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प्रयमःपादः। भुजयंत्रं ना प्राकृत भुआयंतं.अने भुअयंतं एवा बे रूप थाय . कगतजनद ए सू. त्रश्री ज अने य नो लुक् थयो, एटले भुअअंत्र थयु, पनी था सूत्रवडे क्वचित् विकटपे हस्वनो दीर्घ अयो. एट अ नो श्रा अयो, एटले भुआअंत्र अयु, पनी सर्वत्रलवरामचंद्रे ए सूत्रवडे र नो लुक् अयो, एटले नुआयंत अयुं, पनी क्लीवेखरान्मसे ए सूत्रथी सू ने स्थाने म् थयो. पनी मोऽनुस्वारः एटखे भुआयंतं तथा भुअयंतं एवा बे रूप सिद्ध थया. । संस्कृतमां पतिगृहं नुं प्राकृतमां पहहरं तथा पईहरं थाय. पतिर्नु जे घर ते पतिगृह- पतिगृह तेने कगचजेति सूत्रवडे तनो लुक् अयो, पश्गृह थयु, पनी गृहस्य घरोऽपतौ सूत्रवडे गृहने स्थाने घर थयुं, एटले पइघर थयु. पनी खथयधनां ए सूत्रथी घ नो ह थयो, एटखे पश्हर थयु. नपुंसकमां क्लीबेस्वरान्मसेः ए सूत्रथी स् नो म् थयो. मोऽनुस्वारः सूत्र लागतां पइहरं श्रने आ सूत्रथी विकटपे ह्रस्व थतां पईहरं एवा बे रूप सिद्ध थाय ने. संस्कृत वेणुवनं, वेणु-वंशनुं वन ते वेणुवन. प्राकृत वेलुवनं ते आप्रमाणे. वेणुवनं तेने वेणौणोवा सूत्रथी ण नो त् थयो, पनी नोण सूत्रथी नकारनो णकार अयो, एटले वेलुवण अयु. तेने खरान्मसे सूत्रथी स् नो म् थइ पनी मोऽनु स्वारः लगाडी, श्रा चाखता नियमथी विकटपे इस्वदीर्घ करवायी वेलुवणं अने वेलूवणं एवा बे रूप सिद्ध श्रया.। नितंबसिलस्खलितवीचिमालस्य एटले नितंबरूप शिलाथी स्खलित थ ने वीचिमाला ( तरंगमाला) जेनी ते. अहिं कगचज सूत्रथी * अने च नो लोप भयो. पठी शषोःस सूत्रथी स् थाय, पनी था नियमथी दीर्घ खा नो ह्रस्व ल थयो, पजी क गट ड द प श ष श्कथामू लुक् ए सूत्रथी स् नो लोप थयो. पनी उ सः उस स्थाने स्स एसूत्र खगाडतां निअंबसिलखलिअवीइमालस्स ए रूप सिझ थयु । यमुनातटं यमुनानदीन तट. संस्कृत यमुनातट तेनुं प्राकृत जउणायडं एवं थाय . आप्रमाणे आदेोजः सूत्रथी थ नो ज थयो, तेथी जमुनातट भयु. पनी यमुनाचामुंडाकामुकातिमुक्तकेमोऽनुनासिकश्च ए सूत्रथी म नो लोप थयो भने अनुस्वार थयो, एटखे जउणातट एवं थयु. पनी नोणः सूत्रथी न् नो ण थयो, एटले जउणातट श्रयु. पी था चालता सूत्रथी त् नो लुकू अयो, पनी अवोयाश्रुति सूत्रथी अ नो य यो. जउणयत पी टोडस्य सूत्रधी त् नो ड थयो, पजी कीबे स् नो म् अने मोऽनुस्वार लगाडतां जउणयडं अने जउणायडं एवा बे रूप सिख थया.। नदीस्रोतस् नदीनो प्रवाह. संस्कृत नदीस्रोतसूनुं प्राकृत नइस्रोतं नईस्रोत्तं एवं थाय. आप्रमाणे. नदीस्रोतस ने क ग च ज सूत्रथी द नो खोप अयो, नइस्रोतसू थयु. चासता नियमथी दीघेनो ह्रस्व थयो, एटखे नस्रोत पठी सर्वत्रलपरलोपः सूत्रथी नइस्रोतस् पजी शषोः सः सूत्रथी श नो स् थयो, पनी तैलादौ सूत्रथी तनो बिर्ताव अयो, एटले नइस्रोत्तम् पनी अंत्यव्यंजनस्य लुकू सूत्रथी सू नो सूत्रधी लुक् पनी क्लीबे स् म् अने मोनुखार खगाडवाथी नइसोत्तं श्रने नईसोत्तं एवा बे रूप थाय. । गौरीगृहं तेनुं प्राकृत गोरिहरं तथा गोरीहरं पाय बे. गौरीगृह तेने औत ओत् सूत्रधी गौनो गो थयो, पनी था नियमधी दीर्घनो
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