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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ मागधी व्याकरणम्. ने, तेने उदितः स्वरानोतः वदावर्त० इत्यादि सूत्रोथी वंदने ए प्रत्यय लावी कर्तर्य वभ्यः शवप्र० सूत्रथी अ आवे, अने अलुक स्यादेत्यपदे सूत्र लागी लोक अने श्रखोकव्याकरणश्री वंदे रूप सिद्ध थाय. षन शब्दने ऋत्वादि ऋउ शषोःसः अने खथ घ ध भां भस्यहः सूत्रो लागवाथी उसह रूप सिद्ध थाय, पनी मोऽस्यलुक्ने आ सूत्रथी विकटपे अनुस्वार वाथी उसहं रूप सिद्ध श्राय. संस्कृत अजित शब्दने क ग च ज सूत्रथी त् तो लुक् अयो, पनी अमोऽस्यलुक सूत्र लागी आ सूत्रवडे विकहपे अनुस्वार अयो एटले अजियं रूप सिद्ध थयु. विकटपपदे उम्रभम् अजियं तेमां व्यंजन सूत्रथी म् नो लुक् श्रवा श्राव्यो पण आ सूत्रथी मकारनो मकारज पाय तेथी लोकव्याकरणथी उसभमजियं एवं रूप श्राय. संस्कृत साक्षात्नुं प्राकृत सक्खं थाय. साक्षात् शब्दने ह्रस्व थई संयोगे सः सूत्रथी स थयो, पनी क्षः खः कचित्तुछडौ सूत्रथी क्ष नो ख थयो, पनी अनादौ द्वित्वं नियम लागी द्वितीय पूर्वस्य सूत्रधी ख नो क थयो, पी वाऽव्ययोत्खातादावदातः सूत्रथी आकारनो अ थयो एटले सक्खे आयुं, पी बहुलाधिकारथी था सूत्रवडे बीजा व्यंजननो मकार थयो, पनी तम् लागी था सूत्रथी विकटपे अनुस्वार थयो त्यारे सकं रूप थयु. संस्कृत यत् श्रने तत् तेना प्राकृत यं तं श्राय . यत् तत् तेने आर्योजः सूत्रथी य् नो ज थयो, पळी बाहुलक अधिकारथी अम् थई या सूत्रथी अनुस्वार थइ जं तं एवां रूप सिख थाय. संस्कृत विष्वनुं प्राकृत वीसुं थाय. विष्वक् शब्दने सर्वत्र लुक् तथा ध्वनिविष्वचोरुः सूत्र लागी शषोःसः प्राप्त थया पी लुप्तयवरशषसां शषसां दीर्घः सूत्रथी दीर्घ थाय, पजी बाहुलकाधिकारथी आ सूत्रवडे अनुस्वार थवाथी वीमुं रूप सिख थाय. संस्कृत पृथकनुं प्राकृत पिहं थाय बे. पृथक् शब्दने इदुतोकृष्ट वृष्टि पृथङ् मृदंगनृप्ते के ए सूत्रथी पूनुं पिथयुं पली पृथकि धोवा सूत्रथी ने स्थाने विकटपे धू थवा आव्यो, पण विकटप पदे खथ घध भां सूत्रथी थ नो ह थयो, पनी बाहुलकाधिकारश्री क् नो म् अई अनुस्वार अयो एटले पिहं रूप सिद्ध थाय. संस्कृत सम्यक शब्दनुं प्राकृत सम्म थाय. सम्यक् शब्दने अधो मनायां सूत्रथी यू नो खुक् थयो, पनी अनादौ द्वित्वं करी मनो वि व अयो. बाहुलक अधिकारथी क नो म करी श्रा सूत्रधी अनुस्वार थाय एटले सम्म रूप सिद्ध पाय जे. संस्कृत इह अने इहक नुं प्राकृत इहं इहयं थाय . इह इहक शब्दने अव्ययपणाने सीधे लुक् थवा श्राव्यो,पण आ सूत्रथी सप्तमीना प्रत्यय डिने स्थाने म थाय, अने कग च ज सूत्रथी क नो लुक् थाय. पठी अवर्ण तथा अनुस्वार थई इहं तथा इहयं रूप सिद्ध थाय . अथवा बीजे प्रकारे संस्कृत ऋधक तथा ऋध दु शब्दनां रूप इहं अने इहयं थाय ने. ऋधक ऋधद् शब्दने अव्ययस्य सलुकू नियम लागी इत्कृपादौ सूत्रथी ऋनोई थाय, पनी खथ घ० सूत्रधी ध नो ह थाय, पनी आ सूत्रथी बेला क द नो म्म अयो, पनी कग च ज सूत्रथी कनो लुक् अश् अवर्णोऽयो लागी आ सूत्रथी अनुस्वार अयो एटखे इहं श्रने इहयं रूप प्राय बे. संस्कृत आश्लेष्टुनुं प्राकृत आलेडुअं थाय . प्र For Private and Personal Use Only
SR No.020570
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarmadashankar Damodar Shastri
PublisherNarmadashankar Damodar Shastri
Publication Year1904
Total Pages477
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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