SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मागधी व्याकरणम्. कालु काक्षायां उदितस्वरान्नंतः कांद्रवर्त्त० तिव व्यंजनात् लोकात् कांदेराहाहिलंघा दिलं खवच्चर्व फमद सिंह विसुंपा काकस्थाने वफादेशः त्यादीनां ति इयनेन वानुस्वारस्य मः वम्फर बंफई। कदंब थारंज कदंबेवा दस्यलः यदा करंव इति प्रकृतिस्तदा पूर्वहरिद्रादौ लः रस्य लः अनेन वानुखारः श्रतः सेर्डोः कच्चालेम्ला । कलंम्बो कलंबो । श्रारम्नो रंजो । संशय ११ शषोः सः कगचजेति यलुक् छातः सेर्डोः डित्यं ससर्ज संपूर्वहरणे हृ वर्त्त० तिरुवर्णस्यार् दर् व्यंजनात् लोकात् त्यादीनां०] संदर६ ॥ ३० ॥ टीका भाषांतर. वर्ग ११ अंत्य ११ वा ११ संस्कृत पंक शंख अंगण लंघन ए शब्दोने या नियमथी विकल्पे अनुस्वारनो ङकार थाय पढी शषोः सः क्लीबे सम् मोनु० अ अतः सेड ए सूत्रो लागी पङ्को तथा पंको सङ्खो तथा संखो अङ्गगणं तथा अंगणं लङ्घणं तथा लंघणं एवा रूप सिद्ध थाय. संस्कृत कंचुक, लांछन अंजित ने संध्या ए शब्दोने चालता नियमथी विकल्पे अनुस्वार तथा अकार थाय. ज्यां संजवे त्यां नोणः पढी अतः सेड क्लीबे सम ने मोनु० प्राप्त थाय ने संध्या शब्दने साध्वसध्यत्ह्यांझः ए सूत्रश्री ध्याने स्थाने का थाय पछी सर्वने अंत्य० सलुक् ए नियम लागी कञ्चुओ, तथा कंचुओ लञ्छणं तथा लंछनं अञ्जि तथा अंजिअं सञ्झा तथा संझा एवां रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत कंटक उत्कंठा कंठ षंढ ए शब्दोने सूत्रवडे विकल्पे अनुस्वारनो लोप करी ज्यां संजवे त्यां क ग द डअनादौ ० ह्रस्वः संयोगे शषोः सः कखचज अतः सेड अंत्यव्यंजन० क्लीबे० ए सूत्रोश्री कण्टओ तथा कंटओ उक्कण्ठा उक्कंठा कण्ठ कंठ सण्ढो संढो एवां रूप सिद्ध थाय बे. संस्कृत अंतर पांथ चंद्र तथा बांधवना श्रा चालता सूत्रे विकटुपे अनुस्वार ह्रस्वः संयोगे प्रेरोनवा क्लीबे सम् श्रतः सेर्डो ए सूत्रोथी अन्तर अंतर पन्थो पंथो चन्दो चंदो बन्धवो बंधव एवां रूप सिद्ध थाय बे. कंप धातु कंपवामां प्रवर्त्ते बे. ते धातु दित होवाथी कंप् एवं रूप याय. तेने त्यादीनां ए सूत्रवडे ति प्रत्यय आवी लोकव्याकरणथी वा श्रा चालता सूत्रथी अनुस्वार नो म् श्राय एटले कम्पड़ ने विकट कंपइ एवां रूप थाय. कांक्ष धातु आकांक्षामां प्रवर्त्ते तेने उदितः खरानंतः वर्त्तमाने तिव व्यंजनात् लोकात् कांक्षेराहाहि० ए सूत्रवडे वं श्रादेश थाय पी चालता सूत्र अनुस्वारनो विकल्पे म थाय एटले वम्फइ वफइ एवां रूप सिद्ध था. संस्कृत कदंब तथा आरंभ शब्दने कदंबे वा ए सूत्रथी द् नो ल थाय जो करंच एवं मूलरूप होय तो तेने पूर्व हरिद्रादौ लः ए सूत्रथी र नो ल थाय. पती श्री सूत्रवडे विकल्पे अनुस्वारथ अतः सेड ए सूत्र लागी कलम्बो तथा कलंबो एवां रूप सिद्ध थाय. तेवीज रीते आरम्भो तथा आरंभो एवा पण रूप सिद्ध थाय. संस्कृत संशय शब्दने शपोः सः क ग च ज अतः सेड: डित्यं इत्यादि सूत्रो लागी संसओ ए रूप For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy