं ग्रहण बे तेथी पछे केर एवो प्रदेश पण थाय. सं. परकीयं तेनां पारक्कं परकं पारकेरं एवां रूप थाय. सं राजकीयं तेनां राइक रायकरं एवां रूप थाय ॥ १४८ ॥
॥ ढुंढिका ॥
परश्च राजा च परराजानौ ताज्यां कश्च डित्कश्च कडिको १२ वा ११ परस्येदं परकीयं परजन राजकिय काय कीयप्र० श्रवर्णो लुक् अनेन कीयस्थाने कं श्रतः समृध्यादौ वा प पा ११ क्ली बेस्म मोनु० पा
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Y००
मागधी व्याकरणम्. रकं परकं द्वितीये परकीयस्थाने केर ११ श्रतःसमृध्यादौ प पा पारकेरं। राजकीय-अनेन कीयस्थाने डित् क इति मित्यं स्थाने केरः कगचजे-ति सलुक् अवर्णो श्र य ११ क्लीबेसम् मोनु० रायकेरं ॥ १४ ॥ टीका भाषांतर. पर अने राजन् शब्दनी पर एवा इदमर्थ प्रत्ययने अनुक्रमे संयुक्त एवा क अने डिक्क एवा आदेश थाय. परनुं जे आ ते परकीय कहेवाय. सं. परकीय तेने परजनराज अवर्णो चालता सूत्रे कीय ने स्थाने कं थाय. पनी अतःसमृध्यादौ क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पारकं रूप थाय. पदे परकं रूप थाय. बीजे पक्ष सं. परकीय तेने कीयने स्थाने केर थाय पनी अतःसमृध्यादौ ए सूत्रोथी पारकेरं रूप थाय. सं. राजकीय तेने चालता सूत्रे कीयने स्थाने डिक्क थाय. पनी डित्यं । कीयने स्थाने केर थाय कगचज. अवर्णो० क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी रायकेरं रूप थाय.॥ १४ ॥
युष्मदस्मदोत्र एच्चयः ॥१४॥ धान्यां परस्येदमर्थस्यात्र एच्चय इत्यादेशो नवति ॥ युष्माकमिदं योष्माकम् तुम्हेच्चयं । एवम् अम्हेच्चयं ॥
मूल भाषांतर. युष्मद् अने अस्मद् शब्दनीपर एवा श्दमर्थ अञ् प्रत्ययने एच्चय एवो आदेश थाय. तमारा संबंधी ते यौष्माकम् कहेवाय. सं यौष्माकम् तेनुं तुम्हेचयं रूप थाय अने एवी रीते सं. आस्माकं तेनुं अम्हेच्चयं एवं रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥ युष्मच अस्मच्च तयोः अञ् ६१ एच्चय ११ युष्माकमिदं युष्मदस्मदोजीनी अञ्प्र युष्माक श्रादेशः अनेन थाकस्थाने एच्चयः युष्मद्यर्थपरेतः युतु पदमष्मश्मलांम्हः मम्हःबुकममध्यात् थालोपः११क्वीबेस्म् मोनु तुम्हेच्चयं श्रम्हेच्चयं अस्मदः ॥१४॥ टीका भाषांतर. युष्मद् अने अस्मी पर एवा इदमर्थ अञ् प्रत्ययने एचय एवो आदेश थाय. तमारा संबंधीश्रा ते यौष्माक कहेवाय. सं युष्मद् शब्दने युष्मदस्मदोत्रीनी युष्माकआदेशः चालता सूत्रे आकने स्थाने एचय एवो आदेश थाय. युष्मदर्थपरेतः पक्ष्मष्म० क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी तुम्हेच्चयं एवं रूप थाय एवी रिते सं. आस्माकं तेनुं अम्हेच्चयं एवं रूप थाय. ॥ १४ ॥
वतेवः ॥१४॥ वतेः प्रत्ययस्य छिरुक्तो वो जवति ॥ महुरव्व पामलिउत्ते पासाया ॥
मूल भाषांतर. वति प्रत्ययने बेवडो व थाय.सं मथुरावत् पाटलिपुत्रे प्रासादाः तेनुं महुर व्व पाडलिउत्ते पासाया एवं रूप थाय.
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४०१
द्वितीयःपादः।
॥ ढुंढिका ॥ वति६१व्व ११ मथुरावत् मथुरस्यादेरदेवत् अनेन वत्स्थाने व्व खघथ थु हु -हस्वःसंयोगे रा र महुरव्व पाटलिपुत्र-टोमः कगचजेति प्लुक् अनादौ हित्वं ७१ मेम्मिमे मिस्थाने डित्यं लोकात् पामतिउत्ते प्रासाद- सर्वत्र लुक् कगचजेति दलुक् अवर्णो अ य १२ जस्शसङसि दीर्घः जसूशसो क् पासाया मथुरावत् पाटलिपुत्रे प्रासादाः ॥ १४ ॥
टीका भाषांतर. वति प्रत्ययने बेवमो व्व थाय. सं. मथुरावत्तेने मथुरस्यादेरदेवत् चालता सूत्रे वत् ने स्थाने व्व थाय. पी. खघथ० इस्वःसंयोगे ए सूत्रोथी महुरव्व एवं रूप थाय. सं. पाटलिपुत्र तेने टोडः कगचज अनादौ डेम्मिडे डित्यं लोकात् ए सूत्रोथी पाडतिउत्ते एबुं रूप थाय. सं. प्रासाद तेने सर्वत्र कगचज अवर्णो० जसू शसू ङ सि० जस् शसोलुक ए सूत्रोथी पासाया एवं रूप थाय.
सर्वाङ्गादीनस्ये कः ॥२५॥ सर्वाङ्गात् सर्वादेः पथ्यङ्ग [ हे ७०१] इत्यादिना विहितस्येनस्य स्थाने श्क इत्यादेशो जवति ॥ सर्वाङ्गीणः । सव्व ङ्गिा ॥ __ मूल भाषांतर. सर्वांग शब्द थकी सर्वादे पथ्यङ्गः ए नियमथी करेला ईन प्रत्ययने स्थाने इक एवो आदेश थाय. सं. सर्वाङ्गीणः तेनुं सव्वनिओ एवं रूप थाय.
॥ ढुंढिका ॥ सर्वांग ५१ इन ६१ क ११ सर्वाङ्ग सर्वाणि अंगानि व्याप्नोति इति सर्वांगीनः सर्वादेः पथ्यंग कर्मपत्रपात्र सराव व्याप्नोति इति ईन प्रस्ययः अनेन इनस्य श्कः लुक् गमध्यात् अलोपः सर्वत्र व बुक् ह्रस्वः संयोगे वा व अनादौहित्वं कगचजेति कबुक् ११ अतःसेडोंः सव्व निज.
टीका भाषांतर. सर्वांग शब्दने सर्वादेः पथ्यंग० ए सूत्रथी करेला ईन प्रत्ययने स्थाने इक एवो आदेश थाय. सं. सर्वाङ्ग ते उपरथी सर्व अंगे व्याप्त थाय तेने सागीन कहीए. तेने सर्वादेः पथ्यंग ए सूत्रे ईन प्रत्यय थाय. पळी चालता सूत्रे ईन ने स्थाने इक थाय. लुक् थइ गनी अंदर रहेला अनो. लोप थाय पनी सर्वत्र हस्वसंयोगे अनादौ० कगचज० अतःसे?ः ए सूत्रोथी सव्वगिओ रूपाय॥
पथो स्ये कट ॥१५॥ नित्यं णः पंथश्च [ हे०६४] इति यः पयो को विहितस्तस्य श्कट जवति ॥ पान्थः पहिजे ॥ १५१॥
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४०२
मागधी व्याकरणम् . मूल भाषांतर. नित्यं णः पथश्च ए सूत्रथी जे पथिन् शब्दने ण थाय में तेने इकट श्रादेश थाय. सं. पांथः तेनुं पहिओ रूप थाय. ॥ १५१ ॥
॥ढुंढिका ॥ पथिन् ६१ ण ६१ इकट्र ११ पथिन् नित्यं पंथानं वहतीति पांथः नित्यं णः पथश्च इति पथिन् अग्रेण प्रत्ययः पंथ श्रादेश वृद्धिस्त्रीरेष्वादिः पं पां थनेन प्रत्ययस्य श्कट श्रादेशः इक् इति बुक् थस्य मध्ये अनुक् लोकात् पान्थिक इति जाते इस्वःसंयोगे पा प विंशत्यादेच्क् इत्यनुवारलोपः खघथध थि हि कगचजेति कबुक् ११ अतःसेझैः पहिड।१५१॥
टीका भाषांतर. नित्यं णः पंथश्च सूत्रोथी पथिन् शब्दने करेला ण नेस्थाने इकट् आदेश थाय. सं. पथिन् शब्द ते उपरथी पांथ शब्द श्रयो तेनो अर्थ मुसाफरी करनार थाय . सं. पथिन् तेने नित्यं णः पथश्च ए सूत्रे ण प्रत्यय अने पंथ एवो आदेश श्राय. पी वृद्धिस्त्री चालता सूत्रे ण प्रत्ययने स्थाने इकटू आदेश थाय. इक् लुक लोकात् ए सूत्रोथी पांथिक एवं रूप थाय. पठी इस्वःसंयोगे विंशत्यादेलक खघथ० कगचज० अतःसे? ए सूत्रोथी पहिओ रूप थाय. ॥ १५२ ॥
ईयस्यात्मनो णयः॥ १५३ ॥ श्रात्मनः परस्य ईयस्य णय इत्यादेशो नवति ॥ श्रात्मीयम् अप्पणयं॥
मूल भाषांतर. आत्मन् शब्दथी पर एवा ईय प्रत्ययने स्थाने णय एवो आदेश थाय. सं. आत्मीयम् तेनुं अप्पणयं एबुं रूप श्रायः ॥ १५३ ॥
॥ढुंढिका ॥ श्य ६१ श्रात्मन् ६१ णय ११ श्रात्मीय अनेन श्यस्य स्थाने पयः इस्वः संयोगे था अ लस्यात्मनो पोवः इति मस्य पः अनादौहित्वं प्प ११ क्लीबेसूम् मोनु अप्पाणयं ॥ १५ ॥
टीका भाषांतर. आत्मन् शब्दश्री पर एवा ईय प्रत्ययने स्थाने णय एवो आदेश थाय. सं. आत्मीय तेने चालता सूत्रे ईय ने स्थाने णय एवो आदेश थाय. पनी इस्वः संयोगे तस्यात्मनोपोकः अनादौ०क्लीवेसम् मोनु०ए सूत्रोथी अप्पाणयरूप थाय.
त्वस्य डिमा-त्तणौ वा ॥ १५४ ॥ त्वप्रत्ययस्य मिमा त्तण इत्यादेशौ वा नवतः॥ पीणिमा । पुप्फिमा। पीणतणं । पुप्फत्तणं । पदे । पीणत्तं । पुप्फत्तं ॥ इम्नः पृथ्वादिषु निय
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द्वितीयः पादः ।
४०३
तत्वात् तदन्य प्रत्ययान्तेषु श्रस्यविधिः पीनता इत्यस्य प्राकृते पीण्या इति भवति । पीदा इति तु जाषांतरे । तेनेह तलो दा न क्रियते ॥
मूल भाषांतर. त्व प्रत्ययने डिमा ने तण एवा प्रदेश विकल्पे थाय. सं पीनत्व तेनुं पीणिमा एवं रूप थाय. सं. पुष्पत्व तेनुं पुष्फिमा थाय. सं. पीनत्वं तेनुं पीणत्तणं श्राय. सं. पुष्पत्वं तेनुं पुष्फत्तणं थाय. पदे सं पीनत्वं तेनुं पीणत्तं थाय ने सं. पुष्पत्वं तेनुं पुष्फक्तं याय. इमन् प्रत्यय पृथु विगेरे शब्दोमां नियमथी थावे ते तेनाथ अन्य प्रत्यय जेने ते होय तेवा शब्दोने विषे विधि याय वे. सं. पीनता तेनुं प्राकृतमां पीणया एवं रूप याय बे ने बीजी जाषामां पीणदा एवं रूप याय. तेथी हिं तल प्रत्ययने दा करवामां आवतो नथी.
॥ ढुंढिका ॥
त्व ६१ मिमात्त १२ वा ११ पीनत्व अनेन वा त्वस्य किमा इमा इति मित्यं नोणः ११ अंत्यव्यं ० लुक् पीणिमा । पुष्पत्व अनेन त्वस्य मिमा इमा इति पस्पयोः फः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयतुर्य० पूर्व फ पः ११ अंत्यव्यं सलुक् पुष्फिमा । पीनत्व अनेन त्वस्य त्तणः नोणः ११ क्ली बेस्म् मोनु० पुष्कत्तणं । पदे पीनत्व नोएः ११ क्लीबेसम्म मोनु० सर्वत्र न लुक्
नादौ द्वित्वं पीतं । पुष्पत्वं प्पस्पयोः फः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयतुर्य० पूर्व फप सर्वत्र वलुक् श्रनादौत्वं ११ क्वीबे सम् मोनु० पुप्फत्तं । पीनता नोणः कगचजेति त्लुक् अवर्णो अ य ११ अंत्यव्यंजनस्य लुक् पीठया । पीनता नोषः तोदो नोदो सौरसेन्यां तादा ११ अंतव्यंजनस्य लुकू पाणदा ॥ १५४ ॥
टीका भाषांतर व प्रत्ययने स्थाने डिमा श्रने त्तण एवा आदेश थाय. सं. पीनत्व तेने चालता सूत्रे विकल्पे त्वने डिमा आदेश थाय. डित्वं नोणः अंत्यव्यं० ए सूatel पीणिमा एवं रूप याय. सं. पुष्पत्वं तेने चालता सूत्रे त्व ने स्थाने डिमा आदेश थाय. ष्पस्पयोः फः अनादौद्वित्वं द्वितीयतुर्य • अत्यव्यं० ए सूत्रोथी पुष्फिमा एवं रूप याय. सं. पीनत्व तेने चालतां सूत्रे त्वने स्थाने तण आदेश थाय. नोणः क्लीबेस्म मोनु० ए सूत्रोथी पुष्फत्तणं रूप याय. पदे सं. पोनत्व तेने नोणः क्लीबे सम् मोनु० सर्वत्र अनादी० ए सूत्रोथी पीणसं रूप थाय. सं. पुष्पत्वं तेने ष्पस्पयोः फः अनादौ० द्वितीयतुर्य० सर्वत्र अनादौ ० क्लीवेत्रम् मोनु० ए सूत्रोश्री पुष्फक्तं रूप श्राय. सं. पीनता तेने नोणः कगचज० अवर्णो● अंत्यव्यं० ए
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मागधी व्याकरणम्. सूत्रोथी पीठया एवं रूप आय. सं. पीनता तेने नोणः तोदो नोदो सौरसेन्यां अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी पाणदा रूप थाय. १५४
अनोगतैलस्य डेल्लः ॥१५॥ श्रङ्कोट वर्जितात् शब्दात्परस्य तैलप्रत्ययस्य डेव इत्यादेशो नवति ॥ सुरहि-जलेण कमुएवं ॥ श्रनकोगदिति किम् । श्रङ्कोलतेनं ॥
मूल भाषांतर. अकोठ शब्दने वर्जिने कोइपण शब्दने लागेला तैल प्रत्ययने डेल्ल एवो आदेश थाय. सं. सुरभिजलेन कटुतैलं तेनुं सुरहि-जलेण कडुएल्लं एवं रूप थाय. मूखमां अङ्कोठ शब्दने वर्जीने एम कडं ने तेथी सं. अङ्कोठतैलं तेनुं अङ्को ल्लतल्लं एबुं रूप थाय. १५५
॥ढुंढिका ॥ न श्रङ्कोः श्रनकोठः तस्मात् अनंकोगत् ५ १ तैल ५१ डेल ११ सुर निजल खघथा नि हि ३१ टा श्रामोर्णः टाण शस्येत् ल ले सुरहि जलेण कटुकतैल टोमः ट म तैलस्य डेल इति एल डित्यं कमध्यादलोपः कगचजेति कबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु० कमुएल्लं । अङ्कोग्तैलं अङ्कोग्यस्य सः अतएत् तै ते तैलादौ ताहित्वं क्ष ११ क्लीबे स्म मोनु० अंकोखतेवं ॥ १५५ ॥
टीका भाषांतर. अङ्कोठ शब्दने वर्जिने बीजा शब्दथी पर एवा तैल प्रत्ययने डेल्ल एवो आदेश थाय. सं. सुरभिजल तेने खघथध० टाआमोर्णः टाणशस्येत् ए सूत्रोधी सुरहिजलेण एवं रूप थाय. सं. कटुकतैल तेने टोडः चालता सूत्रे तैलने स्थाने डेल्ल आ देश थाय. डित्यं गचज० क्लीबे सम् मोनु०ए सूत्रोथी कडुएल्लं एवं रूप थाय. सं. अंकोठतैल तेने ठस्थल्लः ऐतएत् तैलादौद्रित्वं क्लीबेसम् मोनु ए सूत्रोथी अंकोल्लतल्लं एवं रूप थाय. ॥ १५५ ॥
यत्तदेतदोतोरित्तिअ एतबुक् च ॥ १५६॥ एन्यः परस्य मावादरतोः परिमाणार्थस्य इतिथ इत्यादेशो नवति एतदोबुक् च ॥ यावत्। जित्तियं ॥ तावत्।तित्तियं ॥ एतावत् । इत्तियं ॥
मूल भाषांतर. यत् तत् एतद् शब्दथी पर एवा परिमाण अर्थवाला डाप प्रत्ययडे आदि जेने एवा अतु प्रत्ययने इत्तिअ एवो आदेश थाय. अने एतद् शब्दनो लुक् थाय. सं. यावत् तेनुं जित्तिअं रूप थाय. सं. तावत् तेनुं तित्तिअं रूप थाय. सं. एतावत् तेनुं इत्तिरं रूप धाय. ॥ १५६॥
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द्वितीयःपादः।
॥ ढुंढिका ॥ यच्च तच्च एतच्च यत्तदेतद् तस्मात् ५१ अतु ६१ इत्तिथ ११ एतबुक् ११ च ११ यावत् आयोजः या जा अनेन डावत्स्थाने इत्तिथ लोकात् क्लीवे स्म् मोनु० जित्तिरं । सं० तावत् डावत्स्थाने इत्तिथ लोकात् क्लीवे स्म् मोनु तित्तिरं या संख्यामानमस्य एतावत्संख्यामानमस्य इति यत्तदोमाबादि एतावत् अनेन एतडावत् स्थाने इत्तिथ क्लीबे सम् मोनु इत्तिरं ॥ १५६ ॥
टीका भाषांतर. यद् तद् एतद् ए शब्दथी पर एवा डाबादि अतु प्रत्ययने इत्तिअ एवो आदेश थाय. अने एतद् शब्दनो लुक् थाय.सं. यावत् तेने आयोजः चालता सूत्रे डावत्ने स्थाने इत्तिअ आदेश थाय. लोकात् क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी जित्ति रूप थाय. सं. तावत् तेने चालता सूत्रे इत्तिअ थाय. पनी लोकात क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी तित्तिरं रूप श्राय. जे संख्या मान ने जेने ते यावत् कहेवाय. एवी रीते एतद् शब्दने यत्तदोडाबादि ए सूत्रोथी एता वत् एवं रूप थाय. पनी चालता सूत्रे इत्तिअ आ देश थाय. पठी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोश्री इत्ति एवं रूप श्रायः ॥ १५६ ॥
इदं किमश्च डेत्तिअ-डेत्तिल-डेदहाः ॥१५॥ इदंकिंच्यां यत्तदेतनयश्च परस्यातो डवितोर्वा डित एत्तिश्र एत्तिल एदह इत्यादेशा नवन्ति एतबुक् च ॥ श्यत् । एत्तियं । एत्तिलं । एदहं ॥ कियत् । केत्तिरं । केत्तिलं । केद्दहं ॥ यावत् । जेत्तिरं । जेत्तिलं । जेद्दहं॥तावत्।तेत्तिअं। तेत्तिलं । तेदहं ॥ एतावत्। एत्तिश्र। एत्तिलं । एदहं ॥ _मूल भाषांतर. इदम् किम् यद् तद् अने एतद् ए शब्दोथीपर श्रावेला अतु प्रत्यय अथवा डावतु प्रत्ययना डितने एत्तिअ एत्तिल अने एदह एवा आदेश थाय. अने एतद्नो लुक् थाय. सं. इयत् तेनां एत्तिअं एत्तिलं एदहं एवां रूप थाय. सं. कियत् तेना कित्तिअंकेत्तिलं केद्दहं एवा रूप थाय. सं. यावत् तेनां जेत्तिअं जेत्तिलं जेद्दहं एवा आदेश श्राय. सं. तावत् तेना तेत्ति तेत्तिलं तेद्दहं एवा रुप थाय. सं. एतावत् तेना एत्तिअं एत्तिलं एदहं एवा रूप थाय. ॥ १७ ॥
॥ढुंढिका ॥ इदम् च किम् च दकिम् तस्य ६१ च ११ डेत्तिश्रश्च डेत्तिलश्च मेंदहश्च डेत्तिधमेत्तिलडेदहाः १३ श्यत् अनेन अत् स्थाने डेत्तिय
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मागधी व्याकरणम् . इति डित्यं० श्यबुक ११ क्लीबे स्म् मोनु एत्तिकं । श्यत् धनेन अत् स्थाने डेत्तिल एत्तिल्व इति मित्यं एत्तिलं श्यत् अनेन श्रतः मेद्दह डियं श्यलुक् ११ क्लीबे सम् मोनु एदहं । कियत् अनेन अत् स्थाने मेत्तिय इति डित्यं श्य लोकात् ११ क्लीबे सम् मोनु के तिथं केत्तिवं केदहं । यावत् थादेर्योजः अनेन थत् स्थाने डेत्तिथ डेत्तिव डेदहाः डित्यं लोकात् ११ क्लीबे सम् जेत्तिसं जेत्तिलं जेद्दहं तावत् एव मेव तेत्तिसं तेत्तिलं तेदिहं । एतावत् अनेन डावत् स्थाने डेत्तियादि इति डित्यं एतबुकाए त्तिरं एवं एतिवं एदहं ॥ १५७ ॥
टीका भाषांतर. इदम् कित् यम् तद् एतद् ए शब्दोथीपर एवा अतु वा डावतु ने डित एवा एत्तिअ एत्तिल अद्दह एवा आदेश आय. सं. इयत् तेने चालता सूत्रे अत्ने स्थाने डेत्तिअ थाय. पजी डित्यं इयलुक क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रोथी एत्तिअं थाय. सं. इयत् तेने चालता सूत्रे अत्ने स्थाने डेत्तिल थाय. डित्यं० क्लीवे सम् मानु० ए सूत्रोथी एत्तिलं रूप थाय. सं. इयत् तेने चालता सूत्रे डेदह आदेश श्राय. डित्यं० इयलुक् क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी एवह रूप थाय. सं. कियत् तेने चालता सूत्रे डेत्तिय थाय. पनी डित्यं० लोकात् क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी केत्तिअं थाय एवी रीते केत्तिलं केद्दहं एवां रूप थाय. सं यावत् तेने आयोजः चालता सूत्रे अत्ने स्थाने डेत्तिअ डेत्तिल डेदह एवा आदेश थाय. पीडित्यं० लोकात्० क्लीबे सम् ए सूत्रोथी जेत्तिअं जत्तिल्लं जेद्दहं एवा रूप थाय. सं. तावत् तेने पूर्वनी जेम सूत्रोथी तेत्ति तेत्तिलं तेहिं एवा रूप धाय. सं. एतावत् तेने चालता सूत्रे डावत्ने स्थाने डेत्तिअ विगेरे आदेश थाय. पीडित्यं० एतदनो लुक् थाय. एटले एत्तिअं एत्तिलं एद्दहं एवा रूप धाय. ॥ १५७ ॥
कृत्वसो हुत्तं ॥ १५ ॥ वारे कृत्वस् । हे० ७०२ । इति यः कृत्वस् विहितः तस्य हुत्तमित्यादेशो नवति ॥ सयहुत्तं । सहस्सहुत्तं ॥ कथं प्रियानिमुखं पियहुत्तं । अनिमुखार्थे न हुत्तशब्देन नविष्यति ॥ मूल भाषांतर. वारेकृत्वस् ए सूत्रथी जे कृत्वम् प्रत्यय आवे तेने हुत्त एवो आदेश श्राय. सं. शतकृत्वः तेनुं सयहुत्तं रूप थाय. सं सहस्रकृत्वः तेनुं सहस्सहुत्तं एवं रूप थाय. कोश् शंका करे के, त्यारे सं. प्रियाभिमुखं तेनुं पियहुत्तं एवं शीरीते आय ? तेना उत्तरमां कहेवार्नु के, ते ठेकाणे अभिमुख अर्थवाला हुत्त शब्द वो करी सिद्ध थाय ॥ १० ॥
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द्वितीयःपादः।
॥ ढुंढिका ॥ कृत्वस् ६१ हुत्त ११ शतकृत्वस् सहस्रकृत्वस् शतवारान कृत्वाप्रथमे शषोः सः स कगचजेति तुबुक् श्रवों श्रय हितीये सर्वत्र रबुक अनादौ हित्वं स्स अनेन कृत्वम् स्थाने हुत्तं ११ क्लीबे स्म् मोनु सयहुत्तं सहस्सहुत्तं प्रियानिमुखं सर्वत्र रलुक् ११ क्लीवे स्म् मोनुस्वारः पियहुत्तं हुत्तशब्दोऽनिमुखार्थश्च ॥ १५७ ॥
टीका भाषांतर. वारकत्वस् ए सूत्रथी करेला कृत्वन शब्दने हुत्त एवो अदेश थाय. सं. शतकृत्वस सहलकृत्वस् (सोवार-हजारवार ) तेमां प्रथमना शब्दने शषोःसः कगचज० अवर्णो० अने बीजा शब्दने सर्वत्र. अनादौ० चालता सूत्रे कृत्वसूने स्थाने हुत्त थाय. क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी समहुत्तं सहस्सहुत्तं एवां रूप थाय. सं. प्रियाभिमुख तेने सर्वत्र क्लीबे सम्० मोनु० ए सूत्रोश्री पियहु तं एवं रूप पाय. अहिं हुत्त शब्द अनिमुख अर्थमां . ॥ १५ ॥
आल्विल्लोल्लाल-वन्त-मन्तेत्तेर-मणा मतोः॥१५॥ श्रावु इत्यादयो नव श्रादेशा मतोः स्थाने यथाप्रयोगंजवन्ति ॥ श्रालु नेहालु । दयालू । ईसालू । लजालुवा ॥ श्व । सोहिहो । गश्तो । जामश्रो ॥ उछ । विश्रारुहो । मंसुरो। दप्पुझो ॥श्राल । सदायो। जमालो । फडालो । रसालो । जाएहालो॥ वन्त धणवन्तो । नत्तिवन्तो मन्त । हणमन्तो । सिरिमन्तो पुलमन्तो। इत्त । कव्वश्त्तो। माणश्त्तो र । गम्विरो । रेहिरो ॥ मण । धनमणो केचिन्मादेशीमपीवन्ति । हणुमा ॥ मतोरिति किम् धणी ॥ १५ ॥
भूल भाषांतर. आलु इल्ल उल्ल आल वन्त मन्त इर मण ए नव आदेश मतु प्रत्ययने स्थाने प्रयोगप्रमाणे श्रायः आलु आदेशनुं उदाहरण सं. लेहमान् तेनुं नेहालु थाय. सं. दयावान् तेनु दयालू थाय. सं. ईष्यावान् तेनुं ईसालू थाय. सं. लज्जावतिका तेनुं लजालुआ थाय. इल्ल आदेशनुं उदाहरण सं. शोभावान् तेनुं सोहिल्लो थाय. सं. छायावान् नेनुं छाइल्लो श्राय. सं. यामवान् तेनुं जामइल्लो रूप थाय. उल्ल प्रत्ययनां उदाहरण. सं. विकारवान् तेनुं विआरुल्लो थाय. सं. श्मश्रुवान् तेनुं मंसुल्लो थाय. सं. दपवान् तेनुं दुप्पल्लो थाय. आल आदेशनां उदाह सं. श्रद्धावान् तेनुं सद्दालो थाय. सं. जटावान् तेनुं जडालो थाय. सं. फटावान् तेनुं फडालो थाय. सं. रसावान् तेनुं रसालो थाय. सं.ज्योत्सावान् तेनुं जाण्हालो थाय. वन्त आदेशनां उदा० सं. धनवान् तेनुं धणवन्तो थाय. सं भक्तिमान् तेनुं
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मागधी व्याकरणम्. भत्तिवन्तो श्राय. मन्त श्रादेशनुं उदा० सं. हनुमान् तेनु हणुमन्तो श्राय. सं. श्री. मान् तेनुं सिरिमन्तो थाय. सं. पुण्यवान् तेनुं पुण्णमन्तो थाय. इत्त आदेशना उदाहरण सं. काव्यवान् तेनुं कव्वइत्तो थाय. सं. मानवान् तेनुं माणइत्तो थाय. इर आदेशनां उदा० सं. गर्ववान् तेनुं गव्विरो थाय. सं. रेखावान् तेनुं रोहिरो थाय. मण आदेशनां उदा० सं. धनवान् तेनु धणमणो थाय. केटलाएक मणने बदले मा एवो आदेश थाय. एम कहे एटले सं. हनुमान् तेनुं हणुमा एवं रूप थाय. मूलमां मतुं प्रत्ययनुं ग्रहण के तेथी सं. धनी तेनुं धणी रूप थाय. सं. अर्थी तेनुं अथिओ शाय. त्यां उपरना आदेश न थाय. १५ए
॥ टुंढिका ॥ बालुश्च श्वश्च उलश्च बालश्च वन्तश्च मन्तश्च स्तश्च रश्च मणश्च श्रादिवबोहालवन्तमन्तेन्तेरमणाः १३ मतु ६१ स्नेहो विद्यते यस्य स स्नेहवान् तदस्यास्तीति अस्मिन्निति मतु मत् प्रत्ययः अनेन मतुस्थाने थाबुक् कगटडेति सबुक् ११ अक्कीबे दीर्घः अंत्यव्यंग सूलुक् नेहाबु । दया विद्यते यस्यासौ तदातदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुः प्रत्ययः अनेन मतुस्थाने आवुः समानीए दीर्घः दयालू । ईर्ष्यावि० मत् सर्वत्र रखुक् कगचजेति यबुक् शषोः सः अनेन मत्स्थाने आनु ११ दीर्घः अलीबे ११ अंत्यव्यंग सूलुकू ईसानु । लडा विद्यते॥ मत् प्रत्ययः अनेन मत्स्थाने अबुः समानानां दीर्घःस्वार्थे कस्य वा कप्रण्यात् थाप कगचजेति कबुक् ११ अंत्यव्यं० सबुक् लजालूा । शोजावान् शपोः सः शो सो खघथ जा हा अनेन मत्स्थाने आबु । श्लढुक् आबुक् लोकात् त ११ अतःसे?ः सोहिहो । बायावान् अनेन मत्स्थाने श्व लुक् आलुक् लोकात् ११ अतः सेोः गोश्रो । यामवान् अनेन मत्स्थाने शव श्रन अलोपः बाहुलकान्न आदेर्योजः ११ अतः सेोः जामश्रो । विकारवान् कगचजेति कबुक् अनेन मतुस्थाने उन्हः बुक् बालोपः लोकात् विरुखमो। श्मश्रुवान् आदेस्मश्र स्मस्थाने आदेशबुक् वक्रादावंतः अनुस्वारः सर्वत्र रखुक् शषोः सः शु सु अनेन मत्स्थाने उस बुक् उबुक् लोकात् ११ मंसुलो दर्पवान् सर्वत्र रखुक् अनादिप्पं अनेन मत्स्थाने उसः लोकात् ११ अतः सेोंः दप्पुवो।
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४ए
द्वितीयःपादः। शब्दवान् सर्वत्र वबुक् अनेन मतुस्थाने बाल समानानां दीर्घः ११ अतः सेोः जमालो । फमालो। रसवान् अनेन मतुस्थाने बाल समानानां दीर्घः ११ श्रतःसेर्मोः जोएडलो । धनवान् अनेन वत्स्थाने वन्त ११ अतः सेोः धणवन्तो नक्तिमान् कगचजेति कबुक् अनादौहित्वं मतुस्थाने वंतः ११ अतः सेोः नित्तिवन्तो हनुमत् । नोणः ऊजूंदतुम् कंड्यवातूले णू णु अनेन मतुस्थाने वन्त ११ अतः सेोः हनुमन्तो। श्रीमन् ईश्रीही कृष्ण क्रिया दिष्ट्या स्त्रित् शूरी इति विश्लेषे रीपूर्व : लोकात् शषोः सः दीर्घह्रखो मिथोवृत्तौ री रि अधोमनयां यलुक् अनादौहित्वं पुलमन्तो । काव्यवान् हस्खः संयोगे का क अधोमनयां युबुक् अनादौहित्वं त्त अनेन मत्स्थाने इत ११ अतः सेोः कवरत्तो। मानवान् नोणः अनेन मत्स्थाने इत्तः ११ श्रतः सेोः माणश्त्तो गर्ववान् सर्वत्र रलुक् अनादौ मत्स्थाने रः बुक् इति अ लोकात् ११ अतः सेोः गविरो । रेखावान् खघथधा खस्य हः अनेन मतः स्थाने रः बुक् अलोपः लोकात् ११ अतः सेोः रेहिरो । धनवान् नोणः श्रनेन मतुः स्थाने मणः १९ अतः सेोः धेणमणो । केचित् मतुस्थाने मा इत्यादेश मिळति तन्मते हणुमा अंत्यव्यं० स्बुक् धणी अर्थोऽस्यास्तीति अर्थी । अतोऽनेकखरात् । श्कप्र० अलोपः लोकात् सर्वत्र रखुक् अनादौहित्वं द्वितीयतुर्य पूर्व थ त कगचजेति वबुक् ११ अतः सेडोंः अस्थियो ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. मतुने स्थाने आलु इब उस आल वन्त मन्त इत्त इर अने मण एवा आदेश थाय. सं. स्लेहवान् (स्नेहवालो) तेने तदस्यास्तीति ए सूत्रे मतु प्रत्यय थाय. तेने चालता सूत्रे आलु आदेश थाय. कगटड अक्लीबे दीर्घः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी नेहालू रूप थाय. सं. दयावान् तेने तदस्यास्त्य० ए सूत्रे मत् प्र० श्रावे पठी चालता सूत्रे मतुने स्थाने आलु प्रत्यय थाय. समानानां दीर्घः ए सूत्रथी दयालू रूप श्राय. ईावात् तेने सर्वत्र० कगचज० शषोःसः चालता सूत्रे मत्ने स्थाने आलु थाय. दीर्घः अक्लीवे. अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी ईसालू ए रूप थाय. सं. लज्जावान् तेने मत् प्रत्यय श्रया पठी चालता सूत्रे मत्ने स्थाने आलु आदेश थाय. पठी समानानां दीर्घः स्वार्थ कस्यवा कप्रत्ययः आत् आप् कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी लजालूआ एवं रूप थाय. सं. शोभावान् तेने शषोःसा.
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मागधी व्याकरणम्. खघथ० चालता सूत्रे मत्ने स्थाने आलु आदेश थाय. इललुक् आलुक् लोकात् अतःसे?ः ए सूत्रोथी सोहिल्लो रूप थाय. सं. छायावान् तेने चालता सूत्रे मत्ने स्थाने इल्ल आदेश श्राय. लुक् आलुक लोकात् अतासेोंः ए सूत्रोथी छोइलो रूप थाय. सं. यामवान् तेने चालता सूत्रे मत्ने स्थाने इल्ल आदेश थाय. अहीं बाहुलक पद ने तेथी अलोप न थाय. पनी आयोजः अतःसेझैः ए सूत्रोथी जाम इल्लो रूप थाय. सं. विकारवान् तेने कगचज० चालता सूत्रे मतुने स्थाने उल्ल श्रादेश थाय. अलोपः लोकात् ए सूत्रोथी विआरुबो रूप थाय. सं. श्मश्रुवान् तेने आदेस्मश्रस्मस्थाने लुक् वक्रादावंतः सर्वत्र शषोःसः चालता सूत्रे मत्ने स्थाने उल्ल थाय. उलुक लोकात् ए सूत्रोथी मंसुलो श्राय. सं. दर्पवान् तेने सर्वत्र अनादौ० चालता सूत्रे मत्ने स्थाने उल्ल आय. लोकात् अतःसे?ः ए सूत्रोश्री दप्पुवो रूप थाय. सं. शब्दवान् तेने सर्वत्र चालता सूत्रे मत् ने स्थाने आल श्रादेश थाय. समानानां दीर्घः अतःसे?ः ए सूत्रोथी जडालो थाय. एवी रीते सं. फटावान् तेनुं फडालो थाय. सं. रसवान् तेने चालता सूत्रे मत् ने स्थाने आल आदेश थाय. पठी समानानां दीर्घः अतःसेटः ए सूत्रोथी रसालो थाय. सं. ज्योलावान् तेनुं जोण्हलो श्राय. सं. धनवान् तेने चालता सूत्रे वत् ने स्थाने वन्त थाय. पनी नोणः अतःसे?: ए सूत्रोथी धणवन्तो थाय. सं. भक्तिमान् तेने कग चज० अनादौ० चालता सूत्रे मत् ने स्थाने वन्त आदेश थाय. पनी अतासेडोंः ए सूत्रोत्री भित्तिवन्तो रूप पाय. सं. हनुमान् तेने नोणः उदतुम् कंड्रय० चालता सूत्रे मतु ने स्थाने वन्त थाय. पठी अतःसे?ः ए सूत्रथी हनुमन्तो रूप थाय. संश्रीमान् तेने हश्रीहीकृष्ण शरी एवो वर्ण विश्लेष करी री पूर्वे इ थाय. पी लो. कात् शषोःसः दीर्घहस्त्रो० अधोमनयां० अनादौ० ए सूत्रोथी पुमन्तो रूप याय. सं. काव्यवान् तेने हवःसंयोगे अघोमनयां० अनादौ० चालता सूत्रे मत् ने स्थाने इत्त वाय. पी अतासेडों: ए सूत्रथी कव्वइत्तो एवं रूप थाय. सं. मानवान् तेने नोणः चालता सूत्रे मत् ने स्थाने इत्त थाय. पनी अतःसे?: ए सूत्रथी माणइत्तो रूप श्राय. सं. गर्ववान् तेने सर्वत्र अनादौ चालता सूत्रे मत् ने स्थाने इर आदेश थाय. लुक् लोकात् अतःसेझैः ए सूत्रोथी गव्विरो रूप थाय. सं. रेखावान् तेने खघथ० चालता सूत्रे मत् ने स्थाने इर थाय. लुक् लोकात् अतःसेडोंः ए सूत्रोथी रोहिरो रूप धाय. सं. धनवान् तेने नोणः चालता सूत्रे वत् ने स्थाने मण आदेश थाय. अतःसे?ः ए सूत्रोधी घेणमणो एवं रूप वाय. केटलाएक मत् ने स्थाने मा एवो आदेश श्छे तेमना मतप्रमाणे सं. हनुमान् तेनुं हणुमा एवं रूप पाय. मूलमां मतु प्रत्ययनुं ग्रहण ने तेथी सं. धनी (धनवालो) तेने अंत्यव्यं० ए सूत्रथी धणी एवं रूप थाय. सं. अर्थी (अर्थवालो ) तेने अतोनेकस्वरात् अलोपः लोकात् सर्वत्र अनादौद्वितीयतुर्य कगचज अतःसे?:एसूत्रोथी अथिओ एवं रूप थाय.॥१५॥
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१११
द्वितीयःपादः।
तो दो तसो वा ॥ १६० ॥ तसः प्रत्ययस्य स्थाने तो दो इत्यादेशौ वा जवतः ॥ सवत्तो सबदो। एकत्तो एकदो । अन्नत्तो अन्नदो । कत्तो कदो। जत्तो जदो। तत्तो तदो। इत्तो श्दो । पदे । सवः । इत्यादि ।
मूल भाषांतर. तस् प्रत्ययने स्थाने तो दो एवा बे आदेश विकटपे थाय. सं. सर्वतः तेनां सव्वत्तो सव्वदो एवां रूप थाय. सं. एकतः तेनां एकत्तो एकदो एवां रूप थाय. सं. अन्यतः तेनां अन्नत्तो अन्नदो एवां रूप थाय. सं. कुतः तेनां कत्तो कदो एवा रूप थाय. सं. यतः तेनां जत्तो जदो थाय. सं. ततः तेनां तत्तो तदो थाय.सं.इतः तेनां इत्तो इदो थाय.पदे सं.सर्वतः तेनुं सव्वओ एवं रूप थाय.॥१६॥
॥दुढिका ॥ तोश्च दोश्च तोदो १५ तस् ६१ वा ११ सर्वतः सर्वत्र लुक् श्रनादौछित्वं अनेन वा तसस्थाने तो द्वितीये दो सबत्तो सबदो। एकतः श्रनादौ स्वरादसंयुक्तानां कखतथपफां गघदधवनाः कस्य गः अनेन तस् स्थाने तो हितीये दो एगत्तो एगदो । श्रन्यतः अधोमनयां यूनुक् अनादौ हित्वं त्त अनेन तसस्थाने तो दो अन्नत्तो अन्नदो । किम् किमहादि सर्वादि वैफुल्यबहोऽपि तस् तस् प्रत्ययः किमकस्त्रनोश्च किमस्थाने क थनेन तस्स्थाने तो दो कत्तो कदो । यतः ततः श्रादेर्योजः यस्य जः अनेन तसस्थाने तो दो जत्तो जदो इतः अनेन तस्स्थाने तो दो इत्तो श्दो ॥ १६० ॥
टीका भाषांतर. तस् प्रत्ययने स्थाने तो दो एवा बे आदेश विकटपे थाय. सं. सर्वतः तेने सर्वत्र अनादौ० चालता सूत्रे तसूने स्थाने तो अने बीजे पदे दो आदेश पाय एटले सव्वत्तो सव्वदो एवां रूप आय. सं. एकतः तेने अनादौ० स्वरादसंयुक्तानां कखत० ए सूत्रे कनो ग थाय. चालता सूत्रे तसूने त्तो तथा दो आदेश थाय. एटले एगत्तो एगदो एवां रूप थाय. सं. अन्यतः तेने अधोमनयां अनादौ० चालता सूत्रे तसूने स्थाने त्तो दो एवा आदेश श्राय. एटले अन्नत्तो अन्नदो एवां रूप श्राय. सं. किम् शब्दने तस् प्रत्यय आवे पनी किमकस्त्रीतोश्च ए सूत्रे क थाय. पळी चालता सूत्रे तसूने स्थाने त्तो दो एवा आदेश थाय. एटले कत्तो कदो एवां रूप थाय. सं. यतः ततः तेने आयोजः चालता सूत्रे तसने स्थाने त्तो दो घाय. एटले जत्तो जदो तथा तत्तो तदो एवां रूप धाय. सं. इतः तेने चालता सूत्रे तसने स्थाने त्तो दो थाय. एटले इत्तो इदो रूप थाय. ॥ १६० ॥
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४१२
भागधी व्याकरणम्.
त्रपो दिह-त्थाः॥१६१ ॥ त्रप् प्रत्ययस्य एते नवन्ति ॥ यत्र । जहि । जहा जत्थ ॥ तत्र तहि । तह । तत्थ ॥ कुत्र । कहि । कह। कत्थ ॥ अन्यत्र । अन्नहि । अन्नह । अन्नत्थ ॥
मूल भाषांतर. त्रप् प्रत्ययने हि ह त्थ एवा आदेश श्राय. सं. यत्र तेनां जहि जह जत्थ एवां रूप थाय. सं. तत्र तेनां तहि तह तत्थ एवां रूप थाय. सं. कुत्र तेनां कहि कह कत्थ एवां रूप थाय.सं.अन्यत्र तेनां अन्नहि अन्नह अन्नत्थ एवां रूप थाय.१६१
॥ढुंढिका॥ त्रप ६१ हिश्च हश्च त्यश्च हिहत्थाः १३ यत्र अनेन प्रथमे त्रस्थाने हि द्वितीये ह । तृतीये त्थ श्रादेयोजः यस्य जः ११ अव्यय सबुक् जहि जह जत्थ । तत्र अनेन त्रस्थाने हि ह त्थ श्रव्यय सबुक् तहि तह तब कुत्र त् किमस्त्रताम्व किमस्थाने क अनेन प्रथमे त्रस्थाने हि हितीये ह तृतीये उ कहि कह कब। अन्यत्र अधोमनयां यलुक् अनादौ हित्वं त्त अनेन त्रस्थाने हि द्वितीये ह तृतीये 3 अन्नहि अन्नद अन्नब ॥ १६१॥
टीका भाषांतर. त्रप् प्रत्ययने स्थाने हि ह त्थ एवा आदेश थाय. सं. यत्र तेने चालता सूत्रे प्रथमरूपमां हि आदेश थाय. बीजे ह थाय अने त्रीजे त्थ श्राय. पी आयोजः अव्ययसूलुक ए सूत्रोथी जहि जह जत्थ एवां रूप थाय. सं. तत्र तेने चालतासूत्रे बने स्थाने हि ह त्थ एवा आदेश थाय. अव्यय सलुक् ए सूत्रोथी तहि तह तत्थ एवां रूप थाय. सं. कुत्र तेने किमस्त्राताम्ब० चालता सूत्रे प्रथम रूपमां हि बीजा रूपमा ह अने त्रीजा रूपमा त्थ आदेश वाय. एटले कहि कह कत्थ एवां रूप थाय. सं. अन्यत्र तेने अधोमनयां अनादौ० चालता सूत्रे बने स्थाने हि ह त्थ आदेश श्राय एटले अन्नहि अन्नह अन्नत्थ एवां रूप थाय. ॥ १६१ ॥
वैकादः सि सिधे श्॥१६॥ एकशब्दात्परस्य दाप्रत्ययस्य सि सि श्श्रा इत्यादेशा वा जवन्ति ॥ एकदा । एक्कासि । एकसिध। एकश्या । पदे एगया ।
मूल भाषांतर. एक शब्दथी पर एवा दा प्रत्ययने सि सि इआ एवा आदेश विकटपे थाय. सं. एकदा तेनां एकसि एकसिअं एकइआ एवां रूप थाय. पक्ष सं. एकदा तेनुं एगया रूप थाय. ॥ १६ ॥
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द्वितीयः पादः ।
॥ ढुंढिका ॥
वा ११ एक ५१ दा ६१ सिश्च सि च इय च सिसिया ११ एकदा अनेन दास्थाने सि सेवादौ द्वित्वं क्क एक्कसि एकदा श्रनेन दास्थाने सि द्वितीये इश्रा सेवादौ वा द्वित्वं क्क श्रव्ययसलुक एक्कसि एक पदे एकदा श्रनादौ बरादा संयुक्तकस्य गः कगचजेति दलुक् वर्णो य अव्यय० एगया ॥ १६२ ॥
टीका भाषांतर. एक शब्दथी पर एवा दा प्रत्ययने सिसिअं इआ एवा एवा श्रादेश याय. सं. एकदा तेने चालता सूत्रे दाने स्थाने सि आदेश थाय. पढी सेवादौ ए सूत्रे एक्कसि रूप याय. बीजे रूपे सं. एकदा तेने चालता सूत्रे दाने स्थाने सिअं थाय. त्रीजे रूपे इआ आदेश थाय. सं. एकदा तेने सेवादौ अव्ययस्लुक् ए सूत्रे एकसिअं एक्कइआ एवां रूप याय. बीजेपदे सं. एकदा तेने अनादौ छरादा संयुक्त कस्य कगचज० अवर्णो अव्यय० ए सूत्रोथी एगया रूप थाय. ॥ १६२ ॥
४१३
मिल्ल - डुल्लौ नवे ॥ १६३ ॥
वे नाम्नः परौ ल उ इत्येतौ तौ प्रत्ययौ भवतः ॥ गामिलिथा । पुरि | लिं । उवरि । श्रपुत्रं ॥ श्रावालावीचन्त्यन्ये ॥
मूल भाषांतर. जव अर्थमां नाम थकी पर डिल्ल ने डुल्ल एवा प्रत्यय यायसं. ग्राम्या तेनुं गामिलिआ थाय. सं. पुरमा थयेल ते पौर कदेवाय तेनुं पुरिल्लं थाय. जे अधो कहेता नीचे थयेल तेनुं हेट्ठिलं याय. सं. उपरि ( उपर ) थयेल तेनुं उवरिल्लं थाय. सं. आत्माने विषे थयेल ते अपुलं याय. काहीं केटलाएक आल्वालौ एवं रूप पण इबे बे. ॥ १६३ ॥
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॥ ढुंढिका ॥
डिलश्च कुलश्च कुल १२ जव ७१ ग्रामा ग्रामे जवा गामिलिया सर्वत्र लुक् श्राश्रनेन डिल्लः प्रत्ययः इलः इति डित्यं प म मध्यादलोपः लोकात् गामिल इति जाते श्रस्यायत्तददिपिकानां ह्नि स्वार्थे कः च वाक् प्रत्ययः यात आप समानानां दीर्घः कगचजेति कलुक् ११ लुक् गामिलिया पुर पुरे जवः श्रथवा पुरं जवं पुरि अनेन मिलप्रत्ययः इव इति मित्यं रद्वात् अलोपः लोकात् ११ क्लीवे स् म् मोनु० पुरिल्लं श्रधस् अधोवं देविल्लं असो देहं अतः स्थाने
त्यव्यं
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४१४
मागधी व्याकरणम्. ह थनेन डिल्ल प्र० श्ल इति डित्यं त्य ११ क्लीबे सम् मोनु० हेविवं नपरि उपरि नवं उवरिवं पोवः अनेन डिव श्ख ११ क्लीबे स्म् मोनु जब रिवं श्रात्मन् आत्मनि नवं ह्रस्वः संयोगे था श्र जस्मात्सनोष्यो वात्मस्य पः अनादौ हित्वं प्प अनेन मुख उस डित्यं त्यपमध्यात् अनुक् श्रवों अ य ११ क्वीबे सम् मोनु अप्पुझं ॥ १३ ॥
टीका भाषांतर. भव अर्थमा नाम थकी पर डिल्ल डल्ल एवा प्रत्ययो आवे . सं. ग्राम्य ( गाममां श्रयेल ) तेने सर्वत्र चालता सूत्रे डिल्ल डित्यं० ए सूत्रथी इल्ल रहे, म तथा यनी मध्यमांथी अनो लोप थाय. लोकात् ए सूत्रे गामिल्ल एवं रूप थाय. तेने अस्यायत्तदक्षिपिकानां ए सूत्रे ल्ल नो ल्लि थाय पजी स्वार्थमां क प्रत्यय आवे आत आप् समानानांदीघेः कगचज० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गामिल्लिआ एवं रूप थाय. सं. पौर (पुरमां श्रयेल) तेने चालता सूत्रे डिल्ल प्रत्यय आवे डित्यं ए सूत्रे इल्ल प्रत्ययने र नी मध्यमांथी अनो लोप थाय पनी लोकात् क्लीये सम् मोनु० ए सूत्रोथी पुरिलं एq रूप थाय. अधस् (नीचे ) थएटुं ते. सं. अधस् तेने अधसोहेड चालता सूत्रे डिल्ल प्रत्यय श्रावे पगी इल्ल रहे डित्यं क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी हेहिल्लं रूप थाय. उपरि ( उपर श्रयेलु) तेने पोवः चालता सूत्रे डिल्ल प्रत्यय आवे पनी इल्ल रहे क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी उवरिलं रूप थाय. सं. आत्मन् ( आत्माने विषे श्रयेलु) तेने ह्रस्वःसंयोगे भस्मात्सनोष्योवा अनादौचालता सूत्रे हुल्ल प्रत्यय श्रावे तेनुं उल्ल थाय.डित्यं० अलुक् अवर्णो० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी अप्पुलं एवं रूप थाय. ॥ १६३ ॥
स्वार्थे कश्च वा ॥ १६४॥ स्वार्थे कश्चकारादिल्लोल्लो मितौ प्रत्ययौ वा जवतः ॥ क । कुंकुंमपिंजरयं । चन्दउँ । गयणयम्मि । धरणीहर-पक्खुब्जन्तयं । उहिए राम हिश्रयए । श्यं । श्रालेहुवे । श्राश्लेष्टुमित्यर्थः ॥ हिरपि नवति । बहु श्रयं ॥ ककारोच्चारणं पैशाचिकनाषार्थ । यथा । वतनके वतनकं समप्पेत्तून ॥श्व । निजिथासोअपवविवेण। पुरिहो। पुरा पुरो वा॥ जब । मह पिजवळ । मुहल्लं । हत्युल्ला । पदे । चन्दो । गयणं । श्ह । थालेढुं । बहु बहुअं । मुहं । हत्था ॥ कुत्सादिविशिष्टे तु संस्कृतवदेव कप सिकः ॥ यावादिलक्षणः कः प्रतिनियतविषय एवेति वचनम् ॥
मूल भाषांतर. स्वार्थमां क प्रत्यय श्राय अने मूलमां चकारनुं ग्रहण ने तेथी विकल्पे डिल अने हुल्ल एवा प्रत्ययो आवे कनुं उदाह- सं. कुंकुमापिजरं तेनुं कुंकुमपिंजर
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द्वितीयः पादः ।
४२५
यं एवं थाय. सं. चंद्रकः तेनुं चन्दओ थाय. सं. गगने तेनुं गयणयम्मि एवं थाय. सं. धरणीधरपक्षेद्वातः तेनुं धरणीपक्खुन्भन्तयं सं. दुःखिते रामहृदये तेनुं दुहिए राम- हिअयए एवं थाय. सं. हृद्यं आश्लेष्टं तेनुं इहयं आलेहुअं एवं थाय. अर्थात् हृदय लिंगन करवाने एवो कार्य थाय. कोई वखते वे वार पण थाय जेमके, सं. बहुक तेनुं बहुअयं एवं थाय. अहिं ककारनं उच्चारण पिशाची जापाने अर्थे वे. जेम सं. वदनके वदनं समर्पितेनुं वतनके वतनकं समप्पेतून एवं रूप थाय. बीजे पदे इल प्रत्ययनां उदाह० - जेम सं. निर्जिताशोकपल्लवेन तेनुं निज्जिआसो अपलविलेण सं. पुर अथवा पुरा तेनुं पुरिल्लो थाय. उल्ल प्रत्ययनां उदा० जेम सं. ममपितृ तेनुं महपिउलओ थाय. सं. मुहूर्त्त तेनुं मुहुलं थाय. सं. हस्तौ तेनुं हत्थुल्ला थाय. पदे सं. चंद्रः तेनुं चन्दो थाय. सं गगनं तेनुं गयणं याय. सं. आश्लेष्टं तेनुं आलेडं थाय. सं. बहु तेनुं बहु बहुअं श्राय. सं. मुखं तेनुं मुहं थाय. सं. हस्ताः तेनुं हत्था याय. कुत्सादि विशिष्ट एवा शब्दोमां तो संस्कृतनी जेम कप सिद्ध थाय. जेयावादि लक्षण कपू प्रत्यय तेनो विषय तो नियम रीते प्रवर्त्ते बेज एवं वचन बे.
॥ ढुंढिका ॥
स्वार्थ ७१ क ११ च ११ वा ११ कुकुंमपिअर - अनेन क प्र० कगचजे ति लुक् वर्णो य ११ क्लीवे सम् मोनु पिंजरः चंद्र श्रनेन क प्र० डोरोनवा लुक् कगचजेति कलुक ११ यतः सेर्डो: चंदर्ज गगनअनेन क प्र०कगचजेति ग्लुक् अवर्णो अ य नोणः कगचजेति कलुक् वर्णो य ७१ डेम्मिडे किस्थाने म्मि गयणवम्मि धरणीधरपदे ज्ञातः खघथ० घस्य हः ह खः कचित्तु कौ कस्य खः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयतुर्य० पूर्वकस्य खः संयोगे ख्कोकबुकगटडेति दलुक् ह स्वः संयोगे चा च सर्वत्र लुक् श्रनादौद्वित्वं द्वितीयतु० पूर्वजस्य वः अनेन कप्रत्ययः कगचजेति कलुक् अवर्णो अ य ११ क्लीवे सम् मोनु० धरणीहर पववुब्जन्तय दुःखितः कतिडुरोर्वा रलुक् खघय० खि हि अनेक प्र० कगचजेति कतयोर्लुक् ७१ डेम्मिस्थाने डेमित्यं डुहिश्र एं राम हृदय दयइत्कृपादौ इहि कगचजेति लुक् अनेन क प्र० कगचजेति कलुकू ७१ डेम्मि डेरामदि अयए इ श्रनेन कप्रत्ययः कगचजेति कलुक् वर्णो ११ बाहुलकात् वा खरेम कगटडे ति श लुकू ष्टस्यानुष्ट्रस्य वः श्रनादौ द्वित्वं द्वितीयतुर्य० पूर्व व ट छानेन क.
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४१६
मागधी व्याकरणम्. प्रण विंशत्यादेच्क् म्बुक् कगचजेति कप्रत्ययघ्यमपि नवति यथा बहुक श्रने न कप्र कगचजेति योर्कयोश्च बुक् अवर्णो अय११ बाहुलकात् वा स्वरे मश्च क्लीबे सम् मोनु बहुअयं सूत्रे ककारस्यैवोच्चारणं कथं पैशाचिकनाषार्थं यथा वदन तदोस्तः दोस्यत् अनेन कप्र०७१ डेम्मि डे वत्तनके वतनकं तथैव समर्पि इति निष्पायकप्र० क्रसूनत्कास्थाने तूणः एच्चत्कानुम नविष्यत्सुर्पिर्प सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं समप्ये तून निर्जिताशोकपल्लव सर्वत्र लुक् अनादौ हित्वं कगचजेति त् बुक् अनेन मिल्ख श्व मित्यं वस्य श्रबुक् लोकात् टा ३१ टाश्रामोर्णः टास्थाने ण टाणशस्येत् ब वे निजिथासो अपक्ष विवेण पुराथवा पु रस् अनेन मिल्द श्व इति मित्यं लोकात् ११ अतःसे?ः पुरिलो ममपितृ मेमश्मवहंनन्नं मन्नं श्रम्ह श्रम्हं जसामस्थाहेमह अनेन मुल्ल जल्द इति क प्रण डित्यं तृमध्यात् कलुक् लोकात् ११ कगचजेति तकयोछक् ११ श्रतः सेझैः मह पिउबई मुख खघयधनां ख द अनेन मुख उस इति मित्यं ११ क्लीवे सम् मोनुण्मुहुल्लं हस्तावेव हस्ता स्तस्यथोऽस. मस्त अनादौ हित्वं द्वितीय श्रनेन जब लोकात् द्विवचनस्य बहुवचनं१३ जस् शस् ङसि दीर्घः जस् शसोर्बुक् हत्थुल्ला चंछ देरोनवा रखुक् ११ श्रतः सेझैः चंदो । गगनं कगचजेति ग्लुक् नोणः क्लीवे सम् मोनु गयण श्ह ११ अव्यय श्ह आश्लेष्टुं कगटडेति शबुक् ष्टस्यानुष्ट्रे ष्टस्य वः अनादौ हित्वं द्वितीय श्रासेठं बहु ११ श्रव्ययस्य बहु बहुक कगचजेति कबुक् बहुअं । मुख- खघथ ख ह ११ क्लीबे सम् मोनु मुहं स्तस्यथोऽसम स्त थ अनादौ द्वित्वं द्वितीये १५ द्विवचनस्य बहुवचनं१३जस्शस्ङसि दीर्घः जस्शसोर्बुक् हत्था कुत्सिताल्पाशाते प्रति अनेन कप्रत्ययः समेति समेतिस कुत्सितादिविषये संस्कृतवदेव सिझः ततः कुत्सिताद्यर्थमन्यनपूर्वं नोक्तं यादादेकः इति सूत्रेण यः क प्रा सयावादिगणान्नवति इति इतिकारणात् खार्थे क श्चवा इति सूत्रकृतः॥१६॥ टीका भाषांतर. स्वार्थमां क प्रत्यय आवे चकारनुं ग्रहण ने तेथी डिल्ल अने डुल एवा प्रत्ययो विकटपे थाय. सं. कुंकुमपिंजर तेने चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. पनी कगचज०
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हितीयःपादः।
४१७ अवर्णो क्लीबे सम् मोनु०ए सूत्रोथी कुंकुमपिंजरयं एवु रूप थाय.सं.चंद्र तेने चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. द्रोरोनवा कगचज. अतासेडों: ए सूत्रोथी चंदओ रूप थाय. सं. गगन तेने चालता सूत्रे क प्रत्यय आवे पनी कगचज अवर्णो० नोणः कगचज. डेम्मिडे० ए सूत्रोथी गयणवम्मि एवं रूप थाय. सं. धरणीधरपक्षेद्भातः तेने खघथ० क्षः खः क्वचित्तुझछौ अनादौ० द्वितीयतुर्य० संयोगेख्कोक० कगटड० हवःसंयोगे सर्वत्र अनादौ० द्वितीयतुर्य चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. कग चज० अवर्णो० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोश्री धरणीहरपक्खुब्भन्तयं एवं रूप थाय सं. दुःखितः तेने कतिदुरोर्वा खघथ० चालतासूत्रे क प्रत्यय थाय. कगचज० डेम्मि० डित्यं ए सूत्रोथी दुहिअए एवं रूप थाय सं. रामहृदय तेने इत्कृपादौ० कगचज० चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. कगचज० डेम्मिडे ऐ सूत्रोथी रामहिअयऐ एवं रूप थाय. सं. इह तेने चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. कगचज. अवर्णो० बाहुलक अधिकारथी वाखरेमः कगटड ष्टस्यानुष्ट्रा० अनादौ० द्वितीयतुर्य० चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. विंशत्यादेलक कगचज. अहीं बे क प्रत्यय पण थाय. जेम सं. बहुक तेने चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. कगचज ए सूत्रे बने कनो लुक् थाय. अवर्णो० बाहुलक अधिकारथी वाखरेमश्च क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी बहुअयं एवं रूप थाय. अहीं ककारनुं उच्चारण पैशाचिक नाषाने अर्थे वे जेम सं. वदन तेने तदोस्तः दोस्यत् चालता सूत्रे क प्रत्यय थाय. पी डेम्मि ए सूत्रोथी वतनके एवं ककारोच्चारवालुं रूप थाय. तेवीज रीते सं. वदनकं तेनुं वतनक रूप थाय. सं. समर्पि इति तेने मिष्पाद्यकु०सूनत्कास्थाने तूण आदेश थाय. एच्चाका० भविष्यत्सुर्पि०सर्वत्र अनादौ० ए सूत्रोथी समप्पेत्तून एवं रूप थाय. सं. निर्जिताशोकपल्लव तेने सर्वत्र अनादौ० कगचज० चालता सूत्रे डिल्ल प्रत्यय थाय. डित्यं० अलुक लोकात् टा आमोर्णः टाणशस्येत् ए सूत्रोथी निजिआ सोअपल्लविल्लेण एवं रूप थाय. सं. पुरा अथवा पुरस तेने चालता सूत्रे डिल्ल प्रत्यय आवे तेने इल्ल रहे पनी डियं लोकात् अत:से?ः ए सूत्रोथी पुरिल्लो एवं थाय. उल्लना उदाह सं. मम पितृ तेने मेमहमवहंन० चालता सूत्रे डुल्ल थाय तेनो उल्ल थाय पनी डित्यं लोकात् कगचज०अतःसे?: ए सूत्रोथी महपिउल्लओ एवं रूप थाय. सं. मुख तेने खघथ० चालता सूत्रे हुल्ल प्रण थाय. पनी उल्ल रहे डित्यं क्लीबेसम्० मोनु० ए सूत्रोथी मुहल्लं थाय. सं. हस्तौ तेने स्तस्यथो० अनादौ० द्वितीयतुर्य चालता सूत्रे उल्ल थाय लोकातू द्विवचनस्य बहुवचनं० जश शस् ङसिदीर्घः जसूशसोलक ए सूत्रोथी हत्थुल्ला रूप थाय. पदे सं. चंद्र तेने देरोनवा अतःसे?ः ए सूत्रोथी चंदो रूप थाय. सं. गगनं तेने कगचजनोणः क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी गयणं रूप श्राय. सं. इह तेने अव्यय० ए सूत्रे इह थाय. सं. आश्लेष्टुं तेने कगटड ष्टस्यानुष्टे० अनादौ० द्वितीयतुर्य० ए सूत्रोथी आलेटुं रूप थाय. सं. बहु तेने अव्ययस्य० ए सूत्रे बहु रूप थाय. सं. बहुक तेने कगचज० ए सूत्रे बहुअं रूप थाय. सं. मुख तेने खघथ० क्लीबेसम्० मोनु० ए
५३
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४१७
मागधी व्याकरणम् . सूत्रोथी मुहं रूप थाय. सं. हस्ताः तेने स्तस्यथोऽसमस्त. अनादौ० द्वितीय विवचनस्य वहुवचनं जस् शसूङसिजस्शसोर्लक् ए सूत्रोथी हत्था एवं रूप थाय. कुत्सिताल्पाज्ञाते० आ सूत्रश्री जे क प्रत्यय आवे ते कुत्सितादिविषयमां संस्कृतवत् सिद्ध थाय. तेथी कुत्सिताद्यर्थ मनन्यपूर्व नोक्तं यादादेकः ए सूत्रोथी जे क प्रत्यय श्रावे जे ते यावादिगण थकी थाय ने ते कारणथी अहीं स्वार्थमां क प्रत्यय आवेलो अने ते सूत्रथी करेलो . ॥ १६ ॥
लो नवैकामा ॥ १६५॥ श्राज्यां स्वार्थे संयुक्तो हो वा जवति ॥ नवहो । एकहो ॥ सेवादिस्वात्कस्य द्वित्वे एकहो । पदे । नवो। एको । एजे ॥ १६५ ॥
मूल भाषांतर. नव अने एक शब्द थकी स्वार्थमा संयुक्त एवो ल्ल विकटपे थाय. सं. नव तेनुं नवल्लो रूप थाय. सं. एक तेनुं एकल्लो रूप धाय. ते सेवादिमां गणेलो ने तेथी सेवादौवा ए सूत्रथी कनो बिर्ताव श्राय, एटले एकल्लो एवं रूप पण थाय. विकटप पदे सं.नव तेनुं नवो थाय अने सं. एक तेनु एक्को श्राय अने पके एओ पण बाय. १६५
॥ढुंढिका ॥ व ११ नवैक ५१ वा ११ नव एक अनेन वा सप्र० ११ अतःसेोः नवल्लो एकझो पदे एक सेवादौ वा कस्य हित्वं व ११ अतःसेडोंः एकरो। पदे नवो। एक्को।थपरपके एक कगचजेति कलुक्११अतःसेर्मोः एज॥१६५॥
टीका भाषांतर. नव अने एक शब्द अकी स्वार्थमा संयुक्त एवो ल्ल विकटपे थाय. सं. नव एक तेने चालता सूत्रे विकल्पे ल्ल प्रत्यय आवे पनी अतःसे?: ए सूत्रथी नवल्लो एकल्लो एवां रूप थाय. पद सं. एक शब्द तेने सेवादौवा ए सूत्रे कनो दि व थाय. अतःसेडोंः ए सूत्रोथी एकल्लो एवं रूप थाय. पदे ज्यारे ल्ल न थाय त्यारे सं. नव एक तेनां नवो एक्को एवां रूप थाय बीजे परे सं. एक तेने कगचज अतः से?: ए सूत्रोथी एओ एवं रूप पाय. ॥ १६५ ॥
। उपरेः संव्याने॥१६६॥ संव्यानेऽर्थे वर्तमानामुपरि शब्दात् स्वार्थे हो नवति ॥ श्रवरिलो ॥ संव्यान इति किम् । श्रवरिं ॥ १६६ ॥
मूल भाषांतर. संब्यान एटले प्रावरण अर्थमा रहेता उपरि शब्दथकी स्वार्थमां ल्ल थाय. सं. उपरि तेनुं अवरिल्लो एवं रूप थाय. जो संव्यान अर्थ न होय तो सं. उपरि तेनुं अरिं एवं रूप थाय. ॥ १६६ ॥
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४रए
द्वितीय पादः।
॥ टुंढिका ॥ उपरि ५१ संव्यान १ उपरि वोपरौ उ अ पोवः पस्य वः अनेन सप्रन ११ अतःसेझैः श्रवरिलो प्रावरण मित्यर्थः । पदे उपरि वोपरौ उ अ वक्रादावंतः अनुस्वारः श्रवरिं ॥ १६६॥
टीका भाषांतर. संव्यान अर्थमा रहेला उपरि शब्द की स्वार्थमा ल्ल थाय. सं. उपरि तेने वोपरी पोवः चालता सूत्रे ल्ल प्रत्यय श्राय. अतःसे?: ए सूत्रोथी अवरिल्लो रूप थाय. तेनो अर्थ प्रावरण वस्त्र थाय . पके जो संव्यान अर्थ न होय तो सं. उपरि तेने वोपरौ वक्रादावंतः ए सूत्रोथी अवारं एवं रूप थाय. ॥१६६॥
वो मया ममया ॥१६॥ चू शब्दात्वार्थेमयाडमया इत्येतौप्रत्ययौ जवतः॥जुमया। जमया ॥१६॥
मूल भाषांतर. भ्रू शब्दने स्वार्थमां मया अने डमया एवा प्रत्ययो वाय. सं. भ्रू तेनां भुमया अने भमया एवां रूप थाय. ॥ १६७ ॥
॥ ढुंढिका ॥ जू ५१ मया ११ डमया ११ जू उर्जूहनूमत्कंडूलवातूले चू जु थनेन मया प्र० ११ सर्वत्ररबुक् अंत्यव्यंग सबुक् जुमया । अनेन ममया श्रमया इति डित्वं ऊबुक् सर्वत्र रखु११यंत्यव्यंजण्सबुक् नमया १६७
टीका भाषांतर. भू शब्द थकी स्वार्थमां मया अने डमया एवा आदेश थाय. सं. 5 तेने उर्दूहनूम० ए सूत्रे भू नो भु श्राय पी चालता सूत्रे मया प्रत्यय थाय पी सर्वत्र अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी भुमया एवं रूप थाय. सं. 5 तेने चालता सूत्रे डमया प्रत्यय आवे पनी डित् प्रत्यय ने तेथी ऊनो लुक् श्राय. सर्वत्र अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी भमया एवं रूप थाय. ॥ १६७॥
शनैसो मित्रम्॥१६॥ शनैस् शब्दात्स्वार्थे मित्रम् जवति ॥ सणिश्रमवगूढो ॥
मूल भाषांतर. शनैस् शब्द थकी स्वार्थमां डिअम् प्रत्यय श्रावे. सं. शनैः तेनुं सणि थाय. सं. अवगूढः तेनुं अवगूढो थाय. ॥ १६ ॥
॥ढुंढिका ॥ शनैस ५१ मिश्रम् ११ शनैस् शपोःसः नोणः अनेन डिअम् प्र० श्यम् इति मित्यं । ऐसलुक् लोकात् सणि। अवगूढ ११श्रतःसेर्मोःश्रवगूढ॥१६॥ टीका भाषांतर. शनैस शब्द की स्वार्थमां डिअम् प्रत्यय आवे सं. शनैस् तेने
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मागधी व्याकरणम्. शषोःसः नोणः चालता सूत्रे डिअम् प्रत्यय आवे पनी डिव ने तेथी इअम् थाय अने शनैसमांथी ऐसूनो लुक् थाय. लोकात् ए सूत्रोथी सणिअं रूप थाय.सं. अवगूढ तेने अतःसेोः ए सूत्रथी अवगूढो रूप थाय. ॥ १६७ ॥
मनाको न वा मयं च॥१६॥ मनाक् शब्दात्स्वार्थे डयम् डिश्रम् च प्रत्ययो वा जवति ॥ मणयं मणियं । पदे । मणा ॥ १६ ॥ ___ मूल भाषांतर. मनाक शब्दथी स्वार्थमां डयम् अने डिअम् प्रत्यय थाय. सं. मनाक् तेनां मणयं मणियं एवां रूप श्राय. पदे सं. मनाक् तेनुं मणा रूप थाय. १६ए
॥ ढुंढिका ॥ मनाक् ५१ न वा ११ मयम् च ११ मनाक् अनेन वा श्रयम् इति मित्यं थाबुक् लोकात् नोणः श्रवर्णो थ य णयं ११ श्रव्ययसबुक् मोनु० मणयं । मनाक् अनेन मिश्रम् श्यम् इतिमित्यं श्रबुक् लोकात् नोणः मोनु कगचजेति यबुक् मणियं । पदे मनाक् नोणः अंत्यव्यं क्लुक् श्रव्यय-स्बुक् मणा ॥ १६ए ॥ टीका भाषांतर. मनाक् शब्दने स्वार्थमां डयम् अने डिअम् प्रत्यय थाय. सं. मनाक् तेने चालता सूत्रे विकटपे अयम् मित्यपणाथी आनो लुक् थाय पळी लोकात् नोणः अवर्णो अव्ययसूलुक् मोनु० ए सूत्रोथी मणयं रूप थाय. सं. मनाकू तेने चालता सूत्रे डिअम् प्रत्यय थाय.तेने इयम् थाय डित्यं ए सूत्रे अनो लुक् थाय. लोकात् नोणः मोनु० कगचज० ए सूत्रोथी मणियं रूप थाय. पदे सं. मनाक तेने नोणः अंत्यव्यं० अव्यय० ए सूत्रोथी मणा रूप थाय. ॥१६ए॥
मिश्रा ड्डालिअः॥१७॥ मिश्र शब्दात्स्वार्थेमालिश्रः।प्रत्ययो वा जवति ॥मीसालि।पदे मीसं॥
मूल भाषांतर. मिश्र शब्दने स्वार्थमां डालिअ प्रत्यय विकटपे थाय. सं. मिश्र तेनुं मीसालिअं रूप आय. पदे सं. मिश्र तेनुं मीसं रूप थाय. ॥ १७० ॥
॥ ढुंढिका ॥ मिश्र ५१ माविथ ११ मिश्र अनेन डालिय डालिय इति सर्वत्ररखुक बुप्तयवर दीर्घः मि मा शषोःसः मित्यं अनुक् लोकात् ११ क्लीवेसम् मोनु मीसालिकं । पदे मिश्र सर्वत्ररक् लुप्तयवरदीर्घः मि मी शषोः सः ११ क्लीबेस्म् मोनु मीसं ॥ १० ॥
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द्वितीय पादः।
४२१ टीका भाषांतर. मिश्र शब्दने स्वार्थमां डालिअ प्रत्यय विकटपे थाय. सं. मिश्र तेने चालता सूत्रे डालिअ प्रत्यय आवे सर्वत्र लुप्तयवर शषोःसः डित्यं लोकात् क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी मीसालिअं रूप पाय. पदे सं. मिश्र तेने सवेत्र लुप्तयवर० शषोःसा क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी मीसं रूप थाय. ॥ १७० ॥
रो दीर्घात् ॥११॥ दीर्घ शब्दात्परः खार्थे रो वा नवति ॥ दीहरं दीहं॥
मूल भाषांतर. दीर्घ शब्दनी पर स्वार्थमां विकटपे र थाय. सं. दीर्घ तेनां दीहरं दीहं एवां रूप थाय.
॥ टुंढिका ॥ र ११ दीर्घ ५१ दीर्घ अनेन वा र प्रत्ययः सर्वत्र रबुक् खघथधनां घस्य हः ११ क्लीबेसम् मोनु० दीहरं । पदे दीर्घ सर्वत्ररलुक् खघथधजां ११ क्लीबेस्म् । मोनुस्वारः दीहं ।। १७१ ॥ टीका भाषांतर. दीर्घ शब्दने स्वार्थमां विकटपे र श्राय ने. सं. दीर्घ तेने चालता सूत्रे विकटपे र प्र० श्राय पठी सर्वत्र खघथध० क्लीवेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी दीहरं रूप थाय. पदे सं. दीर्घ तेने सर्वत्र खघथध० क्लीबेसम् मोनुखारः ए सूत्रोथी दीहं रूप थाय. ॥ १७१ ॥
त्वादेः सः॥१२॥ जावे त्व-तलू देश-१ इत्यादिना विहितात्वादेः परः स्वार्थे स एव त्वादिर्वा नवति ॥ मृफुकत्वेन । मनअत्तया ॥ आतिशायिकात्त्वातिशायिकः संस्कृतवदेव सिद्धः। जिट्टयरो । कणिट्टयरो ॥ १७ ॥
मूल भाषांतर. भावत्वतलू ए हैमव्याकरणना सूत्रश्री जे त्व विगेरे प्रत्ययो आवे , तेने ते त्वादि प्रत्ययो विकटपे थाय. सं. मृउकत्वेन तेनुं मउअत्तयाइ एवं रूप थाय. सं. आतिशायिक शब्द नपरथी आतिशायिक रूप थाय . ते संस्कृत प्रमाणे सिघ थाय ने. सं. ज्येष्टतरः तेनुं जिट्टयरो श्राय अने सं. कनिष्टतरः तेनुं कणिट्टयरो रूप थाय. ॥ १७॥
॥ टुंढिका ॥ त्वादि ५१ स ११ मृकत्व इतोऽर मृ म कगचजेति दकयोर्मुक् सर्वत्रवनुक् अनादौहित्वं त्त थनेन त्वत्र नति श्यामाप आप कगचजेतिवबुक् अवर्णो अ य ३१ टाङस्डेरदादिदेछातुङसे टास्थाने श्मश्नु
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मागधी व्याकरणम्. अत्तयाप्रत्ययः मन्अत्तया अतिशयार्थ प्रत्ययात् अतिशयार्थः प्रण समेति यः स संधूनसमएव सिझः यथा अतिशयेन प्रौढः ज्येष्ठः श्रतिशयेन ज्येष्टः ज्येष्टतरः अधोमनयां यबुक् ह्रस्वःसंयोगेष्टस्यानुष्ट्र संदेष्टाष्टस्य ः अनादौ हित्वं कगचजेति तबुक् श्रवर्णो श्र य१९श्रतःसेडोंः जिट्टयरो। अतिशयेन अल्पः कनिष्ठः अतिशयेन कनिष्टः कनिष्ठतरः नोणः ष्टस्या ष्टस्यवः शेषं पूर्ववत् कणिट्टयरो ॥ १७ ॥
टीका भाषांतर. त्व विगेरे शब्दोने स्वार्थमां ते त्वादि प्रत्यय विकटपे थाय. सं. मृदुकत्व तेने ऋतोऽर् कगचज सर्वत्र अनादौ चालता सूत्रे व प्रत्यय थाय. कगचज अवर्णो टाडस् डेरदादिदेवातुडसेः इत्यादि सूत्रोथी मउअत्त याइ एवं रूप थाय. अतिशयार्थमा जे प्रत्यय आवे रे ते संस्कृतप्रमाणे सिख थाय . जेम अतिशय प्रौढ ते ज्येष्ट कहेवाय अने अतिशय ज्येष्ट ते ज्येष्टतर कहेवाय. सं. ज्येष्टतर तेने अधोमनयां हस्वःसंयोगे ष्टस्यानुष्ट० अनादौ० कगचज अवर्णों अतःसे?: ए सूत्रोथी जिट्टयरो एवं रूप थाय. जे अतिशे अस्प ते कनिष्ट कहेवाय. अने अतिशे कनिष्ट ते कनिष्टतर कहेवाय. सं. कनिष्टतर तेने नोणः ष्टस्यानुष्ट्र. बाकी पूर्ववत् सूत्रोथी कणिठ्यरो एवं रूप थाय. ॥ १७२॥
विद्युत्पत्र-पीतान्धालः ॥ १७४ ॥ एज्यः स्वार्थे लो वा नवति ॥ विज्जुला । पत्तलं । पीवलं । पीश्रलं । अन्धलो। पदे । विज्जू । पत्तं । पीधे। अन्धो ॥ कथं जमलं । यमलमिति संस्कृतशब्दाद् नविष्यति ॥ १४ ॥
मूल भाषांतर. विद्युत पत्र पीत अने अंध ए शब्दोने स्वार्थमा विकटपे ल थाय. सं. विद्युत् तेनुं विजुला रूप थाय. सं. पत्र तेनुं पत्तलं थाय. सं. पीत तेना पीवलं पीअल रूप थाय. सं. अंधः तेनुं अन्धलो रूप थाय. पदे सं. विद्युत् तेनुं विजू थाय. सं. पत्रं तेनुं पत्तं थाय. सं. पीतं तेनुं पीअं थाय. सं. अंधः तेनुं अंधो थाय. अहीं कोई कहे के, जमलं ए शेनुं रूप जे? तेना जबाबमां कहेवार्नु के, संस्कृत यमल शब्दमांथी जमलं एवं रूप थाय ॥ १७३॥
॥ढुंढिका॥ विद्युच्च पत्रं च पीतं च अंधश्च विद्युत्पत्रपीतांधः तस्मात् ५१ ल ११ विद्युत्-द्यय्यर्यांजः द्यु जु १ अनादौहित्वं ज्जु अनेन वा ल प्रत्ययः स्त्रियामा प्रस् ११ अंत्यव्यंग स्लुक् विज्जुला । पत्र अनेन ल प्रत्ययः सर्वत्र रबुक् अनादौहित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु० पत्तलं । पीत अनेन ल.
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द्वितीयःपादः।
४२३ प्रत्ययः पीतेवोलेवा तस्य वा व ११ क्लीबेस्म् मोनु० पीवलं। पीत अनेन ल प्रत्ययः कगचजेति तबुक् ११ पीथलं । अन्ध अनेन लप्र० ११ अतःसेोः अन्धलो पदे विद्युत् द्यय्यांजः द्यु जु श्रनादौहित्वं अंत्यव्यंज तलुक् अक्कोबे दीर्घः अंत्यव्यंजन-स्बुक् विज्जू । पत्र सर्वत्र रखुक अनादौ हित्वं ११ क्लीबेस्म् मोनु० पत्तं । पीत कगचजेति तबुक् ११ क्लीबेसम् मोनु० पीअं। अन्ध ११ अतःसेर्मोः अन्धो यमलं श्रादेर्योजः यस्य जः जमल इतितु संस्कृते सिकः ज्ञेयः ॥ १७३ ॥
टीका भाषांतर. विद्युत् पत्र पीत अने अंध ए शब्दोने स्वार्थमां विकटपे ल प्रत्यय थाय. सं. विद्युत् तेने द्यय्याजः अनादौ चालता सूत्रे ल प्रत्यय आवे स्त्रियामाए अंव्यव्यंजन ए सूत्रोथी विज्जुला रूप थाय. सं. पत्र तेने चालता सूत्रे ल प्रत्यय थाय सर्वत्र अनादी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पत्तलं रूप थाय. सं. पीत तेने चालता सूत्रे ल प्रत्यय थाय पीतेवोलेवा क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी पीवलं रूप थाय. सं. पीत तेने चालता सूत्रे ल प्रत्यय थाय. कगचज ए सूत्रे पीअलं रूप श्राय. सं.अन्ध तेने चालता सूत्रे ल प्रत्यय थाय पनी अतःसे?ः ए सूत्रे अन्धलो रूप थाय. पक्ष सं. विद्युत् तेने द्यय्ययोजः अनादौ अंत्यव्यंजन अक्लीबेदीर्घः अंत्यव्यंज सूलुक् ए सूत्रोथी विज्जू रूप थाय. सं. पत्र तेने सर्वत्र अनादौ० क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी पत्तं रूप थाय. सं. पीत तेने कगचज० क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी पीअं रूप श्राय. सं. अन्ध तेने अतःसे?: ए सूत्रथी अन्धो रूप थाय. सं. यमल तेने आर्योजःए सूत्रे य नो ज श्रयो एटले जमल एवँ रूप संस्कृतप्रमाणे सिम जाणवू.१७३
गोणादयः॥१७॥ गोणादयः शब्दा अनुक्तप्रकृतिप्रत्ययलोपागमवर्ण विकारा बहुलं निपात्यन्ते ॥ गौः । गोणो। गावी ॥ गावः । गावी ॥ बलीवर्दः । बश्वो ॥ श्रापः। श्राऊ ॥ पञ्चपञ्चाशत् । पञ्चावला । पणपन्ना ॥ त्रिपञ्चाशत् । तेवमा॥ त्रिचत्वारिंशत् । तेथालीसा॥ व्युत्सर्गः। विऊसग्गो॥ व्युत्सर्जनं । वोसिरणं ॥ बहिर्मैथुनंवा । बहिका ॥ कार्य । णामुक्कसिधे क्वचित् । कल ॥ उहति । मुबह ॥ अपस्मारः। वह्मलो। उत्पलं। कन्हं ॥ धिधिक् । लिनि। हिछि॥धिगस्तु । धिरत्थु ॥प्रतिस्पर्धा। पमिसिद्धी । पाडिसिद्धी ॥ स्थासकः। चच्चिकं ॥ निलयः। निदेलणं॥ मघवान् । मघोषणो ॥ सादी । सक्खिणो ॥ जन्म । जम्मणं ॥ महान् ।
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मागधी व्याकरणम् महन्तो ॥ नवान् नवन्तो ॥ श्राशीः। श्रासीसा ॥ क्वचित् हस्यहुनौ । बृहत्तरं । वहुयरं । हिमोरः। निमोरो ॥ बस्यहुः । कुखकः । खुडु ॥ घोषाणामतनो गायनः। घायणो ॥ वडः । वढो ॥ ककुदम् ॥ उधं ॥ श्रकांमम् । अबकं ॥ लज्जावती । लजालुश्णी ॥ कुतूहलं । कड्डे ॥ चूतः। मायन्दो। माकंदशब्दः संस्कृतेपीत्यन्ये ॥ विष्णुः । नहि ॥ श्मशानम् । करसी। श्रसुराः । श्रगया ॥ खेलम् । खेड्डु ॥ पौष्पं रजः। तिङ्गिछि । दिनम् । श्रद्धं ॥ समर्थः । पक्कलो ॥ पणुकः । णेलको ॥ कपसिः। पलही ॥ बली। उजलो ॥ ताम्बूलम् । ऊसुरं ॥ पुंश्चली । बिबई ॥ शाखा । साहुली। इत्यादि । वाधिकारात्पदे यथादर्शनं गर्म इत्याद्यपि नवति ॥ गोला गोशावरी इति तु गोलागोदावरीच्यां सिकम् ॥ नाषाशब्दाश्च । श्राहिब । लबक । विकिर । पञ्च किया उप्पेहम ममप्फर । पडितिर । अट्टमह । विहमप्फम । अज्जब। हलफल इत्यादयो महाराष्ट्रविदर्नादि देशप्रसिझा लोकतोऽवगंतव्याः॥ क्रियाशब्दाश्च । श्रवयास । फुस्फुस । उप्फाले । इत्यादयः श्रतएव च कृष्ट-घृष्ट-वाक्य-विठस्-वाचस्पति-विष्टरश्रवस् प्रचेतस्-प्रोक्त-प्रोतादीनां विबादि प्रत्ययांतानां च अग्निचित्सोमसुत्सुग्ल सुम्खेत्यादीनां पूर्वैः कविजिरप्रयुक्तानां प्रतीतिवैषम्यपरः प्रयोगो न कर्त्तव्यः शब्दांत रैरेवतु तदर्थोऽनिधेयः । यथा कृष्टः कुशलः। वाचस्पतिर्गुरुः विष्टरश्रवा हरिरित्यादि ॥ घृष्टशब्दस्य तु सोपसर्गस्य प्रयोग इष्यत एव । मन्दर-यमपरिघट्ट । तदिवस-निदहाणङ्ग इत्यादि ॥ श्रार्षे तु यथादर्शनं सर्वमविरुदं । यथा। घट्टा मट्ठा । विजसा । सुअलकणाणुसारेण । वकन्तरेसु अपुणो इत्यादि ॥ १७ ॥
मूल भाषांतर. जेना प्रकृति मूलरूप प्रत्यय, लोप, आगम, अने वर्णविकार कहेवामां आव्या नथी एवा गोण विगेरे शब्दो विकल्पे निपात थाय ने. सं. गौः तेना' गोणो गावी एवां निपात रूप श्राय. सं. गावः तेनुं गावीओ निपात रूप थाय. सं. बलिवर्दः तेनुं बइल्लो रूप थाय. सं. आपः तेनुं आऊ रूप श्राय. सं. पञ्चपञ्चाशत तेना पश्चावण्णा अने पणपन्ना एवां रूप थाय.सं. त्रिपञ्चाशत् तेनुं तेवण्णा रूप थाय. सं. त्रिचत्वारिंशत् तेनुं तेआलीसा रूप धाय. सं. व्युत्सर्गः तेनुं विउसग्गो रूप
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द्वितीय पादः।
४२५ थाय. सं. व्युत्सर्जनं तेनुं वोसिरणं रूप थाय. सं. बहिमैथुनं वा तेनुं बहिडा रूप थाय. सं. कार्य तेनुं णामुक्कसिअं रूप थाय. सं. कचित् तेनुं कत्थई रूप थाय. सं. उद्वहति तेनुं उव्वहइ रूप थाय. सं. अपस्मारः तेनुं वह्मलो रूप थाय. सं. उत्पलं तेनुं कन्दुहं रूप थाय. सं. धिकाधिक तेनुं छिछि अने डिद्धि रूप थाय. सं. धिगस्तु तेनुं धिरत्थु रूप थाय. सं. प्रतिस्पर्धा तेना पडिसिद्धी पाडिसिद्धी रूप थाय. सं. स्थासकः तेनुं चच्चिकं रूप थाय. सं. निहलं तेनुं निहेलणं रूप थाय. सं. मघवान् तेनुं मघोणो रूप थाय. सं. साक्षी तेनुं सक्खिणो रूप थाय. सं. जन्म तेनुं जम्मणं रूप थाय. सं. महान् तेनुं महन्तो रूप थाय. सं. भवान् तेनुं भवन्तो रूप थाय. सं. आशीः तेनुं आसीसा रूप थाय. को ठेकाणे ह ने स्थाने डु अने भ थाय . जेम सं. वृहत्तरं तेनुं वड्डयरं रूप थाय. सं. हिमोरः तेनुं भिमोरो रूप थाय. ल्ल नो हु पण थाय. जेम सं. क्षुल्लकः तेनुं खुड्डुओ थाय. जे घोष ( नेहडा) नो आगल रहेनारो गायन (गवैयो) सं. गायनः तेनुं घायणो थाय. सं. वडः तेनुं वढो रूप थाय. सं. ककुदम् तेनुं ककुधं रूप पाय. सं. अकांडम् तेनुं अत्थकं वाय. सं. लज्जावती तेनुं लज्जालुइणी थाय. सं. कतूहलं तेनुं कहूं थाय. सं. यूतः तेनुं मायन्दो थाय.माकंद शब्द संस्कृतमां पण जे एम केटलाएक कहे . सं. विष्णु तेनुं भट्टिओ रूप थाय. सं. श्मशानम् तेनुं करसी रूप थाय. सं. असुराः तेनुं अगया रूप धाय. सं. खेलम् तेनुं खेडं रूप पाय. पौष्पं रजः (पुष्पy रज) तेनुं तिङिच्छि रूप पाय. सं. दिनम् तेनुं अल्लं रूप थाय. सं. समर्थः तेनुं पक्कलो रूप थाय. सं. पण्डकः तेनुं णेलच्छो रूप थाय. सं. कर्पासः तेनुं पलही रूप थाय. सं. वली तेनुं उज्जल्लो रूप थाय.सं. तांबूलम् तेनुं झसुरं रूप थाय. सं. पुंश्चली तेनुं छिछई रूप थाय. सं. शाखा तेनुं साहुली रूप थाय. इत्यादि जाणवू. मूलमां वा ( विकटप )नो अधिकार दे तेथी पदे दर्शन प्रमाणे सं. गौः तेनुं गउओ इत्यादि रूप श्रायः गोला अने गोआवरी ए बे शब्दो सं.गोला अने गोदावरी शब्दोमांथी सिद्ध थाय बे. जे नाषा शब्दो जे जेवा के, आहित्थ लल्लक्क विड्डिर पञ्चड्डिआ उप्पेहड मडप्फर पड्डिच्छिर अहम विहडप्फड अजल्ल हल्लप्फल इत्यादि शब्दो महाराष्ट्र अने विदर्भ विगेरे देशोमां प्रसिद्ध ने ते.
लोकथी जाणी लेवा. अने जे क्रिया शब्दो चे जेवा के, अवयासह फुम्फुल्लइ उप्फालेइ इत्यादि ते पण लोकथी जाणीलेवा एथीज जे कष्ट घृष्ट वाक्य विद्वसू वाचस्पति विष्टरश्रवस् प्रचेतस् प्रोक्त प्रोत विगेरे शब्दो तथा किप विगेरे प्रत्ययांत एवा शब्दो जेवा के, अग्निचित् सोमसुत् सुग्ल सुम्ल इत्यादि जे ने पूर्व कविए प्रयोगमां लीधा नथी ते बधानो प्रतीतिना विषमपणानोप्रयोग करवो नहीं पण बीजा शब्दोथी तेनो अर्थ कही बताववो. जेमके, कृष्ट एटले कुशल वाचस्पति एटले गुरु विष्टरवाः एटले हरि इत्यादि घृष्ट शब्दनो उपसर्ग साज प्रयोग वपराय जे. जेम-सं. मंदरतटपरिपृष्टं तेनुं मन्दर-तट-परिघट्ट एवं रूप थाय. सं. तद्दिवसनिघृष्टानंगा तेनुं तद्दिअसनिघट्ठाणङ्ग एवं थाय. आर्षमतमां तो सर्व प्रयोगो नियम प्रमाणे करवामां
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मागधी व्याकरणम्. बीलकुल विरोध नथी जेमके, सं. घृष्टाः तेनुं घट्ठा थाय. सं. मृष्टाः तेनुं महा थाय सं. विद्वांसः तेनुं विउसा थाय. सं. श्रुतलक्षणानुसारेण तेनुं सुअलक्खणाणुसारेण एवं रूप थाय. सं. वाक्यांतरेषु अपूर्णाः तेनुं वकन्तरेसु अपुर्णा एवं रूप थाय. १७४
॥ढुंढिका ॥ गोणा श्रादौ येषां ते गोणादयः गौः श्रनेन गोण इति निपातः श्रतः से?ः गोणो । गौः अनेन गाव इतिनिपातः अजातपुंसः डीप्रत्ययः । ई इति लोकात् अंत्यव्यंजनस्य सबुक् गावी गो १३ अनेन गाव थादेशः अजातपुंसः मी प्रत्ययः लोकात् स्त्रियामुदोतौ वा जस्स्थाने उंगावी । बलीवई अनेन बश्व श्रादेशः ११ अतः से?ः बश्रो । थापः अनेन श्राऊयादेशः १३ जसूशसूदीर्घः जस्शसोर्बुक् श्राऊ पंचपंचाशत् अनेन पंचावएणा पणपन्ना इतिनिपातः। त्रिपंचाशत् अनेन तेवमा निपातः। त्रिचत्वारिंशत् अनेन तेयालीसा। व्युत्सर्गः अनेन व्युस्थाने विज सर्ग-सर्वत्र रबुक् अनादौहित्वं ११ अतःसे?: विउसग्गो।व्युत्सर्जनं नोणः ११ क्वीबे सम् मोनु शेषं श्रनेन निपात्यते वोसिरणं। बहिस्तात् श्रथवा मैथुनं अनेन बहिसाइति निपातःबदिका।कार्य अनेन णामुकसिधे इति निपातः। णामुक्कसिधे । कचित् अनेन कब इति निपातः कवय। उहति अनेन निपातत्वात् श्रादौ म इति श्रागमः लोकात् कगटमेति दलुक् अनादौ हित्वं त्यादीनां तिस्थाने ३ मुव्वद । अपस्मार श्रनेन अपस्मारस्थाने वम्हलो । उन्मादरोग इत्यर्थः । नत्पल अनेन कन्फुट्ट इति निपातः । ११ क्लीबे स्म् मोनु० कन्छुढे । धिधिक्-श्रनेन विलि अथवा झिकि इति निपातः। धिगस्तु अनेन धस्य रः इतिनिपातः तस्य थोऽसमस्तस्तंबे वा स्तु थु अनादौ हितीयपूर्व ध त ११ अव्यय मुलुक धिरत्थु । प्रतिस्पर्धा सर्वत्र अनादौ वा प पा थात्यादौ डः ति डि अनेन निपातः पडिसिद्धी पामिसिसी । स्थासकः अनेन निपातः चच्चिकं । निलय अनेन निहेलण इति निपातः । मघवान् थनेन मघोणो इति निपातः । सादिन ह्रस्वः संयोगे सा स दः खः क्वचित्तु ऊठौ कस्य खः अंत्यव्यंग सूबुक् अनेन नकारनिपातः ११ श्रतः सेझैः स
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द्वितीयःपादः।
४२७ रिकणो । जन्मन् न्मोमः न्मस्य मः अनादौ हित्वं अनेन नस्थाने णनिपातः । अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व ख क ११ क्वीबे स्म् मोनु जम्मणं । महान् ह्रस्वः संयोगे हा ह अनेन निपातः११ श्रतःसे?ः महन्तो। नवान् ह्रस्वः संयोगे वा व शेषोनिपातः ११ अतः सेझैः नवंतो। श्राशिष्-शषोः सः शि सि ११ अक्कीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यंग स्कुक शेषमनेन निपातः आसीसा । बृहत्तरं । तोऽत् क्वचित् हस्य मो निपातः कगचजेति तलुक् अवर्णो अ य ११ क्लीबे सम् मोनु वहुयरं । हिमोरः क्वचित् हस्य नो निपातः निमोरः अतः सेझैः निमोरो। कचिल्बस्य मो निपात्यते कुबक-दस्य खः खु बस्य मोनिपातः श्रनादौ हित्वं कगचजेति क्लुक् ११ अतः सेझैः खुऽमर्ड गायनः घोषाणां घोषवर्णानां अग्रेतनो वर्णोच्चारगापनात् अनेन गास्थाने घानिपातः ११ श्रतः से?ः घायणो वम-अनेन मस्य ढो निपातः ११ अतः से?ः वढो । ककुदम् कगचजेति क्लुक् अनेन दस्य धो निपातः ११ मोनु० अंत्यव्यंजन सूलुक् कउधं । अकांमस्थाने अंबक इति निपातः। लजावती इत्यारन्य साहुली यावत् अनेन सूत्रेण निपातः पदे गो गव्यजश्रारं इत्यनेन गोस्थाने गत स्वार्थे कः ११ कगचजेति कबुक् श्रतः सेोंःगउठ। गोला गोदावरी कगचजेति दलुक ११ अंत्यव्यंग स्बुक् गोला गोश्रावरी थाहिका विलितः कुपितः श्राकुलो वा । लसकं नीष्मं विड्डिरः थानकः पञ्चड्डिया करितं । उप्पेहमं उनटं । मडप्फरो गर्वः पड्डिबिरः सदृक् अहिवरोऽनिकारोवा । थट्टमह ारवालं । विहाफमो व्याकुलः । अजावं हवः। हसप्फलो अनदः इत्यादि सावकाशं करोति ददाति वा सावकाशयति तस्य अवयास इत्यादेशः। फुस्फुल्ब जप्फालेश् उत्पाटयति कथयति वा । कृष्टः पंडितो वा कुशलः । मंदरतटपरिघृष्टं कगचजेति त्लुक् टोमः टस्य डः पड । परिपूर्वात् घृष्ट ष्टस्यानुष्टसंदष्टेतिष्टस्य ः अनादौ द्वितीयतुर्य पूर्वठस्य टः ११ क्लोबे सम् मोनु मंदरयडपरिघटं । तदिवसनिघृष्टानंगः कगचजेति चलुक् इतोऽत् । घृ घ खघथ घस्य हः ष्टस्यानुष्ट्रेति ष्टस्य ः। अनादौ द्वितीयतुर्य पूर्वठस्य टः नोणः तहि
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४२
मागधी व्याकरणम्. श्रसनिहट्ठाणङ्ग इत्यादि । आर्षे तु यथादर्शनं सर्वे प्रयोगा अविरुका एव यथा । घट्टा महा। विछस् आर्षत्वात् विउस इति निपातः १३ जस्शसूङसि दीर्घः । जसशसोच॑क् विउसा । श्रुतलक्षणानुसारेण सर्वत्र रवुक् शषोः सः शु सु कगचजेति तबुक् दः खःक्वचित्तुङको द ख अनादौ हित्वं द्वितीयतुर्य पूर्व ख क नोणःसुश्रलकणाणुसारेण ॥१७॥ टीका भाषांतर. जेमना प्रकृति, प्रत्यय, लोप, आगम अने वर्णविकार कह्या नश्री तेवा गोणादि शब्दोनो विकटपे निपात श्राय जे. गोण शब्द जेर्डमां आदि ने ते गोणादि कहेवाय. सं. गौः शब्द तेनो गोण एवो निपात थाय. अतःसे?ः ए सूत्रे गोणो एवं रूप थाय. पके सं. गौः तेने चालता सूत्रे गाव एवो निपात थाय. पनी अजातपुंसः ए सूत्रे डी प्र० आवे पनी लोकात् अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी गावी रूप थाय. सं. गो तेने चालता सूत्रे गाव आदेश थाय. पी अजातपुंस स्त्रियामुदोतौ वा अने जशू ने स्थाने ओ थाय एटले गावीओ रूप थाय. सं. बलीवर्द तेने चालता सूत्रे बइल्लो रूप थाय. सं. आपः तेने चालता सूत्रे आऊ आदेश थाय. पनी जशशस्दीर्घः जशशसोलंक एटले आऊ रूप थाय. सं. पंचपंचाशत् तेने चालता पंचावण्णा पणपन्ना एवो निपात थाय. सं. त्रिपंचाशत् तेने चालता सूत्रे तेवण्णा निपात श्राय. सं. त्रिचत्वारिंशत् तेने चालता सूत्रे तेआलीसा रूप थाय. सं. व्युत्सर्गः तेने चालता सूत्रे व्यु ने स्थाने विउ थाय. सं. सर्ग तेने सर्वत्र अनादौ० अतःसेझैः ए सूत्रोथी विउसग्गो रूप थाय. सं. व्युत्सर्जनं तेने नोणः क्लीये सूम् मोनु० ए सूत्रो लागी शेष रूपमां निपात थ वोसिरणं रूप थाय. सं. बहिमैथुनं तेनो चालता सूत्रे बहिडा निपात थाय. सं. कार्य तेनो चालता सूत्रे णामुक्कसिअं एवो निपात थाय. सं. क्वचित् तेनो चालता सूत्रे कत्थइ एवो निपात थाय. सं. उद्वहति तेने चालता सूत्रे निपात यश् प्रथम म एवो आगम थाय पी लोकात् कगटड अनादौ त्यादीनांक ए सूत्रोथी मुव्वहइ रूप थाय. सं. अपस्मार तेनो चालता सूत्रे वह्मलो एवो निपात थाय. तेनो अर्थ उन्मादरोग (वाइ-मूर्ना) एवो श्राय जे. सं. उत्पल तेनो चालता सूत्रे कन्डुट्ट एवो निपात थाय. पजी क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी कन्डुढे रूप थाय. सं. धिकधिक तेनो चालता सूत्रे छिछि अथवा हिद्धि एवो निपात थाय. सं. धिगस्तु तेने चालता सूत्रे ध नो र निपात थाय. पनी तस्यथोऽसमस्त० अनादौ० द्वितीयतूर्य अव्ययमलुकए सूत्रोथी घिरत्थु रूप थाय. सं.प्रतिस्पर्धा तेने सर्वत्र अनादौ थात्यादौ डः चालता सूत्रे निपात थाय एटले पडिसिद्धि पाडिसिही एवां रूप धाय. सं. स्थासक तेने चालता सूत्रे निपात श्रइ चच्चिकं एवं रूप थाय. सं. निलय तेने चाखता सूत्रे निहेलण एवो निपात श्राय. सं. मघवान् तेनो चालता सूत्रे मघोणो एवो निपात थाय. साक्षिन् तेने हवः संयोगे क्षःखः कचित्तुछझौ अंत्यव्यं० चालता सूत्रे न कारनो निपात थाय. नोणः अतः से?: ए सूत्रोथी सखिणो रूप थाय.सं. जन्मन्
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द्वितीयःपादः।
মহৎ तेने न्मोमः अनादौ चालता सूत्रे नने स्थाने ण निपात थाय. पनी अनादौ द्वितीयतुर्य० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी जम्मणं रूप थाय. सं. महान् तेने हवः संयोगे चालता सूत्रे निपात थाय अतःसे?: ए सूत्रोथी महन्तो रूप श्राय. सं. भवान् तेने हखः संयोगे बाकी चालता सूत्रे निपात थाय अने अतः से?: ए सूत्रोथी भवंतो रूप थाय. सं. आशिष् तेने शषोः सः अक्लीबे सौ दीर्घः अंत्यव्यं० बाकीचं रूप निपातथी सिघ श्रइ आसीसा एवं रूप थाय. सं. वृहत्तरं तेने ऋतोऽत् कोइ ठेकाणे हनो डो एवो निपात थाय. कगचज० अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी वड्डयरं रूप थाय. सं. हिमोरः तेने कोइ ठेकाणे हने स्थाने भ निपात थाय एटले भिमोर थाय. पनी अतः सेडोंः ए सूत्रथी भिमोरो रूप थाय. को ठेकाणे ल्लने स्थाने ड्डो निपात थाय सं. क्षुल्लक तेने क्षनो ख थाय. ल्लने स्थाने डो निपात थाय. अनादौ० कगचज० अतः सेोंः ए सूत्रोथी खुडओ रूप थाय, सं. गायन एटले घोषवर्णनो आगत अश् उच्चारनुं गायन करावनार तेने चालता सूत्रे गाने स्थाने घा निपात थाय. पनी अतः सेोंः ए सूत्रे घायणो रूप थाय. सं. वड तेने चालता सूत्रे डनो ढो निपात थाय. पनी अतःसेझैः ए सूत्रथी वढो रूप थाय. सं. ककुद तेने कगचज चालता सूत्रे दनो धो निपात थाय. मोनु० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी कउधं रूप थाय. सं. अकांड तेनो अत्थक्क एवो निपात थाय. सं.लज्जावती ए शब्दथी मांडीने साहुली शब्दसुधी था चालता सूत्रे निपात थाय ने ते मूलमांथी जाणी लेवा. पळे सं. गो तेने गव्यउआ ए सूत्रे गोने स्थाने गउ थाय पजी स्वार्थे क प्रत्यय आवे कगचज. अतः सेझैः ए सूत्रोथी गउओ रूप थाय. स. गोला अने गोदावरी तेने कगचज अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गोला गोआवरी एवां रूप थाय. नाषानो शब्द अहित्था तेनो अर्थ विलित, कुपित अथवा श्राकुल एवो थाय. नाषाशब्द लल्लक तेनो अर्थ नीष्मनयंकर एवो श्राय. नाषाशब्द विड्डिर तेनो अर्थ आनक (वाघ) एवो थाय. नाषाशब्द पञ्चड्डिआ तेनो अर्थ क्षरित एटले खरेलुं एवो थाय. जाषाशब्द उप्पेहड तेनो अर्थ उद्भट (उग्र) एवो थाय. नाषाशब्द मडप्फरो तेनो अर्थ गर्व एवो थाय. नाषाशब्द पड्डिच्छिर तेनो अर्थ सरखो एवो थाय. नाषाशब्द अंहिवच्छरो तेनो अर्थ अग्निकार थाय. नाषाशब्द अहमदं तेनो अर्थ आरवाल (आथो-क्वारो) थाय. जाषाशब्द विहडप्फडो तेनो अर्थ व्याकुल थाय. भाषाशब्द अज्जलं तेनो अर्थ हठ थाय. नाषाशब्द हल्लप्फलो तेनो अर्थ अनद थाय. इत्यादि जाणी लेवा. सं. सावकाशं करोति एटले अवकाशसहित करे वा दाति एटले अवकाश आपे ते सावकाशयति कहेवाय. तेने ठेकाणे अवयासइ एवो आदेश पाय. तेवी रीते फुम्फुल्लइ उप्फालेइ इत्यादि रूप जाणी लेवां. सं. कृष्ट एटले पंडित अथवा कुशल सं. मंदरतटपरिपृष्ट तेने कगचज टोडः ए सूत्रोथी मंदरयड एवं थाय. सं. परि उपसर्ग साथे घृष्ट एटले परिघृष्ट एवं रूप ने तेने ष्टस्यानुष्ट ०अनादौद्वितीयतुर्यक्लीबेसम्मोनु०ए सूत्रोथी मंदरतडपरिघ एबुं रूप थाय. सं. तहि वसनिघृष्टानंग तेने कगचज० ऋतोऽत्
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४३०
मागधी व्याकरणम्.
खघथ० ष्टस्यानुष्ट्र० अनादौ० द्वितीयतुर्य० नोणः ए सूत्रोथी तद्दिअसनिहट्ठाणङ्ग एवं रूप याय. आर्षमतप्रमाणे यथादर्शने सर्व प्रयोगो विरूद्ध ज बे. जेम-सं. घृष्टा तेनुं घट्टा ने सं. मृष्टाः तेनुं महा एवां रूप याय. सं. विद्वस् ते प्रयोगथी तेनो विउस एवो निपात थाय तेने जस्ास्ङसिदीर्घः जस्शसोलुक् ए सूत्रोधी विउसा रूप याय. सं. श्रुतलक्षणानुसारेण तेने सर्वत्रलुक् शषोः सः कगचज क्षःखः क्वचित्तुझछौ अनादौ० द्वितीयतुर्य० नोणः ए सूत्रोश्री सुअलक्खणाणुसारेण एवं रूप थाय ॥ १७४ ॥
अव्ययम् ॥ १७५ ॥ अधिकारोऽयम् । इतःपरं ये वक्ष्यन्ते थापादसमाप्तेस्तेऽव्ययसंज्ञा झायव्याः ॥ १७५ ॥
मूल भाषांतर. हवे अव्ययनो अधिकार चाले बे. अहींथी जे शब्दो कहवामां श्रवशे ते अव्ययसंज्ञिक जाणवा ॥ १७५ ॥
तं वाक्योपन्यासे ॥ १७६ ॥
तमिति वाक्योपन्यासे प्रयोक्तव्यम् ॥ तं तिस-वंदिमोक्खं ॥ १७६ ॥ मूल भाषांतर. तं ए अव्यय वाक्यना उपन्यासमां प्रयोजाय बे. जेम-सं. त्रिदशबंदिमोक्षः तेनुं तंतिअस-वंदि - मोक्खं ए रूप सिद्ध थाय.
॥ ढुंढिका ॥
त ११ वाक्योपन्यास ११ अव्ययस्लुक् त्रिदशवं दिमोक्षः सर्वत्र लुक् शषोः सः कः खः क्वचित्वकौ कस्य खः श्रनादो द्वित्वं द्वितीयतुर्य पूर्व खक ११ क्वीबे सम् मोनु० तंतिासवं दिमोकं समत्त तिलुक्के हि पसुलुद्धरणं सुद । श्रणुरा विधासी दुरकरकयदहमुहस्सवहं ॥ १ ॥
टीका भाषांतर. उतने स्थाने तं एवो अव्यय वाक्यना उपन्यासमां प्रयोजाय वे. उतने स्थाने अव्ययस्लुक् ए सूत्रे तं एवं रूप थाय. सं. त्रिदशबंदिमोक्षः तेने सर्वत्र शषोः सः क्षःखः कचित्तु अनादौ० द्वितीयतुर्य क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी तिअसर्वदिमोक्खं एवं रूप थाय समन्तति ए गाथा जाणवी ॥ १७६ ॥
आम अभ्युपगमे ॥ १७७ ॥
श्रामेत्यन्युपगमे प्रयोक्तव्यम् ॥ श्रामबदला वणोली ॥
मूल भाषांतर. आम ए अव्यय अंगीकार अर्थमां प्रवर्त्ते जेम सं. आम तेनुं आम एवं रूप याय. बहला एटले घाटी बनाली एटले वननी पंक्ति संवनाली तेनुं वणोली एवं रूप था. बधा वाक्यनो अर्थ एवो थाय के घाटी वननी पंक्ति अंगीकार करी ॥११७॥
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द्वितीयः पादः । ॥ ढुंढिका ॥
आम ११ अयुपगम ७१ अव्ययस्य सलुक् याम बदला ११ प्रत्यव्यं बदला वनाली नोणः प्रोदाल्यां पंक्तौ णो ११ अंत्यव्यंजनस्लुक् वणोaara afast वर्त्तते । अनेन वाक्येनान्यस्यांगी कारो ज्ञायते ॥ १७७॥
४३१
टीका भाषांतर. आम ए व्यय अंगीकार अर्थमां प्रवर्त्ते सं. आम तेने अव्ययस्य लुक् ए सूत्रोथी आम एवं रूप थाय. सं. बहला तेने अंत्यव्यं ए सूत्रे बहला रूप थाय. सं. वनाली तेने नोणः ओदाल्यांपंक्तौ अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी वणोली रूप याय. ते वाक्यनो अर्थ एवो याय के श्रावननी श्रेणी घाटी बे. या वाक्यथी अंगीअर्थ जाय बे ॥ १७9 ॥
कार
१७८ ॥
वि-वैपरीत्ये ॥ १७८ ॥ वीति वैपरीत्ये प्रयोक्तव्यम् || एवि हा वणे ॥ मूल भाषांतर. वि ए व्यय विपरीत अर्थमां प्रवर्त्ते बे. जेम - एवि हावणे ए वाक्यमां णवि ए विपरीत अर्थमा अव्यय वे हा ए खेद अर्थे श्रव्यय . सं. वने तेनुं वणे श्राय ॥ १७८ ॥
॥ ढुंढिका ॥
वि ११ वैपरीत्य ७१ वि ११ अव्यय० वि वन ११ नोणः डेम्मिडे: डिस्थाने डे ए मित्यं वणे । हा इति खेदे सा वने न जविष्यति इति वैपरीत्यं ॥ १७८ ॥
टीका भाषांतर. णवि ए अर्थ विपरीत अर्थमां प्रवर्त्ते गवि तेने श्रव्यय० ए सूत्रे वि एवं रूप श्राय. सं. वन तेने नोणः डेम्मिडे: डित्यं ए सूत्रोथी वणे एवं रूप थाय. हा ए व्यय खेद अर्थमां प्रवर्त्ते खेद थाय बे के, ते स्त्री वनने विषे हशे नहीं. अहीं विपरीत अर्थ बे. ॥ १७८ ॥
पुणरुत्त कृतकरणे ॥ १७९ ॥
पुनरुत्तमिति कृतकरणे प्रयोक्तव्यम् ॥ श्रइ सुप्पर पंसुलि बीसदे हिं अंगे हिं पुणरुत्तं ॥
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मूल भाषांतर. पुणरुत्तं ए अव्यय कृतकरण एटले करेलाने फरीवार कर एवा मां प्रवर्त्ते जेम सं. अयिस्खपिति पांसुलेनिःसहै: अंगैः पुनरुक्तं तेनुं "इ सुप्प पंलि सहेदिं पुरुत्त" एवं थाय. तेमां पुनरुतं ए कृतकरण ( पुनरुक्ति) अर्थमां बे.
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४३२
मागधी व्याकरणम्.
॥ ढुंढिका ॥ पुनरुत्तं ११ कृतकरण १ अध ११ कगचजेति यलुक् अव्यय स्खुक् अश् । निष्वपंक्शये । वप शषोः सः ष्व स्वप् वर्तमाने तिव् त्यादीनां ति क्यश्यति क्यप्रति सर्वत्र लुक् स्वपावुच्च स्वसु गमादीनां हित्वं प्प क्यस्य यबुक् व्यंजनाददंतेत् लोकात् सुप्पश्। पांशुला अजातपुंसः डी प्र० ईबुक् श्राबुक् लोकात् मांसादिष्वनुस्वारे ह्रस्वः संयोगे पा प शषोःसः शु सु आमंत्रणे स् दूतोह्रस्वः ली लि अंत्यव्यं सलुक् पंसुलि । निसहनिरोारबुक् बुकि निरः नी वादौ नीणी। णीसह इति साते रुरु जिनिसोहि हिंहिं निस्स्थाने हिं जिस्न्यस्सुपि ह हे पीसहि। अंग रुरु निस् निसोहि हिंहिं निस्स्थाने हिं । निसूज्यस्सुपि ग गे अंगेहिं । पुनरुक्त ११ अव्ययसबुक् अस्यार्थः अयि इति कोमलामंत्रणे हे पांसुले त्वं निःसहैः अंगैः वारंवारं स्वपिति ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. पुनरुत्त ए अव्यय कृतकरण एटले करेलाने फरीवार करवू एवा अर्थमां प्रवर्ते सं. अयि तेने कगचज अव्ययमलुक ए सूत्रोथी अइ एवं रूप थाय. सं. खपिति तेने ध्वम् एटले शयन करवू ए धातु . तेने शषोःसः वर्त्तमानेतिव त्यादीनांतिइ क्यश्यति स्वपावुच्च गमादीनां द्वित्वं क्यस्ययलक् व्यंजनाददंतेऽत् लोकात् ए सूत्रोथी सुप्पइ एवं रूप थाय. सं. पाशुला तेने अजातपुंसः ए सूत्र लाग्या पनी ई तथा आनोलुक् थाय. लोकात् मांसादिष्वनुस्वारे हृस्वः संयोगे शषो:सः आमंत्रणे स् ईदुतोहस्वः अंत्यव्यं० मुलुक ए सूत्रोथी पंसुलि रूप सिद्ध थाय. निर्-सह तेने निर्दुरोर्वारलुक लुक् श्रया पनी निनो नी थाय. वादी ए सूत्रे णीसह एवं रूप थाय पी तृतीयाना बहुवचननो भिस् प्रत्यय आवे पछी भिसोहि हिंहि भिसूभ्यस्सुपि ए सूत्रोथी णीसहेहिं एवं रूप थाय. सं. अंग तेने तृतीयानुं बहुवचन भिसू प्रत्ययलागे तेने भिसोहिहिहिं भिमभ्यस्सुपि ए सूत्रोथी अंगेहिं रूप पाय सं. पुनरुक्त तेने अव्यमूलुक् अने चालता सूत्रे पुनरुत्तं एवं रूप थाय. तेनो अर्थ एवो के, अयि कोमलामंत्रणे हे पांसुला-दूषित स्त्री, तुं सहन करी शके तेवा अंगोथी वारंवार सुवे ने ॥ १७ ॥
दन्दि-विषाद-विकल्प-पश्चात्ताप-निश्चय-सत्ये ॥ १७॥ हिन्दि इति विषादादिषु प्रयोक्तव्यम् । हन्दि चलणे ण सो ण माणि हन्दि हुऊ एत्ताहो हन्दि न होही नणिरी सा सिङार हन्दि तुह को ॥१॥ हन्दि । सत्यमित्यर्थः ॥ १० ॥
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द्वितीयःपाद
४३३. मूल भाषांतर. हन्दि ए अव्यय खेद, विकटप, पश्चात्ताप, निश्चय अने सत्य एटला अर्थमा प्रवर्ते बे. सं. हन्दि चरणे नतःसः न मानितः हन्दि नविष्यति इदानीम् हन्दि न वदिष्यति नणिरी सा स्वपिति । हन्दि चलणे तेनुं उपर प्रमाणे “ हन्दि चलणे " इत्यादि प्राकृत पाय ठे.
॥ढुंढिका ॥ हन्दि ११ विषादश्च विकल्पश्च पश्चात्तापश्च निश्चयश्च सत्यं च विषादविकल्पपश्चात्तापनिश्चयसत्यं तस्मिन् ७१ हन्दि ११ श्रव्ययं । चरणहरिसादौ सः र ल १ डेम्मिडे मिस्थाने डे डित्यं चलणे नम्- तप्र० मबुक् वादौ न ण कगचजेति लुक् ११ श्रतः से?ः ण । तद् ११ अंत्यव्यंग बुक् तदश्च तः सोऽक्कीबे त स श्रतः सेोःसो । न ११ श्रव्यय स्लुक् नोणः ण । मानितः नोणः कगचजेति तलुक् ११ अतः सेोः माणि । नू- स्यति मध्ये च खरांताछा स्यतिस्थाने जा अवित्तिहुः नू हु हु । श्दानी एण्हि ए त्तादे श्दानीमः इदानीं स्थाने एत्ताहे वदिष्यति स्थाने होहि त्यादीनां ति ३ बाहुलकात् पदयोः संधिर्वा इति एकपदेपि संधिः होही । नण शब्दे जण नणतीत्येवं शीलः तृन् शीलधर्मसाधुषु तृन् प्रत्ययः शीलाद्यर्थस्ये रः तृन् स्थाने रः लोकात् श्रजात पुंसः मीप्रत्ययः ई तिबुक् रस्य श्रबुक् । नणिरी। सा। निष्वदा स्नेहने ध्वद् षः सोष्टयः खिद् वर्तमाना ति त्यादीनां ति क्य श्यति य लोकात् सर्वत्र वबुक् खिदः दस्य ः सिजा। युष्मद् ६१ तुतुवतुमतुहतुष्माङऔ युष्मद् स्थाने तुह कार्यहस्वः संयोगे का क द्यय्यांजः यस्य जः अनादौ हित्वं ११ क्लीबेसम् मोनु० कऊं । हन्दि विषादे सचरणे पदे नतः तदान मानितः। स इदानीं कथयिष्यति न वा इति विकल्पः । सा नणनशीला न वा इति पश्चात्तापः। किं कथयिष्यति तदाह सा तव कार्ये स्वपिति सत्यं खेदं प्राप्नोतीत्यर्थः ॥ १० ॥ टीका भाषांतर. हन्दि ए अव्यय खेद विकल्प, पश्चात्ताप निश्चय अने सत्य अर्थमा प्रवर्ते . हन्दि ए अव्यय . सं.चरण तेने हरिद्रादौ लः डेम्मिडे डित्यं ए सूत्रोथी चलणे ए रूप सिद्ध थयु. सं.नम् धातुने त प्रत्यय आय. म् नो लुक् थाय पनी
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४३५
मागधी व्याकरणम् वादी कगचज अतः से? ए सूत्रोथी णओ ए रूप सिद्ध थयु. सं. तद् शब्द तेने अंत्यव्यंजन तदश्चतःसोऽक्लीबे अतः सेटः ए सूत्रोथी सो एवं थाय. सं. न अव्ययस्लुक नोणः ए सूत्रोथी ण थाय. सं. मानितः तेने नोणः कगचज० अत:से?: ए सूत्रोथी माणिओ एवं रूप थाय. सं. भू तेने नविष्यनो स्यति प्रत्यय आवे पी मध्ये च स्वरांतादा ए सूत्रे स्यतिने स्थाने ज थाय पनी अवित्तिहुः ए सूत्रे हुज एवं रूप श्राय. सं. इदानीम् तेने एम्हिएताहे इदानीमः ए सूत्रे तेने स्थाने एत्ताहे रूप थाय. वदिष्यतिने स्थाने होहि पनी त्यादीनां तिइ बाहुलकपद लश् पदयोः संधिर्वा ए सूत्रे एक पदमां पण संधि थप होही एवं रूप थाय. भण् धातु शब्दमां प्रवर्ते. लणवानुं जेने शील होय तेवा अर्थमां शीलधर्मसाधुषु ए सूत्रे तुन् प्रत्यय थाय. पली शीलाद्यर्थस्येरः लोकात् अजातपुंसः डित्यं ए सूत्रोथी भणिरी एवं रूप थाय. ष्वद् ए धातु पसीनोवलवामां प्रवर्ते. व्वद् तेने षःसोऽष्ट्यः वर्तमाना त्यादीनां तिइ क्य प्रत्यय आवे. लोकात् सर्वत्र वलुक स्विदः दस्य नः ए सूत्रोथी सिजइ रूप थाय. सं. युष्मद् तेने तुतुव० ए सूत्रे तुह थाय. सं. कार्य तेने इख: संयोगे द्यप्याजः अनादौ हित्वं क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कजं एवं रूप थाय. हन्दि ए अव्ययनो खेद अथेनुं उदाहरण- ते चरणमां नम्यो तो पण मान पाम्यो नहीं. विकल्पनुं उदाहरण- ते हमणा केहेशेके नहीं. पश्चात्ताप अर्थन उदाहरण- ते जणवाना शीलवाली के नहीं. सत्य अर्थ नुं उदाहरण- ज्यारे ते कार्य वखते सुई जाय रे त्यारे शुं कहेशे. अर्थात् सत्यरीते खेद पाम शे. ॥ १० ॥
दन्द च गृहाणार्थे ॥११॥ हन्द हन्दि च गृहाणार्थ प्रयोक्तव्यम् ॥ हन्द पलोएसु श्मं ।हन्दि । गृहाणेत्यर्थः॥ ११॥
मूल भाषांतर. हन्द अने हन्दि ए बे अव्ययो गृहाण अर्थमां वपरायचे. सं. हन्द प्रलोकख इमं तेनुं हन्द पलोएसु इमं एवं थाय. हन्दि एटले एवो अर्थ थाय. के, ग्रहण कर्य. ॥ ११॥
॥ टुंढिका ॥ हन्द ११ श्रव्यय० लोक्य दर्शनांकनयोः लोक् प्रपूर्वकः पंचमी स्नायुसुमुविध्यादिषु कस्मिसूयाणं स्वस्थानेसु व्यंजनात्लोकात् पंचमी शतृषु वा एव कगचजेति कबुक् सर्वत्र रबुक् पलोएसु । इदम् ६१ श्दम श्माश्दमः स्थाने श्म श्रबुक् मोनु० श्मं । इदं वसु विलोकयेत्यर्थः॥ टीका भाषांतर. हन्द अने हन्दि ए बे अव्ययो गृहाण ए अर्थमा प्रवर्ते. हन्द ए श्रव्यय . लोक् ए धातु दर्शन करवु अने आंकवु ए अर्थमा प्रवत्र्ते. लुक् धातुने प्र
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द्वितीयःपादः।
४३५ उपसर्ग श्रावे पनी पंचमीलादुसु० व्यंजना० लोकात् कगचज सर्वत्र ए सूत्रोथी पलोएसु ए रूप थाय. सं. इदम् शब्द तेने इदम अलुक मोनु० ए सूत्रोधी इमं एवं रूप थाय. तेनो एवो अर्थ थाय के, आ वसु अवलोकन कर्य. १०१
मिव पिव विव व व विथ श्वार्थे वा ॥१३॥ ए ते श्वार्थे अव्ययसंज्ञकाः प्राकृते वा प्रयुज्यन्ते ॥ कुमुझं मिव । चंदणं पिव । हंसो विव । सा थरो व खीरोयो । सेसस्स व निम्मो यो । कमलं विश्र । पदे । नीलुप्पल-माला श्व ॥ १२ ॥ मूल भाषांतर. मिव पिव विव व्व व विअ ए अव्ययो प्राकृतमां इव अर्थमा प्रवर्ते जे. जेम-सं. कुमुदं इव त्यां कुमुअं मिव एवं थाय. सं. चंदनं इव तेनुं चंदणं पिव एवं थाय. सं. हंस इव तेनुं हंसो विव थाय. सं. सागर श्व हीरोदः तेनुं साअरोव्व खीरोओ एवं श्राय. सं. शेषस्य इव निर्मोकः तेनु सेसस्स व निम्मोओ एबुं थाय. सं. कमलं इव तेनुं कमलं विअ एवं थाय. पदे सं. नीलोत्पलमाला इव तेनुं नीलुप्पल-माला इव एवं थाय. ॥ १३ ॥
॥ढुंढिका ॥ मिव पिवेत्यादि-कुमुद ११ कगचजेति दलुक् क्लीबे सम् मोनु कुमुअं व मिव- अव्यय. कुमुथ मिव । चन्दन- नोणः ११ क्लीबेसम् मोनु चंदणं पिव ११ श्रव्यय हंस ११ श्रतः सेझैः श्व स्थाने विव अव्ययम् हंसो विव । सागरः श्व श्रतः से?ः श्वस्थाने व अव्यय साथरोब तहत् दीरोदस्य खीरोयो । शेषं ६१ शषोः सः सेस ६१ सेसस्स श्व स्थाने व । अव्ययम् सेसस्स व निर्मोक मषश्चयाले रस्य मः कलुक् श्रतः सेोः निम्मोथो कंचुलिका- पदे नीलोत्पलमालाह्रस्वः संयोगे बुक् करोति तलुक् अनादौ हित्वं प्प ११ अंत्यव्यंजनस्य सबुक् नीबुप्पलमाला व ११ अव्यय. ॥ १२ ॥ टीका भाषांतर. मिव पिव विव व्व व विअ ए अव्ययो प्राकृतमां इव अर्थमां प्रवर्ते ने. सं. कुमुदं इव तेने कगचज क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कुमुअं एवं थाय. सं. इव तेनुं मिव थाय अने अव्यय ए सूत्रे मिव रूप थाय. सं. चंदनं तेने नोणः क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी चंदणं थाय. इव ने स्थाने पिव थई अव्यय ए सूत्र लागे. सं. हंसः अतः से?ः इव ने स्थाने विव श्राय. एटले हंसो विव एवं रूप थाय. सं. सागरः इव तेने अतः सेोंः इव स्थाने व्व अव्यय० ए सूत्रोथी साअरो व्व एवं रूप थाय. तेवीज रीते सं. क्षीरोद शब्दनुं खीरोओ थाय. सं. शेष तेने शषोः
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४३६
मागधी व्याकरणम् सः इवने स्थाने व थाय एटले सेसस्सव एवं रूप थाय. सं. निर्मोक तेने डषश्चमाले कलुक् अतः से?: ए सूत्रोथी निम्मोओ एवं रूप थाय. तनो अर्थ सर्पनी कांचती थाय . पदे सं. नीलोत्पलमाला इव तेने ह्रस्वः संयोगे कगचज अनादौ० अंत्यव्यंजन अव्यय ए सूत्रोथी नीलुप्पलमाला इव एवं रूप थाय. ॥ १२॥
जेण तेण लदाणे ॥२७३॥ जेण तेण इत्येतौ लक्षणे प्रयोक्तव्यौ ॥ नमर- रुयं जेण कमल-वएं । नमर- रुथं तेण कमल-वणं ॥ १३ ॥
मूल भाषांतर. जेण अने तेण ए बंने लक्षण अर्थमा प्रवर्ते जे. जेम- सं. भ्रमर रुतं येन कमलवनं तेनुं भमर- रुअं जेण कमल- वणं एवं रूप थाय. सं. भ्रमर रुतं तेन कमलवनं तेनुं. भमर-रुअं तेण कमल वणं एवं थाय. ॥ १७३ ॥
॥ ढुंढिका ॥ जेण तेण १२ लक्षण ७१ चमररुत- सर्वत्र रलुक् कगचजेति तयुक् जमर रुथं- जेण इति लक्षणे कमलवन- नो णः क्लीबे सम् मोनु कमलवणं ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. जेण अने तेण ए बे अव्ययो खदण अर्थमा प्रवर्ते जे. जेम- सं. भ्रमर रुतं तेने सर्वत्र कगचज ए सूत्रोथी भमर रुअं एवं रूप आय. अहीं जेण ए लक्षण अर्थमां ने. सं. कमलवनं तेने नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी कमल वणं एवं रूप थाय. ॥ १३ ॥
__ण चेअ चिअच अवधारणे ॥१४॥ एतेऽवधारणे प्रयोक्तव्याः ॥ गईए ण । जं चेथ मउलणं लोश्रणाणं । अणुबळं तं चित्र कामिणीणं ॥ सेवादित्वाद् द्वित्वमपि । ते च्चिय धन्ना। ते च्चेष सुपुरिसा । च्च । स च य रूवेण । सच सीखेण ॥१४॥
मूल भाषांतर. णइ चेअ चिअ च्च ए अव्ययो अवधारण अर्थमा प्रवर्ते जे. सं. गत्या एव तेनुं गई ए णइ थाय. सं. यस्मिन् एव तेनुं जं एय अने सं. मुकुलं तेनुं मउलणं थाय. सं. लोकानां तेनुं लोअणाणं थाय. सं. अनुवडं तत् एव तेनु अणुबद्धं तं चिअ एवं थाय. सं. कामिनीनां तेनु कामिणीणं एवं थाय. सेवादिगणमां ने तेथी विर्भाव पण थाय. जेम सं. ते एव धन्याः तेनुं ते चिअ धन्ना एवं थाय. ते एव सुपुरुषाः तेनुं ते चेअ सुपुरिसा एवं थाय. सं. स एवच रूपेण तेनुं स च य रूवेण एवं थाय. स एव शीलेन तेनुं सच सीलेण एq थाय. ॥ १४ ॥
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द्वितीयः पादः । ॥ ढुंढिका ॥
इत्यादि ७१ गति ३१ टाङस् टा स्थाने ए कगच जेति त्लुक् गए । इ श्रव्य यद् ७१ त्र्त्यव्यंजन स्लुक् वा खरेमःमश्चादम् श्रादेर्योजः य ज मोनु० जं चेा ११ श्रव्यय० मुकुल - जतो मुकुलादिष्वत् म कगचजेति कलुकू नोएः ११ क्वीबे सम् मोनु० मउलणं । लोक ६३ टा मोर्णः श्रम स्थाने जस् शस् ङसित्तोद्वामि दीर्घः जनाः जशू शसोर्लुक् कगचजेति कल्लुक् नोषः लोश्रणां । अबरू - नोषः क्लीवे सम् मोनु० अणुबद्धं अनुरागइत्यर्थः । तद्-अत्यः व्याश्वरे मदमसानु० तं चिछा ११ श्रव्यय० कामिनी ६३ टा श्रामोर्णः मस्थाने ण । नोणः कामिणीणं तद् १३ श्रतः सेर्मोः जस् जस् स्थाने ए इति डित्यं लोपः लोकात् जस्शसोर्लुक् ते चित्र | सेवाद वा द्वित्वं चि था । धन्य - अधोमनयां यलुक् श्रनादौ द्वित्वं १३ धन्ना । ते च्चेा सुपुरुष पुरुषेरोरुरि शषोः सः ष स १३ ङ सित्तो दीर्घः जस्शसोः र्लुक् सुपुरिसा । स च च कगचजेति चलुक्
वर्णो अ य ११ अव्यय सच्चय । रूप ३१ टा आमोणः टा स्थाने णः टाशस्येत् पा प पोवः रूवेण एवं सीले ॥ १८४ ॥
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४३७
टीका भाषांतर. णइ एअ चिअ च ए अव्ययो अवधारण अर्थमां प्रवर्त्ते बे. सं. गति तेने टाङडे कगचज ए सूत्रोथी गईए रूप याय. णइ ते अव्यय बे. सं. यदू 'तेने अंत्यव्यं० वा स्वरेमः पश्चादम् आदेर्योजः मोनु० ए सूत्रोथी जं एवं था चेअ एअव्यय बे . सं. मुकुल तेने उतो मुकुलादिष्वत् कगचज नोणः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी मउलणं एवं रूप थाय. सं. लोक तेने टा आमोर्ण: जशस्ङसित्तोद्रामि दीर्घः जश्ससोलुक कगचज नोणः ए सूत्रोथी लोअणाणं एवं रूप याय. सं. अनुबद्ध तेने नोणः क्लीबेस्म् मोनु० ए सूत्रोश्री अणुबई एवं रूप थाय. तेनो अर्थ अनुराग थाय बे. सं तद् तेने अत्यः व्याश्वरे प्रदद्मसानु० ए सूत्रोथ तं रूप याय. पिअ ए अव्यय बे सं. कामिनी तेने टा आमोर्ण नोणः ए सूत्रोथी कामिणीणं एवं रूप याय. सं. तद् तेने अतः सेर्डोः जस्स्थाने ए याय. अलोपः लोकात् जस्शसोलुक् ए सूत्रोथी ते थाय. चिअ अव्यय तेने सेवादौ वा ए सूत्रे चिअ थाय. सं. धन्य तेने अधोमनयां अनादौ ए सूत्रोथी धन्ना रूप थाय. ते चेअए व्यय बे . सं. सुपुरुष तेने पुरुषे रोरि शषोः सः ङस्ङसित्तो
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४३७
मागधी व्याकरणम्. दीर्घः जसशसोलुक ए सूत्रोथी सुपुरिसा एवुरूप थाय. च कगचज अवर्णो ए सूत्रे य थाय. ते अव्यय . सं. रूप तेने टा आमार्णः टाणशस्येत् पोवः ए सूत्रोधी रूवेण एवं रूप श्राय. एवीज रीते सं. शीलेन तेनुं सीलेण रूप श्राय. १७४।
बले निर्धारण-निश्चययोः॥१५॥ बले इति निर्धारणे निश्चये च प्रयोक्तव्यम् । निर्धारणे- बले पुरिसो धणं जयो खत्तिश्राणं ॥ निश्चये । बले सीहो । सिंह एवायं ॥१५॥
मूल भाषांतर. बले एवो अव्यय निर्धारण अने निश्चय अर्थमां प्रवर्ते निधोंरण- उदाहरण- सं. बले पुरुषः धनंजयः क्षत्रियाणां- तेनुं बले पुरिसो धणं जओ खत्तिआणं एवं रूप थाय. निश्चयनुं उदाहरण- सं. बले सिंहः तेनुं बले सीहो एवं थाय. एटले आसिंहज . ॥ १५॥
॥टुंढिका ॥ बले ११ निर्धारणं च निश्चयश्च निर्धारण निश्चयौ तयोः ६२ बले ११ अव्यय पुरुष पुरुषेरोरुरि शषोः सः ११ श्रतः सेर्मोः ए सूत्रोथी पुरिसो एवं रूप थाय. धनंजयः नोणः कगचजेति यलुक्ः श्रतः सेोः धणंजश्रो । क्षत्रिय- दः खः कचित् रखुक् अनादौ हित्वं कगचजेनि यबुक् ६३ टाधामोर्णः जसशस्ङसिदीर्घः खत्तियाण सिंह- विं शत्यादेर्युक् अनुह्वासिंद सि सी ११ अतः सेोः सीहो ॥ १५ ॥ टीका भाषांतर. बले ए अव्यय निर्धारण अने निश्चय अर्थमा प्रवर्ते. बले ए अव्यय . सं. पुरुष तेने पुरुष रोरूरि शषोः सः अतः से?ः ए सूत्रोथी पुरिसो एवं रूप थाय. सं. धनंजय तेने नोणः कगचज अतः सेोंः ए सूत्रोथी धणंजओ एवं रूप थाय. सं. क्षत्रिय तेने क्षः खः कचित् रलुक् अनादौ द्वित्वं कगचज. टा आमोणेः जसू शस् ङसि दीर्घः ए सूत्रोथी खत्तिआणं रूप श्राय. सं. सिंह तेने विंशत्यादेलुक् अनुहा सिंह० अतः सेोः ए सूत्रोथी सीहो रूप थाय. ॥२०॥
किरेर दिर किलार्थे वा ॥१६॥ किर र हिर इत्येते किलार्थे वा प्रयोक्तव्याः॥ कवं किर खर-हि अ । तस्स र । पिय-वयंसो हिर । पदे । एवं किल तेण सिविगए जणिया ॥१६॥
मूल भाषांतर. किर इर हिर एवा अव्ययो किल अव्ययना अर्थमां विकल्प प्रवर्त. सं. कट्यं किर खर हृदयः तेनुं कल्लं किर खर-हिअओ एवं थाय. सं. तस्य इर तेनुं तस्स इर एवं थाय. सं. प्रियवयस्यः हिर तेनुं पियवयंसो हिर एवं श्राय.
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द्वितीयःपादः।
४३॥ पहे सं. एवं किल तेन सविनया भणिताः तेनुं एवं किल तेण सिविणए भणिता एवं थाय. १७६
गाथा कद्धं रिर खर हिअ पविसही श्म उत्ति सुब यजणं मि तह वहनव व इति से, जहसे कवं विथ नहो ॥१॥
॥ढुंढिका ॥ किरेर हिर ११ किलार्थ- ७१ वा ११- किल इति संजावनायां कल्ये खर हृदयः प्रियः प्रविष्यति वलिष्यति इति जने श्रूयते हे जगवन् नितिशे त्वं तथा वयस्व यथा से तस्य जर्नुः कल्यं एव प्रजातमेव न जवति इत्यर्थः । कल्य ३१ सप्तम्यां द्वितीया १ अधोमनयां यजुक् अनादौ हित्वं मोस्य अबुक् मोनु कवं । किर ११ अव्यय० खर हृदय इत्कृपादौ हृहि कगचजेति दययोर्मुक् ११ श्रतः सेोः खरदि थर्ड । तद् ६१ उसस्स अंत्यव्यंजन बुक् तस्स र ११ श्रव्यय प्रियवयस्य सर्वत्र रखुक् वक्रादावंतः अनुस्वार- अधोमनयां यलुकू ११ अतः सेझैः पियवयंसो तेन नोणतेण स्वप्न ३ः स्वप्नादौ पन इति वि. लेषे न पूर्व ः। लोका त् पि सर्वत्र वलुक् कस्वाना स सि पोवः वि नोणः स्वार्थे कश्च वा कप्रत्ययः नणिता कगचजेतित्लुक्न णिश्रा ॥ टीका भाषांतर. किर इर हिर ए अव्ययो किल अव्ययना अर्थमा प्रवर्ते ते उपर कल्लंकिर ए गाथा . किल ए अव्यय संज्ञावनामा प्रवर्ते. हे भगवन् ए संबोधनजपरथी लेवू. तेनो अर्थ एवो थाय के, हे नगवन् तमे तेवीरिते वृद्धि पामो के जेश्री ते न
ने प्रजातज न थाय. सं. कल्य तेने सप्तम्याद्वितीया अधोमनयां अनादौ मोस्य अलुक् मोनु० ए सूत्रोथी कल्लं रूप थाय. किर ए अव्यय ने सं. खरहृद्य तेने इत्कृपादौ कगचज अतःसे?: ए सूत्रोथी खरहिअओ रूप थाय. सं. तद शब्द तेने ङसस्स अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी तस्स रूप श्राय. इर ए अव्यय . सं. प्रियवयस्य तेने सर्वत्र रलुक वादावंतः अधोमनयां अतः सेझैः ए सूत्रोथी प्रियवयंसो एवं रूप थाय. हिर ए अव्यय . पदे. एवं किल एम पण थाय. सं. तेन तेने नोणः ए सूत्रे तेण एवं रूप धाय. सं. खमक तेने इःस्वमादौ पून एवो विश्लेषकरी ननी पूर्वे इ आवे. पली लोकात् सर्वत्र कस्वनेना पोवः नोणः ए सूत्रो लाग्या पठी स्वार्थमां क प्रत्यय
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४०
मागधी व्याकरणम् . आवे पनी डेम्मिडे डित्यं कगचज ए सूत्रोथी सिविणए रूप थाय. सं. भणिता तेने कगचज ए सूत्रोथी भणिआ रूप थाय. ॥ १७६ ॥
णवर केवले ॥१७॥ केवलार्थे णवर इति प्रयोक्तव्यम् ॥ णवर पिया चिथ णिवमन्ति ॥
मूल भाषांतर. णवर ए अव्यय केवल अव्ययना अर्थमा प्रवर्ते. णवर ए श्रव्यय. सं. प्रियाः तेनुं पिआइं थाय. चिअए अव्यय . सं. भवंति तेनुं णिव्वडन्ति थाय. नावार्थ एवो बे के, ते निश्चे प्रियज थाय. १७
॥ ढुंढिका ॥ णवर- श्रव्यय केवल ७१ प्रिय- सर्वत्ररबुक् कगचजेति यलुक् जस् शस् इंश्णयः स प्राग् दीर्घः जस दीर्घश्च श्रश्रा पिथा। विथ ११ अव्यय नू- अंति पृथगस्यष्टति बडः नूस्थाने पिवड इति बहुष्वाद्यस्यतिने रे अन्तिस्थाने न्ति शिवमन्ति ॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. णवर ए अव्यय केवल अर्थमा प्रवर्ते. सं. प्रिय तेने सर्वत्र कगचज जसशस् इंइणय: जसई दीर्घश्च ए सूत्रोथी पिआई रूप थाय. विअ ए श्रव्यय सं. भूधातुने अंति प्रत्यय आवे पनी पृथगस्यणि व्विडःए सूत्रे सुने स्थाने णिव्वड एवो आ देश पाय. पनी बहुष्वाद्यस्य० ए मूत्रथी णिव्वडन्ति ए रूप थाय
आनंतर्ये वरि ॥१७॥ श्रानंतर्ये णवरीति प्रयोक्तव्यम् ॥ णवरि श्र से रहु-वश्णा ॥ केचित्तु केवलानन्तर्यार्थयोर्णवरणवरि इत्येकमेव सूत्रं कुर्वते तन्मते उनावप्युन्जयार्थों ॥ १७ ॥
मूल भाषांतर. णवरि ए अव्यय अनंतर अर्थमा प्रवर्ते. णवरि ए अव्यय . सं. तद्ने स्थाने से थाय. सं. रघुपतिना तेनुं रहुवइणा रूप थाय. अहिं केटलाएक "केवलानन्तर्यार्थयोर्णवरणवरि” एवं एकज सूत्र करे . तेऊना मतप्रमाणे तो ते बंने अव्यय बनेना अर्थमा प्रवर्ते. १५७
॥ ढुंढिका ॥ श्रानंतर्य ७१ णवरि ११ श्रव्यय तद् वदग्दोड सामन्यांसेसिम्मे ङस्सहित तद्रस्थाने से । रघुपति ३१ खघथधा घु हु पोवः कगचजेति तदुक् टाणशस्येत् टा णा रहुवश्णा ॥ १७ ॥
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द्वितीयःपादः।
४४१ टीका भाषातर. णवरि ए अव्यय अनंतर अर्थमा प्रवर्ते णवरि ए अव्यय ने सं. तद् तेने तदग्दो डसामभ्यां ए सूत्रे से रूप थाय. सं. रघुपति तेने खघथध पोवः कगचज टाण सस्येत् ए सूत्रोथी रहुवइणा ए रूप सिद्ध थाय. ॥ १७॥
अलादिनिवारणे ॥ १ ॥ अलाहीति निवारणे प्रयोक्तव्यम् ॥ अलाहि किंवा ऐण लेहेण ॥१॥
मूल भाषांतर. अलाहि ए अव्यय निवारण अर्थमा प्रवर्ते. अलाहि एअव्यय ने सं. वाचितेन लेखेन तेनुं वाइएण लेहेण ऐq श्राय. तेनो अर्थ ऐवो थाय ने ते लेख वांचवो नहीं.
॥ळढिका ॥ अलाहि ११ अव्यय निवारण ७१ वाचितेन कगचजेति चतयोचुक् नोणः वाश्ऐण लेखेन खघथा खे हे नोणः लेहेण वाचि तेन लेखेन किं सेखो न वाचनीय इत्यर्थः ॥ १नए॥ टीका भाषांतर.अलाहिऐ अव्यय निवारण अर्थमा प्रवर्ते सं. वाचितेन तेने कगचज नोणः ए सूत्रोथी वाइएण एवं रूप थाय सं. लेखेन तेने खघथ० नोणः ए सूत्रोथी लेहेण एवं रूप थाय. तेनो अर्थ एवो डे के, लेख वाचवो नहीं. ए निवारण अर्थ अयो.१७ए
अण णाई नञर्थे ॥१०॥ श्रण णाई इत्येतौ नमोऽर्थे प्रयोक्तव्यौ ॥ अणचिन्तिश्रममुणन्ती पाई करेमि रोसं ॥ १ ॥
मूल भाषांतर. अण णाई ए बेअव्ययो नञ् ( निषेध ) अर्थमा प्रवर्ते सं. अणचिंतितं अजानती तेनुं अणचिन्तिअममुणन्ती एवं रूप थाय. णाइं ए अव्यय ने सं करोमि रोषं तेनुं करेमि रोसं ऐq थाय.॥ १५ ॥
॥ढुंढिका ॥ श्रणणाई ११ अव्यय नञः अर्थः नञर्थः तस्मिन् अणचिंतित कगचजे तितबुक् ११ क्लीबेस्म मोनु अणचिन्तिअंगमुणंती अजानती झाश्रवबाधने झा शतृशानौ तशचं अत्शति झोजाणमुणा शास्थाने मुणश्रादेशः शत्रानशौ समाणौ श्रतः स्थाने तप्रत्यये मार्नवाईप्रणबुक् लोकात् अम् पूर्व अममुणंती णा ११ अव्यय कृ मिवू तृतीयमिः मिवस्थाने मिःवर्णस्यात् कृ कर व्यंजनात् लोकात् पंचमीशत्रुषु वा र रे करेमि शषोःस क्लीवे सूम् मोनु रोसं श्रहं रोषं न करोमीत्यर्थः॥१०॥
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मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. अणणाई ए अव्ययो नञ् ( निषेध ) अर्थमा प्रवर्ते श्रण ए अव्यय . सं. चिंतित तेने कगचज क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी अणचिन्तिअं एवं रूप थाय. सं. ज्ञा धातु जाणवामा प्रवर्ते तेने शतृशानौ० ज्ञोजाणमुणा पत्री ई प्रत्यय आवी अममुणन्ती एवं रूप थाय. णाई एअव्यय जे.सं.कृ धातुने मिव् प्रत्यय श्रावे पनी तृतीय मिः ऋवर्णस्यात् व्यंजनात् लोकात् पंचमी शतृषु ए सूत्रोथी करेमि एबुं रूप थाय. सं. रोषं तेने शषोःसः क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी रोसं एवं रूप श्राय. तेनो अर्थ एवो थाय के, हुं रोष करतो नथी. ॥ १० ॥
माइंमार्थे ॥१ ॥ माई इति मार्थे प्रयोक्तव्यम् ॥ माझंकाहीथ रोसं माकार्षीद् रोषम् ॥
मूल भाषांतर. माइं ए अव्यय मा ( निषेध ) अर्थमा प्रवर्ते माइं ए अव्यय वे. सं अकार्षीत् तेनुं भूतकाल अर्थमां काही रूप थाय. सं. रोषं तेनुं रोसं रूप थाय. तेनो एवो अर्थ श्राय के रोषने करवो नहीं. ॥ ११ ॥
॥ढुंढिका॥ माइं अव्यय मार्थ ७१ मा इति निषेधे कृ दिवसाहाही अजूतार्थस्य दिवू स्थाने हि श्रादेशः श्रात्तन्नो नूतनविष्यत्योश्च कृ का काहीश्र रोष- शषोः सः ११ क्लीबे सम् मोनु रोसं रोषं माकार्षीदित्यर्थः ॥११॥
टीका भाषांतर. माइं ए अव्यय निषेध अर्थमा प्रवर्ते सं. कृ धातुने कृदिवसाहाही आत्तनोभूतभविष्यत्योश्च ए सूत्रोथी काहीअ एवं रूप थाय. सं. रोष तेने शषोः सः क्लीवे सूम् मोनु ए सूत्रोथी रोसं एq रूप थाय. तेनो अर्थ एवो ने के रोष करवो नहीं. ॥ ११ ॥
दही निर्वेदे ॥२५॥ हकी इत्यव्ययमतऐव निर्देशात् हाधिक्शब्दादेशो वा निर्वेदे प्रयोक्तव्यम् ॥ हकी हकी दा धाह धाह ॥ १७ ॥
मूल भाषांतर. हद्धी ए अव्यय बे-एथीज एवा निर्देशथी हाधिक शब्दना श्रादेशमां विकटपे प्रवर्ते. सं. हाधिक तेर्नु हची हद्धी एवं रूप थाय. पदे हा धाह धाह एवां रूप पण थाय. ॥ १९ ॥
॥ ढुंढिका ॥ हळी ११ अव्यय निर्वेद ११ हाधिक हाधिक् असकृत्संज्रमे द्वित्वं अनेन हद्धी श्रादेशः हकीहकी पदेहा ११ श्रव्यय विधा- गतिणु
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द्वितीयःपादः।
४४३ योधात् पंचमीतबहुपुत्तहमेतहखोधावोर्बुक् बबुक् भृकृभूकनसानादे हि स्वोय थावर्थमोवयुष्मदिप्रत्ययेन वा हित्वं धाह धाह ॥ १७ ॥ __ हडी ए अव्यय निर्वेद (कंटालो) अर्थमा प्रवर्ते सं. हाधिक तेने संन्रम अर्थमां विनोव थाय एटले हाधिक हाधिक एम थाय. पनी चालता सूत्रथी हद्धी एवो आदेश थाय. पदे हा ए अव्यय . तेनां धाह धाह एवां रूप थाय. ॥ १५ ॥
वेवे जय-वारण-विषादे ॥ ११३॥ जयवारण विषादेषु वेवे इति प्रयोक्तव्यम् वेवेत्ति जये वेवेत्तिवारणे जूरणे अवेवेत्तिउवाविरीवि तुहं ववेत्ति मयच्छि किं णेअं ॥ किं उहावेन्तीए उथ जूरन्तीए किंतु जीयाऐ उवादिनीऐ वेवेत्ति हीए जणिशं न विम्हरिमो. ॥ १३ ॥
मूल भाषांतर. वेव्वे ए अव्यय भयवारण अने खेदअर्थमा प्रवर्ते वेव्वेत्ति ए गाथामां वेव्वेत्ति ए जयवारण अने खेदअर्थमां . तेनो अर्थ ढुंढिकामां विस्तारथी आपेलो . ॥ १३ ॥
॥ढुंढिका ॥ ववे ११ श्रव्यय० जयं च वारणं च विषाद श्च नयवारण विषादं त स्मिन् ७१ वेवेत्ति- श्रस्यार्थः हेमृगादि तव वेवे इति वारणे वर्त्तते वेवे इति जूरणे वर्तते विषादे वा वर्तते अत्र ववे इति शब्देन त्वया किमुक्तं तन्मया न ज्ञायते कथंनूतया उल्लापयंत्या मया किं ज्ञेयं वेवे इति खेदे वा वारणे इत्यर्थः अस्य साधनिका- वेवे ११ अव्यय श्हे तिश्ते स्वरांतस्य हिः इति श्लुक् ति नये वारणे वा खिद् परितापे खिद् खिद्यते इति वाक्ये करणाधारे अनट्रप्र० खिदेजूरदूत इत्यनेन खिद्रस्थाने जूर श्रादेशः बुक् अबुक लोकात् नोणः ७१ डेमिडे जूरणे शति सिहं च इति प्रकृतिः कगचजेति चलुक् अव्यय स्बुक् उबपतीत्येवंशीला तृन् स्वराणां स्वराः उबा अजाते पुंसः डीप्रण जबा विरीइवि । युष्मद् ६१ टामहरतुह षष्ठीसहितस्य युष्मदस्थाने तुह मृगादी इत्येत् तृन् इस्वः संयोगे गा ग कग वजेति लुक् अवर्णो श्र य बोऽदयादौ की बी। आमंत्र्य ११ अनादौ हिवं द्वितीयतु पूर्व उस्य च श्छुतौ हस्वः वि अंत्यव्यंग स्लुक् मयहि किम् ११ किमः कि
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मागधी व्याकरणम्. मस्थाने किम् मोनु किं । झेय नझोर्णः झे णे कगचजेति यबुक् ११ क्लीबे सम् मोनुण्णेयं। किंउहावे अस्यार्थः वेव्वेत्ति तया स्त्रिया जणितं तघ्यं न विस्मरामः तया कथंनूतया उन्हापयंत्या पुनः कथंग उत अथवा जूरंत्या खेदं कुर्वत्या पुनः किंजूतया पुनः उद्धटंत्या निषेध कुर्वत्या वा इत्यर्थः । अस्य व्युत्पत्तिः । किम् ११ अंत्यव्यंजन स्लुक् मोनु किं लप् वचने लप् उत्पूर्वः उहपतीति उलपंती शतृप्र० श्त् चुरादिन्यो णिव् इभिति वृद्धिः स खा लोकात् पिणे रदेदावं वापि प पोवः बजातपुंसः डीप्र० उत्पूर्व नमाणो अंतिस्थाने न्त ३१ टाङसो ३२ दादिदे धातु झसे टाए अंत्यव्यं० पल तलुक् अनादौ .हित्वं उबा वेत्तीए उत कगचजेति नबुक १९ श्रव्य उथ । खिद् परितापे खिद् शतृ श्रत्त श्रजातपुंसः डाप्र त् टाङसडेटाए खिदेजूरः खिदस्थाने जूरः नलेकेरस्य श्रबुक् लोकात् जू लोकात् जूरंतीए । जीत ३१ टडसडे टास्थाने ए कगचजेति त्लुक् जीयाए । उद्पूर्व वद् परिजाषणे वद् उहदतीत्येवंशीला उद् शतृशील तृन् प्र० स्वराणां स्वरा वा अजातपुंसः डीप्र० शीलाद्यस्येर तृन् स्थाने फकरः लोकात् टोडः श्रासंतव्यं उत त्बुक् अनादौ हित्वं वा लुक् रास्य श्रबुक् लोकात् रीश टामस्डे पटाए जवामिरीए वेवे ११ अव्यय सयुक् इति श्तैस्वरात्तस्य छिः श्बुक् तस्य हित्वं त्तवद् अंत्यव्यं० दबुक् कियत् तदोस्यमामि डी प्र० बुक् तस्य अलुक् लोकात् १३ टामसमेटाए तीए । नणित ११ कगचजेति तलुक् अमोऽस्य अलुक् मोनु नणिरं न ११ अव्ययण विपूर्वः स्मृ स्मरणे- स्मृस्थाने विम्हरव मस् तृतीयस्य मोनु मस् स्थाने मो व्यंजनाददंतेऽत् इदमोमुने मुमो अनस्थाने श्बुक् रस्य लोपः लोकात् विम्हरिमो ॥ १३ ॥
टीका भाषांतर. वव्वे ए अव्यय नय, वारण अने खेद अर्थमा प्रवर्ते. वेन्वेति ए गाथानो अर्थ आप्रमाणे हे मृगाही, ते वेव्वे ए पद कह्यु, ते वारण अर्थमां . वा जय के खेद अर्थमां ? ते मारा जाणवामां आवतुं नथी. तुं केवी बुं के जे उबाप करनारीचं. था गाथानी साधनिका कहे -वेव्वे ए अव्यय बे. इति शब्दने इहेति स्वरांतस्य श्लुक् ए सूत्रोथी त्ति एq रूप थाय. ते जयके वारण अर्थमां प्रवते. खिद
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द्वितीयः पादः ।
४४५
०
ए धातुखेद करवानार्थमां प्रवर्त्ते. खिद् धातुने करणाधारे ए सूत्रथी अनट् प्रत्यय वे. पखिर्जूर अलुक् लोकात् नोणः डेभिडे ए सूत्रोथी जूरणे रूप याय. च ए व्यय वे तेने कगचज अव्यय ए सूत्रोथी अ रूप थाय. उम्लाप करवाना शीलवाली ते तेने उत् उपसर्ग लप् धातु तेने तृन् प्रत्यय वे पढी स्वराणां स्वराः अजातपुंसः ए सूत्रोथी उल्लाविरीइवि रूप श्राय. सं. युष्मद् तेने टाडहरतुह ए सूत्रे तुह आदेश थाय. सं. मृगाक्षी तेने ऋत्येत् तृन् ह्रस्वः संयोगे कगचज अवर्णो छोSक्ष्यादी आमंत्र्य अनादी० द्वितीयतुर्य० इदुतौ हस्व: अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी मच्छि रूप याय. सं. किस शब्द तेने किमः मोनु० ए सूत्रोथी किं रूप थाय. सं. ज्ञेय तेने नज्ञोर्णः कगचज० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी एं रूप याय. किंडलावे ए गाथानो अर्थ प्रमाणे वे. ते स्त्रीए जे कह्युं, ते एमे विस्मरण थया नथी. ते केवी बे के जे उल्लाप करे बे. अथवा जे खेद करे बे. वली जे निषेध करे बे. आगाथानी व्युत्पत्ति श्राप्रमाणे बे सं. किम् शब्द तेने अंत्यव्यं मोनु० ए सूत्रोथी किं रूप याय. लप धातु बोलवाना मां प्रवत्ते. तेने उत् उपसर्ग श्रवे एटले जे जलाप करे ते तेने शतृ प्रत्यय यावे इत्युरादिभ्यो० इञितिवृद्धि लोकात् णेरदादावापि पोवः अजातपुंसः टाडसोकरदादिदे० अंत्यव्यंज० अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोथी उल्लावेत्तीए एवं रूप थाय. सं. उत तेने कगचज अव्यय ए सूत्रोथी जव रूप याय. खिए धातु परिताप अर्थमां प्रवत् खिद् धातुने शतृ प्रत्यय यावे पबी अजातपुंसः डी० [टाङ डेटा खिदेर्जूरः नलेके रस्य लोकात् ए सूत्रोथी जूरंतीए एवं रूप याय. सं. भीत तेने टडसडे० कगचज० ए सूत्रोथी भी आए रूप थाय. उत् उपसर्गसाथे बद् ए धातु बोलवाना मां प्रवते. उदद् तेने शील अर्थमां तृन् प्रत्यय वे पढी स्वराणां स्वराः अजातपुंसः डीप्र० शीलाद्यस्पेर् लोकात् टोडः ए सूत्रोथी भी आए रूप याय. उत तेने लुक् अनादौ० वालुक रास्य अलुक् लोकात् टाङसङे ए सूत्रोघी उव्वाडिरीए रूप थाय. वेव्वे ए अव्यय बे. इति शब्दने इत्ये स्वरात्तस्य द्विः इलुक् ए सूत्रोथी त रूप आय. वद् तेने अंत्यव्यं ● कियत् तदोस्य डीप्र० तस्य अलुक् तदोस्यमामि ए सूत्रोथी तीए रूप याय. सं. भणित तेने कगचज अमोsस्य मोनु० ए सूत्रोथी भणिअं रूप याय. न ए काव्यय बे. तेनुं अ एवं रूप थाय. विउपसर्ग सा स्मृ धातु स्मरण अर्थमा प्रवर्त्ते. तेने विम्हरव मस् तृतीयस्य मोनु० मोव्यंजना दर्दतेऽत् इदमोमुने इलुक् लोकात् ए सूत्रोधी विम्हरिमो रूप याय. १९३ वेव्व च आमंत्रणे ॥ १९४ ॥
०
वेव्व वेव्वे च श्रमंत्रणे प्रयोक्तव्ये ॥ वेव्व गोले । वेव्वे मुरन्दक्षे वदसि पाणि ॥
मूल भाषांतर. वेव्व अने वेब्वे ए वे अव्यय आमंत्रण अर्थमां प्रवर्त्ते बे. वेव्व ए श्रव्यय . सं. गोली तेनुं संबोधन गोले थाय बे. वेब्वे ए व्यय बे. मुरन्दले
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४४६
मागधी व्याकरणम्. ए संबोधन ने. सं. बहसि पानीयं तेनुं बहसि पाणिअं एवां रूप थाय. तनो अर्थ एवो ने के, हे मुरंदला, तुं जल वहे . ॥ १४ ॥
॥ढुंढिका ॥ वेब- अव्यय च ११ आमंत्रण ७१ गोली ११ वापएचं ली ले अंत्य व्यंज सबुक् एवं मुरन्दले वह प्रापणे व वर्तमाना सिप्र द्विती यस्य सिसेसे- सिवूस्थाने सि व्यंजनात् लोकात् वहसि।पानीय-पानीयादिष्वित् नी नि नोणः कगचजेति यबुक् ११ क्लीबेसम् मोनुण पाणिशं
दीका भाषांतर. वेव्व अने वेव्वे ए बे अव्यय आमंत्रण अर्थमा प्रवर्ते. सं. गोली तेने वापएचं अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी गोले रूप थाय. एवीरीते मुरन्दले ए रूप पण थाय. सं. वह धातु वहन करवाना अर्थमा प्रवर्ते. वद् धातुने वर्तमाना सिप्रत्यय थाय. द्वितीयस्य सिसेसि व्यंजनात् लोकात् ए सूत्रोथी वहसि एवं रूप घाय. सं. पानीय तेने पानीयादिष्वित् नोणः कगचज० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पाणिअं रूप थाय.॥ १४ ॥
मामि दला दले सख्या वा ॥१५॥ एते सख्या श्रामंत्रणे वा प्रयोक्तव्याः॥ मामि सरिसरकराणवि ॥ पण वह माणस्स हला॥हले हयासस्स पदे सहि एरिसि चिथ गई॥
मूल भाषांतर. मामि हला अने हले ए अव्ययो सखीने आमंत्रण करवाना श्रर्थमा प्रवत्ते. मामि ए अव्यय . सं. सदृशाक्षराणांअपि तेनुं सरिसक्खराणवि एवं रूप थाय. तेनो अर्थ एवो थाय ने के, हे सखी, सरखा अक्षरोनो पण सं. प्रणम तेनुं पण थाय. सं. वहमानस्य तेनुं वहमाणस्स थाय. हले अव्यय ब. सं. हताशस्य तेनुं हयासस्स एवं रूप थाय. पदे सं. सखि ईदृश्येव गतिः तेनुं एरिसि चिअ गई एवं श्राय. ॥ १५॥
॥टुंढिका ॥ मामि- अव्यय० हला, अव्यय हले, अव्यय सखी ६१ वा अव्ययम् तद्गाथा यथा- मामि सरिसक्खराणवि अस्थि विसेसो पयप्पि अव्वाण नेहनरियाण श्रन्नो श्रवराह नरिाण १ अस्यार्थःहे मामि- हे सखि- सदृशादराणामपि वचनानां विशेषोस्ति स्नेह नृतानां वचनानां अन्ये विशेषा अपरोधभूतानां वचनानां विशेषा अन्य एव इति गाथार्थः । सखी अनेन मामि श्रादेशः ११ श्रव्यय
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द्वितीयःपादः।
४४७ सदृशाक्षराणामपि दृशः विप टक् सक् रि इस्वः संयोगे शाश शषोः सः दः खः कचितु बजौ खः अनादौ हित्वं द्वितीयतुर्य पूर्व ख क पो वः पदादपेर्वा अपेः अबुक् टा श्रामोर्णः श्रामस्थाने नोणः सरिसक्खराणवि । पण वह माणस्स हला- हे सखि पूयमानं प्रणमणम् प्रहाने णम् पीठे धात्वादेो नः नमपत बहुषु तु हमो तस्याह प्रपूर्वः रुदनमोर्वः मव् व्यंजनात् लोकात् सर्वत्र प्रस्य रबुक् नोणः पण । वहमान-१ क्वचिद् द्वितीयार्थे ङस् ङसः स्स नोणःमाणस्स । सखी अनेन सखीस्थाने हला ११ अव्यय० तपरि गाथा यथाअशेको विसहावो वम्महसि हिणो हले हयासस्स। विजा नीरसाणं हिथए सरमाण पङालए ॥१॥ हेसखि- मन्मथ एव शिखी वन्दिः तस्य मन्मथ शिखिनः हताशस्य निंद्यस्य अन्यखनावत्वमेव प्रकटयति। नीरसानां हृदये विध्याति सरसानां हृदये प्रज्वलति। अन्यस्तु वन्दिः नीरसस्थाने निर्जलप्रदेशे प्रज्वलति । सरसस्थाने सलिलप्रदेशे विध्याति कंदर्याग्निः ततो विपरीत इति गाथार्थः १ सखि इत्यस्य स्थाने अनेन हले इत्यादेशः । हताशस्य कगचजेति तलुक् अवर्णो श्र य शषोः सः उसस्स स्य स्स हयासस्स । पदे । सहि एरिसि चिथ गई। मारुव्वउत्सवतंसवलिय मुदचंदं । एयणव्वालवालुंकिंतं तु कुमिला ण पेमाण ॥ १ ॥ अस्यार्थः- हेसखि, एतेषां प्रेम्णः गतिरीहश्येव । अस्तवलित सुचंडं यथा स्यात्तथा नवती मा रोदितु कथंनूतां प्रेम्णा बालविलुकितं कुटिलानां बालवालकि चिर्नटितं तु वक्राणां कोर्थः सखी सखी वक्ति- हेसखि मुखचंझंवक्रीकृत्य रोदनं कुतः क्रियते प्रेम्णांगति स्तु दृशी वर्त्तते इति नावार्थः । ईदृशी एव-एत्पीयूषापीड बिनीतकाक्रीड कीदृशे ई एदृशः किपटक सट्टरि शषोः सः शीसीणश्वे अवि अब्धि अवधारणे एव स्थाने चश्र सेवादौ द्वित्वं चचि हवः सं. योगे सी सि एरिसिवि- श्रागति ११ कगचजेति तबुक् अंत्यव्यंजन स्बुक अक्लीबे दीर्घः गई. ॥१५॥
टीका भाषांतर. मामि हला अने हले ए श्रव्ययो संबोधन अर्थमां विकटपे प्रवर्ते. मामि सरिसक्ख० ए गाथानो अर्थ श्राप्रमाणे बे-हे सखी, सरखा अक्षरवालां
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मागधी व्याकरणम्. स्नेह नरेलां वचनोना विशेष जुदां ने अने अपराधे नरेला वचनोना विशेष जुदा ने. सं. सखी शब्दने स्थाने मामि आदेश थयो बे. मामि ए अव्यय ने. सं. सदृशाक्षराणामपि दृश धातुने क्विपू प्रत्यय आवे पछी टक् सक श्रश् दृनो रि थाय. पनी इस्वः संयोगे शषोः सः क्षः खः कचितु छझौ अनादौ द्वितीयतुर्य० पोवः पदादपेर्वा टा आमोर्णः नोणः ए सूत्रोथी सरिसरकराणवि रूप थाय. सं. हे सखी प्रणामकर्य. सं. नम् धातु नमवाना अर्थमा प्रवर्ते. नम् धातुने पीठे धात्वादेोनः नमपत बहुषु प्र उपसर्ग पूर्वे आवे रुद् नमोवः व्यंजनात् लोकात् सर्वत्र नोणः ए सूत्रोथी पण रूप श्राय. सं. वहमान तेने कचिद्वितीयार्थे ङस् प्रत्यय आवे ङ्सस्स नोणः ए सूत्रोथी माणस्स रूप. थाय. सखी ए संबोधनने स्थाने हला थाय. हला
अने हले ए अव्ययो बे. तेजपर अशेको ए गाथा बे. तेनो अर्थ आ प्रमाणे . निंद्य स्वजाववालो एवो कामदेवरूपी अग्नि . तेनो जुदो जुदो स्वनाव प्रगट करे बे. ते कामदेवरूप अग्नि रसरहित एवा लोकोना हृदयमा बुझाइ जाय बे. अने रसिक लोकोना हृदयमां प्रज्वलित थाय . जगतमां बीजो अग्नि के ते नीरस-निर्जल स्थानमा प्रज्वलित थाय . अने सरस-सजल स्थानमा बुझाइ जाय . अने श्रा कामदेव रूप अग्नितो तेथी विपरीतज बे.सखीने ठेकाणे हले एवो आदेश श्राय. सं. हताशस्य तेने कगचज अवर्णो शषोः सः ङ्सस्स ए सूत्रोथी यासस्स एवं रूप थाय. पदे सहिएरिसि गाथानो अर्थ आप्रमाणे बे. हे सखी, तेना प्रेमनी गति वीज . वली हेसखी तुं तारामुखचंजने वांको करी शामाटे रोदन करे बे ? प्रेमनी गतितो एवीज . सं. ईदशी एव तेने एत्पीयूषापीड० दृशः किए सक् शषोः सः ए सूत्रोथी एरिसि एवं रूप थाय. सं. एव तेने विअ आदेश थाय. पनी सेवादौ० हस्वः संयोगे ए सूत्रोथी चिए एवं रूप थाय. सं. गति तेने कगचज अंत्यव्यंजन अक्कीबे दीर्घः ए सूत्रोथी गई एवं रूप थाय. ॥ १५ ॥
दे संमुखीकरणे च ॥१६॥ संमुखीकरणे सख्या आमंत्रणे च दे इति प्रयोक्तव्यम् ॥ दे पसिथ ताव सुंदरि ॥ दे था पसिब नियत्तसु ॥
मूल भाषांतर. सन्मुखी करवामां अने सखीना आमंत्रणमां दे एवो अव्यय प्रवर्ते दे ए अव्यय सं. प्रसीद् तेनु पसिअ एवं रूप थाय. सं. तावत् तेनुं ताव रूप थाय. सुंदरि ए संबोधन. तेनो अर्थ एवो के, हे सुंदरी, प्रथम तुं प्रसन्नथा. दे ए अव्ययजे. आ ए पण अव्यय. सं. प्रसीद तेनुं पसिअ रूप थाय. सं. निवतस्व तेनुं निअत्तसु एवं थाय. "हे सखी तुं प्रसन्नथा अने निवृत्तथा.” एवो तेनो अर्थ थायः॥१६॥
॥ ढुंढिका ॥ दे श्रव्यय० ११ संमुखीकरण ७१ च अव्यय ११ दे इति संमुखीकरणे
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द्वितीयःपादः।
भए हे सुंदरित्वं प्रसीदेत्यर्थः । श्रव्यय सबुक् संप्रसीद सर्वत्ररलुक् पानी यादिवित् सी सि कगचजेति दबुक् पसिथ । तावत् ११ अंत्यव्यंग त्लुक् अव्ययस्लुक् ताव । दे इति सख्यामंत्रणे था इति संबोधने हे सखित्वं प्रसीद निवर्तस्वेत्यर्थः पसिथ पूर्ववत् । वृत्तुङवर्त्तने वर्त्त स्वप्र० निपुर्वः दूसुमुविध्यादिथे कस्मिन्त्रयाणं । स्त्रीसुव्यंजनात् वृ व कगच जेति वबुक् श्रनादौहित्वं त्त नियत्तसु ॥ १६ ॥
टीका भाषांतर. दे ए अव्यय संमुखीकरण अने सखीना आमंत्रणमा प्रवर्ते. अहीं दे ए अव्यय संमुखी करणमांजे. "हे सुंदरी, तुं प्रसन्नथा.” एवो अथे थाय. सं. प्रसीद तेने सर्वत्र पानीयादिष्वित् कगचज. ए सूत्रोथी पसिअ एवं रूप थाय. सं. तावत् तेने अंत्यव्यं० अव्ययसूलुकू ए सूत्रोथी ताव एवं रूप थाय. बीजावाक्यमां दे ए अव्यय सखीना आमंत्रणमां. आ ए संबोधनमा प्रवर्ते तेनो अर्थ एवो के, हे सखी, तुं प्रसन्न था अने निवृत्त था. सं. प्रसीद तेनु. पसिअ एवं रूप पूर्व प्रमाणे थाय. वृत् ए धातु वर्त्तवामा प्रवर्ते. सं. वृत् तेने नि उपसर्ग पूर्वे श्राय. पनी हूसुमुविध्यादि व्यंजनात् कगचज अनादौ ए सूत्रोधी निअत्तसु एq रूप धाय.॥१६॥
हुंदानपृच्चगनिवारणे ॥१७॥ हुँ इति दानादिषु प्रयुज्यते ॥ दाने। हुं गेएह अप्पणो चिथ ॥ पृछायाम् । ढुं साहसु सब्जावं ॥ निवारणे । हुँ निवज समोसर ॥
मूल भाषांतर. हुं ए अव्यय दान, प्रश्न अने निवारण अर्थमा प्रवर्ते जे. दान अर्थन ऊदाहरण. सं. हुं गृहाण स्वयमेव तेनुं हुं गेएह अप्पणो चिन तेनो अर्थ या प्रमाणे तुं तारा पोतानुज ग्रहण कये. प्रश्न अथेनुं उदाहरण सं. हुं कथय स दुलावं तेनुं हुं साहसु सब्भावं तेनो अर्थ आप्रमाणे तुं तारा सजावने कहीश ? निवारण- उदाहरण सं. हुं निर्लज्ज समपसर तेनुं हुं निल्लज समोसर एवं थाय. तेनो अर्थ आप्रमाणे. हे निर्लज्ज, तुं अहीं चाह्योजा. ॥ १९ ॥
॥ढुंढिका ॥ हुँ ११ श्रव्यय दानं च पृना च निवारणं च दानडा निवारणं तस्मि न ७१ हुँ इति दाने अव्ययम् ग्रह श्रादाने ग्रहगुहोबलोएहः ग्रहस्थाने एहः पचमी हहुसुमुहिसु व्यंजनात् अतश्ज खिजा हु बुकएदस्य अलोपः लोकात् गेह्न स्वयं स्वयमोऽर्थे अप्पणो नवा स्वयम् स्थाने अप्पणो । कथण कथेवीऊरोप्पाल कथणस्थाने सोह पंहिहुसुमुहिसु
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मागधी व्याकरणम्. साहुसु । सदनाव कगटडेति दबुक् अनादौ हित्वं द्वितीयतुर्य पूर्वज स्य ब ११ क्लीबेसम् मोनु सन्नावं । समपसर अवापोते अपेतश्रह उकार मो समोसर ॥ १७ ॥
टीका भाषांतर. हुं ए अव्यय दान, पृच्छा अने निवारण अर्थमा प्रवर्ते. अहीं हुं ए अव्यय दानमां ने. ग्रह ग्रहणकरवु ए धातुने ग्रहगुहो वल्मेण्हः पंचमी हहुसुमुहिसु व्यंजनात् अतइजखिजहुजे लोकात् ए सूत्रोथी गेल एवं रूप थाय. सं. खयं तेने स्वयमोर्थअप्पाणोनवा ए सूत्रथी अप्पणो एवं रूप थाय. कथ कहे, ए धातुने कथेवीज रोप्पाल सोहपहिहुसुमु० ए सूत्रोथी साहुसु एq रूप थाय. सं. सदभाव तेने कगटड अनादौ० द्वितीयतुर्य० क्लीवेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी सम्भावं एवं रूप श्राय. सं. समपसर तेने अवापोते ए सूत्रधी समोसर एवं रूप श्राय. ॥ १७ ॥
हु खु निश्चय-वितर्क-संन्नावन-विस्मये ॥२ ॥ हु खु इत्येतौ निश्चयादिषु प्रयोक्तव्यौ ॥ निश्चये । तंपिहु अबिन्नसिरी तं खु सिरिए रहस्सं ॥ वितर्कः ऊहः संशयो वा । ऊहे । नहु णवरं संगहिथा । एवं खु इस ॥ संशये । जलहरो खु धूमवडवो खु॥ संजावने । तरीकं गहु णवर इमं । एरं खु हस ॥ विस्मये । को खु एसो सहस्स-सिरो ॥ बहुलाधिकारा दनुस्वारात्परो हुर्न प्रयोक्तव्यः॥रए
मूल भाषांतर. हु अने खु ए बे अव्ययो निश्चय, वितर्क संभावना अने विस्मयमा प्रवर्ते. निश्चयनुं उदाहरण सं. त्वमपि हुं अच्छिन्नश्रीः तेनुं तंपि हुं अच्छिन्नसिरी एवं थाय. तेनो अर्थ एवो के, तुं निश्चेपण नहीं के दा एली लक्ष्मी वालोवं. सं. त्वं खु श्रियः रहस्यं तेनु तं खु सिरिए रहस्सं एवं थाय. वितर्क एटले ऊह अथवा संशय तेमां ऊह नुं उदाहरण सं. न हु केवलं संगृहीता तेनुं न हुँ णवरं संगहिआ एवं थाय. तेनो अर्थ शुं ते केवल संग्रह करेली. सं. एतं खु हसति तेनुं एअं खु हसइ एवं थाय. तेनो अर्थ "शुं ए पुरुषने हसे. संशय नुं उदाहरण सं. जलधरः खु धूमपटलः खु. तेनुं जलहरो खु धूमवडवो खु एवं थाय. तेनो अर्थ शुं था मेघ के धुमाडानो जथ्यो? संजावना अर्थन नदाहरण सं. तरितुं न दु केवलं इमां तेनुं तरी ण हु णवर इमं एवं थाय तेनो अर्थ आ नदीने केवल तरीजवा संजवतुं नथी. सं. एतं खु हसति तेनुं एअंखु हसइ एवं थाय. तेनो अर्थ एने हसे वे ते संनवे. विस्मयनुं उदाहरण सं. कः खु एष सहस्रशिराः तेनुं को खु एसो सहस्स-सिरो एवं वाय. बहुल अधिकार बे. तेथी अनुस्वारनीपर हु न श्रावे. ॥१७॥
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हितीयःपादः।
४५१ ॥ ढुंढिका ॥ हुखु १२ श्रव्ययस्ण निश्चयश्च वितर्कश्च संजावनं च विस्मयश्च निश्चयवितर्कसंजावनविस्मयं तस्मिन् ७१ युष्मद् ११ युष्मदस्त्वंतुमंतुवंतुहं सिना सह युष्मद् स्थाने तं । तं । श्रपि पदादपेर्वा अनुक् पि हु निश्चये। अडिन्नश्रीः श्रबिन्ना श्रीर्यस्य स श्रबिन्नश्रीः श्रीः शूरी इति विश्लेषे री रिईकृत्स्नरि पूर्व : लोकात् शषोः सः ११ अक्कीबेऽसौ दीर्घः अंत्यव्यं० सबुक् श्रबिन्नसिरी । श्री ६१ डासडौएहश्वीके श्री इति विश्लेषे रिपूर्व ः लोकात् सरीए । रहस्यङ सस्य स्य स्स ११ क्लीबे स्म् मोनु रहस्सं । नवरं केवले एवरं श्रादेशः वक्रादावंतःचनुस्वारः णवरं । संगृहीता। सर्वत्र रखुक् पानीयादिष्वित् ही हि. कगचजेति लुक् संगहिश्रा । एतद् वा स्वरेमश्च द म कगचजेति दलुक् मोनु एवं । हसति- त्यादीनां तिश् हस । जलधर- खघथध ध ह ११ अतः से?ः जलहरो। धूमपटल पोवः टोडः ११श्रतः सेोः धूमवडलो । तृ तरणे तृ तुम् व्यंजनात् श्च्च क्त्वातुम्तव्यनविष्यत्सु श्च्च वर्णस्यार् तर लोकात् कगचजेति तबुक तारीखं गहु । - दम् १ श्दम श्म श्दमः स्थाने श्म थात् श्राप हस्खोमि था श्रमोऽलुक् मोनु० श्मं । श्मां नदी केवलं तरीतुं न संजावयामि । एअं खु इस पूर्ववत् । किम् ११ मकस्त्रसोश्च किमस्थाने कः को। एतद् अं. त्यव्यं० बुक् तदसस्तसोश्च त चेतन्नदः श्तको उ मित्यं एसो सहरशिराः सहस्रं शिरांसि यस्य सः ११ सर्वत्र रबुक् अनादौ हित्वं स्स शषोः सः अंत्यव्यंग रखुक् अतः सेझैः सहस्ससिरो॥ १७ ॥ टीका भाषांतर. हु अने खु ए अव्यय निश्चय, वितर्क, संजावना अने विस्मय अर्थमा प्रवर्ते . सं. युष्मद् तेने युष्मदस्त्वंतु मंतु वंतु ए सूत्रे तं एवं रूप थाय. सं. अपि तेने पदादपेवा ए सूत्रे पि एवं रूप धाय. अहीं हुं ए अव्यय निश्चय अर्थमां प्रवर्ते. जेनी श्री (लक्ष्मी) बेदाएली न होय ते अच्छिन्नश्री कहेवाय. सं. श्रीः तेने शरी एवो विश्लेष करी रिहिकृत्ल ए सूत्रे पूर्वे इ थाय. पठी लोकातू शषोः सः अक्लीवेऽसौ दीर्घः अंत्यव्यंजन- ए सूत्रोथी सिरी थाय', साथे मली अच्छिनसरी एवं रूप थाय. सं. श्री तेने डासडौ एहेश्री ए सूत्र लागी पनी शुरी एवो वि
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४५२
मागधी व्याकरणम् . श्लेष करी र पूर्वे इ थाय. पनी लोकात् ए सूत्रथी सरीए एवं रूप थाय. सं. रहस्य तेने उसस्स क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी रहस्सं रूप थाय. नवरं तेने केवले णवरं वक्रादावंतः अनुस्वारः ए सूत्रोथी णवरं रूप थाय.सं.संगृहीता तेने सर्वत्र पानीयादिष्वित् कगचज ए सूत्रोथी संगहिआ एवं रूप थाय. सं. ए तद् तेने वा खरेमश्च कगचज मोनु० ए सूत्रोथी एअं रूप थाय. सं. हसति तेने त्यादीनां तिइ ए सूत्रे हसइ रूप थाय. सं. जलधर तेने खघथध० अतः से?ः ए सूत्रोथी जलहरो रूप थाय. सं. धूमपलट तेने पोवः टोडः अतः से?: ए सूत्रोथी धूमवडलो एq रूप थाय. तृ ए धातु तरवाना अर्थमा प्रवर्ते. तेने तुम् प्रत्यय आवे. पती व्यंजनात् इच क्त्वा तुम् तव्य भविष्यत्सु इच्च क वर्णस्यार लोकात् कगचज ए सू. त्रोथी तरी रूप थाय. णड्ड ए अव्ययो . सं. इदम् शब्द तेने इम इदम स्थाने इम आत आप इस्वो मिआ अमोऽअलुक मोनु० ए सूत्रोथी इमं एबुं रूप पाय. तेनो अर्थ एवो थाय के, केवल आ नदीने तरवानी हूं संन्नावना करतो नथी. एअंखु हसइ ए पूर्ववत् सिद्ध करवू. सं. किम् शब्द तेने किमस्त्रसोश्च किमस्थाने का ए सूत्रोथी को एवं रूप थाय. सं. एतद् शब्द तेने अंत्यव्यंज. तदसस्तसोश्च चेत्तनद इतकोउ डित्यं ए सूत्रोथी इसो एवं रूप धाय. सं. सहस्रशिराः जेने हजार मस्तको दोय ते तेने सर्वत्र अनादौ शषोः सः अंत्यव्यं० अतः सेोंः ए सूत्रोथी सहस्ससिरो एबुं रूप थाय. ॥ १ ॥
क गर्दादेप विस्मय-सूचने ॥१ ॥ ऊ इति गर्दा दिषु प्रयोक्तव्यम् ॥ गर्दा । ऊ णबऊ ॥ प्रक्रांतस्य वाक्यस्य विपर्यासाशङ्काया विनिवर्त्तन लक्षणश्रादेपः॥ऊकिम्।मए नणिअं ॥ विस्मये । ऊ कह मुणिया अहयं ॥ सूचने। ऊ केण न विएणायं
मूल भाषांतर. ऊ ए अव्यय गरे ( निंदा) आक्षेप (तिरस्कार ) विस्मय अने सूचन अर्थमा प्रवर्ते. गर्दा अर्थy उदाहरण- सं. ऊ निर्लज्ज तेनुं ऊ णिल्लज्ज एवं आय. तेनो अर्थ, हे निर्लज, तने धिक्कार . चालता वाक्यने विपर्यासनी आशंकानुं जे निवर्तन, करवं ते आक्षेप कहेवाय जे. तेनुं उदाहरण- सं. ऊ किं मया भणितं तेनुं ऊ किं मए भणिअं एवं थाय. तेनो अर्थ-शुं ते में कडं हतुं ? विस्मयनुं उदाहरण-सं. ऊ कथं मुनिता अहं तेनुं ऊ दुह मुणिआ अहयं एवं प्राय. तेनो अर्थ हुं केवीरीते मुनिपणुं रा. सूचन अर्थ- उदाहरण-सं. ऊ केन न विज्ञातं तेनुं ऊ केण ण वि. ण्णायं एवं थाय. तेनो अर्थ-कोणे जाण्यु नथी. ॥ १ ॥
॥डंढिका ॥ ऊ ११ अव्यय० गर्दा च श्रादेपश्च विस्मयश्च सूचनं च गोपविस्मयसूचनं तस्मिन् ७१ ऊ इति गर्दायां हे निर्लज- निर्लज सवत्र
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द्वितीयःपादः।
४५३ रखुक् अंत्यव्यंग स्लुक वादौ नि णि णिवऊ । अस्मद् ३१ मिमे मेम श्मा मए मयाश्णे टा टेन सह युष्मद् स्थाने मए । नणित- कगचजेति तबुक् नणिवे। कथं मांसादिष्वत् अनुस्वारे अनुस्वारलुक् खघथ धनां थस्य ह कह मुनिता नोणः कगचजेति तलुक् ११ अंत्यव्यंजन सबुक् मुणिया । अस्मद् । अस्मदोस्मि अह्मि श्रम्ह मम्हं ममं मंमिमं अह अहसिना अस्मद् स्थाने सिना सह अदयं । विज्ञात- म्नज्ञोर्णः इस्य र्णः अनादौ हित्वं कगचजेति तबुक् अवर्णो अ य ११ क्लीबे सम् मोनु विएणायं ॥ १एए॥
टीका भाषांतर. ऊ ए अव्यय गहीं, आदेप, विस्मय अने सूचन अर्थमा प्रवर्ते. पेला उदाहरणमां ऊ ए अव्यय निंदामां ने. सं. निर्लज तेने सर्वत्र अंत्यव्यं० वादौ ए सूत्रोथी णिल्लज्ज एq रूप थाय. सं. अस्मद् तेने मिमेमेमइ माईमए ए सूत्रे मए एवं रूप थाय. सं. भणित तेने कगचज ए सूत्रे भाणिसं रूप थाय. सं. कथम् तेने मांसादिष्वत् अनुखारे खघथध० ए सूत्रोथी कह रूप थाय. सं. मुनिता तेने नोणः कगचज० अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी मुणिआ रूप थाय. सं. अस्मद् तेने अस्मदोस्मि अलिअमं ममं मिमं अहअह ए सूत्रोथी अहयं रूप थाय. सं. विज्ञात तेने नज्ञोर्णः अनादौ द्वित्वं कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी विण्णायं रूप थाय. ॥१एए॥
थु कुत्सायाम् ॥ २०॥ थु इति कुत्सायां प्रयोक्तव्यम् ॥थु निसजो लोः ॥२०॥ __ मूल भाषांतर. थू ए अव्यय कुत्सा ( दुगंग) अर्थमा प्रवर्ते. सं. थू निर्लज्जः लोकः तेनुं थू निल्लज्जो लोओ एवं रूप थाय. ॥ २० ॥
॥ढुंढिका॥ थु ११ अव्यय कुत्सा १ निर्ला- सर्वत्र रलुक् अनादौ हित्वं व ११ अतःसेडोंः निबङो । लोक ११ कगचजेति कबुक् श्रतः सेोः लोर्ड
टीका भाषांतर. यु ए अव्यय कुत्सा अर्थमा प्रवर्ते. सं. निर्लज तेने सर्वत्र अनादौ० अतः से?: ए सूत्रोथी निल्लज्जो एवं रूप श्राय. सं. लोकः तेने कगचज अतः से?: ए सूत्रोथी लोओ रूप थाय. ॥ २० ॥
रे अरे संभाषण-रतिकलदे ॥२०॥ अनयोरर्थयोर्यथासंख्यमेतौ प्रयोक्तव्यौ ॥ रे संजाषणे। हिश्रय ममह-सरिया ॥ अरे रतिकलहे । अरे मए समं मा करेसु उवहासं ॥
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मागधी व्याकरणम्.
मूल भाषांतर. रे छाने अरे ए वे अव्ययो संभाषण ने रतिकलह अर्थमा अनुक्रमे प्रवर्त्ते बे. संभाषण अर्थमां रे नुं उदाहरण - सं. रे हृदय अल्पसरिता - तेनुं रे हिअयमडह- सरिआ एवं थाय. तेनो अर्थ एवो बे के, अरे हृदय, तुं अल्पजलवाली नदीए वहन करेला काष्ठनी जेम जम्या करे बे-रतिकलहना अर्थमां अरेनुं उदाहरण सं. अरे मया समं मा कुरु उपहासं अरे तुं मारी साथे उपहास न कर्य. ॥ २०१ ॥ ॥ ढुंढिका ॥
रे अरे ११ अव्यय संभाषणं च रतिकलश्व संभाषणरतिकलं तस्मिन् ११ रेहिय एवाक्यउपर गाथा बे रेहिश्रय ममसरिया जलजरबुज्जन्त सुक्कदारुव । ठाणे ठाणे विलग्गमाणस्स केणावि महि सि १ अस्य व्याख्या -रे हृदय अल्पसरित् जलन रोह्यमान शुष्कदारुवत् स्थाने स्थाने लगमानंः केनापि दह्यते इत्यर्थः । यथा शुष्कं काष्ठं श्र पनदीप्रवाहे वहति क्वचित् लग्नस्थाने लगति केनापि गृहित्वा इंधनं क्रियते तथा हे हृदय त्वमपि संसारप्रवाहे वहमाने स्थाने स्थाने प्रसंगं कुर्वाणं केनापि दह्यसे भृशं परितापं प्रापयिष्य से श्रतः स्थाने स्थाने प्रसंगं माकुरु इतिजावार्थः रे ११ श्रव्यय० श्रमंत्रणे ११ मोदाथोवो इत्यनेन श्रामंत्रणे सेर्डी श्रादेशो विकल्पेन जवति इत्कृपादौ हि
व्यं लुक हिय । श्रपसरित् स्त्रियामादविद्युतः त श्र गोणादयः अल्पस्य मडद इति ११ त्र्त्यव्यं सलुक् ममहसरिश्रा । श्रस्मदमिममें - स्मद् स्थाने टेनसह मए सम २१ अमोऽस्यालुक् मोनु समं मा ११ श्रव्यय धातोर्हि प्रत्ययः हिडुसु० हिस्थाने षु सु वर्णस्यार कृ कर्व्यंजनात् वर्त्तमानायां वमा यतःस्थाने लोकात् करेसु । उपहास पोवः
बेस मोनु० जवद्दासं ॥ १०१ ॥
टीका भाषांतर. रे अरे एबे अव्ययो संभाषण ने रतिकलहमां प्रवर्त्ते रे हिअथ ए वाक्य उपर गाथा बे. तेनी व्याख्या एवी बे के, हे हृदय, तुं अल्प नदीना जलना जारी वहन तां वा शुष्क काष्ठनी जेम ठेकाणे ठेकाणे संलग्न थई बे वटे दहन थाय बे. जेम शुष्क काष्ट प नदीना प्रवाहमां कोई स्थाने लागी जायबे एटले कोई तेने लई इंधणुं करेबे, तेम हे हृदय, तुं पण या संसारना प्रवाहमां वहन थई ठेकाणे ठेकाणे प्रसंग करेबे
ने कोईनाथ दहनपण थायले एटले कोई तने परिताप पमाडे बे. तेथी तुं स्थाने स्थाने प्रसंग न कर्य. एवो जावार्थ बे. रे ए आमंत्रण अर्थमां अव्यय. सं. हृदय तेने
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हितीयःपादः।
४२५ डोदाथोवो ए सूत्रे आमंत्रणमा सि ने स्थाने डो एवो विकटपे आदेश थाय पनी इत्कृपादाँ अत्यव्यंज० ए सूत्रोथी हिअय एवुरूप थाय. सं.अल्पसरित् तेने स्त्रियामादविद्युतः गोणादयः अल्पस्य मडह अंत्यव्यं ए सूत्रोथी मडह-सरिआ एवं रूप थाय. सं. अस्मद् तेने अस्ममिमेमं ए सूत्रे मए रूप थाय. सं. सम तेने अमोऽस्यालुक् मोनु० ए सूत्रोथी समं रूप थाय. मा ए अव्यय ने. सं. कृ धातु तेने हिदुस ऋवर्णस्यार् व्यंजनात् वर्तमाना लोकात् ए सूत्रोथी करेसु रूप थाय. सं. उपहास तेने पोवः क्लीबे सम् मोनु०ए सूत्रोथी उवहासं एवं रूप थाय॥२०१॥
हरे देपे च ॥२०॥ केपे संज्ञाषणरतिकलहयो हेरे इति प्रयोक्तव्यम् ॥ देपे। हरे णिबज ॥ संभाषणे । हरे पुरिसा ॥ रतिकलहे । हरे बहु-वबह ॥
मूलभाषांतर. हरे ए अव्यय देप-तिरस्कार संजाषण अने रतिकलहना अर्थम प्रवर्ते. देप तिरस्कार अर्थन उदाहरण- सं. हरे निर्लज. तेनुं हरे णिल्लज्ज एवं थाय. संन्नाषण- उदाहरण-सं. हरे पुरुषाः तेनुं हरे पुरिसा एवं श्राय. रतिकलहनुं उदा० सं. हरे बहु-वल्लभ तेनुं हरे बहु-वल्लह एवं थाय. ॥ २०॥
॥ढुंढिका॥ हरे ११ अव्यय० देप ७१ च ११ श्रव्यय हरे इति निन्दायां। श्रव्ययम् निर्लज सर्वत्र रखुक् अनादौहित्वं व अंत्यव्यं स्बुक् निर्खऊ । हरे इति संनाषणे । अत्र श्रामंत्रणे स पुरुषे रोरुरि शषोः सः डादाोवा सेस अंत्यव्यंजण सूत्रुक् पुरिसा हरे इति रतिकलहे-यथा हे बहुवहन हरे ११ श्रामंत्रणे अंत्यव्यं सबुक् हे बहु-वल्लह ॥ २० ॥
टीका भाषांतर. हरे ए अव्यय क्षेप, संजाषण अने रतिकलहना अर्थमा प्रवर्ते. प्रथम हरे ए निंदा अर्थमा प्रवर्ते सं. निर्लज्ज तेने आमंत्रणे पुरुषेरोरि शषोः सः डादायॊवा अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी पुरिसा रूप थाय. हरे ए रतिकलहना अर्थमां प्रवते. सं. हेबहुवल्लभ तेने आमंत्रणे अंत्यव्यं ए सूत्रोथी हे बहुवल्लह एवं रूप थाय. ॥ २०॥
उ सूचनापश्चात्तापे॥२०॥ 5 इति सूचनापश्चात्तापयोः प्रयोक्तव्यम् ॥ सूचनायाम्। उपविणय-तत्तिले ॥ पश्चात्तापे । उ न मए बाया इतिश्राए ॥ विकल्पेतु उतादेशेनैवौकारेण सिझम् ॥ विरएमि नहयले ॥
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मागधी व्याकरणम्. मूल भाषांतर. ओ ए अव्यय सूचना अने पश्चात्ताप अर्थमा प्रवर्ते सूचनानुं उदाहरण-सं. ओ अविनयतृप्तिमतां तेनुं ओ अविणय-तत्तिल्लो एवं थाय. पश्चात्तापर्नु उदा० सं. ओ न मया छाया एतावत्याम् तेनुं ओनमए छाया इत्तिआए एवं रूप थाय. विकटपमां तो उत आदेश वमेज औकारवझे सिख थाय. जेमके, सं. ओ विरमामि नभस्तले एवं ने तेनुं ओ विरएमि नहयले एवं रूप श्राय. ॥२०३॥
॥ ढुंढिका ॥ उ ११ सूचना च पश्चात्तापश्च सूचनापश्चात्तापं तस्मिन् ७१ श्रविनयेन तृप्तिर्विद्यते यस्यासा अविनयतृप्तिः तदस्यास्ति अस्मिन्निति मतुःमतु मत् प्र० श्राविलोहाखवंतं तारमाणे मत्थाने शव श्रादेशः लुक् सिस्यदरु बुक् थात् श्राप ११ वाप् एसस अंत्यव्यं स्नुकू नोणः कगचजेति क अनादौ हित्वं श्रविणयतिथिल्लो ।अस्मद् ३१ मिमेमाम टेनसह शस्मद्रस्थाने मए । गया ११ अंत्यव्यं सबुक् बाए तावत् पत्ताद एतावत् स्थाने अन्तियोत्यत्यादेश ७१ टाडसे डे एत्तियाए। एतावत्यां वेलायां न ज्ञाता इत्यर्थः।उकारोपि विकल्पार्थे वर्तते परेतु अवापोते इत्यनेन जतस्य उ इत्यादेमैव विकल्पार्थे सिझएव ह १ वणू प्रतिपन्नो विपूर्वचुरादिन्योदणि मिथो तृतीयस्यमिः मिवस्थाने मि व्यंजनानणरेदे दीवावेणिव एक कगचजेति दबुक् विरमए ।नजस्तलं चघथध नह कगटडेति मुलुक् कगचजेति तबुक् अवर्णो अय ७१ मेम्मिडे डिस्थाने डे ए नित्यं लोकात् न हयले ॥२३॥
टीका भाषांतर. ओ ए श्रव्यय सूचना अने पश्चात्तापना अर्थमा प्रवर्ते श्रविनयवझे जेने तृप्ति ने ते, त्यां तदस्यास्ति आल्लिल्लोल्लाल्ल० तारमाणे लुक् आत्आप् अंत्यव्यंज. नोणः कगचज अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोथी अविणयतिथिल्लो एवं रूप थाय. सं. अस्मद् तेने मिमेमाम ए सूत्रे मए रूप थाय. सं. छाया तेने अंत्यव्यं० ए सूत्रे छाए रूप थाय. सं. एतावत् तेने पत्ताद टाडसे ए सूत्रोथी एत्तिआए रूप थाय. तेनो एवो अर्थ थायके, आटली वेला थया उतां ते जाणेली नथी. उकारपण विकल्प अर्थमा जे. केटला एक अहिं अवापोते ए सूत्रथी उतने विकस्पार्थमां ते सिद्धजने. सं. रम् धातु तेने वि उपसर्ग पूर्वे वे पजी चुरादि थकी णिव श्रावे पछी मिथो तृतीयस्यमिः व्यंजना नणरेदेदीवावे कगचज ए सूत्रोथी विरमए एवं थाय. सं. नभस्तलं तेने खघथ० कगटड कगचज अवर्णो डेम्मिडे लोकात् ए सूथोत्री न हयले एq रूप थाय. ॥२०३ ॥
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द्वितीयः पादः ।
sa सूचना-डुःख -संभाषणापराध-विस्मयानं दादरजय-खेद-विषा
दपश्चात्तापे ॥ २०४ ॥
yu
व इति सूचनादिषु प्रयोक्तव्यम् ॥ सूचनायाम् अवो दुक्करयारय ॥ दुःखे । दति हिययं ॥ संभाषणे । श्रवो किमियं किमि ॥ - पराध विस्मययोः । वो दरंति श्रियं तद विनवेसा हवन्ति जुवई । किंपि रस्संमुणन्ति धुत्ता जपन्न हिश्रा ॥ श्रनंदादर जयेषु । at सुहामि वो ऊम्द सफलं जी | वो श्रमितुमे नवरं जइ सा न जूरि दिइ || खेदे । श्रवो न जामि बेत्तं ॥ विषादे । नासेन्ति दिहिं पुलयं वनेन्ति देन्ति रणरणयं । एहिं तस्से गु या तेचि वो कहए एवं || पश्चात्तापे | वो तह तेल कया अह यं जह कस्स सामि ॥
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मूल भाषांतर. अव्वो ए अव्यय सूचनामां, दुःखमां, संभाषणमां अपराध तथा विस्मयमांनंद, चादर तथा जयमां, खेदमां, विषादमां ने पश्चात्तापमां प्रवर्त्ते सूचनानुं उदाहरण- सं. अब्वो दुष्करकारक तेनुं अव्वो दुक्कर यारय एवं थाय. तेनो प्रमाणे हे दुष्करकारक, तमने सूचना बे. दुःखनुं उदाहरण-सं. अब्बो दुर्लति हृदयम् तेनुं वो दलंति हिययं एवं थाय. तेनो अर्थ प्रमाणे दुःख हृदयने दली नाखे बे. संभाषणनुं उदा० सं. अव्वो किमिदं किमिदं तेनुं अब्बो किमिणं किमिणं एवं थाय. अपराध अने विस्मयना उदाहरण उपर गाथा सं. अब्वो हरंति हृदयं तेनुं अब्वो हरंति हिअयं एवं थाय. सं. तदपि न द्वेष्या भवंति युवती - नाम् तेनुं तहविन वेसा हवंति जुवईणं एवं थाय. सं. अव्वो किमपि रहस्यं जानंति धूर्त्ता जनेभ्यः अधिकाः तेनुं अब्वो किंपि रहस्सं मुणन्ति धुत्ता जण भहिआ एवं थाय. आनंद, आदर ने जयनां उदाहरणो सं. अच्वो सुप्र भातमिदं तेनुं अव्वो सुपहायमिणं एवं थाय. सं. अव्वो अद्यास्माकं सफलं जीवितं तेनुं अब्वो अज्जम सप्फलंजीअं एवं थाय. सं. अव्वो त्वयि आगमे नवरं यदि सान विनिष्यति तेनुं अच्वो अइअम्मि तुमे नवइ जइ सा न जूरिहि एवं थाय. खेदनुं उदाहरण सं. अव्वो न यामि क्षेत्रं तेनुं अच्वो न जामि छेत्तं एवं थाय. विषादना उदाहरण विषे गाथा. सं. अव्वो नाशयंति धृतिम् तेनुं roat नासेन्ति दिहिं एवं थाय. सं. पुलकं वर्धयंति ददति रणरणकं तेनुं पुलयं वन्ति ददंति रणरणकं एवं थाय. सं. इदानीम् तस्यैवगुणाः तच्चैव अव्वो एस्कजं जाणंतु तेनुं एहि तस्सेअ गुणाः तेचिअ अब्बो कहणुं एअं एवं थाय.
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मागधी व्याकरणम् . पश्चात्तापर्नु उदाहरण सं. अव्वो तथा तेन कथा अहं यथा कस्य साहमि तेनुं अव्यो तह तेण कया अयं जह कस्स साहेमि एवं थाय. ॥ २० ॥
॥ढुंढिका ॥ श्रवो ११ सूचनादौ समाहारछात् सप्तमी श्रवो । अवो उक्करयारय पुणो विनत्ति करेयि गमणस्स। अविनहुँति सरला देणीश्तरंगिणो विहुरा॥॥अस्यार्थः-श्रवो सूचनायां हे पुष्करकारक पुनरपि गमनस्य तेत्ति विसमं वारं करोमि वेणे पाश्रिपुरास्तरंगिणो वक्रा अद्यापि सरला न जवंति । कोर्थः- पूर्व कस्यापि जर्ता चखितः स बहुनिदिनैः समागतः ततस्तया बेणीदंडष्टोटितः नर्ता च पुनरपि चलनवार्ताकृता ततः कांतयोच्यते हे लतःवेणी केशा अद्यापि सरला न जवंति तेन चलनंकुर्वाणोपि श्रवो पुष्करकारित्वं इति सूचनेति नावार्थः । पुष्करकारक निर्दुरोर्वा रखुक् अनादौ हित्वं क कगचजेति कलुक् अवर्णो श्रय ११ अंत्यव्यंजन सबुक् उक्करबारय दलु फला विसरणे दल वर्तमाना अंति लोकात् दलंति हृदय इकृपादौ हृ हि कगचजेति दबुक् ११श्रबुक् श्रथ स अंत्यव्यंजन स्लुक क्लीबेसम् मोनु हिश्रयं । किम् किम् ११ अंत्यव्यंग सबुक् इदम् ११ क्लीबेस्यमेदमिणसोव इदमस्थाने श्मण लोकात् स्वरेमश्च अंत्यव्यं सलुक् किमिणं किमिणं । श्रवो हरं व्याख्या अबो इति अपराधे धूर्त्ता हृदयं हरंति युवतीनां द्वेष्या न जवंति अबो इति विस्मये धूर्ताः किमपि रहस्यं जानंति किनूता धूर्ताः जनेच्योअन्य धिकाजनान्यधिका इति गाथार्थः। श्रथ व्युत्पत्तिःहरंति-बहुतुहमो अंतिस्थाने न्ति झवर्ण स्यार् ह हर व्यंजनात् अलोपः लोजतः हरंति हृदयं हिश्रयं पूर्ववत् तथा वायव्योत् वाता वदीताः थाथ खघथ थह अपि पदादपेलोपः पो वः तह विद्वेष्याः कगटमेति दलुक् अधोमनयां यबुक् शषोः सः जस्शसोर्बुक् वेस्या । नू वर्तमानातिव नुघहोहुवहवा नूस्थाने हव बहुष्वाद्यन्ति अंतिस्थाने न्ति हवन्ति हवति युवति ६३ श्रादेर्यजि कगचजेति तलुक् टाबामोर्णः जमस्य ण जस् दीर्घः नवईण किम् अपिपदादपेर्वा अनुक् मोनु० किंपि रहस्य
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४थए
द्वितीयःपादः। अधोमनयां यबुक् धनादौहित्वं ११ क्वीबे स्म् मोनु रहस्सं ज्ञा जाण मुणो शास्थाने जाणः अंन्ति बहुष्वादन्ति जाणन्ति धूर्ताः ह्रस्वः स धू धु सर्वत्र रखुक् जस् शसो टुक् धुत्ता जनान्यधिक नोणः ह्रस्वः सं० णा ण अधोमण यबुक् अनादौ हित्वं । द्वितीयपूर्व नबरवघधि हि कग चजेति कबुक् १३ जस्शस् मसि दीर्घः जसबुक् जणस्य हिथा श्रवो सुपहीयमिणो । अवो अजाम सप्फलं जीरं । अस्य व्याख्या अबो - ति श्रानंदे अद्यास्माकं दं सुप्रजातं श्रवो इत्यादरे अद्यास्माकं जीवि तं सफलं अहो इति नये यदि त्वयातीते सा केवले त्वनष्यति इति गाथार्थः । अथ व्युत्पत्तिः अहो २१अव्यय सुप्रजात सर्वत्र रबुक् खघथध जांजा हा कगचजेति तलुक् अवर्णो अ य ११ क्लीबे स्म् मोनु० श्दम वाहेस्य मेद मिणामोवा श्दमस्थाने णम लोकात् मि ११वा स्वरे मश्च स् मोनु अल्प व्यंजन-सबुकू सुपहीयमिणं । अद्य द्यय्य्य-जः श्रनादौहित्वं ११ श्रव्यय अऊ ।अस्मद् णेणोमोज्कम्हेति अस्मदः स्थाने ब्रह्मत्येदीयवा अलुक् ह्म। सफल समासे वा हित्वं प्प ११ क्लीबे सम् मोनुस्वारः मकारस्यानुस्वारो नवति सप्फलं । जीवित-यावत्तावजीवितो वर्त० सरविबुक् कगचजेति तलुक् ११ क्लीबे स्म् मोनु जीवे। श्र तीत पानीयादिष्वत् तीति कगचजेति तयोर्बु ६१ डेम्मिडे अस्ति । युष्मद् ७१ तुमेतुम तुमि श्रादेशः नवरं यहि श्रादेर्योज्यः कगचजेति दबुक् जश् नदस् अंत्यव्यंजन सबुक् वबुक् च तदश्च तसोश्चातस आत् समानानां सा । खिदखेदे हर विस्वरौ वर श्रादेशः नविष्यति त्यादी स्यति इ नविष्यति हिरागमः हिराम एवत्काररि हरिदे । अवो न जानाखित्तं ? सुता मातरं वक्ति-श्रबो इति खेदे श्रहं क्षेत्रे नयामि कुरं गैः शालिः स्वाद्यतां । मम पयोधरौ उन्नतौ इगिति शीघ्रं तालिकानं संपतति इत्यर्थः।याकं प्रापणे या वर्त्त मिव आर्योजः जामि । क्षेत्र १ कः खः कचित् दः खः ह्रस्वःसंयोगे खे खि सर्वत्र रनुक्शनादौ छित्वं ११ क्ली सम् मोनु खित्तं अबो नासंति दहिअवो इति खेदे तस्यैव गुणा धृतिं नाशयंति पुलकं वर्धयति रणरणकं कामौत्सुक्यं ददंति श्दा
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४६०
मागधी व्याकरणम् नीं तस्यैव गुणा धनेनैव नाशयंति एत्कङ जानंतु इति वितर्के इति गाथार्थः अस्य व्युत्पत्तिः णशूत् श्रादर्शने णेश श्रादेशः स्तः खन्शनेश्यंतं युक्तप्रणिरत्रतिवृद्धिनेनावर्त्ततो णेरदेदात् व्ये इए लोकानां धृति धृतेदीहिः धृतिस्थाने दीहि शेषोदतवत् इति ज्ञायात् अमोऽस्य बुक् देहि पुलक ११ कगचजेति कलुक् अवर्णोश्रय क्लीबे सम् मोनु पुलयं वृधूडूवईने वृषवर्ड प्र० प्रप्योणिग् श्रुवर्णस्यार् वृ व रत्कच्चवर्षी ढः धस्य ढः अनादौ हित्वं द्वितीय तु पूर्वढस्यमः परहेदावावे ३ ए वर्तण न्तिस्थाने न्ति वमेति दांक दावति खराणां खराःदादे बहुष्वा० अन्तिस्थाने न्ति -हस्वः संयोगे दोदिति । रणरणक ११ कगचजेति कलुक् अवर्णो अ य क्लीबेसम् मोनु० रणरणयं । इदानीं एह्निपन्ना हे श्दानिमः श्दानीस्थाने एण्हि तस्य एवबुक्डःस्मस्य स्म लोकात् कगचजेति युवुकू ११ अव्यय तस्मे अगुण १३ जस्शस् दीर्घः जस्शसोर्बुक् गुणो तदू १३ अंत्यव्यं दलुक् श्रतः सर्वादेर्मे जमशस् ए लोकात् विवि अवधारणे विश्र श्रागमःसेवादौ हित्वं तेविथ कर्थतुमांसादेर्वानुस्वारबुक् खघय नोणः ११ अव्यय कहणुए तदेवास्वरेमश्च दीम् कगचजेति त्लुकु अंत्यव्यंग स्बुक मोनु० एकं । अव्वो तह तेण केपतथा ११ वात्मयोत् वातादावदात थाथ खघथा थाह अव्यय स्लुक् तद्तद् ३१ अंत्यव्यं दबुक् टा श्रामोर्णः टाण शस्येत् एत्वं तेण कृता ११ तो श्रत् कृ क कगचजेति नबुक् अवर्णो अ य । अंत्यव्यं सलुक कया। अस्मद् ११ अस्मदो अस्मदस्याने श्रयं अंत्यव्यंग सबुक् यथा पूर्ववत् जह कि मकिम कस्त्र किमकस्स स्स कस्स कथण कथर्वज्जरस्सह तिमि तृ. तीयस्यमिव्यंजनात् वर्तमानेए साहेमि नाहं कस्याग्रे कथयामि ॥२०॥
टीका भाषांतर. अव्वो ए अव्यय सूचना विगेरेमा प्रवर्ते.-अव्वो दुष्करआरय ए गाथा बे-तेनो अर्थ श्रा प्रमाणे बे-अहीं अव्वो सूचना अर्थमां बे. हे पुष्करकारक वारंवार हूं सुधार्या करूं बुं, तोपण था वांका केश अद्यापि सरल यता नथी. तेनो नावार्थ एवो बे के, पूर्वे कोइ .स्त्रीनो पति बाहेर गयेल, ते घणे दिवसे आव्यो. त्यारे ते स्त्रीए केश वेणी जलवामांमी. पनी नर्ताए पुनः बाहेर जवानी वात करी, त्यारे ते स्त्रीए का, हे लर्ता, केश वेणी अद्यापि सरल थती नश्री. श्राम कही तेणे चालता एवा पतिने
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द्वितीयःपादः।
४६१ दुष्कर कार कही सूचना श्रापी. सं. दुष्करकारक तेने निर्दुरोर्वा अनादौ० कगचज अवों अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी दुक्कर आरय एवं रूप थाय. दल ए धातु विसरण (हकीजq ) अर्थमा प्रवत. सं. दलू तेने वत्तेमाना लोकात् सूत्रोथी दलंति रूप थाय. सं. हृदय तेने इत्कृपादौ कगचज अलुक अंत्यव्यंजन क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी हिअयं रूप थाय. सं. किम् किम् तेने अंत्यव्यंजन क्लीबे स्यमेदमिण लोकात् वा स्वरेमश्च अंत्यव्यंज० ए सूत्रोथी किमिणं किमिणं रूप थाय. अव्वोदर ए गाथानी व्याख्या आप्रमाणे-अहीं अव्वो ए अव्यय अपराधमां प्रवर्त्त-धूत्ते पुरुषो युवतीउँना हृदय हरी ले ले पण तेमना वेषपात्र थता नथी. अव्वो ए विस्मयमा प्रवर्ते ते आप्रमाणे-ते धूर्त्त लोको लोकोथी अधिक थक्ष कांइपण रहस्यने जाणे . ए गाथानो अर्थ थयो. हवे व्युत्पत्ति करे - हृ हरण कर, ए धातु तेने बहु तुमहो ए सूत्रे अन्तिने स्थाने न्ति थाय. ऋवर्णस्यार् व्यंजनात् अलोपः ए सूत्रोथी हरंति रूप थाय. सं. हिअयं तेनु पूर्ववत् हिअयं थाय. तथा वायव्यात् वदीताः खघथ० अपिपदादपेर्वा पोवः ए सूत्रोथी तह थाय. सं. विद्वेष्याः तेने कगटड अधोमनयां शषोः सः जसूशसोलक ए सूत्रोथी वेस्या रूप थाय. भू धातुने वर्तमाना. तिव् भूघहोहुव बहुष्वाद्यन्ति ए सूत्रोथी हवन्ति रूप थाय. सं. युवति तेने आदेर्यज कगचज टा आमोर्णः जामस्यण जस् दीर्घः ए सूत्रोथी ईनवईण एवं रूप थाय. सं. किम् तेने अपिपदादा मोनु० ए सूत्रोथी किंपि एवं रूप थाय. सं. रहस्य तेने अधोमनयां अनादौ द्वित्वं क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोथी रहस्सं रूप श्राय. सं. ज्ञा धातुने जाणमुणो बहुष्वादेन्ति ए सूत्रोथी जाणंति रूप धाय. संधूर्ताः तेने इस्वः सर्वत्र जसूशसोलक ए सूत्रोधी धुत्ता एवं रूप थाय. सं. जनाभ्यधिक तेने नोणः हस्वः सं. अधोमनया० अनादौ० द्वितीयपूर्व० भबखथघ. कगचज जशशजसि ए सूत्रोथी जणभहिआ एq रूप थाय. अव्वो मुपही ए गाथानी व्याख्या श्राप्रमाणे अव्वो ए आनंद अर्थमा प्रवर्ते. जेम के, भाजे श्रमारे आ सु प्रजात थयु. अव्वो ए आदर अर्थमां प्रवर्ते जेम के, आजे अमालं जीवित सफल अयु. अव्वो लय अर्थमा प्रवर्ते जेम के, जो तुं अतीत काले थश्श तो ते हशे नहीं. ए गाथानो अर्थ थयो-हवे व्युत्पत्ति कहे जे-अव्वो ए अव्यय . सं. सुप्रभात तेने सर्वत्र खघथ० कगचज अवर्णो० क्लीबे सम् मोनु० इदमकलाहेस्य मेदणिण लोकात् वाखरेमश्च मोनु० अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी सुपहीयमिणं एवं रूप थाय. सं. अद्य तेने द्यय्ययोजः अनादौ० अव्यय० ए सूत्रोथी अज्ज एवं रूप थाय. सं. अस्मद् तेने णेणोमो० अम्ह अवुक ए सूत्रोथी म्ह थाय. सं. सफल तेने समासेवाद्वित्वं क्लीवे सम् मोनु० ए सूत्रोथी सप्फलं रूप थाय. सं. जीवित तेने यावत्तावजीविलो वर्तमाना विलुक कगचज क्लीषे सम् मोनु ए सूत्रोथी जी रूप थाय. सं. अतीत तेने पानीयादिष्वत् कगचज डेमिडे ए सूत्रोथी अइस्सि थाय. सं. युष्मद् तेने तुमे तुमतुमि ए सूत्रे थाय. सं. यदि तेने आर्योजः कगचज
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४६२
मागधी व्याकरणम्. ए सूत्रोथी जइ थाय. सं. तद् तेने अंत्यव्यं० तदश्च तसोश्च आत् समानानां ए सूत्रोधी सा रूप थाय. खिद् ए धातु खेदमां प्रवते. तेने हरविस्वरौक्कर भविष्यति त्यादि भविष्यति हिरागम ए सूत्रोथी; हिराम रूप थाय. अने एवत्काररिफरिहेर एवं रूप थाय. अव्वो न जाना खित्तं ए गाथा . तेनो अर्थ आप्रमाणे जे. पुत्री माताने कहे जे-हुँ क्षेत्रमा जश्श नही, नले मृगला शालीने खाई जाय. कारण मारा स्तन उन्नत . ते शीघ्रपणे तालि कानमां पडी जाय. तेनी साधनिका आप्रमाणेया धातु चालवामा प्रवर्त. तेने वर्तमाना मिवू आर्योजः ए सूत्रे जामि रूप श्राय. सं. क्षेत्र तेने दुःख कचित् क्षः खः इस्वः संयोगे सर्वत्र अनादौ क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी खित्तं रूप थाय. अव्वो नासंति ए गाथा ने तेनो अर्थ एवो ने के, अव्वो ए खेदमा प्रवर्ते. तेना गुणो धृति-धीरजने नाश करे , पुलकावलीने वधारे बे, कामदेवना उत्सुकपणाने श्रापे -हमणा तेनाज गुणोने नाश करे . ए कार्यने जाणो-ए गाथानो अर्थ वे. तेनी व्युत्पत्ति श्राप्रमाणे-नश ए धातु नाश करवामां प्रवर्ते तेने णेश आदेश थाय. स्तः खन् शने प्रणिस्त्रति ए सूत्रोथी व्येइमए थाय. सं. धृति तेने धृतेदीहि अमोऽस्यलुक् ए सूत्रे दीहि रूप थाय. सं. पुलक तेने कगचज अवर्णो क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी पुलयं एवं थाय. सं. वृध धातुने अवडेप्र० प्रायोणिग ऋवर्ण स्यार रत्कच्चावडींढः अनादौ० द्वितीय० णरहेदावावे वर्त्तमाना ए सूत्रोथी वडति रूप थाय. दा ए धातु श्रापवामा प्रवर्ते. तेने स्वराणां स्वराः बहुष्वा हवः संयोगे ए सूत्रोथी दोदिति रूप थाय. सं. रणरणक तेने कगचज अवर्णो० क्लीबे सम् मोनु० ए सूत्रोथी रणरणयं रूप थाय. सं. इदानीम् तेने एण्हि पन्नाहे इदानीमः ए सूत्रे एण्हि रूप थाय. सं.तद् तेने डस्मस्य लोकात् कगखज ए सूत्रोथी तस्स रूप थाय.सं.गुण तेने जशूशस् दीर्घः जशशसोलुक ए सूत्रोथी गुणो रूप थाय.सं. तद् शब्द तेने अंत्यव्यंदलुक अतःसादे जशशसू लोकात् ए सूत्रोथी तस्स रूप थाय. सं.विअव्वि ए अवधारणमा प्रवर्त.विअ एवो आगम आवे. सेवादौधित्व ए सूत्रे तेविअ रूप थाय. सं. कथं तेने मांसादेर्वा खघथ० नोणः अव्यय० ए सूत्रे कहणुए रूप थाय. सं. तदेव तेने खरेमश्च दीम् कगचज अंत्यव्यं मोनु० ए सूत्रोथी एअं रूप थाय. अव्वो तह ए गाथा . सं. तथा तेने वात्मयोत् वातादावदात खघथक अव्यय सूलुक् ए सूत्रोथी तह रूप थाय. सं. तद् तेने अंत्यव्यं० टा आमोर्णः टाणशस्येत् ए सूत्रे तेण एवं रूप थाय. सं. कृता तेने ऋतोअत् कगचज अवर्णो अंत्यव्यं ए सूत्रे कया रूप थाय. सं. अस्मद् तेने अस्मदो ए सूत्रे अहयं रूप थाय. सं. यथा तेनुं पूर्ववत् जह रूप थाय. सं. किम् तेने किमकस्त्र उसस्स ए सूत्रोथी कस्स रूप थाय. सं.कथ् धातु तेने कथर्वज रस्सह तृतीय व्यमिवू व्यंजनात् वर्तमानोए ए सूत्रोथी साठमि रूप थाय.तेनो अर्थ एवो थाय के हुँ कोश्नी आगल कहीश नही
अश् संजावने ॥३०॥ संजावने अति प्रयोक्तव्यम् ॥ श्र दिअर किं न पेसि ॥
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हितीयःपादः।
४६३ मूल भाषांतर. अइ ए अव्यय संजावनामा प्रवर्ते सं. अइ देवर किं न पश्यसि तेनुं अइ दिअर किं न पेच्छसि एवं थाय. तेनो अर्थ हे दियर, तमे शुं नश्री जोतां ?
॥ढुंढिका ॥ अश् श्रव्यय संजावन १ अश् इति संजावने ११ अव्यय अश्-देवरएत एत् देदि कगचजेनि वलुक् आमंत्रणे म अंत्यव्यंजन सबुक् दिश्रर । किम् अंत्यव्यंजन सूलुक मोनु० वर्गोऽन्त्यो वा न किन्न दश हशो पेठ दृशस्थाने पे वर्तमाना मिव द्वितीयस्य सिव सिवस्थाने सि॥२०॥
टीका भाषांतर. अ ऐ श्रव्यय संजावनामा प्रवर्ते बीजो अर्थ सुगम बे तेथी मूल उपरथी जाणी लेबो.
वणे निश्चय-विकल्पानुकम्प्ये च ॥ २०६॥ वणे इति निश्चयादौ संजावने च प्रयोक्तव्यम् ॥ वणे देमि । निश्चयं ददामि ॥ विकल्पे । होश्वणे न हो । जवति वा न जवति ॥ श्रनुकमप्ये । दासो वणे नमुच्च । दासोऽनुकम्प्यो न त्यज्यते ॥ संजावने । नत्थि वणे न देश विहि-परिलामो । संजाव्यते एतदित्यर्थः ॥
मूल भाषांतर. वणे ए अव्यय निश्चय, विकटप अने अनुकंपा अर्थमा प्रवते. सं. वणे ददामि तेनुं वणे देमि एq थाय. एटले निश्चयथी श्रापुंच. विकटपर्नु उदाहरणसं. भवति वणे नभवति तेर्नु होइ वणे न होइ एq थाय. एटले होय वा नहोय. अनुकंपानुं उदाहरण- सं. दासो वणे न मुञ्चति तेनुं दासो वणे नमुच्चइ एवं थाय. एटले अनुकंपा करवायोग्य एवो दास गेडी देवाय नहीं. संजावनउदाहरण- सं. नास्ति वणे यत् न ददाति विधिपरिणामः तेनुं नस्थि वणे जं नदेइ विहिपरिणामो एवं थाय. एटले एवं कांइ नथी के जे विधिना परिणामथी न थाय. अर्थात् संजवे . ॥२०६॥
॥ टुंढिका ॥ वणे श्रव्यय निश्चयश्च विकल्पश्च अनुकंप्यश्च निश्चय विकल्पानुकम्ध्यं तस्मिन् ७१ वणे इति निश्चये अव्यं. वणेदेमि इत्यादि सुगमं दासोवणे नेति सुगमं मुच अमोक्षणा मुच्च वतेक्य शपगमादीनां द्वित्वं कलुक् च व्यंजनात् त्यादीनांति मुच्चश् । अस्ति स्मादिना अस्तिस्थाने अस्थि बुक् अबुक् नस्थि । यत् श्रादेयोंजः कगचज मोनु जंदा तिव स्वराणां स्वरा दादे त्यादीनां तिश् देई । विधिपरिणाम ३१ खघथधन धि हि अतःसेोः विहि-परिणामो ॥ २६ ॥
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४६४
मागधी व्याकरणम्. टीका भाषांतर. वणे ए अव्यय निश्चय, विकल्प अने अनुकंपा अर्थमा प्रवर्ते. वणे देमि तेमां वणे अव्यय निश्चयमांचे. ए बाकी सुगम . सं. मुच् धातुने अमोऋण शप गमादीनां द्वित्वं कलुकू व्यंजनात् त्यादीनां तिइ ए सूत्रोथी मुच्चइ एवं रूप थाय. सं. अस्ति तेने स्मादिना ए सूत्रे अत्धि रूप थाय पनी न साथे अलुक सूत्रश्री नत्थि रूप थाय. सं. यत् तेने आयोजः कगचज मोनु० ए सूत्रोथी जं एवं रूप थाय. सं. दा धातुने खराणां स्वराः त्यादीनां तिइ ए सूत्रे देह रूप थाय. सं.विधिपरिणामातेनेखघथ अतःसे?ः एसूत्रे विहि-परिणामो एवं रूप थाय.॥२०६
मणे विमर्शे ॥२०॥ मणे इति विमर्शे प्रयोक्तव्यम् मणे सूरो। किंस्वित्सूर्यः॥ अन्ये मन्ये इत्यर्थमपीछति ॥ २० ॥
मूल भाषांतर. मणे ए अव्यय विमर्श-( तर्कयुक्तविचार ) अर्थमा प्रवर्ते. सं. मणे सूरः तेनुं मणे सूरो एवं थाय. एटले शुं आ सूर्य जे. एवो अर्थ थाय. केटलाएक अहिं मणे एनो अर्थ मन्ये एवो पण थाय. एम श्वे. ॥ २०७॥
॥ढुंढिका ॥ मणे ११ विमर्श ७१ सूर ११ अतः सेोः सूरो ॥२७॥
टीका भषांतर. मणे ए अव्यय विमर्श-विचार अर्थमा प्रवर्ते. सं. सूरः तेने अत:से? ए सूत्रथी सूरो एवं रूप थाय. ॥ २० ॥
अम्मो आश्चर्ये ॥ २० ॥ अम्मो इत्याश्चर्ये प्रयोक्तव्यम् ॥ श्रम्मो कह पारिज्ज॥२०॥
मूल भाषांतर. अम्मो ए अव्यय आश्चर्य अर्थमा प्रवर्ते. सं. अम्मो कथं पार्यते तेनुं अम्मो कह पारिजइ एवं श्राय. तेनो अर्थ ते केवीरीते पारपामीए एवोथाय.॥२०॥
॥ढुंढिका॥ धम्मो ११ श्राश्चर्ये ७१ कथं मांसादेर्वा अनुस्वारलोपः खघथध थस्य हः ११ श्रव्ययसबुक् कह । पारतीरणकर्मसमाप्नौ पार् चुरादिन्योणि चु श्व ते क्यश्यतेय प्र० श्य श्ोक्यश्य क्यस्थाने जा श्रादेशः णेरनिटि विवलोपः लोकात् व तिव त्यादीनां ति पारिज क्यश्यते इत्यर्थः ॥ २० ॥ टीका भाषांतर. अम्मो ए अव्यय आश्चर्यमा प्रवत्र्ते. सं. कथं तेने मांसादेवी खघथ० अव्ययसलुक् ए सूत्रोथी कह एवं रूप थाय. सं. पार धातु कर्मनी समाप्तीना
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द्वितीयःपादः
४६५ अर्थमा प्रवत्र्ते. तेने चुरादिभ्योणिव इव ते क्यश्यते इय इज्जे क्यश्य ए सूत्रोथी इज्ज एवो आदेश पाय. पनी रनिटि लोकात् त्यादीनांतिइ ए सूत्रोधी पारिजइ रूप पाय.॥ २० ॥
स्वयमोर्थे अप्पणो नवा ॥२०॥ स्वयमित्यस्यार्थे श्रप्पणो वा प्रयोक्तव्यम् ॥ विसयं विश्रसन्ति अप्पणो कमल-सरा । पदे । सयं चेथ मुणसि करणिज्जं ॥ शए ॥
मूल भाषांतर. स्वयम् ए अव्ययना अर्थमा अप्पणो ए रूप विकटपे मुकाय ने. सं. विशदं विकसन्ति स्वयं कमलसरांसि तेनुं विसयं विअसन्ति अप्पणो कमल-सरा एवं थाय.तेनो अर्थ आप्रमाणे-कमलसरोवरो पोतानी मेले उजवलपणे विकाश पामे बे. पक्ष सं. स्वयं चेव जानासि करणीयं तेनुं सयं चेअ मुणसि करणिज्जं एवं थाय. तेनो अर्थ आप्रमाणे-तुं पोते कर्तव्यने जाणे . ॥२०॥
॥ढुंढिका ॥ खयम् ६१ अर्थ ७१ श्रप्पणो ११ नवा ११ विशदं यथा स्यात्तथा स्वयं कमलसरांसि विकसंतीत्यर्थः । विशद शषोःसः कगचजेति दबुक् श्रव
ो थ य ११ क्लीबेस्म् मोनु विसयं । विकसंति कगचजेति कबुक् विथसंति अप्पणो ११ कमलसर १३ अंत्यव्यं सलुक् स्रगदामशिरो नन इति पुंस्त्वं जस्दीर्घः जस्शसोर्बुक् कमलसरा । पदे स्वयंचैव सर्वत्र वबुक् ऐतएत् चे व कगचजेति वबुक् ११ श्रव्यय सूलुक् सयंचेच । झा वर्त्त सिवूझो जाणमुणो हास्य मुण श्रादेशः व्यंजनात् बुक् इति अलोपः मुणसि । करणीय वोत्तरीनीयनीयत्तज्जे जः यस्य जः इस्वः संयोगे णीणि ११ क्लीबेस्म् मोनु करणिज्जं ॥ए ॥
टीका भाषांतर. स्वयम् ए अव्ययना अर्थमां अप्पणो एवं रूप विकटपे थाय. कलमसरोवरो पोतानी उज्वलताथी विकाश पामे . सं. विशद तेने शषोःसःकगचज अवर्णो क्लीवेसम् मोनु० ए सूत्रोथी विसयं रूप थाय. सं. विकसंति तेने कगचज ए सूत्रोथी विअसंति रूप थाय. सं. कमलसर तेने अंत्यव्यं० स्रगदाम जसूदीर्घः जमशसोलक ए सूत्रोथी कमलसरा एवं रूप थाय. पदे. सं. स्वयं चैव तेने सर्वत्र ऐतएत् कगचज अव्यय० ए सूत्रोथी सयंएअ एवं रूप थाय. सं. ज्ञा धातु तेने वर्तमानाति ज्ञोजाणमुणौ व्यंजनात् ए सूत्रोथी मुणसि एवं रूप थाय. सं. करणीय तेने वोत्तरीजायनी० इस्वःसंयोगे क्लीबेसम् मोनु० ए सूत्रोथी करणिजं रूप थाय. ॥ २०ए॥
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४६६
मागधी व्याकरणम् .
प्रत्येकमः पामिकं पामिएकं ॥२०॥ प्रत्येकमित्यस्यार्थे पाडिकं पामि एक इति च प्रयोक्तव्यं वा ॥ पामिकं । पामिएकं । पदे पत्तेयं ॥
मूल भाषांतर. प्रत्येकम् ए अर्थमां पाडिकं अने पाडिएकं एवां रूप विकटपे प्रवर्ते. सं. प्रत्येकम् तेनुं पाडिकं अने पाडिएकं एवं रूप धाय. पक्ष सं. प्रत्येकं तेनुं पत्तेअं रूप थाय. ॥१०॥
॥ढुंढिका ॥ प्रत्येकम् ६१ पामिकं ११ पामिएक्कं पके प्रत्येक सर्वत्ररबुक् श्रधोमनयां यदुक् अनादौ हित्वं कगचजेति कबुक् ११ श्रव्यय सबुक् पत्तेअं॥२१॥
टीका भाषांतर. प्रत्येक ए अव्ययना अर्थमां पाडिक्कं अने पाडिएक एवां रूप विकटपे थाय. सं. प्रत्येकम् तेनां पाडिकं अने पाडिएकं एवां रूप आय. पहे. सं. प्रत्येकम् तेने सर्वत्र अधोमनयां अनादौ कगचज अव्यय० ए सूत्रोथी पत्तेअं रूप थाय. ॥१०॥
ग्ध पश्य ॥११॥ उथ इति पश्येत्यस्यार्थे प्रयोक्तव्यम् वा ॥ उथ निञ्चल निष्फांदा निसिणी-पत्तंमि रेहश्वलाया । निम्मल-मरगय जायण-परिहिया सङ्कसुत्तिव ॥ पदे पुलादयः ॥
मूल भाषांतर. उअ ए अव्यय पश्य ( जो ) एवा अर्थमां विकटपे प्रवर्ते ते उपर उअनिचल ए गाथा बे. तेमा उअ ए पश्य अर्थमां बे. तेनुं संस्कृत आप्रमाणे जे पश्य निश्चल निष्फंदा बिसिनी पत्रे राजति बलाका निर्मल मरकत नाजन प्रतिष्ठिता शङ्खशुक्तिरिव पक्षे पुल विगेरे आदेशो थाय.
॥ढुंढिका ॥ उथ ११ पश्य ११ उथ निच्चलेति गाथा उथ इति पश्य इत्यर्थे बलाकाविसिनीपत्रे कमविनीपत्रे राजति किंजूता बलाका निश्चल निष्फंदा निश्चला बहिर्मीवा निष्फंदा का श्व निर्मलमरकतजाजनप्रतिष्ठिता शं. खशुक्तिरिव इति गाथार्थः । निश्चल निष्फंद स्पस्फः अनादौ हित्वं द्वितीयपूर्व फप सबुक् निश्चलनिप्फंदा । पद पश्यादेशे निपछ पपछे त्यापुल इत्यादयः श्रादेशाः स्युः ॥२१॥
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हितीयःपादः
४६७ टीका भाषांतर. उअ ए अव्यय पश्य ए अर्थमा प्रवर्ते ते उपर उअनिच्चल ए गाथा . अहीं उअ ए पश्य अर्थमां बे. ते गायानो अर्थ आप्रमाणे-निश्चल, स्फुर्ति वगरनी कमलना बिसतंतु उपर रहेली बलाका (बगली) मरकत मणिना निर्मलपात्र उपर रहेली शंखरूप जीपनी जेम शोले-सं. निश्चलनिष्फंद ए शब्दने स्पष्फः अनादौ० द्वितीयतु० सलुक् ए सूत्रोथी निचलनिष्फंदा एवं रूप थाय. पदे पश्य ने निपच्छ पयच्छ पुल इत्यादि आदेशो श्राय. २११
इहरा इतरथा ॥१॥ शहरा इति इतरथार्थे प्रयोक्तव्यम् वा॥ इहरानीसामन्नेहिं । पक्ष। श्हरहा ॥ - मूल भाषांतर. इहरा ए इतरथा अव्ययना अर्थमां विकटपे प्रवर्ते सं. इहरा निसामान्यैः तेनुं इहरा नीसामन्नेहिं एबुं रूप थाय. पदे सं. इतरथा तेनुं इअरहा एबुं रूप थाय. २१२
॥ ढुंढिका ॥ शहरा ११ इतरथा ११ श्रव्यय श्हरा इतरथार्थे श्रव्ययं च निःसामान्य ३३ कगटडेति सबुक् लुप्तयवर निनी हवःसंयोगे मा म अधोमनयां यबुक् अनादौहित्वं निसोहि जिस स्थाने हि निस् न्यस सुपि नी. सामन्नेहिं पके इतरथा कगचजेति कबुक् खघयध य ह ११ अंत्यव्यं सूलुक् श्थर हा ॥ २१ ॥
टीका भाषांतर. इहरा ए अव्यय इतरथा ए संस्कृत अव्ययना अर्थमां विकटपे प्रवर्ते. सं. निसामान्य- तेने कगटड लुप्तयवर० इस्वःसंयोगे अधोमनयां अनादौ भिसोहिं भिसूभ्यसूसुपि ए सूत्रोथी नीसामन्नेहिं ए रूप थाय. विकटपे पहे. सं. इतरथा तेने कगचज खघथ० अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी इअरहा एवं रूप थायः॥१२
एकसरिअंजगिति संप्रति ॥१३॥ एकसरिअं जगित्यर्थे संप्रत्यर्थे च प्रयोक्तव्यम् ॥ एकसरिझं । ऊगिति सांप्रतं वा ॥ १३ ॥
मूल भाषांतर. एक्कसरिअं ए अव्यय ज्ञटिति (शीघ्रता ) अने संप्रति (हाल) ए अव्ययना अर्थमा प्रवर्ते. एक्कसरिअं एटले ज्ञटिति ( तत्काल ) अथवा सांप्रतं ( हाल ) एवो अर्थ श्रायः ॥ २१३ ॥
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४६न
मागधी व्याकरणम्.
॥ढुंढिका॥ एक्कसरिओं इति अव्ययं ऊगितिसंप्रति इतिघ्योरर्थे एकसरिश्रं इत्यादेशः ॥ १३ ॥ टीका भाषांतर. एक्कसरिअं ए अव्यय ज्ञटिति अने संप्रति ए बे अव्ययना अर्थमा प्रवर्ते. ते बंनेना अर्थमा एकसरिअं एवो आदेश थाय. ॥१॥
मोरजल्ला मुधा ॥१४॥ मोरजल्ला इति मुधार्थे प्रयोक्तव्यम् ॥ मोरउल्ला । मुधेत्यर्थः ॥
मूल भाषांतर. मोरउल्ला ए अव्यय मुधा (अर्थ) अव्ययना अर्थमां प्रवर्ते. मोरउल्ला एटले मुधा-अर्थ एवो अर्थ थाय. २१४
॥ टुंढिका ॥ मोरउवा ११ मुधा ११ अव्ययमेतत् ।
टीका भाषांतर. मोरउल्ला एवो अव्यय मुधा (अर्थ) अर्थमां प्रवर्ते. मोरउल्ला एटले व्यर्थ फोगट एवो अर्थ थाय.
दरार्धाल्पे ॥१५॥ दर इत्यव्ययमर्धार्थे ईषदर्थे च प्रयोक्तव्यम् ॥ दर-विथसिधे । अर्धेनेषा विकसितमित्यर्थः॥
मूल भाषांतर. दर ए अव्यय अर्धा अर्थमां अने पत्-थोडा अर्थमा प्रवर्ते. सं. दरविकसितं तेनुं दर-विअसि एबुं पाय. एटले अधैं अथवा श्रोतुं विकाश पामेलु एवो अर्थ थाय. ॥१५॥
॥ दुढिका ॥ दर ११ अर्धं च अल्पं च अर्धाल्पं तस्मिन् विकसितं कगचजेति कबुक् तबुक् च ११ क्लीबे सम् मोनुण विकसिथं ॥ २१५ ॥
टीका भाषांतर. दर ए अव्यय अर्ध अने शत्-थोडा अर्थमा प्रवर्ते. सं. विकसित तेने कगचज क्लीबेसूम् मोनु० ए सूत्रोथी विअसिअं एव॒ रूप थाय. ॥१५॥
किणो प्रश्ने ॥१६॥ किणो इति प्रश्ने प्रयोक्तव्यम् ॥ किणो धुवसि ॥
मूल भाषांतर. किणो ए अव्यय प्रश्न अर्थमा प्रवर्ते. सं. किणो धुवसि तेनुं किणोधवसि एवं श्राय. तेनो अर्थ एवो श्रायके, तुं केम कंपेठे ! ॥ २१६ ॥
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४६ए
द्वितीयःपादः
॥टुंढिका॥ किणो ११ अव्यय प्रश्न ७१ धूराह कंपने धू धुगे वि धू स्थाने धुव इति वर्तण सिवू द्वितीयसिसे सिवस्थाने सि व्यंजनात् बुक् वस्य लोपः लोकात् धुवसि ॥२१६ ॥ ___टीका भाषांतर. किणो ए अव्यय प्रश्न अर्थमा प्रवर्ते. धू ए धातु कंपवाना अर्थमां ने. सं. धू तेने धुगेवि वर्तमाना द्वितीयसिसे व्यंजनात् लोकात् ए सूत्रोथी धुवसि एव॒ रूप थाय. ॥१६॥
इजे-राः पादपूरणे॥१७॥ ३ जे र इत्येते पादपूरणे प्रयोक्तव्याः ॥ न जणा अली । अणुकूलं वोक्तुं जे । गेण्ह र कलम-गोवी ॥ हंहो। देहो । हा । नाम । श्रहह।हीसि।यि। यहाद।श्ररिरिहो इत्यादयस्तुसंस्कृतसमत्वेन सिकाः।
मूल भाषांतर. इ जे र ए अव्ययो पादपूर्तिमा प्रवर्ते सं. न पुनर अक्षीणि तेनुं न जणा इ अळीई एवं थाय. सं. अनुकूलं वक्तुं जे तेनुं अणुकूलं वोत्तुं जे एवं रूप थाय. सं. गृह्णाति र कलमगोपी तेनुं गेण्हइ र कमल-गोवी एवं श्राय. हहो, हेहो, हा, नाम, अहह, हीसि, अथि, अहाह, अरिरिहो इत्यादि अव्ययो संस्कृतने अनुसरी सिद्ध थाय. ॥१७॥
॥ ढुंढिका ॥ २, जे, र, १३ पादपूरण ३१ नपुनर् अंत्यव्यं रबुक् कगचजेति प्रबुक नोणः पुर्यादा िण णा ननणा ३ इति पादपूरणे । अदि १३ ६ः खः कचित्तु बकौ दस्य ः अनादौहित्वं द्वितीयतुर्य जस्शस् इणयः स प्राग्दीर्घः जसूस्थाने णि पूर्वस्य च दीर्घः डिबी अहीइं। अनुकूल ११ नोणः क्लीबे सम् मोनु० अणुकूलं वचक् परिनाषणे वचू लुमवयोवा तः वचस्थाने वोत् मोनु वोत्तुं जे इति पादपूरणे । गृह उपादाने गृह गृहो उलगे हृहरि गृहस्थाने गेण्ह इति वर्त्तते त्यादीनां तिश् गेएद। कलमगोपी ११ पोवः अंत्यव्यंग सूलुक् कलमगोवी ॥१७॥
टीका भाांतषर. इ जे र ए अव्ययो पादपूर्तिमा प्रवर्ते. सं. नपुनर् तेने अंत्यव्यं कगचज० नोणः पुर्यादाईा ए सूत्रोथी नउणा एवं रूप थाय. इ ए पादपूर्ति अर्थे अव्यय . सं. अक्षिणी तेने क्षः खः क्वचित्तु अनादौ० द्वितीयतुर्य० जसूशस इइणयः ए सूत्रोथी अच्छीई एवं रूप पाय. सं. अनुकूल तेने नोणः क्लीवेसम्
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४७०
मागधी व्याकरणम्. मोनु० ए सूत्रोथी अणुकूलं एवं रूप थाय. सं. वच धातु बोलवामां प्रवर्ते. तेने लमवचोवोतः मोनु० ए सूत्रोथी वोत्तु ए रूप थाय. सं. जे अव्यय पादपूर्तिमां जे. गृह ए धातु ग्रहण करवामां प्रवर्ते. तेने त्यादीनां तिइ ए सूत्रे गेण्हइ रूप थाय. सं. कलमगोपी तेने पोवः अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी कलमगोवी ए रूप सिद्ध थाय. २१७
. प्यादयः॥१७॥ प्यादयो नियतार्थवृत्तयः प्राकृते प्रयोक्तव्याः ॥ पि वि श्रप्यर्थे । _मूल भाषांतर. नियत अर्थमा प्रवर्त्तता एवा पि विगेरे अव्ययो प्राकृतमां योजवा पि वि ए अन्ययो अपिना अर्थमा प्रवर्ते. २१७ ।
इत्याचार्य श्री हेमचं सूरिविरचितायां सिझमचंसानिधानस्वोपशब्दानुशासनवृत्तौ श्रष्टमस्याध्यायस्य . द्वितीयःपादः
समातः आचार्यश्री हेमचंघसूरिविरचित सिद्धहेमचंद्र नामे स्वरचित शब्दानुशासन वृत्तिना आठमा
अध्यायनो बीजो पाद समाप्त अयो. द्विषत्पुरदोद विनोदहेतोर्नवादवामस्य नवजस्य । श्रयं विशेषो नुवनैकवीर परं न यत्काममपाकरोति ॥१॥
भावार्थः हे नुवनमा एकवीर सिद्धराज, शत्रुना नगरने चूर्ण करवाना विनोदनो हेतुरूप एवा तमारा दक्षिण नुजमां नव-शंकरना करतां एटलो विशेष ने के, जे काम-मनोरथ दूर करतो नश्री. एटले नव-शंकर कामदेवने दूर करे अने तमारो जुज कामने दूर करतो नश्री एटलो ते शिवश्री विशेष बे,
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शुद्धिपत्रकम्.
अशुद्धम्. शुद्धम्. पृष्टांकाःपंक्तयः। अशुद्धम्. शुद्धम्. पृष्टांकाः। पंक्तयः। एम
अमे ५ ३ मुझाइअने मुडाए मुद्धाई अने मुझाए१० १ए पूर्वाचार्य संबंधी पूर्वाचार्य ते संबंधी ५ १६ यस्य धस्य १० ए वारीम वारिमश ६ । पक्ष नुज्यंत नुज-यंत्रं ६ ४ कादयां कांदायाम् ११ पश्हरं पई-हरं ६ ५ विश्स विळ १२ जजण अडं अँजण अडं ६ ७ उढो
ऊढो १३ जजणा अमं अँजणा अमं ६ ७ अवनगे अवऊढो १३ न सोत्तं नई सोत्तं ६ ७ अवजन अवऊढ १३ बहुमुहं वहु मुहं ६ जधरवधप कघथघ १४ बहूसुह वहूमुहं ६ न वेरि न वैरि १४ जुवई-श्राणो जुवश्-जणो ६ ११ वगोवि वग्गेवि १४ वारिम वारी-मश ६ १२ प्रतिवेधा प्रतिषेधा १६ १ तुज्यंतं नुजयंत्रं
१२ विसमा विससिङ १७ मालस्य मालस्स ६ १४. नणः नोणः १७ १७ नसोत्तं नई सोतं ६
१६ सूसासो सूसासा १५-२५-१७.२५ अंत्यं व्यंजनस्य अंत्य व्यंजनस्य६ २७ सूसासो सूसासा २० १-७ श्चित्तयुवा युवाचा
१० विनक्तिनो विनक्तिनी २० मालस्य मालस्स ७ २५ त्त उमौ त्त उौ २० नइ सोत्तं नई सोत्तं ७ २६ अतो उवरि अंतो उवरि २४ गहं
६ सरिया सरिया २५ नार नार
पाभिवा
पामिवया २५ अंतःसे? अतःसे?ः
संपा संपया २५ वारिमई वारिम वारीमई वारीमश्
| विजु खथयधनां खथघधमां ए २७ ईवत्
क्षत् नश्स्रोत नई सोत्तं ए | वप्पयार्जः द्यय्यर्या जः २५ नश्स्रोतसू नसोत्तस् ए
विजु
वित २५ नस्रोत्तम नसोत्त ए ३१ बाक्ष्यादौ गेऽक्ष्यादौ २६ घनयोः घना १० ५ | मिसक् मिषक् ७
१३ दीहा ऊ दीहाऊ सो २८
वीहू
वी
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विज
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शुद्धिपत्रम्.
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अशुद्धम्. शुद्धम्. पृष्टांकाः। पंक्तयः । अशुद्धम्. शुद्धम्. पृष्ठांकाः पंक्तयः।
कलहा ) ३० अनिजाति अलियाति ६७ २४ मौ उफौ ए २५ योमकार योऽकार ७३
बौ ३ ६ कणी कुणी ७३ आले
आलेय ३० २० आगो साणो ७३ अजियं अजियं
२६ पशुमं
पदम ७५ आलेख्य आलेढुय ३० २६ ब्रह्मचरं ब्रम्हचेरं उए वयततप्त यत् तत् ३१ ह्म ह्म
म्ह म्ह पए श्रालेझबरं आलेषकं ३१ २६ उप्पेई अप्पेश उप्पे अप्पेश्१ फौ
११ न जणाई न जणाश् २ सकं सरकं
१४ मां मः म्हां म्हः ६ वालेखु आलेढुकं ३२ ३४ अहवा अद वा ७ पडक्ता पङक्तिः
१२ ठेकाणो ठेकाणे गिळं गं
श्ए अरनादौ अनादौ नए गिती गिठी ३४ ३० पास पासू पंसु
पंसू ४० २५ यो च चोच्च मास मांस ५१ १ वारं
बारं कए तथा कंए कण्डं तथा कम ४३ ए वारं बारं यमा प्रप्तौ यथा प्राप्तौ ४३ २७ नेर ईओ
एy उसो उसो ४५
६ नारई
नार ए पाऊसो पाउसो ४५ ए रुति इति ए सरवो सर पर
१६ मासादे
मांसादेर्वा १०१ सरवो सर पर
२५ पंथिपृथिवी पश्रिपृथिवी१०५ अजविस अझवि सा 19 ७ स्त्रियामदवि स्त्रियामादवि१०५ बडौ बौ र २५ फूअं इङ्गुरं १०३ बिन्दु बिन्दूई ५१ ७ निस्संहानि निस्सहानि १०६ बिन् बिन्दूई ५१
७४ सुर-बहु-सत्थो सुर-बहु-सत्यो १०॥ पृष्टमित्ये पृष्टमित्वे ५३
१४ औज्करो ओज्करो १११ मुली कुली
१५ क मा रा क म्हा रा १११ पृथ्वादोनश्च पृथ्वादीनश्च५३ १० कमारा कम्हाश १११
पृष्ट ५३ २६ मादेशः म्हादेशः ११२ वाहू बाहू
१२ ति ति तीति ११५ जिम्मल्लं
निम्मल्लं एए ३ ज्यु ज यु जु ११० अह्मे अम्हे एए १५-२२ जिम डो निजमी ११ए
एव ए४
नेरो
२५
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م س س
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शुद्धिपत्रकम्, अशुद्धम्. शुद्धम्. पृष्ठांकाः पंक्तयः। अशुद्धम्. शुद्धम्. पृष्ठांकाः पंक्तयः । मु मा मुमो १२३ २४ कंगालो इंगालो २ ६ दूऊलं पुऊलं १२५ रुपण रु गण वव्वुढं नव्बूढं १२६
१५ हरितादित्वे हरितादिवत्वेश्व शृङ-पृष्टे शृङ्गःपृष्टे १३६
२७ लं लं लङ्गलं २ सिऔ नगे
सि आ १४२ १५ ण लं लङ्गुलं ललं २५० सिआगे
सिआ १४२ २६ निसमण्मप्पिअ-णिसमणुप्पिा -२५७ १३ मस्य ढः टस्य ढः १५२ २५ हिसस्स हिअस्स २५७ १३ द इ य्यो दइ चो १५४ २० अर्ह अर्ह २६५ २ वैजयन वैजनन १५५ जस्य
कस्यरवो २६५ २२ मुशायणो मुकायणो १६५ २० संवच्छरो। संवबरो। चिश्च्छ॥२२ २ए शौ छोदनी शौ छोदनि १६३ १ जोञः ज्ञोजः ३३० कौदेयेक कौदेयके १६३ ७ संबंधिनो झसंबंधिनो ३३७ सस्वव्यंजनेन सस्वरव्यंजनेन १७० २६ सीआणं ॥ ६॥ सीआणं सुसाण
रुत १७३ २७ मित्यपि नवति ॥ ६॥ ३३१
सस्वर १७५ १३ सलहा सलाहा ३६५ जवऽच्छगन जवज्का १७५ १५ करू
कणेरू ३७७ णुसण्णो णुमणो १७६
ह-दोः ३७ए पडरणं पडरणं १७६
२६ थिंचव
चिंचव ३४ अवणो - अवर्णो १७६ १० शब्दस्थ शब्दस्य ३५ रवसिए खसिधे १७
२६ धृति
धृति ३८५ पुष्पं
२०२ २२ मा देशीमपि मादेशमपी४०७ पिढडो पिढरो २०३
७ जहा
जह ४१२ रूणं
रुणं २११ १२ मतऐव मतएव ४५२ अहकखायं अह क्खायं १३६ १६ धूमवमवो धूमवमलो ९० जुह्म दम्प जुम्हदम्ह २३०
इति शुद्धिपत्रं समाप्तम्.
रूत
१२
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