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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मागधी व्याकरणम्. ॥ ढुंढिका॥ न ११ श्रत् उत् ६२ श्रत् पूर्वो धा, श्रदोधो दहःधास्थाने दह सर्वत्र र बुक् शपोःसः क्त प्र व्यंजनाददंतेऽत् लोकात् दुक ते दहि क ग च जेति तबुक् ११ क्लीबे सम् मोनु० सदहिवे।श्रदव्यय पूवकं धा धा श्रझानं श्रद्धा निदाध्यः श्राङ् पूर्व इडेत् पुंसि चतो बुक् थालोपः बाहुलकारात् न खथघधनां कगटगेति प बुक् श्रनादौ हित्वं धस्य हित्वं द्वितीय पूर्वधस्य दः आदित्याए सर्वत्र र बुक् शषोःसः सदा उद् पूर्व प्रम डम हगमौ गतौ गम् पम् प्रहत्वे पम् पाहाधा नाम् उद् गबति स्म उन्नमतिस्म ग त्यर्थादकर्मकाच्च कतरिक्तप्र त इति यमिरमिनमिगमि मलुका क गट डेति द बुक् अनादौ हित्वं क ग चजेति तबुक् अवर्णो ११ क्लीबे सूम् मोनु० जग्गयं उन्नयं ॥ १२ ॥ टीका भाषांतर. न प्रथमा एकवचन श्रदुतोः षष्ठी विवचन, संस्कृत श्रद्धधितं नुं प्राकृत सद्दहिअं थाय. ते श्राप्रमाणे-श्रत् उपसर्ग पूर्वे एवो धा धातु, अदोधो दहः सूत्रथी धा ने आने दह थाय, पठी सर्वत्र र लुक् सूत्रथी र नो लुक् थाय, पनी शषोःसः थी सदह थयु. पनी क्त प्रत्यय आव्यो, पली व्यंजनाददंतेऽत् अने लोकात् सूत्रोथी लुक् करी क्त प्रत्यय परउते दहि थाय, पठी कगचजे ति सूत्रथी त् नो लुक् अश् क्लीवे मम् अने मोनुवार सूत्रोथी सद्दहिअं रूप सिद्ध श्रयु. संस्कृत श्रद्धा नुं प्राकृत सद्दा थाय बे.ते आ प्रमाणे- श्रधा (आस्था) श्रत् उपसगे पूर्वक धातु धा भिदादयः आङ् पूर्व इडेत् पुंसि च तो लुक इत्यादि नियमथी आ नो लोप थाय. पली बहुल अधिकारथी नन पण थाय खथघधभां, कगटग इत्यादि नियमोथी द नो लुक् थयो, पजी अनादौ हित्वं सूत्रथी ध नो बिर्ताव अयो, पनी द्वितीय ए नियमश्री पूर्व ध नो द थयो, पछी आत् सूत्रथी आप् आव्यो, पजी सर्वत्र र लुक अने शषोःसः सूत्रो लागी सदा सिद्ध श्राय ने. संस्कृत उद्गत नुं प्राकृत उग्गय श्रने उन्नत नुं उन्नय थाय . ते आ प्रमाणे- गम् (जq ) नम् ( नमवू ) आ बे धातु ने गत्यर्थदकर्मकाच सूत्रथी क्त प्रत्यय आव्यो. गम् + त नम् + त यमि रमि नमि गमि सूत्रथी म नो लुक् थयो, पछी कगटड सूत्रथी द् उडीगयो, पनी अनादौ द्वित्वं सूत्रथी बिर्ताव अयो, कगच जेति सूत्रथी त लुक् करी अवर्णो, क्लीवेसम्, मोनुस्वार सूत्रोथी उग्गयं अने उन्नयं रूप सिद्ध श्राय . एटले तेनो अधिक गति करेलुं श्रने उंचे नमेलु एवो अर्थ थाय ने. १५ For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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