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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ माधी व्याकरणम्. थाय. पी चालता सूत्रे क्त्वा ने स्थाने चा थाय. अनादौ ० अव्यय लुक् ए सूत्रोश्री णच्चा रूप याय. सं. श्रुत्वा तेने उत्संयोगे सर्वत्र रलुक् चालता सूत्रे क्त्वा ने स्थाने चा थाय. पती अनादौ० ए सूत्रे सोच्चा रूप थाय. सं. पृथ्वी तेने इत्कृपादौ चालता सूत्रे थ्व नो छ थाय. पठी अनादी द्वितीय० पूर्वछच अंत्यव्यं ० सलुक् ए सूत्रोथी पिच्छी रूप थाय. सं. विद्वान् तेने अंत्यव्यं ० चालता सूत्रे द्वा नोज थाय. अनादौ ० वाव्ययोत्खातादावदातः क्लीबे सम मोनु० ए सूत्रोथी विज्जं रूप थाय. सं. बुद्धा तेने चालता सूत्रे ध्व नो झ थाय. अनादौ ० द्वितीयपूर्व० अव्यय० ए सूत्रोथी बुज्झा रूप थाय. भोच्चा ए गाथानी शब्द साधनिका आप्रमाणे सं. भोक्ता तेने उत्संयोगे चालता सूत्रे क्त नो च थाय. अनादौ द्वित्वं द्वितीय पूर्व० अव्यय० सलुक ए सूत्रोथी भोच्चा रूप थाय. सं. सकलं तेने शेषेऽदंत वत् हखोमि आमोऽस्य अमोलोपः मोनु० ए सूत्रोथी सयलं रूप श्राय. सं. पृथ्वी तेने इत्कृपादौ चालता सूत्रे थ नो छ थाय. पढी अनादौ ० द्वितीय० अम् लोपः शेषेऽदंतवत् खोमि ए सूत्रोथी पिच्छ रूप याय. सं. विद्धि: तेने अंत्यव्यंजन ० चालता सूत्रे ध नो ज थाय. अनादौ ० बाहुलकात् वाखरे मश्च मोनु० ए सूत्रोथी विज्जं रूप याय. सं. बुद्धा तेने चालता सूत्रे ज थाय. पती अनादौ द्वितीयपूर्व० अंत्यव्यंजन० ए सूत्रोथी बुज्झा रूप याय. ते गाथानो शब्दार्थ प्रमाणे हे न्यगामिन् एटले जेना जेवी गति बीजाने नथी एवा हे शांतिनाथ प्रभु, तमे परमशिव (मोक्ष) ने प्राप्त थयेलाबो. शुं करीने ते कहे बे-सर्व पृथ्वीनो बोध प्राप्त करी तपस्याने चरी, विधान् एवा तमे मोहने प्राप्त न्यगामिन् तेने अधोमनयां नोणः अनादौ० कगचज० वा अंत्यव्यं० स्यम्जस् बासांलुक्स्लोपः ए सूत्रोथी अयगामि एवं रूप याय. त्यज धातु हानि अर्थमां प्रवर्त्ते त्यजने क्त्वा प्रत्यय यावी त्योचैत्ये ए सूत्रथ त्य नो ज थाय. एटले चजू एवं रूप थाय. पबी व्यंजनाददते० लोकात् कगचज पञ्चका तुम् तव्य भविष्यत्सु अइकस्तु मत्चूणतु आणा ए सूत्रे त्वा प्रत्ययने तूण आदेश आय. पी कगचज ए सूत्रे चइऊण एवं रूप थाय. सं. तपस् तेने अंत्यव्यं० वास्वरेमश्च क्लीषे सम् मोनु० ए सूत्रोथी तवं रूप याय. सं. कृ धातुने त्वा प्रत्यय त्याग करी, प्रतिथयेलाबो. सं . अनअवर्णो सेवादौ वे पीत्वाकस्तु मतृणतु आणा ए सूत्रे त्वा ने स्थाने तृण आदेश थाय. पी आकृगोभूत० कगचज मोनु० ए सूत्रोश्री काउं रूप थाय. सं. शांति तेने शषोः सः ह्रस्वः संयोगे अक्लीबे दीर्घ अंत्यव्यं ए सूत्रोथी संती रूप थाय. सं. प्राप्त तेने सर्वत्र ह्रस्वः संयोगे कगचज अनादौ तः सेर्डोः ए सूत्रोथी पत्तो रूप थाय. सं. शिव तेने शषोः सः क्लीबै सम मोनु० ए सूत्रोथी सिवं रूप थाय. सं. परम तेने क्लीबे सम मोनु ए सूत्रोथी परम रूप थाय. १५ For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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