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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मागधी व्याकरणम्, रूप सिद्ध श्रया. संस्कृतमा दधिईश्वरः एटले दहीं जेने मुख्य प्रिय ने एवो ईश्वर, तेनुं प्राकृतमां दहिइसरो तथा दहीसरो थाय बे. खथ० ए सूत्रथी ध कारनो हथयो, एटखे दहिईश्वरः एवं अयु. पनी था सूत्रथी विकटपे संधि थतां दहीश्वरः एवं अयु. सर्वत्र ए सूत्रथी वू नो लोप थयो, अने शषोः सः ए सूत्रथी शू नो स् थयो, एटले दहीसरः एवं थयु. पनी अतः सेडों तथा डित्यंत्य० ए बे नियम लागवाथी दहि ईसरो तथा दहीसरो एवा बे रूप सिद्ध श्राय जे. संस्कृत खादुउदक एटले स्वादिष्ट जल तेनुं प्राकृत साउअयं अने साउउअयं एवा बे रूप थाय बे. ते श्राप्रमाणे. सर्वत्र वलुक् ए सूत्रथी व नो लुक् थयो, एटले साउउदक श्रने द् नो खोप थयो, अनेक स्थाने य् थयो, एटले साउउअय अने विकटपे संधि अवाथी साउअयं एवं रूप श्राय बे. मूलमां बे पदनुं ग्रहण , तेथी पाओ ते पदमां संधि विकटपे न थाय. ते रूप अतः सेडों ए सूत्रथी सिद्ध थाय बे. संस्कृत पतिः तेनुं प्राकृत पद थाय . ते श्राप्रमाणे. पति तेने क ग चेति सूत्रथीत् नो लुक् श्रतां पइ थाय. पनी अक्लीके सौ दीर्घः ए सूत्रथी दीर्घ अइ. अंत्यव्यंजनसलुक्वडे विनक्तिना स नो लोप थ पह एवं रूप सिद्ध पाय. संस्कृतमां वस्त्र तेनुं प्राकृत वत्थाओ एवं श्राय बे. ते आप्रमाणे. वस्त्र शब्दने सर्वत्ररलुक ए सूत्रधी र उडी गयो, एटले वस्ता एवं अयु. पठी स्तस्यथोऽसमस्त स्तंबे स्तवे वा स्तस्यथः ए सूत्रधी स्तनो थ् थयो, एटले व थ थयु, पनी अनादौ बित्वं ए नियमश्री वथ्थ अयु. पी दितीय ए नियमयी पूर्व थ नो त् थयो, एटले वत्थ एवं श्रयु. पठी जर शस् ङ सित्तोद्वामि दीर्घः ए सूत्रधी वत्था एवं श्रयु. पळी डसेस्तो दुहिहिंतोलुक ए सूत्रथी उस ने स्थाने दो थयो. पठी कगच सूत्रथी द्नो लोप थयो, एटले वत्थाओ ए रूप सिद्ध थयु. संस्कृत मुग्धया तेनुं प्राकृत मुद्धाइ तथा मुडाए थाय . ते या प्रमाणे- मुग्धयाटा क गट डेति ए सूत्रथी ग् नो लुक्थयो, अनादौ द्वित्वं सूत्रधी विरोव अवाश्री मुद्धया एवं अयु. पनी द्वितीयतुर्ययोरुपरिपूर्वः ए सूत्रयी पूर्व धू नो द थयो, पनी टाऊसूङे रदादिदे छातुङसेः ए सूत्रथी दा ने स्थाने इ तथा ए थया. एटले मुडाइ तथा मुडाए ए बे रूप सिद्ध थया. संस्कृत काक्षु एटले श्वा करवी, ते कानुं प्राकृतमां महइ श्रने महए एवा रूप धाय ले. कांक्षेराहाहिलंघाहिलंखवच्चवंफमहसिंहविभुंपाः ए सूत्रथी कांक्षु ने स्थाने मह एवं रूप थाय. पनी व्यंजनादंतेऽत् अने लोक व्याकरणथी त्यादि विनक्तिने त्यादिनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ ए नियमथी तिव ने स्थाने इ तथा ए श्रावे, एटले महई तथा महए एवा रूप थाय.त्त रूपने स्यति भविष्यति हिरादिः ए सूत्रथी हि एवो आगम थाय. पनी त्यादि विनक्तिउने पश्यति ने स्थाने इयइ इति, पनी बहुप्स अधिकारश्री क्वचित् एक पदमां पण संधि श्राय, तेथी समानानां दीर्घः ए सूत्र वडे काहिइ तेनुं काही एवं रूप सिद्ध थयु. संस्कृतमा वितीय तेनुं प्राकृत बिइओ श्रने संधि अयेडं रूप बीओ एम थाय . ते आप्रमाणे. वितीय, तेने क गट ड सूत्रथी द् नो लुक् अयो, श्रने क ग च सूत्रधी त् तथा य् नो लुक् अयो, एटले विइस एवं श्रयुं, For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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