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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमःपादः। कासारे ॥६॥ आसारशब्दे आदेरात ऊद् वा नवति ॥ऊसारो थासारो ॥ ६ ॥ मूल भाषांतर. आसार शब्दना आदि आकारनो विकटपे ऊकार आय. सं. आसार तेनां ऊसारो तथा आसारो एवां रूप थायः ॥ ७६॥ ॥ दुढिका ॥ ऊद ११ वा ११ श्रासारे ७१ यासार- अनेन वा श्राऊ श्रतःसेझैः ऊसारो श्रासारो ॥ ६ ॥ टीका भाषांतर. आसार शब्दना आदि आकारनो विकटपे ऊ थायजे. सं. आसार शब्दने आ चालता सूत्रथी आकारनो विकटपे ऊकार वाय. पी अतः सेझैः ए सूत्रथी ऊसारो आसारो एवां रूप प्रायजे. ॥ ७६॥ आर्यायां यः श्वश्वाम् ॥ ७ ॥ थार्याशब्दे श्वश्वां वाच्यायां यस्यात ऊर्जवति ॥ अङ्क ॥ श्वश्चामिति किम् । श्रजा ॥ ७ ॥ मूल भाषांतर. आर्याशब्द के जेनो अर्थ श्वश्रू ( सासु) अतो होय तेना ये ना आकारनो ऊकार श्राय. जेम सं० आर्या तेनुं अज्जू एवुरूप थाय. मूलमां श्वश्रू शब्दनुं ग्रहण कर्यु ने तेथी ते अर्थ न श्रतो होय तो बीजे पदे अन्जा एवं रूप पाय. ॥ ७ ॥ ॥ढुंढिका ॥ थार्या १र्य ११ श्वश्रू ७१ श्रार्या द्यय्यांजः इति जा अनादौ द्वित्वं जा ह्रखःसंयोगे आ अ अनेन जा ऊ अत अंत्यव्यंग थजा था ऊ मुत्ता शेषं तथैव ॥ ७ ॥ टीका भाषांतर. आर्या शब्दनो जो श्वश्रू (सासु) अर्थ थतो होय तो तेना र्य मां रहेला आकारनो ऊकार थाय. सं० आर्या-द्यय्यांजः अनादौ दित्वं ह्रस्वःसंयोगे आ चालता सूत्रे ऊकार अंत्यव्यं० ए सूत्रोथी अजू रूप सिद्ध थाय. बीजे पदे आनो ऊकार कर्या शिवाय बाकीनी साधनिका पूर्वनी जेम करीअजा रूप सिद्ध थाय.॥ ७॥ एद् ग्राह्ये ॥ ७ ॥ ग्राह्यशब्दे श्रादेरात एद् नवति ॥ गेज्कं ॥ ७ ॥ मूल भाषांतर. ग्राह्य शब्दना आदि आकारनो एकार आय. सं. ग्राह्य शब्दनुं गेज्म एवं रूप सिद्ध थाय. ॥ ७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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