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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमःपादः। १४५ रेमश्च मोनु० ए सूत्रोथी पिहं पुहं रूप थाय. सं. मृदंग तेने चालता सूत्रे प्रथम पक्ष मृनो मि अने बीजे पक्ष मृ नो मु थाय. पजी इस्वप्नादौ अतः से?: ए सूत्रोथी मिहंगो मुइंगो एवां रूप थाय. सं. नसृक तेने कगटड चालता सूत्रे तु नो ति तथा तु थाय पठी अनादी द्वित्वं कगचज ११ अतः सेडों: ए सूत्रोथी नत्तिओ नत्तुओ रूप सिद्ध थाय. ॥ १३७ ॥ वा बृहस्पतौ॥१३७ ॥ बृहस्पतिशब्दे शत श्छदौ वा जवतः ॥ बिहप्फई बुहप्फई। पदे बहफई ॥ १३७ ॥ मूल भाषांतर. बृहस्पति शब्दना ऋना इ अने उ थाय. सं. बृहस्पति तेना बिहप्फई वुहप्फई थाय अने पक्ष बुहप्फई पण श्रायः ॥ १३ ॥ ॥ टुंढिका ॥ वा ११ वृहस्पति ७१ वृहस्पति- अनेन वृ वि द्वितीये वृ तु पस्पयोः फः स्पस्य फः अनादौ हित्वं । द्वितीयपूर्व फ प कगचजेति तबुक् ११ अक्लीबे सौ दीर्घःई अंत्यव्यं सबुक् बिहप्फई बुहप्फई। यत्र श्छतौन जवतःतत्र तोऽत् बहप्फई तहदेव ॥१३॥ टीका भाषांतर. बृहस्पति शब्दना ऋना इ अने उ थाय. सं. बृहस्पति तेने चालता सूत्रे वृनो वि श्राय बीजे पक्ष वृनो वु थाय. पनी पस्पयोः फः अनादौन द्वितीय० कगचज० अक्लीये सौदीर्घः अंत्यव्यंजन ए सूत्रोथी विहप्फई वुहप्फई एवां रूप पाय. ज्यारे इ के उन श्राय त्यारे ऋतोऽत् सूत्रथी बहप्फई रूप श्रायः ॥१३॥ श्देदोद् ढन्ते ॥१३॥ वृन्तशब्दे शत श्त् एत् उच्च जवन्ति ॥ विएटं वेएटं वोएटं ॥१३॥ मूल भाषांतर. वृन्त शब्दना * नो इ ओ ओ श्राय. सं. वृन्त तेनां विण्टं वेण्टं वोण्ट रूप थायः ॥ १३ए॥ ॥ टुंढिका ॥ श्देदोत् ११ वृन्त ७१ वृन्त ७ अनेन प्रथमे वृ वि द्वितीये वृ वे तृतीये वृ वो वृन्तएटः इति तस्य एटः ११ क्लीवे समू मोनु विएटं वेएट वोएटं ॥ १३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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