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प्रथमः पादः। बः अक्कीबे कुछी ।रश्मि अधोमनयां शषोः सःअनादौ द्वित्वं रस्सी। ग्रंथि ग्रंथो गंठः गंग्लादेशः। गरौशब्दस्य पुंस्त्रीलिंगे उक्ते गर्त ग
तेंडः तस्य डः अनादौ हित्वं गड्डा गड्डो ॥ ३५ ॥ टीका भाषांतर. वा ११ अंजलि शब्द ने श्राद्य-मुख्य जेमने ते अंजस्याद्य शब्दो जाणवा, तेमज इमा एटले इमन् प्रत्ययवाला शब्दो ते विकल्पे स्त्रीलिंगे वाय. संस्कृत एतद् शब्दने अंत्यव्यं० एत थाय पनी तदश्चतः सोऽक्लीबे एस थाय पनी अंत्यव्यंजन सूत्रथी सू नो लुक् अश् आत् ए सूत्रे आप आवी एसा रूप थयु. संस्कृत गरिमन् शब्दने स्त्रियामादविद्युतः ए सूत्रथीन् नो आ श्रयो पनी अंत्य सलुक् अने था चालता सूत्रथी विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थइ गरिमा एq रूप थाय. बीजे पदे. एतद् शब्दने अंत्यव्यंज० तश्च तः सो० एटले एस रूप थाय. गरिमन् शब्दने पुंस्यन आणो राजवच ए सूत्रथी न नो आ थाय पछी अंत्यव्यंजन सलुक् लागी गरिमा रूप सिद्ध अयु. एसा महिमा त्यां एसा पूर्ववत् सिद्ध करवं. महिमन् शब्दने महिमानो जे नाव ते महिमा कहेवाय तेने आ चालता सूत्रथी विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थाय एटले स्त्रियामाद ए नियमलागी महिमा रूप थाय. पुंलिंग पदे पुंस्यन आणो० ए सूत्रे न नो आ थई महिमा रूप सिह थाय. संस्कृत निर्लज तेने निर्लजनो जे नाव ते निलेजत्व कहेवाय. अहिं भावे तलत्व प्रत्ययः ए सूत्रधी व प्रत्यय आवे. पठी अहिं डिमा प्रत्ययलागी डित्वपणाथी अंत्यस्वरनो लोप थई आ चालता सूत्रथी विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थाय. स्त्रीलिंगपदे स्त्रियामाद ए सूत्रलागी बाकीनी साधना पूर्ववत् करवी. पजी सर्वत्र रलक अनादौ द्वित्वं ए सूत्रोलागी निल्लज्जमा रूप सिद्ध थाय. पुंलिंग पक्ष पुंस्यन आणो राज ए सूत्रलागी निल्लजमा रूप सिद्ध थाय. संस्कृत धूर्त धूतनो जे नाव ते धूतत्व कहेवाय. अहिं त्व प्रत्यय आव्यो. पठी हृस्वः संयोगे सर्वत्र रलुक अनादौद्वित्वं ए सूत्रोलागी त्व प्रत्ययने डिमा प्रत्यय लागे डित्यं० ए नियमलागी धृत्तिमा रूप सिद्ध थाय. बीजे पदे धूर्तः एवं थाय. संस्कृत गर्त शब्दने पृथ्वादिरिमन् ए नियमथी विकटपे इमन् प्रत्यय आवे. पती अंत्यस्वरादे० ए सूत्रथी अंत्यस्वरनो लोप थाय. पी लोकातू पुंस्यनआणो ए सूत्रोलागी गत्तिमा रूप सिख थाय. संस्कृत अंजलि ११ शब्दने अक्लीबे० सूत्रलागे पठी स्त्रीलिंगमां एसा अंजली एवं रूप थाय. पुंलिंगमां एस अंजली एवं थाय. संस्कृत पृष्ठ शब्दने पृष्टेवानु त्तरपदे ए सूत्रथी पृ नो पि थाय. पनी इःस्वप्नादौ ए सूत्रलागी पृष्टि थाय. पनी ष्टस्यानुष्टा ए सूत्रथी ष्ट नो थ थाय, पनी अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व ठ नोट थाय. पनी था चालता सूत्रे विकटपे स्त्रीलिंगपणुं थाय अने अकीबे दीर्घः अने एकपड़े ई कार न थाय अने क्लीबे सम् मोनु ए सूत्रोलागी पिट्टी पिठं एवां रूप सिद्ध थाय. संस्कृत अक्षि शब्दने छोऽक्ष्यादौ अक्लीबे दीर्घः क्लीबेखरान्म्से ए सूत्रोलागी अच्छी आच्छि एवां रूप सिद्ध थाय, संस्कृत प्रस्त शब्दने सर्वत्र रलुक् सूक्ष्मश्नष्ण
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