________________
COISTER
पलाराधना
आश्वासः
-
-
व्यवहारापरिच्छेदी व्यवहारं ददाति यः॥
अवाप्यासी यशो घोरं संसारमवगाहते ।। ४६४ ।। विजयोदया-घबहारं अयाणतो प्रायश्चित्तं प्रगनतश्च कर्पतयिान । पावरणिका - पहिरते अतिचारविनाशार्थिनेति व्यवहरणीयमालोचनादिकं प्रायश्चित्तं इति नवधा । अपहरंतो प्रयच्छन् । उस्सीयदि वसीदति । कभवपंके । भसंभादियवि भयशः तुंसाबार्योऽयं यस्चिन ददाति नापं पर शोधयति । संसारभीरुयतिजनं वृथैध वेश यति इति । कम्मं च प्रादियदि पध्नाति कर्म दर्शनमोहनीयाख्यं उन्मागापदेशात् सन्मार्गविनाशनाय । तस्माइलोन दद्यास्प्रायश्चित्तमिति सूत्रार्थः । आचार्याणामियं शिक्षा । घयमाचार्या यदस्माभिर्दस तदिद कुर्विति यत्किंचन न यक्तव्यम् । श्रुतरहस्याः प्रायश्चित्तदाने यतध्वमिति ॥ .
शास्त्रमज्ञात्वा प्रायश्चित्तं ददतो दोषमाह--
मूलारा-अजार्णतो ग्रंथतोऽर्थतः कर्मतश्या विद्वान् । ववहरगिज व्यवन्हियते अतिचाराविनाशार्थिभिरनुष्ठीयते इति व्यवहरणीयमालोचनादिप्रायश्चित्तम् । ववहरंतो प्रयच्छन् । उस्सीयदि अवसीदति खिद्यते । अजर्स तुंडाचाघोऽचं यत्किचन ददाति नायं परं शोधयति संसारभीमं यतिजनं पृथा क्लेशयतीत्यकीर्तिः । कम्मं दर्शनमोहनीयाख्यं कर्म पनाति उन्मार्गोपदेशनात्सन्मार्गविनाशनाय । आवियदि स्वीकरोति ॥
प्रायश्चित्त के ग्रंथको जानकर प्रायश्चित्त देना यह अयोग्य है ऐसा वर्णन
अर्थ--ग्रंथस, अर्थसे और कर्मसे प्रायश्चित्त का स्वरूप जिसको मालूम नहीं है वह मुनि यदि बालोचनादिक नउ प्रकारका प्रायश्चित्त देने लगेगा तो वह संसारके कीचडमें फसेगा अर्थात् संसारमें भ्रमण करेगा और जगतमें उसकी अकीनि फैलेगी. यह तुंडाचार्य है अर्थात् चाहे जो प्रायश्चित्त मुखस देता है. कोनसा प्रायश्चित्त किस अपराधके लिये देना चाहिये इसका तो इसको कुछ भी ज्ञान यदि नहीं है तो यह मुनि ओंको कैसा अपराधसे मुक्त करंगा. संसारभीरु मुनिओंको यह व्यर्थ ही केश देता है. एसी लोकमें उसकी अकीर्ति फैलेगी. मनम जो प्रायश्चित्त देनेका विचार आया सो दिया ऐसा करनेसे जिनाझाका उल्लंघन हो जाता है. उन्मार्गका उपदेश करनेसे व सन्मार्गका नाश करनेसे उसको दर्शनमोहनीय कर्मका बंध होता है. इसप्रकार अश मुनि प्रायश्चित्त देनेका प्रयत्न न करें ऐसा आचार्य के प्रति यह उपदेश है. अर्थात हम आचार्य है हमने जो प्रायश्चित्त दिया है वह तुम करो ऐसा नहीं कहना चा